मैं सुकु बाई, आज 4 महीने की छुट्टी के बाद काम पर वापस गई, तो दीदी ने दरवाजा खोला. उन्होंने मुझे अंदर बुलाया और हालचाल पूछा. मेरे घर वालों की खैरखबर ली.
मैं इस घर में 15 साल से काम कर रही हूं. पिछले दिनों मैं अपने गांव चली गई थी. बेटे को बड़े स्कूल में दाखिल कराना था.
जब से मेरे पति की मौत हुई है, तब से मेरे बेटे को देखने वाला मेरे अलावा और कोई नहीं है. एक दूर की बूढ़ी ताई हैं, जिन के पास उसे छोड़ा हुआ है. ताई को खर्चापानी भेजती रहती हूं.
पर इस बार मुझे गांव जाना पड़ा, क्योंकि बेटे का स्कूल बदली कराना ताई के बस की बात नहीं थी. रोजीरोटी का सवाल है, जिस की वजह से मुझे गांव से कोसों दूर यहां दिल्ली में रहना पड़ता है, वरना किस का मन नहीं करता अपने बच्चों के बीच रहने का.
दीदी और भैया बहुत अच्छे लोग हैं खासतौर पर भैया. बहुत बड़ा दिल है भैया का. मुझे जब कभी जरूरत पड़ती है, तो मैं भैया से ही पैसे मांगती हूं. कभी मना नहीं करते और न ही कभी पैसे लौटाने की बात करते हैं.
भैया हंस कर कहते हैं, ‘दे देना सुकु बाई, जब तुम्हारा बेटा बड़ा हो जाए और कमाने लगे तब लौटा देना.’
दीदी ने बताया कि मेरे पीछे जो काम वाली रखी थी, वह बहुत ही चालू काम करती थी. फिर वे मुझे काम बता कर किसी जरूरी मीटिंग के लिए बाहर चली गईं. फिलहाल मेरे सिवा घर में कोई और नहीं था. दीदी का एकलौता बेटा बाहर पढ़ता है.
मैं ने घर में झाड़ूपोंछा किया, रसोई साफ की, रात के लिए खाना बनाया और फिर कमरों की झाड़पोंछ शुरू कर दी. घर वाकई बहुत गंदा पड़ा था.
काम करतेकरते मैं थक गई. सोचा कि थोड़ा सुस्ता लिया जाए. अपने घर में वैसे भी कौन मेरा इंतजार कर रहा था. खाली पड़ा था.
मगर फिर आसपास देखा तो मन हुआ कि बैठेबैठे क्या करना, थोड़ी और धूलमिट्टी झाड़ ली जाए. मैं झाड़न लेकर बैडरूम में घुसी. बिस्तर पर बहुत सी किताबें बिखरी पड़ी थीं. न जाने कौन से दफ्तर में दीदी काम करती थीं कि जब देखो लिखती ही रहती थीं. मैं बिखरी किताबें समेटने लगी.
मैं ने देखा कि बिस्तर के बीचोंबीच कंबल के नीचे नंगी औरतों की तसवीरों वाली एक मैगजीन पड़ी थी. जाने दीदी और भैया में से कौन इसे देखता होगा. मैं ने उसे उठा कर तकिए के नीचे रख दिया.
एक काली डायरी भी मिली, जिस पर दीदी का नाम था. उस के पन्ने पलटे तो पाया कि उस में बहुत से किस्सेकहानियां लिखे हुए हैं.
मैं 8वीं पास हूं. हिंदी पढ़ लेती हूं. दीदी की डायरी पढ़ना नहीं चाहती थी, मगर उस में कुछ ऐसा लिखा था, जिस ने मुझे उन की डायरी पढ़ने पर मजबूर कर दिया :
मैं और मेरे पति प्रताप बहुत अच्छे दोस्त बन चुके हैं. हमारी उम्र 50 को टापने वाली है. मुझे सैक्स में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, मगर प्रताप को है. इन की तो यह हालत है कि इस उम्र में भी अगर किसी कमसिन लड़की को देख लें, तो इन की नजर बदल जाती है. मुझ से भी 3 दिन से ज्यादा दूर नहीं रह पाते. और जब कभी मूड में आते हैं, तो देर रात तक सोने नहीं देते और फिर उस के बाद 2 दिन तक शरीर में दर्द रहता है…
मुझे ऐसी निजी बातें पढ़ कर अजीब सा लगा. क्या एक विधवा को यह सब करना ठीक था? हरगिज नहीं. मैं उठ कर दरवाजे की तरफ गई, मगर वहां कोई नहीं था. मैं वापस बैडरूम में आ कर बैठ गई और डायरी खोल ली :
पिछली दफा जब मेरा दिल किया कि इन के साथ बैठ कर प्यारभरी बातें की जाएं, इन के दिल में कोई नया ही खयाल घूम रहा था. कहने लगे कि चलो इस बार कुछ अलग करते हैं.
‘क्या?’
‘किसी लड़की को बुलाते हैं.’
‘कहां से आएगी लड़की?’
‘अरे, इस की फिक्र तुम मत करो. यह लो उस का नंबर और मिलाओ.’
मुझे हलकी सी जलन हुई कि भला यह क्या बात हुई. मेरे पल किसी और को? गलत बात है यह. फिर मैं ने सोचा कि चलो छोड़ो. इन को सैक्स की तलब रहती है और मेरी डायरी को कहानियों की. किसी को बदला नहीं जा सकता. पति जैसा है उसे वैसे ही स्वीकारने में गृहस्थ जीवन की खुशी है.
जब मुझे पहली बार शक हुआ था कि प्रताप शादी के बाद भी बाहर मुंह मारते हैं, मुझे बहुत बुरा लगा था. फिर मैं ने सोचा था, बहुत सोचा और इस निचोड़ पर पहुंची कि इन का अगर एक यह ऐब नजरअंदाज कर दिया जाए, तो इन में और कोई कमी नहीं. दरियादिल हैं, पैसा कमाना खूब जानते हैं, एक अच्छे बेटे, बाप और भाई हैं. बस, एक अच्छे पति नहीं हैं. अगर मैं इन्हें ऐसे ही स्वीकार लूं, तो मेरे अहम को दबना सीखना होगा और बाकी का निजाम जैसा है वैसा ही दिखेगा और चलता रहेगा.
मुझे यह फायदा होगा कि मैं जान पाऊंगी कि अपना अहम खत्म करने के बाद जो सुनहरा मंजर है, जिस के बारे में धर्मग्रंथों में बारबार बोला गया है, आखिर क्या चीज है. फिर आखिर में तो हर औरत एक मां ही है, तो अपने पति के लिए क्यों नहीं.
हर 4-6 महीनों में दोस्तों के साथ घूमने जाना. कभी जकार्ता, कभी चीन, कभी मलयेशिया, कभी सिंगापुर… और कुछ नहीं इन के औरतबाजी करने के रास्ते थे. एक बार तो अपने दोस्तों के साथ भारत में ही किसी शहर में घूमने निकल गए, यह कह कर कि इन का दोस्त और उस के 2 रिश्तेदार ही साथ में होंगे.
सफर के दौरान जब मैं ने हालचाल पूछने के लिए फोन किया, तो पीछे से किसी लड़की के हंसने की आवाजें आ रही थीं. जब सफर से वापस आए तो 2 दिन तक रंगीले मिजाज में रहे. बिस्तर में भी नईनई हरकतें आजमाते रहे.
बीवी हूं, समझ गई, इन के बिना कुछ कहे. बहुत सोचविचार किया और हार कर इस नतीजे पर पहुंची कि मुझे इन का दोस्त बन कर जीना सीखना होगा. तलाक मुझ अनाथ के बस की बात नहीं और न ही कलहक्लेश करना. ये जैसे थे, इन्हें वैसे ही स्वीकारना पड़ा.
जब इन्होंने मुझे लड़की को फोन कर के बुलाने को कहा, तो मैं ने सोचा कि चलो देखते हैं, अपने पति को किसी दूसरी औरत से प्यार करते अपनी आंखों से देखना कैसा लगता है. और कुछ नहीं तो एक नया अनुभव ही सही. मेरी डायरी की भूख भी तो बेअंत है. अपना पेट भरवाने के लिए मुझे कुछ भी दिखाने को तैयार हो गई.
मैं ने फोन कर के लड़की को बुला लिया. थोड़ी देर में घर की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो एक 20-22 बरस की जवान लड़की को सामने खड़ा पाया. उस ने फूलों वाला लंबा सा फ्रौक पहना था, जिस में उस की उभरी हुई छाती मुश्किल से छिप रही थी. तीखे नैननक्श और गोरा रंग, पर्स कंधे पर लटका हुआ.
मैं ने उसे अंदर बुला लिया और उसे ले कर बैडरूम में आ गई. प्रताप तब बैडरूम में बैठे किसी से फोन पर बात कर रहे थे. हमें देखते ही वे फोन उठा कर घर से बाहर निकल गए. शायद कोई जरूरी बात करनी थी.
प्रताप कारोबार के आगे सैक्स को कुछ नहीं समझाते. सही भी है. पैसा उड़ाने से पहले कमाना जरूरी है.
मैं लड़की को ले कर पीछे आंगन में चली गई और वक्त बिताने के लिए उसे बातों में लगा लिया. मुझे सुनने का शौक था और उसे बोलने का. वह बहुत बोली. अपने किस्से सुनाने लगी. एक से एक बेहूदा और फूहड़. सारा समय बोलती रही.
उस की बातें बंद ही नहीं हो रही थीं. ग्राहकों की लंबीलंबी गाडि़यों में घूमना, मर्दों का उस के साथ वह सब करना जो वे अपनी बीवियों के साथ नहीं कर सकते, पार्टियों में जाम से जाम टकराना, महफिलों में नंगे नाचना उस के लिए आम बातें थीं.
उस ने बताया था, ‘अरे, एक पार्टी में तो मुझे 3-4 आदमियों ने इकट्ठा पकड़ लिया, एक यहां से शुरू हो गया और दूसरा वहां से. आप मानोगे नहीं कि 60-70 साल के बूढ़े भी मलाई लगा कर चाटते हैं.’
मैं ने पूछा कि कभी पुलिस से पाला नहीं पड़ता, तो वह बोली, ‘पड़ता है न. एक पुलिस ही है, जिस से बिना नागा पाला पड़ता रहता है. हफ्ता भी लेती है और रोब भी जमाती है. कई बार तो मुफ्त में ले कर चलती बनती है.’
एक बार पुलिस ने उसे और उस की 2 सहेलियों को पकड़ लिया और बुरी तरह पीटा. तीनों की साड़ियां एकदूसरे की साड़ी से बांध दीं. भागें तो कपड़े उतरें और न भागें तो डंडे पड़ें. बड़ी मुश्किल से वह समय कटा और आज तक जेहन से उस का खौफ नहीं निकला. बड़ा ही दर्दनाक हादसा था.
‘कभी कोई वहशी भी मिला है? तुम्हें तो कई तरह के लोग मिलते होंगे?’
उस ने बताया कि एक दफा उसे 2 आदमी ले गए थे. दोनों के दोनों लंबेचौड़े मुस्टंडे जिन्हें देख कर वह घबरा गई. फिर उस ने अपनेआप को संभाला और कहा कि 1-1 कर के आएं. मगर वे नहीं माने.
दोनों एकसाथ ही उस पर टूट पड़े और ऐसे लूटा कि उस की सुधबुध खो गई. तृप्ति होने के बाद उन्होंने उसे उस की बस्ती में छोड़ दिया.
‘कैसी बस्ती?’
‘हिजड़ों की बस्ती. वहीं तो रहती हूं मैं. मैं हिजड़ा हूं.’
‘पर, तुम्हारा शरीर?’
‘यह तो सर्जरी का कमाल है.’
मैं ने मन ही मन सोचा कि यह सही रही. प्रताप का यह शौक भी मुझे सहना होगा.
थोड़ी देर बाद हम घर के अंदर वापस आ गए. प्रताप की फोन पर हो रही बात खत्म हो चुकी थी और वे बेसब्री से हमारा इंतजार कर रहे थे. एकदम तैयार बैठे थे.
हमें देखते ही वे हमें बैडरूम के अंदर ले गए और दरवाजा बंद कर लिया. मैं पास ही में बैठ गई.
प्रताप ने एक बड़ा जाम बना कर लड़की को दिया और फिर अपने लिए भी ठीक वैसा ही पैग बनाया. मुझे देने लगे तो मैं ने मना कर दिया कि मेरा मूड नहीं है.
शराब का सुरूर चढ़ते ही प्रताप उस लड़की से चिपट गए और एक घंटा वे उस के जिस्म से खेलते रहे. मैं चुपचाप लिखती रही. फारिग हो कर उन्होंने लड़की को पैसे दे कर भेज दिया और मेरे पास आ कर एक बच्चे की तरह बेफिक्र सो गए.
अगले दिन मैं ने प्रताप को चाय का प्याला देते हुए उठाया और लड़की का सच बताया.
‘मुझे क्या बता रही हो शारदा, मैं ने ही तो उस की सर्जरी करवाई थी…’
तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई. लगता था दीदी वापस आ गई थीं. मैं ने जल्द ही डायरी वापस रखी और उठ कर अपनी आंखें धोईं.
‘इन बड़े लोगों में क्याक्या चलता रहता है,’ सोचते हुए मैं दरवाजा खोलने चल दी.