तंत्रमंत्र से पत्नी की मौत

कई बार कोई जानलेवा बीमारी किसी इनसान को तंत्रमंत्र के रास्ते पर ले जाती है. आज हम भले ही मौडर्न जमाने में जीने की बातें करते हों, फिर भी समाज में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि लोग कई बार इलाज कराने के बदले तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ जाते हैं और आखिर में नतीजा उन की बरबादी के रूप में ही सामने आता है.

एक ऐसे ही मामले में गरीब आटोरिकशा ड्राइवर को पैर की बीमारी से पीडि़त अपनी पत्नी का 6 महीने तक इलाज कराने पर भी जब कोई नतीजा हाथ न लगा, तो उस ने तंत्रमंत्र का सहारा लिया, जो उस की पत्नी के लिए जानलेवा साबित हुआ.

दरअसल, आनंदनगर चार रास्ता के कृष्ण अपार्टमैंट्स में रहने वाले देशराजभाई सरोज की पत्नी खुशियाल

6 महीने से पैर के दर्द से परेशान थी. पहले तो फैमिली डाक्टर से दवा ली, बाद में प्राइवेट अस्पताल मेें इलाज कराया, लेकिन पैर के दर्द से राहत न मिली.

इस से देशराज और खुशियाल बहुत परेशान हो गए. इस दौरान उन को किसी ने बताया कि शायद गठिया का दर्द होगा. उन को पता चला कि जूना वाडज में गठिया की बीमारी का इलाज होता है.

देशराज अपनी पत्नी खुशियाल को रविवार के दिन सुबह जूना वाडज में गठिया के इलाज के लिए ले गया. वहां मिले आदमी ने खुशियाल को शाहपुर में कालू शहीद की दरगाह पर ले जाने की सलाह दी.

देशराज और खुशियाल को तो जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया. कालू शहीद की दरगाह पर खुशियाल के ऊपर तंत्रमंत्र का काम शुरू हो गया.

खुशियाल को एक कमरे में ले जाया गया. कमरे का दरवाजा बंद कर दिया गया. बाद में अंदर जलते कोयले में लाल रंग का कोई पाउडर डाल कर इलाज  शुरू हुआ.

इस दौरान खुशियाल बेहोश हो गई. थोड़ी देर बाद उस आदमी ने खुशियाल को घर ले जाने को कहा और यह भी कहा कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी.

देशराज अपनी पत्नी खुशियाल को आटोरिकशा में घर ले जा रहा था, तब रास्ते में ही उस की हालत बिगड़ने लगी.

खुशियाल का इलाज पहले जिस अस्पताल में चल रहा था, उसे वहां ले जाया गया, लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने खुशियाल को मरा हुआ बता दिया.

यह सुन कर देशराज की तो मानो दुनिया ही लुट गई. अपनी पत्नी की मौत से दुखी और गुस्साए देशराज ने आनंदनगर पुलिस स्टेशन में तंत्रमंत्र करने वाले शख्स के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई.

देशराज को इंसाफ मिलेगा या नहीं, यह तो बाद की बात है, लेकिन उस ने तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ कर अपनी पत्नी को जरूर खो दिया.

4 साल के बच्चे का कत्ल, कातिल जान कर उड़ जाएंगे होश

Crime News in Hindi: 39 साल की सूचना सेठ 6 जनवरी को गोवा के सोल बनयान ग्रांडे होटल में अपने 4 साल के बेटे के साथ आई थीं. 8 जनवरी को जब उन्होंने होटल से चैकआउट किया, तब उन का बेटा साथ नहीं था. होटल स्टाफ ने बेटे के बारे में पूछा तो सूचना सेठ ने कहा कि वह गोवा के फातोर्डा में एक रिश्तेदार के घर पर है. इस के बाद सूचना सेठ ने रिसैप्शनिस्ट से कहा कि वह उन के लिए बैंगलुरु जाने के लिए कोई टैक्सी बुक करवा दे. रिसैप्शनिस्ट ने कहा कि टैक्सी महंगी पड़ेगी, आप फ्लाइट ले कर चली जाइए, वह सस्ती होगी.

मगर सूचना सेठ ने बाई रोड जाने पर ही जोर दिया तो उन के लिए एक कैब बुक करा दी गई. सूचना सेठ अपना सामान ले कर निकलीं. उधर हाउसकीपिंग स्टाफ जब उन का छोड़ा गया कमरा साफ करने पहुंचा, तो उस को वहां खून के धब्बे मिले.

स्टाफ ने इस की सूचना होटल के मालिक को दी और मालिक ने तुरंत पुलिस को बता दिया. पुलिस ने उस कैब ड्राइवर को फोन लगाया और कोंकणी भाषा में बात करते हुए उस से कहा कि जिन मैडम को वह ले कर जा रहा है उन्हें बताए बिना वह कैब को कर्नाटक के चित्रदुर्ग पुलिस स्टेशन ले जाए.

ड्राइवर ने पुलिस के कहे मुताबिक गाड़ी पुलिस स्टेशन पर ला कर खड़ी कर दी, जहां सूचना सेठ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन के सामान की तलाशी लेने पर उस के बच्चे की लाश पुलिस को उस के एक बैग में मिली.

सूचना सेठ ने अपने बच्चे की हत्या क्यों की? इस सवाल के जवाब में जो कहानी निकल कर आई वह एक ऐसी औरत को सामने लाती है जो एक तरफ बहुत पढ़ीलिखी, मेहनती और समाज में अपनी हैसियत रखने वाली औरत है, तो वहीं दूसरी तरफ वह सामाजिक और पारिवारिक चक्रव्यूह में फंसी, टूटन, तनाव, गुस्से, बेइज्जती, नफरत, झगड़े, कानूनी पचड़े में घिरी औरत, जिस के अंदर अपने पति से बदला लेने का लावा उबाल मार रहा था, जिस के चलते उन्होंने अपने बेटे को मौत की नींद सुला दिया.

हत्या की वजह जानने से पहले सूचना सेठ की पढ़ाईलिखाई पर एक नजर डालते हैं. वे एक एथिक ऐक्सपर्ट (नैतिकता विशेषज्ञ) और डाटा वैज्ञानिक है, जिन के पास डाटा विज्ञान टीमों को सलाह देने और स्टार्टअप व उद्योग अनुसंधान प्रयोगशालाओं में मशीन लर्निंग समाधानों को स्केल करने का 12 साल से ज्यादा का अनुभव है. वे एआई ऐथिक्स लिस्ट में 100 प्रतिभाशाली महिलाओं में से एक हैं. वे डाटा ऐंड सोसाइटी में मोजिला फैलो, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बर्कमैन क्लेन सैंटर में फैलो और रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट में रिसर्च फैलो रही हैं और उन के पास प्राकृतिक भाषा (नैचुरल लैंग्वेज) प्रसंस्करण में पेटेंट भी है. ऐसी प्रतिभाशाली लड़की की शादी साल 2010 में वेंकटरमन से हुई थी, जो एक एआई डैवलपर हैं.

शादी के बाद दोनों में वैसी ही नोकझोंक चलती रही जैसी आमतौर पर भारतीय घरों में होती है. शादी के 9 साल बाद 2019 में सूचना सेठ ने एक बेटे को जन्म दिया. मगर बेटे के जन्म के बाद से पतिपत्नी में झगड़े काफी बढ़ गए. साल 2020 से सूचना सेठ और उस के पति के वेंकटरमन के बीच झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों ने तलाक ले लिया.

कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी सूचना सेठ को दी और आदेश दिया था कि वेंकटरमन अपने बच्चे से हर रविवार को मिल सकते हैं. मगर सूचना अपने पति वेंकटरमन से इतनी नफरत करने लगी थीं कि वे नहीं चाहती थीं कि वेंकटरमन अपने बेटे से मिलने आएं और उन की नजरों के सामने पड़ें.

इस नफरत ने सूचना सेठ की अक्ल बंद कर दी और वे एक ऐसे घिनौने अपराध की तरफ बढ़ गईं, जिस को सुन कर एकदम मुंह से यही निकलता है कि यह कैसी मां है?

न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी कहावत को सच साबित करते हुए सूचना सेठ ने बच्चे को ही खत्म करने का भयावह प्लान बना डाला. उन्होंने अपने बेटे को गोवा घुमाने का लालच दिया. 4 साल का मासूम बच्चा घूमने की बात सुन कर खुश हो उठा.

सूचना सेठ बेटे को साथ ले कर गोवा गईं और वहां होटल के कमरे में उस का कत्ल कर के लाश ठिकाने लगाने के मकसद से बैग में भर कर टैक्सी से बैंगलुरु के लिए रवाना हो गईं. यह तो होटल स्टाफ की तेजतर्रारी काम आ गई और सूचना सेठ को बीच राह में ही पुलिस ने लाश के साथ दबोच लिया.

यह आपराधिक वारदात भारतीय समाज में विवाह संस्था में भर चुकी सड़ांध, इनसान की नैतिक गिरावट और आपसी टकराव को उजागर करती है. ऐसी तमाम बातें भारतीय समाज में बहुत तेजी से बढ़ रही हैं जहां मांबाप के बीच चल रहे झगड़े का खमियाजा उन के मासूम बच्चों को उठाना पड़ रहा है.

मांबाप की रोजरोज की लड़ाइयों का ही असर है कि उन के बच्चे उग्र स्वभाव के और आपराधिक हरकतों से जुड़ जाते हैं. घर के सदस्यों के बीच का तनाव बच्चों को शराब और ड्रग्स की तरफ धकेल रहा है.

फेसबुक फ्रैंड की घर में घुस कर की बेरहमी से हत्या

रोज की तरह 27 सितंबर, 2016 की सुबह भी किरण रावत उठ कर अपने कामकाज में लग गई थीं. कोई 6 बजे उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उन्हें हैरानी हुई कि इतने सवेरे किस ने फोन कर दिया. लेकिन जब स्क्रीन पर नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुईं कि कैसा कम्बख्त और बेशर्म लड़का है, जो हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन रिसीव न करना और काट देना उन्हें ठीक नहीं लगा, क्योंकि वह जानती थीं कि लड़का दोबारा ही नहीं, न उठाने तक फोन करता रहेगा. लिहाजा मन मार कर उन्होंने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘आंटी, मैं अमित बोल रहा हूं और अभीअभी गूजरखेड़ा से आया हूं. प्लीज एक बार आप मुझे प्रिया से 5 मिनट बातें कर लेने दें, उस के बाद मैं कभी उसे या आप को फोन नहीं करूंगा.’’ किरण पसोपेश में पड़ गईं कि क्या करें? अमित के फोन सुन कर वह खुद भी तंग आ चुकी थीं. हर बार घिसे हुए रिकार्ड की तरह गिड़गिड़ा कर वह एक ही बात की रट लगाए रहता था. अमित के बारे में वह उतना ही जानती थीं, जितना उन की बेटी प्रिया ने उन्हें बताया था.

17 साल की प्रिया होनहार छात्रा थी. इन दिनों वह आईआईटी की तैयारी कर रही थी. उस ने अमित के बारे में मां से कुछ भी नहीं छिपाया था. वह उस का फेसबुक फ्रैंड जरूर था, लेकिन फ्रौड था. उस ने प्रियांशी के नाम से अपना फेसबुक एकाउंट बना कर उसे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. उस ने अमित को प्रियांशी नाम की लड़की समझ कर उस की फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली थी. प्रिया अमित को लड़की समझ कर उस से कुछ महीनों तक चैटिंग भी करती रही. उसी बीच उस ने खुद का और मां का मोबाइल नंबर उसे दे दिया था. लेकिन जब उसे प्रियांशी यानी अमित की हकीकत पता चली तो उस ने उसे ब्लौक कर दिया. ब्लौक किए जाने के बाद अमित उसे मोबाइल पर फोन ही नहीं करने लगा, बल्कि प्यार का इजहार भी कर दिया.

प्रिया के लिए यह परेशानी वाली बात थी. वह इस बात पर खार खाए बैठी थी कि पहले तो अमित ने फेक एकाउंट के माध्यम से उस से दोस्ती गांठी और जब वास्तविकता सामने आई तो फोन पर प्यार का इजहार करने लगा. अमित के इस दुस्साहस से नाराज प्रिया ने उसे जम कर लताड़ा और आइंदा कभी फोन न करने की हिदायत दी. अमित नहीं माना और फोन न उठाने पर मैसेज करने लगा. इस से प्रिया को लगा कि यह सिरफिरा मानने वाला नहीं है, इसलिए उस ने उस पर ध्यान देना बंद कर दिया और पढ़ाई में मन लगाने लगी. जब प्रिया अनदेखी करने लगी तो अमित उस की मां किरण को फोन करने लगा.

उन से उस ने अपनी मनोस्थिति बताई कि जब से प्रिया ने उस से फोन पर बात करना बंद कर दिया है, तब से वह काफी तनाव में रहता है. उस तनाव में उस का सिर फटने लगता है. अगर वह एक बार आमनेसामने बैठा कर प्रिया से बात करा दें तो शायद उस की परेशानी दूर हो जाए. शुरूशुरू में तो सख्ती दिखाते हुए किरण ने बात कराने से मना कर दिया था, पर जब अमित के फोन बारबार आने लगे तो उन्हें लगा कि यह लड़का एकतरफा प्यार और गलतफहमी का शिकार हो गया है. ऐसे में अगर उस की इच्छा या जिद पूरी नहीं की गई तो वह इसी तरह प्रिया को ही नहीं, उन्हें भी परेशान करता रहेगा. 27 सितंबर, 2016 की सुबह जब अमित का फोन आया तो किरण ने सोचा कि आखिर इस अमित नाम की गले पड़ी मुसीबत से एक बार बात करने में हर्ज ही क्या है? लिहाजा उन्होंने उसे घर आने की इजाजत इस शर्त के साथ दे दी कि उसे जो भी बात करनी है, वह खिड़की से होगी. अमित इस पर भी तैयार हो गया और ठीक साढ़े 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं और उन के पति श्यामबिहारी एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं. प्रिया इन दोनों की एकलौती बेटी थी. वह काफी होशियार और समझदार थी. उस का पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई और कैरियर पर रहता था. इंजीनियर बनने की अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए वह एलेन कोचिंग इंस्टीट्यूट से कोचिंग भी ले रही थी. गीतानगर इंदौर का रिहायशी इलाका है. इस के कृष्णानगर अपार्टमेंट के थर्ड फ्लोर पर 3 सदस्यों वाला यह रावत परिवार सुकून से रह रहा था. हंसमुख और सुंदर प्रिया का ज्यादातर समय पढ़ाई में बीतता था. दिन में कुछ वक्त वह सोशल मीडिया, उस में भी फेसबुक पर बिता लेती थी.

फेसबुक इस्तेमाल करते समय क्याक्या सावधानियां रखी जानी चाहिए, उन्हें वह जानती थी. इसलिए अंजान लोगों और लड़कों से वह दोस्ती नहीं करती थी. पर वह अमित को प्रियांशी समझने की भूल कर बैठी, जिसे समय रहते उस ने अपने हिसाब से सुधार भी लिया था. लेकिन अमित से चैटिंग के दौरान प्रिया ने कुछ अंतरंग बातें कर ली थीं, जो स्वाभाविक भी थीं, क्योंकि वह तो उसे प्रियांशी नाम की लड़की और सहेली समझ रही थी. साढ़े 10 बजे कालबैल बजी तो किरण को समझते देर नहीं लगी कि अमित आ गया है. उन्होंने दरवाजा खोला और उसे देख कर रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है, बाहर से और जल्दी करो.’’ पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर 24 साल के अमित को इतना तो पता था कि जिस विनम्रता से वह अपनी प्रेमिका के घर के दरवाजे तक आ पहुंचा है, उसी का सहारा ले कर वह अंदर भी जा सकता है और ऐसा हुआ भी. उस ने गिड़गिड़ाते हुए गुजारिश की कि ज्यादा नहीं, वह सिर्फ 5 मिनट लेगा, इसलिए उसे अंदर आ कर इत्मीनान से बात कर लेने दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा.

किरण चूंकि अपने घर में थीं, इसलिए उन्हें किसी तरह का खतरा अमित से महसूस नहीं हुआ. क्योंकि वह देखने में ठीकठाक यानी शरीफ लग रहा था. उन का सोचना था कि एक बार यह प्रिया से बात कर लेगा तो इस की गलतफहमी या जिज्ञासा, जो भी है, खत्म हो जाएगी, इस के बाद हमेशा के लिए उस का इस बला से पिंड छूट जाएगा. यही सोच कर उन्होंने अमित को अंदर आने दिया. तब उन्हें कतई इस बात का अहसास नहीं था कि इस मासूम से चेहरे के पीछे हैवानियत और वहशीपन छिपा है. वह उन का घर उजाड़ने की मंशा से आया है. उस की मंशा कुछ और है. अंदर आ कर खुद को बेचैन दिखाते हुए अमित ने बाथरूम जाने की बात कही तो भी किरण को उस के खतरनाक मंसूबे का पता नहीं चला कि उन्होंने महज शिष्टाचार निभाते हुए कितनी बड़ी आफत मोल ले ली. इजाजत पा कर अमित बाथरूम की तरफ लगभग भागा तो वह ड्राइंगरूम में उस के वापस आने का इंतजार करने लगीं कि वह आए और अपनी बात कह कर जाए.

फ्लैट के भूगोल से अंजान अमित जाने कैसे प्रिया के कमरे तक पहुंच गया. उस समय वह स्कूल जाने के लिए अपना बैग तैयार कर रही थी. वह दबे पांव प्रिया के पीछे पहुंचा और साथ लाया चाकू निकाल कर उस के ऊपर हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से प्रिया चीखी तो उस की चीख सुन कर किसी अनहोनी की आशंका से घबराईं किरण उस के कमरे की तरफ भागीं. अंदर अमित प्रिया पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर रहा था. उस हालत में यह सोचने का समय नहीं था कि क्या किया जाए, इसलिए बगैर समय गंवाए किरण ने बेटी को बचाने की कोशिश की तो अमित ने उन पर भी हमला कर दिया. मां के आने पर मौका मिला तो प्रिया खुद को बचाने के लिए बाथरूम में घुस गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

किरण और प्रिया की चीखें सुन कर अपार्टमेंट के लोग उन के फ्लैट की तरफ भागे तो उन्होंने देखा कि एक लड़का हाथ में चाकू लिए भाग रहा है. अमित अभी सैकेंड फ्लोर तक ही आ पाया था कि उसे नीचे से भी लोग आते दिखे. उसे लगा कि लोगों ने उसे देख लिया है. अगर वह भीड़ के हत्थे चढ़ गया तो खासी धुनाई होगी. लिहाजा बचने की गरज से उस ने दूसरी मंजिल से छलांग लगा दी. पड़ोसी जब किरण के फ्लैट पर पहुंचे तो जल्द ही वहां की स्थिति उन की समझ में आ गई. किरण के इशारे पर वे बाथरूम की तरफ भागे और दरवाजा तोड़ा तो प्रिया मरणासन्न हालत में पड़ी थी. उस के शरीर का काफी खून बह गया था. लोग उसे कार में डाल कर अस्पताल के लिए भागे. इसी बीच किसी ने फोन से इस घटना की खबर पुलिस को कर दी थी. इंदौर के सुयश अस्पताल में प्रिया का इलाज शुरू हुआ. लेकिन इलाज के दौरान ही उस ने दम तोड़ दिया. अमित ने उस की पीठ, पेट, आंख, कान, गले और सीने पर लगभग दर्जन भर वार किए थे. श्यामबिहारी को जब एकलौती बेटी की हत्या की सूचना मिली तो वह बेहोश हो गए.

अमित दूसरी मंजिल से कूदा तो फिर उठ नहीं सका. उस के हाथपैर में फ्रैक्चर हो गया. उसे गिरफ्तार कर के एम.वाय. अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया. वह पूरे होश में था. उस के चेहरे पर डर या पछतावा जैसी कोई चीज नहीं थी. लगता था, वह यही करना चाहता था. प्रिया की हत्या ही उस का मकसद था. गूजरखेड़ा गांव के रहने वाले अमित की फ्रैंडसर्किल कोई बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन सोशल मीडिया की उस की दुनिया काफी बड़ी थी. वह दिनरात स्मार्टफोन से चिपके हुए चैटिंग करता रहता था. लड़कियों से दोस्ती करने की गरज से उस ने प्रियांशी के नाम से एकाउंट बना कर तमाम लड़कियों से दोस्ती कर ली थी. प्रिया से दोस्ती की जगह प्यार हो गया तो उस ने उस से दिल की बात कह डाली. लेकिन प्रिया ने उस धोखेबाज को झिड़क दिया तो एकतरफा प्यार की गिरफ्त में आए इस सिरफिरे ने उसे दुनिया से ही विदा कर दिया.

पूछताछ में अपने बचाव के मकसद से अमित गोलमोल जवाब देता रहा. वह अपने पिता सुनील यादव से झूठ बोल कर निकला था कि इंटरव्यू देने जा रहा है. वह पुलिस से यह कह कर उसे भ्रमित करने की कोशिश कर रहा था कि जब वह प्रिया के कमरे में पहुंचा तो वह उस पर ज्यादती का आरोप लगाने लगी. जबकि फोरैंसिक रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि प्रिया ने खुद पर कोई वार नहीं किया था. अमित का कहना था कि प्रिया ने उस का चाकू छीन कर खुद पर वार किए थे. एक दूसरा बयान उस ने यह भी दिया था कि उसे आशंका थी कि प्रिया के घर जाने पर उस के साथ कोई भी अनहोनी हो सकती है, इसलिए उस ने ही खुद पुलिस को 100 नंबर पर फोन कर के बुलाया था.

किरण पर हमले की बात से मुकरते हुए उस ने कहा कि भागते हुए जब वह बीच में आ गईं तो हाथ में पकड़े चाकू से उन्हें जख्म हो गया. जबकि हकीकत यह थी कि अमित प्रिया से एकतरफा प्यार करने लगा था और उस के मना करने पर जलभुन गया था. फेसबुक की दोस्ती पर ऐसे अपराध अब आम हो चले हैं, जिन का शिकार प्रिया जैसी लड़कियां हो रही हैं. ऐसे में उन्हें और संभल कर रहने की जरूरत है. प्रिया उस का पहला प्यार था और उस के ठुकरा देने से वह उस से नफरत करने लगा था, जिस की वजह से उस ने एक हंसताखेलता घर उजाड़ दिया.

Crime: मुजीब ने उस लड़की के साथ रची खौफनाक साजिश

Crime : वह पहले लड़कियों से दोस्ती करता, फिर उन से लगातार फोन पर बातें करता. बाद में शादी की तैयारियों का ढोंग रचा कर उन्हें किसी एकांत जगह पर बुलाता और शादी की बात करता और एक कामयाब जिंदगी जीने की योजनाएं बनाता. इस के बाद वह ‘घर तलाश रहा हूं’ कह कर उन लड़कियों से कुछ रुपए मांगता और आखिर में उन के गहने वगैरह लूट कर वहां से रफूचक्कर हो जाता. इस तरह 7 से ज्यादा लड़कियों को धोखे में रख कर चंपत होने वाले शख्स का नाम मुजीब है.

38 साल का त्रिशूर नलिकुलम नंबानकड़व पुतियाविट्टील मुजीब कम उम्र से अपराध की राह पर चल पड़ा था. घर वालों से अलग होने के बाद वह जिंदगी गुजारने के लिए कई जगहों पर भटका. कई जगह पर उस ने दिहाड़ी पर काम किया था, पर इस से उस का गुजारा नहीं चलता था.

इसी बीच मुजीब कोच्चि पहुंचा. वहां उस ने एट्टुमानूर स्वदेशी मंजू नाम की एक लड़की से कलूर में दोस्ती की. वह अपनी दादी के साथ रह रही थी. उस के मांबाप अलग रह रहे थे.

रची खौफनाक साजिश

एक दिन मुजीब ने किसी इश्तिहार में ‘गुरदा चाहिए’ लिखा देखा. उस ने फोन नंबर मिला कर गुरदा देने की बात कही. इस के लिए कोल्लम स्वदेशी शिवकुमार को जरीया भी बनाया था.

दरअसल, मुजीब उस लड़की मंजू का गुरदा बेचने की चाल चल रहा था. दोनों को एकसाथ रहने के लिए घर व जमीन की जरूरत है, यह कह कर मुजीब ने मंजू को समझया कि अगर वह अपना एक गुरदा दे देगी, तो 10 लाख रुपए मिलेंगे, जिन से वे घर खरीद सकते?हैं.

एक अच्छी जिंदगी जीने का सपना बुनने वाली मंजू ने एतराज नहीं किया. शिवकुमार ने ही अस्पताल का जुगाड़ किया और तिरुअनंतपुरम के किम्स अस्पताल में मंजू का गुरदा निकाला गया.

रुपए मिलते ही मुजीब वहां से रफूचक्कर हो गया. ठगी गई मंजू ने उस के खिलाफ साल 2010 में पुलिस में केस दर्ज किया. इस बीच शिवकुमार भी वहां से फरार हो गया था.

पुलिस ने बहुत जांचपड़ताल की, पर दोनों का पता नहीं चला. इसी बीच परुंबावूर स्वदेशिनी बिंदु नाम की लड़की को भी मुजीब ने गुरदा देने के धंधे के जाल में फंसा लिया था.

और भी चालबाजियां

मुजीब उन लड़कियों के बारे में पहले ही सबकुछ पता कर लेता था, जो अच्छे जीवनसाथी और खुशहाल जिंदगी का सपना देखती थीं. वह अपनी मीठी बातों में उन्हें फंसा कर उन से रुपए व गहने ले कर रफूचक्कर हो जाता था.

एरुमेली स्वदेशी बैमा नाम की जवान लड़की के साथ भी उस ने कुछ दिन गुजारे थे. दोनों का एक बच्चा भी?है. बीच में मुजीब ने उस लड़की को एर्णाकुलम में एक काम भी दिला दिया था. इस के बाद उस लड़की ने मुजीब को दोबारा कभी नहीं देखा.

मुजीब कोषिकोड्ड के पास कुट्टीकाटूर के एक अरेबिक कालेज में रसोइए का काम करता था, तब उस के साथ एक लड़की भी थी. कालेज की कैंटीन के पास ही उन्हें ठहरने की सुविधा भी मिली थी. वे दोनों पिछले 2 महीने से आम जिंदगी बिता रहे थे.

रसोइए के रूप में काम करने के बीच भी मुजीब धोखेबाजी के बारे में ही सोचता रहा. जल्द ही पैसा पा कर अमीर बनने का लालच उस के मन में था.

तब उस ने अपने साथ रह रही उस लड़की को नशीली दवा दे कर बेहोश किया, फिर उस के साढ़े 3 लाख रुपए के कीमती गहने चुरा लिए.

वहां से रफूचक्कर होने के बाद मुजीब के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. उस लड़की ने कोषिकोड्ड पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करा दी.

इस के बाद मैडिकल कालेज सीआई प्रेमदास की अगुआई में मुजीब को पुलिस द्वारा पालकाड्ड बसअड्डे के पास से पकड़ लिया गया.

पुलिस कस्टडी में आने के बाद मुजीब द्वारा किए गए कई छलकपट सामने आए. लेकिन तब भी उस ने अपना सही नामपता नहीं बताया. उस के पास जितने भी आईकार्ड थे, सब नकली थे.

मुजीब के मांबाप बीमार थे और तमिलनाडु के एरवाडी इलाके में तकरीबन 10 साल पहले मर गए थे.

बाद में गुरदे बेचने के जुर्म में मुजीब का साथ देने वाला शख्स शिवकुमार भी पकड़ा गया.

मालती चौहान की आत्महत्या, चकाचौंधी इन्फ्लुएंसर्स को सबक

Crime News in Hindi: लाइक्स, सब्सक्राइब, बेल आइकन के खेल उत्तर प्रदेश की मालती चौहान के अंत की कहानी भी बन गए. इस से बाकी यूट्यूबर (YouTuber) कुछ समझों या न, पर मालती चौहान की आत्महत्या (Suicide) उन के लिए सबक जरूर है. डिजिटल वर्ल्ड (Digital World) ने एक चीज तबीयत से की कि इंसान भले स्मार्ट हो या न, लेकिन स्मार्टफोन (Smart Phone) हर हाथ में जरूर हो. इस ने एक का दूसरे तक एक्सैस आसान कर दिया है. वह चाहे दिल्ली (Delhi) के वसंत कुंज (Vasant Kunj) जैसी पौश कालोनी में रहने वाली धृति हो या उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संत कबीर नगर (Sant kabir Nagar) इलाके के किसी कच्चे मकान में रहने वाली मालती चौहान.

लेकिन भूख चाहे जितनी हो, निवाला तो तभी निगला जा सकता है जब जबान उस की गरमाहट झोलने लायक हो जाए. कभीकभी डिजिटल वर्ल्ड की चकाचौंध की गिरफ्त में इन्फ्लुएंसर इसे भूल जाते हैं और उन की जबान जल ही जाती है.

ईंट-बदरपुर से बने कच्चे मकान में रहने वाली मालती चौहान, जिस ने गरीबी देखी, टूटी खाट, टपकती छत, बिखरे सपने और बेतरतीब जीवन देखा, ने बहुत कम समय में यूट्यूब इन्फ्लुएंसर के तौर पर खासा नाम भी कमाया. लेकिन इन सब के बावजूद मालती ऐसी उदाहरण बन गई जिसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कभी नहीं चाहेंगे कि उन के साथ भी ऐसा हो क्योंकि इसी नेम, फेम और चरमोत्कर्ष पर पहुंच कर उसे आखिरकार मौत को गले लगाना पड़ा.

यह पूरा खेल डिजिटल चकाचौंध, कमाई की भूख, नेम, फेम और नंबरों का था. महज 4 साल में ही गरीब परिवार की मालती ने अपने पति विष्णु राज के साथ यूट्यूब पर नाम कमा कमा लिया. दोनों की शादी 2020 में हुई थी. 6 मिलियन यानी 60 लाख से ऊपर फौलोअर्स बना लिए और चैनल में ढेरों देसी रील्स व वीडियो बना लिए.

वीडियो हर एंगल से बनाए, मालती बिस्तर पर लेटी रहती, कभी बरतन धो रही होती, कभी बच्चों को खाना खिला रही होती, पति विष्णुराज उस के विशेष अंगों पर कैमरा जूम-इन और जूम-आउट करता. कभी होंठों की लाली दिखाता, कभी खिसके दुपट्टे को.

पैसों की गाड़ी चल पड़ी तो शादीविवाह, मुंडन पर इस कपल को इन्फ्लुएंसर के तौर पर बुलाया जाने लगा. भोजपुरी के बाजार में जहां अश्लीलता ही मेनस्ट्रीम है, वहां इस कपल के लिए थोड़ीबहुत अश्लीलता दिखा कर अपनी पहचान बनाना आसान न था. लेकिन फिर भी इस कपल ने अपनी कोशिश जारी रखी.

वीडियो चल पड़ी तो टीम बढ़ा ली. टीम में अर्जुन की एंट्री हो गई. अर्जुन के आते ही एक बच्चे की मां मालती उस से दिल लगा बैठी. जिस अश्लीलता से वीडियो में शुरुआत हुई थी वह अश्लीलता इन की निजी जिंदगी में घुस गई. वीडियो बनाने के नाम पर पतिपत्नी दोनों के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चलने लगे. औडियंस को लगा स्क्रिप्टेड कंटैंट है. लेकिन रिश्तों के हर जायजनाजायज चीजों पर हिट, लाइक, कमैंट बटोरने की भूख रिश्तों को भी बाजार में नीलाम कर ही देते हैं.

पति ने सोचा कि इस पर भी व्यूज बटोरे जाएं. विष्णुराज ने पत्नी की शादी औन-कैमरा अपने ही चैनल पर चला कर अर्जुन से करवा दी. लेकिन जीवन कोई रेल की पटरी जैसी नहीं कि सीधी चलती रहे. एक बार फिर मालती का मन अर्जुन के साथ नहीं लगा तो उस ने विष्णुराज से पुनर्मिलन कर लिया.

लेकिन यह पुनर्मिलन प्यार और ग्लानी से कहीं आगे उस चकाचौंध की थी जो दोनों की एकदूसरे के बगैर अधूरी थी. डिजिटल दुनिया ने इन्हें वह जिंदगी दे दी थी जो ये सपने में भी नहीं सोच सकते थे लेकिन पेंच यह कि वफा की पिच में दोनों तरफ ही बेवफाई चल पड़ी थी. जब मालती वापस आई तो तकरार फिर से बढ़ने लगी. दोनों तरफ से आरोप लगने लगे.

लाइक्स, सब्सक्राइब, बेल आइकन के खेल में ये दोनों ऐसे उलझे कि यही इन के अंत की कहानी भी बन गई. मालती ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो डाली कि उस के साथ कोई भी अनहोनी हो सकती है. इस वीडियो को लोगों ने देखा और लाइक किया. लेकिन एक सुबह मालती की सास ज्ञानमती मालती के कमरे का बंद दरवाजा खोलने पहुंची तो मालती की लाश साड़ी के फंदे से लटकी मिली. मालती के पिता दीपचंद के अनुसार, उस की बेटी की हत्या हुई और विष्णुराज गुनाहगार है. ऊपरी तौर पर देखने में यह आत्महत्या का मामला है, लेकिन इस के पीछे सोशल मीडिया की वह क्रूर हकीकत जान पड़ती है जिसे लोग नजरअंदाज कर रहे हैं.

वजह चाहे जो हो, अब यूपीबिहार का हर दूसरा छछूंदर यूट्यूबर मौत के इस कंटैंट पर वीडियो बना कर लाखों व्यूज बटोरने के लिए मार्केट में बना हुआ है. हर कोई इस मौके को भुनाने पर लगा हुआ है. नंबरों का खेल यहां भी मालती का पीछा नहीं छोड़ रहा है. डेली ब्लौग के नाम पर मालती और उस का पति जो सौफ्ट पोर्न व्यूज बटोरने के लिए बनाते थे, अब उसी के फैलोअर्स यूट्यूबर उसी की कहानी को बेच खा रहे हैं.

सोशल मीडिया में चरित्र दिखाया जाता है और उधेड़ा भी जाता है, जैसे यहां अश्लीलता का बाजार है वैसे ही चरित्र हनन का भी बाजार है. मालती व विष्णु की कहानी सोशल मीडिया में पनपे लव, सैक्स व धोखा सरीखी है. जिस मालती के चलतेफिरते वीडियो बना करते थे, अब यूट्यूबरों में भी उस की मौत के बाद उस की निजी जिंदगी, औडियो कौल रिकार्डिंग, सुबूतों की लिस्ट सबकुछ दिखाने का कंपीटिशन चल चुका है. देश के ज्यादातर यूट्यूबरों के लिए यही ग्राउंड रिपोर्टिंग है, यही यूट्यूब जर्नलिज्म है.

पति की हत्या करने वाली पत्नी की खुली पोल

Crime News in Hindi: कभीकभी कोई रात आदमी के लिए इतनी भारी हो जाती है कि उसे काटना मुश्किल हो जाता है. जयलक्ष्मी गुरव (Jai laxmi Gurav) के लिए भी वह रात ऐसी ही थी. उस पूरी रात वह पलभर के लिए भी नहीं सो सकी थी. कभी वह बिस्तर पर करवटें बदलती तो कभी उठ कर कमरे में टहलने लगती. उस के मन में बेचैनी थी तो आंखों में भय था. एकएक पल उसे एकएक साल के बराबर लग रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल कांप उठता था. सवेरा होते ही जयलक्ष्मी बेटे के पास पहुंची और उसे झकझोर कर उठाते हुए बोली, ‘‘तुम यहां आराम से सो रहे हो और तुम्हारे पापा रात से गायब हैं. वह रात में गए तो अभी तक लौट कर नहीं आए हैं. वह घर से गए थे तो उन के पास काफी पैसे थे, इसलिए मुझे डर लग रहा है कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई?’’

जयलक्ष्मी बेटे को जगा कर यह सब कह रही थी तो उस की बातें सुन कर उस की ननद भी जाग गई, जो बेटे के पास ही सोई थी. वह भी घबरा कर उठ गई. आंखें मलते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, भैया कहां गए थे, जो अभी तक नहीं आए. लगता है, तुम रात में सोई भी नहीं हो?’’

‘‘मैं सोती कैसे, उन की चिंता में नींद ही नहीं आई. उन्हीं के इंतजार में जागती रही. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.’’ कह कर जयलक्ष्मी रोने लगी.

बेटा उठा और पिता की तलाश में जगहजगह फोन करने लगा. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उस के पिता विजय कुमार गुरव के बारे में भले पता नहीं चला, लेकिन उन के गायब होने की जानकारी उन के सभी नातेरिश्तेदारों को हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि ज्यादातर लोग उन के घर आ गए और सभी उन की तलाश में लग गए.

जब सभी को पता चला विजय कुमार के गायब होने के बारे में

विजय कुमार गुरव के गायब होने की खबर मोहल्ले में भी फैल गई थी. मोहल्ले वाले भी मदद के लिए आ गए थे. हर कोई इस बात को ले कर परेशान था कि आखिर विजय कुमार कहां चले गए? इसी के साथ इस बात की भी चिंता सता रही थी कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. क्योंकि वह घर से गए थे तो उन के पास कुछ पैसे भी थे. किसी ने उन पैसों के लिए उन के साथ कुछ गलत न कर दिया हो.

38 साल के विजय कुमार महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले की तहसील सावंतवाड़ी के गांव भड़गांव के रहने वाले थे. उन का भरापूरा शिक्षित और संपन्न परिवार था. सीधेसादे और मिलनसार स्वभाव के विजय कुमार गडहिंग्लज के एक कालेज में अध्यापक थे. अध्यापक होने के नाते समाज में उन का काफी मानसम्मान था. गांव में उन का बहुत बड़ा मकान और काफी खेती की जमीन थी. लेकिन नौकरी की वजह से उन्होंने गडहिंग्लज में जमीन खरीद कर काफी बड़ा मकान बनवा कर उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे.

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विजय कुमार के परिवार में पत्नी जयलक्ष्मी के अलावा एक बेटा था. पत्नी और बेटे के अलावा उन की एक मंदबुद्धि बहन भी उन्हीं के साथ रहती थी. मंदबुद्धि होने की वजह से उस की शादी नहीं हुई थी. बाकी का परिवार गांव में रहता था. विजय कुमार को सामाजिक कार्यों में तो रुचि थी ही, वह तबला और हारमोनियम बहुत अच्छी बजाते थे. इसी वजह से उन की भजनकीर्तन की अपनी एक मंडली थी. उन की यह मंडली गानेबजाने भी जाती थी.

दिन कालेज और रात गानेबजाने के कार्यक्रम में कटने की वजह से वह घरपरिवार को बहुत कम समय दे पाते थे. उन की कमाई ठीकठाक थी, इसलिए घर में सुखसुविधा का हर साधन मौजूद था. आनेजाने के लिए मोटरसाइकिलों के अलावा एक मारुति ओमनी वैन भी थी.

इस तरह के आदमी के अचानक गायब होने से घर वाले तो परेशान थे ही, नातेरिश्तेदारों के अलावा जानपहचान वाले भी परेशान थे. सभी उन की तलाश में लगे थे. काफी प्रयास के बाद भी जब उन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो सभी ने एकराय हो कर कहा कि अब इस मामले में पुलिस की मदद लेनी चाहिए.

इस के बाद विजय कुमार का बेटा कुछ लोगों के साथ थाना गडहिंग्लज पहुंचा और थानाप्रभारी को पिता के गायब होने की जानकारी दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. यह 7 नवंबर, 2017 की बात है.

पुलिस ने भी अपने हिसाब से विजय कुमार की तलाश शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की इस कोशिश का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला. पुलिस ने लापता अध्यापक विजय कुमार की पत्नी जयलक्ष्मी से भी विस्तार से पूछताछ की.

पत्नी ने क्या बताया पुलिस को

जयलक्ष्मी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार रोज की तरह उस दिन कालेज बंद होने के बाद 7 बजे के आसपास वह घर आए तो नाश्तापानी कर के कमरे में बैठ कर पैसे गिनने लगे. वे पैसे शायद फीस के थे, जिन्हें अगले दिन कालेज में जमा कराने थे. पैसे गिन कर उन्होंने पैंट की जेब में वापस रख दिए और लेट की टीवी देखने लगे.

रात का खाना खा कर साढ़े 11 बजे के करीब विजय कुमार पत्नी के साथ सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. जयलक्ष्मी ने सवालिया निगाहों से पति की ओर देखा तो उन्होंने कहा, ‘‘देखता हूं, कौन है?’’

विजय कुमार ने दरवाजा खोला तो शायद दस्तक देने वाला विजय कुमार का कोई परिचित था, इसलिए वह बाहर निकल गए. थोड़ी देर बाद अंदर आए और कपड़े पहनने लगे तो जयलक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, थोड़ा काम है. जल्दी ही लौट आऊंगा.’’ कह कर वह बाहर जाने लगे तो जयलक्ष्मी ने क हा, ‘‘गाड़ी की चाबी तो ले लो?’’

‘‘चाबी की जरूरत नहीं है. उन्हीं की गाड़ी से जा रहा हूं.’’ कह कर विजय कुमार चले गए. वह वही कपड़े पहन कर गए थे, जिस में पैसे रखे थे. इस तरह थोड़ी देर के लिए कह कर गए विजय कुमार गुरव लौट कर नहीं आए.

पुलिस ने विजय कुमार के बारे में पता करने के लिए अपने सारे हथकंडे अपना लिए, पर उन की कोई जानकारी नहीं मिली. 3 दिन बीत जाने के बाद भी थाना पुलिस कुछ नहीं कर पाई तो घर वाले कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर एसएसपी दयानंद गवस और एसपी दीक्षित कुमार गेडाम से मिले. इस का नतीजा यह निकला कि थाना पुलिस पर दबाव तो पड़ा ही, इस मामले की जांच में सीआईडी के इंसपेक्टर सुनील धनावड़े को भी लगा दिया गया.

जब सीआईडी के इंसपेक्टर को सौंपी गई जांच

सुनील धनावड़े जांच की भूमिका बना रहे थे कि 11 नवंबर, 2017 को सावंतवाड़ी अंबोली स्थित सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर एक लाश मिलने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही एसपी दीक्षित कुमार गेडाम, एसएसपी दयानंद गवस इंसपेक्टर सुनील धनावड़े पुलिस बल के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी.

यह पिकनिक पौइंट बहुत अच्छी जगह है, इसलिए यहां घूमने वालों की भीड़ लगी रहती है. यहां ऊंचीऊंची पहाड़ियां और हजारों फुट गहरी खाइयां हैं. किसी तरह की अनहोनी न हो, इस के लिए पहाडि़यों पर सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग लगाई गई है.

दरअसल, यहां घूमने आए किसी आदमी ने रेलिंग के पास खून के धब्बे देखे तो उस ने यह बात एक दुकानदार को बताई. दुकानदार ने यह बात चौकीदार दशरथ कदम को बताई. उस ने उस जगह का निरीक्षण किया और मामले की जानकारी थाना पुलिस को दे दी.

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पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल के निरीक्षण में सैकड़ों फुट गहरी खाई में एक शव को पड़ा देखा. शव बिस्तर में लिपटा था. वहीं से थोड़ी दूरी पर एक लोहे की रौड पड़ी थी, जिस में खून लगा था. इस से पुलिस को लगा कि हत्या उसी रौड से की गई है. पुलिस ने ध्यान से घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां से कुछ दूरी पर कार के टायर के निशान दिखाई दिए.

इस से साफ हो गया कि लाश को कहीं बाहर से ला कर यहां फेंका गया था. पुलिस ने रौड और बिस्तर को कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

सीआईडी इंसपेक्टर सुनील धनावड़े विजय कुमार गुरव की गुमशुदगी की जांच कर रहे थे, इसलिए उन्होंने लाश की शिनाख्त के लिए जयलक्ष्मी को सूचना दे कर अस्पताल बुला लिया.

लाश तो मिली पर नहीं हो सकी पुख्ता शिनाख्त

लाश की स्थिति ऐसी थी कि उस की शिनाख्त आसान नहीं थी. फिर भी कदकाठी से अंदाजा लगाया गया कि वह लाश विजय कुमार गुरव की हो सकती है. चूंकि उन के घर वालों ने संदेह व्यक्त किया था, इसलिए पुलिस ने लाश की पुख्ता शिनाख्त के लिए डीएनए का सहारा लिया. जिस बिस्तर में शव लिपटा था, उसे जयलक्ष्मी को दिखाया गया तो उस ने उसे अपना मानने से इनकार कर दिया.

भले ही लाश की पुख्ता शिनाख्त नहीं हुई थी, लेकिन पुलिस उसे विजय कुमार की ही लाश मान कर जांच में जुट गई. जिस तरह मृतक की हत्या हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या प्रेमसंबंधों में हुई है. पुलिस ने विजय कुमार और उन की पत्नी जयलक्ष्मी के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि विजय कुमार और जयलक्ष्मी के बीच संबंध सामान्य नहीं थे.

इस की वजह यह थी कि जयलक्ष्मी का चरित्र संदिग्ध था, जिसे ले कर अकसर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ करता था. जयलक्ष्मी का सामने वाले मकान में रहने वाले सुरेश चोथे से प्रेमसंबंध था, इसलिए घर वालों का मानना था कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ हो सकता है.

यह जानकारी मिलने के बाद सुनील धनावड़े समझ गए कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे उन की पत्नी जयलक्ष्मी और उस के प्रेमी सुरेश का हाथ है. उन्होंने जयलक्ष्मी से एक बार फिर पूछताछ की. वह उस की बातों से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन कोई ठोस सबूत न होने की वजह से वह उसे गिरफ्तार नहीं कर सके. उन्होंने सुरेश चोथे को भी थाने बुला कर पूछताछ की. उस ने भी खुद को निर्दोष बताया. उस के भी जवाब से वह संतुष्ट नहीं थे, इस के बावजूद उन्होंने उसे जाने दिया.

उन्हें डीएनए रिपोर्ट का इंतजार था, क्योंकि उस से निश्चित हो जाता कि वह लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर ही रही थी कि पुलिस की सरगर्मी देख कर जयलक्ष्मी अपने सारे गहने और घर में रखी नकदी ले कर सुरेश चोथे के साथ भाग गई. दोनों के इस तरह घर छोड़ कर भाग जाने से पुलिस को शक ही नहीं, बल्कि पूरा यकीन हो गया कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

शक के दायरे में आई पत्नी और उस का प्रेमी

पुलिस सुरेश चोथे और जयलक्ष्मी की तलाश में जुट गई. पुलिस उन की तलाश में जगहजगह छापे तो मार ही रही थी, उन के फोन भी सर्विलांस पर लगा दिए थे. इस से कभी उन के दिल्ली में होने का पता चलता तो कभी कोलकाता में. गुजरात और महाराष्ट्र के शहरों की भी उन की लोकेशन मिली थी. इस तरह लोकेशन मिलने की वजह से पुलिस कई टीमों में बंट कर उन का पीछा करती रही थी.

आखिर पुलिस ने मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर जयलक्ष्मी और सुरेश को मुंबई के लोअर परेल लोकल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना गडहिंग्लज लाया गया, जहां एसएसपी दयानंद गवस की उपस्थिति में पूछताछ शुरू हुई. अब तक डीएनए रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस से साफ हो गया था कि सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर खाई में मिली लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस के पास सारे सबूत थे, इसलिए जयलक्ष्मी और सुरेश ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों के बताए अनुसार, विजय कुमार की हत्या की कहानी इस प्रकार थी.

कैसे हुआ जयलक्ष्मी और सुरेश में प्यार

34 साल का सुरेश चोथे विजय कुमार गुरव के घर के ठीक सामने रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चों के अलावा मातापिता, एक बड़ा भाई और भाभी थी. वह गांव की पंचसंस्था में मैनेजर के रूप में काम करता था. घर में पत्नी होने के बावजूद वह जब भी जयलक्ष्मी को देखता, उस के मन में उसे पाने की चाहत जाग उठती.

37 साल की जयलक्ष्मी थी ही ऐसी. वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही वाचाल और मिलनसार भी थी. उस से बातचीत कर के हर कोई खुश हो जाता था, इस की वजह यह थी कि वह खुल कर बातें करती थी. ऐसे में हर कोई उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पड़ोसी होने के नाते सुरेश से उस की अकसर बातचीत होती रहती थी.

बातचीत करतेकरते ही वह उस का दीवाना बन गया था. जयलक्ष्मी का बेटा 18 साल का था, लेकिन उस के रूपयौवन में जरा भी कमी नहीं आई थी. शरीर का कसाव और चेहरे के निखार से वह 25 साल से ज्यादा की नहीं लगती थी. उस के इसी यौवन और नशीली आंखों के जादू में सुरेश कुछ इस तरह खोया कि अपनी पत्नी और बच्चों को भूल गया.

कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. जयलक्ष्मी तक पहुंचने की राह आखिर सुरेश ने खोज ही ली. विजय कुमार से दोस्ती कर के वह उस के घर के अंदर तक पहुंच गया था. इस के बाद धीरेधीरे उस ने जयलक्ष्मी से करीबी बना ली. भाभी का रिश्ता बना कर वह उस से हंसीमजाक करने लगा. हंसीमजाक में जयलक्ष्मी के रूपसौंदर्य की तारीफ करतेकरते उस ने उसे अपनी ओर इस तरह आकर्षित किया कि उस ने उसे अपना सब कुछ सौंप दिया.

विजय कुमार गुरव दिन भर नौकरी पर रहते और रात में गानेबजाने की वजह से अकसर बाहर ही रहते थे. इसी का फायदा जयलक्ष्मी और सुरेश उठा रहे थे. जयलक्ष्मी को अपनी बांहों में पा कर जहां सुरेश के मन की मुराद पूरी हो गई थी, वहीं जयलक्ष्मी भी खुश थी. दोनों विजय कुमार की अनुपस्थिति में मिलते थे, इसलिए उन्हें पता नहीं चल पाता था.

लेकिन आसपास वालों ने विजय कुमार के घर में न रहने पर सुरेश को अकसर उस के घर आतेजाते देखा तो उन्हें शंका हुई. उन्होंने विजय कुमार को यह बात बता कर शंका जाहिर की तो विजय कुमार हैरान रह गए. उन्हें तो पत्नी और पड़ोसी होने के नाते सुरेश पर पूरा भरोसा था.

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इस तरह दोनों विजय कुमार के भरोसे का खून कर रहे थे. उन्होंने पत्नी और सुरेश से इस विषय पर बात की तो दोनों कसमें खाने लगे. उन का कहना था कि उन के आपस में संबंध खराब करने के लिए लोग ऐसा कह रहे हैं.

भले ही जयलक्ष्मी और सुरेश ने कसमें खा कर सफाई दी थी, लेकिन विजय कुमार जानते थे कि बिना आग के धुआं नहीं उठ सकता. लोग उन से झूठ क्यों बोलेंगे? सच्चाई का पता लगाने के लिए वह पत्नी और सुरेश पर नजर रखने लगे. इस से जयलक्ष्मी और सुरेश को मिलने में परेशानी होने लगी, जिस से दोनों बौखला उठे. इस के अलावा सुरेश को ले कर विजय कुमार अकसर जयलक्ष्मी की पिटाई भी करने लगे थे.

इस तरह बनी विजय कुमार की हत्या की हत्या की योजना

इस से जयलक्ष्मी तो परेशान थी ही, प्रेमिका की पिटाई से सुरेश भी दुखी था. वह प्रेमिका की पिटाई सहन नहीं कर पा रहा था. जयलक्ष्मी की पिटाई की बात सुन कर उस का खून खौल उठता था. प्रेमी के इस व्यवहार से जयलक्ष्मी ने एक खतरनाक योजना बना डाली. उस में सुरेश ने उस का हर तरह से साथ देने का वादा किया.

योजना के अनुसार, घटना वाले दिन जयलक्ष्मी ने खाने में नींद की गोलियां मिला कर पति, ननद और बेटे को खिला दीं, जिस से सभी गहरी नींद सो गए. रात एक बजे के करीब सुरेश ने धीरे से दरवाजा खटखटाया तो जयलक्ष्मी ने दरवाजा खोल दिया. सुरेश लोहे की रौड ले कर आया था. उसी रौड से उस ने पूरी ताकत से विजय कुमार के सिर पर वार किया. उसी एक वार में उस का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

विजय कुमार की हत्या कर के लाश को दोनों ने बिस्तर में लपेट दिया. इस के बाद जयलक्ष्मी ने लाश को अपनी मारुति वैन में रख कर उसे सुरेश से सावंतवाड़ी के अंबोली सावलेसाद पिकनिक पौइंट की गहरी खाइयों में फेंक आने को कहा.

सुरेश लाश को ठिकाने लगाने चला गया तो जयलक्ष्मी कमरे की सफाई में लग गई. उस के बाद सुरेश लौटा तो जयलक्ष्मी ने वैन की भी ठीक से सफाई कर दी. इस के बाद उस ने विजय कुमार की गुमशुदगी की झूठी कहानी गढ़ डाली. लेकिन उस की झूठी कहानी जल्दी ही सब के सामने आ गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयलक्ष्मी के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया तो दीवारों पर भी खून के दाग नजर आए. पुलिस ने उन के नमूने उठवा लिए. इस तरह साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

25 दिसंबर की वह काली रात और एक अनोखी हत्या

Crime News in Hindi: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जिले चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के तहत बन रहे नए भारत माला रोड (Bharat Mala Road) पर छाता जंगल के पास 25 दिसंबर, 2023 की रात एक हत्या हुई. हत्यारे ने बड़ी सोचीसमझी चालाकी के साथ अपनेआप को छिपाना चाहा और अगर पुलिस (Police) इस मामले में थोड़ी सी भी कोताही करती, तो हत्यारा बच कर निकल सकता था, मगर ऐसा हो न पाया. दरअसल, बुधवार, 27 दिसंबर, 2023 को एक खबर सुर्खियां में थी कि एक आटोरिकशा चालक(Autorikshaw Driver) के सिर को पत्थर से कुचल कर उस की हत्या कर दी गई है. मगर जब पुलिस ने जांचपड़ताल की, तो इस हत्या के मामले में नया मोड़ आ गया.

पुलिस जिसे मरा हुआ समझ रही थी वही जिंदा निकला और हत्या का आरोपी भी वही पाया. जांच में यह भी पाया गया कि आटोरिकशा चालक ने ही किसी सवारी की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना दिए और खुद की हत्या बताने और पुलिस को भरमाने की शातिर चाल चली. मजेदार बात यह है कि उस आटोरिकशा चालक के परिवार वालों ने उस की शिनाख्त भी कर ली थी.

आप को पूरी घटना तफसील से बताते हैं. गांव ढेका, जिला बिलासपुर का रहने वाला 36 साल का शंकर शास्त्री, जिस के पिता का नाम जगजीवन है, बिलासपुर में आटोरिकशा चलाता था. सोमवार, 25 दिसंबर की सुबह वह अपने घर से आटोरिकशा नंबर सीजी 10 एई 9477 ले कर निकला था. रात के तकरीबन 8 बजे वह बिलासपुर रेलवेस्टेशन से आटोरिकशा ले कर निकला, लेकिन घर वापस नहीं पहुंचा. परिवार के लोगों द्वारा कई बार फोन लगाने पर भी उस ने फोन नहीं उठाया.

मंगलवार, 26 दिसंबर, 2023 की सुबह कोरबापंतोरा रोड पर छाता जंगल के पास भारत माला रोड पर खून से लथपथ एक लाश लोगों ने देखी. उस का सिर कुचला हुआ था. वहीं एक आटोरिकशा भी रोड पर पलटा हुआ था.

सूचना मिलने पर पंतोरा चौकी प्रभारी दिलीप सिंह और पुलिस टीम मौके पर पहुंची. घटनास्थल पर डौग स्कवायड और साथ ही बिलासपुर से फौरैंसिंक ऐक्सपर्ट की टीम भी बुलाई गई.

घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया. पुलिस को मौके से शराब की बोतल और मूंगफली भी पड़ी हुई मिली. इस से लगा कि शराब पीने के दौरान हुए झगड़े के बाद यह हत्या की गई होगी.

सूचना मिलने पर शंकर शास्त्री के परिवार वाले भी वहां पहुंच गए और मारे गए की पहचान आटोरिकशा चालक के रूप में की गई और लाश उस के परिवार वालों को सौंप दी गई.

पर जब पुलिस की जांचपड़ताल शुरू हुई, तो मामले ने नया मोड़ ले लिया. पुलिस ने मोबाइल डिटेल निकाली और सीसी फुटेज खंगाले, तो पता चला कि मारे गए शख्स के अलावा और एक आदमी का मोबाइल एकसाथ घटनास्थल पर बंद हुआ था.

पुलिस ने दोनों मोबाइल नंबरों की डिटेल निकाली, तो आटोरिकशा चालक का मोबाइल कुछ समय के लिए चालू मिला. पुलिस ने लोकेशन ट्रेस कर के उसे कोरबा से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने पूछताछ की तो उस ने खुद को सवारी बताया और आटोरिकशा चालक की हत्या करना बताया, जबकि वह खुद आटोरिकशा चालक था. पहचान छिपाने के लिए उस ने अपना मुंडन भी करा लिया था.

अब इस मामले ने नया मोड़ ले लिया है. जिसे पुलिस मरा हुआ समझ रही थी, वही कातिल निकला. बहरहाल, पुलिस ने आटोरिकशा चालक को गिरफ्तार कर लिया है. जब पुलिस ने उस से पूछताछ की, तो उस ने बताया कि वह अपराध पर लिखी गई किताबें पढ़ता था और उन्हीं से सीख ले कर उस ने यह अपराध करने के बाद खुद को बचाने की चाल चली थी. पर नाकाम रहा.

3,000 के लिए कर दी हत्या

Crime News in Hindi: 12 दिसंबर, 2024 को उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के खुर्जा टाउन में एक शख्स नवाब ने 22 साल के समीर की इतनी बेदर्दी से हत्या कर दी कि देखने वालों की आंखें फटी रह गईं. समीर टैक्सी चला कर परिवार का भरणपोषण करता था. कुछ दिनों पहले उस ने नवाब से 3,000 रुपए उधार लिए थे, जिसे उस ने वापस भी कर दिया था, जबकि नवाब उस से और 3,000 रुपए मांग रहा था. इसी पर विवाद के बाद नवाब ने कुछ दिनों पहले समीर की पिटाई भी की थी.

12 दिसंबर, 2023 को दोपहर में समीर अपने घर के बाहर गली में खड़ा था, तभी आरोपी नवाब चाकू ले कर आया और समीर के साथ गालीगलौज शुरू कर दिया. विरोध करने पर उस ने समीर की गरदन और पेट पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए, जिस से उस की गरदन का अगला भाग पूरी तरह से कट गया.

हमला इतना खौफनाक था कि समीर की आंतें तक उस के पेट से बाहर निकल आई थीं. वह लहूलुहान हो कर गिर पड़ा था.

भीड़ इकट्ठी होती देख आरोपी नवाब चाकू लहराता हुआ भाग निकला. समीर को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उसे मरा हुआ ऐलान कर दिया गया.

ऐसी ही कुछ और वारदातों पर नजर डालते हैं : उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 10 दिसंबर, 2023 को 68 साला एक औरत से जब उस के बेटे ने कुछ रुपए उधार मांगे, तो औरत ने पैसे देने से इनकार कर दिया. गुस्से में बौखलाए लड़के ने अपनी ही मां की फावड़े से हत्या कर दी.

इस से 2 दिन पहले यानी 8 दिसंबर, 2023 को 22 साल के एक नौजवान ने महाराष्ट्र के नवी मुंबई के सानपाड़ा में तड़के एक चौकीदार की माचिस की तीली देने से इनकार करने पर हत्या कर दी.

चौकीदार ने माचिस उधार देने से इनकार किया, तो 22 साल के लड़के शेख ने एक बड़ा पत्थर उठाया और पीड़ित के सिर पर दे मारा.

इसी तरह की पिछले साल की एक वारदात है, जब उत्तर प्रदेश के बिजनौर में उधार नहीं देने पर एक नौजवान ने दुकानदार यशपाल की पीटपीट कर हत्या कर दी थी. यशपाल सिंह की एक छोटी सी परचून की दुकान थी. इसी गांव का जितेंद्र दुकान से सामान खरीदने के लिए पहुंचा.

जितेंद्र ने दुकानदार यशपाल से उधार सामान मांगा, तो यशपाल ने देने से मना कर दिया. फिर यशपाल ने जितेंद्र से उधार के 30 रुपए वापस देने को भी कहा.

इसी बात पर यशपाल और जितेंद्र में झगड़ा हो गया. गुस्साए जितेंद्र ने अपने परिवार के लोगों के साथ मिल कर  दुकानदार को पीटपीट कर मौत के घाट उतार दिया. बीचबचाव करने आई दुकानदार की पत्नी को भी गंभीर रूप से घायल कर दिया.

देशभर में आएदिन हो रही ऐसी वारदातें साबित करती हैं कि आज के समय में लोगों की सहने की ताकत इतनी कम हो गई है और वे गुस्से में इतने बौखला जाते हैं कि आगेपीछे सोचे बिना मामूली सी बात पर जिंदगी लेनेदेने को तैयार हो जाते हैं.

उन्हें लगता है कि सामने वाले ने बात नहीं मानी, तो उसे जान से मार दो. खासकर, अगर सामने वाला कोई कमजोर शख्स हो, तो उस पर जानलेवा हमला करने में वे बिलकुल भी नहीं हिचकते.

खौफनाक अंजाम

मगर सोचिए, इस का अंजाम क्या होता है? एक इनसान अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है. उस का पूरा परिवार भी टूट जाता है.

ऐसी खौफनाक वारदात को अंजाम देने वाला आरोपी भी नहीं बचता. वह जिंदगीभर कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने या जेल की हवा खाने को मजबूर हो जाता है.

कुछ लोग जिंदगीभर पुलिस और लोगों से बचते फिरते हैं. उन की जिंदगी का सुकून छिन जाता है और वे एक मुजरिम की तरह जिल्लतभरी जिंदगी जीते हैं.

गुस्से पर रखें काबू

क्या यह बेहतर नहीं होगा कि इनसान अपने गुस्से पर काबू रखना सीखे. जराजरा सी बातों को तूल देने और अपना आपा खोने के बजाय सामने वाले की परेशानी को समझे. बेवजह की बहसबाजी या झगड़े में न पड़े.

जिंदगी खूबसूरत है, इनसान इसे अपने हाथों बरबाद न करे. साथ ही, पैसों के मामले में लेनदेन करने से बचे. न किसी को उधार दें, न किसी से उधार लें, क्योंकि पैसे रिश्तों को तोड़ने और जिंदगी तबाह करने की अकसर बड़ी वजह साबित होते हैं.

चाहिए थी नौकरी, बेटे ने करवा दिया कांड

Crime News in Hindi: बेरोजगारी कैसे भयावह स्वरूप धारण करके लोगों से अनेक तरह के अपराध कराती है, यह तो फिल्मों से लेकर मीडिया की सुर्खियों में आता ही रहता है. मगर क्या कोई बेरोजगार बेटा अपने पिता की सरकारी नौकरी पाने के चक्कर में उसकी हत्या करा सकता है. ऐसा शायद आपने कभी नहीं सुना होगा, मगर जीवन पर बेरोजगारी (Unepmloyment) की भयावहता का ऐसा भूत सवार हुआ कि अपने साले और दोस्त को ही अपने बाप की हत्या की सुपारी दे कर उसने सरकारी नौकरी कर रहे अपने पिता की हत्या करवा दी. यह सनसनीखेज घटनाक्रम छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के आदिवासी अंचल जिला जशपुर (Jashpur) में में घटित हुआ है. यह हत्याकांड (Murder) प्रदर्शित करता है कि “नौकरी” के कारण रिश्ते नाते किस तरह तार तार होते चले जा रहे हैं. प्रस्तुत है एक विशेष रिपोर्ट-

सेवानिवृत्ति के 3 दिन पहले!!

जी हां! वह जब जब स्वयं को बेरोजगार,असहाय महसूस कर रहा था तब बेचैन हो जाता. उसे अपना जीवन अंधकारमय प्रतीत हो रहा था. अंततः उसने बहुत सोचकर, एक घृणित अपराध करने की साजिश रच ली.

अपने ही पिता की निर्ममता से हत्या कराने चौंका देने वाला यह पूरा मामला जशपुर जिले के सन्ना पुलिस थाना क्षेत्र का है. दरअसल यहां के निवासी महावीर राम लोहार स्थानीय सरकारी अस्पताल में स्वीपर के पद पर पदस्थ था. उम्रदराज महावीर अपनी हत्या के तीन दिन बाद सेवानिवृत्त होने वाले थे.

लेकिन उसका बेरोजगार बेटा जीवन के दिमाग मे एक ही फितूर चल रहा था. नौकरी से रिटायर होकर चैन सुकून की जिंदगी का सपना संजो रहे महावीर को इस बात का कतई आभास नही था कि उसकी नौकरी की लालच में उसका ही जाया पुत्र उसके ही खून का प्यासा बन बैठा है. कई दिनों से योजना बनाते बनाते अंततः उसने अपने पिता की हत्या को अंजाम दे दिया.

आरोपी जीवन ने अपने साले बिहरोर राम और मार्शल राम को अपनी बाप की हत्या की सुपारी दे दी. इसी बीच बीते 27 अक्टूबर2019 को महावीर अपने मवेशियों को चराने पास के जंगल में गया था. वह शाम को जब वापिस लौट रहा था तभी बिहरोर और मार्शल ने धारदार हथियार से महावीर की निर्ममता से हत्या कर दी और मौके से फरार हो गए. मृतक की हत्या की सूचना बड़े बेटे आनंदराम ने पुलिस को दी.

सनसनीखेज खुलासा

सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची और यह माना कि प्रथम दृष्टया ही मामला हत्या का है. पुलिस ने मृतक का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया और जांच तेज कर दी .पुलिस ने जब अपने सूत्रों को सक्रिय किया तब पता चला कि मृतक तीन दिन पश्चात ही सेवानिवृत्त होने वाला था. इसके बाद पुलिस ने जब शक के आधार पर बेटे जीवन से कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गया और उसने सारा सच
पुलिस को बता दिया .

उसने हत्या करवाना स्वीकार करते हुए बताया कि वह बेरोजगार है और पिता की नौकरी पाना चाहता था. इसी मकसद से उसने अपने बाप की हत्या करायी थी.मामले का खुलासा करते हुए सन्ना पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर अपराध क्रमांक 62/19 धारा 302,34 आईपीसी के तहत न्यायिक रिमांड में जेल भेज दिया.

साइबर युग की एक दिन की जिंदगी

देर रात तक काम कर के सोया प्रदीप सुबह देर तक सोना चाहता था, क्योंकि उसे अगले दिन भी देर रात तक काम करना था. सोने के पहले दिमाग को हलका करने के लिए उस ने 2 लार्ज पैग शराब भी पी ली थी. लेकिन देर तक सोने की उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. क्योंकि सुबह तड़के ही दीवार में लगा अलार्म बजने लगा, जिस से प्रदीप की नींद टूट गई.

आंखें मलते हुए उस ने दीवार की ओर देखा. दीवार में लगी स्क्रीन चमकी और उस में एक चेहरा उभरा. वह चेहरा उस का जानापहचाना था. वह कोई और नहीं, सैवी था. पर वह कोई जीताजागता आदमी नहीं, एक सौफ्टवेयर प्रोग्राम था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘प्रदीप, उठो तुम्हें आज समय से पहले औफिस पहुंचना है. वहां तुम्हारी सख्त जरूरत है.’’

स्क्रीन से सैवी गायब होता, उस के पहले ही प्रदीप ने कहा, ‘‘एक मिनट सैवी, कहीं तुम मजाक तो नहीं कर रहे. तुम्हें तो पता है मैं ने देर रात तक काम किया है. रात में जो पी थी, अभी उस का नशा भी नहीं उतरा है. ऐसा कौन सा जरूरी काम आ गया कि मुझे समय से पहले औफिस पहुंचना है.’’

सैवी क्या कहता, सिर्फ मुसकरा कर रह गया. जमहाई लेते हुए प्रदीप उठा. वह बाथरूम में घुसा. वाश बेसिन पर लगे शीशे में मुंह देखते हुए उस ने मुंह पर पानी के छींटे मारे. इसी के साथ शीशे, टौयलेट और बेसिन में छिपे तमाम डीएनए और प्रोटीन सेंसर हरकत में आ गए. प्रदीप जो सांस छोड़ रहा था, उस की जांच करने के साथ उस के शरीर की भी जांच शुरू हो गई, जिस से उस के शरीर की किसी भी बीमारी के अणुओं के स्तर का पता चल सके.

बाथरूम से निकल कर प्रदीप ने सिर पर एक कैप रख ली, जिस के माध्यम से अब टेलीपैथी द्वारा घर को नियंत्रित किया जा सकता था. कमरे में उसे थोड़ी गरमी महसूस हुई तो पहला निर्देश कमरा थोड़ा ठंडा करने का दिया गया. प्रदीप को हलकाहलका नशा अब भी था, दूसरे ठीक से वह सो भी नहीं सका था, इसलिए उसे सुस्ती महसूस हो रही थी.

शरीर को उत्तेजित करने वाला संगीत सुनने का मन हुआ. इस के बाद नंबर आया चायनाश्ते का. अगला निर्देश रोबोटिक रसोइए के लिए था कि वह उस के लिए चाय और नाश्ता तैयार कर दे. क्योंकि तब तक रोबोट इस तरह के तैयार हो जाएंगे कि वे घर में नौकर की तरह काम करने लगेंगे.

सारा काम रोबोट करेंगे

उपरोक्त दृश्य आने वाली सदी का है, जब सारे काम इंसान नहीं नई तकनीक करेगी, कंप्यूटर के माध्यम से. यह वह जमाना होगा जब रोबोट केवल इतना ही नही करेंगे, बल्कि साथ घूमनेफिरने भी नहीं जाएंगे, बल्कि साथ में रह कर शौपिंग भी कराएंगे. मालिक की हर बात उन की समझ में आने लगेगी. यह सब वे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए कराएंगे. चारों तरफ रोबोट ही रोबोट दिखाई देंगे. एयरपोर्ट से ले कर औफिसों तक. ये पुलिस की भी भूमिका संभालेंगे और ड्राइवर की भी. दुकानों के काउंटर पर भी यही बैठे होंगे. ये इंसान की भावनाओं को भी समझेंगे. इस तरह वे एक बेहतरीन काम करने वाले ही नहीं, बेहतरीन साथी भी बन सकेंगे.

आइए, फिर प्रदीप के पास चलते हैं. चायनाश्ते का निर्देश देने के साथ ही प्रदीप ने मैग्नेटिक कार को गैराज से बाहर आ कर खड़ी होने का निर्देश दे दिया था. वह डीजल, पैट्रोल, सीएनजी या इलैक्ट्रिक से चलने वाली कार नहीं थी. चुंबकीय ऊर्जा के दौर में हजारों मील की यात्रा बिना किसी ईंधन के होगी. उस दौर में ट्रेनें, कार, लोग चुंबकीय तरंगों पर तैरेंगे. सुपर कंडक्टर टेक्नोलौजी नई सदी की प्रमुख ऊर्जा तकनीक होगी, जिस में ऊर्जा क्षय नहीं होगी.

आने वाली सदी की छोडि़ए. जर्मनी, जापान और चीन इस तकनीक में आज भी आगे हैं. मैग्लेव ट्रेनें चुंबकीय तरंगों पर तैरते हुए तेज रफ्तार से आगे दौड़ती हैं. उन की ये चुंबकीय तरंगें सुपर कंडक्टर्स के जरिए पैदा की जाती हैं. ये रफ्तार के मामले में विश्व रिकौर्ड तोड़ रही हैं. इनकी अधिकतम रफ्तार 361 मील प्रतिघंटा है. इन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है.

बहरहाल, कार को बाहर आने का निर्देश दे कर प्रदीप किचन में पहुंचा तो रोबो उस का पसंदीदा चायनाश्ता बना चुका था. प्रदीप ने झट से आंखों पर कौंटेक्ट लेंस चढ़ाया. कौंटेक्ट लेंस पहनते ही वह इंटरनेट से जुड़ गया. इंटरनेट उस की रेटीना पर क्लिक करने लगा. गरमागरमा चायनाश्ते के साथसाथ लेंस पर हेडलाइंस फ्लैश होने लगीं.

मंगल ग्रह पर बन रही कालोनी के प्रोजैक्ट को अगर जल्दी पूरा करना है तो वहां काम करने वालों को बर्फीली ठंड से बचाने के लिए धरती से और संसाधनों की व्यवस्था करनी होगी. पहली स्टारशिप जाने को तैयार है, इस के लिए चंद्रमा की सतह पर लाखों नैनोबोट्स जूपिटर छोड़ने होंगे, ताकि वे स्टारशिप की जरूरी यात्रा के लिए चुंबकीय फील्ड तैयार कर सकें.

कई सालों की मेहनत के बाद अंतरिक्ष में पर्यटकों के लिए एक बड़ा पर्यटनस्थल तैयार कर लिया गया है. अब पर्यटक मौजमस्ती के लिए वहां जा सकते हैं. अभी जो नई बीमारी फैल रही है, वैज्ञानिक उस के वायरस का पता कर रहे हैं, क्योंकि अभी इस का कोई इलाज नहीं है. वैज्ञानिक उस के जींस के कमजोर पहलुओं के बारे में पता लगा रहे हैं.

कौंटेक्ट लेंस पर इन सारी हेडलाइंस को देखने के बाद एक खबर ने प्रदीप का ध्यान आकर्षित किया.

हैडलाइन थी— दिल्ली और उस के आसपास के शहरों को बिजली सप्लाई करने वाले पावर स्टेशन में प्रौब्लम की वजह से बिजली की सप्लाई बाधित हो रही है. अगर जल्दी इस की मरम्मत नहीं की गई तो दिल्ली और उस के आसपास का इलाका अंधेरे में डूब जाएगा.

दरअसल, जिस युग की हम बात कर रहे हैं, तब तक धरती पर मौजूद वे सारे संसाधन खत्म हो चुके होंगे, जिन से अभी ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है, इसलिए तब लोग सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर होंगे. अंतरिक्ष में घूमते कृत्रिम उपग्रह बिजलीघर का भी काम करेंगे. बड़ी संख्या में सेटेलाइट सूर्य के विकिरण को सोख कर बिजली उत्पन्न करेंगे. हर सेटेलाइट 5 से 10 गीगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम होगा. यह बिजली धरती पर उत्पन्न होने वाली बिजली से सस्ती होगी.

जापान अभी से स्पेस में पावर स्टेशन की संभावना देखने लगा है. मित्सुबिशी इलैक्ट्रिक और कुछ दूसरी कंपनियां इस दिशा में काम भी कर रही हैं. अंतरिक्ष में तैनात होने वाला जापान का बिजलीघर डेढ़ मील में फैला होगा. यह बिलियन वाट बिजली पैदा करेगा.

पावर स्टेशन में होने वाली गड़बड़ी की हेडलाइंस नजर आते ही प्रदीप समझ गया कि औफिस में इतनी सुबहसुबह क्यों बुलाया गया है. वह नाश्ता कर के घर से बाहर आया तो गैराज से बाहर आ कर तैरती हुई कार उस का इंतजार कर रही थी. जल्दी औफिस पहुंचने का निर्देश मिलते ही मैग्नेटिक कार, इंटरनेट, जीपीएस और सड़क में छिपे लाखों चिप्स से जुड़ गई, ताकि मौनिटर पर ट्रैफिक के बारे में जानकारी मिलती रहे.

कार चुंबकीय पट्टी वाली सड़क पर तैरने लगी. इन चुंबकीय तरंगों को सुपर कंडक्टिंग से तैयार किया गया था. कार अभी चली ही थी कि स्क्रीन पर एक बार फिर सैवी का चेहरा उभरा. उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, आप के लिए नया संदेश यह है कि आप कौन्फ्रैंस रूम में पहुंच कर सब से मिलें. इस के अलावा आप की बहन का भी एक वीडियो मैसेज है.’’

कार खुद ही आगे बढ़ती जा रही थी. अभी औफिस पहुंचने में समय था, इसलिए प्रदीप ने सोचा कि तब तक बहन का वीडियो मैसेज ही देख ले. उस ने कलाई में बंधी घड़ी का बटन दबाया. घड़ी के बटन पर बहन की तसवीर उभरी. बहन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें तो पता ही है, शनिवार को सात्विक का बर्थडे है. इस बार तुम उस के लिए नए मौडल का रोबोटिक डौगी ले आना.’’

इलेक्ट्रिसिटी का जमाना खत्म हो चुका था. चुंबकीय ऊर्जा का युग था. प्रदीप की कार के आसपास से अलगअलग बैंडविड्थ में ट्रेनें, ट्रक और कारें ऊपरनीचे और अगलबगल से गुजर रही थीं. ये ऐसी ऊर्जा थी, जिस में कार के लिए कभी ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ने वाली थी, जिस से धन की भी बचत हो रही थी.

प्रदीप औफिस पहुंच गया. वह एक पावर जेनरेटिंग और सप्लाई करने वाली एक बड़ी कंपनी का औफिस था. बहुत बड़ी और काफी ऊंची बिल्डिंग थी. गेट पर पहुंचते ही लेजर ने चुपचाप आंखों की पुतलियों और चेहरे से पहचान कर गेट खोल दिया.

कौन्फ्रैंस रूम आधे से ज्यादा खाली पड़ा था. कुछ सहयोगी आ कर अपनीअपनी सीट पर बैठ चुके थे. प्रदीप के कौंटेक्ट लेंस में उन लोगों की थ्री डी इमेज उभरी, जो कौन्फ्रैंस रूम में टेबल के इर्दगिर्द बैठे थे. ये लोग भले ही औफिस नहीं आ पाए थे, लेकिन होलोग्राफिक तौर पर औफिस में साथ मौजूद थे. कौंटेक्ट लेंस इन लोगों को पहचान रहा था, साथ ही उन की प्रोफाइल और बैकग्राउंड भी दिखा रहा था.

अचानक डायरेक्टर की कुरसी की जगह पर उन की तसवीर उभरी. उन्होंने कहा, ‘‘जेंटलमेन, जैसा कि आप लोगों को पता ही है कि अंतरिक्ष में स्थित अपने पावर हाउस में कुछ गड़बड़ी हो गई है. यह गंभीर मामला है. अच्छी बात यह है कि समय से इस की जानकारी मिल गई, जिस से खतरा टल गया.

दुर्भाग्य से जिस रोबो को मरम्मत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वह नाकाम रहा. रोबोट ने हमें जो थ्री डी इमेज भेजी है, उस में गड़बड़ी साफ दिख रही है. इस से हमें गड़बड़ी का पता चल गया है. इस काम के लिए वह रोबो पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उस में इस गड़बड़ी को ठीक करने का प्रोग्राम नहीं है, इसलिए हमें वहां अनुभवी रोबोट्स भेजने होंगे.’’

काफी चर्चा के बाद मानव नियंत्रण वाले रिपेयर क्रू को वहां भेजने का निर्णय लिया गया. डायरेक्टर ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम जल्दी से जल्दी ऐसे रोबोट्स तैयार करो, जिन में ऐसे प्रोग्राम हों जो टेलीपैथिक संकेतों पर काम कर के पावर स्टेशन में हुई गड़बड़ी को ठीक कर सकें.’’

इस तरह के रोबोट प्रदीप ने पहले ही तैयार कर रखे थे, इसलिए उस ने तत्काल उन रोबोट्स  को काम पर लगा दिया. ये ऐसे रोबोट्स थे, जिन्हें रोबोटिक मानव कहा जा सकता था. उन के सिर में इलेक्ट्रोड, शरीर में अलगअलग तरह की नैनो मशीनें और चिप लगी थीं, जिस से उन की क्षमता में असीमित वृद्धि हो गई थी.

मीटिंग में कुछ परेशानी वाली बातें भी हुईं. प्रदीप को जो रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार पावर स्टेशन में जो गड़बड़ी हुई थी, वह किसी दुश्मन देश द्वारा रोबोट में वायरस भेज कर खराबी की गई थी. इसलिए काम करने वाले रोबोट ने ही गड़बड़ी कर दी थी. प्रदीप के इस खुलासे से कौन्फ्रैंस रूम में सन्नाटा पसर गया.

लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वायरस की वजह से अपने ही रोबोट ने ऐसा किया है. क्योंकि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था. फिर रोबोट एंटी वायरस से सुसज्जित था. बहरहाल, इस बात को गोपनीय रखने की हिदायत के साथ मीटिंग खत्म हुई.

थके होने के बावजूद उस दिन प्रदीप को काफी व्यस्त रहना पड़ा. पावर स्टेशन की मरम्मत के लिए रोबोट क्रू को नए सिरे से तैयार करना पड़ा. क्वांटम कंप्यूटर के जरिए बनाए सभी प्रायोगिक रोबोट्स निष्क्रिय कर दिए गए. इस के साथ ही रोबोट्स की गड़बड़ी भी ठीक कर दी गई थी. सारा काम हो गया तो प्रदीप घर लौटने की तैयारी करने लगा.

वह कार में बैठा और घर आ गया. 2 दिन से लगातार काम की वजह से प्रदीप बेहद थक गया था. घर पहुंच कर वह सोफे में धंस गया, तभी सैवी एक बार फिर दीवार की स्क्रीन पर उभरा. प्रदीप ने उस की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, डाक्टर सेन ने एक खास संदेश भेजा है.’’

डा. सेन यानी रोबो डाक्टर. सैवी के संदेश देने के बाद डा. सेन स्क्रीन पर आए. वह इतने वास्तविक लग रहे थे कि लगता ही नहीं था कि वह केवल सौफ्टवेयर प्रोग्राम है. डा. सेन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें परेशान करने के लिए मुझे खेद है. लेकिन कुछ ऐसा है जो तुम्हें बताना जरूरी था. पिछले साल तुम्हारी जो दुर्घटना हुई थी, वह तो तुम्हें याद ही होगी. उस दुर्घटना में तुम लगभग मर ही चुके थे. तुम्हें शायद याद नहीं कि शिमला में तुम पहाडि़यों से हजारों फुट नीचे गिर गए थे. तुम्हें बाहरी ही नहीं, काफी अंदरूनी चोटें भी आई थीं. तब तुम्हारे कपड़ों ने तुम्हें बचा लिया था.

‘‘तुम्हारे कपड़ों ने ही एंबुलैंस को फोन किया. उसी के आधार पर तुम्हारी मैडिकल हिस्ट्री अपलोड की गई थी. तब एक रोबोट अस्पताल में माइक्रो सर्जरी द्वारा तुम्हारे शरीर के बहते खून को रोका गया था. तुम्हारे पेट, लीवर और आंतें इस तरह क्षतिग्रस्त हो गई थीं कि उन्हें रिपेयर करना मुश्किल था. सौभाग्य से आर्गेनिक तौर पर तुम्हारे इन  अंगों को फिर से तैयार किया गया था. ये सारे अंग एक टिश्यू फैक्ट्री में तैयार किए गए थे. मेरे रिकौर्ड के अनुसार, तुम्हारे एक हाथ को भी बदला गया था.

‘‘आज मैं तुम्हारे इन नए अंगों को एक बार फिर चैक करना चाहता हूं. अपने एमआरआई स्कैनर को हाथ से पकड़ो और इसे पेट की ओर ले जाओ. तुम बाथरूम में जा कर सेलफोन के आकार के इस स्कैनर को अंगों के आसपास घुमाओगे तो इन अंगों की थ्री डी इमेज स्क्रीन पर दिखने लगेगी. इन अंगों की थ्री डी इमेज देख कर हम पता लगाएंगे कि तुम्हारे शरीर में कितना सुधार हुआ है. आज सुबह तुम बाथरूम गए थे तो तुम्हारे पैनक्रियाज में बढ़ते कैंसर का पता चला है.’’

कैंसर का नाम सुन कर प्रदीप तनाव से भर उठा. लेकिन यह सोच कर राहत महसूस की कि कैंसर तो अब मामूली बीमारी रह गई है.

इस वक्त हम जिस युग में हैं, उस युग में ऐसे रोबोट्स विकसित हो जाएंगे, जो जांच से ले कर सारे औपरेशन तक करेंगे. डाक्टरों को कोई बड़ा औपरेशन करना होता है तो एक ही औपरेशन में थक जाते हैं. रोबोट्स इस समस्या का निदान करेंगे. हार्ट सर्जरी के लिए बाईपास औपरेशन में सीने के बीच एक फुट लंबी जगह खोलनी पड़ती है, जिस के लिए जनरल एनेस्थीसिया की जरूरत होती है, साथ ही संक्रमण का भी डर रहता है.

औपरेशन के बाद होश में आने से ले कर स्वास्थ्य में सुधार होने तक असहनीय दर्द और तमाम मुश्किलों का सामना करना होता है. द विंची रोबोटिक सिस्टम से ये पूरी प्रक्रिया काफी छोटी और बेहतर हो जाएगी.

सन 2100 तक हर तरह के औपरेशन रोबोट संभाल लेंगे. वे हर औपरेशन के लिए प्रोग्राम किए जाएंगे. भविष्य में उन्नत कंप्यूटर आएंगे, जिस से माइक्रो औपरेशन होंगे. माइक्रो का मतलब यह है कि वे दिमाग में घुस कर नर्व सिस्टम को भी ठीक कर सकेंगे और औपरेशन भी ऐसा, जिस में चीरफाड़ की गुंजाइश एकदम खत्म हो जाएगी. यकीनन तब तक सर्जिकल औपरेशन की तसवीर पूरी तरह बदल जाएगी.

छोटे से छेद से रोबोट शरीर के अंदर प्रवेश करेगा और काम को अंजाम दे देगा. दर्द भी कम और स्वस्थ भी जल्दी. अभी नर्व फाइबर और बारीक कोशिकाओं का औपरेशन नहीं हो सकता, लेकिन तब संभव होगा. शरीर में कैमरे के तौर पर अंदर डाले जाने वाले इंडोस्कोप शायद पतले धागे से भी ज्यादा पतले होंगे. यानी औपरेशन का काम माइक्रो मशीन कहे जाने वाले रोबोट्स के हाथों में होगा.

रात में प्रदीप को अचानक भांजे का बर्थडे याद आ गया. बर्थडे पार्टी में वह होलोग्राफी इमेज के रूप में मौजूद रहेगा, लेकिन अभी वह एकदम खाली था. समय कैसे कटे, इस के लिए उस ने सैवी को याद किया. सैवी तुरंत स्क्रीन पर हाजिर हुआ. प्रदीप ने कहा, ‘‘सैवी, इस सप्ताह मैं खाली हूं. क्या तुम मेरे लिए किसी साथी की व्यवस्था कर सकते हो?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, आप की प्राथमिकताएं मेरी मेमरी में प्रोग्राम्ड हैं. मैं अभी स्क्रीन पर इंटरनेट के जरिए कुछ ऐसी ही प्रोफाइल दिखाता हूं.’’

अगले ही पल स्क्रीन पर कुछ लड़कियों की तसवीरें उभरने लगीं, जो खुद किसी साथी का साथ चाहती थीं. उन में से शिल्पी नाम की लड़की की प्रोफाइल और फोटो प्रदीप को पसंद आई. शिल्पी प्रदीप को पसंद आ गई थी. सैवी ने प्रदीप की प्रोफाइल और वीडियो भेज कर शिल्पी से पूछा कि क्या वह उस के बौस के लिए उपलब्ध है?

शाम को प्रदीप का दोस्त आ गया तो उस ने उस के साथ डिनर और क्रिकेट के मैच का मजा लिया. मैच लिविंग रूम में होलोग्राफिक इमेज के तौर पर उपलब्ध था. लगता था कि मैदान से 50 मीटर दूर स्टेडियम में बैठ कर मैच देख रहे हैं. रात में दोस्त चला गया तो सैवी की तसवीर उभरी, उस ने बताया कि शिल्पी ने उस का आमंत्रण स्वीकार कर लिया है.

सप्ताह का अंत

सप्ताह के अंत में यानी शनिवार को प्रदीप के भांजे का बर्थडे था, जिस में उसे भांजे को एक रोबोटिक डौगी गिफ्ट देना था. प्रदीप घर की स्क्रीन पर ही माल के वर्चुअल टूर पर निकला. वह कई टौय स्टोर में गया. आखिर उसे एक रोबो पसंद आ गया. उस ने टेलीपैथी के जरिए और्डर दिया. यह खरीदारी नेट के जरिए की जा रही थी, लेकिन उसे लगा कि इस से अच्छा होगा वह दुकान पर जा कर देखे और खरीदे.

दुकान पर हर तरह के रोबोट थे. हकीकत यही होगी कि उस समय रोबोट ही सब से बड़ा बिजनैस होंगे. प्रदीप स्टोर पर पहुंचा तो रोबोट क्लर्क ने उस की आगवानी की, ‘‘सर, मैं आप की क्या मदद करूं?’’

प्रदीप को लेटेस्ट रोबोट डौग का मौडल पसंद आया. इतनी ही देर में उस ने कौंटेक्ट लेंस पर लगे नेट से उस के प्राइस की तुलना दूसरे स्टोर के दामों से कर ली. उसे लगा कि मौल में पसंद किया गया रोबोट सही दामों में मिल रहा है, इसलिए डील पक्की हो गई. क्रैडिट कार्ड से कीमत अदा कर के डिलीवरी के लिए वह बहन के घर का पता दे आया.

शिल्पी से मुलाकात

अब प्रदीप खाली था. शाम को उसे शिल्पी से मिलना था. रोमांच भी था और अनजानी खुशी भी. शिल्पी के साथ किस रेस्टोरेंट में जाना है, कहां बैठना है, क्या खाना है, सब कुछ नेट की मदद से तय हो चुका था. अचानक उसे लगा कि शिल्पी को आना है तो घर में कुछ बदलाव होना चाहिए.

चूंकि घर की हर चीज प्रोग्राम्ड थी, इसलिए बदलाव के लिए सैवी से बात कर के पता लगाना था. सैवी ने तत्काल ढेर सारे डिजाइन पेश कर दिए, जिस के अनुसार घर को नया लुक दिया जा सकता था. इस के बाद सैवी ने बताया कि कौन सी कंपनी इस काम के लिए कितना समय और पैसा लेगी. एक इंजीनियरिंग कंपनी ने दावा कि महज 2 घंटे में घर को नया लुक दे देगी. कंपनी के रोबोट सारे घर को इच्छानुसार बदल देंगे.

इस नए लुक की खासियत यह थी कि इस में आप जिस दिन जिस रंग में चाहेंगे, पूरे घर के अंदर का इंटीरियर उसी रंग में दिखेगा. लुक में हलकेफुलके बदलाव भी संभव होंगे. खैर, रोबोट्स ने आ कर घंटर भर में वह सब कर दिया, जो प्रदीप चाहता था.

शिल्पी पेशे से आर्टिस्ट थी. उस की वेब डिजाइनिंग की कंपनी थी. उस के यहां थ्री डी वेब डिजाइनिंग का काम होता था. शिल्पी ने हवा में अंगुलियां चला कर एक छोटे से यंत्र को औन किया, जिस से एनिमेशन हवा की पतली सतह पर तैरने लगे.

देखने में शिल्पी 26 साल की और प्रदीप 28 साल का लग रहा था, जबकि हकीकत में दोनों की असली उम्र 58 और 62 साल थी. दवाओं और जींस ने उन की उम्र को थाम सा लिया था. दरअसल उस युग में ऐसे जींस की खोज हो चुकी होगी, जो उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को एकदम धीमी कर देंगे.

इस के बाद शिल्पी और प्रदीप ने साथ रहने का फैसला कर के शादी कर ली, जबकि उस युग में जल्दी शादी करने का फैसला कोई नहीं करेगा. शिल्पी गर्भवती हुई तो दोनों ने तय किया कि उन का बच्चा किन खासियत और खूबियों वाला होना चाहिए.

दरअसल, इस के लिए सरकार ने कुछ नियम बना रखे थे. बच्चों की पैदाइश के लिए सरकार ने स्वीकृत जींस की एक सूची बना रखी थी. उसी के तहत पैदा होने वाले बच्चों की जींस में फेरबदल कराया जा सकता था. बच्चों के पैदा होने की दर कम होती जा रही थी, क्योंकि हर कोई एकाकी जीवन जीना चाहता था.

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