लोकतंत्र का मतलब होता है कि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की या फिर पंचायतों की ही क्यों न हो, जनता की जरूरत के हिसाब से जनता की राय से कानून व नियम बनाए जाने चाहिए. नरेंद्र मोदी की सरकार जिस दिन से सत्ता में आई है उसे लगा है कि उसे तो सारी ताकत हिंदू देवीदेवताओं ने दी है जिन के बखान पुराणों में भरे हैं जो जनता तो दूर, राजाओं तक के लिए आदेश बनाते रहते थे, बिना किसी से पूछे और बिना यह सोचे कि यह कितना गलत होगा.

नरेंद्र मोदी ने रातोंरात नोटबंदी का फैसला लिया, बिना किसी से पूछ के, बिना जरूरत के. बिना सहमति के जीएसटी थोपा. बिना पूरी तरह बात किए कश्मीर में 370 अनुच्छेद में हेरफेर किया. बिना जांचेपरखे जनवरी, 2020 में कह डाला कि उन्होंने कोविड पर जीत हासिल कर ली, और, बिना राय लिए, बिना जरूरत के, किसानों की रोजीरोटी छीनने वाले 3 कृषि कानून आननफानन में पहले और्डिनैंस से और फिर संसद से पास करा लिए.

पहली बार जनता इस धौंस के खिलाफ खड़ी हुई. बुरी तरह से मार खाने के बाद भी किसान लगभग पूरे साल दिल्ली के चारों ओर बैठे रहे. उन्होंने पानी की बौछारें सहीं, गालियां सुनीं, मोदीभक्त मीडिया ने उन्हें देशद्रोही, खालिस्तानी, अमीर किसान, विदेशियों की सुनने वाला बताया पर वे टिके रहे. भाजपा के नेताओं की हिम्मत तो उन से जिरह करने की नहीं हुई, पर भाजपा भक्त टीवी चैनलों ने जम कर नेताओं से ऐसे जिरह की मानो वे अपराधी हों, गुनाहगार हों.

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