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लेखिका- रेणु दीप
एक दिन काली के झगड़े से परेशान रानी रोते हुए मेरे पास आई और मुझे बताने लगी कि काली कह रहे हैं, मैं अगर मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दूं तो वह कभी घर छोड़ कर नहीं जाएंगे और न ही कभी मुझ से झगड़ा करेंगे.
तब मैं ने रानी को समझाया, ‘देखो, तुम काली की बातों में कतई न आना तथा अपनी पढ़ाई छोड़ने की गलती भी न करना. काली की घर छोड़ कर भागने की आदत कोई नई तो है नहीं, इसलिए वह इस आदत को आसानी से छोड़ने वाला नहीं है. डाक्टर बनते ही तुम्हारी अपनी जिंदगी बिना काली के सहारे आराम से कट पाएगी. मैं ने उसे यह भी समझाया कि आत्मनिर्भर बनने का सुख बहुत सुकून देता है. जिंदगी काटने के लिए इनसान को किसी न किसी सहारे की जरूरत पड़ती है और एक ईमानदार पेशे से अच्छा हमसफर कोई और नहीं हो सकता.’
मेरी उन बातों से रानी को बहुत संबल मिला और उस के बाद उस का डाक्टर बनने का हौसला कभी कमजोर नहीं पड़ा था.
डाक्टर बनने के बाद रानी ने एम.एस. किया और शिशुरोग विशेषज्ञ बन गई. मैं भी एक शिशुरोग विशेषज्ञ था अत: रानी ने मेरे निर्देशन में प्रैक्टिस शुरू की. धीरेधीरे रानी की प्रैक्टिस में निखार आता गया और वह शहर की नामी डाक्टरों में गिनी जाने लगी. जैसेजैसे डाक्टर के रूप में रानी की शोहरत बढ़ती गई वैसेवैसे काली और रानी के बीच का फासला बढ़ता गया.
रानी के रोगियों की लंबी कतारें देख काली के तनबदन में आग लग जाया करती. पत्नी के डाक्टर बनने के बाद शुरू के 2 सालों में तो काली 2-3 बार घर आया था लेकिन वह रानी के डाक्टर बनने के बाद की बदली हुई परिस्थितियों से तालमेल नहीं बिठा पाया तो एक बार 6 सालों तक गायब रहा.
रानी अकसर रोगियों के उपचार से संबंधित सलाहमशविरा करने मेरे पास आ जाया करती. बातों के दौरान कभीकभी काली की चर्चा भी छिड़ जाया करती थी जिसे ले कर रानी बहुत भावुक हो जाया करती. एक बार उस ने काली के बारे में मुझ से कहा था, ‘भाई साहब, मैं काली को आज भी बहुत चाहती हूं लेकिन मेरा अकेलापन मुझे खाए जाता है. जिंदगी के सफर में अकेले चलतेचलते अब मैं टूट गई हूं.’
मैं ने उसे दिलासा दिया था कि कैसी भी परिस्थितियां क्यों न हों, उसे किसी हालत में कमजोर नहीं पड़ना है. उसे सभी चुनौती भरे हालात का डट कर मुकाबला करना है. और उस दिन वह मेरे कंधों पर सिर रख कर रो पड़ी थी.
उस बार काली को घर छोड़े 6 वर्ष होने को आए थे. उस दौरान रानी की सास की मृत्यु हो गई और उन की मौत के बाद वह बिलकुल अकेली हो गई. सास की मौत के बाद रानी एक दिन मेरे घर आई और उस ने मुझ से कहा, ‘भाई साहब, मैं सोच रही हूं कि दोबारा शादी कर डालूं. मेरे मातापिता दूसरी शादी करने के लिए मुझ पर बहुत दबाव डाल रहे हैं. इन 6 सालों में काली ने एक बार भी मेरी खोजखबर नहीं ली है. मेरे मातापिता ने एक डाक्टर वर मेरे लिए पसंद किया है. उस की पत्नी की मृत्यु अभी पिछले साल कैंसर से हुई है. मैं सोचती हूं कि मातापिता की बात मान ही लूं.
‘भाई साहब, ये 6 साल अकेले मैं ने किस तरह काली की प्रतीक्षा करते हुए बिताए हैं, यह मुझे ही पता है. बस, अब मैं काली का और इंतजार नहीं कर सकती. उन्होंने मेरे निश्छल प्यार की बहुत तौहीन की है. अब अपने किए की कीमत उन्हें चुकानी ही पड़ेगी. एक निष्ठुर की वजह से मैं क्यों अपने दिन रोरो कर बिताऊं? मैं डाक्टर शेखर से मिल चुकी हूं. वह बहुत अच्छे स्वभाव के सुलझे हुए इनसान हैं. मेरे लिए हर तरह से उपयुक्त हैं. बस, भाई साहब, आप अपना आशीर्वाद दीजिए मुझे.’
रानी की बातें सुन कर मैं बहुत खुश हुआ था. मुझे इस बात का संतोष भी हुआ कि अब शेखर से विवाह के बाद वह एक सुखी वैवाहिक जीवन बिता पाएगी. मैं ने उस से कहा था, ‘हांहां रानी, मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है. तुम्हारा यह फैसला बिलकुल सही है. डा. शेखर से विवाह करो और घर बसाओ.’
रानी का विवाह डा. शेखर से हो गया. डा. शेखर के साथ रानी बहुत खुश रहने लगी लेकिन शादी के डेढ़ साल बाद एक कार दुर्घटना में डा. शेखर की मृत्यु हो गई और रानी विधवा हो गई थी. सूनी मांग और सफेद लिबास में उसे देख मेरा कलेजा मुंह को आ गया था पर होनी को कौन टाल सकता है, यह सोच कर मैं ने अपनेआप को दिलासा दिया था.
डा. शेखर की मृत्यु के 1 साल बाद काली अचानक एक दिन घर वापस आ गया था. शेखर की मौत के बाद रानी काली के पैतृक घर में वापस आ गई थी क्योंकि काली की मां वह मकान रानी के नाम कर गई थी.
काली को घर वापस आया देख रानी ने उस से कहा था, ‘अब तुम्हारा और मेरा कोई रिश्ता नहीं. मैं डा. शेखर की विधवा हूं. मुझ से अब तुम कोई उम्मीद मत रखना.’
उत्तर में काली ने उस से कहा, ‘मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम ने
डा. शेखर से विवाह किया, अच्छा किया लेकिन अब तुम मेरी पत्नी हो. हमारा रिश्ता तो आज भी पतिपत्नी का ही है. अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि मैं घर छोड़ कर ताउम्र कहीं नहीं जाऊंगा क्योंकि जगहजगह की धूल फांक कर मैं समझ गया हूं कि तुम जैसी पत्नी का मिलना बहुत सौभाग्य की बात है.’
‘नहीं, मैं तुम से किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती. मैं किसी दूसरे मकान में चली जाऊंगी, यह तुम्हारा घर है, इस पर तुम्हारा अधिकार है. तुम आराम से इस में रहो.’
काली ने इस के बावजूद रानी की खुशामद करनी नहीं छोड़ी थी. वह जितना रानी के पास आने की कोशिश करता, रानी उतना ही उस से दूर भागने की कोशिश करती. एक अच्छे डाक्टर के रूप में रानी एक व्यस्त जीवन बिता रही थी.
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जब भी काली, रानी से कहता कि तुम्हारे हाथ की रेखाओं में लिखा है कि जीवन का एक बड़ा हिस्सा तुम मेरी पत्नी के रूप में बिताओगी तो वह गुस्से से भड़क पड़ती, ‘मैं एक डाक्टर हूं और तुम्हारी ज्योतिष विद्या को झूठा साबित कर के ही रहूंगी. मैं अब तुम्हें कभी पति के रूप में नहीं स्वीकार करूंगी.’
उन्हीं दिनों काली ने मुझ से कहा था, ‘यार, रानी को क्या हो गया है? पहले तो वह गाय जैसी सीधीसादी थी. अब डाक्टर बनने के बाद उस में बहुत गुरूर आ गया है. मेरी ज्योतिष विद्या को भी गलत साबित करने पर तुली हुई है. वैसे इतना तो मैं जानता हूं कि वह अब भी मुझे चाहती है. इस कमजोरी का फायदा मैं उस के साथ छल कर के उठाऊंगा और उस के सामने यह साबित कर दूंगा कि मेरा ज्योतिष ज्ञान कैसे शत प्रतिशत सही है.’
अपनी योजना के मुताबिक काली ने अपने कुछ विश्वासपात्र परिचितों से कहा कि एक दिन वे आधी रात को लाठियों से लैस हो कर उस पर आक्रमण करें और उसे रानी के सामने पीट कर जमीन में डाल दें.
योजना के अनुसार आधी रात में कुछ लोग काली पर जब लाठियां बरसा रहे थे, रानी घबरा कर उस से लिपट गई और उस ने उन लोगों से कहा कि उस के जीतेजी वे काली को हाथ तक नहीं लगा सकते. तब लठैतों ने धमकी दी कि डाक्टरनी आज घर में तो तू ने इसे बचा लिया लेकिन यह घर से बाहर निकल कर देखे, इस के तो हाथपैर हमें तोड़ने ही तोड़ने हैं.
लठैतों के जाने के बाद काली ने रानी को अपने से अलग नहीं होने दिया था और उस रात रानी को इतना प्यार किया था कि पिछली सारी कमी पूरी कर दी. इनसान हारता है तो अपनेआप से. आखिर रानी अपने ही दिल के हाथों हार गई थी और चुपचाप काली के आगोश में सिमट गई थी.
उस दिन के बाद रानी, काली के हृदय की रानी बन कर रह गई थी. काली फिर कभी घर छोड़ कर नहीं गया. रानी एक सुंदर, अति कुशाग्र बुद्धि के बेटे की मां बनी. बेटा आशीष बड़ा हो कर मां के नक्शेकदम पर चल कर अब डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है, जिसे देख कर रानी और काली फूले न समाते. अब रानी को यों सुखी देख कर मन में यही विचार आता है कि वह हमेशा ही सुखी और आबाद रहे.