उत्तर प्रदेश के सरकारी पौवर प्लांट, जो रायबरेली में ऊंचाहार में है, में बौयलर फटने से हुई दुर्घटना में कम से कम 40 लोग मारे गए हैं. उस बौयलर के पास तब 300 लोग काम कर रहे थे, जब वह दबाव बढ़ जाने की वजह से फट गया था. नैशनल थर्मल पौवर कारपोरेशन के इस 500 मैगावाट के प्लांट में जब यह दुर्घटना हुई, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ धर्मकर्म के काम में लगे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटनों में.
यह तो अजूबा ही है कि जब भगवान के दूत खुद मुख्यमंत्री हों तो उन की नाक के नीचे उसी तरह बौयलर फटा जैसे राम के राज में ब्राह्मण का पुत्र मरा और दोष शंबूक के वेद पठन को दिया गया. शायद प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी किसी ऐसे ही बहाने को खोज रहे थे पर उन्हें मिला नहीं या उन की हिम्मत नहीं हुई. हां, वे उन दिनों अपने गुरगों को ताजमहल के विवाद को भड़काने का संदेश देते रहे.
हमारे देश में इस तरह की दुर्घटनाओं में जब मजदूर, गरीब, किसान, शूद्र, दलित मरते हैं, तो कोई चिंता नहीं की जाती. यदि यह कांड उपहार सिनेमा, दिल्ली या इमामी अस्पताल, कोलकाता की तरह होता, तो हफ्तों तक हल्ला मचता रहता और अफसर या मालिक जेलों में होते. अब चूंकि मजदूर मरे हैं और उन में भी ज्यादातर ठेके पर काम करने वाले, तो किसी की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. बस, कुछ जांच कमेटियां बिठा दी गई हैं.
गरीब की जान हमारे देश में सस्ती इसलिए है कि गरीब खुद ही उस की कीमत नहीं आंकते. ज्यादातर गरीब खुद ही बेवकूफी में ऐसे काम करते हैं जिन से बीमारी या मौत आती है. सड़क के किनारे बैठने, धुएं में हाथ तापने से ले कर टूटेफूटे औजारों से काम करना, जहरीली चीजें खुली रखना, खोदे गए गड्ढों को न भरना, चोट लगे तो देखना नहीं वगैरह इस में शामिल हैं. जहरीली शराब, भरभर कर अफीम व तंबाकू खाना, बीड़ीसिगरेट पीना और पी कर बेबात झगड़े करना गरीबों को मानो सिखाया जाता है.
ऊंचाहार में मरे गरीबों की चिंता किसी ने नहीं की है, क्योंकि उन के घरों में मरे हुए को जल्दी ही भुला दिया जाता है. पैसा अगर मिल गया तो ठीक, वरना मरने को भाग में लिखा सोच कर बीवीबच्चे जल्दी ही संतोष कर लेते हैं कि ऐसा तो होना ही था. सरकारी अफसरों को इस बात का पूरा एहसास रहता है. गरीब को कफन में नया कपड़ा मिल जाता है, यही बहुत बड़ी बात होती है, वरना पंडों की तरह वे भी गरीब के कफन से भी पैसा वसूलने में माहिर रहते हैं.
ऊंचाहार में बौयलर फटने के बाद 5-7 अफसरों और मंत्रियों को कुछ दिन तो जेल में रखना चाहिए था. यदि उपहार सिनेमा और इमामी अस्पताल के मालिक मौतों के जिम्मेदार हैं, तो बिजली मंत्री और मुख्यमंत्री क्यों नहीं?