सिरमौर : एक दलित की पुकार

‘‘अरे भगेलुआ, कहां हो? जरा झोंपड़ी से बाहर तो निकलो. देखो, तुम्हारे दरवाजे पर बाबू सूबेदार सिंह खड़े हैं. तुम्हारी मेहरी इस पंचायत की मुखिया क्या बन गई है, तुम लोगों के मिलने और बात करने का सलीका ही बदल गया है,’’ लहलादपुर ग्राम पंचायत के मुखिया रह चुके बाबू सूबेदार सिंह के साथ खड़े उन के मुंशी सुरेंद्र लाल ने दलित मुखिया रमरतिया देवी के पति भगेलुआ को हड़काया.

मुंशी सुरेंद्र लाल की आवाज सुन कर भगेलुआ अपनी झोंपड़ी से बाहर निकला. सामने बाबू सूबेदार सिंह को खड़ा देख कर वह अचानक हकबका गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि उन का किस तरह से स्वागत करे, लेकिन दूसरे ही पल उस का मन नफरत से भर उठा.

जब पेट में लगी भूख की आग को शांत करने के लिए भगेलुआ बाबू सूबेदार सिंह के यहां काम मांगने जाता था, तो घंटों खड़े रहने के बाद उन से मुलाकात होती थी.

काम मिल जाता था, तो कई दिनों तक बेगारी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उसे मजदूरी मिलती थी.

कभीकभी माली तंगी की वजह से वह बाबू सूबेदार सिंह से कर्ज भी लेता था. कर्ज के लिए बाबू साहब से कहीं ज्यादा उसे मुंशी सुरेंद्र लाल की तेल मालिश करनी पड़ती थी.

10 रुपए सैकड़ा के हिसाब से सूद व सलामी काट कर मुंशी महज 80 रुपए उस के हाथ में देता था.

अपनी ओर भगेलुआ को टुकुरटुकुर ताकते देख कर बाबू सूबेदार सिंह ने उसे टोका, ‘‘इतनी जल्दी अपने बाबू साहब को भुला दिया क्या? अब तो पहचानने में भी देर कर रहा है.’’

‘‘मालिक, हम आप को कैसे भुला सकते हैं? आप ही तो हमारे पुरखों के अन्नदाता हैं. इस दलित के दरवाजे पर आने की तकलीफ क्यों की. भगेलुआ की जरूरत थी, तो किसी से खबर भिजवा दी होती, हम आप की हवेली पर पहुंच जाते.

‘‘हमारे लिए तो आप ही मुखिया हैं. लेकिन पता नहीं ससुरी इस सरकार को क्या सू?ा कि इस पंचायत को हरिजन महिला कोटे में डाल दिया.

‘‘और गजब तो तब हुआ, जब यहां की जनता की चाहत ने रमरतिया को मुखिया बना दिया,’’ भगेलुआ के मन में जो आया, वह एक ही सांस में बक गया.

‘‘जमाना बदल गया है भगेलुआ,’’ बाबू सूबेदार सिंह ने लंबी सांस खींचते हुए कहा.

‘‘जमाना बदल गया तो क्या हुआ मालिक, हम तो नहीं बदले हैं. हम तो आज भी आप के हरवाहे हैं. लेकिन ट्रैक्टर आ जाने से हमारे जैसे लोगों की रोजीरोटी छिन गई है.

‘‘खैर, जाने दीजिए. यह बताइए कि इतने दिनों बाद भगेलुआ की याद कैसे आ गई?’’

‘‘इधर से गुजर रहा था तो सोचा कि तुम से थोड़ा मिलता चलूं,’’ बाबू सूबेदार सिंह ने मन को मारते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं मालिक, यह तो आप ही का घर है. हम तो आज भी खुद को आप की प्रजा सम?ाते हैं. अगर कोई भूलचूक हो गई हो, तो माफ करना,’’ दोनों हाथ जोड़ कर भगेलुआ ने बाबू सूबेदार सिंह से कहा और दूसरे ही पल अपनी पत्नी रमरतिया को आवाज लगाई, ‘‘कहां हो रमरतिया, जल्दी ?ोंपड़ी से बाहर निकलो. आज हमारे दरवाजे पर बाबू सूबेदार साहब आए हैं.’’

‘‘आ रही हूं,’’ झोंपड़ी से निकलती रमरतिया की नजर जैसे ही सामने खड़े मुंशी सुरेंद्र लाल व बाबू सूबेदार सिंह पर पड़ी, उस ने अपना पल्ला माथे से थोड़ा सा नीचे सरका लिया और बोल पड़ी, ‘‘पांव लागूं महाराज. आइए, कुरसी पर बैठ जाइए.’’

झोंपड़ी के सामने रखी कुरसी झड़पोंछ कर रमरतिया भीतर चली गई.

जब रमरतिया को मुखिया का पद मिला था, तभी वह बाबू साहब से मुखिया का चार्ज लेने के लिए गई थी. ठीक 2 साल के बाद उस की यह उन से दूसरी मुलाकात थी.

वैसे तो रमरतिया और पूरे दलित तबके का बाबू साहब की हवेली से पुराना संबंध था. कहीं काम मिले न मिले, वहां तो कुछ न कुछ काम मिल ही जाता था. लेकिन रमरतिया के मुखिया बनने के बाद अब कहीं दूसरे के यहां काम करने की नौबत ही नहीं आई.

पंचायत की योजनाओं से ही उसे फुरसत नहीं मिलती थी. कोई न कोई समस्या ले कर उस को घेरे रहता था. लाल कार्ड, पीला कार्ड, जाति, आय, आवासीय प्रमाणपत्र, बुढ़ापा पैंशन, विधवा पेंशन, पारिवारिक कामों के अलावा मनरेगा के काम भी रमरतिया को ही देखने पड़ते थे.

वहीं जब बाबू सूबेदार सिंह मुखिया थे, तब दलितों, पिछड़ों को सीधे उन से मिल लेने की हिम्मत नहीं होती थी. वे उन के दरवाजे पर घंटों खड़े रहते थे. जब कोई बिचौलिया आता, तो उन का काम करवाता, नहीं तो वे कईकई दिनों तक सिर्फ चक्कर लगाया करते थे.

लेकिन रमरतिया के मुखिया बनते ही पंचायत की सभी जातियों का मानसम्मान बराबर हो गया था. सब का काम बिना मुश्किल के होता था.

रमरतिया जिला परिषद की बैठक में भी जाती, तो वहां सीधे कलक्टर साहब, ब्लौक प्रमुख, बीडीओ से अपनी पंचायत की समस्याओं पर बात करती. इंदिरा आवास, आंगनबाड़ी, पोषाहार, स्कूलों के मिड डे मील वगैरह के मामलों में वह अफसरों का ध्यान खींचती थी. जबकि बाबू साहब के समय में पता ही नहीं चलता था कि गांव वालों के लिए कौनकौन सी योजनाएं आई हैं.

मुखिया, पंचायत सेवक, प्रखंड विकास पदाधिकारी की मिलीभगत से सभी योजनाएं कागजों में सिमट कर रह जाती थीं.

योजनाओं की रकम अफसर डकार जाते थे. पूरे जिले के सभी महकमों में काफी भ्रष्टाचार था. दबंगों के डर से लोग डरेसहमे रहते थे. अगर कोई शिकायत करता भी था, तो दबंगों की शह पर बिचौलिए ही उस की जम कर पिटाई कर देते थे.

ऐसी बात नहीं थी कि रमरतिया के मुखिया बन जाने के बाद से भ्रष्टाचार खत्म हो गया था. फर्क यही था कि योजनाएं अब अमल में लाई जा रही थीं. घूस लेने के बाद बाबू व अफसर लोगों का काम करते थे. यही वजह थी कि हर गांव में नया प्राइमरी स्कूल, उपस्वास्थ्य केंद्र, राशन की दुकान, आंगनबाड़ी केंद्र वगैरह खुल गए थे.

औरतों और किसानों को माली तौर पर मजबूत बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह भी बनाए गए थे. मछली पालन, बकरी पालन, सूअर पालन, भेड़ पालन, मुरगी पालन, डेरी फार्म वगैरह खुल गए थे.

इन सब कामों को करने का सेहरा मुखिया रमरतिया के सिर पर बंधता था. जब रमरतिया को सूचना मिलती थी कि फलां गांव के किसी किसान की हालत अच्छी नहीं है. वह माली तंगी और बीमारी से जू?ा रहा है, तो वह तुरंत सारे काम छोड़ कर वहां पहुंच कर उस की समस्या दूर करती थी.

बाबू सूबेदार सिंह और मुंशी सुरेंद्र लाल को कुरसी पर बैठे हुए कुछ ही समय बीता होगा कि रमरतिया से मिलने के लिए गांव वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी.

?ोंपड़ी के आगे एक मेजकुरसी लगी हुई थी, जहां रमरतिया की 14 साला बेटी भगजोगनी कुरसी पर बैठी हुई थी. वह गांव वालों की अर्जी को ले कर सहेजती हुई मेज के ऊपर रखती जाती. वह मैट्रिक के इम्तिहान देने के बाद खाली समय में अपनी मां के कामों में हाथ बंटाती थी. भगजोगनी से एक साल छोटा भाई दीपू 9वीं जमात में पढ़ता था.

इसी बीच रमरतिया एक थाली में बिसकुट और चाय से भरे 2 गिलास ले कर बाबू साहब के सामने आई. साथ ही, उस ने थाली को बाबू साहब के सामने रखी मेज पर रख दिया.

थाली देखते ही वे दोनों एकसाथ यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि बिना नहाए वे एक दाना भी मुंह में डालना हराम सम?ाते हैं. उन के पीछेपीछे भगेलुआ भी कुछ दूर तक छोड़ने के लिए गया.

रमरतिया की बढ़ती लोकप्रियता से बाबू सूबेदार सिंह की छाती पर सांप लोट रहा था. उस की ?ोंपड़ी के सामने उमड़ी गांव वालों की भीड़ ने उन का चैन छीन लिया था.

गांवों में बोरिंग करने पर सरकार ने रोक लगा दी थी, ताकि धरती के नीचे पानी का लैवल और नीचे न जा सके. तब रमरतिया ने गांव के पास से गुजरने वाली गंडक नहर में सरकारी मोटर पंप का इंतजाम करवाया. पंप से ले कर खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए नालियां बनवाईं. साथ ही, ऊंचे उठे हुए खेतों में सिंचाई का पानी पहुंचाने के लिए हजारों मीटर लंबे प्लास्टिक, कपड़े वगैरह के पाइप का जुगाड़ करवाया.

इतना ही नहीं, गंडक नहर से खेतों की नालियों को जोड़ा गया. सिंचाई की अच्छी व्यवस्था होने से लहलादपुर ग्राम पंचायत की फसलें लहलहा उठीं.

प्रखंड स्तरीय बैठक में बीडीओ और मुखिया प्रमुख ने रमरतिया की इस कोशिश की जोरदार ढंग से तारीफ की. दूसरी पंचायतों में भी यह सुविधा बहाल की गई, ताकि सभी किसान खुशहाल हो सकें.

रमरतिया धीरेधीरे इतनी लोकप्रिय हो गई कि गांवों में होने वाले शादीब्याह में उसे लोग बुलाना नहीं भूलते थे. बाबू सूबेदार सिंह जिस समारोह में पहुंचते, वहां पहले से बैठी हुई रमरतिया मिल जाती. उस की मौजूदगी से उन्हें ऐसा लगता कि जैसे उन के सामने दुम हिलाने वाले लोग आज खुद सिरमौर बन गए हैं.

राज्य सरकार ने मुखिया के जरीए सभी पंचायतों में टीचरों की बहाली का ऐलान किया था. इस ऐलान के बाद से गांवों के बेरोजगारों में नौकरी के लिए होड़ मच गई थी.

सभी के परिवार वाले पंचायत के मुखिया से अपनेअपने बेटेबेटी की नौकरी लगाने की सिफारिश में जुट गए थे. बाबू सूबेदार सिंह भी इसी सिलसिले में भगेलुआ के यहां पहुंचे थे, लेकिन भीड़ को देख कर वे कुछ बोल नहीं सके थे.

अब पीछेपीछे चल रहे भगेलुआ से उन्होंने कहा, ‘‘सुना है कि मेरी हवेली के पीछे वाले स्कूल में टीचर की बहाली है. मैं अपने बेटे प्रीतम सिंह को वहां रखवाना चाहता हूं.’’

भगेलुआ के चेहरे का रंग उड़ गया. वह कुछ बोल नहीं सका, क्योंकि उस स्कूल के लिए 25 बेरोजगारों की अर्जी पहले ही पड़ चुकी थी. ऊपर से बाबू साहब अपने लड़के को अलग से थोप रहे थे.

भगेलुआ को गुमसुम देख कर बाबू साहब ने उसे टोका, ‘‘रंग क्यों उड़ गया भगेलुआ? कुछ तो बोलो?’’

‘‘नहीं मालिक, रंग क्यों उड़ेगा. इस के बारे में रमरतिया से पूछना होगा.’’

‘‘अरे, रमरतिया तेरी पत्नी है. तेरी बात नहीं मानेगी, तो फिर किस की

बात मानेगी. एक लाख रुपए ले लो और चुपचाप प्रीतम सिंह की बहाली करा दो. कोई कानोंकान इस बात को नहीं जान सकेगा,’’ सूबेदार सिंह ने रुपए की गरमी का एहसास भगेलुआ को कराना चाहा.

‘‘नहीं… नहीं… आप से हम रुपयापैसा नहीं लेंगे.’’

‘‘तो ठीक है, तुम ही बताओ कि क्या लोगे? उसे हम पूरा करेंगे. बेटे की जिंदगी का सवाल है. आजकल ढूंढ़ने से भगवान तो मिल जाएंगे, पर सरकारी नौकरी नहीं.’’

‘‘मालिक, अगर कुछ देना ही है, तो तार गाछ वाली जमीन दे दीजिए. वह हमारे पुरखों की जमीन है. आप की मेहरबानी हो, तो उस जमीन पर हम घर बनाएंगे,’’ भगेलुआ ने हिम्मत जुटा कर अपने मन की बात रख दी.

‘‘क्या बात करते हो भगेलुआ, वह बैनामा जमीन है, वह भी बिलकुल मेन रोड के किनारे. उस की कीमत आज के भाव से 10 लाख रुपए से ज्यादा है. मैं उसे कैसे दे सकता हूं.

‘‘उस जमीन को मैं ने तेरे बाप से 3 हजार रुपए में खरीदा था. तुम इस तरह की सौदेबाजी पर उतर आओगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

‘‘मैं तो रमरतिया की ईमानदारी का किस्सा सुन कर आ गया था. लेकिन यहां आने पर हकीकत कुछ और ही दिखाई पड़ रही है. भोलीभाली जनता का हक मार कर तुम लोग जल्दी अमीर बनने की जुगत में हो. इस की शिकायत मैं डीसी साहब से करूंगा. तुम लोगों का कच्चा चिट्ठा खोल के रख दूंगा,’’ बाबू सूबेदार सिंह गुस्से में फट पड़े.

‘‘नाराज हो गए मालिक. सच तो आखिर सच ही होता है. थोड़ी देर पहले आप ही ने तो कहा था कि जमाना बदल गया है. इस का मतलब हुआ कि पहले से शोषित, पीडि़त जनता अब जागरूक हो गई है. उसे अपने हक की जानकारी हो गई है.

‘‘आज की जनता किसी तरह का ठोस कदम उठाने से पहले सोचती है. मेरे बाप ने अपना परिवार पालने के लिए खानदानी जमीन को बेच दिया था. आप ने बैनामा सिर्फ मेरे बाप से कराया है, जबकि वे 4 भाई हैं. 3 छोटे भाइयों से बैनामा कराना अभी बाकी है.

‘‘उस खेत पर उन का भी हक है. आप किसी वकील से पूछ सकते हैं कि दादा के मरने के बाद उन के 4 बेटों का हिस्सा उस जमीन में होगा या नहीं…’’

‘‘चुप रहो भगेलुआ, बहुत हो गया…’’ बाबू सूबेदार सिंह के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई, तो गुस्से

में वे बोल पड़े, ‘‘मेरी जमीन पर तेरे चाचा लोग दावा ठोंकेंगे. एकएक को देख लूंगा.

‘‘चाहे दीवानी लड़ो या फौजदारी, जीत सिर्फ मेरी होगी, मेरी. तुम्हारा यह छल और बल बाबू सूबेदार सिंह के सामने चलने वाला नहीं है.’’

‘‘छल और बल. हमारे पास कहां से आ गया मालिक. यह हथियार तो आप की हवेली का है. दलितों, पीडि़तों को तो इंसाफ पर भरोसा है. हम अपने हक के लिए लड़ना जानते हैं. नाइंसाफी और जोरजुल्म जब छप्पर पर चढ़ कर बोलने लगता है, तो हम गरीबों का एकमात्र लाठी इंकलाब बनता है.

‘‘इस भरम में नहीं रहना कि जीत केवल हवेली की होगी. जो ?ाक कर चलना जानते हैं, वे सिर उठा कर दूसरों का सिर कलम करना भी जानते हैं…

यह हम ने आप जैसों से ही सीखा है,’’ भगेलुआ बोला.

‘‘चलिए मुंशीजी, चलिए. भगेलुआ पगला गया है…’’ हाथी के पैर के नीचे कुचले हुए सांप की तरह रेंगते हुए बाबू सूबेदार सिंह वहां से भागे.

भगेलुआ के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई थी. जिंदगी के जंगेमैदान में हमेशा मुंह की खाने वाला भगेलुआ आज जीत जो गया था.

 

मां के आशीर्वाद से : क्या कैप्टन को मिल पाई जीत

मां,  तुम्हारे आशीर्वाद से मैं लड़ाई के मोरचे पर पहुंच गया हूं. आते समय तुम्हारी कही आखिरी बात मुझे याद है.मां, यकीन मानना कि कैप्टन रंजीत की पीठ पर कभी गोली नहीं लगेगी. आखिरी सांस तक वह दुश्मनों से लड़ता रहेगा.

तुम्हारा बेटा, तुम्हारे सिखाए रास्ते पर चलता रहेगा. राजी को कहना कि मोह छोड़ दे. अपने लिए तो सभी जीते हैं, पर दूसरों के लिए जीने का मजा ही और है. उस जैसी हजारों सुहागनों के सुहाग मेरे संग मोरचे पर डटे हुए हैं.

मां, एक मोरचा यह युद्धभूमि है, दूसरा मोरचा तुम्हारे यहां है, सिविल में. तुम और राजी उस मोरचे पर लड़ने वालों के लिए काम करोगी, तो हमारे हाथ मजबूत होंगे. देशवासियों का जोश, हमारा जोश है.अच्छा, मां. आदेश आ गया है.

मुझे अपने कुछ जवानों के साथ दुश्मन के ठिकाने पर हमला करना है. तुम्हारा आशीर्वाद मेरे साथ है. पर वादा करो मां, अगर मैं वीरगति पा गया, तो तुम रोओगी नहीं और न ही राजी को रोने दोगी.अच्छा मां, अलविदा, जयहिंद.‘‘कैप्टन रंजीत…’’ ये एड्युडेंट थे.

‘‘यस सर.’’‘‘जाने से पहले कर्नल साहब से मिल लेना. उन के पास आप के लिए आखिरी आदेश बाकी है.’’कैप्टन रंजीत ने ‘हां’ में सिर हिलाया और कर्नल साहब के बंकर की ओर बढ़ गया.‘‘क्या मैं भीतर आ सकता हूं सर?’’‘‘यस, कैप्टन रंजीत.’’

कैप्टन रंजीत बंकर के भीतर चला जाता है और सैनिक ढंग से सैल्यूट करता है.कर्नल साहब ने अपने सामने मैप बिछाए हुए हैं और उस जगह को चैकआउट किए हुए हैं, जिस जगह पर हमला करना है.‘‘कैप्टन रंजीत, तुम मेरी रैजीमैंट के सब से अच्छे अफसरों में से एक हो…’’

कर्नल साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘जिस अहम ठिकाने पर तुम्हें हमला करना है, वह ऊंचाई पर है. उस के नीचे से वह सड़क जा रही है, जहां से फर्स्ट लाइट में हमारी पूरी रैजीमैंट ने एडवांस करना है. जिस पर से हमें सुबह गुजर कर जाना है.

‘‘यहां से तुम अटैक नहीं कर सकते. मेन रोड होने के चलते दुश्मन का पूरा ध्यान इसी ओर है. इधर से जाने से तुम्हारी पूरी गतिविधियों को नोट किया जा सकता है.

‘‘दूसरा रास्ता है 35 फुट चौड़ा और 20 फुट गहरा वह बरसाती नाला, जो इस ठिकाने से पीछे हो कर जाता है. रास्ता बहुत बीहड़ है. कांटेदार झाडि़यों से अटा पड़ा है, पर तुम्हें इसी रास्ते को अपनाना है.‘‘एड्युडेंट ने आज उस जगह की रैकी (जासूसी) कर के यह आई स्कैच (दुश्मन के इलाके में घुस कर खास जगह का नक्शा) तैयार किया है.

इसे रख लो, तुम्हारे काम आएगा. तुम्हारे साथ 12 जवान हैं और उन में से 2 ऐसे हैं, जिन्होंने आज की रैकी में हिस्सा लिया था…’’कर्नल साहब बोलतेबोलते एकाएक रुक गए. लगा, जैसे वे एकदम पत्थर की तरह कठोर हो गए हैं.

फिर वे बोले, ‘‘कैप्टन रंजीत, मेरे लिए फर्स्ट लाइट में रैजीमैंट को एडवांस करवाना बहुत जरूरी है. यह तुम्हें याद रखना होगा. मुझे गम नहीं होगा, अगर इस ठिकाने को हासिल करने के लिए तुम्हारे सभी जवान वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं…’’

‘‘यस सर, मैं समझाता हूं सर.’’‘‘ठीक है …मैं वायरलैस पर तुम्हारे आखिरी संदेश का इंतजार करूंगा.’’‘‘यस सर.’’कैप्टन रंजीत सैल्यूट कर के बंकर से बाहर आ गया. बाहर सूबेदार राजू उस का इंतजार कर रहा है.‘‘सर, सभी जवान चलने के लिए तैयार हैं.’’

‘‘चलिए.’’कैप्टन रंजीत और सूबेदार राजू जवानों की ओर बढ़ जाते हैं. अपने अफसरों को आते देख सभी जवान लाइन से खड़े हो जाते हैं. एक बार सभी के चेहरों को गौर से देखने के बाद कैप्टन रंजीत ने कहा, ‘‘एड्युडेंट साहब के साथ आज कौन से 2 जवान रैकी पर गए थे?’’

‘‘मैं नायक मुहम्मद अली… सर.’’‘‘और मैं सिपाही सुजान सिंह… सर.’’‘‘आप दोनों हमें यह बताएं कि रास्ते में जो नाला पड़ता है, वह तैर कर पार किया जा सकता है या नहीं?’’

‘‘सर, इस संबंध में मेरा एक सु?ाव है,’’ नायक मुहम्मद अली ने कहा.‘‘कहो…’’‘‘आई स्कैच के मुताबिक, जहां से नाले को पार करने के लिए एड्युडेंट साहब ने मार्क किया है, वहां आरपार 2 बड़ेबड़े पेड़ हैं.

अगर मेरी कमर से रस्सा बांध दिया जाएगा, तो मैं तैर कर पार जा सकूंगा. दोनों ओर से रस्सा बांध कर मंकी रोप को तैयार किया जा सकेगा.’’‘‘शाबाश नायक अली. तुम्हारी स्विमिंग चैंपियनशिप किस दिन काम आएगी…’’

कैप्टन रंजीत ने कहना शुरू किया, ‘‘मेरे बहादुर जवानो, चलने से पहले जो आखिरी बात मैं आप लोगों से कहना चाहता हूं, वह बहुत खास है. हो सकता है कि इस हमले में दुश्मन के ठिकाने को लेने के लिए हम सब को अपनी जान देनी पड़े.’’

‘‘कहो, नायक अली…’’‘‘मैं दुश्मन को बता दूंगा कि मैं भी पक्का हिंदुस्तानी हूं.’’‘‘और सिपाही ठाकरे?’’‘‘इतिहास गवाह है कि लड़ाई के मैदान में मराठों ने कभी पीठ नहीं दिखाई.’’‘‘और लांस नायक पिल्लै?’’‘‘मैं भी बता दूंगा कि मद्रासी डरपोक नहीं होते.’’

‘‘और सिपाही सुजान सिंह?’’‘‘आज सुजान सिंह अपने दुश्मन पर कहर बन के गिरेगा.’’‘‘शाबाश… आज मेरे साथ पूरा हिंदुस्तान है. जिस देश में आप जैसे बहादुर जवान हैं, उस का कोई बाल बांका नहीं कर सकता…’’

कैप्टन रंजीत ने कहा, ‘‘हम सब नाला पार करने तक इकट्ठे जाएंगे. उस के बाद 2 पार्टियां बनेंगी. 6 जवान मेरे साथ रह कर आगे बढ़ेंगे और 6 जवान सूबेदार राजू के साथ.‘‘और एक बात का ध्यान रहे, सभी जवान मेरे हुक्म के बिना कोई कार्यवाही नहीं करेंगे.

नाला पार करने के बाद आगे के आदेश मिलेंगे… सभी जवान अपनेअपने हथियारों का अच्छी तरह निरीक्षण कर लें. संगीनें चढ़ा लें.’’चलते समय कैप्टन रंजीत ने अपने छोटे से वायरलैस सैट को चैक किया और सभी अपने मकसद की ओर बढ़ने लगे.

मंकी रोप से एकएक कर सभी ने चुपचाप भयानक बरसाती नाला पार कर लिया.कैप्टन रंजीत ने घड़ी की ओर देखा. रात के 3 बजे थे. उन के पास एक घंटा बाकी था.

कर्नल साहब को प्रोसीड सिगनल देने के बाद कैप्टन रंजीत ने जवानों को लाइन फोरमेशन में चलने का संकेत किया. सभी जवान सम?ा गए कि कैप्टन साहब का फैसला उचित ही है कि 2 पार्टियों में बंटने के बजाय इकट्ठा लाइन फोरमेशन में चलना चाहिए, क्योंकि ऊंचाई पर जा कर जगह छोटी हो गई थी.

दुश्मन को दोनों ओर से घेरने का कोई मतलब नहीं था, वह खुद ही तीनों ओर से घिर जाएगा.रास्ता बहुत ही बीहड़ था. कांटेदार झाडि़यों के बीच से गुजरते कैप्टन रंजीत और उस के जवानों के शरीर घायल होते जा रहे थे, परंतु फिर भी वे अपने टारगेट की ओर बढ़ते जा रहे थे… चुपचाप. सुबह 4 बजे के करीब वे अपने टारगेट से केवल 50 गज दूर रह गए.

तभी कैप्टन रंजीत ने अपने जवानों को ठहरने का आदेश दिया और वे खुद थोड़ा पीछे हट कर वायरलैस सैट से उलझ गए. उन की आवाज बहुत ही धीमी थी.‘‘हैलो टाइगर… हैलो टाइगर… ओवर.’’‘‘यस टाइगर स्पीकिंग… ओवर.’’‘‘सर, हम टारगेट से केवल 50 गज पीछे हैं.

लगता है, दुश्मन को अभी तक हमारे आने का पता नहीं है. मैं फायर करने जा रहा हूं सर. मुझे यकीन है कि हम उन पर जल्दी ही काबू पा लेंगे.’’‘‘ओके प्रोसीड. यहां से ठीक आधा घंटे बाद रैजीमैंट मूव करेगी. उस से पहले ही… ओवर.’’‘‘राइट सर… ओवर.

’’कैप्टन रंजीत ने सैट बंद कर दिया और सभी जवानों को और फैल जाने का संकेत किया, जिस से दुश्मन के भागने के एकमात्र रास्ते को पूरी तरह रोका जा सके, क्योंकि वह जानता है आगे 2 सौ फुट नीचे सड़क है.

दुश्मन अगर उस ओर भागता है, तो यह आत्महत्या करने के समान होगा और पीछे वे बैठे हैं.उस ने जवानों को संकेत द्वारा सम?ा दिया कि जैसे ही उस की कारबाइन मशीन से गोलियां निकलें, वे फायर शुरू कर दें.

थोड़ी देर बाद कैप्टन रंजीत की कारबाइन आग उगल रही थी. साथ ही, उन के साथी जवानों की राइफलें भी गूंज उठीं. एकाएक हुए हमले से दुश्मन हड़बड़ा गया. वह पीछे की ओर भागा.

तब कैप्टन रंजीत और उन के साथियों ने उन को संगीनों पर ले लिया.‘चार्ज…’ ‘घोंप…’ ‘निकाल’ की आवाजों के साथ ही ‘भारत माता की जय’ के नारों से पूरा आसमान गूंज उठा.

कैप्टन रंजीत के साथी शहीद होते चले गए. खुद भी दुश्मन की एक गोली से जख्मी हो गए. उन्होंने अपने कर्नल साहब को आखिरी संदेश दिया, ‘‘सर…सर, मां के आशीर्वाद से हम जीत गए हैं.

मेरे एकएक वीर जवान ने दुश्मनों पर कहर ढाया है, फिर वे शहीद हुए. पर…पर, सर, मैं अभी भी देख रहा हूं, 2 दुश्मन मेरी ओर बढ़ रहे हैं. जख्मी होने पर भी मैं उन के लिए काफी हूं.

‘‘सर, आप बेधड़क हो कर रैजीमैंट को मूव करें. अच्छा …अलविदा, सर. जयहिंद.’’‘जयहिंद कैप्टन…’कैप्टन रंजीत को लगा कर्नल साहब का गला भर आया है. उस ने सैट बंद किया और एक कंटीली झाड़ी की आड़ में मोरचा संभाल लिया. दुश्मन ने भी उसे देख लिया था. दोनों ओर से तड़ातड़ गोलियां चलीं और फिर चारों ओर शांति छा गई.

 

Raksha Bandhan : सत्य असत्य- क्या निशा ने कर्ण को माफ किया?

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लेनदेन : अफसर की नौकरी

उन दिनों मैं इंटैलिजैंस डिपार्टमैंट में था. मेरी गिनती उन चुनिंदा अफसरों में होती थी, जिन की सभी इज्जत करते थे. इज्जत यों ही नहीं मिलती, उसे हासिल करने के लिए कठोर मेहनत और लगन की जरूरत होती है. इंटैलिजैंस डिपार्टमैंट में काम करना आसान नहीं होता. हर जुर्म को शुरू से आखिर तक देखना और उसे समझना होता है.

उन्हीं दिनों मैं जुर्म दूर करने पर एक किताब लिख रहा था. मसलन, जुर्म क्यों होते हैं? कैसे मिटाए जा सकते हैं?

इस सिलसिले में मैं कई जेलों और थानों में गया, मुलजिमों से मिला और उन के इंटरव्यू कर के जो तजरबा हासिल किया, उन्हें आज भी भुलाना नामुमकिन है.वह मेरा पहला तजरबा था.

एक 16-17 साल के लड़के को थाने में लाया गया था. एक दुकान से डबलरोटी चुराना उस का जुर्म था.मैं ने उस से कुछ सवाल किए थे, जो जवाब मिले, वे इस तरह थे:

‘‘तुम ने डबलरोटी क्यों चुराई?’’‘‘मां 2 दिन से भूखी थी.’’‘‘जानते हो कि ऐसा करना जुर्म है? तुम्हें इस चोरी की सजा मिलेगी.’’‘‘जानता हूं साहब, लेकिन मेरी मजबूरी थी.

मैं मां को भूखी मरते नहीं देख सकता.’’‘‘मान लो कि तुम आज नहीं पकड़े जाते, तो कल क्या करते? फिर से चोरी?’’‘‘हम कल में नहीं जीते. हमारा सिर्फ आज होता है साहब.’’

‘‘चोरी करते हुए पकड़े जाने का डर नहीं लगता? आखिर इस में क्या खुशी मिलती है?’’

‘‘यह मत पूछो. किसी दिन पर्स हाथ लग जाए और उस में 10-20 हजार रुपए हों, तो उस दिन सारे शहर में मुझ से बड़ा कोई और रईस नहीं होता.

‘‘उस दिन मैं अंगरेजी शराब पीता हूं. दोस्तों के साथ फिल्म देखता हूं और अच्छे होटल में खाना खाता हूं.’’‘‘तुम्हें पकड़े जाने का कोई अफसोस नहीं है?’’

‘‘नहीं…’’दूसरा तजरबा. मैं एक ऐसे शख्स से मिला था, जिन का पेशा विदेशों से ड्रग्स मंगवा कर उन्हें अपने देश में बेचना, हत्या करवाना, जबरन पैसा वसूलना, मजदूर यूनियनों को चलाना था.

अपने मातहतों के बीच वे मसीहा थे. सारा इलाका उन्हें भरपूर इज्जत देता था.‘‘आप अपराध जगत में कैसे आए?’’ मेरा पहला सवाल था.

‘‘यहां कोई अपनी मरजी से नहीं आता. जब आप का सभ्य समाज किसी को जरूरत से ज्यादा सताता है, तो वह परेशान हो कर अपराध की दुनिया में चला आता है.

‘‘आप लोग फिर उसे गुंडामवाली कहते हैं. आज जो काम आप की सरकार नहीं कर पा रही, मैं करता हूं. मैं गरीबों के पेट भरता हूं. बस्ती में जब सवेरा होता है, तो हर मां उठ कर अपने बच्चे के लिए यही कहती है कि वह बड़ा हो कर मु?ा जैसा बने.’’

‘‘तुम खुद तो कानून की नजरों में अपराधी हो ही, तो क्यों मासूम बच्चों को भी अपराध की अंधेरी दुनिया में धकेल रहे हो?’’‘‘मैं उन्हें कामधंधा देता हूं. बहुत बड़ी पगार देता हूं. खुशियां देता हूं. तो फिर क्या बुराई है इस में?’’

उस ने एक सवाल मुझे पर ही जड़ दिया था. वह एक शातिर अपराधी था. उसे सुधार पाना नामुमकिन था.अगले 2 अपराधियों में एक नेता था, तो दूसरा समाजसेवी. उन्हें देखते ही मुझे बचपन के दिन याद आ गए थे.

बचपन से होश संभालने तक मैं ने कई बहुरुपियों को देखा था. बहुरुपिए बाजार में, जुलूस में या किसी शादी के मौके पर सारे महल्ले में तरहतरह के स्वांग बना कर घूमा करते थे.

मुझे एक जोकर बने बहुरुपिए की हरकतें बड़ी अच्छी लगती थीं. अपने करतब दिखा कर बहुरुपिए हर घर से पैसे इकट्ठा करते और चले जाते थे. बहुरुपिया बनना उन की मजबूरी हुआ करती थी.

आज वही बहुरुपिए नेता और समाजसेवी बने सारे देश में फैल गए हैं. भेड़ की खाल में छिपे हुए भेडि़ए हैं.नेताजी की ओर देखते हुए मैं ने पूछा था, ‘‘आप पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं.

आप क्या कहते हैं?’’उस ने कहा था, ‘‘भ्रष्टाचार मत कहें. इस का नाम लेनदेन है. दुनिया इसी से चलती है. दुनिया के किसी कोने में सिर्फ लेनलेन या देनदेन नहीं चलता. मैं ने जनता के लिए बहुतकुछ किया और बदले में कुछ लिया, तो इस में भ्रष्टाचार कहां से घुस गया?

‘‘सोचो, सरकार आखिर आप को सहूलियतें देती है, तो टैक्स भी लेती है. बैंक कर्ज देते हैं, तो ब्याज भी तो लेते हैं. एक अदना सा बाबू अगर किसी का काम कर के उस से कुछ ले लेता है, तो आप लोगों को भ्रष्टाचार की बू क्यों आने लगती है?

‘‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस के उन शब्दों को याद करो, ‘तुम मु?ो खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा…’ उन्होंने भी तो लेनदेन की बात कही थी. क्या वे भ्रष्टाचारी थे?’’मैं हैरान था. उस नेता की बातों से दिमाग झन्ना गया था.

जो किसी से दब जाए, वह नेता नहीं होता और कामयाब नेता वही होता है, जो एक की चार सुना डाले.नेताजी इतने पर चुप नहीं रहे. वे आगे बोले, ‘‘आप लोग सिर्फ हमारी पार्टी के पीछे पड़े रहते हैं और उस पार्टी को पनाह देते हैं, जो भ्रष्टाचार की जननी है.

उस ने सारे नेता ही भ्रष्ट पैदा किए हैं. मेरा बस चले, तो मैं उस पार्टी की मान्यता ही रद्द करवा दूं. न रहेगा बांस, न रहेगा भ्रष्टाचार.’’नेताजी के मुंह से यह नया मुहावरा सुन कर मैं हंस पड़ा.नेताजी गुस्से से लालपीला होते हुए बोले, ‘‘हंसो मत अफसर. अगर मेरी पार्टी सत्ता में आ गई, तो मैं भारतीय अपराध संहिता से भ्रष्टाचार शब्द ही निकलवा दूंगा.

संशोधित शब्द होगा, लेनदेन. और यह अपराध नहीं होगा.’’नेता मोटी चमड़ी के होते हैं, इसलिए मु?ो ही चुप होना पड़ा.समाजसेवी बड़े विनम्र थे. वे भूरे रंग का कुरता और चूड़ीदार पाजामा पहने थे. एक काला ?ोला उन की बगल में था.

‘‘आप समाजसेवा के नाम पर चंदा लेते हैं, पर चैक से नहीं. किसी रसीद से भी नहीं. आप ने बड़ा आसान सा तरीका अपनाया है गबन करने का?’’ मैं ने उन से पूछ लिया.समाजसेवी भड़क गए, ‘‘सच को ?ाठ बनाना कोई आप लोगों से सीखे.

आप लोग जिस के पीछे पड़ जाते हैं, उस के बाल में से खाल निकालने की कोशिश करते हैं. हम लोग छोटा चंदा लेने वाले लोग हैं. बड़ा चंदा नहीं लेते. बड़ा चंदा घोटालों और घोटालेबाजों का होता है.’’

वे कुछ रुके और अपनी सांसों को दोबारा बटोरते हुए बोले, ‘‘भला 5 या 10 रुपए के लिए चैक लिखे जाते हैं? हम अपने हाथ में कुछ नहीं लेते. लोग दानपेटी में दान डाल जाते हैं.

हम तो खुद ही कहते हैं कि सरकार नोट छोटे कर डाले, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा.‘‘अब बताइए कि सरकारें तो कुछ करती नहीं, हम से उम्मीद करती हैं कि हम छोटेछोटे रुपयों का भी हिसाब रखें,’’ बड़ी मुश्किल से उन के मन की भड़ास खत्म हुई थी.

इसी तरह के और भी कई सारे अपराधियों के इंटरव्यू करने के बाद मैं किसी नतीजे की तलाश में था.मैं कुरसी पर बैठा गहरी सोच में डूबा हुआ था कि अर्दली आया.

बिना पूछे उस ने मेरी दराज खोल कर नोटों की एक गड्डी उस में डाली और यह कहते हुए चला गया कि ठेकेदार बाबूलाल का हिसाब चुकता हो गया है. सब ने बांट लिया और आप का हिस्सा रख दिया. आप कल चैक पर दस्तखत कर देना.

 

सूद माफ : कर्ज में डूबा दीनू

जैसे ही सोमवती ने दीनू की चोटों पर सिंकाई करने के लिए गरम फाहा रखा, तो वह दर्द से कराह उठा. कुछ बदमाशों ने उसे लाठियों से पीट कर अधमरा कर दिया था.

दीनू से इतना ही कुसूर हुआ था कि कुछ साल पहले उस ने गांव के महाजन से खेती के लिए कुछ पैसा कर्ज लिया था, लेकिन तय समय बीत जाने के बाद भी कर्ज नहीं उतार सका था.

नतीजतन, धीरेधीरे कर्ज पर सूद की रकम मूल रकम से कई गुना ज्यादा हो गई, जो दीनू की जान के लिए बवाल बन गई.

आज दीनू ने महाजन से सूद की रकम चुकाने का वादा था, लेकिन किसी वजह से वह अपना वादा पूरा न कर सका, इसलिए महाजन ने अपने लठैतों को भेज कर उस की पिटाई कराई थी.

दीनू की पत्नी सोमवती की जवानी उफनती नदी की तरह चढ़ी है. उस की गठीली देह पर जवान मर्दों के साथसाथ बड़ेबूढ़ोें की नजर भी ठहर जाती है.सोमवती का ब्याह दीनू के साथ 5 साल पहले हुआ था, लेकिन उस के अभी तक कोई बच्चा नहीं था.

उसे यह टीस हमेशा सालती रहती थी.महाजन के गुरगे जबतब आते और दीनू पर लाठियां बरसा जाते. यह चिंता सोमवती को अंदर से खाए जा रही थी. वह इस परेशानी से नजात पाना चाहती थी, लेकिन उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

एक दिन महाजन का मुनीम दीनू के प्रति हमदर्दी का मरहम लगाने उस वक्त सोमवती के पास आया, जब दीनू बैलों का चारा लाने गांव के हाट गया था.मुनीम बोला, ‘‘अकसर महाजन के गुरगे दीनू को बेरहमी से पीट जाते हैं.

तुम लोग उफ तक नहीं कर पाते.‘‘अगर मेरी बात मानो, तो इस से बचने का एक उपाय है… वह यह कि कोई महाजन के पास जा कर उस से सूद माफ करने के लिए कहे.

‘‘मेरा तजरबा कहता है कि वह तुम्हारी गरीबी पर तरस खा कर दीनू पर कर्ज का सारा सूद माफ कर देगा. इस से असल भुगतान करने में आसानी हो जाएगी.’’

‘‘मेरा पति इस बारे में कई बार महाजन के पास जा कर गुहार लगा चुका है, मगर महाजन को हमारी गरीबी पर कभी रहम नहीं आया,’’ सोमवती ने अपनी परेशानी बताई.मुनीम बोला, ‘‘महाजन में एक खूबी है कि वह खूबसूरत औरतों की बहुत कद्र करता है.

दीनू के बजाय महाजन पर तुम्हारी गुहार ज्यादा असरदार साबित हो सकती है.‘‘खूबसूरत व गठीले बदन वाली औरतें महाजन की कमजोरी भी हैं.

गांव की कई खूबसूरत औरतें महाजन की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर अपने पति के कर्ज को माफ करा चुकी हैं.

‘‘अगर महाजन तुम्हारी बात मान कर दीनू के सूद को माफ कर दे, तो यकीनन तुम्हें एक बड़ी परेशानी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा, वरना इस सूद को चुकातेचुकाते तुम लोगों के चेहरों पर झुर्रियां आ जाएंगी, फिर भी महाजन के मकड़जाल से छूट नहीं पाओगे.’’

‘‘सुना है कि सूद माफ कराने के बदले में औरतों को कुछ समय के लिए महाजन के पास ठहरना पड़ता है?’’ सोमवती ने मुनीम से पूछा.‘‘इस मुसीबत से छुटकारे के बदले अगर कुछ देर का जिस्मानी सुख महाजन को देना पड़ जाए, तो इस में हर्ज क्या है,’’

मुनीम ने सलाह दी.सोमवती के चेहरे पर गुस्से का भाव देख कर मुनीम वहां से खिसक लिया.दूसरे दिन शाम को सोमवती महाजन की हवेली के दरवाजे पर थी. मुनीम ने दरवाजा खोला. सोमवती को देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल पड़ा.

मुनीम सोमवती को कमरे में बैठा कर महाजन के पास आ गया.‘‘साहब, दीनू किसान की पत्नी सोमवती आ गई है,’’ मुनीम ने सूचना दी.महाजन बोला, ‘‘उसे मेरे बैडरूम में भेज दो.’’मुनीम ने महाजन के आदेश का पालन करते हुए सोमवती को बैडरूम में पहुंचा दिया.

सोमवती को पहली बार मखमली मुलायम गद्दे पर बैठने को मिला था. वह सहमी सी महाजन के आने का इंतजार करने लगी.अचानक बैडरूम का दरवाजा खुला, महाजन को आता देख सोमवती के दिल की धड़कनें तेज चलने लगीं

.महाजन की प्यासी निगाहों ने सोमवती की देह का बारीकी से मुआयना किया. सोमवती सिमट कर तेजी से चलने वाली सांसों को काबू में करने की कोशिश करने लगी.

सोमवती की गठीली देह की चमक ने महाजन की आंखें चौंधिया दीं और चेहरे पर चमकीली मुसकान जगमगा गई.महाजन ने गहरी नजर से सोमवती की आंखों के पार झांका.

उन आंखों की पुतलियों में खुला न्योता था.महाजन और करीब आया, तो सोमवती सहमते हुए एक तरफ सिमट गई. अगले ही पल सोमवती की देह महाजन की बांहों में थी.

देह की गरमी पिघली, तो सोमवती ने सवाल उछाला, ‘‘अब तो मेरे पति के कर्ज का सारा सूद माफ हो जाएगा?’’‘‘हां… आज तुम्हारे पति के कर्ज का सारा सूद माफ हो गया है, लेकिन मूल रकम अभी बाकी है.

इसी तरह एक बार और यहां आ कर मूल रकम भी माफ करवा लेना,’’ महाजन होंठों पर मुसकराहट बिखेरता हुआ बोला.सोमवती महाजन के कानों में फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘मेरे पति को इस बात की जरा भी भनक न मिले कि मैं यहां आई थी.’’

सोमवती ने महाजन को डरीडरी नजरों से देखा.‘‘निश्चिंत हो कर जाओ. तुम यहां आई थीं, इस बात की भनक हवाओं को भी नहीं मिलेगी,’’ महाजन ने उसे भरोसा दिलाया.

‘‘तुम्हें पता नहीं, दीवारों के भी कान होते हैं और उन से छन कर अफवाहें बाहर निकलने लगती हैं, जो मेरी इज्जत पर बुरा असर डाल सकती हैं,’’

सोमवती ने महाजन को चेताया.महाजन बोला, ‘‘शायद तुम्हारा इशारा मुनीम की तरफ है. मुनीम को चुप रहने की मैं अलग से तनख्वाह देता हूं.

लिहाजा, तुम उस की तरफ से जरा भी चिंता मत करो,’’ महाजन ने सोमवती को यकीन दिलाया.‘‘हां, और ये 2 सौ रुपए रख लो. कभी काम आएंगे. दीनू को मत बताना.’’सोमवती ने एक अरसे बाद 2 सौ रुपए देखे थे. उस ने वे रुपए अपने ब्लाउज में ठूंस लिए.

 

कीचड़ में कमल : धंधेवाली नीलम की बहादुरी

नीलम आज भी उसी सुनसान जगह पर उसी बिजली के खंभे के नीचे खड़ी थी, जहां वह अकसर ग्राहकों की राह देखती थी.

रात के तकरीबन 12 बज रहे थे और वह पिछले एक घंटे से यहां खड़ी थी. ऐसा कम ही होता था कि वह यहां आती और उसे कोई ग्राहक नहीं मिलता था.

शायद उस के ग्राहकों को भी यह बात मालूम हो गई थी कि वह यहीं मिलेगी. जिस ग्राहक को उस की जरूरत होती, वह उसे यहीं से उठा लेता था.

नीलम के ग्राहकों में सब तरह के लोग थे, कार वाले भी और बिना कार वाले भी. जिन के पास अपनी कोई गाड़ी नहीं होती थी, उन के लिए नीलम खुद गाड़ी का इंतजाम करती थी.

ऐसे ग्राहकों के लिए वह अजीत नाम के अपने एक जानपहचान वाले टैक्सी ड्राइवर की मदद लेती थी, जो उस के एक फोन पर उस की बताई गई जगह पर पहुंच जाता था.

नीलम खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन की 26 साला लड़की थी. वह पिछले 5 साल से इस धंधे में लगी हुई थी. शुरूशुरू में उसे यह धंधा रास नहीं आया था, पर धीरेधीरे वह इस में रमती चली गई थी.

नीलम ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर एक नजर डाली, फिर अपने चारों ओर देखा. कहीं कोई हलचल नहीं थी. उसे लगा कि शायद आज उसे निराश लौटना पड़ेगा कि तभी दूर उसे किसी गाड़ी की हैडलाइट की रोशनी दिखाई पड़ी.

गाड़ी नीलम के पास आ कर रुकी और उस का पिछला दरवाजा खुला. अगले ही पल कोई भारी चीज उस से बाहर सड़क पर फेंकी गई और फिर कार तेजी से आगे बढ़ गई.

बिजली के खंभे में लगे बल्ब की रोशनी में जब नीलम की नजर उस चीज पर पड़ी, तो उस की आंखें हैरानी से फटती चली गईं.

यह किसी नौजवान लड़के का बुरी तरह जख्मी शरीर था. पलभर के लिए नीलम को लगा कि वह नौजवान मर चुका है. उस का बदन कांपने लगा. पहले तो वह हैरानी से अपनी जगह पर खड़ी रही, फिर न जाने क्यों वह आगे बढ़ी और पास जा कर गौर से उस नौजवान चेहरे को देखने लगी.

ऐसा करने पर नीलम को मालूम हुआ कि वह नौजवान मरा नहीं, बल्कि बेहोश है. पर वह जिस तरह से जख्मी था, अगर वहीं छोड़ दिया जाता, तो जरूर मर जाता.

नीलम काफी देर तक उस के चेहरे को देखती रही. पलभर को उस के मन में आया कि वह उसे वहीं छोड़ कर अपने घर लौट जाए, पर अगले ही पल उसे अपनी यह सोच गलत लगी.

एक इनसान को यों सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया जाए, यह बात उसे कतई मंजूर नहीं हुई.

नीलम ने मन ही मन कुछ सोचा, फिर उठ खड़ी हुई. उस ने अपने कंधे

पर लटकते हुए बैग से अपना मोबाइल फोन निकाला और अजीत का नंबर लगाने लगी.

नंबर मिलते ही नीलम ने अजीत को तुरंत वहां पहुंचने को कहा, फिर वह उस का इंतजार करने लगी.

अभी मुश्किल से 15 मिनट भी नहीं हुए थे कि अजीत अपनी टैक्सी ले कर वहां पहुंच गया. उस ने टैक्सी नीलम के पास रोकी, फिर बोला, ‘‘तुम्हारा ग्राहक नजर नहीं आ रहा?’’

‘‘आज मैं ने तुम्हें अपने ग्राहक के लिए नहीं बुलाया है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘तुम टैक्सी से तो उतरो, बताती हूं.’’

अजीत टैक्सी से नीचे उतर कर बोला, ‘‘हां, अब कहो.’’

बदले में नीलम ने सड़क पर बेहोश पड़े नौजवान की ओर इशारा किया. अजीत ने उस तरफ देखा, फिर जोरों से चौंका.

वह उस नौजवान के करीब आया और उसे ध्यान से देखा, फिर नीलम से बोला, ‘‘यह मर गया क्या?’’

‘‘अब तक तो नहीं, पर अगर इसे यों ही छोड़ दिया गया, तो यह जरूर मर जाएगा.’’

‘‘फिर?’’

‘‘तुम मेरी मदद करो, ताकि इसे अस्पताल पहुंचाया जा सके.’’

‘‘पागल हो गई हो तुम?’’ अजीत हैरान नजरों से नीलम को देखता हुआ बोला, ‘‘अगर यह अस्पताल में जा कर मर गया, तो अस्पताल वाले हम से हजार सवाल करेंगे और हम मुफ्त के झमेले में फंस जाएंगे, इसलिए इसे यहीं छोड़ कर यहां से खिसक ले…’’

‘‘इसे यहीं छोड़ दूं मरने के लिए?’’ नीलम उसे घूरती हुई बोली, ‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती,’’ इतना कहने के बाद नीलम झक कर उस नौजवान को उठाने की कोशिश करने लगी.

‘‘तू नहीं मानने वाली…’’ अजीत हथियार डालने वाले अंदाज में बोला, ‘‘चल हट, मैं इसे उठाता हूं.’’

अजीत ने झक कर उस बेहोश नौजवान को उठाया और उसे टैक्सी की पिछली सीट पर लिटा दिया.

इस के बाद वह टैक्सी से बाहर आ कर नीलम से बोला, ‘‘नीलम, अगर तू इसे अस्पताल ले कर जाएगी, तो अस्पताल वाले तुझ से कई तरह के सवाल करेंगे.’’

‘‘अस्पताल वाले मुझ से कोई सवाल नहीं पूछेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ अजीत चौंकते हुए उस से पूछ बैठा.

‘‘क्योंकि हम इसे उस अस्पताल में ले जाएंगे, जहां हम जैसी लड़कियों को कभीकभार इमर्जैंसी में जाना पड़ता है.’’

‘‘मैं सम?ा नहीं.’’

‘‘न चाहते हुए भी हम जैसी औरतें कभीकभार पेट से हो जाती हैं और तब हमें इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए इस अस्पताल में जाना पड़ता है, जहां के डाक्टर हमारा पेट गिरा कर हमें इस से छुटकारा दिलाते हैं.’’

‘‘ओह…’’ अजीत बोला, ‘‘पर नीलम, तू यह झमेला अपने सिर ले ही क्यों रही है? तू बेकार में अपना समय खराब कर रही है.’’

‘‘अब तू अपना मुंह बंद कर और चुपचाप वह कर जो मैं तुम से करने को कह रही हूं. चिंता मत कर, तुझे पूरा किराया मिलेगा.’’

‘‘जैसी तेरी मरजी…’’ अजीत बोला, ‘‘अगर तुम्हें अपना समय खराब करने का इतना ही शौक चर्राया है, तो मैं क्या कर सकता हूं?’’ कहते हुए उस ने ड्राइविंग सीट संभाल ली.

नीलम के बैठते ही अजीत ने टैक्सी आगे बढ़ा दी थी.

पहले तो अस्पताल वालों को नीलम को उस बेहोश नौजवान के साथ आया देख कर हैरानी हुई थी, फिर उस के कहने पर वे उस नौजवान के इलाज में लग गए.

वह नौजवान 3 दिनों तक अस्पताल में बेहोश पड़ा रहा. चौथे दिन शाम को उसे होश आया. इस बीच नीलम लगातार उस की सेवा करती रही.

वह नौजवान कुछ देर तक आसपास के माहौल को देखता रहा, फिर अपने पास बैठी नीलम से धीरे से बोला, ‘‘मैं कहां हूं?’’

‘‘आप इस समय एक अस्पताल में हैं… 4 दिन पहले आप को कुछ लोगों ने बुरी तरह जख्मी कर के बेहोशी की हालत में सड़क पर फेंक दिया था, जहां से उठा कर मैं आप को इस अस्पताल में ले आई थी,’’ नीलम बोली.

‘‘मैं 4 दिनों से बेहोश था?’’ वह नौजवान हैरानी से बोला.

‘‘जी हां…’’ तभी उस कमरे में आते हुए डाक्टर ने कहा, ‘‘खैर मनाइए इन का, जो आप को यहां ले आईं, वरना शायद आप अब तक जिंदा न होते.’’

उस नौजवान ने नीलम को गौर से देखा. डाक्टर चैकअप करने लगा और जब वह इस से निबट चुका, तो वह नौजवान बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मुझे अस्पताल से कब तक छुट्टी मिल जाएगी?’’

‘‘अब आप बिलकुल ठीक हैं. कल तक आप को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी,’’ इतना कहने के बाद डाक्टर कमरे से बाहर चला गया.

वह नौजवान पलभर तक दरवाजे की ओर देखता रहा, फिर उस ने नीलम की ओर देखा.

तभी नीलम उठी, फिर उस ने एक गिलास उस नौजवान की ओर बढ़ाया.

‘‘इस में क्या है?’’ वह नौजवान गिलास थामते हुए बोला.

‘‘फल का जूस है. इस से आप को ताकत मिलेगी.’’

‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ वह नौजवान गिलास अपने होंठों की ओर ले जाते हुए बोला.

‘‘मेरा नाम नीलम है, पर लोग मुझे ‘नीलू’ कहते हैं.’’

‘‘वे प्यार से आप को ऐसा कहते होंगे?’’

‘‘प्यार?’’ नीलम बोली, ‘‘एक जिस्म बेचने वाली से भला कौन प्यार करेगा?’’

होंठों की ओर जाता हाथ अचानक रुक गया. उस ने गिलास सामने रखी टेबल पर रख दिया.

‘‘आप ने गिलास टेबल पर क्यों

रख दिया?’’

‘‘तुम ने जो कहा, वह सच है?’’

‘‘बिलकुल सच है,’’ नीलम बोली, ‘‘और शायद इसी सच ने आप को जूस न पीने पर मजबूर किया है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है,’’ वह नौजवान बोला, ‘‘सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं, तुम्हारी भी होगी, पर मैं इतना जरूर पूछना चाहूंगा कि तुम यह धंधा क्यों करती हो?’’

‘‘अपना पेट पालने के लिए.’’

‘‘पेट कोई और काम कर के भी तो पाला जा सकता है?’’

‘‘मैं ने बहुत कोशिश की थी, पर कामयाब नहीं हुई. मैं जहां भी काम मांगने जाती, लोग मेरी काबिलीयत नहीं, मेरा खूबसूरत जिस्म देखते. वे काम तो देने को तैयार होते, पर मेरे जिस्म की कीमत पर. मैं बहुत भटकी और एक दिन मेरे सामने ऐसी बड़ी समस्या आई कि मु?ो बिकना पड़ा.’’

‘‘क्या हुआ था उस दिन?’’

‘‘मेरी बीमार मां की तबीयत अचानक ज्यादा खराब हो गई थी और उन के इलाज के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे. मजबूरन मुझे बिकना पड़ा,’’

‘‘ओह…’’ उस नौजवान के मुंह से एक आह निकल गई.

‘‘शायद औरों की तरह मेरा सच

जान कर आप को भी मुझे से नफरत हो गई है.’’

‘‘हरगिज नहीं…’’ उस नौजवान ने कहा, ‘‘बल्कि तुम तो मेरे लिए हमेशा यादगार रहोगी. तुम ने उस समय मेरी मदद कर मुझे मौत के मुंह से निकाला, जब मेरे कुछ दुश्मनों ने मु?ो बुरी तरह घायल कर बेहोशी की हालत में सड़क पर मरने के लिए फेंक दिया था.’’

‘‘साहब, आप शायद पहले शख्स हैं, जो मेरी हकीकत जानने के बाद भी मेरे बारे में ऐसा सोचते हैं.’’

‘‘अगर ऐसी बात है, तो तुम मेरी दोस्त बन जाओ.’’

‘‘दोस्ती का मतलब समझाते हैं आप?’’ नीलम गौर से उस नौजवान को देखते हुए बोली.

‘‘दोस्ती का मतलब है अपने दोस्त का साथ देना. अगर उस पर कोई परेशानी आए, तो उसे हर कीमत पर इस से उबारना,’’ कहते हुए उस नौजवान ने नीलम की ओर अपना हाथ बढ़ाया.

नीलम ने उस का हाथ थाम लिया. उस के ऐसा करते ही वह बोला, ‘‘मेरा नाम आदित्य है और मैं एक सफल कारोबारी हूं. कभी भी, कैसी भी जरूरत पड़े, एक फोन करना, तुम मुझे अपने पास पाओगी.’’

नीलम भरी आंखों से अपने नए दोस्त को देखती रही.

इज्जत का रखवाला : कमलेश का मनचलापन

कमलेश ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर भरपूर अंगड़ाई ली. उस के कसे, भरेभरे उभार मानो सामने खड़े गांव के मंदिर के पुजारी रामकिशन को खुला न्योता देते हुए लग रहे थे.

कमलेश ने उस पुजारी को सुबह के 4 बजे झठ बोल कर अपने घर में बुला लिया था. वह घर में अकेली थी. वहां दूसरा कोई न था. कमलेश उस पुजारी से अपनी हसरतों को पूरा करना चाहती थी.

कमलेश ने आगे बढ़ कर रामकिशन का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचना चाहा, मगर उस ने अपना हाथ छुड़ा लिया.

पुजारी रामकिशन की पत्नी की मौत 10 साल पहले हो चुकी थी. तब से उस की जिंदगी बेरंग हो गई थी.

आज कमलेश के इस तरह अपने घर बुलाने पर वह हैरान था. क्या उसे पूरे गांव में कोई दूसरा जवां मर्द नहीं मिला? किसी गांव वाले ने उसे कमलेश के साथ देख लिया, तो बदनामी हो जाएगी.

रामकिशन अपनी बेइज्जती होने के डर से कांप उठा था. वह कमलेश से बोला, ‘‘क्या तुझे इस गांव में कोई जवां मर्द नहीं मिला, जो मुझ बूढ़े को बहाने से बुला लाई? तुझे क्या अपने पति की बदनामी का जरा भी डर नहीं है?’’

‘‘पुजारीजी, मेरा पति पैसा कमाने बाहर गया है. इस बात को 5 महीने हो गए हैं. वह कब आएगा, पता नहीं. मैं प्यासी तड़प रही हूं,’’ कमलेश ने बताया.

पुजारी ने उसे समझाना चाहा, ‘‘अगर ऐसी बात है, तो तुझे कभी नहीं गिरना चाहिए. वह अगर तेरे लिए पैसा कमाने गया है, तो तुझे उस की अमानत किसी तीसरे के सामने नहीं परोसनी चाहिए. औरत तो घर की इज्जत होती है.’’

‘‘पुजारीजी, धर्मकर्म की बातें बुढ़ापे में ही याद आती हैं. जवानी की आग में सुलगती औरत को उपदेश नहीं, बल्कि मुहब्बत की बारिश की जरूरत होती है, जिस से उस की प्यास बुझ सके,’’ कमलेश ने अपनी समस्या बताई, तो पुजारी परेशान होता हुआ बोला, ‘‘तू गांव का कोई जवान देख, मुझ बूढ़े को क्यों पाप का भागीदार बना रही है?’’

‘‘जवान तो गांव में बहुत हैं, जो मेरे एक इशारे पर मरमिटने को तैयार हैं, मगर मैं अपने पति के कहने में बंधी हुई हूं,’’ कमलेश ने रामकिशन के सामने यह बात रखी, तो वह चौंक उठा.

‘‘क्या तेरे पति ने जाते समय ऐसा करने को कहा था? बड़ा अजीब

आदमी है,’’ रामकिशन ने हैरत भरे लहजे में पूछा.

कमलेश ने बताया, ‘‘जब मेरा पति जाने लगा था, तो उस ने मुझे चरित्रवान रहने की बात कही थी.’’

कमलेश तो अपने पति को बाहर भेजने के हक में नहीं थी. जब उस के पति ने अपनी मजबूरी जाहिर की, तो कमलेश ने भी उस की सब्र रखने वाली बात को नकार दिया था.

जब कमलेश किसी तरह नहीं मानी, तब उस के पति अमर ने उसे समझाने की गरज से सलाह दी थी, ‘मेरी जान, अगर तुम मेरी जुदाई में सब्र नहीं रख पाओ, तो तुम सुबह के 4 बजे अकेले घर से निकलना और तुम्हें जो भी पहला मर्द मिले, उस से संबंध जोड़ सकती हो. लेकिन महीने में केवल एक बार.’

अमर की यह अजीबोगरीब सलाह कमलेश खुशीखुशी मान गई. पुजारी रामकिशन ने पूछा, ‘‘तब तुम ने क्या किया?’’

‘‘कई बार मैं सुबह 4 बजे अपनी इच्छा पूरी करने के लिए घर से निकली. आज कितनी कोशिशों के बाद तुम मिले हो, इसलिए तुम्हें मुझे खुश करना होगा, वरना मैं शोर मचा कर तुम पर बलात्कार का आरोप लगा दूंगी.’’

रामकिशन सिर से ले कर पैर तक कांप उठा. उसे अपनेआप को बचाना मुश्किल लग रहा था, फिर भी उस ने दिमाग से काम लेना चाहा.

‘‘तुम ने अच्छा फैसला लिया है. तुम्हारे साथ मुझे प्यारमुहब्बत का खेल खेलना चाहिए. लेकिन मैं तुम से थोड़ा उम्र में बड़ा हूं. अभी तुम मुझे घर जाने दो, ताकि मैं थोड़ी जड़ीबूटी खा कर जोशीला हो जाऊं. मैं आज रात को दोबारा आ जाऊंगा,’’ रामकिशन ने कमलेश को समझाते हुए कहा, तो उस ने उसे घर जाने दिया.

लेकिन उस रात को रामकिशन कमलेश के घर नहीं गया. अब तो उस ने सुबहसवेरे टहलने जाना बंद कर दिया था.

कमलेश कितनी बार बहाने से मंदिर भी आई, मगर वहां कोई न कोई रामकिशन के पास बैठा होता था.

धीरेधीरे दिन गुजरने लगे. एक दिन रामकिशन सुबहसवेरे नदी पर नहाने चला गया. नहाने के बाद वह जैसे ही मुड़ा, अचानक कमलेश उस के सामने आ धमकी. वह रामकिशन का हाथ पकड़ कर अपने घर की ओर खींचने की कोशिश करने लगी.

इसी खींचातानी में रामकिशन के हाथ से मिट्टी का लोटा टूट गया. यह देख कर वह रोने लगा.

कमलेश हैरान होते हुए पूछने लगी, ‘‘यह मिट्टी का लोटा ही तो टूटा है, तुम रोते क्यों हो? मैं तुम्हें इस मिट्टी के लोटे के बदले में स्टील या पीतलतांबे का बढि़या सा लोटा दे दूंगी.’’

‘‘मैं लोटा टूटने पर इसलिए रो रहा हूं, क्योंकि इसे मेरी पत्नी ने मेरे लिए 10 साल पहले एक मेले में खरीदा था. अब वह जिंदा नहीं है. मैं इस लोटे को देख कर तसल्ली कर लेता था कि वह आज भी मेरे साथ है. पर आज लोटा टूट गया है.

‘‘ऐसा लग रहा है, जैसे वह सचमुच मुझ से अलग हो कर बहुत दूर चली गई है.’’

कमलेश यह सब देख कर मन ही मन पिघलने लगी. उसे रामकिशन की वफादारी पर हैरानी हो रही थी.

वह सोच रही थी कि एक वह है, जिस का पति परदेश पैसा कमाने गया है. वह कुछ दिनों के बाद जरूर लौट कर आएगा, क्योंकि वह वादा कर के गया है. वह फिर भी अपने तन की भूख मिटाने के लिए गिरने पर आमादा है.

पुजारी रामकिशन अब भी रो रहा था. सुबह का उजाला चारों तरफ फैलने लगा था.

कमलेश अब भी सोच रही थी कि इतनी सुबह तो रामकिशन जैसे सज्जन ही घर से बाहर निकलते हैं. अगर वह दिन के उजाले में किसी मनचले से उलझ जाती, तो वासना की दलदल में बुरी तरह फंस जाती. बदनामी मिलती सो अलग. तब वह अपनी गृहस्थ जिंदगी बरबाद होने से नहीं बचा पाती.

पुजारी रामकिशन ने कमलेश को तबाह होने से बचा लिया था. वह तो उस की इज्जत का रखवाला निकला.

पगली : कौन थी वो अजनबी लड़की

‘‘आजकल आप के टूर बहुत लग रहे हैं. क्या बात है जनाब?’’ नंदिनी संजय से चुहलबाजी कर रही थी.

‘‘क्या करूं, नौकरी का सवाल है, नहीं तो तुम्हें छोड़ कर जाने का मेरा मन बिलकुल भी नहीं करता है,’’ संजय ने भी हंसी का जवाब हंसी में दे दिया.

‘‘पहले तो ऐसा नहीं था, फिर अचानक इतने ज्यादा टूर क्यों हो रहे हैं?’’ इस बार नंदिनी ने संजीदगी से पूछा था.

‘‘तो क्या घर बैठ जाऊं?’’ संजय को गुस्सा आ गया.

‘‘इस में इतना गुस्सा होने की क्या बात है? मैं तो यों ही पूछ रही थी,’’ नंदिनी बोली.

‘‘जैसा कंपनी कहेगी, वही करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है, पर…’’

‘‘तुम मुझ पर शक कर रही हो…’’ संजय ने कहा, ‘‘जैसे मैं किसी और से मिलने जाता हूं… है न?’’

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी,’’ नंदिनी ने कहा.

‘‘तुम्हारे मन में ऐसे-ऐसे खयाल आ जाते हैं, जिन का कुछ भी मतलब नहीं होता है.’’

‘‘अच्छा बाबा, माफ कर दो. मैं तो इसलिए कह रही थी कि गरमी की छुट्टियों में हम सब बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने चलें,’’ नंदिनी जैसे अपनी सफाई पेश कर रही थी. ‘‘ठीक है, देखते हैं,’’ संजय ने कहा.

एक दिन घर के कामकाज निबटा कर नंदिनी छत पर चली गई थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी.

जब दरवाजा खोला, तो सामने पड़ोसन रागिनी खड़ी थी.

‘‘आओ रागिनी भाभी, अचानक कैसे आना हुआ?’’ नंदिनी ने पूछा.

‘‘तुम्हें पता है नंदिनी कि आजकल कालोनी में क्या हो रहा है.’’

‘‘ऐसा क्या हो रहा है, जो मुझे नहीं पता?’’

‘‘अरे, पिछले कई दिनों से एक पगली इस कालोनी में आई हुई है और सब बच्चे उसे छेड़ते रहते हैं.’’

‘‘हां, मैं ने भी उसे देखा है, पर बच्चों को ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि बाहर बहुत शोर सुनाई दिया. दोनों घर के बाहर आ गईं.

नंदिनी ने देखा कि एक लड़की भाग रही थी और कुछ बच्चे उस के पीछे भाग रहे थे.

नंदिनी ने उन बच्चों को डांट लगाई और उसे अपने साथ घर में ले आई.

अंदर आते ही वह लड़की बेहोश हो गई. नंदिनी ने उस के चेहरे पर पानी के छींटे मारे. होश में आने पर वह नंदिनी से लिपट कर रोने लगी.

नंदिनी ने लड़की से उस का नाम पूछा, लेकिन वह चुप रही, फिर वह जोरजोर से चिल्लाने लगी और नंदिनी से ऐसे लिपट गई, जैसे उसे कुछ याद आ गया हो.

नंदिनी ने उसे आराम से बैठाया और उसे खाने को दिया, तो वह फटाफट    5-6 रोटियां खा गई, जैसे बहुत दिनों से भूखी हो.

‘‘कौन हो तुम?’’ पड़ोसन रागिनी ने उस लड़की से पूछा, तो वह चुप रही. कई बार पूछने पर वह बोली, ‘रेवा…रेवा…रेवा.’

‘‘नंदिनी, पता नहीं यह कहां से आई है? अब इसे यहां से जाने को कह दे,’’ रागिनी ने नंदिनी को सलाह दी.

‘‘कैसी बातें कर रही हो भाभी?  कुछ देर आराम कर ले, फिर जाने को कह दूंगी,’’ नंदिनी बोली.

‘‘देख, मैं कह रही हूं कि ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए,’’ रागिनी ने उसे फिर से सम?ाने की कोशिश की.

‘‘भाभी, आप को पता है कि मैं एक एनजीओ के साथ काम कर रही हूं. मैं उन से बात करूंगी. आप परेशान न हों,’’ नंदिनी बोली.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह कर रागिनी चली गई.

नंदिनी जब वापस आई, तो देखा कि वह लड़की कमरे के एक कोने में दुबकी डरीसहमी बैठी थी.

नंदिनी ने उसे आवाज लगाई, ‘‘रेवा…’’

वह कुछ नहीं बोली, बल्कि और सिमट कर बैठ गई.

नंदिनी उस के पास गई और पूछा, ‘‘रेवा नाम है न तुम्हारा?’’

उस लड़की ने धीरे से अपना सिर ‘हां’ में हिला दिया.

नंदिनी ने उस से कहा, ‘‘देखो, डरो नहीं. बताओ, तुम कहां से आई हो? हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देंगे.’’

वह लड़की इतना ही बोली, ‘‘मेरा कोई घर नहीं है बीबीजी.’’

नंदिनी को हैरानी हुई कि यह तो कहीं से पागल नहीं लग रही है.

अचानक उस लड़की ने नंदिनी के पैर पकड़ लिए. नंदिनी को उस का बदन गरम लगा. ऐसा लगता था, जैसे उसे बुखार हो.

‘‘अच्छा ठीक है, आज की रात तुम यहीं रह जाओ. कल मैं तुम्हें अपनी संस्था में ले जाऊंगी.’’

‘‘बीबीजी, आप मुझे अपने पास रख लो. मैं घर का सारा काम करूंगी,’’ कह कर वह फिर से रोने लगी.

‘‘अच्छा, आज तो तुम यहीं रहो, फिर कल देखेंगे,’’ नंदिनी बोली.

संजय रात को काफी देर से आया था. सो, उसे उस लड़की के बारे में कुछ नहीं पता था.

अगली सुबह नंदिनी ने संजय को उस लड़की के बारे में बताया.

संजय ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘नंदिनी, इस को अभी घर से निकालो, पता नहीं कौन है….’’

‘‘हां संजय, लेकिन अभी मैं इसे अपनी संस्था में ले जाती हूं.’’

‘‘मैं रात को घर आऊं, तो मु?ो कोई बखेड़ा नहीं चाहिए,’’ कह कर संजय चला गया.

नंदिनी नीचे आई, तो देखा कि उस लड़की को तेज बुखार था.

रात को संजय ने नंदिनी से पूछा, ‘‘क्या वह लड़की चली गई?’’

नंदिनी ने कहा, ‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों…?’’ संजय बोला.

‘‘संजय, उसे बहुत तेज बुखार है और ऐसी हालत में वह लड़की कहां जाएगी? अगर वह मर गई तो…’’

‘‘मु?ो नहीं पता,’’ कहते हुए संजय नीचे चला गया.

वहां वह लड़की बेहोश पड़ी थी. पता नहीं क्यों संजय उसे देख कर हैरानी में पड़ गया.

‘‘नंदिनी, शायद तुम ठीक कह रही हो. अगर यह यहां से गई और मर गई, तो क्या होगा?’’

‘‘फिर क्या करें?’’

‘‘ऐसा करते हैं, जब तक यह ठीक नहीं हो जाती, इसे अपने पास ही रख लेते हैं.’’

‘‘ठीक है.’’

आजकल करतेकरते कई दिन हो गए, पर रेवा वहां से न जा सकी.

वैसे, नंदिनी अब तक सिर्फ इतना ही जान पाई कि वह एक पहाड़ी लड़की थी और किसी बाबूजी से मिलने आई थी.

‘‘तुम्हें यहां कौन छोड़ गया है?’’ नंदिनी ने पूछा.

‘‘मेरे गांव में कई लोग यहां पर फेरी लगाने आते हैं. उन्हीं लोगों के साथ मैं भी आ गई.’’

‘‘देखो, अगर तुम हमें अपने गांव का नामपता बता दोगी, तो हम तुम्हें वहां पहुंचा देंगे,’’ नंदिनी ने कहा.

‘‘मैं पहली बार अपने गांव से बाहर निकली हूं और मु?ो तो यह भी नहीं पता कि मेरे गांव का क्या नाम है.’’

पता नहीं, वह सच बोल रही थी या ?ाठ, पर नंदिनी को उस की बातों पर कभी भरोसा हो जाता, तो कभी नहीं.

अभी रेवा को आए हुए कुछ समय ही बीता था कि नंदिनी को पता चला कि वह मां बनने वाली है.

नंदिनी हैरानी में पड़ गई कि अब वह क्या करे. उस ने रेवा से पूछा कि यह सब क्या है? कौन है इस बच्चे का पिता? लेकिन रेवा का एक ही जवाब होता, ‘‘बीबीजी, मु?ो नहीं पता. शायद पागलपन के दौरे में मेरा किसी ने फायदा उठा लिया होगा.’’

‘‘तू याद करने की कोशिश तो कर, शायद याद आ जाए.’’

‘‘नहीं बीबीजी, क्योंकि जब मु?ो दौरा पड़ता है, तो उस वक्त की सारी बातें मैं भूल जाती हूं.’’

नंदिनी को कुछ भी सम?ा नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

उस ने संजय से बात की. यह सब सुन कर वह भड़क उठा, ‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था कि इस ?ां?ाट में मत फंसो. अब भुगतो.’’

‘‘तो क्या उसे घर से निकाल दूं?’’

‘‘अब क्या घर से निकालोगी? रहने दो अब.’’

नंदिनी ने अपने पड़ोसियों से बात की. सब ने यही राय दी कि उसे फौरन घर से निकाल देना चािहए.

पर नंदिनी रेवा को वहां से जाने के लिए एक बार भी नहीं कह पाई.

रेवा के मां बनने का समय भी आ गया था. नंदिनी अब तक एक बड़ी बहन की तरह रेवा की देखभाल कर रही थी.

रेवा को एक बहुत ही प्यारा बेटा हुआ. उस बच्चे को देख कर नंदिनी को अपने बच्चों के बचपन याद आ गए.

ठीक होने के बाद रेवा ने फिर से घर के काम करने शुरू कर दिए थे. सबकुछ ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन सुबह नंदिनी ने देखा कि रसोई बिखरी पड़ी है. इस का मतलब अभी तक रेवा नहीं आई थी.

कुछ देर उस का इंतजार करने के बाद नंदिनी उस के कमरे में आई, तो देखा कि रेवा कमरे में नहीं थी और उस का बच्चा पलंग पर सो रहा था.

नंदिनी ने बच्चे को गोद में उठा लिया. बच्चे के पास एक चिट्ठी रखी  थी. नंदिनी ने उसे पढ़ना शुरू किया:

‘दीदी, मैं पागल नहीं हूं, लेकिन मु?ो पागल बनना पड़ा, क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करती, तो आप मु?ो अपने घर में नहीं रखतीं.

‘मैं बहुत गरीब घर से हूं. कुछ समय पहले संजय साहब मेरे गांव आए थे. उन्होंने मु?ो एक अच्छी जिंदगी के सपने दिखाए, लेकिन बदले में आप ने जान ही लिया होगा कि मैं ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है.

‘दीदी, मैं ने ही साहब को मजबूर किया था कि अगर वे मु?ो अपने घर में नहीं रहने देंगे, तो मैं आप को सबकुछ सच बता दूंगी.

‘साहब जैसे भी हैं, लेकिन वह अपना घर नहीं तोड़ना चाहते हैं. अगर मैं चाहती, तो आप के घर रह सकती थी, लेकिन मैं जानती हूं कि सच को ज्यादा दिनों तक नहीं छिपाया जा सकता.

‘दीदी, आप इतनी अच्छी हैं कि कभीकभी मु?ो लगता था कि मैं आप के साथ बेईमानी कर रही हूं, लेकिन इस बच्चे की वजह से चुप कर जाती थी.

‘दीदी, अब यह आप का बच्चा है. आप जैसे चाहें इस की परवरिश कर सकती हैं.

‘मैं ने साहब को माफ कर दिया है. आप भी उन को माफ कर दो.’

नंदिनी चिट्ठी पढ़ कर मानो आसमान से नीचे गिर पड़ी. इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा गुनाह. उस की आंखों के सामने सबकुछ होता रहा और उसे पता भी नहीं चला.

उस ने कभी भी संजय और रेवा को एकसाथ नहीं देखा था और न ही दोनों को कभी बातें करते सुना था, तो फिर कब…?

नंदिनी को लगा कि कमरे की दीवारें चीखचीख कर कह रही हैं, ‘नंदिनी, पगली वह नहीं तू थी, जो अपने पति और एक अनजान लड़की पर भरोसा कर बैठी. पगली…पगली…पगली…’

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