दलबदल और क्रौस वोटिंग भी उसी तरह से गलत है, जिस तरह ‘महाभारत’ में शकुनि और समुद्र मंथन में देवताओं ने गलत किया था. इस के लिए बेईमानी सिखाने वाला जिम्मेदार होता है. दलबदल करने के लिए उकसाने वाला दलबदल करने वालों से ज्यादा कुसूरवार होता है.
जब भगवा चोले वाले दक्षिणापंथी इस काम को करते हैं, तो वे भेड़ के भेष में भेडि़ए लगते हैं. राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से ले कर हिमाचल प्रदेश तक जो हुआ, वह दलबदल की परिभाषा में भले ही पूरी तरह से फिट न हो, पर यह भ्रष्ट आचरण का उदाहरण है.
भारतीय राजनीति में दलबदल करने वालों को ‘आया राम गया राम’ के नाम से भी जाना जाता है. पहले यह कहावत ‘आया लाल गया लाल’ के नाम से मशहूर थी, फिर यह ‘आया राम गया राम’ में बदल गई. इस का मतलब राजनीतिक दलों में आने और जाने से होता है.
मजेदार बात यह है कि गया लाल नाम का एक विधायक था, जिस के नाम पर यह कहावत पड़ी थी. 55 साल के बाद आज भी यह कहावत पूरी तरह से हकीकत को दिखाती है.
बात साल 1967 की है. उस समय हरियाणा के हसनपुर निर्वाचन क्षेत्र, जिसे अब होडल के नाम से जाना जाता है, विधानसभा के सदस्य गया लाल ने एक आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता था. इस के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
इस के बाद गया लाल ने एक पखवारे में 3 बार पार्टियां बदली थीं. पहले राजनीतिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संयुक्त मोरचे में दलबदल कर के, फिर वहां से वे वापस कांग्रेस में शामिल हो गए और फिर 9 घंटे के भीतर संयुक्त मोरचे में शामिल हो गए.