
लेखक- राजन सिंह
फूल संस्कृत विद्यालय पर पहुंचता और कृष्णकली साइकिल के पिछले कैरियर से बीच के हैंडल तक का सफर तय कर के कालेज जाने लग गई थी. कुल मिला कर कह सकते हैं, थोड़ा सा प्यार हो गया था, बस थोड़ा ही बाकी था.
हम को फिर से गांव जाना पड़ गया, धान फसल की कटाई के लिए. क्या करें? किस्मत ही खराब है अपनी तो पढ़ेंगे कैसे? फगुनिया कांड के बाद हमारे नाम के मुताबिक ही हम को सब खदेड़ते ही रहते हैं. अगर कटाई में नहीं जाएंगे तो बाबूजी खर्चापानी भी बंद कर देंगे.
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एक तो देर से पढ़ाना शुरू कराया था हमारे घर वालों ने, ऊपर से बचीखुची कसर हम ने फेल हो कर पूरी कर दी. पूरे 22 साल के हो गए हैं हम, लेकिन हैं अब तक इंटरमीडिएट में ही.
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि यह फगुनिया कहां से आ गई बीच में? पर क्या करें, न गाली देते बनता है और न ही अपना सकते हैं उस को हम. कभी हमारी जान हुआ करती थी वह. भैया की छोटकी साली. जबजब वह हम को करेजा कह कर बुलाती थी, तो लगता था जैसे कलेजा चीर कर उस को दिल में बसा लें.
बहुत प्यार करते थे हम फगुनिया को. उस को एक नजर देखते ही दिल चांद के फुनगी पर बैठ कर ख्वाब देखने लगता था. बोले तो एकदम लल्लनटौप थी हमारी फगुनिया. उस के तन का वजन तो पूछिए ही मत, 3 हाथी मरे होंगे तब जा कर हमारी फगुनिया पैदा हुई होगी, फिर भी जब वह ठुमुकठुमुक कर चलती थी तो हमारे पेट में घिरनी नाचने लगती थी और आटा चक्की के जैसे कलेजा धुकधुकाने लगता था.
लेकिन मुंह झौंसी हमारी भाभी को फूटी आंख नहीं सुहाती थी हमारी फगुनिया. दुष्ट कहीं की.
नैहर से ले कर ससुराल तक ऐसा ढोल बजाया हमारी प्रेम कहानी का कि हम सब जगह से बुड़बक बन कर रह गए. इतने पर भी भाभी ने दम नहीं लिया, हम को हमारी फगुनिया से लड़वाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
जबजब हमारी फगुनिया हम से लड़ती थी तो ऐसा लगता था जैसे हमारे दिल का महुआ कच्चे में ही रस चुआने लगा हो. आंत ऐंठने लगती. हम तो न मरते थे, न जीते थे. बस, अंदर ही अंदर कुहुकते रहते थे.
पर, हम ने भी ठान लिया था कि ब्याह करेंगे तो फगुनिया से ही करेंगे, नहीं तो किसी से नहीं करेंगे. जब हम सब जगह से बदनाम हो ही गए हैं तो लिहाज किस का रखें. हम ने भी आव देखा न ताव, फगुनिया को भगा कर ब्याह कर ले जाने का प्लान बना लिया.
फूल से सलाहमशवरा लिया तो उस ने भी कहा कि वह रुपएपैसे का इंतजाम कर देगा किसी से सूदब्याज पर. हम भी जोश में थे ही, उस की सभी शर्तें मंजूर कर लीं. फगुनिया को भी हम ने मना लिया भागने के लिए.
तय दिन हम रोसड़ा बाजार में जा कर फगुनिया का इंतजार करने लगे, वहीं फूल भी रुपएपैसे का इंतजाम कर के आने वाला था. वहां से हम थानेश्वर स्थान महादेव मंदिर समस्तीपुर जा कर ब्याह करते, उस के बाद गोरखपुर निकल जाने का प्लान था हमारा.
फगुनिया अपनी सहेली तेतरी को साथ ले कर पतलापुर गांव से रोसरा के दुर्गा मंदिर में आ गई. वहां हम पहले से ही मौजूद थे. तेतरी 3 भाई के बाद एकलौती बहन. फगुनिया की हमराज. एकदम पक्की वाली बहन. हम लोग फूल का इंतजार करते रहे, पर वह गधे के सिर से सींग के जैसे गायब हुआ, सो 3 महीने बाद जा कर मिला हम को. मर्द के नाम पर कलंक.
उस समय मन तो कर रहा था कि एक बार फूल मिल जाता तो गरदन मरोड़ कर आंत में घुसा देता.
हम फिर भी फगुनिया पर जोर देते रहे भाग चलने के लिए. पर वह तो बहुत बड़ी वाली जालिम निकली. कहने लगी, बिना रुपएपैसे के भाग कर जाइएगा कहां? आप तो बकलोल के बकलोल ही रह गए. कम से कम इतने रुपएपैसे का इंतजाम तो कर लेते कि एकाध महीना सही से गुजारा हो जाता. हम तो ऐसे निखट्टू मरद के साथ नहीं जाएंगे, चाहे कुछ हो जाए. आप के चक्कर में हम अपनी जिंदगी बरबाद नहीं करेंगे.
हम घिघियाते रहे, मनाते रहे, पर फगुनिया के कान पर जूं तक न रेंगी. आखिर में हम भी खिसिया कर वहां से चल दिए. जातेजाते हम तड़कभड़क दिखा कर कहते गए, ‘‘आज दिनभर थानेश्वर स्थान में इंतजार करेंगे. अगर तुम नहीं आए तो जिंदगीभर मुंह नहीं देखेंगे तुम्हारा,’’ साइकिल उठाई और हम स्पीड में वहां से निकल गए.
हम तो वहां से पहुंच गए थानेश्वर स्थान महादेव मंदिर, पर फगुनिया के कलेजे पर सांप लोटने लगा. वह सोचसोच कर डर से घबराने लगी. कहीं वह आत्महत्या तो नहीं कर लेगा.
फगुनिया को फैसला लेना पड़ा, तेतरी को हमारे पीछे भेजने का. कितनी बेचैन हो कर बोली थी हमारी फगुनिया, ‘‘ऐ तेतरी, जाओ खदेरन को सम झाबु झा दो. घर चला जाएगा बेचारा.’’
हम झटपट समस्तीपुर के महादेव मंदिर तो पहुंच गए, पर फगुनिया नहीं आई. उस की जगह तेतरी हम को सम झानेबु झाने पहुंच गई. तेतरी हम को जितना सम झाती, हम और ज्यादा गुस्सा होते जाते. जोशजोश में हम गुस्से से लालपीले होते हुए मंदिर में रखे सिंदूर की थाली से मुट्ठीभर सिंदूर उठाया और तेतरी की मांग भर दी.
जब तक होश आया, तब तक तेतरी कुमारी, बाबा की दुलारी हमारी तेतरी देवी बन चुकी थी. एक तो फगुनिया का गम हम को पहले से ही था, ऊपर से तेतरी के सरपंच ने हमारा बोलबम निकलवा दिया. हमारा हाल सेमर की रुई की तरह हो गया था जो न पेड़ से ही लगा हो और न हवा के संग उड़ ही पा रहा हो. दिल से बस एक ही चीज निकल रही थी, ‘ऐ तेतरी, तुम न लात मारी, न मारी घूंसा, फिर भी करेजा को तड़तड़ा दी.’
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फगुनिया का फागुन कब बीत गया, पता ही नहीं चला. घरपरिवार, समाज की दुत्कार में. अब तो तेतरी के देह की देहरी पर जेठ अंगड़ाई लेने लगा. हम फगुनिया के गम में रेडियो पर दर्द भरे गाना सुनते हुए जंगल झाड़, खेतखलिहान में भटकते रहते. हमारा मन तो कर रहा था हैंडपंप में छलांग लगा कर डूब मरें, पर ससुरा कूदने का रास्ता ही नहीं था. अपने दर्द के वशीभूत हो कर हम उस दिन नहर किनारे वाले टूटे पुल पर बैठे रो रहे थे कि तभी वहां गांव के 3-4 संघाती पहुंच गए. हम को रोता देख कर बहुत सम झाया सब ने. पर हम को तनिक भी ढांढस न बंधा, हम और फूटफूट कर रोने लगे.
कुछ दिनों से गांव में हर रविवार के दिन एक सत्संग मंडली आना शुरू हो गई थी. मंडली में कुलमिला कर 3 लोग थे, एक मंडली के प्रमुख गुरु बाबा और बाकी 2 बूढ़ी बाईजी. गुरु बाबा की उम्र 45 साल के आसपास थी, लेकिन तंदुरुस्ती उन्हें जवान दिखाती थी. शुरुआत में गांव में केवल मीना का ही एक घर था, जिस में गुरु बाबा सत्संग करने आते थे, लेकिन कुछ ही दिनों में आधे गांव की औरतें गुरु बाबा की भक्त हो गईं.
गुरु बाबा इन दिनों शहर के किसी मंदिर में रहते थे और रविवार का दिन आते ही इस गांव में मीना के घर सत्संग करने आ पहुंचते थे. मीना का गुरु बाबा से परिचय अपने मायके में सत्संग के दौरान हुआ था. उसी वक्त मीना ने गुरु बाबा की वाणी से प्रभावित हो कर उन्हें इस गांव में आने का न्योता दे डाला था. जिस दिन गुरु बाबा मीना के घर आए, उस दिन मीना ने अपनी शेखी बघारने के लिए पड़ोस की कुछ औरतों को भी वहां बुला लिया था.
मीना के घर पर पहले दिन ही गुरु बाबा ने ऐसा सत्संग किया कि सारी औरतें उन की मुरीद हो गईं. धीरेधीरे सब औरतों ने उन्हें अपना गुरु मान कर गुरु मंत्र भी ले लिया. गुरु बाबा केवल रविवार के दिन ही आते थे. यह बात अब उन के भक्तों को खासा अखरती थी.
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एक बार रविवार आने से पहले ही औरतों में इस बात पर चर्चा हुई कि गुरु बाबा को गांव के बाहर बने मंदिर में जगह दे दी जाए, जिस से उन का सत्संग रोज सुनने को मिल जाया करे. सभी औरतें इस बात पर एकमत थीं.
रविवार के दिन जब गुरु बाबा गांव में सत्संग के लिए आए, तो उन औरतों ने उन के सामने यह प्रस्ताव रख दिया. गुरु बाबा कुछ कहते, उस से पहले ही उन के साथ आने वाली बाईजी ने इस गांव के मंदिर में रुकने से मना कर दिया. वे कहती थीं कि साधुसंन्यासी को लालच के चलते कहीं नहीं रुकना चाहिए.
लेकिन बाईजी की सुनता कौन था. औरतों को तो वैसे ही बाईजी से कोई मतलब न था. वे तो गुरु बाबा के साथ आती थीं, इसलिए उन की इज्जत होती थी. गुरु बाबा इस बात को सुन कर जोश में थे, लेकिन बाईजी की वजह से कुछ कह न सके. वे आज जिस जगह पर थे, वहां तक लाने में बाईजी का बहुत बड़ा योगदान था.
पर गांव की औरतों द्वारा किया गया अनुरोध गुरु बाबा को बाईजी के खिलाफ बगावत करने के लिए मजबूर कर गया. जब गुरु बाबा ने बाईजी से अपनी दिली इच्छा जाहिर की, तो दोनों बाईजी उन से नाराज हो गईं और फिर कभी इस गांव में न आने को कह कर अपने आश्रम लौट गईं.
गुरु बाबा को इस बात से कोई फर्क न पड़ा. उन्हें इस गांव की औरतों से जो आश्वासन मिला था, वह बाईजी के साथ से कई गुना बड़ा था. उसी दिन औरतों ने खुद जा कर गांव के बाहर बने मंदिर के कमरे को झाड़पोंछ कर गुरु बाबा के रहने के लिए तैयार कर दिया.
शाम तक गुरु बाबा के लिए मंदिर में बढि़या भोजन बना कर भेज दिया गया. आज सालों बाद बाबाजी के लिए किसी ने इतना स्वादिष्ठ खाना भेजा था, जबकि बाईजी के आश्रम में तो हमेशा संन्यासियों वाला खाना ही मिलता था.
गुरु बाबा ने फैसला किया कि अब वे इसी गांव में रहेंगे. यह बात जब औरतों को पता चली, तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. अब हर रोज मंदिर में पूजा होने लगी थी. लोग इस बात से खुश हो कर मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने लगे थे. मर्द भी यह सोच कर खुश थे कि चलो मंदिर में गुरु बाबा के रहने से वहां का सूनापन खत्म हो जाएगा.
अब मीना के घर के बजाय मंदिर की धर्मशाला में ही सत्संग होना शुरू हो गया था. बड़ी जातियों के साथसाथ छोटी कही जाने वाली जातियों के लोग भी गुरु बाबा का सत्संग सुनने आने लगे थे. गुरु बाबा के पास चढ़ावे के पैसों का भी ढेर लगता जा रहा था. पिछड़ी जाति की एक लड़की रजनी को गुरु बाबा का सत्संग सुनने की ऐसी लत पड़ी कि घर के सब काम छोड़ कर वह रोज सत्संग में आ बैठती थी. रजनी की उम्र 19 साल थी, लेकिन जिस दिन उस ने गुरु बाबा का सत्संग सुना, तो भक्ति से सराबोर हो गई. घर में बूढ़ी दादी के अलावा कोई और नहीं था, जो उसे रोकता या टोकता. मांबाप उसे बचपन में ही छोड़ कर चल बसे थे.
गुरु बाबा की खातिरदारी और रोब देख कर उस के मन में खयाल आता था कि वह भी साध्वी हो जाए. लेकिन उस की राह में एक अड़चन थी कि वह पिछड़ी जाति की थी. भला पिछड़ी जाति की लड़की को कौन साध्वी मानेगा? यह खयाल मन में दबाए रजनी रोज गुरु बाबा का सत्संग सुनने आती रही.
सर्दियों के दिन थे. गुरु बाबा ने आग जलाने के लिए उपले और लकडि़यों का इंतजाम करने की बात भक्तों से कही, तो रजनी उछल कर बोल पड़ी कि इन सब चीजों का इंतजाम वह खुद कर देगी. गुरु बाबा की नजर रजनी पर पड़ी, तो भरे बदन की ठीकठाक दिखने वाली रजनी उन के दिल को भा गई. लेकिन चाह कर भी वे कुछ न कह सके.
शाम के वक्त रजनी एक गठरी में उपले और लकड़ी भर कर मंदिर जा पहुंचीं. उस वक्त मंदिर में गुरु बाबा के अलावा कोई और नहीं था. रजनी ने सिर से गठरी उतारी ही थी कि गुरु बाबा मंदिर के कमरे से बाहर निकल आए. रजनी ने गुरु बाबा को देखा तो हाथ जोड़ कर प्रणाम कर लिया. गुरु बाबा ने इधरउधर नजर घुमाई, फिर रजनी के सिर, कंधे और गाल पर बड़े प्यार से हाथ फेरा.
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गुरु बाबा जानते थे कि रजनी पिछड़ी जाति की है, लेकिन उन की वासना को जातबिरादरी की दीवार कतई मंजूर न थी.
गुरु बाबा खीसें निपोरते हुए बोले, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’
वह बोली, ‘‘जी… रजनी.’’
गुरु बाबा फिर से बोले, ‘‘और कौनकौन लोग हैं घर में?’’
रजनी ने उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘मैं और मेरी दादी हैं… और कोई नहीं.’’
गुरु बाबा मन ही मन खुश हो उठे और बोले, ‘‘कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा. किसी बात की चिंता मत करो. चलो, तुम्हारी शादी में हम मदद कर देंगे.’’
रजनी शरमा कर बोली, ‘‘बाबाजी, मुझे अभी शादी नहीं करनी. मैं तो साध्वी बनना चाहती हूं.’’
गुरु बाबा खुश हो कर बोले, ‘‘अरे वाह, क्या बढि़या विचार है. तो फिर बन क्यों नहीं जातीं साध्वी? देर किस बात की है?’’
रजनी शरमाते हुए बोली, ‘‘बाबाजी, मैं पिछड़ी जाति की हूं न, इसलिए सोच कर रह जाती हूं.’’
गुरु बाबा खुद इस बात के खिलाफ थे कि कोई छोटी जाति का आदमी संत बने, लेकिन रजनी को पाने के लिए वे बेफिक्र हो कर बोले, ‘‘ऐसा कौन बोला? हम बनाएंगे तुम्हें साध्वी. आओ, अंदर बैठ कर बातें करते हैं.’’
रजनी गुरु बाबा के कमरे में जाने से थोड़ा हिचक रही थी, लेकिन उन के दोबारा कहने पर वह अंदर चली गई. अंदर कमरे में गुरु बाबा के लिए सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था. कमरे में पड़े तख्त पर गुरु बाबा ने खुद बैठते हए रजनी को भी बिठा लिया और उस के शरीर पर जहांतहां हाथ फिरा कर बोले, ‘‘देखो रजनी, हम तुम्हें साध्वी तो बना सकते हैं, लेकिन यह बनना इतना आसान नहीं होता. इस के लिए तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. पहले शिष्या बन कर मेरी सेवा करनी पड़ेगी.
‘‘मैं जो भी कहूंगा, वह आंख मूंद कर करते रहना होगा, तब जा कर तुम साध्वी बन पाओगी. अगर यह सब मंजूर हो तो बताओ, फिर मैं इस बारे में सोचूं भी.’’
रजनी को दुनियादारी की समझ नहीं थी. संतगीरी की चमक ने उसे दीवाना बना दिया था. इस सब के लिए वह कुछ भी दांव पर लगाने को तैयार थी. रजनी बोली, ‘‘बाबाजी, आप जो कहो मैं वही करने को तैयार हूं. आप मेरी जान मांगो, तो वह भी मैं दे दूं. बस, आप मुझे साध्वी बना दो.’’
रजनी का साध्वी बनने के प्रति इतना जोश देख कर गुरु बाबा खुश हो उठे. अब उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने से कोई नहीं रोक सकता था. गुरु बाबा ने रजनी को अपने करीब किया और उस का मुंह चूम लिया. रजनी को थोड़ा अटपटा तो लगा, लेकिन इसे उन का प्यार समझ कर सह गई. गुरु बाबा ने उठ कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. रजनी के दिल की धड़कनें बढ़ गईं, लेकिन कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी.
गुरु बाबा ने रजनी को अपनी बांहों में भरा और चूम लिया. रजनी का सारा जिस्म डर से कांप उठा, मुंह से निकला, ‘‘बाबाजी, यह आप…’’
रजनी विरोध में बस इतना ही कह पाई, क्योंकि गुरु बाबा ने उसे यह बोल कर चुप कर दिया, ‘‘रजनी, हम ने तुम से क्या कहा था. तुम तो कहती थीं कि जान भी दे दूंगी. तुम्हें साध्वी बनना है या नहीं?’’
रजनी चुप हो कर सब सहती गई. बाबा अपनी हवस मिटा चुके थे. उन्होंने एक बार फिर से रजनी को साध्वी बनाने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया. रजनी अपनी इज्जत लुटा कर घर को चल दी. उसे बुरा तो लग रहा था, लेकिन मन में साध्वी बनने का खयाल तसल्ली दिए जा रहा था. अगले दिनों में रजनी इसी तरह गुरु बाबा के पास आती रही और बाबा इसी तरह उस का शोषण करते रहे.
एक दिन रजनी ने गुरु बाबा से साध्वी बनने की जिद कर दी. बाबा रजनी को और ज्यादा दिनों तक टाल नहीं सके. उन्होंने अगले ही दिन रजनी को गेरुए कपड़े मंगवा कर दे दिए और विधिविधान से उसे साध्वी बना दिया.
रजनी के साध्वी बनने की बात सुन कर गांव के लोगों ने इस बात पर कड़ा एतराज दर्ज किया, लेकिन गुरु बाबा के आगे उन की एक न चली. कुछ दिन तक तो रजनी साध्वी के वेश में रात के वक्त अपने घर पर ही रही, लेकिन जल्दी ही गुरु बाबा के बारबार कहने पर उस के साथ ही मंदिर के दूसरे कमरे में रहने लगी.
गुरु बाबा के भक्तों को तो इस बात में कोई खराबी न दिखती थी, क्योंकि उन्हें अपने गुरु बाबा की नीयत पर पूरा भरोसा था. गांव के छिछोरे लड़के, जो दिनभर रजनी को ताका करते थे, वे अब दिनभर मंदिर में डेरा जमाए रहते. गुरु बाबा ने इस बात का फायदा भी उठाना शुरू कर दिया था. वे अब इन लोगों के लिए साध्वी रजनी का अलग से प्रवचन रखवाते और इन लोगों से मनमाना पैसा भी वसूलते थे.
धीरेधीरे प्रवचन छिछोरी बातों के प्रवचन में तबदील होता चला गया, साथ ही गुरु बाबा के पास पैसों की बरसात भी होती चली गई. एक शाम एक छिछोरे लड़के ने कैमरे से चुपके से गुरु बाबा और रजनी का आपत्तिजनक फोटो खींच लिया. जब गुरु बाबा को इस बात की खबर लगी, तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने तुरंत उस लड़के को बुलाया और उस के सामने गिड़गिड़ाने लगे कि यह बात वह किसी को न बताए, इस के बदले वह उस लड़के को मुंहमांगी रकम भी देने को तैयार हो गए. लड़का चालाक था. उसे पता था कि इस बाबा ने खूब कमाया है. उस ने खींचे हुए फोटो वापस कर गुरु बाबा से मोटी रकम ऐंठ ली. यह रकम इतनी मोटी थी कि गुरु बाबा की जमापूंजी खत्म सी हो गई.
सत्संग के नाम से कमाया गया पैसा गुरु बाबा के शौक और ऐयाशियों को छिपाने के काम आ रहा था. गुरु बाबा ने पैसा कम होते देखा, तो भक्तों से और ज्यादा दान करने के लिए बोल दिया. लड़के को पैसा दे कर गुरु बाबा और साध्वी रजनी अभी चैन की सांस भी न ले पाए थे कि और भी लड़के इन लोगों के अश्लील फोटो लिए घूमने लगे.
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यह सब देख गुरु बाबा अधमरे हो गए. उन्होंने आननफानन सभी लड़कों को बुला कर इस सब को बंद करने की प्रार्थना कर डाली. गुरु बाबा ने इन सभी लड़कों को धर्म के नाम पर जम कर लूटा था, फिर ये लोग बाबा को इतनी आसानी से कैसे छोड़ देते. उन्होंने गुरु बाबा के सामने शर्त रख दी कि अगर वे अपनी साध्वी से उन लोगों को मस्ती करने देंगे, तो कोई कुछ नहीं कहेगा.
अब गुरु बाबा क्या करते, उन्होंने अपनी इज्जत बचाने की खातिर जैसेतैसे साध्वी रजनी को इस बात के लिए मना लिया. अब हालत यह हो गई कि भगवान के मंदिर के ठीक बगल में दिनभर वासना का खेल चलने लगा.
रजनी साध्वी इसलिए बनी थी कि आराम से जिंदगी गुजार सकेगी, लेकिन यहां तो उस की जिंदगी ही नरक सी हो गई थी. गांव में इस बात की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन गुरु बाबा के अंधभक्त लोग अब भी इस बात पर यकीन न करते थे. लेकिन अब कुछ घरों की औरतों ने सत्संग में आना बंद कर दिया था.
गुरु बाबा की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थीं. एक रात गुरु बाबा चुपके से साध्वी रजनी को ले कर मंदिर से भाग गए. सोचते थे, अब दूर कहीं जा कर सत्संग किया करेंगे, जहां साध्वी रजनी उन की धर्मपत्नी के तौर पर रहा करेगी.
गुरु बाबा और साध्वी रजनी के मंदिर से भागते ही लोगों को पूरी कहानी समझ आ गई. लेकिन अब भी उन के भक्तों को लगता था कि गुरु बाबा जरूर किसी और वजह से इस तरह गए होंगे, क्योंकि जिस तरह से गुरु बाबा सत्संग में प्रवचन देते थे, उस हिसाब से वे ऐसा कर ही नहीं सकते थे.
लेखक- राजन सिंह
‘‘ऐ लड़के, जरा इधर तो सुनिए.’’
‘‘जी, कहिए.’’
‘‘यह क्या कर रहे हैं यहां आप?’’
‘‘क्या कर रहे हैं हम?’’
‘‘क्या कर रहे हैं सो आप को नहीं मालूम. ज्यादा बनने की कोशिश तो कीजिए मत… ठीक है.’’
‘‘हम क्या कर रहे हैं, जो आप इतना भड़क रही हैं.’’
‘‘इतने भी मासूम मत बनिए. आप को हम 15-20 दिन से देख रहे हैं कि हम जब भी छत पर आते हैं तो आप अपने कमरे की खिड़की से या बालकनी की रेलिंग से टुकुरटुकुर निहारते रहते हैं. आप के घर में मांबहन नहीं हैं क्या?’’
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‘‘हम कहां देखते हैं आप को? वह तो आप ही…’’
‘‘बड़े बेशर्म हैं जी आप. एक तो देखते भी हैं, ऊपर से मुंहजोरी भी करते हैं. लगता है, अपने भैया को बताना ही पड़ेगा,’’ इतना कह कर कृष्णकली मुंह बिचकाते हुए छत से नीचे चली गई.
फूल के तो गले के शब्द जीभ में ही उल झ कर रह गए. कितनी बोल्ड लड़की है… दिमाग झन्ना कर चली गई.
एक महीने तक फूल की हिम्मत नहीं हुई कि कृष्णकली छत पर आए तो वह बाहर बालकनी में निकल कर आ सके या फिर खिड़की पर ही खड़ा रह सके. कौन आफत मोल ले. कहीं भाईबाप को कह आई तो बेमतलब की बात बढ़ जाएगी और बदनामी होगी सो अलग.
हम जैसे ही गांव से लौट कर आए तो फूल सब से पहले हम को यही कथा सुनाने लगा. तकरीबन डेढ़ महीने से पेट में खुदबुदा जो रहा था बताने के लिए.
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि हम कौन हैं? तो चलिए बता देते हैं. हम हैं खदेरन मंडल. फूल हमारा जिगरी दोस्त है. बचपन से कोई बात हमारे बीच छिपी नहीं थी, फिर यह कैसे छिप जाती. हम दोनों लंगोटिया यार जो ठहरे.
वैसे, एक बात और बता देते हैं. हम केवल बातचीत ही नहीं, बल्कि खानापीना, कपड़े वगैरह भी शेयर कर लेते हैं. यहां तक कि कच्छा और बनियान भी हम ने शेयर किए हैं.
इत्तेफाक से हम एक ही गांव में, एक ही दिन और तकरीबन एक ही समय पर जनमे भी हैं. बस, फर्क यह है कि वह यादव वंश में जनमा है और हम मंडल
के घर में, वरना हम जुड़वां ही होते. फूल तनिक पढ़ने में ठीकठाक था, इसलिए इंटरमीडिएट के बाद मास्टर बनने के लिए टीचर ट्रेनिंग स्कूल में नाम लिखवा लिया और हम जरा भुसकोल हैं पढ़ने में, इसलिए अब तक इंटर में ही लटके हुए हैं. क्या करें करम में लिखा है नेड़हा, तो हम पेड़ा कहां से खाते.
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि हम क्या बकवास करने में लगे हैं, तो चलिए फूल के बारे में जानते हैं कि आगे क्या हुआ.
तकरीबन महीनेभर बाद फूल को नाका नंबर-5 पर फिर से कृष्णकली मिल गई. आटोरिकशे का इंतजार करते हुए. क्रेज डौल्बी से वह फिल्म देख कर लौट रही थी.
दरभंगा इंटर कालेज में वह पढ़ती है. कालेज बंक कर के सिनेमा देखने में तो मास्टरब्लास्टर. फूल कोचिंग सैंटर से पढ़ कर साइकिल टनटनाते स्पीड में नाका नंबर-5 से गुजरने ही वाला था कि कृष्णकली की नजर पड़ गई.
‘‘ऐ… लड़के, जरा रुको,’’ अचानक कृष्णकली की आवाज सुन कर फूल सकपकाते हुए रुक गया.
‘‘जी… जी, कहिए.’’
‘‘जरा भी दयाधरम है कि नहीं. एक अकेली लड़की कब से रिकेश के लिए इंतजार में यहां खड़ी है और आप हैं कि मस्ती में साइकिल टुनटुनाते हुए भागे जा रहे हैं. डर है कि नहीं है…’’
‘‘अरे… नहींनहीं. ऐसी कोई बात नहीं है. हम आप को नहीं देखे थे, इसलिए…’’
‘‘इसलिए क्या…? आप हम को बु झाइएगा?’’
‘‘यह क्या बोल रही हैं आप? हम सच्ची में नहीं देखे थे आप को.’’
‘‘तो अब देख लिए हैं न.’’
‘‘जी…’’
‘‘जी… जी क्या कर रहे हैं आप? हमारा नाम कृष्णकली कुमारी है. आप हम को कृष्णकली कह सकते हैं.’’
‘‘जी.’’
‘‘फिर से जी… वैसे, अब चलिएगा भी या यहीं खड़े रहिएगा?’’
‘‘पर… पर, आप का रिकशा?’’
‘‘गोली मारिए रिकशे को. आप हैं न साथ में, फिर सफर यों ही कट जाएगा. आप चलेंगे न मेरे साथ?’’
‘‘हांहां… बिलकुल चलेंगे जी.’’
‘‘चलिए, तो चलते हैं.’’
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दोनों ने पैदल ही कदम बढ़ा दिए. फूल को ज्यादा बातें सू झ नहीं रही थीं. वह चुपचाप ही कदम बढ़ाता रहा.
थोड़ी दूर चलने के बाद कृष्णकली ही बोली, ‘‘हम ऐसे ही चलते रहेंगे तो रात हो जाएगी और हम रास्ते में ही रह जाएंगे.’’
‘‘फिर क्या करें हम? कोई रिकशा भी नहीं दिखाई दे रहा है, जो आप को बैठा देते उस पर.’’
‘‘तो फिर साइकिल किसलिए रखे हैं आप? डबल लोडिंग में चलाना नहीं आता है क्या आप को?’’
‘‘आप… आप हमारी साइकिल पर बैठिएगा?’’
‘‘तो क्या हुआ? हम साइकिल पर बैठ कर नहीं जा सकते हैं क्या? चिंता मत कीजिए, हम महल्ला आने से पहले ही उतर जाएंगे आप की साइकिल से.’’
फूल हैंडल को मजबूती से थाम कर साइकिल पर सवार हो गया. हौले से कृष्णकली भी साइकिल के पीछे कैरियर पर अपना दुपट्टा संभालते हुए बैठ गई. लेकिन बातचीत पर ब्रेक लग गया.
महल्ले के बाहर संस्कृत विद्यालय के सामने कृष्णकली साइकिल से उतर गई और फूल घंटी बजाते हुए तेजी से अपने रूम पर आ गया.
रूम पर आते ही सब से पहले 3-4 गिलास पानी गटागट पी गया. उस का हलक सूखा हुआ था. उस के बाद सारा किस्सा हमें सुनाने लगा.
हम ने उसी टाइम कह दिया था कि बेटा सैट हो गई लड़की, पर वह मानने को राजी नहीं था. वैसे, उस के दिल में फुल झडि़यां तो जरूर छूटी थीं, लेकिन स्वीकारने की हिम्मत न थी उस में. एकदम डरपोक, भीगी बिल्ली.
पर कहानी भी यहीं नहीं अटकी. कृष्णकली जितनी मुंहफट थी, उतनी ही दिमाग की तेज भी थी. दूसरी मुलाकात के बाद पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि अकसर संस्कृत विद्यालय के पास वह फूल का इंतजार करने लग गई थी.
धीरेधीरे ही सही, पर फूल ने ‘ऐ लड़का’ से ‘फूलजी’ तक का सफर तय कर लिया था. अकसर का इंतजार अब रोजाना में तबदील होने लग गया था.
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मात्र 24 साल की छोेटी सी उम्र में वह 2 बड़े हादसे झेल चुकी थी. पहली घटना उस के साथ 20 वर्ष की उम्र में घटी थी. तब वह बीकौम कर रही थी. उम्र के इस पड़ाव में युवाओं का किसी के प्यार में पड़ना आम बात होती है. आधुनिक शिक्षा व पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण और समाज की बेडि़यों में ढीलापन होने के कारण युवा आपस में बहुत जल्दी घुलमिल जाते हैं. उन के संबंध जितनी तीव्रता से परवान चढ़ते हैं, उतनी ही तेजी से टूटते भी हैं. कच्ची उम्र की सोच भी कच्ची होती है और इस उम्र में युवाओं के लिए सही निर्णय लेना लगभग असभंव होता है.
मिलिंद उस का पहला प्यार था. वह भी उसी के कालेज में पढ़ता था और एक साल सीनियर था. पढ़ाई के दौरान होने वाला प्यार मात्र मौजमस्ती के लिए होता है. यह सारे युवा जानते हैं. एकदूसरे को भरोसे में लेने के लिए वे बड़ेबड़े वादे करते हैं, लेकिन जब उन के बीच शारीरिक संबंध कायम हो जाते हैं, तो उस के बाद सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं. तब प्यार के बंधन ढीले पड़ने लगते हैं. फिर प्यार में कटुता पनपती है, दूरियां बढ़ती हैं और कई बार इस की परिणति बहुत दुखद होती है.
मिलिंद के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद उसे पता चला कि वह एक बदमाश किस्म का युवक है. छोटीमोटी लूटपाट, मारपीट ही नहीं, वह युवतियों के साथ जोरजबरदस्ती भी करता था. जो युवती उस के झांसे में नहीं आती, उसे वह अपने मित्रों के माध्यम से अगवा कर उस की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता. कालेज में वह बहुत बदनाम था, लेकिन किसी युवती ने अभी तक उस पर कोईर् दोष नहीं मढ़ा था, इसीलिए उस की हिम्मत दिनोदिन बढ़ती जा रही थी.
नित्या के लिए यह स्थिति बहुत कष्टकारी थी. न तो वह किसी को अपनी मनोस्थिति बता सकती थी और न ही किसी से सलाह ले सकती थी. मिलिंद के चंगुल से निकल भागने का कोई उपाय उसे नहीं सूझ रहा था.
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लेकिन परिस्थितियों ने उस का साथ दिया. चूंकि मिलिंद नित नई युवतियों पर फिदा होने वाला युवक था, नित्या से उस ने खुद ही दूरियां बनानी शुरू कर दीं. वह मन ही मन बड़ी खुश हुई. धीरेधीरे एक साल बीत गया और नित्या ने बीकौम भी कर लिया.
अगले साल उस ने मांबाप को मना कर दूसरे शहर में एमबीए जौइन कर लिया. होस्टल में जगह न मिलने के कारण पेइंगगैस्ट के रूप में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. पैसा बचाने के लिए उस ने अपना रूम एक दूसरी युवती के साथ शेयर कर लिया. सुरक्षा की दृष्टि से भी यह जरूरी था.
नए शहर में आ कर नित्या ने ठान लिया था कि वह किसी लफड़े में नहीं पड़ेगी. बस, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी. लेकिन जहां खुला माहौल हो, भंवरे और तितलियां एक ही बाग में स्वछंद घूमफिर रहे हों, प्रकृति का रोमांच उन के दिलों को गुदगुदा रहा हो, तो वसंत के फूलों की सुगंध से वे कैसे बच सकते हैं और मधुमास के अभिसार से अछूते कैसे रह सकते हैं. पेड़पौधों और फूलपत्तों पर जब वसंत का निखार आता है, तो जवां दिल एक हुए बिना नहीं रह सकते.
वह बहुत सोचसमझ कर जीवन के अगले चरण में अपने कदम रख रही थी. उस की रूममेट शिखा बहुत बातूनी और चंचल थी. वह हर वक्त प्यारमुहब्बत की बातें करती रहती थी. नित्या उस की बातें सुन हलके से मुसकरा भर देती या उसे झिड़क देती, ‘‘अब बस कर, कुछ पढ़ाई की तरफ भी ध्यान दे ले.’’
‘‘पढ़ाई कर के क्या मिलेगा? अंत में शादी ही तो करनी है. अभी जवानी है, प्यार का मौसम है, तो क्यों न उस का भरपूर मजा लिया जाए?’’ वह अंगड़ाई ले कर कहती.
नित्या बस, मुसकरा कर रह जाती. प्यार के खेल की वह पुरानी खिलाड़ी थी, लेकिन उस ने शिखा को अपने पहले प्यार के बारे में कुछ नहीं बताया था. वह उन
कड़वी यादों को अपने दिल से निकाल देना चाहती थी.
यों ही हंसीमजाक में दिन गुजरते रहे. एक दिन शिखा ने पूछ ही लिया, ‘‘नित्या, सचसच बता, क्या तेरे मन में प्यार की भावना नहीं उमड़ती या तेरे साथ कोई हादसा हुआ है, जो तू प्यार के नाम से बिदकती है?’’
नित्या चौंक गई, क्या शिखा को उस के बारे में कुछ पता चल गया है या वह केवल कयास लगा रही है. उस ने कहा, ‘‘तू क्या समझती है, सारी युवतियां एकजैसी होती हैं? मेरा एक लक्ष्य है. मुझे पढ़ाईर् कर के मांबाप के सपनों को पूरा करना है.’’
‘‘बस कर, तू मुझे क्यों बना रही है? प्यार के मामले में सारी युवतियां एकजैसी होती हैं. जवान होने से पहले ही चारा खाने के लिए उतावली रहती हैं. मुझे तो लगता है, तूने चारा खा लिया है. अब बन रही है.’’
‘‘मैं ने क्या किया है या क्या करूंगी, यह तू मेरे ऊपर छोड़ दे. तू अपनी सोच,’’ नित्या ने बात को टालने का प्रयास किया.
शिखा लापरवाही से बोली, ‘‘मुझे अपने बारे में क्या सोचना? मैं ने तो अपना बौयफ्रैंड बना भी लिया है. तू अपनी फिक्र कर…’’ उस के चहरे से खुशी टपक रही थी, हृदय उछल रहा था. सपनों के उड़नखटोले में बैठ कर वह किसी और ही दुनिया में विचरण कर रही थी.
नित्या को उस के बौयफ्रैंड के बारे में जानने की कोई उत्सुकता नहीं थी, लेकिन एक कसक सी उस के मन में उठी. प्यार में ठोकर न खाई होती तो उस का भी कोई बौयफ्रैंड होता. उसे शिखा से जलन हुई. परंतु फिर उस ने अपना मन कड़ा किया. क्या फिर से आग में कूदने का इरादा है. शिखा को जो करना है, करे. वह अपने पथ पर अडिग रहेगी. पुरानी चोट क्या इतनी जल्दी भूल जाएगी?
लेकिन एक जवान युवती, जब घर से दूर अकेली रहती है, तो उस की भावनाएं बेलगाम हो जाती हैं. वह केवल अपने लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित नहीं रख पाती. दूसरी चीजें भी उसे प्रलोभित करती हैं. कोई भी युवा अपने मन को चंचल होने से नहीं रोक सकता. नित्या भी अपने हृदय की भावनाओं और मन की चंचलता को दबाने का प्रयास करती, लेकिन शिखा की बातें सुनसुन कर वह मन से कमजोर पड़ने लगी थी. जब भी शिखा उस से अपने अफेयर और बौयफ्रैंड के बारे में बात करती तो उस के हृदय में कांटे से गड़ने लगते. सोचती, इतनी सुंदर दुनिया में वह अकेले ही चलने के लिए क्यों मजबूर है? यह उम्र क्या तनहाइयों में आहें भरने के लिए होती है?
कालेज में हर दूसरी युवती अपने बौयफ्रैंड के साथ नजर आती. एक बस वही अकेली थी. कितना खराब लगता था उसे. उस की फ्रैंड्स उसे चिढ़ातीं, ‘‘यह देखो, ठूंठ, इस पर जवानी का फूल अभी तक नहीं खिला है.’’
धीरेधीरे उस का मन विचलित होने लगा. पुरानी कड़वी यादें समय की परतों के नीचे दब सी गईं. नई भावनाओं ने जल की लहरों की तरह उस के हृदय में उछाल लेना शुरू कर दिया, जैसे कोई नया तूफान आने वाला था. नए तूफान को रोकने का उस ने प्रयास नहीं किया, वह कमजोर हो गई थी. प्यार के मामले में हर युवती बहुत कमजोर होती है. प्यार के नाम पर कोई भी युवक उसे किसी भी तरफ झुका सकता है. नित्या दूसरी बार झुकने के लिए अपने मन को तैयार कर रही थी.
सहेलियों के बीच वह एक ठूंठ सिद्ध हो चुकी थी. उस ने तय कर लिया, अब वह फूल की तरह कोमल बन कर दिखाएगी. उस ने अपने दिमाग को इधरउधर दौड़ाया. कई युवकों के चेहरे उस के मस्तिष्कपटल पर दौड़ने लगे, लेकिन उस ने तय किया कि वह किसी क्लासमेट या कालेज के किसी युवक से दोस्ती नहीं करेगी. मिलिंद भी उस के कालेज का लड़का था, वह कितना छिछोरा और बदमाश निकला. इस बार वह किसी नौकरीशुदा व्यक्ति से दोस्ती करेगी.
उस ने अपना मन अपने मकान में रहने वाले किराएदारों की तरफ केंद्रित किया. जिस मकान में वह रहती थी, उस में कई किराएदार थे. ज्यादातर कालेज की युवतियां थीं, कुछ आईटी प्रोफैशनल भी थे. कुछ अन्य नौकरी करने वाले थे. राहुल नित्या के कमरे के बिलकुल सामने रहता था. वह जब भी सामने पड़ता, उसे देख कर मुसकरा देता. पहले वह तटस्थ रहती थी, लेकिन जब उस के मन की भावनाओं ने पंख फैलाने शुरू किए, तो उस के होंठों पर भी मुसकान की मीठी झलक दिखाई देने लगी. युवकयुवती के बीच एक बार मुसकान का आदानप्रदान हो जाए, तो दूरियां कम होने में वक्त नहीं लगता.
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राहुल से रिश्ता बनाते समय उसे तनिक भी खयाल नहीं आया कि वह एक बार प्यार में धोखा खा चुकी है. इस बार ठोंकबजा कर राहुल को परख ले, जब प्यार की चिनगारी हृदय को जलाने लगती है, तो सारी सावधानी और समझदारी धरी की धरी रह जाती है.
बात बढ़ी, तो बढ़ती ही चली गई. दोनों एक ही बिल्डिंग में रहते थे, इसलिए उन के मिलने में कोई व्यवधान भी नहीं था. स्वच्छंद रूप से दिनरात जब भी मन करता, वे मिल लेते. उन के बीच की सारी दूरियां बिना किसी देरी के समाप्त हो गईं.
शिखा को उस के अफेयर के बारे में पता चलते देर न लगी. पूछा, ‘‘नित्या, तू तो बड़ी तेज निकली. इतनी जल्दी बौयफ्रैंड बना लिया. कल तक तो प्रेम के नाम पर नाकभौं सिकोड़ती थी.’’
नित्या ने सिर झटकते हुए कहा, ‘‘क्यों, क्या मैं प्यार नहीं कर सकती? आखिर सामान्य युवती हूं. मन में भावनाएं हैं, इच्छाएं हैं और हृदय में कामनाएं मचलती हैं. जब तक मन का दरवाजा नहीं खुलता, बाहर की हवा की सुगंध मनमस्तिष्क में नहीं घुसती, तब तक कामदेव के बाण किसी को घायल नहीं करते. मैं ने भी तुझ से सीख ले कर मन की आंखें खोल दीं, हृदयपटल को खोल कर ‘उसे’ प्रवेश करने की अनुमति दे दी. फिर तो तुम जानती ही हो, प्रेम की चिनगारी भड़कने में देर नहीं लगती.’’
‘‘पर तुम ने राहुल को क्यों पसंद किया. तुम्हारे क्सासमेट भी तो हैं?’’
‘‘तुम नहीं समझोगी. साथ में पढ़ने वाले युवकों में गंभीरता नहीं होती. उन का भविष्य अनिश्चित सा रहता है. पूरी तरह
से वे मांबाप पर निर्भर रहते हैं. राहुल नौकरीशुदा है. वह मेरा खर्च उठा सकता है.’’
‘‘क्या करता है वह?’’
‘‘शायद किसी आईटी कंपनी में ऐग्जिक्यूटिव है. मैं ने पूछा नहीं है.’’
‘‘नौकरी वाला बौयफ्रैंड पसंद किया है, तो क्या तुम उस से शादी करने की सोच रही हो?’’
‘‘क्या हर्ज है, अगर वह तैयार हो जाए,’’ नित्या ने लापरवाही से कहा.
‘‘तुम ने बात की है?’’
‘‘कर लूंगी, अभीअभी तो प्यार हुआ है. कुछ दिन एंजौय करने दो.’’
शिखा गंभीर हो गई, ‘‘नित्या, एक बात अच्छी तरह समझ लो, प्यार अगर मौजमस्ती के लिए है, तो इस में सबकुछ जायज है, पर अगर शादी कर के घर बसाने के उद्देश्य से तुम राहुल से प्यार कर रही हो, तो संभल कर रहना. पहले शादी कर लो, फिर अपना तन उस को समर्पित करना. आजकल शादी के नाम पर युवक बहलाफुसला कर युवतियों का सालों शोषण करते हैं और जब उन का मन भर जाता है, तो युवती को ठोकर मार कर भगा देते हैं. युवतियां भावुक होती हैं. वे बहुत जल्दी युवकों की बातों पर विश्वास कर लेती हैं और बाद में पछताती हैं. तुम राहुल से साफसाफ बात कर लो कि वह क्या चाहता है और तुम भी अपने दिल की बात उस के सामने रख दो कि तुम उस से शादी करना चाहती हो, वरना बाद में पछताओगी.’’
नित्या के मन में बात खटक गई. शिखा सच कह रही थी. प्यार कोई खेल तो है नहीं, जो केवल मनोरंजन के लिए खेला जाए. ऐसा प्यार वासना का खेल बन जाता है. उस ने खुद को धिक्कारा…. उसे क्या कभी अक्ल नहीं आएगी. एक बार लुट चुकी है और दूसरी बार लुटने को तैयार है. जीवनभर क्या वह प्यार के नाम पर अलगअलग युवकों के हाथों अपने शरीर को नुचवाती रहेगी, अपनी अस्मिता तारतार करवाती रहेगी?
उसे अफसोस होने लगा कि प्यार में वह इतनी जल्दबाजी क्यों करती है, दो दिन की बातचीत और मीठीमीठी बातों में आ कर उस ने खुद को राहुल के चरणों में समर्पित कर दिया.
अगली मुलाकात में उस ने राहुल से पूछ लिया, ‘‘राहुल, तुम ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया, जबकि मैं अपने बारे में तुम्हें सबकुछ बता चुकी हूं.’’
‘‘क्या जानना चाहती हो मेरे बारे में?’’ उस ने संशय से पूछा.
‘‘मैं तुम्हारे नाम के सिवा क्या जानती हूं.’’
‘‘क्या तुम्हारे लिए इतना जानना पर्याप्त नहीं है कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं?’’
‘‘प्यार की अंतिम परिणति शादी होती है, इसलिए एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में जानना भी जरूरी है,’’ नित्या ने अपने मन की बात कही.
राहुल ने टालने के भाव से कहा, ‘‘तुम कहां बेमतलब की बातों में पड़ी हो. दुनियादारी के लिए सारी उम्र पड़ी है. अभी प्यार का मौसम है, जी भर कर प्यार कर लो और उस की सुगंध अपने तनबदन में भर लो. प्यार की खुशबू से जब तनमन नहाने लगता है, तो बाकी चीजें गौण हो जाती हैं. अभी तुम केवल मेरे बारे में सोचो और मैं तुम्हारे बारे में… बस,’’ उस ने नित्या को बांहों में समेटने की कोशिश की.
नित्या ने प्यार से उसे अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मीठीमीठी बातों से टालने की कोशिश मत करो. मेरे लिए यह जानना काफी अहम है कि मैं ने जिस व्यक्ति से प्यार किया, वह जीवन में कितनी दूर तक मेरा साथ देगा. पुरुष और स्त्री को बांधने का सूत्र प्रेम होता है और जब वह सूत्र शादी के बंधन में बंध जाता है तो यह अटूट हो जाता है.’’
‘‘क्या दकियानूसी बातें कर रही हो. जब हम स्वेच्छा से एकदूसरे के साथ रह रहे हैं, तो बीच में शादी कहां से आ गई?’’
‘‘राहुल, तुम बात को समझने का प्रयास करो. अब हम बच्चे या किशोर नहीं हैं, पूरी तरह से बालिग हैं. लिवइन रिलेशनशिप केवल वासना की पूर्ति का एक आधुनिक बहाना है, वरना समाज में इस तरह के कृत्य अवैध रूप से पहले भी चलते थे और आज भी चल रहे हैं. लेकिन परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के साथ अगर पतिपत्नी का रिश्ता निभाया जाए, तो सभी सुखी रहते हैं.’’
नित्या ने सोचसमझ कर बहुत गंभीर बात कही थी. उस में अब परिपक्वता झलक रही थी, क्यों न हो आखिर? ठोकर खाने के बाद तो मूर्ख भी अक्लमंद हो जाते हैं. इस के बाद भी अगर नित्या को अक्ल न आती, तो कब आती?
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राहुल चिंतित हो गया, फिर बोला, ‘‘यार, तुम ने भी अच्छाखासा रोमांटिक मूड खराब कर दिया. मैं बाद में इस मुद्दे पर बात करूंगा,’’ फिर वह अपने औफिस चला गया.
नित्या को उस की यह बेरुखी अच्छी नहीं लगी. वह समझ गई थी कि राहुल उस के साथ केवल शारीरिक संबंध बनाने तक ही रिश्ता कायम रखना चाहता है. इस के अलावा वह किसी और जिम्मेदारी के प्रति गंभीर नहीं है, पर बिना किसी जिम्मेदारी के यह रिश्ता भी कोई रिश्ता है. क्या यह एक प्रकार की वेश्यावृत्ति नहीं है? बिना प्रतिबद्धता और सामाजिक बंधन के युवती एक युवक के साथ रहे या दो के साथ, क्या फर्क पड़ता है? इस में पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा कहां है. युवती को तो अपनी अस्मिता लुटा कर ही यह सब करना पड़ता है. बदले में उसे क्या मिलता है? युवक के चंद मीठे बोल, कुछ उपहार लेकिन सामाजिक सुरक्षा इस में कहां है? उसे लांछनों के साथ समाज में जीवित रहना पड़ता है.
पूर्व कथा
पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि नित्या एक बार प्यार में धोखा खा चुकी थी इसलिए अब फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. उस ने दूसरे शहर में एमबीए जौइन कर लिया. कालेज में जब सब उसे ठूंठ कहने लगे तो उस ने अपने मकान में रहने वाले एक और पेइंगगैस्ट राहुल को बौयफ्रैंड बना लिया. नित्या प्यार की परिणति विवाह मानती थी जबकि उस की रूममेट शिखा उसे समझाती कि वह प्यार और शादी को अलगअलग रख कर चले. नित्या राहुल से जब भी शादी की बात करती, वह टाल जाता.
पढ़िए आगे…
नित्या का मन खट्टा हो गया, लेकिन उस ने राहुल से दूरी बनाने का कोई प्रयास नहीं किया. उस से फायदा भी क्या होता. उच्छृंखल प्यार आज के युवाओं की नियति है.
‘‘तुम्हारा अफेयर कैसा चल रहा है?’’ एक दिन शिखा ने नित्या से पूछ लिया.
‘‘ठीक जैसा कुछ भी नहीं है,’’ उस ने उदासीनता से कहा. फिर पूछा, ‘‘एक बात बताओ शिखा, प्यार के मामले में क्या युवक अपने बारे में सबकुछ सहीसही नहीं बताते?’’
शिखा ने कुछ सोचने के बाद जवाब दिया, ‘‘हां, मुझे भी ऐसा लगता है. ज्यादातर मामलों में हम इन के नाम के सिवा और कुछ नहीं जानते. युवतियों को इंप्रैस करने के लिए ये बड़ीबड़ी बातें करते हैं. अपने घरपरिवार और बाप की आमदनी के बारे में बहुत ऊंचीऊंची हांकते हैं. अपनी हैसियत से बढ़ कर खर्च करते हैं, पर जब युवती चंगुल में फंस जाती है, तो धीरेधीरे इन की पोलपट्टी खुलने लगती है. ऐसे संबंधों में बहुत जल्दी खटास घुल जाती है, लेकिन तुम ये यह क्यों पूछ रही हो. क्या राहुल से कोईर् अनबन हुई है? ’’
‘‘नहीं, अनबन तो नहीं हुई है, परंतु मैं ने जब उस के व्यक्तिगत जीवन और परिवार के बारे में पूछा तो वह टाल गया.’’
‘‘तुम मूर्ख हो, इस उम्र के प्यार में कोई गंभीरता नहीं होती. युवक अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा प्यार क्षणिक मौजमस्ती के अलावा और कुछ नहीं होता. बाद में उन्हें अपने कैरियर पर ध्यान देना होता है और मांबाप की पसंद से शादी करनी पड़ती है. इसलिए कालेज में पढ़ाई के दौरान कोई भी युवक प्यार के प्रति गंभीर नहीं होता. 1-2 फीसदी को छोड़ दें, तो शेष युवक उसे शादी के अंजाम तक नहीं ले जाना चाहते. ये तो केवल युवतियां हैं, जो इस प्यार को बहुत गंभीरता से लेती हैं. तभी तो उन का संबंध थाना, कचहरी में जा कर समाप्त होता है.’’
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‘‘क्या तुम भी अपने बौयफ्रैंड के बारे में कुछ नहीं जानती?’’ उस ने पूछा.
‘‘क्या जरूरत है डार्लिंग, उस की मरजी है, बताए चाहे न बताए. हम क्यों इन बेकार की बातों में अपना समय बरबाद करें. कुछ दिनों तक का साथ हैं, फिर वह अपने रास्ते, मैं अपने घर. मैं कौन सा उस के साथ शादी करने वाली हूं. कालेज के बाद कौन कहां जाता है, किस को पता? मैं तो इस बात की पक्षधर हूं, जवानी में प्यार चाहे किसी से कर लो, लेकिन शादी मांबाप की पसंद से करो, तभी सुखचैन मिलता है.’’
‘‘तो तुम प्यार में सीरियस नहीं हो?’’
‘‘प्यार में सीरियस हूं, पर शादी के लिए नहीं. हम दोनों ही यह बात अच्छी तरह जानते हैं. एक बात तुम भी जान लो नित्या कोई भी युवक लंबे समय तक किसी लड़की को प्यार के बंधन में बांध कर नहीं रख सकता. कुछ समय बाद दोनों एकदूसरे से ऊबने लगते हैं, फिर उन के बीच मनमुटाव और लड़ाईझगड़ा आरंभ होता है. ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि उन का प्रेमसंबंध लंबे समय तक चल नहीं पाता.
‘‘विवाह ही एक ऐसा सामाजिक बंधन है, जो जीवनभर 2 व्यक्तियों को आपस में बांध कर रखता है. शादी के बाद बच्चे पतिपत्नी को जोड़ कर रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसीलिए शादी हर पुरुष और महिला के सुखमय जीवन के लिए बहुत आवश्यक है.’’
नित्या सोच में पड़ गई. भावुकता में आ कर उस ने दूसरी बार प्यार कर लिया था. पहले प्यार के दुष्परिणाम से उस ने कोई सबक नहीं सीखा. अब राहुल से प्यार कर के वह क्या प्राप्त करना चाहती थी. क्या यह प्रेम भी शारीरिक मिलन तक ही सीमित रहेगा? नहीं, इस प्यार को वह खिलवाड़ नहीं बनने देगी. इसे शादी के अंजाम तक ले कर जाएगी.
उस ने शिखा से कहा, ‘‘यार, मैं अपने प्यार को शादी के अंजाम तक पहुंचाना चाहती हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता, राहुल इस बारे में सीरियस है. बताओ, मैं क्या करूं?’’
‘‘तब तो तुम उस से दूरी बना कर रखो. अभी तक जो किया उसे भूल जाओ. अब जब भी उस से मिलो, उसे केवल बातों में उलझा कर रखो. वह संबंध बनाने की बात करे तो साफ मना कर दो कि अब यह सब शादी के बाद ही होगा. तुम अपने मन को दृढ़ बना कर रखोगी, तो वह तुम से जबरदस्ती नहीं कर सकेगा. देखना, कुछ दिनों में ही उस के मन की बात सामने आ जाएगी. अगर वह तुम से वास्तव में प्यार करता होगा और घर बसाने के लिए जरा भी गंभीर होगा, तो तुम से संबंध बना कर रखेगा वरना खुद ही दूरी बना कर रास्ते से हट जाएगा.’’
अगली बार जब राहुल ने उस के साथ संबंध बनाने का प्रयास किया, तो उस ने कड़े शब्दों में मना कर दिया, ‘‘नहीं राहुल, रोजरोज यह ठीक नहीं है.’’
‘‘क्यों, पहले तो हम रोज यह करते थे?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘पहले नादानी थी, भावुकता थी और प्यार भी नयानया था, लेकिन अब हमें भविष्य के बारे में भी सोचना है. हम एकदूसरे को अगर वास्तव में प्यार करते हैं, तो शारीरिक मिलन कोई आवश्यक नहीं है. हम शादी होने तक इसे स्थगित रख सकते हैं.’’
‘‘शादी, यह विचार तुम्हारे मन में कहां से आ गया?’’ राहुल तिलमिला उठा.
‘‘क्यों, प्यार की परिणति क्या शादी नहीं होती. प्यार क्या केवल वासना का खेलभर है?’’
‘‘नहीं, मेरा मतलब, तुम अभी पढ़ रही हो. मेरा कैरियर अभी शुरू हुआ है.’’
‘‘इस से क्या… मैं पढ़ते हुए प्यार के खेल में शारीरिक संबंध बना सकती हूं, तुम कैरियर की शुरूआत में मुझे पत्नी की तरह भोग सकते हो, तो हम शादी क्यों नहीं कर सकते.’’
‘‘मेरा मतलब है, तुम्हारा एमबीए का यह पहला साल है. मुझे आर्थिक रूप से जमने में 2-4 साल लग ही जाएंगे. इस के बाद ही हम शादी के बारे में सोच सकते हैं. तब तक हम अपनी भावनाओं और शारीरिक आवश्यकताओं को दबा कर कैसे रह सकते हैं?’’
‘‘जिस तरह अविवाहित युवकयुवतियां संयमित हो कर रहते हैं. क्या हम में इतना संयम नहीं है,’’ नित्या ने कहा तो राहुल तिलमिला कर रह गया.
इस के बाद लगभग रोज ही संबंध बनाने के लिए उन के बीच तकरार होती. मुसीबत यह थी कि दोनों एक ही बिल्डिंग में रहते थे. राहुल का जब मन करता, उसे अपने कमरे में बुला लेता.
नित्या के मना करने से राहुल आक्रामक होने लगा. कई बार तो वह जबरदस्ती नित्या को नोचनेखसोटने लगता. एकदो बार तो उस ने उस के कपड़े तक फाड़ दिए. नित्या किसी तरह अपने शरीर में खरोंचो के निशान ले कर बचतीबचाती बाहर निकलती. फिर कई दिनों तक उन के बीच बातचीत नहीं होती. राहुल की तरफ से मोबाइल पर धमकीभरे मैसेज आते कि वह नित्या के अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर देगा.
यह धमकी मिलने के बाद नित्या चिंता में पड़ गई. उस ने शिखा से सलाह ली. शिखा ने पूछा, ‘‘क्या उस ने तुम्हारा कोई अश्लील वीडियो बनाया है?’’
‘‘कह नहीं सकती. मेरी जानकारी में तो नहीं, परंतु आजकल मोबाइल फोन का जमाना है. कहीं भी छिपा कर वीडियो बनाए जा सकते हैं.’’
‘‘मेरा सोचना सही था, राहुल बदमाश किस्म का युवक है. उस की मनशा पूरी नहीं हो रही है, तो वह तुम्हें बदनाम करने की धमकी दे रहा है. वह कोईर् ऐसा प्रयास करे, उस के पहले ही हमें उस के पंख कुतर कर फेंकने होंगे.’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘वैसे तो अगर उस ने तुम्हारा कोई गलत वीडियो इंटरनैट पर अपलोड किया तो हम कानून का सहारा ले सकते हैं, पर यह एक लंबी प्रक्रिया है और इस में बदनामी भी हो सकती है. लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं कुछ करती हूं,’’ उस ने नित्या को आश्वासन दिया. शिखा उस समय उस को बड़ी बहन जैसी लगी.
शिखा ने अपने बौयफ्रैंड को नित्या की समस्या के बारे में बताया, तो उस ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर शर्लाक होम्स टाइप की जासूसी की और राहुल के बारे में जो सूत्र एकत्र किए, वह नित्या के होश उड़ाने के लिए काफी थे.
राहुल किसी आईटी कंपनी में काम नहीं करता था. वह एक कूरियर कंपनी में डिलीवरी बौय था और मात्र 10वीं पढ़ा था. वे देखने में ठीकठाक और बातें बनाने में माहिर था, इसलिए वह अपने बारे में ढेर सारी अच्छी बातें बता कर युवतियों को इंप्रैस करता था. उस की आमदनी बहुत कम थी, जो एक व्यक्ति के गुजारे के लिए भी पूरी न पड़े.
नित्या को अब समझ में आ गया था कि राहुल क्यों एक छोटे से कमरे में रहता था. आईटी कंपनी में काम करता होता, तो किसी बड़े फ्लैट में रहता. पता नहीं युवतियों को ये बातें प्यार करते समय क्यों ध्यान में नहीं आतीं.
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अब क्या? नित्या के समक्ष एक बहुत बड़ा प्रश्न आ खड़ा हो गया था. उस ने शिखा और उस के मित्रों के साथ बैठ कर इस पर चर्चा की. नित्या का दिल ही नहीं टूटा था, उस का आत्मसम्मान भी बिखर गया था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करे? राहुल के प्रति उस के मन में घृणा का लावा उबल रहा था. वह उस का मुंह भी नहीं देखना चाहती थी.
शिखा ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘नित्या, तुम चिंता न करो. हम सब तुम्हारे साथ हैं.’’
‘‘शिखा, मुझे डर लग रहा है. उस ने अगर मेरा कोई अश्लील फोटो सोशल मीडिया पर डाल दिया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. मांबाप को कैसे मुंह दिखाऊंगी. बात अगर थानापुलिस तक पहुंच गई, तब तो और भी मुश्किल में पड़ जाऊंगी. सिवा मरने के मेरे पास और कोई चारा नहीं रहेगा.’’
‘‘इतना हताश होने की जरूरत नहीं है,’’ शिखा के दोस्त अभिनव ने कहा. उसी ने राहुल के बारे में व्यक्तिगत जानकारी जुटाई थी, ‘‘वह कुछ करे, उस से पहले ही हम लोग कुछ करते हैं.’’
‘‘क्या पुलिस में रिपोर्ट लिखाओ?’’ नित्या ने सहमते हुए पूछा.
‘‘नहीं, हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’
इस के बावजूद नित्या का मन अशांत था. शिखा के समझाने के बावजूद वह अपने मन को स्थिर नहीं रख पा रही थी. सोचसोच कर वह पागल हो गई थी. राहुल का उसे उतना डर नहीं था, जितना बदनामी का. यह स्थिति बहुत दुखद होती है. मनुष्य गलत काम करते समय नहीं डरता, परंतु बदनामी से बहुत डरता है.
इस हताशा भरी स्थिति में भी वह राहुल से हंसहंस कर मिलती थी, ताकि वह उस को बदनाम करने के लिए कोई गलत कदम न उठा ले, लेकिन उस के साथ बाहर नहीं जाती थी. राहुल बहुत जिद करता था, वह पढ़ाई का बहाना बना कर टाल जाती थी. केवल उस के कमरे में जाती और दोचार बातें कर के तुरंत लौट आती. राहुल को वह कोई मौका नहीं देना चाहती थी कि उस के साथ जोरजबरदस्ती करे. जितना हो चुका था, उतना ही उस की आंखें खोलने के लिए काफी था. अब वह और दलदल में नहीं धंसना चाहती थी.
एक दिन राहुल ने उसे पकड़ कर कहा, ‘‘आखिर, तुम्हारे साथ दिक्कत क्या है? बहाने बनाबना कर मुझ से दूर क्यों चली जाती हो? एक दिन था, जब मेरी बांहों से निकलने का तुम्हारा मन नहीं करता था और अब छूते ही जैसे तुम्हें करंट लग जाता है.’’
राहुल ऐसे कह रहा था, जैसे वह उस की बीवी हो. नित्या को भी गुस्सा आ गया. उस ने तीक्ष्ण दृष्टि से राहुल की आंखों में देखा और तड़पती आवाज में कहा, ‘‘यह तुम अपने दिल से पूछो. मैं क्यों तुम से दूर जाने का प्रयास कर रही हूं. तुम वह नहीं हो, जो तुम ने मुझे बताया है. क्या मैं तुम्हारा कच्चाचिट्ठा खोलूं. झूठे कहीं के… मक्कार… अपनी झूठी बातों से मुझे बहला कर लूट लिया, अब और मुझे कितना बहकाओगे,’’ यह बात उस ने ऊंची आवाज में कही थी.
अचानक राहुल के कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुला और शिखा के साथ उस के 3 दोस्त एकसाथ कमरे में घुस आए. राहुल अब भी नित्या को बांहों से पकड़ कर अपनी तरफ खींच रहा था और नित्या खुद को उस से छुड़ाने का प्रयास कर रही थी. शिखा के दोस्तों ने इसी अवस्था में उस के कई फोटोग्राफ खींच लिए. एक दोस्त ने वीडियो बना लिया. राहुल ने हकबका कर नित्या को छोड़ दिया.
‘‘तो जनाब अकेली लड़की के साथ बलात्कार करने की कोशिश कर रहे थे,’’ शिखा ने आगे बढ़ कर राहुल के गाल पर तमाचा जड़ दिया. वह विवेकशून्य हो कर रह गया. इस स्थिति की उस ने कल्पना ही नहीं की थी. शिखा के दोस्त उस की तरफ धमकाने वाले अंदाज में देख रहे थे.
अभिनव ने उस का कौलर पकड़ते हुए कहा, ‘‘लड़कियों का बहुत शौक है न तुम्हें. तो जरा प्यार से उन्हें पटाओ. यह क्या? जोर जबरदस्ती करने लगे. यह तो बलात्कार की श्रेणी में आता है. अब तो बच्चू, तुम 10 वर्षों तक जेल में रहोगे.’’
‘‘मैं ने कुछ नहीं किया, कुछ नहीं, वो तो बस…’’ राहुल घबरा कर बोला. उस की आंखों में बेचारगी और भय के मिलेजुले भाव साफ दिखाई दे रहे थे. उस की आवाज गले में खरखराने लगी थी.
‘‘यह तो तुम थाने में जा कर सफाई देना. तुम्हारी करतूत हमारे मोबाइल में कैद हो चुकी है. तुम्हें मालूम ही होगा, दिल्ली के निर्भयाकांड के बाद बालात्कार का कानून कितना सख्त हो गया है. आसाराम जैसा तथाकथित भगवान भी अपने बेटे के साथ जेल में बंद है. तुम तो भूल ही जाओ कि मरते दम तक तुम्हारी जमानत होगी. हम सब तुम्हारे खिलाफ गवाही देंगे.’’
राहुल की घिग्घी बंध गई. वह कांपने लगा था. उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी. आंखों में आश्चर्य, अनिश्चय और भय की रेखाएं एकसाथ तैर रही थीं.
‘‘पुलिस बुलाने से पहले चलो बैठ कर कुछ बात कर लेते हैं,’’ वे सब इधरउधर बैठ गए, लेकिन राहुल और नित्या खड़े ही रहे.
‘‘तो तुम ने नित्या के कितने वीडियो बनाए हैं,’’ अभिनव ने पूछा.
‘‘वीडियो, नहीं तो… मैं ने इस का कोईर् वीडियो नहीं बनाया. बस, फोटो खींचे हैं, जो मेरे मोबाइल में हैं.’’
‘‘मोबाइल दिखा.’’
मोबाइल में सचमुच नित्या का कोई अश्लील वीडियो नहीं था. कुछ फोटो थे, जिन्हें अभिनव ने तुंरत डिलीट कर दिए. फिर उस के दोस्त ने पूरे कमरे की तलाशी ली. कोई दूसरा मोबाइल, मैमोरी कार्ड या कंप्यूटर भी नहीं मिला.
‘‘अब बताओ, तुम नित्या के साथ जबदस्ती क्यों कर रहे थे?’’
‘‘सर, मैं जबरदस्ती नहीं कर रहा था. मैं तो उसे प्यार करता हूं और वह भी …’’
‘‘कमीने, तूने अपनी औकात देखी है. तू एक कूरियर बौय है और वह एक सम्मानित घराने की युवती, जो एमबीए कर रही है. तू उस की हैसियत तक कैसे पहुंचेगा? अब बता तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए?’’
‘‘सर, मैं मानता हूं, मुझसे गलती हुई. मैं ने उस से झूठ बोला था कि मैं आईटी कंपनी में इंजीनियर हूं, परंतु मुझे पुलिस में मत दीजिए, मैं बरबाद हो जाऊंगा. मैं बहुत गरीब हूं.’’
‘‘ये बातें तू ने पहले क्यों नहीं सोची थीं. अब जब फंस गए, तो तुम्हें अपनी गरीबी याद आ रही है. लेकिन आदमी जब गलत काम करता है तो उस को कष्ट, दुख और परेशानी उठानी ही पड़ती है. तुम्हें भी अपने दुष्कर्म का परिणाम भुगतना पड़ेगा,’’ अभिनव ने नाटकीय अंदाज में कहा.
‘‘सर, आप मुझे छोड़ दीजिए. आप जो कहेंगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ उस ने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा.
‘‘जेल जाने से डर लगता है, नित्या को धमकाते हुए डर नहीं लगा, उस के साथ जोरजबरदस्ती करते हुए डर नहीं लगा. खुद की बारी आई तो जेल जाने से डर लगने लगा, वाह रे सूरमा चलो, कागजकलम निकालो और अपना बयान लिखो.’’
नित्या की समझ में नहीं आ रहा था कि शिखा और उस के दोस्त क्या करने वाले थे. उन्होंने अपनी योजना के बारे में उसे कुछ नहीं बताया था.
राहुल ने लिख कर दिया, ‘‘मैं शपथपूर्वक यह बयान करता हूं कि मैं नित्या को कभी, किसी प्रकार तंग नहीं करूंगा. मैं ने उस के साथ जो किया, उस के लिए माफी मांगता हूं. अगर उस के साथ किसी प्रकार की ज्यादती हुई, तो उस के लिए मैं जिम्मेदार होऊंगा.’’
यह परवाना लिखवाने के बाद अभिनव ने कहा, ‘‘अब आज ही यहां से कमरा खाली कर दफा हो जाओ. दोबारा इधर मुड़ कर देखने की कोशिश की तो तुम्हारे फोटोग्राफ्स और यह बयान पुलिस के हवाले कर दूंगा. इस के बाद तुम अपना परिणाम देखना. यह मत सोचना कि तुम्हारा पता नहीं चलेगा. तुम्हारी कंपनी से तुम्हारा व्यक्तिगत चिट्ठा हम ने निकलवा कर अपने पास रख लिया है.’’
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राहुल को डराधमका कर जब सब नित्या के कमरे में आए, तब भी वह गौरैया की तरह डरी हुई थी.
‘‘अगर उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर कोई बदमाशी की तो… ’’ नित्या ने कांपते हुए कहा.
‘‘समझदार होगा तो नहीं करेगा वरना मूर्ख और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की कमी इस दुनिया में नहीं है. वैसे, तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. हम ने कालेज प्रबंधन से बात कर के तुम्हारे लिए कालेज होस्टल में एक कमरा अलौट करवा दिया है. कल से तुम वहीं रहोगी.’’
‘‘मेरे प्यारे दोस्तो, मैं आप लोगों का किस प्रकार शुक्रिया अदा करूं?’’
‘‘शुक्रिया तुम शिखा का अदा करो. यदि वह न होती तो पता नहीं तुम किस मुबत में फंस जातीं. वह बहुत स्ट्रौंग युवती है. अब तुम अपनी पढ़ाई की तरफ ध्यान दो. इस उम्र में प्यार होना स्वाभाविक है, लेकिन यदि सोचसमझ कर प्यार किया जाए तो अच्छा होता है. कई बार हम गलत व्यक्ति से प्यार कर बैठते हैं. अब एक बार तुम ठोकर खा चुकी हो, अगली बार ध्यान रखना.’’
‘एक बार कहां, वह तो 2-2 बार ठोकर खा चुकी है,’ नित्या ने सोचा, ‘काश प्यार सोचसमझ कर किया जा सकता. मुश्किल तो यही है कि यह अचानक हो जाता है और प्यार करने वाले को पता ही नहीं चलता कि उस का प्यार कब उसे मुसीबत और परेशानी की दलदल में धकेल देता है.’
दिल्ली से बैंगलुरु का सफर लंबा तो था ही, लेकिन जयंत की बेसब्री भी हद पार कर रही थी. 3 साल बाद खुशबू से मिलने का वक्त जो नजदीक आ रहा था. मुहब्बत में अगर कामयाबी मिल जाए तो इनसान को दुनिया जीत लेने का अहसास होने लगता है.
ट्रेन सरपट भाग रही थी लेकिन जयंत को उस की रफ्तार बैलगाड़ी सी धीमी लग रही थी. रात के 9 बज रहे थे. उस ने एक पत्रिका निकाल कर अपना ध्यान उस में बांटना चाहा लेकिन बेजान काले हर्फ और कागज खुशबू की कल्पना की क्या बराबरी करते? खुशबू तो ऐसा ख्वाब थी, जिसे पूरा करने में जयंत ने खुद को झोंक दिया था. उस की हर शर्त, हर हिदायत को आज उस ने पूरा कर दिया था. अब फैसला खुशबू का था.
जयंत ने मोबाइल फोन निकाला. खुशबू का नंबर डायल किया लेकिन फिर अचानक फोन काट दिया. उसे याद आया कि खुशबू ने यही तो कहा था, ‘जब सच में कुछ बन जाओ तब मुहब्बत को पाने की बात करना. उस से पहले नहीं. मैं तब तक तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ मोबाइल फोन वापस जेब के हवाले कर जयंत अपनी बर्थ पर लेट गया. सुख के इन लमहों को वह खुशबू की यादों में जीना चाहता था.
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5 साल पहले जब जयंत दिल्ली आया था तो वह कुछ बनने के सपने साथ लाया था लेकिन दिल्ली की फिजाओं में उसे खुशबू क्या मिली, जिंदगी की दशा और दिशा ही बदल गई. जयंत ने मुखर्जी नगर, दिल्ली के एक नामी इंस्टीट्यूट में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए दाखिला लिया तो वहां पढ़ाने वाली मैडम खुशबू का जादू पहली नजर में ही प्यार में बदल गया.
भरापूरा बदन और बेहद खूबसूरत. झील सी आंखें. घुंघराले लंबे बाल. बदन का हर अंग ऐसा कि सामने वाला देखता ही रह जाए. जयंत ने खुशबू से बातचीत शुरू करने की कोशिश की. क्लास में वह अकसर मुश्किल सवाल रखता पर खुशबू की सब्जैक्ट पर गजब की पकड़ थी. जयंत उसे कभी अटका नहीं पाया. लेकिन उस में भी बहुत खूबियां थीं इसलिए खुशबू उसे स्पैशल समझने लगी. उस दिन क्लास जल्दी खत्म हो गई. खुशबू ने जयंत को रुकने का इशारा किया. थोड़ी देर बाद वे दोनों एक कौफी हाउस में थे और वहां कहीअनकही बहुत सी बातें हो गईं. नजदीकियां बढ़ने लगीं तो समय पंख लगा कर उड़ने लगा.
एक दिन मौका देख कर जयंत ने खुशबू को प्रपोज भी कर दिया, लेकिन खुशबू ने वैसा जवाब नहीं दिया जैसी जयंत को उम्मीद थी. खुशबू की बहन की शादी थी. उस ने जयंत को न्योता दिया तो जयंत भला ऐसा मौका क्यों छोड़ता? काफी अच्छा आयोजन था लेकिन जयंत को इस सब में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी.
दकियानूसी रस्में रातभर चलने वाली थीं, इसलिए जयंत मेहमानों के रुकने वाले हाल में जा कर सो गया. लोगों की आवाजें वहां भी आ रही थीं. सब बाहर मंडप में थे. रात में अचानक किसी की छुअन की गरमाहट से जयंत की नींद खुली. हाल की लाइट बंद थी, लेकिन अपनी चादर में लड़की की छुअन वह अंधेरे में भी पहचान गया था.
खुशबू इस तरह उस के साथ… ऐसा सोचना भी मुश्किल था. लेकिन अपने प्यार को इतना करीब पा कर कौन मर्द अपनेआप पर कंट्रोल रख सकता है? चंद लमहों में वे दोनों एकदूसरे में समा जाने को बेताब होने लगे. खुशबू के चुंबनों ने जयंत को मदहोश कर दिया. अपने करीब खुशबू को पा कर उसे जैसे जन्नत मिल गई.
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तूफान थमा तो खुशबू वापस शादी की रस्मों में शामिल हो गई और जयंत उस की खुशबू में डूबा रहा. कुछ दिन बाद ऐसा ही एक और वाकिआ हुआ. तेज बारिश थी. मंडी हाउस से गुजरते समय जयंत ने खुशबू को रोड पर खड़ा पाया.
जयंत ने फौरन उस के नजदीक पहुंच कर अपनी मोटरसाइकिल रोकी. दोनों उस पर सवार हो इंडिया गेट की ओर निकल गए. खुशबू को रोमांचक जिंदगी पसंद थी इसलिए वह इस मौके का लुत्फ उठाना चाहती थी. बारिश का मजा रोमांच में बदल रहा था. प्यार में सराबोर वे घंटों सड़कों पर घूमते रहे.
जयंत और खुशबू की कहानी ऐसे ही आगे बढ़ती रही कि तभी अचानक इस कहानी में एक मोड़ आया. खुशबू ने जयंत को ग्रैंड होटल में बुलाया. डिनर की यह पार्टी अब तक की सब पार्टियों से अलग थी. खुशबू की खूबसूरती आज जानलेवा महसूस हो रही थी. ‘आज तुम्हारे लिए स्पैशल ट्रीट जयंत,’ मुसकरा कर खुशबू ने कहा.
‘किस खुशी में?’ जयंत ने पूछा. ‘मुझे नई नौकरी मिल गई… बैंगलुरु में असिस्टैंट प्रोफैसर की.’
जयंत का दिल टूट गया था. खुशबू को सरकारी नौकरी मिल गई थी, इस का मतलब उस की जुदाई भी था. जयंत ने दुखी लहजे में खुशबू को उस की जुदाई का दर्द कह सुनाया.
खुशबू ने मुसकराते हुए कहा, ‘वादा करो तुम पहले कंपीटिशन पास करोगे, नौकरी मिलने के बाद ही मुझ से मिलने आओगे… उस से पहले नहीं… न मुझे फोन करोगे और न ही चैट… ‘मैं तुम्हारी टीचर रही हूं इसलिए मुझे यह गिफ्ट दोगे. फिर हम शादी करेंगे… एक नई जिंदगी… एक नई प्रेम कहानी… मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.
‘3 साल का समय… बस, तुम्हारी यादों के सहारे निकालूंगी.’ अचानक से सबकुछ खत्म हो गया. धीरेधीरे समय बीतने लगा. जयंत ने अपना वादा तोड़ खुशबू को फोन भी किए लेकिन उस ने मीठी झिड़की से उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा.
जयंत को भी यह बात चुभ गई. अब पूरा समय वह अपनी पढ़ाई पर देने लगा. प्यार में बड़ी ताकत होती है इसलिए मुहब्बत की कशिश इनसान से कोई भी काम करा लेती है. जयंत को भारतीय सर्वेक्षण विभाग में अच्छी नौकरी मिल गई. अब खुशबू को पाने में कोई रुकावट नहीं बची थी. जयंत ने अपना वादा पूरा कर लिया था.
अचानक ट्रेन रुकी तो जयंत की नींद खुली. सुबह होने को थी. बैंगलुरु अभी दूर था. जयंत दोबारा आंखें मूंदे हसीन सपनों में खो गया. टे्रन जब बैंगलुरु पहुंची, तब तक शाम हो चुकी थी. जयंत ने खुशबू को फोन मिलाया लेकिन फोन किसी अनजान ने उठाया. वह नंबर खुशबू का नहीं था. उस का नंबर अब बदल चुका था. दूसरे दिन वह मालूम करता हुआ खुशबू के कालेज पहुंचा.
लाल गुलाब और खुशबू के लिए गिफ्ट से भरे बैग जयंत के हाथों में लदे थे. वैसे भी जयंत को खुशबू को उपहार देने में बड़ा सुकून मिलता था. अपनी पौकेटमनी बचाबचा कर वह उस के लिए छोटेछोटे गिफ्ट लाता था जिन्हें पा कर खुशबू बहुत खुश होती थी. खुशी से लबरेज जयंत कालेज गया. खुशबू के रूम में पहुंचा तो जयंत को देख वह उछल पड़ी. मिठाई का डब्बा आगे कर जयंत ने उसे खुशखबरी सुनाई.
खुशबू ने एक टुकड़ा मुंह में रखा और जयंत को शुभकामनाएं दीं. जयंत में सब्र कहां था. उस ने आगे बढ़ उस का हाथ थामा और चुंबन रसीद कर दिया.
‘‘प्लीज जयंत… यह सब नहीं… प्लीज रुक जाओ,’’ अचानक खुशबू ने सख्त लहजे में जयंत को टोकते हुए रोका. ‘‘लेकिन यार, अब तो मैं ने अपना वादा पूरा कर दिया… तुम से मेरी शादी…’’ निराश जयंत ने पूछा.
‘‘सौरी जयंत… प्लीज… मैं ने शादी कर ली है. अब वे सब बातें तुम भूल जाओ..’’ ‘‘क्या? भूल जाऊं… मतलब?’’ जयंत उसे घूरते हुए बोला.
‘‘हां, मुझे भूलना होगा,’’ मुसकराते हुए खुशबू बोली, ‘‘वे सब मजाक की बातें थीं… 3 साल पहले कही गई बातें… क्या अब इतने दिन बाद… तुम्हें तो मुझ से भी अच्छी लड़कियां मिलेंगी…’’ मुसकराते हुए खुशबू बोली.
जयंत उलटे पैर लौट पड़ा. लाल गुलाब उस के भारी कदमों के नीचे कुचल रहे थे. मजाक की बातें शायद 3 साल में खत्म हो जाती हैं… माने खो देती हैं… जयंत समझने की नाकाम कोशिश करने लगा.
आभास पटना घूमने आया था. वह पटना से 20 किलोमीटर दूर फतुहा का रहने वाला था. फतुहा पटना का सैटेलाइट टाउन है. वहीं के हाईस्कूल से उस ने मैट्रिक पास की थी, पर 12वीं जमात में फेल हो जाने के बाद उस के पिता ने उस की पढ़ाई छुड़वा कर अपने कारोबार में लगा दिया. आभास के पिता नंदू का मछली का थोक कारोबार था. वह पिता के साथ पटना आया था. वहां गंगा किनारे बने गोलघर के ऊपर चढ़ कर दूर तक फैली हुई गंगा नदी और शहर को आंखें फाड़ कर देख रहा था.
उसी दिन आभास से थोड़ी ही दूर पर खड़ी आभा भी गोलघर की ऊंचाई से शहर का नजारा देख रही थी. उस के पिता पूरी सीढि़यां चढ़ नहीं सके, तो आभा को ऊपर भेज कर वे खुद बीच में ही थक कर बैठ गए. आभा आभास से एक क्लास जूनियर थी.
अचानक आभास की नजर आभा पर पड़ी, तो वह बोला, ‘‘क्यों री छबीली, तू यहां भी?’’
आभा बोली, ‘‘यह तेरे फतुहा का नुक्कड़ नहीं है. यहां पर तेरी दादागीरी नहीं चलेगी.’’
आभास के पिता नंदू बिहार सरकार की डेरी का फ्रैंचाइज लेने आए थे, जो उन्हें मिल गई थी. आभास उम्र में आभा से 5 साल बड़ा था. आभा के पिता स्कूल मास्टर थे. उन की 2 बेटियां थीं, आभा और विभा. दोनों ही बहुत खूबसूरत थीं, पर आभा जरा ज्यादा खूबसूरत थी.
आभा के पिता अपनी पत्नी से कहा करते, ‘मेरी बेटियां बिलकुल राजकुमारी जैसी हैं. मैं उन के लिए राजकुमार जैसे लड़के ढूंढूंगा.’
नंदू ने आभास को अपने मछली के कारोबार में लगा रखा था. मछली और डेरी दोनों से अच्छी कमाई हो जाती थी.
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आभा जब स्कूल जाती, तो नुक्कड़ पर आभास अकसर उसे छेड़ता. कभी आंख मारता, कभी सीटी बजाता, तो कभी फिल्मी गाने गाता.
एक दिन जब आभा स्कूल जा रही थी, तो आभास गाने लगा, ‘‘हर दिल जो प्यार करेगा, वो गाना गाएगा…’’
आभा ने भी तपाक से कहा, ‘‘हर दिल जो प्यार करेगा, वो जूते खाएगा…’’ और अपनी सैंडल उतार कर उस की ओर हवा में लहराई.
आभास भी कम नहीं था. वह बोला, ‘‘देखना, एक दिन तू मेरे जूते चाटेगी.’’
आभा घर में अपने मातापिता को यह सब बताती, तो वे कहते कि बस तू आंखें झुका कर उस की बातों को अनसुना समझ कर आगे बढ़ जाना. उस के मुंह मत लगना.
आभा 12वीं में पढ़ रही थी. उस की मां ने पति से कहा भी, ‘‘अब इस के हाथ पीले कर दो.’’
पर आभा का मन आगे पढ़ने को था. उस के पिता भी यही चाहते थे. 12वीं के बाद आभा का दाखिला फतुहा के संत कबीर विद्यानंद कालेज में हुआ. कालेज जाने के रास्ते में भी आभास अकसर उसे छेड़ता, लेकिन वह उसे अनदेखा कर देती.
अभी आभा ने कालेज में पहला साल भी पूरा नहीं किया था कि उस के पिता की मौत हो गई. मां ने आभा की पढ़ाई छुड़ा दी. मां और मामा दोनों मिल कर उस के लिए लड़का खोजने लगे, पर जहां जाते दहेज मुंह फाड़े उन का काम बिगाड़ देता.
इसी बीच आभास की मां ने उस के लिए रिश्ते की बात की. उस ने कहा कि शादी का पूरा खर्च वे उठाएंगी. कोई दहेज नहीं चाहिए. उन्होंने तो अपनी ओर से 10 हजार रुपए भी शादी में खर्च के लिए दिए.
आभा की मां ने झटपट हां कर दी. आभा ने मना भी किया, पर मां ने कहा, ‘‘तू विदा होगी, तभी तो तेरी छोटी बहन विभा की शादी भी जल्दी कर के मुझे चैन मिलेगा.’’
आभा की शादी आभास से हो गई. मां ने उसे समझाया कि बीती बातों को भूल कर आभास को इज्जत देना.
मां ने विदाई के पहले कहा, ‘‘मेरी बेटी की खूबसूरती पर आभास फिदा हो जाएगा. घूंघट उठाते ही वह तुम से बेशुमार प्यार करने लगेगा. तलवे चाटेगा, देखना.’’
आभा ससुराल आ गई. सुहागरात थी. वह घूंघट में लाल सितारों वाली साड़ी में फूलों से सजे पलंग पर बैठी आभास का इंतजार कर रही थी.
देर रात ‘धड़ाम’ की आवाज से दरवाजा खुला और आभास ने अंदर आ कर जोर से सिटकिनी लगा दी.
आभास के आते ही देशी शराब की बदबू कमरे में फैल गई. वह पलंग पर कूदते हुए जा बैठा और बिना कुछ बात किए आभा के कपड़े उतारने लगा.
आभा बोली, ‘‘अरेअरे, यह क्या कर रहे हो?’’
आभास बोला, ‘‘वही जो मर्द को सुहागरात में करना चाहिए.’’
‘‘अरे, तो एकदम से ऐसे तो नहीं…’’ आभा बोली.
‘‘चुप, मुझे सब पता है कि क्या करना है,’’ आभास ने कहा.
आभास ने आभा को बिस्तर पर लिटा दिया. आभा के मुंह से एक चीख निकली ही थी कि आभास ने अपने हाथ से उस का मुंह बंद कर दिया और अपनी मर्दानगी दिखाने लगा.
शराब की बदबू से आभा को घिन आ रही थी. वह चाह कर भी उस की कैद से नहीं निकल सकी.
थोड़ी ही देर में आभास की मर्दानगी खत्म हो गई और उस की पकड़ ढीली पड़ी, तो आभा को चैन मिला.
आभास अपनी प्यास बुझा कर एक ओर लुढ़क गया और जल्द ही खर्राटे लेने लगा.
आभा ने भी दूसरी ओर करवट बदल ली. वह सोचने लगी कि क्या मर्दों के लिए सुहागरात का यही मतलब होता है?
आभास रोज सुबह गंगा किनारे से मछलियों की टोकरियां थोक भाव में खरीदता और अपने पुराने स्कूटर में बांध कर शहर के बाजार में बेचता. वह खुद खुदरा मछलियां नहीं बेचता था और न ही काटता था, फिर भी मछली की बदबू उस की देह से आती थी. कभी रात को घर लौटते समय रास्ते में वह अकसर शराब भी पी लेता.
इसी तरह रोज रात में वह आभा के पास आता और अपनी हवस पूरी कर लेता. आभा प्यार के दो शब्द सुनने के लिए तरस जाती.
इसी तरह 2 साल बीत गए. आभा बीचबीच में अकसर सासससुर से बोलती थी कि उसे आगे पढ़ना है, पर कोई उस की बात से सहमत नहीं था.
आखिर एक दिन आभा भूख हड़ताल पर बैठ गई. उस ने कहा कि उसे कम से कम प्राइवेट बीए करने दिया जाए, तब उसे पढ़ने की इजाजत मिली.
वह घर से ही पढ़ने लगी. लेकिन आभास के बरताव में कोई बदलाव नहीं आया था.
2 साल और बीततेबीतते आभा ने आभास में थोड़ा सा बदलाव महसूस किया. वह अब भी दारू पीता था, पर पहले से कम. अब वह उस के पास आने के पहले अकसर नहा लिया करता.
आभा को लगा कि शायद वह जल्द ही बीए करने वाली है, इसलिए आभास थोड़ा बदलने की कोशिश कर रहा है. आभा ने बीए पास कर लिया. उस को एक सरकारी स्कूल में लेडीज कोटे में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. पर समस्या थी कि यह स्कूल फतुहा से 45 किलोमीटर दूर इसलामपुर शहर में था. ट्रेनें तो थीं, पर आनेजानेके समय के मुताबिक नहीं थीं.
आभा तो नौकरी करना ही चाहती थी. उस के सासससुर दोनों भी यही चाहते थे. सरकारी नौकरी में तनख्वाह के अलावा पैंशन वगैरह भी मिलती थी. शुरू में तो आभास इस के खिलाफ था, पर बाद में मातापिता के समझाने पर वह भी मान गया.
आभा ने इसलामपुर आ कर नौकरी जौइन कर ली. उसे छोड़ने आभास और ससुर नंदू दोनों आए थे. उन्होंने आभा के लिए एक कमरे का मकान किराए पर ले लिया था. साथ में एक मोबाइल फोन, एक खाट, बिछावन, स्टोव, कुछ बरतन वगैरह भी खरीद कर दे दिए थे.
अगले दिन आभास और उस के पिता नंदू जब घर लौट रहे थे, तब उन्होंने बहू से कहा, ‘‘सरकारी नौकरी है, काम तो नाममात्र ही होगा. जब जी चाहे हाजिरी लगा कर आ जाना.
‘‘सरकारी स्कूलों में तो साल में 3-4 महीने छुट्टी ही रहती है. सासससुर और पति का भी खयाल तुम्हें ही रखना है न.’’
रास्ते में आभास ने कहा, ‘‘आप ने उस पर काफी पैसा खर्च कर दिया?’’
नंदू बोले, ‘‘बेटा, इसे सोने का अंडा देने वाली मुरगी समझ. अगले महीने से इसे तनख्वाह मिलने लगेगी.’’
उन के लौट आने पर आभास की मां ने बेटे से कहा, ‘‘छोड़ आया बहू को… अब तुम लोग और कितने दिन इंतजार कराओगे? मैं पोतेपोती का मुंह देखने के लिए तरस रही हूं.’’
आभास चुप रहा. इधर आभा ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. विनय भी उसी स्कूल में टीचर था. वह स्मार्ट और हंसमुख था. वह इसलामपुर से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर नालंदा के पास एक गांव से रोज अपनी मोटरसाइकिल से आताजाता था. धीरेधीरे आभा से उस की दोस्ती हो गई.
एक दिन बरसात में भीगते हुए विनय शाम को आभा के घर पहुंचा. आभा ने दरवाजा खोला, तो उसे देख कर कहा, ‘‘तुम इस समय यहां… अंदर आओ.’’
विनय बोला, ‘‘हैडमास्टर साहब ने कहा है कि आज से दफ्तर की चाबी तुम रखोगी. मैं तो दूर से आता हूं, आने में मुझे देर हो जाती है.’’
‘‘वह तो ठीक है, पर तुम तो बिलकुल भीग गए हो. मैं तौलिया देती हूं, बदन पोंछ लो, तब तक मैं चाय बना देती हूं.’’
‘‘हां, तुम्हारे हाथों की चाय पीए बिना जाऊंगा भी नहीं.’’
थोड़ी देर में आभा चाय बना लाई. चाय की चुसकी लेते हुए विनय बोला, ‘‘चाय कड़क बनी है, बिलकुल तुम्हारे जैसी.’’
‘‘मजाक अच्छा कर लेते हो.’’
‘‘मैं एकदम सही बोल रहा हूं. तुम जितनी खूबसूरत हो, चाय भी उतनी ही अच्छी बनाती हो.’’
‘‘अच्छा, बारिश तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है. इतनी दूर जाओगे कैसे?’’
‘‘नहीं जाऊंगा. यहीं ठहर जाता हूं. 2 रोटियां आज ज्यादा बना देना.’’
‘‘रोटियां तो 2 की जगह 4 बना दूंगी, मगर तुम यहां रुकोगे कैसे?’’ आभा बोली.
विनय बोला, ‘‘तुम डर गईं. मैं ने तो यों ही कहा था. रोज सुबह गांव में गायबैलों को चारा खिलाना मेरा ही काम है.’’
एक घंटे बाद बारिश थमी, तो विनय चला गया. पर न जाने क्यों आभा सोच रही थी कि काश, बारिश न थमी होती और वह रुक ही जाता, तो कम से कम अकेलेपन का गम तो नहीं सताता.
उस दिन आभा को तनख्वाह मिली थी. शाम को विनय उस के घर आया और बोला, ‘‘तुम्हारी पहली तनख्वाह मिली है. पार्टी तो होनी ही चाहिए,’’ बोल कर विनय ने मिठाई का पैकेट उसे पकड़ा दिया.
आभा बोली, ‘‘बोलो, क्या चाहिए?’’
‘‘मेरे बोलने से क्या मिल जाएगा?’’ इतना कह कर विनय हसरत भरी निगाहों से उसे देखने लगा.
‘‘तुम कभी सीरियस नहीं होते क्या? हमेशा हंसीमजाक के मूड में रहते हो. बैठो, मैं ने आलू के परांठे और मटरपनीर की सब्जी बनाई है. खाने के बाद कौफी बनाती हूं.’’
‘‘तब तो मजा आ जाएगा,’’ विनय ने कहा.
दोनों ने डिनर किया और कौफी पी. रात के 8 बज चुके थे. आभा विनय को छोड़ने बाहर तक आई.
विनय ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करनी चाही, पर नहीं हुई. फिर उसे याद आया, तो बोला, ‘‘मैं तो भूल ही गया था कि मोटरसाइकिल रिजर्व में थी और तेल लेना भूल गया था. अब तो यहां पैट्रोल पंप भी बंद हो जाता है. मैं तो घर नहीं जा सकता.’’
दोनों कुछ देर ऐसे ही एकदूसरे को देखते रहे. आभा कुछ बोल नहीं पा रही थी.
विनय बोला, ‘‘आज की रात अपने घर में पनाह दे सकती हो क्या?’’
आभा ने न चाहते हुए भी हां में सिर हिलाया. घर में बैड तो एक ही था. उस ने विनय को बैड दे दिया. खुद रसोईघर के पास चटाई पर सो गई. नींद तो दोनों में से किसी को नहीं आ रही थी.
आधी रात में विनय पानी लेने के बहाने रसोईघर में गया, तो रास्ते में जानबूझ कर आभा से टकरा गया.
आभा बोली, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘कुछ नहीं, पानी लेने आया था,’’ और गिलास ले कर उसी के पास बैठ गया.
आभा भी घबरा कर बैठ गई. तब विनय ने उसे लिटा दिया और कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हें भी जगा दिया.’’
आभा मन ही मन सोच रही थी, ‘मैं सोई ही कब थी कि जगाने की जरूरत होगी.’
विनय बोला, ‘‘रात में बंद कमरे में एक मर्द और एक औरत को बंद कर दिया जाए और चुपचाप रहने को कहा जाए, तो यह तो एक कठोर सजा है, तो तुम कुछ बोलो न?’’
‘‘क्या बोलूं?’’
‘‘कुछ अपने बारे में ही बताओ. अपने मायके और ससुराल के बारे में.’’
आभा थोड़ी भावुक हो चली और उठ कर बैठ गई. उस ने भरी आंखों से अपनी कहानी सुनाई.
विनय ने धीरेधीरे उस के कंधे सहलाए, फिर माथे पर एक चुंबन लिया. आभा चुपचाप बैठी रही.
विनय बोला, ‘‘तुम बहुत ही बहादुर हो. तुम्हारी जितनी भी तारीफ करूं, कम होगी,’’ इतना बोल कर वह आभा से सट कर जा बैठा और कुछ देर तक उस के बालों को छेड़ता रहा. फिर उस के गालों को सहलाते हुए उस के होंठों को भी चूम लिया और अपने आगोश में ले लिया.
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फिर विनय बोला, ‘‘जी चाहता है कि तुम्हें भरपूर प्यार करूं.’’
आभा के पूरे बदन में तरंगें उठने लगीं. दोनों के सब्र का बांध भी टूट पड़ा. एक अजीब सा दर्द हुआ उसे, पर दर्द और मजे का मधुर मेल उसे बेहद अच्छा लगा.
सुबह विनय एक डब्बे में पैट्रोल ले कर आया. मोटरसाइकिल स्टार्ट कर आभा से बोला, ‘‘दफ्तर में बोल देना कि आज मैं नहीं आ पाऊंगा.’’
2 दिन बाद आभास आभा से मिलने आया. उस दिन छुट्टी थी. उस ने आभा से अपना पत्नी धर्म निभाने को कहा, तो वह बोली, ‘‘तुम्हें अक्ल कब आएगी? दिन में इस वक्त?’’
‘‘मुझे तो बस यही वक्त मिला है,’’ बोल कर आभास ने उसे जबरन खाट पर लिटा दिया. अपना पति हक हासिल कर वह बोला, ‘‘ला, अपनी तनख्वाह दे मुझे. बापू ने मांगी है.’’
आभा बोली, ‘‘कुछ तो मैं अपनी मां को दूंगी और कुछ अपने खर्च के लिए रखूंगी. बाकी पैसे देती हूं. ससुरजी को दे देना.’’
आभास ने जबरन और पैसे छीनने चाहे, तो वह गरज उठी, ‘‘इस के आगे कोई हरकत की, तो पुलिस को बुलाऊंगी और अभी शोर मचाऊंगी.’’
जितने पैसे आभा दे रही थी, उतने लेना ही आभास ने ठीक समझा. वह जाने लगा, तो आभा बोली, ‘‘पैसे के लिए तुम्हें दोबारा यहां आने की जरूरत नहीं है. मैं ससुरजी के अकाउंट में भेज दिया करूंगी.’’
आभास चला गया. उस के बाद लौट कर वह आभा के पास नहीं आया. आभा और विनय का मिलनाजुलना चलता रहा. आभा को उस से कोई शिकायत नहीं थी. बीचबीच में वह अपनी मां के यहां जाती थी. मां जब ससुराल का हाल पूछतीं, तो बोल देती कि सब ठीक है.
आभा 2-3 बार अपनी ससुराल भी गई, तो पता चला कि आभास ज्यादातर घर से बाहर ही रहता है. घर में बोलता था कि आभा के पास जाता रहता है.
इसी तरह तकरीबन 2 साल बीत गए. विनय के साथ उस का रिश्ता उसी तरह चलता रहा.
आभा की तबीयत कुछ गड़बड़ चल रही थी. वह लेडी डाक्टर के पास गई, तो पता चला कि वह पेट से है.
आभा ने विनय से कहा, तो वह उसे ही समझाने लगा, ‘‘तुम्हें सावधानी बरतनी चाहिए थी. अब भी वक्त है, तुम अपना बच्चा गिरवा लो.’’
‘‘क्यों? तुम अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हो. इसे हम दोनों को मिल कर हल करना होगा. मैं बच्चा नहीं गिरवा रही. क्यों न हम दोनों कोर्ट मैरिज कर लें? आभास का कोई अतापता नहीं. मैं उस से तलाक ले लूंगी.’’
‘‘हमारी शादी नहीं हो सकती?’’
‘‘क्यों?’’
‘‘इसलिए कि मैं शादीशुदा हूं. मेरे बीवीबच्चे हैं.’’
‘‘पर, तुम ने तो कहा था कि घर पर सिर्फ तुम्हारे बूढ़े मातापिता हैं.’’
‘‘सच बोलने पर क्या तुम अपने पास आने देतीं?’’
‘‘तो क्या मैं तुम्हारे मनोरंजन का साधन थी?’’
‘‘तुम जो भी समझो. मैं इस बच्चे का बाप नहीं हो सकता. मैं तो तुम्हारी जिस्मानी जरूरतें पूरी कर रहा था.’’
(क्रमश:)
क्या आभा ने विनय के बच्चे को जन्म दिया? क्या आभास से उस का रिश्ता निभ पाया? पढि़ए अगले अंक में…