डोकलाम प्रसंग के बाद चीन ने अपने इलाके में चौड़ी हाईटैक सड़कें बनानी शुरू कर दी हैं. इस के जवाब में भारत को भी हिमालय के दुर्गम इलाकों में महंगी सड़कें बनानी होंगी, हालांकि उन का कोई व्यावसायिक उपयोग न होगा.

ये सड़कें छोटी नहीं, 4,000 मिलोमीटर लंबी पूर्व से पश्चिम तक की होंगी जिन पर, आमतौर पर, सैनिक वाहन दौड़ेंगे. डोकलाम के बाद यह जरूरी हो गया है कि भारत हर समय हिमालय की सीमा पर भी नजर रखे. हिमालय स्वयं देश की रक्षा करेगा, भारत यह भूल जाए.

हिमालय को भेदना अब नई तकनीक और मशीनों के लिए मुश्किल नहीं है और चीन लगातार अपने क्षेत्र में हिमालय की चोटियों के नीचे से रास्ते निकाल कर भारत की सीमा के पास सैनिक पहुंचा रहा है.

चीन की सीमाएं भारत से कहीं ज्यादा लंबी हैं. सीमा के चारों ओर मित्र ही हों, जरूरी नहीं. वहां की सरकार ने हर तरह की तैयारी कर रखी है और भारत को भी यही करना होगा चाहे यह उसे निरर्थक ही क्यों न लगे.

1962 में जब चीन ने भारत की सीमा पर हमला किया था तो जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि वहां तो घास का एक तिनका भी नहीं उगता, उस की चिंता क्या करें. पर, यह महंगा साबित हुआ.

आदर्श स्थिति तो वह होगी जब दोनों देशों में इतना अपनापन व दोस्ती हो कि सीमाएं केवल नक्शों पर हों, जमीनों पर हों तो उन का उपयोग केवल टैक्स के लिए किया जाता हो. अफसोस कि इंटरनैट ने सीमाओं को भेदा जरूर पर सीमाओं को वह तोड़ नहीं पाया. उलटे, दुनियाभर में सीमा विवाद ज्यादा तेज हो गए और दीवारों की बात अमेरिका भी करने लगा. चीन ने एक युग में ग्रेट वौल औफ चाइना बनाई थी. आज सड़कों से दीवारें बन रही हैं, जो सीमा के दोनों तरफ आपस में कहीं मिलती नहीं. उलटे, अलगाव का निशान बनती हैं.

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