महिलाओं के अधिकारों और बराबरी के लिए कार्य कर रही संस्था यूनाइटेड नेशंस वीमन ऐंड प्रोमुंडो ने मिस्र, मोरक्को, लेबनान और फिलिस्तीन में सर्वे कर पाया है कि मर्दों को विश्वास है कि औरतें छेड़खानियों का आनंद लेती हैं. छेड़खानियों में घूरना, ताड़ना, छूना, अंगों को मसलना, सैक्सी कमैंट मारना और बलात्कार तक शामिल हैं. सर्वे में मजेदार बात यह रही कि अशिक्षित और अर्धशिक्षित छेड़खानी कम करते हैं जबकि शिक्षित ज्यादा करते हैं.

पुरुषों को विश्वास है कि औरतें यदि अच्छा पहनती हैं या अच्छा शरीर रखती हैं तो इस का मतलब होता है कि पुरुष उन्हें सराहें और यदि जानपहचान न हो तो सीटियां बजा कर अपनी पसंद प्रदर्शित करें. पुरुषों का यह मानना है कि अगर औरतों को छेड़खानी से डर लगता तो वे इतनी सजधज कर क्यों रहतीं.

औरतों से छेड़खानी के पीछे जहां पुरुषों की कामुकता हो सकती है, वहीं उन की आर्थिक विफलता की खीझ भी है. वे किसी कमजोर पर जोर आजमाना चाहते हैं और जानते हैं कि औरतों को समाज ने नीचा दरजा दे रखा है. ऐसे में वे मानते हैं कि जब कुत्तों को लात मारी जा सकती है तो सड़क पर चलती लड़की को कम से कम छूते हुए तो निकला जा ही सकता है.

भारत के उत्तर प्रदेश में बड़ी धूमधाम से रोमियो स्क्वैड बनाए गए पर धार्मिक हवन की तरह ये स्क्वैड खबरों में आते तभी, जब जोड़ों को तंग करते हैं. लड़कियों को छेड़ने पर कभी कोई रोकटोक लग पाईर् हो, इस का कोई सुबूत नहीं है.

औरतों को एकतरफ घरों में बंद रखना और दूसरी ओर जो बाहर निकल आएं उन्हें छेड़ने के दोगलेपन की बीमारी भारत ही नहीं, सारे देशों में है. अमेरिका तक इस से आजाद नहीं है. अगर यूरोप की पौर्न इंडस्ट्री जम कर चल रही है तो इसीलिए कि उन फिल्मों में औरतों को गुलामों से भी बदतर दिखाया जाता है. उन्हें कष्ट सहने में आनंद लेती हुई फिल्माया

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