औरत बुरी नहीं होती : कहानी सत्यभामा की

25 साल की सत्यभामा सांवले रंग की थी. जब वह हंसती थी, तो सामने वाले को अपनी गिरफ्त में ले लेती थी. सत्यभामा नौकरी के सिलसिले में राजन से मिली थी. शुरू में तो राजन ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया था, पर जैसेजैसे वह अपने कामों के लिए राजन से बारबार मिलने लगी, वैसेवैसे वह उस पर असर डालती गई थी. धीरेधीरे वे दोनों पक्के दोस्त बन गए थे.

सत्यभामा की मासूमियत, गरीबी और बदहाली के चलते राजन हमेशा उस की मदद करने के लिए तैयार रहता था. एक दिन अचानक सत्यभामा अपने भाई और एक नौजवान के साथ राजन के यहां आई. पेशे से टीचर और बूआ का बेटा कह कर सत्यभामा ने उस नौजवान का परिचय राजन से करा दिया था. राजन ने उन सब के स्वागत में कोई कसर न छोड़ी थी, पर सत्यभामा का एकाएक रूखा बरताव उसे अटपटा लगा था.

रात के खाने के बाद राजन ने सत्यभामा के भाई और बूआ के बेटे को अपने ड्राइंगरूम में सुला दिया और खुद दूसरे कमरे में सोने चला गया. सर्दी लगने पर जब राजन कंबल लेने गया, तो खिड़की से ड्राइंगरूम का नजारा देख कर ठगा सा रह गया.

गहरी नींद में सोए सगे भाई की मौजूदगी में राजन को बूआ का बेटा और सत्यभामा बिस्तर पर एकदूसरे में लिपटे नजर आए थे. यह नजारा देख कर राजन दर्द से तिलमिला गया और उलटे पैर लौट गया.

सत्यभामा के जिस्मखोर होने का पहली बार एहसास उसे भीतर तक हिला गया. मगर सुबह उस ने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया.

राजन ने दोस्ती और मर्यादा का पालन किया, पर सत्यभामा तो किसी और ही मिट्टी की निकली. राजन समझ गया कि सत्यभामा ने उसे धोखे में रख कर महज अपना उल्लू सीधा किया था.

जाते समय सत्यभामा की चालाक आंखें राजन को पहचान चुकी थीं कि वह उसे रात को देख चुका है.

राजन ने सोच लिया कि जो लड़की जिस्मानी सुख के लिए रिश्तों को बदनाम कर सकती है, वह कभी किसी की सच्ची दोस्त नहीं हो सकती.

राजन सत्यभामा से किनारा करने का मन बनाने लगा, मगर जिसे सच्चे मन से दोस्त मान लिया हो, उसे एकदम छोड़ा भी तो नहीं जा सकता.

आखिरकार राजन ने कड़ा मन कर के अपनी ओर से सत्यभामा से कोई नाता न रखा. लेकिन न चाहते हुए भी उस ने सत्यभामा के बारे में जो जानकारी हासिल की थी, वह उस के दिल को   झक  झोरने वाली थी.

राजन सैलानी बन कर जिस होटल में रुका था, रात को वहां अपनी सहेली सुकांति के साथ सत्यभामा की मौजूदगी उस का कच्चाचिट्ठा खोलने के लिए काफी थी.

इस सब के बावजूद सत्यभामा ने राजन से बराबर मेलजोल बनाए रखा और उस से मिलने के लिए बारबार जिद करने लगी. न चाहते हुए भी एक दिन राजन ने उसे बुला ही लिया.

सत्यभामा जैसे ही राजन के घर पहुंची, वह अपनेआप को संभाल न पाया और उस पर बरस पड़ा, ‘‘दोस्त बन कर मेरी भावनाओं से खेलते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई. मेरा तो तुम से नफरत करने का मन करने लगा है.

‘‘जी चाहता है कि तुम्हें अभी पीट दूं. मुझे तुम से नफरत है. लानत है तुम पर, बेगैरत, बदजात…’’ राजन अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सका.

सत्यभामा चुपचाप राजन की बातें सुनती रही. जब राजन का गुस्सा कुछ कम हुआ, तो वह बोली, ‘‘आप के तरकश में अगर और भी जहर बुझे तीर बचे हों, तो वे भी चला लीजिए.

‘‘मैं आप को लंबे समय से जानती हूं. आप पहले शख्स हैं, जिस पर आंखें बंद कर के भरोसा किया जा सकता है.

‘‘मैं जानती हूं कि आप मेरी मर्दखोरी के एक पहलू से ही वाकिफ हैं. मैं चाहती हूं कि आप इस का दूसरा पहलू भी जानें.

‘‘मैं आप को दोष नहीं दूंगी, क्योंकि यह समाज हमेशा औरत को ही दोषी मान कर सजा देता रहा है.

‘‘राजन, लगता है कि आप भी मर्दों की ओछी सोच से पीडि़त हैं. बेशक, आप मुझ से नफरत करने लगें, लेकिन मैं आप को हमेशा इज्जत और दोस्ती के नजरिए से देखूंगी.’’

‘‘मैं भी दोस्ती का मतलब जानता हूं सत्यभामा. तुम ने यह भी नहीं सोचा कि तुम्हारी हमेशा मदद करने वाला यह दोस्त भी तुम्हारे बुरे कामों से बदनाम होगा,’’ राजन ने कड़वी आवाज में कहा.

‘‘मर्द के मन से ही तो मत सोचिए राजन, औरत के लिहाज से भी तो एक बार सोच कर देखिए.

‘‘मैं जिस बदहाल समाज में जीने को मजबूर बना दी गई हूं, क्या आप जानते हैं उस समाज की असलियत? आप लोग पहाड़ के समाज और उस के दर्द को कतई नहीं जानते.’’

‘‘क्या पहाड़ का समाज हमारे समाज से अलग है?’’

‘‘हां, राजन बाबू. भूतप्रेत, देवता, गुरुचेलों और तांत्रिकों की बातें आज भी वहां पत्थर की लकीर होती हैं. पटवारी, वनरक्षक से शिक्षक तक कई महकमों के ज्यादातर मुलाजिम औरतों का जिस्मानी और दिमागी शोषण करने में शामिल होते हैं.

‘‘मांस खाने, जुआ खेलने और नशा करने के शौकीन ये लोग सैक्स और शराब पीने को मनोरंजन का जरीया मानते हैं.

‘‘औरतें खेत देखने, पशु पालने और घर संभालने में लगी रहती हैं, जबकि 90 फीसदी मर्द शराब और जुए में मस्त रहते हैं.

‘‘गुरुचेलों, पाखंड से भरे रीतिरिवाजों और कुप्रथाओं की मारी औरतें एक ही खूंटे से बंधना क्यों स्वीकार करेंगी? जो उन्हें अच्छा लगेगा, वे उस के साथ हो लेंगी.

‘‘जहां पगपग पर हर रोज प्रथाओं और रीतिरिवाजों के नाम पर औरतें सताई जाती हों, उस बदहाल समाज को धर्म और देवता की आज्ञा के नाम पर गुरु और पोंगापंथी कब बदलने देंगे?’’

सत्यभामा ने पहली बार राजन के सामने सचाई खोल कर रख दी. वह ठगा सा उस की बातें सुनने लगा था.

सत्यभामा के थोड़ा चुप होने पर राजन शांत लहजे में बोला, ‘‘क्या पढ़ेलिखे लोग भी इन कुप्रथाओं के खिलाफ मुंह नहीं खोलते?’’

‘‘पढ़ेलिखे लोग तो औरतों के और भी पक्के शोषक हैं.

‘‘एक बात जो पहाडि़यों और मैदान वालों में एक है, वह है मर्दवादी सोच. उसी सोच की आंखों से देख कर आप ने कईकई खिताब मु  झे दिए हैं. आप नहीं जानते कि खिलने से पहले ही यह ओछी सोच फूलों को किस तरह मसल कर फेंकती है. कहीं पत्ता तक नहीं हिलता.’’

ऐसा सुन कर राजन का सारा गुस्सा काफूर हो गया. उस ने सत्यभामा को प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘सत्यभामा, मैं जानना चाहता हूं कि तुम केवल शौक के लिए ही इस दलदल में नहीं आई हो. आज तुम अपनी दास्तान सुना कर मेरे भीतर के गुस्से को खत्म कर दो.’’

सत्यभामा बोली, ‘‘हां राजन, अब तो मैं तुम्हें सारा सच सुनाऊंगी.’’

सत्यभामा ने सोफे पर बैठ कर पीठ टिका ली. राजन के चेहरे को गौर से देखते हुए उस ने कहना शुरू किया, ‘‘जब मैं 8वीं जमात में पढ़ती थी, तब बबलू नाम के सहपाठी ने मु  झे प्यार भरी चिट्ठी लिख दी थी. यहां तक कि उस ने अपने मांबाप भी मेरे घर भेज दिए थे.

‘‘जब मैं 9वीं जमात में थी, तो रिश्ते के शंभू चाचा ने घर से थोड़ी दूर सुनसान जगह पर मु  झे दबोच लिया था.

‘‘कुछ दिनों बाद अचानक मेरी मां चल बसी थी. बाप को शराब पीने की आदत थी और दादी को काम कराने की. मां तो थी नहीं, जो प्यार करती, रोकतीटोकती और मेरी गलतियों पर पीटती. मेरे आरामपरस्त भाई अपनी बीवियों में मस्त रहते थे.

‘‘राजन, नाग तो मेरे पति की तरह ही हो गया था. उस के साथ बने संबंधों ने तो एक भू्रण की हत्या भी करा दी थी. जानते हो कि नाग कौन था? मेरी बूआ का लड़का और मेरा भाई.

‘‘फिर आया जीजा. जीजा और साली का रिश्ता तो तारतार होता ही रहा.

भज्जी और साजू नाम के 2 ऊंची नाक वाले पड़ोसियों ने भी मु  झे उसी ओर धकेला, जिस ओर मैं कभी जाना नहीं चाहती थी.

‘‘मांगी मल्ल गांव का गुंडा था. उस ने जो डसा तो डसता ही रहा.

‘‘फिर आया रामलखन. देखने में गाय, पर था पूरा बाघ. अपने क्वार्टर में ब्लू फिल्में दिखादिखा कर वह मुझे खूब लूटता रहा. उस ने तो ठग कर अपने दोस्तों से भी मुझे रौंदवा डाला था.

‘‘मांगी मल्ल और रामलखन मुझे जबतब उठा ले जाते, मगर मैं कुछ न कर पाती थी. मैं भी धीरेधीरे उसी में सुख तलाशने लगी थी.

‘‘गांव का संथोली पटवारी और हरिमन कंपाउंडर भी मेरे पीछे लगे रहे.

‘‘फिर दीदी ने मुझे आप से मिलवाया. आप से मिल कर मैं ने खुद को बदलना चाहा था. मैं ने समाज की बदहाली के खिलाफ लड़ने की ठान ली थी. मगर मांगी मल्ल और रामलखन जैसों ने मुझे बदलने नहीं दिया.

‘‘मु  झे माफ करना राजन, आप के पास आने के बहाने बनाबना कर मैं ने न जाने कितने होटलों और अनेक कर्मचारियों के यहां रातें गुजारी हैं.

‘‘जानते हो राजन, बूआ का जमाई भी मुझे बीवी की तरह इस्तेमाल करता रहा. चंद्रमणि, लाल बूढ़ा सूद, पंपा फोटोग्राफर, संजू मिस्त्री, काले कोट वाला कुमार सब से मेरे संबंध बनते चले गए. विनय सुपरवाइजर ने भी मेरा खूब इस्तेमाल किया, पर मैं ने भी उसे निचोड़ कर ही दम लिया था.

‘‘जानते हो, आप के दोस्त होने का दम भरने वाले पत्रकार भी मेरे पीछे कुत्तों की तरह लगे रहे.

‘‘मैं ने तो अपनी सहेली की मदद की थी, जिस का कोई सुबूत इन के पास था. आज ये सारे लोग मेरी उंगली पर नाचने को मजबूर हैं.

‘‘जिस दोस्त की तारीफ करतेआप थकते न थे, जिसे भाई की तरह प्यार करते थे, वह इतना नीच था कि आप की बुराई में कभी कोई कसर न छोड़ता था.

‘‘वह तो आप को ब्लैकमेल करने के लिए हमेशा मुझे उकसाता रहा. आप के इस खास दोस्त ने अपने फायदे के लिए मु  झे बेच डाला था.

‘‘राजन, मर्दों की घटिया सोच को मैं ने बहुत करीब से देख लिया है. अब तो मैं भयानक रोग का शिकार हो चुकी हूं. मैं भेडि़यों की भड़ास और गीदड़ों की चालबाजियों को खूब पहचान गई हूं.

‘‘हां, आप से मिल कर मुझे लगा था कि पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. मेरा कल संवारने के लिए आप ने इतना कुछ किया, शायद मैं इस काबिल न थी.

‘‘अगर सभी मर्दों में अच्छे गुण हों, तो औरतें कभी वेश्या नहीं बनेंगी.

‘‘मुझे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. मैं आप से इतना जरूर पूछूंगी कि औरत को बेचने की चीज बनाने वाले कौन हैं?

‘‘अगर कोई मर्द एक से ज्यादा औरतों से संबंध रख सकता है, तो औरत क्यों नहीं रख सकती? सारे नियमबंधन औरतों के लिए ही क्यों हैं? आप ही बताइए?’’

राजन से कुछ भी बोलते न बना. सत्यभामा एकटक उस के चेहरे को देखती रही.

राजन का मन सत्यभामा के प्रति इज्जत से भर गया था. अब वह जान गया था कि औरत बुरी नहीं होती.

दुकान और औरत : चंद्रमणि ने क्यों मांगा तलाक

रमेश ने झगड़ालू और दबंग पत्नी से आपसी कलह के चलते दुखी जिंदगी देने वाला तलाक रूपी जहर पी लिया था. अगर चंद्रमणि उस की मां की सेवा करने की आदत बना लेती, तो वह उस का हर सितम हंसतेहंसते सह लेता, मगर अब उस से अपनी मां की बेइज्जती सहन नहीं होती थी.

ऐसी पत्नी का क्या करना, जो अपना ज्यादातर समय टैलीविजन देखने या मोबाइल फोन पर अपने घर वालों या सखीसहेलियों के साथ गुजारे और घर के सारे काम रमेश की बूढ़ी मां को करने पड़ें? बारबार समझाने पर भी चंद्रमणि नहीं मानी, उलटे रमेश पर गुर्राते हुए मां का ही कुसूर निकालने लगती, तो उस ने यह कठोर फैसला ले लिया.

चंद्रमणि तलाक पाने के लिए अदालत में तो खड़ी हो गई, मगर उस ने अपनी गलतियों पर गौर करना भी मुनासिब नहीं समझ. इस तरह रमेश ने तकरीबन 6 लाख रुपए गंवा कर अकेलापन भोगने के लिए तलाक रूपी शाप झोल लिया.

ऐसा नहीं था कि चंद्रमणि से तलाक ले कर रमेश सुखी था. खूबसूरत सांचे में ढली गदराए बदन वाली चंद्रमणि उसे अब भी तनहा रातों में बहुत याद आती थी, लेकिन मां के सामने वह अपना दर्द कभी जाहिर नहीं करता था. लिहाजा, उस ने अपना मन अपनी दुकानदारी में पूरी तरह लगा लिया.

रमेश मन लगा कर अपने जनरल स्टोर में 16-16 घंटे काम करने लगा… काम खूब चलने लगा. रुपया बरस रहा था. अब वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान खोलना चाहता था.

रविवार का दिन था. रमेश अपने कमरे में बैठा कुछ हिसाबकिताब लगा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा.

फोन उठाते ही किसी अजनबी औरत की बेहद मीठी आवाज सुनाई दी. रमेश का मन रोमांटिक सा हो गया. उस ने पूछा, तो दूसरी तरफ से घबराई झिझकती आवाज में बताया गया कि उस औरत की 5 साला बेटी से गलती हो गई. माफी मांगी गई.

‘‘अरेअरे, इस में गलती की कोई बात नहीं. बच्चे तो शरारती होते ही हैं. बड़ी प्यारी बच्ची है आप की. इस के पापा घर में ही हैं क्या?’’ रमेश ने पूछा, तो दूसरी तरफ खामोशी छा गई.

रमेश ने फिर पूछा, तो उस औरत ने बताया कि उस ने अपने पति का घर छोड़ दिया है.

‘‘ऐसा क्यों किया? यह तो आप ने गलत कदम उठाया. घर उजाड़ने में समय नहीं लगता, पर बसाने में जमाने लग जाते हैं. आप को ऐसा नहीं करना चाहिए था.

‘‘आप को अपनी गलती सुधारनी चाहिए और अपने पति के घर लौट जाना चाहिए,’’ रमेश ने बिना मांगे ही उस औरत को उपदेश दे दिया.

औरत ने दुखी मन से बताया, ‘ऐसा करना बहुत जरूरी हो गया था. अगर मैं ऐसा न करती, तो वह जालिम हम मांबेटी को मार ही डालता.’

‘‘देखो, घर में छोटेमोटे मनमुटाव होते रहते हैं. मिलबैठ कर समझौता कर लेना चाहिए. एक बार घर की गाड़ी पटरी से उतर गई, तो बहुत मुश्किल हो जाता है.

‘‘तुम्हारा अपने घर लौट जाना बेहद जरूरी है. लौट आओ वापस. बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा,’’ रमेश ने रास्ते से भटकी हुई उस औरत को समझाने की भरपूर कोशिश की, पर उस का यह उपदेश सुन कर वह औरत मानो गरज उठी, ‘जो आदमी अपराध कर के बारबार जेल जाता रहता है. जब वह जेल से बाहर आता है, तो मेहनतमजदूरी के कमाए रुपए छीन कर फिर नशे में अपराध कर के जेल चला जाता है, तो हम उस राक्षस के पास मरने के लिए रहतीं?

‘अगर तुम अब यही उपदेश देते हो, तो तुम ही हम मांबेटी को उस जालिम के पास छोड़ आओ. हम तैयार हैं,’ उस परेशान औरत ने अपना दर्द बता कर रमेश को लाजवाब कर दिया.

यह सुन कर रमेश को सदमा सा लगा. वह सोच रहा था कि जवान औरत अपनी मासूम बेटी के साथ अकेले बेरोजगारी की हालत में अपनी जिंदगी कैसे बिताएगी? यकीनन, ऐसे मजबूर इनसान की जरूर मदद करनी चाहिए.

वैसे भी रमेश को औरतों के सामान वाले जनरल स्टोर पर किसी औरत को रखना था, तभी तो वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान कर पाएगा. अगर यह मीठा बोलने वाली औरत ऐसे ही दुकान पर ग्राहकों से मीठीमीठी बातें करेगी, तो दुकान जरूर चल सकती है.

रमेश ने उस से पूछा, ‘‘क्या आप पढ़ीलिखी हैं?’’

‘क्या मतलब?’ उस औरत ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मुझे अपने जनरल स्टोर पर, जिस में लेडीज सामान ही बेचा जाता है, सेल्स गर्ल की जरूरत है. अगर आप चाहें, तो मैं आप को नौकरी दे सकता हूं. इस तरह आप के खर्चेपानी की समस्या का हल भी हो जाएगा.’’

‘क्या आप मुझे 10 हजार रुपए महीना तनख्वाह दे सकते हैं?’ उस औरत ने चहकते हुए पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, अगर आप मेरी दुकान पर 12 घंटे काम करेंगी, तो मैं आप को 10 हजार रुपए से ज्यादा भी दे सकता हूं. यह तो तुम्हारे काम पर निर्भर करता है कि तुम आने वाले ग्राहकों को कितना प्रभावित करती हो.’’

‘काम तो मैं आप के कहे मुताबिक ही करूंगी. बस, मुझे मेरी बेटी की परेशानी रहेगी. अगर मेरी बेटी के रहने की समस्या का हल हो जाए, तो मैं आप की दुकान पर 15 घंटे भी काम कर सकती हूं. बेटी को संभालने वाला कोई तो हो,’ वह औरत बोली.

‘‘मैं आप की बेटी को सुबह स्कूल छोड़ आऊंगा. छुट्टी के बाद उसे मैं अपनी मां के पास छोड़ आया करूंगा. इस तरह आप की समस्या का हल भी निकल आएगा और घर में मेरी मां का दिल भी लगा रहेगा. आप की बेटी भी महफूज रहेगी,’’ रमेश ने बताया.

वह औरत खुशी के मारे चहक उठी, ‘फिर बताओ, मैं तुम्हारे पास कब आऊं? अपनी दुकान का पता बताओ. मैं अभी आ कर तुम से मिलती हूं. तुम मुझे नौकरी दे रहे हो, मैं तनमन से तुम्हारे काम आऊंगी. गुलाम बन कर रहूंगी, तुम्हारी हर बात मानूंगी.’

रमेश के मन में विचार आया कि अगर वह औरत अपने काम के प्रति ईमानदार रहेगी, तो वह उसे किसी तरह की परेशानी नहीं होने देगा. उस की मासूम बेटी को वह अपने खर्चे पर ही पढ़ाएगा.

तभी रमेश के मन में यह भी खयाल आया कि वह पहले उस के घर जा कर उसे देख तो ले. उस की आवाज ही सुनी है, उसे कभी देखा नहीं. उस के बारे में जानना जरूरी है. लाखों रुपए का माल है दुकान में. उस के हवाले करना कहां तक ठीक है?

रमेश ने उस औरत को फोन किया और बोला, ‘‘पहले आप अपने घर का पता बताएं? आप का घर देख कर ही मैं कोई उचित फैसला कर पाऊंगा.’’

वह औरत कुछ कह पाती, इस से पहले ही रमेश को उस के घर से मर्दों की आवाजें सुनाई दीं.

वह औरत लहजा बदल कर बोली, ‘अभी तो मेरे 2 भाई घर पर आए हुए हैं. तुम कल शाम को आ जाओ.

‘मैं तनमन से आप की दुकान में मेहनत करूंगी और आप की सेवा भी करूंगी. आप की उम्र कितनी है?’ उस औरत ने पूछा.

‘‘मेरी उम्र तो यही बस 40 साल के करीब होगी. अभी मैं भी अकेला ही हूं. पत्नी से आपसी मनमुटाव के चलते मेरा तलाक हो गया है,’’ रमेश ने भी अपना दुख जाहिर कर दिया.

यह सुन कर तो वह औरत खुशी के मारे चहक उठी थी, ‘अरे वाह, तब तो मजा आ जाएगा, साथसाथ काम करने में. मेरी उम्र भी 30 साल है. मैं भी अकेली, तुम भी अकेले. हम एकदूसरे की परेशानियों को दिल से समझ सकेंगे,’ इतना कह कर उस औरत ने शहद घुली आवाज में अपने घर का पता बताया.

उस औरत ने अपने घर का जो पता बताया था, वह कालोनी तो रमेश के घर से आधा किलोमीटर दूर थी. उस ने अपनी मां से औरत के साथ हुई सारी बातें बताईं.

मां ने सलाह दी कि अगर वह औरत ईमानदार और मेहनती है, तो उसे अभी उस के घर जा कर उस के भाइयों के सामने बात पक्की करनी चाहिए.

रमेश को अपनी मां की बात सही लगी. उस ने फोन किया, तो उस औरत का फोन बंद मिला.

रमेश ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया और चल दिया उस के घर की तरफ. मगर घर का गेट बंद था. गली भी आगे से बंद थी. वहां खास चहलपहल भी नहीं थी. मकान भी मामूली सा था.

गली में एक बूढ़ा आदमी नजर आया, तो रमेश ने अदब से उस औरत का नाम ले कर उस के घर का पता पूछा. बूढ़े ने नफरत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए सामने मामूली से मकान की तरफ इशारा किया.

रमेश को उस बूढ़े के बरताव पर गुस्सा आया, मगर उस की तरफ ध्यान न देते हुए बंद गेट तो नहीं खटखटाया, मगर गली की तरफ बना कमरा, जिस का दरवाजा गली की तरफ नजर आ

रहा था, उसी को थपथपा कर कड़कती आवाज में उस औरत को आवाज लगाई.

थोड़ी देर में दरवाजा खुला, तो एक हट्टीकट्टी बदमाश सी नजर आने वाली औरत रमेश को देखते ही गरज उठी, ‘‘क्यों रे, हल्ला क्यों मचा रहा है? ज्यादा सुलग रहा है… फोन कर के आता. देख नहीं रहा कि हम आराम कर रहे हैं.

‘‘अगर हमारे चौधरीजी को गुस्सा आ गया, तो तेरा रामराम सत्य हो जाएगा. अब तू निकल ले यहां से, वरना अपने पैरों पर चल कर जा नहीं सकेगा. अगली बार फोन कर के आना. चल भाग यहां से,’’ उस औरत ने अपने पास खड़े 2 बदमाशों की तरफ देखते हुए रमेश को ऐसे धमकाया, जैसे वह वहां की नामचीन हस्ती हो.

‘‘अपनी औकात में रह, गंदगी में मुंह मारने वाली औरत. मैं यहां बिना बुलाए नहीं आया हूं. मेरा नाम रमेश है.

‘‘अगर मैं कल शाम को यहां आता, तो तुम्हारी इस दुकानदारी का मुझे कैसे पता चलता. कहो तो अभी पुलिस को फोन कर के बताऊं कि यहां क्या गोरखधंधा चल रहा है,’’ रमेश ने धमकी दी.

रमेश समझ गया था कि उस औरत ने अपनी सैक्स की दुकान खूब चला रखी है. वह तो उस की दुकान का बेड़ा गर्क कर के रख देगी. उस ने मन ही मन अपनी मां का एहसान माना, जिन की सलाह मान कर वह आज ही यहां आ गया था.

उस औरत के पास खड़े उन बदमाशों में से एक ने शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘अबे, तू हमें पुलिस के हवाले करेगा? हम तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’

पर रमेश दिलेर था. उस ने लड़खड़ाते उस शराबी पर 3-4 थप्पड़ जमा दिए. वह धड़ाम से जमीन चाटता हुआ नजर आया.

यह देख कर वह औरत, जिस का नाम चंपाबाई था, ने जूतेचप्पलों से पिटाई करते हुए कमरे से उन दोनों आशिकों को भगा दिया.

चंपाबाई हाथ जोड़ कर रमेश के सामने गिड़गिड़ा उठी, ‘‘रमेशजी, मैं अकेली औरत समाज के इन बदमाशों का मुकाबला करने में लाचार हूं. मैं आप की शरण में आना चाहती हूं. मुझे दुखियारी को तुम अभी अपने साथ ले चलो. मैं जिंदगीभर तुम्हारी हर बात मानूंगी.’’

चंपाबाई बड़ी खतरनाक किस्म की नौटंकीबाज औरत नजर आ रही थी. अगर आज रमेश आंखों देखी मक्खी निगल लेता, तो यह उस की गलती होती. वह बिना कोई जवाब दिए अपनी राह पकड़ घर की तरफ चल दिया.

हर दिन नया मर्द देखने वाली चंपाबाई अपना दुखड़ा रोते हुए बारबार उसे बुला रही थी, पर रमेश समझ गया था कि ऐसी औरतों की जिस्म की दुकान हो या जनरल स्टोर, वे हर जगह बेड़ा गर्क ही करती हैं.

टूटे हुए पंखों की उड़ान : अर्चना के किसने काटे पर

गली में घुसते ही शोरगुल के बीच लड़ाईझगड़े और गालीगलौज की आवाजें अर्चना के कानों में पड़ीं. सड़ांध भरी नालियों के बीच एक संकरी गली से गुजर कर उस का घर आता था, जहां बरसात में मारे बदबू के चलना मुश्किल हो जाता था.

दुपट्टे से नाक ढकते हुए अर्चना ने घर में कदम रखा, तो वहां का नजारा ही दूसरा था. आंगन के बीचोंबीच उस की मां और पड़ोस वाली शीला एकदूसरे पर नाक फुलाए खड़ी थीं. यह रोज की बात थी, जब किसी न किसी बात पर दोनों का टकराव हो जाता था.

मकान मालिक ने किराए के लालच में कई सारे कोठरीनुमा कमरे बनवा रखे थे, मगर सुविधा के नाम पर बस एक छोटा सा गुसलखाना और लैट्रिन थी, जिसे सब किराएदार इस्तेमाल करते थे.

वहां रहने वाले किराएदार आएदिन किसी न किसी बात को ले कर जाहिलों की तरह लड़ते रहते थे. पड़ोसन शीला तो भद्दी गालियां देने और मारपीट करने से भी बाज नहीं आती थी.

गुस्से में हांफती, जबान से जहर उगलती प्रेमा घर में दाखिल हुई. पानी का बरतन बड़ी जोर से वहीं जमीन पर पटक कर उस ने सिगड़ी जला कर उस पर चाय का भगौना रख दिया.

‘‘अम्मां, तुम शीला चाची के मुंह क्यों लगती हो? क्या तुम्हें तमाशा कर के मजा आता है? काम से थकहार कर आओ, तो रोज यही सब देखने को मिलता है. कहीं भी शांति नहीं है,’’ अर्चना गुस्से से बोली.

‘‘हांहां, तमाशा तो बस मैं ही करती हूं न. वह तो जैसे दूध की धुली है. सब जानती हूं… उस की बेटी तो पूरे महल्ले में बदनाम है. मक्कार औरत नल में पानी आते ही कब्जा जमा कर बैठ जाती है. उस पर मुझे भलाबुरा कह रही थी.

‘‘अब तू ही बता, मैं कैसे चुप रहूं?’’ चाय का कप अर्चना के सामने रख कर प्रेमा बोली.

‘‘अच्छा लाडो, यह सब छोड़. यह बता कि तू ने अपनी कंपनी में एडवांस पैसों की बात की?’’ यह कहते हुए

प्रेमा ने बेटी के चेहरे की तरफ देखा भी नहीं था अब तक, जो दिनभर की कड़ी मेहनत से कुम्हलाया हुआ था.

‘‘अम्मां, सुपरवाइजर ने एडवांस पैसे देने से मना कर दिया है. मंदी चल रही है कंपनी में,’’ मुंह बिचकाते हुए अर्चना ने कहा, फिर दो पल रुक कर उस ने कुछ सोचा और बोली, ‘‘जब हमारी हैसियत ही नहीं है तो क्या जरूरत है इतना दिखावा करने की. ननकू का मुंडन सीधेसादे तरीके से करा दो. यह जरूरी तो नहीं है कि सभी रिश्तेदारों को कपड़ेलत्ते बांटे जाएं.’’

‘‘यह क्या बोल रही है तू? एक बेटा है हमारा. तुम बहनों का एकलौता भाई. अरी, तुम 3 पैदा हुईं, तब जा कर वह पैदा हुआ… और रिश्तेदार क्या कहेंगे? सब का मान तो रखना ही पड़ेगा न.’’

‘‘रिश्तेदार…’’ अर्चना ने थूक गटका. एक फैक्टरी में काम करने वाला उस का बाप जब टीबी का मरीज हो कर चारपाई पर पड़ गया था, तो किसी ने आगे आ कर एक पैसे तक की मदद नहीं की. भूखे मरने की नौबत आ गई, तो 12वीं का इम्तिहान पास करते ही एक गारमैंट फैक्टरी में अर्चना ने अपने लिए काम ढूंढ़ लिया.

अर्चना के महल्ले की कुछ और भी लड़कियां वहां काम कर के अपने परिवार का सहारा बनी हुई थीं.

अर्चना की कमाई का ज्यादातर हिस्सा परिवार का पेट भरने में ही खर्च हो जाता था. घर की बड़ी बेटी होने का भार उस के कंधों को दबाए हुए था. वह तरस जाती थी अच्छा पहननेओढ़ने को. इतने बड़े परिवार का पेट पालने में ही उस की ज्यादातर इच्छाएं दम तोड़ देती थीं.

कोठरी की उमस में अर्चना का दम घुटने लगा, सिगड़ी के धुएं ने आंसू ला दिए. सिगड़ी के पास बैठी उस की मां खांसते हुए रोटियां सेंक रही थी.

‘‘अम्मां, कितनी बार कहा है गैस पर खाना पकाया करो… कितना धुआं है,’’ दुपट्टे से आंखमुंह पोंछती अर्चना ने पंखा तेज कर दिया.

‘‘और सिलैंडर के पैसे कहां से आएंगे? गैस के दाम आसमान छू रहे हैं. अरी, रुक जा. अभी धुआं कम हो जाएगा, कोयले जरा गीले हैं.’’

अर्चना उठ कर बाहर आ गई. कतार में बनी कोठरियों से लग कर सीढि़यां छत पर जाती थीं. कुछ देर ताजा हवा लेने के लिए वह छत पर टहलने लगी. हवा के झोंकों से तनमन की थकान दूर होने लगी.

टहलते हुए अर्चना की नजर अचानक छत के एक कोने पर चली गई. बीड़ी की महक से उसे उबकाई सी आने लगी. पड़ोस का छोटेलाल गंजी और तहमद घुटनों के ऊपर चढ़ाए अपनी कंचे जैसी गोलगोल आंखों से न जाने कब से उसे घूरे जा रहा था.

छोटेलाल कुछ महीने पहले ही उस मकान में किराएदार बन कर आया था. अर्चना को वह फूटी आंख नहीं सुहाता था. अर्चना और उस की छोटी बहनों को देखते ही वह यहांवहां अपना बदन खुजाने लगता था.

शुरू में अर्चना को समझ नहीं आया कि वह क्यों हर वक्त खुजाता रहता है, फिर जब वह उस की बदनीयती से वाकिफ हुई, तो उस ने अपनी बहनों को छोटेलाल से जरा बच कर रहने की हिदायत दे दी.

‘‘यहां क्या कर रही है तू इतने अंधेरे में? अम्मां ने मना किया है न इस समय छत पर जाने को. चल, नीचे खाना लग गया है,’’ छोटी बहन ज्योति सीढ़ियों पर खड़ी उसे आवाज दे रही थी.

अर्चना फुरती से उतर कर कमरे में आ गई. गरम रोटी खिलाती उस की मां ने एक बार और चिरौरी की, ‘‘देख ले लाडो, एक बार और कोशिश कर के देख ले. अरे, थोड़े हाथपैर जोड़ने पड़ें, तो वह भी कर ले. यह काम हो जाए बस, फिर तुझे तंग न करूंगी.’’

अर्चना ने कमरे में टैलीविजन देखती ज्योति की तरफ देखा. वह मस्त हो कर टीवी देखने में मगन थी. ज्योति उस से उम्र में कुल 2 साल ही छोटी थी. मगर अपनी जवानी के उठान और लंबे कद से वह अर्चना की बड़ी बहन लगती थी.

9वीं जमात पास ज्योति एक साड़ी के शोरूम में सेल्सगर्ल का काम करती थी. जहां अर्चना की जान को घरभर के खर्च की फिक्र थी, वहीं ज्योति छोटी होने का पूरा फायदा उठाती थी.

‘‘अम्मां, ज्योति भी तो अब कमाती है. तुम उसे कुछ क्यों नहीं कहती?’’

‘‘अरी, अभी तो उस की नौकरी लगी है, कहां से ला कर देगी बेचारी?’’ मां की इस बात पर अर्चना चुप हो गई.

‘‘ठीक है, मैं फिर से एक बार बात करूंगी, मगर कान खोल कर सुन लो अम्मां, यह आखिरी बार होगा, जब तुम्हारे इन फुजूल के रिवाजों के लिए मैं अपनी मेहनत की कमाई खर्च करूंगी.’’

‘‘हांहां, ठीक है. अपनी कमाई की धौंस मत जमा. चार पैसे क्या कमाने लगी, इतना रोब दिखा रही है. अरे, कोई एहसान नहीं कर रही है हम पर,’’ गुस्से में प्रेमा का पारा फिर से चढ़ने लगा.

एक कड़वाहट भरी नजर अपनी मां पर डाल कर अर्चना ने सारे जूठे बरतन मांजने के लिए समेटे.

बरतन साफ कर अर्चना ने अपना बिस्तर लगाया और सोने की कोशिश करने लगी, उसे सुबह जल्दी उठना था, एक और जद्दोजेहद भरे दिन के लिए. वह कमर कस के तैयार थी. जब तक हाथपैर चलते रहेंगे, वह भी चलती रहेगी. उसे इस बात का संतोष हुआ कि कम से कम वह किसी के सामने हाथ तो नहीं फैलाती.

अर्चना के होंठों पर एक संतुष्टि भरी फीकी मुसकान आ गई और उस ने आंखें मूंद लीं.

ड्रग्स ऐंड डार्लिंग : क्या थे रिया के इरादे

‘‘अरे, रिया… सिगरेट…?’’ समीर रिया के हाथों में सिगरेट देख चौंका.

‘‘तुम मेरे हाथ में सिगरेट देख कर ऐसे क्यों चौंक गए समीर? कानून की कौन सी किताब में लिखा है कि लड़कियां सिगरेट नहीं पी सकतीं? लड़के सरेआम सिगरेट का धुआं उड़ाते घूमेंगे और लड़कियां 2-4 कश भी नहीं मार सकतीं? वाह, क्या कहने लड़कों की सोच के…’’

हमेशा की तरह रिया ने समीर को चुप कर दिया. वह बड़े शहर की मौडर्न बिंदास लड़की थी. वह समीर जैसे गांव के लड़के से बात कर लेती थी, यही बड़ी बात थी.

नोएडा के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में बिजनौर से आए लड़कों का एक ग्रुप था, जिस में समीर भी शामिल था. वे सब लड़कियों से अकसर दूर ही रहते थे. असली बात यह थी कि गांव के लड़कों को शहर की इन मौडर्न बिंदास लड़कियों से बात करने का सलीका ही नहीं आता था.

गांव की लड़कियों और इन शहरी लड़कियों में जमीनआसमान का फर्क था. शहर की इन बिंदास लड़कियों को देख कर लगता था, जैसे ये किसी और ही ग्रह से आई हों.

‘‘लो समीर, तुम भी मारो कुछ कश. क्या जनाना से बने घूमते हो? अरे, सिगरेट पीना तो मर्दों की पहचान होती है,’’ रिया ने कहा.

‘‘नहीं रिया, तुम्हें पता है कि मैं सिगरेट नहीं पीता.’’

‘‘अरे नहीं पीते, तभी तो कह रही हूं कि पी लो. नए जमाने के साथ चलना सीखो. जिंदगी की ऐश लेना सीखो यार,’’ इतना कहतेकहते रिया ने समीर के होंठों पर सिगरेट रख दी. कश खींचते ही उसे खांसी आ गई. लेकिन धीरेधीरे रिया ने उसे सिगरेट पीना सिखा ही दिया.

कभीकभी रिया समीर को ऐसी सिगरेट पिलाती थी, जिसे पी कर वह मदहोश हो जाता था. कितना मजा था, ऐसी सिगरेट पीने में. बारबार ऐसी ही सिगरेट पीने का मन करता था.

एक दिन रिया लाल आंखें लिए समीर के होस्टल में आई. लड़कियों का लड़कों के होस्टल में जाना कोई हैरान कर देने वाली बात नहीं थी. इस इंजीनियरिंग कालेज में लड़कियों को लड़कों के होस्टल में जाने की छूट थी, पर लड़कों को गर्ल्स होस्टल में जाने की छूट नहीं थी.

रिया आज कुछ अजीब सी हालत में लग रही थी. ‘हायहैलो’ के बाद वे दोनों सिगरेट पीने लगे. 2-4 कश के बाद ही अजीब सा मजा आने लगा.

समीर ने रिया से कहा, ‘‘रिया, आज तो सिगरेट में कुछ अजीब सी मस्ती लग रही है.’’

‘‘तो जल्दीजल्दी पी लो न मेरी जान,’’ रिया ने कहा.

‘‘अरे रिया, यह तुम्हें क्या हो रहा है? तुम ने पहले तो मुझे कभी ‘मेरी जान’ नहीं कहा… और आज तुम ने यह कैसी हालत बना रखी है रिया. ये नशीली सी आंखें…’’ समीर ने फूंक ली गई सिगरेट को डस्टबिन में फेंकते हुए कहा.

रिया ने समीर से नशीली आंखों और लड़खड़ाती आवाज में कहा, ‘‘सब तुम्हारे लिए बेबी. और देखो समीर, आज मुझे रिया मत कहो. मुझे डार्लिंग कहो बेबी,’’ कहतेकहते रिया ने अपनी दोनों बांहें समीर के गले में डाल दीं और उस के होंठों को बेतहाशा चूमने लगी.

‘‘अरे रिया, यह क्या कर रही हो?’’ समीर ने पूछा.

लेकिन लगता था कि आज रिया किसी और ही मूड में थी. वह समीर पर हावी हो चुकी थी. समीर को भी बहकने में देर न लगी. वह रिया को उठा कर बिस्तर पर ले गया.

रिया पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी. उस ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए. समीर उस की कमसिन जवानी देख कर बहक गया. उस ने रिया को बिस्तर पर पटक दिया. कुछ ही देर में वे दोनों मजे की हद पर पहुंच गए.

इस के बाद तो नशा, शराब और शबाब समीर की कालेज लाइफ का एक अहम हिस्सा बन गया. पैसे की उसे कोई कमी नहीं थी. गांव में काफी जमीन थी. गन्ने की बंपर खेती हो तो किसान मालामाल. रिया ने उसे कब ड्रग्स की लत लगा दी थी, पता ही नहीं चला.

फिर एक दिन अचानक रिया बिना बताए गायब हो गई. उस का मोबाइल फोन लगातार बंद आ रहा था. समीर ने पूरे कालेज में उस के जानपहचान वालों से पता किया, लेकिन कोई कुछ भी बताने को तैयार न था.

समीर ड्रग्स लेने का आदी हो चुका था. उसे यह तब पता चला, जब बिना ड्रग्स के वह तड़पने लगा, सिर पटकने लगा. सिगरेट का नशा कुछ भी नहीं था. कई सिगरेट पीने के बाद भी वह मजा नहीं आता था, जो ड्रग्स लेने में आता था. उस ड्रग का जरीया केवल रिया थी, उसे कहां तलाशा जाए, कुछ पता ही नहीं था.

जब बिना ड्रग्स के समीर से रहा नहीं गया, तब एक दिन रिया की तलाश में वह रिया के शहर अलीगढ़ पहुंच गया. समीर को उस का सही पता तो मालूम नहीं था, लेकिन उम्मीद थी कि कोशिश करने पर वह मिल भी सकती है.

समीर को ऐसा लगता था कि रिया के बिना तो रहना मुमकिन है, लेकिन ड्रग्स के बिना नहीं. कमी तो रिया की भी खल रही थी, लेकिन उस से ज्यादा ड्रग्स की.

यह उम्र ही ऐसी होती है कि ड्रग्स और सैक्स की लत अगर एक बार लग जाए, तो फिर रहा नहीं जाता. लड़की तो दूसरी भी पटाई जा सकती थी, लेकिन समीर के लिए ड्रग्स को पाना मुश्किल था. उसे आज अफसोस हो रहा था कि उस ने रिया से कभी यह क्यों नहीं पता किया था कि ड्रग्स कहां से मिलती हैं.

लेकिन अब पछताने से कोई फायदा नहीं था. 3-4 दिन अलीगढ़ में रिया की नाकाम खोज के बाद समीर वापस नोएडा आ गया. उस का वजन नशे की लत के चलते पहले से काफी कम हो गया था. भूख भी काफी कम हो गई थी. एक सिगरेट बुझाती तो वह दूसरी जला लेता. पढ़नालिखना तो सब सिगरेट के धुएं के छल्ले बन कर उड़ गया था. जिंदगी में कुछ बचा था तो रिया की यादों में खोए रहना और नशे के लिए तड़पना.

ऐसा कब तक चलता? आखिर कालेज वालों ने समीर की ऐसी हालत देख कर उस के परिवार को समय रहते सूचना दे दी. पिताजी उसे घर ले गए. उस की हालत देख कर उन के होश उड़े हुए थे.

समीर को तुरंत बिजनौर के एक नामीगिरामी डाक्टर को दिखाया गया. पिताजी की गैरहाजिरी में डाक्टर ने पूछा, ‘‘कौन सी ड्रग्स लेते थे?’’

अब समीर डाक्टर से क्या छिपाता. उस ने कहा, ‘‘पता नहीं. सिगरेट के साथ लेता था. चरस, गांजा या हेरोइन, पता नहीं.’’

‘‘किस के साथ लेते थे ड्रग्स? कोई लड़कीवड़की का भी चक्कर था क्या?’’

डाक्टर के यह पूछने पर समीर को ऐसा लगा मानो डाक्टर उस के दिमाग में घुस जाना चाहता हो. डाक्टर फ्रैंडली था और वह जानता था कि अपने मरीज से बातें कैसे उगलवानी हैं. समीर ने रिया और अपनी प्रेमकहानी टुकड़ोंटुकड़ों में सुना दी.

कहानी सुन कर डाक्टर मुसकराया और बोला, ‘‘तुम गांव के लड़के शहरी चकाचौंध में एकदम अंधे हो जाते हो. लेकिन दोस्त, यह तुम्हारे अकेले की कहानी नहीं है, बल्कि बहुत से लड़कों की कहानी है.’’

डाक्टर की दवा और उन के दोस्ताना बरताव ने समीर को कुछ ही दिनों में भलाचंगा कर दिया. लेकिन समीर के परिवार वाले उसे वापस नोएडा भेजने के लिए तैयार नहीं थे. वह एकलौती औलाद था और घर में किसी चीज की कोई कमी न थी. जमीनजायदाद काफी थी, नौकरचाकर ही सब काम करते थे.

समीर गांव में हंसीखुशी अपना समय गुजार रहा था कि अचानक एक दिन अनजान नंबर से फोन आया. उधर से रिया ने ‘हैलो’ कहा.

समीर ने तपाक से पूछा, ‘‘अरे रिया, कहां हो तुम? मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा… मैं इतना परेशान और तुम मौज उड़ाती घूम रही हो? मेरा हालचाल भी नहीं जाना… मर के बचा हूं मैं. अब तो बता दो, कहां हो तुम?’’

रिया धीमी आवाज में बोली, ‘अस्पताल में हूं. नशे और डिप्रैशन का इलाज चल रहा है. मैं भी जिंदगी और मौत के बीच चल रही हूं. मुझे माफ कर देना समीर. मैं ने तुम्हें नशे की जानलेवा लत लगाई. दोस्त होने के नाते वादा करो, अब तुम कभी नशा नहीं करोगे.’

रिया की आवाज बेदम सी लग रही थी. समीर ने उस की हिम्मत बढ़ाने की कोशिश की और कहा, ‘‘मैं वादा करता हूं रिया कि अब कभी कोई नशा नहीं करूंगा. सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाऊंगा. बस, तुम जल्दी से ठीक हो जाओ.’’

उधर से बहुत हलकी सी आवाज आई ‘बाय’ और फोन कट गया.

ईरिकशा : क्या बेला कर पाई 40,000 का गोलमाल

उस का नाम बेला था. लंबा कद, गोरा रंग, भरा हुआ बदन और तीखी नाक. उस के रंगरूप में सब से आकर्षक था. उठा हुआ सीना, जो देखने वालों के कलेजे में आग लगा देता था.

बेला ने दर्जी से नई चोली सिलवाई थी. उसे ले कर वह अपने घर पहुंची, तो चोली की फिटिंग चैक करने के लिए आईने के सामने अपनी पहनी हुई चोली उतार दी और सिलवाई हुई चोली का नाप चैक करने लगी.

बेला ने सामने से देखा, फिर घूम कर पीठ पर चोली की फिटिंग देखने लगी. दर्जी ने सिलाई तो ठीक की थी, पर गला थोड़ा ज्यादा ही कस रहा था. बेला की नजर उस के उठे हुए सीने पर गई, तो उस के चेहरे पर शरारती मुसकान खिल उठी.

‘यही वह जादू की पिटारी है, जिसे दिखा कर तू सारे मर्दों के दिल पर राज करती है,’ बुदबुदाते हुए बेला अपनी नई चोली उतारने लगी कि तभी उस के कमरे का दरवाजा अचानक से खुल गया.

बेला ने अपनी दूध सी गोरी छातियों को हाथ से कैंची बना कर ढक लिया और अंदर की ओर भागने लगी. उसे लगा कि न जाने कोई आदमी ही न आ गया हो, पर वह तो पड़ोस में रहने वाली रेशमा थी.

‘‘अरे, क्या बात है… आज तो तू ने दिन में ही मुहब्बत शुरू कर दी,’’ रेशमा ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को एकदूसरे में भद्दे ढंग से फंसाते हुए कहा, जिसे देख कर बेला की हंसी छूट गई और उस ने रेशमा को बताया कि नई चोली की फिटिंग देखने के लिए पुरानी वाली को उतारा था, पर इस का गला थोड़ा तंग है.

बेला ने एक बार फिर से नई चोली को पहन कर रेशमा को दिखाया, तो रेशमा उस के गले के साइज से संतुष्ट दिखी.

‘‘दूसरी औरतें तो गले का साइज थोड़ा छोटा कराती हैं, जिस से उन का सीना दूसरों को न दिखाई दे और तू इसे बड़ा करवा रही है,’’ रेशमा ने कहा, तो बेला मुसकरा उठी और खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘यह जो हमारे सीने की गहराई है न, इसी के बीच में मर्दों की नजरें टिकी रहती हैं, यह तो दिखाने की चीज है, न कि छिपाने की,’’ बेला की बात सुन कर रेशमा उसे हैरानी से देख रही थी.

बरेली शहर के इस इलाके में बेला अपने पति के साथ किराए पर कमरा ले कर रहती थी. उस का पति एक नई बन रही बिल्डिंग में दिहाड़ी मजदूर का काम करता था और बेला लोगों के घरघर जा कर बरतन धोने और साफसफाई का काम करती थी.

जिन घरों में बेला काम करती थी, वहां के मर्द बेला के जिस्म को देख कर लार गिराते रहते थे. वे सब चोरीछिपे बेला के सीने को घूरते और अपने मन को ठंडक पहुंचाते थे.

बेला को भी इस बात का अच्छी तरह से एहसास था कि उस के पास एक मादक जिस्म है और इसीलिए वह अपने जिस्म का बखूबी इस्तेमाल भी करती थी.

इसी महल्ले में देवीलाल नाम का एक विधुर रहता था. उस की उम्र यही कोई 50 साल के आसपास होगी और देवीलाल के साथ रहती थी उस की 35 साल की बहन, जिस का नाम नीलम था. वे दोनों एकदूसरे का सहारा थे.

देवीलाल की बहन नीलम की उम्र काफी हो गई थी, पर अभी भी उस की शादी नहीं हुई थी. देखने में नीलम कोई बहुत अच्छी नहीं थी और चेहरे का रंग सांवला होने के चलते अब तक उसे कोई जीवनसाथी नहीं मिल पाया था.

बेला देवीलाल और नीलम के घर भी बरतन मांजने और झाड़ूपोंछा करने जाती थी. देवीलाल एक नंबर का औरतखोर मर्द था.

बेला को देखते ही देवीलाल की आंखों में हवस जाग उठती. बेला भी उस की नजरों को अच्छी तरह पहचान गई थी और इसीलिए जब भी वह झाड़ू लगाती, तो जानबूझ कर अपनी साड़ी का पल्ला गिरा देती, जिस से उस की चोली के अंदर से उस की गोरी गोलाइयां झलकने लगतीं, जिन्हें देख कर देवीलाल मन ही मन खूब आहें भरता था.

एक शाम की बात है, जब बेला देवीलाल के घर पहुंची. नीलम शायद कहीं बाहर गई हुई थी. देवीलाल घर में अकेला था. उस ने बेला को देखते ही चाय की फरमाइश की.

बेला किचन में जा कर चाय बनाने लगी कि तभी देवीलाल पीछे से आ गया. उस के हाथ में कुरियर वाले का एक बंडल था, जिसे दिखाते हुए देवीलाल ने कहा, ‘‘मैं ने ये कपड़े औनलाइन मंगवाए हैं. तुम पहन कर देख लो… शायद तुम पर वे अच्छे लगें.’’

बेला ने देवीलाल के हाथों से पैकेट ले लिया और उस को खोल कर देखने लगी. उस पैकेट के अंदर से औरतों के छोटे कपड़े निकले.

बेला ने अपने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘दैया रे दैया, ऐसे कपड़े हम तो कभी न पहनें…’’

बेला की बात सुन कर देवीलाल ने कहा, ‘‘अरे, अब नखरे मत करो, इन्हें पहन भी लो…’’

देवीलाल की बात सुन कर बेला ने कहा, ‘‘ऐसे कपड़े तो मौडल पहनती

हैं, जिस के बदले में उन को ढेर सारे पैसे मिलते हैं. अगर मैं पहनूं, तो मुझे क्या मिलेगा?’’

बेला की बात सुन कर देवीलाल ने कहा, ‘‘जो तेरी मरजी हो ले लेना.’’

देवीलाल की बात सुन कर बेला ने वह पैकेट हाथ में ले लिया और मुसकराते हुए एक कमरे की ओर बढ़ गई, फिर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

कुछ देर बाद दरवाजा खुला, तो बेला लाल रंग की ब्रापैंटी में उस के सामने खड़ी थी. उस ने एक मदमस्त अंगड़ाई ली, जिसे देख कर देवीलाल पर पागलपन सवार हो गया. उस ने बेला को गोद में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया, फिर उसे बेतहाशा चूमने लगा.

देवीलाल ने बेला के सीने के बीच में अपने सिर को घुसेड़ दिया और उस के जिस्म के हर हिस्से को चाटने लगा. बेला भी सिसकारियां भरने लगी और देवीलाल की पीठ पर अपने हाथों से खरोंचने लगी…

देवीलाल ने बेला के वे छोटे कपड़े उतारने में देर नहीं लगाई और फिर कमरे में गरम सांसों के गूंजने से वहां का तापमान बढ़ गया था. दोनों के जिस्म कुछ देर की मशक्कत के बाद एकदूसरे से अलग हो गए. ऐसा लग रहा था कि वे दोनों मीलों दौड़ कर आए हों.

बेला कपड़े पहनने लगी. देवीलाल अब भी बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था. बेला ने उस से कहा कि अब उसे देर हो रही है, इसलिए जाना होगा.

देवीलाल बेमन से उठा और अपने पर्स से 500 रुपए के 2 नोट निकाल कर बेला की ओर बढ़ाए. बेला ने उन दोनों नोटों को ले कर अपनी चोली के अंदर रख लिया.

‘‘ये पैसे तो इन छोटे कपड़ों को पहनने का मेहनताना भर है, बाकी जो

तू ने मेरे जिस्म को रौंदा है, उस का भी तो पैसा दे…’’ बेला ने कहा.

देवीलाल ने बेला की तरफ 1,000 रुपए और बढ़ा दिए.

बेला पैसों को ले कर बाहर की ओर जाने लगी कि तभी नीलम भी आ गई. दोनों की नजरें मिलीं और आगे बढ़ गईं.

उस दिन के बाद से जब भी देवीलाल का मन करता, उस दिन वह औफिस नहीं जाता और घर पर ही रुक जाता.

एक रात बेला का पति हरद्वारी जब बिस्तर पर लेटा, तो काफी थका हुआ था. बेला के पास आते ही उस ने बेला के सीने पर हाथ रख दिया और दबाव बढ़ाने लगा.

‘‘मैं बहुत थकी हुई हूं… आज मुझे परेशान मत करो.’’

‘‘आज मना मत करो… मैं भी बहुत परेशान हूं,’’ हरद्वारी ने फुसफुसाते हुए कहा.

बेला ने परेशानी की वजह पूछी, तो हरद्वारी ने बताया कि उस का ठेकेदार उसे बहुत तंग करता है और बातबात पर गालियां देता है. इस के बाद हरद्वारी ने यह भी कहा कि अब वह और मजदूरी नहीं करना चाहता है.

‘‘फिर क्या करोगे तुम?’’ बेला थोड़ा नरम हो गई थी.

हरद्वारी ने उस से कहा कि इस जलालत भरे काम से तो अच्छा है कि वह एक पुराना ईरिकशा खरीद ले और सवारियां ढोए.

बेला ने हरद्वारी के प्रस्ताव पर खुशी जताई, पर हरद्वारी ने उदास मन से बेला से ईरिकशा खरीदने भर के पैसे न होने की बात बताई.

‘‘पर, यह ईरिकशा कितने तक का आ जाएगा?’’ बेला ने पूछा.

‘‘पुराना भी लेंगे, तो 50,000 रुपए से कम कीमत का नहीं आएगा,’’ हरद्वारी की आवाज में थोड़ी सी फुरती दिखाई दे रही थी.

‘‘50,000…’’ बेला बुदबुदाने लगी थी. यह एक बड़ी रकम थी और बेला को पता था कि इतने पैसे उस के पास नहीं हैं.

अगले दिन से ही बेला पैसों के लिए अपना दिमाग दौड़ाने लगी थी. अपनी अलमारी के सारे पैसे निकाल कर देखे. कुछ गहने भी थे. कुलमिला कर इन सब की कीमत 10,000 रुपए से ज्यादा न होती यानी 50,000 में 40,000 अब भी कम थे.

बेला परेशान हो गई. अपने पति को ठेकेदार और दिहाड़ी के काम से वह छुटकारा दिलाना चाहती थी, पर पैसा इस राह में रोड़ा बन रहा था.

अगले दिन जब बेला देवीलाल के घर बरतन मांजने पहुंची, तो वह घर में नहीं था, बल्कि नीलम ही अकेली थी.

नीलम ने होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक लगाई हुई थी और उस के बाल भी खुले हुए लहरा रहे थे. आज वह रोज से दिखने में ठीकठाक लग रही थी.

‘‘आज आप औफिस नहीं गईं?’’ बेला ने पूछा.

नीलम ने उसे बताया कि देवीलाल किसी काम से बाहर गए हैं और शाम तक वापस आएंगे.

नीलम ने उसे बातोंबातों में यह भी बताया कि आज उस का जन्मदिन है और उस से मिलने एक बौयफ्रैंड आने वाला है.

अभी बेला और नीलम बातें कर ही रही थीं कि नीलम का दोस्त आ गया. दोनों एकदूसरे को देख कर बेचैन हो रहे थे, जिसे देख कर ही बेला उन के बीच के संबंधों की असलियत समझ गई.

नीलम ने जल्दी से बेला को काम निबटा कर चले जाने को कहा और खुद अपने बौयफ्रैंड के साथ ऊपर वाले कमरे में चली गई.

बेला को काम निबटाने में तकरीबन आधा घंटा लग गया. फिर वह ऊपर के कमरे की तरफ बढ़ती चली गई, पर कमरे के पास पहुंच कर उसे ठिठक जाना पड़ा, क्योंकि सामने कमरे में नीलम

और उस का दोस्त बिस्तर पर थे. नीलम अपने दोस्त के पैरों के बीच बैठी हुई मजे ले रही थी.

फिर पता नहीं बेला के दिमाग में क्या आया कि उस ने अपने मोबाइल फोन को निकाल कर इन दोनों की सैक्स करते हुए क्लिपिंग बना ली.

बेला कुछ दिनों तक तो चुप रही और मन ही मन प्लान बनाती रही, फिर एक दिन जब वह नीलम से मिली, तो उस ने नीलम को उस की सैक्स वाली वीडियो दिखाते हुए 40,000 रुपयों की मांग कर डाली और नीलम के द्वारा उसे पैसे नहीं दिए जाने पर यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देने को कहा.

बेला की बात सुन कर नीलम न तो डरी और न ही शरमाई, बल्कि हंसते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम यह वीडियो सोशल मीडिया में फैलाओ, समाज और आसपड़ोस वालों को दिखाओ… मैं किसी समाज से नहीं डरती…

‘‘कौन सा समाज…? वही समाज, जिस ने मेरे सांवले रंग के चलते मुझे आज तक कुंआरा रहने पर मजबूर कर दिया,’’ नीलम गुस्से में आ गई थी, ‘‘वही समाज न, जहां आएदिन लड़कियों का रेप होता है और समाज सिर्फ मोमबत्ती जला कर राजनीति करता है…

‘‘और वैसे भी मैं तुम्हें बता दूं कि मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम देवीलाल भैया को यह बात जा कर बता दोगी, मेरे और मेरे दोस्त के संबंधों के बीच उन्हें सब पता है और हम दोनों को समय देने के लिए ही वे बाहर चले जाते है…’’ इतना कह कर नीलम सांस लेने के लिए रुक गई.

बेला उस की बातें सुन कर हैरान थी. उस के प्लान पर पानी फिर गया था. उस ने सोचा था कि नीलम को ब्लैकमेल कर के वह कुछ पैसे की उगाही कर लेगी, जिस से उस का पति ईरिकशा खरीद सकेगा, पर यहां तो मामला ही उलटा पड़ गया था.

हरद्वारी बेमन से मजदूरी करने जाता था और मुंह लटका कर वापस आ जाता. पैसे का कोई इंतजाम न होने के चलते बेला कुछ दिन परेशान रही, फिर उस ने एक दिन देवीलाल से 40,000 रुपयों की मदद मांगी.

देवीलाल ने बेला को साफ मना कर करते हुए कहा कि अगर 2-4 हजार रुपयों की बात होती, तब तो वह जुगाड़ कर सकता था, पर 40,000 रुपए तो बहुत बड़ी रकम है.

पर, बेला की मदद करने के लिए देवीलाल ने उसे एक आदमी का पता और फोन नंबर देते हुए कहा, ‘‘यह आदमी एक नंबर का जिस्म का भूखा है. अगर तुम इस आदमी को अपने जिस्म के जाल में फंसा लो और उस के साथ हमबिस्तर हो जाओ, तो वह तुम्हें यह रकम भी दे सकता है.’’

बेला के सामने और कोई रास्ता तो था नहीं, इसलिए वह दिए गए पते पर जा पहुंची. यह वही जगह थी, जहां पर उस का पति मजदूरी करता था और जिस आदमी से उसे मिलना था, वह भी वही ठेकेदार था, जो उस के मरद को गालियां देता था.

उस ठेकेदार का नाम हरी सिंह था. बेला को अपने सामने देख उस के मुंह में पानी आ गया. कभी वह बेला के सीने को घूरता, तो कभी उस की नाभि को, फिर वह बोला, ‘‘रातभर के कितने पैसे लेगी?’’

बेला को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले, फिर भी उस ने कहा, ‘‘मुझे 40,000 रुपए चाहिए…’’

‘‘अपनेआप को कहीं की हीरोइन समझती है, 40,000… जानती भी है

कि कितनी बड़ी रकम होती है…’’ कि हरी सिंह आंखें निकालता हुआ बोल रहा था.

बेला वहां चुपचाप खड़ी थी. कुछ देर बाद हरी सिंह बोलने लगा, ‘‘हां, पर एक तरीका है.’’

हरी सिंह की यह बात सुन कर बेला की आंखों में चमक आ गई और उस के कान हरी सिंह की बात सुनने को आतुर हो उठे.

‘‘माल तो तू बढि़या है, इसलिए कहता हूं कि मेरा एक दोस्त और भी है… अगर तू हम दोनों को बारीबारी से खुश करती रहे तो हम लोग तुझे पैसा इकट्ठा कर के दे देंगे.’’

बेला के सामने और कोई रास्ता न होने के चलते उस ने हामी भर ली. हरी सिंह ने उसे अगले दिन शाम के समय उसी जगह पर बुलाया और हवस का खेल शुरू हो गया था.

उस कमरे में हरी सिंह और एक नया आदमी बैठे शराब पी रहे थे. बेला उन के सामने गई, तो हरी सिंह ने कहा, ‘‘आज तुझे पहले इन्हें खुश करना है… मेरा नंबर तो इन के बाद आएगा.’’

दूसरा आदमी बेला के जिस्म पर अपने हाथ फिराने लगा था. जाहिर सी बात थी कि बेला को इस बात से कोई कोफ्त नहीं हो रही थी.

धीरेधीरे उस आदमी ने बेला के कपड़े उतार दिए और कोने में पड़ी खटिया पर पटक कर सैक्स का मजा लेने लगा. उस के बाद हरी सिंह आ गया और वह भी बेला के बदन से खेलने लगा.

बेचारी बेला… उस का जिस्म थक चुका था, पर अपने पति को ईरिकशा दिलवाने की उम्मीद अभी भी बनी हुई थी. वह हर तरीके से उन लोगों को खुश रखना चाहती थी.

‘‘यह तू रोज शाम को देर से क्यों आती है?’’ हरद्वारी ने पूछा.

‘‘बस यों समझ ले कि तेरे ईरिकशा के लिए मेहनत कर रही हूं,’’ बेला ने कहा.

अब तो हरी सिंह पैसों का लालच दे कर बेला को वक्तबेवक्त बुलाता और उस के जिस्म से खेलता. बेला ने कई बार पैसे भी मांगे, पर हरी सिंह हर बार टालता ही रहा.

बेला समझ गई थी कि हरी सिंह उस की मजबूरी का फायदा उठा रहा है, इसलिए उस ने उंगली टेढ़ी करने की सोची और जब एक दिन हरी सिंह बेला के साथ सैक्स कर रहा था, तो चुपके से बेला ने उस की सैक्स वीडियो बना ली और खामोशी से घर चली आई.

2 दिन के बाद बेला हरी सिंह के अड्डे पर पहुंची और वीडियो क्लिप उसे दिखाते हुए बोली, ‘‘मुझे मेरी मेहनत के पैसे दे दो, नहीं तो मैं यह क्लिप तुम्हारे बीवीबच्चों और महल्ले में सब को दिखा दूंगी,’’ बेला ने चीख कर कहा, तो थोड़ी देर के लिए हरी सिंह और उस का दोस्त सहम गए, पर अगले ही पल वे दोनों जोरजोर से हंसने लगे.

‘‘तू हमारी सैक्स वीडियो बना कर हमें ब्लैकमेल क्या करेगी, हम तुझे बताते हैं कि सैक्स की वीडियो कैसे बनाई जाती है…’’ हरी सिंह बोला और तेजी से उठ कर बेला के शरीर से कपड़े हटाने लगा, पर आज बेला आरपार के मूड में थी, सो वह विरोध करने लगी.

हरी सिंह का दोस्त मोबाइल के कैमरे से यह सब शूट करने लगा. हरी सिंह जबरन बेला के साथ सैक्स की कोशिश करने लगा और जब तक उस का जी नहीं भरा, वह बेला के शरीर पर जुटा रहा.

‘‘अब मैं यह वीडियो इंटरनैट पर डाल कर पैसे भी कमाऊंगा और तेरे पति को भी दिखाऊंगा, ताकि तू हम से आइंदा पैसे की डिमांड न कर सके,’’ हरी सिंह बोला.

बेचारी बेला अब लुटपिट चुकी थी. भले ही वह लटकेझटके दिखा कर मर्दों को अपनी तरफ खींचती थी, दूसरे मर्दों के साथ सोने से गुरेज भी नहीं करती थी, पर अपना यह राज आज तक उस ने अपने पति से छिपाया हुआ था और उस के घर के आसपास के लोगों में भी उस की इमेज एक मेहनतकश औरत की बनी हुई थी.

‘अगर यह वीडियो मेरे पति को दिखा देगा, तो वह तो मारे शर्म के मर ही जाएगा और फिर मेरे आसपास का समाज… समाज की नजरों में तो मैं एक धंधे वाली के समान हो जाऊंगी…’ एकसाथ कई बातें बेला के जेहन में गूंज रही थीं.

‘‘ठीक है… मुझे तुम लोगों से कोई पैसे नहीं चाहिए, पर तुम यह वीडियो मेरे पति को मत दिखाना और न ही इसे इंटरनैट पर डालना…’’ बेला ने हाथ जोड़ कर कहा.

उस की इस बात पर हरी सिंह कुटिलता से मुसकरा उठा मानो उसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी.

एक तरफ बेला थी, जिस ने पति और समाज के डर से हरी सिंह से पैसे लिए बिना अपनी इज्जत को बचा लिया था. वहीं दूसरी तरफ देवीलाल की बहन नीलम थी, जो बिना समाज की चिंता किए अपने बौयफ्रैंड के साथ मजे कर रही थी.

हो सकता है वे दोनों औरतें अपनीअपनी जगह सही हों, पर इन सब के बीच हरद्वारी का ईरिकशा आज तक नहीं आ पाया है और उसे अब भी ठेकेदार के पास काम करने जाना पड़ रहा है और उस की भद्दी गालियां भी सहनी पड़ रही हैं.

आबरू : घर से क्यों भागी निशा

Social Story in Hindi: न जाने कितने लोगों ने हुस्न की उस मलिका को अपना दिल देना चाहा होगा, लेकिन चांद हर किसी को नहीं मिलता. जब वह तंग टीशर्ट और मिनी स्कर्ट पहनती थी, तो देखने वालों का दिल मचल जाता था. जहां एक ओर निशा नशीली आंखों वाली खूबसूरत लड़की थी, वहीं दूसरी ओर हरी चमकीली आंखों वाली रिया की अदा भी मोहक थी. घर से भागी हुई निशा को जब कोई महफूज ठिकाना नहीं मिला, तो उस ने खुराना फर्म में 5 हजार रुपए महीने की नौकरी कर ली. धीरेधीरे निशा का फर्म के मालिक निशांत से मेलजोल का सिलसिला बढ़ने लगा और वह उस की ललचाई निगाहों में बसने लगी.

यह फर्म विदेशों में माल सप्लाई करती थी. उस माल की जांचपड़ताल के लिए विदेशी अफसर 2-4 महीने में दिल्ली पहुंच कर पूरा हिसाबकिताब करते थे.

20 साला रिया भी खुराना फर्म में पहले से काम करती थी. एक दिन जब निशा देर से दफ्तर पहुंची, तो रिया उस पर ताना मारते हुए बोली, ‘‘आ गई हुस्नपरी. भला यहां कौन तुम से देर

से आने की वजह पूछने की हिम्मत करेगा? तुम बौस की चहेती जो बनती जा रही हो.’’

‘‘जलन होती है क्या?’’ निशा ने तिलमिला कर कहा.

‘‘लगता है, तुम बुरा मान गई. मैं तो यों ही मजाक कर रही थी. दरअसल, बौस के कमरे से 2 बार बुलावा आ चुका है. उन्हें किसी फाइल की जरूरत है, जो तुम्हारी टेबल की दराज में बंद है.

‘‘चाबी तुम्हारे पास है, इसलिए उसे खोला कैसे जा सकता था. अब तुम आ गई हो, तो झटपट निकाल कर ले जाओ.’’

‘‘मैं जरा बाथरूम में जा कर मुंह धो लूं. बस में इतनी भीड़ थी कि पसीने से तरबतर हो गई हूं,’’ इतना कह कर निशा बाथरूम से जल्दी निबट कर बौस के केबिन की ओर गई. चपरासी ने मुसकरा कर दरवाजा खोल दिया.

निशा के अंदर जाते ही किसी दूसरे को बौस से मिलने का मौका कम ही मिलता था. अंदर क्या गुल खिलता था, यह बात शायद रिया जानती थी.

केबिन में घुसते ही होंठों पर मुसकराहट लाते हुए निशा बोली, ‘‘सर, मुझे कुछ देर हो गई. कैसे याद किया?’’

बौस ने निशा की ओर देखा. उस ने अपने काले घुंघराले लंबे बालों को कसने के लिए पतला आसमानी रंग का रेशमी फीता बांध रखा था. उस के टौप के ऊपरी 2 बटन खुले थे.

‘‘आओआओ, वहां क्यों खड़ी हो? कुरसी पर बैठो,’’ बौस बोला.

सामने कुरसी पर अदा के साथ बैठते हुए निशा बोली, ‘‘क्या करूं सर, खचाखच भरी बस सामने से निकल गई, चढ़ने का मौका ही नहीं मिला.’’

‘‘कोई बात नहीं. तुम जा कर कुछ देर आराम कर लो, फिर कल वाली दी गई फाइल ले कर आना.’’

कोई दूसरा होता, तो बौस भड़क कर सारा गुस्सा उस पर उतार देते, लेकिन मामला एक हसीना का था, इसलिए वे चुप रह गए.

अपनी सीट पर बैठते ही निशा ने टेबल की दराज खोली, फाइल निकाली. उसी समय बगल में बैठी रिया ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा बौस ने?’’

‘‘बोलता क्या, मु?ा पर नजरें टिकाईं, तो सबकुछ भूल गया,’’ निशा बोली.

‘‘वह तो मैं जानती थी. तेरी नजरों के तीर ने जब उसे पहले ही घायल कर दिया, तो बोलने के लिए गले की आवाज का रुक जाना कोई बड़ी बात नहीं.’’

‘‘तुम्हें क्यों जलन होती है रिया?’’

‘‘जब किसी से इश्क होता है, तो होंठ सिल जाते हैं और निगाहें बोलना शुरू कर देती हैं. तुम कुछ दिनों में बौस को पहचान लोगी.’’

‘‘मुझे तो नहीं लगता कि बौस की नीयत में कुछ खोट है,’’ निशा बोली.

‘‘यह तुम्हारा भरम है. सच जल्दी ही तुम्हारे सामने आ जाएगा.’’

शाम के 6 बजे तक दफ्तर से तकरीबन सभी लोग जा चुके थे. निशा ने रिया से कहा, ‘‘चलो, हम चल कर किसी पास के रैस्टोरैंट में कुछ खापी लेते हैं. वहीं पर बातें भी होती रहेंगी.’’

‘‘ठीक है,’’ और दोनों बाहर जाने की तैयारी करने लगीं, तभी बौस ने निशा को अपने कमरे में बुलाया.

‘‘लो, बौस को तुम्हारी याद आ गई. अब तो घंटेभर से पहले तुम्हें फुरसत नहीं मिलेगी. तुम बौस से निबटती रहना, मैं अपने क्वार्टर पर जा रही हूं. फिर किसी दिन रैस्टोरैंट में चलेंगे,’’ इतना कह कर रिया चली गई.

‘‘कैसे याद किया सर?’’ निशा ने बौस के कमरे में जा कर पूछा.

‘‘बैठो. आज तुम्हें कुछ जरूरी काम से देर तक रुकना पड़ेगा. तुम थकी होगी, इसलिए मैं ने कौफी मंगाई है.’’

निशा ने अपना हैंडबैग अलग रखा और बौस की टेबल के सामने कुरसी पर इतमीनान से बैठ गई.

थोड़ी देर बाद किसी होटल का बैरा कौफी सैट और नाश्ता डाइनिंग टेबल पर सजाने लगा. साथ में अंगरेजी शराब की बोतल, कांच के गिलास और बर्फ भी थी.

दूसरे दिन रिया ने निशा से 2 घंटा देर से आने की वजह जाननी चाही, तो वह चुप रही. उस दिन बौस भी बहुत देर से दफ्तर पहुंचा था.

‘‘मेरी जान, तुम ने बौस के साथ रातभर क्या गुल खिलाया?’’

‘‘जो भी समझ लो.’’

‘‘उस ने तुम्हें रात को कितने बजे छोड़ा?’’

‘‘3 बज रहे थे. बौस मुझे खुद अपनी कार से घर तक छोड़ने गए थे.’’

‘‘यह तो होना ही था. रातभर काफी परेशान किया होगा, जैसा कि तुम्हारे मुरझाए चेहरे से लग रहा है.’’

‘‘घर पहुंच कर मुझे देर तक नींद नहीं आई. तुम्हारी चेतावनी भी याद आने लगी थी.’’

‘‘और क्या हुआ?’’

‘‘हम दोनों शाम को रैस्टोरैंट में बातें करेंगे. मुझे कुछ जरूरी काम सौंपा गया है,’’ निशा ने धीमी आवाज में कहा.

रिया दिनभर यह जानने को बेचैन थी कि बौस ने निशा पर किस तरह फंदा डाला और उस के साथ क्याक्या हुआ, लेकिन निशा टालती रही.

शाम को दफ्तर खत्म होने के बाद जब लोग घर जाने की तैयारी करने लगे, तब चपरासी ने रिया को खबर दी, ‘‘बौस आप को बुला रहे हैं.’’

उसे जाते देख कर निशा ने कहा, ‘‘लो, आज तुम्हारी बारी है. अच्छी तरह निबट लेना. मैं तो चली.’’

जब रिया बौस के केबिन में पहुंची, तो बौस ने कहा, ‘‘रिया, स्कौटलैंड से वहां की बड़ी फर्म का सचिव पीटर फेरी हमारी कंपनी के माल और फाइलों की जांच करने आया है. दिन में मैं ने उसे फैक्टरी में घुमाफिरा कर तो खुश कर दिया, लेकिन रात में वह होटल नाज में फाइलों की चैकिंग करेगा.

‘‘उस का कमरा नंबर 120 है. तुम्हें फाइलों की चैकिंग इस तरह करानी है, ताकि उसे कोई गड़बड़ी न मिले. तुम

इस मामले में काफी होशियार हो. पिछली रात मैं ने निशा से सारी फाइलें ठीक करा दी हैं.’’

‘‘सर, अगर आप निशा को ही मेरी जगह भेज देंगे, तो अच्छा रहेगा. विदेश से आए लोगों के पास हर बार मुझे ही जाना पड़ता है,’’ रिया ने अपनी बात रखी.

‘‘इसलिए कि तुम उन्हें बेहतर तरीके से खुश करती रही हो. निशा तो अभी ठीक से सीख भी नहीं पाई है.’’

‘‘उन में कुछ लोग ज्यादा ही परेशान  करते हैं,’’ रिया ने कहा.

‘‘नौकरी करनी है, तो यह सब भी बरदाश्त करना पड़ेगा. तुम्हें 10 हजार की तनख्वाह यों ही नहीं दी जाती. मेरा ड्राइवर तुम्हें तुम्हारे घर से होटल पहुंचाएगा. वहां का काम खत्म होने पर वह तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देगा.

‘‘तुम्हारे खानेपीने का इंतजाम पीटर फेरी के साथ ही रहेगा. अगर वह तुम्हारी सेवा से खुश हो गया, तो अपनी फर्म को और ज्यादा माल विदेश भेजने में सहूलियत होगी,’’ बौस ने समझाया.

‘‘अब मैं जाऊं सर?’’ रिया ने पूछा.

‘‘जाओ. खयाल रखना,’’ बौस ने मुसकरा कर उसे विदा किया.

दूसरे दिन रिया दफ्तर नहीं आई. रातभर उसे होटल नाज में रहना पड़ा था.

तीसरे दिन रिया चहकते हुए निशा से बोली, ‘‘मैं बहुत खुश हूं. मैं तुम से अपनी खुशी का इजहार रैस्टोरैंट में करना चाहती हूं. चलो, वहां चलें.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘इस समय मूड मत खराब करो,’’ कहते हुए रिया निशा को खींच कर रैस्टोरैंट ले गई.

रैस्टोरैंट में रिया ने निशा के लिए कौफी और अपने लिए ह्विस्की और नाश्ते का और्डर दिया.

‘‘आज मैं दफ्तर नहीं जाऊंगी. तुम जा कर बौस को बता देना कि मैं बहुत थकी हुई हूं. वे समझ जाएंगे कि मुझे स्कौटलैंड से आए पीटर फेरी की रातभर सेवा करनी पड़ी थी.’’

‘‘अब मैं समझ,’’ निशा हंसते हुए रिया से बोली.

रिया ने मुसकराते हुए बताया, ‘‘यार, पीटर फेरी तो गजब का मर्द निकला. मैं ने आज तक ऐसा दिलदार मर्द नहीं देखा. वह पूरी रात मेरे जिस्म से खेलता रहा.

‘‘मैं ने उसे कई बार फाइल पढ़ने के लिए कहा, लेकिन नशे में वह केवल हर पन्ने पर सही का निशान लगाते हुए दस्तखत करता रहा.

‘‘वह बारबार मेरी तारीफों के पुल बांधता रहा. उस की बातें सुन कर मैं भी मन ही मन खुश थी. हर औरत अपनी खूबसूरती की तारीफ सुन कर मर्द पर ज्यादा मेहरबान होती है.

‘‘न जाने कब किस मोड़ पर किसी से प्यार हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता. हम लाख अपने दिल को समझाएं, नियम और मर्यादा में खुद को बांध कर रखें, मगर दिल अगर किसी पर मरमिटना चाहे, तो दिमाग कुछ नहीं सुनतासोचता.

‘‘उस मर्द के बच्चे ने मेरा सारा जिस्म निचोड़ डाला. जवानी एक ऐसा नशा होती है, जिस में औरत हो या मर्द, दोनों में मदहोशी बनी रहती है.

‘‘सच कहूं, पीटर फेरी इतना खुश था कि वह जातेजाते मेरे पर्स में 20 हजार रुपए रख गया और दोबारा मुझ से ही मिलने का वादा लेता गया.’’

इस के बाद कुछ देर तक दोनों में खामोशी रही, फिर रिया ने निशा से पूछा, ‘‘यार, तुम्हारी रात बौस के साथ कैसी कटी थी?’’

‘‘मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था, क्योंकि जिस दिन ऐसी नौबत आएगी, मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूंगी. वैसे, मैं तुम्हें बता दूं कि बौस मेरे साथ शादी करना चाहता है.

‘‘उस रात वह मुझे बारबार यही समझाता रहा कि उस से शादी कर के मैं बेहद खुश रहूंगी, क्योंकि अभी तक उसे ऐसी कोई लड़की पसंद नहीं आई, जिसे वह अपना हमसफर बना सके.

‘‘उस ने मुझे यह भी बताया कि तुम ने उस पर कई बार डोरे डालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.

‘‘सच पूछो, तो तुम ऐसे ही काम निबटाने के लिए फर्म में रखी गई हो. जैसेजैसे फर्म की आमदनी बढे़गी, तुम्हारी तनख्वाह भी बढ़ेगी.

‘‘एक बात याद रखना. इस नौकरी को छोड़ने के बाद तुम्हें ऐसा सुनहरा मौका नहीं मिलेगा. विदेशी लोग तो कभीकभी आते हैं, लेकिन तुम ने दूसरों को ज्यादा जोश दिखाया, तो कहीं की नहीं रहोगी, इसलिए बेहतर होगा कि किसी को अपना जीवनसाथी बना कर इस काम को छोड़ दो.

‘‘कुछ नहीं तो अपने बौस पर ही फंदा कसना शुरू करो. शायद वह तुम्हारे बस में आ जाए, क्योंकि इस कला में तुम काफी माहिर हो.’’

‘‘वह ऐसा नहीं है, जिस पर मेरे हुस्न का जादू चल सके,’’ रिया बोली.

‘‘फिर तुम ने कैसे सोच लिया कि मैं एक ही रात में उस की गुलाम बन गई थी. वह चाहता तो नशे में मेरे साथ बदसुलूकी कर सकता था, पर हिम्मत नहीं बटोर सका.

‘‘जिंदगी में हर किसी का एक सपना होता है. उसे पूरा करने के लिए कुछ लोग तुम्हारा रास्ता चुनते हैं, तो कुछ मेरी तरह कड़ी मेहनत करते हैं,’’ इतना कह कर निशा वहां से चली गई.

मेरे कपड़े उन के कपड़े : कैरैक्टर की कहानी

खैर, कैरैक्टर तो मैं अपना बहुत पहले नीलाम कर चुका हूं. यह जो मेरे पास दोमंजिला मकान, आलीशान गाड़ी है, सब मैं ने अपना कैरैक्टर नीलाम करने के बाद ही हासिल की है. इनसान जिंदगी में चाहे कितनी ही मेहनत क्यों न करे, पर जब तक वह अपने कैरैक्टर को बंदरिया के मरे बच्चे सा अपने से चिपकाए रखता है, तब तक भूखा ही मरता है.

इधर बंदे ने अपना कैरैक्टर नीलाम किया, दूसरी ओर हर सुखसुविधा ने उसे सलाम किया. कहने वाले जो कहें सो कहते रहें, पर अपना तजरबा है कि जब तक बंदे के पास कैरैक्टर है, उस के पास केवल और केवल गरीबी है.

पर कैरैक्टर नीलाम करने के बाद कमबख्त फिर गरीबी आन पड़ी. जमापूंजी कितने दिन चलती है? अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपना क्या नीलाम करूं? अनारकली होता, तो मीना बाजार जा पहुंचता.

जब मुझे पता चला कि उन के कपड़े डेढ़ करोड़ रुपए में बिके, तो अपना तो कलेजा ही मुंह को आ गया. लगा, मेरे लिए नीलामी का एक दरवाजा और खुल गया. जिस के कपड़े ही डेढ़ करोड़ के नीलाम हो रहे हों, वह बंदा आखिर कितना कीमती होगा?

बस, फिर क्या था. मुझे उन के कपड़ों की नीलामी की बोली के अंधेरे में उम्मीद की किरण नहीं, बल्कि दोपहर का चमकता सूरज दिखा और मैं ने आव देखा न ताव, अपने और बीवी के सारे कपड़ों के साथ पड़ोसी की बीवी के भी चार फटेपुराने कपड़ों की गठरी बांधी और लखपति होने के सपने लेता बाजार चलने को हुआ, तो बीवी ने टोका, ‘‘अब ये मेरे कपड़े कहां लिए जा रहे हो? पागलपन की भी हद होती है.’’

‘‘मैं बाजार जा रहा हूं… नीलाम करने,’’ मैं ने ऐसा कहा, तो बीवी चौंकी, ‘‘अपना सबकुछ नीलाम करने के बाद अब कपड़े भी नीलाम करने की नौबत आ गई क्या?’’

‘‘आई नहीं. नौबत क्रिएट कराई है उन्होंने. तेरेमेरे इन कपड़ों में मुझे लाखों रुपए की कमाई दिख रही है. चल फटाफट बंधी गांठ उठवा और शाम को मेरे आते ही लखटकिया की बीवी हो जा.’’

‘‘पर, इन कपड़ों को कौन गधा खरीदेगा?’’ कहते हुए वह परेशान हो गई.

‘‘अरी भागवान, ये कोई मामूली कपड़े नहीं हैं, बल्कि ये लैलामजनूं, हीररांझा, शीरींफरहाद के ऐतिहासिक कपड़े हैं.

‘‘तू भी न… सारा दिन टैलीविजन के पास बैठीबैठी बस सासबहू के सीरियल ही देखती रहती है. कभी समाचार सुनने नहीं, तो कम से कम देख ही लिया कर. उन के कपड़े की एक जोड़ी डेढ़ करोड़ रुपए में बिकी. हो सकता है कि लाखों रुपए में न सही, तो कम से कम हजारों रुपए में अपने ये कपड़े भी कोई खरीद ले.’’

‘‘घर में कोई जोड़ी बदलने के लिए भी छोड़ी है कि नहीं? कोई क्या पागल है, जो हमारे न पहनने लायक कपड़ों की बोली लगाएगा?’’

यह मेरी बीवी भी न, जब देखो शक में ही जीती रहती है.

‘‘क्यों न लगाएगा… मैं अपने कपड़ों को चमत्कारी रंग दे कर ऐसा प्रचार करूंगा कि… मसलन, ये कपड़े मेरी बीवी को हीर ने उसे तब दिए थे, जब वह पहली बार मुझ से मंदिर जाने के बहाने मिलने आई थी.

‘‘और ये कपड़े मेरी बीवी को लैला ने हमारी फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी पर दिए थे. यह वाला सूट हीर ने उसे उस की बर्थडे पर गिफ्ट किया था.

‘‘यह सूट तो तुम्हें महारानी विक्टोरिया ने खुद अपने हाथों से सिल कर दिया था. और मेरा कुरतापाजामा मजनूं ने मेरी शादी पर तब मुझे पहनाया था, जब मैं घोड़ी लायक पैसे न होने के चलते गधे पर शान से बैठ कर तुम्हें ब्याहने गया था.

‘‘यह तौलिया महात्मा गांधी का है, जिस से वे अपनी नाक पोंछा करते थे. यह उन्होंने मेरे दादाजी को भेंट में दिया था. यह रूमाल जवाहरलाल नेहरू का है. मेरे पिताजी जब 15 अगस्त को उन से मिलने गए थे, तो लालकिले पर झंडा फहराने के बाद इसे उन्होंने उन्हें उपहार के तौर पर दिया था.’’

‘‘और यह मफलर?’’

‘‘रहने दे. इसे बाद में देखेंगे. इसे कुछ काम तो करने दे,’’ जब मैं बोला, तो पहली बार उसे मुझ पर यकीन हुआ और उस ने कोई सवाल नहीं उठाया.

उलटे सुनहरे ख्वाब बुनते हुए मैं ने अपने सिर पर कपड़ों की बंधी गांठ रखी और मैं एक बार फिर अपने माल को नीलाम करने बाजार में जा खड़ा हुआ.

बाजार में पहुंचते ही खाली जगह देख कर दरी बिछाई और अपने और अपनी परीजादी को गिफ्ट में मिले सारे कपड़े उस पर बिखेर दिए.

पर यह क्या… एक घंटा बीता… 2 घंटे बीते… कोई कपड़ों के पास आ ही नहीं रहा था. उलटा, जो भी हमारे कपड़ों के पास से गुजर रहा था, नाक पर हाथ रख लेता. शाम तक मैं नीलामी करने वालों को टुकुरटुकुर ताकता रहा. अब समस्या यह कि गांठ जो बांध भी लूं, तो उठवाए कौन?

तभी एक पुलिस वाला आ धमका. वह डंडे से मेरी बीवी के कपड़ों को टटोलने लगा, तो मुझे उस की इस हरकत पर बेहद गुस्सा आया. पर बाजार की बात थी, सो चुप रहा.

‘‘अरे, यह सब क्या है? चोरी के कपड़े हैं क्या? यमुना के किस छोर से चिथड़े उठा लाया?’’

‘‘नहीं साहब, ये वाले हीर के हैं, ये वाले लैला के हैं. ये वाले मजनूं के हैं और ये वाले ओबामा की जवानी के दिनों के…

‘‘और ये…

‘‘फरहाद के…’’

‘‘छि:, इतने गंदे?’’

‘‘बरसों से धोए नहीं हैं न साहब. जस के तस संभाल कर रखे हैं.’’

‘‘मतलब, पुलिस वाले को उल्लू बना रहा है?’’

‘‘उल्लू… और आप को? मर जाए, जो आप को उल्लू बनाए,’’ कह कर मैं ने उस के दोनों पैरों को हाथ लगाया, तो वह आगे बोला, ‘‘म्यूजियम से चुरा कर लाया है क्या?’’ कह कर वह मुसकराता हुआ मेरी जेब में झांकने लगा, तो मैं ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘साहब, उन की देखादेखी मैं भी इन्हें नीलाम करने ले आया था.’’

‘‘पता है, वे किस के कपड़े थे? चल उठा जल्दी से इन गंदे कपड़ों को, वरना…’’

तभी सामने से पुराने कपड़े लेने वाली एक औरत आ धमकी और कमर नचाते हुए बोली, ‘‘ऐ, क्या लोगे इन सब पुराने कपड़ों का? 2 पतीले लेने हों, तो जल्दी बोलो…’’

मास्साबों का दर्द : गांवभर की भौजाई क्यों हो गए हैं मास्साब

हमारे गांवदेहात में एक कहावत मशहूर है कि ‘गरीब की लुगाई गांवभर की भौजाई’. कुछ यही हाल हमारे देश के मास्साबों का हो गया है. सरकार ने इन्हें भी गांवभर की भौजाई समझ लिया है. जनगणना से ले कर पशुगणना तक, ग्राम पंचायत के पंच से ले कर संसद सदस्य तक के चुनाव मास्साबों के जिम्मे है.

किस गांव में कितने कमउम्र बच्चों को पोलियो की खुराक देनी है, गांव के कितने मर्दऔरतों ने नसबंदी कराई है, कितने बच्चों के जाति प्रमाणपत्र कचहरी में धूल खा रहे हैं, कितनों की आईडी रोजगार सहायक के कंप्यूटर में कैद है, कितने परिवार गरीबी की रेखा के नीचे दब कर छटपटा रहे हैं और कितने गरीबी की रेखा को पीछे सरकाते हुए आगे निकल गए हैं, कितने परिवार घर में शौचालय न होने के चलते खुले में शौच करते हैं. कितने लोगों के आधार कार्ड नहीं बने हैं, कितनों के बैंक में लिंक नहीं हुए, बच्चों का वजीफा, साइकिल, खाता खोलने के लिए बैंकों के कितने चक्कर लगाने हैं, इन सब बातों की जानकारी भला मास्साबों से बेहतर कौन जान सकता है. सरकार ने मास्साबों के इसी हुनर को देख कर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारे काम उन्हें दे रखे हैं. सरकार जानती है कि पढ़ाई का क्या है, वह तो बच्चे को जिंदगीभर करनी है. पढ़ाईलिखाई के महकमे की बैठकों में अफसर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारी बातें करते हैं. किसी गांव को पूरी तरह पढ़ालिखा बनाना मास्साबों को बाएं हाथ का खेल लगता है.

मास्साब कहते हैं कि हम तो सरकारी आदेशों के गुलाम हैं. सरकार जो चाहे खुशीखुशी कर देते हैं. आखिर पगार काहे की लेते हैं. सरकार द्वारा दिए गए लोगों के भले के कामों की वजह से मास्साब की ईमानदारी पर शक किया जाने लगा है. जब सरकारी स्कूलों में मास्साब कभी किचन शैड, शौचालय या ऐक्स्ट्रा कमरा बनाने का काम कराते हैं, तो वे देश के लिए इंजीनियर और ठेकेदार का रोल भी निभाते हैं. यही बात गांव वालों को खलती है और वे मास्साब की ईमानदारी पर भी बेवजह शक करने लगते हैं. गांवों में अकसर ही लोगों को यह शिकायत रहती है कि मास्साब नियमित स्कूल नहीं आते, बच्चों को ठीक से नहीं पढ़ाते, घर में कोचिंग क्लास चलाते हैं.

अरे जनाब, आप को पता होना चाहिए कि बच्चे मास्साब के कंधों पर कितना बड़ा बोझ हैं. बच्चे भी क्या कम हैं, वे स्कूल पढ़ने नहीं रिसर्च करने आते हैं. बच्चे मास्साब के स्मार्टफोन का मजा लेते हैं. ह्वाट्सऐप पर भेजे वीडियो व फोटो को भी वे शेयर करते हैं. मास्साब की फेसबुक पर वे कमैंट करने में भी पीछे नहीं हैं. कभी मास्साब को समय मिलता है और वे लड़कों को भारत का इतिहास पढ़ाते हैं, तो भी क्लास की लड़कियों के इतिहास की जानकारी लेने में बिजी रहते हैं. लड़कियों के इतिहास पर लड़कों

की रिसर्च चलती रहती है. इस के लिए थीसिस, जिसे नासमझ प्रेमपत्र भी कहते हैं, लिखने का काम भी करते हैं, तभी उन्हें पीएचडी यानी शादी बतौर अवार्ड मिल पाती है. यह बात और है कि ज्यादातर लड़कों का इस काम में भूगोल बिगड़ने का खतरा रहता है. रिजल्ट भी खराब आता है, जिस की जिम्मेदारी मास्साबों पर थोपी जाती है. लड़कों की गलतियों की सजा मास्साबों की वेतन वृद्धि रोक कर वसूल की जाती है.

यही वजह है कि मास्साब कभीकभी नकल की खुली छूट दे देते हैं. इस से रिजल्ट भी अच्छा बन जाता है और छात्रों की नजर में मास्साब की इज्जत भी बढ़ जाती है. इस तरह मास्साब एक पंथ दो काज निबटा लेते हैं. मास्टरी के क्षेत्र में औरतों की चांदी है. मैडमजी सुबहसवेरे ही सजसंवर कर स्कूल चली जाती हैं और चूल्हाचौका सासूजी के मत्थे मढ़ जाती हैं.

कुमारियां तो स्कूल को किसी फैशन परेड का रैंप समझती हैं, तो श्रीमतियां अपने घर के काम निबटा लेती हैं. वे स्कूल समय में मटर छील लेती हैं, पालकमेथी के पत्तों को तोड़ कर सब्जी बनाने की पूरी तैयारी कर लेती हैं. कभीकभार जब समय नहीं रहता, तो स्कूल के मिड डे मील की बची हुई रेडीमेड सब्जीपूरी भी घर ले जाती हैं. ठंड के दिनों में स्वैटर बुनने की सब से अच्छी जगह सरकारी स्कूल ही होती है, जहां पर कुनकुनी धूप में बच्चों को मैदान में बिठा कर उन्हें जोड़घटाने के सवालों में उलझा कर मैडम अपने पति के स्वैटर के फंदों का जोड़घटाना कर ह्वाट्सऐप के मजे लेती हैं.

कुछ मैडमें अपने नन्हेमुन्ने बच्चों को भी साथ में स्कूल ले आती हैं, जिन के लालनपालन की जिम्मेदारी क्लास के गधा किस्म के बच्चों की होती है. उन की इस सेवा के बदले उन का प्रमोशन अगली क्लास में कर दिया जाता है. जब से सरकार ने मास्साबों की भरती में औरतों को 50 फीसदी रिजर्वेशन व उम्र की सीमा को खत्म किया है, तब से सास बनी बैठी औरतों ने भी मास्टरनी बनने की ठानी है. अब देखना यही है कि रसोई की कमान मर्दों के हाथों में आती है या नहीं?

देश के महामहिम राष्ट्रपति रह चुके डा. राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जाता है. स्कूली बच्चे चंदा कर के मास्साब के लिए शाल और चायबिसकुट का इंतजाम करते हैं.

देश के राष्ट्रपति द्वारा इस दिन दिल्ली में होनहार मास्साबों को सम्मानित किया जाता है. कुछ मास्साब यहां भी अपने हुनर को दिखा कर टैलीविजन चैनलों पर अवार्ड लेते दिख जाते हैं. अवार्ड लेने के बाद मास्साबों को गांवगांव, गलीगली में सम्मानित किया जाता है. इसी चक्कर में मास्साब कईकई दिनों तक स्कूल नहीं पहुंच पाते. पर कभीकभार स्कूल के हाजिरी रजिस्टर पर दस्तखत कर उसे भी गौरवान्वित कर आते हैं.

ठीक ही तो है कि सारी ईमानदारी का बोझ अकेले मास्साबों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता. जब से देश को बनाने की जिम्मेदारी अंगूठा लगाने वाले जनप्रतिनिधि निभाने लगे हैं, तब से मास्साबों को शर्म आने लगी है. इतनी पढ़ाई के बाद भी मास्साब अंगूठे की छाप नहीं बदल सके? काश, मास्साबों का यह दर्द कोई समझ पाता.

फर्क कथनी और करनी का : सुच्चामल फैला रहा था रायता

सुच्चामल हमारी कालोनी के दूसरे ब्लौक में रहते थे. हर रोज मौर्निंग वाक पर उन से मुलाकात होती थी. कई लोगों की मंडली बन गई थी. सुबह कई मुद्दों पर बातें होती थीं, लेकिन बातों के सरताज सुच्चामल ही होते थे. देशदुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता था जिस पर वे बात न कर सकें. उस पर किसी दूसरे की सहमतिअसहमति के कोई माने नहीं होते थे, क्योंकि वे अपनी बात ले कर अड़ जाते थे. उन की खुशी के लिए बाकी चुप हो जाते थे. बड़ी बात यह थी कि वे, सेहत के मामले में हमेशा फिक्रमंद रहते थे. एकदम सादे खानपान की वकालत करते थे. मोटापे से बचने के कई उपाय बताते थे. दूसरों को डाइट चार्ट समझा देते थे. इतना ही नहीं, अगले दिन चार्ट लिखित में पकड़ा देते थे. फिर रोज पूछना शुरू करते थे कि चार्ट के अनुसार खानपान शुरू किया कि नहीं. हालांकि वे खुद भी थोड़ा थुलथुल थे लेकिन वे तर्क देते थे कि यह मोटापा खानपान से नहीं, बल्कि उन के शरीर की बनावट ही ऐसी है.

एक दिन सुबह मुझे काम से कहीं जाना पड़ा. वापस आया, तो रास्ते में सुच्चामल मिल गए. मैं ने स्कूटर रोक दिया. उन के हाथ में लहराती प्लास्टिक की पारदर्शी थैली को देख कर मैं चौंका, चौंकाने का दायरा तब और बढ़ गया जब उस में ब्रैड व बड़े साइज में मक्खन के पैकेट पर मेरी नजर गई. मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि सुच्चामल की बातें मुझे अच्छे से याद थीं. उन के मुताबिक वे खुद भी फैटी चीजों से हमेशा दूर रहते थे और अपने बच्चों को भी दूर रखते थे. इतना ही नहीं, पौलिथीन के प्रचलन पर कुछ रोज पहले ही उन की मेरे साथ हुई लंबीचौड़ी बहस भी मुझे याद थी.

वे पारखी इंसान थे. मेरे चेहरे के भावों को उन्होंने पलक झपकते ही जैसे परख लिया और हंसते हुए पिन्नी की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘क्या बताऊं भाईसाहब, बच्चे भी कभीकभी मेरी मानने से इनकार कर देते हैं. कई दिनों से पीछे पड़े हैं कि ब्रैडबटर ही खाना है. इसलिए आज ले जा रहा हूं. पिता हूं, बच्चों का मन रखना भी पड़ता है.’’

‘‘अच्छा किया आप ने, आखिर बच्चों का भी तो मन है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं बृजमोहन, आप को पता है मैं खिलाफ हूं इस के. अधिक वसा वाला खानपान कभीकभी मेरे हिसाब से तो बहुत गलत है. आखिर बढ़ते मोटापे से बचना चाहिए. वह तो श्रीमतीजी भी मुझे ताना देने लगी थीं कि आखिर बच्चों को कभी तो यह सब खाने दीजिए, तब जा कर लाया हूं.’’ थोड़ा रुक कर वे फिर बोले, ‘‘एक और बात.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, तो वे नाखुशी वाले अंदाज में बोले, ‘‘मुझे तो चिकनाईयुक्त चीजें हाथ में ले कर भी लगता है कि जैसे फैट बढ़ रहा है, चिकनाई तो दिल की भी दुश्मन होती है भाईसाहब.’’

‘‘आइए आप को घर तक छोड़ दूं,’’ मैं ने उन्हें अपने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया, तो उन्होंने सख्त लहजे में इनकार कर दिया, ‘‘नहीं जी, मैं पैदल चला जाऊंगा, इस से फैट घटेगा.’’

आगे कुछ कहना बेकार था क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे ही नहीं. लिहाजा, मैं अपने रास्ते चला गया.

2 दिन सुच्चामल मौर्निंग वौक पर नहीं आए. एक दिन उन के पड़ोसी का फोन आया. उस ने बताया कि सुच्चामल को हार्टअटैक आया है. एक दिन अस्पताल में रह कर घर आए हैं. अब मामला ऐसा था कि टैलीफोन पर बात करने से बात नहीं बनने वाली थी. घर जाने के लिए मुझे उन की अनुमति की जरूरत नहीं थी. यह बात इसलिए क्योंकि वे कभी भी किसी को घर पर नहीं बुलाते थे बल्कि हमारे घर आ कर मेरी पत्नी और बच्चों को भी सादे खानपान की नसीहतें दे जाते थे.

मैं दोपहर के वक्त उन के घर पहुंच गया. घंटी बजाई तो उन की पत्नी ने दरवाजा खोला. मैं ने अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोलीं, ‘‘अच्छाअच्छा, आइए भाईसाहब. आप का एक बार जिक्र किया था इन्होंने. पौलिथीन इस्तेमाल करने वाले बृजमोहन हैं न आप?’’

‘‘ज…ज…जी भाभीजी.’’ मैं थोड़ा झेंप सा गया और समझ भी गया कि अपने घर में उन्होंने खूब हवा बांध रखी है हमारी. सुच्चामल के बारे में पूछा, तो वे मुझे अंदर ले गईं. सुच्चामल ड्राइंगरूम के कोने में एक दीवान पर पसरे थे. मैं ने नमस्कार किया, तो उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. चेहरे के भावों से लगा कि उन्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा था. हालचाल पूछा, ‘‘बहुत अफसोस हुआ सुन कर. आप तो इतना सादा खानपान रखते हैं, फिर भी यह सब कैसे हो गया?’’

‘‘चिकनाई की वजह से.’’ जवाब सुच्चामल के स्थान पर उन की पत्नी ने थोड़ा चिढ़ कर दिया, तो मुझे बिजली सा झटका लगा, ‘‘क्या?’’

‘‘कैसे रोकूं अब इन्हें भाईसाहब. ऐसा तो कोई दिन ही नहीं जाता जब चिकना न बनता हो. कड़ाही में रिफाइंड परमानैंट रहता है. कोई कमी न हो, इसलिए कनस्तर भी एडवांस में रखते हैं.’’ उन की बातों पर एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘लेकिन भाभीजी, ये तो कहते हैं कि चिकने से दूर रहता हूं?’’

‘‘रहने दीजिए भाईसाहब. बस, हम ही जानते हैं. किचेन में दालों के अलावा आप को सब से ज्यादा डब्बे तलनेभूनने की चीजों से भरे मिलेंगे. बेसन का 10 किलो का पैकेट 15 दिन भी नहीं चलता. बच्चे खाएं या न खाएं, इन को जरूर चाहिए. बारिश की छोड़िए, आसमान में थोड़े बादल देखते ही पकौड़े बनाने का फरमान देते हैं.’’

यह सब सुन कर मैं हैरान था. सुच्चामल का चेहरा देखने लायक था. मन तो किया कि उन की हर रोज होने वाली बड़ीबड़ी बातों की पोल खोल दूं, लेकिन मौका ऐसा नहीं था. सुच्चामल हमेशा के लिए नाराज भी हो सकते थे. यह राज भी समझ आया कि सुच्चामल अपने घर हमें शायद पोल खुलने के डर से क्यों नहीं बुलाना चाहते थे. इस बीच, डाक्टर चैकअप के लिए वहां आया. डाक्टर ने सुच्चामल से उन का खानपान पूछा, तो वह चुप रहे. लेकिन पत्नी ने जो डाइट चार्ट बताया वह कम नहीं था. सुच्चामल सुबह मौर्निंग वाक से आ कर दबा कर नाश्ता करते थे.

हर शाम चाय के साथ भी उन्हें समोसे चाहिए होते थे. समोसे लेने कोई जाता नहीं था, बल्कि दुकानदार ठीक साढ़े 5 बजे अपने लड़के से 4 समोसे पैक करा कर भिजवा देता था. सुच्चामल महीने में उस का हिसाब करते थे. रात में भरपूर खाना खाते थे. खाने के बाद मीठे में आइसक्रीम खाते थे. आइसक्रीम के कई फ्लेवर वे फ्रिजर में रखते थे. मैं चलने को हुआ, तो मैं ने नजदीक जा कर समझाया, ‘‘चलता हूं सुच्चामल, अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘चिकने से परहेज कर के सादा खानपान ही कीजिए.’’

‘‘मैं तो सादा ही…’’ उन्होंने सफाई देनी चाही, लेकिन मैं ने बीच में ही उन्हें टोक दिया, ‘‘रहने दीजिए, तारीफ सुन चुका हूं. डाक्टर साहब को भी भाभीजी ने आप की सेहत का सारा राज बता दिया है.’’ मेरी इस सलाह पर वे मुझे पुराने प्राइमरी स्कूल के उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिस की मास्टरजी ने सब से ज्यादा धुनाई की हो. अगले दिन मौर्निंग वाक पर गया, तो हमारी मंडली के लोगों को मैं ने सुच्चामल की तबीयत के बारे में बताया, तो वे सब हैरान रह गए.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ एक ने पूछा, तो मैं ने बताया, ‘‘अजी खानपान की वजह से.’’

एक सज्जन चौंक कर बोले, ‘‘क्या…? इतना सादा खानपान करते थे, ऐसा तो नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अजी काहे का सादा.’’ मेरे अंदर का तूफान रुक न सका और सब को हकीकत बता दी. मेरी तरह वे भी सुन कर हैरान थे. सुच्चामल छिपे रुस्तम थे. कुछ दिनों बाद सुच्चामल मौर्निंग वाक पर आए, लेकिन उन्होंने खानपान को ले कर कोई बात नहीं की. 1-2 दिन वे बोझिल और शांत रहे. अचानक उन का आना बंद हो गया.

एक दिन पता चला कि वे दूसरे पार्क में टहल कर लोगों को अपनी सेहत का वही ज्ञान बांट रहे हैं जो कभी हमें दिया करते थे. हम समझ गए कि सुच्चामल जैसे लोग ज्ञान की गंगा बहाने के रास्ते बना ही लेते हैं. यह भी समझ आ गया कि कथनी और करनी में कितना फर्क होता है. सुच्चामल से कभीकभी मुलाकात हो जाती है, लेकिन वे अब सेहत के मामले पर नहीं बोलते.

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