Best Hindi Kahani: सही सजा

Best Hindi Kahani: पुरेनवा गांव में एक पुराना मठ था. जब उस मठ के महंत की मौत हुई, तो एक बहुत बड़ी उलझन खड़ी हो गई. महंत ने ऐसा कोई वारिस नहीं चुना था, जो उन के मरने के बाद मठ की गद्दी संभालता.

मठ के पास खूब जायदाद थी. कहते हैं कि यह जायदाद मठ को पूजापाठ के लिए तब के रजवाड़े द्वारा मिली थी.

मठ के मैनेजर श्रद्धानंद की नजर बहुत दिनों से मठ की जायदाद पर लगी हुई थी, पर महंत की सूझबूझ के चलते उन की दाल नहीं गल रही थी.

महंत की मौत से श्रद्धानंद का चेहरा खिल उठा. वे महंत की गद्दी संभालने के लिए ऐसे आदमी की तलाश में जुट गए, जो उन का कहा माने. नया महंत जितना बेअक्ल होता, भविष्य में उन्हें उतना ही फायदा मिलने वाला था.

उन दिनों महंत के एक दूर के रिश्तेदारी का एक लड़का रामाया गिरि मठ की गायभैंस चराया करता था. वह पढ़ालिखा था, लेकिन घनघोर गरीबी ने उसे मजदूर बना दिया था.

मठ की गद्दी संभालने के लिए श्रद्धानंद को रामाया गिरि सब से सही आदमी लगा. उसे आसानी से उंगलियों पर नचाया जा सकता था. यह सोच कर श्रद्धानंद शतरंज की बिसात बिछाने लगे.

मैनेजर श्रद्धानंद ने गांव के लोगों की मीटिंग बुलाई और नए महंत के लिए रामाया गिरि का नाम सुझाया. वह महंत का रिश्तेदार था, इसलिए गांव वाले आसानी से मान गए.

रामाया गिरि के महंत बनने से श्रद्धानंद के मन की मुराद पूरी हो गई. उन्होंने धीरेधीरे मठ की बाहरी जमीन बेचनी शुरू कर दी. कुछ जमीन उन्होंने तिकड़म लगा कर अपने बेटेबेटियों के नाम करा ली. पहले मठ के खर्च का हिसाब बही पर लिखा जाता था, अब वे मुंहजबानी निबटाने लगे. इस तरह थोड़े दिनों में उन्होंने अपने नाम काफी जायदाद बना ली.

रामाया गिरि सबकुछ जानते हुए भी अनजान बना रहा. वह शुरू में श्रद्धानंद के एहसान तले दबा रहा, पर यह हालत ज्यादा दिन तक नहीं रही.

जब रामाया गिरि को उम्दा भोजन और तन को आराम मिला, तो उस के दिमाग पर छाई धुंध हटने लगी.
उस के गाल निकल आए, पेट पर चरबी चढ़ने लगी. वह केसरिया रंग के सिल्क के कपड़े पहनने लगा. जब वह माथे और दोनों बाजुओं पर भारीभरकम त्रिपुंड चंदन लगा कर कहीं बाहर निकलता, तो बिलकुल शंकराचार्य सा दिखता.

गरीबगुरबे लोग रामाया गिरि के पैर छू कर आदर जताने लगे. इज्जत और पैसा पा कर उसे अपनी हैसियत समझ में आने लगी.

रामाया गिरि ने श्रद्धानंद को आदर के साथ बहुत सम?ाया, लेकिन उलटे वे उसी को धौंस दिखाने लगे. श्रद्धानंद मठ के मैनेजर थे. उन्हें मठ की बहुत सारी गुप्त बातों की जानकारी थी. उन बातों का खुलासा कर देने की धमकी दे कर वे रामाया गिरि को चुप रहने पर मजबूर कर देते थे. इस से रामाया गिरि परेशान रहने लगा.

एक दिन श्रद्धानंद मठ के बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. चाय खत्म हुई कि वे कुरसी से लुढ़क गए. किसी ने पुलिस को खबर कर दी. पुलिस श्रद्धानंद की लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाना चाहती थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भेद खुलने का डर था, इसलिए रामाया गिरि थानेदार को मठ के अंदर ले गया और लेदे कर मामले को रफादफा करा दिया.

श्रद्धानंद को रास्ते से हटा कर रामाया गिरि बहुत खुश हुआ. यह उस की जिंदगी की पहली जीत थी. उस में हौसला आ चुका था. अब उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं थी.

रामाया गिरि नौजवान था. उस के दिल में भी आम नौजवानों की तरह तमाम तरह की हसरतें भरी पड़ी थीं. खूबसूरत औरतें उसे पसंद थीं. सो, वह पूजापाठ का दिखावा करते हुए औरत पाने का सपना संजोने लगा.

उन दिनों मठ की रसोई बनाने के लिए रामप्यारी नईनई आई थी. उस की एक जवान बेटी कमली भी थी. इस के बावजूद उस की खूबसूरती देखते ही बनती थी. गालों को चूमती जुल्फें, कंटीली आंखें और गदराया बदन.

एक रात रामप्यारी को घर लौटने में देर हो गई. मठ के दूसरे नौकर छुट्टी पर थे, इसलिए कई दिनों से बरतन भी उसे ही साफ करने पड़ रहे थे.

रामाया गिरि खाना खा कर अपने कमरे में सोने चला गया था, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. चारों ओर खामोशी थी. आंगन में बरतन मांजने की आवाज के साथ चूडि़यों की खनक साफसाफ सुनाई दे रही थी.

रामाया गिरि की आंखों में रामप्यारी की मस्त जवानी तैरने लगी. शायद उसे पाने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था. उस ने आवाज दी, ‘‘रामप्यारी, जरा इधर आना.’’

रामाया गिरि की आवाज सुन कर रामप्यारी सिहर उठी. वह अनसुनी करते हुए फिर से बरतन मांजने लगी.

रामाया गिरि खीज उठा. उस ने बहाना बनाते हुए फिर उसे पुकारा, ‘‘रामप्यारी, जरा जल्दी आना. दर्द से सिर फटा जा रहा है.’’

अब की बार रामप्यारी अनसुनी नहीं कर पाई. वह हाथ धो कर सकुचाती हुई रामाया गिरि के कमरे में पहुंच गई.

रामाया गिरि बिछावन पर लेटा हुआ था. उस ने रामप्यारी को देख कर अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराई, फिर टेबिल पर रखी बाम की शीशी की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘जरा, मेरे माथे पर बाम लगा दो…’’

मजबूरन रामप्यारी बाम ले कर रामाया गिरि के माथे पर मलने लगी. कोमल हाथों की छुअन से रामाया गिरि का पूरा बदन झनझना गया. उस ने सुख से अपनी आंखें बंद कर लीं.

रामाया गिरि को इस तरह पड़ा देख कर रामप्यारी का डर कुछ कम हो चला था. रामाया गिरि उसी का हमउम्र था, सो रामप्यारी को मजाक सूझने लगा.

वह हंसती हुई बोली, ‘‘जब तुम्हें औरत के हाथों ही बाम लगवानी थी, तो कंठीमाला के झमेले में क्यों फंस गए? डंका बजा कर अपना ब्याह रचाते. अपनी घरवाली लाते, फिर उस से जी भर कर बाम लगवाते रहते…’’

वह उठ बैठा और हंसते हुए कहने लगा, ‘‘रामप्यारी, तू मुझ से मजाक करने लगी? वैसे, सुना है कि तुम्हारे पति को सिक्किम गए 10 साल से ऊपर हो गए. वह आज तक नहीं लौटा. मुझे नहीं समझ आ रहा कि उस के बिना तुम अपनी जवान बेटी की शादी कैसे करोगी?’’

रामाया गिरि की बातों ने रामप्यारी के जख्म हरे कर दिए. उस की आंखें भर उठीं. वह आंचल से आंसू पोंछने लगी.

रामाया गिरि हमदर्दी जताते हुए बोला, ‘‘रामप्यारी, रोने से कुछ नहीं होगा. मेरे पास एक रास्ता है. अगर तुम मान गई, तो हम दोनों की परेशानी हल हो सकती है.’’

‘‘सो कैसे?’’ रामप्यारी पूछ बैठी.

‘‘अगर तुम चाहो, तो मैं तेरे लिए पक्का मकान बनवा दूंगा. तेरी बेटी की शादी मेरे पैसों से होगी. तुझे इतना पैसा दूंगा कि तू राज करेगी…’’

रामप्यारी उतावली हो कर बोली, ‘‘उस के बदले में मुझे क्या करना होगा?’’

रामाया गिरि उस की बांह को थामते हुए बोला, ‘‘रामप्यारी, सचमुच तुम बहुत भोली हो. अरी, तुम्हारे पास अनमोल जवानी है. वह मुझे दे दो. मैं किसी को खबर नहीं लगने दूंगा.’’

रामाया गिरि का इरादा जान कर रामप्यारी का चेहरा फीका पड़ गया. वह उस से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझ से भारी भूल हो गई. मैं समझती थी कि तुम गरीबी में पले हो, इसलिए गरीबों का दुखदर्द समझते होगे. लेकिन तुम तो जिस्म के सौदागर निकले…’’

इन बातों का रामाया गिरि पर कोई असर नहीं पड़ा. वासना से उस का बदन ऐंठ रहा था. इस समय उसे उपदेश के बदले देह की जरूरत थी.

रामप्यारी कमरे से बाहर निकलने वाली थी कि रामाया गिरि ने झपट कर उस का आंचल पकड़ लिया.
रामप्यारी धक से रह गई. वह गुस्से से पलटी और रामाया गिरि के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. रात के सन्नाटे में तमाचे की आवाज गूंज उठी. रामाया गिरि हक्काबक्का हो कर अपना गाल सहलाने लगा.

रामप्यारी बिफरती हुई बोली, ‘‘रामाया, ऐसी गलती फिर कभी किसी गरीब औरत के साथ नहीं करना. वैसे मैं पहले से मठमंदिरों के अंदरूनी किस्से जानती हूं. बेचारी कुसुमी तुम्हारे गुरु महाराज की सेवा करते हुए अचानक गायब हो गई. उस का आज तक पता नहीं चल पाया.

‘‘मैं थूकती हूं तुम्हारी महंती और तुम्हारे पैसों पर. मैं गरीब हूं तो क्या हुआ, मुझे इज्जत के साथ सिर उठा कर जीना आता है.’’

इस घटना को कई महीने बीत गए, लेकिन रामाया गिरि रामप्यारी के चांटे को भूल नहीं पाया.

एक रात उस ने अपने खास आदमी खड्ग सिंह के हाथों रामप्यारी की बेटी कमली को उठवा लिया.
कमली नीबू की तरह निचुड़ी हुई लस्तपस्त हालत में सुबह घर पहुंची. कमली से सारा हाल जान कर रामप्यारी ने माथा पीट लिया.

समय के साथ रामाया गिरि की मनमानी बढ़ती गई. उस ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए कचहरी में दर्जनों मुकदमे दायर कर दिए. मठ के घंटेघडि़याल बजने बंद हो गए. अब मठ पर थानाकचहरी के लोग जुटने लगे.

रामाया गिरि ने अपनी हिफाजत के लिए बंदूक खरीद ली. उस की दबंगई के चलते इलाके के लोगों से उस का रिश्ता टूटता चला गया.

रामाया गिरि कमली वाली घटना भूल सा गया. लेकिन रामप्यारी और कमली के लिए अपनी इज्जत बहुत माने रखती थी.

एक दिन रामप्यारी और कमली धान की कटाई कर रही थीं, तभी रामप्यारी ने सड़क से रामाया गिरि को मोटरसाइकिल से आते देखा.

बदला चुकाने की आग में जल रही दोनों मांबेटी ने एकदूसरे को इशारा किया. फिर दोनों मांबेटी हाथ में हंसिया लिए रामाया गिरि को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ीं.

रामाया गिरि सारा माजरा समझ गया. उस ने मोटरसाइकिल को और तेज चला कर निकल जाना चाहा, पर हड़बड़ी में मोटरसाइकिल उलट गई.

रामाया गिरि चारों खाने चित गिरा. रामप्यारी के लिए मौका अच्छा था. वह फुरती से रामाया गिरि के सीने पर चढ़ गई. इधर कमली ने उस के पैरों को मजबूती से जकड़ लिया.

रामप्यारी रामाया गिरि के गले पर हंसिया रखती हुई चिल्ला कर बोली, ‘‘बोल रामाया, तू ने मेरी बेटी की इज्जत क्यों लूटी?’’

इतने में वहां भारी भीड़ जमा हो गई. रामाया गिरि लोगों की हमदर्दी खो चुका था, सो किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की.

रामाया गिरि का चेहरा पीला पड़ चुका था. जान जाने के खौफ से वह हकलाता हुआ बोला, ‘‘रामप्यारी… ओ रामप्यारी, मेरा गला मत रेतना. मुझे माफ कर दो.’’

‘‘नहीं, मैं तुम्हारा गला नहीं रेतूंगी. गला रेत दिया तो तुम झटके से आजाद हो जाओगे. मैं सिर्फ तुम्हारी गंदी आंखों को निकालूंगी. दूसरों की जिंदगी में अंधेरा फैलाने वालों के लिए यही सही सजा है.’’

रामप्यारी बिलकुल चंडी बन चुकी थी. रामाया गिरि के लाख छटपटाने के बाद भी उस ने नहीं छोड़ा. हंसिया के वार से रामाया गिरि की आंखों से खून का फव्वारा उछल पड़ा. Best Hindi Kahani

Hindi Family Story: सोने की बालियां

Hindi Family Story: ईमानदार संसारचंद मेहनत में यकीन रखने वाला नौजवान था. एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले संसारचंद की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. 2 बहनों की शादी पहले ही हो चुकी थी. उन की शादी के बाद संसारचंद के पिता का देहांत हो गया. पिता की मौत के बाद उस ने भी अपने पुरखों का बढ़ईगीरी का काम संभाल लिया.

संसारचंद के हाथों में हुनर था और ईमानदारी के चलते काम की कोई कमी नहीं थी. कड़ी मेहनत से संसारचंद पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए हुए था. वह अपनी मां, छोटी बहन और छोटे भाई की रोटी, पढ़ाईलिखाई और भविष्य के लिए दिनरात मेहनत करता था.

अब संसारचंद की छोटी बहन कमला ब्याह लायक हो चुकी थी. अपने ब्याह के बारे में सोचे बिना संसारचंद ने मेहनत से जोड़े पैसों से कमला के ब्याह की तैयारी शुरू कर दी. रिश्ता अच्छा था, लेकिन एक अड़चन आ खड़ी हुई. वह थी सोने की बालियां.

गांव का रिवाज था कि लड़की को ब्याह के समय खाली कानों से विदा नहीं किया जाता था. यह केवल रिवाज ही नहीं था, बल्कि इज्जत की बात भी थी.

संसारचंद की इतनी औकात नहीं थी कि वह महंगी सोने की बालियां खरीद सके. पुराने कर्ज अभी चुकाए नहीं गए थे. यह बात संसारचंद की बड़ी बहन विमला को पता चली. विमला अपने पति के साथ पास के गांव में खुशहाल जिंदगी बिता रही थी.

भाई की परेशानी सोचसोच कर विमला बेचैन हो जाती. वह यह सोचती कि संसारचंद कमला के लिए बालियों का इंतजाम कैसे कर पाएगा? शादी के समय अपने मायके से मिली सोने की बालियां, जो वह पहने हुए थी, कमला को देने के बारे में सोचती, तो ससुराल वालों के सवालों से डर कर वह अपने विचार से पीछे हट जाती, लेकिन फिर उस ने फैसला कर ही लिया.

कमला की शादी का दिन निकट आ रहा था. एक दिन, पति के काम पर चले जाने के बाद, विमला घर में अकेली थी. उस ने अपनी अलमारी खोली और उस पोटली को निकाला, जिस में शादी के समय मायके से मिली हुई सोने की बालियां रखी थीं.

उन्हें बहन को देने के बारे में सोच कर विमला कुछ देर के लिए दुविधा में पड़ गई, लेकिन दूसरी ओर, बहन की खुशी और भाई की मजबूरी उस की सोच पर भारी पड़ गई.

अगले दिन विमला अपने मायके पहुंची. हाथ में बालियों की पोटली थी.

‘‘ले भैया, कमला की शादी के लिए बालियों की जरूरत थी. मेरे पास ये थीं. क्या अपनी कमला को खाली कानों से विदा करेंगे? मैं फिर कभी बनवा लूंगी,’’ कहते हुए विमला ने बालियां संसारचंद की हथेली पर रख दीं.

‘‘नहीं बहन, मैं ऐसा नहीं कर सकता. तुम्हारा भी अपना परिवार है. तुम्हारे पति और ससुराल वाले क्या कहेंगे?’’ संसारचंद बोला.

लेकिन विमला अड़ी रही. बारबार कहने पर संसारचंद ने नम आंखों से बालियों वाली पोटली को मजबूती से पकड़ लिया.

कमला की शादी अच्छे से हो गई, लेकिन संसारचंद को भीतर ही भीतर यह टीस बनी रही कि उस की बहन ने अपनी एक कीमती चीज, अपने घर से चोरी कर के छोटी बहन को दे दी.

संसारचंद ने अपनेआप से वादा किया कि वह यह कर्ज जरूर उतारेगा. उस ने जीतोड़ मेहनत जारी रखी और पैसे इकट्ठा करने लगा.

2 साल बीत गए. एक दिन संसारचंद शहर में सुनार की दुकान पर पहुंचा. उस ने एक सुंदर जोड़ी सोने की बालियां तैयार करवाईं.

बालियां ले कर संसारचंद सुबहसुबह अपनी बहन विमला के घर तब पहुंचा, जब उस का पति अशोक काम पर जा चुका था.

चायपानी के बाद संसारचंद ने एक छोटीसी डब्बी विमला के हाथों में रख दी. विमला ने डब्बी खोली तो अंदर नई, चमचमाती सोने की बालियां थीं.

‘‘यह क्या भैया?’’ विमला ने हैरानी से पूछा.

‘‘जो तू ने कभी बिना मांगें दी थीं, आज मैं वे तुझे लौटाने आया हूं. मन पर बड़ा बोझ था इस कर्ज का,’’ संसारचंद भावुक हो गया.

‘‘पर कमला मेरी भी तो छोटी बहन है,’’ विमला बोली.

‘‘लेकिन बहन, मुझे पता है कि तू ने वे बालियां अपनी ससुराल से चुरा कर दी थीं, जिस के बोझ से मेरा मन भारी था,’’ संसारचंद बोला.

‘‘सच कहूं तो वह बोझ मेरे मन पर भी बहुत था. मुझे खुद भी लगता था जैसे मैं ने चोरी की है. मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने पहले ही दिन अपने पति को सब सच बता दिया था,’’ विमला बोलती जा रही थी, ‘‘उस भले इनसान ने कहा कि विमला, तू ने ठीक किया. उस ने तो यह भी कहा कि ऐसी चीजें तो मुश्किल वक्त में ही काम आती हैं.’’

संसारचंद सुनता रहा. उस की आंखें भर आईं. वह बोला, ‘‘अशोक के लौट आने तक मैं यहीं रुकूंगा. उस भले इनसान का शुक्रिया अदा करना तो बनता है.’’

चारों ओर रिश्तों की मिठास से महक उठी थीं हवाएं… Hindi Family Story

Hindi Family Story: बिछोह की सांझ

Hindi Family Story, लेखक – संजीव स्नेही

कालेज का गलियारा, वही कैंटीन के ठहाके और लाइब्रेरी की खामोशी. इन सब में एक कहानी पल रही थी, करण और प्रिया की. दोनों एकदूसरे में इस कदर खोए थे कि कालेज की पढ़ाई भी कभीकभी पीछे छूट जाती थी. उन की हंसी, उन की बहसें, उन का छोटीमोटी बातों पर रूठनामनाना, सब कैंपस की फिजा में घुलमिल गया था.

जब कभी प्रिया उदास होती, करण का एक जोक उस के चेहरे पर मुसकान ले आता और जब करण किसी बात से परेशान होता, तो प्रिया की समझदारी उसे राह दिखाती.

उन के दोस्त उन्हें ‘एकदूजे के लिए’ कहते थे, और सच भी यही था. वे कालेज के हर पल को साथ जीते थे. सुबह की पहली क्लास से ले कर शाम की आखिरी चाय तक, उन की दुनिया एकदूसरे के इर्दगिर्द घूमती थी. कैंपस की हर बैंच, हर पेड़ उन के प्यार का गवाह था.

करण एक शांत स्वभाव का लड़का था, जो अपनी दुनिया में खोया रहता था, लेकिन प्रिया ने उस दुनिया में रंग भर दिए थे. वह चंचल, जीवंत और हमेशा खुश रहने वाली लड़की थी.

करण की गंभीरता को प्रिया की चंचलता ने पूरा किया था और प्रिया की उड़ान को करण के ठहराव ने एक ठोस जमीन दी थी. दोनों का तालमेल ऐसा था, मानो 2 अलगअलग ध्रुव एकसाथ मिल कर एक पूर्ण इकाई बन गए हों.

उन के झगड़े भी प्यारे होते थे. कभी प्रिया करण के देर से आने पर रूठ जाती, तो कभी करण उस के फोन न उठाने पर नाराज हो जाता, लेकिन यह रूठनामनाना केवल कुछ पलों का होता था, जिस के बाद प्यार और भी गहरा हो जाता था. उन के दोस्त अकसर उन से जलते थे कि कैसे वे एकदूसरे को इतनी अच्छी तरह समझते हैं.

कालेज का फैस्टिवल हो या कोई असाइनमैंट, वे हमेशा एक टीम में होते थे. साथ में देर रात तक जाग कर पढ़ाई करना, सुबहसुबह कैंटीन में नाश्ता करना और ऐग्जाम के तनाव में भी एकदूसरे का सहारा बनना, यह सब उन की दिनचर्या का हिस्सा था.

वे भविष्य के सपने बुनते थे, एकसाथ घर बनाने के, एकसाथ नई दुनिया घूमने के और एकसाथ हर चुनौती का सामना करने के. उन के सपने हवा में नहीं, बल्कि एकदूसरे के विश्वास पर टिके थे. उन्हें लगता था कि उन का प्यार अमर है और कोई भी चीज उन्हें अलग नहीं कर सकती.

मगर कालेज के दिन ढलते ही, बिछोह का अंधेरा छाने लगा. ग्रेजुएशन पूरी होते ही, जिंदगी ने उन्हें अलगअलग शहरों में धकेल दिया.

करण लौट आया अपने पहाड़ से घिरे छोटे से शहर में, जहां उस की पुरानी यादें सांस लेती थीं. यह शहर शांत और कुदरत के करीब था, ठीक करण के स्वभाव जैसा. यहां उस का पुश्तैनी कारोबार था, जिसे संभालने की जिम्मेदारी उस के कंधों पर थी.

प्रिया अपने परिवार के साथ महानगर की तेज रफ्तार जिंदगी में लौट गई, जहां हर दिन एक नई चुनौती थी और एक नई दौड़. मुंबई की चकाचौंध उसे अपनी ओर खींच रही थी और वह उस में रमने के लिए तैयार थी.

शुरुआत में सब ठीक था. फोन की घंटियां दिन में जबतब बजती रहतीं. घंटों बातें होतीं, जिस में कालेज के किस्से, भविष्य के सपने और एकदूसरे के शहर की कहानियां शामिल होतीं.

करण प्रिया को अपने पहाड़ की ठंडक और शांत नजारों के बारे में बताता और प्रिया उसे मुंबई की जगमगाती रातों और लोकल ट्रेन की भीड़भाड़ के बारे में बताती.

उन की आवाज में वही पुराना प्यार और अपनापन था, वही जुनून और वही चाहत थी. वे एकदूसरे को हर छोटीबड़ी बात बताते, अपने दिन की हर घटना साझा करते.

प्रिया करण को बताती कि कैसे उस ने आज लोकल ट्रेन में एक अजीबोगरीब वाकिआ देखा, तो करण उसे अपने शहर के शांत तालाब के पास सूर्यास्त का नजारा बताता. वे एकदूसरे की जिंदगी का हिस्सा बने रहने की पूरी कोशिश कर रहे थे, चाहे कितनी भी दूरियां हों.

लेकिन धीरेधीरे दूरियों का एहसास चुभने लगा. फोन पर घंटों बात करना भी अब उस छुअन, उस निकटता की भरपाई नहीं कर पाता था जो पहले उन की जिंदगी का हिस्सा था. रातें करवटें बदलते बीततीं.

करण को प्रिया की हंसी नहीं सुनाई देती थी, न ही प्रिया को करण के कंधे पर सिर रख कर सोने की राहत मिलती थी. वे एकदूसरे को मिस करते थे, इस हद तक कि उन के दिल में एक अजीब सा खालीपन महसूस होता था.

वीडियो काल पर एकदूसरे को देख कर कुछ पल की खुशी मिलती, लेकिन वह कभी उस गरमाहट की जगह नहीं ले पाती थी, जो आमनेसामने मिलने में होती है.

वे स्क्रीन पर एकदूसरे को देखते, मुसकराते, कुछ पल के लिए भूल जाते कि उन के बीच हजारों किलोमीटर की दूरी है, लेकिन जैसे ही वीडियो काल खत्म होती, अकेलापन फिर से घेर लेता.

त्योहार आते, दोस्त मिलते, हर कोई अपनेअपने पार्टनर के साथ होता और करण व प्रिया को दूरियों का दर्द और ज्यादा महसूस होता.

दीवाली पर जब सब अपने परिवार के साथ होते, तो करण को प्रिया की कमी खलती थी, उस के साथ पटाके जलाने की याद आती थी. प्रिया को होली पर करण के साथ रंग खेलने की याद आती थी.

हर उत्सव उन्हें उस खालीपन का एहसास कराता जो उन की जिंदगी में आ गया था. वे एकदूसरे को तसवीरें भेजते, शुभकामनाएं देते, पर उन शुभकामनाओं में एक अनकहा दर्द छिपा होता था.

करण को याद आता वह दिन, जब प्रिया को बुखार हुआ था और वह पूरी रात उस के कमरे के बाहर बैठा रहा था, बस उस की खैरियत जानने के लिए. वह एक पल के लिए भी उस से दूर नहीं हुआ था.

प्रिया को याद आता वह वक्त, जब करण ने उस के जन्मदिन पर आधी रात को गिटार बजा कर गाना सुनाया था और उस की आंखों में चमक भर दी थी.

ये छोटीछोटी बातें, ये छोटेछोटे पल, जो अब सिर्फ यादों में थे, उन्हें और भी तड़पाते थे. फोन पर बात करते हुए भी कभीकभी चुप्पी छा जाती. कहने को बहुतकुछ होता, दिल में हजार बातें उमड़तीं, लेकिन दूरियों का बोझ इतना भारी था कि शब्द गले में अटक जाते.

संवाद की कमी नहीं थी, बल्कि भावनाओं को जाहिर करने की ताकत कमजोर होती जा रही थी. वे जानते थे कि कुछ बदल रहा है, लेकिन उसे रोकने में नाकाम थे.

एक शाम, करण छत पर अकेला बैठा था. चांदनी रात थी और तारे टिमटिमा रहे थे, मानो उस की उदासी को और बढ़ा रहे हों. उस ने प्रिया को फोन किया. प्रिया भी अपने बालकनी में बैठी थी, जहां से शहर की रोशनी दिख रही थी.

‘‘प्रिया…,’’ करण ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘कब मिलेंगे हम?’’ उस की आवाज में एक अनकहा दर्द था, एक गहरी चाहत थी.

प्रिया की आंखें भर आईं, ‘मुझे नहीं पता करण,’ उस ने हिचकिचाते हुए, आंसुओं को रोकते हुए कहा, ‘बस, इतना जानती हूं कि मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा.’

प्रिया के शब्दों में एक उम्मीद की किरण छिपी थी, एक भरोसा था कि भले ही राहें अनिश्चित हों, पर दिल में इंतजार कायम है.

उन की प्रेमकहानी अब केवल आवाजों और मीठे शब्दों पर टिकी थी. बिछोह का यह लंबा दौर उन्हें मजबूत बना रहा था या कमजोर, यह उन्हें पता नहीं था. वे एक अनजाने रास्ते पर चल रहे थे, जहां हर कदम के साथ चुनौतियां बढ़ रही थीं. लेकिन एक बात तय थी, उन के दिलों में एकदूसरे के लिए जो गहरा प्यार था, वह इन दूरियों से भी कहीं ज्यादा ताकतवर था.

हर फोन काल, हर मैसेज, हर वीडियो काल इस बात का सुबूत था कि उन का प्यार अभी भी जिंदा है, धड़क रहा है, बस इंतजार था उस दिन का, जब ये दूरियां मिटेंगी और बिछोह की यह दर्दनाक सांझ, मिलन के सुनहरे सूरज में बदल जाएगी.

वे जानते थे कि उन की कहानी अभी अधूरी है और मिलन ही उस का सुखद अंत होगा. वे इस अग्निपरीक्षा से गुजर रहे थे, यह जानते हुए कि उन का प्यार इस दूरी से और भी अटूट हो कर उभरेगा.

समय किसी के लिए नहीं रुकता और करण और प्रिया के लिए भी नहीं रुका. बिछोह की सांझ धीरेधीरे एक लंबी रात में बदल रही थी, एक ऐसी रात जिस की सुबह अनिश्चित थी.

शुरुआती महीनों का वह जोश, वह घंटों की बातचीत, अब यादों का हिस्सा बनने लगी थी. जिंदगी की आपाधापी में दोनों अपनेअपने शहर में अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने लगे.

जिम्मेदारियां बढ़ीं, कैरियर की दौड़ तेज हुई और इसी के साथ उन के बीच की बातचीत भी कम होती गई. जो फोन की घंटियां दिन में कभी भी बज उठती थीं, वे अब हर 2-3 दिन में एक बार बजने लगीं.

फिर हफ्ते में एक बार और देखते ही देखते यह सिलसिला महीने 2 महीने और यहां तक कि 4 महीने में भी कभीकभार ही बात होने तक सीमित हो गया. और वह भी बस ‘हायहैलो’ या किसी औपचारिक शुभकामना तक.

दिल की बात कहना तो दूर, हालचाल पूछने का भी समय मानो सिमट गया था. उन के बीच की दूरियां केवल भौगोलिक नहीं रह गई थीं, बल्कि भावनात्मक और मानसिक दूरियां भी बढ़ती जा रही थीं.

इस तरह 2 साल बीत गए. ये 2 साल उन की जिंदगी में बहुत बड़े बदलाव ले कर आए थे.

करण ने अपने पिता के साथ मिल कर कारोबार में पूरी तरह से खुद को झोंक दिया था. पहाड़ों की ठंडी हवाओं में उस का कारोबार फलताफूलता रहा और वह व्यापारिक दांवपेंच सीखने में बिजी हो गया था.

उस ने अपनी कंपनी को नए मुकाम पर पहुंचाने के लिए दिनरात एक कर दिया था. उस की जिंदगी में अब केवल व्यापारिक सौदे, बैलेंस शीट और भविष्य की योजनाएं ही रह गई थीं.

वह सुबह जल्दी उठता, देर रात तक काम करता और हर नया प्रोजैक्ट उस के लिए एक चुनौती और एक जुनून बन गया था. उस ने खुद को इतना ज्यादा बिजी कर लिया था कि पुरानी यादों को सोचने का भी उसे समय नहीं मिलता था या शायद वह जानबूझ कर उन्हें दबाना चाहता था.

उस के दोस्तों ने भी देखा कि करण अब पहले जैसा नहीं रहा था. वह थोड़ा शांत और ज्यादा करोबारी हो गया था, लेकिन वे सम?ाते थे कि यह उस के कैरियर की जरूरत है.

वहीं, प्रिया ने फैशन के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना शुरू किया था. मुंबई की चमकदमक से भरी दुनिया उसे अपनी ओर खींच रही थी.

वह फैशन डिजाइनिंग के बारीक पहलुओं को सीखने में मगन हो गई थी. नएनए डिजाइन बनाना, फैशन शो में हिस्सा लेना और बड़ेबड़े ब्रांड्स के साथ काम करना, यह सब उस की जिंदगी का हिस्सा बन गया था.

उस के आसपास हमेशा एक ग्लैमरस माहौल रहता था, जहां नए चेहरे, नई कहानियां और नई इच्छाएं थीं.

फैशन की दुनिया की चकाचौंध में वह इस कदर खो गई कि उसे करण की याद ही नहीं रही. उस के नए दोस्त थे, नई पार्टियां थीं और एक नई तेजतर्रार जिंदगी थी, जिस में पुरानी यादों के लिए शायद ही कोई जगह बची थी.

करण की शांत, पहाड़ी जिंदगी उस के लिए एक दूर की याद बन गया था, जिसे उस ने अपनी नई, ग्लैमरस दुनिया के पीछे कहीं छोड़ दिया था. उसे लगता था कि उस ने एक नई पहचान बना ली है और उसे पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं है.

2 साल बाद, जिंदगी ने एक बार फिर अपना खेल खेला. दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में एक भव्य समारोह का आयोजन हुआ.

यह एक बड़ा औद्योगिक और व्यावसायिक कार्यक्रम था, जहां देशभर के विभिन्न क्षेत्रों के जानेमाने लोग जमा हुए थे. करण अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व करने आया था और प्रिया अपने फैशन ब्रांड की प्रमोशन के लिए.

होटल का बैंक्वैट हाल रोशनी से जगमगा रहा था. हलकी धीमी संगीत की धुन और लोगों की फुसफुसाहट से हाल में एक जीवंत माहौल था.

करण एक कोने में खड़ा अपने बिजनैस सहयोगियों से बात कर रहा था, जब उस की नजर भीड़ में एक जानीपहचानी आकृति पर पड़ी. एक पल के लिए उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

वह प्रिया थी. पहले से भी ज्यादा खूबसूरत, आत्मविश्वासी और चमकदार. उस ने एक शानदार, डिजाइनर ड्रैस पहन रखी थी और उस के आसपास लोगों का एक छोटा समूह था, जो उस की बातों पर हंस रहा था और उस की तरफ आकर्षित दिख रहा था. उस के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, जो उस की कामयाबी और आत्मविश्वास को दिखा रही थी.

करण के दिल की धड़कनें अचानक तेज हो गईं. पिछले 2 सालों में उस की जिंदगी में बहुतकुछ बदल गया था, लेकिन प्रिया के लिए उस के मन में जो भावनाएं थीं, वे कहीं गहरे दबी हुई थीं, एक अनदेखी नदी की तरह जो अब अचानक सतह पर आ गई थीं.

उस ने महसूस किया कि उस की यादें, जो समय की धूल से ढकी थीं, एक ?ाटके में ताजा हो गई हैं. कालेज के दिन, प्रिया की हंसी, उन दोनों के साथ बिताए हर पल की तसवीर उस की आंखों के सामने कौंध गई.

उसे लगा जैसे उस ने इतने समय से कुछ खोया हुआ था और आज वह उस के सामने है. वह तुरंत प्रिया से बात करना चाहता था, उसे गले लगाना चाहता था, उस से पूछना चाहता था कि इतने समय से वह कहां थी, कैसी थी और क्या वह उसे भूली तो नहीं थी.

करण धीरेधीरे भीड़ को चीरता हुआ प्रिया की तरफ बढ़ा. उस के कदम भारी थे और उस का दिल एक अजीब से डर से कांप रहा था.

जैसे ही वह उस के करीब पहुंचा, उस ने देखा कि प्रिया लोगों से घिरी हुई थी. हर कोई उस से बात करना चाहता था, उस की तारीफ कर रहा था और उस के साथ तसवीरें खिंचवा रहा था.

प्रिया भी मुसकराते हुए उन से बातचीत कर रही थी, पूरी तरह अपनी नई दुनिया में लीन, अपनी कामयाबी की चमक में डूबी हुई. उस के चेहरे पर एक अलग ही आत्मविश्वास था, जो करण ने पहले कभी नहीं देखा था.

करण ने कई बार कोशिश की कि प्रिया की नजर उस पर पड़े, लेकिन प्रिया की आंखें उसे अनदेखा करती रहीं. वह इतनी बिजी थी कि शायद उसे अपने आसपास किसी और की परवाह ही नहीं थी या शायद वह उसे पहचान ही नहीं पाई.

करण वहीं खड़ा रहा, उम्मीद करता रहा कि प्रिया उसे पहचान लेगी और उस से बात करने आएगी. उस ने इंतजार किया, हर पल को एक सदी की तरह महसूस करते हुए.

5 मिनट, 10 मिनट, फिर 15 मिनट. लेकिन प्रिया अपनी धुन में मगन रही. वह लगातार लोगों से घिरी हुई थी और कभी भी उसकी तरफ मुड़ी ही नहीं, न ही उस की ओर एक नजर डाली.

करण का दिल भारी होता जा रहा था. उसे लग रहा था जैसे प्रिया उसे जानबूझ कर अनदेखा कर रही हो या शायद वह सच में उसे भूल चुकी हो या फिर शायद उस ने उसे पहचाना ही नहीं. उस के मन में एक अजीब सी टीस उठी, एक दर्द जो उसने सोचा था कि अब शांत हो चुका है, वह फिर से जाग गया था.

करण को कालेज के दिन याद आए, जब प्रिया उस से मिलने के लिए किसी भी भीड़ से निकल आती थी, चाहे कितनी भी रुकावटें क्यों न हों. उसे याद आया कि कैसे प्रिया उस की एक आवाज पर दौड़ी चली आती थी, कैसे उस की हर खुशी और हर दर्द में वह उस के साथ खड़ी होती थी.

और अब, वह उस के सामने खड़ा था, बस कुछ ही कदमों की दूरी पर और प्रिया उसे पहचान भी नहीं पा रही थी या शायद पहचानना नहीं चाहती थी. यह एहसास उसे अंदर से तोड़ रहा था.

उसे लगा जैसे वह इस चमकदमक भरी दुनिया में एक अजनबी है, जिसे प्रिया अब नहीं पहचानती, एक भूला हुआ अध्याय.

काफी देर तक इंतजार करने के बाद, जब करण को यह साफ हो गया कि प्रिया उस से बात करने नहीं आएगी, तो उस का दिल पूरी तरह से टूट गया. एक गहरी निराशा ने उसे घेर लिया. उस के चेहरे पर छाई मुसकान फीकी पड़ गई.

उस के मन में एक भयानक खालीपन छा गया. उसे लगा कि उस ने जिसे इतना प्यार किया था, वह अब उस के लिए बस एक याद बन चुकी है और शायद प्रिया के लिए वह अब कुछ भी नहीं रहा. वह बेमन से, भारी कदमों से समारोह से बाहर निकल गया.

दिल्ली की ठंडी हवा करण के गरम आंसुओं को पोंछने की कोशिश कर रही थी, लेकिन दिल में उठे तूफान को शांत करना आसान नहीं था. उस की उम्मीदें बिखर चुकी थीं और उसे लगा कि शायद उनका रिश्ता सचमुच खत्म हो चुका है या फिर कभी था ही नहीं, बस एक भरम था.

वह अपनी कार में बैठा और चुपचाप होटल से दूर चला गया, अपने टूटे हुए दिल और बिखरी हुई यादों के साथ.

करण को एहसास हुआ कि जिंदगी बदल गई है. लोग बदल गए हैं. और शायद सब से बड़ा बदलाव वह था, जो उन के रिश्ते में आया था.

वह जानता था कि इस घटना के बाद, अब उसे प्रिया के लिए अपनी भावनाओं को हमेशा के लिए दफन करना होगा.

यह बिछोह की सांझ अब एक स्थायी रात में बदल चुकी थी, जिस की कोई सुबह नहीं थी. Hindi Family Story

Story In Hindi: हम तो जिनावर हैं

Story In Hindi: फैक्टरी में दूसरी पाली रात को 1 बजे खत्म होती थी. अजय अपनी कार से कंपनी के मकान में जा रहा था. तरक्की होने के बाद उसे पाली पूरी के बाद भी देर तक रुकना पड़ता था, इसलिए कंपनी की टाउनशिप में जाने के समय रात को ज्यादा भीड़ नहीं मिलती थी.

घर से पहले एक बाजार था, जो बंद हो गया था. उमस भरी गरमी का मौसम था, पर कार की खिड़की में से आते ठंडी हवा के ?ांके अजय को अच्छे लग रहे थे.

तभी बाजार से आगे सुनसान जगह पर किसी शख्स को औंधा पड़े हुए देख कर एक बार तो अजय ने सोचा कि पड़ा रहने दो, मुझे क्या करना है. पर तब तक कार उस के नजदीक पहुंच गई.

कार की हैडलाइट की रोशनी में उस ने देखा, तो वह शख्स कंपनी की यूनिफौर्म पहने हुए था.

अजय कार रोक कर उस शख्स के पास गया, जो नशे में इतना बेहोश था कि उसे कोई भी रात के समय अपनी गाड़ी से कुचल कर जा सकता था.

अजय को वह आदमी कुछ जानापहचाना सा लग रहा था. जा कर उसे सीधा किया तो वह उस का पुराना पड़ोसी बलभद्र सिंह था, जिसे सभी बल्लू सिंह के नाम से बुलाते थे.

अजय ने जैसेतैसे बल्लू सिंह को उठा कर कार में लादा और उस के घर छोड़ने के लिए कार आगे बढ़ाई.

बल्लू सिंह अच्छे घर का था. अजय से उम्र में बड़ा होने के बावजूद वह और उस का परिवार, जिस में उस की पत्नी और 2 बच्चे शामिल थे, उसे बहुत इज्जत देते थे.

अजय ने देखा कि बल्लू सिंह की पत्नी कार की आवाज सुन कर डरते हुए घर का दरवाजा खोल रही थी. उसे लग रहा था कि कोई कर्ज मांगने वाला तो नहीं आ गया है.

अजय को देख कर बल्लू सिंह की पत्नी को राहत महसूस हुई और अजय के साथ बल्लू सिंह को कार से उतार कर घर के अंदर ले जाने में मदद करने लगी.

बल्लू सिंह को अजय बिस्तर पर लिटाने लगा, तब उस की पत्नी ने आंसू बहाते हुए बिना कुछ कहे उस की तरफ हाथ जोड़ कर मूक नजरों से उस का धन्यवाद किया. अजय बिना कुछ कहे चुपचाप चला आया.

बल्लू सिंह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन बहुत ही अनुभवी और कुशल क्रेन आपरेटर था. इसी वजह से बड़े अफसर कोई भी बहुत जरूरी और रिस्की काम होने पर उसे ही याद करते थे खासकर प्रोडक्शन ईयर पूरा होने की आखिरी तिमाही में जनवरी से मार्च के समय जब रातभर काम चलता था.

रात की पाली के मुलाजिमों को ओवरटाइम करना पड़ता था, जिस की भुगतान की रकम कई बार तनख्वाह से ज्यादा हो जाती थी.

जैसा कि मेहनतकश तबका होता है, बल्लू सिंह को शराब पीने का शौक लग गया था, जो पहले तो कभीकभार पीने तक था, लेकिन ज्यादा पैसे हाथ में आने पर शराब की मात्रा और पीने का दौर बढ़ने लगा था. साथ में 2-4 यार भी मिल जाते थे, क्योंकि पीने का मजा तो यारों के साथ ही आता है.

कभीकभार पीने वाले बल्लू सिंह को अब रोज पीने की आदत हो गई थी. पहले शाम को ही पीता था, पर अब दिन में भी पीने लग गया था. लेकिन उस की क्रेन चलाने की कुशलता में कमी नहीं आई थी, बल्कि कई बार तो काम पूरा होने पर अफसर खुश हो कर अपनी जेब से रुपए दे कर कहते थे, ‘बल्लू सिंह, जाओ ऐश करो.’

ऐसे मौके रात को टैस्टिंग जैसे काम होने पर अकसर आते थे, क्योंकि टैस्टिंग कब होगी इस का निश्चित समय नहीं रहता था, इसलिए बल्लू सिंह को पहले ही रात को रुकने के लिए बोल देते थे कि यह काम तो बल्लू सिंह ही करेगा, साथ ही उसे ताकीद भी करते थे कि काम पूरा होने के बाद ही पीना.

हर समय हंसीमजाक करने वाला बल्लू सिंह धीरेधीरे शराब का आदी होने लगा. अब वह शराब की दुकान खुलते ही वहां पहुंचने लगा. जो दोस्त रात की पाली वाले होते थे, उन के साथ दिन में और दिन की पाली वालों के साथ रात में महफिल जमने लगी.

कहते हैं कि जब बुराई आती है तब अकेली नहीं आती है. वह दूसरे बुराइयों को साथ ले कर आती है.

शराब के साथ जर्दे वाला पान, गुटखा, सिगरेट और कभीकभी शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर न जाने के चलते फैक्टरी के अंदर ही गांजे की चिलम का सुट्टा मारने वालों की संगति करने लगा. इन सब वजहों से नौकरी से छुट्टी ज्यादा होने लगी. जब छुट्टी नहीं रही, तो विदाउट पे करने लगा.

बल्लू सिंह को तकरीबन सालभर ओवरटाइम करना पड़ता था. इस वजह से तनख्वाह में कमी की भरपाई हो जाती थी, लेकिन कब तक. उसे अपने साथियों से तनख्वाह ज्यादा मिलती थी, पर अब उस के जुआ खेलने वाले नए साथियों का साथ भी मिलने लगा, जो तनख्वाह ज्यादा मिलने के चलते उसे जुआ खेलने के लिए उकसाने लगे.

शराब का नशा जुए की जीतहार के रोमांच से और बढ़ जाता था, जिस में बल्लू सिंह को बहुत मजा आने लगा. इन सब बुराइयों के एकसाथ आने से वह पत्नी के हाथ में जो तनख्वाह रखता था, उस में कमी आने लगी.

पत्नी समझदार, पढ़ीलिखी, अच्छे संस्कार की थी. उस ने घर और बच्चों को कम पैसों में संभाला, लेकिन समुद्र के पानी को बारबार उलीचने लगो तो समुद्र भी खाली होने लगेगा.

एक समय ऐसा आया कि बल्लू सिंह की तनख्वाह उस के शौक और नशे के आगे कम पड़ने लगी. इस वजह से रात को जब वह पी कर आता, तो घर में कलह होने लगती. अपने गुस्से और बेबसी को वह पत्नी की पिटाई कर के उतारता और फिर शराब की दुकान पर चला जाता.

कम तनख्वाह और बड़ते शौक के तनाव के चलते काम से कई दिनों तक गैरहाजिर रहने से बल्लू सिंह सूदखोरों, लोकल दादाओं के चंगुल में फंस गया, जो महीने की पहली तारीख को उस की तनख्वाह छुड़ा लेते थे और फिर उसे ही ब्याज पर रुपए इसी शर्त पर देते थे कि उसे शराब भी पिलानी पड़ेगी.

बल्लू सिंह को फैक्टरी जा कर काम करने में भी डर लगने लगा कि जो पैसा वह कमाएगा वह सूदखोर दादा ले जाएंगे. इसी डर के चलते वह फैक्टरी कभी जाता, तो कभी नहीं जाता. जो तनख्वाह मिलती, उस से अपने पीने का शौक पूरा करता और घर में फाकाकशी की नौबत आने लगी.

बच्चों की पढ़ाई की फीस जमा नहीं होने के चलते स्कूल वालों ने बच्चों का नाम काट दिया. तब बच्चों को उस ने सरकारी स्कूल में डाल दिया, जहां फीस कम लगती थी.

अब समस्या पीने की थी, जिसे उस ने शराब की दुकान पर सफाई कर के हल कर लिया था. दुकान वाला उसे सफाई करने के बदले शराब पिला देता था.

ब्याज वाले घर पर आ कर तगादा करते और बल्लू सिंह की पत्नी को धमकियां देने लगे, क्योंकि वह घर पर मिलता ही नहीं था. हमेशा हंसीमजाक करने वाले बल्लू सिंह का यह हाल हो जाएगा, किसी ने नहीं सोचा था.

एक रात की बात है. बल्लू सिंह की औरत ने अपने बच्चों को अजय के घर भेजा. एक बच्चे ने रोते हुए बताया, ‘‘अंकल, हमारे पापा मम्मी को मार रहे हैं. आप आ कर उन्हें बचा लो.’’

अजय तुरंत बच्चों के साथ गया और बल्लू सिंह पर चिल्लाया, ‘‘यह तुम क्या कर रहे हो बल्लू सिंह… क्या अपनी बीवी को इस तरह मारते हैं… शराब ने तुम्हें बिलकुल जानवर बना दिया है.’’

बल्लू सिंह ने अजय की आवाज सुन कर पानी बीवी को मारना बंद किया और कहने लगा, ‘‘भाई साहब, आप जानते नहीं कि यह औरत मेरी इज्जत खराब कर रही है. पड़ोस से पैसे उधार ले कर आई है. मैं क्या मर गया हूं, कमाता नहीं हूं…’’

बल्लू सिंह की औरत कहने लगी, ‘‘भाई साहब, कल से बच्चे भूखे हैं. घर में कुछ नहीं है. पिछले एक महीने से बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं.’’

यह सुन कर अजय गुस्से से कहने लगा, ‘‘बल्लू सिंह, तुम्हें अपने बीवी और बच्चों का जरा सा भी ध्यान नहीं है.’’

बल्लू सिंह उस के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘साहब, हम तो जिनावर हैं. हम पढ़ेलिखे नहीं हैं. फिर भी इस औरत को इतना तो सोचना चाहिए कि अपने आदमी की इज्जत को बना कर रखे.’’

बल्लू सिंह अपनी बेबसी को, अपनी कमी को, पति की इज्जत को ढकने के नाम पर पत्नी को मार कर दूर करने की कोशिश कर रहा था.

अजय ने कहा, ‘‘वह इज्जत कैसे बनाएगी, इज्जत तो तुम गिरा रहे हो. अपने बीवीबच्चों को भूखा रख रहे हो, उन्हें स्कूल नहीं भेज पा रहे हो. तुम्हारी पत्नी कब तक सब्र करेगी…’’

बल्लू सिंह बस नशे में एक ही बात कहता रहा, ‘‘साहब, हम तो जिनावर हैं. ये बड़ीबड़ी बातें हमें नहीं आती हैं.’’

अजय ने बल्लू सिंह की औरत को अपनी जेब से रुपए निकाल कर दिए और कहा, ‘‘सब से पहले खाने का कुछ सामान ले कर आओ. बच्चों और बल्लू सिंह को भी खिलाओ. और तुम भी भूखी मत रहना, खाना जरूर खाना.’’

बल्लू सिंह चाहे कितना भी खराब था, लेकिन अजय की बहुत इज्जत करता था. दूसरे दिन अजय सुबह की पाली होने के चलते फैक्टरी आ गया था. लंच में घर जाने पर उस की पत्नी ने बताया, ‘‘बल्लू भाई साहब आ कर माफी मांग रहे थे. मैं ने उन से कहा कि जब अजय आएंगे तब जो कहना उन से कहना.’’

दिनोंदिन बल्लू सिंह के घर की हालत खराब होती जा रही थी. वह घर की जिम्मेदारियों से बेपरवाह हो गया था. उसे सिर्फ एक ही चीज चाहिए थी, वह थी शराब, जिस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था.

किसी भी तरह से वह अपने लिए शराब का बंदोबस्त कर लेता था, लेकिन उस के बीवीबच्चों का क्या होगा, नशे के आगे वह कुछ सोचना भी नहीं चाहता था.

बल्लू सिंह, जो कभीकभार फैक्टरी चला जाता था, वह भी उस ने बंद कर दिया था, क्योंकि उसके साथी क्रेन आपरेटर और स्लिंग लगाने वाले सिलिंगर उस को ताना मारने लगते थे कि बल्लू सिंह के बीवीबच्चे भूखे मर रहे हैं, उस के बच्चों का नाम स्कूल वालों ने काट दिया है, पर उसे तो सिर्फ शराब से मतलब है, उसे अपने परिवार की कोई चिंता नहीं है.

यह सब सुन कर बल्लू सिंह को सब के सामने शर्म आने लगती. वह किसी से भी ब्याज पर उधार ले कर तुरंत आउट पास ले कर शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर चला जाता, जैसे शराब पीना उन के तानों का जवाब हो.

एक दिन की बात है. बल्लू सिंह की दूसरी पाली थी. वह भी आज काम पर आ गया था, लेकिन उस का कोई भरोसा नहीं था कि वह कब शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर चला जाएगा.

बल्लू सिंह फैक्टरी में टैस्टिंग वाले पार्ट्स को टैस्टिंग एरिया में ले जाने के लिए क्रेन से उठाते हुए देख रहा था कि तभी उसे लगा कि पार्ट्स को उठाने के लिए स्लिंगर ने एक स्लिंग (वायर रोप) ठीक से नहीं लगाई है, क्योंकि वह एक कुशल क्रेन आपरेटर था, जिसे ऊपर क्रेन के केबिन में बैठ कर जल्दी पता चल जाता था कि स्लिंग ठीक से लगी है या नहीं.

बल्लू सिंह ने अपने साथी स्लिंगर को आवाज दे कर चेतावनी दी कि स्लिंग सही नहीं लगी है, पर तब तक पार्ट ऊपर उठ चुका था. कुछ काम की जल्दबाजी, कुछ स्लिंगर का ध्यान न देना, एक पार्ट स्लिंग से तेजी से लहराते हुए नीचे गिरने लगा.

यह सब बल्लू सिंह देख रहा था. उस ने अजय को दौड़ कर धक्का दिया. अजय दूर जा कर गिरा और वह भारी हिस्सा बल्लू सिंह पर गिर गया.

पूरी वर्कशौप में पहले तो सन्नाटा छा गया कि आज तो बल्लू सिंह गया. तब तक अजय खड़ा हो कर बल्लू सिंह के पास पहुंचा. वैसे भी वह शिफ्ट इंचार्ज था. उस ने तुरंत पास खड़े एक मुलाजिम को एंबुलैंस के लिए फोन करने को कहा.

इस बीच बाकी मुलाजिमों ने देखा कि बल्लू सिंह के पैर से खून का फव्वारा निकल रहा था. तभी उस के कराहने की आवाज आई.

अजय भी बल्लू सिंह की हालत देख कर डर गया था और सोच रहा था कि आज बल्लू सिंह नहीं होता, उस का बचना मुश्किल था.

तब तक एंबुलैंस के सायरन की आवाज आने लगी. बल्लू सिंह दर्द और खून बहने के चलते बेहोश हो गया था. मुलाजिमों और अजय ने मिल कर उसे एंबुलैंस तक उठा कर अंदर लिटा दिया.

एंबुलैंस के साथ आए मैडिकल स्टाफ ने प्राथमिक उपचार करना शुरू कर दिया. कंपनी के हौस्पिटल में जाते ही बल्लू सिंह को तुरंत आपरेशन थिएटर में ले जाया गया और उस के आपरेशन की तैयारी शुरू होने लगी.

अजय ने एक मुलाजिम को बल्लू सिंह के घर उस की पत्नी के साथ साथ अपनी पत्नी को भी खबर करने के लिए भेज दिया था. उस समय मोबाइल फोन की सुविधा नहीं थी.

थोड़ी देर बाद अजय की पत्नी बल्लू सिंह की पत्नी और उस के दोनों बच्चों को साथ ले कर आपरेशन थिएटर के बाहर आ गई.

अजय ने अपनी पत्नी को सारी बात बताई और कहा कि बल्लू सिंह ने उस की जान बचाने के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया. आज बल्लू सिंह को कुछ हो जाता तो अजय अपनेआप को जिंदगीभर माफ नहीं करता.

बल्लू सिंह की पत्नी अपने बच्चों को अपनी छाती से चिपका कर अजय की बात सुनते हुए बस रो रही थी. उस के मुंह से एक शब्द नहीं निकला.

आपरेशन पूरा होने में तकरीबन 2 घंटे से ज्यादा लग गए. डाक्टर ने बाहर आ कर कहा कि आपरेशन ठीक से हो गया है. बल्लू सिंह के पैर में रौड लगा दी है, पर खून ज्यादा बहने के चलते उसे तुरंत खून चढ़ाना होगा.

अजय ने अपना खून के लिए कहा, पर उस का ब्लड ग्रुप मैच नहीं हुआ. तब अजय की पत्नी ने कहा, ‘‘आप मेरा ब्लड टैस्ट करें.’’

अजय की पत्नी का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और उस ने अपना खून दे दिया. डाक्टर ने कहा कि और खून की जरूरत पड़ेगी, पर वह कल सुबह तक भी मिल जाएगा, तो कोई चिंता की बात नहीं है.

अजय ने अपने अफसरों को पूरे हालात के बारे में बता दिया था. अफसरों ने तुरंत रात की पाली के कुछ मुलाजिमों को, जिन का ब्लड ग्रुप बल्लू सिंह के ब्लड ग्रुप से मैच हो सकता था, हौस्पिटल भेज दिया.

इस तरह की सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में मजदूर तबका हमेशा आगे रहता है. उन मुलाजिमों का ब्लड टैस्ट कर के उन के खून को हौस्पिटल के ब्लड बैंक में रखवा दिया था, जो सुबह काम आता.

उन मुलाजिमों को अजय ने अपने घर जा कर आराम करने के लिए कहा, तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि बल्लू सिंह के होश में आने के बाद ही वे घर जाएंगे.

रातभर अजय, उस की पत्नी, बल्लू सिंह का परिवार और साथी मुलाजिम आईसीयू के बाहर बैठे उस के होश में आने का इंतजार करने लगे.

सुबह जब बल्लू सिंह को होश आया, तभी डाक्टर का राउंड शुरू होने लगा. अजय ने डाक्टर से बल्लू सिंह के बारे में जानकारी ली.

डाक्टर ने कहा कि आपरेशन तो हो गया है, लिहाजा चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन इसे अपने पैरों पर खड़े होने में 3 महीने लग जाएंगे. तब भी यह पूरी तरह काम करेगा, ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि पैर में अब रौड लग गई है, तो वह ओरिजनल जैसा काम नहीं करेगा.

3 दिन बाद बल्लू सिंह बात करने की हालत में आया, क्योंकि उसे दर्द और नींद के इंजैक्शन दिए जा रहे थे.

अजय की पत्नी ने अजय के कहने पर बल्लू सिंह की पत्नी को घरखर्च के लिए पैसे दे दिए थे. वह मना कर रही थी, लेकिन उस ने कहा कि ले लो अभी बहुत जरूरत पड़ेगी.

शाम को अजय अपनी पत्नी को साथ ले कर बल्लू सिंह को देखने हौस्पिटल पहुंचा. वहां बल्लू सिंह की पत्नी उस के पास बैठ कर फल खिला रही थी. अजय को देख कर वह खड़ी हो कर नमस्ते करने लगी. बल्लू सिंह ने भी उसे नमस्ते किया.

अजय ने पूछा, ‘‘अब कैसे हो तुम बल्लू सिंह?’’

‘‘सब आप की मेहरबानी है साहब.’’

अजय ने कहा, ‘‘बल्लू सिंह, तुम ने ठीक नहीं किया. मेरी जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं की. अगर तुम्हें कुछ हो जाता, तो इन बच्चों का क्या होता…’’

बल्लू सिंह कहने लगा, ‘‘साहब, हम मर जाते तो अच्छा होता. अपने बीवीबच्चों की जिनगी हमारे चलते खराब हो रही थी. हमारे मरने पर इन को कंपनी से बहुत रुपया मिल जाता और पैंशन भी मिल जाती, जिस से यह अपना और बच्चों का पेट पाल लेती.

‘‘हमारी जिनगी की कोई कीमत नहीं है. हमारे में और जिनावर में क्या फर्क है साहब, आखिर हम जिनावर…’’

बल्लू सिंह के बात पूरी करने से पहले ही अजय ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और कहने लगा, ‘‘तुम जिनावर नहीं हो बल्लू सिंह. जो किसी की जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करता है, वह कभी जिनावर नहीं हो सकता है, वह अच्छा इनसान होता है.’’

अजय ने बल्लू सिंह की भाषा में जानवर को जिनावर कहने लगा. यह सुन कर बल्लू सिंह के चेहरे पर वही पुराने वाले बल्लू सिंह की मासूम मुसकराहट उभरने लगी.

अजय ने कहा, ‘‘बल्लू सिंह, मेरी जान तुम ने बचाई है, इसलिए मेरी कसम खा कर कहो कि आज से शराब, जुआ सब बंद कर दोगे और पुराने वाला माहिर क्रेन औपरेटर बन कर दिखाओगे.’’

बल्लू सिंह ने हाथ जोड़ कर वादा किया. यह सुन कर अजय की पत्नी की आंखों में आंसू आ गए.

उधर, खुशी के मारे बल्लू सिंह की पत्नी के आंसू रुक नहीं रहे थे. अजय की पत्नी उस के आंसू पोंछ कर उसे चुप कराने लगी. Story In Hindi

Romantic Hindi Story: इश्क की उड़ान

Romantic Hindi Story: कहते हैं कि जब कोई इश्क में होता है, तो उसे रंगीन ख्वाबों के नए पंख लग जाते हैं और वह अपनी ही बनाई दुनिया के आसमान में उड़ने लगता है. कल्पना और अजीत के इश्क की यह उड़ान उन्हें दिल्ली से भोपाल ले आई थी.

दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में पड़ोसी रहे कल्पना और अजीत के लिए भोपाल जाने की यह राह कहने को आसान थी, पर वहां उन के प्यार का एक अलहदा ही इम्तिहान होना था.

हुआ यों कि भोपाल आने से पहले दिल्ली में एक रात अजीत ने कल्पना को मोबाइल फोन पर बताया, ‘‘कल्पू, अब हमें अपने प्लान को आखिरी अंजाम तक ले जाना होगा. मुझे लगता है कि हम दोनों के घर वालों को हमारे प्यार की भनक लग गई है और इस से पहले कि वे जातपांत का वही पुराना राग अलापें, हमें यहां से कहीं दूर चले जाना होगा.’’

‘पर हम जाएंगे कहां?’ कल्पना ने सीधा सवाल किया.

‘‘देखो, हम इश्क के मारों की तरह सीधा मुंबई तो भागेंगे नहीं,’’ अजीत ने कहा.

‘तो मेरा सपनों का राजकुमार मुझे किस शहर में ले जा कर अपने दिल और घर की रानी बनाएगा?’ कल्पना ने ठिठोली की.

‘‘कल्पू, मैं ने सोच लिया है कि हम दोनों भोपाल चलेंगे. वहां मेरा एक दोस्त संजीव रहता है. वह हम दोनों को कोई काम भी दिला देगा और हमारी कोर्ट मैरिज भी करा देगा,’’ अजीत ने कहा.

‘ठीक है, मैं सारी तैयारी कर के रखूंगी,’ कल्पना ने कहा.

24 साल का अजीत ग्रेजुएशन कर चुका था और पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था. वह बहुत सुलझा हुआ नौजवान था. वह हद से ज्यादा मेहनती भी था. रंगरूप से भी वह ठीक था. बस, एक ही कमी थी कि वह दलित समाज से था और ब्राह्मणों की लड़की कल्पना को अपना दिल दे बैठा था.

दूसरी तरफ कल्पना 22 साल की बहुत खूबसूरत लड़की थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी और उन की लाड़ली भी. पर वह अपने मांबाप को अजीत के बारे में बताने से डरती थी.

बहरहाल, एक दिन तय समय पर अजीत और कल्पना अपने घर में बिना बताए निकले और भोपाल की ट्रेन में बैठ कर दिल्ली के लिए जैसे हमेशा के लिए पराए हो गए.

भोपाल जंक्शन पर अजीत का दोस्त संजीव मिला और उन्हें अपने साथ घर ले गया. संजीव काफी साल से भोपाल में अकेला रह रहा था. उस का घर बड़ा तालाब के पास ही था.

जब अजीत और कल्पना ने पहली बार बड़ा तालाब देखा, तो कल्पना के मुंह से अचानक निकला, ‘‘संजीव, यह तालाब है या कोई समुद्र. मुझे तो लगा कि गांव का कोई तालाब होगा, थोड़ा सा बड़ा होगा, पर यह तो बहुत ज्यादा बड़ा है यार…’’

‘‘यह इनसानों द्वारा बनाई गई एक बहुत बड़ी झोल है और लगता है कि कोई समुद्री छोर है. ऐसा माना जाता है कि बड़ा तालाब को 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था. तब इस इलाके में पीने की पानी की बड़ी समस्या थी.

‘‘भोपाल आज भी इसी तालाब का पानी पीता है. यही नहीं, बड़ा तालाब आज भोपाल के लोगों के लिए जीवनरेखा के साथसाथ मनोरंजन और रोजगार का जरीया भी बन गया है,’’ संजीव ने बताया.

‘‘मुझे तो भोपाल शहर बड़ा अच्छा लगा. रास्ते में जब हम आटोरिकशा में आ रहे थे तो ढलान और चढ़ाई वाली बलखाती सड़कें देख कर मैं तो रोमांचित हो गई,’’ कल्पना ने कहा.

‘‘यह शहर जितना खूबसूरत है, उस से भी ज्यादा खूबसूरत यहां के लोग हैं. और अब तो तुम भी यहां आ गई हो, तो हमारे शहर का रुतबा और ज्यादा बढ़ गया है,’’ संजीव कल्पना को देख कर बोला.

‘‘अगर तेरी फ्लर्टिंग खत्म हो गई हो तो हमें वह मकान भी दिखा दे, जहां हमारे रहने का इंतजाम किया गया है,’’ अजीत कल्पना को अपनी तरफ खींच कर बोला.

संजीव ने अपने ही इलाके में एक वन बीएचके फ्लैट दिखाया, जो पहली मंजिल पर बना था. ग्राउंड फ्लोर पर मकान मालिक अपने परिवार के साथ रहता था.

कल्पना और अजीत को वह मकान पसंद आया. उन्होंने अपना सामान वहां रखा. सब से अच्छी बात यह थी कि उस फ्लैट में मकान मालिक ने रोजमर्रा का जरूरी सामान रखा हुआ था, जिस का इस्तेमाल वे दोनों कर सकते थे.

ऊपर से तो कल्पना और अजीत बहुत खुश थे, पर मन ही मन वे डरे हुए थे. कल्पना जानती थी कि उस के पापा ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस थाने में लिखवा दी होगी और आज नहीं तो कल उन्हें पता चल जाएगा कि अजीत भी अपने घर से गायब है.

हालांकि, उन दोनों ने अपने मोबाइल फोन में नए सिमकार्ड भी डलवा लिए थे, पर उन की हिम्मत नहीं हो पा रही थी अपनेअपने घर बात करने की.

संजीव अपने मकान पर जा चुका था. उस का अगला काम था कल्पना और अजीत को कहीं कोई काम दिलाना और फिर उन की कोर्ट मैरिज करवाने का इंतजाम करना.

‘‘कल्पू, हम ने सही फैसला लिया है न? अगर तुम चाहो तो हम वापस जा कर अपने बड़ों से माफी मांग सकते हैं,’’ अजीत ने रोटी का कौर कल्पना को खिलाते हुए कहा.

‘‘सही या गलत का तो पता नहीं, पर अब जब हम यहां आ ही गए हैं, तो खुद को तो यह चुनौती दे ही सकते हैं कि चाहे कैसे भी हालात हों, हमें हिम्मत नहीं हारनी है,’’ कल्पना बोली.

कल्पना और अजीत दोनों अच्छे खातेपीते घर के थे. उन के पास इतने पैसे तो थे कि 2 महीने आराम से भोपाल में गुजार दें, पर अगर उन्हें जिंदगीभर साथ रहना था, तो सिर्फ प्यार की किश्ती उन का बेड़ा पार नहीं कर सकती थी. उन्हें कड़ी मेहनत करनी थी और जो भी काम मिलता, उस में अपना सबकुछ झोंक
देना था.

अगले दिन संजीव अजीत को एक अखबार एजेंट करीम मियां के पास ले गया. करीम मियां इस धंधे के पुराने खिलाड़ी थे. उन्होंने अजीत से कहा, ‘‘देखो बरखुरदार, तुम अच्छेखासे पढ़ेलिखे हो, पर फिलहाल मैं तुम्हें सुबह घरघर अखबार डालने का काम दिलवा सकता हूं. सुबह 2 घंटे का काम है. 2,000 रुपए महीना मिल जाएंगे. उस के बाद तुम कोई दूसरा धंधा भी पकड़ सकते हो.’’

‘‘करीम मियां, काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. मुझे अखबार बांटने में कोई परेशानी नहीं है. पर मेरे पास कोई साइकिल नहीं है और मैं भोपाल में नया हूं,’’ अजीत बोला.

‘‘मुझे पता है बेटा. संजीव ने मु?ो सब बता दिया है. साइकिल तो मैं तुम्हें दे दूंगा और जहां तक अखबार बांटने के इलाके का सवाल है, तो मेरा एक छोकरा तुम्हें वे सारे घर दिखा देगा, जहां तुम्हें अखबार डालना है,’’ करीम मियां ने कहा.

अजीत को साइकिल मिल गई और उसे अगली सुबह से अपनी नई नौकरी पर लग जाना था. कल्पना खुश हुई कि चलो एक को तो नौकरी मिली.

‘‘यार, मैं सोच रहा हूं कि सुबह अखबार बांटने के बाद किसी दुकान पर कोई छोटीमोटी नौकरी भी पकड़ लूंगा. इस से हम दोनों अंटी से और ज्यादा मजबूत हो जाएंगे,’’ अजीत बोला.

‘‘सुनो अजीत, मैं ने कल्पना के लिए एक जगह बात की है. वह इलैक्ट्रोनिक्स आइटम का बड़ा शोरूम है, जहां लड़कियां पैकिंग करती हैं. उस शोरूम का मालिक बड़ा ही शरीफ है.

‘‘सब से अच्छी बात तो यह है कि वह शोरूम मेरे औफिस के ही नजदीक है. मैं ही सुबह कल्पना को अपनी बाइक से ले जाऊंगा और फिर शाम को वापस ले आऊंगा. महीने के 10,000 रुपए मिलेंगे,’’ संजीव बोला.

‘‘यह तो बहुत अच्छी खबर है. मैं घर पर अकेले क्या करती… कुछ पैसा और जुड़ेगा तो हम जल्दी सैटल हो कर शादी भी कर लेंगे,’’ कल्पना ने खुश हो कर कहा.

अगले दिन अजीत सुबह 5 बजे अपनी साइकिल ले कर करीम मियां के पास निकल गया. इधर, 8 बजे के आसपास संजीव कल्पना को ले कर इलैक्ट्रोनिक्स सामान के शोरूम में ले गया.

कल्पना को उसी दिन से काम मिल गया. सुबह 9 बजे से शाम के 6 बजे तक ड्यूटी थी. शाम को 6 बजे संजीव उसे अपनी बाइक से घर वापस ले आया.

घर पर अजीत मौजूद था. वह बोला, ‘‘कल्पू, कैसा रहा आज का दिन?’’

‘‘एकदम बढि़या. पैकिंग करने में ज्यादा दिक्कत नहीं है. मैं सोच रही हूं कि अगर मालिक मुझे ओवरटाइम भी करने दे तो मैं पैकिंग के अलावा वहां के और भी तमाम काम सीखना चाहूंगी, जैसे सेल्स वाले क्या करते हैं, टैलीविजन वगैरह सामान बेचने की कला कैसे आती है,’’ कल्पना ने अपने मन की बात रखी.

‘‘मुझे भी एक दुकान के बाहर मोबाइल फोन के कवर बेचने वाले अंकल ने नौकरी पर रख लिया है. 8,000 रुपए महीना देंगे. सुबह 8 बजे तक अखबार का काम खत्म, उस के बाद मोबाइल कवर बेचने का धंधा.

‘‘मुझे मोबाइल फोन की सारी सैटिंग्स पता हैं, किसी को कोई दिक्कत आएगी, तो उस की समस्या भी सुलझा दूंगा,’’ अजीत बोला.

‘‘फिर तो मेरी पार्टी बनती है. अभी बड़ा तालाब के सामने बने रैस्टोरैंट में चलते हैं और चाइनीज खाते हैं,’’ संजीव बोला.

वे तीनों बाहर खाना खाने चले गए. जब कल्पना और अजीत वापस घर आए, तो कल्पना बोली, ‘‘यार, वैसे तो सब सही जा रहा है, पर अभी भी एक अनजाना डर मन में है कि अगर हमारे घर वालों को पता चल गया, तो क्या होगा…’’

‘‘तुम सही कह रही हो. सारा दिन मुझे बस यही खयाल रहता है कि अगर उन्होंने तुम्हें ढूंढ़ लिया और जबरदस्ती अपने साथ ले गए, तो मेरा क्या होगा…’’ अजीत बोला.

‘‘क्यों न हम यहां के थाने में शिकायत लिखवा दें कि हम दोनों बालिग हैं और अपनी मरजी से यहां रहते हैं. अगर हमें कुछ खतरा महसूस होता है, तो पुलिस को हमारी हिफाजत करनी होगी,’’ कल्पना ने सु?ाव दिया.

‘‘इस सब का एक ही हल है और वह है हमारी कोर्ट मैरिज. हम कल ही अर्जी दाखिल कर देते हैं और मंजूरी मिलते ही शादी कर लेंगे,’’ अजीत बोला.

हुआ भी यही. तकरीबन 2 महीने बाद अजीत और कल्पना ने शादी कर ली. संजीव ने सारा इंतजाम किया था. इसी तरह देखतेदेखते 6 महीने गुजर गए.

अजीत और कल्पना अपनी नौकरी में जैसे खो गए थे. वे दोनों बहुत मेहनती थे और रोजाना 15 घंटे अपने काम को देते थे.

घर वापस आते तो बहुत ज्यादा थके होते थे. खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया. इस से उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी नीरस होने लगी थी.

शायद यही वजह थी कि कल्पना अब संजीव के करीब हो रही थी या संजीव को ऐसा महसूस हो रहा था. वह शुरू से ही कल्पना की खूबसूरती का कायल था और उसे घर से शोरूम और शोरूम से घर लाने ले जाने में और ज्यादा जुड़ने लगा था.

कभीकभार जब कल्पना बहुत ज्यादा थकी होती थी, तब वह बाइक पर संजीव के कंधे से लग कर ऊंघने लगती थी. ऐसा कई बार अजीत ने भी देखा था, पर उसे कल्पना पर यकीन था. पर उसे कोई रिस्क भी नहीं लेना था.

एक दिन रविवार को अजीत और कल्पना बड़ा तालाब के सामने बैठे सुहानी शाम का मजा ले रहे थे.

अजीत ने कल्पना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘क्या तुम इस शादी से खुश हो? मैं जानता हूं कि यह अनजाना शहर है और मेरे सिवा तुम्हारा यहां कोई नहीं है.

‘‘हम दोनों मजबूरी में ऐसा काम कर रहे हैं, जो हमारी पढ़ाई से कमतर है. जो खुशियां मुझे तुम्हें देनी चाहिए, वे मैं फिलहाल नहीं दे पा रहा हूं. कल्पू, तुम मुझे छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी न?’’

अजीत के मुंह से अचानक यह सब सुन कर कल्पना एकदम हैरान रह गई. उस की आंखों में आंसू आ गए.

वह बोली, ‘‘अजीत, यह ठीक है कि हमारे दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं और जो ख्वाब हम ने देखे थे, वे शायद इस हकीकत से ज्यादा हसीन थे, पर प्यार करने का मतलब यह नहीं होता कि दुख के समय में साथ छोड़ दो.

‘‘मैं इसलिए ज्यादा काम नहीं कर रही हूं कि मुझे घर काटने को दौड़ता है या मुझे ज्यादा पैसे चाहिए, बल्कि मैं चाहती हूं कि काम और मेहनत के मामले में मैं किसी भी तरह तुम से उन्नीस न रहूं. मैं हर हाल में तुम्हारे साथ खुश हूं और हमेशा रहूंगी.’’

अजीत के मन से शक के बादल छंट गए. इसी बीच एक दिन अजीत ने संजीव से कहा, ‘‘यार, तुम एक बार मेरे घर फोन कर के वहां के हालात के बारे में जानो. उन्हें यह जताना कि जैसे तुम्हें पता ही नहीं है कि मैं यहां तुम्हारे पास हूं.’’

‘‘पर अगर उन्हें भनक लग गई तो?’’ संजीव ने कहा.

‘‘आज नहीं तो कल उन्हें पता चल ही जाएगा. हम कब तक यों छिप कर रहेंगे. कल्पना कहती नहीं है, पर उसे अपने मम्मीपापा की बहुत याद सताती है,’’ अजीत बोला.

अगले दिन संजीव ने अजीत के घर फोन लगाया और बोला, ‘‘अंकल, मैं भोपाल से अजीत का दोस्त संजीव बोल रहा हूं. बड़े दिन से अजीत से बात नहीं हो पाई है. सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटा, अजीत तो कई महीने से गायब है. हमारे पड़ोसी ने उन की बेटी को अगवा करने के इलजाम में अजीत का नाम पुलिस थाने में लिखवा दिया है. पता नहीं वे दोनों कहां होंगे… साथ हैं भी या नहीं…’’

यह सुनते ही संजीव के मन में एक बार आया कि वह सब सचसच बता दे, पर कल्पना के बारे में सोच कर वह चुप रह गया.

जब अजीत के पापा ने अपनी पत्नी को संजीव के फोन के बारे में बताया, तो उन्हें शक हुआ कि कहीं अजीत और कल्पना भोपाल में तो नहीं हैं. वे तभी कड़ा मन कर के कल्पना के घर गईं और फोन वाली बात बता दी.

अगले ही दिन अजीत और कल्पना के मांबाप भोपाल जा पहुंचे और संजीव पर दबाव डालने और पुलिस की धमकी देने के बाद अजीत और कल्पना के मकान का पता उगलवा लिया.

घर की डोरबैल बजी. कल्पना को लगा कि संजीव आया होगा. उस ने दरवाजा खोला और सामने मम्मीपापा को देख कर उस का रंग सफेद पड़ गया.

तब तक अजीत भी दरवाजे पर आ गया था. उन्हें देख कर पहले तो वह सकपकाया, पर बाद में धीरे से बोला, ‘‘अंदर आइए.’’

उन सब के साथ संजीव भी था. वह इस सब के लिए खुद को अपराधी सा महसूस कर रहा था.

पहले तो कल्पना के पापा को बड़ा गुस्सा आया, पर जब उन्हें पता चला कि अपनी गृहस्थी को बेहतर करने के लिए वे दोनों इतनी ज्यादा कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो वे मन ही मन खुश भी हुए.

‘‘मैं न तो इस शादी से खुश हूं और न ही तुम दोनों से नाराज हूं. किसी मांबाप को गुस्सा तब आता है, जब उन की औलाद भाग कर शादी तो कर लेती है, पर दुनिया के थपेड़े खा कर उन का प्यार चार दिन में ही हवाहवाई हो जाता है.

‘‘तुम दोनों खुश रहो और हमेशा यहीं भोपाल में रहना, मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूं, क्योंकि इस बुढ़ापे में मैं अपने खानदान और चार लोगों से यह नहीं सुनना चाहता कि मेरी बेटी ने छोटी जाति के लड़के से शादी कर के हमारी नाक कटवा दी.

‘‘मैं कुछ पैसे तुम्हें दे दूंगा और वहां पुलिस में दर्ज कराई गई अपनी शिकायत रद्द करवा दूंगा. मुझे लगता है कि अजीत के मांबाप को भी मेरा यह आइडिया सही लगेगा.’’

यह सुन कर अजीत के पापा की तो मानो जान में जान आई. उन के बोलने से पहले ही कल्पना ने कहा, ‘‘हमारा मकसद आप लोगों की बेइज्जती कराना नहीं था. यहां संजीव ने हमें सहारा दे कर हमारा हौसला बढ़ाया था. यह हमारा सच्चा दोस्त है.

‘‘और हां, हम दोनों ने शादी कर के कोई गुनाह नहीं किया है और अगर आप को लगता है कि हम यहीं भोपाल में रहें, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है. हम यहीं अपनी गृहस्थी बसाएंगे.’’

‘‘अजीत बेटा, मैं जानता हूं कि तुम एक समझदार बच्चे हो. मैं और तुम्हारी मां भी यही चाहते हैं कि तुम यहां अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करो,’’ अजीत के पापा ने कहा. वे सब एक रात वहां रहे और फिर अगले दिन वहां से चले गए. उन्होंने कुछ पैसे भी अपने बच्चों के अकाउंट में डलवा दिए थे.

इस घटना को 6 साल बीत गए थे. एक दिन अजीत और कल्पना के पापा के पास एक ह्वाट्सएप आया, जिस में एक इनविटेशन था. अजीत और कल्पना ने अपनी कड़ी मेहनत से इलैक्ट्रोनिक्स के सामान का अपना शोरूम खोला था. अगले रविवार को उस की ओपनिंग थी.

वे चारों दोबारा भोपाल गए. अजीत और कल्पना बहुत खुश हुए. उन दोनों की मम्मियों ने उस शोरूम का उद्घाटन किया, जिस का नाम था ‘कल्पना इलैक्ट्रोनिक्स’. अजीत और कल्पना की कड़ी मेहनत का सुखद नतीजा. Romantic Hindi Story

Short Hindi Story: छोटी जात

Short Hindi Story: गांव पिपलिया खुर्द, जिला सतना. मिट्टी के घर, टूटी पगडंडी और रात के अंधेरे में अब भी लोग सड़कों पर नहीं निकलते. वहीं रहती थी सीमा, एक कोरी जात की लड़की. पिता रामभरोसे दलित टोले में जूते बनाने का काम करते थे. मां की बचपन में ही मौत हो गई थी.

‘बेटी हो कर पढ़ाई करेगी? तू तो हाथ का काम सीख, यही तेरा भविष्य है,’ बस्ती के लोग अकसर कहते.

मगर सीमा ने यह मान लिया था कि उस की जात उस की नियति नहीं है. गांव के सरकारी स्कूल से उस ने 10वीं जमात पास की, लेकिन असली लड़ाई तो उस के बाद शुरू हुई.

जब इंटर के लिए शहर जाना चाहा, तो पंचायत ने विरोध किया, ‘लड़की है, अकेली जाएगी शहर? और पढ़लिख कर करेगी क्या?’

पिता ने भी हाथ खड़े कर दिए, ‘‘बिटिया, हम गरीब हैं, छोटी जात वाले हैं, ये बड़े सपने हमें शोभा नहीं देते.’’

सीमा ने तब पहली बार सीधे आंखों में आंख डाल कर कहा, ‘‘बाबूजी, मैं पढूंगी. चाहे भूखी रहूं, लेकिन पढ़ाई नहीं छोडूंगी.’’

वह खेतों में मजदूरी करने लगी. दिन में स्कूल, रात में चूल्हा. शहर की गलियों में झाड़ू भी लगाई, लेकिन किताबों का साथ नहीं छोड़ा. धीरेधीरे, वह बीए, फिर एमए तक पहुंच गई.

कालेज में अकसर टीचर भी ताना मारते, ‘तुम जैसी जात की लड़कियां यहां क्यों आती हैं? टीचर बनोगी क्या?’

सीमा मुसकरा कर कहती, ‘‘नहीं सर, अफसर बनूंगी.’’

आईएएस की कोचिंग करनी थी, मगर पैसे नहीं थे. उस ने सरकारी लाइब्रेरी में बैठ कर नोट्स बनाना शुरू किया. दिनभर न पढ़ पाने पर रात को शौचालय की सफाई के बाद बल्ब की रोशनी में पढ़ती थी.

और एक दिन जब उस का नाम अखबार में आया, ‘सीमा बंसोड़, अनुसूचित जाति वर्ग से, टौपर’ तो उसी गांव की पंचायत, जो कभी विरोध करती थी, अब मिठाई बांट रही थी.

सीमा ने अपना पहला भाषण उसी स्कूल में दिया, जहां उस के नाम से कभी टीचर मुंह चिढ़ाते थे.

‘‘जात वह दीवार है, जिसे मैं गिरा नहीं सकी, लेकिन उस पर चढ़ कर मैं ने उड़ना जरूर सीख लिया.’’

अब वही लोग, जिन की बेटियां कभी स्कूल नहीं जाती थीं, सीमा को देख कर पूछते, ‘हमारी बेटी भी अफसर बन सकती है न?’

सीमा मुसकरा कर कहती, ‘‘अगर जात, गरीबी और लड़कपन एकसाथ हो सकते हैं, तो जीत भी साथ हो
सकती है.’’ Short Hindi Story

Best Hindi Story: खुशी के आंसू

Best Hindi Story, लेखक – डा. राजेंद्र यादव आजाद

राधा पेट से थी. इस खबर से घर में खुशियां छा गईं, क्योंकि सालों बाद भवानी देवी की हवेली में किसी बच्चे की किलकारियां गूंजने वाली थीं.

भवानी देवी ने अपने बेटे विजय की शादी बड़ी धूमधाम से की थी. विजय वैसे तो पढ़ाई के साथसाथ खेलकूद में भी अव्वल आता था और अगर वह चाहता तो सिविल सेवा की नौकरी भी कर सकता था, लेकिन भवानी देवी की इच्छा थी कि उन का बेटा सेना का अफसर बने, क्योंकि भवानी देवी के पति कर्नल सूबे सिंह भी भारतीय सेना के जांबाज थे, जो 1971 के युद्ध में शहीद हो गए थे.

कर्नल सूबे सिंह के शहीद होने के समय भवानी देवी 6 महीने के पेट से थीं. पति के शहीद होने के 3 महीने बाद हवेली में किलकारियां गूंजी थीं. गमगीन परिवार में खुशियां छा गई थीं. भवानी देवी ने बड़े चाव से अपने बेटे का नाम विजय रखा था.

विजय धीरेधीरे बड़ा होता गया और भवानी देवी की उम्र ढलती गई. शहर से ग्रेजुएशन करने के बाद विजय भारतीय थल सेना में भरती हो गया था. इस के बाद उस की शादी एक अमीर परिवार की लड़की राधा से कर दी गई.

आज पोते के जन्म की खुशी में भवानी देवी फूली नहीं समा रही थीं. महल्ले में मिठाई बांटी गई.

समय का पहिया अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता जा रहा था तो भवानी देवी की हवेली में भी समय अपना रूप दिखा रहा था.

आज एक बार फिर हवेली में संकट के बादल मंडरा रहे हैं. भवानी देवी के पोते संदीप को भयंकर बुखार हो जाने के चलते शहर के बड़े अस्पताल में भरती कराया गया, लेकिन दाएं अंग को हवा लग जाने के चलते वह अपाहिज हो गया. घर का माहौल गमगीन हो गया.

संदीप जब अपाहिज हुआ था, तब उस की उम्र थी 4 साल थी. इसी दौरान राधा ने एक बेटी को भी जन्म दे दिया था.

विजय सेना में था, इसलिए वह अपनी बेटी और पत्नी राधा को शहर ले गया, लेकिन संदीप को दादी भवानी देवी ने उन के साथ शहर नहीं भेजा.

बड़ा बेटा संदीप अपाहिज होने के चलते विजय को अपने घर के वारिस की चिंता सताने लगी, तो उस ने तीसरी औलाद करने की सोची और बेटा पैदा हुआ.

इधर गांव में संदीप अपनी दादी के साथ ही रहता था. वह हवेली जो कभी लोगों से भरी रहती थी, अब सुनसान थी.

भवानी देवी ने संदीप का दाखिला गांव के ही सरकारी स्कूल में करा दिया. संदीप पढ़ाई में होशियार था.

उस ने कभी अपनी विकलांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. वह अपाहिज होते हुए भी अपने सभी काम कर लेता था.

दादी भवानी देवी संदीप को स्कूल छोड़ती और लाती थीं, लेकिन गांव के कुछ दबंग छात्र संदीप की विकलांगता के चलते उस का मजाक उड़ाते थे. संदीप खून का घूंट पी कर रह जाता था.

संदीप ने अपनी 12वीं जमात बहुत अच्छे नंबरों से पास की और आगे की पढ़ाई के लिए शहर में जाने इच्छा जाहिर की, तो विजय ने मना कर दिया, ‘‘आगे पढ़ कर क्या करोगे? तुम अपाहिज हो तो कौन तुम्हारा खयाल रखेगा?’’

लेकिन संदीप की जिद के चलते विजय को ?ाकना पड़ा, क्योंकि दादी भवानी देवी जो उस के साथ खड़ी थीं. उन्होंने विजय से कहा, ‘‘संदीप को आगे पढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. मैं इस के साथ रहूंगी.’’

संदीप ने शहर के कालेज में दाखिला ले लिया, लेकिन यहां भी उस की विकलांगता के चलते उस के सहपाठी उस का मजाक उड़ाने लगे, तो उसे निराशा ने घेर लिया.

आज जब संदीप कालेज से आया, तो वह अपनी दादी से कुछ नहीं बोला और अपने कमरे में जा कर बंद हो गया.

भवानी देवी ने सोचा कि दिनभर का थकाहारा होगा, इसलिए आराम कर रहा है, लेकिन जब रात को खाने के समय दादी ने संदीप का दरवाजा खटखटाया, तो भी उस ने कमरा नहीं खोला, तो वे चिंतित हो कर बोलीं, ‘‘संदीप, कमरा खोलो अपनी दादी के लिए.’’

थोड़ी देर के बाद जब संदीप ने दरवाजा खोला, तो वह अपनी दादी से लिपट कर रोने लगा.

‘‘क्या बात है बेटा? मुझे बताओ,’’ दादी बोलीं.

‘‘दादी, आप अभी गांव चलो. मैं अब नहीं पढ़ूंगा. पापा सही कहते थे कि तुम विकलांग हो, अब आगे नहीं पढ़ना चाहिए. मैं पढ़ाई छोड़ रहा हूं,’’ संदीप ने कहा.

‘‘यह क्या बेटा, अभी से हार मान ली… तुम्हें तो मेरा सपना पूरा करना है. तुम्हें पढ़ाई कर के आईएएस जो बनना है. तुम्हारी विकलांगता तुम्हारी पढ़ाई में बाधा नहीं बननी चाहिए. मैं हर पल तुम्हारे साथ खड़ी हूं. मैं जब तक तुम्हें आईएएस नहीं देख लूंगी, तब तक मरूंगी नहीं.

‘‘तुम्हें अपनी दादी के लिए पढ़ना होगा. तुम ऐसे लोगों के लिए मिसाल बनोगे, जो अपनी विकलांगता को बोझ समझ कर अपना रास्ता बदल लेते हैं.’’

‘‘ठीक है दादी, मैं आज के बाद कभी आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’’

अगली सुबह जब संदीप सो कर उठा तो उस में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था. वह फैसला कर चुका था कि अब चाहे उस की विकलांगता का कितना भी मजाक उड़ाया जाए, वह दुखी नहीं होगा. उसे तो केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना है.

कालेज में संदीप अपनी जगह बैठ कर क्लास लेने लगा. राजनीति विज्ञान के प्रोफैसर उम्मेद सिंह आए और अपना विषय पढ़ाने लगे.

इस के बाद संदीप दिनभर गुमसुम बैठा रहा था. लंच में नेहा ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘क्या बात है संदीप, आप कल उन आवारा लोगों की बातें दिल से क्यों लगा बैठे? चलो, चाय पी कर आते हैं. मुझे उम्मीद है आप उन की बातों को जरूर भूल जाओगे.

‘‘एक बात कहूं संदीप, जब मदमस्त हाथी चलता है तो उस के पीछे न जाने कितने कुत्ते भौंकते हैं. तुम हाथी हो मेरे दोस्त.’’

फिर वे दोनों कालेज की कैंटीन की तरफ चल दिए. थोड़ी देर के बाद वे कैंटीन में चाय पी कर वापस क्लास रूम में आ गए.

नेहा भी गांव से शहर पढ़ने आई थी. वह भी संदीप की ही क्लास में थी. वह मन ही मन संदीप को चाहने लगी थी, लेकिन उस ने कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया था. वे दोनों अब अच्छे दोस्त बन चुके थे.

संदीप हर बाधा को पार करता हुआ अपनी पढ़ाई कर रहा था. उस ने बीए भी अच्छे अंकों से पास की थी.

नेहा और संदीप ने राजनीति विज्ञान से एमए करने का विचार बनाया और दोनों का दाखिला जेएनयू में हो गया.

संदीप का केवल एक ही मकसद था कि उसे आईएएस बनने है, क्योंकि यह सपना संदीप का नहीं, बल्कि उस की दादी का भी था. वह अब होस्टल में रहते हुए अपनी एमए की पढ़ाई के साथसाथ आईएएस की तैयारी भी करने लगा था.

एक दिन नेहा ने कहा, ‘‘संदीप, आज गंगा ढाबे पर खाना खाने चलते हैं.’’

‘‘अरे नेहा, मैस में ही खा लेंगे न,’’ संदीप बोला.

‘‘नहीं, आज तो आप को मेरी बात माननी ही पड़ेगी,’’ नेहा बोली.

‘‘अरे बाबा, आप बड़ी जिद्दी हो,’’ संदीप ने कहा और दोनों हंस पड़े. जेएनयू में घूमते हुए वे गंगा ढाबा की तरफ चल पड़े.

‘‘संदीप, एक बात बोलूं… अगर आप सुनो तो,’’ नेहा बोली.

‘‘बोलो नेहा, क्या कहना चाह रही हो?’’ संदीप ने कहा.

‘‘संदीप, आई लव यू. मैं आप से बहुत प्यार करती हूं,’’ नेहा ने कहा, तो संदीप बोला, ‘‘नेहा, मुझ विकलांग के लिए यह आप की हमदर्दी है प्यार नहीं.’’

‘‘नहीं संदीप, मैं सच में आप से प्यार करती हूं. आप दुनिया के एक बेहतरीन इनसान हैं,’’ नेहा ने कहा.

‘‘तो क्या आज यह कहने के लिए ही आप ने मुझे बुलाया था?’’ संदीप ने पूछा.

‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो,’’ नेहा ने कहा.

इस के बाद उन दोनों ने गंगा ढाबे पर खाना खाया. वैसे, संदीप भी मन ही मन नेहा को बहुत चाहता था, लेकिन कभी अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाया था. आज जब नेहा ने संदीप को आई लव यू कहा तो संदीप की भावनाओं का ज्वार टूट पड़ा और उस ने भी नेहा को आई लव यू बोल दिया.

संदीप और नेहा ने आईएएस का फार्म भर दिया था. अपनी एमए की पढ़ाई के साथसाथ वे दोनों आईएएस की भी कोचिंग ले रहे थे.

यूपीएससी ने प्रीलिमिनरी ऐग्जाम की तारीख तय कर दी, तो संदीप और नेहा के दिल की धड़कन बढ़ने लगी. तय समय पर प्रीलिमनरी का ऐग्जाम हो गया और नेहा और संदीप का रिजल्ट भी अच्छा रहा. वे दोनों प्रीलिमनरी पास कर चुके थे और अब मेन ऐग्जाम की तैयारी में जुट गए थे.

कहते हैं कि मेहनत रंग लाती है और संदीप व नेहा की मेहनत भी रंग ला रही थी. दोनों ने ही पहले चांस में ही मेन ऐग्जाम भी क्लियर कर लिया. अब बारी थी इंटरव्यू की. उन दोनों को यकीन था कि उन का इंटरव्यू भी अच्छा ही हो जाएगा.

नेहा बोली, ‘‘सुनो संदीप, मुझे उम्मीद है कि हमारा इंटरव्यू भी अच्छा हो जाएगा. मैं चाहती हूं कि आप अपने मम्मीपापा से हमारी शादी की बात कर लें.’’

नेहा की बातें सुनकर संदीप एकदम से चौंक गया और बोला, ‘‘क्या हम अभी शादी की बात करें? देखो नेहा, हम अच्छे दोस्त तो हैं लेकिन क्या आप के मम्मीपापा एक अपाहिज से अपनी आईएएस बेटी की शादी करा देंगे? शायद नहीं.

‘‘नेहा, आप का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. आप ऐसा करो कि किसी अच्छे से लड़के से शादी कर लो. मैं अपाहिज हूं. मैं आप के लायक नहीं हूं.’’

‘‘क्या बात कर रहे हो संदीप… मैं ने आप से प्यार किया है. मैं आप के सिवा किसी की भी पत्नी नहीं हो सकती. अगर मेरी शादी आप से नहीं हुई, तो मैं जिंदगीभर शादी नहीं करूंगी.’’

संदीप बोला, ‘‘ठीक है तो फिर आप अपने मम्मीपापा से बात करो और मैं भी घर में बात करता हूं. लेकिन हम यह बात इस इंटरव्यू के बाद ही करेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ नेहा ने कहा.

इंटरव्यू में नेहा और संदीप पास हो गए. वे अब आईएएस बन चुके थे. दोनों को ही ट्रेनिंग के लिए मसूरी भेज दिया गया. ट्रेनिंग के बाद दोनों को ही राजस्थान कैडर मिला, तो वे बहुत खुश हुए.

नेहा ने तो अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए तैयार कर लिया, लेकिन संदीप के पापा और मम्मी इस शादी के लिए तैयार नहीं हुए, क्योंकि नेहा अनुसूचित जाति की लड़की थी और संदीप राजपूत था.

संदीप एक बार फिर टूट गया. उस ने नेहा को अपने मांबाप का फैसला सुना दिया.

नेहा बोली, ‘‘संदीप, मैं आप को अपना पति मान चुकी हूं और मैं आप के सिवा किसी दूसरे की पत्नी नहीं बन सकती. हम अच्छे दोस्त थे, हैं और आगे भी रहेंगे.’’

जब भवानी देवी की पता चला कि नेहा और संदीप शादी करना चाहते हैं, लेकिन विजय और राधा इस शादी से खुश नहीं हैं तो उन्होंने तय किया कि वे अपने पोते को उस का सच्चा प्यार दिला कर ही रहेंगी.

भवानी देवी तत्काल गांव से जयपुर आईं और संदीप व नेहा से बात की और कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे यह शादी करा कर ही रहेंगी.

संदीप बोला, ‘‘दादी, पापा चाहते हैं कि मेरी शादी अपनी जाति में ही हो.’’

यह सुन कर भवानी देवी ने विजय को फोन किया और कहा, ‘‘तुम किस जमाने में जी रहे हो… आज 21वीं सदी में भी तुम जातिवाद की बातें कर रहे हो. क्या हो गया है तुम्हारी सोच को. देखो, मैं इन दोनों बच्चों की कोर्ट मैरिज करा रही हूं. तुम्हें आना है तो आ जाना.’’

अपनी मां की बातें सुन कर विजय गुस्से में आ गया और बोला, ‘‘मां, तुम जैसा चाहे वैसा करो. हमारा तुम से कोई वास्ता नहीं है और फोन काट दिया.’’

भवानी देवी ने संदीप और नेहा की कोर्ट मैरिज करवा दी. वे दोनों जयपुर में अपनी दादी के साथ रहने लगे. उन की जिंदगी की नैया हंसीखुशी चल रही थी.

नेहा ने एक बेटे को जन्म दे दिया था, लेकिन संदीप को दुख था कि वह अपने मांबाप का प्यार नहीं पा सका. लेकिन आज जब अखबारों में देश के टौप 10 आईएएस की लिस्ट में पहले व दूसरे नंबर पर संदीप और नेहा का नाम छपा तो विजय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.

विजय राधा से बोला, ‘‘देखो राधा, हमारा बेटा और बहू देश के टौप 10 आईएएस की लिस्ट में हैं. चलो, हम उन से मिलने जयपुर चलते हैं.’’

राधा और विजय जयपुर संदीप के घर आए और सारे गिलेशिकवे भूल कर बेटे और बहू को गले लगा लिया.

आज एक बार फिर भवानी देवी की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन ये आंसू गम के नहीं, बल्कि खुशी के थे. Best Hindi Story

Hindi Story: गुनाहों का रिश्ता – कैसा था किरण और सुदीप का रिश्ता

Hindi Story: ‘‘किरण, क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘तो फिर तुम ने मु?ा से अचानक बोलना क्यों बंद कर दिया?’’

‘‘यों ही.’’

‘‘मु?ा से कोई गलती हो गई हो, तो बताओ… मैं माफी मांग लूंगा.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है सुदीप. अब मैं सयानी हो गई हूं न, इसलिए लोगों को मु?ा पर शक होने लगा है कि कहीं मैं गलत रास्ता न पकड़ लूं,’’ किरण ने उदास मन से कहा.

‘‘जब से तुम ने मु?ो अपने से अलग किया है, तब से मेरा मन बेचैन रहने लगा है.’’

सुदीप की बातें सुन कर किरण बोली, ‘‘अभी तक हम दोनों में लड़कपन था, बढ़ती उम्र में जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. दूसरों के कहने पर यह सब सम?ा में आया.’’

‘‘तुम ने कभी मेरे बारे में सोचा है कि मैं कितना बेचैन रहता हूं?’’

‘‘घर का काम निबटा कर जब मैं अकेले में बैठती हूं, तो दूसरे दोस्तों की यादों के साथसाथ तुम्हारी भी याद आती है. हम दोनों बचपन के साथी हैं. अब बड़े हो कर भी लगता है कि हम एकदूसरे के हमजोली बने रहेंगे.’’

‘‘तो दूरियां मत बनाए रखो किरण,’’ सुदीप ने कहा.

यह सुन कर किरण चुप हो गई.

जब सुदीप ने अपने दिल की बात कही, तो किरण का खिंचाव उस की ओर ज्यादा बढ़ने लगा.

दोनों अपने शुरुआती प्यार को दुनिया की नजरों से छिपाने की कोशिश करने लगे. लेकिन जब दोनों के मिलने की खबर किरण की मां रामदुलारी को लगी, तो उस ने चेतावनी देते हुए कहा कि वह अपनी हद में ही रहे.

उसी दिन से सुदीप का किरण के घर आनाजाना बंद हो गया.

लेकिन मौका पा कर सुदीप किरण के घर पहुंच गया. किरण ने बहुत कहा कि वह यहां से चला जाए, लेकिन सुदीप नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से दिल लगाया, तुम डरती क्यों हो? मैं  तुम से शादी करूंगा, मु?ा पर भरोसा करो.’’

‘‘सुदीप, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन… जैसे अमीर और गरीब का रिश्ता नहीं होता, इसी तरह से ब्राह्मण और नीची जाति का रिश्ता भी मुमकिन नहीं, इसलिए हम दोनों दूर ही रहें तो अच्छा होगा.’’

सुदीप पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा.

वह आगे बढ़ा और किरण को बांहों में भर कर चूमने लगा. पहले तो किरण को अच्छा लगा, लेकिन जब सुदीप हद से ज्यादा बढ़ने लगा, तो वह छिटक कर अलग हो गई.

‘‘बस सुदीप, बस. ऐसी हरकतें जब बढ़ती हैं, तो अनर्थ होते देर नहीं लगती. अब तुम यहां से चले जाओ,’’ नाखुश होते हुए किरण बोली.

‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है किरण, प्यार में यही सब तो होता है.’’

‘‘होता होगा. तुम ने इतनी जल्दी कैसे सम?ा लिया कि मैं इस के लिए राजी हो जाऊंगी?’’

‘‘बस, एक बार मेरी प्यास बु?ा दो. मैं दोबारा नहीं कहूंगा. शादी से पहले ऐसा सबकुछ होता है.’’

‘‘नहीं सुदीप, कभी नहीं.’’

इस तरह सुदीप ने किरण से कई बार छेड़खानी की कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली.

कुछ दिन बाद किरण के मातापिता  दूसरे गांव में एक शादी में जातेजाते किरण को कह गए थे कि वह घर से बाहर नहीं निकलेगी और न ही किसी को घर में आने देगी.

उस दिन अकेली पा कर सुदीप चुपके से किरण के घर में घुसा और अंदर

से किवाड़ बंद कर किरण को बांहों में कस लिया.

अपने होंठ किरण के होंठों पर रख कर वह देर तक जबरदस्ती करता रहा, जिस से दोनों के जिस्म में सिहरन पैदा हो गई, दोनों मदहोश होने लगे.

किरण के पूरे बदन को धीरेधीरे सहलाते हुए सुदीप उस की साड़ी ढीली कर के तन से अलग करने की कोशिश करने लगा.

किरण का ध्यान टूटा, तो उस ने जोर से धक्का दे कर सुदीप को चारपाई से अलग किया और अपनी साड़ी ठीक करते हुए गरजी, ‘‘खबरदार, जो तुम ने मेरी इज्जत लूटने की कोशिश की. चले जाओ यहां से.’’

‘‘चला तो जाऊंगा, लेकिन याद रखना कि तुम ने आज मेरी इच्छा पूरी नहीं होने दी,’’ सुदीप गुस्से में चला गया.

उस के जाने के बाद किरण की आंखों से आंसू निकल आए.

मां के लौटने पर किरण ने सारी सचाई बता दी. रामदुलारी ने उसे चुप रहने को कहा.

किरण के पिता सुंदर लाल से रामदुलारी ने कहा, ‘‘लड़की सयानी हो गई है, कुछ तो फिक्र करो.’’

‘‘तुम इसे मामूली बात सम?ाती हो? आजकल लड़की निबटाने के लिए गांठ भरी न हो, तो कोई बात नहीं करेगा. भले ही उस लड़के वाले के घर में कुछ

न हो.’’

‘‘तो क्या यही सोच कर हाथ पर हाथ धर बैठे रहोगे?’’

‘‘भरोसा रखो. वह कोई गलत काम नहीं करेगी.’’

सुंदर लाल की दौड़धूप रंग लाई और एक जगह किरण का रिश्ता पक्का हो गया.

किरण की शादी की बात जब सुदीप के कानों में पहुंची, तो वह तड़प उठा.

एक रात किरण अपने 8 साला भाई के साथ मकान की छत पर सोई थी. उस के बदन पर महज एक साड़ी थी.

किरण और सुदीप के मकानों के बीच दूसरे पड़ोसी का मकान था, जिसे पार करता हुआ सुदीप उस की छत पर चला गया.

सुदीप किरण की बगल में जा कर लेट गया. किरण की नींद खुल गई. देखा कि वह सुदीप की बांहों में थी. पहले तो उस ने सपना सम?ा, पर कुछ देर में ही चेतना लौटी. वह सबकुछ सम?ा गई. उस ने सुदीप की बेजा हरकतों पर ललकारा.

‘‘चुप रहो किरण. शोर करोगी, तो सब को पता चल जाएगा. बदनामी तुम्हारी होगी. मैं तो कह दूंगा कि तुम ने रात में मु?ो मिलने के लिए बुलाया था,’’ कहते हुए सुदीप ने किरण का मुंह हथेली से बंद कर दिया.

इस के बाद सुदीप किरण के साथ जोरजबरदस्ती करता रहा और वह चुपचाप लेटी रही.

किरण की आंखें डबडबा गईं. उस ने कहा, ‘‘सुदीप, आज तुम ने मेरी सारी उम्मीदों को खाक में मिला दिया. आज तुम ने मेरे अरमानों पर गहरी चोट पहुंचाई है. मैं तुम से प्यार करती हूं, करती रहूंगी, लेकिन अब मेरी नजरों से दूर हो जाओ,’’ कह कर वह रोने लगी.

उसी समय पास में सोए किरण के छोटे भाई की नींद खुली.

‘मांमां’ का शोर करते हुए वह छत से नीचे चला गया और वहां का देखा हाल मां को  सुनाया. सुंदर लाल भी जाग गया. दोनों चिल्लाते हुए सीढ़ी से छत की ओर भागे. उन की आवाज सुन कर सुदीप किरण को छोड़ कर भाग गया.

दोनों ने ऊपर पहुंच कर जो नजारा देखा, तो दोनों के रोंगटे खड़े हो गए. मां ने बेटी को संभाला. बाप छत पर से सुदीप को गालियां देता रहा.

दूसरे दिन पंचायत बैठाने के लिए किरण के पिता सुंदर लाल ने ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद से गुजारिश करते हुए पूरा मामला बतलाया और पूछा, ‘‘हम लोग पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं. आप हमारे साथ चलेंगे, तो पुलिस कार्यवाही करेगी, वरना हमें टाल दिया जाएगा.’’

‘‘सुंदर लाल, मैं थाने चलने के लिए तैयार हूं, लेकिन सोचो, क्या इस से तुम्हारी बेटी की गई इज्जत वापस लौट आएगी?’’

‘‘फिर हम क्या करें प्रधानजी?’’

‘‘तुम चाहो, तो मैं पंचायत बैठवा दूं. मुमकिन है, कोई रास्ता दिखाई पड़े.’’

‘‘आप जैसा ठीक सम?ों वैसा करें,’’ कहते हुए सुंदर लाल रोने लगा.

दूसरे दिन गांव की पंचायत बैठी.

गांव के कुछ लोग ब्राह्मणों के पक्ष में थे, तो कुछ दलितों के पक्ष में.

कुछ लोगों ने सुदीप को जेल भिजवाने की बात कही, तो कुछ ने सुदीप से किरण की शादी पर जोर डाला.

शादी की बात पर सुदीप के पिता बिफर पड़े, ‘‘कैसी बातें कहते हो?

कहीं हम ब्राह्मणों के यहां दलित

ब्याही जाएगी.’’

कुछ नौजवान शोर मचाने लगे, ‘जब तुम्हारे बेटे ने दलित से बलात्कार किया, तब तुम्हारा धर्म कहां था?’

‘‘ऐसा नहीं होगा. पहली बात तो यह कि सुदीप ने ऐसा किया ही नहीं. अगर गलती से किया होगा, तो धर्म नहीं बदल जाता,’’ सुदीप की मां बोली.

‘‘तो मुखियाजी, आप सुदीप को जेल भिजवा दें, वहीं फैसला होगा,’’ किरण की मां रामदुलारी ने कहा.

ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद ने पंचों की राय जानी, तो बोले, ‘पंचों की राय है कि सुदीप ने जब गलत काम किया है, तो अपनी लाज बचाने के लिए किरण से शादी कर ले, वरना जेल जाने के लिए तैयार रहे.’

यह सुन कर ब्राह्मण परिवार सन्न रह गया.

पंचायत ने किरण की इच्छा जानने की कोशिश की. किरण ने भरी पंचायत में कहा, ‘‘मेरी इज्जत सुदीप ने लूटी है. इस वजह से अब मुझे उसी के पास अपनी जिंदगी महफूज नजर आती है.

‘‘गंदे बरताव की वजह से मैं सुदीप से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन अब मैं मजबूर हूं, क्योंकि इस घटना को जानने के बाद अब मुझ से कोई शादी नहीं करना चाहेगा.’’

सुदीप के पिता ने दुखी मन से कहा, ‘‘मेरी इच्छा तो किरण की शादी वहशी दरिंदे सुदीप के साथ करने की नहीं थी, फिर भी मैं किरण की शादी सुदीप से करने को तैयार हूं.’’

किरण व सुदीप के घरपरिवार में शादी पर रजामंदी हो जाने पर पंचायत ने भी यह गुनाहों का रिश्ता मान लिया. Hindi Story

Hindi Kahani: इनाम – मोनू की कहानी

Hindi Kahani: मोनू की भाभी का पूरा बदन जैसे कच्चे दूध में केसर मिला कर बनाया गया था. चेहरा मानो ताजा मक्खन में हलका सा गुलाबी रंग डाल कर तैयार किया गया था. उन की आवाज भी मानो चाशनी में तर रहती थी.वे बिहार के एक बड़े जमींदार की बेटी थीं. उन की शादी भैया के फौज में चुने जाने से पहले ही हो गई थी.भैया के नौकरी पर जाने के बाद अम्मां और बस 2 जने ही परिवार में रह गए थे.

कभीकभी शादीशुदा बड़ी बहन भी आ जाती. भाभी के आ जाने से अब 3 जने हो गए थे. मोनू के पिताजी की मौत उस के पैदा होने के पहले ही एक कार हादसे में हो गई थी. उस के परिवार की गिनती इलाके के बड़े जमींदारों में होती थी. कोठिया के कुंवर साहब का नाम दूरदूर तक मशहूर था.पहले कुछ दिन मोनू भाभी से डरता था. तब वह छोटा भी था. डरता तो अब भी है, लेकिन अब डर इस बात का रहता है कि कहीं नाराज हो कर वे उस से बोलना ही बंद न कर दें.एक बार गरमी का मौसम था.

बगीचे में आम लदे हुए थे. भाभी ने कहा, ‘‘मोनू चलो बाग देख आएं. ?ोला ले चलो, आम भी ले आएंगे.’’मोनू ने कहा, ‘‘भाभी, थोड़ा रुको. मैं बगीचे से सभी को भगा दूं, तब आप को ले चलूंगा.’’थोड़ी देर बाद मोनू आया, तो बोला, ‘‘चलिए भाभी.’’भाभी ने पूछा, ‘‘कहां गए थे?’’मोनू बोला, ‘‘मैं सभी को बाग से भगा कर आया हूं.’’‘‘क्यों भगा दिया?’’ भाभी ने पूछा.‘‘भाभी,

आप नहीं जानतीं, किसी की नजर लग जाती तो…’’भाभी हंसने लगीं. अम्मां भी वहां आ गईं और पूछने लगीं, ‘‘क्या हुआ बहू?’’‘‘अम्मां, मोनू बगीचे में जा कर सभी को भगा आया है. कहता है कि आप नहीं जानतीं, किसी की नजर लग जाएगी.

’’यह सुन कर अम्मां भी हंसने लगीं और बोलीं, ‘‘तेरे पीछे पागल है बहू. इस की चले, तो किसी को देखने ही न दे.’’बगीचे में पहुंचे अभी थोड़ी ही देर हुई थी. मोनू आमों से ?ोला भर चुका था, तभी आंधी आ गई. मोनू बोला, ‘‘भाभी, पेड़ों के नीचे से इधर आ जाओ.’’भाभी बोलीं, ‘‘आंधी तो चली गई मोनू, शायद बवंडर था.’’मोनू की आंखें आंसुओं से भरी थीं.भाभी ने पूछा, ‘‘मिट्टी गिर गई है क्या आंख में?’’मोनू बोला, ‘‘आंखों में कुछ नहीं पड़ा है भाभी.’’‘‘तब रो क्यों रहे हो?’’‘‘आप के ऊपर कितनी धूलमिट्टी पड़ गई है.’’भाभी हंसने लगीं, ‘‘अभी चल कर नहा लूंगी.’’अम्मां पूछने लगीं, ‘‘चोट तो नहीं लगी बहू?’’भाभी बोलीं, ‘‘मां, मोनू रो रहा था. कहता है कि तुम्हारे ऊपर धूलमिट्टी पड़ गई है.’’

ऐसा सुन कर अम्मां भी हंसने लगीं.मई का महीना था. गरमी अपने शबाब पर थी. मोनू कहने लगा, ‘‘20 मई को मेरा रिजल्ट आएगा भाभी.’’भाभी बोलीं, ‘‘मोनू, अगर तू फर्स्ट डिविजन लाया, तो मैं तु?ो इनाम दूंगी.’’‘‘क्या दोगी भाभी?’’‘‘अभी नहीं बताऊंगी, लेकिन बहुत मजेदार तोहफा रहेगा.’’‘‘रुपयापैसा दोगी भाभी?’’ मोनू ने खुश होते हुए पूछा.

‘‘हम लोग कोई जुआरी तो हैं नहीं और न ही बनियामहाजन हैं.’’‘‘तब क्या दोगी भाभी?’’ उस ने चिरौरी की, ‘‘बता दो भाभी.’’मोनू के जिद करने पर भाभी बोलीं, ‘‘मैं तु?ो अपने पास सुलाऊंगी.’’‘‘सोता तो मैं आप के पास रोज ही हूं. जब पढ़ते हुए मु?ो नींद आ जाती है, तो आप के पास ही तो मैं सो जाता हूं. फिर आप के जगाने पर ही मैं अपने बिस्तर पर जाता हूं.’’भाभी हंसने लगीं, ‘‘अरे, वैसा नहीं, जैसा तेरे भैया के साथ सोती हूं, वैसा…’’मोनू की सम?ा में ज्यादा कुछ तो नहीं आया, लेकिन वह 20 मई का बेसब्री से इंतजार करने लग गया.20 मई आई, तो सुबहसवेरे मोनू को दहीभात खिला कर अम्मां ने शहर भेज दिया. वह अपने किसी दोस्त की मोटरसाइकिल से रिजल्ट देखने चला गया था.

भाभी को तो चैन ही नहीं पड़ रहा था. दोपहर के 12 बजे के बाद से ही भाभी 4-5 जगह फोन कर के मोनू का रोल नंबर लिखवा चुकी थीं. 3 बजे किसी ने फोन पर बताया कि मोनू फर्स्ट डिवीजन में पास हो गया है. उन की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए.मोनू रात के 9 बजे घर लौटा, तो हाथ में अखबार लिए भाभी के पास जा रहा था. अम्मां बोलीं, ‘‘पहले खाना खा ले, तब भाभी के पास जाना. पड़ोस में रात का कीर्तन शुरू हो गया होगा. मैं 2 घंटे बाद ही लौटूंगी.

वैसे, तेरा रिजल्ट तो बहू को पता है कि तू पास हो गया है. हो गया है न…?’’मोनू जल्दीजल्दी खाना खाने लगा, तो अम्मां बोलीं, ‘‘बेटा, दरवाजा बंद कर लेना. मैं जा रही हूं.’’आधा खाना खा कर मोनू ने हाथमुंह धोए और अखबार उठा कर भाभी के पास पहुंच गया. भाभी सो रही थीं. गरमी होने की वजह से उन्होंने ब्लाउज भी नहीं पहना हुआ था. आंचल भी बिस्तर पर गिर गया था.

मोनू उन्हें इस हालत में ठगा सा खड़ा देख रहा था. वह सोच ही रहा था कि वह देखता रहे या लौट जाए, तभी भाभी को शायद आहट लगी, उन्होंने आंखें खोलीं और पूछा, ‘‘अभी तक कहां था मोनू?’’‘‘मोटरसाइकिल वाले दोस्त ने बहुत देर कर दी भाभी.’’‘‘खाना खा लिया क्या तुम ने?’’‘‘हां भाभी. अम्मां बोल कर गई हैं कि 2 घंटे बाद लौटेंगी.’’भाभी ने कहा, ‘‘तुम्हारा रिजल्ट तो मु?ो दोपहर में ही पता चल गया था. अब जा कर सो जाओ. मु?ो नींद आ रही है.’’

‘‘मेरा इनाम भाभी?’’यह सुन कर भाभी हंसने लगीं, ‘‘अच्छा जा कर दरवाजा लगा आ.’’‘‘वह तो लगा दिया है भाभी.’’‘‘तु?ो गरमी नहीं लगती मोनू? अपने सब कपड़े निकाल दे.’’‘‘कच्छी रहने दूं भाभी?’’‘‘नहीं, सब निकाल दे. इतनी तो उमस है अभी, फिर पहन लेना.’’‘‘ठीक है.’’‘‘अब आ कर इधर लेट जा.’’16 साल का गोराचिट्टा सेहतमंद किशोर मोनू बगल में लेटा था. भाभी ने उस का चेहरा अपने हाथों में ले लिया और होंठों को चूमने लगीं, फिर उसे उठा कर अपने ऊपर ही लिटा लिया और बोलीं,

‘‘जैसा मैं ने किया है, वैसा ही तू भी कर मोनू.’’मोनू ने डरतेडरते उन के गालों को चूमा, फिर होंठों को मुंह में ले कर चूसने लगा. थोड़ी ही देर में वह अपनी मंजिल तक पहुंच गया.अलग होने के बाद भाभी देर तक मोनू को दुलारती रहीं. वे बोलीं, ‘‘अब कपडे़ पहन लो मोनू और जा कर सो जाओ.’’भैया की शादी हुए 7 साल हो रहे थे, लेकिन अभी तक कोई बच्चा नहीं था. अम्मां अकसर कहतीं, ‘‘इस बार दोनों जा कर अपनी जांच करा लो.’’भाभी हंसने लगतीं, ‘‘मु?ो क्या तकलीफ है अम्मां? उन से कह दो, वे अपनी जांच करा लें.’’अम्मां कहतीं कि तु?ो कोई फिक्र नहीं है बहू,

तो भाभी बहुत दुखी हो जातीं. वे बोलतीं, ‘‘बताओ, मैं क्या करूं अम्मां?’’20 मई के बाद से ही भाभी के चेहरे की रौनक दोगुनी हो गई थी. वे कहतीं, ‘‘मोनू, अब मैं तु?ो पढ़ा नहीं पाऊंगी. तेरे लिए कोई मास्टर लगा दूंगी. अब मेरे पास सोने भी न आया करो. यहां अब तुम्हारा लड़का सोएगा.’’मोनू पूछता, ‘‘कहां है मेरा लड़का भाभी?’’ तो वे हंसने लगतीं और कहतीं,

‘‘जब आएगा, तब देख लेना.’’एक शाम को भैया आ गए. वे खुश होते हुए भाभी से बोले, ‘‘अब मोनू को मोटरसाइकिल दिला देते हैं, वह तुम्हें भी घुमा लाया करेगा.’’भाभी नाराज होने लगीं, ‘‘अभी रहने दो. अभी मोनू को बाइक दे कर आप उसे मौत के मुंह में ढकेल देंगे. जब इंटर पास करेगा, तब दिला देना मोटरसाइकिल.’’भैया ने पूछा, ‘‘तुम मोनू को पढ़ाती कैसे थीं? साइंस तो तुम ने पढ़ी ही नहीं है.’’भाभी बोलीं, ‘‘उस की किताबें पढ़ लेती थी. थोड़े नोट्स भी मिल गए थे.’’भैया हंसने लगे, ‘‘मैं तो सम?ाता था कि यह साल भी उस का बरबाद ही होगा, लेकिन तुम ने तो कमाल ही कर दिया.’’वे बोलीं,

‘‘अब नहीं पढ़ा पाऊंगी, कोई मास्टर लगा दूंगी.’’भैया को वापस गए 3 महीने से ज्यादा हो रहा था. मोनू कभी हाथ जोड़ कर चिरौरी कर के, पैर पकड़ कर या भूख हड़ताल कर के 3-4 बार ऐसा ही इनाम ले चुका था. एक दिन आंगन में लगे हैंडपंप के पास वे उलटी कर रही थीं. मोनू हैरान सा खड़ा उन्हें देख रहा था. पूछने लगा, ‘‘उलटी की दवा ले आऊं भाभी?’’वे हंसते हुए बोलीं, ‘‘सब शरारत तो तुम्हारी ही है मोनू. यह इनाम भी तो तुम ने ही दिया है.’’अम्मां भी वहां आ गईं. बहू को उलटी करते देखा, तो अनुभवी आंखें खुशी से चमक उठीं.अम्मां ने भैया को भी सूचना दे देने को कहा,

तो भाभी मुश्किल से ही तैयार हुई थीं.अम्मां ने कहा, ‘‘बहू, अब कामधाम रहने दो. कोई तकलीफ हो, तो मोनू को भेज कर दवा मंगा लेना.’’मोनू की सम?ा में यह बदलाव नहीं आ रहा था. भाभी से पूछा, तो वे बोलीं, ‘‘कुछ दिन बाद तुम खुद जान जाओगे.’’कसबे की डाक्टरनी भी आ कर बता गईं, ‘‘अम्मां, अब बहू को दिन में 4-5 बार हलका भोजन दिया करो. फल तो जितना मन हो खाए, दूधदही भी रोज देती रहना. कोई तकलीफ हो, तो मु?ो घर पर ही बुला लेना. बहू कोई दवा अपनेआप न खाए.’’एक दिन गांव का ही एक आदमी नगाड़ा लिए बधाई बजाने आ गया. तमाम औरतेंबच्चे उसे घेरे खड़े थे.मोनू ने पूछा, ‘‘भाभी, यह क्यों बजा रहा है?’’भाभी ने कहा, ‘‘शायद, अम्मां ने बुलाया होगा.’’‘‘क्यों?’’ मोनू ने पूछा.‘‘अरे, तुम्हारे लड़के का स्वागत नहीं करेंगी…’’ भाभी ने हंसते हुए बताया. Hindi Kahani

Story In Hindi: गुच्चूपानी – राहुल क्यों मायूस हो गया?

Story In Hindi: एकसाथ 3 दिन की छुट्टी देखते हुए पापा ने मसूरी घूमने का प्रोग्राम जब राहुल को बताया तो वह फूला न समाया. पहाड़ों की रानी मसूरी में चारों तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़, उन पर बने छोटेछोटे घर, चारों ओर फैली हरियाली की कल्पना से ही उस का मन रोमांचित हो उठा.

राहुल की बहन कमला भी पापा द्वारा बनाए गए प्रोग्राम से बहुत खुश थी. पापा की हिदायत थी कि वे इन 3 दिन का भरपूर इस्तेमाल कर ऐजौंय करेंगे. एक मिनट भी बेकार न जाने देंगे, जितनी ज्यादा जगह घूम सकेंगे, घूमेंगे.

निश्चित समय पर तैयार हो कर वे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. सुबह पौने 7 बजे शताब्दी ऐक्सप्रैस में बैठे तो राहुल काफी रोमांचित महसूस कर रहा था, उस ने स्मार्टफोन उठाया और साथ की सीट पर बैठी कमला के साथ सैल्फी क्लिक की.

तभी पापा ने बताया कि वे रास्ते में हरिद्वार में उतरेंगे और वहां घूमते हुए रात को देहरादून पहुंच जाएंगे. फिर वहां रात में औफिस के गैस्ट हाउस में रुकेंगे और सुबह मसूरी के लिए रवाना होंगे.

यह सुन कर राहुल मायूस हो गया. हरिद्वार का नाम सुनते ही जैसे उसे सांप सूंघ गया. उसे लग रहा था सारा ट्रिप अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाएगा. यह सुनते ही वह कमला से बोला, ‘‘शिट् यार, लगता है हम घूमने नहीं तीर्थयात्रा करने जा रहे हैं.’’

‘‘हां, पापा आप भी न….’’ कमला ने कुछ कहना चाहा लेकिन कुछ सोच कर रुक गई.

लगभग 12 बजे हरिद्वार पहुंच कर उन्होंने टैक्सी ली, जो उन्हें 2-3 जगह घुमाती हुई शाम को गंगा घाट उतारती और फिर वहां से देहरादून उन के गैस्ट हाउस छोड़ देती.

राहुल ट्रिप के मजे में खलल से आहत चुपचाप चला जा रहा था. शाम को हरिद्वार में गंगा घाट पर घूमते हुए प्राकृतिक आनंद आया, लेकिन गंगा के घाट असल में उसे लूटखसोट के अड्डे ज्यादा लगे. जगहजगह धर्म व गंगा के प्रति श्रद्धा के नाम पर पैसा ऐंठा जा रहा था. उसे तब और अचंभा हुआ जब निशुल्क जूतेचप्पल रखने का बोर्ड लगाए उस दुकानदार ने उन से जूते रखने के 100 रुपए ऐंठ लिए. इस सब से उस के मन का रोमांच काफूर हो गया. फिर भी वह चुपचाप चला जा रहा था.

रात को वे टैक्सी से देहरादून पहुंचे और गैस्टहाउस में ठहरे. पापा ने गैस्टहाउस के रसोइए के जरिए मसूरी के लिए टैक्सी बुक करवा ली. टैक्सी सुबह 8 बजे आनी थी. अत: वे जल्दी खाना खा कर सो गए ताकि सुबह समय से उठ कर तैयार हो पाएं.

वे सफर के कारण थके हुए थे, सो जल्दी ही गहरी नींद में सो गए और सुबह गैस्टहाउस के रसोइए के जगाने पर ही जगे. तैयार हो कर अभी वे खाना खा ही रहे थे कि टैक्सी आ गई. राहुल अब भी चुप था. उसे यात्रा में कुछ रोमांच नजर नहीं आ रहा था.

टैक्सी में बैठते ही पापा ने स्वभावानुसार ड्राइवर को हिदायत दी, ‘‘भई, हमें कम समय में ज्यादा जगह घूमना है इसलिए भले ही दोचार सौ रुपए फालतू ले लेना, लेकिन देहरादून में भी हर जगह घुमाते हुए ले चलना.’’

ज्यादा पैसे मिलने की बात सुन ड्राइवर खुश हुआ और बोला, ‘‘सर, उत्तराखंड में तो सारा का सारा प्राकृतिक सौंदर्य भरा पड़ा है, आप जहां कहें मैं वहां घुमा दूं, लेकिन आप को दोपहर तक मसूरी पहुंचना है इसलिए एकाध जगह ही घुमा सकता हूं. आप ही बताइए कहां जाना चाहेंगे?’’

पापा ने मम्मी से सलाह की और बोले, ‘‘ऐसा करो, टपकेश्वर मंदिर ले चलो. फिर वहां से साईंबाबा मंदिर होते हुए मसूरी कूच कर लेना.’’

‘‘क्या पापा, आप भी न. हम से भी पूछ लेते, सिर्फ मम्मी से सलाह कर ली… और हम क्या तीर्थयात्रा पर हैं, जो मंदिर घुमाएंगे,’’ कमला बोली.

तभी नाराज होता हुआ राहुल बोल पड़ा, ‘‘क्या करते हैं आप पापा, सारे ट्रिप की वाट लगा दी. बेकार हो गया हमारा आना. अभी ड्राइवर अंकल ने बताया कि उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है और एक आप हैं कि देखने को सूझे तो सिर्फ मंदिर, जहां सिर्फ ठगे जाते हैं. आप की सोच दकियानूसी ही रहेगी.’’

पापा कुछ कहते इस से पहले ही ड्राइवर बोल पड़ा, ‘‘आप का बेटा ठीक कह रहा है सर, घूमनेफिरने आने वाले ज्यादातर लोग इसी तरह मंदिर आदि देख कर यात्रा की इतिश्री कर लेते हैं और असली यात्रा के रोमांच से वंचित रह जाते हैं. तिस पर अपनी सोच भी बच्चों पर थोपना सही नहीं. तभी तो आज की किशोर पीढ़ी उग्र स्वभाव की होती जा रही है. हमें इन की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए.

‘‘यहां प्राकृतिक नजारों की कमी नहीं. आप कहें तो आप को ऐसी जगह ले चलता हूं जहां के प्राकृतिक नजारे देख आप रोमांचित हुए बिना नहीं रहेंगे. इस समय हम देहरादून के सैंटर में हैं. यहां से महज 8 किलोमीटर दूर अनार वाला गांव के पास स्थित एक पर्यटन स्थल है, ‘गुच्चूपानी,’ जिसे रौबर्स केव यानी डाकुओं की गुफा भी कहा जाता है.

‘‘गुच्चूपानी एक प्राकृतिक पिकनिक स्थल है जहां प्रकृति का अनूठा अनुपम सौंदर्य बिखरा पड़ा है. दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाडि़यों के मध्य गुफानुमा स्थल में बीचोंबीच बहता पानी यहां के सौंदर्य में चारचांद लगा देता है. दोनों पहाडि़यां जो मिलती नहीं, पर गुफा का रूप लेती प्रतीत होती हैं.

‘‘यहां पहुंच कर आत्मिक शांति मिलती है. प्रकृति की गोद में बसे गुच्चूपानी के लिए यह कहना गलत न होगा कि यह प्रेम, शांति और सौंदर्य का अद्भुत प्राकृतिक तोहफा है.

‘‘गुच्चूपानी यानी रौबर्स केव लगभग 600 मीटर लंबी है. इस के मध्य में पहुंच कर तब अद्भुत नजारे का दीदार होता है जब 10 मीटर ऊंचाई से गिरते झरने नजर आते हैं. यह मनमोहक नजारा है. इस के मध्य भाग में किले की दीवार का ढांचा भी है जो अब क्षतविक्षत हो चुका है.’’

‘‘गुच्चूपानी…’’ नाम से ही अचंभित हो राहुल एकदम रोमांचित होता हुआ बोला, ‘‘यह गुच्चूपानी क्या नाम हुआ?’’

तभी साथ बैठी कमला भी बोल पड़ी, ‘‘और ड्राइवर अंकल, इस का नाम रौबर्स केव क्यों पड़ा?’’

मुसकराते हुए ड्राइवर ने बताया, ‘‘दरअसल, गुच्चूपानी इस का लोकल नाम है. अंगरेजों के जमाने में इसे ‘डकैतों की गुफा’  के नाम से जाना जाता था. ऐसा माना जाता है कि उस समय डाकू डाका डालने के बाद छिपने के लिए इसी गुफा का इस्तेमाल करते थे. सो, अंगरेजों ने इस का नाम रौबर्स केव रख दिया.’’

‘‘तो क्या अब भी वहां डाकू रहते हैं. वहां जाने में कोई खतरा तो नहीं है?’’ कमला ने पूछा.

‘‘नहींनहीं, अब वहां ऐसी कोई बात नहीं बल्कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया गया है. अब इस का रखरखाव उत्तराखंड सरकार द्वारा किया जाता है,’’ ड्राइवर ने बताया, फिर वह हंसते हुए बोला, ‘‘हां, एक डर है, पैरों के नीचे बहती नदी का पानी. दरअसल, पिछले साल जनवरी में भारी बरसात के कारण अचानक इस नदी का जलस्तर बढ़ गया था, जिस से यहां अफरातफरी मच गई थी. यहां कई पर्यटक फंस गए थे, जिस से काफी शोरशराबा मचा.

‘‘फिर मौके पर पहुंची एनडीआरएफ की टीमों ने पर्यटकों को सकुशल बाहर निकाला था. इस में महिलाएं और बच्चे भी थे. इसलिए जरा संभल कर जाइएगा.’’

‘‘अंकल आप भी न, डराइए मत, बस पहुंचाइए, ऐसी अद्भुत प्राकृतिक जगह पर,’’ राहुल रोमांचित होता हुआ बोला.

‘‘पहुंचाइए नहीं, पहुंच गए बेटा,’’ कहते हुए ड्राइवर ने टैक्सी रोकी और इशारा कर बताया कि उस ओर जाएं. जाने से पहले अपने जूते उतार लें व यहां से किराए पर चप्पलें ले लें.’’

राहुल और कमला भागते हुए आगे बढ़े और वहां बैठे चप्पल वाले से किराए की चप्पलें लीं. इन चप्पलों को पहन कर वे पहुंच गए गुच्चूपानी के गेट पर. यहां 25 रुपए प्रति व्यक्ति टिकट था. पापा ने सब के टिकट लिए और सब ने पानी में जाने के लिए अपनीअपनी पैंट फोल्ड की व ऐंट्री ली.

चारों ओर फैले ऊंचे पहाड़ों के बीच बसा यह क्षेत्र अद्भुत सौंदर्य से भरा था. पानी में घुसते ही दिखने वाला वह 2 पहाडि़यों के बीच का गुफानुमा रास्ता और मध्य में बहती नदी के बीच चलना, जैसा ड्राइवर अंकल ने बताया था, उस से भी अधिक रोमांचित करने वाला था.

मम्मीपापा भी यह नजारा देख स्तब्ध रह गए थे. पहाड़ों के बीच बहते पानी में चलना उन्हें किसी हौरर फिल्म के रौंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य की भांति लगा, जैसे अभी वहां छिपे डाकू निकलेंगे और उन्हें लूट लेंगे.

अत्यंत रोमांचक इस मंजर ने उन्हें तब और रोमांचित कर दिया जब बिलकुल मध्य में पहुंचने पर ऊपर से गिरते झरने ने उन का स्वागत किया. राहुल तो पानी में ऐसे खेल रहा था मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. सामने खड़ी किले की क्षतविक्षत दीवार के अवशेष उन्हें काफी भा रहे थे. इस मनोरम दृश्य को देख किस का मन अभिभूत नहीं होगा.

इस पूरे नजारे की उन्होंने कई सैल्फी लीं. एकदूसरे के फोटो खींचे और वीडियो क्लिप भी बनाई. पानी में उठखेलियां करते जब वे बाहर आ रहे थे तो पापा भी कह उठे, ‘‘अमेजिंग राहुल, वाकई तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. हम तो सिर्फ मंदिर आदि देख कर ही लौट जाते. प्रकृति का असली आनंद व यात्रा की पूर्णता तो वाकई ऐसे नजारे देखने में है.’’

फिर बाहर आ कर उन्होंने ड्राइवर का भी धन्यवाद किया ऐसी अनूठी जगह का दीदार करवाने के लिए. साथ ही हिदायत दी कि मसूरी में भी धार्मिक स्थलों पर आस्था के नाम पर लूट का शिकार होने के बजाय ऐसे स्थान देखेंगे. इस पर जब राहुल ने ठहाका लगाया तो पापा बोले, ‘‘बेटा, हमें मसूरी के ऐसे अद्भुत स्थल ही देखने चाहिए. जल्दी चलो, कहीं समय की कमी के कारण कोई नजारा छूट न जाए.’’

अब टैक्सी मसूरी की ओर रवाना हो गई थी. टैक्सी की पिछली सीट पर बैठे राहुल और कमला रहरह कर गुच्चूपानी में ली गईं सैल्फी, फोटोज और वीडियोज में वहां के अद्भुत दृश्य देख कर रोमांचित हो रहे थे, इस आशा के साथ कि मसूरी यानी पहाड़ों की रानी में भी ऐसा ही रोमांच मिलेगा. Story In Hindi

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