कर्नाटक हाईकोर्ट की हिजाब को हटाने की सरकारी जिद को मान लेने का मतलब है कि देश को अब कट्टरता की ओर लौटना होगा. हिंदू कट्टरवादियों के चलाए जा रहे स्कूलकालेजों में अब खुल कर धर्म का खेल होगा. कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला पढ़ाई और धर्म को अलग करने का नहीं है. लिबास का बहाना और उस की आड़ में असल में एक धर्म का निशाना दूसरे धर्म पर है.
इतिहास गवाह है कि हर धर्म अपनेआप में कभी थोड़े से लोगों का रहा है. ईसाइयों को रोमोनों ने बुरी तरह कुचला. उस समय के यहूदियों ने ईसाइयों से बहुत बुरा बरताव किया. इसलाम को शुरुआत में तब के दूसरे कबीलाई धर्मों का मुकाबला करना पड़ा. बौद्ध धर्म को ब्राह्मणों का कहर सहना पड़ा. आज अगर हाईकोर्ट हिजाब के नाम पर हिंदू कट्टरपंथियों की बात मान रहा है तो यही साबित कर रहा है कि इस देश में तर्क और तथ्य की जगह नहीं है.
हिजाब पहनाना लड़कियों पर एक जबरदस्ती है. इसे किसी तरह अपनी मरजी नहीं कहा जा सकता पर हर धर्म अपने भक्तों को एक ढांचे में ढाले रखता है. हिजाब के खिलाफ हाईकोर्ट को फैसला देना होता तो उसे स्कूल और यूनिफौर्म से नहीं जोड़ना था, उसे शिक्षा से जोड़ना था. जब स्कूलकालेजों में सरस्वती पूजाएं हो रही हों, हर तरह के हिंदू धार्मिक त्योहार मनाए जा रहे हों, गीता पाठ पढ़ाया जा रहा हो, स्कूलकालेजों के नाम हिंदू देवीदेवताओं के नाम पर रखे जा रहे हों, स्कूल व कालेज के अहाते में मंदिर बन रहे हों तो कोई अदालत पढ़ाई और विकास को हिजाब से कैसे जोड़ सकती है?