मैं लोगों के सामने अपनी बात रखने में घबरा जाता हूं और मेरे पसीने छूटने लगते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं एक गरीब घर का होनहार लड़का हूं और पढ़ाई में भी अच्छा हूं. मेरी दिक्कत यह है कि मैं लोगों के सामने अपनी बात रखने में घबरा जाता हूं. मेरे पसीने छूटने लगते हैं. अभी मेरी उम्र 17 साल है. मुझे लगता है कि आगे यह समस्या मुझे और भी दुखी करेगी. कोई उपाय बताएं?

जवाब-

आप खुद को होनहार होने का सर्टिफिकेट जिस बिना पर दे रहे हैं, वही यह बात है जो आप दूसरों के सामने अपनी बात रखने में घबरा जाते हैं, लेकिन यह कोई बड़ी समस्या नहीं है. आप लोगों में उठेंबैठें और धीरेधीरे अपनी बात सामने रखें.

दरअसल, आप में आत्मविश्वास की कमी है और गरीब होना इस की वजह हो सकती है, पर ध्यान रखें, गरीब होने का बोलने से कोई लेनादेना नहीं है.

आगे यह समस्या परेशान करेगी, आप का यह अंदाजा सही है, इसलिए अभी से इसे काबू करें. स्कूल के प्रोग्रामों में हिस्सा लें और मंच से बोलना सीखें. एकाध बार दिक्कत होगी, पर जब आत्मविश्वास आ जाएगा, तब यह समस्या दूर हो जाएगी.

कुंआरा बाप बन कर मैं बहुत खुश था

आज मैं खुश था. हाथ में 4,800 रूपए थे जिसे मैं अपनी पहली कमाई मान रहा था. मन ही मन खुश था पर अपनी इस खुशी को किसी से शेयर न करना मेरी मजबूरी थी, क्योंकि मैं एक स्पर्म डोनर था. अगर दोस्तों से कहता तो वे मेरा मजाक उड़ाते यह तय था.

खैर, उस पैसे से मैं ने अपने लिए कपडे खरीदे और वापस कमरे पर लौट आया. अगले महीने इंजीनियरिंग का ऐंट्रैस भी था जिस के लिए मैं पूरी लगन से मेहनत कर रहा था.

अब अगले 72 घंटे तक मुझे इंतजार करना था क्योंकि लैब के स्टाफ ने बताया था कि एक बार के बाद अगले 72 घंटे बाद ही आना है

पहले थोडी परेशानी हुई मगर…

इस काम में मुझे मजा भी आने लगा था क्योंकि  हस्तमैथुन करना मैं छोड चुका था और मुझे लगने लगा था कि यह शरीर के एक महत्वपूर्ण चीज की बरबादी है.

अब 72 घंटे के इंतजार के बाद मुझे लैब जाना था और इस में मुझे कोई परेशानी भी नहीं होती थी क्योंकि स्पर्म बैंक मेरे होस्टल से ज्यादा दूर नहीं था.

सप्ताह में मैं 2 दिन जाता था और महीने में 8 बार तो हो ही आता था. इस लिहाज से मुझे 4-5 हजार की आमदनी महीने में हो जाती थी जिसे मैं यों ही बरबाद कर देता था.

किसी के सपने पूरे करने में अलग ही खुशी मिलती गई

वैसे, जब एक दोस्त ने मुझे यह सब करने की सलाह दी तो मुझे बडा अजीब सा लगा. मगर दिल को यह सुकून था कि मेरे स्पर्म से एक मां की सूनी गोद भर जाएगी. और फिर यह कोई गलत काम भी तो नहीं था.

लैब में पहली बार गया तो वहां के स्टाफ ने एक जारनुमा चीज दे कर वाशरूम की तरफ इशारा कर दिया. वह पुरूषों का वाशरूम था जहां 2-3 केबिन बने थे. वाशरूम साफसुथरा था और हैंडवाश की सुविधा थी. एक तरफ साफ तौलिया टंगा था.

मुझे पहली बार देर हो रही थी. स्पर्म को वहीं एक दराजनुमा अलमारी में रख कर और उस पर अपना कोड लिख कर मैं बाहर आया, रजिस्टर में नाम लिखवा कर मैं दोस्त के साथ निकल गया. दोस्त ने मजाकमजाक में कह भी दिया,”तुम तो बहुत देर लगाते हो…”

मैं झेंप सा गया था. पहली बार आया तो इस के लिए मुझे एक स्लिप भरनी पङी. कुछ टेस्ट के लिए ब्लड का सैंपल लिया गया. मेरी शारीरिक जांच हुई और ब्लड शुगर, एचआईवी आदि को देखा गया कि कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं है.

यह कोई गलत काम नहीं था

काउंटर से एक बार के 600 रूपए मिले थे तो मुझे थोडा अजीब सा लगा था, क्योंकि आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘विक्की डोनर’ मैं ने देखी थी जिस में वह स्पर्म डोनेट कर अमीर बन गया था पर मैं कोई आयुष्मान खुराना तो था नहीं. जो पैसे मिले वे अतिरिक्त पौकेट खर्च में मेरे काम आ रहे थे और मैं थोडी मस्ती भी कर पा रहा था.

इतने दिनों में मैं यही अच्छी तरह जान गया था कि यह कोई गलत काम नहीं है बल्कि किसी दंपति के पुरूष साथी में प्रजनन की समस्याओं के कारण अथवा किसी महिला का कोई पुरूष साथी नहीं होने के कारण उन्हें डोनेट किए गए स्पर्म की आवश्यकता हो सकती है.

एक सकारात्मक कार्य है

स्पर्म डोनेट यानी वीर्य दान एक सकारात्मक कार्य है जो कई ऐसी जोङियों को संतानसुख देता है जिस के घर में सालों से बच्चों की किलकारियां न गूंजी हों. इसलिए मैं एक ऐसा काम कर रहा था जिस से दूसरे लोगों की परिवार बनाने की उम्मीदें पूरी हो सकें.

आज मैं एक इंजीनियर हूं. मेरे अपने परिवार और एक प्यारी सी बेटी के साथ मैं बहुत खुश हूं.

कभीकभी सोचता हूं कि जो युवा हस्तमैथुन कर अपना वीर्य बरबाद कर देते हैं उन्हें स्पर्म डोनर्स क्यों नहीं बन जाना चाहिए?

जब पत्नी को पता चला

एक दिन मैं ने अपनी बीवी से अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताया तो वह भी बिना मुसकराए नहीं रह सकी. कभीकभी वह मुझे इस बात के लिए छेङती है तो हम दोनों ही खूब खुल कर हंसते हैं और एकदूसरे के गले लग जाते हैं.

सेक्स के बजाए ये बातें पुरुषों को ज्यादा रिझाती हैं

हमारे समाज में सेक्स को ले के एक अलग धारण बनी हुई है. सेक्स को ले कर पर्दा और हिचक ही कारण है कि लोगों में इसका पूरा ज्ञान नहीं है. हाल ही में एक शोध में ऐसी बात सामने आई है जो सेक्स को ले कर एक और मिथक को तोड़ती है.

ये बात आम है कि पुरुषों में सेक्स को ले कर ज्यादा उत्साह और जिज्ञासा होती है. एक हद तक इसे सही भी कहा जा सकता है, पर हाल में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि पुरुषों को सेक्स से ज्यादा प्यार से गले लगाने और किस में दिलचस्पी होती है. लड़के चाहते हैं कि उनका पार्टनर उन्हें प्यार से गले लगाए और किस करे. लम्बे समय तक चलने वाले रिश्तों पर किये एक अध्ययन में यह बात सामने आयी कि पुरुषों की खुशी और यौन संतुष्टि के लिए शारीरिक अंतरंगता होना बहुत जरूरी है.

इस शोध में शोधकर्ताओं ने जोड़ों के आपसी प्यार और अंतरंग संबंधों पर शोध किए. उसके बाद उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश की कि यह सब उनकी खुशी और शारीरिक संतुष्टि को कैसे प्रभावित करती है. शोध में पाया गया कि जिन पुरुषों को उनकी महिला साथी बार बार किस करती हैं, गले लगती हैं और सेक्स के दौरान उनके साथ प्यार भरी छेड़छाड़ करती हैं, वे उन पुरुषों की तुलना में दोगुने खुश रहते हैं, जिन पुरुषों की पार्टनर उनके साथ ऐसे शारीरिक स्नेह नहीं जताती हैं.

कई रोगों कों आमंत्रण देती है उत्तेजक गोली

कई साइड इफेक्ट के बाद भी खुश की कशमकश के लिए इन गोलियों का उपयोग तेजी से हो रहा है . यहाँ बात हो रही है यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली छोटी-सी उत्तेजक गोली (वियाग्रा) की. वर्त्तमान समय से बारह साल पहले 27 मार्च 2001 को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इन गोलियों को बाजार में बिक्री की इजाजत दी थी.

तब किसी ने नही सोचा था कि ये दवाए आगे चलाकर नुकशानदायक होगी. उस समय इन गोलियों को क्रांतिकारी माना गया था, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति साफ होती गई. क्रांतिकारी माने जाने वाला दवा लोगो के लिए नुकशान दायक सिद्ध होने लगा, समय रहते ही इसके नुकसान को गंभीरता से लिया जाने लगा और अब पुरे विश्व भर में छोटी-सी उत्तेजक गोली पर खुल कर चर्चा हो रही है. तों आईये नजदीक से जानते है,छोटी-सी उत्तेजक गोली के बारे में….

* गोलियों के माध्यम से खुश करने की कशमकश :- समय के साथ समाज में बहुत बदलाव आया है, आज के समय में सिर्फ उम्र दराज लोग ही पुंसत्ववर्धक दवाएँ नहीं ले रहे हैं, बल्कि युवा भी बिस्तर पर अपने हमसाथी की माँग पूरी करने के लिए उत्तेजक दवाओ का सहारा लेने लगे हैं. एक अनुमान के अनुसार हर रोज उत्तेजक दवाओ का इस्तेमाल करने वालो की संख्या दुगुने गति से बढ़ रहा, यानि दिन -प्रतिदिन इन दवाओ की मांग बढ़ रही है. कई जानकारों का कहना है कि कई लोग औनलाइन उत्तेजक दवायों (वियाग्रा) कों खरीदकर अवैध दवाओं के धंधे को बढ़ावा दे रहे हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार आज की महिलाएं अश्लीलता से भरपूर विदेशी धारावाहिकों (सेक्स और सिटी जैसे धारावाहिकों से) में महिलाओं की भूमिका से प्रेरणा ले रही हैं और अपने यौन इ‘छाओं का खुलकर इजहार कर रही हैं तथा बिस्तर पर अपने पुरुष साथियों से ’यादा क्षमता और सोच की माँग करने लगी हैं. परिणामस्वरूप 18 से 40 साल के बीच के लोग धीरे-धीरे दुर्बलता महसूस करने लगे हैं. इन आधुनिक महिलाओं के कारण मर्द अपने आप में नपुंसकता महसूस कर सकते हैं, फलस्वरूप उत्तेजक दवा का सहारा लेकर अपने साथी कों खुश करने कि कोशिश करना शुरू कर देते है. शुरुयात में यह सब एक कोशिश होता है, लेकिन धीरे-धीरे ये दवाए पुरुषो की आदत बन जाती है. इस तरह शुरू होता है, रोजाना उत्तेजक गोलियों के माध्यम से साथी कों खुश करने की कशमकश.

* साइड इफेक्ट्स :- उत्तेजक दवायो का उपयोग लोग यौन शक्ति बढ़ाने के लिए होती है, लेकिन लगातार उपयोग करने की दशा में लोग अपना यौन शक्ति तों खोते ही है, साथ-साथ कई बीमारियों कों आमंत्रित करते है. कुछ नए शोधों से तो यहां तक पता चला है कि कामोत्तेजना बढ़ाने वाली दवाओ के प्रभाव से कानों की सुनने की क्षमता भी खत्म हो जाती है. शोध से यह भी साबित हुआ है कि उत्तेजक गोली (वियाग्रा) से वीर्य पर भी असर पड़ता है और निषेचन की क्षमता घटती है, यानि बच्चा पैदा करने की पुरुषों की क्षमता घटाती है. जानकारों का मानना है कि इसके साइड इफेक्ट्स काफी हद तक बढ़ गई है,

सिर में दर्द और चेहरे पर लाल दाने उभर जाना सबसे आम है. इसके अलावा कई लोगों में नाक में खून जमना, छींक आना, अपच, पीठ में दर्द, दिल की धडक़न बढऩा और रोशनी से डर लगना जैसे लक्षण भी नजर आते हैं. यही नही यौन क्षमता बढ़ाने वाली दवाओं का जो सबसे खतरनाक दुष्प्रभाव है, कि वह धमनियों में फैलाव ला देती है. जिसके फलस्वरूप निम्न रक्तचाप, लिंग में दर्द, दिल का दौरा, आंखों की रोशनी कमना और कई बार तो अंधेपन जैसी समस्या सामने आ जाती है.

* क्या कहते है विशेषज्ञ :- शारीरिक संबंध (सेक्स) शरीर का मिलन भर नही है, बल्कि दो लोगो का अन्दुरुनी प्रेम सम्बन्ध है, विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तेजक दवाo से काफी हद तक दुरिया बनाई रखनी चाहिए. कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि छणिक सुख के लिए दूरगामी बीमारियों का न्यौता ना दे, जहाँ तक हो सके इन दवाओ के सेवन से बचे.

डाक्टरों का कहना है कि उत्तेजक दवा आपको आपके साथी से दुरिया बनाने में अहम रोल अदा करता है. इस बात कों बहुत लोग मानाने कों तैयार नही है, लेकिन यह सच है कि इन दवाओ का सेवन शुरुयात में आपके जीवन में मीठा रस घोलता है, फिर नीम से कड़ा कड़वाहाट आपके संबंध में आ जाता है. शारीरिक संबंध (सेक्स) के संबंधित मामलो पर 20 साल से काम करने वाले डाँ विनीत बताते है कि इन दवाओ का उपयोग नपुंसक लोगो के लिए कारगर है, जबकि सामान्य लोगो के लिए बेहद खतरनाक जहाँ तक हो सके इन दवाo के सेवन से बचना चाहिए. क्यों कि पिछले दो सालो में नवयुवको का छुकाव इन दवाओ के तरफ तेजी बढा है, जो बेहद खतरनाक है.

* क्या कहता है कानून :- उत्तेजक दवाओ के बिक्री के संबंध में कई कड़े कानून ना होने के कारण हमारे देश में इन दवाओ के नाम पर लूट जोरो से हो रही है. कुछ अंग्रेजी उत्तेजक दवा भी समान्य दवा विक्री कानून के अंदर आते है. एक अनुमान के अनुसार नीम-हाकिम के द्वारा दिए जाने वाले उत्तेजक दवाओ कों लोग कभी कारगर मन कर बड़े पैमाने पर उसका उपयोग कर रहे है. ऐसे कई नीम- हकीम है, जो चोरी छुपे उत्तेजक दवाओ के नाम पर कुछ भी बेच रहे है. इस तरह के मामले प्रकाश में नही आ पाते है, क्यों कि पीडि़त लोग शर्म के मारे समाज में इनके विरोध कुछ बोल नही पाता है. जिससे कई मामलों का सच सामने आता ही नही है और नित्य इन गोलियों के माध्यम से कानून के आँखों में धुल झोका जा रहा है.

मेरी बेटी टीचिंग का कोर्स करना चाहती है, मेरे पति उस पर भी डाक्टर बनने का दबाव डाल रहे हैं.

सवाल-

मेरी बेटी 12वीं के बाद टीचिंग का कोर्स करना चाहती है. लेकिन मेरे पति खुद डाक्टर होने के कारण उस पर भी डाक्टर बनने का दबाव डाल रहे हैं. वह तनाव में है और किसी से भी बात नहीं कर रही. मैं अपनी बेटी को ऐसी स्थिति में नहीं देख सकती?

जवाब-

आजकल मातापिता बच्चों पर जरूरत से ज्यादा कैरियर बनाने का दबाव बना रहे हैं. इस कारण वे तनावग्रस्त हो कर आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने में भी देर नहीं लगाते. बच्चों को वही करने दें जिस में उन की रुचि हो, न कि पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे प्रोफैशन को उन पर थोपें. वैसे शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत प्रतियोगिता है और अच्छी नौकरी मिलनी मुश्किल है. अभी बेटी छोटी है और डाक्टरी की पढ़ाई से भयभीत है, उसे समझाना जरूरी है.

सेक्स फैंटेसी को लेकर लोगों की बदलती सोच, पढ़ें खबर

सेक्स को ले कर महिलाओं पर रूढिवादी सोच हमेशा हावी रही है. लेकिन अब समय के साथ यह टूटने लगी है. अब पुरुषों की ही तरह महिलाएं भी सेक्स को पूरी तरह ऐंजौय करना चाहती हैं. इसे ले कर उन के मन में कई तरह के सपने भी होते हैं. अब ये बातें भी पुरानी हो गई हैं कि कौमार्य पति की धरोहर है. अब शादी के पहले ही नहीं शादी के बाद भी सेक्स की वर्जनाएं टूटने लगी हैं. शादी के बाद पतिपत्नी खुद भी ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं जहां वे खुल कर अपनी हसरतें पूरी कर सकें.

परेशानियों से बचाव

सेक्स के बाद आने वाली परेशानियों से बचाव के लिए भी महिलाएं तैयार रहती हैं. प्लास्टिक सर्जन डाक्टर रिचा सिंह बताती हैं, ‘‘शादी से कुछ समय पहले लड़कियां हमारे पास आती हैं, तो उन का एक ही सवाल होता है कि उन्होंने शादी के पहले सेक्स किया है.

इस बात का पता उन के होने वाले पति को न चले, इस के लिए वे क्या करें? लड़कियों को जब इस बारे में सही राय दी जाती है तो भी वे मौका लगते ही सेक्स को ऐंजौय करने से नहीं चूकतीं. शादी के कई साल बाद महिलाएं हमारे पास इस इच्छा से आती हैं कि वे शारीरिक रूप से कुंआरी सी हो जाएं.’’

विदेशों में तो सेक्स को ले कर तमाम तरह के सर्वे होते रहते हैं पर अपने देश में ऐसे सर्वे कम ही होते हैं. कई बार ऐसे सैंपल सर्वों में महिलाएं अपने मन की पूरी बात सामने रखती हैं. इस से पता चलता है कि सेक्स को ले कर उन में नई सोच जन्म ले रही है. डाक्टर रिचा कहती हैं कि शादी से पहले आई एक लड़की की समस्या को एक बार सुलझाया गया तो कुछ दिनों बाद वह दोबारा आ गई और बोली कि मैडम एक बार फिर गलती हो गई.

सेक्स रोगों की डाक्टर प्रभा राय बताती हैं कि हमारे पास ऐसी कई महिलाएं आती हैं, जो जानना चाहती हैं कि इमरजैंसी पिल्स को कितनी बार खाया जा सकता है. कई महिलाएं तो बिना डाक्टर की सलाह के इस तरह की गोलियों का प्रयोग करती हैं. कुछ महिलाएं तो गर्भ ठहर जाने के बाद खुद ही मैडिकल स्टोर से गर्भपात की दवा ले कर खा लेती हैं. मैडिकल स्टोर वालों से बात करने पर पता चलता है कि बिना डाक्टर की सलाह के इस तरह की दवा का प्रयोग करने वाले पतिपत्नी नहीं होते हैं.

बदल रही सोच

सेक्स अब ऐंजौय का तरीका बन गया है. शादीशुदा जोड़े भी खुद को अलगअलग तरह की सेक्स क्रियाओं के साथ जोड़ना चाहते हैं. इंटरनैट के जरीए सेक्स की फैंटेसीज अब चुपचाप बैडरूम तक पहुंच गई है, जहां केवल दूसरे मर्दों के साथ ही नहीं पतिपत्नी भी आपस में तमाम तरह की सेक्स फैंटेसीज करने का प्रयास करते हैं.

इंटरनैट के जरीए सेक्स की हसरतें चुपचाप पूरी होती रहती हैं. सोशल मीडिया ग्रुप फेसबुक और व्हाट्सऐप इस में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. फेसबुक पर महिलाएं और पुरुष दोनों ही अपने निक नेम से फेसबुक अकाउंट खोलते हैं और मनचाही चैटिंग करते हैं. इस में कई बार महिलाएं अपना नाम पुरुषों का रखती हैं ताकि उन की पहचान न हो सके. वे चैटिंग करते समय इस बात का खास खयाल रखती हैं कि उन की सचाई किसी को पता न चल सके. यह बातचीत चैटिंग तक ही सीमित रहती है. बोर होने पर फ्रैंड को अनफ्रैंड कर नए फ्रैंड को जोड़ने का विकल्प हमेशा खुला रहता है.

इस तरह की सेक्स चैटिंग बिना किसी दबाव के होती है. ऐसी ही एक सेक्स चैटिंग से जुड़ी महिला ने बातचीत में बताया कि वह दिन में खाली रहती है. पहले बोर होती रहती थी. जब से फेसबुक के जरीए सेक्स की बातचीत शुरू की है तब से वह बहुत अच्छा महसूस करने लगी है. वह इस बातचीत के बाद खुद को सेक्स के लिए बहुत सहज अनुभव करती है. पत्रिकाओं में आने वाली सेक्स समस्याओं में इस तरह के बहुत सारे सवाल आते हैं, जिन्हें देख कर लगता है कि सेक्स की फैंटेसी अब फैंटेसी भी नहीं रह गई है. इसे लोग अपने जीवन का अंग बनाने लगे हैं.

तरहतरह के लोग

फेसबुक को देखने, पसंद करने और चैटिंग करने वालों में हर वर्ग के लोग हैं. ज्यादातर लोग गलत जानकारी देते हैं. व्यक्तिगत जानकारी देना पसंद नहीं करते. छिबरामऊ की नेहा पाल की उम्र 20 साल है. वह पढ़ती है. वह लड़के और लड़कियों दोनों से दोस्ती करना चाहती है. 32 साल की गीता दिल्ली में रहती है. वह नौकरी करती है.

उस की किसी लड़के के साथ रिलेशनशिप है. वह केवल लड़कियों से सैक्सी चैटिंग पसंद करती है. उस की सब से अच्छी दोस्त रीथा रमेश है, जो केरल की रहने वाली है. वह दुबई में अपने पति के साथ रहती है. अपने पति के साथ शारीरिक संबंधों पर वह खुल कर गीता से बात करती है.

ऐसे ही तमाम नामों की लंबी लिस्ट है. इन में से कुछ लड़कियां अपने को खुल कर लैस्बियन मानती हैं और लड़कियों से दोस्ती और सैक्सी बातों की चैटिंग करती हैं. कुछ गृहिणियां भी इस में शामिल हैं, जो अपने खाली समय में चैटिंग कर के मन को बहलाती हैं. कुछ लड़केलड़कियां और मर्द व औरतें भी आपस में सैक्सी बातें और चैटिंग करते हैं.

कई लड़केलड़कियां तो अपने मनपसंद फोटो भी एकदूसरे को भेजते हैं. फेसबुक एकजैसी रुचियां रखने वाले लोगों को आपस में दोस्त बनाने का काम भी करता है. एक दोस्त दूसरे दोस्त को अपनी फ्रैंडशिप रिक्वैस्ट भेजता है. इस के बाद दूसरी ओर से फ्रैंडशिप कन्फर्म होते ही चैटिंग का यह खेल शुरू हो जाता है. हर कोई अपनीअपनी पसंद के अनुसार चैटिंग करता है.

कुछ लड़कियां तो ऐसी चैटिंग करने के लिए पैसे तक वसूलने लगी हैं. वाराणसी के रहने वाले राजेश सिंह कहते हैं, ‘‘मुझ से चैटिंग करते समय एक लड़की ने अपना फोन नंबर दिया और कहा इस में क्व500 का रिचार्ज करा दो. मैं ने नहीं किया तो उस ने सैक्सी चैटिंग करना बंद कर दिया.’’

इसी तरह से लखनऊ के रहने वाले रामनाथ बताते हैं, ‘‘मेरी फ्रैंडलिस्ट में 4-5 लड़कियों का एक ग्रुप है, जो मुझे अपने सैक्सी फोटो भेजती हैं. मेरे फोटो देखना भी वे पसंद करती हैं. कभीकभी मैं उन का नैटपैक रिचार्ज करा देता हूं. इन से बात कर मैं बहुत राहत महसूस करता हूं. मुझे यह अच्छा लगता है, इसलिए मैं कुछ रुपए खर्च करने को भी तैयार रहता हूं.’’ फेसबुक के अलावा अब व्हाट्सऐप पर भी इस तरह की चैटिंग होने लगी है.

कंडोम के बारे में क्या आप ये बातें जानते हैं

16वीं शताब्दी में यूरोप में लिनेन के बने कंडोम का इस्तेमाल शुरू हुआ. धीरे-धीरे दो शताब्दियां बीतते-बीतते कंडोम जानवरों की खाल से बनाए जाने लगे. पर उस तरह के कंडोम न तो पूरी तरह फिट रहते होंगे और न ही आधुनिक कंडोम्स की तरह सुविधाजनक.

फिर भी पुरुष और कभी-कभी महिलाएं कंडोम को जोश और मूड औफ करनेवाला मानते हैं. सेक्सोलौजिस्ट व काउंसलर डा. हितेन शाह कहते हैं कि यह एक मिथक है. ‘‘यदि आप अपनी सेक्शुएलिटी के लिए आत्मविश्वास से भरे हैं तो कोई भी चीt मूड को समाप्त नहीं कर सकती.’’

आजकल बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाले कई तरह के कंडोम उपलब्ध हैं, बहुत ही मुलायम से लेकर वाइब्रेटिंग तक, जो अपनी उपस्थिति का पूरा एहसास कराते हैं. अलग-अलग आकार और नाप के कंडोम भी उपलब्ध हैं. पहले अवरोध की तरह समझे जानेवाले कंडोम्स को अब यौनसुख को बढ़ाने का माध्यम समझा जाने लगा है. डा. शाह कहते हैं,‘‘इतने तरह-तरह के कंडोम्स में से अपने लिए उपयुक्त कंडोम की तलाश भी खुद में एक खूबसूरत अनुभव हो सकता है.’’

सही आकार का कंडोम न चुनने और उसे सही तरीके से न पहनने की वजह से ही अक्सर कंडोम मजा खराब करनेवाला बन जाता है. हर पुरुष को संवेदनशीलता और आकार के अनुसार अलग तरह के कंडोम की आवश्यकता होती है, जैसे-रिब्ड कंडोम कुछ दंपतियों को आनंददायक लगते हैं तो कुछ को अपनी त्वचा पर चुभते हुए. महत्वपूर्ण ये है कि आप अलग-अलग तरह के कंडोम्स का इस्तेमाल कर अपने और अपने साथी के लिए उपयुक्त कंडोम चुनें.

पर सच तो ये है कि कंडोम जोश और उत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं. इनकी वजह से आप चिंतामुक्त रहते हैं और इसका ल्युब्रिकेंट (चिकनाई) सेक्स के अनुभव को सहज बनाता है. वहीं डा. शाह कहते हैं,‘‘कंडोम पहनने में जो वक्त लगता है, यकीनन वो आपके फोरप्ले का समय और साथ ही आनंद को भी बढ़ाता है.’’

क्या आपको पता है, सेक्स के ये हेल्थ बेनिफिट

कश्वी, 27, लॉन्ग-डिस्टेंस रिलेशनशिप में हैं. कश्वी को पुणे में रह रहे अपने बौयफ्रेंड से मिलने का मौका हर वीकऐंड तो नहीं मिलता, लेकिन जब भी वह उससे मिलने पुणे जाती हैं, उसके बाद वाले दिनों में वह खुद को ज्यादा प्रोडक्टिव और खुश पाती हैं. क्या यह उनके साथ बिताए गए अच्छे समय की वजह से होता है? “बिल्कुल यही वजह है,” उसका कहना है,“लेकिन इसकी वजह सेक्स भी है. यह इतना सुकूनदेह है कि मैं बिना किसी ग्लानि के कह सकती हूं कि मुझे इसकी जरूरत है.”

प्लास वन में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि दो सप्ताह तक प्रतिदिन इंटरकोर्स करने पर हिप्पोकैम्पस में सेल का विकास बढ़ जाता है. यह दिमाग का वह हिस्सा है, जो तनाव को नियंत्रण में रखता है. अतः आप जब किसी दोस्त को तनाव में या बौस को चिड़चिड़ा व्यवहार करते हुए देख मजाक में कहती हैं कि इन्हें एक मदभरी रात की जरूरत है तो असल में आप बिल्कुल सही कह रही होती हैं.

कितना सुकूनदेह है

“अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रोफेशनल और निजी समस्याओं का सामना करते-करते चिड़चिड़ापन और थकावट होना लाजमी है,” कहती हैं कश्वी. वे आगे कहती हैं,“मेरा बौयफ्रेंड शौन* और मैं या तो एक-दूसरे पर गुस्सा उतार सकते हैं या फिर सेहतमंद ढंग से इसे निपटा सकते हैं, जो कि हम करते हैं. और इसके बाद मुझे एहसास होता है कि सारी चीजों पर मेरा नियंत्रण है.”

केईएम हौस्पिटल व सेठ गोवर्धनदास सुंदरदास मेडिकल कौलेज, मुंबई के सेक्शुअल डिपार्टमेंट के हेड व चर्चित सेक्सोलौजिस्ट डौक्टर प्रकाश कोठारी के अनुसार, “नियमित रूप से इंटरकोर्स करने से सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर और कौर्टिसोल (वह हार्मोन जो आमतौर पर तनाव बढ़ने पर रिलीज़ होता है) का स्तर कम होता है. जो लोग ज्यादा सेक्स करते हैं वे चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय कम तनाव में आते हैं.”

सही तरीके से करना

“सेक्स पुरुष और महिला के लिए अलग-अलग ढंग से काम करता है,” कहते हैं डॉ कोठारी. “अक्सर पुरुष यह समझ ही नहीं पाते कि पार्टनर को तृप्ति मिली भी है या नहीं, वहीं ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत ज़्यादा है, जो ऑर्गैज़्म को पहचान ही नहीं पातीं. यह निराशा को जन्म देता है.” वे आगे जोड़ते हैं, “इसे करने का एक सेहतमंद रास्ता यह है कि इंटरकोर्स से पहले, उस वक्त या उसके बाद बातचीत करते रहना. सेक्स या किसी अन्य प्रकार का स्पर्श जैसे चुंबन या दुलार करने से ऑक्सिटोसिन यानी ‘प्यार का हार्मोन’ रिलीज होता है. यही है जो आपको सेक्स के तुरंत बाद लिपटने के लिए उत्सुक करता है,” कहते हैं डॉ कोठारी.

कश्वी और शौन दोनों एक-दूसरे को बताते हैं कि दरअसल, क्या चाहिएः गंदी बातों से लेकर ढेर सारे दुलार तक. “यदि आप फीडबैक दें या स्वीकार नहीं कर सकते तो आपको ऐक्ट के समय बहुत सतर्क रहना होगा,” कहती हैं वे.

रिलैक्स महसूस करें

हालांकि एक तनावभरे दिन के बाद सेक्स के बजाय टीवी देखते हुए या सोते हुए समय बिताना ज्यादा महत्वपूर्ण लग सकता है, पर दरअसल सेक्स आपको ज्यादा सुकून देगा. रात को समय न हो तो सुबह या लंच के समय सेक्स करें, इससे आप अपने दिन को और अच्छी तरह बिता सकती हैं और यहां तक कि आपको रात में गहरी नींद भी आएगी. “जब महिला ऑर्गैज़्म पाती है तो उनका शरीर प्रोलैक्टिन हार्मोन रिलीज़ करता है, जो उन्हें रिलैक्स करता है और नींद लाने में सहायक होता है,” कहते हैं डॉ कोठारी.

लेकिन ऐसे दिनों में जब आप बहुत ही थकी हुई हों तो अपने थके हुए दिमाग और शरीर को आप कैसे मनाएंगी? शौन और कश्वी रिलैक्सिंग रिचुअल्स जैसे एक साथ नहाना या फिर मसाज करते हुए सेक्स की ओर बढ़ने की कोशिश करते हैं.

इस स्तन के आकार की महिलाएं हैं ज्यादा आकर्षक

महिलाओं के वक्ष को ले कर पुरूषों में बेहद कामुकता देखी जाती है. वक्ष को ले कर उनकी धारणाएं, सोच, ख्याल सब बहुत अनोखे और अति होते हैं. यही कारण रहा कि पुरूषों को किस तरह के स्तन पसंद है इस बात को ले कर कई शोध किए जा चुके हैं पर अब तक किसी खास नतीजे पर पहुंचना संभव ना हो सका.

महिलाओं के वक्ष हर तरह के होते हैं. कुछ डील-डौल, कुछ बड़े, छोटे, चुस्त और ढीले भी हो सकते हैं और कई बार तो ये भी होता है कि दोनों स्तन समान आकार के ना हों. ज्यादातर पुरूषों में बड़े स्तन वाली महिलाओं के प्रति आकर्षण होता है, इसका मनोवैज्ञानिक कारण ये सामने आया कि पुरुषों को लगता है कि बड़े स्तन वाली महिलाएं दुसरों से तुलनात्मक रूप से ज्यादा उर्वर होती हैं.

इस मामले पर विश्व भर के कई शोधकर्ताओं ने शोध किया है. इसमें ब्राज़ील, कैमरून, चेक गणराज्य और नामीबिया के 250 ऐसे पुरुषों को ढूंढा गया जो महिलाओं के स्तनों की तसवीरें देखकर उनका आकलन करने को तैयार थे. उन्हें विभिन्न प्रकार के स्तनों की तसवीरें दिखाई गयी और उन्हें उनकी सुंदरता के आधार पर अंक देने को कहा गया. जिसमें ये बात सामने आई कि अधिकतर पुरुषों में मध्यम आकार के स्तन को ले कर ज्यादा आकर्षण दिखा. इसके अलावा पुरुषों के पसंद के पीछे उनके भागौलिक संबंध का भी असर दिखा. चेक गणराज्य को छोड़ दें तो बाकी देशो में हर पांच में से एक पुरुष को छोटे स्तन अच्छे लगते थे. विश्व के अलग हिस्सों में हुए कई और अध्ययनों से भी यही बात सामने आई है कि पुरुषों को सभी तरह के स्तन पसंद आते हैं.

जागरूकता लाते फिल्मों के कंडोम सीन

इस फिल्म का हीरो एक दफ्तर में क्लर्क था जिस की शादी तय हो जाती है तो वह सेक्स की जानकारियों के लिए कामसूत्र जैसी किताबें पढ़ने लगता है.

फिल्म ‘अनुभव’ का वह सीन बड़े दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है जिस में हीरो निरोध खरीदने दुकान पर जाता है, तो बेहद घबराया हुआ रहता है और रास्तेभर इस बात की प्रैक्टिस करता हुआ जाता है कि दुकानदार से निरोध मांगना कैसे है.

इस फिल्म की हीरोइन पद्मिनी कोल्हापुरे सयानी हो जाने के बाद भी बच्चों की तरह शरारत करती खेलती रहती है. वह शादी और सैक्स का मतलब ही नहीं समझती है.

फिल्म का एक और सीन दर्शकों को खूब हंसा गया जिस में पद्मिनी कोल्हापुरे अपने छोटे भाई के साथ मिल कर शेखर सुमन के सूटकेस से निरोध निकाल कर उन्हें गुब्बारों की तरह फुला कर आंगन में टांग देती है.

ऐसे आती है जागरूकता

इस एक फिल्म के कुछ सीन देख कर नौजवानों में कंडोम को ले कर न केवल जागरूकता आई थी, बल्कि वे छोटे परिवार की अहमियत भी समझने लगे थे. उस दौर में सरकार ने छोटे परिवार, परिवार नियोजन और निरोध का जम कर प्रचार किया था लेकिन उसे उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली थी.

कंडोम बनाने वाली प्राइवेट कंपनियां जब मैदान में आईं तो उन्होंने सब से पहले प्रचार करने का तरीका बदला और तरह-तरह के लुभावने कंडोल बनाना शुरू किए, तो देखते ही देखते कंडोम के बाजार और कारोबार ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि अब लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं रह गई है कि कंडोम से आप न केवल परिवार छोटा रख सकते हैं, बल्कि कई सैक्स रोगों से भी खुद को बचा कर रख सकते हैं.

लेकिन अभी भी गांवदेहात में रूढि़यों और लापरवाही के चलते कंडोम के प्रचार प्रसार की जरूरत है.

जरूरत तो इस बात की भी है कि कंडोम छोटी से छोटी जगह पर आसानी से मिले और  सरकार व कंपनियां मिल कर इसे एक चैलेंज और मुहिम की शक्ल में लें.

कंडोम बनाने वाली कंपनियों ने लोगों को लुभाने के लिए तरहतरह के इश्तिहार बनाए और जब फिल्मी सितारों को भी अपना ब्रांड एंबैसेडर बनाना शुरू किया तो लोगों की झिझक भी कम होना शुरू हुई.

‘बिग बी’ को दिया कंडोम

हिंदी फिल्मों के ‘बिग बी’ अमिताभ बच्चन ने कभी कंडोम का इश्तिहार नहीं किया, लेकिन एक हिट फिल्म ऐसी भी थी जिस में उन्हें कंडोम थमाया गया था. यह फिल्म थी ‘सत्ते पे सत्ता’, जिस में अमिताभ नर्स बनी हेमामालिनी से इश्क कर बैठते हैं और उन से कोर्टमैरिज कर लेते हैं.

जब वे शादी के बाद रजिस्टर पर दस्तखत कर कुरसी से उठते हैं तो रजिस्ट्रार उन्हें बधाई देते हुए उन की हथेली पर कंडोम का पैकेट रख देता है.

इस छोटे से सीन में दर्शकों के लिए कई मैसेज छिपे थे, मसलन यह कि कंडोम का इस्तेमाल पहली रात यानी सुहागरात से ही कर देना चाहिए जिस से मियांबीवी दोनों सैक्स का लुत्फ बिना किसी डर और रुकावट के उठा सकें और पहले बच्चे के लिए जल्दबाजी न करें.

बिना कंडोम सैक्स नहीं

अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘पा’ एक अलग तरह की फिल्म थी जिस में उन का बेटा एक खतरनाक बीमारी प्रोगेरिया का शिकार रहता है और आम बच्चों की तरह नहीं रह पाता है और न ही जी पाता है. 13 साल के छोटे बच्चे का रोल अमिताभ बच्चन ने ही निभाया था.

इस फिल्म में विद्या बालन हीरोइन थी. प्रेमीप्रेमिका कभी भी बिना कंडोम के हमबिस्तरी नहीं करते थे, पर एक बार चूक हो गई. यह पहली फिल्म थी जिस में कंडोम न इस्तेमाल करने की वजह

से प्रेमीप्रेमिका अलग हुए क्योंकि प्रेमी विवाह को तब भी तैयार न हुआ, जब प्रेमिका पेट से हो गई.

देश की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है, कुछ अनुमान तो यह है कि शायद इस मामले में 2022-23 में चीन से भी फतेह मिल जाएगी, जबकि जरूरत इस बात की है कि हम आबादी के नहीं बल्कि टैक्नोलौजी और कारोबार के मामले में चीन को पछाड़ें. शायद इसीलिए प्रधानमंत्री भी देशवासियों को कम से कम बच्चे पैदा करने का मशवरा देने लगे हैं.

और भी हैं मिसालें

फिल्म ‘अनुभव’ के बाद ‘पीके’ ऐसी फिल्म थी जिस में कंडोम सीन को लंबा दिखाया गया था. इस फिल्म में आमिर खान हीरो थे और दूसरे गोला यानी ग्रह से आए थे जो आम लोगों की दुनिया के तौरतरीकों से वाकिफ नहीं था. फिल्म में धार्मिक अंधविश्वासों को ले कर जम कर हमला किया गया था.

एक सीन में दिखाया गया था कि आमिर खान एक न्यूज चैनल के दफ्तर में बैठे हुए कुछ सोच रहे हैं तभी उन्हें कंडोम का पैकेट गिरा हुआ दिखता है, तो वे हर किसी से पूछते फिरते हैं कि यह आप का है क्या?

इस कौमेडी पर दर्शकों को भले ही खूब हंसी आई हो, लेकिन उन्होंने पहली दफा किसी हिट फिल्म में कंडोम का इतना खुला प्रचार देखा था.

इसी तरह गोविंद मेनन के डायरैक्शन में बनी हिंदी फिल्म ‘ख्वाहिश’ में हीरोइन मल्लिका शेरावत को कंडोम खरीदते हुए दिखाया गया था. इस सीन की अपनी अलग अहमियत थी कि अब लड़कियां भी बिना किसी लिहाज के कंडोम खरीदने लगी हैं.

विशाल मिश्रा के डायरैक्शन में बनी फिल्म ‘मरुधर ऐक्सप्रैस’ में भी एक अच्छा कंडोम सीन है, लेकिन यह सब काफी नहीं है. अभी कंडोम को ले कर और अच्छी फिल्मों की जरूरत है जिस से ज्यादा से ज्यादा जागरूकता आए.

अगर सैनेटरी नैपकिन को ले कर जागरूकता फैलाती फिल्म ‘पैडमैन’ बन सकती है, तो कंडोम पर क्यों नहीं?

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