मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाले में सामने आए 634 मैडिकल छात्रों के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट ने दाखिला रद्द कर दिया है और उच्च न्यायालय का निर्णय बरकरार रखा है. 2008 से 2012 के बीच अवैध ढंग से प्रवेश पाए इन कथित डाक्टरों का कैरियर अब बरबाद हो गया है, क्योंकि उन्होंने प्रवेश के समय घोटालेबाजों का साथ लिया था.

इन 634 छात्रों से सहानुभूति रखने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि देश भर में इस तरह के काम हो रहे हैं जो छात्रों को बचपन से गलत राह पर ले जा रहे हैं और सिखा रहे हैं कि शिक्षा में हर तरह का हेरफेर संभव है और परीक्षा पैसे, चालबाजी, नकल, बेईमानी का खेल है, प्रतिभा का आकलन नहीं. अगर इन 634 ही नहीं, कुछ हजार या लाख छात्रछात्राओं के कैरियर की सिस्टम को सुधार के लिए कुरबानी देने पड़े तो गलत न होगा.

यह ध्यान रखने की बात है कि असल अपराधी वे हैं जिन्होंने इन छात्रों को प्रवेश दिलाया था और उन्हें अभी तक सजा मिल पाई है या नहीं स्पष्ट नहीं है. बहुतों पर मुकदमे चल रहे हैं, कुछ लापता हैं, कुछ जमानत पर छूटे हैं, पर इतना पक्का है कि अब तक जो भी कानूनी कार्यवाही हुई है वह और गुनाहगारों को रोकने में असफल है और देश भर में नकल और मुन्नाभाइयों की फसल जम कर बोई जा रही है.

हमारी शिक्षा असल में वैदिक हिंदूवादी बन गई है जिस में गुरु की सेवा, उसे दक्षिणा देने और उस की बात को सिरमाथे रखने का निरंतर आदेश दिया जाता है. ज्ञान, तर्क, समीक्षा, नई सोच, शोध का हमारी शिक्षा में बहुत कम स्थान है. व्यापम जैसे घोटाले इसीलिए हो रहे हैं, क्योंकि द्रोणाचार्य आदर्श हैं जो एक मेधावी धनुर्धारी का अंगूठा इसलिए कटवा लेते हैं ताकि उन का प्रिय शिष्य परीक्षा में पास हो सके.

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