एक-दूसरे के करीब लाती है बॉडी की खुशबू

वैज्ञानिकों का मानना है कि प्यार की बढ़ती पींगों में दिल कहीं नहीं आता, यह तो सिर्फ शरीर से निकलते खास कैमिकल्स का खेल है जो प्यार के बीजों को सींचते हैं और एक दिन ये बीज प्यार रूपी पौधे में विकसित हो जाते हैं.

अमेरिका के पश्चिमी भाग में चूहों की ‘प्रेयरी बोल’ नामक एक प्रजाति पाई जाती है. यह अलग किस्म का चूहा है. घरेलू चूहों से यह न केवल रंगरूप और आकार में अलग है बल्कि इसकी आदतें भी अलग हैं. वैज्ञानिकों ने इस को लेकर की गई रिसर्च में पाया कि चूहा प्यार में जल्दी पड़ जाता है. इन प्रयोगों के लिए उन्हें 5 साल का लंबा समय लगा. वैज्ञानिकों ने चूहों को आधार बनाते हुए बताया कि मानवीय प्रेम में भावनात्मक लगाव जैसी कोई बात नहीं है. असल में तो यह सिर्फ कैमिकल्स का खेल है.

चूहों पर इन कैमिकल्स के टैस्ट के दौरान पाया गया कि जब इस प्रजाति के नर और मादा चूहे कम से कम 12 घंटे धूप में साथ नहीं रह लेते, वे शारीरिक मिलन नहीं करते हैं. यही कारण है कि प्यार की यह बौछार वसंत ऋतु में ही हो पाती है, जब कुनकुनी धूप उन्हें सेंकती है, उन की चुहलबाजियों को बढ़ाती है और एकदूसरे के शरीर की छुअन शरीर में कैमिकल्स का स्राव करती है तब उन की प्रेम की कहानी का आगाज होता है.

इस दौरान वैज्ञानिकों ने चूहों के मस्तिष्क में ऐसे कैमिकल्स का पता लगाया जो शारीरिक मिलन के खास तत्त्व हैं. वसंत बीतते ही ‘प्रेयरी बोल’ प्रजाति के नर चूहों में ‘फिरोमन’ नामक एक तेज गंध वाला केमिकल निकलता है जो मादा चूहे को अपनी ओर आकर्षित करता है. जब वे एक-दूसरे के साथ रहने लगते हैं तो कुछ समय बाद ही नर चूहों के शरीर में ‘टेस्टेरोन’ हार्मोन में बढ़ोतरी हो जाती है जो उनके शुक्राणुओं को भी बढ़ा देती है.

वसंत ऊर्जा की ऋतु है. ठंड का ठहराव न केवल शारीरिक क्रियाओं को बल्कि सामान्य गति को भी कम कर देता है. वसंत मन को इस हद तक प्रफुल्लित कर देता है कि शादीशुदा जोड़े भी अपने रोमांस में कमनीयता ले आते हैं. सब से ज्यादा गर्भ भी इस ऋतु में ही धारण किए जाते हैं. वसंत ऋतु में स्पर्श शरीर के जर्म्स यानी कीटाणुओं को मौत थमाता है.

मजे की बात यह है कि वैज्ञानिकों ने जब लैबोरेटरी में ही वसंत का कृत्रिम माहौल पैदा किया तो मादा चूहा खुद ही नर चूहों की ओर लपकने लगा. इस से यह पता चला कि वसंत ऋतु मादकता पैदा करती है.

नर की उत्तेजना को नियंत्रित करने में ‘नाइट्रिक औक्साइड’ बहुत प्रभावी है. ये कैमिकल मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को उत्तेजित करने और नियंत्रित करने में न्यूरो ट्रांसमीटर की तरह काम करता है. चूहों पर किए गए प्रयोग में वैज्ञानिकों ने पाया कि जैसे ही ‘नाइट्रिक औक्साइड’ बनाने वाले एंजाइम यानी ‘एनओएस’ बेकार होते हैं, बेताबी से लिपटे नरमादा चूहे अलग हो जाते हैं. बस यही महत्त्वपूर्ण बात थी जिस ने सिर्फ कैमिकल्स से उपजे प्रेम की बात साबित की.

अब सिर्फ एक के पीछे की दीवानगी को समझना जरूरी है. असल में एक के पीछे की दीवानगी भी कैमिकल का ही खेल है. वैज्ञानिकों ने पाया कि नर चूहों में ‘वेसोप्रोसिन’ और मादा चूहों में ‘औक्सीटोसिन हार्मोन’ ज्यादा असरकारी होते हैं, जो एक ही के प्रति दीवानगी को जन्म देते हैं.

वेसोप्रोसिन इतना प्रभावी नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि ‘वेसोप्रोसिन’ की ज्यादा मात्रा मादा के प्रति लगाव पैदा कर देती है. वह भी इस हद तक कि अगर उसे कोई और छुए तो भी बात मरनेमारने पर आ जाती है. यही है प्रेम की चरम सीमा. यही हाल मादा में ‘औक्सीटोसिन हार्मोन’ की ज्यादा मात्रा पैदा करती है. काश ये कैमिकल्स वहां निकल पाते जहां नफरत हिलोरे लेती है.

आज फाइव स्टार होटलों की संस्कृति कुछ भी हो, मगर बदले रूप में ही सही यहां वसंतोत्सव मनाया जाता है. गरमियोंसर्दियों में इंटरनैट पर इतनी चैटिंग नहीं होती जितनी कि वसंत में होती है. असल में शरीर में ‘टेस्टोस्टेरोन हार्मोन’ सारे फसाद की जड़ है. जब करीबी ज्यादा होती है तब मस्तिष्क से ‘फास’ नामक प्रोटीन निकलने लगता है जो यह संकेत देता है कि स्नायु कोशिकाएं पूरी तरह सक्रिय हैं और प्यार की आग धधक रही है. इसलिए अगर लंबी उम्र पानी है तो किसी से दीवानेपन की हद तक प्यार कीजिए.

प्यार न केवल आप के अंदर स्फूर्ति पैदा करता है बल्कि आप की आंतरिक क्रियाओं को भी बदल देता है. जिसे आप शुरू में नहीं चाहते मगर बाद में बेहद चाहने लगते हैं, इस के पीछे भी प्रेम कैमिकल्स का ही स्राव है. हर किसी के तन में अलगअलग देहगंध बसी होती है. देहगंध पर वैज्ञानिकों ने रिसर्च भी की है.

देहगंध पसीने से अलग है

पसीने से जहां दुर्गंध आएगी वहीं देहगंध जरा हट के होगी. यह गंध पुरुष और स्त्री दोनों में  होती है. मगर स्त्री की गंध का खास महत्व है. यह गंध जवानी में विपरीत सेक्स के आकर्षण का केंद्र बनती है जो शादी के बाद पति पत्नी के बीच कड़ी को मजबूत करने में सीमेंट का काम करती है. मां बनने पर यही गंध बच्चे को ममता का पहला पाठ पढ़ाती है.

कुछ समय पहले देहगंध को लेकर कुछ टेस्ट किए गए थे. इसके लिए महिलाओं के ऐसे वर्ग को चुना गया जिन का प्रसव कुछ दिन पहले ही हुआ था. इस में महिलाओं को पहले नवजात शिशुओं के कपड़े सुंघाए गए. इन कपड़ों में उन के अपने बच्चे का भी कपड़ा था.

एक-एक कर कपड़ों को सूंघती महिलाएं अपने बच्चे के कपड़े पर आ कर रुक जाती थीं. हर महिला ने इसे दुनिया की सब से बेहतरीन गंध बताया. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस गंध के नथुने में पहुंचते ही महिलाओं को अजब अनुभूति होती है.

कई महिलाओं में रोमांच यहां तक हो गया कि उन के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए. कुछ का शरीर ही कंपन में आ गया और उन की बांहें अपने बच्चे को लेने के लिए मचल उठीं.

उपरोक्त टैस्ट के उलट एक और टैस्ट किया गया. इस में गोदी के बच्चों को माताओं के कपड़े सुंघाए गए. वैज्ञानिक हैरान थे कि 6 महीने के बच्चे ने भी अपनी ही मां के कपड़ों पर प्रतिक्रिया जाहिर की. कुछ रोते हुए बच्चे तो अपनी मां का कपड़ा सूंघते ही चुप हो गए. जवानी की देहगंध काफी असरदार पाई गई है जो हर किसी को गुमराह कर देती है. किसी युवती के साथ खड़े भर हो लेना, बड़े खजाने के मिल जाने के बराबर होता है.

वैज्ञानिकों के अनुसार, जवानी में जीवधारियों के शरीर में से ऐसे कैमिकल्स का स्राव होता है जो बाद में बनते ही नहीं. यह शरीर में समाई अतिरिक्त ऊर्जा, उत्साह और कई नई शारीरिक क्रियाओं की देन होती है. मनुष्य के अलावा अन्य जीवों में तो यह गंध विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए खासतौर से निकलती है.

शादी के बाद पतिपत्नी के बीच आकर्षण की कड़ी में देहगंध खास भूमिका निभाती है. शादी के समय कई खुशबूदार पदार्थों जैसे चंदन, चिरौंजी, हल्दी आदि के उबटन का इस्तेमाल देहगंध को और मनभावन करने के लिए किया जाता है ताकि ‘पिया मन भाए’. आजकल ‘बौडी स्प्रे’ यानी परफ्यूम ने यह जगह ले ली है.

सुहागरात की सजावट खुशबूदार फूलों से करना भी माहौल में गंध को फैलाना ही है. फिर भी देहगंध अपना अलग ही असर छोड़ती है.

मानवजीवन से जुड़े इस अनोखे अध्याय पर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है. मगर इस में दोराय नहीं है कि भविष्य में यह देहगंध किसी बड़ी महत्त्वपूर्ण रिसर्च का रास्ता खोलेगी जो एकदूसरे को बांधे रखने में सहायक होगी. तब गंध मिलान की नई शाखा पनपेगी और शादी के लिए शायद यह देहगंध मिलान जरूरी हो जाएगा.

Diwali Special: डाइटिंग छोड़ें डाइट का मजा लें

दीवाली के आने का मतलब होता है ढेर सारा खानापीना, ढेर सारी मस्ती करना. ऐसे में अगर हम डाइटिंग के बारे में सोचने लगे तो मजा फीका होगा ही. इसलिए दीवाली पर नो डाइटिंग. एंजौय करने का जो भी मौका मिले उसे कभी भी डाइटिंग के कारण खराब नहीं करना चाहिए. आप ही सोचिए त्योहार क्या रोजरोज आता है, ऐसे में भी अगर हम हर बाइट के साथ मोटे होने की बात सोचेंगे तो न हम खाने का मजा ले पाएंगे और न ही फैस्टिवल को पूरी तरह एंजौय कर पाएंगे.

अगर हम सही डाइट प्लान बना कर चलें तो 4 दिन हैवी डाइट लेने पर हम मोटे या फिर बीमार नहीं होंगे. आप को सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप को जितनी भूख हो उतना ही खाएं. जरूरत से ज्यादा खाना आप को बीमार कर सकता है.

खाएं और खिलाएं भी

फैस्टिवल मूड और घर में पकवान न बने, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. दीवाली पर घर में दहीभल्ले, पूरी सब्जी, खीर, पकौड़े बनने लाजिमी हैं. ऐसे में हम पकवानों से भरी प्लेट सामने आते ही डाइटिंग की बात कहने लगें तो घर पर त्योहार जैसा माहौल नहीं बन पाएगा. ऐसे में यदि आप बाकी घर वालों के सामने डाइटिंग के चक्कर में सलाद ले कर बैठ जाएं तो आप ही सोचिए कि इस से आप को और बनाने वाले को कैसा लगेगा. इसलिए त्योहार के मौके पर आप के घर कोई आए तो उसे खूब खिलाएं.

खुशी मिलबैठ कर खाने में

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में किसी के पास भी समय नहीं है कि वे साथ बैठ कर खाना खा सकें. सब के औफिस या व्यापारिक प्रतिष्ठान से आने का टाइम अलगअलग होता है. ऐसे में रोज साथ बैठ कर खाना खाना संभव नहीं हो पाता. सिर्फ त्योहार ही ऐसा मौका होता है जब घर में सभी की छुट्टी होती है. ऐसे में हम मिल कर खाना खा सकते हैं और मन को एक अलग ही खुशी मिलेगी. अगर आप औयली चीज देख कर ना कहने लगें तो सामने वाले आप को बोरिंग बोलने से भी नहीं चूकेंगे. इसलिए अपने कारण बाकी लोगों की खुशियों को फीका न करें बल्कि शामिल हो कर दीवाली को यादगार बनाएं.

चार दिन में कोई मोटा नहीं होता

जब आप यह सोच कर बाकी काम कर सकते हो कि 4 दिन अगर पढ़ाई नहीं की तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा या फिर अगर 4 दिन औफिस नहीं गए तो कौन सा वहां का काम रुक जाएगा तो ठीक इसी तरह यदि आप दीवाली पर खुल कर खा लोगे तो कोई मोटापा बढ़ने वाला नहीं है. मोटापा रोजरोज तली हुई चीजें खाने से बढ़ता है न कि कभीकभी खाने से. इसलिए मन से मोटापे का डर निकाल दें.

राष्ट्रीय राजधानी स्थित ईजी डाइट क्लीनिक की डाइटीशियन रेणु चांदवानी कहती हैं कि दीवाली जैसे त्योहार पर न चाहते हुए भी काफी कुछ खा लिया जाता है. ऐसे में हम दीवाली के बाद की डाइट को कंट्रोल कर के संतुलन बना सकते हैं. अगर आप को पूरे दिन में 3 बार मील लेना है तो आप सुबह टोंड दूध लेने के थोड़ी देर बाद फू्रट ले लें या फिर स्प्राउट्स लें. दिन में अगर आप ने एक दाल व एक सब्जी 2 रोटी के साथ ले ली हैं तो फिर रात को खाने में आप दाल व सलाद लें. इस से आप की डाइट बैलेंस रहेगी. आप कुछ दिनों तक उबली हुई सब्जियां खाएं, ऐक्सरसाइज का रुटीन बढ़ाएं. इस से आप को काफी सुधार महसूस होगा.

दीवाली के पर्व पर खूब खाएं पर इस बात का ध्यान रखें कि दीवाली के बाद 1-2 हफ्ते तक फास्टफूड और औयली चीजों को बिलकुल भी न लें. चौकलेट, चिप्स, तले हुए खाद्य पदार्थों को कुछ दिनों तक नजरअंदाज करें. यानी इस दीवाली पर फुल मस्ती. 

क्या करें दीवाली से पहले

पूरी नींद लें : फैस्टिवल पर फुल एंजौय करने के लिए समय पर सोएं व 7-8 घंटे की पूरी नींद लें जिस से आप को थकान महसूस न हो और आप सभी कार्यों को पूरे जोश के साथ कर सकें. जब तक आप की नींद पूरी नहीं होगी तब तक आप तरोताजा महसूस नहीं कर पाएंगे.

त्योहार के पहले ऐक्सरसाइज : दीवाली के 2 हफ्ते पहले से अगर आप रोजाना ऐक्सरसाइज का नियम बना लें तो आप खुद ही अपने में चेंज देखेंगे. इस से दीवाली पर कपड़े पहनने का भी अलग मजा आएगा. स्मार्ट दिखने के लिए अच्छा फिगर होना भी जरूरी है. 2 हफ्ते की ऐक्सरसाइज के बाद अगर आप ने 2-3 दिन खा भी लिया तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

ज्यादा चीनी न लें : उतनी ही चीनी लें जितनी जरूरी हो. ऐसा न करें कि अगर आप ने सुबह दूध में डाल कर 2 चम्मच चीनी ले ली है तो फिर दिन और शाम में भी चीनी वाली चाय या कौफी ले ली. इस से मोटापा बढ़ेगा. पूरे दिन में एक बार ही चीनी लें ताकि बैलेंस डाइट रहे ताकि आप दीवाली पर मिठाइयों का मजा उठा सकें.

कोल्डडिंक्स, फास्टफूड न खाएं : कोल्डडिंक्स व फास्टफूड में कैलोरीज ज्यादा होती है जो आप को बीमार कर सकती है इसलिए त्योहारों से पहले फास्टफूड को कहें बायबाय और हैल्दी फूड यानी फल, सब्जियों को ही अपनी डाइट में शामिल करें.

स्ट्रैस से दूर रहें : स्ट्रैस खुशी के मौके को फीका करता है. साथ ही, ज्यादा स्ट्रैस वजन भी बढ़ाता है क्योंकि जब आप कम सोएंगे तब आप को ज्यादा भूख का एहसास होगा. इसलिए स्ट्रैस से दूर रहें.

दीवाली के बाद

दीवाली के बाद उबली सब्जियां खाएं : दीवाली जैसे त्योहार पर खानेपीने को काफी चीजें हैं. दीवाली के बाद उसे कंट्रोल करने के लिए आप उबली हुई सब्जियां खा कर शरीर को थोड़ा आराम दें. इस से आप को अच्छा महसूस होगा.

ऐक्सरसाइज का टाइम बढ़ाएं : आप को अगर ऐसा लग रहा है कि आप ने दीवाली पर बहुत ज्यादा खा लिया है और शरीर भारीभारी लग रहा है तो ऐक्सरसाइज का टाइम बढ़ाएं. आप पहले आधा घंटा ऐक्सरसाइज करते थे तो उसे 1 घंटा कर दीजिए. इस से आप का शरीर थोड़े ही दिनों में पहले जैसा हो जाएगा.

तले हुए खाद्य पदार्थ से बचें : सब्जियों में ज्यादा घी, तेल न डालें, सिर्फ उतना ही डालें जितनी जरूरत हो. अगर आप दाल में ऊपर से घी डाल कर खाएंगे तो ये आप की सेहत से खिलवाड़ होगा.

Diwali Special: गिफ्ट वही जो हो सही

त्योहार यानी अपनों के साथ खुशियोंभरा समय, जिस में हम अपनी बिजी लाइफस्टाइल में से फुरसत के कुछ पल निकाल कर अपनों के साथ बिताते हैं. उन के साथ बातें करते हैं और खूबसूरत यादें बांटते हैं. अगर इस में उपहार का तड़का लग जाए तो सोने पे सुहागा वाली बात हो जाती है. बता दें कि उपहार लेना भला किसे पसंद नहीं होता. सभी को उपहार भाते हैं. लेकिन कई बार इन उपहारों में थोड़ी स्मार्टनैस न दिखाई जाए तो खुशियों का रंग फीका पड़ सकता है. जबकि, उपहार दे कर आप अपनों के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकान बिखेर देते हैं. चलो जानते हैं कि इस दीवाली अपनों के लिए उपहारों का चयन कैसे करें. पसंद की चीजें दें

उपहार चेहरे पर मुसकान ला देता है, दिल को गार्डनगार्डन कर देता है. इस फैस्टिवल पर आप को अपनों को उपहार के नाम पर सिर्फ उपहार दे कर खानापूर्ति नहीं करनी है, बल्कि इस बार आप उन्हें उन की पसंद की चीजें गिफ्ट करें. जैसे बात करें मम्मीपापा को गिफ्ट देने की, तो आप कुछ समय पहले से ही बातोंबातों में उन के मन की बात जानने की कोशिश करें कि उन का क्या लेने का मन है.

अगर मम्मी को किचन के लिए कुछ खरीदने का मन है और आप को उस बात का आइडिया है तो आप उन के लिए वही खरीदें. यकीन मानें, जब आप उन्हें वे गिफ्ट देंगे तो उन के चेहरे पर जो चमक व खुशी नजर आएगी उस का आप को अंदाजा भी नहीं होगा.

ठीक उसी तरह अगर आप के पापा को कपड़ों का शौक है तो आप उन के लिए एक साइज ऊपर के कपड़े खरीदें. कोशिश करें उन के लिए औनलाइन शौपिंग करने की क्योंकि उस में रिटर्न करने में काफी आसानी होती है. मतलब जिस के लिए भी गिफ्ट खरीदें, उस की पसंद का ध्यान जरूर रखें. वरना चेहरे की मुसकान फीकी पड़ने में देर न लगेगी.

सेहतभरे उपहार दें

उपहारों और खुशियों का आदानप्रदान ही है दीवाली का त्योहार. लेकिन कोरोना महामारी के कारण समय ऐसा चल रहा है कि हर कोई अपनी हैल्थ का खासतौर पर ध्यान रख रहा है और ऐसे में अगर आप इस दीवाली अपनों को मिठाई का उपहार देना चाहते हैं तो अपना इरादा बदल दें. मिठाइयां आप के अपनों को बीमार कर सकती हैं. त्योहार के समय में मिठाइयों में मिलावट का धंधा जोरों पर होता है. ऐसे में आप अपनों को ड्राईफ्रूट्स, ग्रेन, बिस्कुट पैक्स, हैल्दी जूस, सूप पैक्स जैसे सेहतभरे उपहार दें. ये पैक्स अट्रैक्टिव लगने के साथसाथ सेहत का भी ध्यान रखने का काम करेंगे.

गिफ्ट वाउचर भी अच्छा औप्शन

अभी तक आप त्योहारों पर अपनी पसंद के गिफ्ट्स अपनों को देते ही आए हैं. लेकिन इस  दीवाली थोड़ा हट कर सोचें. इसलिए इस बार आप अपनों को गिफ्ट नहीं, बल्कि गिफ्ट वाउचर दें, जिसे आप औनलाइन आसानी से खरीद सकते हैं. जिसे आप इस वाउचर को दे रहे हैं, उन के नाम का मैसेज भी उस में ड्रौप कर सकते हैं. बहुत ही यूनीक आइडिया है.

बच्चों को दें क्रिएटिव चीजें

अगर इस दीवाली आप अपने घर के बच्चों के लिए गिफ्ट ले जाने को सोच रहे हैं तो उन्हें प्लास्टिक के टौयज या अन्य खिलौने देने के बजाय कुछ सीखने वाली चीजें दें. जैसे, आप उन्हें साइंस से जुड़े हुए कुछ मौडल बनाने वाले टौयज दे सकते हैं, उन के कोर्स से जुड़ी हुई कुछ काम की किताबें या फिर ऐसे गेम्स जो उन्हें खेलखेल में मजे के साथ लर्न करना भी सिखाएं. इस से उन्हें उपहार भी मिल जाएगा और इस बहाने वे कुछ काम की चीजें भी सीख जाएंगे.

जब कुछ न समझ आए

अगर आप सम झ नहीं पा रहे हैं कि आप इस त्योहार अपने घर गिफ्ट में क्या ले कर जाएं तो आप को हम एक बैस्ट औप्शन बताते हैं, जो हमेशा हर घर की जरूरत में शामिल रहता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बैडशीट की, जो हर मौम या फिर आप जिन्हें भी इसे देंगे, इसे जरूर इस्तेमाल करेंगे और इस गिफ्ट को पा कर वे अपनी खुशी का इजहार न करें, ऐसा हो ही नहीं सकता. कोशिश करें जब भी आप बैडशीट का चयन करें तो साइज बड़ा ही चुनें, क्योंकि अगर आप कई लोगों के लिए ले रहे हैं तो पता नहीं किस के बैड का साइज क्या है. इसलिए, बड़ा साइज चुनने में ही सम झदारी है. यकीन मानिए, यह गिफ्ट हर किसी को पसंद आएगा.

एक्सपायरी जरूर देखें

आप अगर त्योहार पर घर में गिफ्ट के साथ खानेपीने की चीजें ले जाने के बारे में सोच रहे हैं तो कुछ बातों का ध्यान रख कर ही खरीदें. जैसे, प्रोडक्ट्स की एक्सपायरी जरूर चैक करें, पैकेट कहीं से फटा तो नहीं है, इस बात का ध्यान जरूर रखें. मिठाइयां खरीदने से बचें और अगर खरीद भी रहे हैं तो ज्यादा चाशनी वाली व खोए वाली मिठाई खरीदने से बचें क्योंकि चाशनी वाली मिठाई से आप का बैग खराब होने का डर बना रहता है वहीं त्योहारों पर खोए वाली मिठाई में सब से ज्यादा मिलावट के चांसेस रहते हैं, जो अपनों की हैल्थ को खराब कर सकती है. इसलिए आप इस की जगह अच्छी व ब्रैंडेड दुकान से नमकीन, बिस्कुट, ड्राईफ्रूट्स, टौफी के पैकेट खरीद लें. ये त्योहारों पर बहुत काम के साबित होते हैं.

होम लाइट्स भी अच्छा गिफ्ट

दीवाली पर हर किसी को अपने घर को सजाने का दिल करता है. ऐसे में इस त्योहार अगर आप अपने घर जा रहे हैं तो आप घर को सजाने के लिए मार्केट में मिलने वाली अच्छी लाइट्स जैसा गिफ्ट भी अपनों को दे कर उन के चेहरे पर मुसकान ला सकते हैं. इस के लिए आप आजकल डिमांड में चल रहे एलईडी लाइट्स या बल्ब्स के औप्शन को भी चूज कर सकते हैं. यकीन मानिए, इन लाइट्स से जब आप का घर चमकेगा तो आप के अपनों के चेहरे पर खूब खुशी नजर आएगी. तब आप को सम झ आएगा कि शायद इस गिफ्ट से बेहतर और कोई गिफ्ट हो ही नहीं सकता था.

कपड़ों का सलेक्शन ध्यान से

त्योहार मतलब अच्छा खानापीना, लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना व नए कपड़े पहनना व एकदूसरे के साथ खूब खुशियोंभरे पल बांटना. ऐसे में अगर आप अपनों के लिए कपड़े ले जाने की सोच रहे हैं तो थोड़ा सम झदारी से काम लें. अगर ले जाना है तो एक साइज बड़े कपड़े खरीदें या फिर इस संबंध में किसी अपने की सलाह लें ताकि आप को सही साइज की गाइडैंस मिलने के साथ सलैक्शन में आसानी हो. हमेशा ट्रैंड में चल रहे कपड़े ही खरीदें, और जितना संभव हो अपने आसपास या नजदीकी मार्केट से ही खरीदें और साथ ही, रिटर्न पौलिसी के बारे में भी जरूर पूछ लें ताकि बदलने में आसानी हो.

फोटो फ्रेम दें उपहार में

जरूरी नहीं कि दीवाली पर कपड़े या फिर मिठाई ही उपहार के रूप में दी जाएं, आप थोड़ा क्रिएटिव सोचते हुए इस बार अपनों के यादगार पलों को मनचाहे फोटो फ्रेम में कैद कर के अपनों को ये शानदार गिफ्ट दे सकते हैं. जब भी उन की नजर आप के इस गिफ्ट पर जाएगी तो वे उन्हें आप की याद दिलवाने के साथसाथ आप के इस गिफ्ट की तारीफ करने को मजबूर जरूर करेंगे तो थोड़ा यूनीक सोचिए इस बार.

बजट का भी ध्यान रखें

चाहे बात हो औनलाइन की या औफलाइन की, जब भी आप कुछ खरीदें तो बजट का ध्यान जरूर रखें. साइट्स पर कंपेयर कर के ही खरीदें. कोशिश करें कि बिलकुल आखिरी समय पर न खरीदें, क्योंकि इस से आप का बजट गड़बड़ा सकता है. पहले से ही प्लान कर लें कि घर में किस के लिए क्या खरीदना है. इस से आप को चीजों को सलैक्ट करने में आसानी होगी. इस तरह आप दीवाली पर अपनों को जरूरत के हिसाब से व पसंद के गिफ्ट्स दे कर उन के चेहरे पर मुसकान ला सकते हैं.

Diwali Special: बॉयफ्रेंड के साथ दीवाली

दीवाली आते ही खुशियों का माहौल बनने लगता है. खुशियों को मिल कर मनाना चाहिए. ऐसे में दीवाली गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड मिल कर मनाते हैं. आज समय बदल गया है. गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड अब जौब वाले भी हैं. वे खुद पर निर्भर होते हैं. पहले गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड टीनएज में होते थे तो उन के दायरे भी सीमित होते थे. आज युवा जल्दी ही जौब करने लगे हैं. इस के अलावा घरों से दूर होस्टल में या दूसरे शहरों में रह रहे हैं.

ऐसे में वे पहले के मुकाबले ज्यादा आजाद होते हैं. उन के सामने अब अवसर होते हैं कि वे आपस में मिल कर फैस्टिवल मना सकते हैं. पार्टीज करने के लिए जरूरी नहीं है कि महंगे होटल या पब में जाएं. किसी दोस्त के घर या छोटे होटल, पार्क में भी इस को कर सकते हैं.

प्रोफैशनल स्टडीज कर रही इसिका यादव कहती हैं, ‘‘गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड ही नहीं, हम अपने सामान्य फ्रैंड्स के साथ भी दीवाली कुछ खास तरह से मना सकते हैं. कालेज और होस्टल में रहने वाले लोग छुटिट्यों में अपने घर जाते हैं. ऐसे में दीवाली से पहले दीवाली पार्टी और दीवाली के बाद भी पार्टी का आयोजन कर सकते हैं. उस में खास दोस्तों को बुला सकते हैं. पार्टी में डांस, म्यूजिक, गेम्स और कई तरह के प्राइजेज के साथ खानेपीने के अच्छे मैन्यू रख सकते हैं. युवाओं को यह अच्छा लगता है. दीवाली रोशनी यानी लाइटिंग का त्योहार होता है. पार्टी में लाइटिंग भी होनी चाहिए.’’

होस्टल में रहने वाले और कोचिंग के जरिए जौब की तैयारी करने वाले कुछ युवाओं की जब जौब लग जाती है तो वे अपनी तरफ से भी ऐसी पार्टी का आयोजन दीवाली सैलिब्रेशन के साथ कर लेते हैं जिस से उन की सक्सैस पार्टी भी हो जाती है और दीवाली की सैलिब्रेशन पार्टी भी. अपनी उम्र और अपनी पसंद के लोगों के साथ पार्टी करने का आनंद ही अलग होता है. ऐसे में दीवाली सैलिब्रेशन पार्टी बहुत अच्छी होती है. ज्यादातर लोगों की प्लेसमैंट के बाद इन्हीं महीनों में जौब लग चुकी होती है तो वह एक खास अवसर भी होता है.’’

अलग अंदाज में दें बधाई

दीवाली में बधाई देने का अंदाज पिछले साल से कुछ अलग हो, इस बात का खास खयाल रखें. पहले ग्रीटिंग कार्ड का जमाना था. इस के बाद एसएमएस आया और अब सोशल मीडिया आने के साथ व्हाट्सऐप के जरिए संदेश भेजे जाने लगे. कई बार लोग किसी और के भेजे गए बधाई संदेश आगे फौरवर्ड कर देते हैं.

ध्यान रखें, अब फौरवर्ड किए मैसेज में यह लिख कर आने लगा है कि यह मैसेज फौरवर्ड किया हुआ है. कुछ मैसेज में भेजने वाले का नाम लिखा होता है. कई बार जल्दी मैसेज भेजने के चक्कर में लोग दूसरे का नाम हटाना भूल जाते हैं. यह बहुत हास्यास्पद लगता है. जब भी किसी और का मैसेज आगे भेजते हैं तो उस को ध्यान से देख लें. गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड ही नहीं, आम फ्रैंड्स को भी दीवाली की बधाई नए अंदाज में दें.

पूजा वाजपेई कहती हैं, ‘‘कोशिश करें कि खास दोस्तों को मिल कर बधाई दें. अगर दोस्त किसी और शहर में है तो फोन से बधाई दें. बधाई देने जाएं तो अपने साथ कुछ गिफ्ट जरूर ले कर जाएं. दोस्त किसी बाहरी शहर में है तो उस को कुरियर से गिफ्ट भेज सकते हैं.

‘‘आजकल औनलाइन गिफ्ट भेजना सरल हो गया है. दीवाली में गिफ्ट की कीमत की जगह आप के इमोशन दिखने चाहिए, यही युवाओं को पंसद आता है. पार्टी भी केवल कौफी की हो तो भी बेहद अच्छी लगती है. पार्टी में इस बात का खयाल रखें कि किसी भी तरह की नशे की चीजों का प्रयोग न करें. आजकल पार्टियों में नशे का प्रयोग होने लगा है. युवा ऐसी पार्टी से बच कर रहें.’’

उपहार में पैकिंग हो खास

उपहार देते समय इस बात का खास खयाल रखें कि गिफ्ट उस को पसंद आए. लड़कियों को डायमंड रिंग, नैकलैस, चौकलेट, परफ्यूम, एथनिक ड्रैसें पसंद आती हैं. ऐसे में अपने फ्रैंड की पसंद की चीजों को गिफ्ट में दें. किसी फ्रैंड को बुक्स बहुत अच्छी लगती हैं. आजकल तमाम तरह के गिफ्ट वाउचर भी हैं जिन को भी गिफ्ट की तरह से दे सकते हैं.

ब्यूटी सैलून के तमाम पैकेज होते हैं. वे अपनी गर्लफ्रैंड को दे सकते हैं. गिफ्ट आइटम की पैकिंग का काम करने वाली प्रीति शर्मा कहती हैं, ‘‘गिफ्ट देते समय इस बात का खास खयाल रखें कि उस की पैकिंग बेहद आकर्षक हो. आजकल ऐसे बहुत सारे प्रयोग होने लगे हैं जिन से दीवाली खास हो जाती है. पैकिंग को देने वाले या पाने वाले की रुचि के हिसाब से भी तैयार किया जा सकता है.‘‘

लड़कों को उपहार देना हो तो अच्छी ड्रैस दे सकते हैं. जैकेट, शर्ट और टीशर्ट आज के युवा बहुत पसंद करते हैं. उन्हें सिलवर या डायमंड के सिक्के भी दे सकते हैं व होम डैकोर की चीजें दे सकते हैं. वाल स्टीकर भी दिए जा सकते हैं. अलगअलग तरह की कैंडल्स भी दी जा सकती हैं. इन सब के साथ खानेपीने की चीजें भी उपहार में दें.

दीवाली में प्रदूषण को ले कर भी जागरूकता की जरूरत होती है. ऐसे में जरूरी है कि हम गिफ्ट में छोटेछोटे प्लांट या बोनसाई भी दे सकते हैं. घर में हरीभरी चीजें देखने को मिलती हैं तो बहुत अच्छा लगता है.

‘छप्पन भोग’ मिठाई शौप के मालिक नमन गुप्ता कहते हैं, ‘‘दीवाली गिफ्ट में अपने इलाके की मशहूर खानेपीने की चीजें दे सकते हैं. आज आसान बात यह है कि इन की औनलाइन शौपिंग कर के देशविदेश कहीं भी भेजा जा सकता है. ज्यादातर लोग एकजैसी खाने की चीजें ही भेजते हैं. सोहन पापड़ी को ले कर तमाम तरह के जोक्स बन चुके हैं. अगर आप अपने यहां की मशहूर खाने की चीजें उपहार में देंगे तो उस का अलग असर पड़ेगा.

‘‘अब कुरियर से तय समय और दिन में भी डिलीवरी देने का सिस्टम बन गया है. ऐसे में दीवाली के दिन शाम को सैलिब्रेशन के समय ही गिफ्ट खास दोस्त तक पहुंच सकता है.’’

मोटी लड़कियां: खूबसूरती में अव्वल

Writer-  किरण बाला

माना कि हर लड़की छरहरा बदन चाहती है, लेकिन कई बार न चाहते हुए भी शरीर मोटा या भारी हो जाता है. तमाम कोशिशों के बावजूद मोटापा घटने का नाम नहीं लेता. ऐसे में आप क्या करें? क्या अपने को असुंदर या भद्दी मान कर अपने ही शरीर से नफरत करने लगें या शर्मिंदगी की वजह से घर से बाहर निकलना छोड़ दें? क्या इस का संताप पाल कर बैठ जाएं? ऐसा कुछ भी न करें. आप जैसी भी हैं, अच्छी हैं और उसी रूप में अपने को स्वीकारें.

मोटी युवतियां भी कम आकर्षक नहीं होतीं. भरा हुआ शरीर भी सुंदर लगता है. फिल्मी दुनिया में भी ऐसी कई अभिनेत्रियां हुई हैं जो मोटी होने के बावजूद लोकप्रिय रहीं. टीवी के रिऐलिटी शो में भी अनेक मोटी युवतियां और महिलाएं हैं जो अपनी विशिष्ट अदाओं से दर्शकों का मनोरंजन करती हैं या उन्हें लुभाती हैं.

शरीर से आप भले ही भारी हों लेकिन स्वभाव से हंसमुख हों तो मोटापे के बावजूद आप खूबसूरत लगेंगी. आप की मधुर मुसकान और मीठी वाणी सुंदरता को बढ़ाती ही है और व्यक्तित्व को आकर्षक भी बनाती है. आप अपनी व्यहारकुशलता से लोगों को अपनी तरफ खींच सकती हैं.

ऐसी बात नहीं है कि मोटी लड़कियों को प्यार करने वाले लड़के नहीं मिलते. प्यार किसी के मोटेपन या दुबलेपन को देख कर नहीं किया जाता. प्यार दिल से होता है. उन लड़कों की भी कमी नहीं है जिन की प्रेमिकाएं उन से कहीं अधिक भारी हैं. ऐसे शादीशुदा जोड़े भी कम नहीं हैं. मोटी लड़कियों की विवाहित जिंदगी भी सामान्य और सुखद होती है, इसलिए उन्हें किसी तरह की हीनभावना नहीं पालनी चाहिए.

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सुंदरता की कोई परिभाषा नहीं होती. जिस को जो भा जाए वही सुंदर है. यानी हर व्यक्ति के लिए सुंदरता की परिभाषा भिन्न होती है. कोई किसी के चेहरे से प्रभावित होता है तो कोई उस की कदकाठी से. इसी प्रकार कुछ वैयक्तिक गुणों को अहमियत देते हैं तो कुछ उस के रंगरूप को. कुछ की नजर में मोटी लड़कियां अधिक खूबसूरत होती हैं तो कुछ छरहरी लड़कियां पसंद करते हैं. इसलिए आप को चाहने वालों की कमी नहीं है.

यदि आप का कद 5 फुट से कम है तो थोड़ा सा भी बढ़ता वजन आप को मोटी दिखा सकता है. यदि आप लंबे कद की हैं, तो उतना ही वजन बढ़ने पर भी आप मोटी नजर नहीं आएंगी. लेकिन कद को बढ़ाना अपने हाथ में नहीं है, इसलिए छोटे कद की लड़कियों को अपने वजन के प्रति सतर्क रहना चाहिए.

मोटापा आनुवंशिक भी हो सकता है. यदि ऐसा है तो इस में आप का कोई दोष नहीं. आप लाख कोशिश कर लें, मोटापा कम नहीं होगा. इसी प्रकार, हार्मोन की गड़बड़ी की वजह से भी मोटापा बढ़ सकता है.

कुछ युवतियों में डायबिटीज या थायराइड की वजह से भी मोटापा बढ़ जाता है. इस के अलावा भी कई कारण होते हैं मोटापे के. इन में सब से आम कारण है खानपान, जैसे खाने में अधिक तेल, घी, मक्खन आदि का सेवन करना, फास्ट फूड का शौकीन होना आदि.

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यदि आप आरामतलबी जिंदगी जीना पसंद करती हैं, शारीरिक गतिविधियां और व्यायाम से दूर रहती हैं तो भी आप के शरीर पर चरबी चढ़ती जाएगी.

हो सकता है कि कुछ लोग मोटापे की वजह से आप का मजाक उड़ाते हों लेकिन इस पर गुस्सा करने या नाराज होने के बजाय हंस कर टाल देने में समझदारी है.

मोटी युवतियों को अपने पहनावे पर विशेष ध्यान देना चाहिए. उन के स्तनों का आकार काफी बड़ा या भारी होता है, सो उन्हें अच्छी कंपनी की ब्रा पहननी चाहिए ताकि वे कसे हुए रहें. अन्यथा चलतेफिरते, दौड़भाग करते समय वे भद्दे लगते हैं. वैसे, ऐसी दवा नहीं है जिस से इन के आकार को घटाया जा सके.

आप को अपनी चालढाल पर भी ध्यान देना चाहिए. कई बार इस वजह से भी आप हंसी या उपहास का पात्र बनती हैं. यदि आप के नितंब काफी फैले हुए या बाहर की ओर निकले हुए हैं तो ऐसा पहनावा रखें जिस से उन के उभार नजर न आएं. यही बात पेट और कमर के बारे में है. आप अपने पहनावे से इन्हें छिपा सकती हैं. यदि आप मोटी हैं तो आप को अपना सालाना मैडिकल चैकअप यानी स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए तथा हर माह अपना वजन चैक करना चाहिए. आप को अपने डाक्टर और डाइटीशियन के निर्देशों का पालन करना चाहिए.

आप का मोटापा और न बढ़े, इस के लिए नियमित रूप से व्यायाम आदि करना चाहिए. चाहे तो इस के लिए जिम या व्यायामशाला जौइन कर सकती हैं.

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मोटापा घटाने के लिए डाइटिंग करने की नहीं, सही डाइट का चुनाव करने की जरूरत है. डाइटिंग करने से शरीर कुपोषण का शिकार हो जाता है. शरीर सुस्त और बेजान सा लगने लगता है. डाइटिंग का असर चेहरे पर भी देखा जा सकता है. चेहरे का नूर समाप्त हो जाता है तथा वह बुझाबुझा सा दिखाई देने लगता है. इसलिए संतुलित आहार लें, इस से आप आकर्षक तो दिखेंगी ही, चेहरे का तेज भी बना रहेगा.

उन लड़कियों की भी कमी नहीं है जो कि शादी के पूर्व सामान्य थीं, लेकिन शादी के बाद, खासतौर से एकदो बच्चे होने और औपरेशन करा लेने के बाद, वे मोटी हो जाती हैं. डिलीवरी के बाद उन का शरीर सामान्य अवस्था में नहीं आ पाता और पेट, कमर या नितंब बढ़े हुए ही रह जाते हैं. इसलिए इस बारे में सोचना छोड़ दें. पति के लिए पहले भी आप खूबसूरत थीं और आज भी हैं. उस के प्यार में कमी नहीं आएगी.

मोटापे को एक अभिशाप न मानें. अन्यथा जी नहीं पाएंगी. जो है, सो है. उसे वरदान या अभिशाप बनाना आप के हाथ में है. जैसा सोचेंगी, वैसा महसूस करेंगी. जिंदादिली से जिएं जिंदगी.

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पति की दूरी, आखिर कैसे बने नजदीकी

शायद ही ऐसी कोई पत्नी होगी जो अपनी शादी पर 2-4 आंसू न बहाती हो. शादी के कुछ साल गुजरने के बाद पति में तो अपनी भावनाएं व्यक्त करने की काबिलीयत जैसे कुम्हला सी जाती है और पत्नी अपने पति को दिनबदिन नीरस बनता देखती रहती है, जिस से उस का मन व्यग्रता और हताशा से भरने लगता है. ये दूरियां एक ऐसी कशमकश पैदा करती हैं जिस की शिकायत पत्नियां बरसों से करती आई हैं, उन्हें रविवार की दोपहर को क्रिकेट मैच में, अखबार के पन्नों में या फिर चुप्पी में सिमटा या लिपटा पति मिलता है.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पतिपत्नी के बीच बढ़ती दूरियों के लिए उन की स्वभावगत कमियां इतनी जिम्मेदार नहीं होतीं जितनी दंपती की आपसी बातचीत में आई कमी. स्टेट यूनिवर्सिटी औफ न्यूयार्क के मैरिटल थेरैपी क्लीनिक के निदेशक व क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट के. डेनियल ओ लैरी के अनुसार, दांपत्य में जो सब से बड़ी व आम समस्या देखने को मिलती है वह पति के द्वारा अपनेआप को दूर रखने या अपने को समेट लेने से आई दूरियों के कारण होती है. यह सब से ज्यादा नुकसानदेह होती है. इस समस्या का समाधान भी सब से मुश्किल होता है. ये दूरियां गुजरते समय के साथ ज्यादा गंभीर बनती जाती हैं, क्योंकि पति समय के साथसाथ अपने व्यवसाय और कैरियर में अधिक उल झता जाता है.

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बढ़ती दूरियां

यह कैसी विडंबना है कि जहां पुरुष ने पहले की तुलना में अपनी भावुकता को खुली छूट देते हुए भावनाओं को व्यक्त करने से जुड़ी  िझ झक त्यागी है, वहीं अपनेआप में सिमटे रहने का उस का अपना अलग ही अंदाज दांपत्य में मुश्किलें खड़ी करने लगा है. मैगी ने अपनी मशहूर पुस्तक ‘इंटीमेट पार्टनर्स : पैटर्न इन लव एंड मैरिज’ में लिखा है कि जहां तक मैं सम झती हूं, क्लीनिकल साहित्य में किसी भी प्रकार के वैवाहिक संबंध में इतना उल झाव नहीं देखा जाता जितना उल झाव तब पैदा होता है, जब पति अलगथलग रहने लगे व अपनेआप में सिमटने लगे. यही बात अगर बेबाकी से कही जाए तो हताश पत्नी के लिए पति अलभ्य और अप्राप्य बन जाता है.

हताश पत्नी, जो कि भावनात्मक रूप से जिस पतिरूपी पुरुष में विश्वास के साथ यह आशा रखती है कि वह उसे प्यार करता है और उसे हमेशा सहारा देगा, वही उसे एकदम गैर जैसा लगने लगता है, क्योंकि पति की तरफ से उसे ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता, जो पत्नी को यह महसूस कराए कि वह उस की भावनाओं के प्रति कैसा महसूस करता है. पति ऐसे हालात में पत्नी की बातों का जवाब सपाट तरीके से देता है. उसे बांहों में भरता भी है तो महज अपनेआप से जुड़ी सेक्स की इच्छा के लिए. वह पत्नी को यह महसूस नहीं कराता कि वह उस के करीब रहना चाहता है.

इस तरह की दूरियां किसी  झगड़े, तनाव या नाराजगी से नहीं होतीं. इन दूरियों का जिम्मेदार स्वयं पति होता है, क्योेंकि ये उस के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर सिमटने के कारण होती हैं. जया गुप्ता के अनुसार, जब अचानक उन का गर्भपात हुआ तो उस के बाद उन के पति उन से दूरदूर रहने लगे. पति का शरीर उन के पास बैठा होता था और मन कहीं दूर रहता.

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अभिव्यक्ति का अभाव

कई बार ग्लानि का शिकार हो कर अपने द्वारा बुनी गई शंकाओं में पति खुद ही उल झते जाते हैं और उन्हें अपने अंदर पनपती ठंडक और रूखेपन का खुद ही एहसास नहीं होता. डा. चंदन गुप्ता के अनुसार, ज्यादातर पुरुष ऐसे ही होते हैं. वे महिलाओं की तरह अपनी भावनाओं को खुल कर नहीं दर्शाते. पुरुषों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि उन्हें अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं करना है, जबकि महिलाओं को अपनी भावनाएं व्यक्त करने की पूरी छूट होती है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक सैमुअल ओशेरसन का मानना है कि अपनेआप में सिमटने की पुरुष की प्रवृत्ति के पीछे उस की किशोरावस्था के हादसों से जुड़े कुछ गहरे दुखदायी घाव होते हैं, जो समय के लंबे अंतराल के बावजूद मनोवैज्ञानिक स्तर पर नहीं भरते. मनोवैज्ञानिक स्तर पर आहत ऐसे व्यक्ति मानसिक  अकेलेपन से बहुत कम उबर पाते हैं. फ्रायड के अनुसार, पुत्र जब पिता की स्वीकृति या प्रशंसा पाने के लिए मां के प्रति अपने आकर्षण को  झटक देता है तो मां से भावनात्मक दूरी उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ती है, जिस से उबरने के लिए वह सारी उम्र जू झता रहता है. वह जो खो बैठता है उसी की आदर्शमय कल्पना को थामे रहता है और दृढ़ता के साथ अपनी भावनात्मक आवश्यकताओं के लक्षणों को छिपा जाता है. फ्रायड द्वारा इसे पुरुष में उत्पन्न ईडियस अंतर्द्वंद्व का नाम दिया गया है. ऐसी स्थिति में पति जब बालसुलभ इच्छाओं और आवश्यकताओं से घिरता है तो पत्नी को उसे एक छोटे बच्चे की तरह सम झने की आवश्यकता होती है.

कई पति, पत्नी से मिले अनुराग और उस की दिलचस्पी का गलत अर्थ निकालते हैं. उन्हें लगता है कि भावनात्मक रूप से कमजोर पलों में पत्नी उन के मन की गहराइयों में छिपे राज या अनकही अनुभूतियों तक पहुंचना चाहती है. इस तरह का पत्नी में अविश्वास उन के संबंधों की दूरियां बढ़ाता है. पत्नी के प्यार को मात्र रि झाने और मन की थाह लेने की प्रक्रिया न सम झें, क्योंकि पत्नी प्यार में राजनीति नहीं करती.

भावनाओं को जानें

जैविक रूप से भी पुरुष अपनी भावनाएं छिपाता है. कोरनेल मेडिकल सेंटर, न्यूयार्क के मनोवैज्ञानिक विश्लेषक जौन मुंडेर रौस के कथनानुसार, महिलाओंकी अपेक्षा पुरुष ज्यादा आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं और पुरुष से जुड़ी यही विशेषता हर जाति और हर संस्कृति के पुरुषों में समान पाई जाती है. पुरुष जितना ज्यादा आक्रामक प्रवृत्ति का होगा उस में संवेदनशीलता और भावनात्मक रूप से जुड़ने की प्रवृत्ति की उतनी ही कमी पाई जाएगी. पुरुष बचपन से ही मां के जरिए संवेदनशीलता और भावनात्मकता का अनुभव करता है. पिता का व्यक्तित्व कठोरता, दृढ़ता और गंभीरता सिखाता है. वह यही सब देखते हुए बड़ा होता है तो उसे अपनी भावनात्मक कमजोरियां और डर छिपाने की आदत पड़ जाती है. यही कारण है कि वह अपने डर व परेशानियां पत्नी से छिपाता हुआ उस से दूर होने लगता है.

पत्नियां पति को ले कर पनपती दूरियों से परेशान हो सकती हैं. लेकिन इस समस्या का हल पहचान नहीं पातीं. पत्नी को पति के मन की गहराइयों में छिपी चिंताओं और डरों को जानना होगा. तभी वह दांपत्य में पति की चुप्पी से पनपती दूरियों को पाट पाएगी. न्यूयार्क की वैवाहिक व सेक्स संबंधों की थेरैपिस्ट शिर्ले जुसमैन के अनुसार एक तरफ तो पत्नी चाहती है कि पुरुष अपने मन की सभी बातें उस के आगे खोल कर रख दे और दूसरी तरफ जैसे ही पुरुष ऐसा करता है तो वह सहम जाती है, क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया जाता है कि भावनात्मक कमजोरी पुरुष के लिए अच्छी नहीं. पति कई बार पत्नी को इसी डर से बचाए रखने के लिए अपनी भावनाएं, भय और शंकाएं पत्नी से नहीं बांटता. इसलिए अगर पत्नी चाहती है कि पति अपनी चिंताएं और परेशानियां बांटे, अकेले ही चुप्पी लिए दूर न होता चला जाए तो उसे यह बात पूरी तरह सम झनी होगी कि पुरुष को भी अपने भय और चिंताएं व्यक्त करने का हक है.

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पति अपनी भावनाएं व्यक्त करें, इस के लिए पत्नी को जोर देते हुए पति के पीछे नहीं पड़ जाना चाहिए. इस से संबंधों में तनाव और बढ़ जाता है. पत्नियां कई बार बेबुनियादी तर्क देते हुए कहती हैं कि जब हम अपनी भावनाओं को ले कर बात कर सकती हैं तो पुरुष ऐसा क्यों नहीं कर सकता? लेकिन वे यह बात नहीं सम झ पातीं कि अगर वे अपनी भावनाएं व्यक्त करती रहती हैं तो यह जरूरी नहीं कि पुरुष भी ऐसा ही करें. लेकिन जहां पुरुष अब यह सोचने लगे हैं कि अपनी भावनाएं दर्शाने में कोई बुराई नहीं, वहीं वे यह नहीं सीख पाए हैं कि भावनाओं को दर्शाएं कैसे.

प्यार से जानें राज

शिर्ले जुसमैन के अनुसार, दांपत्य में भावनात्मक संबंधों से जुड़ी कई परतें होती हैं, जो परतदरपरत ही खुलती हैं. संवेदनशील सेक्स द्वारा पत्नियां पति के अंदर पनपती इन दूरियों को जीत सकती हैं, क्योंकि अगर पति सेक्स के माध्यम से पत्नी से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता है तो यह मात्र मशीनी प्रक्रिया न रह कर पति को भावनात्मक रूप से नजदीक ला सकती है. यही वे पल हैं जब वह अपना मन खोल कर पत्नी के सामने रख सकता है. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पुरुषों में भावनात्मक तौर पर सिमटे रहना कूटकूट कर भरा होता है.

यह स्त्री की भी जिम्मेदारी होती है कि वह उसे खुलने में मदद करे. लेकिन स्त्री या पत्नी की सफलता तब बहुत सीमित हो जाएगी, जब वह पति की धीरेधीरे खुलने की प्रवृत्ति की आलोचना शुरू कर देगी. यही वह स्थिति है जहां उसे सावधानी के साथ पति के मन के खुलने की प्रक्रिया में उस का साथ देना है. पति को बिना रोकटोक के मन की बात कहने दें. उस समय पति द्वारा व्यक्त सभी भावनाओं को सम्मान की दृष्टि से देखते हुए तसल्ली के साथ सुनें. पत्नी द्वारा किसी भी प्रकार की गलत प्रतिक्रिया पति को वापस अपनेआप में समेट कर रख देगी, जहां से उसे वापस लाना और भी कठिन हो जाएगा. पुरुष को भावनात्मक स्तर पर दूर जाने से रोकने के लिए उस को भावनात्मक दृढ़ता, सुरक्षा और स्नेह दें व इतनी छूट दें कि वह अपने तरीके से खुल सके. पति को डंडे के जोर पर बोलने के लिए मजबूर न करते हुए उसे ऐसा माहौल दें, जहां वह अपनी भावनाओं का बो झ खुदबखुद आप के सामने हलका कर सके.

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कैंसर से लड़ने के लिए विशेष आहार की जरूरत

Writer- मीनू वालिया

कैंसर ऐसा रोग है जिस का नाम सुनते ही मरीज के हाथपांव फूल जाते हैं और उसे अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई देने लगती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाइफस्टाइल में बदलाव करने से कैंसर को रोका जा सकता है. कैंसर के 5 फीसदी मामलों का सीधा संबंध खानपान से होता है. दैनिक जीवन में खानपान में बदलाव कर के कैंसर से बचा जा सकता है. आइए जानते हैं कैंसर से लड़ने के लिए आहार के विशेष टिप्स.

अधिक फलों से युक्त आहार का सेवन करने से पेट और फेफड़ों के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

कैरोटिनौएड्स, जैसे गाजर आदि सब्जियों का सेवन करने से फेफड़े, मुह, गले और गरदन के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

स्टौर्चरहित सब्जियों, जैसे ब्रोकली, पालक और फलियों का सेवन करने से पेट और गले  (इसोफेजियल) के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

संतरे, बैरी, मटर, शिमलामिर्च, गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों तथा विटामिन सी से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने से आप अपनेआप को गले का कैंसर होने से बचा सकते हैं.

लाइकोपिन युक्त फलों व सब्जियों, जैसे टमाटर, अमरूद और तरबूज का सेवन करने से प्रोस्टैट कैंसर होने की आशंका को कम किया जा सकता है.

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फाइबर का सेवन

अधिक मात्रा में फाइबरयुक्त आहार का सेवन करने से आप अपनेआप को कोलोरैक्टल कैंसर तथा पाचनतंत्र के अन्य हिस्सों, जैसे पेट, मुख और गरदन के कैंसर से बचा सकते हैं.

फाइबर का पर्याप्त मात्रा में सेवन आप को कब्ज से भी बचाता है. फाइबर फलों, सब्जियों और पूर्ण अनाज में पाया जाता है. आमतौर पर भोजन जितना ज्यादा प्राकृतिक और अनप्रोसैस्ड होगा, उतना ही उस में फाइबर की मात्रा अधिक होगी. मांस, डेयरी उत्पादों, चीनी या सफेद भोजन, जैसे ब्रैड, सफेद चावल और पैस्ट्री में फाइबर बिलकुल नहीं होता है.

सफेद चावल के बजाय भूरे चावल यानी ब्राउन राइस का इस्तेमाल करें.

सफेद ब्रैड के बजाय होलग्रेन संपूर्ण अनाज की ब्रैड या मल्टीग्रेन ब्रैड का इस्तेमाल करें.

पेस्ट्री के बजाय ब्राउन मफिन खाएं.

आलू के चिप्स या सूखे मेवों के बजाय पौपकौर्न बेहतर और स्वास्थ्यप्रद पोषक स्नैक है.

सैंडविच, पकौड़ा या बर्गर में मीट के बजाय बींस का इस्तेमाल करें.

पानी का जादू

फाइबर पानी को अवशोषित करता है, इसलिए आप अपने आहार में जितना ज्यादा फाइबर का सेवन करते हैं, उतना ज्यादा आप को पानी पीना चाहिए. पानी कैंसर से लड़ने के लिए महत्त्वपूर्ण है.

यह आप की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, शरीर में से व्यर्थ और विषैले पदार्थों को निकालता है, और आप के सभी अंगों तक पोषक पदार्थों को पहुंचाता है.

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मांस का सेवन कम

अधिक मांस से युक्त आहार आप के लिए अच्छा नहीं है, खासकर तब जबकि आप की जीवनशैली गतिहीन है. इस के अलावा लाल मांस के सेवन से आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. आप जानवरों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन को कम कर के और आहार के पोषक विकल्प चुन कर कैंसर होने की आशंका को काफी हद तक कम कर सकते हैं.

आप के आहार में मांस की कुल मात्रा आप की कुल कैलोरीज की

15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए. 10 फीसदी बेहतर है.

लाल मांस का सेवन कभीकभी करें. लाल मांस में संतृप्त वसा की पर्याप्त मात्रा होती है, इसलिए इस के सेवन से बचना आप के स्वास्थ्य के लिए अच्छा विकल्प होगा.

हर आहार में मांस की मात्रा कम करें. यह मात्रा आप के हाथ की हथेली के बराबर होनी चाहिए.

मांस का सेवन मुख्य भोजन के रूप में न करें, आप भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए कम मात्रा में इस का सेवन कर सकते हैं.

अपने भोजन में पौधों से मिलने वाले प्रोटीन स्रोतों, जैसे बींस आदि का इस्तेमाल करें.

लीनर मीट, जैसे चिकन, फिश और टर्की को प्राथमिकता देनी चाहिए.

प्रोसैस्ड मांस, जैसे हौट डौग, या रेडी टू ईट मांस उत्पादों के सेवन से बचें.

अगर हो सके तो और्गेनिक मांस का सेवन करें. और्गेनिक जानवरों को जीएमओ से रहित और्गेनिक भोजन ही दिया जाना चाहिए. उन्हें एंटीबायोटिक, हार्मोन या अन्य उपउत्पाद नहीं दिए जाने चाहिए.

वसा का सेवन सोचसमझ कर

अधिक वसा से युक्त आहार का सेवन करने से न केवल कैंसर बल्कि कई प्रकार के कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. इस से कौलैस्ट्रौल बढ़ने का भी खतरा होता है. वसा का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना इस का समाधान नहीं है. वास्तव में कुछ प्रकार की वसा आप को कैंसर और कोलैस्ट्रौल से बचाती हैं. वसा का चुनाव सोचसमझ कर करें और बहुत ज्यादा मात्रा में न करें.

सेक्स के लिए घातक है इंफेरियारिटी कॉम्प्लेक्स

एक नहीं अनेक बातों और सदंर्भों से यह स्पष्ट है कि सेक्स की प्रक्रिया में शरीर से ज्यादा प्रभावी भावनाओं की भूमिका होती है. क्योंकि सेक्स भले शरीर के जरिये संभव होता हो, लेकिन उस शरीर को इसके लिए तैयार मन करता है, भावनाएं करती हैं. इसलिए इस प्रक्रिया में शरीर से ज्यादा मन और भावनाओं की सक्रियता की जरूरत होती है. जब हम किसी बात को लेकर इंफीरियर्टी काॅम्प्लेक्स में होते हैं यानी हीनताबोध का शिकार होते हैं, तो भले मजदूरी कर लें, भले बोझा उठा लें, भले गाड़ी चला लें, लेकिन सेक्स नहीं कर सकते. क्योंकि सेक्स में सिर्फ मांसपेशियों की ताकत से काम नहीं चलता. इसके लिए मन में एक खास किस्म की भावनात्मक लहर का होना जरूरी है और भावनात्मक लहर मैकेनिकल नहीं होती. उसका कोई मैकेनिज्म नहीं है कि हर बार उसे एक ही तरीके से दोहरा दिया जाए.

मन की लहर एक ऐसी स्वतंत्र और मौलिक प्रक्रिया है जो भावनाओं के प्रवाह में ही पैदा होती है. यह प्रवाह तकनीकी रूप से पैदा तो नहीं की जा सकती, पर तकनीकी रूप से इसे कई सामाजिक और मानसिक बाधाएं रोक जरूर देती हैं. जब हममें डर, भय, अपराधबोध और निम्न होने की भावना होती है, तो हमारे अंदर पैदा होने वाली खुशी की तरंगे नहीं पैदा होतीं. ऐसे में हम गुस्से की तमाम चीजें तो कर सकते हैं, लेकिन खुशी और प्यार नहीं जता सकते. इसीलिए हम सेक्स भी नहीं कर सकते. क्योंकि सेक्स करना अंततः मन का खुशियों और भावनाओं से भरा होना होता है. नकारात्मक भावनाएं खुशियों को छीन लेती हैं और मन में पैदा होने वाली लहर से हमें वंचित कर देती हैं. इसलिए शरीर तरंगित नहीं होता और सेक्स के लिए तैयार नहीं होता.

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क्योंकि सेक्स में जिन सक्रिय और उत्तेजित इंद्रियों अथवा अंगों की मुख्य भूमिका होती है, उन्हें सक्रिय और उत्तेजित होने के लिए मन में एक लहर और खुशी देने वाले उन्माद पैदा होना जरूरी है. हीनभावना एक नकारात्मकता है, इसलिए यह हममें भावनात्मक अंतरंगता खत्म करती है, जिससे हममें शारीरिक स्फूर्ति या इंद्रियोचित स्फूर्ति नहीं बनती. नतीजतन हम डिप्रेशन में, हीनभावनाओं के शिकार होने पर या ऐसे ही दूसरे तनाव के क्षणों में सेक्स के लिए सक्षम नहीं होते. कुदरत ने इस मामले में डीलडौल को या बहुत ताकतवर को यह विशिष्टता नहीं बख्शी है कि वह किसी भी मानसिक और शारीरिक स्थिति में सेक्स कर सके. अच्छे से अच्छे पहलवान, बड़े से बड़े एथलीट के दिमाग में भी अगर यह बात बैठ जाए कि वह सही परफोर्मेंस नहीं कर पायेगा, तो फिर चाहे कुछ भी हो जाए, वह सेक्स नहीं कर सकता. सेक्स वास्तव में भावनाओं की ड्राइव है और इसमें जरा सा भी किसी भावना को ठेस लग जाए, जरा सी हिचक आ जाए, संशय या द्वंद पैदा हो जाए तो फिर कुछ नहीं हो सकता.

दरअसल हीन भावनाएं हमारे दिल दिमाग में कई तरह से आती हैं, एक कारण तो सामाजिक होता है, जिसमें हमें बचपन से ही ठंूस ठंूसकर दिमाग में भरा जाता है कि ये छोटा है, ये बड़ा, ये ऊंची जात का है, ये नीची जात का है. यह श्रेष्ठ है, यह गैर श्रेष्ठ है. फिर एक कर्मकांडों की भूमिका होती है. छोटी बड़ी उम्र और सामाजिक रिश्तों की भी एक लक्ष्मण रेखा होती है, कई बार वह सही होती है, कई बार वह मन का बहम होती हैं. लेकिन सेक्स के मामले में जो सबसे बड़ी हीनभावना होता है, वो ऐसे दुष्प्रचारों से आयी हुई है, जिन दुष्प्रचारों के जरिये कुछ लोग अपनी रोटी सेंकते हैं. मतलब यौन दुर्बलता, शारीरिक कद, रंग, हैसियत, ये सब दिमाग में भरे गये ऐसी ऐसी हीनभावनाएं हैं, जो हमें सेक्स के मामले में कमजोर बनाती हैं.

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हीनभाव से मुक्ति के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है. अपनी सामथ्र्य को पहचानने तथा अपनी शक्ति का मूल्यांकन करने से भी हीनताबोध से उबरा जा सकता है. ऐसे उपाय न करने से हीनता के भाव आपके पूरे जीवन पर छाये रहेंगे, जो आपकी पूरी सामथ्र्य को खोखला बनाते रहेंगे. हीनताबोध यौन क्रीड़ा को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. क्योंकि हीनताबोध का शिकार व्यक्ति अपने दिल दिमाग में एक तनाव लिये रहता है कि वह सही से सहवास नहीं कर पायेगा. यह चिंता हर समय किसी न किसी रूप मंे दिमाग में हथौड़ा बजाती रहती है, इसलिए वह वास्तव में सहवास नहीं कर पाता, फिर चाहे वह कितना ही सक्षम क्यों न हो.

इस मानसिक विकार को जितनी शीघ्रता से हो, खत्म करना चाहिए. अक्सर यह बोध भ्रामक धारणा से उत्पन्न होता है. ऐसी अवस्था में पुरुष या स्त्री के मन में यह बात बैठ जाती है कि उससे सफल सहवास नहीं हो पायेगा. इस भ्रामक धारण के चलते वह वास्तव में सेक्स में सक्षम नहीं हो पाता. व्यवहारिक दृष्टि से ऐसी धारणाएं इन बातों से आती है. शिश्न को छोटा समझकर हीनभावना से ग्रस्त होना. स्त्री की श्रेष्ठता का ख्याल करना. उसके अच्छे पद तथा उसकी स्थिति को लेकर हीनग्रस्त रहना. परिवार का धनवान अथवा निर्धन होना. अनमेल आर्थिक स्थिति आदि.

ये तमाम धारणाएं सहवास के लिए बेहद नकारात्मक है. एक बात समझ लीजिए कि शिश्न की लंबाई-मोटाई सहवास को कदापि प्रभावित नहीं करती. छोटे शिश्न वाले व्यक्ति को जान लेना चाहिए कि स्त्री की योनि की बनावट ऐसी होती है जिसमें हर प्रकार का शिश्न पूर्ण आनंद देता है. पुरुष को इस गलत धारणा से ध्यान हटाकर सहवास की सही तकनीक के अनुसार रमण करना चाहिए. यदि पुरुष इस धारणा को नहीं त्यागेगा तो उसे सहवास में विफलता ही मिलेगी. वह अपनी सहयोगी स्त्री को पूर्ण संतुष्टि नहीं दे पायेगा. स्त्री संतुष्ट होगी, तो हीनता का भाव अपने आप खत्म हो जायेगा.

स्त्री की श्रेष्ठता का ख्याल रखकर अपने को हीन मान लेना भी गलत है. स्त्री का अधिक पढ़ा-लिखा होना, आर्थिक स्थिति का अच्छा होना अथवा उसका ऊंचा पद भी यौन क्रीड़ा के लिए कोई महत्व की वस्तु नहीं है. अतः उसका पद या कद मैथुन क्रिया में विचारना एकदम नासमझी है. सहवास में दोनों बराबर के स्तर पर आकर आनंद प्राप्त कर सकते हैं. सहवास के मधुर क्षणों को और भी मधुर बनाने के लिए दोनों स्त्री-पुरुष एक धरातल पर आकर इस यौन प्रक्रिया को संपादित करके मानसिक तथा शारीरिक आनंद प्राप्त कर सकते हैं.  जहां तक जाने-अनजाने में किए गये गलत कार्यों से उपजा हीनताबोध या अपराधबोध है, उससे पीड़ित रहकर बेकार ही तनाव मोल लेना है. जो हो चुका, उसे भूलना ही बेहतर होता है.

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माता-पिता के लिए घर में करें ये बदलाव

पड़ोस में रहने वाले अभि और शीना के घर से कई दिनों से ठोकनेपीटने की आवाजें आ रही थीं. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. सुबह जा कर शाम को ही घर आ पाते हैं. पर अभी दोचार दिनों से दोनों घर पर ही थे. वे मजदूरों से घर में कुछ निर्माणकार्य करवा रहे थे.

मेरा मन नहीं माना तो एक दिन उन के घर पहुंच ही गई. देखा, पूरा घर अस्तव्यस्त था. शीना ने बड़ी मुश्किल से जगह बना कर मुझे बैठाया. मेरे पूछने पर वह बोली, ‘‘कल मेरे सासससुर आ रहे हैं. अभी तक तो वे दोनों स्वस्थ थे और अपने सभी काम खुद ही कर लेते थे पर अब पापाजी काफी बीमार रहने लगे हैं.

अभी तक हम 2 ही थे और इस घर में हमें कोई परेशानी नहीं थी. पर अब पापाजी की आवश्यकतानुसार हम घर में कुछ बदलाव करवा रहे हैं ताकि वे यहां बिना किसी परेशानी के आराम से रह सकें.

घर में जमीन पर बीचबीच में रखे फर्नीचर को शीना ने एक ओर कर दिया था. उन के कमरे से ले कर बाथरूम तक रैलिंग लगवा दी थी ताकि वे आराम से आजा सकें. इसी प्रकार के और भी बदलाव अभि व शीना ने अपने मातापिता की आयु की जरूरतों को देखते हुए करवा दिए थे.

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रजत कुछ दिनों से ब्रोकर के जरिए घर ढूंढ़ रहा था. 2 फ्लैट के मालिक होने के बावजूद रजत को प्रतिदिन ब्रोकर के साथ देख कर रमा हैरान थी. एक दिन जब उस ने रजत से पूछा तो वह बोला, ‘‘आंटी, मेरे दोनों फ्लैट दूसरी और तीसरी मंजिल पर हैं और दोनों ही सोसाइटीज में लिफ्ट नहीं है. अभी तक तो चल रहा था, क्योंकि मैं अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ था. पर अब मेरी मां आने वाली हैं. 72 वर्षीया मेरी मां के दोनों घुटनों का औपरेशन हुआ है, इसलिए उन के लिए लिफ्ट या ग्राउंडफ्लोर का घर होना आवश्यक है.

10 वर्षों तक दुबई में प्रतिनियुक्ति के बाद अश्विन की जब भोपाल में पोस्ंिटग हुई तो उस ने अपने मातापिता के साथ ही रहने का फैसला लिया, ताकि वह अपने उम्रदराज हो चुके मातापिता की भलीभांति देखभाल कर सके. घर में एक माह रहने के बाद ही उसे समझ आ गया कि जिस घर में उस के मातापिता रह रहे हैं वह उन की उम्र के अनुकूल बिलकुल भी नहीं है. इसलिए, सर्वप्रथम 15 दिन का अवकाश ले कर उन की आवश्यकताओं को महसूस कर के उस ने घर को अपने मातापिता के अनुकूल करवाया ताकि वे उम्र के इस पड़ाव में सुकून के साथ रह सकें.

जीवन चलने का नाम है. बाल्यावस्था, युवावस्था और फिर वृद्धावस्था. वैश्वीकरण के इस युग में मातापिता को छोड़ कर रोजीरोटी के लिए बाहर जाना बच्चों की मजबूरी है.

मातापिता का अपने बच्चों के पास जाना भी लाजिमी ही है परंतु कई बार देखने में आता है कि बच्चों के घर की व्यवस्था में वे खुद को मिसफिट पाते हैं. उन के सिस्टम में रहने में वे तकलीफ अनुभव करते हैं. इसलिए कई बार वे बच्चों के पास जाने से ही कतराने लगते हैं.

ऐसे में अपने बुजुर्ग मातापिता की आवश्यकताओं के अनुसार अपने घर में बदलाव करना आवश्यक हो जाता है. जिन बच्चों के मातापिता उम्रदराज या अशक्त हैं, ऐसे दंपतियों का अपने घर को सीनियराइज करने की बहुत जरूरत होती है ताकि आप के साथसाथ आप के मातापिता के लिए भी आप का घर सुविधाजनक रहे और वे आराम से आप के साथ रह सकें. बुजुर्गों की जरूरतों के अनुसार निम्न बदलावों को किया जाना आवश्यक है :

महानगरों में फ्लैट कल्चर काफी तेजी से अपने पैर पसार चुका है. सोसाइटीज में बिल्डर कैमरे लगवाते ही हैं, परंतु यदि आप स्वतंत्र घर में निवास करते हैं तो मुख्य दरवाजे पर सीसीटीवी कैमरा अवश्य लगवाएं ताकि आप औफिस से ही मातापिता की कुशलता जान सकें, साथ ही, घर पर रह रहे आप के मातापिता भी हर आनेजाने वाले पर नजर रख सकें.

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अस्ति के घर की सीढि़यों पर अलग से लाइट की व्यवस्था न होने से उस के 65 वर्षीय ससुर का पैर फिसल गया और कूल्हे की हड्डी टूट गई. इसलिए घर के पोर्च, सीढि़यां, रैलिंग, बालकनी और टैरेस पर पर्याप्त लाइट लगवाएं ताकि अंधेरे में किसी प्रकार की दुर्घटना से वे बचे रहें.

विमलजी अपने इकलौते बेटे के पास केवल इसीलिए नहीं जा पाते क्योंकि उस की सोसाइटी में लिफ्ट नहीं है, और तीसरी मंजिल पर चढ़ कर वे जा नहीं पाते. वे कहते हैं, ‘‘एक बार चढ़ जाओ, तो नीचे आना ही नहीं हो पाता. पिंजरे में बंद पक्षी की भांति ऊपर टंगेटंगे जी उकता जाता है.’’ इसलिए जब भी घर खरीदें या किराए पर लें, तो अपने मातापिता का ध्यान रखते हुए ग्राउंड फलोर और लिफ्ट को प्राथमिकता दें.

अपने घर में उन के रहने के लिए ऐसा कमरा चुनें जिस में पाश्चात्य शैली का अटैच्ड बाथरूम हो. यदि उन्हें चलने में परेशानी है तो बाथरूम तक पहुंचने के लिए बार्स या रैलिंग और बाथरूम में ग्रेब हैंडिल्स लगवाएं. ताकि, वे बाथरूम में हैंडिल्स को पकड़ कर आराम से उठबैठ सकें, क्योंकि घुटनों की समस्या आजकल बहुत आम है जिस के कारण बिना सहारे के उठनाबैठना मुश्किल हो जाता है.

बाथरूम के बाहर और अंदर एंटी स्किट मैट की व्यवस्था करें ताकि उन के फिसलने की संभावना न रहे. बाथरूम का फर्श यदि चिकने टाइल्स का है तो उन्हें हटवा कर एंटी स्किट टाइल्स लगवाएं. साथ ही, चलनेफिरने के लिए भी एंटी स्किट स्लीपी ही यूज करने को कहें.

घर के फर्नीचर की व्यवस्था इस प्रकार से करें कि बुजुर्ग मातापिता को घर में चलनेफिरने में वे बाधक न बने. उन के लिए सुविधाजनक हलके फर्नीचर की व्यवस्था करें.

जीवन के एक मोड़ पर एक जीवनसाथी छोड़ कर चला जाता है. सो, अकेले रह गए पार्टनर के लिए हरदम घर के सदस्यों को पुकारना आसान नहीं होता. ऐसे में आप उन के लिए कार्डलैस बैल लगवाएं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे आप को घंटी बजा कर बुला सकें.

बैड के पास ही मोबाइल चार्जिंग सौकेट लगवाएं ताकि अपने मोबाइल आदि को वे बिना किसी परेशानी के चार्ज कर सकें. यदि मोबाइल फोन उपयोग करने में उन्हें परेशानी होती है तो कार्डलैस फोन की व्यवस्था करें.

बैड के दोनों ओर साइड टेबल बनवाएं ताकि इन पर वे अपनी जरूरत का सामान दवाएं, किताबें, चश्मा, मोबाइल, पेपर आदि को सहजता से रख सकें.

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बैडरूम में एक टैलीविजन अवश्य लगवा दें ताकि वे सहज हो कर अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्रम देख सकें, क्योंकि एक घर में रहने वाली तीन पीढि़यों की रुचियों में अंतर होना स्वाभाविक सी बात है. घर में रहने वाले छोटे बच्चों की पढ़ाई में यदि टैलीविजन से व्यवधान होता है तो उन्हें ईयरफोन ला कर दें ताकि वे अपने प्रोग्राम आराम से देख सकें.

घर में जमीन पर से यदि टैलीफोन, बिजली या केबल के तार आदि निकल रहे हैं तो उन्हें अंडरग्राउंड करवा दें ताकि वे उन के चलने में बाधक न बनें. यदि घर के फर्श पर चिकने टाइल्स लगे हैं तो उन पर कालीन बिछाएं ताकि वे पूरे घर में सुगमता से आवागमन कर सकें.

घर का फर्श या टाइल यदि कहीं से टूटा है तो उसे तुरंत ठीक करवाएं वरना इस की ठोकर खा कर वे गिर सकते हैं.

वास्तव में उपरोक्त बातें बहुत छोटीछोटी सी हैं, परंतु उम्रदराज मातापिता की सुरक्षा और सुविधा के लिए बहुत जरूरी हैं.

क्या आपकी दोस्ती खतरे में है?

एक रिश्ता है जो हम अपने व्यवहार से बनाते हैं, वह है दोस्ती. दोस्ती एकमात्र ऐसा रिश्ता है जो हम खुद जोड़ते हैं. दोस्त हम स्वयं चुनते हैं. लेकिन दोस्त की इस दोस्ती से कब व कैसे कट कर लिया जाए. आप भी जानिए.

संभव है कि किन्हीं कारणों से आप की दोस्ती अब पहले जैसी नहीं रह गई हो. आप के दोस्त के बरताव में आप कुछ बदलाव महसूस कर सकते हैं या आप में उस की दिलचस्पी अब न रही हो या कम हो गई हो. कुछ संकेतों से आप पता लगा सकते हैं कि अब यह दोस्ती ज्यादा दिन निभने वाली नहीं है और बेहतर है कि इस दोस्ती को भूल जाएं.

दोस्ती एकतरफा रह गई है : दोस्ती नौर्मल हो, प्लुटोनिक या रोमांटिक, किसी तरह की भी दोस्ती एकतरफा नहीं निभ सकती है. अगर आप का पार्टनर आप की दोस्ती का उत्तर नहीं दे रहा है तो इस का मतलब है कि उस की दिलचस्पी आप में नहीं रही. इस दोस्त को गुड बाय कहें.

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आप के राज को राज न रखता हो : आप अपने फ्रैंड पर पूरा भरोसा कर उस से सभी बातें शेयर करते हों और उस से यह अपेक्षा करते हों कि वह आप के राज को किसी और को नहीं बताए पर यदि वह आप के राज को राज न रहने दे तो ऐसी दोस्ती से तोबा करें.

विश्वासघात : विश्वास मित्रता का स्तंभ है. कभी दोस्त की छोटीमोटी विश्वासघात की घटनाओं से आप आहत हो सकते हैं पर उसे विश्वास प्राप्त करने का एक और मौका दे सकते हैं. पर यदि वह जानबूझ कर चोरी करे, आप के निकटतम संबंधी या प्रेमी या प्रेमिका के मन में आप के विरुद्ध झूठी बातों से घृणा पैदा करे तो समझ लें अब और नहीं, बस, बहुत हुआ.

लंबी जुदाई : कभी आप घनिष्ठ मित्र रहे होंगे. ट्रांसफर या किसी अन्य कारण से आप का दोस्त बहुत दूर चला गया है और संभव है कि आप दोनों में पहले वाली समानता न रही हो. आप के प्रयास के बावजूद आप को समुचित उत्तर न मिले तो समझ लें अब वह आप में दिलचस्पी नहीं रखता है. उसे अलविदा कहने का समय आ गया है.

अगर वह आप के न कहने से आक्रामक हो : कभी ऐसा भी मौका आ सकता है जब आप उस की किसी बात या मांग से सहमत न हों और उसे ठुकरा दें. जैसे किसी झूठे मुकदमे में आप को अपने पक्ष से सहमत होने को कहे या झूठी गवाही देने को कहे और आप न कह दें. ऐसे में अगर वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामक रुख अपनाता है तो समझ लें कि इस दोस्ती से ब्रेक का समय आ गया है.

आपसी भावनाओं का सम्मान : मित्रता बनी रहे. इस के लिए जरूरी है कि दोनों भावनाओं का सम्मान करें. अगर आप की भावनाओं का सम्मान दूसरा मित्र न करे या आप की भावनाओं का निरादर कर लोगों के बीच उस का मजाक बनाए या अवांछित सीन पैदा करे तो समझ लें कि अब यह दोस्ती निभने वाली नहीं है.

जब आप की चिंता की अनदेखी करे : दोस्ती में जरूरी है कि दोनों एकदूसरे की चिंताओं या समस्याओं के प्रति संवेदनशील हों और उन के समाधान में अपने पार्टनर की सहायता करें. अगर आप की मित्रता में ऐसी बात नहीं है तो फिर यह अच्छा संकेत नहीं है.

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आप को नीचा दिखाने की कोशिश न हो : कभी अन्य लोगों के बीच अगर आप का दोस्त आप को नीचा दिखा कर आप में हीनभावना पैदा करे या करने की कोशिश करे तो यह दोस्त दोस्ती के लायक नहीं रहा.

दोस्त से मिल कर कहीं आप नाखुश तो नहीं हैं : अकसर आप दोस्तों से मिल कर खुश होते हैं. अगर किसी दोस्त से मिलने के बाद आप प्रसन्न न हों और बारबार दुखी हो कर लौटते हैं, तो कट इट आउट.

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