थोड़ी देर के बाद मैं ज्योति का हाथ पकड़ कर नीचे आ गया. मेरा हाथ छुड़ा कर वह जाते हुए बोली, ‘‘ऋषि, एक काम करना.’’
मैं ने पूछा, ‘‘क्या?’’
‘‘छत पर पड़ी खून की बूंदों को पानी से साफ कर देना,’’ इतना कह कर वह चली गई और मैं हाथ में बालटी ले कर छत की ओर चल दिया.
ज्योति उस रात के बाद फिर मुझे दिखाई न दी. उस की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. मैं ने कई दिन की तड़प के बाद अपने दिल को तसल्ली दी कि वह जब अगले साल गरमियों की छुट्टियां बिताने आएगी तो जीभर के उस से बात करूंगा, उसे आगोश में लूंगा, मगर मेरे लाख इंतजार के बाद वह फिर कभी गरमी की छुट्टियां बिताने के लिए हमारे गांव नहीं आई.
मैं अपनी टीनएज में एक लड़की की तरफ आकर्षित हुआ, उस के जिस्म को मैं ने हासिल किया था. मैं जब भी तनहा लेटता, मुझे लगता कि मैं किसी हसीना के जिस्म से लिपटा हुआ हूं. मेरी नसनस कामज्वर से जल उठती. मैं बेचैन हो जाता. मैं कोशिश करता कि रात में अकेला न रहूं, बस इसलिए दोस्तों के साथ देर रात तक घूमा करता.
ऐसे ही एक रात मैं पास के एक गांव की महफिल में पहुंच गया, जहां तवायफें अपने हुस्न से अजब समां बांध रही थीं. लोग उन के थिरकते कदमों की लय पर वाहवाह कर रहे थे.
मेरी नजर भी ऐसे ही लयबद्ध थिरकते एक जोड़ी पांव पर टिक गई थी. वह एक मेरी उम्र की सुंदर नैननक्श वाली तवायफ थी, जिसे लोग गुंजा के नाम से पुकार रहे थे.
जब तक गुंजा उस गांव में रही, मैं रोज उस की महफिल में हाजिर होता रहा. मेरी इस हाजिरी को यकीनन उस ने तवज्जुह दी थी और यह तवज्जुह इतनी गहरी थी कि एक रात जब वह रक्स की महफिल के बाद कमरे में आराम कर रही थी, तो मैं उस के पास पहुंच गया और उस ने मुझे देखते ही अपने पास लेटी दूसरी तवायफ को बाहर जाने का इशारा कर के मेरी ओर अपनी मरमरी बांहें फैला दीं.
जिस कामज्वर को ज्योति ने मेरे शरीर में जगाया था, उसे मैं गुंजा की बांहों में शांत करने लगा. यहां तक कि जब वह अपने गांव गई, तो मैं अपने एक दोस्त के साथ वहां भी जा पहुंचा और वहीं पर मैं ने शालू को देखा.
शालू गुंजा की छोटी बहन थी और उस से भी ज्यादा हसीन. शालू को देखने के बाद जब मैं गुंजा के साथ लेटता तो मुझे लगता कि मैं शालू के साथ लेटा हूं. शालू के प्रति मेरी आकर्षित निगाहों को शायद गुंजा और उस की मां ने समझ लिया था, इसलिए वे दोनों गाहेबगाहे मुझे शालू से दूर रहने की हिदायत देती रहती थीं.
शालू अब मेरे ख्वाबों में आने लगी थी. इसी बीच मुझे लखनऊ के एक कालेज में बीटैक में एडमिशन मिल गया. लखनऊ जाने से पहले मैं शालू को पाना चाहता था. उस की गोद में सिर रख कर सोना चाहता था. अपनी इसी सोच को लिए मैं उस रात गुंजा के घर जा पहुंचा.
एक बड़ी महफिल उस रात गुंजा के घर सजी हुई थी. मुझे देख कर गुंजा मुसकरा उठी. मेरे पास आ कर वह बोली, ‘‘आओ ऋषि, बैठो.’’
मैं ने पूछा, ‘‘गुंजा, यह महफिल, ये इतने लोग किसलिए?’’
‘‘शालू के लिए,’’ वह मुसकराई.
‘‘मैं समझा नहीं,’’ शालू का नाम आते ही मैं उतावलेपन से बोला.
‘‘आज उस की नथ उतराई है,’’ गुंजा मेरे करीब आ कर मेरी कमीज के बटन खोलते हुए बोली.
‘नथ उतराई. कोठों की इस भाषा से मैं अब तक बखूबी परिचित हो चुका था और अच्छे से इस का मतलब भी जानता था.
मैं ने एक झटके से गुंजा को अपने से परे ढकेल दिया था. जमीन पर गुंजा के गिरने की आवाज सुन कर वहां पान चबाते हुए उस की मां आ गई थीं.
जमीन पर गुंजा को गिरा देख कर वह हाथ नचा कर बोली, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’
मैं भी तनिक तेज आवाज में बोला, ‘‘मुझे शालू से दूर रहने की हिदायत दे कर तुम लोग उस की नथ उतराई की रस्म कर रहे हो.’’
‘‘हां तो… तुम्हें एतराज काक्या हक?’’ गुंजा की मां एक कोने में रखे पीकदान में पान की पीक थूकते हुए बोली.
‘‘मैं शालू को चाहता हूं.’’
‘‘तुम शालू को नहीं, बल्कि उस के जिस्म को चाहते हो, जिस की कीमत किसी ने 25,000 रुपए दी है. सौदा हो चुका है.’’
‘‘सौदा…’’ मैं तनिक रोब से बोला, ‘‘एक मासूम लड़की का सौदा कर के तुम्हें शर्म नहीं आती…’’
मेरी बात सुन कर वह अधेड़ औरत बिफर गई थी. न जाने कितनी बातों की बौछार उस ने मुझ पर कर दी. बस मुझे उस की आखिरी बात याद रही, ‘‘दफा हो जाओ यहां से, तुम्हारे जैसे लोग यहां आ कर घुटनों पर बैठ कर हमारे पैर चूमते हैं.’’
वहां से निकलते हुए मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पैर चूमे हमारा जूता.’’
मेरी बात सुनते ही वह दहाड़ कर बोली, ‘‘एक दिन किसी हम जैसी के पैर तू भरी महफिल में छुएगा, उस दिन मुझे याद करना.’’
वह चिल्ला रही थी. उस के वह शब्द पिघलते सीसे की तरह मेरे कानों में उतर रहे थे. मैं ने पलट कर भी नहीं देखा और तेज कदमों से वहां से निकल आया था.
लखनऊ शहर ने मेरे जवान होते जिस्म में अंगड़ाई भर दी थी. जिधर देखो उधर खूबसूरती बिखरी पड़ी थी. अब मैं 19 साल का सजीला नौजवान था, जो लखनऊ के एक मशहूर कालेज से बीटैक कर रहा था.
मैं पढ़ने में तो बचपन से ही होशियार था और इसी वजह से क्लास में मेरी धाक बैठ गई थी. लड़के और लड़कियां सब मेरी तरफ आकर्षित थे, पर मैं सिर्फ लड़कियों की तरफ आकर्षित था.
जब खूबसूरत लड़कियां स्लीवलैस टौप और स्किन टाइट जींस पहन कर खूबसूरती की गुडि़या बन कर मेरे सामने आतीं और होंठों पर मुसकान ला कर ‘हाय ऋषि’ कहतीं, तो मेरा दिल बल्लियों उछल जाता.
मेरे मन और शरीर में जो ज्वर ज्योति ने भरा था, न तो वह उतरा था और न ही गुंजा और उस की मां का दिया हुआ दंश कम हुआ था, बल्कि यों कहें तो और उफन उठा था.