रिजर्वेशन का मकसद भले ही दलित और पिछड़े समाज की तरक्की से जुड़ा रहा हो पर अब यह वोट बैंक की राजनीति में बदल चुका है. यही वजह है कि रिजर्वेशन शब्द का नाम आते ही हल्ला मचना शुरू हो जाता है.
रिजर्वेशन को मानने वाले अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए दलित और पिछड़े तबके को डराने लगते हैं कि अब रिजर्वेशन के खत्म करने की साजिश रची जा रही है. रिजर्वेशन की खिलाफत करने वाले भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए लोगों को डराने लगते हैं कि इस से अगड़ी जातियों का नुकसान हो रहा है, उन की तरक्की में यह बेडि़यों की तरह पैर में पड़ा हुआ है.
विभिन्न अदालतों के फैसले रिजर्वेशन की अलगअलग श्रेणियों को प्रभावित करने की हालत में होते हैं. प्रमोशन में रिजर्वेशन भी रिजर्वेशन का एक ऐसा ही हिस्सा है. दलित वोटों के लिए मजबूर हो रही केंद्र सरकार की बातों को मानते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल की अगुआई वाली वैकेशन बैंच ने कहा कि सरकार कानून के हिसाब से प्रमोशन में रिजर्वेशन दे सकती है.
इस से पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पुराने हालात को बनाए रखने को कहा था. कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार अब प्रमोशन में रिजर्वेशन दे सकती है.
केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है जो खुलेतौर पर अगड़ी जातियों की पार्टी मानी जाती है. ऐसे में उस के राज में रुके पड़े प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के फैसले का विरोध उस के अपने ही लोगों के हाथों होने लगा. भाजपा अपने नेताओं के जरीए अपनी बात पुश्तैनी सवर्ण वोट बैंक के सामने साफ कर रही है.