बिना शर्त: मिन्नी के बारे में क्या जान गई थी आभा

महेश के कमरे से बाहर निकलते ही आभा के हृदय की धड़कन धीमी होने लगी. उस ने सोफे पर गरदन टिका कर आंखें बंद कर लीं.

आभा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि महेश आज उसे ऐसा उत्तर देगा जिस से उस के विश्वास का महल रेत का घरौंदा बन कर ढह जाएगा. महेश ने उस की गुडि़या सी लाड़ली बेटी मिन्नी के बारे में ऐसा कह कर उस के सपनों को चूरचूर कर दिया. पता नहीं वह कैसे सहन कर पाई उन शब्दों को जो अभीअभी महेश कह कर गया था.

वह काफी देर तक चिंतित बैठी रही. कुछ देर बाद दूसरे कमरे में गई जहां मिन्नी सो रही थी. मिन्नी को देखते ही उस के दिल में एक हूक सी उठी और रुलाई आ गई. नहीं, वह अपनी बेटी को अपने से अलग नहीं करेगी. मासूम भोली सी मिन्नी अभी 3 वर्ष की ही तो है. वह मिन्नी के बराबर में लेट गई और उसे अपने सीने से लगा लिया.

5 वर्ष पहले उस का विवाह प्रशांत से हुआ था. परिवार के नाम पर प्रशांत व उस की मां थी, जिसे वह मांजी कहती थी.

प्रशांत एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक था.

वह स्वयं एक अन्य कंपनी में काम करती थी.

2 वर्षों बाद ही उन के घरपरिवार में एक प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ. बेटी का मिन्नी नाम रखा मांजी ने. मांजी को तो जैसे कोई खिलौना मिल गया हो. मांजी और प्रशांत मिन्नी को बहुत प्यार करते थे.

एक दिन उस के हंसते, खुशियोंभरे जीवन पर बिजली गिर पड़ी थी. औफिस से घर लौटते हुए प्रशांत की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. सुन कर उसे लगा था मानो कोई भयंकर सपना देख लिया हो. पोस्टमार्टम के बाद जब प्रशांत का शव घर पर आया तो वह एक पत्थर की प्रतिमा की तरह निर्जीव हो गई थी.

मिन्नी अभी केवल 2 वर्ष की थी. उस की हंसीखुशी, सुखचैन मानो प्रशांत के साथ ही चला गया था. जब भी वह अपना शृंगारविहीन चेहरा शीशे में देखती तो उसे रुलाई आ जाती थी. कभीकभी तो वह अकेली देर तक रोती रहती.

उस के मां व बाबूजी आते रहते थे उस के दुख को कुछ कम करने के लिए. उस ने औफिस से लंबी छुट्टी ले ली थी.

एक दिन उस के बाबूजी ने उसे सम झाते हुए कहा था, ‘देख बेटी, जो दुख तु झे मिला है उस से बढ़ कर कोई दुख हो ही नहीं सकता. अब तो इस दुख को सहन करना ही होगा. यह तेरा ही नहीं, हमारा भी दुख है.’

वह चुपचाप सुनती रही.

‘बेटी, मिन्नी अभी बहुत छोटी है. तेरी आयु भी केवल 30 साल की है. अभी तो तेरे जीवन का सफर लंबा है. हम चाहते हैं कि फिर से तु झे कोई जीवनसाथी मिल जाए.’

‘नहीं, मु झे नहीं चाहिए कोई जीवनसाथी. अब तो मैं मिन्नी के सहारे ही अपना जीवन गुजार लूंगी. मैं इसे पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दूंगी. अगर मेरे जीवन में जीवनसाथी का सुख होता तो प्रशांत हमें छोड़ कर जाता ही क्यों?’ उस ने कहा था.

तब मां व बाबूजी ने उसे बहुत सम झाया था, पर उस ने दूसरी शादी करने से मना कर दिया था.

4 महीने बाद कंपनी ने उस का ट्रांस्फर देहरादून कर दिया था. वह बेटी मिन्नी के साथ देहरादून पहुंच गई थी.

देहरादून में उस की एक सहेली लीना थी. लीना का 4-5 कमरों का मकान था. लीना तो कहती थी कि उसे किराए का मकान लेने की क्या जरूरत है. यहीं उस के साथ रहे, जिस से उसे अकेलेपन का भी एहसास नहीं होगा. पर वह नहीं मानी थी.

उस ने हरिद्वार रोड पर 2 कमरों का एक फ्लैट किराए पर ले लिया था.

कुछ दिनों में उसे ऐसा लगने लगा था कि एक व्यक्ति उस में कुछ ज्यादा रुचि ले रहा है. वह व्यक्ति था महेश. कंपनी का सहायक प्रबंधक. महेश उसे किसी न किसी बहाने केबिन में बुलाता और उस से औफिस के काम के बारे में बातचीत करता.

एक दिन सुबह वह सो कर भी नहीं उठी थी कि मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. सुबहसुबह किस का फोन आ गया.

उस ने मोबाइल स्क्रीन पर पढ़ा – महेश.

महेश ने सुबहसुबह क्यों फोन किया? आखिर क्या कहना चाहता है वह? उस ने फोन एक तरफ रख दिया. आंखें बंद कर लेटी रही. फोन की घंटी बजती रही. दूसरी बार फिर फोन की घंटी बजी, तो उस ने  झुं झला कर फोन उठा कर कहा, ‘हैलो…’

‘आभाजी, आप सोच रही होंगी कि पता नहीं क्यों सुबहसुबह डिस्टर्ब कर रहा हूं जबकि हो सकता है आप सो रही हों. पर बात ही ऐसी है कि…’

‘ऐसी क्या बात है जो आप को इतनी सुबह फोन करने की जरूरत आ पड़ी. यह सब तो आप औफिस में भी…’

‘नहीं आभाजी, औफिस खुलने में अभी 3 घंटे हैं और मैं 3 घंटे प्रतीक्षा नहीं कर सकता.’

‘अच्छा, तो कहिए.’ वह सम झ नहीं पा रही थी कि वह कौन सी बात है जिसे कहने के लिए महेश 3 घंटे भी प्रतीक्षा नहीं कर पा रहा है.

‘जन्मदिन की शुभकामनाएं आप को व बेटी मिन्नी को. आप दोनों के जन्मदिन की तारीख भी एक ही है,’ उधर से महेश का स्वर सुनाई दिया.

चौंक उठी थी वह. अरे हां, आज तो उस का व बेटी मिन्नी का जन्मदिन है. वह तो भूल गई थी पर महेश को कैसे पता चला? हो सकता है औफिस की कंप्यूटर डिजाइनर संगीता ने बता दिया हो क्योंकि उस ने संगीता को ही बताया था कि उस की व मिन्नी के जन्म की तिथि एक ही है.

‘थैंक्स सर,’ उस ने कहा था.

‘केवल थैंक्स कहने से काम नहीं चलेगा, आज शाम की दावत मेरी तरफ से होगी. जिस रैस्टोरैंट में आप कहो, वहीं चलेंगे तीनों.’

‘तीनों कौन?’

‘आप, मिन्नी और मैं.’

सुन कर वह चुप हो गई थी. सम झ नहीं पा रही थी कि क्या उत्तर दे.

‘आभाजी, प्लीज मना न करना, वरना इस बेचारे का यह छोटा सा दिल टूट जाएगा,’ बहुत ही विनम्र शब्द सुनाई दिए थे महेश के.

वह मना न कर सकी. मुसकराते हुए उस ने कहा था, ‘ओके.’

शाम को वह मिन्नी के साथ रैस्टोरैंट में पहुंच गई थी जहां महेश उस की प्रतीक्षा कर रहा था. खाने के बाद जब वह घर वापस लौटी तो 10 बज रहे थे.

बिस्तर पर लेटते ही मिन्नी सो गई थी. पर उस की आंखों में नींद न थी. वह आज महेश के बारे में बहुतकुछ जान चुकी थी कि महेश के पापा एक व्यापारी हैं. वह अपने घरपरिवार में इकलौता है. मम्मीपापा उस की शादी के लिए बारबार कह रहे हैं. कई लड़कियों को वह नापसंद कर चुका है. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया है कि वह जब भी शादी करेगा तो अपनी मरजी से करेगा.

वह सम झ नहीं पा रही थी कि महेश उस की ओर इतना आकर्षित क्यों हो रहा है. महेश युवा है, अविवाहित और सुंदर है. अच्छीखासी नौकरी है. उस के लिए लड़कियों की कमी नहीं. महेश कहीं इस दोस्ती की आड़ में उसे छलना तो नहीं चाहता? पर वह इतनी कमजोर नहीं है जो यों किसी के बहकावे में आ जाए. उस के अंदर एक मजबूत नारी है. वह कभी ऐसा कोई गलत काम नहीं करेगी जिस से आजीवन प्रायश्चित्त करना पड़े.

कमल उस का मकान मालिक था. उस का फ्लैट भी बराबर में ही था. वह एक सरकारी विभाग में कार्यरत था. परिवार के नाम पर कमल, मां और 5 वर्षीय बेटा राजू थे. कमल की पत्नी बहुत तेज व  झगड़ालू स्वभाव की थी. वह कभी भी आत्महत्या करने और कमल व मांजी को जेल पहुंचाने की धमकी भी दे देती थी. रोजाना घर में किसी न किसी बात पर क्लेश करती थी. कमल ने रोजाना के  झगड़ों से परेशान हो कर पत्नी से तलाक ले लिया था.

आभा मिन्नी को सुबह औफिस जाते समय एक महिला के घर छोड़ आती थी, जहां कुछ कामकाजी परिवार अपने छोटे बच्चों को छोड़ आते थे. शाम को औफिस से लौटते समय वह मिन्नी को वहां से ले आती थी.

एक दिन मांजी ने आभा के पास आ कर कहा था, ‘बेटी, तुम औफिस जाते समय मिन्नी को हमारे पास छोड़ जाया करो. वह राजू के साथ खेलेगी. दोनों का मन लगा रहेगा. हमारे होते हुए तुम किसी तरह की चिंता न करना, आभा.’

उस दिन के बाद वह मिन्नी को मांजी के पास छोड़ कर औफिस जाने लगी.

रविवार छुट्टी का दिन था. वह मिन्नी के साथ एक शौपिंग मौल में पहुंची. लौट कर बाहर सड़क पर खड़ी औटो की प्रतीक्षा कर रही थी, तभी एक बाइक उस के सामने रुकी, बाइक पर बैठे कमल ने कहा, ‘आभाजी, आइए बैठिए.’

वह चौंकी, ‘अरे आप? नहींनहीं, कोई बात नहीं, मैं चली जाऊंगी. थ्रीव्हीलर मिल जाएगा.’

‘क्यों, टूव्हीलर से काम नहीं चलेगा क्या? इस ओर मेरा एक मित्र रहता है. बस, उसी से मिल कर आ रहा हूं. यहां आप को देखा तो मैं सम झ गया कि आप किसी बस या औटो की प्रतीक्षा में हैं. आइए, आप जहां कहेंगी, मैं आप को छोड़ दूंगा.’

‘मु झे पलटन बाजार जाना है,’ उस ने बाइक पर बैठते हुए कहा.

‘ओके मैडम. घर पहुंच कर मां को मेरे लिए भी एक रस्क का पैकेट दे देना.’ उस ने रस्क के कई पैकेट खरीदे थे जो कमल ने देख लिए थे.

‘ठीक है,’ उस ने कहा था.

कमल उसे व मिन्नी को पलटन बाजार में छोड़ कर चला गया.

आभा कभीकभी मांजी व कमल के बारे में सोचती कि कितना अच्छा स्वभाव है दोनों का. हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं. दोनों ही बहुत मिलनसार व परोपकारी हैं.

अकसर मांजी राजू को साथ ले कर उस के पास आ जाती थीं. राजू और मिन्नी खेलते रहते. वह मांजी के साथ बातों में लगी रहती.

एक दिन मांजी ने कहा था, ‘आभा, हमारे साथ तो कुछ भी ठीक नहीं हुआ. ऐसी  झगड़ालू बहू घर में आ गई थी कि क्या बताऊं. बहू थी या जान का क्लेश. हमें तो तुम जैसी सुशील बहू चाहिए थी.’

वह कुछ नहीं बोली. बस, इधरउधर देखने लगी.

धीरेधीरे उस के व महेश के संबंधों की दूरी घटने लगी थी. महेश ने उस से कह दिया था कि वह जल्द ही उस के जीवन का हमसफर बन जाएगा. उसे भी लग रहा था कि उस ने महेश की ओर हाथ बढ़ा कर कुछ गलत नहीं किया है.

आज शाम जब वह रसोई में थी तो महेश का फोन आ गया था, ‘मैं कुछ देर बाद आ रहा हूं. कुछ जरूरी बात करनी है.’ ऐसी क्या जरूरी बात है जो महेश घर आ कर ही बताना चाहता है. उस ने जानना भी चाहा, परंतु महेश ने कह दिया था कि वहीं घर आ कर बताएगा.

एक घंटे बाद महेश उस के पास आ गया.

‘क्या लोगे? ठंडा या गरम?’ उस ने पूछा था.

‘कुछ नहीं.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है? कोल्डडिं्रक्स ले लीजिए,’ कहते हुए वह रसोई की ओर चली गई. जब लौटी तो ट्रे में 2 गिलास कोल्डडिं्रक्स के साथ खाने का कुछ सामान था.

‘अब कहिए अपनी जरूरी बात,’ उस ने मुसकरा कर महेश की ओर देखते हुए कहा.

‘आज मम्मीपापा आए हैं दिल्ली से. मैं ने उन को सबकुछ बता दिया था. यह भी कह दिया था कि शादी करूंगा तो केवल आभा से. कल वे तुम से मिलने आ रहे हैं,’ महेश ने उस की ओर देखते हुए कहा था. उस के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाएं फैलने लगीं.

‘मम्मीपापा ने इस शादी की स्वीकृति तो दे दी है, परंतु एक शर्त रख दी है.’

वह चौंक उठी, ‘शर्त, कैसी शर्त?’

‘वे कहते हैं कि शादी के बाद मिन्नी किसी होस्टल में रहेगी या नानानानी के पास रहेगी.’

यह सुन कर मन ही मन तड़प उठी थी वह. उस ने कहा, ‘यह तो मम्मीपापा की शर्त है, आप का क्या कहना है?’

‘देखो आभा, मेरी बात को सम झने की कोशिश करो. मिन्नी को अच्छे स्कूल व होस्टल में भेज देंगे. हम उस से मिलते भी रहेंगे.’

‘नहीं, महेश ऐसा नहीं हो सकता. मैं मिन्नी के बिना और मिन्नी मेरे बिना नहीं रह सकती.’

‘ओह आभा, तुम सम झती क्यों नहीं.’

‘मु झे कुछ नहीं सम झना है. मैं एक मां हूं. मिन्नी मेरी बेटी है. आप ने यह कैसे कह दिया कि मिन्नी होस्टल में रह लेगी. मैं अपनी मिन्नी को अपने से दूर नहीं कर सकती.’

‘तब तो बहुत कठिन हो जाएगा, आभा. मम्मीपापा नहीं मानेंगे.’

‘कोई बात नहीं. आप अपने मम्मीपापा का कहना मानो. वैसे भी शर्तों के आधार पर जीवन में साथसाथ नहीं चला जा सकता,’ उस ने दुखी मन से कहा था.

‘सोच लेना, आभा, सारी रात है. कल मु झे जवाब दे देना.’

‘मेरा निर्णय तो सदा यही रहेगा कि जो मु झे मेरी बेटी से दूर करना चाहता है उस के साथ मैं सपने में भी नहीं रह सकती.’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा था.

कुछ देर बाद महेश उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था.

विचारों में डूबतेतैरते आभा को नींद आ गई थी. सुबह आभा की आंख खुली तो सिर में दर्द हो रहा था और उठने को मन भी नहीं कर रहा था. रात की बातें याद आने लगीं. हृदय पर फिर से भारी बो झ पड़ने लगा. क्या महेश ऊपरी मन से मिन्नी को प्रेम व दुलार देता था? मिन्नी को बेटीबेटी कहना केवल दिखावा था. यदि वह पहले ही यह सब जान जाती तो महेश की ओर कदम ही न बढ़ाती. महेश भी तो मिन्नी को उस से दूर करना चाहता है.

नहीं, वह मिन्नी को कभी स्वयं से दूर नहीं करेगी. प्रशांत के जाने के बाद उस ने मिन्नी को पढ़ालिखा कर किसी योग्य बनाने का लक्ष्य बनाया था. पर जब महेश ने उस की ओर हाथ बढ़ाया तो वह स्वयं को रोक नहीं पाई थी.

दोपहर को आभा के मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर महेश का नाम था. उस ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘आभा, आज आप औफिस नहीं आईं?’’ स्वर महेश का था.

‘‘हां, आज तबीयत ठीक नहीं है, औफिस नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘दवा ले लेना. मेरी जरूरत हो तो फोन कर देना. मैं डाक्टर के यहां ले चलूंगा.’’

‘‘ठीक है.’’

उधर से मोबाइल बंद हो गया. आभा मन ही मन तड़प कर रह गई. उस ने सोचा था कि शायद महेश यह कह देगा कि मिन्नी हमारे साथ ही रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. अब वह एक अंतिम निर्णय लेने पर विवश हो गई. ठीक है जब महेश को उस की बेटी मिन्नी की जरा भी चिंता नहीं है तो उसे क्या जरूरत है महेश के बारे में सोचने की.

दोपहर बाद मांजी आभा के पास आईं और बोलीं, ‘‘अरे बेटी, आज तुम औफिस नहीं गईं?’’

‘‘मांजी, आज तबीयत कुछ खराब थी, इसलिए औफिस से छुट्टी कर ली.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? मु झे बता देती. मैं कमल से कह कर दवा मंगा देती. कहीं डाक्टर को दिखाना है तो मैं शाम को तेरे साथ चलूंगी.’’

‘‘नहींनहीं, मांजी. मामूली सा सिरदर्द था, अब तो ठीक भी हो गया है. आप चिंता न करें.’’

‘‘तू मेरी बेटी की तरह है. बेटी की चिंता मां को नहीं होगी तो फिर किसे होगी?’’ मांजी ने आभा की ओर देखते हुए कहा.

आभा मांजी की ओर देखती रह गई. ठीक ही तो कह रही हैं मांजी. बेटी की चिंता मां नहीं करेगी तो कौन करेगा. उस के चेहरे पर प्रसन्नता फैल गई. वह कुछ नहीं बोली.

‘‘बेटी, बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रही थी, पर डर रही थी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ,’’ मांजी बोलीं.

‘‘मांजी, आप कहिए. मां की बात का बेटी भी कहीं बुरा मानती है क्या?’’

‘‘बेटी, तुम तो हमारे छोटे से घरपरिवार के बारे में जानती हो. कमल में कोई ऐब नहीं है. उस की आयु भी ज्यादा नहीं है. जब भी उस से दूसरी शादी की बात करती हूं तो मना कर देता है. उसे डर है कि दूसरी लड़की भी तेज झगड़ालू आदत की आ गई तो यह घर घर न रहेगा.’’

आभा सम झ गई जो मांजी कहना चाहती हैं लेकिन वह चुप रही.

मांजी आगे बोलीं, ‘‘बेटी, जब से तुम हमारे यहां किराएदार बन कर आई हो, मैं तुम्हारा व्यवहार अच्छी तरह परख चुकी हूं. राजू और मिन्नी भी आपस में हिलमिल गए हैं. तुम्हारे औफिस जाने के बाद दोनों आपस में खूब खेलते हैं. मैं चाहती हूं कि तुम हमारे घर में बहू बन कर आ जाओ. राजू को बहन और मिन्नी को भाई मिल जाएगा. कमल भी ऐसा ही चाहता है. मैं बहुत आशाएं ले कर आई हूं, निराश न करना अपनी इस मांजी को.’’

सुनते ही आभा की आंखों के सामने महेश और कमल के चेहरे आ गए. कितना अंतर है दोनों में. महेश तो अपने मम्मीपापा के कहने में आ कर बेटी मिन्नी को उस से दूर करना चाहता है जबकि मांजी मिन्नी को अपने पास ही रखना चाहती हैं. इस में तो कमल की भी स्वीकृति है.

‘‘क्या सोच रही हो, बेटी? मु झे तुम्हारा उत्तर चाहिए. यदि तुम ने हमारे राजू को अपना बेटा बना लिया तो मेरी बहुत बड़ी चिंता दूर हो जाएगी,’’ मांजी ने आभा की ओर देखा.

आभा कुछ नहीं बोली. वह चुपचाप उठी, साड़ी का पल्लू सिर पर किया और मुड़ कर मांजी के चरण छू लिए.

मांजी को उत्तर मिल गया था. वे प्रसन्नता से गदगद हो कर बोलीं, ‘‘मु झे तुम से ऐसी ही आशा थी, बेटी. सदा सुखी रहो. तुम अपने मम्मीपापा को बुला लेना. उन से भी बात करनी है.’’

‘‘अच्छा मांजी.’’

‘‘और हां, आज रात का खाना हम सभी इकट्ठा खाएंगे.’’

‘‘खाना मैं बनाऊंगी, मांजी. मैं आप की और कमल की पसंद जानती हूं.’’

‘‘ठीक है, बेटी. अब मैं चलती हूं. कमल को भी यह खुशखबरी सुनाना चाहती हूं. उस से कह दूंगी कि औफिस से लौटते समय मिठाई का डब्बा लेता आए क्योंकि आज सभी का मुंह मीठा कराना है,’’ मांजी ने कहा और कमरे से बाहर निकल गईं.

अगले दिन सुबह जब आभा की नींद खुली तो 7 बज रहे थे. रात की बातें याद आते ही उस के चेहरे पर प्रसन्नता दौड़ने लगी. रात खाने की मेज पर कमल, मांजी, वह, राजू और मिन्नी बैठे थे. खाना खाते समय कमल व मांजी ने बहुत तारीफ की थी कि कितना स्वादिष्ठ खाना बनाया है. हंसी, मजाक व बातों के बीच पता भी न चला कि कब 2 घंटे व्यतीत हो गए. उसे बहुत अच्छा लगा था.

वह आंखें बंद किए अलसाई सी लेटी रही. बराबर में मिन्नी सो रही थी.

अगली सुबह आभा नाश्ता कर रही थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने देखा कौल महेश की थी.

‘‘हैलो,’’ वह बोली.

‘‘अब कैसी हो, आभा?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मैं ने मम्मीपापा को मना लिया है. वे बहुत मुश्किल से तैयार हुए हैं. अब मिन्नी हमारे साथ रह सकती है.’’

‘‘आप को अपने मम्मीपापा को जबरदस्ती मनाने की जरूरत नहीं थी.’’

‘‘मैं कुछ सम झा नहीं?’’

‘‘सौरी महेश, आप ने थोड़ी सी देर कर दी. अब तो मैं अपनी मिन्नी के साथ काफी दूर निकल चुकी हूं. अब लौट कर नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘आभा, तुम क्या कह रही हो, मेरी सम झ में कुछ नहीं आ रहा है,’’ महेश का परेशान व चिंतित सा स्वर सुनाई दिया.

‘‘अभी आप इतना ही सम झ लीजिए कि मु झे बिना शर्त का रिश्ता यानी अपना घरपरिवार मिल गया है, जहां मिन्नी को ले कर कोई शर्त नहीं. मिन्नी भी साथ रहेगी. आप अविवाहित हैं, आप की शादी भी जल्द हो जाएगी. मैं आज औफिस आ रही हूं, बाकी बातें वहां आ कर सम झा दूंगी,’’ यह कह कर आभा ने मोबाइल बंद कर दिया और निश्चिंत हो कर नाश्ता करने लगी.

एक थी मालती : बेटी हो तो ऐसी

यकीन करना मुश्किल था कि 20 साल पहले मैं उस कमरे में रहता था. पर बात तो सच थी. साल 1990 से ले कर साल 1993 तक छपरा में पढ़ाई के दौरान मैं ने रहने के कई ठिकाने बदले, पर जो लगाव पंडित शिव शंकर के मकान से हुआ, वह बहुत हद तक आज भी कायम है.

वह खपरैल के छोटेछोटे 8-10 कमरों का लौज था. उन्हीं में से एक कमरे में मैं रहता था. किराया 70 रुपए से शुरू हो कर मेरे वहां से हटतेहटते 110 रुपए तक पहुंच गया था. यह बात दीगर है कि मैं ने कभी समय पर किराया दिया नहीं. पंडित का बस चले तो आज भी सूद समेत मुझ से कुछ उगाही कर लें.

एक बार तो पंडित ने मेरे कुछ दोस्तों से कह भी दिया था कि भाई उन से कहिए कि उलटा हम से 2 महीने का किराया ले लें और हमारा मकान खाली कर दें.

पंडित का होटल भी था, जहां 5 रुपए में भरपेट खाने का इंतजाम था. मेरा खाना भी अकसर वहीं होता था. पंडिताइन तकरीबन आधा दिन गोबर और मिट्टी में ही लगी रहतीं. कभी उपले बनातीं, कभी मिट्टी के बरतन.

जब खाने जाओ, झट से हाथ धोतीं और चावल परोसने लगतीं. सच कहूं, उस वक्त बिलकुल नफरत नहीं होती थी, बल्कि गोबर और मिट्टी की खुशबू से खाने में और स्वाद आ जाता.

उन की एक बेटी थी मालती. साल 1993 में उधर उस की शादी हुई, इधर मैं ने मकान खाली किया. वैसे, मालती से मेरा कोई खास नजदीकी रिश्ता नहीं था, मगर उस के जाने के बाद एक अजीब सा सूनापन नजर आ रहा था. मन उचट सा गया था, इसलिए मैं ने वहां से जाने का तय किया.

इस के पहले कि दूसरा ठिकाना खोजता, मेरी नौकरी लग गई और मैं ने छपरा को अलविदा कह दिया.

20 साल बाद छपरा में एक दिन मैं बारिश में बुरी तरह घिर गया और मेरी मोटरसाइकिल बंद हो गई. सोचा, क्यों न मोटरसाइकिल को पंडित के घर रख दें, कल फिर आ कर ले जाएंगे.

मैं मोटरसाइकिल को धकेलते और बारिश में भीगता हुआ वहां पहुंचा. पंडित का होटल अब मिठाई की दुकान में तबदील हो गया था.

पंडिताइन मुझे देखते ही पहचान गईं. वे चाय बनाने लगीं. मैं ने उन से कहा, ‘‘आप चाय बनाइए, तब तक मैं अपना कमरा देख कर आता हूं जहां मैं रहता था.’’

मैं पीछे लौज की ओर गया. सारे कमरे तकरीबन गिर चुके थे. अपने कमरे के दरवाजे को मैं प्यार से सहलाने लगा, तभी मेरी नजर एक चित्र पर गई. दिल का रेखाचित्र और बीच में इंगलिश का एम देख कर यादें ताजा हो गईं.

एक दिन मैं ने मालती से कहा था, ‘अबे ओ बौनी, नकचढ़ी, नाक से बोलने वाली लड़की, तेरा यह कमरा मैं तभी खाली करूंगा, जब तू ससुराल चली जाएगी.’

इस पर मालती बनावटी गुस्से में बोली थी, ‘यह मेरा मकान है. जब चाहें तब निकाल दें तुम्हें… यह लो…’ और उस ने खुरपी से दरवाजे पर दिल का रेखाचित्र बनाया और बीच में एम लिख दिया.

मालती का कद काफी छोटा था. लौज के सारे लड़के उसे बौनी कहते थे, मगर उस के पीछे. वे जानते थे कि मालती बड़ी गुस्सैल है, सुन लेगी तो खुरपी चला देगी.

पर, यह हिम्मत मैं ने की. एक दिन उस से कहा, ‘ऐ तीनफुटिया, जरा अपनी दुकान से चाय ला कर तो दे.’

उस ने भी पलट कर कहा था, ‘चाय नहीं, जहर ला कर दूंगी भालू…’

हमारे नहाने का कार्यक्रम खुले में होता था नल के नीचे और मालती ने बालों से भरा मेरा बदन देख लिया था, इसलिए वह मुझे भालू कहती थी.

मैं समझ गया कि उसे बुरा नहीं लगा था. कुछ मस्ती मैं कर रहा था, कुछ वह. फिर तो मस्ती का सिलसिला चल पड़ा.

पंडित के घर के पिछले हिस्से में लौज था. अगले हिस्से में वे रहते थे. बीच में एक पतली गली थी.

मालती हम लोगों के लिए अलार्म का काम भी करती थी. सुबहसुबह गाय ले कर उस गली से गुजरती तो जोर से आवाज लगाती थी, ‘कौनकौन जिंदा है? जो जिंदा है, वह उठ जाए. जो मर गया, उस का राम नाम सत्य.’

मैं जानता था कि मरने वाली बात वह मेरे लिए बोलती थी, क्योंकि मैं सुबह देर तक सोता था. खैर, उस के इसी डायलौग से मेरी नींद खुलती थी. फिर भी कभी अगर नींद नहीं खुलती तो मारटन टौफी चला कर मारती. उन दिनों बिहार में मारटन टौफी का खूब प्रचलन था.

पंडित की एक राशन की दुकान भी थी, जहां उन का बेटा यानी मालती का बड़ा भाई बैठता था. उस समय मैं महज 19 साल का था. इतनी समझ नहीं थी. मैं ने मालती की राशन की दुकान का भरपूर फायदा उठाया. जब कभी वह गली से गुजरती, मैं अपनेआप से ही जोरजोर से कहता, ‘यार, कोलगेट खत्म हो गया. पैसे भी नहीं हैं. मालती बहुत अच्छी लड़की है. उस से कह दो तो कोलगेट क्या पूरी दुकान ला कर दे दे…’

फिर क्या था. थोड़ी देर बाद दरवाजे पर कोलगेट पड़ा मिलता. फिर तो कभी साबुन, कभीकभी चीनी, कभी कुछ मैं अपनी जुगत से हासिल करने लगा.

एक दिन मालती गली में टकरा गई. वह बोली, ‘तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो, दिनरात जो तारीफ करते हो. क्या सचमुच मैं उतनी अच्छी और सुंदर हूं?’

मैं ने उस से मुसकरा कर कहा, ‘तुम तो बहुत सुंदर हो. सिर्फ थोड़ा कद छोटा है, नाक थोड़ी टेढ़ी है, दांत खुरपी जैसे हैं और गरदन कबूतर जैसी. बाकी कोई कमी नहीं. सर्वांग सुंदरी हो.’

वह लपकी, ‘तुम किसी दिन मेरी खुरपी से कटोगे. अब खा लेना मारटन टौफी…’

शरारतों का सिलसिला यों ही चलता रहा. एक दिन उस का रिश्ता आया. बाद में पता चला कि लड़के वालों ने उसे नापसंद कर दिया. यह मालती के लिए सदमे जैसा था. कई दिनों तक वह घर से नहीं निकली और जब निकली तो बदल चुकी थी. वह चंचल लड़की अब मूक गुडि़या बन चुकी थी.

एक दिन मैं ने उसे गली में घेर लिया और पूछा, ‘तू आजकल इतनी शांत कैसे हो गई?’

वह बोली, ‘तुम झूठे हो. कहते थे कि मालती सुंदर है, पर लड़के वाले रिजैक्ट कर के चले गए.’

मैं ने उसे समझाया, ‘धत पगली, वह लड़का ही तेरे लायक नहीं था. तेरे नसीब में तो कोई राजकुमार है.’

वह भोलीभाली मालती फिर से मेरी बातों का यकीन कर बैठी. अब फिर वह पहले की तरह चहकने लगी और कुछ दिनों बाद सचमुच उस की शादी तय हो गई.

उस ने मुझ से पूछा, ‘तुम मेरी शादी में आओगे न?’

मैं ने चिरपरिचित अंदाज में जवाब दिया, ‘चाहे धरती इधर की उधर हो जाए, मैं तेरी शादी जरूर अटैंड करूंगा.’

उस की शादी हो गई. संयोग देखिए, जिस दिन शादी थी, उसी दिन मेरा पटना में इम्तिहान था. मैं शादी अटैंड नहीं कर सका. मालती चली गई थी अपने साथ सारी ऊर्जा ले कर.

मालती के जाने के बाद कुछ खालीखाली सा लगने लगा था. समझ में नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. कहां चली गई ऊर्जा. ऐसा कब तक चल सकता था? कुछ दिनों बाद मैं ने भी वह कमरा खाली कर दिया.

मैं अपनी यादों से लौट आया. पंडिताइन की चाय तैयार थी. मैं चाय पी ही रहा था कि पंडितजी भी आ गए.

बातोंबातों में मैं ने उन से पूछा, ‘‘मालती कैसी है? आजकल वे कहां रहती है?’

तब पंडिताइन ने डबडबाई आंखों से बताया, ‘‘मालती… वह अब इस दुनिया में नहीं है.’’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. कांपती आवाज में मैं ने पूछा, ‘‘कब हुआ यह सब?’’

पंडिताइन ने आंखें पोंछते हुए कहा,  ‘‘शादी के 2 साल बाद ही. डिलीवरी के दौरान जच्चाबच्चा दोनों.’’

ओह… तब मैं ने सोचा कि कितना बदनसीब हूं मैं. एक लड़की, जो मुझे बेइंतिहा चाहती थी, न मैं उस की शादी में शामिल हो सका और न ही जनाजे में. और तो और उस की मौत की खबर भी मिली उस के मरने के इतने साल बाद.

गलत फैसला : सुखराम चंदा गांव पहुंचा तो क्या देखा

रौयल स्काई टावर को बनते हुए 2 साल हो गए. आज यह टावर शहर के सब से ऊंचे टावर के रूप में खड़ा है. सब से ऊंचा इसलिए कि आगरा शहर में यही एक 22 मंजिला इमारत है. जब से यह टावर बन रहा है, हजारों मजदूरों के लिए रोजीरोटी का इंतजाम हुआ है. इस टावर के पास ही मजदूरों के रहने के लिए बनी हैं झोंपड़ियां.

इन्हीं झोंपड़ियों में से एक में रहता है सुखराम अपनी पत्नी चंदा के साथ. सुखराम और चंदा का ब्याह 2 साल पहले ही हुआ था. शादी के बाद ही उन्हें मजदूरी के लिए आगरा आना पड़ा. वे इस टावर में सुबह से शाम तक साथसाथ काम करते थे और शाम से सुबह तक का समय अपनी झोंपड़ी में साथसाथ ही बिताते थे. इस तरह एक साल सब ठीकठाक चलता रहा.

एक दिन चंदा के गांव से चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था कि चंदा के एकलौते भाई पप्पू को कैंसर हो गया है और उन के पास इलाज के लिए पैसे का कोई इंतजाम नहीं है.

सुखराम को लगा कि ऐसे समय में चंदा के भाई का इलाज उस की जिम्मेदारी है, पर पैसा तो उस के पास भी नहीं था, इसलिए उस ने यह बात अपने साथी हरिया को बता कर उस से सलाह ली.

हरिया ने कहा, ‘‘देखो सुखराम, गांव में तुम्हारे पास घर तो है ही, क्यों न घर को गिरवी रख कर बैंक से लोन ले लो. बैंक से लोन इसलिए कि घर भी सुरक्षित रहेगा और बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.’’

कहते हैं कि बुरा समय जब दस्तक देता है, इनसान भलेबुरे की पहचान नहीं कर पाता. यही सुखराम के साथ हुआ. उस ने हरिया की बात पर ध्यान न दे कर यह बात ठेकेदार लाखन को बताई.

लाखन ने उस से कहा, ‘‘क्यों चिंता करता है सुखराम, 20,000 रुपए भी चाहिए तो ले जा.’’

सुखराम ने चंदा को बिना बताए लाखन से 20,000 रुपए ले लिए और चंदा के भाई का इलाज शुरू हो गया.

चंदा समझ नहीं पा रही थी कि इतना पैसा आया कहां से, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘इतना पैसा आप कहां से लाए?’’

तब सुखराम ने लाखन का गुणगान किया. जब कुछ दिनों बाद पप्पू चल बसा, तो उस के अंतिम संस्कार का इंतजाम भी सुखराम ने ही किया.

इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद सुखराम की मां भी चल बसीं. वे गांव में अकेली रहती थीं, इसलिए पड़ोसी ही मां का सहारा थे. पड़ोसियों ने सुखराम को सूचित किया.

सुखराम चंदा के साथ गांव लौटा और मां का अंतिम संस्कार किया.  जिंदगीभर गांव में खाया जो था, इसलिए खिलाना भी जरूरी समझा.

मकान सरपंच को महज 15,000 रुपए में बेच दिया. तेरहवीं कर के आगरा लौटने तक सुखराम के सभी रुपए खर्च हो चुके थे, क्योंकि गांव में मां का भी बहुत लेनदेन था.

इतिहास गवाह है कि चक्रव्यूह में घुसना तो आसान होता है, पर उस में से बाहर निकलना बहुत मुश्किल. जिंदगी के इस चक्रव्यूह में सुखराम भी बुरी तरह फंस चुका था. जैसे ही वह आगरा लौटा, शाम होते ही लाखन शराब की बोतल हाथ में लिए चला आया.

वह सुखराम से बोला, ‘‘सुखराम, मुझे अपना पैसा आज ही चाहिए और अभी…’’

सुखराम ने उसे अपनी मजबूरी बताई. वह गिड़गिड़ाया, पर लाखन पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘तुम्हारी परेशानी तुम जानो, मुझे तो मेरा पैसा चाहिए. जब मैं ने तुम्हें पैसा दिया है, तो मु   झे वापस भी चाहिए और वह भी आज ही.’’

सुखराम और चंदा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वे उस के सामने मिन्नतें करने लगे.

लाखन ने कुटिलता के साथ चंदा की ओर देखा और बोला, ‘‘ठीक है सुखराम, मैं तु   झे कर्ज चुकाने की मोहलत तो दे सकता हूं, लेकिन मेरी भी एक शर्त है. हफ्ते में एक बार तुम मेरे साथ शराब पियोगे और घर से बाहर रहोगे… उस दिन… चंदा के साथ… मैं…’’

इतना सुनते ही सुखराम का चेहरा तमतमा उठा. उस ने लाखन का गला पकड़ लिया. वह उसे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देना चाहता था, लेकिन क्या करता? वह मजबूर था. चंदा चाहती थी कि उस की जान ले ले, मगर वह

खून का घूंट पी कर रह गई. उस के पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जब लाखन नहीं माना और उस ने सुखराम के साथ मारपीट शुरू कर दी तो चंदा लाखन के आगे हाथ जोड़ कर सुखराम को छोड़ने की गुजारिश करने लगी.

लाखन ने सुखराम की कनपटी पर तमंचा रख दिया तो वह मन ही मन टूट गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे, इसलिए कलेजे पर पत्थर रख कर उस ने लाखन को अपने शरीर से खेलने की हामी भर दी.

लाखन बहुत खुश हुआ, क्योंकि चंदा गजब की खूबसूरत थी. उस का जोबन नदी की बाढ़ की तरह उमड़ रहा था. उस की आंखें नशीली थीं. यही वजह थी कि पिछले 2 साल से लाखन की बुरी नजर चंदा पर लगी थी.

बुरे समय में पति का साथ देने के लिए चंदा ने ठेकेदार लाखन के साथ सोना स्वीकार किया और सुखराम की जान बचाई.

सुखराम ने उस दिन से शराब को गम भुलाने करने का जरीया बना लिया. इस तरह हवस के कीचड़ में सना लाखन चंदा की देह को लूटता रहा. जब सुखराम को पता चला कि चंदा पेट से है, तो उस ने चंदा से बच्चा गिराने की बात की, पर वह नहीं मानी.

सुखराम बोला, ‘‘मैं उस बच्चे को नहीं अपना सकता, जो मेरा नहीं है.’’

चंदा ने उसे बहुत समझाया, पर वह न माना. चंदा ने भी अपना फैसला सुना दिया, ‘‘मैं एक औरत ही नहीं, एक मां भी हूं. मैं इस बच्चे को जन्म ही नहीं दूंगी, बल्कि उसे जीने का हक भी दूंगी.’’

इस बात पर दोनों में झगड़ा हुआ. सुखराम ने कहा, ‘‘ठेकेदार के साथ सोना तुम्हारी मजबूरी थी, पर उस के बच्चे को जन्म देना तो तुम्हारी मजबूरी नहीं है.’’

चंदा ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हारा साथ देने के लिए मैं ने ऐसा घोर अपराध किया था, लेकिन अब मैं कोई गलती नहीं करूंगी… जो हमारे साथ हुआ, उस में इस नन्हीं सी जान का भला क्या कुसूर? जो भी कुसूर है, तुम्हारा है.’’

इस के बाद चंदा सुखराम को छोड़ कर चली गई. वह कहां गई, किसी को नहीं मालूम, पर आज सुखराम को हरिया की कही बात याद आई. वह सिसक रहा था और सोच रहा था कि काश, उस ने गलत फैसला न लिया होता.

एक बार फिर : लिवइन का लफड़ा

आरोही ने रात 8 बजे औफिस सेनिकलते ही जयको फोन किया, ‘‘मैं अभी निकली हूं, तुम घर पहुंच गए?’’‘‘हां, जल्दी फ्री हो गया था, सीधे घर ही आ गया. औफिस नहीं आया फिर.’’

‘‘डिनर का क्या करना है? कुछ बना लोगे या और्डर करना है? मु  झे भी घर आतेआते 1 घंटा तो लग ही जाएगा.’’‘‘और्डर कर दो यार, कुछ बनाने का मन नहीं… और हां आइसक्रीम भी खत्म हो गई है, वह भी और्डर कर दो.’’आरोही ने फोन रख दिया, दिन काफी व्यस्त रहा था, शारीरिक और मानसिक रूप से काफी थक गई थी. अभी भी दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था…

जय और आरोही एक ही कंपनी में अलगअलग डिवीजन में काम करते हैं. आरोही पुणे की है और मुंबई में 2 साल से एक बड़ी कंपनी में जय से बड़ी पोस्ट पर है और बहुत अच्छी तरह अपनी लाइफ जी रही है. जय के साथ 1 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है.

दोनों एक मीटिंग में मिले थे, एक ही बिल्डिंग में दोनों के औफिस हैं, बस अलगअलग हैं, जय दिल्ली का है. दोनों एकदूसरे के साथ खुशीखुशी फ्लैट शेयर कर रहे हैं और काम भी मिलबांट कर करते हैं.दोनों के परिवार वालों को नहीं पता कि दोनों लिव इन में रहते हैं.

आरोही का जय का मस्त स्वभाव बहुत अच्छा लगता है. जय को आरोही का जिम्मेदार स्वभाव भाता है. दोनों एकदूसरे से बिलकुल अलग हैं पर एकदूसरे को बहुत पसंद करते हैं. मगर आजकल जय के बारे में जितनी गहराई से सोचती जा रही थी, कहीं कुछ खल रहा था, जिस पर पहले कभी ध्यान नहीं गया था…

तभी उस की मम्मी रेखा का फोन आ गया, दिन में एक बार आरोही की अपनी फैमिली से बात हो ही जाती. बात कर के आरोही ने डिनर और्डर कर दिया. वह जब घर पहुंची, जय कोई मूवी देख रहा था. फ्रैश हो कर आरोही भी लेट गई. इतने में खाना भी आ गया.आरोही ने कहा, ‘‘चलो जय, खाना लगा लें?’’

‘‘प्लीज, तुम ही लगा लो, मूवी छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा है,’’ जय ने कहतेकहते आरोही को फ्लाइंग किस दे दिया. आरोही मुसकरा दी. दोनों ने डिनर साथ किया.

मूवी खत्म होने पर जब जय सोने आया, आरोही लेटीलेटी फोन पर ही कुछ देख रही थी. जय ने आरोही के पास लेट कर अपनी बांहों में भर लिया.आरोही भी उस के सीने से लगती हुई बोली, ‘‘कैसा था

दिन?’’‘‘बोर.’’आरोही चौंकी, ‘‘क्यों?’’‘‘बहुत काम करना पड़ा.’’

‘‘तो इस में बुराई क्या है?’’‘‘अरे यार, मेरा मन ही नहीं करता कोई काम करने का,

मन होता है कि बस आराम करूं. घर में भी सब मु  झे कामचोर कहते हैं,’’

जय ने हंसते हुए बताया और आगे शरारत से कहा, ‘‘असल में बस मन यही होता है कि या आराम करूं या तुम्हें प्यार.’’‘‘पर डियर, खाली आराम या मु  झे प्यार करने से तो लाइफ नहीं चलेगी न?’’

‘‘चल जाएगी बड़े आराम से… देखो, तुम्हारी सैलरी मु  झ से बहुत ज्यादा है, इस में हमारा घर आसानी से चल सकता है और तुम हो भी अपने पेरैंट्स की इकलौती संतान, वहां का भी सब तुम्हारा है. चलो, शादी कर लेते हैं. मजा आ जाएगा,’’

कहतेकहते जय उस के थोड़ा और नजदीक आ गया.2 युवा दिलों की धड़कनें जब तेज होने लगीं तो बाकी बातों की फिर जगह न रही. सब भूल दोनों एकदूसरे में खोते चले गए. अगले कुछ दिन तो रोज की तरह ही बीते, दोनों पतिपत्नी तो नहीं थे पर लिव इन में रहने वाले रहते तो पतिपत्नी की ही तरह हैं.

रिश्ते पर मुहर नहीं लगी होती है पर रिश्ता तो होता ही है.कभी नोक  झोंक भी होती, फिर रूठनामनाना भी होता, पर कुछ बातें आरोही को आजकल सचमुच खल रही थीं, बातें तो छोटी थीं पर उन पर ध्यान तो जा ही रहा था. हर तरह के खर्च आरोही के ही जिम्मे आते जा रहे थे,

सारे बिल्स, खानेपीने के सामान की जिम्मेदारी, फ्लैट का किराया भी काफी दिन से जय ने नहीं दिया था. यह विषय आने पर कहता कि यार, तुम तो मु  झ से ज्यादा कमाती हो,

मेरे पास तो प्यार है, बस. ऐसा नहीं कि जय की सैलरी बहुत कम थी, हां, आरोही जितनी नहीं थी. इस पर आरोही कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पर जय को इतना प्यार करने लगी थी कि उस से पैसों की बात करना उसे बहुत छोटी बात लगती थी.

वह यही सोचती कि एक दिन तो दोनों शादी कर ही लेंगे, क्या फर्क पड़ता है, पर जितना जय को दिन ब दिन जान रही थी, वह मन ही मन थोड़ा अलर्ट हो रही थी. 6 महीने और बीते, आरोही ने नोट किया, जय जब भी अपने घर दिल्ली जाता, वहां से उसे न कोई फोन करता, न किसी तरह का कोई मतलब रखता. एक दिन उस के कलीग रवि ने आरोही को हिंट दिया कि जय अपने पेरैंट्स की पसंद की लड़की से शादी करने के लिए तैयार है,

इसलिए उस के दिल्ली के चक्कर बढ़ गए हैं.आरोही के लिए यह एक बड़ा   झटका था. वह अकेले में खूब रोई, सचमुच जय को अपना जीवनसाथी मानने लगी थी. बहुत दुखी भी रही पर वह आजकल की हिम्मती, आत्मनिर्भर और इंटैलीजैंट लड़की थी. जीभर कर रोने के बाद वह सोचने लगी कि अच्छा हुआ,जय की सचाई पता चल गई. वही तो सारे खर्च, सारे काम करती आ रही थी. ठीक है, अब ब्रेकअप होगा, ठीक है, कोई बात नहीं, दुनिया में न जाने कितनी लड़कियों के साथ ऐसा होता है. मैं एक चालाक लड़के के लिए अब और नहीं रोऊंगी, एक बार फिर अपनी लाइफ शुरू करूंगी.

जय जब वापस आया तो आरोही ने उसे लंच टाइम में औफिस की कैंटीन में आने के लिए कहा और सीधेसीधे बात करना शुरू किया, ‘‘देखो जय, मु  झे साफसाफ बात करना पसंद है… अब हम साथ नहीं रह सकते.’’जय चौंका, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मैं और बेवकूफ नहीं बन सकती, तुम आराम से अपने पेरैंट्स की मरजी से शादी करो, मु  झे कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं तुम्हारे साथ रह कर काफी आर्थिक रूप से नुकसान उठा चुकी हूं.

अब इतनी भी बेवकूफ नहीं कि तुम्हें पालती रहूं और जब तक तुम्हारी शादी न हो, तुम्हारे शरीर की जरूरतों के लिए एक सुविधा बनी नहीं… अब यह बताओ मैं दूसरा फ्लैट ढूंढ़ू या तुम जाओगे?’’ जय का चेहरा शर्म और अपमान से काला हो गया.

झेंपते हुए बोला, ‘‘मैं ही चला जाता हूं.’’‘‘ठीक है, अगर हो सके तो कल शनिवार है, कल कहीं भी शिफ्ट हो जाना, मैं पुणे जारही वीकैंड में… मेरे आने से पहले अपना सामान ले जाना.’’आरोही ने औफिस से जल्दी उठ कर रात की ही बस पकड़ ली और पुणे चली गई.

शिवनेरी बस पुणे और मुंबई के बीच चलने वाली आरामदायक बसें हैं, सोफे जैसी सीट पर बैठ कर आरोही बीते दिनों को याद कर उदास तो हो रही थी पर वह लाइफ में आगे बढ़ने के लिए भी खुद को संभालती जा रही थी.कई बार आंखें नम हुईं, कई बार दिल बैठने को हुआ पर जय की चालाकियां बहुत दिनों से देख रही थी, बहुत कुछ खलने लगा था. दिमाग कहता रहा जो हुआ, अच्छा हुआ.

पुणे आने तक दिल भी दिमाग का साथ देने लगा कि अच्छा हुआ, एक लालची, स्वार्थी और कामचोर इंसान का साथ छूटा. मजबूत कदमों से चलते हुए उस ने घर पहुंच कर खुद को मां की नर्म, स्नेही बांहों में सौंप दिया. मां मां थीं, उदास चेहरा देख कर सम  झ गईं बेटी रात को यों ही तो नहीं आई. हमेशा सुबह की बस पकड़ कर आती थी, पर उस समय किसी ने कुछ नहीं पूछा.

उस के पापा संजय ने उसे खूब दुलारा. खाना खा कर थकी हूं मां, सुबह बात करते हैं, कह कर आरोही सोने लेट गई.शनिवार और रविवार आरोही ने हमेशा की तरह अपने मम्मीपापा के साथ बिताए, तीनों थोड़ा घूम कर आए, बाहर खायापीया. रेखा आरोही की पसंद की चीजें बनाती रहीं, आरोही का बु  झा चेहरा देख 1-2 बार पूछा, ‘‘आरोही, सब ठीक तो है न?

औफिस के काम का स्ट्रेस है क्या?’’‘‘नहीं मम्मी,

सब ठीक है.’’

रेखा सम  झदार मां थीं. सम  झ गईं, बेटी अभी अपने मन की कोई बात शेयर करने के मूड में नहीं है, जब ठीक सम  झेगी, खुद ही शेयर कर लेगी. मांबेटी की बौंडिंग अच्छी है, जब ठीक लगेगा, बताएगी. संडे की रात आरोही वापस मुंबई आने के लिए पैकिंग कर रही थी.

संजय ने कहा, ‘‘बेटा, एक परिचित हैं, उन्होंने अपने बेटे सुमित के लिए तुम्हारे लिएबात की है.

तुम जब ठीक सम  झो, उन से मिल लो, कहो तो अगली बार तुम्हारे आने पर उन्हें बुला लूं?’’बैग बंद करते हुए आरोही के हाथ पल भर को रुके, फिर रेखा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मु  झे थोड़ा समय दो.’’संजय ने कहा, ‘‘अरे बेटा, अब तुम 30 की हो गई, वैलसैटल्ड हो…

यह परिवार अच्छा है. एक बार मिल तो लो. सबकुछ तुम्हारी हां कहने के बाद ही होगा.’’आरोही ने कहा, ‘‘इस समय मु  झे जाने दें, मैं बहुत जल्दी आप से इस बारे में बात कर लूंगी.’’संजय और रेखा आज के जमाने के पेरैंट्स थे… उन्होंने बेटी पर अपनी मरजी कभी नहीं थोपी.

उसे भरपूर सहयोग दिया हमेशा. यह भी एक कारण था कि आरोही बहुत स्ट्रौंग, बोल्ड और इंटैलीजैंट थी, वह अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की थी, फिर भी अपने पेरैंट्स की बहुत रिस्पैक्ट करती.रेखा ने मन ही मन कुछ अंदाजा लगाया कि कोई बात है जरूर, हमेशा खिला रहने वालाचेहरा यों ही नहीं बु  झा, फिर कहा, ‘‘ठीक है,तुम आराम से जाओ… ये बातें तो फोन पर भीहो जाएंगी.’’मुंबई अपने फ्लैट पर आ कर आरोही ने देखा कि जय अपना सारा सामान ले जा चुका है…

खालीखाली तो लगा पर उस ने अपनेआप को इतने समय में संभाल लिया था. उस ने यह बात स्वाभाविक तौर पर ली. खुद से ही कहाकि इतने दिन का साथ था, कोई बात नहीं.आदत थी उस की, छूट जाएगी. ऐसे   झूठे रिश्तों के लिए अफसोस करने में वह अपनी लाइफ नहीं बिता सकती. अभी बहुत कुछ करना है, खुश रहना है, जीना है, लाइफ जय जैसों के साथ खत्म नहीं हो जाती.

बस यह विचार आते ही आरोही रोज की तरह औफिस पहुंची. रवि ने बताया कि जय किसी दोस्त के साथ रहने चला गया है… तुम ने जो किया, ठीक किया.जय के औफिस की बिल्डिंग से आतेजाते जब भी कभी उस का आमनासामना हुआ, आरोही के निर्विकार चेहरे को देख जय की कभी हिम्मत ही नहीं हुई उस से बात करने की. कुछ महीनों बाद आरोही ने पेरैंट्स के कहने पर सुमित से मिलना स्वीकार कर लिया.सुमित मुंबई में ही काम करता था.

वह अपने 2 दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर करता था. पुणे में सुमित अपने मम्मीपापा, विकास और आरती और छोटी बहन सीमा के साथ उन के घर आया. पहली मीटिंग में तो सब एकदूसरे से मिल कर खुश हुए.मुंबई में ही होने के कारण सुमित चाहता था कि वह मुंबई में ही जौब करने वाली लड़की के साथ शादी करे.

सब को यह सोच कर अच्छा लग रहा था कि दोनों पुणे आतेजाते रहेंगे. दोनों के ही घर एक जगह थे, सबकुछ ही देखते तय होता गया. आरोही ने पेरैंट्स की पसंद का मान रखा, सुमित से जितना मिली, वह ठीक ही लगा. आरोही चाहती थी कि नया रिश्ता वह ईमानदारी के साथ शुरू करे, वह सुमित को जय के साथ लिव इन में रहने के बारे में बताना चाहती थी. इस बारे में जब उस ने अपने पक्के दोस्त रवि से बात की, तो रवि ने कहा, ‘‘क्या जरूरत है? मत बताओ, कोई भी लड़का कितनी भी मौडर्न हो, यह बरदाश्त नहीं करेगा.’’‘‘क्यों?

अगर वह मु  झे बताए कि वह भी किसी गर्लफ्रैंड के साथ लिव इन में रहा है, तो मैं तो कुछ नहीं कहूंगी, उलटा इस बात पर खुश होऊंगी कि मेरे होने वाले पति ने ईमानदारी के साथ मु  झ से अपना सच शेयर किया.’’‘‘यार, तुम आरोही हो. सब से अलग, सब से प्यारी लड़की,’’

फिर आरोही को हंसाने के लिए शरारत से कहा, ‘‘मेरी बीवी आज तक मेरे कालेज की गर्लफ्रैंड को ले कर ताने मारती है… अब बोलो.’’आरोही हंस पड़ी, ‘‘बकवास मत करो, जानती हूं मैं तुम्हारी बीवी को, वह बहुत अच्छी हैं.’’‘‘हां, यही तो… सम  झो, लड़के जल्दी हजम नहीं करते ऐसी बातों को…

वह तो तुम बहुत बड़े दिल की हो.’’रवि ने काफी सम  झाया पर आरोही जब सुमित के कहने पर उस के साथ डिनर पर गई, तो आरोही ने जय के बारे में सब बता दिया.सुन कर सुमित मुसकराया, ‘‘तुम बहुत सच्ची हो. आरोही, मु  झे इन बातों का फर्क नहीं पड़ता, मेरे भी 2 ब्रेकअप हुए हैं, क्या हो गया. यह तो लाइफ है. होता ही रहता है. अब तुम मिली हो, बस मैं खुश हूं.’’

आरोही के दिल से जैसे बो  झ हट गया.1-2 बार और सुमित से मिलने के बाद उस ने अपने पेरैंट्स को इस शादी के लिए हां कर दी. उन की खुशी का ठिकाना न था. 4 महीने बाद की शादी की डेट भी फिक्स हो गई.दोनों पक्ष शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए.

बहुत तो नहीं पर सुमित और आरोही बीचबीच में मिलते रहते, दोनों औफिस के काम में व्यस्त रहते पर चैटिंग, फोन कौल्स चलते रहते. शादी पुणे में ही धूमधाम से हुई. दोनों के काफी कलीग्स आए. मुंबई आ कर आरोही के ही फ्लैट में सुमित अपने सामान के साथ शिफ्ट कर गया. दोनों खुश थे, आरोही ने जय का खयाल पूरी तरह से दिलोदिमाग से निकाल दिया था.

1 साल बहुत खुशी से बीता.आरोही अपनी लाइफ से अब पूरी तरह संतुष्ट व सुखी थी. दोनों छुट्टी होने पर कभी साथ पुणे निकल जाते, कभी किसी के पेरैंट्स मिलने आ जाते. सब ठीक था, आरोही की अगली 2 प्रोमोशंस तेजी से हुई, वह अब काफी अच्छे पैकेज पर थी, उस ने बहुत जल्दी अब एक अपना फ्लैट लेने की इच्छा जाहिर की.सुमित ने कहा, ‘‘देखो आरोही,

तुम्हारी सैलरी मु  झ से अब काफी ज्यादा है, तुम चाहो तो ले लो.’’आरोही चौंकी, ‘‘अरे, मेरा पैसा तुम्हारा पैसा अलगअलग है क्या? हमारा भी प्यारा सा अपना घर होगा,

कब तक इतना किराया देते रहेंगे?’’‘‘देख लो, तुम ही सोच लो, मैं तो अपनी सैलरी से ईएमआई दे नहीं पाऊंगा, घर भी पैसा भोजना होता है मु  झे.’’आरोही ने सुमित के गले में बांहें डाल दीं.

कहा, ‘‘ठीक है, तुम बस मेरे साथ फ्लैट पसंद करते चलो, सब हो जाएगा.’’

यह सच था कि सुमित की सैलरी आरोही से बहुत कम थी और जब से आरोही की प्रोमोशंस हुई थीं, सुमित की मेल ईगो बहुत हर्ट होने लगी थी. वह अकसर उखड़ा रहता. आरोही यह सम  झ रही थी, उसे खूब प्यार करती, उस की हर जरूरत का ध्यान रखती और जब आरोही ने कहा कि सुमित, मैं सोच रही हूं, मैं औफिस जानेआने के लिए एक कार ले लूं. बस में ट्रैफिक में बहुत ज्यादा टाइम लग रहा है. मजा आएगा, फिर पुणे भी कार से जायाआया करेंगे, अभी तो बस और औटो में बैठने का मन नहीं करता.’’

सुमित ने कुछ तलख लहजे में कहा, ‘‘तुम्हारे पैसे हैं, चाहे उड़ाओ चाहे बचाओ, मु  झे क्या,’’ कह कर सुमित वहां से चला गया.आरोही इस बदले रूप पर सिर पकड़ कर बैठी रह गई. 2 महीने में ही आरोही ने फ्लैट और कार ले ही ली. सुमित मशीन की तरह पसंद करने में साथ देता रहा.थोड़ा समय और बीता तो आरोही कोसुमित के व्यवहार में कुछ और बदलाव दिखे, अब वह कहता, ‘‘तुम ही पुणे जा कर सब से मिल आओ, तो कभी कहता टूर पर जा रहा हूं,

2 दिनों में आ जाऊंगा.’’आरोही ने कहा, ‘‘मैं भी चलूं? कार से चलते हैं, मैं घूम लूंगी…

तुम अपना काम करते रहना. आनेजाने में दोनों का कुछ चेंज हो जाएगा.सुमित ने साफ मना कर दिया. वह चला गया. अब वह पहले की तरह बाहर जा कर आरोही से उस की खबर बिलकुल न लेता.

आरोही फोन करती तो बहुत बिजी हूं, घर आकर ही बात करूंगी, कह कर फोन रख देता. सुमित बहुत बदल रहा था और इस का कारणभी आरोही के सामने जब आया, तो वह ठगी सी रह गई.एक सुबह सुमित सो रहा था, उस का मोबाइल साइलैंट था,

पर जब कविता नाम उस की स्क्रीन पर बारबार चमकता रहा, आरोही ने धीरे से फोन उठाया और दूसरे कमरे में जा कर जैसे ही हैलो कहा, फोन कट गया. आरोही ने यों ही व्हाट्सऐप चैट खोल ली और जैसेतैसे फिर कविता और सुमित की चैट पढ़ती गई, साफ हो गया कि दोनों का जबरदस्त अफेयर चल रहा है, गुस्से के मारे आरोही का खून खौल उठा.साफसाफ सम झ आ गया कि सुमित की बेरुखी का क्या कारण है.

वह चुपचाप सोफे पर बैठी कभी रोती, कभी खुद को सम झाती, सुमित के जागने का इंतजार कर रही थी, सुमित जब सो कर उठा, आरोही के हाथ में अपना फोन देख चौंका. आरोही का चेहरा देख उसे सब सम  झ आ गया.

बेशर्मी से बोला, ‘‘क्या हुआ?’’‘‘तुम बताओ, यह सब क्या चल रहा है?‘‘तो तुम भी तो शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रही थी?’’आरोही हैरान रह गई. बोली, ‘‘ये सब तो शादी से पहले की बात है और तुम्हें सब पता था. मैं ने तुम्हें शादी के बाद तो कभी धोखा नहीं दिया? तुम तो मु  झे अब धोखा दे रहे हो…’’‘‘असल में मैं तुम से अलग होना चाहता हूं…

मैं अब कविता से शादी करना चाहता हूं.’’आरोही ने गुस्से से कहा, ‘‘तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आ रही है?’’‘‘तुम्हें आई थी लिव इन में रहते हुए?’’

‘‘पहले की बात अब इतने दिनों बाद करने का मतलब? अब अपनी ऐय्याशी छिपाने के लिए मु  झ पर ऊंगली उठा रहे हो?’’‘‘मैं ने अपना ट्र्रांसफर दिल्ली करवा लिया है.

आज मैं पुणे जा रहा हूं,’’ कह कर सुमित आरोही की तरफ कुटिलता से देखते हुए मुसकराया और वाशरूम चला गया.आरोही को कुछ नहीं सू  झ रहा था. यह क्या हो गया, अपना अफेयर चल रहा है, तो गड़े मुरदे उखाड़ कर मु  झ पर ही इलजाम डाल रहा है.

मेड आ गई तो वह भी औफिस के लिए तैयार होने लगी और चुपचाप सुमित को एक शब्द कहे बिना औफिस चली गई.रवि ने उस की उड़ी शकल देखी तो उसे कैंटीन ले गया और परेशानी का कारण पूछा. देर से रुके आंसू दोस्ती की आवाज सुन कर ही बह निकले.

वह सब बताती चली गई. इतने में दोनों की एक और कलीग दोस्त सान्या भी आ गई. सब जान कर वह भी हैरान रह गई. थोड़ी देर बाद तीनों उठ कर काम में लग गए.आरोही के दिल को चैन नहीं आ रहा था. फिर एक और धोखा. क्या करे. क्या यह रिश्ता किसी तरह बचाना चाहिए? नहीं, जबरदस्तीकैसे किसी को अपने से बांध कर रखा जा सकता है? यह तो प्यार, विश्वास का रिश्ता है. अब तो कुछ भी नहीं बचा. वह अपना आत्मसम्मान खो कर तो जबरदस्ती इस रिश्ते को नहीं ढो सकती..

जो होगा देखा जाएगा. ऐसे रिश्ते का टूटना ही अच्छा है. जब रात को आरोही घर लौटी, सुमित जा चुका था. वह अपनी पैकिंग अच्छी तरह कर के गया था, लगभग सारा सामान ले गया. कुछ दिन बाद ही आरोही को तलाक के पेपर मिले तो वह रो पड़ी. यह क्या हो गया, सब बिखर गया. उस की कहां क्या गलती है.सुमित ने उसे फोन किया और कहा, ‘‘साइन जल्दी कर देना,

मैं कोर्ट में यही कहने वाला हूं कि तुम चरित्रहीन हो, तुम पहले भी लिव इन में बहुत समय रह चुकी हो और मु  झे ये सब बताया नहीं गया था.’’‘‘पर मैं ने तुम्हें सारा सच बता दिया था और तुम्हें कोई परेशानी नहीं थी.’’‘‘पर तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है न कि तुम ने मु  झे सब बता दिया था.’’

आरोही चुप रह गई. अगले दिन रवि और सान्या ने सब जान कर अपना सिर पकड़ लिया. फिर सान्या ने पूछा, ‘‘आरोही, तुम ने कैसे बताया था सुमित को जय के बारे में?’’‘‘मिल कर, फिर बहुत कुछ चैटिंग में भी इस बारे में बात होती रही थी.’’‘‘चैट कहां है?’’‘‘उन्हें तो मैं डिलीट करती रहती हूं. सुमित भी जानता है कि मु  झे चैट डिलीट करते रहने की आदत है.’’

‘‘अभी राजनीति में, ड्रग केसेज में जो इतनी चैट खंगाल दी गईं, वह भी नामी लोगों की, तो इस का मतलब यह मुश्किल भी नहीं.’’‘‘और मेरे पास कविता और उस के अफेयर का सुबूत है…

मैं ने जब उन दोनों की चैट पढ़ी, खूब सारी पिक्स ले ली थीं.’’‘‘यह अच्छा किया तुम ने, गुस्से में होश नहीं खोया, दिमाग लगाया. भांडुप में मेरा कजिन सुनील पुलिस इंस्पैक्टर है, उस से बात करूंगी, वह तुम्हारी पुरानी चैट निकलवा पाएगा, इसे तो तलाक हम देंगे.

बच्चू याद रखेगा.’’सान्या ने उसी दिन सुनील से बात की. उस ने कहा सब हेल्प मिल जाएगी. रवि और सान्या आरोही के साथ खड़े थे. वीकैंड आरोही ने पुणे जा कर अपने पेरैंट्स से बात करने का, उन्हें पूरी बात बताने का मन बनाया.अभी तक आरोही ने अपने पेरैंट्स से कुछ भी शेयर नहीं किया था. सुमित आरोही से अब बिलकुल टच में नहीं था.

कभीकभी एक मैसेज तलाक के बारे में कर देता.संजय और रेखा पूरी बात सुन कर सिर पकड़ कर बैठ गए. कुछ सम  झ न आया, दोनों को जय के बारे में भी अब ही पता चला था, क्या कहते, बच्चे जब आत्मनिर्भर  हो कर हर फैसला खुद लेने लगें तो सम  झदार पेरैंट्स, कुछ कहने का फायदा नहीं है, यह भी जानते हैं. जय के साथ, सुमित के साथ बेटी का अनुभव अच्छा नहीं रहा, प्यारी, सम  झदार बेटी दुखी है, यह समय उसे कुछ भी ज्ञान देने का नहीं है.इस समय उसे अपने पेरैंट्स की सपोर्ट चाहिए. कोई ज्ञान नहीं… और सुमित तो गलत कर ही रहा था…

जय की बात जरूर अजीब लगी थी, पर अब वे बेटी के साथ थे.संजय ने कहा, ‘‘मैं आज ही वकील से बात करता हूं.’’रेखा ने सुमित के पेरैंट्स अनिल और रमेश से बात की. मिलने के लिए कहा, उन्होंने आरोही को चरित्रहीन कहते हुए रेखा के साथ काफी अपमानजनक तरीके से बात की तो सब को सम  झ आ गया, यह रिश्ता नहीं बचेगा.रवि और सान्या आरोही के टच में थे. सुनील ने काफी हिम्मत बंधा दी थी, बहुत कुछ सोच कर सुमित को आरोही ने फोन किया, ‘‘सुमित, मैं पुणे आई हुई हूं, कल सुबह चली जाऊंगी. आज तुम से मिलना चाहती हूं… कैफे कौफी डे में आज शाम को 5 बजे आओगे?’’

‘‘ठीक है,’’ पता नहीं क्या सोच कर सुमित मिलने के लिए तैयार हो गया.आरोही बिना पेरैंट्स को बताए सुमित से मिलने के लिए पहुंची. दिल में अपमान और क्रोध का एक तूफान सा था.

आज भड़ास निकालने का एक मौका मिल ही गया था. एक टेबल पर बैठा सुमित उसे देख कर जीत और बेशर्मी के भाव के साथ मुसकराया. उस के बैठते ही कहा, ‘‘देखो, गिड़गिड़ाना मत, मु  झे दीनहीन लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं.’’

यह सुनते ही आरोही के दिल में कुछ बचा भी एक पल में खत्म हो गया. मजबूत स्वर में बोली, ‘‘मु  झे भी धोखेबाज लोग अच्छे नहीं लगते. आज तुम्हें बस इतना बताने आई हूं कि मैं जा कर तलाक के पेपर साइन कर दूंगी… अभी तक पूरी तैयारी भी तो करनी थी.’’सुमित उस की आवाज की मजबूती पर चौंका, ‘‘कैसी तैयारी?’’‘‘तुम मु  झे चरित्रहीन बताने वाले हो न?

मैं ने भी तुम्हारी और कविता की सारी चैट के फोटो ले लिए थे और इंस्पैक्टर सुनील हमारी वे चैट निकाल रहे हैं, जिन में मैं ने तुम्हें साफसाफ जय के बारे में पहले ही बता दिया था और तुम्हेंउस में कोई आपत्ति नहीं थी. तुम्हारे ऊपर तो ऐसीऐसी बात उठेगी कि किसी लड़की को आगे धोखा देना भूल जाओगे, सारी ऐयाशियां न भूल जाओ तो कहना.‘‘मैं कभी कमजोर लड़की नहीं रही…

तुम्हारे जाने का अफसोस हो ही नहीं सकतामु  झे, मैं खुश हूं कि जल्द ही तुम से पीछा छूट गया. मैं तो एक बार फिर जीवन में आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार हूं. अब कोर्ट में अपने वकील के साथ मिलेंगे,’’ कह कर मुसकराते हुए आरोही खड़ी हो गई. फिर कुछ याद करते हुए बैठ गई. वेटर को इशारा करते हुए बिल मांगा और कहा, ‘‘कौफी भले ही ठंडी हो गई थी,

भले ही पी भी नहीं, पर आज एक बार फिर मेरे आत्मविश्वास को देख कर तुम जैसे, जय जैसे पुरुष की यह उड़ी शकल देखने में बहुत मजा आया,’’ कहतेकहते उस ने पेमैंट की और वहां से निकल गई.सुमित आने वाले तूफान से अभी से घबरा गया था.

सिर्फ एक घटना : निशा और गौतम का साहस

अचानक ही गौतम के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी.

‘हैलो, मैं अनीता बोल रही हूं,’ उधर से आवाज आईं.

‘‘हां, बोलो अनीता. कोई खास बात है क्या?’’ गौतम ने पूछा.

‘गौतम, आज मेरे मम्मीपापा एक रिश्तेदार की शादी में जा रहे हैं. मैं रात को घर पर अकेली रहूंगी. तुम मौका देख कर यहां चले आना. हम लोग रातभर मजे करेंगे,’ अनीता ने कहा.

‘‘अनीता, मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कोई देख लेगा तो मेरा क्या होगा?’’ गौतम की आवाज सहमी हुई थी.

‘मैं लड़की हो कर नहीं डर रही हूं और तुम लड़के हो कर…’ अनीता ने उसे मीठी झिड़की दी.

‘‘ठीक है अनीता, मैं आज रात में आ जाऊंगा. तुम मेरा इंतजार करना,’’ गौतम ने कहा.

गौतम 20 का गठीला नौजवान था. वह लंबे कद का था, जिस से हैंडसम दिखता था. अनीता और गौतम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे.

अनीता 18 साल की बहुत हसीन लड़की थी. उस की आंखें बड़ी खूबसूरत थीं. उस के सुडौल उभार मर्दों को बरबस अपनी तरफ खींच लेते थे. यही वजह थी कि गौतम उस के हुस्न का दीवाना हो गया था.

आधी रात हो गई थी. चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. लोग अपने घरों में गहरी नींद में सो रहे थे. गौतम चुपके से अनीता के घर पहुंच गया.

अनीता उस का इंतजार कर रही थी. वह गौतम को अपने कमरे में ले गई. उस ने गौतम को प्यार से चूम लिया. गौतम ने भी अनीता को बांहों में भर लिया.

‘‘गौतम, पहले तुम अपना काम कर लो,’’ अनीता ने कहते हुए अपने कपड़े उतार दिए. उस के सैक्सी बदन को देखते ही गौतम के दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

अनीता बिछावन पर लेट गई. गौतम भी झटपट अपने कपड़े उतार कर उस के साथ लेट गया. वह अनीता के जिस्म से लिपट कर उस के उभारों को सहलाता रहा. थोड़ी देर बाद गौतम ने अनीता के साथ सैक्स करना चाहा, लेकिन घबराहट व डर के मारे उस में तनाव नहीं आ सका. उसे डर लग रहा था कि अनीता के घर में वह पकड़ा जाएगा.

गौतम ने अनीता को चूम कर उस के कोमल अंगों को सहला कर अपने को जोश में लाना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

अनीता 2-4 मिनट तक बिछावन पर लेटी उस के सैक्स करने का इंतजार करती रही, लेकिन गौतम कुछ कर नहीं सका. तब वह गुस्सा हो कर अपने कपड़े पहनने लगी.

अनीता गौतम की छाती को ठोंकते हुए गुस्से में बोली, ‘‘गौतम, तुम तो बहुत बड़े बौडीबिल्डर बनते थे न. आज तुम्हारी पोल खुल गई. तुम नामर्द हो, एकदम नामर्द.’’

गौतम ने अनीता से आंखें चुराते हुए कहा, ‘‘अनीता, मुझे समझने की कोशिश करो. पता नहीं, मुझे क्या हो गया है.’’

अनीता गुस्से में कांप रही थी. वह बोली, ‘‘कपड़े उतार कर अपनी इज्जत भी गंवा बैठी. लेकिन तुम…’’

अनीता तकरीबन चीखते हुए बोली, ‘‘चले जाओ यहां से. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

गौतम कुछ नहीं बोला. वह शर्मिंदगी से सिर झुकाए कमरे से बाहर निकल गया. उस रात गौतम और अनीता का मजबूत दिखने वाला रिश्ता टूट गया.

घर आ कर गौतम उस रात सो नहीं सका. उस के मन में यही सब चलता रहा कि क्या वह नामर्द है? वह किसी भी औरत के साथ जिस्मानी संबंध नहीं बना सकता. उसे एक ही उपाय सूझा कि वह शादी नहीं करेगा, नहीं तो उस के चलते किसी लड़की की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.

गौतम कुछ दिनों तक टैंशन में रहा. इस तकलीफ को भुला कर वह पढ़ाई में अपना मन लगाने लगा. कालेज में वह एक अच्छे स्टूडैंट के रूप में जाना जाता था. उस का स्वभाव भी शालीन हो गया था, जिस से प्रभावित हो कर कालेज में साथ पढ़ने वाली लड़की निशा उस से मन ही मन प्यार करने लगी थी.

निशा साधारण रूपरंग की लड़की थी. वह पढ़ाई में जहीन थी. वह गौतम को अपने टाइप का पाती थी, जिस से एक लगाव महसूस करती थी.

गौतम को भी निशा अच्छी लगती थी, लेकिन उस की अपनी मजबूरी साथ चल रही थी. वह किसी लड़की से प्यार नहीं करना चाहता था, क्योंकि उस के दिल में अनीता के साथ उस रात की जो घटना घटी थी, उस का पेंच बुरी तरह फंसा हुआ था.

एक दिन निशा ने गौतम को गुलाब का फूल दे कर अपने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘गौतम, मैं तुम्हें दिल से चाहती हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. मेरे प्यार को ठुकराना मत.’’

गौतम ने हिचकिचाते हुए निशा के हाथ से गुलाब का फूल ले लिया. उस के चेहरे पर थोड़ी चिंता के भाव थे. वह निशा से बस इतना कह सका, ‘‘निशा, अपने प्यार को हर हाल में निभाना. बीच रास्ते में छोड़ कर चले जाना प्यार नहीं होता है.’’

निशा ने गौतम के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘गौतम, मैं हरदम अपने प्यार को निभाती रहूंगी.’’

गौतम और निशा की कालेज की पढ़ाई खत्म हो गई थी. वे दोनों नौकरी के लिए फार्म भरने लगे थे. गौतम की पढ़ाई में की गई कड़ी मेहनत काम आई. वह एक बड़े दफ्तर में जूनियर अफसर बन गया.

उसी दफ्तर में निशा को क्लर्क की नौकरी मिल गई. अब गौतम और निशा एक ही औफिस में साथसाथ काम करने लगे.

गौतम की मां उस की शादी करने की जिद करने लगी, जिस से गौतम डराडरा सा रहने लगा था. वह शादी कर के किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता था.

एक दिन तो मां ने गौतम से पूछा, ‘‘बेटा, अगर कोई लड़की तुम्हारी पसंद की हो तो बताना. मैं उसी लड़की से तुम्हारी शादी करवा दूंगी.’’

गौतम ने मां से कहा, ‘‘ठीक है, मां. कोई लड़की मेरी पसंद की होगी, तो मैं आप को बता दूंगा.’’

उस दिन औफिस में गौतम बहुत परेशान था. उस की परेशानी उस के चेहरे से साफ झलक रही थी.

गौतम को चिंतित देख कर निशा ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है गौतम, तुम आज काफी उदास दिख रहे हो?’’

‘‘निशा, मां मेरी शादी कराने की जिद कर रही हैं.’’

‘‘तो मां से तुम ने क्या कहा?’’ निशा ने पूछा.

‘‘यही कि कोई लड़की पसंद की होगी तो बताऊंगा,’’ गौतम ने निशा से कहा.

निशा के होंठों पर मुसकान खिल गई, ‘‘इस में उदास होने की तो कोई बात नहीं है.’’

‘‘नहीं निशा, मैं किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता. मेरे साथ एक घटना घट गई थी, जिस ने मेरी जिंदगी से शादी का सपना छीन लिया.’’

‘‘कौन सी घटना थी? मैं जानना चाहूंगी,’’ निशा ने पूछा.

गौतम ने अनीता के साथ घटी उस रात की घटना को तफसील से सुनाया. उस ने बताया कि कैसे उस रात को अनीता ने अपने कमरे में उसे नामर्द कहा था, जबकि अनीता ने जिस्मानी संबंध बनाने के लिए उसे खुद बुलाया था.

निशा, गौतम की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी.

‘‘निशा अब तुम्हीं बताओ कि कौन सी लड़की एक नामर्द से शादी करना चाहेगी?’’

निशा ने कहा, ‘‘शादी तो मैं तुम से ही करूंगी,’’ निशा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘गौतम, तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. अनीता के साथ घटी उस रात की घटना में एक बात सामने आ रही है कि तुम बहुत घबराए हुए थे. तुम्हारे मन में पकड़े जाने का डर था, जिस से ऐसे हालात पैदा हो गए थे. वह घटना वहम बन कर तुम्हें अब तक डराती रही है. बेवजह अपने को नामर्द समझना भी तो एक गुनाह है.’’

निशा की बातों से गौतम को हौसला मिला. उस की आंखों में खोई हुई चमक लौट आई.

गौतम और निशा की शादी बड़े ही धूमधाम से हो गई. आज उन की सुहागरात थी. एक कमरे को फूलों से सजा दिया गया था. निशा दुलहन के लाल जोड़े में पलंग पर बैठी थी. वह गौतम का इंतजार कर रही थी.

कुछ देर बाद गौतम कमरे में आया. वह कमरे का दरवाजा बंद कर निशा के पास आ कर बैठ गया, ‘‘निशा, दुलहन के लाल जोड़े में तुम बड़ी खूबसूरत लग रही हो,’’ गौतम ने उसे भरपूर नजर से देखते हुए कहा.

निशा मुसकरा दी. गौतम ने उसे बांहों में भर कर चूम लिया. निशा ने भी गौतम को प्यार से चूम लिया. धीमेधीमे प्यार का नशा दोनों पर छाने लगा. निशा ने गौतम को बांहों में जकड़ लिया.

गौतम और निशा ने जीभर कर सुहागरात का मजा लिया. निशा गौतम के प्यार से संतुष्ट हो गई थी.

निशा ने गौतम से प्यार से कहा, ‘‘आज सुहागरात में आप की मर्दानगी में कोई कमी नहीं थी.’’

‘‘निशा, तुम मेरी बीवी हो. यहां मुझे किस बात का डर था, जिस के चलते मुझे कोई परेशानी नहीं हुई,’’ गौतम ने निशा से कहा.

‘‘गौतम, अब समझ में आ गया न कि आप बेकार के वहम में जी रहे थे,’’ निशा बोली.

‘‘हां निशा, एक बोझ जो आज दिल से उतर गया,’’ गौतम ने कहा और निशा को चूम लिया.

अमेरिका, डोनाल्ड, ट्रंप और टूटे ख्वाब

‘‘अब मैं क्या कर सकता हूं? मुझे क्या पता था कि अमेरिका में इतना बड़ा उलटफेर हो जाएगा. हम खुद हैरान हैं कि कमला हैरिस कैसे हार गईं? तुम दोनों के ही नहीं, बल्कि और भी कई लोगों के पैसे समझ डूब गए हैं,’’ दलाल ने जब यह बात कही, तो वंदना और अजय के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

‘‘ऐसे कैसे हमारे पैसे डूब गए. हम दोनों ने कुल 40 लाख रुपए भरे हैं. हमारे मांबाप ने कर्ज ले कर हमें बाहर भेजने का इंतजाम किया था. वे तो जीतेजी मर जाएंगे,’’ अजय ने कहा.

‘‘भाई, डंकी से अमेरिका और कनाडा जाने वाले को तो पलपल का खतरा रहता है. अच्छा है कि तुम्हारे सिर्फ पैसे ही डूबे हैं, अगर कहीं जान पर बन आती तो हम यहां बैठे क्या कर लेते? हम ने तो पक्का काम किया था, पर इस बार के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की इतनी भारी जीत ने सब गुड़ गोबर कर दिया.

‘‘अब तो उस ने मंच से भी बोल दिया है कि वहां किसी भी घुसपैठिए को बरदाश्त नहीं किया जाएगा. अब तो जब मामला ठंडा होगा, तो ही दोबारा कोशिश की जा सकती है,’’ दलाल ने अपनी बात कही और अपनी सीट से उठ कर बाहर चला गया.

अजय और वंदना अभी भी दलाल के दफ्तर में बैठे थे. उन्हें लगा जैसे सबकुछ खत्म हो गया है. वंदना तो रोने लगी थी.

अजय और वंदना दोनों वैसे तो उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर जिले के आसपास के गांवों के रहने वाले थे, पर पिछले 3 साल से नोएडा में लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे थे.

23 साल की भरे बदन की वंदना दलित समाज की एक होनहार लड़की थी और पिछले 2 साल से एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स की कच्ची नौकरी कर रही थी.

25 साल का अजय एक रैस्टोरैंट में कुक था और बहुत बढि़या खाना बनाता था, पर उस के काम की कद्र नहीं थी.

चूंकि नोएडा महंगा शहर है और खर्चे ज्यादा हैं, तो अजय और वंदना ने सोचा कि क्यों न वे ज्यादा पैसे कमाने के लिए अमेरिका और कनाडा चले जाएं.

अजय कनाडा जाना चाहता था और वंदना अमेरिका. अमेरिका में जुलाई, 2024 तक साढ़े 7 डौलर प्रति घंटे का मिनिमम वेज मिलता रहा है. मतलब, भारतीय रुपए में 660 रुपए प्रति घंटा. रोज 12 घंटे काम करने के तकरीबन 7,000 रुपए. महीने में अगर 25 दिन भी काम कर लिया, तो पौने 2 लाख रुपए की कमाई हो सकती है.

अमेरिका और कनाडा में नर्स और कुक को काम मिल ही जाता है. हो सकता है कि इन्हें कुछ ज्यादा ही कमाई हो जाए.

6 महीने पहले की बात है. अजय और वंदना अपनेअपने गांव गए हुए थे. तब उन दोनों ने अपने मांबाप से विदेश जाने की बात कही थी.

अजय बोला था, ‘‘अरे बाबूजी, पड़ोस के गांव का रतन अमेरिका में ट्रक चलाता है. वह डंकी से वहां गया था और आज देखो, उस ने पूरे परिवार को संभाल लिया है.’’

‘‘यह डंकी क्या होता है?’’ बाबूजी ने सवाल दागा था.

‘‘किसी देश में घुसपैठ कर के घुसना. दलाल पैसे ज्यादा लेते हैं, पर अमेरिका और कनाडा जैसे अमीर देशों में घुसा देते हैं. वहां जाते ही चांदी ही चांदी,’’ अजय ने सम?ाया था.

‘‘पर बेटा, 20 लाख रुपए कम रकम नहीं होती. हमें अपना एक खेत बेचना पड़ेगा,’’ अजय की मां ने अपनी चिंता जताई थी.

‘‘मां, एक बार मैं कनाडा चला जाऊं, फिर 3-4 साल में तुझे नया खेत दिला दूंगा. इस गांव में तुम्हारी तूती बोलेगी,’’ अजय ने मां को मक्खन लगाया था.

उधर वंदना भी अपने मांबाप को मना चुकी थी. हालांकि वह एक साधारण परिवार की लड़की थी, पर चूंकि उस के पिताजी कोटे के चलते सरकारी नौकरी में थे, तो उन्होंने जैसेतैसे पैसे का इंतजाम कर दिया था. दोनों ने एक ही दलाल से मिल कर अमेरिका और कनाडा जाने का बंदोबस्त कर लिया.

इस बीच अमेरिका में चुनाव का ऐलान हो गया था. रिपब्लिकन पार्टी ने डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया था और कमला हैरिस को डैमोक्रैटिक पार्टी ने.

कमला हैरिस का शुरू से पलड़ा भारी लग रहा था, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप को एक बार राष्ट्रपति के रूप में पहले आजमाया जा चुका था और उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा कुछ खास कमाल नहीं किया था.

अमेरिका में 5 नवंबर, 2024 को चुनाव हुए थे और डैमोक्रैटिक पार्टी के अलावा तमाम दूसरे नागरिकों को उम्मीद थी कि कमला हैरिस देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल कर लेंगी, क्योंकि चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने उन पर खूब निजी हमले किए थे.

डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान पैंसिल्वेनिया में एक रैली में कमला हैरिस की शारीरिक बनावट और बुद्धिमत्ता की निंदा की थी. उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था,’’ मैं उन से (कमला हैरिस) कहीं ज्यादा सुंदर हूं.’’

डोनाल्ड ट्रंप ने कमला हैरिस स्पैशल ‘टाइम’ मैगजीन के कवर फोटो का जिक्र करते हुए दावा किया था कि पत्रिका को एक स्कैच कलाकार को काम पर रखना पड़ा, क्योंकि उन की तसवीरें काम नहीं आईं. उन्होंने उन की बुद्धिमत्ता पर भी सवाल उठाया था और उन्हें कट्टरपंथी उदारवादी करार दिया था.

इतना ही नहीं, डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी एक रैली में कहा था, ‘‘कुटिल जो बाइडेन मानसिक रूप से विकलांग हो गए हैं… लेकिन कमला हैरिस, ईमानदारी से कहूं तो मेरा मानना है कि वे ऐसी ही पैदा हुई थीं. कमला में कुछ गड़बड़ है और मुझे नहीं पता कि वह क्या है, लेकिन निश्चित रूप से कुछ कमी है.’’

लोगों को डोनाल्ड ट्रंप का यह बड़बोलापन नहीं सुहा रहा था और ऐसा लग रहा था कि इस बार डोनाल्ड ट्रंप हार जाएंगे, पर जब चुनाव नतीजे आने शुरू हुए तो एकदम से पासा पलटने लगा.

डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार बढ़त बनानी शुरू की, तो वे आगे ही निकलते चले गए. उन्हें कुल 312 सीटें मिलीं और कमला हैरिस महज 226 सीटों पर सिमट कर रह गईं. यह रिपब्लिकन पार्टी की एक बड़ी जीत थी.

चुनाव जीतने के बाद जब डोनाल्ड ट्रंप ने घुसपैठियों पर नकेल कसने की बात कही, तो इस का असर बहुत से देशों पर पड़ने लगा.

एक दिन वंदना और अजय नोएडा के अपने वन रूम फ्लैट में थे. वंदना ने सवाल किया, ‘‘तुम्हें क्या लगता है, डोनाल्ड ट्रंप ने इतनी बड़ी जीत कैसे हासिल की?’’

‘‘खबरों की मानें, तो डोनाल्ड ट्रंप की जीत की एक अहम वजह उन का ग्रामीण क्षेत्रों में अपने समर्थन को बढ़ाने में कामयाब रहना है. उन्होंने इंडियाना, केंटकी, जौर्जिया और उत्तरी कैरोलिना में समर्थन को बढ़ाते हुए अपना दम दिखाया है.

‘‘डैमोक्रैटिक कमला हैरिस को शहरी केंद्रों के साथसाथ आसपास के उपनगरों में भी बड़ी बढ़त हासिल करनी थी. साल 2016 से ही ऐसे उपनगरीय इलाकों में डैमोक्रैट्स को बढ़त मिलती रही है, लेकिन कमला हैरिस को इन इलाकों में मनमुताबिक भारी बढ़त नहीं मिल पाई.

‘‘कमला हैरिस की हार में लैटिन वोटरों के बीच डैमोक्रैटिक पार्टी के लिए समर्थन कम होना बड़ी वजह रहा है. डोनाल्ड ट्रंप को गैरश्वेत वोटरों का भी समर्थन मिला है.’’

‘‘अमेरिका में भी जो बाइडन के खिलाफ एंटीइनकंबैंसी कहीं न कहीं कमला हैरिस की हार की वजह बनी है. रिपब्लिकन पार्टी ने ज्यादा भावनात्मक मुद्दे उठाए. इसी वजह से अमेरिकियों ने भी डैमोक्रैट के मुकाबले रिपब्लिकन पर भरोसा किया.’’ अजय ने अपनी बात रखी.

‘‘मतलब, अब अमेरिका में घुसपैठ करना मुश्किल हो जाएगा?’’ वंदना का अगला सवाल था.

‘‘यह तो डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा ‘चुनावी मुद्दा’ रहा था. उन्होंने वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद वे घुसपैठियों को अमेरिका से बाहर करेंगे. उन्होंने साफ कर दिया था कि अब अमेरिका में सीधे रास्ते से आना होगा.

‘‘डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी कहा था कि वे हर प्रवासी आपराधिक नैटवर्क को निशाना बनाने और उसे खत्म करने के लिए 18वीं सदी के कानून ‘एलियन एनिमीज ऐक्ट’ को लागू करेंगे, लेकिन यह कानून केवल विदेशी दुश्मन देश से आने वाले लोगों पर लागू होता है.’’

‘‘पर, गाज तो हर किसी पर गिरेगी न. हमारा ही हाल देख लो,’’ वंदना बोली.

अजय ने अखबार पढ़ते हुए कहा, ‘‘अरे यार, अब तो एक खरबूजे को देख कर दूसरा खरबूजा भी रंग बदलने लगा है. पिछले कुछ समय से कनाडा में हिंदू और सिख समुदाय के बीच चल रही टैंशन के बाद वहां भी वीजा को ले कर कड़े नियम किए जा रहे हैं.

‘‘जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने भारतीय नागरिकों के विजिटर वीजा की अवधि को एक महीने तक सीमित कर दिया है. इस से साढ़े 4 लाख पंजाबियों पर संकट आ गया है. अब उन्हें हर साल टूरिस्ट वीजा लेना होगा. साथ ही, एक महीने में कनाडा छोड़ना होगा. यह कदम कनाडा सरकार ने वीजा प्रणाली में कड़े प्रावधान लागू करने के मकसद से उठाया है.

‘‘इस से भारतीय नागरिकों को लंबी अवधि के वीजा की सुविधा खत्म हो जाएगी. इस का सब से ज्यादा असर पंजाबी समुदाय के लोगों पर होगा, जिन का कनाडा आनाजाना लगा रहता है. पहले 6 महीने का समय मिलता था, पर नए नियम से कनाडा में 10 लाख लोगों पर संकट आ गया है, जो विजिटर या मल्टीपल वीजा पर कनाडा में हैं.’’

वंदना ने कहा, ‘‘भारत के संबंध कनाडा के साथ इतने ज्यादा अच्छे नहीं हैं. आएदिन दोनों देशों के नेता एकदूसरे पर देश में अशांति फैलाने के इलजाम लगाते रहते हैं.’’

‘‘जब वीजा से जाने वालों पर इतने ज्यादा कड़े नियम बनाए जा रहे हैं, तो फिर डंकी वालों पर तो ये दोनों देश नकेल ही कस देंगे. डोनाल्ड ट्रंप कभी नहीं चाहेंगे कि उन का पड़ोसी देश कनाडा घुसपैठियों का अड्डा बन जाए,’’ अजय बोला.

‘‘क्यों न एक बार अपने दलाल से बात कर ली जाए?’’ वंदना ने अजय से धीरे से कहा.

अगले दिन वे दोनों अपने दलाल के पास गए, तो वह बोला, ‘‘अगले कुछ महीनों के लिए तो तुम दोनों अमेरिका या कनाडा जाने के ख्वाब देखने बंद कर दो. वैसे भी तुम्हें अभीअभी 40 लाख रुपए की चपत लगी है.

‘‘हां, एक काम हो सकता है. अगर तुम दोनों चाहो, तो सस्ते में तुम्हें कंबोडिया भिजवा सकता हूं. वहां तुम्हें 30-40 हजार रुपए महीने की नौकरी मिल जाएगी और विदेश जाने का सपना भी पूरा हो जाएगा.’’

‘‘हम कंबोडिया तुम्हारे भरोसे क्यों जाएंगे? तुम ने तो पहले ही हमारे पैसे हड़प लिए हैं,’’ अजय ने वहां से जाते हुए कहा.

‘‘यह भी ठीक है, पर एक बात का ध्यान रखना कि आजकल कंबोडिया जैसे दक्षिणपूर्व एशियाई देश औनलाइन घोटालों के गढ़ बने हुए हैं. मानव तस्कर भारतीय नागरिकों को नौकरी का झांसा दे कर कंबोडिया ले जा रहे हैं और फिर उन्हें औनलाइन घोटाले और साइबर अपराध करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

‘‘भारत के गृह मंत्रालय के साइबर विंग के सूत्रों ने बताया कि घोटालेबाज डिजिटल गिरफ्तारी के जरीए हर दिन तकरीबन 6 करोड़ रुपए उड़ा रहे हैं.

इस साल के पहले 10 महीनों में ही घोटालेबाजों ने 2,140 करोड़ रुपए उड़ा लिए हैं.’’

अजय और वंदना उस दलाल की यह सलाह सुनते हुए वहां से जा रहे थे. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अचानक से उन दोनों की जिंदगी गहरे अंधेरे में जाती हुई लग रही थी. उन के ख्वाब चकनाचूर हो गए थे.

मैडमजी : इलैक्शन में किसका टिकट कटा

‘‘प्रमोदजी, मैं यह क्या सुन रही हूं…’’ गीता मैडम पार्टी के इलाकाई प्रभारी प्रमोदजी के दफ्तर में कदम रखते हुए बोलीं.

‘‘क्या हुआ मैडमजी… इतना गुस्सा क्यों हो?’’ प्रमोदजी के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वे मैडमजी के गुस्से की वजह जानते हैं.

‘‘प्रमोदजी, बताएं कि पार्टी ने आने वाले इलैक्शन में मेरी जगह उस कल की आई लड़की सारिका को टिकट देने का फैसला किया है. कल की आई वह लड़की आज आप के लिए इतनी खास हो गई है कि उस को मेरी जगह दी जा रही है?’’

‘‘अरे मैडमजी, आप कहां सब की बातों में आ रही हैं. आप तो पार्टी की पुरानी कार्यकर्ता हैं. आप ने तो पार्टी के लिए बहुतकुछ किया है. हम भी आप के बारे में सोचते, पर नेताजी के निर्वाचन समिति को आदेश हैं कि इस बार सब नए लोगों को ही आगे करना है…

‘‘दूसरी पार्टियां रोज नएनए चेहरों के साथ अखबारों में बने रहना चाहती हैं. बस, जनता को दिखाने के लिए हमारी पार्टी भी खूबसूरत चेहरों को आगे लाना चाहती है. ये कल के आए बच्चे हमारी और आप की जगह थोड़े ही ले सकते हैं,’’ बात करतेकरते प्रमोदजी ने अपना हाथ मैडमजी के हाथ पर रख दिया, ‘‘मैडमजी, हमारी नजर से देखो, तो उस सारिका से लाख गुना खूबसूरत हैं आप. पर नेताजी को कौन सम?ाए.’’

प्रमोदजी के चेहरे की मुसकान उन के इरादे साफ बता रही थी, पर छोटू की चाय ने उन को अपना हाथ मैडमजी के हाथ से हटाने पर मजबूर कर दिया.

छोटू चाय रख कर चला गया, तो मैडमजी ने फिर अपनी नाराजगी जताई, ‘‘प्रमोदजी, आप इन बातों से मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. आप के कहने पर मैं ने पिछली बार भी परचा नहीं भरा, क्योंकि आप चाहते थे कि आप की भाभी इलैक्शन लड़े. तब मैं भी नई थी और आप की बात मान गई थी.

‘‘पर अब क्या? सारिका 2 साल पहले पार्टी से जुड़ी है और उस को टिकट मिल रहा है. यह गलत है.

‘‘आप एक बार मेरी मुलाकात नेताजी से तो कराइए.

‘‘प्रमोदजी, मैं ने हमेशा वही किया है, जो आप ने कहा. कितनी बार आप के कहने पर ?ाठ भी बोला…यहां तक कि आप के कहने पर उस मनोहर पर गलत आरोप भी लगाए, ताकि आप इस कुरसी पर बने रहें. पर मुझे क्या मिला?

‘‘प्रमोदजी, आप जो कहेंगे, मैं करूंगी. बस, एक बार टिकट दिलवा दीजिए, फिर देखिए जीत तो मेरी पक्की है. आप समझा रहे हैं न,’’ इस बार मैडमजी ने प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया.

जब मैडमजी ने खुद प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया, तो उन की तो मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने मैडमजी को भरोसा दिया कि वे आज ही नेताजी से उन के लिए बात करेंगे.

मैडमजी अपना धूप का चश्मा सिर से वापस आंखों पर लगा कर दफ्तर से घर चली आईं.

‘‘क्या बात है गीता, आज जल्दी घर आ गईं? कोई पार्टी या मीटिंगविटिंग नहीं थी आज?’’

घर में आते ही मैडमजी सिर्फ गीता बन जाती थीं, जो मैडमजी को बिलकुल पसंद नहीं था.

अपने पति की यह बात सुन कर वे एकदम चिढ़ गईं और बिना जवाब दिए अपने कमरे में चली गईं.

मैडमजी को पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को कमी थी तो एक पहचान की. मैडमजी सुनने की आदत हो गई थी उन को. उन का यही सपना था कि लोग सलाम करें, हाथ जोड़ कर आगेपीछे घूमें. वे सत्ता का नशा चखना चाहती थीं और इस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थीं.

‘‘क्या बात है गीता, बहुत परेशान दिख रही हो?’’ कहते हुए समीर ने कमरे की बत्ती जलाई, तो मैडमजी को एहसास हुआ कि रात हो गई है.

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, सिरदर्द कर रहा है. दवा ली है. ठीक हो जाऊंगी. आप कहीं जा रहे हैं क्या?’’

‘‘हां… तुम को कल रात को बताया तो था कि मैं आज रात को 3 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं. अगर ज्यादा तबीयत खराब हो, तो डाक्टर बुला लेना,’’ समीर इतना कह कर कमरे से बाहर चले गए.

समीर के जाते ही गीता ने फोन उठा कर प्रमोदजी को मिला दिया, ‘‘हैलो प्रमोदजी, मैं बोल रही हूं. क्या आप ने नेताजी से बात की?’’

‘‘अरे मैडमजी, मैं आप के बारे में ही सोच रहा था. आज आप गजब की लग रही थीं. क्या मदहोश खुशबू आती है… अभी तो घर पर हूं, कल दफ्तर जा कर आप से बात करता हूं,’’ प्रमोदजी के पास से शायद उन की पत्नी की आवाज आ रही थी, इसलिए उन्होंने फोन जल्दी रख दिया.

मैडमजी भी कच्ची खिलाड़ी नहीं थीं. सारी रात जाग कर उन्होंने सोच लिया था कि आगे क्या करना है, जिस से सारिका को टिकट न मिले और प्रमोदजी को भी सबक मिल जाए.

अगले दिन अपनी अलमारी से नोटों की 3 गड्डियां पर्स में डाल कर मैडमजी जल्दी ही घर से निकल गईं. सीधे कौफी हाउस पहुुंच कर वे पत्रकारों से मिलीं. उन्हें कुछ सम?ाया और एक नोट की गड्डी उन्हें दी.

फिर वे एक सुनसान जगह पर 6-7 लड़कों से मिलीं. नोटों की बाकी गड्डी और एक फोटो उन को दी. थोड़ी देर बात की और तेजी से निकल गईं. वहां से वे सीधे प्रमोदजी के दफ्तर पहुंच गईं.

वहां अभी कोई नहीं आया था. बस, छोटू सफाई कर रहा था. वे चुपचाप छोटू के पास गईं, उसे कुछ सम?ाया. उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रख दिया.

अब इंतजार था प्रमोदजी के आने का. बाथरूम में जा कर मैडमजी ने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाई और प्रमोदजी का इंतजार करने लगीं.

दफ्तर में मैडमजी को देख कर प्रमोदजी पहले थोड़ा हैरान हुए, पर वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘मैडमजी, आप इतनी सुबहसुबह?’’

‘‘बस, क्या बताऊं प्रमोदजी, सारी रात सो नहीं पाई,’’ इतना कह कर मैडमजी ने साड़ी का पल्लू सरका दिया और बोलीं, ‘‘अरे, यह पल्लू भी न… माफ कीजिए,’’ फिर उन्होंने अदा से अपना पल्लू ठीक कर लिया.

‘‘मैडमजी, आज तो आप कहर बरपा रही हैं. यह रंग बहुत जंचता है आप पर,’’ प्रमोदजी मैडमजी के पास आ कर बोले.

‘‘आप भी न प्रमोदजी, बस कुछ भी…’’ मैडमजी ने अपना सिर प्रमोदजी के कंधे पर रख दिया.

उन्होंने मैडमजी की कमर पर हाथ रखना चाहा, पर उसी वक्त छोटू चाय ले कर आ गया और वे सकपका कर मैडमजी से दूर हो गए और बोले,

‘‘मैं ने तो चाय नहीं मंगवाई. चल, भाग यहां से.’’

‘‘प्रमोदजी, चाय मैं ने मंगवाई थी. रख दे यहां. चल, तू जा,’’ मैडमजी ने फिर अदा से प्रमोदजी की ओर देखा, पर प्रमोदजी को एहसास हो गया था कि वे पार्टी दफ्तर में हैं, इसलिए अपनी कुरसी पर जा कर बैठ गए.

मैडमजी खुश थीं कि छोटू एकदम सही वक्त पर आ गया.

‘‘प्रमोदजी, बातें तो होती ही रहेंगी. आप यह बताओ कि नेताजी से बात कब करोगे?’’

‘‘मैडमजी, बस आज ही… रैली के बारे में बात करने मैं आज ही पार्टी दफ्तर जा रहा हूं. आप के बारे में भी बात कर लूंगा.’’

‘‘पर आप को लगता है कि वे मानेंगे?’’ मैडमजी ने चिंता जताई.

‘‘अरे, वह सब आप मुझ पर छोड़ दो,’’ प्रमोदजी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नहीं, आप ही कह रहे थे न कल कि नए चहरे… बस, इसलिए पूछा… और नेताजी अपना फैसला बदलेंगे,’’ मैडमजी फिर अदा से बोलीं.

‘‘इतने सालों में आप हमें ठीक से जान नहीं पाई हैं. पार्टी में अच्छी पकड़ है हमारी. हाईकमान के फैसले को बदलना मेरे लिए कोई मुश्किल बात नहीं,’’ प्रमोदजी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे थे और मैडमजी कुरसी पर टेक लगा कर उन की बातें अपने फोन पर रिकौर्ड कर रही थीं.

प्रमोदजी आगे बोले, ‘‘मैडमजी, इतने साल तक पार्टी में झाक नहीं मारी है मैं ने. हर किसी की कमजोरी जानता हूं. हर किसी को बोतल में उतार कर ही यहां तक पहुंचा हूं. आप ने तो देखा ही है कि जो मेरी बात नहीं मानता, उस का हाल उस मनोहर जैसा होता है.

‘‘बेचारा कुछ किए बिना ही जेल की हवा खा रहा है. और नेताजी के भी कई किस्से इस दिल में कैद हैं,’’ मैडमजी के सामने अपनी शान दिखाने के चक्कर में प्रमोदजी न जाने क्याक्या बोल गए.

मैडमजी का काम हो चुका था. वे किसी काम का बहाना कर के वहां से निकल गईं. अब उन्हें अगले काम के पूरा होने का इंतजार था. घर जाने का उन का मन नहीं था, इसलिए वे पास की कौफी शौप में जा कर बैठ गईं. समय देखा… अब तक तो खबर आ जानी चाहिए थी.

मैडमजी कौफी पी कर पैसे देने ही वाली थीं कि उन की नजर टैलीविजन पर गई. चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. पर्स उठा कर वापस प्रमोदजी के दफ्तर आ गईं.

प्रमोदजी फोन पर थे. वे काफी परेशान थे, ‘‘नहीं नेताजी, मुझे तो कुछ भी नहीं पता. यह खबर सच्ची है या नहीं… आप यकीन कीजिए, मुझे नहीं पता था कि सारिका कालेज में दाखिले के नाम पर छात्रों से पैसे लेती है…

‘‘पर नेताजी, आप मेरी बात तो सुनो. आप मुझे… ठीक है, जैसा आप कहो,’’ प्रमोदजी ने पलट कर के देखा, ‘‘अरे मैडमजी, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

‘‘क्या हुआ प्रमोदजी?’’ मैडमजी ने झूठी चिंता जताई.

‘‘हां मैडमजी, पार्टी दफ्तर से फोन था. कुछ लड़कों ने किसी टैलीविजन रिपोर्टर को इंटरव्यू दिया है कि कालेज में दाखिला करवाने के नाम पर सारिका ने उन से मोटी रकम ली है. अब देखो, इतना बड़ा कांड कर दिया और हमें कानोंकान खबर तक नहीं…’’

प्रमोदजी कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘नेताजी ने फिर हमें जिम्मेदारी दे दी है. उन का मानना है कि इस बार किसी भी बदनाम आदमी को टिकट तो क्या, पार्टी में भी जगह न दी जाए,’’ कहते हुए प्रमोदजी के चेहरे से एकदम चिंता के भाव गायब हो गए, जैसे उन के शैतानी दिमाग में कुछ आया हो.

‘‘मैडमजी, इस से पहले कि फिर कोई नया चेहरा सामने आए, मैं आप का नाम आगे कर देता हूं… कल नेताजी से मिलने जा रहा हूं, तो आज शाम को पहले आप से एक छोटी सी मुलाकात

हो जाए… दफ्तर के पीछे वाले मेरे फ्लैट पर.’’

प्रमोदजी की बात सुन कर मैडमजी फिर मुसकारा दीं और बोलीं, ‘‘प्रमोदजी, नाम तो आप को मेरा ही लेना होगा और कान खोल कर सुन लो, अगर मेरे बारे में कोई गलत खयाल मन में भी लाए, तो आप भी इस पार्टी में नजर नहीं आएंगे.

‘‘…अब ध्यान से मेरी बात सुनो. जिन लड़कों ने सारिका पर इलजाम लगाया है, वे सारिका के साथसाथ आप का नाम भी ले सकते थे, पर मु?ो इस पार्टी में लाने वाले आप थे, मैं ने हमेशा आप को अपने पिता जैसा माना, इसलिए अपनी परेशानी ले कर मैं आप के पास आई और आप मु?ा पर ही गंदी नजर रखे हुए हैं. शर्म नहीं आई आप को…’’

इतना कह कर मैडमजी ने अपने मोबाइल फोन से अपनी और प्रमोदजी के बीच हुई सारी बातों की रिकौर्डिंग उन्हें सुना दी. प्रमोदजी को पसीने आ गए.

‘‘अब आप के लिए बेहतर होगा कि नेताजी को अभी फोन कर के मेरे नाम पर मुहर लगवा दीजिए, वरना कल आप की यह आवाज हर टैलीविजन चैनल पर सुनने को मिलेगी,’’ मैडमजी पर्स संभालते हुए तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गईं.

शाम होतेहोते मैडमजी के खास कार्यकर्ताओं के उन्हें टिकट मिलने की बधाई देने के फोन आने भी शुरू हो गए थे.

बदलाव : क्या था छपरा ढाणी का राज

‘‘मारकर आइए या मर कर आइए. मेरे दूध की लाज रखना. टीचरजी, मैं तो एक ही सीख दे कर भेजूं छोरे को,’’ छाती ठोंक कर मेजर जसवंत सिंह राठौड़ की मां सुनंदा देवी उसे बता रही थीं.

राजस्थान के सुदूर इलाके में बसा एक छोटा सा गांव ‘छपरा ढाणी’. अर्पिता की बहाली वहां के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में हुई थी.

कुल जमा 20 बच्चे और वह एकलौती टीचर. ऐसा ठेठ गांव उस ने कभी नहीं देखा था. आगे होने वाली असुविधाओं के बारे में सोच कर एक बार तो उस ने भी इस्तीफा देने की ठान ली थी, पर जल्दी ट्रांसफर का भरोसा पा कर वह मन मसोस कर आ गई थी.

स्कूल क्या था जी, एक टपरा था बस. कच्ची मिट्टी का, खपरैल वाला. एक ही कमरे में 5वीं तक की जमात चलती थी. पहलीदूसरी जमात में

5-5, तीसरीचौथी जमात में कुल 8 और 5वीं जमात में सिर्फ 2 बच्चे थे. आगे की पढ़ाई के लिए पास के ही किसी दूसरे गांव में जाना पड़ता था.

पहला दिन अर्पिता को बहुत नागवार गुजरा. अगले दिन सुबह ही एक बच्चा लोटा भर दूध रख गया. शाम को वह खाना ले कर फिर आया. दौड़ कर वह जाने ही वाला था कि अर्पिता ने उसे पकड़ लिया, ‘‘बच्चे, अपना नाम तो बता कर जाओ.’’

‘‘माधव सिंह.’’

‘‘अच्छा माधव, मुझे अपने गांव की सैर कराओगे?’’

वह पलभर के लिए ठिठका और फिर सिर हिला कर हामी भर दी.

माधव कूदताफांदता आगे बढ़ रहा था. पर, अर्पिता को उस बलुई रेत में चलने का अभ्यास नहीं था. बारबार उस के पैर रेत में धंस जाते थे.

‘‘टीचरजी, वह देखिए. वह रामसा पीर का मंदिर है और ये रहे ऊंचेऊंचे टीबे. यहां हम सब बच्चे राजामंत्री का खेल खेलते हैं.’’

‘‘टीबे…?’’ अर्पिता ने सवालिया नजरों से पूछा.

‘‘जी टीचरजी, जब रेत के ढेर ऊंचे से हो कर जम जाते हैं, उसे टीबा कहते हैं. वह हमारे गांव के राजा साहब की गढ़ी. चलिए, आप को उन का महल दिखाता हूं.’’

गढ़ी के द्वार पर ही राजा साहब मिल गए. इतिहास और फिल्में, टीवी सीरियल वगैरह देख कर अर्पिता के मन में राजा की एक अलग ही इमेज बन गई थी. रेशमी शेरवानी, सिर पर ताज और बगल में तलवार खोंसी हुई. पर ये राजाजी तो बिलकुल साधारण कपड़ों में थे.

‘‘आइए टीचरजी, कोई परेशानी तो नहीं हुई हमारे गांव में? कोई भी दिक्कत हो, तो हमें सेवा का मौका जरूर दें,’’ अधेड़ उम्र पार करते राजाजी की भाषा बड़ी अच्छी थी.

बातोंबातों में उन्होंने बताया कि उन की पढ़ाईलिखाई अमेरिका में ही हुई.

वे खुद अपने महल का कोनाकोना दिखा रहे थे, ‘‘यह अस्तबल कभी घोड़ों से भरा रहता था. अब तो बस एक अंबर घोड़ा बचा है, वह भी बूढ़ा और बीमार रहता है.’’

‘‘अरे भुवन सिंह, कुछ खाया या नहीं इस ने?’’

‘‘जी सरकार, अभीअभी वैद्यजी देख कर गए हैं,’’ हाथ जोड़े भुवन सिंह ने जवाब दिया.

‘‘और इधर की तरफ है पुस्तकालय यानी हमारी लाइब्रेरी.’’

देशविदेश के हर विषय से संबंधित करीने से सजी किताबें. अर्पिता के लिए बहुत अस्वाभाविक सा था. रंगीन  कांच के टुकड़ों की कारीगरी से पूरा महल सजा हुआ था. महीन नक्काशी का काम आज भी उस समय की शानोशौकत का परिचय देता था.

‘‘माधव बेटा, अब तुम टीचरजी को रनिवासे में ले जाओ.’’

परदा प्रथा थी. राजाजी वहीं रुक गए और उसे बच्चे के साथ भीतर भेज दिया.

‘‘रानी मां धोक,’’ बच्चा बोला. साथ ही, अर्पिता ने भी हाथ जोड़ दिए.

रानी साहिबा बेटी के सिर में तेल मलती उठ खड़ी हुईं. इस उम्र में भी उन की खूबसूरती और ओज बरकरार था. हंस कर पास बैठाया और अर्पिता के चेहरे पर हैरानी देख कर बोलीं, ‘‘अब सेवकसेविकाएं तो रहे नहीं,’’ और वे मुसकरा दीं.

‘‘बाई सा, टीचरजी के लिए चाय तो बना लाओ और कुंअर सा से भी कह दो कि टीचरजी के दर्शन कर जाएं.’’

‘‘जी मां सा, अभी कहती हूं.’’

अर्पिता को बड़ी हैरानी हुई. मांबेटी के बीच भी बोली में आज भी वही राजसीपन. रात को वह लेटी तो नींद कोसों दूर थी. गांव के बारे में और

ज्यादा जानने की इच्छा बलवती होती जा रही थी.

अगले दिन माधव फिर आया, तो अर्पिता पूछ बैठी, ‘‘एक बात तो बता कि तेरे पिताजी क्या करते हैं? और यह गांव कितना खालीखाली सा क्यों है? रास्ते में कोई दिखता ही नहीं.’’

‘‘बापू फौज में हैं और बाकी मैं नहीं जानता हूं. आप मेरी दादी सा से पूछ लेना,’’ रात के खाने का न्योता देते हुए माधव बोला और शाम को वह तय समय पर उन्हें लेने आ गया.

मौसम बड़ा सुहावना सा था. मोर ‘पीहूपीहू’ की मधुर आवाज करते पेड़ों पर उड़ रहे थे.

‘‘नमस्ते टीचरजी,’’ माधव की दादी सामने ही इंतजार कर रही थीं. गजभर का घूंघट निकाले माधो की मां ने दूर से ही अपनी ओढ़नी का पल्लू जमीन से छुआया और माथे से लगा कर बोलीं, ‘‘नमस्ते टीचरजी.’’

अर्पिता ने बाहर बनी बैठक की ओर रुख किया, तो दादी बोलीं, ‘‘आप भीतर चलिए टीचरजी. यह बैठक मर्दों के लिए है. बाहर का कोई आदमी भीतर घर में नहीं जाता.’’

अर्पिता को हैरानी हुई, पर वह कुछ न बोली. भीतर पीढ़ा लगा कर उसे बैठाया गया. रसोई में माधव की मां उसी घूंघट के साथ मिट्टी के चूल्हे पर बाजरे की गोलगोल फूलीफूली रोटियां बना रही थीं.

दादी ने थाल परोसा. काचरे की सब्जी, खीचड़ा, देशी घी में डूबी हुई रोटियां और लहसुन की चटनी.

‘‘शुरू करो टीचरजी,’’ उन्होंने खाने के लिए कहा और पास ही बैठ कर पंखा ?ालने लगीं.

‘‘इस गांव में बिजली आधी बार ही रहती है. वैसे, बेटा पिछली बार जब आया था, तब इनवर्टर लगा कर गया था, पर उस की भी बैटरी खत्म हो गई है.’’

आखिर अर्पिता के सब्र का बांध टूट ही गया. उस से रहा न गया, तो पूछ ही लिया, ‘‘कितने बेटे हैं आप के?’’

‘‘टीचरजी, एक तो लड़ाई में खेत रहा. दूसरा अभी बौर्डर पर है.’’

‘‘और आप के पति…?’’

‘‘जी, वे तो कब के शहीद हो गए,’’ दादी ने तसवीर की ओर इशारा किया,  ‘‘घबराओ नहीं, यह तो जवानों की शान है,’’ अर्पिता को दुखी देख कर वे बड़ी सधी आवाज में बोलीं.

‘‘एक बात तो बताइए कि पति और एक बेटा जाने के बावजूद भी आप ने दूसरे बेटे को फौज में भेज दिया… डर नहीं लगता?’’

अर्पिता की यह बात सुन कर दादी उस की नासम?ा पर हंसीं और बोलीं, ‘‘देखो टीचरजी, इस गांव में आप को बूढ़े, बच्चे और औरतों के सिवा कोई न मिलेगा. फौज तो राजपूतों की शान है. हमारे तो खून में ही देश की सेवा लिखी है. या तो दुश्मन की छाती चीर देनी है या खुद मर जाना है. अगर औरतें डरती रह गईं, तो देश की सेवा कौन करेगा…’’

‘‘वह देख रहे हो, मेरे बेटे जसवंत सिंह की पत्नी है. बकरियों के लिए चारापानी से ले कर घर का सारा काम करती है, पर उफ तक नहीं करती. मैं खेत संभालती हूं और साथ ही बाहर का काम. बहूबेटियां हमारे यहां परदे में ही रहती हैं.’’

अर्पिता ने देखा कि माधव की मां घूंघट निकाले अब भी दूधदही के बरतनों में लगी हुई थीं.

‘‘क्या मैं आप की बहू से कुछ देर बात कर सकती हूं?’’ अर्पिता ने पूछा.

‘‘अरे, आप तो हमारे गांव की मेहमान हो टीचरजी. हमारे बच्चों को पढ़ाने के लिए आई हो, शिक्षा देने आई हो. आराम से बात करो,’’ कह कर वे बैठकखाने को ठीक करने चल दीं.

माधव की मां का घूंघट अर्पिता को बेहद खटक रहा था. वह उन का चेहरा देखना चाहती थी.

‘‘मैं खुद एक औरत हूं बहन, मुझ से क्या परदा… आप घूंघट हटा दो.’’

थोड़ा सकुचाते हुए माधव की मां ने घूंघट हटा दिया. भीतर सचमुच की रूपकंवर थीं. अर्पिता उन से बड़े ही नपेतुले अंदाज में बात कर रही थी. लग रहा था कि इंगलिश का अगर कोई शब्द निकल गया, तो शायद वे सम?ा न पाएं.

बातोंबातों में अर्पिता ने पूछा, ‘‘आप थकती नहीं हैं, दिनभर यह चारापानी और घर के काम करतेकरते? पति कितने दिनों बाद घर आ पाते हैं?’’

‘‘टीचरजी, ये तो घर के काम हैं, इन से क्या थकना. हालांकि, सरकार सुविधाएं बहुत देती है, पर नौकरों को देने वाले पैसे अगर हम गरीबों को दे तो कुछ सेवा कर पाएंगे.’’

यह सुन कर अर्पिता को बड़ी हैरानी हुई. इतनी बड़ी सोच और वह भी एक अनपढ़ सी दिखने वाली औरत के मुंह से.

फिर माहौल को हलका करने के अंदाज से अर्पिता ने पूछा, ‘‘क्या आप पूरी जिंदगी ऐसे ही बिता दोगी?’’

और इस बार वाकई में हैरान करने वाला जवाब था, ‘‘मैं ने बीए पास किया है और अब बीऐड कर रही हूं. टीचरजी, सासू मां ने कहा है कि सरकारी नौकरी लगते ही वे मु?ो बाहर भेज देंगी.’’

अर्पिता फिर दादी की ओर मुखातिब हुई, ‘‘और यह परदा प्रथा?’’

‘‘जी, यह तो बस इसी गांव तक है. पुराने समय से चलती आई प्रथा है. बहू को पूरी जिंदगी ऐसे ही थोड़े बैठा कर रखेंगे. उस की अपनी जिंदगी है. आगे बढ़े और खूब तरक्की करे.’’

‘‘टीचरजी, आप को छोड़ आऊं?’’ माधव पूछ रहा था.

अर्पिता ने आदर से दादी को प्रणाम किया और रूपकंवर की ओर एक स्नेह भरी नजर डाल कर अपने घर को चल दी.

विधवा सास की तड़प : सलमान अपने होश कब खो बैठा

माहिरा को बच्चा होने वाला था. उस ने मदद के लिए अपनी मां राबिया को बुला लिया. राबिया को करीब देख कर माहिरा का शौहर सलमान अपने होश खो बैठा. एक रात राबिया और सलमान अकेले में मिले. आगे क्या हुआ?

सलमान की शादी को 7 महीने हो गए थे और वह अपनी बीवी माहिरा के साथ खुशीखुशी दिल्ली में रह रहा था. माहिरा पेट से थी और 3 महीने बाद उस की डिलीवरी होने वाली थी.

सलमान को माहिरा की बड़ी चिंता सता रही थी, क्योंकि उस ने माहिरा से लवमैरिज की थी, जिस वजह से उस के घर वाले उस से नाखुश थे, क्योंकि माहिरा एक अलग बिरादरी से थी. लिहाजा, उन्होंने सलमान और माहिरा से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे.

पर, आज जब माहिरा पेट से हुई, तो उस की देखभाल के लिए किसी औरत का होना जरूरी था.

सलमान की कमाई भी कुछ खास न थी, जिस से वह माहिरा की देखभाल के लिए कोई नौकरानी रख लेता, ताकि उसे कुछ आराम मिल सके.

वैसे तो सलमान माहिरा के काम में उस की पूरी मदद करता था, पर ज्योंज्यों माहिरा की डिलीवरी के दिन करीब आ रहे थे, त्योंत्यों सलमान की चिंता भी बढ़ती जा रही थी.

माहिरा ने जब सलमान को परेशान देखा, तो उस ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, आप कुछ परेशान से लग रहे हैं?’’

सलमान ने कहा, ‘‘हां, तुम्हारा ऐसा समय चल रहा है, जिस में तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है और साथ ही तुम्हारे साथ किसी औरत का होना भी जरूरी है.

‘‘यही सोच कर मुझे चिंता हो रही है कि मेरे अम्मीअब्बू ने तो हम से नाता तोड़ लिया है, मैं किसे बुलाऊं, जो ऐसे मुश्किल  समय में तुम्हारा साथ दे सके.’’

माहिरा बोली, ‘‘आप टैंशन मत लो. मैं अपनी अम्मी से बात करती हूं, वे जरूर आ जाएंगी. वैसे भी मेरे भाईभाभी के अलावा वहां और कौन है, जिसे अम्मी की जरूरत हो…

‘‘भाभी अपना काम खुद कर लेती हैं. अम्मी दिनभर घर पर खाली ही रहती हैं. उन का भी यहां आ कर मन लग जाएगा और हवापानी भी बदल जाएगा.

‘‘वैसे भी अब्बा की मौत के बाद अम्मी अकेली हो गई थीं. उस  समय अम्मी की उम्र महज 24 साल थी. लोगों ने उन से बहुत कहा था कि दूसरी शादी कर लो, पर उन्होंने हम भाईबहन पर सौतेले बाप का साया न पड़े, इस डर से दूसरी शादी नहीं की.’’

सलमान बोला, ‘‘ठीक है, तुम अपनी अम्मी को कल ही यहां बुला लो, क्योंकि अब तुम्हारी डिलीवरी में भी एक हफ्ता ही बाकी बचा है.’’

माहिरा ने अगले ही दिन अपनी अम्मी को फोन कर दिया और जल्द आने को कहा. माहिरा की अम्मी राबिया अगले ही दिन दिल्ली के लिए रवाना हो गईं. सलमान उन्हें लेने रेलवे स्टेशन चला गया.

राबिया जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुंचीं, तो सलमान उन्हें देख कर दंग रह गया.

जब से सलमान की शादी माहिरा से हुई थी, उस ने एकाध बार ही चलतीफिरती नजरों से उन्हें देखा था, क्योंकि शादी के फौरन बाद ही वह माहिरा को अपने साथ दिल्ली ले आया था.

राबिया का कसीला बदन और ऊंची उठी हुई छाती देख कर ऐसा लगता था, जैसे वे माहिरा की अम्मी नहीं, बल्कि बहन हैं. उन्हें देख कर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि उन की उम्र 45 साल की होगी.

सलमान ने अपनी सास राबिया को आटोरिकशा में बैठाया और घर ले आया.

राबिया अपनी बेटी माहिरा से मिल कर बहुत खुश हुईं. वे दोनों आपस में बातें करने लगीं और सलमान नाश्ते का सामान लेने बाजार चला गया.

4 दिन बाद ही माहिरा को दर्द उठा, तो उसे जल्दी अस्पताल ले जाया गया. काफी कोशिश के बाद भी माहिरा की नौर्मल डिलीवरी नहीं हो पाई.

डाक्टर ने आपरेशन की तैयारी शुरू कर दी और तकरीबन 3 घंटे बाद माहिरा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जिसे पा कर सलमान और माहिरा दोनों खुश हो गए.

3 दिन बाद ही माहिरा को डिस्चार्ज भी कर दिया. सलमान उसे ले कर घर आ गया.

अभी माहिरा को आए हुए एक हफ्ता ही गुजरा था कि एक दिन सलमान बाथरूम से नहा कर बाहर निकला. उस ने एक तौलिए से अपनेआप को ढांप रखा था.

सलमान की सास राबिया माहिरा के कमरे से निकल कर किचन में जा रही थीं कि उन की निगाह सलमान के गठीले बदन पर पड़ी. वे सलमान को एकटक निहारती रहीं और एक कातिल मुसकान बिखेरते हुए किचन में चली गईं.

सलमान अपनी सास राबिया की कातिल मुसकान को अच्छी तरह समझ चुका था.

राबिया और माहिरा एक ही जगह सोते थे, क्योंकि माहिरा को किसी भी चीज की जरूरत होती तो राबिया ही देती थीं, साथ ही बच्ची के रोने पर भी वे ही उसे अपनी गोद में उठा कर चुप कराती थीं.

सलमान अलग कमरे में सोता था, ताकि आराम से सुबह काम पर जा सके.

एक रात की बात है. सलमान अपने कमरे में लेटा हुआ था. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उसे रहरह कर अपनी सास की कातिल मुसकराहट सता रही थी. उधर राबिया भी सलमान को पाने की ललक में करवटें बदल रही थीं.

रात के 2 बज चुके थे. माहिरा और उस की बच्ची गहरी नींद में सो चुके थे, पर राबिया की आंखों से नींद गायब थी. वे पानी लेने के लिए उठीं और किचन की तरफ बढ़ी ही थीं कि अंधेरा होने की वजह से वे सलमान से जा टकराईं.

सलमान ने अपनी सास राबिया को सहारा देते हुए अपने हाथ आगे बढ़ाए, तो उस के हाथ राबिया की उठी हुई कसीली छाती से जा टकराए. राबिया छटपटा गईं और खुद को सलमान के हवाले कर दिया.

सलमान ने अपने कड़क हाथों से राबिया की उठी हुई छाती को सहलाना शुरू कर दिया. राबिया कई साल से मर्द की इस छुअन से काफी दूर थीं और इस से उन की जिस्मानी तड़प जाग उठी.

सलमान ने अपनी सास राबिया के होंठों पर अपने होंठ रख दिए, तो राबिया ने भी उस के होंठों को चूसना शुरू कर दिया. दोनों तरफ आग भड़क चुकी थी.

सलमान ने राबिया को अपनी बांहों में उठाया और अपने कमरे में ले गया.

राबिया भी सलमान की गोद में एक बच्चे की तरह उस से चिपक गईं. सलमान ने बिना समय गंवाए राबिया के कपड़े उतारने शुरू कर दिए.

राबिया का गोरा और कसा हुआ बदन देख सलमान हैरान रह गया. वह राबिया के बदन को चूमने लगा. राबिया भी पूरे जोश के साथ सलमान के बदन को चूमने लगीं. वे पूरी तरह बेकाबू होती नजर आ रही थीं.

वे दोनों एकदूसरे के बदन से खेलते रहे. कुछ ही देर में दोनों चरम सीमा पर पहुंच कर एकदूसरे से अलग हो गए.

एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो चलता ही रहा. जब भी राबिया और सलमान को मौका मिलता, वे अपने जिस्म की आग को ठंडा कर लेते.

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