हर मुद्दे पर खुल कर बोल रहे हैं राहुल गांधी

उत्तर प्रदेश में अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेना में अग्निवीर योजना, बेरोजगारी, अडानी, राम मंदिर और जातीय गणना पर खुल कर बोला. प्रदेश में इस यात्रा में पार्टी नेता प्रियंका गांधी को भी शामिल होना था, लेकिन तबीयत ठीक न होने के चलते वे शामिल नहीं हो सकी थीं.

16 फरवरी, 2024 को ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ ने देश के सब से ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया था. यह यात्रा बिहार से चंदौली के रास्ते उत्तर प्रदेश पहुंची थी, जहां यात्रा का तय कार्यक्रम ‘तिरंगा सैरेमनी’ हुआ, जिस में बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को तिरंगा सौंपा था.

इस मौके पर राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे, कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा मोना और दूसरे कई नेता हाजिर रहे थे.

चंदौली पहुंच कर राहुल गांधी ने सैयद राजा शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन किया. राहुल गांधी ने कहा, ‘‘एक विचारधारा भाई को भाई से लड़ाती है और आप की जेब से पैसा निकाल कर चुनिंदा अरबपतियों को दे देती है, वहीं दूसरी विचारधारा नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान खोलती है और आप का हक आप को वापस लौटाती है.’’

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी ने लोगों से पूछा कि देश में फैली नफरत की क्या वजह है? इस पर जवाब मिला कि देश में फैल रही नफरत की वजह डर है और इस डर की वजह नाइंसाफी है.

आज देश के हर हिस्से में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लैवल पर नाइंसाफी हो रही है. देश में किसानों और गरीबों की जमीनें छीन कर अरबपतियों को दी जा रही हैं. महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है.

मोदी सरकार की अग्निपथ योजना को नौजवानों के साथ धोखा बताते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अग्निवीर को न कैंटीन सुविधा मिलेगी, न पैंशन मिलेगी और न शहीद का दर्जा मिलेगा. यह नौजवानों के साथ धोखा है.

मोदी सरकार अग्निपथ योजना इसलिए लाई, ताकि देश के रक्षा बजट से पैसा हमारे जवानों की रक्षा, उन की ट्रेनिंग और पैंशन में न जाए. रक्षा के सभी कौंट्रैक्ट अडानी की कंपनी के पास हैं. मोदी सरकार हिंदुस्तान के बजट का पूरा पैसा अडानी को देना चाहती है, इसलिए अग्निवीर योजना लाई गई.

राहुल गांधी ने आगे कहा कि मोदी सरकार चाहती है कि सब लोग ठेके के मजदूर बनें. नौजवानों को सेना, रेलवे और पब्लिक सैक्टर में नौकरी नहीं मिल रही, क्योंकि मोदी सरकार चाहती है कि नौजवान ठेके पर ही काम करें.

आज हिंदुस्तान में 2-3 अरबपतियों को पूरा फायदा मिल रहा है और नौजवानों का ध्यान भटका कर उन का भविष्य छीना जा रहा है. केंद्र में ‘इंडिया’ की सरकार आने पर पूरे हिंदुस्तान में खाली पड़े सरकारी पदों पर भरती की जाएगी.

राहुल गांधी ने आगे यह भी कहा, ‘‘कुछ ही दिनों पहले हम ने किसानों के लिए एमएसपी की लीगल गारंटी दी है. हम कानूनी गारंटी देंगे कि हिंदुस्तान के किसानों को सही एमएसपी दी जाए.

‘‘मैं आप से यह कहना चाहता हूं कि सामाजिक अन्याय हो रहा है, आर्थिक अन्याय हो रहा है, किसानों के खिलाफ अन्याय हो रहा है.’’

राहुल गांधी ने जनता से सवाल किया कि नरेंद्र मोदी ने किसानों का कितना कर्जा माफ किया?

जनता की भीड़ ने कहा, ‘जीरो. एक रुपया नहीं किया.’

राहुल गांधी ने दूसरा सवाल किया, ‘हिंदुस्तान के 20-25 अरबपतियों का कितना कर्जा माफ किया?’

भीड़ से जवाब आया, ‘16 लाख करोड़ रुपए.’

मीडिया पर तंज कसते हुए राहुल गांधी बोले, ‘‘हम ने किसानों का कर्जा माफ किया, 72,000 करोड़ रुपए हम ने माफ किए और उस टाइम सारे मीडिया ने कहा कि देखो, यूपीए की सरकार पैसा जाया कर रही है, किसानों को आलसी बना रही है. तो जब किसानों का कर्जा माफ होता है तो मीडिया कहती है कि किसानों को आलसी बनाया जा रहा है और जब नरेंद्र मोदी 15-20 लोगों का 16 लाख करोड़ रुपए का कर्जा माफ करते हैं, तो फिर ये एक शब्द नहीं कहते.’’

जनता की भीड़ ने कहा, ‘मोदी मीडिया, गोदी मीडिया एक शब्द नहीं कहता.’

जनता के यह कहने पर राहुल गांधी बोले, ‘‘तो इसी अन्याय के खिलाफ हम ने यह यात्रा निकाली है.’’

कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने आगे कहा कि मीडिया में कभी किसान या मजदूर का चेहरा नहीं दिखाई देगा. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में अडानी, अंबानी, अरबपति, फिल्मी सितारे दिखे, लेकिन कोई गरीब, किसान, बेरोजगार, दुकानदार या मजदूर नहीं दिखा.

भागीदारी न्याय का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि देश में पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की आबादी 73 फीसदी है. मगर इन वर्गों की कहीं भी भागीदारी नहीं है.

इन वर्गों को कुछ नहीं मिल रहा है. यह नाइंसाफी है. जाति जनगणना से पता चलेगा कि देश में कितने पिछड़े, दलित और आदिवासी हैं. किस वर्ग के पास कितना पैसा है.

जाति जनगणना देश का ऐक्सरे है. इस से पता लग जाएगा कि सोने की चिडि़या का पैसा किस के हाथ में है. यह क्रांतिकारी कदम है. केंद्र में ‘इंडिया’ की सरकार आने पर पूरे देश में जाति जनगणना कराई जाएगी.

मंदिर दर्शन में न भटक जाए ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के 9वें दिन राहुल गांधी असम के बरगांव पहुंचे. यहां वे बोर्दोवा में संत शंकरदेव के जन्मस्थल पर दर्शन करने जाना चाहते थे. सुरक्षाबलों ने राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेताओं को बरगांव में रोक दिया.

सुरक्षाबलों से बहस के बाद राहुल गांधी और बाकी कांग्रेसी नेता धरने पर बैठ गए. सभी को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद 3 बजे मंदिर आने के लिए कहा गया.

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी के मंदिर दर्शन को मुद्दा बना दिया. पुलिस ने गुवाहाटी सिटी जाने वाली सड़क पर बैरिकेडिंग कर दी. इस के बाद कांग्रेस समर्थक पुलिस से भिड़ गए. उन्होंने बैरिकेडिंग तोड़ दी. इस धक्कामुक्की में कइयों को चोटें भी आईं.

राहुल गांधी की ‘न्याय यात्रा’

18 जनवरी, 2024 को नागालैंड से असम पहुंची थी. 20 जनवरी, 2024 को यात्रा अरुणाचल प्रदेश गई, फिर 21 जनवरी, 2024 को फिर असम लौट आई.

इस के बाद यात्रा 22 जनवरी, 2024 को मेघालय निकली और अगले दिन यानी 23 जनवरी को एक बार फिर असम पहुंची.

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के बारे में राहुल गांधी ने कहा, ‘‘भाजपा देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अन्याय कर रही है. ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का लक्ष्य हर धर्म, हर जाति के लोगों को एकजुट करने के साथ इस अन्याय के खिलाफ लड़ना भी है.’’

राहुल गांधी मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के इलाकों से गुजरे. उन्होंने कांगपोकपी जिले की भी यात्रा की, जहां पिछले साल मई में 2 औरतों को बिना कपड़ों के घुमाया गया था.

अपनी इस यात्रा के बारे में राहुल गांधी ने कहा था, ‘‘इस यात्रा को मणिपुर से शुरू करने की वजह यह है कि मणिपुर में भाजपा ने नफरत की राजनीति को बढ़ावा दिया है. मणिपुर में भाईबहन, मातापिता की आंखों के सामने उन के अपने मरे और आज तक हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री मणिपुर में आप के आंसू पोंछने, गले मिलने नहीं आए. यह शर्म की बात है.’’

मंदिर दर्शन विवाद में फंसे

66 दिनों तक चलने वाली ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ देश के 15 राज्यों और 110 जिलों में 337 विधानसभा और 100 लोकसभा सीटों से हो कर गुजरेगी. इन राज्यों में मणिपुर, नागालैंड, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, ?ारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं. राहुल गांधी जगहजगह रुक कर स्थानीय लोगों से संवाद करेंगे. इस दौरान राहुल 6,700 किलोमीटर का सफर तय करेंगे.

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ 20 मार्च, 2024 को मुंबई में खत्म होगी. मगर इस यात्रा के बीच ही 22 जनवरी, 2024 को मोदी और योगी सरकार द्वारा आयोजित अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम आ गया, जिस में कांग्रेस के नेताओं को भी बुलाया गया था.

कांग्रेस ने अपनी धर्मनिरपेक्ष नीति के उलट राम मंदिर न जाने के पीछे की वजह मंदिर का पूरा न बनना और राजनीति में धर्म का प्रयोग बताया. लेकिन इस को ले कर पूरी पार्टी 2 भागों में बंटी दिखी. एक तरफ केंद्रीय नेताओं ने राम मंदिर समारोह में हिस्सा लेने से मना किया, तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश कांग्रेस की पूरी टीम प्रचारप्रसार के साथ अयोध्या गई, मंदिर दर्शन किया और सरयू में स्नान भी किया.

यही ऊहापोह राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में भी दिखी. राहुल गांधी की यह मुहिम भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीतियों के खिलाफ है. भाजपा और संघ देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. कांग्रेस इस का विरोध करती आ रही थी.

ऐसे में मंदिर दर्शन और धार्मिक आस्था की बातों को इस यात्रा से अलग रखना चाहिए था, मगर राहुल खुद मंदिर जाने की जिद में धरने पर बैठ गए. उन्हें धर्मनिरपेक्ष नीतियों पर चल कर अपनी यात्रा जारी रखनी चाहिए थी, तो वे इस जिद पर अड़ गए कि उन्हें मंदिर जाना है. इस ने यात्रा में खलल डाल दिया.

धर्म से कैसे मिलेगा न्याय

कांग्रेस सौफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रही है. इस से उस की धर्मनिरपेक्ष छवि प्रभावित होगी और वह धर्म की राजनीति का विरोध पुरजोर तरीके से नहीं कर पाएगी. इस समय बहुत जरूरी है कि कांग्रेस भाजपा और संघ के हिंदू राष्ट्र के खिलाफ लोगों का आह्वान करे.

आज भी तमाम मिले वोटों के मुकाबले आधे से कम वोट ही भाजपा को मिलते हैं. ऐसे में यह साफ है कि देश के आधे से ज्यादा लोग भाजपा की धर्म वाली नीतियों से खुश नहीं हैं.

दुनिया में जितने लोग या देश धार्मिक कट्टरता की राह पर चल रहे हैं, वे विकास की राह पर बहुत पीछे हैं और आतंकी गतिविधियों के शिकार हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान इस का मुख्य उदाहरण हैं.

पाकिस्तान और बंगलादेश की तुलना करें, तो पाकिस्तान के मुकाबले कम कट्टरता वाला बंगलादेश ज्यादा तरक्की कर गया है. बंगलादेश की प्रति व्यक्ति आय 2,688 डौलर भारत की 2,085 डौलर से (साल 2022 के आंकड़े) कहीं ज्यादा है. भाजपा और संघ ने जब से देश को मंदिर आंदोलन में धकेला है, उस के बाद से देश का धार्मिक ढांचा ही प्रभावित नहीं हुआ है, बल्कि यहां की माली हालत भी प्रभावित हुई है.

साल 2007 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 1,070 डौलर थी. उस समय भारत की प्रति व्यक्ति आय बंगलादेश की 550 डौलर से दोगुनी थी. मतलब, धर्म से न तो माली तौर पर प्रगति हो सकती है और न ही न्याय मिल सकता है. अगर धर्म से ही लोगों को न्याय मिल जाता, तो आईपीसी बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

धर्म औरतों की आजादी की बात नहीं करता है. औरतों की सारी परेशानियां धर्म के ही कारण चलती हैं. धार्मिक कुप्रथाएं और रूढि़यां औरतों के पैरों में बेडि़यों की तरह जकड़ी हैं. दहेज प्रथा, सती प्रथा, पेट में लड़की की हत्या, विधवाओं की बढ़ती संख्या इस के सुबूत हैं. धर्म ने औरतों को पढ़नेलिखने और नौकरी करने के हक से दूर कर उन्हें कम उम्र में पत्नी के रूप में मर्द की गुलाम और बच्चा पैदा करने वाली मशीन बना दिया है.

धार्मिक सत्ता से देश को आजादी दिलाने का काम कांग्रेस की जिम्मेदारी है. अब अगर कांग्रेस ही मंदिरमंदिर घूमेगी तो वह भाजपा और संघ की राह पर चल कर धर्म की सत्ता को मजबूत करने का ही काम करेगी. राहुल गांधी

11 दिन की तपस्या करने में होड़ न करें. वे धर्म के शिकंजे में बारबार फंसने से खुद को बचाएं.

राहुल गांधी को चाहिए कि वे अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को मजबूत कर देश को धार्मिक सत्ता से बाहर निकालने का काम करें, ताकि देश की गरीब जनता को रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार मिल सके.

लोकतंत्र: कीचड़ में भाजपा और चंडीगढ़ का संदेश

कहा जाता है कि कुछ लोग होते हैं जो 100 जूते खाकर भी हंसते हैं. भारतीय राजनीति में भी अब धीरे-धीरे कुछ यही स्थितियां बनती चली जा रही हैं जहां राजनीति में शुचिता और जनता का भय खत्म होता चला जा रहा है. यही कारण है कि देश भर ने देखा कि चंडीगढ़ में महापौर चुनाव में किस तरह नग्न खेल हुआ. अच्छा होता कि भारतीय जनता पार्टी जो देशभक्ति की बात करती है, सिद्धांतों की बात करती थी स्वयं आगे आकर के चंडीगढ़ में हुए महापौर चुनाव पर पहले प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपने मेयर, चुने गए व्यक्ति को हटाकर संदेश देती की निष्पक्ष चुनाव नहीं हुए हैं. और पापा यह सब पसंद नहीं करती है. मगर हुआ यह की मामला उच्चतम न्यायालय पहुंच गया देश भर में धांधली का वीडियो प्रसारित हो गया मगर भाजपा के छोटे से बड़े नेता तक के मुंह से एक शब्द नहीं निकला.

उल्टा हुआ यह की आप पार्टी के तीन पार्षदों को तोड़ने का प्रयास जारी हो गया. अब वह समय आ गया है जब चुनाव के बाद किसी भी तरह की दल बदल को गैरकानूनी घोषित कर दिया जाए चंडीगढ़ में महापौर चुनाव का यही संदेश है कि देश की राजनीति में आज स्वच्छता और ईमानदारी भाईचारे की स्थापना की जाए. यह नहीं होना चाहिए कि अगर कोई एक दल सत्ता में है तो दूसरा दल, रुपए पैसों और पदों की लालच देकर विधायकों, पार्षदों या सांसदों को तोड़े.

यही कारण है कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चंडीगढ़ महापौर चुनाव पर आए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर तीखा हमला बोला है. केजरीवाल ने कहा- ” न्यायालय के फैसले के बाद भाजपा पूरे देश में बेनकाब हो गई है. यह भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी (इंडिया) गठबंधन की पहली और बहुत बड़ी जीत है. मैं इसके लिए शीर्ष न्यायालय का बहुत-बहुत शुक्रिया करता हूं. ”

इससे पहले सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट साझा कर केजरीवाल ने कहा -” कुलदीप कुमार एक गरीब घर का लड़का है. इंडिया गठबंधन की ओर से चंड़ीगढ़ का महापौर बनने पर बहुत-बहुत बधाई. ये केवल भारतीय जनतंत्र और माननीय सर्वोच्च न्यायालय की वजह से संभव हुआ है. हमें किसी भी हालत में अपने जनतंत्र और स्वायत्त संस्थाओं की निष्पक्षता को बचाकर रखना है. सर्वोच्च न्यायालय का फैसला एक ऐसे समय में आया है जब देश में हालात बहुत कठिन है, तानाशाही चल रही है और स्वायत्त संस्थानों को कुचला जा रहा है.ऐसे में जनतंत्र को बचाने के लिए यह फैसला काफी मायने रखता है.”

राजनीति का चंडीगढ़ बॉर्डर 

भारतीय राजनीति में पंजाब के चंडीगढ़ महापौर चुनाव , उसके परिणाम और उच्चतम न्यायालय में मामले के पहुंचने के बाद कुलदीप कुमार के महापौर पर मोहर लगाया जाना,अपने आप में एक ऐसा संदेश है जिसे हर राजनीतिक पार्टी को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए और देश की जनता को याद रखना चाहिए कि आगे कभी कोई ऐसा मामला न होने पाए.

संभव तो यही कारण है कि आप पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष केजरीवाल ने कहा -” चंड़ीगढ़ में बीस वोट इंडिया गठबंधन के थे, सोलह वोट भाजपा के थे. सबने यह देखा है कि किस तरह से गठबंधन के वोट गलत तरीके से अवैध घोषित कर दिए गए और हमारे उम्मीदवार कुलदीप कुमार को हारा हुआ और भाजपा उम्मीदवार को जीता हुआ घोषित कर दिया गया. लेकिन न्यायालय ने तीव्र गति से मामले की सुनवाई में ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ कर दिया.यह भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी (इंडिया) गठबंधन की पहली और बहुत बड़ी जीत है.”

सच तो यह है कि सारे देश और दुनिया ने देखा है कि उच्चतम न्यायालय ने लोकतंत्र को निरंकुश भाजपा के जबड़े से बचाया है भाजपा चुनावी हेर फेर का सहारा लिया . यह भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की हट धर्मिता है कि मामला उच्चतम न्यायालय में होने के बावजूद आप पार्टी के तीन पार्षदों को तोड़ने का प्रयास चलता रहा. अब जब उच्चतम न्यायालय से फैसला आ गया है तब भी सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी मौन रहेगी या फिर आप या कांग्रेस पार्टी के पार्षदों को तोड़कर महापौर बनने का प्रयास करवाएगी.

गौरतलब है कि पीठ ने अदालत के समक्ष गलत बयान देने के लिए चंडीगढ़ महापौर चुनाव के पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह के खिलाफ अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के तहत आपराधिक कार्यवाही भी कर दी है. अदालत ने सुनवाई के दौरान मतपत्र और रिकार्ड पेश करने का आदेश दिया था. इन्हें पांच फरवरी को पिछले आदेश के अनुसार पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपने कब्जे में ले लिया था. उच्चतम न्यायालय द्वारा चंडीगढ़ का महापौर घोषित किए जाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के पार्षद कुलदीप कुमार ने कहा -” यह लोकतंत्र और शहर के निवासियों की जीत है.” कुमार ने न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा अगर चंडीगढ़ महापौर चुनाव में भाजपा ने धांधली नहीं की होती तो यह पहले ही महापौर बन गए होते कुमार ने कहा, ‘यह लोकतंत्र की जीत है, चंडीगढ़ निवासियों की जीत है और सच्चाई की जीत है.”न्यायालय के फैसले के बाद महापौर बने कुमार ने कहा-“‘आज, मेरी आंखों में खुशी के आंसू हैं.”

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न, पिछड़ों और दलितों को फंसाने का खेल

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान नरेंद्र मोदी सरकार के हाथों से मिलना कोई ताली बजाने वाली बात नहीं है. यह सिर्फ मई, 2024 के चुनावों की दांवपेंच वाली बात है. नरेंद्र मोदी सरकार उसी तरह कुरुक्षेत्र का युद्ध जीतने की कोशिश कर रही है जैसे कृष्ण ने महाभारत की कहानी में किया था. कृष्ण ने युद्ध से हिचक रहे अर्जुन को पट्टी पढ़ाई, दांवपेंच खेले, अपनों को कौरवों की तरफ भेजा, कौरवों के साथियों को फोड़ा, नियमरिवाज ताक पर रखे ताकि कौरव और पांडव दोनों के परिवार खत्म हो जाएं.

आज जो हो रहा है वह पिछड़ों और दलितों को फंसाने के लिए हो रहा है. कर्पूरी ठाकुर से भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस को कोई प्रेम नहीं है क्योंकि उन्होंने बिहार के अमीर, जमींदार, ऊंची जातियों के दबदबे को खत्म करने की बात उठाई थी. उन्होंने भारतीय जनसंघ (तब भारतीय जनता पार्टी का यही नाम था) और कांग्रेस के खिलाफ दबीकुचली जनता को जमा किया था.

आज भारत रत्न दे कर उन्हें असल में मरने के बाद इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे कांगे्रसी वल्लभभाई पटेल और सुभाषचंद्र बोस को किया गया था. मंदिर की राजनीति भी पुरानी हार के गड़े मुरदों के पुतले खड़े कर के वोट जमा करना है. भारतीय जनता पार्टी हमेशा दूसरे घरों में तोड़फोड़ करा कर सत्ता में बने रहने की कोशिश करती है. यह हमारी धार्मिक कला है जिस में घरों में आने वाला पुरोहित बड़ेबड़े शब्दों में जजमान की तारीफ करता है और पड़ोसियों के राज जगजाहिर करता है ताकि उसे मोटी दक्षिणा मिल सके. भारतीय जनता पार्टी इसी बात को राष्ट्रीय पैमाने पर कर रही है और कर्पूरी ठाकुर के गुणगान कर के अब बिहार के पिछड़ों से वोट दक्षिणा में मांग रही है.

यह काबिलेतारीफ है कि धर्म के दुकानदार आसानी से हार नहीं मानते. ईसाई मिशनरी हों या इसलामी मौलवी या बौद्ध भिक्षु या निरंकारी सिख, उन्होंने धर्म के नाम पर हर तरह की आफतें झेली हैं ताकि इन के भाईबंदों को हलवापूरी मिलती रहे. यही वजह है कि 2000 साल की गुलामी के बावजूद गांवों से दक्षिणा देने का रिवाज कभी कम नहीं हुआ. जो हिंदू अपने धर्म को छोड़ कर गए, उन्हें नए धर्म में उसी तरह दक्षिणा देना शुरू करना पड़ा.

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर उन के परिवार वालों को राष्ट्रपति भवन में बुला कर फोटो हर जगह छपवा और चिपकवा दी जाएगी पर चुनावों के बाद कर्पूरी ठाकुर ने जो कहा था, जो करना चाहा था वह कभी नहीं किया जाएगा. हमारे दक्षिणापंथी कभी भी राजपाट पिछड़ों व दलितों के हाथों में नहीं जाने देंगे, चाहे वे पढ़लिख जाएं, पार्टियां बना लें, चुनाव जीत जाएं. पार्टियों में तोड़फोड़, मुकदमे, जीभर के पैसा लुटाना इसीलिए किया जाता है न.

400 पार : दावा या महज शिगूफा

भारतीय जनता पार्टी ने अपने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा खोल दिया है. साल 2024 में वह पूरे भारत को जीतना चाहती है. इस के लिए उस ने लोकसभा की 400 सीटें जीतने का टारगेट रखा है.

भारत के इतिहास में 400 सांसदों की जीत केवल साल 1984 में मिली थी, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी. राजीव गांधी उस समय कांग्रेस के नेता थे. इस हमदर्दी वाले चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा की 404 सीटें मिली थीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना नाम इतिहास में लिखवाने का शौक है. ऐसे में वे 2024 के लोकसभा चुनाव में राजग गठबंधन को 400 से ज्यादा सीटें हासिल करने का टारगेट ले कर चल रहे हैं.

पौराणिक कहानियों में तमाम ऐसे राजाओं की कहानियां दर्ज हैं, जो अपनी ताकत दिखाने के लिए अश्वमेध यज्ञ करते थे. इस के लिए वे अपना एक घोड़ा छोड़ते थे. घोड़ा जो भी पकड़ता था, उसे राजा से लड़ना होता था.

मजेदार बात यह है कि यह घोड़ा केवल कमजोर राज्यों की तरफ जाता था. भारत के किसी भी राजा ने दूसरे देशों पर अपना ?ांडा नहीं लहराया है. जिस तरह से मुगलों ने भारत पर हमला किया, उस तरह भारत के किसी राजा ने दूसरे देश को अपने कब्जे में नहीं किया. इस से यह पता चलता है कि अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा अपने ही आसपास के राज्य के राजाओं के लिए छोड़ा जाता था.

खोया चाल, चरित्र और चिंतन

लोकतंत्र में अश्वमेध घोड़ा तो नहीं छोड़ा जा सकता, ऐसे में इस के लिए दूसरी पार्टियों को खत्म करना जरूरी हो गया है. इस के लिए भाजपा तोड़फोड़ और दलबदल को बढ़ावा दे रही है. बिहार में जद (यू) और राजद गठबंधन को तोड़ कर नीतीश कुमार को भाजपा ने अपनी तरफ मिला लिया.

उत्तर प्रदेश में भाजपा के जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल पर डोरे डाल रही है. महाराष्ट्र में शिवसेना को तोड़ कर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया. इस के साथ ही विरोधी नेताओं को दबाने के लिए सीबीआई और ईडी का सहारा लेना पड़ रहा है.

इस तरह के काम हमेशा कमजोर लोग करते हैं. भाजपा खुद को ताकतवर कहती है, सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी बताती है, लेकिन इस के बाद भी उसे छोटे दलों में तोड़फोड़ करनी पड़ती है.

चंडीगढ़ में मेयर का चुनाव जीतने के लिए इसी तरह का काम किया गया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट तक को कड़ी टिप्पणी करनी पड़ी है.

चुनाव में दलबदल कोई नई बात नहीं है. हरियाणा में 1980 के दशक में ‘आयाराम गयाराम’ नाम से दलबदल मशहूर था. उत्तर प्रदेश में भाजपा, बसपा और सपा की सरकार के दौर में साल 1989 के बाद से साल 2007 तक यह खूब हुआ. इस में संस्कारवान कही जाने वाली भाजपा का बड़ा योगदान रहा है.

बिना विपक्ष कैसा लोकतंत्र

राजनीति में पालाबदल संस्कृति धर्म के रास्ते आई. पौराणिक कहानियों में कई जगहों पर यह बताया गया है कि देवता भी एकदूसरे के पक्ष में पालाबदल करते रहते थे. उन की कहानियां सुना कर नेता अपने पालाबदल को सही ठहराते हैं. वे कहते हैं कि इंसाफ के लिए बोला गया झठ कभी झठ नहीं होता.

‘रामायण’ में राम ने छिप कर राजा बाली को मारा. बाली ने अपना कुसूर पूछा, तो राम ने कहा कि अपने भाई का राज्य और पत्नी हासिल करने के अपराध का दंड है. विभीषण ने रावण के अधर्म को ढाल बना कर पाला बदल लिया. ‘महाभारत’ में कृष्ण ने दोनों पाले में रहने का फैसला करते समय कहा कि वे युद्ध नहीं करेंगे. इस के बाद भी वे परोक्ष रूप से युद्ध में हिस्सा लेते रहे.

आज भी नेता जब पाला बदलते हैं, तो कहते हैं कि उस पार्टी का लोकतंत्र खत्म हो गया था, वहां दम घुट रहा था. अब आजादी की सांस ले रहे हैं, घरवापसी हो गई है. संविधान बचाने के लिए दलबदल जरूरी था.

नेताओं के जैसे ही घर, परिवार और महल्लों में अलगअलग पाले बन जा रहे हैं. घरों में 2 ही भाई हैं, तो दोनों के बीच पाले बन गए हैं. उन के बीच खींचतान होती है. पालाबदल की यह संस्कृति धर्म से राजनीति, राजनीति से घरों तक फैल रही है. इस से घर का अमनचैन बिगड़ रहा है.

लोकतंत्र में अगर विधायकों, सांसदों को बचाने के लिए कभी हैदराबाद, कभी गोवा और कभी गुवाहाटी के रिजौर्ट में कैद रखना पड़े, तो यह कैसा लोकतंत्र और कैसी आजादी? दलबदल करने वाला नेता तो इस का जिम्मेदार है ही, जो ताकत इस के लिए मजबूर कर रही है, वह और भी ज्यादा जिम्मेदार है.

केवल 400 के पार जाने से क्या हासिल होगा? लोकतंत्र में संख्या का बल तो अहमियत रखता ही है, उस से ज्यादा अहमियत विपक्ष भी रखता है. सब सांसद हां में हां ही मिलाते रहेंगे, तो जनता की आवाज को कौन उठाएगा?

हेमंत सोरेन और लोकतंत्र का बुझता दीया

झारखंड में एक चुने हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ जो कुछ हुआ है उससे लोकतंत्र का सर नीचा हुआ है . यह सीधा-सीधा लोकतंत्र का चीर हरण कहा जाना चाहिए, क्योंकि हेमंत सोरेन की पार्टी संविधान के बताएं रास्ते के अनुसार चुनाव में गई और अपनी सरकार बनाने में सफल हुए. मगर आज फिजाओं में जो सवाल है वह यह है कि हेमंत सोरेन आदि भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं को विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की आंख की किरकिरी बन गए हैं.

सत्ता का ऐसा दुरुपयोग आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला जब परिवर्तन निदेशालय को अपने विरोधी चेहरों को निपटने में लगा दिया गया है. भाजपा के चेहरे चाहते हैं कि झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार को किसी तरह तोड़ करके अपनी सरकार बना ले मगर यह अच्छा हुआ कि मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नीत गठबंधन सरकार ने सोमवार को झारखंड विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर लिया.

यही नहीं अदालत की अनुमति के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कार्यवाही में हिस्सा लिया. विधानसभा से हेमंत सोरेन ने अपनी बात जो देश की जनता के सामने रखी है उसे ध्यान से सुना और समझना आवश्यक है अगर देश में लोकतंत्र को बचाना है तो हमें हेमंत सोरेन की बात को अमल में लाना होगा.

विश्वास मत प्रस्ताव पर अपने भाषण में हेमंत सोरेन ने आरोप लगाया -” केंद्र द्वारा साजिश रचे जाने के बाद राजभवन ने उनकी गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई.” झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आरोप साबित करने की चुनौती देते हुए कहा -” अगर आरोप साबित हो गए तो वह राजनीति छोड़ देंगे.”इससे बड़ी बात कोई और क्या कह सकता है.

हेमंत है तो हिम्मत है     

जिस तरह दिल्ली में केजरीवाल सरकार को गिराने की कोशिश हो रही है जैसा छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार के साथ हुआ. यह सब लोकतांत्रिक देश में कतई उचित नहीं कहा जा सकता और एक तरह से लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाले चारों स्तंभ आज हिलते हुए दिखाई दे रहे हैं.  उल्लेखनीय है कि झारखंड राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा में 47 विधायकों ने विश्वास मत प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, जबकि 29 विधायकों ने इसके खिलाफ मतदान किया. निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. विधानसभा में मतदान के दौरान 77 विधायक उपस्थित थे.विश्वास मत हासिल करने के बाद, चंपई सोरेन ने कहा कि अगले दो-तीन दिनों में मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा.

दरअसल प्रवर्तन निदेशालय ने

ने धनशोधन के एक मामले में  हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था. इसके बाद झामुमो के विधायक दल के नेता चंपई सोरेन ने दो फरवरी को झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. सोरेन अभी ईडी की हिरासत में हैं. उन्हें विशेष पीएमएलए अदालत ने विश्वास मत में हिस्सा लेने की अनुमति दी थी .हेमंत सोरेन ने कहा, -“31 जनवरी का दिन भारत के इतिहास में एक काला अध्याय है. राजभवन के आदेश पर एक मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लिया गया. भाजपा झारखंड में किसी आदिवासी मुख्यमंत्री को पांच साल का कार्यकाल पूरा करते नहीं देखना

चाहती, उन्होंने अपनी विरोधी सरकारों में ऐसा नहीं होने दिया.” दरअसल, सच तो यह है कि केंद्र में सत्ता में बैठी हुई नरेंद्र मोदी की भाजपा के गैर आदिवासी नेता रघुवर दास के अलावा उसके या झामुमो के 10 अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों में से कोई भी राज्य में पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. इस राज्य का गठन साल 2000 में हुआ था.

पूर्व मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बड़े ही साहस के साथ  कहा, ‘हालांकि, मैं अब आंसू नहीं बहाऊंगा. मैं उचित समय पर सामंती ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दूंगा.”‘ उन्होंने दावा किया -” आदिवासियों को अपना धर्म छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा क्योंकि बीआर आंबेडकर को भी बौद्ध धर्म में परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया था.” उन्होंने आरोप लगाया -” भाजपा आदिवासियों को ‘अछूत’ समझती है.”  अद्भुत नजारा था जब पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विधानसभा में पहुंचे तो सत्तारूढ़ झामुमो नीत गठबंधन के विधायकों ने ‘हेमंत सोरेन जिंदाबाद’ जैसे नारों के साथ उनका स्वागत किया.इससे पहले, चंपई सोरेन ने 81 सदस्यीय विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया. उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित झारखंड सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की है.’ चंपई ने कहा, -‘हेमंत है तो हिम्मत है.’ उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें गर्व है कि उनकी सरकार हेमंत सोरेन सरकार का ‘दूसरा भाग’ है.

महिला रेसलर के आंसू और बेदर्द सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को होगा यह नुकसान

Political News in Hindi: देश में नरेंद्र मोदी की सरकार आज यह दावा करने से तनिक भी पीछा नहीं हटती है कि उस के जैसी संवेदनशील सरकार न कभी हुई है और न ही होगी, इसीलिए तो नारा दिया था कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’. यह सब सुनने और देखने में अच्छा लगता है, मगर हकीकत से दोचार होने के बाद केंद्र सरकार की गतिविधियों से किसी भी भावुक इनसान का सीना चाक हो जाएगा.

बहुत ज्यादा विरोध के बाद आखिरकार भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने नवनिर्वाचित भारतीय कुश्ती महासंघ पर निलंबन की गाज गिरा दी है. यह जन भावना के मुताबिक कदम है, मगर पूरे मामले को देखें, तो कहा जा सकता है कि देश की आम, गरीब और राजधानी से दूर बैठी बेटियां क्या पढ़ पा रही हैं और उन्हें क्या अधिकार मिल रहे हैं, यह तो दूर की बात है, देश की राजधानी में उन बेटियों के दुख और आंसुओं को सारे देश ने देखा है, जिन्होंने पहलवानी के क्षेत्र में ‘पद्मश्री’ हासिल किया और देश का नाम रोशन किया. वे लंबे समय तक जंतरमंतर पर बैठ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इंसाफ की गुहार लगाती रहीं, मगर सत्ता के करीबी भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रह चुके बृजभूषण शरण सिंह का बाल भी बांका नहीं हो पाया. उलटे सारे देश ने देखा कि किस तरह महिला पहलवानों को बेइज्जत किया गया और उन्हें जंतरमंतर पर धरने से उठा कर फेंक दिया गया.

पहलवान बेटियों को देश के गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिलाया था कि इंसाफ मिलेगा और इस पर यकीन कर के उन्हें सिर्फ धोखा ही मिला. पुलिस और कोर्ट की दौड़ तो जारी है ही, अब बृजभूषण शरण सिंह का दायां हाथ समझे जाने वाले संजय सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ के मुखिया बन गए, तो साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया सहित अनेक पहलवान मुंह बाए देखते रहे कि यह क्या हो गया है और अब वे क्या करें. यही वजह है कि साक्षी मलिक ने बिना देर किए आंसुओं के साथ अपना दर्द इस तरह जाहिर किया कि उन्होंने पहलवानी से संन्यास ले लिया है.

इस सब के बाद भी सत्ता के कानों तक आवाज नहीं पहुंची. दूसरी तरफ बजरंग पुनिया ने ‘पद्मश्री’ लौटाने का ऐलान कर दिया, मगर इस के बावजूद सत्ता में बैठे हुए किसी बड़े चेहरे को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. इस का सीधा सा मतलब यह है कि आज देश की सत्ता पर बैठे हुए लोग अपने और अपने साथियों के खिलाफ एक भी आवाज सुनने को तैयार नहीं हैं, चाहे वे कितने ही गलत क्यों न हों. ये हालात बताते हैं कि देश आज किस चौराहे पर खड़ा है.

महिला पहलवानों के दुख को सब से ज्यादा महसूस करने वाले ‘पद्मश्री’ बजरंग पुनिया ने कहा, “अगर आप मेरे पत्र को प्रधानमंत्री को सौंप सकते हैं तो ऐसा कर दीजिए, क्योंकि मैं अंदर नहीं जा सकता. मैं न तो विरोध कर रहा हूं और न ही आक्रामक हूं.”

नतीजा ढाक के तीन पात

हकीकत यह है कि खेल मंत्रालय द्वारा नए चुने गए अध्यक्ष संजय सिंह को निलंबित कर दिए जाने के बाद भी हालात ढाक के तीन पात वाले हैं. इंसाफ का तकाजा है कि बृजभूषण शरण सिंह या उन के चहेते किसी भी हालत में भारतीय कुश्ती महासंघ के आसपास फटक न पाएं, ऐसा इंतजाम होना चाहिए.

महिला पहलवानों द्वारा गंभीर आरोप लग जाने के बाद भी बृजभूषण शरण सिंह अध्यक्ष पद से हटने को आसानी से तैयार नहीं थे. दूसरी तरफ केंद्र सरकार भी मानो आंखेंमुंहकान बंद किए हुए थी. नतीजतन, शर्मनाक हालात में संजय सिंह गुरुवार, 21 दिसंबर, 2023 को हुए चुनाव में भारतीय कुश्ती महासंघ अध्यक्ष बने और उन के पैनल ने 15 में से 13 पदों पर जीत हासिल कर ली.

यह माना जा रहा था कि बृजभूषण शरण सिंह और उन के साथियों को केंद्र सरकार चुनाव से दूर रहने का निर्देश देगी, मगर ऐसा नहीं हुआ. अब आए इस नतीजे से पहलवान साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को काफी निराशा हुई, जिन्होंने मांग की थी कि बृजभूषण शरण सिंह के किसी भी करीबी को भारतीय कुश्ती महासंघ में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए.

इन तीनों पहलवानों ने साल 2023 के शुरू में बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया था. उन पर महिला पहलवानों के साथ यौन शोषण करने का आरोप लगाया था और यह मामला अदालत में लंबित है. चुनाव का फैसले आने के तुरंत बाद साक्षी मालिक, बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट ने पत्रकारों से बात की और साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया. बजरंग पुनिया ने एक दिन बाद सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर बयान जारी कर कहा, “मैं अपना ‘पद्मश्री’ सम्मान प्रधानमंत्री को वापस लौटा रहा हूं. कहने के लिए बस मेरा यह पत्र है. यही मेरा बयान है.”

इस पत्र में बजरंग पुनिया ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से ले कर उन के करीबी के चुनाव जीतने तक और सरकार के एक मंत्री से हुई बातचीत और उन के दिए गए भरोसे के बारे में बताया.

महिला पहलवानों के साथ देश में सम्मान के साथ फैसला होना चाहिए था, मगर नरेंद्र मोदी की सरकार, जो एक गांव से ले कर दुनिया के दूसरे कोने तक अपने लंबे हाथों का जिक्र करने से परहेज नहीं करती, राजधानी दिल्ली में जैसा बरताव महिला पहलवानों के साथ हो रहा है, उन के आंसू आज देश के हर इनसान को द्रवित कर रहे हैं.

सरकार ने भारतीय कुश्ती महासंघ को अगले आदेश तक निलंबित कर दिया है, मगर इस में भी साफसाफ पेंच दिखाई दे रहा है और लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने बड़ी चालाकी के साथ बड़ा कमजोर कदम उठाया है.

भाजपा की कमंडल और मंडल की दोहरी चाल, विपक्ष क्यों बेहाल

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गुमनाम चेहरों को सत्ता सौंप कर भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान ने जो संदेश देने की कोशिश की है, वह नेताओं को तो मिल चुका है, पर राजनीति के तमाम जानकार इस के अपने अलगअलग मतलब निकाल रहे हैं, लेकिन यह एकदम सौ फीसदी तय है कि केंद्र में ऐसा नहीं होने वाला है, बल्कि केंद्र की सत्ता को और मजबूत करने के लिए ही इन राज्यों में इतनी कवायद की गई है.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह राजनीति के व्याकरण को ही बदल रहे हैं. वह व्याकरण यह है कि फैसला एक है, लेकिन उस के संदेश कई निकल रहे हैं. एक पौजिटिव संदेश यह निकला है कि पिछली कतार में बैठा संगठन के लिए काम करने वाला कार्यकर्ता भी किसी दिन बड़ा नेता बन कर मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ सकता है, लेकिन इसे भाजपा में साल 2014 के बाद समयसमय पर लाई जा रही वीआरएस स्कीम भी माना जाना चाहिए.

अगर थोड़ा पीछे मुड़ कर देखा जाए, तो इसी स्कीम के शिकार भाजपा के बड़े मुसलिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी और शहनवाज हुसैन के साथ बिहार में सुशील मोदी भी हुए थे. यह संदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के लिए भी है, क्योंकि साल 2023 की राजस्थान और मध्य प्रदेश की जीत के बाद वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान मान कर चल रहे थे कि उन्हें तो कोई हटाने की हिम्मत ही नहीं करेगा, मगर वैसा हुआ नहीं.

राज्यों में भाजपा का शिवराज सिंह चौहान के कद का कोई नेता नहीं है, इसलिए भाजपा आलाकमान ने साल 2022 में उत्तर प्रदेश के घटनाक्रम को देखते हुए कोई जोखिम नहीं लेना चाहा. जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद नौकरशाह रहे अरविंद शर्मा से जिस तरह से पेश आए थे, किसी ने ऐसी कल्पना तक नहीं की थी, जबकि वसुंधरा राजे के तीखे तेवर और भाजपा नेतृत्व से टकराव के किस्से कोई नए नहीं हैं. साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने से पहले भी वसुंधरा राजे अकसर भाजपा आलाकमान की परवाह न करते देखी गई हैं.

वसुंधरा राजे को हटा कर भाजपा नेतृत्व ने एक संदेश यह भी देने की कोशिश की है कि यह सब अब नहीं चलने वाला है. यहां तक कि नतीजे आने के बाद भी वसुंधरा राजे विधायकों की बाड़ेबंदी में सक्रिय दिखी थीं. आखिर में राजनाथ सिंह ने उन्हें कोई घुट्टी पिलाई और विधायक दल की बैठक में केंद्रीय नेतृत्व की ओर से भेजा गया एक लाइन का प्रस्ताव उन्हीं से पेश करवाया.

इन बदलावों के पीछे भाजपा का एक बड़ा मकसद यह भी है कि वह साल 2024 के आम चुनाव में विपक्ष को मंडल की राजनीति के दौर में नहीं लौटना देना चाहती है. वह 25 साल से सफलता का सूत्र बने कमंडल के साथ मंडल का तालमेल भी बैठना चाहती थी.

राजस्थान में भजन लाल शर्मा कमंडल के आइकन हैं तो मध्य प्रदेश में मोहन लाल यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय मंडल का झंडा बुलंद करेंगे. सत्ता संभालते ही तीनों मुख्यमंत्री मंडल और कमंडल को साधने में जुट गए हैं.

भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे के साथसाथ क्या विपक्ष को जातिगत राजनीति में भी पीछे छोड़ दिया है? सनद रहे कि मंडल आयोग ने क्षेत्रीय पार्टियों और जातिगत पहचान से जुड़ी राजनीति को भी पंख दिए थे.

उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) जैसी पार्टियों का कद बढ़ा. राहुल गांधी समेत समूचा विपक्ष हर सभा में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाते रहे हैं.

वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस के जवाब में हर बार यही कहा कि देश में सिर्फ चार जातियां हैं- गरीब, किसान, महिला और युवा. आरोप भी लगाया कि विपक्ष जाति सर्वे के जरीए देश को बांटने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इसी का नाम है कि जो कहा और दिखाया जाता है वह असल में होता नहीं है.

भाजपा ने तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का चुनाव अलग तरीके से कर के यादव ओबीसी के बीच एक मजबूत आधार बना कर समाजवादी पार्टी और राजद के मुसलिमयादव गठजोड़ को साल 2024 के लिए सीधे चुनौती दी है.

आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में 50 फीसदी ओबीसी वोटर हैं. कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत में ओबीसी समुदाय के वोटरों की बड़ी भूमिका रही है, इसीलिए भाजपा ने यहां ओबीसी समुदाय के मोहन यादव को ही सीएम बनाया, लेकिन साथ में ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला और अनुसूचित जाति से आने वाले जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम बना दिया.

राजेंद्र शुक्ला जो कभी कांग्रेसी हुआ करते थे, इस समय मध्य प्रदेश के सब से बड़े और जनाधार वाले ब्राह्मण नेता हैं. विंध्य क्षेत्र में उन की छवि विकास पुरुष की है. यही वजह है कि कभी कांग्रेस का गढ़ रहा विंध्य क्षेत्र चुनाव दर चुनाव भाजपा की कामयाबी की नई इबारत लिख रहा है. अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता के बेटे अजय सिंह को अपनी विरासत बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है.

सतना से भाजपा के कई बार के सांसद गणेश सिंह की हार को अपवाद माना जाना चाहिए. यह राजेंद्र शुक्ला का ही कमाल है कि ऐन चुनाव के समय कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवासन तिवारी के नाती सिद्धार्थ तिवारी को सिटिंग एमएलए का टिकट काट कर त्योंथर से जीता कर लाए.

वहीं छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाकों में मिली बढ़त को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इसी समुदाय के विष्णु देव साय को सीएम पद दिया है. राजस्थान में भी पार्टी ने ब्राह्मण सीएम के साथ राजपूत और दलित समुदाय से आने वाले 2 डिप्टी सीएम भी नियुक्त कर दिए हैं. जाहिर है कि मोदीशाह की जोड़ी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं, जिस का असर 2024 के चुनाव में दिखना चाहिए, वह भी बिना किसी चुनौती के साथ.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा में आदिवासी नेता उमंग सिंगार को नेतृत्व सौंप कर मुकाबले की कोशिश की है, लेकिन यह देखना होगा कि वह विपक्षी साथियों के साथ कितना तालमेल बैठाती है.

हिमालय की मिट्टी ढीली है, इस में ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जाए

गहरे अंधेरे में जहां गरीबों और मजदूरों की कोई कीमत नहीं होती, हर कोशिश का इस्तेमाल करना और बिना हिचकिचाहट के पैसा खर्च कर के उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग के बीच में ढहने से फंसे 41 मजदूरों की जान बचाने के लिए कोशिश एक बहुत अच्छी बात है. सदियों से हर बड़े काम में छोटे लोगों की मौत को कुछ पैसे का नुकसान समझ कर छोड़ दिया जाता था.

यहां 4.5 किलोमीटर की बन रही सुरंग के बीच में फंसे 41 मजदूरों की जान बचाने के लिए रातदिन सैकड़ों लोग लगे हैं, दुनियाभर से मशीनें एयरफोर्स के हवाईजहाजों से मंगाई जा रही हैं. यह सुरंग बनेगी तो 20 किलोमीटर का यमुनोत्री का रास्ता छोटा हो जाएगा. 12 नवंबर को इस बन रही सुरंग के 2 तरफ से मिट्टी ऊपर से नीचे आ गिरी और दोनों ओर से रास्ते बंद हो गए. 41 मजदूरों को अपने हाल पर मरने को न छोड़ कर बेतहाशा कोशिश करना अपनेआप में अजूबा में है क्योंकि इस देश में आमतौर पर गरीब की जान की कोई कीमत नहीं होती. यह देश तो ऐसा है जिस में सिर्फ मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचने के लिए पुरी में यात्रा के समय बड़े लकड़ी के पहियों के रथों को जिन्हें सैकड़ों लोग खींच रहे होते हैं, लोग जानबूझ कर पहियों के नीचे आ कर मर जाते हैं.

ऐसे देश में धार्मिक चारधाम यात्रा के रास्ते छोटा करने वाली सड़क की सुरंग में फंसे लोगों को सुरंग में पाइपों से खाना पहुंचाने, फोटो खींचने और दोनों तरफ से हवापानी और खाना पहुंचाने का रातदिन का काम जताता है कि देश में लोकतंत्र का कितना लाभ है.

5 राज्यों में हो रहे चुनावों से ऐन पहले हुई इस दुर्घटना में मौतों का असर न सिर्फ चुनावों पर पड़ता, राम मंदिर के पूजापाठी कार्यक्रम पर भी ग्रहण लगता. सरकार किसी भी तरह धार्मिक मार्ग पर मौतों की पगड़ी पहनने को तैयार नहीं थी.

यह सुंरग नेताओं की अपनी खब्त का नतीजा है क्योंकि हिमालय को जानने वाले पहले भी कहते रहे हैं कि हिमालय पर्वत की मिट्टी ढीली है और इस में ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जाए. लाखों साल पहले यहां समुद्र था जो नीचे के दक्षिण पठार के ऊपर एशिया की तरफ खिसकने की वजह से ऊंचा, दुनिया का सब से ऊंचा पर्वत बन गया है.

जोशीमठ ही नहीं, और बहुत सी जगह के लैंड स्लाइड और बाढ़ का नमूना लोग देख चुके हैं. फिर भी दानदक्षिणा और धर्म के नशे को पिलाने के लिए इस रास्ते को छोटा करने के लिए यह सुरंग बन रही है. इस में जानें जाने से बचाना एक अच्छी बात है और उम्मीद है कि जब तक आप ये लाइनें पढ़ेंगे, जानें बच चुकी होंगी.

सिलक्यारा सुरंग से निकाले गए 41 मजदूर, क्या सरकार को मिला सबक

Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: आप को याद होगा कि साल 2018 में थाइलैंड (Thailand) में हुए एक हादसे में जूनियर फुटबाल टीम (Juinor Football Team) के कोच समेत 12 बच्चे पानी से भरी एक गुफा में फंस गए थे. उन्हें बचाने के लिए एक रैस्क्यू मिशन (Rescue Mission) शुरू किया गया था, जिस में तकरीबन 10,000 लोग शामिल हुए थे. उन लोगों में 100 से ज्यादा तो गोताखोर (Diver) ही थे. इस दौरान एक गोताखोर की मौत भी हो गई थी, लेकिन वह आपरेशन चलता रहा था. 15 दिनों की मशक्कत के बाद वे सभी छात्र और कोच उस गुफा से बाहर निकल पाए थे. अब भारत की बात करते हैं, जहां पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की एक नई बन रही सुरंग में 41 मजदूर कुछ इस कदर फंस गए थे कि उन का बचना भी मुश्किल ही लग रहा था. उत्तरकाशी (Uttarkashi) की सिलक्यारा (Silkyara) नामक इस सुरंग में यह हादसा दीवाली पर 12 नवंबर, 2023 की सुबह 4 बजे हुआ था, जब सुरंग में मलबा गिरना शुरू होने लगा था और साढ़े 5 बजे तक मेन गेट से सुरंग के 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया था.

फिर शुरू हुआ एक ऐसा बचाव अभियान, जिस में हर दिन उम्मीद जगती थी कि जल्दी ही सारे मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा, पर टनों पड़ा मलबा जैसे इस अभियान में जुड़े लोगों का इम्तिहान ले रहा था. पर इनसान की जिद, नई तकनीक और मजदूरों का सब्र रंग लाया और 12 नवंबर की सुबह के साढ़े 5 बजे से 28 नवंबर की रात के 8.35 बजे तक यानी 17 दिन बाद पहला मजदूर शाम को 7.50 बजे बाहर निकाला गया. इस के 45 मिनट बाद 8.35 बजे सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया.

रैट होल माइनिंग तकनीक ने किया कमाल

इस पूरे अभियान में लोगों के साथसाथ कई महाकाय मशीनें भी मलबे को चीर कर मजदूरों तक पहुंचने की जद्दोजेहद कर रही यहीं. जब औगर मशीन मलबे से जूझ कर हार मान गई थी, तब रैट होल माइनिंग तकनीक को इस्तेमाल करने का फैसला लिया गया. रैट का मतलब है चूहा, होल का मतलब है छेद और माइनिंग मतलब खुदाई. इस तकनीक में पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है और धीरेधीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है. इस में हाथ से ही मलबा बाहर निकाला जाता है.

भारत में रैट होल माइनिंग तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरपूर्व में रैट होल माइनिंग जम कर होती है, लेकिन यह काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है.

मिला नया सबक

सिलक्यारा हादसा उत्तराखंड राज्य के साथसाथ पूरी दुनिया को सबक भी सिखा गया खासकर भारत के पहाड़ी राज्यों ने यह सीखा है कि वे आपदा में केंद्रीय एजेंसियों का बारबार मुंह नहीं ताक सकते. उन्हें अपने दम पर तैयार रहना होगा, क्योंकि आपदाएं हर बार सिलक्यारा हादसे जैसा समय नहीं देंगी.

पहाड़ी इलाके में इस तरह के काम में सब से बड़ी बाधा तो खुद कुदरत ही होती है. बारिश के मौसम में लैंड स्लाइडिंग होना आम बात है. बड़ीबड़ी मशीनों को पहाड़ी रास्तों से लाना और ले जाना भी बड़ी चुनौती वाला काम होता है. वर्तमान सरकार पहाड़ों पर नएनए प्रोजैक्ट बना रही है. इस का मतलब यह है कि आगे भी सरकार और मजदूरों को सावधान रहना होगा.

मजदूरों का किया स्वागत

सुरंग से बाहर आए पहले बैच के पहले मजदूर का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माला पहना कर स्वागत किया. पाइप के जरीए सब से पहले बाहर आने वाले मजदूर का नाम विजय होरो था. वह खूंटी, झारखंड का रहना वाला था.

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने ऐलान किया सभी मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से 1-1 लाख रुपए की मदद दी जाएगी. उन्हें एक महीने की तनख्वाह समेत छुट्टी भी दी जाएगी, जिस से वह अपने परिवार वालों से मिल सकें. उन्होंने एक संदेश भी दिया, ‘मैं इस बचाव अभियान से जुड़े सभी लोगों के जज्बे को भी सलाम करता हूं. उन की बहादुरी और संकल्पशक्ति ने हमारे श्रमिक भाइयों को नया जीवन दिया है. इस मिशन में शामिल हर किसी ने मानवता और टीम वर्क की एक अद्भुत मिसाल कायम की है.’

यह बात बिलकुल सही है, क्योंकि इस पूरे अभियान में 42 मजदूरों के साथसाथ उन सभी लोगों की जान दांव पर लगी थी, जो मजदूरों की जिंदगी बचाने के लिए नए से नया जोखिम ले रहे थे.

ये ही वे लोग हैं जो देश को आगे बढ़ाने का काम करते हैं. मजदूरों की अनदेखी तो किसी भी सरकार को नहीं करनी चाहिए. वे ही सही माने में अपने खूनपसीने से देश को खुशहाल बनाते हैं. वे भले ही दो वक्त की रोटी न खाएं, पर शरीर से फुरतीले और मजबूत होते हैं. यह बात इन 41 मजदूरों ने साबित भी कर दी. ये लोग अमूमन जाति से भले ही निचले हों, पर काम हमेशा अव्वल दर्जे का करते हैं. पूरे देश को इन की जीने की इच्छा को सलाम करना चाहिए.

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