इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले में व्यक्ति के अस्तित्व, गरिमा, आत्मसम्मान, स्वतंत्रता, विवेक आदि के उन हिस्सों पर बात करनी पड़ी जो दर्शनशास्त्र का हिस्सा हैं. जो न तो सुन सकता है, न बोल सकता है, न चल सकता है, न लिख सकता है और न ही उस की स्मरणशक्ति काम कर रही है, सुप्रीम कोर्ट ऐसे व्यक्ति के जीवन के प्रश्न पर विचार कर रहा था. ऐसा व्यक्ति केवल डाक्टरों के कारण मशीनों के सहारे जिंदा रखा जा रहा था.

क्या कोई व्यक्ति किसी मृत व्यक्ति की देह के साथ अपमानित व्यवहार कर सकता है? यह अपराध है या नहीं? इस बारे में कानून स्पष्ट है कि मृत व्यक्ति की देह के साथ कू्रुर व्यवहार करना अपराध है. सदियों से आदिवासी कबीले ही नहीं, अच्छेभले राजा भी हारे हुए दुश्मन को मार कर उस की मृतदेह की नुमाइश करते रहे हैं, उस के शरीर का प्रदर्शन करते रहे हैं. सभी समाजों ने इसे क्रूरता की पराकाष्ठा माना है.

इसी तरह की स्थिति उस व्यक्ति की है जो ट्यूबों और मशीनों से बंधा अस्पताल के बैड पर पड़ा है. रिश्तेदार और डाक्टर न तो उसे मृत मान सकते हैं न ही जीवित. एक आशा होती है कि शायद वह जी उठे पर बहुत कम. क्या डाक्टरों को अधिकार है कि वे पैसे मिलने पर उस व्यक्ति को कृत्रिम तौर पर जीवित रख सकते हैं? आमतौर पर जब पैसा न मिलने की आशंका होती है तो डाक्टर कृत्रिम उपाय हटा लेते हैं. पर वह उन की हार होती है और वे सभी रिश्तेदारों की सहमति मांगते हैं जिसे देने में सगेसंबंधी  हिचकिचाते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD4USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...