महिलाओं को आरक्षण देने का कानून तो अब 2023 में बना है पर लागू होने में उसे 5 साल लगते हैं, 10 साल लगते हैं, पर शैड्यूल कास्टों और शैड्यूल ट्राइबों को 1950 से रिजर्वेशन मिला हुआ है लेकिन साजिश इस तरह की है कि आज सनातन धर्म की बदौलत लगभग 4.3 फीसदी ब्राह्मण मंदिरों में 100 फीसदी, मीडिया में 90 फीसदी, राजसभाओं में 50 फीसदी, मंत्री स्तर के सचिव 54 फीसदी, सुप्रीम कोर्ट में 96 फीसदी, हाईकोर्ट में 80 फीसदी, राजदूत 81 फीसदी हैं.

व्यापार में 70-80 फीसदी वैश्य होंगे और सेना के अफसरों के आंकड़े मिलते नहीं हैं, पर पक्का है कि 70-80 फीसदी से कम नहीं होंगे. यह तब है जब नौकरियों और पढ़ाई में एससी को 15, एसटी को 7.5, ओबीसी को 27 फीसदी रिजर्वेशन है.

मतलब यह है कि संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी का रिजर्वेशन जब भी औरतों को मिलेगा वे फिर भी घरों में, समाज में, व्यापारों में, राजनीति में केवल डैकोरेशन पीस बनी रहेंगी. धर्म और राजा की मिलीभगत से सदियों से औरतों को जो दबा कर रखा है, वह आज भी उन के खून में है.

किसी भी कंस्ट्रक्शन साइट पर देख लें. आधी औरतें होंगी पर वे ही सुबह पानी भर कर लाती हैं, सुबह व दोपहर का खाना लाती हैं, बराबर की सी दिहाड़ी मिलने के बाद भी रात को खाना बनाती हैं, बच्चों को पालती हैं, कपड़े धोती हैं, पूजापाठ का जिम्मा उन के सिर पर होता है.

आदमी घर से बाहर बैठ कर दारू पीता है, बीड़ीसिगरेट पीता है, जब चाहे कमाऊ बीवी को पीटता है. अफसर बनीं आधी औरतों ने इन औरतों की सुध नहीं ली तो सांसद व विधायक बन कर वे क्या कर लेंगी? यह छलावा नहीं तो क्या है?

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