देश के होटलमालिकों का अंदाजा है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य राजमार्गों से 500 मीटर की दूरी तक शराब न बेची जाने, न परोसी जाने के फैसले से 1,000 करोड़ रुपए की प्रतिदिन हानि होगी. खुशी की बात है कि इस का लाभ देश के परिवारों को जाएगा. जो काम शराबबंदी नहीं कर सकती, वह काम सुप्रीम कोर्ट ने शराब के सेवन के साथ ड्राइविंग करने से होती दुर्घटनाओं के नाम पर कर दिया. अगर देश के लोग 3,65,000 करोड़ रुपए की शराब केवल सड़कों के किनारे बने होटलों, ढाबों व रैस्तरांओं में गले उतार लेते हैं तो यह गंभीर बात है. इस का नुकसान उन के परिवारों, बच्चों को झेलना पड़ता है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश, जिस की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो चुकी है, को सरकार अपने आदेशों से नहीं बदलेगी. कुछ राज्य सोच रहे हैं कि राजमार्गों को बदल कर छोटी सड़क घोषित कर दिया जाए, पर यह भी आसान नहीं है. इस में कई महीने लग जाएंगे और शराब पीने की बढ़ती आदत पर लगाम लगेगी.
बिहार और गुजरात जहां शराब की बिक्री बंद है, वहां लोगों को डिप्रैशन की बीमारी हो गई है, ऐसा सुनने को तो नहीं मिला. शराब बंद नहीं हो सकती, न चोरी, न डकैती, न फरेब, न जुआ. पर इन सब को क्या एक श्रेणी में रख सकते हैं कि ये तो आनंददायक हैं, इसलिए समाज इन्हें करने वालों को सहे.
शराब पी कर बहकने के साथ ड्राइव करता हुआ शख्स आतंकवादी बम की तरह है जो कहीं भी, कभी भी फूट सकता है. शराब से स्वास्थ्य लाभ तो है ही नहीं. कहने को तो अफीम का अंश भी कुछ दवाओं में पड़ता है और अलकोहल का भी, पर उसे उन दवाओं को मौज के लिए भरभर कर तो नहीं पिया जाता.
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