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कीचड़ में कमल : धंधेवाली नीलम की बहादुरी

नीलम आज भी उसी सुनसान जगह पर उसी बिजली के खंभे के नीचे खड़ी थी, जहां वह अकसर ग्राहकों की राह देखती थी.

रात के तकरीबन 12 बज रहे थे और वह पिछले एक घंटे से यहां खड़ी थी. ऐसा कम ही होता था कि वह यहां आती और उसे कोई ग्राहक नहीं मिलता था.

शायद उस के ग्राहकों को भी यह बात मालूम हो गई थी कि वह यहीं मिलेगी. जिस ग्राहक को उस की जरूरत होती, वह उसे यहीं से उठा लेता था.

नीलम के ग्राहकों में सब तरह के लोग थे, कार वाले भी और बिना कार वाले भी. जिन के पास अपनी कोई गाड़ी नहीं होती थी, उन के लिए नीलम खुद गाड़ी का इंतजाम करती थी.

ऐसे ग्राहकों के लिए वह अजीत नाम के अपने एक जानपहचान वाले टैक्सी ड्राइवर की मदद लेती थी, जो उस के एक फोन पर उस की बताई गई जगह पर पहुंच जाता था.

नीलम खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन की 26 साला लड़की थी. वह पिछले 5 साल से इस धंधे में लगी हुई थी. शुरूशुरू में उसे यह धंधा रास नहीं आया था, पर धीरेधीरे वह इस में रमती चली गई थी.

नीलम ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर एक नजर डाली, फिर अपने चारों ओर देखा. कहीं कोई हलचल नहीं थी. उसे लगा कि शायद आज उसे निराश लौटना पड़ेगा कि तभी दूर उसे किसी गाड़ी की हैडलाइट की रोशनी दिखाई पड़ी.

गाड़ी नीलम के पास आ कर रुकी और उस का पिछला दरवाजा खुला. अगले ही पल कोई भारी चीज उस से बाहर सड़क पर फेंकी गई और फिर कार तेजी से आगे बढ़ गई.

बिजली के खंभे में लगे बल्ब की रोशनी में जब नीलम की नजर उस चीज पर पड़ी, तो उस की आंखें हैरानी से फटती चली गईं.

यह किसी नौजवान लड़के का बुरी तरह जख्मी शरीर था. पलभर के लिए नीलम को लगा कि वह नौजवान मर चुका है. उस का बदन कांपने लगा. पहले तो वह हैरानी से अपनी जगह पर खड़ी रही, फिर न जाने क्यों वह आगे बढ़ी और पास जा कर गौर से उस नौजवान चेहरे को देखने लगी.

ऐसा करने पर नीलम को मालूम हुआ कि वह नौजवान मरा नहीं, बल्कि बेहोश है. पर वह जिस तरह से जख्मी था, अगर वहीं छोड़ दिया जाता, तो जरूर मर जाता.

नीलम काफी देर तक उस के चेहरे को देखती रही. पलभर को उस के मन में आया कि वह उसे वहीं छोड़ कर अपने घर लौट जाए, पर अगले ही पल उसे अपनी यह सोच गलत लगी.

एक इनसान को यों सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया जाए, यह बात उसे कतई मंजूर नहीं हुई.

नीलम ने मन ही मन कुछ सोचा, फिर उठ खड़ी हुई. उस ने अपने कंधे

पर लटकते हुए बैग से अपना मोबाइल फोन निकाला और अजीत का नंबर लगाने लगी.

नंबर मिलते ही नीलम ने अजीत को तुरंत वहां पहुंचने को कहा, फिर वह उस का इंतजार करने लगी.

अभी मुश्किल से 15 मिनट भी नहीं हुए थे कि अजीत अपनी टैक्सी ले कर वहां पहुंच गया. उस ने टैक्सी नीलम के पास रोकी, फिर बोला, ‘‘तुम्हारा ग्राहक नजर नहीं आ रहा?’’

‘‘आज मैं ने तुम्हें अपने ग्राहक के लिए नहीं बुलाया है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘तुम टैक्सी से तो उतरो, बताती हूं.’’

अजीत टैक्सी से नीचे उतर कर बोला, ‘‘हां, अब कहो.’’

बदले में नीलम ने सड़क पर बेहोश पड़े नौजवान की ओर इशारा किया. अजीत ने उस तरफ देखा, फिर जोरों से चौंका.

वह उस नौजवान के करीब आया और उसे ध्यान से देखा, फिर नीलम से बोला, ‘‘यह मर गया क्या?’’

‘‘अब तक तो नहीं, पर अगर इसे यों ही छोड़ दिया गया, तो यह जरूर मर जाएगा.’’

‘‘फिर?’’

‘‘तुम मेरी मदद करो, ताकि इसे अस्पताल पहुंचाया जा सके.’’

‘‘पागल हो गई हो तुम?’’ अजीत हैरान नजरों से नीलम को देखता हुआ बोला, ‘‘अगर यह अस्पताल में जा कर मर गया, तो अस्पताल वाले हम से हजार सवाल करेंगे और हम मुफ्त के झमेले में फंस जाएंगे, इसलिए इसे यहीं छोड़ कर यहां से खिसक ले…’’

‘‘इसे यहीं छोड़ दूं मरने के लिए?’’ नीलम उसे घूरती हुई बोली, ‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती,’’ इतना कहने के बाद नीलम झक कर उस नौजवान को उठाने की कोशिश करने लगी.

‘‘तू नहीं मानने वाली…’’ अजीत हथियार डालने वाले अंदाज में बोला, ‘‘चल हट, मैं इसे उठाता हूं.’’

अजीत ने झक कर उस बेहोश नौजवान को उठाया और उसे टैक्सी की पिछली सीट पर लिटा दिया.

इस के बाद वह टैक्सी से बाहर आ कर नीलम से बोला, ‘‘नीलम, अगर तू इसे अस्पताल ले कर जाएगी, तो अस्पताल वाले तुझ से कई तरह के सवाल करेंगे.’’

‘‘अस्पताल वाले मुझ से कोई सवाल नहीं पूछेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ अजीत चौंकते हुए उस से पूछ बैठा.

‘‘क्योंकि हम इसे उस अस्पताल में ले जाएंगे, जहां हम जैसी लड़कियों को कभीकभार इमर्जैंसी में जाना पड़ता है.’’

‘‘मैं सम?ा नहीं.’’

‘‘न चाहते हुए भी हम जैसी औरतें कभीकभार पेट से हो जाती हैं और तब हमें इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए इस अस्पताल में जाना पड़ता है, जहां के डाक्टर हमारा पेट गिरा कर हमें इस से छुटकारा दिलाते हैं.’’

‘‘ओह…’’ अजीत बोला, ‘‘पर नीलम, तू यह झमेला अपने सिर ले ही क्यों रही है? तू बेकार में अपना समय खराब कर रही है.’’

‘‘अब तू अपना मुंह बंद कर और चुपचाप वह कर जो मैं तुम से करने को कह रही हूं. चिंता मत कर, तुझे पूरा किराया मिलेगा.’’

‘‘जैसी तेरी मरजी…’’ अजीत बोला, ‘‘अगर तुम्हें अपना समय खराब करने का इतना ही शौक चर्राया है, तो मैं क्या कर सकता हूं?’’ कहते हुए उस ने ड्राइविंग सीट संभाल ली.

नीलम के बैठते ही अजीत ने टैक्सी आगे बढ़ा दी थी.

पहले तो अस्पताल वालों को नीलम को उस बेहोश नौजवान के साथ आया देख कर हैरानी हुई थी, फिर उस के कहने पर वे उस नौजवान के इलाज में लग गए.

वह नौजवान 3 दिनों तक अस्पताल में बेहोश पड़ा रहा. चौथे दिन शाम को उसे होश आया. इस बीच नीलम लगातार उस की सेवा करती रही.

वह नौजवान कुछ देर तक आसपास के माहौल को देखता रहा, फिर अपने पास बैठी नीलम से धीरे से बोला, ‘‘मैं कहां हूं?’’

‘‘आप इस समय एक अस्पताल में हैं… 4 दिन पहले आप को कुछ लोगों ने बुरी तरह जख्मी कर के बेहोशी की हालत में सड़क पर फेंक दिया था, जहां से उठा कर मैं आप को इस अस्पताल में ले आई थी,’’ नीलम बोली.

‘‘मैं 4 दिनों से बेहोश था?’’ वह नौजवान हैरानी से बोला.

‘‘जी हां…’’ तभी उस कमरे में आते हुए डाक्टर ने कहा, ‘‘खैर मनाइए इन का, जो आप को यहां ले आईं, वरना शायद आप अब तक जिंदा न होते.’’

उस नौजवान ने नीलम को गौर से देखा. डाक्टर चैकअप करने लगा और जब वह इस से निबट चुका, तो वह नौजवान बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मुझे अस्पताल से कब तक छुट्टी मिल जाएगी?’’

‘‘अब आप बिलकुल ठीक हैं. कल तक आप को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी,’’ इतना कहने के बाद डाक्टर कमरे से बाहर चला गया.

वह नौजवान पलभर तक दरवाजे की ओर देखता रहा, फिर उस ने नीलम की ओर देखा.

तभी नीलम उठी, फिर उस ने एक गिलास उस नौजवान की ओर बढ़ाया.

‘‘इस में क्या है?’’ वह नौजवान गिलास थामते हुए बोला.

‘‘फल का जूस है. इस से आप को ताकत मिलेगी.’’

‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ वह नौजवान गिलास अपने होंठों की ओर ले जाते हुए बोला.

‘‘मेरा नाम नीलम है, पर लोग मुझे ‘नीलू’ कहते हैं.’’

‘‘वे प्यार से आप को ऐसा कहते होंगे?’’

‘‘प्यार?’’ नीलम बोली, ‘‘एक जिस्म बेचने वाली से भला कौन प्यार करेगा?’’

होंठों की ओर जाता हाथ अचानक रुक गया. उस ने गिलास सामने रखी टेबल पर रख दिया.

‘‘आप ने गिलास टेबल पर क्यों

रख दिया?’’

‘‘तुम ने जो कहा, वह सच है?’’

‘‘बिलकुल सच है,’’ नीलम बोली, ‘‘और शायद इसी सच ने आप को जूस न पीने पर मजबूर किया है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है,’’ वह नौजवान बोला, ‘‘सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं, तुम्हारी भी होगी, पर मैं इतना जरूर पूछना चाहूंगा कि तुम यह धंधा क्यों करती हो?’’

‘‘अपना पेट पालने के लिए.’’

‘‘पेट कोई और काम कर के भी तो पाला जा सकता है?’’

‘‘मैं ने बहुत कोशिश की थी, पर कामयाब नहीं हुई. मैं जहां भी काम मांगने जाती, लोग मेरी काबिलीयत नहीं, मेरा खूबसूरत जिस्म देखते. वे काम तो देने को तैयार होते, पर मेरे जिस्म की कीमत पर. मैं बहुत भटकी और एक दिन मेरे सामने ऐसी बड़ी समस्या आई कि मु?ो बिकना पड़ा.’’

‘‘क्या हुआ था उस दिन?’’

‘‘मेरी बीमार मां की तबीयत अचानक ज्यादा खराब हो गई थी और उन के इलाज के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे. मजबूरन मुझे बिकना पड़ा,’’

‘‘ओह…’’ उस नौजवान के मुंह से एक आह निकल गई.

‘‘शायद औरों की तरह मेरा सच

जान कर आप को भी मुझे से नफरत हो गई है.’’

‘‘हरगिज नहीं…’’ उस नौजवान ने कहा, ‘‘बल्कि तुम तो मेरे लिए हमेशा यादगार रहोगी. तुम ने उस समय मेरी मदद कर मुझे मौत के मुंह से निकाला, जब मेरे कुछ दुश्मनों ने मु?ो बुरी तरह घायल कर बेहोशी की हालत में सड़क पर मरने के लिए फेंक दिया था.’’

‘‘साहब, आप शायद पहले शख्स हैं, जो मेरी हकीकत जानने के बाद भी मेरे बारे में ऐसा सोचते हैं.’’

‘‘अगर ऐसी बात है, तो तुम मेरी दोस्त बन जाओ.’’

‘‘दोस्ती का मतलब समझाते हैं आप?’’ नीलम गौर से उस नौजवान को देखते हुए बोली.

‘‘दोस्ती का मतलब है अपने दोस्त का साथ देना. अगर उस पर कोई परेशानी आए, तो उसे हर कीमत पर इस से उबारना,’’ कहते हुए उस नौजवान ने नीलम की ओर अपना हाथ बढ़ाया.

नीलम ने उस का हाथ थाम लिया. उस के ऐसा करते ही वह बोला, ‘‘मेरा नाम आदित्य है और मैं एक सफल कारोबारी हूं. कभी भी, कैसी भी जरूरत पड़े, एक फोन करना, तुम मुझे अपने पास पाओगी.’’

नीलम भरी आंखों से अपने नए दोस्त को देखती रही.

इज्जत का रखवाला : कमलेश का मनचलापन

कमलेश ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर भरपूर अंगड़ाई ली. उस के कसे, भरेभरे उभार मानो सामने खड़े गांव के मंदिर के पुजारी रामकिशन को खुला न्योता देते हुए लग रहे थे.

कमलेश ने उस पुजारी को सुबह के 4 बजे झठ बोल कर अपने घर में बुला लिया था. वह घर में अकेली थी. वहां दूसरा कोई न था. कमलेश उस पुजारी से अपनी हसरतों को पूरा करना चाहती थी.

कमलेश ने आगे बढ़ कर रामकिशन का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचना चाहा, मगर उस ने अपना हाथ छुड़ा लिया.

पुजारी रामकिशन की पत्नी की मौत 10 साल पहले हो चुकी थी. तब से उस की जिंदगी बेरंग हो गई थी.

आज कमलेश के इस तरह अपने घर बुलाने पर वह हैरान था. क्या उसे पूरे गांव में कोई दूसरा जवां मर्द नहीं मिला? किसी गांव वाले ने उसे कमलेश के साथ देख लिया, तो बदनामी हो जाएगी.

रामकिशन अपनी बेइज्जती होने के डर से कांप उठा था. वह कमलेश से बोला, ‘‘क्या तुझे इस गांव में कोई जवां मर्द नहीं मिला, जो मुझ बूढ़े को बहाने से बुला लाई? तुझे क्या अपने पति की बदनामी का जरा भी डर नहीं है?’’

‘‘पुजारीजी, मेरा पति पैसा कमाने बाहर गया है. इस बात को 5 महीने हो गए हैं. वह कब आएगा, पता नहीं. मैं प्यासी तड़प रही हूं,’’ कमलेश ने बताया.

पुजारी ने उसे समझाना चाहा, ‘‘अगर ऐसी बात है, तो तुझे कभी नहीं गिरना चाहिए. वह अगर तेरे लिए पैसा कमाने गया है, तो तुझे उस की अमानत किसी तीसरे के सामने नहीं परोसनी चाहिए. औरत तो घर की इज्जत होती है.’’

‘‘पुजारीजी, धर्मकर्म की बातें बुढ़ापे में ही याद आती हैं. जवानी की आग में सुलगती औरत को उपदेश नहीं, बल्कि मुहब्बत की बारिश की जरूरत होती है, जिस से उस की प्यास बुझ सके,’’ कमलेश ने अपनी समस्या बताई, तो पुजारी परेशान होता हुआ बोला, ‘‘तू गांव का कोई जवान देख, मुझ बूढ़े को क्यों पाप का भागीदार बना रही है?’’

‘‘जवान तो गांव में बहुत हैं, जो मेरे एक इशारे पर मरमिटने को तैयार हैं, मगर मैं अपने पति के कहने में बंधी हुई हूं,’’ कमलेश ने रामकिशन के सामने यह बात रखी, तो वह चौंक उठा.

‘‘क्या तेरे पति ने जाते समय ऐसा करने को कहा था? बड़ा अजीब

आदमी है,’’ रामकिशन ने हैरत भरे लहजे में पूछा.

कमलेश ने बताया, ‘‘जब मेरा पति जाने लगा था, तो उस ने मुझे चरित्रवान रहने की बात कही थी.’’

कमलेश तो अपने पति को बाहर भेजने के हक में नहीं थी. जब उस के पति ने अपनी मजबूरी जाहिर की, तो कमलेश ने भी उस की सब्र रखने वाली बात को नकार दिया था.

जब कमलेश किसी तरह नहीं मानी, तब उस के पति अमर ने उसे समझाने की गरज से सलाह दी थी, ‘मेरी जान, अगर तुम मेरी जुदाई में सब्र नहीं रख पाओ, तो तुम सुबह के 4 बजे अकेले घर से निकलना और तुम्हें जो भी पहला मर्द मिले, उस से संबंध जोड़ सकती हो. लेकिन महीने में केवल एक बार.’

अमर की यह अजीबोगरीब सलाह कमलेश खुशीखुशी मान गई. पुजारी रामकिशन ने पूछा, ‘‘तब तुम ने क्या किया?’’

‘‘कई बार मैं सुबह 4 बजे अपनी इच्छा पूरी करने के लिए घर से निकली. आज कितनी कोशिशों के बाद तुम मिले हो, इसलिए तुम्हें मुझे खुश करना होगा, वरना मैं शोर मचा कर तुम पर बलात्कार का आरोप लगा दूंगी.’’

रामकिशन सिर से ले कर पैर तक कांप उठा. उसे अपनेआप को बचाना मुश्किल लग रहा था, फिर भी उस ने दिमाग से काम लेना चाहा.

‘‘तुम ने अच्छा फैसला लिया है. तुम्हारे साथ मुझे प्यारमुहब्बत का खेल खेलना चाहिए. लेकिन मैं तुम से थोड़ा उम्र में बड़ा हूं. अभी तुम मुझे घर जाने दो, ताकि मैं थोड़ी जड़ीबूटी खा कर जोशीला हो जाऊं. मैं आज रात को दोबारा आ जाऊंगा,’’ रामकिशन ने कमलेश को समझाते हुए कहा, तो उस ने उसे घर जाने दिया.

लेकिन उस रात को रामकिशन कमलेश के घर नहीं गया. अब तो उस ने सुबहसवेरे टहलने जाना बंद कर दिया था.

कमलेश कितनी बार बहाने से मंदिर भी आई, मगर वहां कोई न कोई रामकिशन के पास बैठा होता था.

धीरेधीरे दिन गुजरने लगे. एक दिन रामकिशन सुबहसवेरे नदी पर नहाने चला गया. नहाने के बाद वह जैसे ही मुड़ा, अचानक कमलेश उस के सामने आ धमकी. वह रामकिशन का हाथ पकड़ कर अपने घर की ओर खींचने की कोशिश करने लगी.

इसी खींचातानी में रामकिशन के हाथ से मिट्टी का लोटा टूट गया. यह देख कर वह रोने लगा.

कमलेश हैरान होते हुए पूछने लगी, ‘‘यह मिट्टी का लोटा ही तो टूटा है, तुम रोते क्यों हो? मैं तुम्हें इस मिट्टी के लोटे के बदले में स्टील या पीतलतांबे का बढि़या सा लोटा दे दूंगी.’’

‘‘मैं लोटा टूटने पर इसलिए रो रहा हूं, क्योंकि इसे मेरी पत्नी ने मेरे लिए 10 साल पहले एक मेले में खरीदा था. अब वह जिंदा नहीं है. मैं इस लोटे को देख कर तसल्ली कर लेता था कि वह आज भी मेरे साथ है. पर आज लोटा टूट गया है.

‘‘ऐसा लग रहा है, जैसे वह सचमुच मुझ से अलग हो कर बहुत दूर चली गई है.’’

कमलेश यह सब देख कर मन ही मन पिघलने लगी. उसे रामकिशन की वफादारी पर हैरानी हो रही थी.

वह सोच रही थी कि एक वह है, जिस का पति परदेश पैसा कमाने गया है. वह कुछ दिनों के बाद जरूर लौट कर आएगा, क्योंकि वह वादा कर के गया है. वह फिर भी अपने तन की भूख मिटाने के लिए गिरने पर आमादा है.

पुजारी रामकिशन अब भी रो रहा था. सुबह का उजाला चारों तरफ फैलने लगा था.

कमलेश अब भी सोच रही थी कि इतनी सुबह तो रामकिशन जैसे सज्जन ही घर से बाहर निकलते हैं. अगर वह दिन के उजाले में किसी मनचले से उलझ जाती, तो वासना की दलदल में बुरी तरह फंस जाती. बदनामी मिलती सो अलग. तब वह अपनी गृहस्थ जिंदगी बरबाद होने से नहीं बचा पाती.

पुजारी रामकिशन ने कमलेश को तबाह होने से बचा लिया था. वह तो उस की इज्जत का रखवाला निकला.

पगली : कौन थी वो अजनबी लड़की

‘‘आजकल आप के टूर बहुत लग रहे हैं. क्या बात है जनाब?’’ नंदिनी संजय से चुहलबाजी कर रही थी.

‘‘क्या करूं, नौकरी का सवाल है, नहीं तो तुम्हें छोड़ कर जाने का मेरा मन बिलकुल भी नहीं करता है,’’ संजय ने भी हंसी का जवाब हंसी में दे दिया.

‘‘पहले तो ऐसा नहीं था, फिर अचानक इतने ज्यादा टूर क्यों हो रहे हैं?’’ इस बार नंदिनी ने संजीदगी से पूछा था.

‘‘तो क्या घर बैठ जाऊं?’’ संजय को गुस्सा आ गया.

‘‘इस में इतना गुस्सा होने की क्या बात है? मैं तो यों ही पूछ रही थी,’’ नंदिनी बोली.

‘‘जैसा कंपनी कहेगी, वही करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है, पर…’’

‘‘तुम मुझ पर शक कर रही हो…’’ संजय ने कहा, ‘‘जैसे मैं किसी और से मिलने जाता हूं… है न?’’

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी,’’ नंदिनी ने कहा.

‘‘तुम्हारे मन में ऐसे-ऐसे खयाल आ जाते हैं, जिन का कुछ भी मतलब नहीं होता है.’’

‘‘अच्छा बाबा, माफ कर दो. मैं तो इसलिए कह रही थी कि गरमी की छुट्टियों में हम सब बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने चलें,’’ नंदिनी जैसे अपनी सफाई पेश कर रही थी. ‘‘ठीक है, देखते हैं,’’ संजय ने कहा.

एक दिन घर के कामकाज निबटा कर नंदिनी छत पर चली गई थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी.

जब दरवाजा खोला, तो सामने पड़ोसन रागिनी खड़ी थी.

‘‘आओ रागिनी भाभी, अचानक कैसे आना हुआ?’’ नंदिनी ने पूछा.

‘‘तुम्हें पता है नंदिनी कि आजकल कालोनी में क्या हो रहा है.’’

‘‘ऐसा क्या हो रहा है, जो मुझे नहीं पता?’’

‘‘अरे, पिछले कई दिनों से एक पगली इस कालोनी में आई हुई है और सब बच्चे उसे छेड़ते रहते हैं.’’

‘‘हां, मैं ने भी उसे देखा है, पर बच्चों को ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि बाहर बहुत शोर सुनाई दिया. दोनों घर के बाहर आ गईं.

नंदिनी ने देखा कि एक लड़की भाग रही थी और कुछ बच्चे उस के पीछे भाग रहे थे.

नंदिनी ने उन बच्चों को डांट लगाई और उसे अपने साथ घर में ले आई.

अंदर आते ही वह लड़की बेहोश हो गई. नंदिनी ने उस के चेहरे पर पानी के छींटे मारे. होश में आने पर वह नंदिनी से लिपट कर रोने लगी.

नंदिनी ने लड़की से उस का नाम पूछा, लेकिन वह चुप रही, फिर वह जोरजोर से चिल्लाने लगी और नंदिनी से ऐसे लिपट गई, जैसे उसे कुछ याद आ गया हो.

नंदिनी ने उसे आराम से बैठाया और उसे खाने को दिया, तो वह फटाफट    5-6 रोटियां खा गई, जैसे बहुत दिनों से भूखी हो.

‘‘कौन हो तुम?’’ पड़ोसन रागिनी ने उस लड़की से पूछा, तो वह चुप रही. कई बार पूछने पर वह बोली, ‘रेवा…रेवा…रेवा.’

‘‘नंदिनी, पता नहीं यह कहां से आई है? अब इसे यहां से जाने को कह दे,’’ रागिनी ने नंदिनी को सलाह दी.

‘‘कैसी बातें कर रही हो भाभी?  कुछ देर आराम कर ले, फिर जाने को कह दूंगी,’’ नंदिनी बोली.

‘‘देख, मैं कह रही हूं कि ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए,’’ रागिनी ने उसे फिर से सम?ाने की कोशिश की.

‘‘भाभी, आप को पता है कि मैं एक एनजीओ के साथ काम कर रही हूं. मैं उन से बात करूंगी. आप परेशान न हों,’’ नंदिनी बोली.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह कर रागिनी चली गई.

नंदिनी जब वापस आई, तो देखा कि वह लड़की कमरे के एक कोने में दुबकी डरीसहमी बैठी थी.

नंदिनी ने उसे आवाज लगाई, ‘‘रेवा…’’

वह कुछ नहीं बोली, बल्कि और सिमट कर बैठ गई.

नंदिनी उस के पास गई और पूछा, ‘‘रेवा नाम है न तुम्हारा?’’

उस लड़की ने धीरे से अपना सिर ‘हां’ में हिला दिया.

नंदिनी ने उस से कहा, ‘‘देखो, डरो नहीं. बताओ, तुम कहां से आई हो? हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देंगे.’’

वह लड़की इतना ही बोली, ‘‘मेरा कोई घर नहीं है बीबीजी.’’

नंदिनी को हैरानी हुई कि यह तो कहीं से पागल नहीं लग रही है.

अचानक उस लड़की ने नंदिनी के पैर पकड़ लिए. नंदिनी को उस का बदन गरम लगा. ऐसा लगता था, जैसे उसे बुखार हो.

‘‘अच्छा ठीक है, आज की रात तुम यहीं रह जाओ. कल मैं तुम्हें अपनी संस्था में ले जाऊंगी.’’

‘‘बीबीजी, आप मुझे अपने पास रख लो. मैं घर का सारा काम करूंगी,’’ कह कर वह फिर से रोने लगी.

‘‘अच्छा, आज तो तुम यहीं रहो, फिर कल देखेंगे,’’ नंदिनी बोली.

संजय रात को काफी देर से आया था. सो, उसे उस लड़की के बारे में कुछ नहीं पता था.

अगली सुबह नंदिनी ने संजय को उस लड़की के बारे में बताया.

संजय ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘नंदिनी, इस को अभी घर से निकालो, पता नहीं कौन है….’’

‘‘हां संजय, लेकिन अभी मैं इसे अपनी संस्था में ले जाती हूं.’’

‘‘मैं रात को घर आऊं, तो मु?ो कोई बखेड़ा नहीं चाहिए,’’ कह कर संजय चला गया.

नंदिनी नीचे आई, तो देखा कि उस लड़की को तेज बुखार था.

रात को संजय ने नंदिनी से पूछा, ‘‘क्या वह लड़की चली गई?’’

नंदिनी ने कहा, ‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों…?’’ संजय बोला.

‘‘संजय, उसे बहुत तेज बुखार है और ऐसी हालत में वह लड़की कहां जाएगी? अगर वह मर गई तो…’’

‘‘मु?ो नहीं पता,’’ कहते हुए संजय नीचे चला गया.

वहां वह लड़की बेहोश पड़ी थी. पता नहीं क्यों संजय उसे देख कर हैरानी में पड़ गया.

‘‘नंदिनी, शायद तुम ठीक कह रही हो. अगर यह यहां से गई और मर गई, तो क्या होगा?’’

‘‘फिर क्या करें?’’

‘‘ऐसा करते हैं, जब तक यह ठीक नहीं हो जाती, इसे अपने पास ही रख लेते हैं.’’

‘‘ठीक है.’’

आजकल करतेकरते कई दिन हो गए, पर रेवा वहां से न जा सकी.

वैसे, नंदिनी अब तक सिर्फ इतना ही जान पाई कि वह एक पहाड़ी लड़की थी और किसी बाबूजी से मिलने आई थी.

‘‘तुम्हें यहां कौन छोड़ गया है?’’ नंदिनी ने पूछा.

‘‘मेरे गांव में कई लोग यहां पर फेरी लगाने आते हैं. उन्हीं लोगों के साथ मैं भी आ गई.’’

‘‘देखो, अगर तुम हमें अपने गांव का नामपता बता दोगी, तो हम तुम्हें वहां पहुंचा देंगे,’’ नंदिनी ने कहा.

‘‘मैं पहली बार अपने गांव से बाहर निकली हूं और मु?ो तो यह भी नहीं पता कि मेरे गांव का क्या नाम है.’’

पता नहीं, वह सच बोल रही थी या ?ाठ, पर नंदिनी को उस की बातों पर कभी भरोसा हो जाता, तो कभी नहीं.

अभी रेवा को आए हुए कुछ समय ही बीता था कि नंदिनी को पता चला कि वह मां बनने वाली है.

नंदिनी हैरानी में पड़ गई कि अब वह क्या करे. उस ने रेवा से पूछा कि यह सब क्या है? कौन है इस बच्चे का पिता? लेकिन रेवा का एक ही जवाब होता, ‘‘बीबीजी, मु?ो नहीं पता. शायद पागलपन के दौरे में मेरा किसी ने फायदा उठा लिया होगा.’’

‘‘तू याद करने की कोशिश तो कर, शायद याद आ जाए.’’

‘‘नहीं बीबीजी, क्योंकि जब मु?ो दौरा पड़ता है, तो उस वक्त की सारी बातें मैं भूल जाती हूं.’’

नंदिनी को कुछ भी सम?ा नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

उस ने संजय से बात की. यह सब सुन कर वह भड़क उठा, ‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था कि इस ?ां?ाट में मत फंसो. अब भुगतो.’’

‘‘तो क्या उसे घर से निकाल दूं?’’

‘‘अब क्या घर से निकालोगी? रहने दो अब.’’

नंदिनी ने अपने पड़ोसियों से बात की. सब ने यही राय दी कि उसे फौरन घर से निकाल देना चािहए.

पर नंदिनी रेवा को वहां से जाने के लिए एक बार भी नहीं कह पाई.

रेवा के मां बनने का समय भी आ गया था. नंदिनी अब तक एक बड़ी बहन की तरह रेवा की देखभाल कर रही थी.

रेवा को एक बहुत ही प्यारा बेटा हुआ. उस बच्चे को देख कर नंदिनी को अपने बच्चों के बचपन याद आ गए.

ठीक होने के बाद रेवा ने फिर से घर के काम करने शुरू कर दिए थे. सबकुछ ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन सुबह नंदिनी ने देखा कि रसोई बिखरी पड़ी है. इस का मतलब अभी तक रेवा नहीं आई थी.

कुछ देर उस का इंतजार करने के बाद नंदिनी उस के कमरे में आई, तो देखा कि रेवा कमरे में नहीं थी और उस का बच्चा पलंग पर सो रहा था.

नंदिनी ने बच्चे को गोद में उठा लिया. बच्चे के पास एक चिट्ठी रखी  थी. नंदिनी ने उसे पढ़ना शुरू किया:

‘दीदी, मैं पागल नहीं हूं, लेकिन मु?ो पागल बनना पड़ा, क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करती, तो आप मु?ो अपने घर में नहीं रखतीं.

‘मैं बहुत गरीब घर से हूं. कुछ समय पहले संजय साहब मेरे गांव आए थे. उन्होंने मु?ो एक अच्छी जिंदगी के सपने दिखाए, लेकिन बदले में आप ने जान ही लिया होगा कि मैं ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है.

‘दीदी, मैं ने ही साहब को मजबूर किया था कि अगर वे मु?ो अपने घर में नहीं रहने देंगे, तो मैं आप को सबकुछ सच बता दूंगी.

‘साहब जैसे भी हैं, लेकिन वह अपना घर नहीं तोड़ना चाहते हैं. अगर मैं चाहती, तो आप के घर रह सकती थी, लेकिन मैं जानती हूं कि सच को ज्यादा दिनों तक नहीं छिपाया जा सकता.

‘दीदी, आप इतनी अच्छी हैं कि कभीकभी मु?ो लगता था कि मैं आप के साथ बेईमानी कर रही हूं, लेकिन इस बच्चे की वजह से चुप कर जाती थी.

‘दीदी, अब यह आप का बच्चा है. आप जैसे चाहें इस की परवरिश कर सकती हैं.

‘मैं ने साहब को माफ कर दिया है. आप भी उन को माफ कर दो.’

नंदिनी चिट्ठी पढ़ कर मानो आसमान से नीचे गिर पड़ी. इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा गुनाह. उस की आंखों के सामने सबकुछ होता रहा और उसे पता भी नहीं चला.

उस ने कभी भी संजय और रेवा को एकसाथ नहीं देखा था और न ही दोनों को कभी बातें करते सुना था, तो फिर कब…?

नंदिनी को लगा कि कमरे की दीवारें चीखचीख कर कह रही हैं, ‘नंदिनी, पगली वह नहीं तू थी, जो अपने पति और एक अनजान लड़की पर भरोसा कर बैठी. पगली…पगली…पगली…’

दबी आवाजों का गुस्सा

‘‘आज मंदिर में प्रोग्राम है न?’’

‘‘हां है.’’

‘‘देखिए, मुझे भी ले चलिएगा. मैं जब से यहां आई हूं, आप मुझे कहीं भी ले कर नहीं गए हैं. कंपनी में फिल्म होती है, वहां भी नहीं.’’

पत्नी के चेहरे पर रूठने के भाव साफ दिख रहे थे और बात भी सही थी. ब्याह के बाद जब से वह आई है, मैं उसे कहीं भी ले कर नहीं गया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे फौजी माहौल का उस पर असर पड़े.

‘‘ले चलिएगा न?’’

‘‘हां राजी, ले चलूंगा, पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं, आज तो मैं आप की एक न मानूंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम तैयार हो जाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम मंदिर की ओर जा रहे थे. मंदिर के नजदीक पहुंच कर राजी की खुशी देखते ही बनती थी.

‘‘देखिए न, मंदिर दुलहन की तरह सजा हुआ कितना अच्छा लग रहा है.’’

‘‘हां राजी, सचमुच अच्छा लग रहा है, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘कुछ नहीं राजी… आओ, लौट चलें.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हैं जी? मंदिर के पास आ कर भी भला लौटा जा सकता है? आप भी कभीकभी बेकार की बातें सोचने लगते हैं. चलिए, मंदिर आ गया है, जूते उतारिए.’’

‘‘यहां नहीं राजी, हम लोगों के लिए जूते उतारने की जगह दूसरी ओर है. यहां अफसर उतारेंगे.’’

‘‘क्या…’’

‘‘हां, राजी.’’

‘‘ओह…’’

तय जगह पर जूते उतार कर हम भीतर चले जाते हैं. भीतर चारों ओर एक खामोशी है. एक ओर जवान बैठे हैं, दूसरी ओर औरतें और बच्चे. बीचोंबीच मूर्ति तक जाने का रास्ता है.

हम दोनों हाथ जोड़ने के बाद लौटे, तो पंडाल से हट कर बैठी हमारी पड़ोसन मिसेज शर्मा ने राजी के लिए जगह बना दी. मैं रास्ते के पास जवानों के बीच बैठ गया. मु?ो राजी और मिसेज शर्मा की बातें साफ सुनाई दे रही थीं.

‘‘आओ बहन, आओ. शुक्र है, तुम घर से बाहर तो निकलीं.’’

‘‘क्या बात है बहनजी, मंदिर में बड़ी खामोशी है. न भजन, न कीर्तन,’’ राजी कह रही थी.

‘‘कोई मन से आए, तो भजन भी होए. बाई और्डर कौन भजन करे,’’ मिसेज शर्मा के बगल में बैठी औरत ने कहा.

‘‘बाई और्डर…?’’

‘‘हां बहन, आदेश न हो, तो यहां कोई भी न आए,’’ मिसेज शर्मा ने कहा.

‘‘मंदिर में भी…?’’

‘‘हां बहन, मंदिर में भी… न आएं तो मर्द लोगों के खिलाफ ऐक्शन लिया जाता है. कोई ज्यादा अकड़े तो कहा जाता है कि जाओ, फैमिली डिस्पैच कर दो. भला बालबच्चों को ले कर मर्द लोग कहां जाएं? इसी गम के मारे तो कितने मर्द क्वार्टरों में अपनी फैमिली लाना नहीं चाहते. उन के बीवीबच्चे भी क्या सोचते होंगे, इसीलिए यह खामोशी है… न भजन, न कीर्तन.

‘‘वह खूबसूरत पंडाल देख रही हो बहन, जिस के नीचे बैठा पंडित इस बात का इंतजार कर रहा है कि कब सीओ साहब यानी कमांडिंग अफसर और उन की मेम साहब आएं, तो पूजा शुरू हो.’’

थोड़ी देर बाद मिसेज शर्मा बोलीं, ‘‘पिछली बार मैं गलती से उस पंडाल में बैठ गई थी. मु?ो वहां पर बड़ा बेइज्जत होना पड़ा था…’’

‘‘हमारी इज्जत ही कहां है, जो बेइज्जत हों,’’ मिसेज शर्मा के पीछे बैठी एक गोरी औरत ने कहा, ‘‘कभी कंपनी में फिल्म देखने आई हो बहन?’’ राजी ने न में सिर हिला दिया.

‘‘अच्छा करती हो, नहीं तो बड़ी बेइज्जती सहनी पड़ती है. ये अफसर लोग हमारे मर्दों के कमांडर हैं. उन के साथ कैसा भी बरताव करें, सहन किया जा सकता है, पर हम औरतों में भला क्या फर्क है?

‘‘अफसरों और उन की बीवियों के लिए सोफे लगते हैं, जेसी ओज (जूनियर कमीशंड अफसर) और परिवारों के लिए कुरसियां और हम लोगों के लिए थोड़े से बैंच. जो पहले आए बैठ जाए. बाकी सब औरतें नीचे बैठ कर फिल्म देखती हैं.

‘‘और तो और, गरमियों में उन के लिए पंखों का इंतजाम होता है और सर्दियों में सिगड़ी का, जैसे हम लोहे की बनी हों, जिन पर गरमीसर्दी का कोई असर ही न होता हो…’’

‘‘हम अफसरों के साथ नहीं बैठना चाहतीं…’’ थोड़ी देर बाद उसी औरत ने कहा, ‘‘अनुशासन बनाए रखने के लिए अलगअलग इंतजाम अच्छा है, पर सब के लिए कुरसियां तो लग ही सकती हैं.’’

‘‘हमारे ही आदमी सोफे और कुरसियां लगाते हैं और उन्हीं के बीवीबच्चे उन पर नहीं बैठ सकते,’’ गोरी औरत के पास बैठी दूसरी औरत ने कहा.

‘‘7 बजे फिल्म शुरू होने का समय है, पर जब तक सीओ साहब और उन की मेम साहब न आएं, फिल्म शुरू नहीं होती. बच्चे मुंह उठाउठा कर देखते रहते हैं कि कब सीओ साहब आएं, तो फिल्म शुरू हो…

‘‘काश, सीओ साहब जान पाते कि बच्चे तालियां क्यों बजाते हैं… क्यों बजा रहे हैं?’’ पीछे बैठी गोरी औरत ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पर कौन जानता है? कौन परवाह करता है?’’

‘‘सच कहती हो बहन, कोई परवाह नहीं करता…’’ अभीअभी आ कर बैठी सांवली औरत ने शायद गोरी औरत की बात सुन ली थी, ‘‘मेरा पति ड्राइवर है. आजकल स्कूल बस में बच्चों को ले कर जाता है. यहां से बस ठीक समय पर जाती है, पर सीओ साहब के बंगले पर जा कर खड़ी हो जाती है. जब तक उन के बच्चे नहीं आ जाते, तब तक वहां से नहीं चलती.

‘‘उन का स्कूल तो 8 बजे लगता है, पर मेरे पप्पू का तो स्कूल साढ़े 7 बजे ही लग जाता है. 3 दिन से पप्पू को टीचर सजा दे रही हैं. भला कोई सीओ साहब से पूछे कि हाजिरी कम होने पर वे बच्चों को इम्तिहान में बिठवा देंगे?’’

इतने में पीछे से एक शोर उठा कि सीओ साहब और मेम साहब आ गईं. सांवली औरत की बातें इस शोर में गुम हो कर रह गईं.

पंडितजी सीओ साहब और उन की मेम साहब के गले में फूलों की मालाएं डाल कर मंत्र बोलने लगे. पीछे से कोई बच्चा पूछ रहा था, ‘‘पंडितजी ने सीओ साहब के गले में माला क्यों डाली?’’

‘‘वे भी भगवान हैं बेटे…भगवान, फौजी भगवान…’’

राजी ने एक बार फिर पीछे मुड़ कर मेरी ओर देखा था, पर मैं उस की नजरों को सहन नहीं कर पाया.

यादों की चिनगारी : ट्रेन की वह मुलाकात

गाड़ी अभीअभी आ कर स्टेशन पर रुकी थी. मुझे इसी गाड़ी से तकरीबन  2 घंटे बाद दूसरा इंजन लगने पर अपने शहर जाना था. मैं डब्बे के दरवाजे पर खड़ा हो कर प्लेटफार्म की भीड़ को देख रहा था.

अचानक मेरे सामने से एक जानापहचाना चेहरा गुजरा. उस चेहरे को देखते ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘नसरीन.’’ वह रुकी और एक भरपूर नजर मेरे चेहरे पर डाली. मुझे देख कर उस का चेहरा खिल उठा, पर कोई भी लफ्ज उस के होंठों से नहीं निकला.

मेरे हाथ बढ़ाने पर उस ने फौरन अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया और मैं ने उसे डब्बे के अंदर खींच लिया. वह चुपचाप मेरे साथसाथ मेरी सीट तक आई. मैं ने अपनी बीवी और बच्चे से उसे मिलवाया. फिर धीरेधीरे नसरीन खुले दिल से बातें करने लगी.

वह बारबार एक ही जुमला कहे जा रही थी, ‘‘आप ने इतने बरसों बाद भी मुझे एकदम पहचान लिया. इस का मतलब मेरी तरह आप भी मुझे भूले नहीं थे?’’ वह मेरी बीवी से बातें करती जाती, मगर उस की नजरें मुझ पर टिकी हुई थीं.

नसरीन बरसों पहले कालेज के जमाने में हमारे पड़ोस में रहती थी. मुझ से वह 1-2 दर्जा पीछे ही थी,  मगर फिल्में देखने और सैरसपाटे में मुझ से कहीं आगे थी. उसे फिल्म देखने की लत थी. मैं ने शायद अपनी जिंदगी की ज्यादातर फिल्में उस के साथ ही देखीं.

उसे घूमने का भी बेहद शौक था. शाम को स्टेशन के पास वाली सड़क पर वह मुझे जबरदस्ती ले जाती, इधरउधर की फालतू बातें करती और फिर हम दोनों वापस आ जाते. उसे मेरी क्या बात पसंद थी, मालूम नहीं, मगर मुझे उस के बात करने का अंदाज और खरीदारी करने का सलीका बहुत पसंद था.

नसरीन के साथ चलने में मुझे लगता कि उस की वजह से मैं बिलकुल महफूज हूं. फिर वह आगे की पढ़ाई करने के लिए एक साल के लिए दूसरे शहर में चली गई और मैं भी नौकरी की तलाश में कई शहरों की खाक छानता रहा.

वह जब वापस आई थी, उस समय मैं नौकरी न मिलने की वजह से बेहद परेशान और दुखी था. नौकरी के लिए नसरीन भी हाथपैर मार रही थी. वह हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया करती थी.

एक दिन उस ने मुझ से कहा था, ‘‘दुनिया में बड़े सुख जैसी कोई चीज नहीं है… छोटेछोटे सुख, जो हमें जानेअनजाने में मिलते रहते हैं, उन्हीं से खुश रहना चाहिए.’’ मैं उस शहर में ज्यादा दिन न ठहर सका. बाद में कई शहरों में छोटीमोटी नौकरियां करने के बाद मुझे सरकारी नौकरी मिली और मेरी जिंदगी में ठहराव सा आ गया.

बाद में नसरीन का परिवार भी वह शहर छोड़ गया था और उस का नया पता मुझे मालूम नहीं हो सका था. कई साल गुजर गए थे, मगर नसरीन की याद राख में दबी चिनगारी की तरह गरम ही रही, कभी बुझी नहीं.

जब उस का चेहरा मेरी नजरों के सामने आया, तो मैं अपनेआप को रोक न सका. वह भी बेहद खुश थी. बोली, ‘‘इत्तिफाक की बात है कि मैं भी इसी गाड़ी में बैठी थी और रास्तेभर आप की याद आती रही.’’

चूंकि बीवी को मैं ने नसरीन के बारे में कई बार बताया था, इसलिए वह भी उस से खूब दिलचस्पी से बातें कर रही थी. मैं उन दोनों के पास से उठ कर रिसाला यानी पत्रिका खरीदने नीचे उतर गया.

वापस आने पर मैं ने देखा कि नसरीन की बातें तो मेरी बीवी से हो रही थीं, मगर उस की नजरें मुझ पर जमी थीं. नसरीन अपनी बड़ी बहन से मिलने जा रही थी, जो कि इसी शहर में मास्टरनी थी. नसरीन अभी तक कोई नौकरी न पा सकी थी.

मुझे यह जान कर बहुत अफसोस और इस से भी ज्यादा अफसोस इस बात का हुआ कि वह अब बुरी तरह नाउम्मीद हो चुकी थी. उस ने मुझ से कहा कि मैं कहीं उस के लिए नौकरी का बंदोबस्त करूं. मगर, मैं उस के लिए क्या और कहां कोशिश करता.

उसे मेरी नौकरी के बारे में कहीं से पता चल गया था. मगर उसे यह नहीं मालूम था कि मैं छुट्टी खत्म कर के बीवीबच्चों के साथ वापस जा रहा हूं तो वह भी हमारे साथ चिपकी चली आई. मेरी बीवी ने उस से सिर्फ एक बार दिखाने के लिए साथ चलने को कहा था.

नसरीन बिना किसी झिझक या शर्म के तुरंत मान गई. उस के साथ चलने की बात पर मेरी बीवी के चेहरे पर नाराजगी सी दिखाई देने लगी, लेकिन फिर वह हंसनेबोलने लगी. 4-5 घंटे का सफर बातों में कितनी जल्दी गुजर गया था, कुछ पता ही नहीं चला. घर पहुंच कर मेरी बीवी के साथ उस ने भी खाना पकाने से ले कर घर की सफाई वगैरह में पूरा साथ दिया.

नसरीन 2 दिन रही. तीसरे दिन खरीदारी करने मेरी बीवी के साथ गई. मगर शाम को जब मैं दफ्तर से वापस आया, तो बीवी ने बताया कि वह 4 बजे वाली गाड़ी से बड़ी मुश्किल से वापस गई है. बाजार  में मेरे सामान की सारी खरीदारी भी उस ने अपनी पसंद से की थी, जैसे कि वह मेरी पसंदनापसंद को अच्छी तरह से जानती हो. काफी दिन बीत गए.

उस के 2-3 खत आए, मगर मैं जवाब न दे सका. इधर बीवी भी बीमार थी और वह अपने पीहर गई हुई थी. एक दिन शाम के समय मैं अपने दफ्तर के एक साथी के घर दावत में जाने के लिए तैयार हो रहा था कि अचानक दरवाजा खुला और नसरीन अंदर दाखिल हुई.

मैं हैरान रह गया. आते ही वह बोली, ‘‘अरे, आप कहीं जाने की तैयारी कर रहे हैं?’’ मैं ने तब दावत में जाना ठीक न समझा. मगर बिना किसी खबर के वह भी मेरी बीवी की गैरहाजिरी में उस का आना मुझे अखर सा गया. वह मेरी खामोशी भांप गई और बोली, ‘‘क्या आप को मेरे इस तरह से अचानक आ जाने से खुशी नहीं हुई?  ‘‘मैं तो कई दिन पहले से बाजी के घर आई हुई थी.

आज वापसी के लिए स्टेशन पर पहुंची, तो खुद से एक शर्त लगा ली कि अगर आप की ओर जाने वाली गाड़ी पहले आएगी, तो आप के यहां चली आऊंगी और अगर मेरे घर की तरफ जाने वाली गाड़ी पहले आई, तो वापस अपने घर चली जाऊंगी.

‘‘अब शर्त की बात थी, आप की ओर आने वाली गाड़ी पहले आई और मुझे मजबूरन आप के पास आना पड़ा.’’ यह सुन कर मैं हंस पड़ा, और बोला ‘अरे, शर्त की क्या बात थी… यह घर तुम्हारा नहीं है क्या?’’ यह जान कर कि मेरी बीवी घर पर नहीं है, नसरीन काफी खुश हुई थी.

फिर देर रात तक वह मुझ से इधरउधर की बातों के बीच अपने शिकवेशिकायतें ले बैठी कि आप मुझे भूल गए. आप ने मुझ से क्याक्या बातें की थीं? मैं ने उसे समझाया कि अगर मैं उसे भूल जाता तो शायद उस दिन पहचान भी न पाता. हां, मैं ने उस से कभी कोई वादा नहीं किया था.

दूसरे दिन सवेरे ही मैं ने नसरीन को विदा कर दिया. वह जाने को तैयार नहीं थी, मगर मैं ने उसे लोकलाज का वास्ता दिया तो वह चली गई.  कुछ दिन बाद पत्नी के लौटने पर जब मैं ने उसे नसरीन के आने की खबर दी, तो उस के चेहरे पर नाराजगी और गुस्से के कई रंग नजर आए.

मगर वह उस कड़वाहट को खामोशी से पी गई. तकरीबन 2-3 महीने बाद नसरीन की चिट्ठी आई. मैं ने उसे जवाब देने के लिए रख लिया. मगर बाद में न तो वह चिट्ठी ही फिर दिखाई दी और न ही मुझे जवाब देना याद रहा. 2 महीने बाद उस की चिट्ठी फिर आई.

मैं ने सोचा, अब की बार उसे जरूर खत लिखूंगा. मगर वह खत भी 10-15 दिन तक आंखें बिछाए मेरी तरफ देखता रहा और फिर नजरों से ओझल हो गया. एक दिन फिर उस का खत आया, जिस में लिखा था कि अगर इस बार भी आप लोगों ने जवाब नहीं दिया, तो वह फिर कभी खत नहीं लिखेगी.

एक दिन शाम को मैं ने बीवी से कहा, ‘‘क्यों न हम अपने बंटी की तरफ से नसरीन को अपनी खैरियत का जवाब दे दें?’’ ‘‘क्यों…?’’ बीवी ने इस छोटे से लफ्ज के जरीए अपनी सारी कड़वाहट मेरे मुंह पर थूक दी. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘किसी के खत का जवाब न देना मुझे जरा ठीक नहीं लगता.’’ ‘‘अच्छा…’’ उस ने हैरानी से चौंकते हुए जवाब दिया, ‘‘और किसी कुंआरी लड़की का किसी शादीशुदा आदमी को खत लिखना या किसी शादीशुदा आदमी का किसी कुंआरी लड़की के खत का जवाब देना या दिलवाना क्या ठीक लगता है?

अगर यह सब ठीक है, तो मेरी नजर में ऐसे किसी भी खत का जवाब न देना भी गलत नहीं हो सकता.’’ बीवी के हांफते हुए चेहरे को मैं ने आहिस्ता से अपने सीने से लगा लिया. उस के चेहरे पर उभर आई पसीने की बूंदें मेरे सीने को भिगो रही थीं.

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