Acid Attack: चेहरे पर कैमिकल फेंक कर बदला लेने की दरिंदगी

Acid Attack: विभूति का सामान ज्यादा और भारी था, इसलिए सीट के नीचे एडजस्ट करने में उसे काफी दिक्कत हो रही थी. उसे परेशान देख कर सामने की सीट पर बैठे युवक ने कहा, ‘‘मैडम, आप बुरा मानें तो आप का सामान एडजस्ट कराने में मैं आप की मदद कर दूं.’’ विभूति ने युवक की ओर देखा और उठ कर एक किनारे खड़ी हो गई. एक तरह से यह उस की मौन सहमति थी. उस युवक ने विभूति का सारा सामान पलभर में सीट के नीचे करीने से लगा दिया. उस के बाद हाथ झाड़ते हुए बोला, ‘‘अब आप आराम से बैठिए.’’

‘‘थैंक यू.’’ कह कर विभूति युवक के सामने वाली अपनी सीट पर बैठ गई. कुछ पल तक खामोशी छाई रही. यह खामोशी शायद युवक को अच्छी नहीं लग रही थी, इसलिए चुप्पी तोड़ते हुए उस ने पूछा, ‘‘मैडम, आप कहां तक जाएंगी?’’

‘‘मुंबई तक.’’ विभूति ने संक्षिप्त सा जवाब दिया. युवक शायद विभूति से बातचीत के मूड में था, इसलिए उस ने तुरंत अगला सवाल दाग दिया, ‘‘आप यहीं की रहने वाली हैं?’’

‘‘नहीं,’’ विभूति युवक को लगभग घूरते हुए बोली, ‘‘मैं मुंबई की रहने वाली हूं. यहां मेरी कंपनी ने एक फैशन शो आयोजित किया था, उसी में भाग लेने आई थी.’’

‘‘आप मौडलिंग करती हैं क्या?’’ युवक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं मौडल नहीं, फैशन डिजाइनर हूं.’’ विभूति ने कहा.

‘‘अच्छा, आप ड्रैस डिजाइनर हैं. मैं भी एक तरह से डिजाइनर ही हूं. आप अपनी डिजाइन से लोगों को सजाती हैं तो मैं अपनी डिजाइन से लोगों के घर, होटल आदि सजाता हूं. मैं इंटीरियर डिजाइनर हूं. मैं भी मुंबई का ही रहने वाला हूं. यहां एक होटल में मेरा काम चल रहा है, उसी सिलसिले में आया था.’’

‘‘इतनी सारी बातें हो गईं. कौन कहां रहता है, क्या करता है? यह तो पता चल गया लेकिन अभी तक हम एकदूसरे का नाम नहीं जान सके. चलो, पहले मैं ही अपने बारे में बताए देती हूं. मेरा नाम विभूति है और मैं मुंबई के घाटकोपर में रहती हूं. क्या करती हूं, यह आप जान ही गए हैं.’’ विभूति ने कहा.

‘‘मैं क्या करता हूं, यह आप को पता चल ही चुका है. मेरा नाम गौरव बरुआ है. मैं मुंबई के विलेपार्ले जुहू स्कीम में रहता हूं.’’ गौरव अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि विभूति झट बोल पड़ी, ‘‘आप तो मुंबई के बहुत ही वीआईपी इलाके में रहते हैं.’’

‘‘पिताजी जब मुंबई आए थे, तभी वह बंगला खरीदा था. बाकी मेरी हैसियत वहां बंगला खरीदने की कहां है.’’ गौरव ने कहा. इस तरह गौरव और विभूति में बातचीत शुरू हुई तो दोनों तब तक बातें करते रहे, जब तक ट्रेन मुंबई नहीं पहुंच गई. इस बीच दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर भी ले लिए थे. मुंबई पहुंचने पर गौरव ने विभूति का सामान उतरवाया ही नहीं, बल्कि बाहर तक लाने में मदद भी की. बाहर विभूति के पापा गाड़ी लिए खड़े थे, वह उन के साथ चली गई तो गौरव टैक्सी कर के अपने घर चला गया

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. ट्रेन पर हुई इस मुलाकात ने दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए चाहत का एक कोना बना दिया था. दरअसल दोनों ही पढ़ेलिखे और ठीकठाक घरों से तो थे ही, देखने में सुंदर और बातचीत में भी काफी स्मार्ट थे. शायद यही वजह थी कि दोनों ही एकदूसरे को भा गए थे. लेकिन सवाल यह था कि बात कैसे आगे बढ़े. गौरव शायद विभूति के लिए कुछ ज्यादा ही बेचैन था. वह स्टेशन पर विभूति को विदा कर के घर तो गया था, लेकिन उस का दिल खूबसूरत विभूति के साथ चला गया था. उस की आंखों में नींद की जगह अब विभूति समा गई थी. स्त्री सुख के लिए तरस रहे गौरव को विभूति की सुंदरता और वाचालता ने कुछ इस तरह से प्रभावित किया था कि एक बार फिर उसे पत्नी की याद सताने लगी थी.

वह उस सुख के लिए छटपटाने लगा था, जो कभी पत्नी से मिलता रहा था. वैसे तो पत्नी के छोड़ कर जाने के बाद से गौरव बरुआ को औरत नाम से नफरत हो गई थी. लेकिन विभूति से मिलने के बाद वह नफरत एक बार फिर प्यार में बदल गई थी. पहले उसे औरतों से जितनी नफरत थी, विभूति से मिलने के बाद उस से उतना ही प्यार हो गया था. वह उस की ओर खिंचता चला जा रहा था. लेकिन फोन करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. संकोच हो रहा था कि फोन करने पर वह उस के बारे में क्या सोचेगी. दूसरी ओर विभूति का भी वही हाल था, जो गौरव का था. गौरव का बातव्यवहार और कदकाठी उसे कुछ इस तरह से भाई थी कि हर पल वह उसी के बारे में सोचने को मजबूर थी.

29 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था, जब विभूति किसी युवक के प्रति आकर्षित हुई थी यानी उस का दिल आया था. एक  तरह से उसे गौरव से प्यार हो गया था. लेकिन चाह कर भी वह गौरव को फोन नहीं कर पा रही थी. 4-5 दिनों तक तो गौरव ने खुद को किसी तरह रोके रखा. लेकिन जब नहीं रहा गया तो उस ने विभूति को फोन कर ही दिया. गौरव के इस फोन ने विभूति के दिल को काफी ठंडक पहुंचाई. हालांकि उस दिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी कि लगता कि दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए कुछ चल रहा है. लेकिन बातचीत का रास्ता जरूर खुल गया था.  

एक बार बाचतीत शुरू हुई तो यह सिलसिला सा बन गया. धीरेधीरे बातें लंबी होती गईं. फिर एक समय ऐसा भी गया, जब दोनों समय निकाल कर एकदूसरे से मिलने लगे. लगातार मिलते रहने से जल्दी ही दोनों करीब ही नहीं गए, बल्कि उन के शारीरिक संबंध भी बन गए. इस की वजह यह थी कि विभूति को पाने के लिए गौरव ने शादी का वादा कर लिया था. विभूति भी उस से शादी करना चाहती थी, इसलिए वह गौरव की हर इच्छा पूरी करना अपना फर्ज समझने लगी थीयही वजह थी कि चाह कर भी वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और सारी मर्यादाएं ताक पर रख कर गौरव की इच्छा पूरी करने लगी. इस तरह गौरव जो चाहता था, वह उसे आसानी से मिल गया था. एक बार मर्यादा टूटी तो फिर टूटती ही चली गई.

गौरव ने अपने मकान के ग्राउंड फ्लोर पर ही अपना औफिस बना रखा था, जबकि फर्स्ट फ्लोर पर वह मां के साथ रहता था, इसलिए जब भी वह खाली होता, फोन कर के विभूति को अपने ही औफिस में बुला लेता था. विभूति को काम भी होता, तब भी वह मना नहीं कर पाती थी और गौरव से मिलने उस के औफिस पहुंच जाती थी. इसी तरह समय बीतता रहा. गौरव और विभूति को मिलते हुए लगभग 2 साल का समय बीत गया. इस बीच विभूति ने जाने कितनी बार गौरव से शादी के लिए कहा, लेकिन गौरव ने हर बार कोई कोई बहाना बना कर बात टाल दीगौरव की इस तरह लगातार बहानेबाजी से विभूति को लगने लगा कि गौरव उसे सिर्फ एंजौय का साधन समझता है. शादी का उस का कोई इरादा नहीं है यानी शादी का झांसा दे कर वह उस का यौनशोषण कर रहा है

इस बात का अहसास होते ही विभूति गौरव पर शादी का दबाव डालने लगी. गौरव ने इसे पहले की ही तरह लापरवाही से लिया, लेकिन जब विभूति ने उस पर कुछ ज्यादा ही दबाव बनाया तो वह बौखला उठा. उस की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. क्योंकि अब विभूति के शरीर के बिना रहना उस के लिए मुश्किल थाजबकि विभूति ने पक्का इरादा बना लिया था कि अब वह शादी के बाद ही गौरव को अपने शरीर से हाथ लगाने देगी. गौरव ने देखा कि विभूति किसी भी तरह नहीं मान रही है तो काफी सोचविचार कर उस ने उसे समझाने और मनाने के लिए फोन कर के अपने बंगले पर बुलाया.

शनिवार का दिन था. काम ज्यादा होने की वजह से विभूति शाम को गौरव के बंगले पर जा पहुंची. बातचीत और इच्छा पूरी करने में लड़ाईझगड़ा भी हो सकता था. तब बात मां तक पहुंच सकती थी. बात मां तक पहुंचे, इस से बचने के लिए गौरव ने कार निकाली और विभूति को बैठा कर समुद्र के किनारे जुहू चौपाटी की ओर निकल पड़ाकाफी समय तक गौरव विभूति के साथ इधरउधर घूमता रहा. इस दौरान वह विभूति को भरोसा दिलाता रहा कि जल्दी ही वह उस से शादी कर लेगा. जब उसे लगा कि विभूति मान गई है तो वह उसे ले कर बंगले पर गया. बंगले पर कर उस ने विभूति से शारीरिक संबंध की पेशकश की तो उस ने साफ मना कर दिया. जबकि गौरव पूरे मूड में था, इसलिए वह उसे मनाने लगा.

जबकि विभूति अपनी बात पर अड़ी रही. उस ने साफ कह दिया कि अब तक जो हुआ, वह बहुत था. अब वह उसे शादी के बाद ही हाथ लगाने देगीलेकिन गौरव वासना के उन्माद में पूरी तरह अंधा हो चुका था, इसलिए वह होश खो बैठा. उसे अच्छेबुरे का भी खयाल नहीं रहा. आवेश में कर उस ने विभूति का गला दोनों हाथों से पकड़ लिया. इस पर भी विभूति नहीं मानी तो गौरव ने उस पर दबाव बनाने के लिए उस का गला दबाना शुरू कर दिया. गुस्से में होने की वजह से दबाव बढ़ गया तो विभूति मर गई. विभूति एक ओर लुढ़क गई तो वासना के उन्माद में अंधे गौरव की आंखें खुलीं. जब उस ने देखा कि विभूति मर चुकी है तो वह बुरी तरह डर गया. पुलिस और कानून से बचने के लिए विभूति के शव को ठिकाने लगाना जरूरी था. दूसरी ओर मां का भी डर था.

सुबह होने पर मां को इस बात की जानकारी हो, उस के पहले ही वह विभूति के शव को ठिकाने लगा देना चाहता था. उस ने कागज के एक पुराने बौक्स में लाश डाली और उसे कार की डिक्की में रख कर जान की परवाह किए बगैर उतनी रात को पवई कस्टम विभाग कालोनी के पीछे घने जंगलों में जा पहुंचा. लाश को एक खाई में डाल कर साथ लाए थिनर के पूरे कैन को उस के ऊपर उड़ेल कर जला दिया. यह 9 नवंबर, 2013 की रात की घटना थी.10 नवंबर की सुबह यही कोई 11 बजे मुंबई के उपनगर अंधेरी के पौश इलाके के थाना पवई के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला को किसी ने फोन द्वारा सूचना दी कि पवई कस्टम कालोनी के पीछे के जंगल में कुछ दूर अंदर जा कर घनी झाडि़यों के बीच एक खाई में एक महिला की क्षतविक्षत लाश पड़ी है.

लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने तुरंत ड्यूटी अफसर से यह मामला दर्ज कराने के साथ घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों और कंट्रोलरूम को दे दी. इस के बाद वह कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए 10 मिनट में वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. जहां लाश पड़ी थी, वह स्थान निर्जन और  सुनसान था. वहां कोई भीड़भाड़ नहीं थी. इस की वजह यह थी कि पवई कस्टम विभाग कालोनी का यह इलाका संजय गांधी नेशनल पार्क के अंतर्गत आता है, जहां अकसर तेंदुए और अन्य खतरनाक जंगली जानवर खुलेआम घूमते दिखाई दे जाते हैं. इसलिए यहां आम लोगों के आनेजाने पर पाबंदी है.

पहले तो पुलिस को लगा था कि किसी आदिवासी महिला को किसी जंगली तेंदुए ने अपना शिकार बनाया होगा. लेकिन घटनास्थल पर पहुंचने पर पता चला कि यह जंगली जानवर का नहीं, किसी आदमखोर इंसान का काम था. स्थिति स्तब्ध करने वाली थी. महिला की अधजली, क्षतविक्षत लाश 8-10 फुट गहरी खाई में पड़ी थी.लाश की शिनाख्त और सुबूतों को मिटाने के लिए हत्यारे ने महिला के चेहरे से ले कर पैर तक कैमिकल डाल कर बुरी तरह से जला दिया था. हत्यारे ने वहां कोई भी ऐसा सुबूत नहीं छोड़ा था, जिस से पुलिस को जांच आगे बढ़ाने में मदद मिलती.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला सहयोगियों के साथ घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि क्राइम ब्रांच के जौइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय, असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक, अरविंद महावद्धी, डीसीपी अंबादास पोटे आदि क्राइम टीम के साथ घटनास्थल पर गए. सभी अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. क्राइम टीम ने अपना काम कर लिया तो अधिकारी थाना पुलिस को दिशानिर्देश दे कर चले गए. पुलिस अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने लाश को खाई से बाहर निकलवाया और अन्य सारी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जेजे अस्पताल भेज दिया. इस के बाद थाने कर मृतका का पूरा हुलिया बता कर महानगर के सभी पुलिस थानों को लाश बरामद होने की सूचना दे दी

थाना पवई पुलिस को उम्मीद थी कि किसी किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी अवश्य दर्ज होगी. लेकिन पवई पुलिस को इस का कोई फायदा नहीं मिला. सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने मुखबिरों की मदद ली, लेकिन वह पूरा दिन बीत गया, पुलिस को कहीं से भी मृतका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. एक ओर थाना पवई पुलिस जहां लाश की शिनाख्त के लिए हाथपैर मार रही थी, वहीं दूसरी ओर घटनास्थल से लौट कर आने के बाद जौइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी दहिसर क्राइम ब्रांच यूनिट-12 के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले को सौंप दी थी. आदेश मिलते ही मिलिंद खेतले ने सहयोगियों के साथ एक मीटिंग की. इस मीटिंग में तमाम माथापच्ची के बाद भी जांच को आगे बढ़ाने की कोई राह नहीं मिली. इस की वजह यह थी कि एक तो अभी तक लाश की शिनाख्त नहीं हुई थी, दूसरे घटनास्थल से कोई सुबूत भी नहीं मिला था

हत्यारे ने मृतका की शिनाख्त इस तरह मिटाई थी कि उस का फोटो भी अखबार में नहीं छपवाया जा सकता था. जबकि बिना लाश की शिनाख्त के जांच को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था. क्राइम ब्रांच के जांच अधिकारी मिलिंद इस मामले को ले कर थोड़ा परेशान जरूर थे, लेकिन निराश बिलकुल नहीं थे. उन्हें पूरा यकीन था कि इस मामले को वह शीघ्र ही सुलझा लेंगेसीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए 4 टीमें बनाईं, जिन में पुलिस इंसपेक्टर राजेश कानड़े, संदीप विश्वासराव, असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर मनोहर दलवी, विजय कांदलगांवकर, संजय मराठे, राहुल देशमुख, सबइंसपेक्टर बालकृष्ण लाड को शामिल किया

इस के बाद उन्होंने चारों टीमों को जांच के लिए लगा दिया. सभी टीमों को निर्देश दिया गया कि वे शहर के हर थाने में जा कर स्वयं पता करें कि उन के यहां किसी लड़की की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई है. सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले की यह युक्ति काम कर गई और गोरेगांव ईस्ट के थाना वनराई गई पुलिस टीम को पता चल गया कि 10 नवंबर को यहां एक लड़की की गुमशुदगी दर्ज कराई गई थीयह गुमशुदगी घाटकोपर की अमृतनगर कालोनी के रहने वाले राजेंद्र कुमार संपत ने दर्ज कराई थी. इस के बाद क्राइम ब्रांच की जांच टीम ने गुमशुदगी दर्ज कराने वाले राजेंद्र कुमार संपत को क्राइम ब्रांच के औफिस बुला लिया. उन से पूछताछ में पता चला कि लाश की शिनाख्त के लिए वह थाना पवई गए थे, जहां से जेजे अस्पताल ले जा कर उन्हें वह लाश दिखाई गई थी.

लेकिन लाश की स्थिति ऐसी थी कि उसे देख कर पहचान पाना संभव नहीं था. कैमिकल से लाश का अधिकतर हिस्सा जला दिया गया था. लेकिन हाथ के कंगन से उन्होंने शव को पहचान लिया था. लाश उन की बेटी विभूति की थी. राजेंद्र कुमार संपत का कहना था कि 9 नवंबर की सुबह औफिस के लिए निकली विभूति 10 नवंबर की शाम तक घर नहीं पहुंची तो उन्हें चिंता हुई. उन्होंने उस की तलाश शुरू कीउस की कंपनी में तो पता किया ही, उस के यारदोस्तों और नातेरिश्तेदारों से भी पूछा. जब कहीं से कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने गोरेगांव (ईस्ट) के थाना वनराई में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दीथाना पवई पुलिस ने जब जंगल से लाश बरामद की तो उसी दर्ज रिपोर्ट के आधार पर उन्हें थाना पवई बुला कर वह लाश दिखाई गई थी. इस के बाद उन्होंने जो बताया, वह इस प्रकार था.

राजेंद्र कुमार संपत अपने परिवार के साथ घाटकोपर के अमृतनगर कालोनी में रहते थे. उन का अपना व्यवसाय था. 29 वर्षीया विभूति उन की एकलौती संतान थी. एकलौती होने की वजह से वह उन्हें बहुत प्यारी थी. विभूति पढ़नेलिखने में ठीक थी. बीएससी करने के बाद उस ने घाटकोपर के सौम्या कालेज से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया तो गोरेगांव ईस्ट स्थित केकेसीएल कंपनी में उसे एग्जीक्यूटिव फैशन डिजाइनर की नौकरी मिल गई थी. वह समय पर औफिस जाती थी और समय पर घर जाती थी. कभीकभार औफिस में काम होता तो देर भी हो जाती थी. जरूरत पड़ने पर वह दूसरे शहरों में भी जाती रहती थी. उस दिन भी उस ने कहा था कि काम अधिक होने की वजह से उसे देर हो जाएगी, इसलिए उस दिन वह नहीं आई तो घर वालों को लगा कि काम की वजह से वह घर नहीं पाई.

क्राइम ब्रांच की टीम को घर वालों से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी, जिस से उन्हें जांच को आगे बढ़ाने में मदद मिलती इस टीम ने उस के औफिस जा कर उस के सहकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन वहां से भी पुलिस के हाथ कुछ खास नहीं लगा. तब क्राइम ब्रांच की टीम उन लोगों के फोन नंबर ले कर अपने औफिस गई, जो विभूति के कुछ ज्यादा ही करीबी थे. अब पुलिस के पास हत्यारों तक पहुंचने का एक ही रास्ता बचा था, वह था विभूति का मोबाइल फोन नंबर. पुलिस ने विभूति के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पुलिस को एक नंबर पर शक हुआ, क्योंकि उस नंबर पर विभूति की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. जिस दिन विभूति गायब हुई थी, उस दिन उस नंबर से फोन तो नहीं आया था, लेकिन एसएमएस जरूर किया गया था.

इस के बाद पुलिस ने उस फोन की लोकेशन निकलवाई तो उस की लोकेशन वहां की मिल गई, जहां से विभूति की लाश बरामद की गई थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर विलेपार्ले जुहू स्कीम के रहने वाले गौरव बरुआ का निकला. क्राइम ब्रांच की यह टीम गौरव बरुआ के घर पहुंची और पूछताछ के लिए उसे दहिसर स्थित क्राइम ब्रांच के औफिस ले आई. पूछताछ में पहले तो गौरव बरुआ ने विभूति की हत्या के मामले में खुद को निर्दोष बताया. पहले तो उस ने विभूति को जानने से ही मना कर दिया था. लेकिन पुलिस ने विभूति की काल डिटेल्स में उस का नंबर दिखाया और जिस दिन वह गायब हुई थी, उस दिन उस के द्वारा भेजा गया एसएमएस दिखाने के साथ घटनास्थल की उस के मोबाइल फोन की लोकेशन दिखाई तो वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

गौरव बरुआ द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने के बाद क्राइम ब्रांच टीम ने 12 नवंबर, 2013 को उसे बोरीवली की अदालत में पेश कर के विस्तृत पूछताछ और सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में गौरव बरुआ से जो पता चला, वह इस प्रकार था. 35 वर्षीय गौरव बरुआ दिलीप बरुआ का एकलौता बेटा था. दिलीप बरुआ मूलरूप से गुजरात के रहने वाले थे. बरसों पहले वह मुंबई आए तो उन्होंने नौकरी करने के बजाय अपना व्यवसाय शुरू किया. वह सीधेसादे, सरल स्वभाव के मिलनसार आदमी थे. इसी वजह से उन का व्यवसाय चल निकला. दिलीप बरुआ के पास पैसा आया तो उन्होंने विलेपार्ले जुहू स्कीम जैसे पौश इलाके में अपने लिए एक छोटा सा बंगला खरीद लिया. यह ऐसा इलाका है, जहां अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमामालिनी, मनोज कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, अमरीश पुरी जैसे लोग रहते हैं.

गौरव बरुआ छोटा था, तभी दिलीप बरुआ की मौत हो गई थी. उस के बाद व्यवसाय और गौरव की जिम्मेदारी उस की मां ने संभाली. मां ने गौरव को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दिया कि उस ने घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी संभाल ली. उस ने मीठीबाई कालेज से बीएससी किया और इंटीरियर डेकोरेटर का कोर्स कर के अपना खुद का काम करने लगा. अपने इसी काम की वजह से गौरव बरुआ को अकसर बाहर जाना पड़ता था. ऐसे में घर में उस की मां अकेली रह जाती थीं. इसलिए वह बेटे की शादी के लिए लड़की की तलाश करने लगीं. शीघ्र ही उन्हें लड़की मिल गई और उस से उन्होंने गौरव की शादी कर दी.

लेकिन गौरव बरुआ की यह शादी ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई. पत्नी तलाक ले कर चली गई. पत्नी ने उस के साथ जो व्यवहार किया था, उस से उसे औरतों से नफरत हो गई. लेकिन विभूति से उस की मुलाकात के बाद उसे फिर से एक औरत की जरूरत महसूस होने लगी. उस ने विभूति से दोस्ती कर ली. उसे उस से प्यार नहीं हुआ. उस ने उसे मात्र हवस शांत करने का साधन समझा था. यही वजह थी कि जब विभूति ने उस की हवस शांत करने से मना किया तो उस ने उसे खत्म कर दिया.

 पूछताछ और सुबूत जुटा कर क्राइम ब्रांच यूनिट-12 के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले ने गौरव को थाना पवई पुलिस को सौंप दिया, जहां गौरव के खिलाफ विभूति की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे एक बार फिर अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक गौरव जेल में ही था. उस की जमानत नहीं हुई थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, Acid Attack

Suicide Story: आशिक का पागलपन – पाकिस्तान से मरने आया भारत

Suicide Story: मोहम्मद आसिफ ने सामने बैठी शबनम की पूरी बात सुनने के बाद एक गहरी सांस ले कर बुझे मन से कहा, ‘‘आखिर वही हुआ जिस का मुझे डर था, आज सारी दुनिया हमारे प्यार की दुश्मन बन बैठी है. जब अपनों ने ही साथ देने से साफ इंकार कर दिया तो किसी दूसरे को क्या दोष दें.’’

‘‘आसिफ मैं अम्मीअब्बू तो क्या, अपनी खाला से भी बात कर चुकी हूं. मुझे भी वही सब जवाब मिले थे, जो तुम्हें अपने परिवार से मिले हैं.’’ 

फिर कुछ सोचते हुए आसिफ ने कहा, ‘‘शबनम, हमें घर से भाग कर अपनी एक नई दुनिया बनानी होगी.’’

आसिफ की बात बीच में ही काटते हुए शबनम ने कहा, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, क्या घर से भागना इतना आसान है? आसिफ मुझे तो ऐसा लग रहा है कि आज यह हमारी आखिरी मुलाकात है. आज के बाद हम कभी नहीं मिल सकेंगे. क्योंकि अगले हफ्ते मेरा निकाह है. इस बीच अगर तुम अपने घर वालों को मना सको तो ठीक है, नहीं तो मुझे भूल जाना और बेवफा कह कर दोषी मत ठहराना. खुदा हाफिज.’’ कह कर शबनम वहां से उठ कर अपने घर की तरफ चली गई. आसिफ काफी देर तक वहीं बैठा सोचता रहा.

मोहम्मद आसिफ पाकिस्तान के जिला कसूर के अंतर्गत आने वाले गांव जल्लोके का रहने वाला था. उस के पिता का नाम था खलील मोहम्मद. खलील मोहम्मद की 4 संतानों में आसिफ सब से छोटा था. उसे छोड़ कर सभी बहनभाइयों की शादी हो चुकी थीखलील मोहम्मद के पास अपने गुजारे लायक जमीन थी, जिस में घर खर्च बड़े मजे से चलता था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि आसिफ की जिंदगी में उस दिन से हलचल शुरू हुई, जिस रोज उस ने पहली बार शबनम को देखा था. मन ही मन आसिफ ने उस की तारीफ की थी. उन की यह मुलाकात एक शादी समारोह में हुई थी. शबनम की एक झलक देखते ही आसिफ अपना दिल हार बैठा था. वह सोचने लगा कि अगर यह खूबसूरत लड़की उस की जिंदगी में जाए तो जिंदगी बन जाएगी

जब मन में उसे पाने की चाहत ने जन्म लिया तो उस ने अपनी हमउम्र मामू, खाला आदि की लड़कियों के माध्यम से शबनम के पास पैगाम भिजवाने शुरू कर दिए. वह जल्द से उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करने लगा. चूंकि वह उस के बड़े भाई हमीद की साली थी और आसिफ शबनम को पाने के लिए बेताब हो उठा. उस की चाहत को देखते हुए शबनम भी उस की ओर आकर्षित हो चुकी थी. यानी आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. जल्द ही आसिफ को शबनम के निकट रहने का मौका मिल गया. शादी समारोह के बाद सभी रिश्तेदार विदा हो कर अपनेअपने घरों को लौटने लगे, पर आसिफ के बड़े भाई हमीद को उस के ससुर ने कुछ दिनों के लिए अपने यहां रोक लिया. अपनी भाभी से जिद कर के आसिफ भी उन के साथ भाई की ससुराल में रुक गया

एक तरह से वह शबनम के बिलकुल करीब पहुंच गया था. घर में गहमागहमी का माहौल था. घर के बडे़ अपनी बातों में मशगूल रहते थे तो बच्चे और किशोर अपनी अलग मंडली जमाए बैठे थे. ऐसे में आसिफ और शबनम को अपनेअपने दिल की बात कहने का अवसर मिल गया. दोनों ने एकदूसरे के सामने प्यार का इजहार किया, साथ जीनेमरने की कसमें खाईं. दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था. शादी का फैसला करते वक्त दोनों ने यह बात सपने में भी नहीं सोची थी कि परिवार वालों को उन का फैसला मंजूर होगा भी या नहीं. दोनों अभी अपने प्यार की पींगे पूरी तरह बढ़ा भी नहीं पाए थे कि शबनम के अब्बू को उन की प्रेम कहानी का पता चल गया.

शबनम पर तो जैसे आफत का पहाड़ ही टूट पड़ा. इसी बात को ले कर ससुर और दामाद में भी कहासुनी हो गई. हामिद अपनी ससुराल से नाराज हो कर अपने गांव लौट आया. उस ने अपनी बीवी को भी सख्त ताकीद कर दी थी कि अब वह अपने अम्मीअब्बू को भूल जाए. आसिफ और शबनम के प्यार का घरौंदा बसने से पहले ही उजड़ गया. आसिफ और शबनम ने अपनेअपने तरीकों से इस रिश्ते को कायम रखने के लिए बहुत कोशिश की. पर दोनों परिवारों की जिद के आगे उन की एक नहीं चली. शबनम के अब्बू ने शबनम का रिश्ता कहीं दूसरी जगह तय कर दिया था. जल्दी ही शादी का दिन भी गया. इस शादी में उस ने अपनी बेटी और दामाद को भी नहीं बुलाया था

मोहम्मद आसिफ ने बड़ी बेबसी के साथ शबनम के घर की तरफ देखा. चारों तरफ जगमगाती लाइटें जल रही थीं, चहलपहल दिखाई दे रही थी. घर और आसपास के पेड़ों में लगे लाउडस्पीकर पर पंजाबी गाने बज रहे थे. वहां से 100 मीटर दूरी पर आसिफ एक जगह अंधेरे में बैठा था. वह नहीं चाहता था कि कोई उसे और उस के दर्द को देखे. जिसे देखना था वह अपनी खुशियों में व्यस्त थी. लाउडस्पीकर पर बजते गाने आसिफ के दिल में तीर की तरह चुभ रहे थे. अंदर ही अंदर बेचैनी खाए जा रही थी. बारात धीरेधीरे शबनम के घर की तरफ बढ़ रही थी. आवाज की तेजी बढ़ती जा रही थी. जैसे वे सारी आवाजें उस की तरफ रही हों. ढोल वाले के हर डंके की चोट में जैसे शबनम चीखचीख कर कह रही हो, ‘मैं जा रही हूं आसिफ. तुम को छोड़ कर. मेरी शादी किसी और के साथ हो रही है. अब मैं तुम्हारी नहीं रही.’

आसिफ धीरेधीरे वहां से उठा और खेतों की तरफ जाने लगा. वह इन आवाजों से दूर जाना चाहता था, बहुत दूर. काली अंधेरी रात में वह कहां जा रहा था, उसे पता नहीं चल रहा था. वह तो बस चले जा रहा थाउस के मन में उस समय एक ही धुन सवार थी कि जितनी जल्दी हो सके, बोझ बनी इस जिंदगी से छुटकारा पा कर सुकून हासिल कर ले. वह चले जा रहा था, पर शहनाई की आवाज उस का पीछा नहीं छोड़ रही थी. उस ने अपने कदमों की रफ्तार और तेज कर दी थी. वह शबनम के गांव से दूर चुका था. आवाजें उस का पीछा कर रही थीं. उस ने अपने दोनों कान बंद किए और वहीं बैठ गया. अचानक उस ने अपना मुंह आसमान की तरफ उठाया और चीखचीख कर रोने लगा. जैसे खुदा से शिकायत कर रहा हो

अपने भीतर कितने दिनों से दबा कर रखे आंसुओं के भंडार को वह आज जी भर के निकालना चाहता था. वहां कोई सुनने वाला था, और कोई कुछ कहने वाला. वह रोता रहा, रोता रहा. तब तक जब तक जहर भरे सारे आंसू बाहर नहीं निकल गए. मन हलका हो गया तो फिर से शबनम की यादों को समेटने लगा था. इस के पहले कि शबनम की यादों में पड़ कर कमजोर हो जाए, वह अपनी जगह से उठा और तेजी से एक ओर बढ़ता गया. आसिफ रात भर चलता रहा, उस के पैरों में बिजली सी तेजी थी, मानो वह जल्द से जल्द अपनी मंजिल पर पहुंचना चाहता हो. सुबह के करीब 5 बजे वह भारतपाक सीमा के हुसैनीवाला क्षेत्र फिरोजपुर बौर्डर के पास पहुंच गया. वह एक पल के लिए वहां रुका और आसपास देख कर वहां का जायजा लेने लगा. जब दूर से उस ने 2 देशों की सीमा को विभाजन करने वाली तारों की बाड़ को देखा तो उस की आंखें चमक उठीं.

किसी सम्मोहनवश वह लगभग दौड़ता हुआ सीमा पर लगी बाड़ की ओर लपका. सीमा के दोनों ओर दोनों देशों के सुरक्षाकर्मी हाथों में आधुनिक हथियार लिए बड़ी मुस्तैदी से खडे़ थे, पर आसिफ सुरक्षाकर्मियों की नजरों के सामने से बिना भयभीत हुएअल्लाह हू अकबरकहता हुआ सुरक्षा तारों को पार करने लगासीमा के दोनों ओर के जवान इस अजूबे को हैरत की नजरों से देख रहे थे और सोच रहे थे कि वह कौन है और क्या करना चाहता है. किसी की समझ में कुछ नहीं रहा था. क्योंकि आसिफ पाकिस्तान की ओर से सीमा पार कर के भारत की सीमा में प्रवेश कर चुका थाअब भारतीय फौजियों को ही उसे रोकना था सीमा पर उस समय सीमा सुरक्षाबल की 118वीं बटालियन के जवान तैनात थे. उन्होंने आसिफ को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘जहां हो वहीं रुक जाओ और वापस अपने सीमा क्षेत्र में लौट जाओ वरना गोली मार दी जाएगी.’’

सीमा सुरक्षाबल के जवानों की चेतावनी का आसिफ पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी धुन में तारों को पार करने की कोशिश करता रहा. थोडे़ से प्रयास के बाद वह अपने इरादों में सफल हो कर भारतीय सीमा में प्रवेश कर गयाभारतीय सीमा में प्रवेश करते ही सुरक्षाबलों ने उसे घेर लिया. एसआई राजवीर सिंह, हवलदार अरविंद कुमार, अशोक कुमार, सिपाही जुगल किशोर और पी.एच. डेविड ने आसिफ को गिरफ्तार कर अपनी हिरासत में ले लिया और यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दीसीमा सुरक्षा बल के आला अधिकारियों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने आसिफ से जम कर पूछताछ की. किसी हारे हुए जुआरी की तरह आसिफ ने अपना दिल खोल कर जब अपने नाकाम प्यार की दास्तां सुनाई तो सभी दंग रह गए

आसिफ ने अपने बयान में बताया कि उसे विश्वास था कि सीमा पर उस के द्वारा की गई इस हरकत के बदले जवान उसे गोली से उड़ा देंगे और वह दुनिया से मुक्त हो जाएगा. क्योंकि रमजान के पाक महीने में वह आत्महत्या जैसा गुनाह नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचसमझ कर जवानों की गोली से अपने प्यार के लिए शहीद होने की सोची थी. अपनी नाकाम मोहब्बत के सदमे की वजह से उस की जीने की इच्छा खत्म हो गई है. सुरक्षा एजेंसियों की पूछताछ के बाद अपने अधिकारियों के आदेश पर एसआई राजबीर सिंह ने आसिफ को जिला फिरोजपुर के थाना  ममदोह की पुलिस के हवाले कर दिया

थानाप्रभारी रछपाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ करने के बाद बताया कि नौजवान मानसिक तौर पर परेशान है. उस से सभी पहलुओं से पूछताछ की गई है. युवक की तलाशी लेने पर उस की जेब से 1200 रुपए की पाकिस्तानी करेंसी और 2 नींद की गोलियां बरामद हुई थीं. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी रछपाल सिंह ने आसिफ के खिलाफ 28 मई, 2018 को इंडियन पासपोर्ट एक्ट 1920 की धारा-3 और फारेनर एक्ट-1946 की धारा-14 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.    

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित, Suicide Story

Crime Story In Hindi: पेड़ से लटके भाई-बहन के शव, कातिल कौन?

Crime Story In Hindi: बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग तो चेतनाशून्य हो चला था. साथ ही उस के दिमाग में एक तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान उसे चैन नहीं लेने दे रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि वह कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर होता चला गया, जैसे वह किसीफैसले पर पहुंच गया था, उस फैसले के बिना जैसे और कुछ हो नहीं सकता था. बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे. 22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई 25 वर्षीय संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल (14 वर्ष) और भोलेशंकर (9 वर्ष) के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं, जोकि क्रमश: 17 वर्ष, 7 वर्ष और 5 वर्ष की थीं.

उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और उन के 6 बेटै रामपाल, विनीत उर्फ लाला, किशोरी, गोपाल उर्फ रामगोपाल, धर्मेंद्र और कुलदीप उर्फ सूखा थे. इस के अलावा इकलौती बेटी थी 21 वर्षीय सुखदेवी, जोकि सब भाइयों से छोटी थी. रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे. हर समय एकदूसरे का साथ दोनों को खूब भाता था. समय के साथ ही बचपन का यह खेल कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ. जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित हो गया था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे एक आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.

हिरनी जैसे नयन, गुलाब की पंखुडि़यों जैसे होंठ, जिन का रसपान करना हर नौजवान की हसरत होती है. उस के गालों पर आई लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे देख कर उसे पाने को लालायित हो उठा. सुखदेवी के यौवन में वह इस कदर खो गया कि उस के बदन को ऊपर से नीचे तक निहारता रह गया. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता की साफसाफ झलक दिखती थी. बंटी अपनी तहेरी बहन के मादक सौंदर्य को बस देखता रह गया और उस की चाहत में डूबता चला गया. वह इस बात को भी भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन तो है.

बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. उधर सुखदेवी इस बात से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया. चाहने लगा था सुखदेवी को सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था. रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

जब बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह पहले से अधिक व्याकुल हो उठा. उस के साथ सुंदर सपनों में खो गया. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का सारा ध्यान तो सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी. वह तो इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. उधर जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई. सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है. फिर सुखदेवी अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. उस के शरीर के स्पर्श ने उसे गुमशुदा कर दिया.

उस का दिल तो चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर न जाने कैसी झिझक उसे रोक देती और वह अपने जज्बातों पर काबू किए उस की बातें सुनता जा रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठते थे. थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही. मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया. प्यार के इजहार का नहीं मिला मौका बंटी को उस दिन के बाद कुछ अच्छा न लगता, वह तो बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की जता नहीं पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे अत्यंत उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर खूब चढ़ चुका था. उस के यौवन की किसी एक बात को भी वह भुला नहीं पा रहा था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता ही रहा था. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी ने बैठते ही बंटी को देखा और कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो बंटी के करीब पहुंच कर वह बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ है तुम्हें, तुम इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर उधर बंटी तो एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातों को सुन कर अचानक ही बंटी उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत हुआ उसे घूरता ही जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाह के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह भी खामोश नजरें झुकाए वहीं बैठी रही थी. बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में उलझा हुआ था कि वह मेरी तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की विजय हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और अपनी आंखें बंद कर लीं.

तभी बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत न कर सकी. फिर दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और फिर तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई’ उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह तो उस दिन अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था. तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की इन बातों को सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित हो गई और उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी तो अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और बड़े प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी. सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश होने पर मजबूर कर दिया और बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. लगातार कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया.

प्यार को लग गई हवा सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई. बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे और इसी दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या कहीं ताऊताई को उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा और पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती गई. घर पहुंच कर बिना कुछ खाएपीए वह अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद भी कहां थी.

वह भी इसी सोच में डूबी रही. बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह भी बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदलती जा रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही. पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम कर के अपनी मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. वह बस कभी बंटी के प्रेम स्नेह के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, रास्ते में जाते वक्त कई बार वापस होने को सोचा, मगर हिम्मत न जुटा सकी. क्योंकि बंटी के उस जुनून को भी भुला नहीं पा रही थी.

लेकिन कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इन्हीं सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और फिर उसे अंदर जाना ही पड़ा. उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. बस एक रात में ही ऐसा लग रहा था कि वह कई दिनों से बिना कुछ खाएपीए हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है. उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ चुकी थी कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को इस का आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है.

उस ने आते ही बंटी से पूछ लिया कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में उतार दिया कि अब उसे न समाज की सोच, न अपने परिजनों का भय रह गया, वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी. उस के बाद उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों तन्हाई में एक कमरे मे बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया. दोनों ने लांघ दी सीमाएं सुखदेवी ने इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं किया था. बंटी का हर स्पर्श सुखदेवी की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया.

सुखदेवी को भी यह अनुभव आनन्दमई लग रहा था. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी सब कुछ था. एक बार जब उस पर जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो बस यह सिलसिला चलता ही रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. एकदूसरे के बगैर दोनों के लिए रहना अब मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुल गया तो कोहराम सा मच गया. उन को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. आखिर रिश्ते में दोनों भाईबहन थे, ऐसे में समाज उन की शादी पर अंगुलियां उठाता और उन का जीना मुहाल हो जाता.

परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के परिजनों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी. शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में काफी देर तक वह सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें. अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई.

शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले कर भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला. प्रेमी युगल के मिले शव पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं. गांव के कुछ लड़के उधर आए तो उन्होंने यह देखी थीं. दोनों के घर वालों को उन लड़कों ने जानकारी दे दी. सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए.

सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे किसी तेजाब जैसे पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था. फिलहाल मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर भड़ाना ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा का गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका शव मिला.

जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे, उस से कुछ दूरी पर ही कुलदीप का शव मिला. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना  पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ प्रतीत हो रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी. पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत सिर्फ आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, आत्महत्या का रूप दे कर हत्यारों ने गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था.

कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची. गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने शीघ्र ही केस का खुलासा करने के निर्देश इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिए. मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा थाने में दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया. उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया.

उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला. इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया. पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान हो गए थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात जा कर सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी. विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे. वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया. इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला. इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने दोनों हत्याएं करते उन लोगों को देख लिया. विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया.

इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए. वहां शीशम के पेड़ से दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया. फिर वापस अपने घरों को लौट गए. कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग भी सही नहीं था, उस पर भरोसा करना ठीक नहीं था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा. 2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए.

वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को नीम के पेड़ से दुपट्टे से बांध कर लटका दिया. और उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया. फिर निश्चिंत हो कर घरों को लौट गए. कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली. फिर आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्यौराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया. Crime Story In Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Mystery: शादीशुदा आशिकी का खूनी अंजाम

Murder Mystery: आशा पति से जिन संबंधों को छिपा कर उस की नजरों में पाक साफ बनी रहना चाहती थी, प्रेमी की हत्या करने के बाद उन संबंधों के बारे में पति को ही नहीं पूरी दुनिया को पता चल गया…

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था. उस की इसी आदत ने ही उसे इतनी कम उम्र में क्षेत्र का नेता बना दिया था. मात्र 25 साल की उम्र में वह जिला पंचायत सदस्य बना तो इस उम्र का कोई दूसरा सदस्य पूरे जिले में नहीं था.

नेता बनने की यह उस की पहली सीढ़ी थी. वह और आगे बढ़ना चाहता था, इसलिए उस ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया था. वैसे तो उस ने यह चुनाव भाजपा के समर्थन से जीता था, लेकिन उस के संबंध लगभग हर पार्टी के नेताओं से थे. इस की वजह यह थी कि उस की कोई ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं थी कि लोग उसे नेता मान लेते. उस के पिता सूबेदार कनौजिया दुबई में नौकरी करते थे. उमेश भी पढ़लिख कर नौकरी करना चाहता था, लेकिन जब उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो वह छुटभैया नेता बन कर गांव वालों की सेवा करने लगा. उसी दौरान उस की जानपहचान कुछ नेताओं से हुई तो वह भी नेता बनने के सपने देखने लगा. उस का यह सपना तब पूरा होता नजर आया, जब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने पर भाजपा ने उस का समर्थन कर दिया.

उमेश अपनी मेहनत और जनता की सेवा कर के नेता बना था. वह राजनीति में लंबा कैरियर बनाना चाहता था, इसलिए अपने क्षेत्र की जनता से ही नहीं, क्षेत्र के लगभग सभी पार्टी के नेताओं से जुड़ा था. उस का सोचना था कि कभी भी किसी की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उस के निजी संबंध ही काम आएंगे. इस का उसे लाभ भी मिल रहा था. बसपा के सांसद ब्रजेश पाठक उसे भाई की तरह मानते थे. उन्नाव के विकास खंड औरासा के वार्ड नंबर 2 से जिला पंचायत सदस्य चुने जाने के बाद उमेश ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा था. अपनी कार्यशैली की वजह से ही वह कम समय में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था.

उत्तर प्रदेश का जिला उन्नाव लखनऊ और कानपुर जैसे 2 बड़े शहरों को जोड़ने का काम करता है. यह लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर है तो कानपुर से मात्र 20 किलोमीटर दूर. एक तरफ प्रदेश की राजधानी है तो दूसरी ओर कानपुर जैसा महानगर है. इस के बावजूद इस की गिनती पिछड़े जिलों में होती है. शायद यही वजह है कि यहां नशा और अपराध अन्य शहरों की अपेक्षा ज्यादा हैं. जिला भले ही पिछड़ा है, लेकिन कानपुर और लखनऊ की सीमा से जुड़ा होने की वजह से यहां की जमीन काफी महंगी है. इसलिए यहां के लोग अपनी जमीनें बेच कर अय्याशी करने लगे हैं. इस के अलावा गांवों के विकास के लिए पंचायती राज कानून लागू होने की वजह से गांवों में सरकारी योजनाओं का पैसा भी खूब आ रहा है, जिस से पंचायतों से जुड़े लोग प्रभावशाली बनने लगे हैं.

यही सब देख कर युवा चुनाव की ओर आकर्षित होने लगे हैं. वे चुनाव जीत कर समाज और राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. उमेश कनौजिया भी कुछ ऐसा ही सोच नहीं रहा था, बल्कि इस राह पर उस ने कदम भी बढ़ा दिए थे. लेकिन उस का यह सपना पूरा होता, उस के साथ एक हादसा हो गया. 14 नवंबर, 2013 की सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना मलिहाबाद के गांव गढ़ी महदोइया के लोगों ने गांव के बाहर शारदा सहायक नहर के किनारे एक लाश पड़ी देखी. मृतक यही कोई 25-26 साल का था. वह धारीदार सफेदनीला स्वेटर, नीली जींस और हरे रंग की शर्ट पहने था. उस के दाहिने हाथ में कलावा बंधा था, जिस का मतलब था कि वह हिंदू था. उस के गले पर रस्सी का निशान साफ नजर आ रहा था. जिस से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. हालांकि उस के दाहिने गाल से खून भी बह रहा था.

लाश से थोड़ी दूरी पर एक पैशन प्रो मोटरसाइकिल भी पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी 32 ईवाई 1778 था. उस में चाबी लगी थी. पहली नजर में देख कर यही कहा जा सकता था कि यह दुर्घटना का मामला है. लेकिन गले पर जो रस्सी का निशान था, उस से अंदाजा साफ लग रहा था कि यह एक्सीडेंट नहीं, हत्या का मामला  है. जिन लोगों ने लाश देखी थी, उन्हें लगा कि यह हत्या का मामला है तो उन्होंने इस बात की सूचना ग्रामप्रधान को दी. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. ग्रामप्रधान के पति राजेश कुमार ने नहर के किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना मलिहाबाद पुलिस को दी तो एसएसआई श्याम सिंह सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, तो वहां जमा लोगों में से कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. लाश के कपड़ों की तलाशी में भी ऐसा कोई सामान नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. मोटरसाइकिल के नंबर से अंदाजा लगाया गया कि मृतक लखनऊ का रहने वाला है, क्योंकि उस पर पड़ा नंबर लखनऊ का ही था. संयोग से मोटरसाइकिल की डिग्गी खोली गई तो उस में से उस के कागजात मिल गए. मोटरसाइकिल उमेश कनौजिया के नाम रजिस्टर्ड थी. उस पर पता एकतानगर, थाना ठाकुरगंज, लखनऊ का था. इस से साफ हो गया कि मारा गया युवक लखनऊ का ही रहने वाला था.

थाना मलिहाबाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद एसएसआई श्याम सिंह ने घटना की सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को एकता नगर भेज दिया. थाना मलिहाबाद के सिपाहियों ने थाना ठाकुरगंज के एकतानगर पहुंच कर उमेश कनौजिया के बारे में पता किया तो वहां पर उस की मौसी शशिकला मिलीं. पुलिस वालों ने जब उमेश की लाश मिलने की बात उन्हें बताई तो वह बेहोश हो गईं. घर वाले पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में ले आए तो उन्होंने बताया, ‘‘उमेश हमारी बहन का बेटा है. वह उन्नाव का रहने वाला है. जब वह मेरे यहां रह कर पढ़ाई कर रहा था, तभी उस ने यह मोटरसाइकिल खरीदी थी. इसीलिए उस के कागजातों में मेरा पता लिखा है.’’

इस के बाद पुलिस वालों ने शशिकला से उमेश के घर वालों का फोन नंबर ले कर उमेश की मौत की सूचना उस के घर वालों को दी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही उमेश के घर वाले थाना मलिहाबाद पहुंच गए. उमेश के पिता सूबेदार कनौजिया ने उमेश की हत्या किए जाने की बात कह कर 2 लड़कों के नाम भी बताए. लेकिन थाना मलिहाबाद पुलिस का कहना था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ही हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा. इस पर उमेश के घर वाले भड़क उठे. धीरेधीरे यह बात फैलने लगी कि जिला पंचायत सदस्य उमेश कनौजिया की हत्या हो गई है और थाना मलिहाबाद पुलिस मुकदमा दर्ज करने में आनाकानी कर रही है. मलिहाबाद उन्नाव की सीमा से जुड़ा है, इसलिए खबर मिलने के बाद मृतक उमेश की जानपहचान वाले थाना मलिहाबाद पहुंचने लगे.

15 नवंबर, 2013 की सुबह से ही हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए धरनाप्रदर्शन शुरू हो गया. अब तक शव घर वालों को मिल चुका था. घर वालों ने बसपा सांसद ब्रजेश पाठक, भाजपा के पूर्व विधायक मस्तराम, किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह के नेतृत्व में रहीमाबाद चौराहे पर लाश रख कर रास्ता रोक दिया. सांसद ब्रजेश पाठक का कहना था कि समाजवादी पार्टी के राज में पुलिस आम जनता की नहीं सुन रही है, इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है. जाम लगने से आनेजाने वाले ही नहीं, रहीमाबाद कस्बे के लोग भी परेशान हो रहे थे. जाम लगाने वाले लोग उमेश कनौजिया के हत्यारों को गिरफ्तार करने, थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह को निलंबित करने, पीडि़त परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने और उमेश के छोटे भाई सुधीर को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे थे. जाम का नेतृत्व कर रहे नेताओं को लग रहा था कि उन के इस आंदोलन से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, इसलिए वे आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे.

जाम लगाए लोगों को हटाने के लिए रहीमाबाद चौकी के प्रभारी अनंतराम सिपाही ज्ञानधर यादव, छेदी यादव, अशोक और होमगार्ड श्रीपाल यादव को साथ ले कर वहां पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने अनंतराम और उन के साथ आए सिपाहियों के साथ मारपीट कर के उन्हें भगा दिया. इस बात की सूचना लखनऊ के एसपी (ग्रामीण) सौमित्र यादव, क्षेत्राधिकारी (मलिहाबाद) श्यामकांत त्रिपाठी और इंसपेक्टर (मलिहाबाद) जे.पी. सिंह को मिली तो आसपास के 3 थानों की पुलिस रहीमाबाद भेज दी गई. काफी समझानेबुझाने और भरोसा दिलाने के बाद लगभग 4 घंटे बाद जाम खुला. तब रहीमाबाद के लोगों ने राहत की सांस ली. इस के बाद उमेश के घर वाले उस का शव अंतिम संस्कार के लिए ले कर गांव चले गए. उस समय तो यह खतरा टल गया, लेकिन पुलिस को अंदेशा था कि अगले दिन भी राजनीतिक लोग इस घटना का लाभ उठाने के लिए धरनाप्रदर्शन कर सकते हैं.

इसी बात पर विचार कर के लखनऊ के एसएसपी जे. रवींद्र गौड ने मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए अपने मातहत अधिकारियों पर दबाव बनाया. इस के बाद थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह ने उमेश के घर वालों से मिल कर यह जानने की कोशिश की कि उन की किसी से रंजिश तो नहीं है. लेकिन घर वालों ने किसी भी तरह की राजनीतिक या पारिवारिक रंजिश से इनकार कर दिया. उमेश के पास इतना पैसा भी नहीं था कि लूटपाट के लिए उस की हत्या की जाती. वह पैसे का भी लेनदेन नहीं करता था. अब पुलिस के पास उमेश हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने का एकमात्र सहारा उस का मोबाइल फोन था.

पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस के अध्ययन से पता चला कि 13 नवंबर को एक ही नंबर पर उस ने 32 बार फोन किया था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर जिला उन्नाव के थाना हसनगंज के गांव शाहपुर तोंदा की रहने वाली आशा का निकला. आशा का विवाह थाना मलिहाबाद के अंतर्गत आने वाले गांव सिंधरवा के रहने वाले राजू से हुआ था. राजू दुबई में लांड्री का काम करता था. आशा यहीं रहती थी. पति बाहर रहता था, इसलिए वह ससुराल में कम, मायके शाहपुर तोंदा में ज्यादा रहती थी. उमेश का उस के यहां नियमित आनाजाना  था. जब भी आशा मायके में रहती, उमेश उस से मिलने के लिए दूसरेतीसरे दिन आता रहता था. अगर किसी वजह से वह नहीं आ पाता था तो उसे फोन जरूर करता था.

दरअसल आशा कनौजिया की मां महेश्वरी देवी ने भी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था. उमेश बिरादरी का नेता माना जाता था, इसलिए महेश्वरी देवी उमेश को अपने साथ रखने लगी थी. उसे लगता था कि उमेश साथ रहेगा तो बिरादरी के वोट उसे मिल जाएंगे. चुनाव महेश्वरी देवी लड़ रही थी, लेकिन उस का पूरा कामकाज पति प्रकाश कनौजिया देखता था. यही वजह थी कि उमेश और प्रकाश में गहरी छनने लगी थी. प्रकाश कनौजिया को भी लगता था कि उमेश के साथ रहने से बिरादरी का सारा वोट उसे ही मिलेगा.

चुनाव के दौरान महेश्वरी देवी के यहां आनेजाने में उमेश की नजर उस की 24 वर्षीया विवाहित बेटी आशा पर पड़ी तो वह उसे भा गई. भरेपूरे बदन वाली आशा पर उमेश की नजरें गड़ गईं. फिर तो जल्दी ही आशा की भी उमंगें हिलोरे लेने लगीं. यही वजह थी कि जल्दी ही दोनों के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उमेश स्मार्ट और खुशदिल इंसान था. अपने इसी स्वभाव की बदौलत वह आशा को भा गया था. चुनाव के दौरान अकसर दोनों का एकसाथ आनाजाना होता रहा. उसी बीच एकांत मिलने पर दोनों ने अपने इस प्रेमसंबंध को शारीरिक संबंध में तबदील कर दिया था.

समय के साथ उमेश और आशा के संबंध प्रगाढ़ हुए तो उमेश आशा को अपनी जागीर समझने लगा. जबकि आशा को यह बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि आशा के संबंध कुछ अन्य लोगों से भी थे. यही बात उमेश को पसंद नहीं थी. वह चाहता था कि आशा उस के अलावा किसी और से संबंध न रखे. इस के लिए उस ने आशा को रोका भी, लेकिन वह नहीं मानी. उस का कहना था कि वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है, वह उसे रोकने वाला कौन होता है. उमेश के पास आशा के पति राजू का दुबई का फोन नंबर था. कभीकभी राजू की उस से बात भी होती रहती थी. आशा ने उमेश का कहना नहीं माना तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली.

एक दिन जब उस के पास राजू का फोन आया तो उमेश ने उस से बता दिया कि यहां आशा के कई लोगों से प्रेमसंबंध हैं. इस के बाद राजू और आशा में जम कर तकरार हुई. उमेश की यह हरकत आशा को बिलकुल पसंद नहीं आई. उस का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा तो उस ने उमेश को फोन कर के कहा, ‘तुम ने हमारे बारे में झूठ बोल कर राजू से मेरी जो लड़ाई कराई है, यह मुझे अच्छा नहीं लगा.’ अब तुम मुझ से न तो मिलने की कोशिश करना और न ही मुझे फोन  करना.

‘‘आशा, तुम मेरी बात का बेकार ही बुरा मान रही हो. मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसलिए चाहता हूं कि तुम मेरे अलावा किसी और से न मिलो.’’ उमेश ने सफाई दी.

‘‘लेकिन राजू से शिकायत कर के तुम ने मुझे उस की नजरों में गिरा दिया. वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? शक तो वह पहले से ही करता था. अब उसे विश्वास हो गया कि मैं सचमुच गलत हूं.’’ आशा ने झल्ला कर कहा.

‘‘मैं गुस्से में था, इसलिए मुझ से गलती हो गई. अब ऐसा नहीं होगा. तुम मुझे समझने की कोशिश करो आशा.’’ उमेश ने आशा को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम्हारी यह पहली गलती नहीं है. इस के पहले तुम ने मेरे साथ मारपीट की थी, मैं ने उस का भी बुरा नहीं माना था. लेकिन यह जो किया, अच्छा नहीं किया. यह गलती माफ करने लायक नहीं है. मैं तुम जैसे आदमी से अब संबंध नहीं रखना चाहती.’’ आशा ने कहा.

‘‘आशा, 13 नवंबर को मैं तुम से मिलने आ रहा हूं. तब बैठ कर आराम से बातें कर लेंगे.’’ उमेश ने कहा.

‘‘मैं तुम से बिलकुल नहीं मिलना चाहती, इसलिए तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’ आशा ने उसे आने से रोका.

‘‘आशा इतना भी नाराज मत होओ बस एक बार मेरी बात सुन लो, उस के बाद सब साफ हो जाएगा. बात इतनी बड़ी नहीं है, जितना तुम बना रही हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भले ही यह बात बड़ी नहीं है, लेकिन मेरे लिए यह बड़ी बात है. मैं अभी तक तुम्हारी हरकतें नजरअंदाज करती आई थी, यह उसी का नतीजा है. लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया है.’’ कह कर आशा ने फोन काट दिया.

13 नवंबर को उमेश आशा से मिलने उस के घर जाने वाला था. 14 नवंबर को बाराबंकी में उस के दोस्त पंकज के यहां शादी थी. उमेश ने योजना बनाई थी कि वह आशा से मिलते हुए दोस्त के यहां शादी में चला जाएगा. 13 नवंबर की शाम को यही कोई 7 बजे उमेश ने अपने घर फोन कर के बताया भी था कि वह मलिहाबाद में अपने दोस्त से मिल कर बाराबंकी चला जाएगा. इस के बाद उमेश ने घर वालों से संपर्क नहीं किया. रात में उस के छोटे भाई सुधीर ने उसे फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. 13 नवंबर को उमेश ने दिन में 32 बार फोन कर के आशा को मनाने की कोशिश की थी. लेकिन आशा को अब उमेश से नफरत हो गई थी. उमेश ने उस के साथ जो किया था, अब वह उस से उस का बदला लेना चाहती थी.

आशा के संबंध गांव के ही रहने वाले रामनरेश, शकील और हरौनी के रहने वाले छोटे उर्फ पुत्तन से थे. आशा ने इन्हीं लोगों की मदद से उमेश से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाने का निश्चय कर लिया था. शाम को जब उमेश आशा से मिलने उस के घर पहुंचा तो आशा ने उस के साथ ऐसा व्यवहार किया, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है. उस ने उसे खाना खिलाया और सोने के लिए बिस्तर भी लगा दिया. सोने से पहले उमेश ने शारीरिक संबंध की इच्छा जताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद आशा ने उस की यह इच्छा भी पूरी कर दी. आशा की यही अदा उमेश को अच्छी लगती थी. आशा के इस व्यवहार से उमेश को लगा कि वह मान गई है. वह उसे बांहों में लिएलिए ही निश्चिंत हो कर सो गया.

उमेश के सो जाने के बाद आशा उठी और अपने कपड़े ठीक कर के घर के बाहर आई. उस ने गांव का माहौल देखा. गांव में सन्नाटा पसर गया था. उस ने रामनरेश, शकील और छोटे को पहले से ही तैयार कर रखा था. उन के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘चलो उठो, वह सो चुका है. गांव में भी सन्नाटा पसर गया है. जल्दी से उसे खत्म कर के लाश ठिकाने लगा दो.’’

रामनरेश और आशा ने उमेश के पैर पकड़े तो छोटे ने हाथ पकड़ लिए. उस के बाद शकील ने गला दबा कर उसे खत्म कर दिया. छोटे महदोइया गांव का ही रहने वाला था, इसलिए उसे गांव की एकएक गली का पता था. सभी ने मिल कर उमेश की लाश को टैंपो नंबर 35 ई 8902 में डाला और ले जा कर गांव से काफी दूर नहर के किनारे फेंक दिया. शकील और छोटे टैंपो के पीछेपीछे उमेश की मोटरसाइकिल ले कर गए थे. उसे भी वहीं डाल दिया था. लाश ले जाने से पहले आशा ने उमेश की पैंट की जेब से मोबाइल और पर्स निकाल लिया था, जिस से उस की पहचान न हो सके.

शकील और छोटे ने उमेश की लाश को नहर के किनारे इस तरह फेंका था कि देखने वालों को यही लगे कि रात में दुर्घटना की वजह से इस की मौत हुई है. अपनी इस योजना में वे सफल भी हो गए थे, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पोल खुल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस की मौत Murder Stories in Hindi गला दबाने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर के मामले की जांच शुरू की तो हत्यारों तक पहुंचने में उसे देर नहीं लगी. आशा से पूछताछ के बाद पुलिस ने रामनरेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस शकील और छोटे की तलाश कर रही थी, लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे. पुलिस हत्या के इस मामले में आशा के मांबाप की भूमिका की भी जांच कर रही है. आशा ने जो किया, उस से उमेश का ही नहीं, उस का खुद का भी परिवार छिन्नभिन्न हो गया. जिस पति से वह अपने जिन संबंधों को छिपाना चाहती थी, उमेश की हत्या के बाद पति को ही नहीं, पूरी दुनिया को पता चल गया. अब उस का क्या होगा, यह तो अदालत के फैसले के बाद ही पता चलेगा.

Meerut Crime News: प्रेमिका को नशा देकर बनाया संबंध, फिर क्यों ली जान?

Meerut News : दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में एक कस्बा है दौराला. यहीं पर एक गांव है लोइया, जहां 13 जून 2019 को इसी गांव के रहने वाले शबी अहमद के खेत से एक कुत्ता किसी मानव अंग को ले कर भाग रहा था. कुत्ते को मानव अंग ले कर भागते हुए गांव में रहने वाले ईश्वर पंडित ने देख लिया था. उसे शक हुआ कि हो ना हो वहां किसी इंसान को मार कर दबाया गया है. ईश्वर ने पहले गांव के कुछ लोगों को ये बात बताई. सब उस जगह पहुंचे, जहां से कुत्ता मानव अंग ले कर भागा था. तलाश करने पर खेत में एक जगह वो गड्ढा मिल गया, जहां एक लाश दबी थी और कुत्ते के खोदने से लाश का कुछ हिस्सा बाहर झांक रहा था. लिहाजा ईश्वर पंडित ने गांव वालों के साथ इस की सूचना दौराला पुलिस को दे दी.

दौराला थाने के एसएचओ इंसपेक्टर जनक सिंह चौहान तत्काल अपनी टीम के साथ लोइया गांव पहुंच गए. पुलिस ने आ कर शबी अहमद के खेत की खुदाई करवाई तो वहां वाकई एक लाश मिली. लाश किसी महिला की थी, जिस का सिर और दोनों हाथ गायब थे. शरीर पर अंतर्वस्त्र को छोड़ कर कोई भी कपड़ा नहीं था. देखने से ही लग रहा था कि शायद उस के साथ दुष्कर्म किया गया है जिस के बाद बेदर्दी से उस की हत्या कर के शव को वहां दबा दिया गया है. घटना दिल दहलाने और किसी को भी झकझोर देने वाली थी. इसलिए एसएचओ ने तत्काल उच्चाधिकारियों को सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही सीओ जितेंद्र सिंह सरगम, एसपी (सिटी) अखिलेश नारायण सिंह और मेरठ के एसएसपी अजय कुमार साहनी भी क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को ले कर मौके पर पहुंच गए. आमतौर पर पुलिस के लिए हत्या के मामले सामने आने की घटना होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. लेकिन जिस तरह से इस महिला की हत्या की गई थी, वह जरूर हैरत में डालने वाली बात थी. क्योंकि उस का सिर तथा दोनों हाथ काटने के पीछे का रहस्य किसी की समझ में नहीं आ रहा था. सिर काटने के पीछे का मकसद तो समझ में आता था कि क्योंकि चेहरा देखने से उस की पहचान हो सकती थी इसलिए कातिल ने उस का सिर काटा होगा. लेकिन उस के दोनों हाथ कंधे से काट दिए गए थे, ये सब की समझ से परे था.

शव बुरी तरह से सड़गल चुका था. इस का मतलब था कि हत्या कर के शव कई दिन पहले दबाया गया होगा. शव की हालत देखने से एक दूसरी बात भी साफ हो रही थी कि लाश के सिर और हाथ काटने वाला अपराधी बेहद क्रूर होगा तथा उसे गांव में लड़की की पहचान का डर रहा होगा. इस के बाद क्राइम टीम ने पहले डौग स्क्वायड की मदद से शव के दूसरे हिस्सों और कातिल का सुराग लगाने का प्रयास किया. लेकिन काफी समय बीत जाने के कारण शायद कातिल की गंध और शव के दूसरे हिस्सों की गंध उड़ चुकी होगी . इसलिए डिटेक्टिव कुत्तों से कोई मदद नहीं मिल सकी.

इस के बाद पुलिस ने जेसीबी मशीन और ट्रैक्टर की मदद से पूरे खेत की खुदाई करवाई लेकिन खेत में शरीर का कोई दूसरा हिस्सा बरामद नहीं हो सका. इस दौरान पुलिस की एक टीम ने लोइया गांव के लोगों को बुला कर शव दिखाया और यह जानने की कोशिश की कि कहीं इस गांव की किसी लड़की का तो ये शव नहीं है. लेकिन पता चला कि गांव से कोई महिला या लड़की गायब नहीं थी. हालांकि उस की पहचान बिना सिर के कारण कोई नहीं कर पा रहा था. एसएसपी अजय साहनी के निर्देश पर उसी दिन शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाना दौराला में अपराध संख्या भादंसं की धारा 302 पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.

सीओ जितेंद्र सिंह सरगम ने एसएचओ जनक सिंह चौहान की निगरानी में इस केस की जांच का जिम्मा एसआई एम.पी. सिंह को सौंप दिया और उन के सहयोग के लिए एसआई राजकुमार तथा कुछ पुलिसकर्मियों को नियुक्त कर दिया. शव का पोस्टमार्टम होने के बाद जांच अधिकारी ने 3 दिन तक अज्ञात महिला की लाश को अस्पताल में सुरक्षित रखवाया लेकिन आसपास के इलाके में मुनादी और समाचार पत्रों में उस लाश की जानकारी छपवाने के बाद भी जब कोई उस की पहचान के लिए नहीं आया तो पुलिस ने लावारिस के तौर पर शव का अंतिम संस्कार कर दिया.

लाश के ब्लड सैंपल और टिश्यू सैंपल सुरक्षित रख लिए गए. दौराला थाने की पुलिस अपने तरीके से इस हत्याकांड की जांच को सुलझाने के काम में लगी थी. लेकिन इस के अलावा एसएसपी अजय कुमार साहनी ने सर्विलांस टीम के इंचार्ज हैड कांस्टेबल मनोज दीक्षित को उन की टीम के साथ इस हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के काम पर लगा दिया. सर्विलांस टीम ने जांच तो शुरू कर दी, मगर पुलिस को तत्काल ऐसे साक्ष्य नहीं मिले, जिस से पुलिस मृतका की पहचान कर पाती या पुलिस के हाथ कातिल की गरदन तक पहुंचते. वक्त धीरेधीरे गुजरता रहा और लोइया गांव में मिले अज्ञात महिला के शव की फाइल पर धूल की परतें जमती रहीं. कहते हैं कातिल कितना भी चालाक हो, लेकिन एक दिन पुलिस के हाथ उस की गरदन तक पहुंच ही जाते हैं.

2 जून, 2020 को मेरठ के एसएसपी अजय साहनी के कौन्फ्रैंस कक्ष में पत्रकारों की भीड़ जमा थी. कोरोना की महामारी का संकट पूरे जोरों पर था और लौकडाउन के कारण पूरा देश अपने घरों के अंदर था. लेकिन उस दिन एसएसपी ने एक साल पहले लोइया गांव में मिली अज्ञात लड़की की हत्या के राज से परदा हटा दिया. लोइया गांव के खेत में मिली वह लाश एकता जसवाल (20) की थी और उस की हत्या लोइया गांव में रहने वाले शाकेब ने अपने भाई मुशर्रत, अपनी पत्नी इस्मत, पिता मुस्तकीम, एक अन्य भाई नावेद की पत्नी रेशमा और गांव के रहने वाले दोस्त अयान के साथ मिल कर की थी. एकता की हत्या करने वाले सभी 6 आरोपियों को सर्विलांस टीम के मुखिया मनोज दीक्षित ने अपनी टीम के कांस्टेबल शाहनवाज राणा, कांस्टेबल बंटी सिंह, महेश कुमार और सौरभ सिंह ने गहन जांच के बाद गिरफ्तार किया था.

मांबाप की एकलौती बेटी थी एकता आरोपियों से पूछताछ के बाद जब एकता की हत्या का पूरा सच सामने आया तो लव जेहाद की एक ऐसी कहानी से परदा उठा, जिस से पता चला कि बिना विचार किए अंजान लड़कों के प्रेम जाल में फंसने वाली लड़कियां किस तरह लव जेहाद का शिकार हो कर अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देती हैं. एकता जसवाल मूलरूप से हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले की तहसील डेहरा के गांव चिनौर में रहने वाले कर्मवीर जसवाल और बबीता जसवाल की एकलौती बेटी थी. एकता के पिता कांगड़ा की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर थे, जबकि मां घरेलू महिला.

मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी एकता के सपने पढ़लिख कर बड़ी नौकरी हासिल करने के थे. घर में कोई कमी नहीं थी, इसलिए मातापिता ने एकलौती बेटी की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उसे पढ़नेलिखने की पूरी आजादी दी, मनचाही जिंदगी जीने का मौका दिया. कांगड़ा में अच्छे स्कूल नहीं थे, न ही ऊंची पढ़ाई करने का माहौल, इसलिए इंटरमीडिएट करने के बाद एकता पढ़ाई करने के लिए लुधियाना आ गई और बीकौम की पढ़ाई करने के लिए एक अच्छे कालेज में दाखिला ले लिया. पढ़ाई करने के साथ एकता अपने खर्चे चलाने के लिए पार्टटाइम जौब भी करने लगी थी. धीरेधीरे उस ने बीकौम की पढ़ाई पूरी कर ली. एक साल पहले वह लुधियाना की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में काम करती थी और लुधियाना अंकुजा आनंद नगर, खब्बेवार गली नंबर 1 में बी-34 नंबर मकान में किराए का कमरा ले कर रहती थी.

यहीं पर उस की जिंदगी में पंकज सिंह नाम का एक नौजवान आया. पंकज भी एक दूसरी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में नौकरी करता था. जल्द ही पंकज तथा एकता की दोस्ती प्यार में बदल गई. पंकज संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार का युवक था. पंकज और एकता के बीच कुछ ही दिनों में इतनी प्रगाढ़ता हो गई कि एकता उस के साथ जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी. लेकिन पंकज एक ऐसा मनचला भंवरा था, इसलिए दूसरी लड़की से संपर्क में आने के बाद उस ने एकता से दूरी बना ली. एकता की समझ में नहीं आ रहा था कि उस में आखिर ऐसी कौन सी कमी है जो पंकज उसे नजरअंदाज करने लगा है. पंकज को उस ने कई बार मनाने और जानने की कोशिश की लेकिन पंकज ने हर बार उसे झिड़क दिया. एकता पर पंकज को पाने का जुनून सवार था. वह किसी भी तरह पंकज को हासिल कर के अपनी लाइफ सेटल करना चाहती थी.

पंजाब और हरियाणा ऐसी जगह है, जहां लोग टोनेटोटके और झाड़फूंक करने वाले तथाकथित तांत्रिकों पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करते हैं. एकता ने भी तांत्रिक की वशीकरण विद्या के कई किस्से सुन रखे थे, लिहाजा उस ने पंकज को अपने वश में करने के लिए किसी तांत्रिक से वशीकरण उपाय कराने का मन बनाया. एक समाचार पत्र में छपे विज्ञापन के आधार पर एक दिन उस ने फोन पर अमन नाम के एक तांत्रिक से बात की. अमन ने एकता को भरोसा दिलाया कि वह सौ फीसदी ऐसा उपाय कर देगा कि उस का आशिक पूरी तरह उस पर लट्टू हो जाएगा.

प्रेमी को वश में करने के लिए गई एकता तांत्रिक के पास  2 दिन बाद ही एकता मोतीनगर स्थित तांत्रिक अमन के औफिस पहुंची. अमन तंत्रमंत्र का काम जरूर करता था लेकिन बातचीत में वह बेहद सलीकेदार था. पहनावे और शक्लसूरत से भी वह बेहद आकर्षक था. फीस तय होने के बाद एकता ने अमन को अपनी समस्या बताई. बातों ही बातों में अमन ने यह भी जान लिया कि एकता कांगड़ा में रहने वाले अपने परिवार से दूर लुधियाना में अकेली रहती है और अपने परिवार की इकलौती लड़की है. अमन समझ गया कि एकता उस के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो सकती है. क्योंकि उस के आगेपीछे रोकटोक करने वाला कोई नहीं था.

लिहाजा अमन ने उस दिन के बाद और भी ज्यादा सलीके से रहना और बातचीत करना शुरू कर दिया. उस ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि धीरेधीरे एकता पंकज को भूल कर सिर्फ अमन के बारे में सोचने लगी. अमन और एकता के बीच कुछ ही दिनों में एक तांत्रिक और पीडि़त वाले संबंधों की जगह दोस्ती के संबंध कायम हो गए. दोनों के बीच अब घंटों तक वाट्सऐप चैटिंग, कालिंग और फोन पर बात होने लगी. धीरेधीरे एकता को अमन से बात करतेकरते इस बात का भी आभास हो गया कि अमन कम पढ़ालिखा जरूर है लेकिन जिस काम को वो करता है उस में इतना पैसा है कि वह चाहे तो लाखों कमा सकता है. जब भी समय मिलता अमन एकता को कभी किसी रेस्टोरेंट में ले जाता तो कभी सिनेमा में मूवी दिखाता.

एकता के दिलोदिमाग से अब पंकज की मोहब्बत का जुनून लगभग पूरी तरह से उतर चुका था. अमन के साथ उस की दोस्ती धीरेधीरे दीवानगी की हद तक परवान चढ़ती जा रही थी. दोनों की दोस्ती को करीब डेढ़ महीने बीत चुका था कि इसी दौरान अमन को अपने पार्टनर तांत्रिक से पैसे के लेनदेन को ले कर झगड़ा हो गया. दरअसल अमन दिलशाद नाम के जिस तांत्रिक के औफिस में काम करता था, उस के ऊपर धीरेधीरे अमन का ग्राहक पटा कर लाने का 3 लाख रुपए का कमीशन जमा हो चुका था. एक दिन हुआ यूं कि लेनदेन के इसी विवाद में अमन और दिलशाद के बीच हाथापाई हो गई.

दिलशाद ने अमन को अपने यहां से हटा दिया. इस के बाद अमन ने लुधियाना के किसी दूसरे तांत्रिक के साथ मिल कर काम शुरू कर दिया. लेकिन वहां भी एक महीने से ज्यादा अमन की नहीं पटी. क्योंकि दिलशाद की तरह वह तांत्रिक भी आसामियों से मिलने वाला सारा पैसा खुद ही हजम कर लेता था. अब उस ने मन बना लिया कि वह अंजान लोगों के इस इलाके में काम ही नहीं करेगा. उस ने करनाल जाने की तैयारी कर ली. करनाल में उस के गांव के कई लड़के तंत्रमंत्र और टोनेटोटके का काम करते थे. उस ने सोचा क्यों न वह अपने दोस्तों के सहयोग से करनाल में अपना खुद का काम शुरू करे.

लेकिन इस काम के लिए तो पैसे की जरूरत थी. अचानक उसे एकता का खयाल आया. उस ने सोचा क्यों न एकता को झांसे में ले कर उस से मोटी रकम ऐंठी जाए. करनाल छोड़ने से पहले अमन ने एकता से मुलाकात की और उसे पिछले दिनों में अपने साथ पार्टनर तांत्रिकों द्वारा किए गए धोखे के बारे में बताया. उस ने कहा कि वह करनाल जा रहा है, वहां जा कर वह कोई ठीया देख कर खुद का औफिस शुरू कर देगा. अपना काम होगा तो वह लाखों रुपए कमा लेगा. कामधंधा जमाने के बाद अमन ने एकता से शादी करने का भी वायदा कर लिया.

अमन करनाल में गांव के रहने वाले अपने दोस्तों के पास करनाल चला गया और वहां कुछ दिन में ही उस ने अपना एक दफ्तर खोल कर तंत्रमंत्र जादू टोने और वशीकरण का काम शुरू कर दिया. अमन ने किराए का एक कमरा भी ले लिया. कमरा लेने के बाद अमन ने एक दिन एकता को फोन किया. इधर अमन के करनाल जाने के बाद जैसे एकता पर मुसीबतों का दौर शुरू हो गया था. अचानक उस की नौकरी छूट गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. ऐसे में उसे अमन की बेहद याद सता रही थी. अचानक उस दिन जब अमन का फोन आया तो उसे लगा जैसे डूबते को किनारा मिल गया हो. बातचीत में एकता ने उसे बता दिया कि उस की नौकरी चली गई है और वह खुद को अकेला महसूस कर रही है.

अमन ने कहा, ‘‘अब तुम लुधियाना छोड़ो, क्योंकि यहां मैं ने अपना औफिस खोल लिया है. सामान ले कर मेरे पास चली आओ. यहीं पर तुम्हारी नौकरी का भी इंतजाम कर दूंगा. इस के बाद हम दोनों यहीं पर अपनी गृहस्थी बसाएंगें.’’

अमन की बातें सुन कर एकता भविष्य के सुनहरे ख्वाब संजोने लगी. अमन ने उसे अपना पता भेज दिया और अगले कुछ दिन बाद ही एकता लुधियाना से अपना बोरियाबिस्तर समेट कर करनाल अमन के पास पहुंच गई. 1-2 दिन साथ रहने के बाद अमन ने एकता से कहा, ‘‘देखो एकता, अगर हमें अपना भविष्य सुनहरा बनाना है और अपने काम से मोटा पैसा कमाना है तो इस के लिए हमें कुछ मोटी रकम खर्च करनी होगी ताकि हम अपने काम को बड़े स्तर से कर सकें. इसलिए अगर तुम अपने परिवार से कुछ पैसा मांग कर मेरी मदद कर सको तो हमारी आगे की जिंदगी बहुत हसीन हो जाएगी.’’

प्रेमी की मदद करने के लिए,एकता पहुंची अपने घर एकता अमन के प्यार में इस कदर दीवानी हो चुकी थी कि उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगी थी. कुछ महीने पहले जो एकता अमन के पास किसी और के वशीकरण के लिए आई थी वह अब खुद अमन के वशीकरण का शिकार हो चुकी थी. अमन की बातों का एकता पर ऐसा असर हुआ कि वह पैसे लेने के लिए अपने परिवार के पास कांगड़ा चली गई. कांगड़ा में अपने घर पहुंच कर उस ने अपनी मां बबीता को यह नहीं बताया कि वह लुधियाना छोड़ कर करनाल चली गई है. उस ने यह बताया कि अमन नाम के एक लड़के से वह प्यार करती है.

‘‘कौन है, कहां का रहने वाला है और किस जाति का है?’’ मां ने पूछा

‘‘मां ये तो पता है कि वो मेरठ का रहने वाला है, लेकिन जाति का नहीं पता वैसे जितना मैं ने उसे जाना है, अच्छी जाति का ही होगा.’’

एकता ने जिस भोलेपन से जवाब दिया उसे देखसुन कर मां बबीता ने अपना सिर पीट लिया, ‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है लड़की, जिस लडके से शादी करना चाहती है, यह तक नहीं पता कि वह किस जाति का है, गोत्र क्या है. अरे वह कुछ कामधाम भी करता है या उसे भी हमारी छाती पर ही ला कर पालेगी.’’ बबीता का पारा चढ़ने लगा.

‘‘देखो मां, वह अच्छाखासा पैसा कमाता है. लोगों की समस्याएं सुलझाता है. कंसलटेंसी का काम करता है.’’ एकता ने मां से अमन के असल कामधंधे की बात छिपा कर इस तरीके से उस के काम का परिचय दिया ताकि मां को अच्छा लगे.

‘‘देख लड़की तेरे पापा ने बड़ी मेहनत से एकएक पाई जोड़ कर तेरी शादी के लिए कुछ गहने बनवाए हैं और पैसा जोड़ा है. अब तू पढ़लिख चुकी है…बहुत हो चुका, छोड़ ये नौकरी और घर आ जा. कोई अच्छा सा लड़का देख कर तेरे हाथ पीले कर देंगे.’’ मां ने समझाया. मां का लहजा देख कर एकता भी समझ गई कि वह अमन से उस की शादी कतई नहीं करेंगी और न ही उस के लिए मातापिता से उसे कोई आर्थिक मदद मिलेगी. लिहाजा जल्दी ही एकता यह कह कर अपने घर से लुधियाना के लिए चली गई कि वह अंबाला में मामाजी के घर होते हुए लुधियाना चली जाएगी और कुछ दिन में नौकरी से सारा हिसाबकिताब कर के वापस यहां आ जाएगी.

लेकिन इस दौरान एकता ने अपने घर में मां की अलमारी में रखे करीब 3 लाख रुपए की नकदी और 12 लाख रुपए के गहने चुरा कर अपने बैग में रख लिए थे. क्योंकि वह मानती थी कि इन पैसों और गहनों पर तो उसी का अधिकार है. अब वह इन्हें जिस तरह चाहे अपने ऊपर खर्च करे. अपने ही घर से गहने और रुपया चुरा कर एकता अंबाला में अपने मामा के घर पहुंची और वहां एक रात रुकी. मामा अच्छे संपन्न व्यापारी थे. घर में रुपएपैसे और गहनों की कमी नहीं थी. उसी रात एकता ने अमन के प्यार की दीवानगी में अपने मामा के घर से करीब 2 लाख रुपए नकद और 7 लाख रुपए के गहने चुरा कर अपने बैग में रख लिए.

अगली सुबह जब तक किसी को कुछ पता चलता तब तक वह मामा के घर से लुधियाना जाने की बात कह कर निकल गई. एकता ने अपने माता और मामा के घर से करीब 25 लाख के गहने और नकदी चुरा ली थी. वह लुधियाना के बजाय सीधे करनाल पहुंच गई. एकता ने मातापिता और मामा के घर से चुराए गए नकद रुपए और गहने ले जा कर अमन के हाथों में सौंप दिए और बोली, ‘‘देखो अमन, मैं अपने घर से जेवर और रुपए चुरा कर ले तो आई हूं, लेकिन एक बात साफ समझ लो कि अब मैं अपने घर में नहीं जा सकती. मैं ने तुम पर भरोसा किया है, मेरे भरोसे का खून मत कर देना.’’

इतनी बड़ी रकम और लाखों के गहने देख कर अमन की खुशी की सीमा नहीं रही. उस ने महीनों की मोहब्बत के बाद आज पहली बार एकता को अपनी बांहों में भर लिया. उस के माथे पर एक प्यारभरी जुंबिश दे कर बोला, ‘‘कैसी बात करती हो पगली, मेरी दुनिया भी तो तुम तक ही सीमित है. तुम फिक्र मत करो, हम 1-2 दिन में ही शादी कर लेंगे और तुम्हें परिवार की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरा परिवार भी तो तुम्हारा ही परिवार है. शादी के बाद मैं तुम्हें अपने परिवार वालों के पास ले चलूंगा. देखना मेरा परिवार तुम्हें इतना प्यार देगा कि तुम दुनिया को भूल जाओगी.’’

अमन की बातें सुन कर एकता की आंखें डबडबा आईं. एकता अपनी किस्मत पर इतराने लगी क्योंकि वह तो पंकज की चाहत में अमन से मिली थी, लेकिन उसे क्या पता था कि किस्मत उस के लिए पंकज से भी अच्छा जीवनसाथी चुन चुकी है.  इधर जब एकता अपने परिवार और मामा के घर से नकदी और गहने चोरी कर के भागी तो अगले दिन तक ही उस के मातापिता और मामा के घर में पता चल गया कि वह घर से चोरी कर के भागी है. मामा और मामी एकता के मातापिता के पास पहुंचे तो उन्हें सारी बात पता चली. पूरा परिवार चिंता में डूब गया. क्या किया जाए इस पर विचार किया गया. एक बात तो साफ थी कि एकता ने अपने ही घर में चोरी करने का ये काम अमन नाम के अपने उस प्रेमी की मदद करने के लिए किया था, जिस से वह शादी करना चाहती थी.

बेटी नहीं मिली तो लिखाई थाने में गुमशुदगी परिवार ने लुधियाना जा कर एकता की तलाश करने का फैसला किया. लेकिन यह क्या, जब परिवार के लोग लुधियाना पहुंचे तो उन्हें पता चला कि एकता एक महीना पहले ही उस मकान को छोड़ कर जा चुकी थी, जहां वह रहती थी. एकता कहां गई है, किसी को भी इस बात का पता नहीं था. एकता के घर वाले समझ गए कि एकता पूरी तरह अमन नाम के लड़के के प्यार में पागल हो चुकी है. इसलिए अब एक ही चारा था कि एकता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. घर वालों ने पुलिस को यह बात तो नहीं बताई कि उन की बेटी अपने ही घर से बड़ी रकम और गहने चुरा कर भागी है, लेकिन उन्होंने लुधियाना के मोतीनगर थाने में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए पुलिस को यह जरूर बताया कि उन की बेटी किसी अमन नाम के लड़के से प्यार करती थी और शायद उसी के बहकावे में आ कर भाग गई है.

मोतीनगर पुलिस ने एकता की गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया और एक एएसआई को उस की तलाश तथा मुकदमे की जांच का काम सौंप दिया. पुलिस ने आसपास के सभी जिलों की पुलिस और नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में एकता के फोटो और गुमशुदगी से जुड़ी सभी जानकारी भेज दी. एकता जब अपने परिवार में चोरी कर के अमन के पास आई थी तब यह बात मई, 2019 की थी. दूसरी तरफ जब एकता ने करीब 25 लाख रुपए की नकदी और गहने अमन को ले जा कर दिए तो उस ने करनाल में तंत्रमंत्र का काम करने वाले अपने 5-6 दोस्तों की उपस्थिति में एकता से घर में ही एक पंडित को बुला कर हिंदू रीतिरिवाज से शादी कर ली और अगले ही दिन वह एकता को ले कर अपने गांव दौराला चला गया.

दौराला में अमन ने पहले से ही अपने कुछ परिचितों की मदद से फोन पर बातचीत कर के किराए के एक मकान की व्यवस्था भी कर ली थी. अमन और एकता के पास अपने पहनने के कपड़े तथा जरूरत का कुछ सामान था. बाकी की घरगृहस्थी का जरूरी सामान उन्होंने वहां जा कर खरीद लिया. लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि एकता से शादी के बाद भी अमन ने उस के शरीर को छुआ तक नहीं था. एकता के पूछने पर वह हमेशा यही कहता कि कुछ दिन बाद वह अपने परिवार वालों से उसे मिलाने के लिए ले जाएगा तब परिवार वालों का आशीर्वाद लेने के बाद ही वह उस के साथ सुहागरात मनाएगा. अपने परिवार और मातापिता के लिए ऐसे आदर्शवादी पति के मुंह से ये बातें सुन कर एकता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया. उसे लगा कि उस ने अमन को अपना जीवनसाथी चुन कर कोई गलती नहीं की है.

इस दौरान एकता ने अपनी मां को 1-2 बार वाट्सऐप पर मैसेज कर के यह बात जरूर बता दी थी कि उस ने अमन से शादी कर ली है और वह बहुत खुश है. साथ ही उस ने यह भी कहा कि उसे ढूंढने की कोशिश न करें. इस बीच करीब एक महीना गुजर गया. एकता को घर में अकेला छोड़ कर काम की तलाश में जाने की बात कर के अमन रोज कई घंटों के लिए कहीं चला जाता था. शाम को जब वह देर से आता तो पूछने पर एकता को यही बताता कि वह नया काम शुरू करने के लिए जगह की तलाश कर रहा है, जल्द ही उसे औफिस मिल जाएगा.

एकता से टालमटोल करता रहा अमन जब एक महीना पूरा हो गया तो एकता ने थोड़ा सख्त लहजे में अमन से पूछना शुरू कर दिया कि वह जल्द ही उसे अपने परिवार से मिला देगा और उन का आशीर्वाद ले कर उसे पत्नी का दरजा देगा लेकिन एक महीना होने के बाद भी वह न तो उसे परिवार से मिला रहा था और न ही कोई नया काम शुरू किया. इस तरह तो सारा पैसा भी खत्म हो जाएगा. एकता ने उस दिन थोड़ा सख्त लहजे में कहा कि उस ने अपने परिवार के साथ छल किया और उस पर भरोसा कर के बहुत बड़ी गलती की है. अमन को उस दिन लगा कि अब अगर उस ने एकता को जल्द ही पत्नी का दरजा नहीं दिया तो वह बगावत कर के उसे छोड़ कर चली जाएगी.

2 दिन बाद ईद का त्यौहार था. इस से एक दिन पहले अमन दोपहर को अचानक बाहर से काम निबटा कर घर पहुंचा और एकता को बांहों में भर लिया, ‘‘लो जी मैडम, आज वह खुशी का दिन आ गया, जब तुम्हें अपनी ससुराल वालों से मिलना है. जल्दी से तैयार हो जाओ, हमें गांव चलना है घरवालों के पास.’’ एकता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इस दिन का वह कितनी बेसब्री से इंतजार कर रही थी जब वह पूरी तरह अमन की हो जाएगी. एकता झटपट तैयार हो गई. अमन उसे एक आटोरिक्शा में बैठा कर अपने गांव लोइया आ गया. लेकिन यह क्या अमन तो उसे किसी मुसलिम परिवार में ले आया था.  घर में मौजूद लोगों के मुसलिम लिबास, रहनसहन और बोलचाल देख कर साफ समझ आ रहा था कि वह जिस घर में आई है, वह एक मुसलिम परिवार है.

प्रेमी की असलियत जान कर बिफर पड़ी एकता एकता ने हैरतभरी निगाहों से अमन की तरफ देखा तो अमन बोला, ‘‘अरे देख क्या रही हो, यही मेरा परिवार है. ये मेरे अब्बू हैं, ये बड़े भाईजान और ये दोनों मेरी भाभीजान हैं.’’

‘‘लेकिन अमन तुम ने तो कभी नहीं बताया कि तुम मेरे धर्म के नहीं और तुम ने तो अपना नाम अमन बताया था.’’ एकता फटी आखों से अमन को देख कर बिफरते हुए बोली.

‘‘अरे..अरे मेरी प्यारी बीवी, इस में नाराज होने की क्या बात है. भई मेरा प्यार का नाम अमन ही है, इस में मैं ने झूठ कहां बोला. हां, वैसे घर वाले मुझे शाकेब कह कर बुलाते हैं. तुम ने तो अपना घरबार मेरे लिए ही छोड़ा है अब मेरा नाम शाकेब हो या अमन, मैं हिंदू हूं या मुसलमान क्या फर्क पडता है.’’

अमन जो वास्तव में शाकेब था, उस ने बड़ी ही धूर्तता के साथ एकता के कंधों को पकड़ कर कहा.

‘‘दूर हट जाओ मुझ से. खबरदार जो मुझे छूने की कोशिश की. तुम्हारा धर्म क्या है, तुम्हारा असली नाम क्या है, मेरे लिए यह बहुत मायने रखता है. तुम ने मेरे साथ छल किया है. इसलिए भूल जाओ कि अब मैं तुम्हारे पास रहूंगी. मुझे अभी अपने घर जाना है, अपने परिवार वालों के पास जाना है. मैं ने तुम्हारे लिए उन का जो दिल दुखाया है, उन से मिल कर मैं माफी मांगना चाहती हूं. तुम्हारी खातिर मैं ने अपने ही घर में चोरी की है. उन की मेहनत की कमाई वापस लौटा कर, मैं उन से माफी मांग कर अपने पाप को कम करना चाहती हैं.’’ एकता ने एक ही सांस में अपनी सारी भड़ास अमन उर्फ शाकेब पर निकाल दी.

दूसरी तरफ शाकेब जो अब तक खुद को अमन के रूप में पेश करता रहा था. उसे लग गया कि एकता के ऊपर चढ़ा उस के सम्मोहन का जादू अब टूट गया है और मामला बिगड़ चुका है. उस ने एक ही क्षण में फैसला कर लिया कि उसे क्या करना है. उस ने किसी तरह सब से पहले एकता को शांत कराया और उस से कहा कि वह उस के साथ किसी तरह की जोरजबरदस्ती नहीं करेगा. अगर वह उस के साथ नहीं रहना चाहती तो वह ईद से अगले दिन उस के घर भेज देगा और उस ने जो गहने और पैसे दिए हैं, उसे वापस दे देगा. शाकेब उर्फ अमन ने एक दिन शांति के साथ एकता को अपने घर पर ही एक मेहमान की तरह रुकने का अनुरोध किया तो एकता भी विरोध न कर सकी. शाकेब के इरादों से अनजान एकता एक दिन के लिए उसी घर में रुकने के लिए मान गई.

इस के बाद शाकेब ने एकता का अपने पूरे परिवार से बेहद सलीके से परिचय कराया. शाकेब के परिवार में उस के पिता मुस्तकीम के अलावा 4 भाई थे, जिन में शाकेब खुद सब से छोटा था. मां का इंतकाल हो चुका था. उस से बड़े 3 भाई मुशर्रत, नावेद और जावेद हैं. शाकेब के पिता पेशे से ड्राइवर हैं जबकि चारों भाई दौराला से बाहर अलगअलग शहरों में तंत्रमंत्र और झाड़फूंक का काम करते हैं. मुशर्रत की शादी इस्मत से हुई थी, जबकि नावेद की पत्नी रेशमा है, आशिया तीसरे नंबर के भाई जावेद की पत्नी थी, जो अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल गया हुआ था. नावेद भी इन दिनों किसी अपराध में शामिल होने के कारण मेरठ जेल में बंद था.

एकता ने की अपने घर जाने की जिद एकता शाकेब के परिवार के बारे में जानने के बाद यह तो समझ गई थी कि उस का परिवार अच्छा नहीं है. शाकेब के साथ उस के गांव आने के बाद एकता को पूरी तरह आभास हो चुका था कि वह तथाकथित अमन के सम्मोहन में पड़ कर बुरी तरह फंस चुकी थी. लेकिन जिस तरह शाकेब ने उसे भरोसा दिया था कि वह ईद के अगले दिन उसे उस के पैसों के साथ सकुशल घर वापस पहुंचा देगा, उसे जानने के बाद वह सुकून महसूस कर रही थी कि चलो उसे अपनी भूल सुधारने का मौका मिल गया है.

वह किसी तरह अगले दिन मनाई जाने वाली ईद का इंतजार करने लगी, ताकि उस के खत्म होते ही वह अपने परिवार के पास वापस लौट सके. रात में एकता ने शाकेब के पूरे परिवार के साथ मिल कर खाना खाया. खाना खाने के बाद परिवार के सभी लोगों ने सोने से पहले कोल्डड्रिंक पी. शाकेब की भाभी रेशमा ने एकता को भी एक गिलास में डाल कर कोल्डड्रिंक पीने के लिए दी, जिस के बाद सभी लोग खुशनुमा माहौल में कुछ देर बात करने लगे. चंद मिनटों बाद एकता को नींद की उबासी आने लगी तो उस ने कहा कि उसे सोना है. यह सुनने के बाद सभी लोग उसे कमरे में सोने के लिए छोड़ कर बाहर चले गए.

दरअसल अब तक जो घटनाक्रम हो रहा था, वह एक एक साजिश का हिस्सा था जिसे अब अंजाम दिया जाना था. जिन दिनों अमन बना शाकेब दौराला में एकता के साथ किराए का घर ले कर रह रहा था, उस वक्त वह रोज अपने घर वालों से मिलने के लिए आता था. उस ने घर वालों को बता दिया था कि उस ने एक हिंदू लडकी को अपने जाल में फंसाया है और उस से दिखावे के लिए शादी भी कर ली है. क्योंकि उस ने लड़की को अपने बारे में यही बताया था कि वह हिंदू है.

परिवार वालों को जब ये पता चला कि एकता शाकेब के प्यार में फंसने के बाद अपने घर से करीब 25 लाख रुपए के गहने व नकदी भी चुरा कर ले आई है तो सब बहुत खुश हुए. चूंकि एक दिन तो एकता के ऊपर अमन उर्फ शाकेब के मुसलिम होने की हकीकत पता चल ही जानी थी और उस के परिवार की हकीकत भी उजागर हो जानी थी. शाकेब का परिवार यह भी जानता था कि अगर शाकेब से हिंदू लड़की एकता निकाह के लिए राजी भी हो गई तो उन की बिरादरी के लोग उन का गैरमजहब में शादी के कारण जीना हराम कर देंगे. अगर शाकेब और एकता की शादी नहीं हुई तो यह भी तय था कि वह शाकेब को दी गई अपनी सारी रकम मांग लेगी.

इसलिए शाकेब ने अपने पिता, भाई और भाभियों के साथ मिल कर पहले ही यह साजिश तैयार कर ली थी कि एकता को अपने घर ला कर उस की हत्या कर दी जाए. इस से उसे एकता की रकम भी नहीं लौटानी पड़ेगी और उस से छुटकारा भी मिल जाएगा. एकता के नशे में बेसुध हो जाने के बाद शाकेब ने उस के कपड़े उतारे और नशे की अवस्था में ही उस के शरीर से अपनी हवस की भूख शांत की. एकता के शरीर से खिलवाड़ करने के बाद बिस्तर से उठ कर अंगड़ाई लेने के बाद शाकेब बुदबुदाया, ‘‘मूर्ख लड़की तुझे मेरे साथ सुहागरात मनाने की बड़ी जल्दी थी न…चल मरने से पहले मैं ने तेरी ये ख्वाहिश भी पूरी कर दी. अब अगले जन्म में हमारी मुलाकात होगी.’’

शाकेब ने उस के बाद दूसरे कमरों में बेसब्री से इंतजार कर रहे अपने भाई, भाभियों और पिता को बुलाया. इस के बाद उन्होंने मिल कर एकता की गला दबा कर हत्या कर दी. चूंकि पूरी साजिश पहले ही तैयार कर ली गई थी. एकता की लाश को भी ठिकाने लगाना था. इस काम के लिए शाकेब ने अपने ही गांव में रहने वाले एक कम उम्र के लड़के अयान को भी अपने साथ मिला लिया था. अयान कुछ दिनों से शाकेब के साथ मिल कर तंत्रमंत्र का काम सीख रहा था. शाकेब ने उसे 20 हजार रुपए भी देने का वायदा किया. एकता की हत्या करने के बाद शाकेब ने अपने भाई, पिता और अयान के साथ मिल कर ईद पर दी जाने वाली बलि की पहले बलकटी से एकता की गरदन काट कर उसे धड़ से अलग किया. उस के बाद दोनों हाथों को कंधे से काट कर अलग किया.

दरअसल सिर और दोनों हाथ काटने की खास वजह थी. शाकेब को डर था कि अगर कल को किसी वजह से एकता का शव बरामद भी हो जाए तो उस की पहचान न हो सके. क्योंकि उस के हाथ पर उस का अपना नाम गुदा हुआ था और दूसरे पर उस ने अमन का नाम गुदवाया हुआ था. इसीलिए शाकेब ने उस के दोनों हाथ भी धड़ से अलग कर दिए थे. एकता की हत्या के बाद उस के शरीर के चारों टुकड़ों को 4 अलगअलग बोरियों में भर कर उसी रात शाकेब अपने भाई व दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर लाद कर उन्हें ठिकाने लगाने के लिए ले गए.

सब से पहले लोइया गांव में ही ईश्वर पंडित के खेत में गड्ढा खोद कर एकता के धड़ वाले हिस्से को दफना दिया गया. शव जल्द से गल जाए, इस के लिए शाकेब ने शव के ऊपर 5 किलो नमक डाल दिया और ऊपर से मिट्टी डाल दी. धड़ को ठिकाने लगाने के बाद शाकेब ने भाई व दोस्त के साथ मिल कर एकता के सिर व दोनों कटे हुए हाथों को बोरी समेत गांव के आसपास के कीचड़ भरे तालाबों के किनारे दफना दिया. अगले दिन शाकेब के पूरे परिवार ने धूमधाम से ईद मनाई. उस दिन 5 जून, 2019 थी. ईद मनाने के कुछ दिन बाद ही शाकेब फिर से करनाल में आ कर अपने दोस्तों के साथ तंत्रमंत्र के काम में लग गया.

लेकिन इस दौरान कहीं न कहीं उस के मन में एक डर भी बना रहा. वह जानता था कि एकता ने अपने परिवार को उस के बारे में बता रखा है और यह भी बता दिया है कि उस ने अमन से शादी कर ली है. इसलिए उस ने एकता के मोबाइल का सिम निकाल कर उस के वाट्सऐप तथा फेसबुक को खुद ही अपडेट करने का काम शुरू कर दिया. ताकि उस के परिवार को लगे कि एकता ठीक है. शाकेब अमन बन कर एकता के वाट्सऐप तथा फेसबुक की गैलरी में पड़ी प्रोफाइल फोटो भी चेंज करता रहता था, जिस से एकता के परिवार को लगता कि वह खुश है. कभीकभी एकता की मां उसे मैसेज करती थी, जिस का वह चैटिंग के जरिए तो एकता बन कर जवाब देता मगर जब वह उस से फोन पर बात करने के लिए कहती तो वह एकता बन कर कह देता कि सौरी मम्मी, मैं फोन पर बात नहीं करूंगी.

इधर कुछ दिन बाद 13 जून को कुत्तों ने ईश्वर पंडित के खेत में उस जगह को खोद दिया, जहां एकता की लाश को दबाया गया था. कुत्ता शव के एक हिस्से को मुंह में दबा कर जा रहा था तो गांव वालों पर ये भेद खुल गया और मामला पुलिस तक पहुंच गया. सर्विलांस टीम ने खोला केस चूंकि पुलिस को एकता की लाश का केवल धड़ मिला था, इसलिए पुलिस के सामने सब से बडी चुनौती थी कि शव की शिनाख्त कैसे की जाए. इसलिए एसएसपी अजय साहनी ने अपनी सर्विलांस टीम को जांच के काम में लगा दिया. ये टीम एसएसपी के कैंप औफिस में उन्हीं की निगरानी में काम करती है और छोटी से छोटी जानकारी के बारे में एसएसपी को ही रिपोर्ट करती है.

सर्विलांस टीम ने जब अपना काम शुरू किया तो उसे लोइया गांव या आसपास के इलाके में किसी भी महिला अथवा युवती के लापता होने की जानकारी नहीं मिली. अलबत्ता यह जरूर पता चला कि लोइया गांव के ज्यादातर नौजवान पंजाब व हरियाणा के अलगअलग स्थानों पर तंत्रमंत्र झाड़फूंक और टोनेटोटके, वशीकरण का काम करते हैं. एसएसपी के निर्देश पर सर्विलांस टीम ने एक साथ 2 तरह से विवेचना के काम को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. टीम ने सब से पहले लोइया गांव से 13 जून से एक महीने पहले तक के उन तमाम फोन नंबरों का डं डाटा एकत्र किया जो उस वक्त वहां सक्रिय थे. सर्विलांस टीम ने पंडित ईश्वर चंद के खेत के आसपास से मिले मोबाइल फोनों के डंप डाटा की जांच शुरू करनी शुरू कर दी जो एक थका देने वाली प्रक्रिया थी.

इसी के साथ सर्विलांस टीम ने डिस्ट्रिक्ट क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो और स्टेट क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में दर्ज लापता युवतियों के बारे में सूचना एकत्र करनी शुरू की. लेकिन ब्यूरो से मिले कोई तथ्य शव से मेल नहीं खा रहे थे. इस के बाद पुलिस ने यह पता लगाना शुरू किया कि इस गांव के कौनकौन से लोग दूसरे राज्यों में काम करते हैं. क्योंकि अगर मेरठ या आसपास के इलाकों की मृतक महिला होती तो अब तक उस के परिजन पुलिस से संपर्क कर चुके होते. पुलिस ने जब इस ऐंगल पर पड़ताल शुरू की तो पता चला कि करनाल और लुधियाना भी ऐसे शहर हैं, जहां इस गांव के युवक तंत्रमंत्र और वशीकरण का काम करते हैं. पुलिस की पड़ताल जब लुधियाना तक पहुंची तो उन शहरों में महिलाओं की रिपोर्ट खंगाली गई.

आखिरकार, लुधियाना पहुंची मेरठ की सर्विलांस टीम के हाथ सफलता लग गई. पुलिस को पता चला कि लुधियाना के मोतीनगर इलाके में रहने वाली करीब 20 साल की एक युवती जिस का नाम एकता है, उस के परिवार वालों ने उस की मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कराई है. युवती की मिसिंग रिपोर्ट के साथ उस का फोटो भी था और उस के परिजनों का पता व फोन नंबर भी थे. पुलिस ने परिजनों से जब संपर्क साधा तो उन्हें पता चला कि उन की बेटी एकता ने तो अमन नाम के एक लड़के से शादी कर ली है. परिजनों ने बताया कि उन की बेटी को कुछ नहीं हुआ है क्योंकि वह तो वाट्सऐप पर उन से चैटिंग करती रहती है और अपना स्टेटस भी चेंज करती रहती है.

हालांकि पुलिस निराश जरूर हो गई थी लेकिन फिर भी उस ने एकता और उस के प्रेमी अमन का मोबाइन नंबर उस के परिवार वालों से हासिल कर लिया. मेरठ आने के बाद पुलिस ने इन दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकाल कर पड़ताल शुरू कर दी तो पता चला कि एकता का फोन तो कई महीनों से एक्टिव ही नहीं है. अलबत्ता उस के नंबर पर वाट्सऐप जरूर चल रहा है. जबकि अमन का जो नंबर है वह भी लुधियाना के ही किसी फरजी पते से लिया गया था. इसलिए पुलिस ने एक बार फिर लुधियाना का रुख किया.

पुलिस ने लुधियाना में उन दफ्तरों की खाक छाननी शुरू की, जहां एकता काम करती थी. पुलिस का एकता के आखिरी दफ्तर में काम करने वाली उस की एक खास सहेली प्रीति (परिवर्तित नाम) से पता चला कि एकता जब वहां काम करती थी तो वह मोतीनगर में ही दिलशाद नाम के एक तांत्रिक के यहां काम करने वाले अमन से मिलने जाती थी. तांत्रिक दिलशाद से मिली खास जानकारी अमन के बारे में यह सुराग मिलते ही सर्विलांस टीम की बांछें खिल गईं. बस फिर क्या था, पुलिस टीम ने दिलशाद को उठा लिया. दिलशाद से अमन के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि उस के यहां अमन नाम का जो लड़का काम करता था, उस का असली नाम शाकेब था और वह अब उस के यहां काम नहीं करता. हां, दिलशाद ने इतना जरूर बताया कि अमन उर्फ शाकेब मेरठ के दौराला में लोइया गांव का रहने वाला है.

इतनी जानकारी मिलते ही पुलिस टीम उछल पडी. क्योंकि जिस कातिल को वह दुनिया भर में ढूंढ रही थी, वह तो लोइया गांव में ही मौजूद था. इस के बाद का काम बहुत आसान था. दिलशाद से जो जानकारी मिली थी, उस के आधार पर पुलिस ने लोइया गांव के शाकेब के बारे में जानकारी हासिल कर ली. 20 मई, 2020 को सर्विलांस टीम ने शाकेब को उस वक्त उस के घर से उठा लिया जब वह परिवार से मिलने के लिए गांव की तरफ जा रहा था. बाद में शाकेब ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एकता की हत्या में सहयोग करने वाले अन्य नामों का खुलासा कर दिया. जिस के बाद पुलिस ने उसी रात को दबिश दे कर शाकेब के पिता, भाई, दोनों भाभियों और उस के दोस्त अयान को गिरफ्तार कर लिया.

उसी रात पुलिस ने काल कर के एकता के घर वालों को भेज कर एकता की हत्या और उस के कातिलों के पकड़े जाने की पूरी जानकारी दे दी. घर वाले अगले ही दिन कांगड़ा से मेरठ पहुंच गए. पुलिस ने सभी आरोपियों को साथ में ले जा कर उन स्थानों की पहचान की, जहां एकता के शव के दूसरे अंग ठिकाने लगाए थे. पुलिस टीम ने उन जगहों की गहराई से छानबीन की, लेकिन एकता के शव के बाकी हिस्से कहीं नहीं मिले. दरअसल वक्त इतना बीत चुका था कि शरीर के बाकी हिस्सों का मिलना अब वैसे भी नामुमकिन था. एकता के शव की सच्चाई स्थापित करने के लिए पुलिस ने उस के परिवार के लोगों के ब्लड सैंपल लिए. पुलिस ने एकता के शव के रिजर्व रखे गए अंश से फोरैंसिक जांच के बाद डीएनए कराने की प्रक्रिया शुरू की है ताकि यह साबित किया जा सके कि लोइया गांव में जो शव मिला था वह एकता का ही था.

पुलिस ने सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उन की निशानेदही पर एकता का मोबाइल फोन, शाकेब का मोबाइल फोन, एकता के शव के टुकड़े करने में इस्तेमाल बलकटी और गड्ढा खोदने में इस्तेमाल फावड़ा बरामद कर लिया है. आरोपियों से विस्तृत पूछताछ व जांच के बाद मामले की जांच कर रहे विवेचक ने एकता हत्याकांड के मुकदमे में सबूत मिटाने की धारा 201, 147,148 व 149 भी जोड़ दी. पुलिस ने सभी आरोपियों को मेरठ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. एक साल पुराने इस ब्लाइंड मर्डर केस की गुत्थी सुलझाने वाली सर्विलांस टीम को एसएसपी अजय साहनी ने 20 हजार रुपए का पुरस्कार दिया है.

—कथा पुलिस की जांच आरोपियों के बयान और पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित

Love Crime: प्रेमी ने की खौफनाक हरकत, ‘मेरी नहीं तो किसी की नहीं’ कहकर ले ली जान

Love Crime: प्राची महाराष्ट्र के ठाणे के उपनगर किशोर नगर स्थित आनंद भवन सोसायटी में रहती थी. वह के.जी. जोशी और एन.जी. वेडकर कालेज से बीकौम द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. इस के साथ ही साथ वह घर की आर्थिक मदद के लिए ठाणे की एक प्राइवेट कंपनी में पार्टटाइम जौब करती थी. वैसे तो प्राची अकसर अपने औफिस के लिए दोपहर 1 बजे के आसपास निकलती थी, लेकिन 4 अगस्त, 2018 को शनिवार था इसलिए कालेज बंद होने के कारण प्राची 11 बजे ही औफिस के लिए निकल गई थी. प्राची हंसमुख और मेहनती युवती थी. औफिस के लोग जितना काम पूरे दिन में नहीं करते थे, उस से अधिक काम वह पार्टटाइम में कर दिया करती थी. यही कारण था कि औफिस स्टाफ और बौस प्राची की बहुत इज्जत करते थे.

उस दिन प्राची स्कूटी से जब ठाणे आरटीओ के सामने पहुंची तो आकाश ने ओवरटेक कर के अपनी मोटरसाइकिल उस की स्कूटी के आगे लगा दी. प्राची आकाश को जानती थी. अचानक ब्रेक लगाने से वह गिरतेगिरते बची. उसे आकाश की यह हरकत अच्छी नहीं लगी. इस बेहूदे कृत्य पर प्राची आकाश पर भड़क गई, ‘‘यह क्या बदतमीजी है, तुम ने इस तरह से रास्ता क्यों रोका?’’

‘‘हां, रोका है, एक बार नहीं हजार बार रोकूंगा.’’ आकाश अपनी मोटरसाइकिल स्टैंड पर खड़ी करते हुए बोला.

‘‘देखो, मैं तुम से बहस नहीं करना चाहती. मेरा रास्ता छोड़ो, मुझे औफिस के लिए देर हो रही है.’’ प्राची ने अपनी स्कूटी स्टार्ट करते हुए कहा.

‘‘अगर मैं ने रास्ता नहीं छोड़ा तो मेरा क्या कर लोगी, पुलिस के पास जाओगी? जाओ, शौक से जाओ. पुलिस के पास तो तुम पहले भी गई थी, क्या कर लिया मेरा?’’ आकाश ने प्राची की स्कूटी की चाबी निकालते हुए कहा.

‘‘देखो आकाश, बहुत तमाशा हो चुका. तुम मेरा पीछा करना बंद करो और मेरी स्कूटी की चाबी मुझे दे दो.’’

कहते हुए प्राची अपना हेलमेट सिर पर लगाने लगी. तभी आकाश ने प्राची का हेलमेट छीन कर उसे हवा में उछालते हुए कहा, ‘‘तमाशा हमारा नहीं तुम्हारा है, प्राची. आखिर तुम यह मान क्यों नहीं लेतीं कि तुम्हें मुझ से प्यार है. हम दोनों एकदूसरे के लिए बने हैं. दोनों मिल कर एक नई दुनिया बसाएंगे, जहां हमारे ऐशोआराम के सारे साधन होंगे.’’ आकाश नरम लहजे में प्राची को समझाने की कोशिश करने लगा. लेकिन प्राची ने इस की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया.

‘‘आकाश, यह तुम्हारी गलतफहमी है. मैं ने न तो तुम्हें कभी प्यार किया था और न करती हूं. यह बात मैं तुम्हें कितनी बार कह चुकी हूं. मैं पहले भी तुम्हें अपना एक अच्छा दोस्त मानती थी और आज भी मानती हूं. इस से ज्यादा तुम मुझ से और कोई अपेक्षा न रखो, समझे.’’ प्राची ने साफसाफ कह दिया.

‘‘तो क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ आकाश ने निराशा भरे शब्दों में पूछा.

‘‘हां…हां,’’ प्राची ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘हां, अब तुम मुझे भूल जाओ. तुम भी जियो और मुझे भी जीने दो.’’

‘‘प्राची, यही तो मुश्किल है. न तो मैं तुम्हें भूल सकता हूं और न तुम्हारे बिना रह सकता हूं. इस के लिए तो सिर्फ अब एक ही रास्ता बचा है…’’ कहते हुए आकाश का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

‘‘एक ही रास्ता…क्या मतलब है तुम्हारा? कहना क्या चाहते हो तुम?’’ प्राची ने पूछा.

जब आकाश को लगा कि प्राची मानने वाली नहीं है और न ही वह उस की बात को तवज्जो दे रही है तो गुस्से में वह अपना संयम खो बैठा. उस ने तय कर लिया कि प्राची अगर उसे प्यार नहीं करती तो वह उसे किसी और से प्यार करने के लिए भी नहीं छोड़ेगा. यह सोचते हुए उस ने अपनी पैंट की जेब से चाकू निकाल लिया और यह कहते हुए उस पर हमला कर दिया कि अगर वह उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. प्यार की आग में जल रहे आकाश ने प्राची के ऊपर इतनी ताकत से अनेक वार किए कि उस के चाकू का फल टूट कर जमीन पर गिर गया. इस के बाद वह आत्महत्या करने के मकसद से सड़क के दूसरी तरफ से आती हुई राज्य परिवहन निगम की बस के सामने कूद गया.

गनीमत यह रही कि बस के ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगा दिए, जिस से वह बच गया. उस के सिर में हलकी सी चोट आई थी. वह फटाफट उठा और वहां से औटो पकड़ कर फरार हो गया. भीड़ ने बस तमाशा देखा भीड़भाड़ भरे इलाके में फिल्मी स्टाइल से घटी इस घटना को वहां से गुजर रहे लोगों ने देखा था. लेकिन भीड़ में से कोई भी उस की मदद के लिए आगे नहीं आया, बल्कि कुछ लोग तो अपने मोबाइल से फोटो खींचने और वीडियो बनाने में लग गए. हद तो तब हो गई, जब जमीन पर घायलावस्था में पड़ी प्राची दर्द से कराहती और तड़पती रही. उसे उस समय अस्पताल ले जाने वाला कोई नहीं था.

किसी दूसरे शहर से आए 3 लोगों ने जब प्राची को सड़क पर लहूलुहान देखा तो वह उसे अस्पताल ले जाने की कोशिश करने लगे. लेकिन कोई औटो और टैक्सी वाला तड़प रही प्राची को अपनी गाड़ी में ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ. किसी तरह वे तीनों एक प्राइवेट वाहन से प्राची को जब करीब के अस्पताल ले कर पहुंचे तो वहां के डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. यह घटना थाणे के नौपाड़ा पुलिस स्टेशन इलाके में घटी थी. इस बीच किसी ने इस मामले की जानकारी नौपाड़ा के थानाप्रभारी चंद्रकांत जाधव को दे दी थी. थानाप्रभारी चंद्रकांत जाधव बिना देर किए सहायक इंसपेक्टर धुमाल और इंसपेक्टर सोडकर के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. वहां अपने एक अधिकारी को तैनात कर के वह क्रिटिकेयर सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल रवाना हो गए.

थानाप्रभारी चंद्रकांत जाधव ने इस मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों और थाणे पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. अस्पताल पहुंच कर थानाप्रभारी ने डाक्टरों से बात की और प्राची के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. प्राची के गले और शरीर पर चाकू के 7-8 गहरे घाव थे. डाक्टरों ने बताया कि प्राची को अगर समय रहते अस्पताल लाया गया होता तो शायद वह बच सकती थी. प्राची के पास से मिले कालेज के परिचय पत्र से प्राची के घर का पता मिल गया था. पुलिस ने यह जानकारी प्राची के घर वालों को दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही पिता विकास जाडे सन्न रह गए, घर में रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी का डर था, आखिर वह हो ही गई. घर वाले जिस हालत में थे, उसी हालत में क्रिटिकेयर अस्पताल की ओर दौड़े.

अस्पताल पहुंचने पर पुलिस ने उन्हें सांत्वना दे कर कुछ पूछताछ की. पर प्राची के परिवार वालों ने थानाप्रभारी चंद्रकांत जाधव को बताया कि उस की हत्या आकाश ने की होगी. क्योंकि आकाश ही एक ऐसा युवक था, जो उन की बेटी को एकतरफा प्यार करता था. आए दिन वह उसे परेशान किया करता था. प्राची के परिवार वालों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी. सरेराह घटी घटना से पुलिस भी रह गई हैरान घटनास्थल का मंजर काफी मार्मिक और डरावना था. उस मंजर को जिस ने भी देखा, उस का कलेजा कांप उठा. घटनास्थल पर खून में सना टूटा हुआ चाकू पड़ा था. वहीं पर मृतका की स्कूटी और आकाश की पल्सर बाइक खड़ी थी. उसी समय थाणे के पुलिस कमिश्नर विवेक फणसलकर, डीसीपी डा. डी.एस. स्वामी, एसीपी अभय सायगांवकर मौकाएवारदात पर आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने सरसरी तौर पर घटनास्थल का मुआयना कर थानाप्रभारी चंद्रकांत जाधव को आवश्यक दिशानिर्देश दिए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के घटनास्थल से सबूत एकत्र किए. मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी थाने लौट आए. वह प्राची के पिता विकास जाडे को भी साथ ले आए थे. उन की तहरीर पर उन्होंने आकाश के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. दिनदहाड़े दिल दहला देने वाली इस वारदात से इलाके के लोगों में दहशत फैल गई थी. आरोपी आकाश की तलाश के लिए डीसीपी ने 5 पुलिस टीमों का गठन किया. सभी टीमों को अलगअलग जिम्मेदारी सौंपी गई.

आकाश पवार भिवंडी के नारपोली थाने के अंतर्गत आने वाले गांव कल्हार का रहने वाला था. थाना नारपोली के थानाप्रभारी सुरेश जाधव सबइंसपेक्टर संजय गलवे, हैडकांस्टेबल संजय भोसले, सत्यवान मोहिते कोली और नंदीवाल को ले कर संजय के घर गए. लेकिन वह घर से फरार मिला. बाद में टीम ने अपने मुखबिरों की इत्तला पर कुछ ही घंटों में आकाश को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. उस के सिर में हलकी सी चोट लगी थी, जिस का उपचार करवा कर पुलिस टीम उसे थाना नौपाड़ा ले आई और उसे थानाप्रभारी चंद्रकांत जाधव को सौंप दिया. आकाश ने बिना किसी दबाव के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस तफ्तीश और आकाश पवार के बयानों के आधार पर प्राची जाडे हत्याकांड की दिल दहला देने वाली जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

वर्षीय आकाश पवार एक साधारण लेकिन भरेपूरे परिवार का युवक था. उस के पिता का नाम कुमार पवार था. वह मुंबई की एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते थे, जहां उन की अच्छीखासी सैलरी और मानसम्मान था. परिवार में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. परिवार की गाड़ी बड़े ही आराम से चल रही थी. आकाश परिवार में सब से छोटा था. इसलिए परिवार के सभी सदस्य उसे बहुत प्यार करते थे. इसी वजह से वह जिद्दी बन गया था. वह जिस चीज की हठ करता था, उसे ले कर ही मानता था. आकाश सुंदर और स्मार्ट था. इस के अलावा वह फैशनपरस्त और दिलफेंक था. लेकिन पढ़ाई में उस का मन नहीं लगता था. बीकौम पहले साल में फेल हो जाने की वजह से कालेज प्रशासन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस के बाद भी वह अपने आवारा दोस्तों से मिलनेजुलने कालेज परिसर में आताजाता रहता था.

करीब 3 साल पहले 2015 में प्राची जाडे और आकाश पवार तब मिले थे, जब दोनों ने इंटरमीडिएट कक्षा में दाखिला लिया था. आकाश पहली ही नजर में प्राची का दीवाना हो गया था. इस के बाद वह प्राची के करीब जाने की कोशिश करने लगा. 65 वर्षीय विकास जाडे कोपरी पुलिस थाने के पास अपने 6 सदस्यों वाले परिवार के साथ रहते थे. उन की किराने की दुकान थी, जो अच्छीखासी चल रही थी. दुकान की आय से परिवार का आसानी से भरणपोषण हो रहा था. उन की चारों बेटियां परिवार के लिए मिसाल थीं. क्योंकि वे सभी अपने काम से काम रखती थीं. विकास जाडे के लिए उन की बेटियां ही सब कुछ थीं. इसलिए वह अपनी बेटियों की पढ़ाईलिखाई पर अधिक ध्यान देते थे.

जुनूनी आशिक था आकाश 20 वर्षीय प्राची चारों बेटियों में दूसरे नंबर की थी. वह अपनी तीनों बहनों से कुछ अलग थी. नरमदिल, चंचल स्वभाव और आधुनिक विचारों वाली प्राची किसी से भी बेझिझक बातें कर लिया करती थी. उस की मीठीमीठी बातें सब के दिल को छू लेती थीं. प्राची जितनी पढ़ाईलिखाई में होशियार थी, उतनी ही खेलकूद में निपुण थी. लंबी दौड़, ऊंची कूद में उसे बहुत रुचि थी. इस के अलावा वह स्कूल और कालेज के हर प्रोग्राम में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. वह चाहती थी कि अगर उस की मौत हो जाए तो उस की आंखें दान दे दी जाएं. ताकि उस के न रहने पर उस की आंखों से कोई और यह संसार देखे. और ऐसा ही हुआ. उस की आंखें बेकार नहीं गईं. उस के मातापिता ने आंखें नेत्र बैंक को दान कर दीं.

चूंकि आकाश प्राची के कालेज का साथी था, इसलिए उस की आकाश से दोस्ती हो गई. लेकिन वह दोस्ती सिर्फ औपचारिकता भर थी. प्राची आकाश को सिर्फ अपना दोस्त मानती थी और उस के साथ हंसतीबोलती व घूमतीफिरती थी. लेकिन आकाश पवार ने उस की दोस्ती का अलग ही मतलब निकाल लिया था. प्राची जब भी आकाश के सामने आती तो आकाश के दिल की धड़कनें तेज हो जाती थीं. प्राची का सुंदर मन रंग और रूप उस की आंखों में समा जाता था. और तो और वह प्राची को ले कर अपने जीवन के रंगीन सपनों में खो जाता था. प्राची और आकाश की दोस्ती प्राची और आकाश की दोस्ती को धीरेधीरे 5 साल से अधिक का समय हो गया था.

जब आकाश आवारा लड़कों के साथ घूमनेफिरने लगा तो प्राची ने उस से दूरी बना ली. इसी बीच आकाश बीकौम फर्स्ट ईयर में फेल हो गया तो प्राची ने आकाश से अपनी दोस्ती पूरी तरह खत्म कर ली. खुद को व्यस्त रखने के लिए उस ने एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर ली थी. प्राची के इस रवैए से आकाश को गहरा धक्का लगा. वह उसे प्यार करता था. अपनी जिंदगी से उसे ऐसे जाने नहीं देना चाहता था. प्राची का पीछा कर के वह उस से बात करने की कोशिश करता था. बात न करने पर वह प्राची को तरहतरह की धमकियां देता था. हद तो तब हो गई जब 11 जून, 2018 कालेज परिसर में उस ने प्राची को अपने एक क्लासमेट के साथ बातें करते देख लिया. आकाश को यह अच्छा नहीं लगा. वह वहीं पर प्राची पर भड़कते हुए बोला, ‘‘देख प्राची, अगर तूने मुझ से दोस्ती तोड़ी तो बहुत बुरा नतीजा होगा. तू मेरी है और मेरी ही रहेगी. मैं तुझे किसी और की नहीं होने दूंगा. खत्म कर दूंगा तुझे.’’

आकाश पवार की इस धमकी से प्राची बुरी तरह डर गई थी. धमकी वाली बात प्राची ने अपने परिवार वालों को बताई तो प्राची के पिता विकास जाडे ने उसी दिन कापूरवाड़ी पुलिस थाने में आकाश पवार के खिलाफ शिकायत कर दी. लेकिन पुलिस ने उस पर कोई कड़ी काररवाई नहीं की. इस की जगह पुलिस ने आकाश पवार से माफीनामा लिखवा कर उसे छोड़ दिया. प्राची जाडे और उस के परिवार वालों के इस कदम से आकाश पवार की हिम्मत और बढ़ गई. उस ने एकदो बार प्राची से मिलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ. इस से उस का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और उस ने प्राची के प्रति एक क्रूर फैसला ले लिया. बाजार जा कर वह एक लंबे फल का चाकू खरीद लाया.

घटना के दिन आकाश पवार ने प्राची का पीछा कर रास्ता रोक लिया और वादविवाद के बाद जेब में छिपा कर लाए चाकू से प्राची पर हमला कर उस की हत्या कर दी. पुलिस जांच और आकाश पवार के बयान से पता चला कि मामला एकतरफा प्यार का था. आकाश पवार की गिरफ्तारी के बाद सड़कों पर कई सामाजिक संस्थाएं उतर गईं. उन्होंने प्राची जाडे की हत्या पर शोकसभा कर के कैंडल मार्च निकाला.

Love Crime: भाभी पर देवर का जानलेवा हमला, गोली मारकर की हत्या

Love Crime: सियाराम के तीसरे नंबर के बेटे अनिल कुमार उर्फ बंटू की पत्नी सोनी उर्फ सुनीता ने शादी के डेढ़ साल बाद बेटे को जन्म दिया था. अनिल ने जब फोन कर के यह खुशखबरी गांव में रह रहे अपने पिता को दी तो पूरे परिवार में खुशी छा गई. घर में जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गईं. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अनिल भी पत्नी सोनी और नवजात शिशु के साथ गांव आ गया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि परिवार की खुशियों को अचानक ऐसा ग्रहण लगेगा कि 2-2 लाशें बिछ जाएंगी.

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना नगला खंगर क्षेत्र में एक गांव है गलपुरा. इस गांव में रहने वाले सियाराम के 5 बेटे हैं, इन में 3 बेटों राजेश, संजय व अनिल कुमार उर्फ बंटी की शादी हो चुकी थी, जबकि 19 साल का श्यामगोपाल उर्फ बबलू व सब से छोटा लवकुश अभी अविवाहित थे. बड़े बेटे राजेश की सीमा से, संजय की विनीता से और अनिल उर्फ बंटी की शादी सोनी से हुई थी. 22 साल की सोनी की शादी डेढ़ साल पहले ही अनिल के साथ हुई थी. संजय की पत्नी विनीता और अनिल की पत्नी सोनी सगी बहनें थीं. दोनों का मायका जिला इटावा के थाना जसवंतनगर क्षेत्र के गांव बनामई में था.

13 अगस्त, 2018 को सोमवार था. परिवार के लोग सुबह ही खेत पर धान की रोपाई करने चले गए थे. बहू विनीता कुछ देर पहले ही घर वालों के लिए खाना ले कर खेत पर गई थी. घर में केवल लवकुश और उस की भाभी सोनी ही थे. अचानक घर के अंदर से गोली चलने की आवाज आई. कोई कुछ समझ पाता इस से पहले ही घर के अंदर से लवकुश का बड़ा भाई श्यामगोपाल उर्फ बबलू तेजी से बाहर निकला, उस के हाथ में तमंचा था. घर से 10-12 कदम की दूरी पर गली में पहुंचते ही उस ने अपने सिर में गोली मार ली. गोली लगते ही वह रास्ते में गिर गया. उस के सिर से खून बह रहा था.

गोलियां चलने की आवाज सुन कर गांव में सनसनी फैल गई. सियाराम के घर के बाहर गांव वालों की भीड़ लग गई. घर के अंदर बबलू की भाभी सोनी और घर के बाहर देवर बबलू की लहूलुहान लाशें पड़ी थीं. बबलू की लाश के पास ही .315 बोर का तमंचा भी पड़ा था. बबलू ने अपनी भाभी सोनी को गोली मार कर हत्या करने के बाद खुद को गोली मार ली थी. सियाराम के दूसरे नंबर के बेटे संजय की शादी विनीता के साथ हुई थी. शादी के समय संजय की साली सोनी और भाई बबलू जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे थे. कभीकभी बबलू अपनी भाभी को विदा कराने उस के मायके बनामई जाता था.

वहीं पर सोनी और बबलू की नजरें एकदूसरे से टकरा गईं. बबलू को सोनी अच्छी लगी. सुंदर, चंचल और अल्हड़ सोनी को भी गठे बदन का बबलू मन भा गया. कुछ ही मुलाकातों में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे. दोनों के बीच काफीकाफी देर तक प्यार भरी बातें होने लगीं. बातों के बीच चुहलबाजी भी खूब होती. दोनों ही एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. एक दिन अकेले में मौका पा कर बबलू ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘इस जन्म में ही नहीं, हम 7 जन्मों तक साथ रहेंगे.’’

दोनों ने एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाईं. प्यार के इजहार के बाद दोनों भविष्य के इंद्रधनुषी सपने संजोने लगे. अब दोनों को केवल सही वक्त का इंतजार था. सोनी और बबलू अपने प्यार की पीठ पर सवार हो कर भविष्य के सपने देख रहे थे. लेकिन इसी बीच सोनी की बड़ी बहन विनीता को अपने देवर और बहन के बीच पनपे प्रेम की खबर लग गई. विनीता ने यह बात घरपरिवार के लोगों को बता दी. कच्ची उम्र के दोनों प्रेमी कोई ऐसा भी कदम उठा सकते थे, जिस से परिवार की बदनामी हो. इसलिए उन लोगों ने सोनी की शादी बबलू के बड़े भाई अनिल से तय कर दी. बबलू चाह कर भी इसलिए कुछ नहीं कर सका, क्योंकि शादी दोनों परिवारों की मरजी से तय हुई थी.

दरअसल सोनी के घर वालों को मालूम था कि बबलू सोनी से उम्र में छोटा तो है ही, गुस्सैल स्वभाव का भी है. वह शराब भी पीता था. जबकि अनिल की हेयर कटिंग की दुकान थी, जिस से वह ठीकठाक पैसा कमा लेता था. दूसरी ओर सोनी और बबलू के दिलों में बराबर की आग लगी थी. बबलू इस इंतजार में था कि भाई अनिल की शादी हो जाने के बाद वह अपनी प्रेमिका सोनी से शादी करेगा. लेकिन अचानक ऐसी स्थिति बन जाएगी, इस बारे में उस ने सोचा तक नहीं था.

सोनी ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि उसे अपने प्रेमी बबलू के घर उस के भाई की पत्नी बन कर जाना पड़ेगा. उस के दिल के अरमान आंसुओं में बह गए थे. मजबूरी में उस ने दिल पर पत्थर रख लिया. अंतत: अनिल और सोनी की शादी हो गई. सोनी बबलू की भाभी बन कर उसी के घर में आ गई थी. प्रेमिका की शादी बड़े भाई से हो जाने की वजह से बबलू पूरी तरह टूट गया. वह चोरीछिपे सोनी से अपने प्यार का इजहार करता, लेकिन उस की ओर से अब कोई जवाब नहीं मिलता था. घर में सोनी के जेठजेठानी, बहन, ससुर, सास जावित्री के अलावा छोटा देवर लवकुश भी था. एक तो संयुक्त परिवार, दूसरे बदनामी का डर, इसलिए सोनी ने शादी के बाद बबलू के प्यार को हवा नहीं दी.

इस से बबलू परेशान रहने लगा. वह बिन पानी की मछली की तरह तड़प रहा था. गुस्सेबाज तो वह था ही, ऐसी स्थिति में उस का गुस्सा और भी बढ़ गया. घर हो या बाहर वह किसी से भी उलझ पड़ता था. अब गांव में बबलू का मन नहीं लगता था. घर वालों के कहने पर बबलू गुड़गांव की एक कंपनी में काम करने चला गया. बबलू घर से दूर जरूर चला आया, लेकिन सोनी की यादों को दिल से दूर नहीं कर सका. उस के साथ बिताए पल उसे याद आते रहते थे. सोतेजागते उस की आंखों के सामने सोनी की तसवीर घूमती रहती थी. वह चाहता था कि सोनी को भूल जाए, लेकिन चाह कर भी वह उसे भुला नहीं पा रहा था.

इसी बीच अनिल अपनी पत्नी सोनी को ले कर सिरसागंज चला गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. सिरसागंज में अनिल की हेयर कटिंग की दुकान भदान रेलवे फाटक के पास थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. शादी के डेढ़ साल बाद सोनी ने बेटे को जन्म दिया. इस की जानकारी उस ने गांव में रह रहे अपने परिवार को दी, तो सभी खुश हुए. उन्होंने जश्न मनाने की तैयारी शुरू कर दी. घटना से 20 दिन पूर्व अनिल अपनी पत्नी व 25 दिन के बच्चे के साथ गांव आ गया. उधर घर में सोनी के आ जाने की जानकारी मिलने पर बबलू भी गुड़गांव से गांव आ गया. घर पहुंचते ही उस की नजर भाभी बनी सोनी से मिली तो दिल में समाई पुरानी यादें फिर से ताजा हो गईं.

बच्चे को गोद में ले कर उस ने खूब प्यार किया. एक दिन अकेले में मौका मिलने पर जब उस ने सोनी के सामने अपने प्यार का वास्ता दिया तो सोनी ने उस का कड़ा विरोध करते हुए पुरानी बातें भूल जाने को कहा. बबलू को सोनी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. प्रेमिका रह चुकी सोनी की इस बेरुखी से बबलू अंदर तक टूट गया. बबलू को गुड़गांव से आए अभी कुछ दिन ही हुए थे. 13 अगस्त की सुबह 7 बजे सोनी ने लंच बना कर अपने पति अनिल को दिया. लंच ले कर अनिल अपनी कटिंग की दुकान पर चला गया. परिवार के सदस्य खेत पर धान की रोपाई करने गए हुए थे. सियाराम की पत्नी जावित्री 8 दिन पहले अपनी बेटी की ससुराल गांव दौकेली चली गई थी.

जावित्री की बेटी गर्भवती थी, इस लिए उस ने मदद के लिए मां को अपने पास बुला लिया था. उस दिन बबलू सुबह ही घर से निकल कर गांव में घूमने चला गया था. सोनी और उस की बहन विनीता ने मिल कर खाना बनाया. विनीता सभी के लिए खाना ले कर खेतों पर चली गई. छोटा देवर लवकुश कमरे में बैठा खाना खा रहा था. उस समय 10 बजे थे. सुनीता उर्फ सोनी हैंडपंप से पानी भर रही थी. वह एक बार पानी भर कर अंदर रख आई थी. दूसरी बार जब वह पानी लेने जा रही थी तभी बबलू घर आ गया. घर में आते ही उस ने आंगन में खड़ी सोनी के सामने गुस्से में बीती बातों को दोहराया. इस पर सोनी ने झुंझलाते हुए कहा कि तुम्हें घर और समाज में इज्जत से रहना है तो बीती बातों को भूलना होगा.

सोनी के इतना कहते ही बबलू ने अपनी कमर में खोंसा हुआ तमंचा निकाला और उस की कनपटी पर लगा कर गोली चला दी. गोली लगते ही सोनी कटे पेड़ की तरह आंगन में गिर पड़ी. बबलू ने जैसे ही दोबारा तमंचे में कारतूस डालने का प्रयास किया, कमरे में खाना खा रहा छोटा भाई लवकुश चीखता हुआ उस की तरफ दौड़ा और उसे रोकने की कोशिश की. इस पर बबलू तमंचा लोड कर के घर के बाहर भागा और घर से 10-12 कदम चलते ही उस ने तमंचे से अपने सिर में गोली मार ली. गोली लगते ही वह गिर कर ढेर हो गया.

गांव वालों ने इस घटना की सूचना पुलिस और बबलू के घर वालों को दी. जब यह खबर खेत पर पहुंची, तब सभी लोग खाना खा रहे थे, घर पर खूनी खेल खेला जाएगा इस का उन्हें अंदाजा नहीं था. सभी खाना छोड़ कर घर की ओर दौड़े. उधर कुछ गांव वालों ने अनिल की दुकान पर जा कर उस की पत्नी की हत्या की जानकारी दी. अनिल दुकान बंद कर के आ गया. सूचना मिलते ही नगला खंगर के थानाप्रभारी दीपक चंद्र दीक्षित, क्षेत्राधिकारी सिरसागंज अजय कुमार चौहान घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस वारदात की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एसएसपी फिरोजाबाद सचिंद्र पटेल, एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह गांव गलपुरा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथसाथ गांव वालों व घर वालों से घटना की विस्तार से जानकारी ली.

पुलिस ने आंगन में पड़ी सोनी की लाश के पास से खाली कारतूस तथा बबलू की लाश के पास से तमंचा व उस में फंसा खोखा जब्त कर लिया. मृतका का पति अनिल जब गांव पहुंचा तो घर पर पुलिस व गांव वालों की भीड़ मौजूद थी. जावित्री को भी सूचना दे कर बुला लिया गया था. जावित्री ने जैसे ही बहू सोनी की लाश देखी तो वह उस से लिपट कर रोने लगी. गांव वालों के अनुसार बबलू सोनी को गोली मारने के बाद उस की लाश पर ही खुद को गोली मारना चाहता था, लेकिन भाई लवकुश के शोर मचाने पर उस ने घर के बाहर जा कर आत्महत्या कर ली.

घटना के संबंध में अनिल ने अपने भाई बबलू के खिलाफ अपनी पत्नी सोनी की हत्या की रिपोर्ट भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत थाना नगला खंगर में दर्ज कराई. पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. बबलू के सिर इश्क का जुनून इस कदर हावी था कि वह अपना पराया कुछ भी नहीं सोच पा रहा था. इसी के चलते उस ने यह घातक कदम उठाया. उस ने भाई की बसीबसाई गृहस्थी तो उजाड़ी ही, उस के दुधमुंहे बच्चे से उस की मां भी छीन ली.

सोनी को बेटा पैदा होने पर सियाराम के परिवार में खुशियां मनाई जानी थीं, लेकिन परिवार की खुशियों में 2-2 मौतों से ग्रहण लग गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: लुटेरी दुल्हन – 4 शादियां और लाखों की ठगी

Crime Story: छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक उलझे हुए और चौंकाने वाले मामले का परदाफाश किया है, जिस में एक जवान लड़की और उस की मां को 4 अलगअलग मर्दों से शादी कर के उन्हें ठगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

यह मामला राजधानी रायपुर का है. पुलिस अफसर लाल उम्मेद सिंह के मुताबिक, आरोपी जवान लड़की, जिस की पहचान पूजा देवांगन उर्फ गीतांजलि के रूप में हुई है, ने अपनी मां गायत्री देवांगन के साथ मिल कर कई मर्दों को अपने रूपजाल में फंसाया और उन से लाखों रुपए के गहने और नकदी ठग ली.

सोशल मीडिया से शिकार

पुलिस को जांच में पता चला है कि पूजा देवांगन सोशल मीडिया प्लेटफार्म और औनलाइन वैवाहिक साइटों का इस्तेमाल कर के अपने भावी दूल्हों (शिकारों) को ढूंढती थी. वह आकर्षक प्रोफाइल बना कर और खुद को एक संस्कारी और सुशील लड़की के रूप में पेश कर के मर्दों को अपनी ओर खींचती थी. इस के बाद वह उनसे दोस्ती करती थी और धीरेधीरे उन्हें अपने प्रेमजाल में फंसा लेती थी.

एक बार जब मर्द पूजा देवांगन के जाल में फंस जाते थे, तो वह उन से शादी करने का दबाव डालती थी. शादी के बाद पूजा और उस की मां पीड़ितों से दहेज की मांग करती थीं और तथाकथित पति और उन के परिवारों को सताती थीं. कुछ मामलों में पूजा देवांगन पीड़ितों के घरों से कीमती गहने और नकदी चुरा कर फरार हो जाती थी.

कई पीड़ित आए सामने

पुलिस के मुताबिक, जांच में यह भी पता चला है कि पूजा देवांगन ने साल 2015 से साल 2023 के बीच 4 अलगअलग मर्दों से शादी की थी. उस के पहले पतियों के नाम उमेश देवांगन, पुरुषोत्तम देवांगन और लोकनाथ देवांगन हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि पूजा देवांगन ने अपने पहले पतियों से तलाक लिए बिना ही शुभम देवांगन से चौथी शादी की थी.

इस मामले का खुलासा तब हुआ जब शुभम देवांगन ने मुजगहन थाने में पूजा देवांगन और उस की मां के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. शुभम देवांगन के मुताबिक, पूजा देवांगन ने शादी के बाद उस से दहेज की मांग की और उसे और उस के परिवार को सताया. उस ने यह भी आरोप लगाया कि पूजा देवांगन ने उस के घर से तकरीबन 5 लाख रुपए के गहने चुरा लिए थे और फरार हो गई थी.

पुलिस ने शिकायत के आधार पर जांच शुरू की और पूजा देवांगन और उस की मां को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन के पास से चोरी किए गए गहने और नकदी भी बरामद की.

पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे औनलाइन वैवाहिक साइटों और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अजनबियों से सावधान रहें और किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बचें.

Love Crime: इश्क में डूबा शादाब, विवाहिता के इश्क ने ले ली जान!

Love Crime: सुबह के 10 बज रहे थे. बरसात का मौसम होने के कारण उस दिन सुबह से ही उमस भरी गरमी पड़ रही थी. अफजाल उस समय अपने ड्राईंगरूम में बैठा चाय पी रहा था. जैसे ही उस ने चाय का प्याला खाली कर के रखा तो अचानक उस के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी थी.

कौन है?’’ अफजाल ने पूछा

मैं हूं भाईजान, सावेज.’’ बाहर से आवाज आई.

अरे सावेज, तुम? अंदर आ जाओ.’’ यह कहते हुए अफजाल ने दरवाजा खोल दिया था.

इस के बाद सावेज अंदर आ कर अफजाल के पास बैठ गया था. सावेज अफजाल का छोटा भाई था. अफजाल की बीवी मरजीना ने जब सावेज को आया देखा था तो वह उस के लिए चाय बनाने किचन में चली गई थी. इस के बाद अफजाल व सावेज एकदूसरे का हालचाल पूछने लगे थे और आपस में बातें भी करने लगे थे.

अचानक सावेज बोला, ”भाई, तुम ने भाभी मरजीना के बारे में कुछ सुना है?’’

हां सावेज, रिश्तेदारी और मोहल्ले में जो बातें फैल रही हैं, मैं उस से बाकायदा वाकिफ हूं. पड़ोसी कस्बे मंगलौर के रहने वाले शादाब द्वारा समाज व रिश्तेदारी में हमें बदनाम किया जा रहा है, जिस से हम समाज में सिर उठा कर जी न सकें.’’ अफजाल बोला. 

मगर यह बात भी भाभी मरजीना द्वारा ही शुरू की गई थी. भाभी को रील बनाने की और उसे फेसबुक पर लोड करने की आदत थी तथा वह अपनी आदत के चलते पड़ोस के युवक शादाब से दिल लगा बैठी थी. इस के बाद भाभी उस के साथ लिवइन में रहने लगी थी.’’ सावेज बोला.

तेरी भाभी के शादाब के साथ लिवइन में रहने के कारण हमें कस्बा मंगलौर छोडऩा पड़ा था. इसी कारण हमें वहां से 10 किलोमीटर दूर यहां रुड़की में आ कर रहना पड़ रहा है. मैं जानता हूं कि तेरी भाभी पहले रंगीली तबियत की थी, मगर अब तो शादाब हमें लगातार बदनाम करने में लगा है. अब हम कैसे अपनी इज्जत बचाएं?’’ अफजाल बोला.

तुम इस की चिंता मत करो भाईजान, मैं ने इस का रास्ता ढूंढ लिया है. हमें शादाब को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाना पड़ेगा. भाभी मरजीना से कहेंगे कि वह फोन कर के शादाब को अपने घर बुला ले. इस के बाद हम उसे घेर लेंगे. फिर हम तीनों उस की गला दबा कर हत्या कर देंगे. फिर यह मामला खुद ही शांत हो जाएगा.’’ सावेज बोला.

मगर शादाब की हत्या के बाद उस की लाश को हम लोग कहां छिपाएंगे? ”अफजाल ने पूछा.

तुम उस की चिंता मत करो. यह काम मुझ पर छोड़ दो भाईजान. शादाब की लाश को हम बोरे में डाल कर पास में बह रही गंगनहर में रात में ही फेंक देंगे. इस के बाद किसी को भी पता नहीं चलेगा कि शादाब कहां चला गया.’’

कैसे रची मौत की साजिश

सावेज की इस योजना पर अफजाल व मरजीना ने अपनी मुहर लगा दी थी और वे तीनों अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने की फिराक में लग गए थे. शादाब के साथ लिवइन में पहले तो मरजीना रहती थी, मगर मंगलौर में अपनी हो रही बदनामी की वजह से वह रुड़की रेलवे स्टेशन के पास की कालोनी तेलीवाला में अपने पति व देवर के साथ आ कर रहने लगी थी. मरजीना का शौहर बिजली मैकेनिक था.

वह 23 अगस्त, 2024 की सुबह थी. उस वक्त सुबह के 11 बज रहे थे. कोतवाली मंगलौर के कोतवाल शांति कुमार उस वक्त अपने औफिस में बैठे फाइलों पर हस्ताक्षर कर रहे थे. उस वक्त मंगलौर के मोहल्ला मलकपुरा निवासी 55 वर्षीय मुस्तकीम कोतवाल से मिलने पहुंचा था. उस वक्त मुस्तकीम के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं और वह घबराया हुआ सा लग रहा था. मुस्तकीम ने कोतवाल को बताया कि उस का 24 वर्षीय बेटा शादाब आसपास के क्षेत्र में फेरी लगाकर कपड़े बेचता है. गत दिवस वह किसी से मिलने के लिए घर से निकला था, मगर आज तक वह वापस घर नहीं लौटा है. उस का मोबाइल नंबर भी स्विचऔफ चल रहा है.

जब कोतवाल शांति कुमार ने मुस्तकीम से पूछा कि शादाब की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी तो मुस्तकीम ने बताया कि शादाब का सभी से अच्छा व्यवहार था. मुझे उस के अपहरण की भी आशंका नहीं है. मुझे शक है कि शादाब किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गया. इस के बाद शांति कुमार ने मुस्तकीम को शादाब की गुमशुदगी की तहरीर लिख कर उस का फोटो ले कर कोतवाली आने को कहा था. 

मलकपुरा मोहल्ला एसआई रफत अली के हलके में आता था, अत: शांति कुमार ने शादाब की गुमशुदगी का मामला रफत अली को ही सौंप दिया था. शादाब की गुमशुदगी का मामला हाथ में आते ही रफत अली सक्रिय हो गए. सब से पहले उन्होंने कांस्टेबल मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप को मोहल्ला मलकपुरा में भेजा तथा उन से शादाब के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने को कहा. इस के बाद रफत अली ने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह से संपर्क कर के उन से इस मामले में उन का निर्देशन मांगा.

स्वप्न किशोर सिंह ने तत्काल गुमशुदा शादाब के मोबाइल की काल डिटेल्स एसओजी से निकलवाने के निर्देश रफत अली को दिए. अगले दिन पुलिस को शादाब की काल डिटेल्स भी मिल गई थी. शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल पर एसआई रफत अली के शक की सूई अटक गई थी. उधर सिपाही मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप ने शादाब के बारे में जो जानकारी हासिल की तो वह चौंकाने वाली थी. पता चला कि शादाब की कई महीनों से मरजीना नामक महिला से दोस्ती थी. मरजीना शादीशुदा थी, लेकिन वह शादाब के साथ लिवइन में रहती थी. शादाब उस पर रुपए उड़ाता था. शादाब के घर वालों ने उसे काफी समझाया, लेकिन वह उस का साथ छोडऩे को तैयार नहीं था.

घर बुला कर क्यों की हत्या

अपने शौहर की बदनामी की वजह से मरजीना ने मंगलौर कस्बा छोड़ दिया था और रुड़की के रेलवे स्टेशन से सटी कालोनी तेलीवाला में आ कर रहने लगी थी. दोनों सिपाहियों ने एसआई रफत अली को बताया कि शादाब के लापता होने में मरजीना का हाथ हो सकता है. यह जानकारी पा कर रफत अली ने मरजीना से पूछताछ करने का विचार बनाया. यह भी पता चला कि शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल भी मरजीना के ही फोन से की गई थी.

वह 26 अगस्त, 2024 का दिन था. रफत अली ने शादाब के लापता होने के बारे में पूछताछ करने के लिए मरजीना व उस के पति अफजाल को कोतवाली मंगलौर में बुलाया था. शाम को जब मरजीना अपने शौहर अफजाल के साथ कोतवाली पहुंची तो उस समय वहां पर सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार भी मौजूद थे. सीओ विवेक कुमार ने शादाब के बारे में मरजीना से पूछताछ की तो मरजीना व अफजाल के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया. पहले तो दोनों ने पुलिस को गच्चा देने का प्रयास किया था, मगर वे दोनों सीओ विवेक कुमार के प्रश्नों के जवाब में ही उलझ गए थे. 

अंत में मरजीना ने पुलिस के सामने शादाब की हत्या की बात कुबूल कर ली थी. मरजीना ने पुलिस को बताया कि गत 22 अगस्त, 2024 को मैं ने ही शादाब को फोन कर के अपने घर पर बुलाया था. शादाब द्वारा हमारे परिवार को बदनाम करने के कारण हम उस से बदला लेना चाहते थे. जब शादाब मरजीना के घर पर पहुंचा तो मरजीना और उस के पति अफजाल ने शादाब के हाथ व पैर पकड़ लिए थे. इस के बाद सावेज ने शादाब का गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. रात को 2 बजे तीनों ने शादाब के शव को एक बोरे में डाल लिया. फिर उस बोरे को बाइक पर ले जा कर अफजाल व सावेज ने शव गंगनहर में डाल दिया था.

पुलिस ने मरजीना के ये बयान रिकौर्ड कर लिए थे. इस के बाद सावेज को भी हिरासत में ले लिया गया. सावेज की निशानदेही पर शादाब का मोबाइल फोन व उस की चप्पलें भी बरामद कर ली गईं. अफजाल व सावेज ने मरजीना के दिए बयानों का समर्थन किया था. फिर एसएसपी प्रमेंद्र डोवाल ने मंगलौर कोतवाली पहुंच कर शादाब हत्याकांड का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने इन तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया था.

कथा लिखे जाने तक मंगलौर पुलिस व जल पुलिस द्वारा गंगनहर के अथाह जल में शादाब के शव को तलाश किया जा रहा था. मरजीना, अफजाल व सावेज रुड़की जेल में बंद थे. शादाब हत्याकांड की विवेचना थानेदार रफत अली द्वारा की जा रही थी. रफत अली शीघ्र ही आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य जुटा कर चार्जशीट अदालत में भेजे जाने की तैयारी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Story : सगाई तोड़ने का लिया बदला, भरे बाजार उतारा मौत के घाट

Murder Story : 17 अप्रैल, 2023 को रोशनी का डिजिटल मार्केटिंग का पेपर था. वह जालौन जिले के एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल डिग्री कालेज में बीए (द्वितीय वर्ष) की छात्रा थी. इसी कालेज में उस की बड़ी बहन शीलम भी पढ़ती थी. वह बीए फाइनल में थी. उस का हिंदी साहित्य का पेपर था. सुबह 8 बजे उन दोनों को उन का भाई श्रीचंद्र अपनी बाइक से कालेज गेट पर छोड़ कर चला गया था.

लगभग साढ़े 10 बजे रोशनी और शीलम परीक्षा दे कर कालेज से निकलीं. हाथों में प्रवेश पत्र थामे दोनों बहनें अपने घर की तरफ चल दीं. चलतेचलते दोनों आपस में बातचीत भी करती जा रही थी. जैसे ही वे कोटरा तिराहे की ओर बढ़ीं, तभी रोशनी एकाएक ठिठक कर रुक गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर देखा. पीछे एक बजाज पल्सर बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई. क्योंकि वह बाइक पर पीछे की सीट पर बैठे युवक को जानती थी. रोशनी ने तुरंत अपनी बड़ी बहन शीलम का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ”जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

शीलम ने रोशनी को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा मामला समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

 

चेहरे पर हलकी दाढ़ी और सख्त चेहरे वाला युवक राज उर्फ आतिश था, जो रोशनी का मंगेतर था, पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. राज व उस के साथी को देख कर दोनों बहनों की चाल में लडख़ड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर रोशनी ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही राज बाइक से उतर कर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए रोशनी का गला दबोच लिया. गले पर कसते सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए रोशनी ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, राज ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और रोशनी के सिर पर सटा कर फायर कर दिया.

गोली लगते ही रोशनी चीखी और सड़क पर बिछ गई. उस के सिर से खून की धार बह निकली. कुछ देर छटपटाने के बाद रोशनी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. बदहवास शीलम ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. इसी बीच कुछ लोगों को आते देख कर राज डर गया. हड़बड़ाहट में वह भागा तो उस का तमंचा हाथ से छूट गया. वह बिना तमंचा उठाए ही अपने साथी के साथ बाइक पर सवार हो कर फरार हो गया.

हत्यारे फरार हो गए, तब शीलम जोरजोर से चीखने लगी. उस ने कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन सभी ने मुंह फेर लिया. उस के बाद उस ने हिम्मत जुटा कर मोबाइल फोन से अपने घर वालों को जानकारी दी.

सामने हुई हत्या तमाशबीन क्यों रहे लोग

रोशनी की हत्या की खबर सुनने के बाद घर में कोहराम मच गया. कुछ ही देर बाद मृतका के मम्मीपापा, भाई व परिवार के अन्य लोग वहां पहुंच गए और खून से लथपथ रोशनी की लाश देख कर दहाड़ मार कर रोने लगे.

रोशनी की हत्या दिनदहाड़े कस्बे के कोटरा तिराहे के भीड़ भरे बाजार में की गई थी, लेकिन हत्यारों का सामना करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा सका था. दुकानदार तो इतने दहशत में आ गए थे कि वे अपनी दुकानों के शटर गिरा कर तमाशबीन बन गए थे.

 

दरअसल, दहशत इसलिए थी कि एक दिन पहले ही कुख्यात माफिया अतीक व उस के भाई की हत्या प्रयागराज में गोली मार कर की गई थी. लोगों के दिमाग में भय था कि इस हत्या का कनेक्शन कहीं उस वारदात से तो नहीं जुड़ा है.

घटनास्थल से एट कोतवाली की दूरी मात्र 200 मीटर थी. कोतवाल अवधेश कुमार सिंह चौहान को वारदात की खबर लगी तो वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पहुंच गए. पुलिस के पहुंचते ही भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा. कोतवाल अवधेश कुमार सिंह ने मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी, फिर निरीक्षण में जुट गए.

21 वर्षीया रोशनी की हत्या सिर में गोली मार कर की गई थी. शव के पास ही .315 बोर का तमंचा पड़ा था, जिस से उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने तमंचे को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. मृतका का मोबाइल फोन व प्रवेशपत्र भी वहीं पड़ा था. पुलिस ने उसे भी सुरक्षित कर लिया.

अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी डा. ईरज राजा, एएसपी असीम चौधरी तथा सीओ (कोंच) शैलेंद्र बाजपेई भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पुलिस अफसरों के आते ही चीखपुकार बढ़ गई. मृतका की मम्मी सुनीता, पापा मानसिंह तथा भाई श्रीचंद्र दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह उन्हें शव से अलग किया, फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल पर मृतका की बहन शीलम मौजूद थी. पुलिस अधिकारियों को उस ने बताया कि उस की बहन रोशनी की हत्या उस के मंगेतर राज उर्फ आतिश ने की है. वह कंदौरा थाने के गांव जमरेही का रहने वाला है. रोशनी और राज आपस में प्रेम करते थे. मम्मीपापा ने दोनों का रिश्ता भी तय कर दिया था.

लेकिन जब रोशनी को पता चला कि राज गुस्से वाला, शक्की व सनकी स्वभाव का है तो रोशनी ने उस से शादी करने से इंकार कर दिया. इस से वह नाराज हो गया और रोशनी को डराने धमकाने लगा. रोशनी नहीं मानी तो आज उस ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी. उस के साथी को वह जानती पहचानती नहीं है.

निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतका रोशनी के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही मृतका की बड़ी बहन शीलम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत राज उर्फ आतिश तथा एक अज्ञात व्यकित के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने ऐसे ढूंढ निकाला आरोपी

एसपी डा. ईरज राजा ने छात्रा रोशनी हत्याकांड को बड़ी गंभीरता से लिया. अत: आरोपियों को पकडऩे के लिए उन्होंने पुलिस की 4 टीमें गठित कीं. एक टीम सीओ (कोंच) शैलेंद्र बाजपेई तथा दूसरी टीम कोतवाल अवधेश कुमार सिंह की अगुवाई में गठित की.

एसओजी तथा सर्विलांस टीम को भी सहयोग के लिए शामिल किया. इन चारों टीमों ने आरोपितों के हरसंभावित ठिकानों, हमीरपुर, कंदौरा, जमरेही, विवार तथा धनपुरा में ताबड़तोड़ दबिशें दीं, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी.

शाम 5 बजे कोतवाल अवधेश कुमार सिंह को मुखबिर के जरिए पता चला कि आरोपी राज एट थाने के गांव सोमई में किसी परिचित के घर छिपा है. इस सूचना पर पुलिस टीम ने सोमई गांव में दबिश डाल कर और उसे दबोच लिया. पुलिस टीम ने उस की बिना नंबर प्लेट वाली बजाज पल्सर बाइक भी बरामद कर ली. पूछताछ के लिए उसे थाना एट लाया गया.

थाने में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और रोशनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि रोशनी उस की प्रेमिका थी. वह उस से शादी करना चाहता था. घर वाले भी राजी हो गए थे, लेकिन रोशनी ने शादी से इंकार कर दिया. उस ने उसे प्यार से भी समझाया और धमकाया भी. लेकिन जब वह नहीं मानी तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

”तुम्हारे साथ जो अन्य युवक था, उस से तुम्हारा क्या संबंध है?’’ कोतवाल अवधेश सिंह ने पूछा.

”सर, वह मेरा  ममेरा भाई रोहित उर्फ गोविंदा था. वह हमीरपुर जिले के विवार थाने के गांव धनपुरा का रहने वाला है. हमारे और रोशनी के बारे में उसे सब पता था. हम ने जब उसे प्रेमिका की बेवफाई और उसे सबक सिखाने की बात कही तो वह साथ देने को राजी हो गया.’’

”तुम्हारी बाइक की नंबर प्लेट नहीं है. क्या वह चोरी की है?’’ श्री सिंह ने पूछा.

”नहीं सर, बाइक चोरी की नहीं है. हम ने पहचान छिपाने के लिए नंबर प्लेट जंगल में छिपा दी तथा खून से सने कपड़े चिकासी गांव के पास बेतवा नदी में फेंक दिए थे.’’

चूंकि सबूत के तौर पर खून से सने कपड़े तथा नंबर प्लेट बरामद करना जरूरी था, अत: कोतवाल अवधेश कुमार सिंह ने आरोपी राज की निशानदेही पर कपड़े व प्लेट बरामद करने पुलिस टीम के साथ निकल पड़े. अब तक अंधेरा छा चुका था. राज जब पचखौरा नहर पुलिया के पास पहुंचा तो उस ने पुलिस जीप रुकवा दी.

वह नीचे उतरा और बताया कि यहीं नहर झाडिय़ों में उस ने नंबर प्लेट छिपाई थी. पुलिस के साथ राज झाडिय़ों की तरफ बढ़ा, तभी अचानक उस ने कोतवाल अवधेश कुमार सिंह के हाथ से सरकारी पिस्टल छीन ली और फायर झोंकने की धमकी दे कर भागने लगा. पुलिस टीम ने भी उस की घेराबंदी कर जवाबी काररवाई शुरू कर दी.

राज ने एक फायर किया, तभी पुलिस ने भी गोली चला दी. पुलिस की गोली राज के पैर में लगी, जिस से वह जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. घायल राज को तुरंत जिला अस्पताल में इलाज हेतु भरती कराया गया.

पुलिस की अन्य टीमें दूसरे आरोपी रोहित उर्फ गोविंदा को पकडऩे के लिए अथक प्रयास में जुटी रहीं, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस जांच में एक ऐसे शक्की व सनकी प्रेमी की कहानी सामने आई, जिस ने एक होनहार छात्रा की सांसें छीन लीं और स्वयं का जीवन भी अंधकारमय बना लिया.

मौसी के घर ऐसे बढ़ी प्रेम की बेल

उत्तर प्रदेश का एक जिला है जालौन. इसी जिले के एट थाना अंतर्गत ऐंधा गांव में मानसिंह अहिरवार सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटे हरीश कुमार, श्रीचंद्र और 4 बेटियां रजनी, मोहनी, शीलम तथा रोशनी थी. मानसिंह किसान था.

खेतीबाड़ी से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. उस का बड़ा बेटा हरीश कुमार उरई में प्राइवेट जौब करता था, जबकि छोटा बेटा श्रीचंद्र खेती के काम में हाथ बंटाता था. 2 बेटियों रजनी व मोहनी के जवान होते ही मानसिंह ने उन का विवाह कर दिया था.

मानसिंह की सब से छोटी बेटी का नाम रोशनी था. वह बहुत चंचल थी. इसलिए वह किसी से भी बातचीत में नहीं झिझकती थी. रोशनी से बड़ी शीलम थी. वह भी बातूनी व हंसमुख थी. दोनों बहनें सुंदर तो थीं ही, पढऩे में भी तेज थी.

दोनों एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल महाविद्यालय में पढ़ती थीं और साथसाथ कालेज जाती थीं. कालेज में लड़के लड़कियां साथ पढ़ते थे, लेकिन कभी किसी लड़के की हिम्मत नहीं हुई कि वह इन दोनों बहनों से पंगा ले.

रोशनी की मौसी अनीता, कदौरा थाने के गांव जमरेही में ब्याही थी. वह रोशनी को बहुत चाहती थी. बात उन दिनों की है, जब रोशनी ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी. मौसी के बुलावे पर वह जमरेही गांव पहुंची. वहां मौसी ने उस की खूब आवभगत की और कुछ दिनों के लिए उसे अपने घर रोक लिया था.

मौसी के घर पर ही एक रोज रोशनी की मुलाकात राज उर्फ आतिश से हुई. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. राज उर्फ आतिश, रोशनी की मौसी अनीता का पड़ोसी था और उस की जातिबिरादरी का था.

चूंकि राज का अनीता के घर बेरोकटोक आनाजाना था, इसलिए उस की मुलाकातें बढऩे लगीं. उन मुलाकातों ने दोनों के दिलों में प्रेम के बीज बो दिए. धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत भी होने लगी. खूबसूरत रोशनी जहां राज के दिल में समा गई थी, वहीं स्मार्ट राज से बातचीत करना रोशनी को भी अच्छा लगने लगा था.

एक रोज राज अनीता के घर गया तो वह घर में नहीं दिखी. इस पर राज ने पूछा, ”रोशनी, आंटी नहीं दिख रहीं, क्या वह कहीं गई हैं?’’

”हां, मौसी खेत पर गई हैं. घंटे-2 घंटे बाद ही आएंगी.’’ रोशनी ने जवाब दिया.

रोशनी की बात सुन कर राज मन ही मन खुश हुआ. उसे लगा कि आज उसे अपने दिल की बात कहने का अच्छा मौका मिला है. अत: वह बोला, ”रोशनी आओ, मेरे पास बैठो. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. लेकिन..?’’

”लेकिन क्या?’’ रोशनी ने आंखें नचा कर पूछा.

”यही कि डर लगता है कि कहीं तुम मेरी बात का बुरा न मान जाओ.’’

”तुम मुझे गाली तो दोगे नहीं, फिर भला मैं बुरा क्यों मान जाऊंगी?’’

”रोशनी, तुम मेरे जीवन को भी रोशनी से भर दो.’’ कहते हुए राज ने रोशनी का हाथ अपने हाथ में ले लिया. फिर बोला, ”रोशनी, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है. मैं तुम्हें अपने घर की रोशनी बनाना चाहता हूं.’’

रोशनी कुछ क्षण मौन रही फिर बोली, ”राज, मुझे तुम्हारा प्यार तो कुबूल है, लेकिन शादी का वादा नहीं कर सकती. क्योंकि एक तो मैं अभी पढ़ रही हूं, दूसरे शादी विवाह की बात घर वाले ही तय करेंगे. मैं ऐसा कोई वादा नहीं करना चाहती, जिस के टूटने से तुम्हारे दिल को ठेस लगे.’’

इस के बाद रोशनी और राज का प्यार परवान चढऩे लगा. दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया था, अत: उन की बात देरसवेर फोन पर भी होने लगी थी. ज्यादा देर बात करने को मौसी टोकती तो वह कालेज की सहेली से बात करने का बहाना बना देती. कभीकभी मां या बड़ी बहन से बात करने की बात कहती. अनीता उस की बातों पर सहज ही विश्वास कर लेती.

लेकिन अनीता के विश्वास को ठेस तब लगी, जब उस ने एक शाम धुंधलके में राज और रोशनी को आपस में छेड़छाड़ करते देख लिया. दूसरे रोज अनीता ने रोशनी को प्यार से समझाया, ”बेटी, लड़की की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से भी उस पर दाग लग जाए तो वह दाग जीवन भर नहीं जाता.’’

रोशनी समझ गई कि मौसी को उस पर शक हो गया है. उस ने अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा. लेकिन अनीता ने यकीन नहीं किया. उस ने राज को भी फटकार लगाई. इसी के साथ वह दोनों पर निगरानी रखने लगी. लेकिन फिर भी दोनों फोन पर बतिया लेते थे और दिल की लगी बुझा लेते थे.

अनीता नहीं चाहती थी कि उस के घर पर रहते रोशनी कोई गलत कदम उठाए और वह बदनाम हो जाए. अत: उस ने रोशनी को उस के घर ऐंधा भेज दिया. रोशनी प्रेम रोग ले कर घर वापस आई थी. अत: उस का मन न तो पढ़ाई मेंं लगता था और न ही घर के दूसरे काम में.

वह खोईखोई सी रहने लगी थी. बड़ी बहन शीलम ने उस से कई बार पूछा कि वह खोईखोई सी क्यों रहती है? लेकिन रोशनी ने उसे कुछ नहीं बताया. वह बुत ही बनी रही.

बड़ी बहन को ऐसे पता लगा रोशनी के अफेयर का

एक रोज रोशनी बाथरूम में थी, तभी उस के फोन पर काल आई. काल शीलम ने रिसीव की और पूछा, ”आप कौन और किस से बात करनी है?’’

इस पर दूसरी ओर से आवाज आई, ”मैं राज बोल रहा हूं. मुझे रोशनी से बात करनी है. जब वह मौसी के घर जमरेही आई थी, तभी उस से जानपहचान हुई थी.’’

”ठीक है, अभी वह घर पर नहीं है.’’ कह कर शीलम ने काल डिसकनेक्ट कर दी. फिर सोचने लगी कि कहीं रोशनी किसी लड़के के प्यार के चक्कर में तो नहीं पड़ गई. कहीं रोशनी उसी के प्यार में तो नहीं खोई रहती. यदि ऐसा कुछ है तो वह आज भेद खोल कर ही रहेगी.

कुछ देर बाद रोशनी बाथरूम से बाहर आई तो शीलम ने पूछा, ”रोशनी, यह राज कौन है? तू उसे कैसे जानती है?’’

”दीदी, मैं किसी राज को नहीं जानती.’’ रोशनी धीमी आवाज में सफेद झूठ बोल गई.

”देखो रोशनी, अभी कुछ देर पहले जमरेही से राज का फोन आया था. वैसे तो उस ने मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है. लेकिन मैं सच्चाई तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

रोशनी समझ गई कि उस की आशिकी का भेद खुल गया है. अब सच्चाई बताने में ही भलाई है. अत: वह बोली, ”दीदी, जब हम मौसी के घर गए थे तो वहां हमारी मुलाकात मौसी के पड़ोस में रहने वाले अशोक अहिरवार के बेटे राज उर्फ आतिश से हुई थी. कुछ दिनों बाद ही हमारी मुलाकातें प्यार में बदल गईं और हम दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दीदी, राज पढ़ालिखा स्मार्ट युवक है. परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक है. राज मुझे बेहद प्यार करता है और शादी करना चाहता है.’’

सच्चाई जानने के बाद शीलम ने सारी बात अपनी मम्मी सुनीता तथा पापा मानसिंह को बताई तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उन दोनों ने पहले प्यार से फिर डराधमका कर रोशनी को समझाने की कोशिश की, लेकिन रोशनी नहीं मानी. दोनों भाइयों ने भी रोशनी को समझाया. पर रोशनी ने राज से बातचीत करनी बंद नहीं की. वह कालेज आतेजाते तथा देर रात में राज से बातें करती रहती.

रोशनी की दीवानगी देख कर घर वालों को लगा कि यदि रोशनी पर ज्यादा सख्ती की गई तो कहीं ऐसा न हो कि रोशनी पीठ में इज्जत का छुरा घोंप कर अपने प्रेमी के साथ फुर्र न हो जाए. इसलिए मानसिंह ने अपने परिवार के साथ इस गहन समस्या पर मंथन किया. फिर निर्णय हुआ कि रोशनी की शादी राज के साथ तय कर दी जाए. लेकिन शर्त होगी कि शादी बीए फाइनल करने के बाद ही होगी.

इस के बाद सुनीता अपने पति मानसिंह के साथ अपनी बहन अनीता के घर जमरेही पहुंची. उस ने बहन को राज और रोशनी के प्रेम संबंधों के बारे में बताया और दोनों की शादी तय करने की बात कही. अनीता को दोनों के संबंधों के बारे में पहले से ही पता था सो वह राजी हो गई. अनीता ने कहा कि राज पढ़ालिखा है. संपन्न किसान का बेटा है. सब से बड़ी बात जातबिरादरी का है. अत: रिश्ता हर मायने में सही है.

सब को रिश्ता उचित लगा तो मानसिंह ने अशोक अहिरवार से उन के बेटे राज उर्फ आतिश के रिश्ते की बात चलाई. अशोक भी तैयार हो गया. उस के बाद रोशनी का रिश्ता राज के साथ तय हो गया. शर्त यह रखी गई कि रोशनी जब बीए पास कर लेगी, तब दोनों की शादी होगी. इस शर्त को राज व उस के घर वालों ने मान लिया.

शादी तय हो जाने के बाद राज का रोशनी के घर आनाजाना शुरू हो गया. वह हर सप्ताह बाइक से रोशनी के घर पहुंच जाता, रोशनी उस के साथ घूमने फिरने निकल जाती. फिर शाम को ही वापस आती. इस बीच दोनों खूब हंसते बतियाते, रेस्तरां में खाना खाते और जम कर लुत्फ उठाते. उन पर घर वालों की कोई पाबंदी न थी. अत: उन्हें किसी प्रकार का कोई डर भी न था. इस तरह एक साल बीत गया.

रोशनी अब तक बीए (प्रथम वर्ष) पास कर द्वितीय वर्ष में पढऩे लगी थी. जबकि उस की बड़ी बहन शीलम तृतीय वर्ष में पढ़ रही थी. दोनों बहनें एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल महाविद्यालय की छात्रा थीं. वह घर से कालेज साथ ही आतीजाती थीं. रोशनी को फोन पर बतियाने का बहुत शौक था. कालेज से निकलते ही वह बतियाने लगती थी. जबकि शीलम गंभीर थी. उसे फालतू बकवास पसंद न थी.

मंगेतर को ऐसे हुआ रोशनी पर शक

एक रोज राज ने रोशनी को काल की तो उस का नंबर व्यस्त बता रहा था. कई बार कोशिश करने पर भी जब रोशनी से बात नहीं हो पाई तो राज के मन में शक बैठ गया कि रोशनी उस के अलावा किसी और से भी प्यार करती है. जिस से वह घंटों बतियाती है. इसलिए उस का फोन व्यस्त रहता है. उस रोज वह बेहद परेशान रहा और कई तरह के विचार उस के मन में आते रहे.

राज के मन में शक समाया तो वह दूसरे रोज सुबह 11 बजे कालेज गेट पहुंच गया. रोशनी कालेज से निकली तो वह उस का पीछा करने लगा. उस रोज रोशनी कालेज अकेले ही आई थी. कुछ दूर पहुंचने पर रोशनी फोन पर किसी से हंसहंस कर बातें करने लगी. राज का शक यकीन में बदल गया कि रोशनी का कोई और भी यार है.

गुस्से से भरा राज रोशनी के पास जा पहुंचा और मोबाइल छीन कर बोला, ”तुम हंसहंस कर किस से बात कर रही थी. क्या मेरे अलावा कोई और भी दिलवर है?’’

राज को सामने देख कर रोशनी घबरा गई और बोली, ”मैं अपनी सहेली से बात कर रही थी. वह आज कालेज आई नहीं थी. लेकिन तुम यह बहकीबहकी बातें क्यों कर रहे हो?’’

”क्योंकि मुझे सच्चाई पता है. तुम सहेली से नहीं, अपने यार से बात कर रही थी.’’

”लगता है तुम शक्की और सनकी इंसान हो. मुझ पर यकीन नहीं तो मिलने क्यों आते हो. लगता है तुम्हारा प्यार छलावा है. तुम तो प्यार के काबिल ही नहीं हो.’’

उन दोनों के बीच उस दिन जम कर बहस हुई. इस बहस से रोशनी का दिल टूट गया. राज के प्रति उस की जो मोहब्बत थी, वह घायल हो गई. वह सोचने को मजबूर हो गई कि ऐसे शक्की इंसान के साथ वह जीवन कैसे गुजार सकेगी. रोशनी इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. जबकि बड़ी बहन शीलम उसे समझाती कि वह चिंता न करे. सब ठीक हो जाएगा.

कहते हैं कि शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. राज के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस का शक दिनबदिन बढ़ता ही गया. वह जब भी रोशनी को किसी से फोन पर बात करते देख लेता तो वह बात करने से रोकता, साथ ही उसे डांटता व अपशब्द भी कहता.

रोशनी को यह नागवार गुजरता था. फिर भी उस ने कई बार राज को समझाया भी कि वह अपनी दोस्त सहेलियों से ही बात करती है. लेकिन राज रोशनी की कोई बात सुनने को तैयार न था. कई बार समझाने पर भी जब राज के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया तो रोशनी उस से दूरी बनाने लगी. उस ने उस से मिलना भी कम कर दिया.

राज के दुव्र्यवहार से अब रोशनी चिंतित रहने लगी थी. सुनीता ने बेटी के माथे पर चिंता की लकीरें पढ़ीं तो उस ने एक रोज रोशनी से पूछा, ”बेटी, आजकल तू गुमसुम रहती है. चेहरे से हंसी भी गायब है, खाना भी समय पर नहीं खाती. आखिर बात क्या है?’’

मां की सहानुभूति पा कर रोशनी की आंखों में आंसू आ गए. बोली, ”मां, मैं राज को ले कर चिंतित हूं. वह शक्की इंसान है. फोन पर किसी से बात करते देखता है तो शक करता है. मैं ने उस से दिल लगा कर भूल की है. मैं ऐसे शक्की इंसान से शादी नहीं कर सकती.’’

बेटी के दर्द से सुनीता भी तड़प उठी. उस ने यह बात पति मानसिंह को बताई तो उस का पारा भी चढ़ गया. इस के बाद मानसिंह ने अपनी पत्नी व बेटों से विचारविमर्श किया और शादी तोड़ देने का निश्चय किया. रिश्ता खत्म करने की जानकारी मानसिंह ने अशोक अहिरवार व उस के बेटे राज को भी दे दी.

राज क्यों नहीं चाहता था रोशनी से रिश्ता तोडऩा

रिश्ता टूटने से राज उर्फ आतिश बौखला गया. उस ने रोशनी से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने काल रिसीव ही नहीं की. दूसरे रोज राज रोशनी के कालेज पहुंच गया. रोशनी कालेज के बाहर आई तो उस ने पूछा, ”रोशनी, रिश्ता तुम ने तोड़ा है या तुम्हारे घर वालों ने?’’

”मैं ने अपनी व घर वालों की मरजी से खूब सोचसमझ कर रिश्ता तोड़ा है.’’

”क्यों तोड़ा है?’’ राज ने पूछा.

”इसलिए कि तुम शक्की व सनकी इंसान हो. तुम जैसे इंसान के साथ मैं जीवन नहीं बिता सकती.’’

”सोच लो. कहीं तुम्हारा यह फैसला भारी न पड़ जाए.’’ राज ने धमकी दी.

”मैं ने अच्छी तरह सोचसमझ कर ही फैसला लिया है. तुम्हारी धमकी से मैं डरने वाली नही हूं. और हां, आज के बाद मुझ से मिलने कालेज में मत आना.’’

लेकिन रोशनी की बात पर राज ने गौर नहीं किया. वह अकसर कालेज आ जाता और रोशनी को धमकाता कि वह उस से शादी करे. यही नहीं राज रोशनी के मम्मीपापा व भाइयों को भी फोन पर धमकाने लगा था कि रिश्ता तोड़ कर तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया. अब भी समय है रिश्ता जोड़ लो. वरना परिणाम अच्छा न होगा.

अप्रैल, 2023 के दूसरे सप्ताह से रोशनी और शीलम की वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई थी. दोनों बहनें साथसाथ परीक्षा देने आतीजाती थीं. 14 अप्रैल, 2023 को रोशनी व शीलम पेपर दे कर निकलीं तो कालेज गेट से कुछ दूरी पर राज ने रोशनी को रोक लिया और बोला, ”रोशनी, मैं तुम से आखिरी बार पूछ रहा हूं कि मुझ से रिश्ता जोड़ोगी या नहीं?’’

रोशनी गुस्से से बोली, ”मैं तुम से एक बार नहीं, सौ बार कह चुकी हूं कि तुम जैसे शक्की और सनकी इंसान से मैं शादी हरगिज नहीं करूंगी.’’

”यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ राज ने आंखें तरेर कर पूछा.

”हां, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’ रोशनी ने भी आंखें तरेर कर ही जवाब दिया.

”तो तुम मेरा फैसला भी सुन लो, यदि तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन भी नहीं बनने दूंगा.’’ धमकी दे कर राज चला गया.

राज उर्फ आतिश का ममेरा भाई था रोहित उर्फ गोविंदा. वह हमीरपुर जनपद के विवार थाने के गांव धनपुरा का रहने वाला था. राज की रोहित से खूब पटती थी. रोहित को रोशनी और राज के रिश्तों की बात पता थी. प्यार में जख्मी राज रोहित के पास पहुंचा और उसे बताया कि रोशनी ने शादी से इंकार कर दिया है. वह उस को बेवफाई का सबक सिखाना चाहता है. उस की मदद चाहिए.

रोहित मदद को राजी हो गया. इस के बाद दोनों ने मिल कर तमंचा व कारतूस का इंतजाम किया और एट आ गए.

17 अप्रैल, 2023 को शीलम और रोशनी अपनाअपना पेपर दे कर कालेज से निकलीं तो बाइक से राज व रोहित ने उन का पीछा करना शुरू किया. शीलम व रोशनी जैसे ही कोटरा तिराहा पहुंचीं, तभी राज व रोहित ने उन्हें घेर लिया. फिर बिना कुछ कहे राज ने रोशनी के सिर में तमंचा सटा कर फायर कर दिया. रोशनी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

पूछताछ करने के बाद 19 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी राज उर्फ आतिश को उरई कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. दूसरा आरोपी रोहित उर्फ गोविंदा फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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