नई शुरुआत : भाग 1

आभास पटना घूमने आया था. वह पटना से 20 किलोमीटर दूर फतुहा का रहने वाला था. फतुहा पटना का सैटेलाइट टाउन है. वहीं के हाईस्कूल से उस ने मैट्रिक पास की थी, पर 12वीं जमात में फेल हो जाने के बाद उस के पिता ने उस की पढ़ाई छुड़वा कर अपने कारोबार में लगा दिया. आभास के पिता नंदू का मछली का थोक कारोबार था. वह पिता के साथ पटना आया था. वहां गंगा किनारे बने गोलघर के ऊपर चढ़ कर दूर तक फैली हुई गंगा नदी और शहर को आंखें फाड़ कर देख रहा था.

उसी दिन आभास से थोड़ी ही दूर पर खड़ी आभा भी गोलघर की ऊंचाई से शहर का नजारा देख रही थी. उस के पिता पूरी सीढि़यां चढ़ नहीं सके, तो आभा को ऊपर भेज कर वे खुद बीच में ही थक कर बैठ गए. आभा आभास से एक क्लास जूनियर थी.

अचानक आभास की नजर आभा पर पड़ी, तो वह बोला, ‘‘क्यों री छबीली, तू यहां भी?’’

आभा बोली, ‘‘यह तेरे फतुहा का नुक्कड़ नहीं है. यहां पर तेरी दादागीरी नहीं चलेगी.’’

आभास के पिता नंदू बिहार सरकार की डेरी का फ्रैंचाइज लेने आए थे, जो उन्हें मिल गई थी. आभास उम्र में आभा से 5 साल बड़ा था. आभा के पिता स्कूल मास्टर थे. उन की 2 बेटियां थीं, आभा और विभा. दोनों ही बहुत खूबसूरत थीं, पर आभा जरा ज्यादा खूबसूरत थी.

आभा के पिता अपनी पत्नी से कहा करते, ‘मेरी बेटियां बिलकुल राजकुमारी जैसी हैं. मैं उन के लिए राजकुमार जैसे लड़के ढूंढूंगा.’

नंदू ने आभास को अपने मछली के कारोबार में लगा रखा था. मछली और डेरी दोनों से अच्छी कमाई हो जाती थी.

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आभा जब स्कूल जाती, तो नुक्कड़ पर आभास अकसर उसे छेड़ता. कभी आंख मारता, कभी सीटी बजाता, तो कभी फिल्मी गाने गाता.

एक दिन जब आभा स्कूल जा रही थी, तो आभास गाने लगा, ‘‘हर दिल जो प्यार करेगा, वो गाना गाएगा…’’

आभा ने भी तपाक से कहा, ‘‘हर दिल जो प्यार करेगा, वो जूते खाएगा…’’ और अपनी सैंडल उतार कर उस की ओर हवा में लहराई.

आभास भी कम नहीं था. वह बोला, ‘‘देखना, एक दिन तू मेरे जूते चाटेगी.’’

आभा घर में अपने मातापिता को यह सब बताती, तो वे कहते कि बस तू आंखें झुका कर उस की बातों को अनसुना समझ कर आगे बढ़ जाना. उस के मुंह मत लगना.

आभा 12वीं में पढ़ रही थी. उस की मां ने पति से कहा भी, ‘‘अब इस के हाथ पीले कर दो.’’

पर आभा का मन आगे पढ़ने को था. उस के पिता भी यही चाहते थे. 12वीं के बाद आभा का दाखिला फतुहा के संत कबीर विद्यानंद कालेज में हुआ. कालेज जाने के रास्ते में भी आभास अकसर उसे छेड़ता, लेकिन वह उसे अनदेखा कर देती.

अभी आभा ने कालेज में पहला साल भी पूरा नहीं किया था कि उस के पिता की मौत हो गई. मां ने आभा की पढ़ाई छुड़ा दी. मां और मामा दोनों मिल कर उस के लिए लड़का खोजने लगे, पर जहां जाते दहेज मुंह फाड़े उन का काम बिगाड़ देता.

इसी बीच आभास की मां ने उस के लिए रिश्ते की बात की. उस ने कहा कि शादी का पूरा खर्च वे उठाएंगी. कोई दहेज नहीं चाहिए. उन्होंने तो अपनी ओर से 10 हजार रुपए भी शादी में खर्च के लिए दिए.

आभा की मां ने झटपट हां कर दी. आभा ने मना भी किया, पर मां ने कहा, ‘‘तू विदा होगी, तभी तो तेरी छोटी बहन विभा की शादी भी जल्दी कर के मुझे चैन मिलेगा.’’

आभा की शादी आभास से हो गई. मां ने उसे समझाया कि बीती बातों को भूल कर आभास को इज्जत देना.

मां ने विदाई के पहले कहा, ‘‘मेरी बेटी की खूबसूरती पर आभास फिदा हो जाएगा. घूंघट उठाते ही वह तुम से बेशुमार प्यार करने लगेगा. तलवे चाटेगा, देखना.’’

आभा ससुराल आ गई. सुहागरात थी. वह घूंघट में लाल सितारों वाली साड़ी में फूलों से सजे पलंग पर बैठी आभास का इंतजार कर रही थी.

देर रात ‘धड़ाम’ की आवाज से दरवाजा खुला और आभास ने अंदर आ कर जोर से सिटकिनी लगा दी.

आभास के आते ही देशी शराब की बदबू कमरे में फैल गई. वह पलंग पर कूदते हुए जा बैठा और बिना कुछ बात किए आभा के कपड़े उतारने लगा.

आभा बोली, ‘‘अरेअरे, यह क्या कर रहे हो?’’

आभास बोला, ‘‘वही जो मर्द को सुहागरात में करना चाहिए.’’

‘‘अरे, तो एकदम से ऐसे तो नहीं…’’ आभा बोली.

‘‘चुप, मुझे सब पता है कि क्या करना है,’’ आभास ने कहा.

आभास ने आभा को बिस्तर पर लिटा दिया. आभा के मुंह से एक चीख निकली ही थी कि आभास ने अपने हाथ से उस का मुंह बंद कर दिया और अपनी मर्दानगी दिखाने लगा.

शराब की बदबू से आभा को घिन आ रही थी. वह चाह कर भी उस की कैद से नहीं निकल सकी.

थोड़ी ही देर में आभास की मर्दानगी खत्म हो गई और उस की पकड़ ढीली पड़ी, तो आभा को चैन मिला.

आभास अपनी प्यास बुझा कर एक ओर लुढ़क गया और जल्द ही खर्राटे लेने लगा.

आभा ने भी दूसरी ओर करवट बदल ली. वह सोचने लगी कि क्या मर्दों के लिए सुहागरात का यही मतलब होता है?

आभास रोज सुबह गंगा किनारे से मछलियों की टोकरियां थोक भाव में खरीदता और अपने पुराने स्कूटर में बांध कर शहर के बाजार में बेचता. वह खुद खुदरा मछलियां नहीं बेचता था और न ही काटता था, फिर भी मछली की बदबू उस की देह से आती थी. कभी रात को घर लौटते समय रास्ते में वह अकसर शराब भी पी लेता.

इसी तरह रोज रात में वह आभा के पास आता और अपनी हवस पूरी कर लेता. आभा प्यार के दो शब्द सुनने के लिए तरस जाती.

इसी तरह 2 साल बीत गए. आभा बीचबीच में अकसर सासससुर से बोलती थी कि उसे आगे पढ़ना है, पर कोई उस की बात से सहमत नहीं था.

आखिर एक दिन आभा भूख हड़ताल पर बैठ गई. उस ने कहा कि उसे कम से कम प्राइवेट बीए करने दिया जाए, तब उसे पढ़ने की इजाजत मिली.

वह घर से ही पढ़ने लगी. लेकिन आभास के बरताव में कोई बदलाव नहीं आया था.

2 साल और बीततेबीतते आभा ने आभास में थोड़ा सा बदलाव महसूस किया. वह अब भी दारू पीता था, पर पहले से कम. अब वह उस के पास आने के पहले अकसर नहा लिया करता.

आभा को लगा कि शायद वह जल्द ही बीए करने वाली है, इसलिए आभास थोड़ा बदलने की कोशिश कर रहा है. आभा ने बीए पास कर लिया. उस को एक सरकारी स्कूल में लेडीज कोटे में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. पर समस्या थी कि यह स्कूल फतुहा से 45 किलोमीटर दूर इसलामपुर शहर में था. ट्रेनें तो थीं, पर आनेजानेके समय के मुताबिक नहीं थीं.

आभा तो नौकरी करना ही चाहती थी. उस के सासससुर दोनों भी यही चाहते थे. सरकारी नौकरी में तनख्वाह के अलावा पैंशन वगैरह भी मिलती थी. शुरू में तो आभास इस के खिलाफ था, पर बाद में मातापिता के समझाने पर वह भी मान गया.

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आभा ने इसलामपुर आ कर नौकरी जौइन कर ली. उसे छोड़ने आभास और ससुर नंदू दोनों आए थे. उन्होंने आभा के लिए एक कमरे का मकान किराए पर ले लिया था. साथ में एक मोबाइल फोन, एक खाट, बिछावन, स्टोव, कुछ बरतन वगैरह भी खरीद कर दे दिए थे.

अगले दिन आभास और उस के पिता नंदू जब घर लौट रहे थे, तब उन्होंने बहू से कहा, ‘‘सरकारी नौकरी है, काम तो नाममात्र ही होगा. जब जी चाहे हाजिरी लगा कर आ जाना.

‘‘सरकारी स्कूलों में तो साल में 3-4 महीने छुट्टी ही रहती है. सासससुर और पति का भी खयाल तुम्हें ही रखना है न.’’

रास्ते में आभास ने कहा, ‘‘आप ने उस पर काफी पैसा खर्च कर दिया?’’

नंदू बोले, ‘‘बेटा, इसे सोने का अंडा देने वाली मुरगी समझ. अगले महीने से इसे तनख्वाह मिलने लगेगी.’’

उन के लौट आने पर आभास की मां ने बेटे से कहा, ‘‘छोड़ आया बहू को… अब तुम लोग और कितने दिन इंतजार कराओगे? मैं पोतेपोती का मुंह देखने के लिए तरस रही हूं.’’

आभास चुप रहा. इधर आभा ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. विनय भी उसी स्कूल में टीचर था. वह स्मार्ट और हंसमुख था. वह इसलामपुर से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर नालंदा के पास एक गांव से रोज अपनी मोटरसाइकिल से आताजाता था. धीरेधीरे आभा से उस की दोस्ती हो गई.

एक दिन बरसात में भीगते हुए विनय शाम को आभा के घर पहुंचा. आभा ने दरवाजा खोला, तो उसे देख कर कहा, ‘‘तुम इस समय यहां… अंदर आओ.’’

विनय बोला, ‘‘हैडमास्टर साहब ने कहा है कि आज से दफ्तर की चाबी तुम रखोगी. मैं तो दूर से आता हूं, आने में मुझे देर हो जाती है.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर तुम तो बिलकुल भीग गए हो. मैं तौलिया देती हूं, बदन पोंछ लो, तब तक मैं चाय बना देती हूं.’’

‘‘हां, तुम्हारे हाथों की चाय पीए बिना जाऊंगा भी नहीं.’’

थोड़ी देर में आभा चाय बना लाई. चाय की चुसकी लेते हुए विनय बोला, ‘‘चाय कड़क बनी है, बिलकुल तुम्हारे जैसी.’’

‘‘मजाक अच्छा कर लेते हो.’’

‘‘मैं एकदम सही बोल रहा हूं. तुम जितनी खूबसूरत हो, चाय भी उतनी ही अच्छी बनाती हो.’’

‘‘अच्छा, बारिश तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है. इतनी दूर जाओगे कैसे?’’

‘‘नहीं जाऊंगा. यहीं ठहर जाता हूं. 2 रोटियां आज ज्यादा बना देना.’’

‘‘रोटियां तो 2 की जगह 4 बना दूंगी, मगर तुम यहां रुकोगे कैसे?’’ आभा बोली.

विनय बोला, ‘‘तुम डर गईं. मैं ने तो यों ही कहा था. रोज सुबह गांव में गायबैलों को चारा खिलाना मेरा ही काम है.’’

एक घंटे बाद बारिश थमी, तो विनय चला गया. पर न जाने क्यों आभा सोच रही थी कि काश, बारिश न थमी होती और वह रुक ही जाता, तो कम से कम अकेलेपन का गम तो नहीं सताता.

उस दिन आभा को तनख्वाह मिली थी. शाम को विनय उस के घर आया और बोला, ‘‘तुम्हारी पहली तनख्वाह मिली है. पार्टी तो होनी ही चाहिए,’’ बोल कर विनय ने मिठाई का पैकेट उसे पकड़ा दिया.

आभा बोली, ‘‘बोलो, क्या चाहिए?’’

‘‘मेरे बोलने से क्या मिल जाएगा?’’ इतना कह कर विनय हसरत भरी निगाहों से उसे देखने लगा.

‘‘तुम कभी सीरियस नहीं होते क्या? हमेशा हंसीमजाक के मूड में रहते हो. बैठो, मैं ने आलू के परांठे और मटरपनीर की सब्जी बनाई है. खाने के बाद कौफी बनाती हूं.’’

‘‘तब तो मजा आ जाएगा,’’ विनय ने कहा.

दोनों ने डिनर किया और कौफी पी. रात के 8 बज चुके थे. आभा विनय को छोड़ने बाहर तक आई.

विनय ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करनी चाही, पर नहीं हुई. फिर उसे याद आया, तो बोला, ‘‘मैं तो भूल ही गया था कि मोटरसाइकिल रिजर्व में थी और तेल लेना भूल गया था. अब तो यहां पैट्रोल पंप भी बंद हो जाता है. मैं तो घर नहीं जा सकता.’’

दोनों कुछ देर ऐसे ही एकदूसरे को देखते रहे. आभा कुछ बोल नहीं पा रही थी.

विनय बोला, ‘‘आज की रात अपने घर में पनाह दे सकती हो क्या?’’

आभा ने न चाहते हुए भी हां में सिर हिलाया. घर में बैड तो एक ही था. उस ने विनय को बैड दे दिया. खुद रसोईघर के पास चटाई पर सो गई. नींद तो दोनों में से किसी को नहीं आ रही थी.

आधी रात में विनय पानी लेने के बहाने रसोईघर में गया, तो रास्ते में जानबूझ कर आभा से टकरा गया.

आभा बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, पानी लेने आया था,’’ और गिलास ले कर उसी के पास बैठ गया.

आभा भी घबरा कर बैठ गई. तब विनय ने उसे लिटा दिया और कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हें भी जगा दिया.’’

आभा मन ही मन सोच रही थी, ‘मैं सोई ही कब थी कि जगाने की जरूरत होगी.’

विनय बोला, ‘‘रात में बंद कमरे में एक मर्द और एक औरत को बंद कर दिया जाए और चुपचाप रहने को कहा जाए, तो यह तो एक कठोर सजा है, तो तुम कुछ बोलो न?’’

‘‘क्या बोलूं?’’

‘‘कुछ अपने बारे में ही बताओ. अपने मायके और ससुराल के बारे में.’’

आभा थोड़ी भावुक हो चली और उठ कर बैठ गई. उस ने भरी आंखों से अपनी कहानी सुनाई.

विनय ने धीरेधीरे उस के कंधे सहलाए, फिर माथे पर एक चुंबन लिया. आभा चुपचाप बैठी रही.

विनय बोला, ‘‘तुम बहुत ही बहादुर हो. तुम्हारी जितनी भी तारीफ करूं, कम होगी,’’ इतना बोल कर वह आभा से सट कर जा बैठा और कुछ देर तक उस के बालों को छेड़ता रहा. फिर उस के गालों को सहलाते हुए उस के होंठों को भी चूम लिया और अपने आगोश में ले लिया.

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फिर विनय बोला, ‘‘जी चाहता है कि तुम्हें भरपूर प्यार करूं.’’

आभा के पूरे बदन में तरंगें उठने लगीं. दोनों के सब्र का बांध भी टूट पड़ा. एक अजीब सा दर्द हुआ उसे, पर दर्द और मजे का मधुर मेल उसे बेहद अच्छा लगा.

सुबह विनय एक डब्बे में पैट्रोल ले कर आया. मोटरसाइकिल स्टार्ट कर आभा से बोला, ‘‘दफ्तर में बोल देना कि आज मैं नहीं आ पाऊंगा.’’

2 दिन बाद आभास आभा से मिलने आया. उस दिन छुट्टी थी. उस ने आभा से अपना पत्नी धर्म निभाने को कहा, तो वह बोली, ‘‘तुम्हें अक्ल कब आएगी? दिन में इस वक्त?’’

‘‘मुझे तो बस यही वक्त मिला है,’’ बोल कर आभास ने उसे जबरन खाट पर लिटा दिया. अपना पति हक हासिल कर वह बोला, ‘‘ला, अपनी तनख्वाह दे मुझे. बापू ने मांगी है.’’

आभा बोली, ‘‘कुछ तो मैं अपनी मां को दूंगी और कुछ अपने खर्च के लिए रखूंगी. बाकी पैसे देती हूं. ससुरजी को दे देना.’’

आभास ने जबरन और पैसे छीनने चाहे, तो वह गरज उठी, ‘‘इस के आगे कोई हरकत की, तो पुलिस को बुलाऊंगी और अभी शोर मचाऊंगी.’’

जितने पैसे आभा दे रही थी, उतने लेना ही आभास ने ठीक समझा. वह जाने लगा, तो आभा बोली, ‘‘पैसे के लिए तुम्हें दोबारा यहां आने की जरूरत नहीं है. मैं ससुरजी के अकाउंट में भेज दिया करूंगी.’’

आभास चला गया. उस के बाद लौट कर वह आभा के पास नहीं आया. आभा और विनय का मिलनाजुलना चलता रहा. आभा को उस से कोई शिकायत नहीं थी. बीचबीच में वह अपनी मां के यहां जाती थी. मां जब ससुराल का हाल पूछतीं, तो बोल देती कि सब ठीक है.

आभा 2-3 बार अपनी ससुराल भी गई, तो पता चला कि आभास ज्यादातर घर से बाहर ही रहता है. घर में बोलता था कि आभा के पास जाता रहता है.

इसी तरह तकरीबन 2 साल बीत गए. विनय के साथ उस का रिश्ता उसी तरह चलता रहा.

आभा की तबीयत कुछ गड़बड़ चल रही थी. वह लेडी डाक्टर के पास गई, तो पता चला कि वह पेट से है.

आभा ने विनय से कहा, तो वह उसे ही समझाने लगा, ‘‘तुम्हें सावधानी बरतनी चाहिए थी. अब भी वक्त है, तुम अपना बच्चा गिरवा लो.’’

‘‘क्यों? तुम अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हो. इसे हम दोनों को मिल कर हल करना होगा. मैं बच्चा नहीं गिरवा रही. क्यों न हम दोनों कोर्ट मैरिज कर लें? आभास का कोई अतापता नहीं. मैं उस से तलाक ले लूंगी.’’

‘‘हमारी शादी नहीं हो सकती?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि मैं शादीशुदा हूं. मेरे बीवीबच्चे हैं.’’

‘‘पर, तुम ने तो कहा था कि घर पर सिर्फ तुम्हारे बूढ़े मातापिता हैं.’’

‘‘सच बोलने पर क्या तुम अपने पास आने देतीं?’’

‘‘तो क्या मैं तुम्हारे मनोरंजन का साधन थी?’’

‘‘तुम जो भी समझो. मैं इस बच्चे का बाप नहीं हो सकता. मैं तो तुम्हारी जिस्मानी जरूरतें पूरी कर रहा था.’’

(क्रमश:)

क्या आभा ने विनय के बच्चे को जन्म दिया? क्या आभास से उस का रिश्ता निभ पाया? पढि़ए अगले अंक में…

मजाक : खूशबू ने किया जयंत के साथ मजाक

दिल्ली से बैंगलुरु का सफर लंबा तो था ही, लेकिन जयंत की बेसब्री भी हद पार कर रही थी. 3 साल बाद खुशबू से मिलने का वक्त जो नजदीक आ रहा था. मुहब्बत में अगर कामयाबी मिल जाए तो इनसान को दुनिया जीत लेने का अहसास होने लगता है.

ट्रेन सरपट भाग रही थी लेकिन जयंत को उस की रफ्तार बैलगाड़ी सी धीमी लग रही थी. रात के 9 बज रहे थे. उस ने एक पत्रिका निकाल कर अपना ध्यान उस में बांटना चाहा लेकिन बेजान काले हर्फ और कागज खुशबू की कल्पना की क्या बराबरी करते? खुशबू तो ऐसा ख्वाब थी, जिसे पूरा करने में जयंत ने खुद को झोंक दिया था. उस की हर शर्त, हर हिदायत को आज उस ने पूरा कर दिया था. अब फैसला खुशबू का था.

जयंत ने मोबाइल फोन निकाला. खुशबू का नंबर डायल किया लेकिन फिर अचानक फोन काट दिया. उसे याद आया कि खुशबू ने यही तो कहा था, ‘जब सच में कुछ बन जाओ तब मुहब्बत को पाने की बात करना. उस से पहले नहीं. मैं तब तक तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ मोबाइल फोन वापस जेब के हवाले कर जयंत अपनी बर्थ पर लेट गया. सुख के इन लमहों को वह खुशबू की यादों में जीना चाहता था.

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5 साल पहले जब जयंत दिल्ली आया था तो वह कुछ बनने के सपने साथ लाया था लेकिन दिल्ली की फिजाओं में उसे खुशबू क्या मिली, जिंदगी की दशा और दिशा ही बदल गई. जयंत ने मुखर्जी नगर, दिल्ली के एक नामी इंस्टीट्यूट में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए दाखिला लिया तो वहां पढ़ाने वाली मैडम खुशबू का जादू पहली नजर में ही प्यार में बदल गया.

भरापूरा बदन और बेहद खूबसूरत. झील सी आंखें. घुंघराले लंबे बाल. बदन का हर अंग ऐसा कि सामने वाला देखता ही रह जाए. जयंत ने खुशबू से बातचीत शुरू करने की कोशिश की. क्लास में वह अकसर मुश्किल सवाल रखता पर खुशबू की सब्जैक्ट पर गजब की पकड़ थी. जयंत उसे कभी अटका नहीं पाया. लेकिन उस में भी बहुत खूबियां थीं इसलिए खुशबू उसे स्पैशल समझने लगी. उस दिन क्लास जल्दी खत्म हो गई. खुशबू ने जयंत को रुकने का इशारा किया. थोड़ी देर बाद वे दोनों एक कौफी हाउस में थे और वहां कहीअनकही बहुत सी बातें हो गईं. नजदीकियां बढ़ने लगीं तो समय पंख लगा कर उड़ने लगा.

एक दिन मौका देख कर जयंत ने खुशबू को प्रपोज भी कर दिया, लेकिन खुशबू ने वैसा जवाब नहीं दिया जैसी जयंत को उम्मीद थी. खुशबू की बहन की शादी थी. उस ने जयंत को न्योता दिया तो जयंत भला ऐसा मौका क्यों छोड़ता? काफी अच्छा आयोजन था लेकिन जयंत को इस सब में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी.

दकियानूसी रस्में रातभर चलने वाली थीं, इसलिए जयंत मेहमानों के रुकने वाले हाल में जा कर सो गया. लोगों की आवाजें वहां भी आ रही थीं. सब बाहर मंडप में थे. रात में अचानक किसी की छुअन की गरमाहट से जयंत की नींद खुली. हाल की लाइट बंद थी, लेकिन अपनी चादर में लड़की की छुअन वह अंधेरे में भी पहचान गया था.

खुशबू इस तरह उस के साथ… ऐसा सोचना भी मुश्किल था. लेकिन अपने प्यार को इतना करीब पा कर कौन मर्द अपनेआप पर कंट्रोल रख सकता है? चंद लमहों में वे दोनों एकदूसरे में समा जाने को बेताब होने लगे. खुशबू के चुंबनों ने जयंत को मदहोश कर दिया. अपने करीब खुशबू को पा कर उसे जैसे जन्नत मिल गई.

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तूफान थमा तो खुशबू वापस शादी की रस्मों में शामिल हो गई और जयंत उस की खुशबू में डूबा रहा. कुछ दिन बाद ऐसा ही एक और वाकिआ हुआ. तेज बारिश थी. मंडी हाउस से गुजरते समय जयंत ने खुशबू को रोड पर खड़ा पाया.

जयंत ने फौरन उस के नजदीक पहुंच कर अपनी मोटरसाइकिल रोकी. दोनों उस पर सवार हो इंडिया गेट की ओर निकल गए. खुशबू को रोमांचक जिंदगी पसंद थी इसलिए वह इस मौके का लुत्फ उठाना चाहती थी. बारिश का मजा रोमांच में बदल रहा था. प्यार में सराबोर वे घंटों सड़कों पर घूमते रहे.

जयंत और खुशबू की कहानी ऐसे ही आगे बढ़ती रही कि तभी अचानक इस कहानी में एक मोड़ आया. खुशबू ने जयंत को ग्रैंड होटल में बुलाया. डिनर की यह पार्टी अब तक की सब पार्टियों से अलग थी. खुशबू की खूबसूरती आज जानलेवा महसूस हो रही थी. ‘आज तुम्हारे लिए स्पैशल ट्रीट जयंत,’ मुसकरा कर खुशबू ने कहा.

‘किस खुशी में?’ जयंत ने पूछा. ‘मुझे नई नौकरी मिल गई… बैंगलुरु में असिस्टैंट प्रोफैसर की.’

जयंत का दिल टूट गया था. खुशबू को सरकारी नौकरी मिल गई थी, इस का मतलब उस की जुदाई भी था. जयंत ने दुखी लहजे में खुशबू को उस की जुदाई का दर्द कह सुनाया.

खुशबू ने मुसकराते हुए कहा, ‘वादा करो तुम पहले कंपीटिशन पास करोगे, नौकरी मिलने के बाद ही मुझ से मिलने आओगे… उस से पहले नहीं… न मुझे फोन करोगे और न ही चैट… ‘मैं तुम्हारी टीचर रही हूं इसलिए मुझे यह गिफ्ट दोगे. फिर हम शादी करेंगे… एक नई जिंदगी… एक नई प्रेम कहानी… मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.

‘3 साल का समय… बस, तुम्हारी यादों के सहारे निकालूंगी.’ अचानक से सबकुछ खत्म हो गया. धीरेधीरे समय बीतने लगा. जयंत ने अपना वादा तोड़ खुशबू को फोन भी किए लेकिन उस ने मीठी झिड़की से उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा.

जयंत को भी यह बात चुभ गई. अब पूरा समय वह अपनी पढ़ाई पर देने लगा. प्यार में बड़ी ताकत होती है इसलिए मुहब्बत की कशिश इनसान से कोई भी काम करा लेती है. जयंत को भारतीय सर्वेक्षण विभाग में अच्छी नौकरी मिल गई. अब खुशबू को पाने में कोई रुकावट नहीं बची थी. जयंत ने अपना वादा पूरा कर लिया था.

अचानक ट्रेन रुकी तो जयंत की नींद खुली. सुबह होने को थी. बैंगलुरु अभी दूर था. जयंत दोबारा आंखें मूंदे हसीन सपनों में खो गया. टे्रन जब बैंगलुरु पहुंची, तब तक शाम हो चुकी थी. जयंत ने खुशबू को फोन मिलाया लेकिन फोन किसी अनजान ने उठाया. वह नंबर खुशबू का नहीं था. उस का नंबर अब बदल चुका था. दूसरे दिन वह मालूम करता हुआ खुशबू के कालेज पहुंचा.

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लाल गुलाब और खुशबू के लिए गिफ्ट से भरे बैग जयंत के हाथों में लदे थे. वैसे भी जयंत को खुशबू को उपहार देने में बड़ा सुकून मिलता था. अपनी पौकेटमनी बचाबचा कर वह उस के लिए छोटेछोटे गिफ्ट लाता था जिन्हें पा कर खुशबू बहुत खुश होती थी. खुशी से लबरेज जयंत कालेज गया. खुशबू के रूम में पहुंचा तो जयंत को देख वह उछल पड़ी. मिठाई का डब्बा आगे कर जयंत ने उसे खुशखबरी सुनाई.

खुशबू ने एक टुकड़ा मुंह में रखा और जयंत को शुभकामनाएं दीं. जयंत में सब्र कहां था. उस ने आगे बढ़ उस का हाथ थामा और चुंबन रसीद कर दिया.

‘‘प्लीज जयंत… यह सब नहीं… प्लीज रुक जाओ,’’ अचानक खुशबू ने सख्त लहजे में जयंत को टोकते हुए रोका. ‘‘लेकिन यार, अब तो मैं ने अपना वादा पूरा कर दिया… तुम से मेरी शादी…’’ निराश जयंत ने पूछा.

‘‘सौरी जयंत… प्लीज… मैं ने शादी कर ली है. अब वे सब बातें तुम भूल जाओ..’’ ‘‘क्या? भूल जाऊं… मतलब?’’ जयंत उसे घूरते हुए बोला.

‘‘हां, मुझे भूलना होगा,’’ मुसकराते हुए खुशबू बोली, ‘‘वे सब मजाक की बातें थीं… 3 साल पहले कही गई बातें… क्या अब इतने दिन बाद… तुम्हें तो मुझ से भी अच्छी लड़कियां मिलेंगी…’’ मुसकराते हुए खुशबू बोली.

जयंत उलटे पैर लौट पड़ा. लाल गुलाब उस के भारी कदमों के नीचे कुचल रहे थे. मजाक की बातें शायद 3 साल में खत्म हो जाती हैं… माने खो देती हैं… जयंत समझने की नाकाम कोशिश करने लगा.

नई शुरुआत : भाग 2

पिछले अंक में आप ने पढ़ा:

12वीं जमात में फेल होते ही आभास को उस के पिता ने अपने मछली कारोबार में लगा दिया. आभा स्कूल मास्टर की बेटी थी. वह जहां भी जाती, आभास उसे छोड़ने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था. पिता की मौत के बाद हालात ऐसे बने कि आभा व आभास की शादी हो गई. फिर आभा की नौकरी एक स्कूल में लग गई, जहां विनय नाम का एक मास्टर उस के नजदीक आ गया. दोनों में संबंध बने और आभा पेट से हो गई.

अब पढि़ए आगे…

 ‘‘मेरी जरूरतें वैसी नहीं थीं. वह तो औरत की कमजोरी है, जो जरा सा प्यार मिलने पर पिघल जाती है. तुम अपनी बीवी को भी धोखा दे रहे थे. मेरे पास सिर्फ ऐयाशी के लिए आते थे.’’

‘‘तुम कुछ भी समझ सकती हो,’’ विनय बोला.

‘‘हां, कुछ भी कहने से तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि तुम बेशर्म हो. तुम एक नंबर के बुजदिल भी हो. अभी तुम्हारी करतूत तुम्हारी बीवी को बता दूं, तो पतलून गीली हो जाएगी. जाओ, दफा हो जाओ. दोबारा अपना चेहरा मत दिखाना. थूकती हूं तुम पर.

‘‘मैं चाहूं तो कानूनन इस बच्चे का हक भी दिला सकती हूं, पर मैं इतनी कमजोर भी नहीं, जितना तुम ने सोचा होगा,’’ आभा गुस्से में इतना कुछ बोल गई.

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विनय तो चला गया, पर आभा बहुत देर तक रोती रही. वह स्कूल जाती. विनय से सामना भी होता, पर कोई बात नहीं होती. लेकिन विनय का खोट उस की कोख में बारबार चोट मारता था. कुछ ही दिनों के बाद अचानक आभास आया. आभा उसे पहचान न सकी. वह बिलकुल बदल गया था. अच्छे कपड़ों में वह सजासंवरा लग रहा था.

आभास बोला, ‘‘कैसी हो आभा? तुम तो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो.’’

आभा बोली, ‘‘मैं ने पैसे तो भेज दिए थे. अब क्या चाहिए तुम्हें? मेरा पीछा छोड़ो.’’

‘‘अरे, तुम मेरी बीवी हो. मैं तुम्हें कैसे छोड़ दूंगा?’’ आभास ने इतना बोल कर जबरन उसे खाट पर बिठा दिया और खुद बगल में बैठ गया.

आभा बोली, ‘‘आज कोई जबरदस्ती की, तो मैं शोर मचाऊंगी.’’

‘‘तुम शोर मचा लो, लेकिन मैं कोई जबरदस्ती नहीं करने जा रहा हूं.’’

‘‘देखो, मैं बहुत परेशान हूं. मुझे और तंग न करो.’’

‘‘मैं तुम्हारी परेशानी जानता हूं. जैसा भी हूं, तुम्हारा पति हूं, तुम्हें मुसीबत से बचाने आया हूं. मैं सब जानता हूं.’’ आभा हैरानी से उस की ओर देख कर बोली, ‘‘क्या जानते हो तुम?’’

आभास बड़े ही सब्र से बोला, ‘‘तुम मां बनने वाली हो.’’

आभा को बड़ी हैरानी हुई. वह बोली, ‘‘तुम्हें यह सब कैसे पता चला?’’

‘‘वह सब मैं रास्ते में बताऊंगा. तुम स्कूल जा कर एक हफ्ते की छुट्टी ले लो, फिर आ कर जौइन कर लेना.’’

आभास और आभा टैक्सी से फतुहा जा रहे थे. आभा के पूछने पर आभास बोला, ‘‘तुम्हें जो लड़का सुबहसुबह दूध और अखबार पहुंचाता है, उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूं. मैं बीचबीच में यहां भी आता रहा हूं. मास्टर बाबू की मोटरसाइकिल भी तुम्हारे घर के सामने कई बार देख चुका हूं और बाकी खबर उस लड़के से फोन पर लेता रहता हूं. उसी लड़के ने बताया था कि तुम औरतों की डाक्टर से मिलने भी गई थीं.’’

आभास ने आभा का हाथ अपने हाथ में ले लिया. आभा की आंखों से आंसू की बूंदें उस की हथेली पर गिर रही थीं.

आभा बोली, ‘‘तुम इतना बदल कैसे गए?’’

‘‘जब मैं तुम्हारे पास रुपए मांगने गया था, तब तुम्हारी फटकार से मुझे बहुत दुख हुआ. मैं ने 2 साल का आईटीआई का इलैक्ट्रिकल ट्रेड कोर्स में दाखिला लिया. उस के बाद अपनी एक इलैक्ट्रिकल सामान की दुकान खोली और नए बन रहे घरों में वायरिंग का काम किया.

‘‘बाद में पटना में अपार्टमैंट्स में वायरिंग का ठेका लेने लगा. अब तो कुछ ठेके सरकार से भी मिलने लगे हैं. यह सब तुम्हारी वजह से ही हुआ है.’’

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आभा उस से सटते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करना. मुझ से भूल हो गई.’’

‘‘माफीवाफी छोड़ो. घर चल कर तुम भूल कर भी उस मास्टर का नाम न लेना. मां जानती हैं कि मैं बीचबीच में इसलामपुर तुम्हारे पास आता रहता हूं. किसी को तुम्हारे पेट से होने को ले कर कोई शक नहीं होगा.’’

‘‘मगर, यह बच्चा तो विनय का ही है.’’

‘‘यह बच्चा सिर्फ हम दोनों का होगा. तुम कहो, तो मास्टर की टांगें तुड़वा दूं?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं करना,’’ आभा बोली.

आभास बोला, ‘‘जैसा तुम कहो.’’

आभा अपनी ससुराल आ गई थी. अब घर पहले से काफी साफसुथरा लगता था. रात में जब आभास उस के पास आया, तो वह बोली, ‘‘आज मछली की बदबू नहीं आ रही है.’’

आभास बोला, ‘‘अब सरकार ने मछली वाला ठेका दूसरी पार्टी को दे दिया है. यहां का विधायक मेरी पहचान का है. वही शिक्षा मंत्री भी है. सोच रहा हूं कि उस से बोल कर तुम्हारा ट्रांसफर यहीं करवा दूं.

‘‘कुछ महीने में तुम्हारा काम हो जाएगा. तब तक वहीं काम करती रहो. अगर तुम चाहो, तो नौकरी छोड़ भी सकती हो.’’

आभा बोली, ‘‘आभास, अब मैं जिंदगी के उतारचढ़ाव से थक गई हूं. अब एक सीधीसादी जिंदगी जीने का मन कर रहा है.’’

आभास ने उस से पूछा, ‘‘अच्छा, सचसच बताना कि क्या सारी गलती मेरी ही थी?’’

‘‘कुछ तुम्हारी, कुछ मेरी और कुछ हम दोनों की.’’

‘‘तब क्यों न पुरानी बातों को भूल कर एक नई जिंदगी की शुरुआत करें… आज से और अभी से?’’

यह सुनते ही आभा आभास की बांहों में समा गई.

एक रात : भाग 3

लेखक- मृणालिका दूबे

‘‘क्या हुआ? क्या टूट गया विक्रम?’’ कहती हुई नीता हाल में आई तो उस ने देखा, विक्रम पागलों की तरह टीवी स्क्रीन को घूर रहा था और उस का कप नीचे गिर कर टूट चुका था.

नीता ने झुक कर टूटा कप सावधानी से उठाया और चिंतित स्वर में बोली, ‘‘तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी? दूसरी चाय बना कर लाऊं?’’

विक्रम ने सिर हिलाते हुए मना कर दिया. फिर जल्दी से मोबाइल उठा कर साहिल को काल लगाने लगा. साहिल के काल पिक करते ही विक्रम ने कंपकंपाते हुए स्वर में धीरे से कहा, ‘‘हैलो साहिल, तुम ने न्यूज देखी क्या अभी की?’’

उधर से साहिल की अलसाई आवाज आई, ‘‘ओह यार, मैं तो अब तक सो ही रहा था. क्यों, क्या न्यूज है ऐसी, जो इतना परेशान हो कर काल कर रहा है तू?’’

‘‘ओफ्फोह साहिल, प्लीज जल्दी से टीवी औन कर और न्यूज देख अभी.’’ विक्रम ने किसी तरह कहा और काल कट कर मोबाइल टेबल पर रख दिया.

नीता यह सब देखसुन कर हैरान होते हुए बोली, ‘‘ओह तो इस लड़की की हत्या की खबर से तुम इतने परेशान हो रहे हो. क्या तुम जानते थे इसे?’’

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‘‘मैं? न..नहीं तो. भला मैं कैसे जानूंगा इस लड़की को?’’ विक्रम ने हकलाते हुए कहा.

तभी विक्रम का मोबाइल बज उठा.

हड़बड़ाते हुए विक्रम ने मोबाइल उठा कर देखा तो एक अनजान नंबर था. उस ने काल पिक करते हुए धीरे से हैलो कहा.

तो दूसरी ओर से एक रूखी आवाज आई, ‘‘मिस्टर विक्रम बोल रहे हैं? आप को अभी 11 बजे बांद्रा पुलिस स्टेशन में बुलाया है हमारे साब ने.’’

विक्रम के कुछ कहने से पहले ही काल कट हो गई.

‘‘ओह गौड, मैं तो भूल ही गया था. कल रात मिले पुलिस अफसर के बारे में.’’ विक्रम बुदबुदाया.

फिर नीता के कुछ पूछने से पहले ही वाशरूम में घुस गया.

जब विक्रम तैयार हो कर वाशरूम से बाहर आया तो नीता ब्रेकफास्ट सर्व कर चुकी थी. वह विक्रम से बोली, ‘‘आप जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लो फिर थोड़ा मार्केट जाएंगे. अभी तो आप की ड्यूटी जाने के लिए 3-4 घंटे हैं.’’

विक्रम ने जल्दी से चाय पी फिर बोला, ‘‘सौरी, मुझे एक बेहद जरूरी काम के सिलसिले में अभी निकलना होगा. मैं उधर से ही औफिस चला जाऊंगा.’’

नीता ने मुंह बनाया और फिर गुस्से से कप ले कर अंदर चली गई.

और कोई दिन होता तो विक्रम यूं गुस्से में भरी नीता को मनाए बिना घर से बाहर कदम नहीं रखता, पर अभी तो विक्रम के दिलोदिमाग में बस कल रात की घटना और आज सुबह की न्यूज ही घूम रही थी.

विक्रम ने बिल्डिंग के बाहर निकल कर साहिल को काल किया, ‘‘हैलो साहिल, तुम्हें पुलिस स्टेशन से काल आया क्या 11 बजे पहुंचने का?’’

साहिल ने घबराते हुए कहा, ‘‘ओह यार, मैं अभी तुझे ही काल करने वाला था. टीवी पर उस रात वाली लड़की की डैडबौडी देख कर तो मेरे छक्के छूट गए. और उस पर पुलिस स्टेशन का बुलावा…पता नहीं यार मेरा तो दिल बैठा जा रहा है.’’

विक्रम ने जल्दी से कहा, ‘‘सुन, मैं तेरे स्टौप पर पहुंच रहा हूं. फिर साथ में ही चलेंगे हम.’’

कुछ देर बाद विक्रम और साहिल पुलिस स्टेशन में कल रात मिले पुलिस अफसर के सामने बैठे थे.

औफिसर ने दोनों को घूरते हुए देखा. फिर कड़क लहजे में बोला, ‘‘तो आखिर मार ही डाला आप ने उस मासूम लड़की को. मुझे तो कल रात ही डाउट हो गया था कि आप दोनों के इरादे ठीक नहीं, पर तब मुझे अर्जेंट मिशन पर जाना था. ओह काश! मैं कल ही दोनों को अरेस्ट कर लेता तो आज वो बेचारी जिंदा होती.’’

विक्रम घबरा कर जोर से बोला, ‘‘नहींनहीं सर, हम भला क्यों उस लड़की को मारेंगे? हम तो उसे जानते भी नहीं.’’

‘‘अच्छा, तो फिर कल रात क्यों कहा कि वो लड़की तुम्हारे बौस मिस्टर कबीर की मंगेतर है?’’ औफिसर ने सख्ती से कहा.

अब साहिल बेहद नरमी से बोला, ‘‘सर, हम बिलकुल सच कह रहे हैं कि उस लड़की को हम जानते तक नहीं और न ही कभी पहले देखा था. वही अचानक कल रात हमें औफिस के बाहर मिल गई थी और फिर बाद में खुद उस ने ही लिफ्ट देने की पेशकश की.’’

औफिसर ने व्यंग से कहा, ‘‘ओह अच्छा, फिर लिफ्ट देने के बदले में आप ने उस लड़की ने जान ले ली. क्यों है न?’’

विक्रम और साहिल कुछ बोलते कि तभी सामने से हैरानपरेशान मिस्टर कबीर आ खड़े हुए.

बौस को देखते ही विक्रम और साहिल चौंक कर उन्हें विश करते हुए बोले, ‘‘गुड मौर्निंग सर, आप और यहां?’’

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जवाब औफिसर ने दिया, ‘‘मिस्टर कबीर को मैं ने ही यहां बुलवाया है. क्योंकि कल रात आप दोनों ने कहा था न कि वो लड़की मिस्टर कबीर की फियांसे है. तो अब इन से पूछताछ तो करनी ही थी.’’

‘‘फियांसे? मेरी…कौन है वो?’’ मिस्टर कबीर ने हैरत से पूछा.

औफिसर ने न्यूजपेपर उठा कर उस लड़की का फोटो मिस्टर कबीर को दिखाया. फिर कहा, ‘‘तो बताइए मिस्टर कबीर कि ये लड़की क्या सच में आप की फियांसे है? इस ने कल रात अपना नाम सुनैना साहनी बताया था, जबकि जांच से पता चला है कि इस का नाम निया है और ये एक स्ट्रगलिंग एक्ट्रैस है.’’

कबीर ने उस फोटो को एक नजर देखा फिर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘इस लड़की को तो मैं ने कभी देखा भी नहीं है. और मेरी फियांसे सिंगापुर में रहती है. शीना नाम है उस का. वहां एक बड़ी कंपनी में सीनियर एग्जीक्यूटिव है वो.’’

‘‘अब? अब क्या कहना है दोनों का?’’ औफिसर ने घेरते हुए विक्रम और साहिल से पूछा.

विक्रम और साहिल दोनों के चेहरों पर मायूसी गहरा उठी. वे समझ गए कि इस केस में वे बुरी तरह से फंस गए हैं.

उन्हें खामोश देख कर मिस्टर कबीर ने जोर से कहा, ‘‘ये क्या बकवास फैला रहे हो तुम दोनों मेरे खिलाफ? भूलो मत कि तुम्हारी नौकरी मेरे रहमोकरम पर ही टिकी है.’’

‘‘सर, हम सच कह रहे हैं. वह लड़की कल रात आप के ही बारे में पूछती हुई औफिस के बाहर मिली थी हमें. और उस ने ही बताया था कि वह आप की फियांसे है.’’ साहिल ने बेचारगी से कहा.

मिस्टर कबीर ने उन की ओर बिना देखे ही औफिसर से पूछा, ‘‘सर, अगर अब आप को तसल्ली हो गई हो तो मैं जाऊं? मुझे और भी बहुत से इंर्पोटेंट काम निपटाने हैं.’’

अफसर के सिर हिलाते ही मिस्टर कबीर तेजी से वहां से निकल गए.

अफसर ने अब विक्रम और साहिल की ओर हंस कर देखा, ‘‘क्यों बच्चू, बड़े चालाक समझ रहे हो खुद को? पर अगर मैं एक मिनट को मान भी लूं कि तुम सच्चे हो तो क्या जरूरत थी तुम्हें एक अनजानी लड़की से लिफ्ट लेने की? क्या तुम किसी कैब में नहीं आ सकते थे?’’

विक्रम और साहिल तो लगभग रो ही पड़े.

तभी औफिसर बोला, ‘‘अभी ये बात मैं ने किसी भी दूसरे औफिसर या मीडिया को नहीं बताई है कि कल रात तुम दोनों उस लड़की के साथ ही थे. नहीं तो सोचो कि ये बात पता चलते ही तुम्हें तो जमानत भी नहीं मिलने वाली. और कल के न्यूजपेपर में तुम दोनों की ही फोटोज हेडलाइन की शोभा बढ़ाएंगी.’’

‘‘नहीं, नहीं सर, प्लीज ऐसा मत करिए आप.’’ कहते हुए विक्रम और साहिल औफिसर के आगे गिड़गिड़ाने लगे.

औफिसर कुछ देर मौन टहलता रहा. फिर अचानक ही विक्रम और साहिल के करीब आते हुए बोला, ‘‘ओके, मैं तुम्हारी हेल्प करूंगा. पर…एक हेल्प तुम्हें भी करनी पड़ेगी.’’

‘‘बोलिए सर, हम कुछ भी करने को तैयार हैं.’’ विक्रम और साहिल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘मर्डर…एक मर्डर करना है तुम दोनों को. और वो भी आज ही.’’ अफसर ने धीमे किंतु सख्त लहजे में कहा.

‘‘मर्डर? क्या बोल रहे हैं सर आप?’’ विक्रम ने घबराहट भरे स्वर में कहा.

साहिल भी रुआंसा हो कहने लगा, ‘‘सर, हम कोई मर्डरर नहीं हैं. हम तो बस कंपनी के एंप्लाइज हैं.’’

औफिसर ने अब दोनों को जलती नजरों से घूरा. फिर कठोर शब्दों में बोला, ‘‘यहां कोई डिबेट नहीं चल रहा है, जो तुम दोनों अलगअलग तर्कवितर्क देते बैठे हो. ये तुम्हारे पास एक लास्ट चांस है जीने का. अगर जीना चाहते हो तो मेरी बात मान लो, नहीं तो फिर एक बार अगर मैं कल रात की दास्तान दूसरे औफिसर्स को बता दी तो फिर कोई भी तुम्हें बचा नहीं सकेगा.’’

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रूम में एकदम सन्नाटा छा गया.

कुछ पलों बाद विक्रम हताश स्वर में बोला, ‘‘किस का मर्डर करवाना चाहते हैं आप?’’

‘‘मिस्टर कबीर का.’’ औफिसर ने ठंडे लहजे में कहा.

‘‘क्याऽऽ मिस्टर कबीर का मर्डर? पर क्यों?’’ साहिल और विक्रम दोनों ही जोर से बोल पड़े.

‘‘अब क्यों, किसलिए, ये सब सवाल न ही पूछो तो अच्छा रहेगा. तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी है कि कब? कत्ल कब करना है?’’ औफिसर ने एकएक शब्द चबाते हुए कहा.

एक रात : भाग 2

लेखक- मृणालिका दूबे

साहिल और विक्रम गाड़ी से उतर कर मन ही मन भुनभुनाते हुए धक्का लगाने लगे, तभी रात के सन्नाटे में एकदम से पुलिस सायरन की आवाज गूंज उठी.

कुछ ही पलों में एक पुलिस जीप आ कर निया की गाड़ी के पास रुक गई.

विक्रम और साहिल ठिठक कर जीप की ओर देखने लगे. उस में से एक पुलिस अफसर उतरा और इन दोनों के करीब आता हुआ कड़क लहजे में बोला, ‘‘आधी रात के वक्त इस सुनसान सड़क पर क्या कर रहे हो तुम लोग?’’

विक्रम ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘करेंगे क्या, अपनी किस्मत को कोसते हुए इस बंद पड़ी गाड़ी को धकेल रहे हैं.’’

अफसर का लहजा अब और सख्त हो गया, ‘‘सीधेसीधे बताओ कि बात क्या है? यूं फिलासफी झाड़ने के लिए नहीं कहा मैं ने.’’

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अब निया गाड़ी से बाहर निकलती हुई नरमी से बोली, ‘‘सर, हम औफिस से घर जा रहे थे कि रास्ते में अचानक ही गाड़ी बंद पड़ गई.’’

‘‘ओह तो ये बात है…’’ पुलिस अफसर ने घूरते हुए कहा.

फिर अपने साथ खड़े कांस्टेबल से बोला, ‘‘जरा तलाशी तो लो इस गाड़ी की अच्छे से.’’

कांस्टेबल तुरंत आगे बढ़ कर गाड़ी की तलाशी लेने लगे. अफसर ने निया से गाड़ी के पेपर्स मांगे तो निया हिचकते हुए बोली, ‘‘सर, प्लीज आप बिनावजह तलाशी ले रहे हैं. देखिए न कितनी रात हो चुकी है. और मैं अकेली लड़की…’’

‘‘अकेली? अकेली कहां हैं आप…ये दोनों भी तो आप ही के साथ हैं न?’’ अफसर ने जोर देते हुए कहा.

फिर गाड़ी के पेपर्स देखते ही एकदम चौंक कर बोला, ‘‘सुनैना साहनी? आप सुनैना हो, वो फेमस रिपोर्टर?’’

अफसर की बात सुनते ही विक्रम और साहिल चौंक गए, ‘‘सुनैना… पर इस ने तो अपना नाम निया बताया था हमें. क्या ड्रामा कर रही है ये लड़की.’’

निया ने बहुत धीमी आवाज में अफसर से कहा, ‘‘सौरी सर, पर मेरा नाम सुनैना ही है. और मैं घर जा रही थी कि अचानक बीच रास्ते में गाड़ी खराब हो गई. वो तो अच्छा हुआ कि ये दो भले लोग मिल गए मुझे धक्का मारने के लिए.’’

अब तो विक्रम लगभग बरस ही पड़ा, ‘‘क्या? हम तुम्हें रास्ते में मिल गए? अरे, हम दोनों को तो तुम्हीं ने लिफ्ट दी थी न हमारे औफिस के पास से? और तुम ने तो अपना नाम निया बताया था.’’

यह सुनते ही औफिसर की आंखें सिकुड़ गईं. उस ने घूरते हुए निया उर्फ सुनैना को देखा और गंभीर स्वर में बोला, ‘‘ये क्या ड्रामा चल रहा है? सचसच बताइए, माजरा क्या है आखिर?’’

निया हाथ जोड़ कर रुआंसे हो कहने लगी, ‘‘सर, आप ही बताइए कि क्या आधी रात को कोई अकेली लड़की दो अजनबी युवकों को अपनी गाड़ी में लिफ्ट देगी?’’

औफिसर कुछ कहता कि साहिल चिढ़ कर बोला, ‘‘हद होती है झूठ की भी. सर, हम सच कह रहे हैं कि ये लड़की हमें हमारे औफिस के बाहर मिली थी और हम से कहा कि ये हमारे बौस मिस्टर कबीर की फियांसे है. और इस ने ही सामने से औफर किया कि हम उस की गाड़ी में चलें.’’

अब वो लड़की एकदम से चिल्लाते हुए कहने लगी, ‘‘ये क्या बकवास कर रहे हो तुम लोग? मैं क्या पागल हूं जो इतनी रात गए 2 लड़कों को लिफ्ट दूंगी? और ये किस कबीर की बात कर रहे हो तुम दोनों? मैं न तो किसी कबीर को जानती और न ही अब तक मेरी किसी से भी इंगेजमेंट हुई है.’’

अब तो विक्रम और साहिल हतप्रभ हो उस लड़की को घूरने लगे.

तभी अफसर ने जोर से कहा, ‘‘आप तीनों अपना नाम एड्रैस और मोबाइल नंबर नोट कराइए और कल सुबह जब आप को थाने बुलाया जाएगा, तब शराफत से चले आना. अब बाकी पूछताछ कल थाने में ही होगी. अभी मुझे एक क्रिमिनल के अड्डे पर रेड डालना है. चलो, अब निकलो यहां से.’’

विक्रम और साहिल पैर पटकते हुए वहां से चल दिए. कुछ दूर जा कर साहिल ने मोबाइल निकाल कर कैब बुक कराई और लोकेशन सेंड कर वे दोनों कैब का वेट करने लगे.

पुलिस की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गई. विक्रम ने साहिल से कहा, ‘‘उस लड़की ने तो हमें अच्छा उल्लू बनाया. खामख्वाह ही हम पुलिस के झंझट में फंस गए.’’

साहिल चिढ़े स्वर में बोला, ‘‘कल तो मैं पक्का पुलिस स्टेशन में उस लड़की की अच्छी खबर लूंगा.’’

विक्रम कुछ कहता कि तभी कैब आती हुई दिखी. जल्दी ही दोनों कैब में बैठ उस लड़की के बारे में सोचते हुए अपने घर की ओर चल दिए.

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पहले साहिल अपने स्टौप पर उतर गया और फिर विक्रम अपने एड्रैस की ओर चल पड़ा. कैब से उतर कर जब विक्रम अपनी बिल्डिंग की ओर बढ़ा तो वहां के गेट पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने हैरानी से कहा, ‘‘क्या बात है साब, आज तो आप ने घर लौटने में बड़ी देर लगा दी.’’ विक्रम बिना कुछ बोले लिफ्ट की ओर बढ़ गया.

जैसे ही अपने फ्लैट का दरवाजा खोल वह अंदर पहुंचा तो लाइट्स जलती हुई देख हैरान रह गया. सोफे पर नाइटी पहने नीता गुस्से से भरी मोबाइल अपने हाथ में लिए बैठी थी.

विक्रम को देखते ही नीता एकदम से चिल्ला कर बोली, ‘‘ये कोई वक्त है घर आने का? ढाई बज चुके हैं. इस से तो अच्छा होता कि आप अपने औफिस में ही सो जाते.’’

विक्रम ने अपने को संभालते हुए बड़ी नरमी से नीता का हाथ पकड़ा और प्यार से बोला, ‘‘ओह बेबी, तुम क्यों जाग रही थी इतनी रात तक? तुम्हें तो सो जाना चाहिए था न.’’

नीता गुस्से से उबल पड़ी, ‘‘ओह तो आप भूल गए न कि आज हमारी शादी को एक महीने पूरे हो गए. मुझे लगा था कि कम से कम आज तो आप जल्दी आओगे. पर आज तो आप ने सारी लिमिट ही क्रौस कर दी.’’ और वह फूटफूट कर रोने लगी.

विक्रम सब भूल कर नीता को शांत करने में जुट गया. फिर उसे प्यार से अपनी बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘आई एम रियली वेरी सौरी बेबी. वो आज तो मैं जल्दी ही घर आने वाला था, पर औफिस की कैब खराब होने की वजह से इतना लेट हो गया.’’

नीता ने गुस्से से विक्रम को देखा, फिर तुनकते हुए बोली, ‘‘हुंह, अभी तो एक महीना ही हुआ है शादी को और अभी से तुम्हारा ये हाल है तो पता नहीं आगे क्या होगा.’’

विक्रम ने उस का हाथ पकड़ना चाहा पर नीता हाथ झटक कर चल दी और बैडरूम में लाइट औफ कर दरवाजा बंद कर सो गई.

विक्रम ने उसे कई बार पुकरा पर नीता ने कोई जवाब नहीं दिया. आखिर थकाहारा विक्रम वहीं रखे सोफे पर सो गया.

‘‘विक्रम, उठो और चाय पी लो.’’ नीता की आवाज सुनते ही विक्रम ने अपनी आंखें खोलीं. उस की नजर घड़ी पर गई. वो बुदबुदाया, ‘‘ओह गौड! आज तो बहुत देर तक सोता रहा मैं.’’

फिर चाय का कप उठा विक्रम चाय पीने लगा. नीता अब तक नाराज लग रही थी. उस ने टीवी औन कर के न्यूज चैनल लगाया और फिर अंदर किचन में चली गई.

चाय पीते हुए विक्रम का ध्यान अचानक ही टीवी पर गया, वहां न्यूज रीडर कल रात की हैरतअंगेज घटना का जिक्र कर रहा था.

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न्यूज रीडर कह रहा था, ‘‘कल आधी रात को एक जवान लड़की निया की लाश उस की गाड़ी में मिली है. लड़की की हत्या उस की गरदन काट कर की गई है. पता नहीं वो कौन निर्मम हत्यारा है, जिसे इतनी खूबसूरत लड़की की गरदन काटते हुए जरा भी दया नहीं आई. पुलिस सरगरमी से हत्यारे की तलाश में जुटी है.’’

विक्रम के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. फिर जब टीवी स्क्रीन पर उस लड़की की लाश दिखाई गई तो विक्रम के हाथ से कप छूट कर नीचे जमीन पर जा गिरा, ‘ये तो उसी लड़की की लाश थी, जिस ने कल रात उन्हें लिफ्ट दी थी. तो क्या उस का असली नाम निया ही था?’

दिल आशना है : पहला भाग

लेखक- सिराज फारूकी

‘‘लोग सऊदी अरब जा रहे हैं, तुम भी चले जाओ…’’  एक दिन मुबीना ने अपने शौहर के होंठों पर अपनी उंगलियां फिराते हुए मशवरा दिया.

मुबीना 25-26 साल की, दरमियाना कद, गोरी रंगत, गोल चेहरा, बड़ीबड़ी आंखें, सुतवां नाक, सुराहीदार गरदन, लंबे बालों वाली औरत थी. मांसलता और मादकता उस के पोरपोर में समाई हुई थी.

30-32 साला अकील जिस का कद लंबा, गेहुआं रंग, छोटीछोटी आंखें, चौड़ा चेहरा, जिस पर मर्दानगी को नई ऊंचाइयां देती लंबी घनेरी मूंछें और दाढ़ी से पाक चेहरा, ने माथे को चिंता से सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं भी यही सोचता हूं. एक बार हो आऊं, तो हालात सुधर जाएं.

‘‘अब देखो न, आसिफ 2 साल के लिए गया था. कैसा चकाचक हो कर आया है. यहां आ कर एक गाला भी खरीद लिया है और 700 स्क्वायर फुट का फ्लैट भी. लौरी ले कर किस शान से कारोबार कर रहा है…?’’

मुबीना ने अकील के सीने पर अपना सिर रखते हुए कहा, ‘‘आसिफ को ही क्यों देख रहे हो? इस्माईल को भी देखो न. पहले क्या था उस के पास? और लतीफ को भी ले लीजिए, उस की भी पौबारह हो गई है…’’

‘‘हां, पहले सब फटीचर ही थे…’’ अकील ने मुबीना के गुलाबी गालों को सहलाया. मुबीना ने आंखें मूंद कर उस की छुअन का लुत्फ लेते हुए कहा, ‘‘और अब इज्जतदार…’’

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‘‘दौलत जो आ गई है…’’

मुबीना अकील के पास लेटी हुई थी. वह शोख नजरों से उस की गदराई जवानी और सुडौल जिस्म को देख कर बोला, ‘‘लेकिन, तू मेरे बिना रह पाएगी…’’ और उसे खींच कर अपने ऊपर ले लिया.

‘‘क्यों…?’’ वह उस के ऊपर आ कर शरारत से देखते हुए बोली.

‘‘क्योंकि, तेरे को हर रात मर्द जो लगता है…’’

‘‘अब ऐसी भी बात नहीं है… है तो ठीक, वरना कोई बात नहीं…’’ मुबीना की नजरों में नाराजगी के भाव थे.

‘‘चलेगा न…?’’ अकील ने मुबीना को सवालिया निगाहों से घूरा.

‘‘हां, फिर… कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है…’’

‘‘बहुत समझदार है…’’ अकील ने प्यार की चपत उस के गाल पर जड़ी और सीने में भींच लिया.

दोनों में यह तय हो गया कि अकील को सऊदी अरब जाना ही चाहिए. उरण नाके पर उन की एक छोटी सी किराने की दुकान थी, जो बहुत कम चलती थी या इतनी चलती थी कि गुजारा होना मुश्किल था. 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन का भी भविष्य सामने था.

अकील का मन तो विदेश जाने के लिए नहीं होता था, मगर विदेशी दीनार और रियाल की चमकदमक उसे अपनी ओर बराबर खींचती रहती थी, क्योंकि वह जानता था कि आज जमाना रुपएपैसे वालों का है. जिस के पास रुपएपैसे नहीं हैं, समाज में उस की इज्जत नहीं है. इसलिए उस ने मन में इरादा कर लिया कि वह विदेश जा कर खूब दौलत कमाएगा.

लेकिन अकील के सामने एक बड़ा मसला था, उस की बीवी और बच्चों का. अगर वह चला गया तो इन का रखवाला कौन होगा? अगर कुछ ऊंचनीच हो गई तो सोचतेसोचते उस की नजरें तौफीक पर गईं, जो उस का खास दोस्त था और विश्वासी भी. उस ने उस से बात की तो उस ने कहा, ‘‘जाओ…बेफिक्र हो कर…मैं हूं न… सब संभाल लूंगा…’’

‘‘यार, तेरा ही तो सहारा है…’’ अकील ने खुश होते हुए उस का हाथ गर्मजोशी से पकड़ लिया, ‘‘तेरी ही वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं, वरना मेरी हिम्मत नहीं होती…’’

‘‘बिंदास जाओ यार, मैं हूं न… अरे, वह दोस्त ही क्या, जो दोस्त के काम न आए…’’ तौफीक ने हौसला बढ़ाया.

अकील उस की बातों से खुश हो गया और फिर एक दिन मुबीना और तौफीक उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने आए.

अकील के चले जाने के बाद मुबीना आंख में आए आंसुओं को पोंछने लगी, तो तौफीक ने दिलासा दिया, ‘‘भाभी, रोइए मत… मैं हूं न…’’ और उस ने उस के छोटे बेटे अदील को गोद में उठा लिया.

अकील के जाने के बाद तौफीक हर रोज उस के घर जाता और हालचाल पूछ आता. आनाजाना तो उस का पहले भी था, मगर इतना नहीं, जितना अब. शायद वह फर्ज की अदायगी के लिए इसे जरूरी समझता था.

मुबीना उसे जानती थी. वह उस के पति का खास दोस्त है. मगर उस की बेतकल्लुफी न थी. लेकिन, जब शौहर हुक्म दे गया, ‘जो सुखदुख होगा, बिना खौफ उस से कहना. मेरे बाद यही तुम्हारा मददगार है. यही समझना कि अब यह तुम्हारा छोटा भाई है. इस के सिवा किसी पर यकीन मत करना…’ तो अब उस से झिझक कैसी? और इस शहर में कोई और है भी नहीं, इसलिए अब वह अपनी हर छोटीबड़ी बात उस से शेयर करती और वह भी उस के हुक्म की तामील करता.

धीरेधीरे उन दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. तौफीक घर में आता तो बच्चों के साथ घंटों बैठा रहता. ऐसी हालत में मुबीना चाय बना कर दे जाती. अब किस के दिल में क्या है, किसी को क्या मालूम. समय आहिस्ताआहिस्ता रेंगता रहा.

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एक रात मुबीना ने महसूस किया, उसे मर्द की जरूरत है. यह जज्बा इतना जोर पकड़ा कि वह खुद को कोसने लगी. नाहक ही उन्हें भेजा. बड़ी गलती हुई. नहीं भेजना चाहिए था. पैसे का तो सुख मिल रहा है, मगर जिंदगी का. मर्द नहीं तो औरत की जिंदगी क्या है? उस ने करवट बदलते हुए विचार किया. औरतें 2-2 साल बिना मर्दों के कैसे रह लेती हैं? अभी तो अपने को सिर्फ

6 महीने हुए हैं और यह हालत हुई

जाती है.

एक रात फोन पर मुबीना ने इस बात की शिकायत की, तो अकील ने कहा, ‘‘मैं जल्दी ही वापस आऊंगा. बस, थोड़े दिनों की बात है. जब अच्छे दिन नहीं रहते तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे…’’

‘‘ठीक है…’’ मुबीना ने अपने मचलते हुए आंसुओं को उंगलियों की पोरों पर लेते हुए सर्द आह भरी और फिर अलमारी के पास जा कर नोटों की गड्डियों को देख कर कहा, ‘‘इन का क्या करूं? अचार डालूं या चाटूं?’’

न जाने फिर क्या खयाल कर के उस ने अपने सारे कपड़े उतार डाले और नोटों के बंडलों को बिस्तर पर फैला कर बोली, ‘‘आओ… मेरे साथ सोओ…’’ और वह बिस्तर पर लेट कर उन नोटों के बंडलों को अपने जिस्म के ऊपर रखरख कर ठंडीठंडी आहें भरने लगी, ‘‘यह सच है, जो काम एक मर्द से हो सकता है, रुपएपैसों से नहीं. और यह भी सच है कि जो रुपएपैसों से हो सकता है, वह इनसान भी नहीं कर सकता…’’

यह बुदबुदा कर मुबीना रोने लगी और बिन जल मछली की तरह तड़पने लगी. उस के तनमन में एक ज्वाला सी उठने लगी. ऐसा लगा जैसे उस का खूबसूरत, नाजुक बदन इस बेरहम आग में जल कर राख हो जाएगा और वह रहरह कर उन नोटों को अपने शरीर पर सजाती रही, ‘‘आओ…आओ, मेरा दिल बहलाओ… मेरे शौहर गए हैं तुम्हारे लिए… तुम आ गए, मगर वे नहीं आए हैं…जब तक वे नहीं आते हैं… तुम ही मेरी सेवा करो…’’ और वह उन्हें चूमचूम कर सीने से लगाती, चेहरे से रगड़ती और जिस्म के दूसरे अंगों से घिसड़ती रही, मगर जिस्म की आग शांत होने के बजाय और भड़कती जाती थी.

आखिरकार खीझ कर रोते हुए वह उन बंडलों को उठाउठा कर फेंकने लगी, ‘‘हटो…तुम मेरी नजरों से दूर हो जाओ… नहीं चाहिए मुझे ये नोट… ये बंडल… नहीं चाहिए.’’

जब सुबह हुई तो मुबीना ने जिस्म की अकड़नजकड़न निकालते हुए बिस्तर को छोड़ा. बिस्तर छोड़ने का दिल तो नहीं कर रहा था, मगर उठना भी जरूरी था. वह शर्मसार सी कपड़े पहनने लगी और जमीन पर पड़े हुए नोटों के बंडलों को उठाने लगी.

अभी मुबीना उन बंडलों को चुन कर अलमारी में रख ही रही थी कि तौफीक आ गया.

उस की आंखों के सुर्ख डोरों को देख कर उस ने कहा, ‘‘क्या हुआ भाभी…? तबीयत तो ठीक है न…?’’

‘‘कहां रे…’’ और वह टूटते बदन के साथ बैड पर गिर गई.

‘‘क्या हुआ…?’’ तौफीक ने हैरान लहजे में कहा, ‘‘डाक्टर को बुलाऊं…?’’

‘‘नहीं रे… यह मर्ज अलग है…’’ और उस का हाथ पकड़ कर सीने पर रख लिया.

‘‘तो दवा भी अलग होगी…’’ तौफीक ने थोड़ा मुसकरा कर कहा.

‘‘हां…’’ इतना कह कर मुबीना ने आंखें बंद कर लीं.

तौफीक इतना नादान तो नहीं था, वह समझ गया. उस की भी कब से इस पर नजर थी. मगर कह नहीं सका था. या यों कहें कि मर्यादा के कच्चे धागे में बंधा हुआ था. मगर इस आस में जरूर था. कभी न कभी तो सिगनल मिलेगा और गंगा नहा लेगा.

आज शायद वही दिन था. वह जल्दी से किवाड़ बंद कर आया और शर्ट के बटन खोलते हुए बोला, ‘‘भाभी, इलाज शुरू करूं…’’

‘‘नेकी वह भी पूछपूछ…’’ मुबीना ने आंखें बंद किए हुए मादक लहजे में जवाब दिया.

उस के बाद पवित्रता की एक नाव हवस के गहरे समंदर में गर्क हो गई.

विदेश से पैसा तो आ रहा था, अब उस में तौफीक का भी हिस्सा हो गया था. मुबीना अब उस का पूरा खर्च चलाती थी. उस ने उसे मोटरसाइकिल भी खरीद कर दे दी थी.

अब वह उसी के साथ मोटरसाइकिल पर सवार घूमने निकल जाती. होटल में खाना खाती. एक तरह से वह शौहर को भूल सी गई थी. याद था तो बस इतना कि वह रियाल कमाने वाला एक गुलाम है.

अब उस का फोन आता है तो वह उस से दर्देदिल की शिकायत नहीं करती है और जल्दी से आ जाने की गुजारिश भी नहीं करती है, बल्कि वह कहती है कि और कमाओ, अभी मत आओ…

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दिन पूरे हो रहे हैं तो वीजा की तारीख बढ़वा लो. अभी एक फ्लैट लिया है. एक दुकान भी मेन मार्केट में ले लूं तो आना. बालबच्चों का भविष्य सुरक्षित करना है. उन्हें इंगलिश मीडियम स्कूल में दाखिल करवा रही हूं.

पति समझदार था. सोचा, बीवी ठीक कहती है. उसे और कमाना चाहिए. एक बार आ गया है तो कमा कर ही जाए. उसे अपनी बीवी पर पूरा भरोसा था और वह वीजा की तारीख बढ़वा कर और कमाने लगा.

एक दिन मुबीना और तौफीक एक गार्डन में इश्कबाजी कर रहे थे और दोनों बच्चे जरा दूर हट कर खेल रहे थे. मुबीना ने पूछा, ‘‘तुझ से से मेरी शादी क्यों नहीं हुई रे…?’’

‘‘हट…छोड़ शादी को…’’ तौफीक नखरा दिखाते हुए बोला, ‘‘क्या शादी करती तो इतना लुत्फ आता…?’’

‘‘शायद नहीं…’’ मुबीना हंस कर बोली.

एक दिन मुबीना ने उस की बाजुओं में झूलते हुए कहा था, ‘‘मुझे कभीकभी बड़ा डर लगता है.’’

‘‘सच…’’ तौफीक मखौल उड़ाने के लहजे में बोला.

‘‘हां…’’ मुबीना ने इकरार किया.

‘‘एक बात कहूं…?’’ तौफीक ने उसे घूर कर देखा.

‘‘हां, कहो…’’

‘‘मुझे भी डर लगता है… सोचता हूं कि अगर अकील को मालूम हो गया तो क्या होगा…?’’

‘‘वही तो…’’ मुबीना थोड़ा चिंतित हुई, ‘‘मैं औरत हूं… फंस जाऊंगी… और तू मर्द है… निकल जाएगा…’’

‘‘नहीं रे… तू औरत है निकल जाएगी… और मैं मर्द हूं… फंस जाऊंगा…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘औरत के त्रियाचरित्र होते हैं…’’

‘‘लेकिन, मेरे पास तो नहीं हैं…’’

‘‘फिर मुझे फंसाया कैसे…?’’

‘‘वही है…’’ मुबीना मासूमियत से बोली.

‘‘हां…’’

‘‘एक बात कहूं? मैं ने तुझे फंसाया नहीं… तू पहले से ही फंसा था…’’

‘‘गलत…’’

‘‘सच कह, मेरे सिर की कसम खा कि तू मुझे चाहता नहीं था…’’ और उस ने उस का हाथ अपने सिर पर रख

लिया.

‘‘सच कहूं…’’ तौफीक उस की झील सी गहरी आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘तुझे जब मैं ने पहली बार देखा था, तब से ही मेरे दिल में तेरी खूबसूरती और जवानी का कांटा चुभ गया था…’’

‘‘देखा, मैं न कहती थी… तू पहले से ही फंसा था…’’ मुबीना बुलबुल सी चहक कर बोली थी, ‘‘बस, मेरे इशारे की देर थी… पके हुए फल की तरह गिर गया…’’

‘‘सच बोली…’’ तौफीक हंस पड़ा.

‘‘यानी, हम दोनों बराबर के गुनाहगार हैं…’’

‘‘गुनाह कैसा…’’ तौफीक के माथे पर परेशानी के बल पड़ गए कि तू मुझे चाहती है और मैं तुझे. कोई जोरजबरदस्ती है क्या…?

‘‘नहीं…’’

‘‘तो फिर गुनाह कैसा…?’’ तौफीक ने उस की कोमल उंगलियों को सहलाते हुए जोर से दबा दिया.

‘‘लेकिन, बीच में जो अकील है…’’ मुबीना के सामने चिंता का चांद प्रकट हो गया.

‘‘यही बात तो है…’’ तौफीक ने मस्ती से उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, ‘‘चल छोड़, ये सब बातें कल की हैं. जब तक मौका है, मजा कर लिया जाए. बाद में देखा जाएगा…’’

‘‘लेकिन, इस का अंजाम क्या होगा…?’’

‘‘ऊपर वाला जाने…’’

‘‘और हम क्या जानते हैं…?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं…’’

‘‘लेकिन, मेरा दिल कभीकभी डरता है…’’ यह कहतेकहते मुबीना ने अपना हाथ सीने पर रख लिया.

‘‘रोजरोज नहीं न…’’ तौफीक मखौल उड़ाने के लहजे में बोला था.

‘‘नहीं…’’

‘‘तो डरने वाली कोई बात नहीं है. गब्बर सिंह क्या बोला है, जो डर गया, समझो मर गया…’’ और उस ने हंस कर मुबीना की गरदन में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच लिया.

दोनों बच्चे हरीहरी घास में खेल रहे थे. तौफीक उन्हें देखते हुए बोला, ‘‘सोचता हूं, तुझ से मेरी भी कोई औलाद हो जाए तो अच्छा रहे…’’

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‘‘नामुमकिन…’’ वह जैसे चौंक गई और जल्दी से खड़ी हो कर कपड़े ठीक करने लगी.

तौफीक ने हंसते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ रानी…?’’

‘‘कुछ नहीं…’’ वह थोड़ा मुसकरा कर बोली, ‘‘अब कोई किसी के खेत को चर ले, यह और बात है, मगर कोई कहे कि उस के खेत में फसल भी उगा ले तो नामुमकिन…’’

‘‘अच्छा…’’

‘‘और क्या…?’’ मुबीना ने शोखी से उसे देखा, ‘‘बड़े चालाक हैं…’’

‘‘तुझ से जरा कम…’’ तौफीक खड़ा हो कर मुसकराया और उसे खींच कर अपनी बांहों में भर लिया.

अकील ने तौफीक को फोन किया. उस समय तौफीक उसी के नए फ्लैट में उस की बीवी के साथ रंगरलियां मना रहा था. उस ने अपनी सांसों पर काबू पा कर फोन उठा लिया, ‘‘हैलो अकील, कैसे हो…’’

‘अच्छा हूं… क्या हुआ सांसें क्यों फूल रही हैं…?’

‘‘घर से बाहर खड़ा था. आप का फोन आया तो भाग कर आया हूं…’’

‘अच्छा… सब खैरियत तो है न…? अकील नरम लहजे में बोला.’

‘‘हां.’’

‘मेरी बीवीबच्चों का खयाल रखना…’

‘‘वह तो रखता ही हूं…’’ उस के दिल में आया कह दे कि अभी खातिरदारी में मसरूफ हूं, मगर चुप रहा.

‘मेरी बीवी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है…’

उस के दिल में आया कि कह दे कि हूं न इस काबिल, लेकिन ऐसा नहीं कह सका. बस इतना सा कहा, ‘‘यह उन की जर्रानवाजी है…’’ और अपने नीचे बिस्तर सी बिछी उस की बीवी के नाजुक अंगों को चिकोटी काट ली.

मुबीना के मुंह से ‘सी’ की आवाज निकल गई.

फिर मुबीना के गुलाबी होठों को मसल कर बोला, ‘‘आप की बीवी बहुत अच्छी हैं…’’

अकील अपनी बीवी की तारीफ सुन कर खुश हो गया और बोला, ‘हां, यह बात तो है…’ फिर थोड़ा रुक कर बोला, ‘उस का खयाल रखना…’

‘‘वह तो रख ही रहा हूं…’’ उस ने मुबीना के शरीर से फिर छेड़छाड़ की.

‘तौफीक…’ उधर से गमगीन सी आवाज आई, ‘सोचता हूं, अब वतन आ जाऊं… बहुत दिन हो गए हैं… अब बीवीबच्चों की बहुत याद सताती है… बहुत कमा लिया… क्या करेंगे ज्यादा कमा कर…?’

क्या मुबीना और तौफीक की ऐयाशी पकड़ी गई? अकील के साथ आगे क्या होने वाला था? पढि़ए अगले अंक में…

एक रात : भाग 1

लेखक- मृणालिका दूबे

विक्रम ने टाइम देखा और बेचैन होते हुए अपनी बगल में बैठे साहिल से बोला, ‘‘ओफ्फ!

आज भी काम खत्म करतेकरते 11 बज ही गए.’’

‘‘तो इस में नई बात क्या है यार, रोज ही तो देर हो जाती है हमें.’’ साहिल कंप्यूटर औफ करते हुए लापरवाही से बोल पड़ा.

‘‘ओहो साहिल, इतना भी नहीं समझते कि रात देर हो जाने पर हमारे विक्रम को घर पर नीता भाभी की डांट सुननी पड़ती है,’’ सामने से अपना बैग लिए आते हुए रोहित ने विक्रम को छेड़ते हुए मजाक किया.

दरअसल, विक्रम की पिछले महीने ही शादी हुई थी. उस की बीवी नीता एक बेहद सुंदर और स्मार्ट युवती थी. विक्रम की उस से मुलाकात एक रात अचानक ही एक शेयरिंग कैब में हुई, जब वह रात को ड्यूटी के बाद अपने घर जा रहा था. नीता भी अपनी ड्यूटी खत्म कर घर जाने के लिए निकली थी.

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पहली मुलाकात में ही नीता की मासूमियत और भोलेपन ने विक्रम का दिल चुरा लिया. वह हैरान था कि मुंबई में रह कर लेट नाइट जौब करने वाली नीता एकदम बच्चे की तरह मासूम थी. जल्दी ही उन की मुलाकातें बढ़ने लगीं जो सीधे शादी के मंडप तक जा पहुंची. नीता को अपना हमसफर बना कर विक्रम खुद को दुनिया का सब से भाग्यशाली इंसान समझता था.

इस एक महीने में ही नीता ने विक्रम को अपने प्यार के सागर में इस कदर डुबोया था कि विक्रम का रोमरोम नीता का गुलाम बन गया था.

हर दिन विक्रम सोचता कि आज रात वह जल्दी जा कर नीता को सरप्राइज देगा, पर लाख कोशिशों के बाद भी उस का काम खत्म होतेहोते 11 बज ही जाते और फिर जब 12 बजे तक वह घर पहुंचता, नीता उसे गहरी नींद में सोई हुई मिलती.

इसलिए विक्रम और नीता दोनों ही बड़ी बेसब्री से वीकेंड का इंतजार करते. और इन दो दिनों में ही पूरे हफ्ते की कसर निकाल लेते. सैटरडे संडे बस घूमनाफिरना, बाहर खाना और जी भर के प्यार करना.

‘‘क्या हुआ विक्रम? कहां खो गए?’’ साहिल की आवाज सुनते ही विक्रम ने चौंकते हुए उसे देखा.

फिर गरदन झटकते हुए बोला, ‘‘कुछ नहीं यार, बस थोड़ा खयालों में खो गया था. चल, अब चलते हैं.’’

साहिल और विक्रम दोनों ही बैग लिए औफिस के बाहर निकले. रोहित का काम बाकी होने से वह रुक गया था. औफिस के बाहर रात का गहरा अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था. गाडि़यों की आवाजाही बहुत कम हो चुकी थी. बस कुछ आवारा कुत्तों के भौंकने का स्वर गूंज रहा था.

विक्रम ने देखा, बाहर पार्किंग में औफिस की कैब नजर नहीं आ रही थी. वह झल्लाते हुए साहिल से बोला, ‘‘हद है यार, ये कैब ड्राइवर को कितनी बार कहा है कि रात को 10 बजे ही आ कर औफिस की पार्किंग में खड़ा रहे, पर नहीं. कभी भी टाइम पर तो आएगा ही नहीं वो.’’

‘‘कूल डाउन यार, क्यों झुंझला रहा है तू.’’ साहिल ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

विक्रम कुछ कहने ही वाला था कि अचानक ही दूर से एक लड़की आती हुई दिखी, वे दोनों ध्यान से उधर ही देखने लगे.

लड़की जब करीब आई तो विक्रम और साहिल उसे देख अवाक रह गए. वह 20-22 साल की अत्यंत खूबसूरत लड़की थी. गोरा दमकता रंग, खुले घुंघराले काले बाल, बड़ीबड़ी आंखें और सुर्ख लाल होंठ.

उस लड़की ने पिंक टौप और ब्लू स्कर्ट पहन रखी थी, जिस में वह एक खूबसूरत गुलाब की तरह नजर आ रही थी. विक्रम और साहिल को यूं आंखें फाड़े स्टैच्यू बने हुए देख वह लड़की पहले तो थोड़ी सकुचाई, फिर चुटकी बजा उन का ध्यान आकर्षित करते हुए बोली, ‘‘एक्सक्यूज मी, क्या मिस्टर कबीर अभी औफिस में हैं? एक्चुअली उन का मोबाइल आउट औफ कवरेज आ रहा है.’’

साहिल ने उस लड़की की ओर ध्यान से देखा, फिर बोला, ‘‘मिस्टर कबीर तो हमारे बौस हैं. आप को उन से क्या काम है, जरा बताएंगी आप?’’

वह लड़की कुछ पल मौन रही. फिर धीमे स्वर में बोली, ‘‘मैं निया हूं, कबीर की फियांसे. पिछले हफ्ते मैं लंदन गई थी. आज शाम ही वापस आई हूं. तब से अब तक कबीर का नंबर ही नहीं लग रहा है. मैं उस के घर गई तो वहां भी नहीं है. नौकर ने बताया कि वह तो आज सुबह से ही बाहर चले गए हैं. मुझे उन से बहुत अर्जेंट काम है, इसलिए उन से मिलने यहां औफिस में चली आई.’’

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साहिल ने निया की बात खत्म होते ही तुरंत कहा, ‘‘पर मिस्टर कबीर तो आज औफिस नहीं आए हैं. हां, उन का मेल जरूर आया था सुबह कि आज वह औफिस नहीं आने वाले.’’

निया का सुंदर चेहरा एकदम उतर सा गया. वह कुछ पल मौन रही फिर चिंतित स्वर में बोली, ‘‘समझ नहीं आ रहा कि कबीर यूं अचानक गया कहां? आज तक तो कभी भी वह मुझे बिना इनफौर्म किए कहीं बाहर नहीं जाता था. और फिर उस का मोबाइल… वो क्यों आउट औफ कवरेज आ रहा है आखिर?’’

‘‘आप परेशान मत होइए मिस निया, मिस्टर कबीर को जरूर कोई अर्जेंट काम आया होगा, इसलिए वह आज औफिस भी नहीं आए. रात बहुत हो चुकी है, मेरा खयाल है आप को अब घर चले जाना चाहिए.’’ विक्रम समझाते हुए बोला.

विक्रम की बात सुनते ही निया अचानक सिसकने लगी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में आंसू छलक पड़े.

तभी साहिल का मोबाइल बज उठा, उस ने देखा कि कैब ड्राइवर की काल थी.

साहिल के हैलो कहते ही उधर से कैब ड्राइवर बोला, ‘‘साब, हमारी गाड़ी तो स्टार्ट ही नहीं हो रही है. पता नहीं क्या प्राब्लम आ गई इंजन में. आप लोगों को अब कोई दूसरी कैब कर के घर जाना पड़ेगा.’’

साहिल ने मुंह बनाते हुए ‘ओके’ कहा फिर काल डिसकनेक्ट करते हुए विक्रम से कहा, ‘‘चलो यार, अब इतनी रात को हमें कैब बुलानी पड़ेगी, तब घर जा पाएंगे. हमारी वाली कैब तो खराब हो गई है.’’

‘‘ओह गौड, अब पता नहीं कब तो दूसरी कैब आएगी और कब हम घर पहुंच पाएंगे. इस से अच्छा तो चलो रोड पर आतीजाती किसी टैक्सी या आटो में ट्राई करते हैं.’’ विक्रम ने चिढ़ते हुए कहा.

अभी साहिल और विक्रम कुछ तय कर पाते कि अचानक निया बोली, ‘‘अगर आप लोगों को औब्जेक्शन न हो तो मेरी गाड़ी यहां से कुछ दूरी पर खड़ी है. मैं आप दोनों को ड्रौप कर देती हूं आप के घर तक.’’

‘‘ओह नो, आप क्यों तकलीफ करेंगी इतनी रात गए. हम चले जाएंगे.’’ साहिल बोल पड़ा.

निया एकदम से बोली, ‘‘देखिए, पहले ही इतनी ज्यादा रात हो चुकी है, अब इस वक्त भला कौन सी कैब या टैक्सी मिलेगी आप लोगों को. इसलिए आप लोग फार्मैलिटीज के चक्कर में मत पडि़ए और चलिए मेरे साथ.’’

साहिल और विक्रम दोनों ने ही एकदूसरे को देखा, फिर चल पड़े निया की गाड़ी की ओर.

निया ड्राइविंग सीट पर बैठ कर सीट बेल्ट लगाती हुई बोली, ‘‘आप लोग जल्दी से बैठ जाइए और बताइए कहां ड्रौप करूं मैं आप लोगों को?’’

विक्रम और साहिल पिछली सीट पर बैठ गए और निया को अपना एड्रेस बता दिया. फर्राटे से गाड़ी सुनसान सड़क पर दौड़ने लगी.

अभी कोई 10 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक ही गाड़ी हिचकोले खा कर रुक गई.

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‘‘ओह, क्या हुआ ये?’’ निया बड़बड़ाई.

फिर गाड़ी को स्टार्ट करने की कोशिश करने लगी. पर कोई फायदा नहीं हुआ. हार कर निया विक्रम और साहिल से बोली, ‘‘प्लीज, आप लोग जरा धक्का लगाएंगे. देखिए न पता नहीं कैसे इंजन एकदम बंद पड़ गया.’’

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