अहमदाबाद को देश का केंद्र बना कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न जाने क्या साबित करना चाह रहे हैं. अहमदाबाद देश का अच्छा विकसित शहर है पर है एक राज्य का शहर ही. यहां पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का स्वागत कर और अब जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे का आतिथ्य कर नरेंद्र मोदी यह दर्शा रहे हैं कि देश की राजनीति का प्रारंभ और अंत अहमदाबाद से है.
यह देश के साथ एक तरह का अपमान है. अहमदाबाद के साथ यदि लखनऊ, पटना, कोलकाता या बेंगलुरु को भी इस तरह का श्रेय मिलता तो बात दूसरी थी. प्रधानमंत्री का अपने गृहराज्य के प्रति यह प्रेम दर्शाता है कि वे देश पर गुजरातियों का राज थोपने की कोशिश कर रहे हैं जैसे जवाहरलाल नेहरू के जमाने में उत्तर प्रदेश का अघोषित राज थोपा हुआ था. यह बात दूसरी थी कि तब लखनऊ एक बड़ा गांव ही था और वहां विदेशी मेहमानों को बुलाना, होटलों की कमी के कारण संभव न था.
अहमदाबाद औद्योगिक शहर हुआ करता था और गुजरात की राजधानी भी. पर पिछले कुछ दशकों में गुजरात की राजधानी गांधीनगर में खिसक गई है और उद्योग जामनगर, सूरत, राजकोट, बड़ौदा, भुज आदि में. अहमदाबाद अब बिखरा हुआ शहर है जिस का आकर्षण नर्मदा के पानी से भरी साबरमती नदी मात्र है. इस नदी के दोनों किनारों पर आड़ीतिरछी बस्तियां हैं. असल में तो यह शहर 2002 के दंगों की याद ज्यादा दिलाता है, साबरमती के तट पर बसे गांधी के आश्रम की कम जिस के आसपास भव्य बहुमंजिले भवन बन गए हैं. गांधी की तरह आश्रम भी बौना बन कर, बस, प्रतीक रह गया है.