Social Story: हद हुई पार

Social Story: आज से 10 साल पहले अफरोज से रहमान का निकाह बहुत धूमधाम से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक गांव नारायणपुर में हुआ था. उस वक्त रहमान की उम्र 32 साल थी, जबकि अफरोज की उम्र महज 19 साल थी.

रहमान देखने में जितना साधारण था, उस के उलट अफरोज देखने में उतनी ही खूबसूरत और स्मार्ट थी. तकरीबन साढ़े 5 फुट कद की गोरीचिट्टी, गदराए बदन की अफरोज की खूबसूरती के क्या ही कहने थे. जो भी उसे देखता, बस देखता रह जाता.

और देखता भी क्यों न. अफरोज थी ही बला की खूबसूरत. सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ, कालेघने लंबे बाल, संगमरमर की तरह चमकता बदन और मोती की तरह दमकते दांत, ऊपर से उठी हुई उस की मदमस्त छातियां, जो उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देती थीं.

खूबसूरती के मुकाबले अगर अफरोज आसमान थी, तो रहमान जमीन था. उन दोनों का मिलन होना कोई आसान काम नहीं था, पर रहमान का मुंबई में अच्छाखासा कारोबार और खूब पैसा होने की वजह से उन दोनों का निकाह आसानी से हो गया था.

शादी के 10 दिन बाद ही रहमान अपने अब्बा, भाईबहन और सब रिश्तेदारों को छोड़ कर अफरोज को मुंबई अपने साथ ले गया था.

शादी के एक साल बाद ही अफरोज एक बेटी की मां बन गई. बेटी पा कर वे दोनों बहुत खुश थे. उन की जिंदगी बड़े मजे से गुजर रही थी. यही वजह रही कि अफरोज ने शादी के 9 साल में ही 4 बच्चों को जन्म दे दिया था, जिन में सब से बड़ी 2 बेटियां थीं और उन के बाद 2 बेटे थे.

शादी के इतने साल के बाद अफरोज काफी मोटी हो गई थी. उसे अपने बढ़ते हुए वजन की चिंता होने लगी थी, तो खुद को फिट रखने के लिए उस ने जिम जाना शुरू कर दिया था, जिस में रहमान को कोई एतराज नहीं था. वह तो उस की खुशी में ही अपनी खुशी समझता था.

अफरोज जिम जाती और 1-2 घंटे में वापस आ जाती. उस का वजन कम होने लगा और कुछ ही महीनों की कड़ी मेहनत से उस ने अपनेआप को फिट बना लिया था.

अब अफरोज की पतली कमर और उभरी हुई मस्त छातियां एक अलग ही गजब ढाती थीं. कोई भी उसे देख कर यह नहीं कह सकता था कि वह 4 बच्चों की मां है. 30 साल की उम्र के करीब होने के बाद भी वह 20 साल की लड़की दिखाई देती थी.

अफरोज का ज्यादातर पहनावा टीशर्ट और जींस था. रहमान को भी उस के इस पहनावे से कोई एतराज नहीं था, क्योंकि उस की खुशी में ही वह अपनी खुशी समझता था.

वक्त के साथसाथ और काम के दबाव में रहमान जल्दी बूढ़ा दिखाई देने लगा था. उन दोनों को साथ देख कर कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा पाता था कि वे मियांबीवी हैं. रहमान तो उस के सामने अब ‘अंकल’ लगने लगा था.

धीरेधीरे अफरोज को रहमान के साथ चलने में भी शर्म महसूस होने लगी और वह जब कहीं बाहर जाती, तो उस से कहती, ‘‘तुम घर पर बच्चों को देखो. मैं अकेले ही शौपिंग कर के आती हूं. बस, तुम अपना एटीएम कार्ड मुझे दे दो.’’

पर कहते हैं कि जब कोई इनसान गुनाह करता है, तो वह भले ही कितनी भी सावधानी बरत ले, उस का राज खुल ही जाता है. ऐसा ही कुछ अफरोज के साथ भी हुआ.

रहमान के कई मिलने वालों और पड़ोसियों ने अफरोज को किसी लड़के के साथ बाइक पर आतेजाते देखा और उसे यहां तक बता दिया कि अफरोज का चक्कर उस के जिम ट्रेनर के साथ चल रहा है.

यह सुन कर रहमान के पैरों तले जमीन ही खिसक गई कि जिसे वह दिलोजान से प्यार करता है, जिस की हर ख्वाहिश वह पूरी करता है, वह उसे धोखा दे रही है.

शाम को जब अफरोज देर से घर आई, तो रहमान ने उस से देर से आने की वजह पूछी.

अफरोज ने रहमान को यह कह कर टाल दिया, ‘‘मैं अपनी एक सहेली के घर चली गई थी.’’

अफरोज का यह झूठ सुन कर रहमान को बहुत गुस्सा आया और वह चिल्लाया, ‘‘तुम अपनी सहेली या बौयफ्रैंड के साथ थी?’’

यह सुन कर अफरोज हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘क्या बोल रहे हो तुम… मैं भला तुम से झूठ बोलूंगी क्या? मैं अपनी सहेली के साथ थी.’’

रहमान ने उस से पूछा, ‘‘कौन सी सहेली? जरा उस का मोबाइल नंबर दो. मैं उस से बात करता हूं.’’
इस पर अफरोज गुस्से से पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई और बोली, ‘‘हां, मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ बाहर गई थी.’’

यह सुन कर रहमान ने उस से कहा, ‘‘अब तुम्हें जिम जाने की कोई जरूरत नहीं है. आज से तुम घर में ही रहोगी और जब भी कहीं बाहर जाओगी, मेरे साथ ही जाओगी.’’

इस पर अफरोज गुस्से से बोली, ‘‘मैं देखती हूं कि कौन मुझे अकेले जाने से रोकता है.’’

रहमान ने अफरोज को सख्ती से कहा, ‘‘मेरे जीतेजी तुम बिना मेरी इजाजत के इस घर से बाहर कदम नहीं रख सकती. अगर तुम ने ऐसा किया, तो अच्छा नहीं होगा. मैं दूसरी शादी कर लूंगा. फिर करना अपने मन की.’’

अफरोज हंसते हुए बोली, ‘‘इस उम्र में कौन तुम से शादी करेगी… यह तो मेरा अहसान समझ जो मैं अपने से इतनी बड़ी उम्र के आदमी से शादी की और तुम्हें इतनी खूबसूरत बीवी मिली’’

यह सुन कर रहमान को और गुस्सा आ गया और वह बोला, ‘‘तुम्हारा घमंड तभी चकनाचूर होगा, जब मैं दूसरी शादी कर के इसी घर में नई दुलहन ले कर आऊंगा,’’ कहते हुए वह अपने कमरे में सोने चला गया.

रहमान दूसरी शादी की सिर्फ धमकी दे कर अफरोज का घमंड तोड़ना चाहता था, ताकि वह सही रास्ते पर आ जाए, पर उस का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ.

एक दिन रहमान ने अफरोज के सामने अपने एक दोस्त को फोन किया और उन से अपनी दूसरी शादी करने के लिए लड़की देखने को कहा.

यह सुन कर अफरोज ने एक कातिल हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘एक बीवी तो संभाली नहीं जाती, उस की जिस्मानी जरूरत पूरी नहीं की जाती, दूसरी का ख्वाब देख रहे हो. वह 2-4 दिन में ही तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी. पहले अपना इलाज तो करा लो. औरत को खुश करने के लायक तो बन जाओ.

‘‘तुम क्या सम?ाते हो कि औरत को केवल पैसा चाहिए? अरे पागल इनसान, उसे अपनी जिस्मानी जरूरत भी पूरी करनी होती है, जो तुम्हारे बस की बात नहीं.’’

अफरोज का यह जुमला सुन कर रहमान दंग रह गया और उसे यह समझते देर न लगी कि अफरोज उस से संतुष्ट नहीं होती, उस की जिस्मानी इच्छा अधूरी रह जाती है, इसलिए उस ने बाहर का रुख किया.

रहमान ने कहा, ‘‘ओह, अगर जवान लड़की न सही, तो मैं किसी हमउम्र औरत से ही शादी कर लूंगा.’’

यह बात सुन कर अफरोज के दिमाग में एक जुर्म ने जन्म ले लिया और उस ने रहमान को अपने रास्ते से हटाने का प्लान बना लिया.

अब अफरोज ने रोजाना रहमान के दूध में नशे की गोलियां मिलाना शुरू कर दिया, लेकिन जब इस से बात नहीं बनी, तो एक दिन उस ने रहमान के खाने में चूहेमार दवा डाल दी.

रहमान ने जैसे ही खाना खाया तो कुछ ही देर में उस की हालत बिगड़ने लगी और वह तड़पने लगा. तभी उस की बड़ी बेटी रोने लगी और पड़ोस वाले अंकल को अपने पापा की तबीयत खराब होने के बारे में बोली.

तभी फौरन 2-3 लोगों ने रहमान को अस्पताल पहुंचाया, जहां कुछ देर के इलाज के बाद उस की तबीयत में सुधार आ गया.

डाक्टर ने रहमान से पूछा, ‘‘आखिर तुम क्यों खुदकुशी करना चाहते हो, जो तुम ने जहर खा लिया?’’

रहमान कुछ नहीं बोला, पर वह इतना समझ गया कि हो न हो अफरोज ने खाने में उसे कुछ दिया था.
कुछ दिन बाद जब रहमान अस्पताल से घर वापस आया तो उसे चूहेमार दवा रसोईघर में मिल गई, जो न कभी वह लाया था और न ही उन के घर में चूहे थे.

रहमान ने वह चूहेमार दवा अफरोज को दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती जो अपने ही शौहर को मार कर बेवा होना चाहती हो… अगर तुम्हें अपना खयाल नहीं है, तो कम से कम इन बच्चों का तो खयाल करती, जिन्हें तुम यतीम बनाना चाहती हो.’’

अफरोज बोली, ‘‘कौन से बच्चे? इन बच्चों को क्या मैं अपने घर से लाई थी? तुम्हारी औलाद है, तुम जानो. मुझे किसी से कोई मतलब नहीं.

‘‘तुम भी तो दूसरी शादी कर के इन बच्चों और मेरा हक छीन कर दूसरों को देना चाहते हो. जब तुम्हें अपने बच्चों की परवाह नहीं, तो मैं क्यों करूं?’’

रहमान ने अफरोज को समझाते हुए कहा, ‘‘अगर मुझे कुछ हो जाता, तो तुम भी जेल जाती और बच्चों के सिर से मांबाप दोनों का साया उठ जाता. अफरोज, इस घर को मत तोड़ो. बच्चों की खातिर तुम भी सुधर जाओ.’’

इस पर अफरोज बोली, ‘‘तो तुम मुझ पर पाबंदी क्यों लगा रहे हो? तुम ने मुझे घर में कैद क्यों किया है?

मेरी भी जिंदगी है, मेरे भी कुछ अरमान हैं. मैं इस चारदीवारी में घुटघुट कर नहीं जीना चाहती, भले ही उस के लिए कुछ भी करना पड़े.’’

अफरोज किसी भी कीमत पर मानने को तैयार न थी. फिर कुछ दिन बाद रहमान काम पर जा रहा था, तो एक कार वाले ने उसे टक्कर मार दी और वह जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया.

वहां मौजूद कुछ लोगों ने रहमान को अस्पताल पहुंचाया और जब उसे होश आया, तो उस का एक हाथ टूट चुका था, सिर पर कई जगह गहरी चोट आई थी.

रहमान के होश में आने के बाद 2 पुलिस वाले आए और उन में से एक पुलिस वाले ने उस से सवाल पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी है क्या, जो तुम्हारी जान लेने की खातिर तुम पर हमला हुआ? कार वाला तुम्हें जानबूझ कर टक्कर मार कर वहां से भाग गया था. क्या यह एक सोचीसमझी साजिश तो नहीं थी?’’

रहमान सम?ा गया कि यह हमला अफरोज ने ही कराया होगा, पर अगर वह उस के खिलाफ पुलिस को बता देता, तो पुलिस अफरोज को गिरफ्तार कर लेती, तब बच्चों का क्या होता?

रहमान की हालत तो ऐसी थी कि वह उठ भी नहीं सकता था, इसलिए उस ने पुलिस से कहा, ‘‘नहीं, मेरी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. और भला कोई मुझे मारने की कोशिश क्यों करेगा?’’

पुलिस वाले रहमान का स्टेटमैंट ले कर चले गए. 10 दिन बाद उसे भी अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वह घर आ गया.

रहमान ने अफरोज से पूछा, ‘‘यह हमला तुम ने ही कराया था न?’’

अफरोज गुस्से में बोली, ‘‘मैं क्यों कराऊंगी?’’

रहमान ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘क्यों तुम मेरी जान के पीछे पड़ी हो? अगर मेरा खयाल नहीं है, तो कम से कम इन बच्चों का खयाल तो करो.’’

अफरोज ने कहा, ‘‘तुम मुझ पर झूठा इलजाम लगा रहे हो. अगर तुम्हें मुझे अपने साथ नहीं रखना, तो मेरा हक दे दो, फिर मैं तुम्हारी जिंदगी से चली जाऊंगी.’’

रहमान ने उस से कहा, ‘‘यह मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ. तुम कहां जाना चाहती हो और कौन सा हक मांग रही हो?’’

अफरोज बोली, ‘‘वह हक जो एक बीवी का उस के शौहर की जायदाद में होता है. वही हक जो मेरा तुम्हारी जायदाद में इसलाम के हिसाब से और कानून के हिसाब से बनता है.’’

रहमान ने अफरोज को साफ शब्दों में समझा दिया, ‘‘मेरी सारी प्रोपर्टी और पैसा सिर्फ मेरे बच्चों का है, उसे मैं किसी को नहीं दूंगा. तुम कुछ भी कर लो… चाहे मुझे मार दो, पर मैं वह तुम्हें और तुम्हारे उस आशिक को नहीं दूंगा, जिस के लिए तुम यह हरकतें कर रही हो.’’

यह सुन कर अफरोज चिल्लाई, ‘‘इस जायदाद पर मेरा भी हक है और वह मैं ले कर रहूंगी, चाहे उस के लिए मुझे कोई भी हद पार करनी पड़े. अगर तुम अपनी खैरियत चाहते हो, तो मुझे मेरा हक दे दो, उस के बाद तुम अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते.’’

रहमान ने उस से कहा, ‘‘मैं वकील को बुला कर अपनी सारी जायदाद अपने बच्चों के नाम कर दूंगा, फिर ले लेना तुम आप हक.’’

अफरोज ने भी अपना फैसला सुना दिया, ‘‘ठीक है… तुम अपना काम करो और मैं अपना. आज से तुम्हारा रास्ता अलग और मेरा रास्ता अलग…’’ कहते हुए उस ने अपना बैग पैक किया और घर छोड़ कर चली गई.
अफरोज के जाने से रहमान को दुख तो बहुत हुआ, पर उसे यह भी उम्मीद थी कि 1-2 दिन में वह थकहार कर वापस आ जाएगी.

पर रहमान का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ और अफरोज नहीं आई, बल्कि उस का कानूनी नोटिस आया, जिस में उस ने रहमान पर मारपीट और जबरन कैद के साथसाथ रेप और दहेज का मुकदमा दर्ज कर दिया. साथ ही, उस ने रहमान के घर वालों, जो गांव में रहते थे, को भी इस सब में लपेट दिया.

मुकदमा चालू हो चुका था. अब अफरोज रहमान से एक ही बात कहती कि या तो 50 लाख रुपए नकद और एक फ्लैट उस के नाम किया जाए, वरना वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी.

रहमान अफरोज की धमकी में इतनी आसानी से नहीं आने वाला था, क्योंकि बच्चे उस के पास थे और उस ने भी इरादा कर लिया था कि चाहे जो हो जाए, पर वह उसे इतनी आसानी से कुछ नहीं देगा.

मुकदमा चलता रहा. तारीख पर तारीख लगती रही. रहमान और उस के परिवार वालों ने अपनी जमानत करा ली थी. फिर एक दिन रहमान के पास अफरोज का फोन आया और वह बोली, ‘तुम मेरा हक दे दो, वरना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा.’

रहमान ने उस से साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम भले ही मुझे मरवा दो, पर मैं तुम्हें कुछ नहीं दूंगा. यह सब मेरे बच्चों का है,’’ यह सुन कर अफरोज ने गुस्से में फोन काट दिया.

इस के बाद अफरोज का कोई अतापता नहीं चला कि वह कहां है, किस के साथ है और क्या कर रही है. न उस ने कभी रहमान और बच्चों से मिलने की कोशिश की, न कभी कोई फोन किया और न ही उन का तलाक हुआ. केस की तारीख पर भी वह नहीं आई, तो केस खत्म हो गया.

अब रहमान अपने बच्चों को पाल रहा है, पर उस के भीतर एक अनजाना डर भी है कि कहीं अफरोज उसे या बच्चों को कोई नुकसान न पहुंचा दे.

Social Story: धंधेबाज

Social Story: चालाक आंखें, दिमाग में खुराफात और हर पल रुपया कमाने की उधेड़बुन के साथ वह अपनी आवाज को एकदम मधुर रखता है. अपनी बनावटी आवाज को उस ने एक कामयाब मुखौटा बना रखा है.

उस का नाम छलिया है. जैसा नाम वैसा गुण. छलिया अपनी फितरत और हर हरकत में कपटी है, चालबाज है. आज वह इस शहर में जमीन का दलाल है, मगर कभी वह निपट देहाती हुआ करता था और उस के काम ही ऐसे थे कि एक दिन उसे अपना गांव रातोंरात छोड़ कर वहां से भागना पड़ा था.

दरअसल, छलिया कुछ रुपयों के लालच में गांव के लड़कों को बीड़ीसिगरेट पीने की लत लगा रहा था. वह गांव की अच्छीभली कालेज जाती लड़कियों को मौडल बन कर ऐशोआराम की जिंदगी जीने के खूबसूरत सपने दिखाया करता था. अपने भाईबहनों में सब से छोटा छलिया अपनी बुजुर्ग, लाचार मां के लिए भी एक नासूर बन चुका था.

यह सोच कर छलिया का ब्याह कराया गया कि वह अपनी खुराफात से तोबा कर लेगा, मगर पत्नी को भी उस ने अपने जैसा बना लिया था. खेती में उस का मन लगता नहीं था. उसे मवेशी की देखभाल करना पसंद नहीं था. सुबह से रात तक वह कुछ न कुछ प्रपंच करता रहता था.

दमा से पीडि़त छलिया की बीमार मां एक दिन उसे ‘अब तो सुधर जा रे छल्लू’ कहते हुए इस दुनिया से विदा हो गई. इस के बाद तो छलिया और ज्यादा आजाद हो गया.

मगर एक दोपहर छलिया को गांव की पंचायत ने यहां से फौरन दफा हो जाने का आदेश दे ही दिया और यह होना ही था. उस ने काम ही ऐसा किया था. शहर के एक राजनीतिक दल से सांठगांठ कर के उस ने गांव के इंटर कालेज और स्कूल के छात्रों को गलत रास्ते पर चल कर आत्मदाह और प्रदर्शन के लिए उकसाया था. मिठाई, सिगरेट, शराब और मांस भी बांटा था.

इस में कमीशन के तौर पर छलिया को भी खूब रुपया मिला था, मगर समय रहते किसी ने मुखबिरी कर दी थी. उस का भांडा फूट गया था और छलिया को आननफानन में पंचायत के सामने पेश किया गया था.

छलिया इतनी मोटी चमड़ी का बना हुआ था कि वह पत्नी और अपने एक साल के बेटे को ले कर बेशर्मी से कोई टपोरी सा गीत गाता हुआ गांव की सरहद पार कर गया. शहर में बलुआ तो उस का पुराना यार था ही.

बलुआ ही तो तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, पान मसाला का सप्लायर था. उस ने छलिया को एक गैस्ट हाउस में 150 रुपए प्रतिदिन पर कमरा दिलवा दिया. छलिया को रोजगार की चिंता थी ही नहीं. कितनी ही तरकीबें थीं उस के शातिर दिमाग में.

कबाड़ी महल्ले जा कर बलुआ के होलसेल के गोदाम से छलिया ने 2 थैले उठाए और अगले दिन सुबह 8 बजे रेलवे स्टेशन के बाहर की सड़क से मटर गली, वहां से पुरानी मंडी, फिर सदर बाजार और मेला मैदान होता हुआ दोपहर तक 8-9 किलोमीटर तक हो आया. तब तक उस के थैले से पान मसाला, सुपारी, अगरबत्ती, बीड़ी, सिगरेट, कंडोम वगैरह अच्छेखासे बिक चुके थे.

दोपहर को उसी गैस्ट हाउस में छलिया ने पत्नी के साथ लंच किया. इस के बाद वह गहरी नींद में ऐसा सोया कि रात को साढ़े 10 बजे ही जागा.

छलिया ने बगल में गौर से देखा कि पत्नी और बेटा तो बेसुध पड़े हुए थे. जागते ही भविष्य की सोच में मगन छलिया ने अंदाजा लगाया कि अभी 1-2 महीने तक इसी गैस्ट हाउस में समय काट लेना चाहिए.

खानापीना, रहना सब मिला कर 700 रुपए लग रहे हैं.

यही सब सोचता हुआ छलिया गैस्ट हाउस से बाहर आ गया. बाहर काफी सुनसान था. वह पैदल चलता रहा. इस से पहले भी वह शहर आता रहता था, मगर इतनी रात के समय उस ने शहर को पहली बार ही देखा था.

छलिया को तेज पेशाब आया. एक कोना खोज कर वह पेशाब कर रहा था कि एक महंगी कार आ कर रुकी. कुछ ही पल में एक बाइक आई. घने अंधेरे में 2-3 लोग आए और आपस में बातें करने लगे.

एक आदमी कह रहा था, ‘‘आजकल तो फोन पर बात करना बहुत खतरनाक हो गया है. दफ्तर में तो जासूस हैं.

कोई भी जगह महफूज नहीं है, इसीलिए यहां बुला कर आमनेसामने बात कर रहा हूं.’’

वह बाइक सवार था. सब ने गरदन हिलाई. वह बाइक वाला आगे बोला, ‘‘यह जो रामनगर में औषधि वाला सरकारी पार्क बन रहा है न, उस के आसपास की बहुत सारी जमीन कब्जे की है, बेनामी है. वहां अगर तुम लोग अपने फड़ लगा लो या कोई धार्मिक स्थल बना लो या फिर कोई प्याऊ भी लगा लो, तो बाद में हौलेहौले इसे किसी बाहरी को बेच देना. मुझे यही बताना था. और हां, यह रहा इस जगह का पूरा नक्शा.’’

बाकी सभी लोग बेहद खुश लग रहे थे. बताने वाले आदमी के कंधे थपथपाए जा रहे थे.

कुछ और बातें आपस में कहसुन कर कार वाला एक दिशा में, तो बाइक वाला दूसरी दिशा में चल दिया.

उधर कोने में छिपा छलिया एकएक बात सुन चुका था. इस वक्त के घने अंधकार में उस को जगमग रोशनी दिखने लगी. वह हंसने लगा. उस शातिर की बांछें खिल उठीं.

अगली सुबह छलिया थैला उठा कर फेरी वाला बनने के बजाय सीधा बलुआ के पास गया. उस को पिछली रात का सारा मामला कह सुनाया.

बलुआ ने उसे गले से लगा लिया. अब वे दोनों सामान जमा करने निकल पड़े. दोपहर तक रामनगर के उस पार्क के साथ सटी जमीन का एक कोना घेर लिया और वहां पर तुलसी और पीपल के पौधे रोप दिए.

छोटेछोटे पोस्टर लगा दिए, जिन में लिखा था कि ‘यह पावन जगह है. थूकने और पेशाब करने की सख्त मनाही’.

देवताओं के चित्र लगा कर गुल्लक रख दिए. ?ाडि़यां लगा दीं. चारों तरफ गेरू का लेपन कर के उसे आकर्षण का केंद्र बना दिया. इस के बाद वे दोनों गैस्ट हाउस चले गए.

उन को देखते ही छलिया की पत्नी ने बताया कि वह और बेटा तो नाश्ता और लंच कर चुके हैं. छलिया ने बेटे को खूब प्यार किया. पत्नी को कुछ रुपए दिए और कान में कुछ समझा कर बाहर टहलने भेज दिया.

पत्नी और बेटा जैसे ही बाहर गए, बलुआ और छलिया ने सिगरेट जलाई. अब उन दोनों का दिमाग चलने लगा कि कैसे इस जमीन के टुकड़े को लाखों रुपए में बेच कर रकम अपनी अंटी में डाली जाए. उन को इस बात का तोड़ भी मिल गया. गैरकानूनी धंधे में घुसे किसी भूमाफिया की सरपरस्ती.

10-12 दिन की जुगत के बाद बलुआ को एक ऐसा जमीन माफिया मिल ही गया. इतने दिन में एक बात और हो चुकी थी. उस खाली जमीन के 90 फीसदी हिस्से पर जबरन कब्जा हो गया था. एक प्याऊ, एक बंजारा परिवार, एक मूर्ति बनाने और बेचने वाला, एक कबाड़ वाला समेत कुछ छिटपुट प्लास्टिक की मड़ई लग चुकी थीं.

छलिया और बलुआ को अच्छी तरह से पता था कि जिस जरा सी जमीन पर उन दोनों ने कब्जा किया है, उस पर कोई कुछ नहीं कहेगा. वजह यह थी कि यह जमीन कम से कम 2000 वर्गगज तो थी ही, तो 150 वर्गगज में कोई बवाल किसलिए खड़ा करेगा. दूसरा, उन दोनों ने इस में धार्मिक प्रतीक लगा कर इसे संवेदनशील बना दिया था.

चारों तरफ के कब्जे को अच्छी तरह से देखते हुए बलुआ ने छलिया को बताया, ‘‘देखो, ये सब लोग फर्जी हैं, बनावटी हैं. इन सब को दिहाड़ी दे कर बिठाया गया है. जमीन का सौदा होते ही ये सब ऐसे गायब होंगे जैसे कि यहां थे ही नहीं,’’ कह कर वह खामोश हो गया.

‘‘तुम इन के बारे में इतना सब जानते हो?’’ छलिया ने हैरत से पूछ लिया, तो बलुआ बोला, ‘‘अरे हां, मैं तो इन के परिवारों को भी जानता हूं. आज 6 राजनीतिक दल हैं शहर में. ये लोग 300 रुपए रोज के हिसाब से सभी की रैली, प्रदर्शन, जुलूस, नारेबाजी में शामिल होते हैं. बाकी समय में ये लोग शादी में रोटियां बनाने का, लाइट उठाने का काम करते हैं.

‘‘एक और बात… सूने घरों की रेकी भी इन से कराई जाती है. एक रात की रेकी और पुख्ता जानकारी के 500 रुपए तक मिल जाते हैं इन को. छलिया, यह सब सच है. यह शहर इसी तरह इन को पाल रहा है.’’

वैसे छलिया को इस शहर के काफी सारे दबेछिपे रंग और काली करतूतें पहले से ही पता थीं, आज एक और जानकारी मिल गई थी. इस बीच कभीकभार वह थैले ले कर फेरी लगा लेता था. बस, 5 घंटे के दौरान ही वह दिन के 500 रुपए आराम से कमा लेता था, मगर छलिया को इतने से संतुष्टि कहां मिलने वाली थी.

उसे तो अपनी दोनों जेब लाखों रुपए से लबालब चाहिए थीं.

इसी बीच छलिया की पत्नी ने भी एकाध बार शिकायत कर दी थी कि कुछ दिन तो आराम करते हुए मजा आया, मगर अब तो गैस्ट हाउस में बैठेबैठे दम घुट रहा है. टैलीविजन भी कितना देखे. आंखें दुखने लग गई हैं.

तब छलिया ने पत्नी के लिए सिलाई मशीन खरीद दी. बेटे के लिए इतने खिलौने थे कि जरूरत से ज्यादा. वह इतना छोटा था कि अभी ढंग से बोल नहीं सकता था, शिकायत नहीं कर सकता था. छलिया ने पत्नी को भी सुनहरे सपने दिखा रखे थे.

कुछ दिन बाद बलुआ और छलिया को एक भूमाफिया मिल ही गया. नगरपालिका से नकली कागज और नक्शे निकलवाना उस के लिए बाएं हाथ का खेल था. उस ने चारों तरफ देखा. यह जमीन उस की जहरीली नजर से आज तक बच कर रह कैसे गई. वह हैरत में था.

बलुआ और छलिया की कब्जाई 150 गज जमीन की असली कीमत तो 60-70 लाख रुपए के आसपास थी, मगर उन को केवल 7 लाख रुपए नकद दे कर भूमाफिया ने उन को धमका कर, खबरदार भी कर दिया कि खयाल रहे, यह बात कहीं खुलनी नहीं चाहिए… बलुआ और छलिया ने वहीं के वहीं कसम खा ली.

छलिया ने सारी रकम बलुआ को थमा दी. बलुआ ने उस के हिस्से के रुपए से पगड़ी की रकम दे कर एक फ्लैट किराए पर दिला दिया. बचे रुपयों से घरगृहस्थी का जरूरी सामान आ गया.

छलिया की पत्नी को इस बात से कोई लेनादेना नहीं था कि अचानक इतने सारे रुपए किधर से और कैसे आ गए हैं. उसे तो अपना घर अच्छा लगा, चाहे वह किराए का ही था.

छलिया समझ गया कि अब पत्नी को सारा दिन बिजी रहने का काफी काम मिल गया है. अब वह आगे की खुराफात में लग गया.

छलिया ने एक साल के अंदर नशे के कारोबार में भी कुरियर बन कर लाखों रुपए के वारेन्यारे कर लिए थे. अब वह भी प्रोपर्टी डीलर बन गया था. बेटा अब 4 साल का था और नर्सरी स्कूल में जा रहा था. छलिया काले धंधे में रमने लगा था. अपने घर की कोई कहानी उसे पता नहीं थी.

एक दिन छलिया को किसी अनजान आदमी का फोन आया, ‘‘तुम बलुआ को समझाओ, वरना वह जेल जाएगा.’’

बलुआ ने ऐसी कौन सी चूक कर दी? छलिया तुरंत फोन करने वाले से मिलने गया.

फोन करने वाला एक दमदार पुलिस वाला था. उस को पक्की खबर मिली थी कि उस के थाने के तहत जो रंगोली कालोनी है, वहां बलुआ एक शादीशुदा औरत के साथ एक साल से गलत रिश्ता बनाए हुए है. उस औरत के पति ने रिपोर्ट दर्ज कराई है. एक वीडियो भेजा है, जिस में बलुआ और उस आदमी की पत्नी आपस में जिस्मानी रिश्ता बना रहे हैं.

वहां जा कर छलिया ने यह सब सुना, तो अपना पसीना पोंछ कर अपनी घबराहट को छिपाया. बलुआ को फोन लगाया, पर वह उठा ही नहीं रहा था. मन में कुछ शक पैदा हुआ. वह सीधा रंगोली कालोनी पहुंच गया. बलुआ वहीं मिल गया. एक औरत और बलुआ दोनों चाय पी रहे थे.

उस औरत ने बहुत ही बेढंगे कपड़े पहने हुए थे. बाल बिखरे हुए थे. बलुआ भी काफी थकाथका सा लग रहा था.

छलिया को अचानक देखा तो बलुआ कुछ झेंप गया. बहाना बना कर उस ने चाय जैसेतैसे गटक ली. कुछ पल ठहर कर वह चलता बना. छलिया से वह नजरें नहीं मिला पा रहा था और छलिया इस समय खुद भी उस से नजरें नहीं मिलाना चाहता था.

‘‘शरम नहीं आती. इतना अच्छा पति है, बालबच्चे हैं और उस पर यह करतूत?’’ छलिया ने फटकारा, तो वह औरत अपने जिस्म को हिलाडुला कर बोली, ‘‘प्यार में कैसी शरम?’’

‘‘अगर तेरे पति को बता दूं तो?’’ छलिया ने धमकाया.

‘‘तो मैं अभी आप से लिपट कर एक सैल्फी लूंगी. आप को अपराधी साबित कर दूंगी. फिर आप का दोस्त बलुआ ही आप का दुश्मन होगा. बहुत मजा आएगा.’’

छलिया को समझते देर न लगी कि यह बहुत ही शातिर औरत है. इस ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. लगता है घाटघाट का पानी पी चुकी है, इसीलिए शरम तक नहीं है.

छलिया ने उस औरत को नमस्कार किया. उस के पास और भी काम थे. वह उठा और सीधा पुलिस वाले के पास गया. उस को 1,000 रुपए थमा कर कहा कि 2-4 दिन में सब ठीक हो जाएगा.

अब छलिया ने अपना काम किया. उस के पास सीधी उंगली से घी निकालने के अनेक रास्ते थे. सब से पहले उस ने बलुआ पर अपनी नाराजगी जाहिर तक न होने दी, मगर उस औरत के पति का सारा हिसाबकिताब पता लगाता रहा. वह हर महीने 7 दिन के दौरे पर बाहर जाता ही जाता था. छलिया ने पुलिस वाले को 2-3 हजार और टिका दिए. उस ने मुंह बंद रखा.

उधर बलुआ बहुत खुश था कि चलो सब ठीक है. उन दोनों का मिलना बदस्तूर जारी था. छलिया जानता था
कि ईमानदार पति किसी न किसी दिन कांड कर के ही छोड़ेगा. कुछ न कुछ तो करना ही था. इसी में छलिया की भी सुरक्षा थी.

अगर बलुआ गिरफ्तार होता तो छलिया के बचने की भी न के बराबर गुंजाइश थी. कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता कि छलिया को भी सलाखों के पीछे जाना होता.

अब छलिया ने अगला कदम यह उठाया कि इधर उस औरत का पति दौरे पर गया और उधर उस औरत के मासूम बालक का स्कूल के बाहर से अपहरण किया गया. फिरौती की रकम के तौर पर लाखों रुपए की मांग की गई और पति से यह अपहरण छिपाए रखने को भी कहा गया.

साथ ही, उस औरत के सारे फोन टेप कराए. उस औरत ने सीधे बलुआ से बात की और बलुआ ने छलिया से. हर तरह से कठपुतली की डोर अब छलिया के हाथ में ही थी.

उधर जैसे ही बलुआ से 2 लाख रुपए की मांग की, तो बलुआ ने उस से हमदर्दी जताने की जगह उस को खरीखोटी सुना दी. पिछले ही महीने महंगी दारू की शौकीन वह औरत 70 हजार की दारू बलुआ के रुपयों से गटक गई थी.

बलुआ ने अब उस से कन्नी काटने का संकल्प कर लिया था. छलिया ने उस के हावभाव पढ़ लिए थे. यही मौका था. छलिया ने अपनी पत्नी को फोन किया कि उस के दोस्त का जो बालक उस के घर पर रह रहा है, उस को तैयार कर के बाहर भेजो. उस के मातापिता लौट आए हैं.

छलिया की पत्नी ने बताया कि वह बालक तो यहां बहुत खुश है. उस को छलिया के बेटे के रूप में एक बड़ा भैया मिल गया है. खैर, बहुत ही होशियारी से उस मासूम को सकुशल घर भेज दिया गया.

अब तक बलुआ को खबर नहीं थी कि उस के पीछे क्या साजिश चल रही थी. छलिया ने शहर के बड़े साहब से मिल कर उस औरत के पति का तबादला करवा दिया. 10 दिन में कहीं दूरदराज तबादला भी हो गया था. सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.

अब तो धंधेबाज छलिया इतने रुतबे वाला था कि दौलतमंद होने के साथसाथ सरकार में भी असर रखता था. 1-2 दिन बाद छलिया और बलुआ वापस अपने काले धंधे पर लग गए.

हैरानी की बात उस औरत के साथ थी. उस का साढ़े 3 साल का मासूम बालक उन लोगों की रहरह कर तारीफ करता था, जो उस का अपहरण कर के ले गए थे. उस घर में एक बड़ा भाई भी था, जो उसे गिनती और कविता सिखाता था. बगैर फिरौती के उस औरत के बेटे को 2-3 दिन में छोड़ दिया गया था.

Family Story: बुढ़ापे का सहारा

Family Story, लेखक – एस. अग्रवाल

‘‘मां जी, ओ मांजी, कुछ खाने के लिए दे दो, बहुत भूखा हूं. सुबह से कुछ भी खाया नहीं है.’’

बाहर से आती इस आवाज ने मेरा ध्यान खींचा. जो किताब मैं पढ़ रही थी, उसे मेज पर रख कर मैं ने खिड़की से बाहर झांका. 9-10 साल का एक हट्टाकट्टा एक लड़का बेचारे की तरह खड़ा था.

ऐसे भिखारियों को देख कर मैं नफरत से भर उठती हूं. देश की देह पर मुझे कोढ़ जैसे दिखते हैं. ये ही तो हैं, जो देश को खाए जा रहे हैं. निठल्ला रह कर पेट भरते रहना ही इन का काम है और फिर हमारे देश में भिखारियों को भीख दे कर ‘पुण्य’ कमाने वाले लोग जब मौजूद हों, तो ये लोग बिना काम किए क्यों नहीं खाना चाहेंगे?

गुस्सा तो तब और आता है, जब मैं किसी भिखारी को नसीहत देती हूं. यह समझाने की कोशिश करती हूं कि वह काम कर के क्यों पेट नहीं भरता, तो वह बड़े ढीठपन से जवाब देता है, ‘देना है तो दो नहीं तो भाषण मत झाड़ो…’ और बड़ी बेशर्मी से गालियां देते वह आगे बढ़ जाता है. किसी दूसरे के सामने हाथ फैला देता है.

इसी गुस्से से भर कर मैं ने खिड़की के पास से ही उस लड़के से कह दिया, ‘‘शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए? काम क्यों नहीं करते?’’

वह लड़का बोला, ‘‘मांजी, आप किवाड़ तो खोलिए. मैं भिखारी नहीं हूं.’’

न जाने क्यों उस की आवाज सुन कर मैं ने चाहा कि उस बच्चे के बारे में जानूं. मैं ने दरवाजा खोला और थोड़ी कड़क आवाज में पूछा, ‘‘क्या है?’’

वह सामने खड़ा था. मैलेकुचैले कपड़े, थकी हुई देह पर जमी हुई गंदगी, जैसे कई दिनों से नहाया न हो.

मुझे देखते ही वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने सुबह से कुछ नहीं खाया है. बहुत भूखा हूं. कुछ खाने के लिए हो तो दे दो.’’

न जाने क्यों, मुझे उस लड़के पर दया आई. सुबह यह सोच कर अपने लिए खाना बना गई थी कि कालेज से आ कर खा लूंगी, लेकिन मन कुछ ठीक नहीं था, इसलिए वह खाना वैसे ही पड़ा हुआ था. खाने की इच्छा भी नहीं थी.

मैं ने उस से कहा, ‘‘अभी रुक, मैं खाना लाई.’’

पहले चिटकनी बंद की. सोचा कि पता नहीं कौन है? कैसा है? उस के सामने किवाड़ खुले छोड़ कर रसोई में जाना ठीक नहीं था. किसी अनजाने पर भरोसा करना मुसीबत को न्योता देना था, चाहे वह बच्चा ही क्यों न हो.

रसोई में जा कर अपना खाना एक थाली में रखा और उस के सामने ले आई. हलके मजाक के अंदाज में कहा, ‘‘देख भई, मैं तो अकेली हूं. इतना ही खाना खाती हूं. पता नहीं, तेरा पेट भरेगा या नहीं.’’

वह लड़का खाने की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मांजी, यह तो बहुत है. मेरा पेट भर जाएगा.’’

वह लड़का मेरे सामने ही बैठ कर खाने लगा. उस के खाने के ढंग से ऐसा नहीं लग रहा था कि वह भुक्खड़ या भिखारी हो. जब वह दोनों रोटियां खा चुका तो पानी के लिए मेरी ओर देखने लगा.

मैं ने अंदर जा कर दरवाजे की चिटकनी बंद की और एक गिलास में पानी उस के सामने ला कर रख दिया. हालांकि, बारबार चिटकनी लगाना और फिर खोलना मुझे बहुत खल रहा था और वह भी उस काम के लिए, जिसे मैं ने कभी सपने में भी बढ़ावा नहीं दिया. हालांकि, मैं मशीन की तरह उस के लिए सब कर रही थी. शायद उस में ऐसी कोई बात थी.

जब वह लड़का पानी पी चुका तो मैं ने सवाल भरी निगाहों से उस की ओर देखा. वह मेरे सवाल को ताड़ गया, इसलिए खुद ही बोल पड़ा, ‘‘मांजी, मैं भिखारी नहीं हूं. सुबह से अपने बाप को ढूंढ़ रहा हूं. वह न जाने कहां चला गया है. भीख मांगने की मेरी थोड़ी भी इच्छा नहीं थी, इसलिए सुबह से कई बार पानी पीपी कर अपनी भूख को शांत करता रहा, लेकिन अभी भूख काबू से बाहर हो गई थी, इसीलिए आप के पास चला आया.’’

बातचीत के ढंग से वह लड़का ठीक लग रहा था. शायद कुछ पढ़ालिखा भी था.

मैं ने पूछा, ‘‘क्यों? क्या हुआ तेरे बाप को?’’

उस ने जो कहानी सुनाई, उसे सुनने के बाद मेरा दिल दहल उठा.

वह लड़का गरीब तबके का था, फिर भी उस के परिवार का 2 समय का खर्चापानी खेतीबारी से चल जाता था. वे लोग 3 भाई थे. फिर हालात ने ऐसा पलटा खाया कि उस की मां बच्चा जनने के दौरान चल बसी.

नन्ही सी जान भी 2 दिनों के बाद मर गई. गांव वालों ने जिद कर के उस के बाप की दूसरी शादी करा दी. उस से एक लड़की है.

नई मां कड़क है. दिनभर कंघीचोटी, साजसिंगार में ही लगी रहती है. घर में उस के आते ही खेतीबारी सब बिक गई. अब बाप मजदूरी करता है, लेकिन उस से सब का पेट नहीं भरता, इसलिए वह उसे यहां ले आया, ताकि उसे कहीं नौकरी दिलवाई जा सके.

इतना सब बता कर वह लड़का थोड़ी देर रुका. मैं मन ही मन सोचने लगी, ‘हमारे यहां अभी कहां खिला है बचपन? यह बेचारा भी किसी बड़े साहब की नखरैल लुगाई की डांट और गाली सहेगा और किसी पालतू
कुत्ते की तरह दुम हिलाता उन्हीं के दरवाजे पर पड़ा रहेगा. बलि का बकरा बनाने के लिए ही तो इस का बाप इसे यहां…’

लेकिन फिर तुरंत इस विचार को मैं ने झटक दिया, सोचा, ‘अगर काम नहीं करेगा तो बेचारा खाएगा क्या? हम लोग बातें चाहे जितनी ऊंचीऊंची करें लेकिन कड़वी सचाई यही है कि गरीबी सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी है. छोटे बच्चे अगर काम नहीं करेंगे तो पेट नहीं भर सकते.’

मैं ने उस लड़के से पूछा, ‘‘तेरा नाम क्या है?’’

‘‘जी, सोमा. मैं सोमवार को पैदा हुआ था न, इसीलिए मेरा नाम सोमा रख दिया,’’ कह कर वह मुसकरा दिया. इतनी देर में पहली बार मैं ने उसे मुसकराते हुए देखा था.

उस लड़के की यह कहानी सुन कर मेरा कलेजा पिघल आया था. मैं ने पूछा, ‘‘कहां गए तेरे पिताजी?’’ उसी की तरह ही पिता को बाप कहना अब मुझे अच्छा नहीं लग रहा था.

उस लड़के ने बताया, ‘‘उस रिश्तेदार का जो पता बापू साथ लाए थे, वह कागज न जाने कहां गिर गया. कल से हम इस शहर में मारेमारे फिर रहे हैं. आज सुबह बापू ने चाय की एक दुकान के सामने मुझे बैठा दिया और अभी आया कह कर न जाने कहां चला गया. ‘‘मैं 4-5 घंटे दुकान के बाहर बैठा रहा, उस के बाद से बापू को खोजते हुए इधरउधर भटक रहा हूं. 3-4 बार वापस जा कर, चाय की दुकान पर भी पूछ आया लेकिन वहां सब ने मना ही कहा.’’

हालात की भयंकरता को भांप कर मैं यह जान गई थी कि वह कभी नहीं आएगा. गरीबी के सांप ने ममता को डंस लिया था. सोमा का पिता उसे इस अनजान शहर में अकेले अपने भरोसे छोड़ कर खिसक गया था.

‘‘अब क्या करेगा तू?’’

‘‘मांजी, मुझे मालूम है कि वह मुझे अकेला छोड़ गया है, अब वह कभी लौट कर नहीं आएगा,’’ उस ने कहा. उस के तेज दिमाग पर मुझे अचरज हुआ.

‘‘फिर?’’

‘‘अब मैं वापस नहीं जाऊंगा. जा कर करूंगा भी क्या? मेरा बाप मुझे फिर धोखे से किसी दूसरे शहर में छोड़ देगा. घर जाऊंगा तो मां बहुत मारेगी,’’ उस के चेहरे पर खौफ झलक आया.

मेरे सामने पहला सवाल यही था कि मैं उसे कहां रखवाऊंगी? मैं तो इस शहर में किसी को ज्यादा जानती भी नहीं थी. मैं ने मन ही मन फैसला लिया, फिर उस से पूछा, ‘‘कुछ पढ़ेलिखे हो?’’

‘‘चौथी पास की थी गांव की पाठशाला में. फिर नई मां आई तो उस ने पढ़ना छुड़ा दिया.’’

फिर कोई भी बात कहने पर वह लड़का घर की सब बातें और सौतेली मां के जोरजुल्म को बताने लगता.

‘‘आगे पढ़ना चाहते हो?’’

‘‘हां,’’ वह चहक कर बोला.

‘‘तो तुम आज से मेरे पास ही रहो. यहीं काम करना, पढ़नालिखना. खाना, कपड़ा सब दूंगी.’’

उस की बांछें खिल गईं. मेरे पैरों पर पड़ता हुआ वह बोला, ‘‘मांजी, मैं यहीं रहूंगा.’’

मैं ने उसे उठाते हुए कहा, ‘‘अरे… यह क्या कर रहे हो? और देखो, मुझे मांजी नहीं, सिर्फ ‘मां’ कहा करना.’’

उस ने खड़े हो कर मुझे देखा. उस की नजरों से अपनापन झलक रहा था. मुझे भी न जाने क्यों यह अहसास हो रहा था कि उस पर भरोसा किया जा सकता है.

उसे अपने पास रखने में शायद मुझे भी फायदा था. इन दिनों हमारे कालेज में बुजुर्ग लोगों की पढ़ाईलिखाई पर काफी जोर दिया जा रहा था. यहां तक कि प्रौढ़ शिक्षण संस्थान केंद्र के निदेशक वगैरह भी आ कर पढ़ाया करते थे. अगर बुजुर्ग न मिले तो अनपढ़ बच्चों को ही पढ़ाने की बात वे लोग कहते थे, क्योंकि इस संस्थान का असल मकसद अनपढ़ता को दूर करना था, फिर वह बड़ों में हो या बच्चों में.

हालांकि, सोमा बिलकुल अनपढ़ नहीं था, फिर भी ज्यादा पढ़ने की लगन उस में थी. मैं ने भी सोचा कि पढ़ालिखा कर अगर मैं ने उसे होनहार नागरिक बना दिया, तो देश के प्रति मैं अपना थोड़ा सा फर्ज
निभा सकूंगी.

शुरूशुरू में 2-3 दिनों तक उसे परखने की नजर से मैं अंदर के कमरे में ताला लगा कर कालेज जाती थी. बाहर का छोटा कमरा ही उस के लिए खुला छोड़ती. पता नहीं पीछे से घर का सामान ले कर ही चंपत हो जाए. धीरेधीरे मुझे उस पर भरोसा हो गया और मैं पूरा घर उसी के भरोसे छोड़ कर जाने लगी.

सोमा मेरे यहां रह कर कई काम सीख गया. मैं ने उस के लिए किताबें ला दी थीं, जिन्हें वह बड़े मन से पढ़ता था. घर का सब काम भी वह कर लेता था. लेकिन गैस के चूल्हे का काम मैं ने उसे जानबूझ कर अभी नहीं सिखाया था. बच्चा ही तो था, कहीं कोई अनहोनी न हो जाए, इसीलिए मैं सुबह खाना बना कर जाती थी. जब मैं लौटती, तब उस के साथ खाना खाती.

कभीकभी वह मेरे पास आ कर बैठ जाता और अपने परिवार वालों की बातें बताता. अपने दोनों भाइयों और बहन की उसे बहुत याद आती थी.

सोमा खूब मन लगा कर पढ़ता.

5-6 साल में वह इस लायक हो गया कि हाई स्कूल का इम्तिहान दे सके. खुद पढ़ने वाले छात्र के रूप में उस का आवेदनपत्र भरवा कर मैं ने दिया. उस में उस का नाम सोमप्रकाश लिखाया. तब मेरी हैरानी की सीमा नहीं रही, जब वह पहले दर्जे में पास हुआ.

इसी तरह वह हर साल इम्तिहान देता रहा. देखते ही देखते उस ने राजनीतिशास्त्र में अच्छे अंकों से एमए कर लिया और फिर पास के ही एक स्कूल में टीचर के रूप में उस की नौकरी लग गई.

अब वह अच्छी कदकाठी का नौजवान हो गया था. अपने कालेज के एक क्लर्क की बेटी से मैं ने उस की शादी करा दी थी.

कुछ ही दिनों के बाद उस का दूसरे शहर में तबादला हो गया. वह अपनी घरवाली को ले कर वहां चला गया था. अकसर उस की चिट्ठी आती रहती थी. वह मजे में था. वहां आने के लिए मुझ से कहता था. जबतब मुझ से आ कर मिल भी जाता.

दिन, महीने और साल पंख लगा कर उड़ते रहे. आज मैं अपनी नौकरी पूरी कर के खाली बैठी थी. 35 साल की नौकरी के बाद बड़ा खालीपन और अकेलापन लग रहा है. शायद इसी समय के लिए कही गई मेरी मां की यह बात मुझे याद हो आई, ‘बेटी, शादी कर ले वरना बुढ़ापा काटना मुश्किल हो जाएगा.’

मां की याद आते ही मेरी आंखों में आंसू झलक आए. तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई.

चश्मा उतार कर साड़ी के पल्ले से अपनी आंखें पोंछते हुए मैं ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने सोमप्रकाश अपनी पत्नी के साथ खड़ा था. दोनों ने मेरे पैर छुए.

सोमप्रकाश बोला, ‘‘मां, आज आप मेरे साथ चलेंगी.’’

मैं चौंकी. सोचा कि उसे मेरे रिटायरमैंट का दिन याद है. मेरा गला भर आया.

मैं ने आशीर्वाद देते हुए रुंधे गले से कहा, ‘‘हां बेटा, जरूर चलूंगी.’’

अगले ही पल मैं ने सोचा कि मैं अकेली कहां हूं. कभी मैं ने सोमा को सहारा दिया था. मुझे संतोष इस बात का था कि मैं ने एक इनसान को दुनिया की अंधेरी गलियों में भटकने से बचा लिया था और आज वही मेरी रोशनी बन गया था.

Romantic Story: सच्चा प्यार

Romantic Story: कामना एक मिडिल क्लास परिवार की लड़की थी. वह 3 बहनों में सब से बड़ी थी. बड़ी होने के चलते घर की जिम्मेदारी भी उसी पर थी. मम्मी या पापा बीमार हो जाएं, तो उसे ही स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती थी.

कामना पढ़ाई में होशियार थी. पड़ोस में रहने वाले पंकज से नोट्स ले कर अपना कोर्स पूरा कर लेती थी और हमेशा अच्छे नंबरों से पास हो जाती थी. उम्र बढ़ने के साथसाथ ही उस की क्लास भी बढ़ रही थी. अब वह कालेज में आ गई थी.

पंकज और कामना दोनों एक ही कालेज और एक ही क्लास में थे, इसलिए एकसाथ ही कालेज आतेजाते थे.

पंकज अमीर परिवार से था, इसलिए वह पैसों की कीमत नहीं सम?ाता था. वह हमेशा अपने दोस्तों से घिरा रहता था और क्लास में न जा कर कालेज की कैंटीन में अपना समय बिताता था.

कामना हमेशा पंकज को यही समझाती, ‘‘तुम समय और पैसों की कीमत समझो. अच्छे समय में सब साथ देते हैं, लेकिन बुरे समय में जो साथ दे वही सच्चा साथी है. तुम अपने दोस्तों पर पैसा खर्च करना बंद कर दो, तो तुम्हारे पास जो दोस्तों की भीड़ है, वह चुटकी में गायब हो जाएगी.’’

लेकिन पंकज कामना की बातों को हवा में उड़ा देता था. पंकज के घर वाले कामना को बहुत प्यार करते थे. वे जानते थे कि कामना ही वह लड़की है, जो उन के एकलौते बेटे की जिंदगी में बहार ला सकती है.

दरअसल, पंकज अपनी दादी के लाड़दुलार से बिगड़ गया था. स्कूल में तक तो ठीकठाक नंबरों से पास हो जाता था, कामना भी पढ़ाई में उस की मदद कर देती थी, लेकिन कालेज में आ कर तो उस के रंगढंग ही बदल गए थे. दादी तो उसे जेबखर्च के पैसे देती ही थीं, वह अपने पापा से भी कई बहानों से पैसे मांग लेता था.

इस तरह पूरा साल बीत गया. जब इम्तिहान नजदीक आए, तो पंकज को पढ़ाई याद आई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. उस ने कामना से कहा, ‘‘यार, पढ़ाई में मेरी मदद कर दे.’’

कामना ने अपने सारे नोट्स पंकज को पढ़ने को दे दिए, लेकिन उसे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि नोट्स में क्या लिखा है. उस की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. अगर वह इस साल फेल हो गया, तो सभी उस का मजाक उड़ाएंगे. पापा और दादी भी पैसे देना बंद कर देंगे.

पूरे इम्तिहान के दौरान पंकज बहुत खामोश रहा. उस ने अपने दोस्तों से मिलना भी बंद कर दिया. लेकिन अब पछताने से क्या होता, कीमती समय तो निकल गया था.

इम्तिहान का रिजल्ट आ गया. पंकज सिर्फ एक सब्जैक्ट में पास हुआ, बाकी सब में फेल हो गया था. घर में सब से डांट पड़ी और कामना का साथ अलग छूट गया.

कामना फर्स्ट डिवीजन में पास हुई थी. उस ने फिर भी पंकज को सम?ाया, ‘‘तुम अब भी मेहनत कर के पास हो सकते हो, बस अपने चापलूस दोस्तों का साथ छोड़ कर पढ़ाई में ध्यान लगाओ.’’

तब तो पंकज ने चुपचाप कामना की बात सुन ली, पर कुछ ही दिनों के बाद पंकज का वही रवैया शुरू हो गया. अब तो कामना ने उस पर ध्यान देना ही बंद कर दिया.

पंकज की दोस्ती इस साल कालेज में आई एक नई लड़की रीना से हो गई. रीना देखने में खूबसूरत थी, लेकिन उस की दोस्ती पंकज के अलावा और भी कई लड़कों से थी. उस का काम लड़कों के साथ घूमनाफिरना और उन से गिफ्ट लेना था.

रीना अपनी सहेली के साथ एक कमरे में रहती थी. उस के चाचाचाची ने उसे पाला था. चाचाजी समय से पैसे भेज देते थे. बाकी समय वे रीना के बारे में कोई खोजखबर नहीं लेते थे. इसी बात का फायदा रीना उठाती थी.

कामना ने जब पंकज को रीना से दूर रहने की सलाह दी, तो पंकज ने उस से कहा, ‘‘तुम रीना की खूबसूरती से जलती हो, इसलिए ऐसा कह रही हो. रीना बहुत अच्छी लड़की है. वह मुझे बहुत चाहती है.’’

पंकज की बात सुन कर कामना ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘रीना तुम्हें कितना चाहती है, यह तो वक्त आने पर पता चल ही जाएगा.’’

इस के बाद कामना ने पंकज से बात करना छोड़ दिया.

फरवरी का महीना आ गया था. सभी लोग वैलेंटाइन डे के लिए बेहद जोश में थे. सभी अपने खास दोस्त को खूबसूरत गिफ्ट देना चाह रहे थे.

पंकज ने रीना के लिए खूबसूरत सूट खरीदा और उसे उम्मीद थी कि रीना उस दिन जरूर अपने प्यार का इजहार करेगी, लेकिन होनी को तो और कुछ ही मंजूर था.

एक दिन बाजार से लौटते समय पंकज का कार से एक्सीडैंट हो गया. उसे अस्पताल में एडमिट कराया गया. खबर मिलते ही उस के मम्मीपापा और दादी अस्पताल आए.

पंकज की हालत काफी खराब थी. पत्थर पर गिरने के चलते उस के चेहरे पर काफी चोट थी. सिर पर भी गहरी चोट आई थी. तुरंत ही उस का आपरेशन किया गया.

डाक्टर का कहना था कि पंकज को ब्रेन हेमरेज हुआ है. ठीक होने में थोड़ा समय लगेगा.

कामना भी अपने मम्मीपापा के साथ दूसरे दिन अस्पताल पहुंची. पंकज की मम्मी और दादी का रोरो कर बुरा हाल था. कामना के परिवार ने उन्हें हिम्मत दी.

अगले दिन पंकज के कुछ ही दोस्त उसे देखने आए और कालेज में यह अफवाह फैला दी कि पंकज अब कालेज नहीं आ पाएगा.

कुछ दिन में ही पंकज की हालत में सुधार होने लगा. कामना उस से मिलने आती रहती थी.

पंकज अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था. उसे बोलने में परेशानी थी, लेकिन बात सारी समझ रहा था.

आज 14 फरवरी वैलेंटाइन डे का दिन था. कामना हलके गुलाबी रंग का सूट पहन कर आई थी. आते ही पंकज की मम्मी को खाने का टिफिन दिया और वापस जाने लगी, तो उसे लगा कि अचानक पंकज कुछ बोलने की कोशिश कर रहा है.

कामना ने पंकज की मम्मी को कहा, ‘‘चाची, देखो शायद पंकज कुछ कहना चाह रहा है.’’

पंकज की निगाह दरवाजे पर टिकी थी. उसे रीना का इंतजार था, पर वह एक बार भी उस से मिलने नहीं आई थी.

पंकज की मम्मी ने कामना से पूछा, ‘‘पंकज दरवाजे पर क्यों टकटकी लगाए हुए है?’’

तब न चाहते हुए भी कामना ने रीना और पंकज की दोस्ती के बारे में सब बता दिया.

मम्मी ने पंकज के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, रीना तो आज तक एक बार भी तुम्हें देखने नहीं आई. अगर वह तुम से प्यार करती तो तुम्हें देखने तो आती. क्या उसे तेरी फ्रिक नहीं होती? मुझे तो वह लड़की ठीक नहीं लग रही है, लेकिन फिर भी तुम उसे चाहते हो तो हमें यह रिश्ता मंजूर है. लेकिन शादी कुछ साल बाद ही करेंगे.’’

मम्मी की बात सुन कर पंकज के चेहरे की रंगत ही बदल गई.

कामना भी अब वापस कालेज आ गई थी. आते ही उस ने रीना को देखा. वह क्लास के एक लड़के के साथ कार में घूमने जा रही थी.

कामना ने रीना से कहा, ‘‘रीना, तुम पंकज से मिलने एक बार भी नहीं गई. कालेज में तो दिनभर उस के साथ रहती थी. एक बार उस से मिलने चली जाओ, वह तुम्हारा इंतजार कर रहा है.’’

वैसे तो कामना को मालूम था कि रीना पंकज से मिलने नहीं जाएगी, पर पंकज की खुशी की खातिर ही उस ने रीना से यह बात कही.

कामना की बात सुन कर रीना ने हंसते हुए कहा, ‘‘कौन पंकज? मैं किसी पंकज को नहीं जानती. अब वह मेरे किसी काम का नहीं है और मैं बिना काम की चीजों को फेंक देती हूं.’’

तब कामना ने कहा, ‘‘पंकज कोई चीज नहीं है. वह तुम्हारा प्यार है.’’

रीना बोली, ‘‘कौन सा प्यार… मैं ने कभी उस से प्यार किया ही नहीं. बस, मतलब निकाला था. मतलब खत्म, दोस्ती खत्म,’’ इतना कह कर वह उस लड़के के साथ कार में बैठ कर चली गई.

कामना कुछ देर तक वहीं खड़ी रही, फिर क्लास में न जा कर अपने घर आ गई और मम्मी को सारी बातें बताईं.

शाम को कामना अपनी मम्मी के साथ पंकज से मिलने गई और रीना ने जो कहा था उस की पूरी रिकौडिंग पंकज की मम्मी को सुनाई.

पंकज की मम्मी ने कहा, ‘‘मुझे तो पहले से ही मालूम था कि रीना ठीक लड़की नहीं है, लेकिन पंकज को
यह बात समझ नहीं आ रही थी. खैर, जो होता है, अच्छे के लिए होता है.’’

थोड़े दिनों में पंकज काफी हद तक ठीक हो गया और थोड़ाथोड़ा बोलने की कोशिश भी करने लगा.
पंकज की जिद पर उस के मम्मीपापा उसे कालेज लाए. पंकज एक बार रीना को देखना चाह रहा था. कालेज में आते ही उस की नजर रीना को ढूंढ़ने लगी.

तभी रीना अपने नए दोस्त के साथ कैंटीन से निकल रही थी. रीना को देखते ही पंकज खुश हो गया. उसे लगा कि रीना उस के पास आएगी और न मिल पाने का अफसोस करेगी, लेकिन रीना ने पंकज को देख कर भी अनदेखा कर दिया और उस के सामने से निकल कर अपने नए दोस्त की कार में बैठ कर चली गई.

पंकज की आंखों से आंसू निकल पडे़ और वह धीमे और लड़खड़ाते कदमों से अपनी गाड़ी की ओर चल पड़ा. रास्तेभर वह रोता रहा. उस की मम्मी ने भी कहा, ‘‘बेटा, जीभर कर रो ले. ऐसे रिश्ते पर आज के बाद आंसू मत बहाना,’’ फिर उन्होंने कामना द्वारा दी गई रीना की रिकौडिंग सुनाई.

रिकौडिंग सुन कर पंकज फूटफूट कर रोने लगा. उस की मम्मी ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ कि मतलबी रिश्ता खत्म हो गया. ऐसा रिश्ता ज्यादा दिन तक नहीं चलता.’’

कालेज से लौटते हुए पंकज के पापा ने कार कामना के घर पर रोक दी. उन का तो पहले से ही वहां आनाजाना था.

पंकज को देख कर कामना ने जल्दी से उस का हाथ पकड़ा और कमरे में ले आई. पुरानी बातों का दौर शुरू हुआ तो समय का पता ही नहीं चला. दोपहर को सब ने साथ ही खाना खाया.

पंकज अब धीरेधीरे ठीक हो रहा था. उस ने फिर से कालेज जाना शुरू कर दिया, लेकिन इस पंकज में और पहले के पंकज में जमीनआसमान का फर्क था.

अब पंकज बहुत चुपचुप सा रहने लगा था. उस के चापलूस दोस्त सब दूर हो गए थे, क्योंकि पंकज घर से कालेज और कालेज से सीधा घर जाता था. कभीकभार कामना के घर चला जाता था.

इसी तरह दिन निकल रहे थे. इस बार पंकज अच्छे नंबरों से पास हुआ था और इस का क्रेडिट उस ने कामना को दिया और अपने मम्मीपापा से कहा, ‘‘अगर कामना नहीं होती, तो मैं डिप्रैशन में चला जाता.’’

पंकज की मम्मी बोलीं, ‘‘जब तुम्हें मालूम है कि कामना ही तुम्हारी सब से अच्छी दोस्त है, तो क्यों मतलबी लोगों को अपना दोस्त बनाते हो?’’

तब पंकज के पापा ने कहा, ‘‘क्यों न पंकज की इस दोस्त को हमेशा के लिए घर ले आएं?’’

मम्मी ने पंकज को देखा, तो पंकज ने अनमने मन से कहा, ‘‘जैसी आप की इच्छा.’’

पापा ने कहा, ‘‘ठीक है. तेरी इच्छा नहीं है तो रहने दे. हम कामना की शादी कहीं और कर देते हैं.’’

यह सुन कर पंकज बोला, ‘‘नहीं पापा, अपनी बचपन की दोस्त को तो मैं किसी और का नहीं होने दूंगा. वैसे भी इस की कीमत मैं ने काफी समय बाद जानी है.’’

पंकज की बात सुन कर मम्मी ने क्यारी से एक गुलाब तोड़ कर पंकज को देते हुए कहा, ‘‘यह गुलाब कामना को दे आया. हमारे लिए तो आज ही वैलेंटाइन डे है.’’

इस के बाद पंकज का परिवार कामना के घर की ओर चल दिया. वहां पहुंच कर पंकज की मम्मी ने सारी बात कामना के परिवार को बताई. पंकज ने गुलाब कामना को दिया. सब ने एकदूसरे को बधाई दी और कामना की बहनों ने गुलाब की बारिश करते हुए पंकज से कहा, ‘हैप्पी वैलेंटाइन डे…’

Family Story: अधब्याहे

Family Story, लेखिका – सुमिता शर्मा

‘‘राघव, तू बहू को घर कब लाएगा?’’ शंभू चाचा ने खटिया पर लेटेलेटे ही सवाल किया.

शंभू चाचा को अनसुना करते हुए राघव तेजी से पुराना कपड़ा ले कर आंगन में खड़ी अपनी मोटरसाइकिल पोंछने लगा.

‘‘सब पर बोझ बन कर बैठे हैं. न घर बसाया, न परिवार. अब पराई औरतों की खबर न रखेंगे, तो भला और क्या करेंगे. अपनी पत्नी को एक बार मायके भेजने के बाद आज तक खोजखबर तक नहीं ली, अब सब की बहुओं की जानकारी चाहिए…’’ बड़बड़ाते हुए मोटरसाइकिल साफ कर के राघव नौकरी पर चला गया.

शंभू चाचा अपनी इस अनदेखी पर मुसकरा कर चुप रह गए.

शायद शंभू चाचा का यही एकमात्र प्रायश्चित था. कभी शंभू चाचा की कही बात पत्थर की लकीर मानी जाती थी. उन के वचन की लोग गारंटी लेते थे. कहते थे कि बंदूक की गोली बदल सकती है, पर शंभू चाचा की बोली नहीं.

किसे पता था कि यही आन एक दिन शंभू चाचा की जिंदगी को यों तहसनहस कर देगी. अब फौज से रिटायर हो चुके शंभू चाचा की जगह पराई इच्छा पर रहने वाले बो?ा से ज्यादा नहीं थी परिवार में. वे जब तक खर्च करते थे, तब तक जरूरी थे और धीरेधीरे कब गैरजरूरी हो गए, वे खुद ही नहीं जान पाए.

शंभू चाचा को न शादीशुदा कह सकते थे, न ही कुंआरा. गृहस्थी होते हुए भी वे गृहस्थ न थे. उन का कमरा बस सफाई के नाम पर खुलता और बंद होता. दीवार पर टंगी उन के ब्याह की एकमात्र ब्लैक ऐंड ह्वाइट तसवीर ही थी.

चाची से जुड़ी राघव की तो बड़ी धुंधली सी यादें थीं. उन्हें उस ने कभी अपने घर में नहीं देखा था.

शंभू चाचा की जिम्मेदारी संभालना और उन की रोटीपानी करना सब को बोझ लगता, पर चाचा को कोई कभी बोझ न लगा. वे हरसिंगार के पेड़ के नीचे पड़े टिन के शैड के नीचे ही लेटते थे. उन की खटिया ही उन की दुनिया थी.

रात को जब राघव घर लौटा, तो शंभू चाचा ने उसे अपने पास बुला लिया और सम?ाते हुए कहा, ‘‘लल्ला, बात मान ले और गुस्सा थूक कर बहू को घर ले आ.’’

राघव ने गुस्से से दांत पीसते हुए कहा, ‘‘भुगत तो रहा हूं आप की बात मान कर. अगर उस दिन मंडप से उठ जाता, तो आज मजे से दूसरा ब्याह कर चैन से जी रहा होता. समझ भी कौन रहा है मुझे… आप… जिन का घरद्वार कभी बसा ही नहीं.’’

‘‘आज सही चोट किए हो भतीजे,’’ लौहपुरुष माने जाने वाले शंभू चाचा सिर झुकाए, आंखें आंसुओं से सजाए बैठे थे.

‘‘वह क्या है कि हम नहीं चाहते, इस आंगन में एक दूसरा शंभू और बने. अगर तुम्हें किसी की अधब्याही लड़की छोड़ना मर्दानगी लग रहा था, तो न मानते हमारी बात. कौन सा हम ने दुनाली लगा दी थी तुम्हारी कनपटी पर…’’ कहतेकहते शंभू चाचा उस पल में भीतर और बाहर दोनों ओर से मोमबत्ती से पिघलने लगे.

राघव पहली बार शंभू चाचा का यह रूप देख कर पसीज उठा और उन्हें सीने से लगाते हुए बोला, ‘‘बुरा मत मानो चाचा, मेरा आप का दिल दुखाने का मन नहीं था. 6 फुटा फौजी, जिस ने दुश्मन की गोली से खौफ न खाया, वह मेरी बोली से दहल गया?’’

‘‘रघुआ, मुझे भी तेरी चाची बड़ी प्यारी थी, पर उस में बड़ी ऐंठ थी और मु?ा में अपनी बात की टेक थी. मैं सरवन कुमार तो बन गया अपनी मां का, पर तेरी चाची का पति न बन पाया. बस, अपनी बात का धन ही हाथ लगा मेरे.

‘‘वह होती तो हम एकदूजे का सहारा होते, हमारा परिवार होता. आज बुढ़ापे की दहलीज छूने जा रहा हूं, मगर क्या जिंदगी है मेरी, दूसरों पर बोझ हूं,’’ शंभू चाचा के दिल का फोड़ा आज राघव के सामने फूटा था. मवाद ज्वालामुखी के लावे सा बह रहा था.

राघव ने सपने में भी नहीं सोचा था कि हंसमुख और चंचल नदी से बहने वाले शंभू चाचा के मन की तलहटी में दुख की इतनी गाद जमा होगी. उस ने उन्हें जीभर कर रो लेने दिया.

शंभू चाचा के मन का ज्वार अब मंद पड़ चुका था. वे खुद को काबू कर के बोले, ‘‘रघुआ, जो गलती मैं ने की है, उसे तू मत दोहराना बेटा…’’

‘‘गलती… कैसी गलती चाचा?’’ राघव ने हैरानी से पूछा.

शंभू चाचा उस पल में न जाने कितने बरसों पीछे लौट गए. वे शून्य में देखते हुए बोले, ‘‘मैं अपनी शादीशुदा जिंदगी की रत्तीरत्ती सी बात अपनी मां को बताया करता था. आज्ञाकारिता के बेताल ने कभी भी मेरी पीठ से उतरना मंजूर नहीं किया.

‘‘मेरी मां ने मुझे इतना प्यार दिया, मुझ पर इतना ज्यादा हक जमाया कि मुझे अपनी छाया से बाहर निकलने ही नहीं दिया. मां की जिद में तेरी चाची को देशनिकाला दे दिया. अगर मां को समझाया होता तो आज अमरबेल सा दूसरों की गृहस्थी पर न पल रहा होता. वह घर में होती, तो आज तेरे भाईबहन तेरे जितने होते.

‘‘जीवनसाथी की जरूरत इस उम्र में सब से ज्यादा होती है. समय रहते आंखें खोल ले. उस ने जो चाहा सो किया, जो दिखाया सो देखा, यह भांप ही नहीं पाया कि उस के लिए भी मेरा कुछ फर्ज है, जिसे आगपानी की कसमें खा कर अपने साथ ले कर आया हूं. तू खुद ही देख ले कि अब कौन मेरा है और मैं किस का हूं.’’

राघव ने शंभू चाचा को कस कर अपनी बांहों में भींच लिया और उन्हीं की चारपाई पर लेट गया. गृहस्थी का दर्द चाचा के चेहरे की लकीरों में किसी नदी के भंवर सा घूम रहा था.

राघव धीरे से बोला, ‘‘चाचा…’’

‘‘बोल…’’

‘‘दादीदादा तो कब के गुजर गए, तो यह चाची को न लाने की भीष्म प्रतिज्ञा आप कब तक निभाओगे? ले क्यों नहीं आते?’’

‘‘वह भी तो निभा रही है रघुआ, न जाने जिंदा है भी कि नहीं…’’ शंभू चाचा आसमान की ओर ताकते हुए बोले.

अगली सुबह शंभू चाचा देर तक सोए रहे. आंगन में चहलपहल कम थी. राघव की मोटरसाइकिल भी अपनी जगह पर थी.

आज 3 दिन हो गए, शंभू चाचा ने राघव की शक्ल तक नहीं देखी थी. भाभियां भी नाराज रहती थीं. सब को उन के खाली कमरे की जरूरत थी, पर उन्होंने किसी को नहीं सौंपा था.

पूरे 5 दिन के बाद राघव के मैले कपड़े तार पर टंगे देख कर शंभू चाचा को राहत मिली.

‘‘अरे रघुआ, बहू ले आया क्या?’’ शंभू चाचा ने ऊंची आवाज में पूछा.

‘‘हां, चाचा,’’ राघव बाहर आते हुए बोला. उस के पीछे बहू भी चली आ रही थी. उस ने धीरे से आंगन की बत्ती जला दी.

शंभू चाचा को बरसों बाद भी कोने की भीड़ में वह चेहरा न जाने क्यों दिखने लगा, थोड़ी चांदी के साथ.

‘‘शायद बहू के आने की खुशी में बौरा गया हूं मैं,’’ शंभू चाचा ने अपने सिर पर खुद ही चपत लगाते हुए कहा.

‘‘चाचा, जरा अपने कमरे की चाभी दीजिए,’’ राघव उन के पैर छूते हुए बोला, ‘‘बहू को मुंहदिखाई चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं, आज तू ने मेरी बात मान कर मुझे बेमोल खरीद लिया.’’

मगर, यह क्या… बहू तो शंभू चाचा के पैर छू कर सीधे रसोईघर में लौट गई. वे आराम करने के लिए अपनी खटिया खोजने लगे. न मिलने पर बाहर ही चबूतरे पर बैठ गए.

देर रात राघव ने शंभू चाचा को खाने के लिए आवाज लगाई, तब पाया कि उन के कमरे की बत्ती जल रही थी. खिले हुए हरसिंगार की महक आज उस बंद कमरे की सीलन निकाल कर आसपास छाई हुई थी.

चांद की छनती रोशनी में साड़ी पहने एक अजनबी आकृति थाली लिए शंभू चाचा की ओर बढ़ी. वे घबरा कर कमरे की ओर उलटे पैर लौट पड़े.

कमरे में बल्ब की रोशनी में पाया कि यह आकृति राघव की बहू की नहीं, बल्कि उन की पत्नी ब्रजेश कुमारी की थी. बरसों बाद इस तरह सामना होने पर वे कुछ न कह पाए. आंसू दोनों ओर थे.

‘‘खाइए न…’’ यह आवाज सुन कर शंभू चाचा वर्तमान में लौटे. आंगन में हाथ धोते हुए उन्होंने जोर से आवाज लगाई, ‘‘रघुआ…’’

‘‘क्या बात है चाचा…’’ राघव शर्ट पहनता हुआ आया.

‘‘बहू नहीं लाया क्या…?’’

‘‘लाया हूं न चाचा… आप की भी और अपनी दादी की भी. उस दिन आप की बातें और आप की सूनी आंखों ने मुझे विरह की बड़ी दुखद तसवीर दिखाई, तब मैं ने कसम खाई कि दुलहन के साथ चाची की भी वापसी होगी.’’

‘आप मुझ में खुद को देख रहे थे, तो क्या मैं आप में खुद को नहीं देख सकता… इतिहास नहीं दोहराया जाएगा,’ खुद से इतना कह कर राघव अपनी ससुराल निकल गया था उस दिन.

‘‘पता तो मालूम था चाचा मुझे, पर चाची इतने बरसों बाद दुलहन के साथ मुझे देख कर पहले तो पहचान ही न पाईं, पर जब पहचान लिया, तब लिपट कर खूब रोईं, तो एक लंबे अरसे का मवाद बह गया.

‘‘बस, हम भी अड़ कर बैठ गए और तभी माने, जब हम ने उन से वचन ले लिया हमारे साथ चलने का. अब उस कमरे में उस की मालकिन का स्वागत कीजिए. अब हम अधब्याहे नहीं हैं.’’

जीवनसाथी के साथ का जगमग दीया उन दोनों के विरह का अंधेरा दूर कर चुका था.

Funny Story: कर्ज ले कर घी पीना तरक्की का पैमाना

Funny Story: कर्ज ले कर घी पीना पुरानी कहावत है. आज के आदमी में तो घी पीने का स्टैमिना ही नहीं बचा. गंगाधर को तो उस समय हैरानी हुई, जब उसे पता चला कि दुनिया के अमीर देश अमेरिका के ऊपर तकरीबन 37 लाख करोड़ डौलर का कर्ज है, जो इस की जीडीपी का तकरीबन 122 फीसदी है. वहां की सरकार अब इस के बारे में चिंतित है कि कहीं अमेरिका, जो दुनिया के भविष्य के लिए तरहतरह से चिंतित रहता है, दिवालियापन के चलते इस का भविष्य ही अंधकार से न भर जाए.

भारतीय रुपए में यह तकरीबन 3,250 लाख करोड़ रुपए है. कहां भारत 5 ट्रिलियन डौलर की इकोनौमी बनने के सपने न जाने कब से देख रहा है, जबकि अमेरिका पर कर्ज ही इस के 6 गुना से ज्यादा है. भारत का कर्ज सितंबर, 2024 में 161 लाख करोड़ था यानी अमेरिका से 20 गुना कम, जो हमारी जीडीपी का भी महज 60 फीसदी के आसपास है.

ब्रिटेन और फ्रांस जैसे विकसित देशों का भी कर्ज उन की जीडीपी से ज्यादा है. अब समझ आ रहा है कि हम पिछडे़ के पिछडे़ क्यों बने हुए हैं. अगर कुछ साल पहले ही थोड़ा ज्यादा कर्ज ले कर घी पीने की आदत डाल ली होती, तो पिछडे़पन के शाप से कब का छुटकारा पा गए होते.

पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ही कर्ज पर टिकी है. अब सुपर पावर का मतलब सुपर कर्ज से है और विकासशील मतलब कर्जशील से है. पहले आमदनी, फिर उस के बाद खपत के आधार पर गरीबी की रेखा तय की गई थी, लेकिन अब कर्ज की बुनियाद पर इसे तय करना चाहिए. जिस पर बहुत मामूली सा कर्ज है, वह गरीब. जिस पर बिलकुल भी कर्ज नहीं है, वह दीनहीन या बहुत ज्यादा गरीब और जिस पर ज्यादा कर्ज है, वह अमीर कहलाएगा. जिस पर बहुत ही ज्यादा कर्ज है वह अमीरेआजम.

लगता है कि हमारे नेता अब जा कर इस बात को सम?ा पाए हैं, इसलिए वे ज्यादा से ज्यादा कर्ज लेने के लिए एक पैर से तैयार रहते हैं. वोटरों को मुफ्त की रेवड़ी बांटने का सब से आसान जरीया कर्ज ले कर बांटना ही है, जिस में कोई भी सरकार बंटी नहीं है, सब एकमत हैं. यहां ‘बंटेंगे तो सत्ता से हटेंगे’ इन का नारा है.

आलोचकों को अब आम बजट के समय अपना मुंह बंद रखना चाहिए. रुपया आता कहां से है और जाता कहां है के पाई चार्ट में कर्ज की देनदारी अभी भी एकचौथाई से ज्यादा नहीं रहती. क्या यह एक सब से बड़ी वजह है हमारे मुद्दत से विकासशील ही बने रहने की?

अगर जम कर कर्ज न लेने के शील को जल्द ही हम ने नहीं उतार फेंका, तो हम साल 2047 क्या साल 2147 तक भी विकसित नहीं बन पाएंगे. सरकार को तो रेवड़ी बांटने की आधा दर्जन और योजनाएं जल्दी ही ले आनी चाहिए. सरकार का आज मतलब ही है, जो कि खुद भी कर्ज ले कर घी पीए व वोटरों को भी पिलाती रहे.

मोटी बात है कि भारत का कर्ज अमेरिका और दूसरे विकसित देशों के लैवल से कोसों दूर है, तो विकसित का टैग भी कोसों दूर रहेगा. तो इसे उस लैवल पर पंहुचाने के लिए सारे जरूरी कदम पहली फुरसत में उठाने चाहिए. पहला कदम यह कि यहां का एकएक आदमी कर्ज में डूबा होना चाहिए. क्रेडिट कार्ड लेना मैंडेटरी कर दिया जाए.

बहुत से कारोबारी घराने अपनी कंपनी को पब्लिक नहीं करना चाहते. यह सब धांधली सरकार को एक कानून बना कर बंद कर देनी चाहिए. मतलब इतना सा है कि जो भी कर्ज का घी नहीं पी रहा है, उस के लिए घी पीना मैंडेटरी कर दिया जाएगा. नसबंदी के समय जैसी कड़ाई कर देनी चाहिए. जो उधार का घी पीना न चाह रहा हो, उसे पकड़ कर उधार का घी मुंह में जबरन डाल दिया जाए.

अगर आप के पास पूंजी रूपी घी है तो भी कर्ज रूपी घी पीना ही होगा. जब कर्ज विकसित देशों के लैवल का पहुंचेगा, तो हमें विकास के उस लैवल तक पहुंचने से कोई रोक नहीं पाएगा.

साल 2023 में चीन तक का कर्ज उस की जीडीपी का 83 फीसदी था. हाथ कंगन को आरसी क्या… देखिए, चीन के सामने हम कहां खडे़ हैं.

हमारी सरकार भले ही रोजगार के मौके बढ़ाने की बात को सालों से आत्मसात नहीं कर पा रही हो, पर इस बात को आत्मसात कर गई है. सरकार को एक नई कर्ज नीति जल्दी ही बना देनी चाहिए, जिस में पैदा होने से ले कर मरने तक बारबार कर्ज लेना मैंडेटरी होगा. इस से बहुत जल्दी बजट में रुपया आता कहां से है, जाता कहां है संबंधी पाई चार्ट के एकचौथाई पर और कब्जा हो जाएगा यानी आधी कमाई कर्ज व ब्याज चुकाने पर.

आदर्श हालात वही होंगे कि एक रुपया कमाओ तो कम से कम एक रुपए का कर्ज तुरंत लो. जितनी आवक हो, वह कर्ज व ब्याज पटाने में चली जाए, बल्कि अमेरिका जैसे और अमीर बनना है, तो 122 फीसदी का बैंचमार्क है. अमेरिका कौन सा अपनी वर्तमान तरक्की से संतुष्ट है. वह तो लगातार तरक्की करते हुए जीडीपी का 200 फीसदी कर्ज ले कर तरक्की की हद पर पहुंच कर ही मानेगा.

एक और बात कि अगर कोई राज्य सरकार उधार का घी पीने के मामले में पिछड़ी है, तो केंद्र सरकार अपनी ओर से ही उस का उधारी का घी ले कर उस को भी अच्छा कर्जदार बना कर तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ाने का बीड़ा खुद उठाए. क्षेत्रीय असमानता न बढे़, यह जिम्मेदारी आखिर केंद्र सरकार की ही होती है.

केंद्र सरकार को अगर मां माना जाए तो राज्य सरकारें उस की संतानें हुईं. मां का काम है कि अपने सभी बच्चों को एक ही नजर से देखना. जो उधार का घी न पी कर कमजोर हो रहा है, उसे जबरन घी पिला कर सेहतमंद बनाए रखना.

निजी कर्ज की भी बात की जाए, तो आज जिस ने लाखों रुपए का तरहतरह का कर्ज नहीं ले रखा है या उस के पास क्रेडिट कार्ड नहीं है तो वह पिछडा़ ही माना जाता है. ऐसा आदमी गर्लफ्रैंड पर क्या खर्च कर पाएगा. होनहार नौजवान तो इस के लिए चेन स्नैचिंग तक करते हैं. जो अपनी तनख्वाह का आधा क्रेडिट कार्ड के भुगतान पर न करे, वह प्रगतिशील कैसे हो सकता है.

वैसे, हम तरक्की के रास्ते पर हैं. हमारे यहां अब किसान, नौजवान, कारोबारी कर्ज से परेशान हो कर खुदकुशी कर रहे हैं, जो पिछड़े समाज के लक्षण हैं.

पहले जब देश गरीब था, आप एक भी घटना बताओ, जब किसी किसान ने खुदकुशी की हो. गरीब की पहचान ही है कि उसे कर्ज नहीं मिलता. पर जिसे अरबों रुपए का कर्ज मिलता है, वह ‘राष्ट्र निर्माता’ कहलाता है.

कर्ज का ज्यादा घी पीने वाले की बैंक में आवभगत की जाती है. जिस ने ऐसा घी पिया ही नहीं, उसे खड़ा रखा जाता है या दुत्कार कर भगा दिया जाता है.

सरकार कितनी दयालु है. उस ने ढेरों योजनाएं नौजवानोंअधेड़ों को कर्ज देने के लिए बना रखी हैं. वह चाहती है कि औसत प्रति व्यक्ति घरेलू कर्ज है, वह अभी के तकरीबन 40,000 से बढ़ कर कम से कम एक लाख रुपए हो जाए, तो अपनेआप तरक्की दिखने लगेगी. उधार अब प्रेम की कैंची नहीं, बल्कि विकास की सीढ़ी माना जाता है.

आम आदमी सरकार के उधार पर ही तो मस्त है. लाड़ली बहना फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन सरकार द्वारा दी गई किस्तों के दम पर किस्तों पर उठा रही है.

आम आदमी का सरकार को कम से कम इस बात का कर्जदार होना चाहिए कि वह खुद के साथ ही सब को मोटा कर्जदार बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रही है.

आत्मनिर्भर भारत भी कर्ज की बुनियाद पर ही बनाया गया है. अरे, उधार ले कर घी पीने से डरते क्यों हो…? आगामी चुनाव में माफी हो जाएगी. यहां ये सुविधा भी तो है कि सैकड़ोंहजारों करोड़ का कर्ज न चुका पाओ, तो रातोंरात दूसरे देश भाग सकते हो. उधार पर जितना ऐश कर सकते हो कर लो, सरकार भी तो कर रही है.

अब जल्दी ही वह समय आने वाला है, जब कहा जाएगा कि यहां का हर आदमी अच्छाखासा कर्ज ले कर अच्छाखासा घी पी रहा है और ईएमआई में गुमशुदा है.

News Story: भगवाधारियों का फर्जी ‘आपरेशन सिंदूर’

News Story: कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव ज्यादा बढ़ गया था. ‘आपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों पर हमला करने के बाद भारत में हर जगह भारतीय सेना की खूब तारीफ हो रही थी.

भारत और पाकिस्तान की सरहद पर तनाव बढ़ा, तो पूरे उत्तर भारत में लोगों को आगाह करने के लिए सरकार की तरफ से भी दिशानिर्देश दिए गए.

अनामिका भी रोज इस तरह की खबरें सुन रही थी. आज शाम को उसे मोती नगर की मार्केट में अपने लिए कुछ छोटे कपड़े खरीदने के लिए जाना था. वहां अनामिका की जानपहचान की एक मंजू आंटी की दुकान थी, जहां सिर्फ औरतों और लड़कियों से जुड़े निजी सामान ही मिलते थे.

अनामिका ने शाम के 5 बजे विजय को फोन किया, ‘‘हाय, अभी क्या कर रहे हो? मुझे मंजू आंटी की दुकान से कुछ सामान लेना है. तुम भी आ जाना. कौफी पी लेंगे.’’

‘यार, मैं आज नहीं आ पाऊंगा,’ विजय ने कहा.

‘‘क्या हुआ? घर पर सब ठीक तो है न?’’ अनामिका ने पूछा.

‘घर पर तो सब ठीक है, पर मेरा दोस्त रहमान आज के हालात से थोड़ा घबराया हुआ सा है. वह यहां किराए पर अकेला रहता है और पिछले 2-3 दिन से महल्ले के कुछ सिरफिरे लोग इसे ‘पाकिस्तान का जासूस’ कह कर चिढ़ा रहे हैं. जबरदस्ती ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाने को बोल रहे हैं.

‘कल तो हद ही हो गई. यहीं के एक गुंडे ने उस से कह दिया कि ‘आपरेशन सिंदूर’ शुरू हो गया है, अब तुझ जैसों की मांग भरने का वक्त आ गया है,’ विजय ने बताया.

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. कोई बात नहीं. तुम रहमान के साथ रहो. मुझे मंजू आंटी के पास ज्यादा समय नहीं लगेगा. कौफी फिर कभी पी लेंगे,’’ अनामिका बोली.

‘मेरा तुम्हारे साथ आने का बड़ा मन था, पर रहमान को मेरी ज्यादा जरूरत है. तुम मार्केट में अपना ध्यान रखना,’ विजय ने इतना कह कर फोन काट दिया.

शाम के साढ़े 6 बजे थे. अनामिका मोती नगर की मार्केट में जा रही थी. आम दिनों की तरह चहलपहल थी. एक दुकान के सामने भीड़ जमा थी. वह किराने की दुकान थी. कोई गुप्ताजी पिछले 30 साल से यह दुकान चला रहे थे. गल्ले पर वही बैठे थे.

दुकान पर जमा वह भीड़ ग्राहकों की नहीं थी, बल्कि 8-10 भगवाधारी नौजवान उन गुप्ताजी से उलझे हुए थे.

एक नौजवान चिल्ला रहा था, ‘‘समझ नहीं आता क्या… जब हम ने बोल दिया है कि ब्लैकआउट हो गया है, तो फिर दुकान खोलने की जिद क्यों कर रहे हो…?’’

‘‘पर मौक ड्रिल तो शाम को 8 बजे शुरू होगी. पहले सायरन बजेगा, फिर सब को 15 मिनट के लिए अपनी दुकान की बिजली बंद करनी है और शटर डाउन कर के दुकान के अंदर तब तक रहना है, जब तक अगला सायरन न बज जाए…’’ गुप्ताजी ने अपनी बात रखी.

‘‘पहलगाम में आतंकियों ने चुनचुन कर हिंदुओं को मार दिया और आप यहां हम से बहस कर रहे हो? इस इलाके का प्रशासन हम ही हैं. हमारी बात मानो और दुकान बंद कर के घर चले जाओ. आज की कमाई हो गई आप की,’’ एक और भगवाधारी ने कहा और दुकान के बाहर रखे कोल्डड्रिंक के क्रेट को पलटने का दिखावा करने लगा, ताकि गुप्ताजी डर जाएं.

इसी बीच 2-3 मुस्टंडे गुप्ताजी की नजर बचा कर चीनी की एक बोरी ही गायब कर गए. उन्होंने बड़ी चालाकी से वह बोरी उठाई और अपनी कार की डिग्गी में छिपा दी. एक लड़के ने तो गुप्ताजी के सामने ही एक जार से कुछ चौकलेट निकाल ली और बाकी सब लोगों में बांट दी.

‘‘चलो, अब अगली दुकान वाले को हड़काते हैं. जब तक सब की हवा टाइट नहीं होगी, हमारा दबदबा कैसे बनेगा. ‘आपरेशन सिंदूर’ के बहाने अपनी दुकान भी तो चमकानी है,’’ उन सब लोगों का नेता दिखने वाले एक नौजवान ने कहा और बाकी सब उस के पीछे हो लिए.

मंजू आंटी की दुकान थोड़ा आगे थी. मंजू आंटी विधवा थीं और उन्होंने अपने पति की दुकान को अब अच्छे से संभाला हुआ था. उन की एक बेटी थी, जो शादी के बाद अपने पति के साथ आस्ट्रेलिया में रह रही थी.

‘‘आंटी, मुझे ब्रा दिखाइए… और हां, गरमी है न तो सूती ही दिखाना, वरना पसीने से दिक्कत होती है,’’ अनामिका ने मंजू आंटी को बताया.

मंजू आंटी को अनामिका का साइज पता था. वे बोलीं, ‘‘कल ही नया माल आया है. बहुत अच्छी क्वालिटी का है. तुझे पसंद आएगा.’’

‘‘आंटी, दीदी की शादी और अंकल के जाने के बाद आप एकदम अकेली पड़ गई हैं. अच्छा है कि आप दुकान संभाल रही हैं, वरना घर बैठे बोर हो जातीं,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘यह तो है, पर जब से पहलगाम कांड हुआ है, तब से मन में अजीब सा डर भर गया है. भारत और पाकिस्तान की सरहद पर तनाव बढ़ा हुआ है. रोजाना एकदूसरे पर ड्रोन से हमले की खबरें आ रही हैं… पता नहीं, आगे क्या होगा,’’ मंजू आंटी ने पैकेट से ब्रा निकालते हुए अनामिका से कहा.

‘‘अच्छा आंटी, मुझे कोई बढि़या सा रेजर भी दे दीजिए,’’ अनामिका ने ब्रा की क्वालिटी चैक करते हुए कहा.

आज अनामिका बेहद खूबसूरत लग रही थी और बारबार खुद को आईने में देख रही थी, तभी उसे आईने में दिखा कि कुछ लड़के दुकान में घुस आए हैं. लेडीज सामान की दुकान में लड़कों का क्या काम… अनामिका को उन के इरादे ठीक नहीं लगे.

‘‘ओ आंटी, जल्दी से अपनी दुकान बंद करो और घर जाओ. ब्लैकआउट हो गया है,’’ एक भगवाधारी ने गेट पर डंडा मारते हुए कहा.

‘‘किस के कहने पर यह ब्लैकआउट किया गया है? प्रशासन ने तो मौक ड्रिल का समय रात 8 बजे रखा है,’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘तू कौन है…? बड़ी जबान चला रही है. अपना सामान ले और निकल यहां से. जल्दी घर जा. कहीं कोई अनहोनी हो गई, तो दिक्कत हो जाएगी. घर पर मम्मीपापा इंतजार कर रहे होंगे,’’ एक भगवाधारी ने कहा.

‘‘छोटू, दीदी को उन के घर छोड़ आ. और हां, रास्ते में इन्हें कोई दिक्कत न हो,’’ एक कमउम्र साथी को आवाज लगाते हुए उस भगवाधारी ने अनामिका को ऊपर से नीचे तक देखा.

‘‘यह कैसी जबरदस्ती है. हमें कोई आदेश नहीं मिला है जल्दी दुकान बंद करने का,’’ मंजू आंटी ने कहा.

‘‘वहां भारत की सेना हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान से लोहा ले रही है और यहां आंटीजी को जल्दी दुकान बंद करने में दिक्कत हो रही है. पहलगाम में मारे गए हिंदुओं की विधवाओं के नाम पर सरकार ने ‘आपरेशन सिंदूर’ चलाया है और आंटीजी को ब्रा बेच कर अपना घर पैसों से भरना है,’’ एक भगवाधारी ने कहा.

‘‘तो तुम्हें क्या लगता है कि पहलगाम में मारे गए लोगों का दुख हमें नहीं है. बेटा, मैं अपनी दुकान की हर शादीशुदा ग्राहक को सिंदूर की डब्बी मुफ्त में दे रही हूं,’’ मंजू आंटी भावुक हो कर बोलीं.

यह सुन कर भगवाधारी लीडर ने कहा, ‘‘यह तो बड़ा महान काम किया आप ने. पर ‘आपरेशन सिंदूर’ की तूती हर जगह बोल रही है. भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जवाबी ऐक्शन के रूप में 7 मई की सुबह ‘आपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था.

‘‘पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की मौत हुई थी. वहीं, इस के जवाब में ‘आपरेशन सिंदूर’ के तहत 100 से ज्यादा आतंकियों का खात्मा किया गया.

‘‘कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका ने ‘आपरेशन सिंदूर’ के बारे में जानकारी साझा करते हुए बताया कि इस मिशन के दौरान आतंकियों के 9 ठिकानों को कामयाबी के साथ बरबाद किया गया है.

‘‘समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, प्रतिबंधित आतंकी संगठनों जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन के हैडक्वार्टरों को निशाना बना कर 9 ठिकानों बहावलपुर के मरकज सुब्हान अल्लाह, मुरिदके के मरकज तैयबा, टेहड़ा कलां के सरजाल, सियालकोट के महमूना जोया, बरनाला के मरकज अहले हदीस, कोटली के मरकज अब्बास और मस्कर रहील शहीद, मुजफ्फराबाद के सवाई नाला कैंप और सैयदना बिलाल कैंप पर हमला कर उन्हें खत्म किया गया.’’

‘‘मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में कई बेकुसूर लोग मारे गए थे, कइयों की मांग का सिंदूर उजड़ गया था. उस कायराना हमले में विवाहित महिलाओं के सिंदूर को आतंकियों ने उजाड़ दिया था, इसलिए बदले के इस ऐक्शन को ‘आपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया था. इस नाम का मतलब उन बेकुसूर महिलाओं, जिन का सिंदूर उजड़ गया, को इंसाफ दिलाना था,’’ एक और भगवाधारी ने अपनी बात रखी.

‘‘तो क्या जिन कुंआरी लड़कियों ने अपने पिता, भाई या दूसरे पारिवारिक सदस्य को खोया है, उन्हें इंसाफ दिलाने का सरकार का कोई इरादा नहीं था?’’ अनामिका ने चुटकी ली.

‘‘तुम जैसे लोग भी आतंकियों से कम नहीं हो. न सरकार पर यकीन करते हो और न ही हिंदुत्व की बात करने वालों पर. तुम से अच्छी तो ये आंटी हैं, जो मुफ्त में सिंदूर बांट रही हैं,’’ उन लोगों के लीडर ने गुस्से में कहा.

इतने में एक लड़के ने सिंदूर का बक्सा उठा लिया और बोला, ‘‘आंटीजी, आप अपने दिल पर ज्यादा बोझ मत लेना. आप के नाम से हम बांट देंगे औरतों को. आप तो दुकान बंद करो और घर जाओ.’’

‘‘यह क्या गुंडागर्दी है… सिंदूर का बक्सा वापस रखो, वरना अच्छा नहीं होगा,’’ अनामिका बोली.

‘‘क्या कर लेगी?’’ भगवाधरी गैंग का लीडर चिल्लाया.

‘‘वाह, एक तरफ तुम पाकिस्तानी आतंकवाद का रोना रो रहे हो और वहीं दूसरी तरफ यहां कमजोर को सता रहे हो. तुम भी आतंकियों से कम नहीं हो. देश को तुम जैसे लोगों से सावधान रहना चाहिए, जो अपने नकली हिंदुत्व की दुकान चमकाने के लिए यह सब नौटंकी कर रहे हो,’’ अनामिका को अब गुस्सा आ गया था.

‘‘बड़ी जबान चल रही है तेरी,’’ एक लड़के ने अनामिका को हड़काया.

‘‘जबान ही नहीं, मेरे लातघूंसे भी खूब चलते हैं,’’ इतना कह कर अनामिका ने वहां रखी कैंची उठा ली और चिल्लाई, ‘‘निकलो यहां से, वरना एकएक का पेट चीर दूंगी.’’

एक भगवाधारी अनामिका के करीब आया, तो उस ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया और मंजू आंटी के सामने जा कर अड़ गई.

यह सब देख कर वे लोग थोड़ा घबरा गए, क्योंकि उन्होंने पहले ही किराने वाले को लूटा था. वे आंखें दिखाते हुए वहां से चले गए.

‘‘बेटी, तुम बड़ी दिलेर निकली. पर, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. अगर कुछ हो जाता तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाती,’’ मंजू आंटी ने कहा.

‘‘मैं इन जैसे टुच्चों से बखूबी निबटना जानती हूं. आप चिंता मत करें. पर अब दुकान बंद कर लो,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘तुम ठीक कहती हो. रुको, हम दोनों साथ चलेंगे. आज पहले मेरे घर चलना. अपने हाथ की चाय पिलाऊंगी,’’ मंजू आंटी ने कहा.

दुकान बंद कर के वे दोनों वहां से चली गईं. घर पर मंजू आंटी ने बढि़या सी चाय बनाई और बोलीं, ‘‘आज का माहौल बड़ा खराब है. हर कोई चौधरी बना फिर रहा है. इस से देश का माहौल काफी बिगड़ता है.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं. मेरे बौयफ्रैंड को आज मेरे साथ आना था, पर वह अपने एक दोस्त रहमान के साथ है. जब से देश में यह भारत और पाकिस्तान का माहौल बना है, रहमान काफी डरा हुआ सा है,’’ अनामिका बोली.

‘‘सब ठीक हो जाएगा. हर समाज में अच्छेबुरे लोग होते हैं. तुम यह चाय लो, ठंडी हो रही है,’’ मंजू आंटी बोलीं.

‘‘जी आंटी. पर, मैं जरा विजय को फोन कर लूं,’’ इतना कह कर अनामिका ने विजय को फोन लगाया.

‘‘क्या हो रहा है?’’ अनामिका बोली.

‘कुछ नहीं. तुम्हारी खरीदारी कैसी रही?’

‘‘एकदम बेकार,’’ अनामिका ने उदास हो कर कहा.

‘कल मिलें?’ विजय ने पूछा.

‘‘हां, मुझे तुम से कुछ कहना भी है,’’ अनामिका बोली.

‘कल रात को छत पर आ जाना. पूर्णिमा आने वाली है. चांदनी रात में प्यारभरी बातें करेेंगे. ब्लैकआउट होगा तो और मजा आएगा,’’ विजय बोला.

‘‘ओह, जनाब को इश्कबाजी करनी है,’’ अनामिका का मूड थोड़ा ठीक हुआ.

‘‘हां, बहुत दिन हो गए, अकेले में मिले.’’

‘‘ठीक है. कल रात को मिलते हैं,’’ अनामिका बोली.

Hindi Story: वह लड़की

Hindi Story, लेखक – आनंद कुमार नायक

जब भी मैं कोई मासूम सी लड़की देखता हूं, तो उस लड़की की तसवीर मेरी आंखों में घूम जाती है, जिस को कभी मेरे फर्ज ने मरने पर मजबूर कर दिया होगा.

यह उन दिनों की बात है, जब मैं कश्मीर के एक थाना सारम में दारोगा था. यह थाना चारों तरफ से जंगली इलाकों से घिरा हुआ था. वहां आएदिन आतंकवादियों से मुठभेड़ होती रहती थी. कभी हम उन पर भारी पड़ते, कभी वे.

एक दिन मैं अपने कमरे में बैठ कर औफिस की फाइलें निबटा रहा था. काम की थकान की वजह से उन दिनों मैं बेहद गुस्से में था.

मेरे सामने मेरी दीदी बैठी अखबार देख रही थीं, जो बिना बताए अपने गांव से यहां आ धमकी थीं. अखबार देखने में दीदी का मन नहीं लग रहा होगा. मैं ने देखा, उन की आंखें मुझ पर ही टिकी हुई थीं. मुझ से नजर मिलते ही उन्होंने फौरन अपना ध्यान अखबार में लगा दिया. शायद, वे सोच रही होंगी कि उन्हें अकेले यहां आ कर मुझे गुस्सा दिलाना नहीं चाहिए था.

‘क्या कोई शरीफ लड़की इस तरह घर से बाहर निकलती है?’ ऐसा सोचते हुए मैं ने अपनी दीदी से आने की वजह पूछी ही थी कि तभी फोन की घंटी बज उठी. थाने से बुलावा था. आतंकवादियों ने चौकी पर हमला कर दिया था. दुश्मन अपना मोरचा मेन गेट पर संभाले हुए थे, इसलिए छिपतेछिपाते मुझे पीछे के दरवाजे से आना होगा.

‘ये आतंकवादी भी अपनेआप को समझते क्या हैं? जब चाहे थाने पर हमला बोल देते हैं. खैर, जो भी हो, आज ये सब आतंकवादी नहीं या मैं नहीं,’ मैं अपने मन में सोच रहा था.

मुझे सोचते देख मेरी दीदी ने मुझ से पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

न चाहते हुए भी मुझे सब सच बताना पड़ा कि आतंकवादियों ने चौकी पर हमला कर दिया है.

यह सुन कर दीदी मुझे थाने जाने से रोकने लगीं, पर मैं उन से अपना हाथ छुड़ा कर थाने की ओर भागा.

पीछे से दीदी ने आवाज दी, ‘‘तुम नहीं जानते. अपने पंडितजी का कहना है कि ग्रहनक्षत्र के मुताबिक कश्मीर में आतंकवादियों के हाथों आज तुम्हारे भाई की मौत भी हो सकती है.’’

दीदी की बात सुन कर मेरे पैर रुके. मैं ने कहा, ‘‘जो भी हो, मुझे मेरा फर्ज अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा है. आज मैं इन आतंकवादियों को चुनचुन कर मार डालूंगा,’’ कह कर मैं थाने की ओर जल्दी भागा.

दुश्मन और जवानों में गोलियां चल रही थीं. इस तरह से तकरीबन 15-20 मिनट बीत गए. इस बीच मैं ने कई दुश्मनों को मार गिराया था, पर कोई फायदा नजर नहीं आ रहा था.

तभी एक गोली अनवर के बाजू में आ लगी. वह धड़ाम से फर्श पर गिर गया. उसे फर्श पर गिरता देख हमारे सभी जवान दौड़ कर उस के चारों ओर घेरा बना कर बैठ गए.

‘‘अनवर, तुम ठीक तो हो न…?’’ मैं ने उस के पास आते ही पूछा.

‘‘हां सर,’’ अनवर दर्द से कराहते हुए बोला, ‘‘मैं ठीक हूं.’’

अब हम लोगों की तरफ से गोलियां चलानी बंद कर दी गई थीं. हमारी तरफ से गोलियां चलनी बंद देख दुश्मनों ने भी गोलियां चलानी बंद कर दीं. हम लोगों के चेहरे पर एक ही सोच दिख रही थी कि आखिर दुश्मन से इस का बदला कैसे लिया जाए?

तभी कहते हुए मैं ने दीवार पर टंगी हुई बापू की तसवीर को देखा, तो हैरानी से भर गया. दरवाजा खुला रहने के चलते मैं ने उन की तसवीर में देखा कि सभी दुश्मन बड़ी चालाकी से दबे पैर थाने की ओर बढ़े चले आ रहे थे.

एकसाथ सभी आतंकवादियों को मारने, अनवर का बदला लेने और थाने को बचाने का मेरे पास यह आखिरी मौका था.

मैं ने फर्श पर रखी राम सिंह की मशीनगन उठा ली और दरवाजे से बाहर निकल गया.

मुझे दरवाजे से बाहर निकलता देख दुश्मनों ने मु?ा पर निशाना साधा, लेकिन उन की गोलियों से बचते हुए मैं ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. मैं तब तक गोलियां बरसाता रहा, जब तक वे सभी मारे न गए.

अभी भी मेरी आंखें दुश्मनों को देख रही थीं. सब के सब बेजान पड़े थे. तब तक हमारे सभी जवान भी बाहर आ चुके थे.

तभी मेरी आंखें उछल कर एक मारे गए दुश्मन की जेब से आधे निकले हुए पर्स पर जा पड़ीं. मैं ने जा कर उसे उठा लिया. खोला तो मैं चौंक गया. उस में एक बेहद खूबसूरत लड़की की तसवीर और एक खत था.

खत उर्दू में लिखा था. मैं ने बचपन में अपने स्कूल मास्टर से काफी उर्दू सीखी थी. खत में लिखा था :

प्रिय साहिल,

तुम तो जानते ही हो कि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी रहना पसंद नहीं करती और जिस वजह से तुम मुझ से दूर रहते हो, सोचो साहिल, अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा? अरे, जो तुम्हारे बिना एक पल भी रहना पसंद नहीं करती, वह तुम्हारे बिना पूरी जिंदगी क्या खाक जी लेगी?

मैं एक लेखिका हूं साहिल. आएदिन पत्रपत्रिकाओं में मेरी कहानी और लेख छपते रहते हैं. छोड़ दो साहिल यह कश्मीर की जिद. इस से तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला. ये लोग अपने फायदे के लिए ऐसी घिनौनी राजनीति करते हैं. तुम ये सब नहीं सम?ागे, इसलिए मेरा कहा मानो और छोड़ दो यह कश्मीर की जिद.

हमारी पाकिस्तान सरकार का क्या है, वह तो जनता को मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इसे हवा देती है. कल को अगर तुम्हें कुछ हो गया, तो तुम्हारी जगह किसी और भटके हुए को रख लेगी. लेकिन, मेरा क्या होगा. मैं तुम से प्यार करती हूं. बताओ, मैं किस के सहारे जिऊंगी. कभी सोचा है तुम ने?

मेरी अम्मी तो मुझे जन्म देते ही चल बसीं. मेरे सभी रिश्तेदार मुझ से अलग हो गए. मेरे अब्बू ने मुझे पालापोसा, पढ़ायालिखाया, लेकिन कभी उन्होंने मुझे अपना प्यार नहीं दिया, क्योंकि वे मेरे लिए दूसरी मां जो ले आए थे. बचपन से ले कर आज तक मैं उन की जबान से ‘बेटी’ शब्द सुनने को तरसती रही हूं.

कभीकभी सोचती हूं कि मैं जिंदा क्यों हूं? किस के लिए हूं? तभी तुम्हारा चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता है.

एक तुम ही थे, जिस ने मुझे प्यार करना सिखाया, जिंदगी से मुहब्बत करना सिखाया और आज तुम भटक गए हो, इसलिए मैं तुम्हें यह सब लिख रही हूं.

सुबह का भूला अगर शाम को लौट आए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते. अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है साहिल, छोड़ दो ये कश्मीर की जिद.

तुम्हारी हिना.

खत पूरा होते ही उस खूबसूरत मासूम सी लड़की की तसवीर मेरी आंखों के आगे घूमने लगी.
मैं ने यह क्या कर दिया? मैं ने किसे मार दिया? मेरी आंखों से टपटप आंसू टपकने लगे.

पर, मैं करता भी क्या? वह तो एक भटका हुआ राही था. वह दूसरे मुल्क का एक खिलौना था, जो हमारे मुल्क के टुकड़े कर देना चाहता था. वह एक आतंकवादी बन चुका था.

फिर भी मुझे पछतावा हो रहा था उस लड़की के लिए, जिस ने यह खूबसूरत खत लिखा था और मन ही मन उसे अपना सबकुछ मान बैठी थी.

आज मुझे सर्विस से रिटायर हुए कई साल बीत गए हैं. लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव में भी वह लड़की बहुत याद आती है. आखिर उस का कुसूर क्या था?

यही न कि उस ने किसी से प्यार किया. पर, प्यार तो अंधा होता है, सहीगलत की पहचान ही इस में कब होती है.

Hindi Story: उस का वैलेंटाइन

Hindi Story: ‘‘अब 12वीं क्लास तो जैसेतैसे पढ़ ली, अब किताब में बिलकुल दिमाग नहीं लगता. सोच रहा हूं कि कोई कामधंधा शुरू कर दूं. क्या कहती हो अम्मी?’’ फिरोज ने तौलिए से बाल पोंछते हुए पूछा.

‘‘देख ले, तुझे जैसा ठीक लगे. तेरे अब्बू तो काम शुरू करने में कोई मदद न दे पाएंगे,’’ अम्मी की आवाज में ममता और साफगोई दोनों का मेल था.

‘‘हां, मुझे पता है अम्मी. मैं सोच रहा हूं कि फास्ट फूड का एक ठेला लगा लूं. चौखटे पर सुबह बहुत सारे मजदूर इकट्ठा होते हैं. उन्हें पोहा और परांठा सस्ते दाम पर खिलाऊंगा.’’

‘‘पर, तू धंधा शुरू करने के लिए पैसे कहां से लाएगा? घर में तो हजार रुपए भी नहीं हैं,’’ अम्मी ने इस बार शक जताया.

‘‘अम्मी, कम से कम 10-12 हजार रुपयों की जरूरत पड़ेगी. अजीत अंकल से पैसे उधार लेने की सोच रहा हूं. रहीम चाचा भी कुछ रकम उधार दे सकते हैं, पर अगले महीने शबनम आपा की शादी है. उन से मांगना ठीक न होगा.

‘‘एक बार काम जम गया, तो 8-10 हजार रुपए तो महीने के कमा ही लूंगा. फिरोजा और फखरुद्दीन पढ़ने में ठीक हैं. इन के स्कूल में आगे फिर कोई रुकावट नहीं आएगी,’’ फिरोज जोश में कहता जा रहा था.

अम्मी अवाक सी फिरोज का चेहरा देखती जा रही थीं. आंखें अचानक बड़े हो गए बेटे को देख कर गीली हो गई थीं.

‘‘यार मदन, मेरे साथ शाम को चल लेना. काम के लिए ठेला तैयार कराया है. उस को तुझे दिखाना भी है और लाने में मदद भी चाहिए,’’ फिरोज ने कहा.

मदन ने चुटकी ली, ‘‘ओहो, तो अब हवाईजहाज उड़ाने के सपने देखने वाला दोस्त सड़क पर ठेला दौड़ाएगा…’’

‘‘हां भाई, सपने में तो अब भी जहाज ही उड़ेंगे, जमीन पर चारपहिया ठेले के ही मजे ले लेते हैं.’’

‘स्वस्थ भोजन कौर्नर’ ठेले पर सामने टिन के बोर्ड पर लिखा देख मदन और फिरोज कुछ पल एकटक निहारते रहे, फिर उस ठेले के बारे में फिरोज मदन को समझाने लगा, ‘‘मदन, यहां पर गैस चूल्हा आएगा, यहां भगोने और एक बड़ी कड़ाही रखूंगा.’’

‘‘भगोने में सब्जी गरम मिलेगी, कड़ाही में पोहा तैयार होगा. वहीं, दूसरी तरफ गरमागरम 5 तरह के परांठे बनाने का इंतजाम रहेगा.’’

‘‘अबे फिरोज, इतना सब तू अकेले कैसे संभालेगा? थोड़े दिन के लिए तेरी मदद को मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘नहीं मदन, मेरे काम की आदत तो मुझे ही डालनी पड़ेगी. मेरे हाथ के बने खाने का जब स्वाद लेना हो, तब बाकी यारों के साथ आ जाना,’’ फिरोज की आवाज में प्यार से लिपटा शुक्रिया झलक रहा था.

जुम्मे के दिन सुबहसुबह ठेला तय जगह पर पहुंच गया. कुछ लोग फिरोज से सवाल करने लगे कि हां भई, क्या खिला रहे हो?

‘‘आलू, प्याज, पालक और गोभी परांठा 10 रुपए, पनीर परांठा 15 रुपए. पोहा 10 रुपए प्लेट.’’

‘‘अच्छा, जरा बनाओ तो पनीर के 2 परांठे. आज टिफिन नहीं ला पाए हैं,’’ 20 बरस के 2 अलमस्त मजदूरों में से एक ने फिरोज को पहला और्डर दे डाला.

‘‘बस, 5 मिनट,’’ हंसते चेहरे से ऐसा बोल कर फिरोज बिजली की रफ्तार से हाथ चलाने लगा. पहले से ही तैयार माल को आटे की लोई से परांठे का रूप देने में ज्यादा देर नहीं लगी.

अम्मी के खाना बनाने में मदद करना आज काम आ रहा था. धनिया और टमाटर की चटनी के साथ परांठे 4 मिनट में ही कागज की प्लेट पर सज कर तैयार थे.

अगले 5 मिनट के बाद फिरोज के कानों ने सुना, ‘‘वाह हीरो, क्या स्वादिष्ठ परांठा बनाया है. अब तो रोज सुबह हम यहीं खा लिया करेंगे.’’

फिर 2 घंटे कैसे बीते फिरोज को परांठा बेलते और पोहा लगाते, पता ही नहीं चला. ग्राहक और थे, पर माल सारा खत्म. गल्ला गिना तो 1,000 रुपए.

अम्मी के हाथ जब हजार रुपए रखे, तो वे अवाक सी कभी फिरोज का मुंह देखतीं, तो कभी 500 के 2 नोट देखतीं. फिरोज को बांहों में भर कर अनेक दुआओं से लाद दिया.

पहले दिन ने ही फिरोज को आत्मविश्वास से लबरेज कर दिया.

एक महीने में ही ‘स्वस्थ भोजन कौर्नर’ चौखटे पर चर्चा का विषय बन गया. ठेले को भी फिरोज ने सजा कर नया रूपरंग दे दिया.

हर सुबह गुलाब की खुशबू वाली अगरबत्ती चौखटे पर बैठने वाले मजदूरों के लिए भी ऊर्जा का स्रोत बन गई. सामने फूलों की दुकान पर बिकने वाले फूलों से ज्यादा अब मजदूरों को फिरोज का ठेला अपनी तरफ खींचता था.

आज वैलेंटाइन डे पर फूलों की दुकान पर भी बहुत भीड़ थी. फिरोज भी भीड़ में से फूल चुन रहा था, अपने वैलेंटाइन (ठेले) को सजाने के लिए.

Romantic Story: तुम मेरी हो

Romantic Story, लेखक – पी. कुमार

‘‘गीता, क्या तुम इस बार माघ मेले में शंकरगढ़ जा रही हो?’’ पारो ने पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. तुम सब नहीं चलोगी क्या?’’ गीता ने पूछा.

‘हम भी चलेंगी,’ सब ने एकसाथ जवाब दिया.

एक हफ्ते बाद मेला शुरू हो गया. पारो और उस की सहेलियां शंकरगढ़ की ओर निकल गईं. साथ में और भी औरतें थीं, 3-4 मर्द भी साथ में जा रहे थे.

यों तो केशवगढ़ से लोग हर साल शंकरगढ़ जाते थे, लेकिन गीता को पहली बार जाने का मौका मिला था, इसलिए वह बहुत खुश थी.

‘‘हमारी गीता रानी शंकरजी से क्या मांगेगी?’’ पारो ने चुटकी ली.

‘‘एक सुंदर राजकुमार जो इसे उड़ा कर ले जाए,’’ दूसरी सहेली ने छेड़ा.

‘‘धत,’’ गीता झेंप गई. उस के गालों पर लाली बिखर गई.

गीता किसी राजकुमारी से कम न थी. सहेलियों के बीच उस का चेहरा ऐसे दमक रहा था, जैसे बगुलों के बीच हंस. जो भी उसे देखता, बस देखता ही रह जाता.

सांझ ढलते यह काफिला शंकरगढ़ पहुंच गया. औरतों और मर्दों के लिए अलगअलग तंबू लगाए गए.

अचानक गीता बोल उठी, ‘‘पारो, कितनी सुंदर जगह है…’’

‘‘हां, बहुत सुंदर है.’’

‘‘भीड़ भी काफी होगी?’’

‘‘हां, चंदा काकी कह रही थीं कि 10-15 हजार की भीड़ होगी कल.’’

दोनों सखियों की बातचीत अचानक भंग हो गई. चंदा काकी की आवाज आई, ‘‘अब सो जाओ… भोर होते ही पूजा के लिए जाना है.’’

मुंहअंधेरे ही केशवगढ़ का काफिला मंदिर में जा घुसा. जल्दी ही वे पूजा कर के लौट आए.

पंडे लोगों के हाथों से चढ़ावा छीनने में बिजी थे. किसी तरह शंकर की मूर्ति तक लोग पहुंचते तो बाकी काम पंडे संभाल लेते. धक्कामुक्की की वजह से लोग भी जल्दी बाहर निकलना चाहते थे, क्योंकि ऐसे में जेवर, नकदी वगैरह लूट लिए जाने का खतरा बना रहता था.

गीता और उस की सहेलियां मंदिर की सीढि़यां उतर ही रही थीं, तभी एक अधेड़ उम्र के गठीले बदन वाले पंडे को गीता को घूरते पाया. उस के घूरने का अंदाज गीता को बहुत बुरा लगा, पर वह चुप ही रही. बिना किसी खास बात के एक पंडे पर शक करने से वह खुद की हंसी नहीं उड़वाना चाहती थी.

12 बजे तक वे सब लोग मेले में घूमते रहे. कहीं झूले पड़े थे तो कहीं जादू का खेल चल रहा था. गीता तो जैसे सारा नजारा एक ही दिन में समेट लेना चाहती थी.

‘‘चलो, उस ओर देख आएं,’’ हाथ से इशारा करते हुए गीता ने पारो से कहा.

‘‘नहीं गीता, अब वापस चलो. बाकी कल देखेंगे.’’

‘‘थक गई क्या? थोड़ा सा और देख लेते हैं.’’

‘‘नहीं, अब एक कदम भी आगे नहीं बढ़़ेंगे हम.’’

गीता को बुझे दिल से लौटना पड़ा. वह तो बहुतकुछ देखना चाहती थी, पर अकेले जा नहीं सकती थी.

‘‘प्रवचन क्या होता है काकी…?’’ तंबू में लौट कर गीता ने चंदा से पूछा.

गीता के भोलेपन पर हंसती काकी समझाने लगीं, ‘‘बड़ी भोली है हमारी गीता बिटिया. प्रवचन में महात्मा लोग अच्छीअच्छी बातें बताते हैं. देवताओं के गुणों का बखान करते हैं. नेक चालचलन और बरताव के बारे में बताते हैं.’’

‘‘तब तो प्रवचन जरूर सुनना चाहिए,’’ कह कर गीता हंस पड़ी.

शाम को घंटेघडि़यालों की आवाज कानों में पड़ते ही लोग मंदिर में इकट्ठा होने लगे. जगह कम थी और भीड़ बहुत ज्यादा.

आरती के वक्त 4-5 जवान साधु गीता के आसपास ही मंडरा रहे थे. गीता को कुछ अटपटा सा लगा, पर उसे किसी तरह का डर या परेशानी महसूस न हुई.

आरती आधी से ज्यादा हो चुकी थी कि अचानक बिजली गुल हो गई. लोग धक्कामुक्की करने लगे. चारों ओर गहरा अंधेरा छा गया.

अचानक गीता को लगा, जैसे किसी ने उस की बांह पकड़ ली. जब वह चीखना चाहती थी, पर किसी ने उस का मुंह दबा दिया. साथ ही, कोई उसे एक ओर खींच कर ले गया.

थोड़ी देर में बिजली आ गई. उजाला होते ही पारो की नजर सामने पड़ी. गीता को गायब पाया देख वह चीख पड़ी. तुरंत ही होहल्ला मच गया. केशवगढ़ वाले गीता को तलाशने लगे, पर हजारों की भीड़ में उसे तलाशना भी कम मुश्किल नहीं था.

किसी ने कहा कि इधर ही कहीं होगी, तो किसी ने कहा कि ‘तंबू में चली गई होगी’. जितने लोग थे, उतनी बातें कर रहे थे.

चंदा काकी और पारो सब से ज्यादा परेशान हो उठीं, क्योंकि गीता की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी. गांव जा कर गीता के मांबाप को कौन सा मुंह दिखातीं.

पारो की नजरें आसपास टटोलने लगीं तो उसे लगा कि वे जवान साधु भी गायब हैं. वह चीख उठी, ‘‘काकी, यहां खड़े 4-5 साधु भी नहीं हैं… वे ही गीता को उठा कर ले गए हैं.’’

इधर गीता को मंदिर से दूर पेड़ों के झुरमुट में ले जाया गया. वहां उस के सामने वही पंडा आ खड़ा हुआ, जो उसे दोपहर को घूर रहा था. पहले वह गीता के गहने उतारने लगा, तो वह चीख उठी,’’ नीच, पापी, कमीने, ढोंगी, साधु होने का ढोंग रचते हो और लोगों को लूटते हो.’’

देखते ही देखते वह नाजुक कली उस वहशी की बांहों में जकड़ी गई. गीता के कुंआरेपन के चिथड़े उड़ गए. वह छटपटा रही थी, चिल्ला रही थी, पर वहां कोई भी उस की चीखें सुन नहीं पा रहा था.

उस पंडे के बाद उस के चेले एकएक कर के गीता की इज्जत लूटने लगे. वह चीखती जा रही थी, रोती जा रही थी.

एक नौजवान जो भीड़भाड़ से दूर, नदी के किनारे एक चट्टान पर कुदरत के नजारों का मजा ले रहा था, गीता की पुकार सुन कर चौंक पड़ा. वह फुरती के साथ उठा, लोगों को आवाज दी और दरिंदों से जा भिड़ा.

अचानक हुए हमले से वे साधु बौखलाए और घबराए. नौजवान ने उन पर लातों, घूंसों की बौछार कर दी.

दूर से कई लोगों के इधर आने की आवाज भी सुनाई देने लगी थी, इसलिए घबरा कर वे दरिंदे भागने लगे.
लोगों ने पूरा जंगल छान मारा, पर उन साधुओं में से किसी को पकड़ा न जा सका. गीता बेहोश हो चुकी थी.

उसे इलाज के लिए नजदीक के अस्पताल में ले जाया गया.

थोड़ी देर बाद गीता को होश आने लगा था. वह बुदबुदा रही थी, ‘‘मुझे छोड़ दो. कमीनो… धर्मात्मा बन कर यह जुल्म करते हो…’’

जब उस ने आंखें खोलीं तो सामने सब को खड़ा पाया. पास ही वह अमर नामक नौजवान भी खड़ा था. किसी से नजरें मिलाने की गीता की हिम्मत नहीं हो रही थी. वह फूटफूट कर रोने लगी.

चंदा काकी ने कहा, ‘‘गीता बेटी, मन छोटा मत कर. जो होना था, हो चुका. देख, सभी प्रवचन सुनने जा रहे हैं. तू भी चल, मन कुछ शांत होगा.’’

अचानक गीता गुस्से से फट पड़ी, ‘‘दिल क्या खाक शांत होगा काकी, जहां साधु लूटते हों, वहां जा कर क्या मिलेगा? असली सुखचैन और शांति तो दिल के अंदर होती है. ये मंदिर अपवित्र हो चुके हैं. इन की पवित्रता खो चुकी है. अब ये लुटेरों के अड्डे बन गए हैं.

‘‘बताओ, मुझे यहां आ कर क्या मिला? लुटी हुई लड़की और फूटी हुई हंडिया किस काम की, काकी? मुझे अकेला छोड़ दो… तुम सब जाओ.’’

पर काकी जा न सकीं. वे और पारो गीता के साथ रहीं, बाकी प्रवचन सुनने चली गईं.

तंबू के अंदर बिस्तर पर लेटेलेटे गीता सोचने लगी, ‘अब जी कर क्या करूंगी? किसी और की कैसे बनूंगी? लुटी हुई इज्जत किसी के हवाले करने से बेहतर है, अपनेआप को ही खत्म कर लिया जाए. यह मैला जिस्म अब किस काम का?’

अमर को भीड़भाड़ पसंद नहीं थी. धर्मस्थलों में फैली गंदगी की वजह से वह बेकार के कर्मकांडों में यकीन नहीं करता था.

वह तो अपनी मां के जिद पर आ गया था. पर यहां दिल न लगने की वजह से अकेले नदी किनारे जा कर किसी चट्टान पर बैठ जाता.

सोचतेसोचते गीता परेशान हो गई थी. उस के नाजुक दिल पर गहरी चोट लगी थी. वह अपनेआप को संभाल न पाई. पारो पीछे से पुकारती रह गई. अमर ने पारो की आवाज सुनी तो उधर ही दौड़ पड़ा.

गीता नदी में कूदने ही वाली थी कि अचानक अमर ने पीछे से उसे पकड़ लिया. उसे झकझोरते हुए अमर बोला, ‘‘यह क्या कर रही हैं आप?’’

‘‘आत्महत्या… इस के सिवा अब कोई रास्ता नहीं है. क्यों बचाया मुझे… मर जाने दिया होता.’’

‘‘मरते तो डरपोक लोग हैं… मरने में क्या मिलेगा?’’

‘‘जी कर ही क्या करूंगी मैं? कौन शरीफ आदमी अब मुझ से ब्याह करेगा? यह दुनिया तो अब मेरा जीना मुश्किल कर देगी.’’

‘‘हिम्मत करनी होगी… दुनिया से दोदो हाथ करने की. हथियार नहीं डालने हैं अभी. मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ अमर ने गीता को संभालते हुए कहा.

गीता अमर के एहसानों तले दबती चली गई. उस का सिर अपनेआप अमर के चरणों में झुक गया.

अमर ने उसे उठा कर अपने सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘असल में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. उन भेडि़यों ने ही तुम्हें गंदा करना चाहा. भले ही तुम्हारे जिस्म को उन गंदे लोगों ने झकझोरा हो, पर तुम्हारा दिल तो साफ है.

‘‘मैं तुम से ब्याह करूंगा…. आज से तुम मेरी हो.’’

गीता को लगा जैसे उसे नई जिंदगी मिल गई, साथ ही, अपने सपनों का राजकुमार भी.

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