Hindi Kahani: मोबाइल गरम हो गया – सोनू और रेखा की चुहलबाजी

Hindi Kahani: सोनू एक गरीब घर का बेरोजगार नौजवान था. वह थोड़ाबहुत पढ़ालिखा था. काफी कोशिशों के बाद भी उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली, तो मजबूरन अपना गांव छोड़ कर एक शहर में आ गया और प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा.

शहर में सोनू किराए के मकान में रहता था. कुछ दिन बाद वहां मकान मालिक की एक रिश्तेदार रेखा रहने के लिए आई. वह बहुत खूबसूरत थी. गोरा रंग, कसा बदन, काले व घुंघराले बाल, बड़ीबड़ी आंखें, कोई भी देखे तो देखता ही रह जाए.

सोनू सुबह उठ कर खाना बनाता, बरतन मांजता और काम पर चला जाता. यह उस का रोज का काम था.

यह देख कर रेखा को बहुत तकलीफ होती थी. कुछ दिन बीत जाने के बाद रेखा ने उस से कहा, ‘‘सोनू, मैं तुम्हारे लिए खाना बना देती हूं.’’

यह बात सोनू को बहुत अच्छी लगी और अब वह रेखा के साथ खाना खाने लगा.

रेखा सोनू से खूब बतियाती थी और मस्ती भी करती थी, लेकिन सोनू कुछ नहीं कहता था. वह सिर्फ हंस कर रह जाता था.

अब सोनू को रेखा बहुत अच्छी लगने लगी थी. एक दिन उस ने हिम्मत कर के रेखा के गाल को छू दिया.

रेखा हंस कर रह गई और कुछ नहीं बोली. सोनू को यह देख कर बहुत अच्छा लगा.

एक दिन जब सोनू काम से वापस आया, तो रेखा ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया और खूब जोर से उस के गाल पर काट लिया.

सोनू सिहर कर रह गया और बाहर चला गया. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं.

एक दिन की बात है. सोनू काम से लौटा, तो उस ने देखा कि रेखा दरवाजे पर खूब सजधज कर खड़ी थी. वह सोनू को अंदर नहीं जाने दे रही थी.

सोनू ने भी सोचा कि जो होगा देखा जाएगा. उस ने रेखा को अपनी बांहों में भर कर उस के गाल पर ऐसा काटा कि दांत के निशान बन गए.

रेखा का गाल इतना लाल हो गया कि उस से खून निकल आएगा. उस की आंखों से आंसू निकलने लगे.

रेखा ने सोनू को बहुत डांटा, ‘‘मैं तो तुम्हें दोस्त सम?ाती थी और तुम एकदम निर्दयी निकले.’’

यह सुन कर सोनू शर्मिंदा हो गया. उस ने अपना बिस्तर उठाया और सोने के लिए छत पर जाने लगा.

जातेजाते उस ने रेखा से कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं अब दोबारा तुम्हें कभी नहीं छुऊंगा.’’

छत पर लेटे सोनू की आंखों से नींद कोसों दूर थी. यह कहावत भी सच है कि आग और फूस जब नजदीक होंगे, तो कभी न कभी आग जरूर लगेगी.

रात बीत रही थी. रात के तकरीबन 11 बज रहे थे. रेखा ने अपना मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए स्विच बोर्ड में लगाया.

थोड़ी देर बाद रेखा ने सोचा कि क्यों न वह मोबाइल चार्जर से निकाल कर अपने पास रख कर सो जाए. जब वह मोबाइल फोन निकालने लगी, तो उस ने देखा कि वह गरम हो गया था.

रेखा अंदर से दरवाजा धीरेधीरे पीटने लगी. छत पर लेटा सोनू जाग रहा था. वह सीढि़यों से उतर कर दरवाजे के पास आया और बोला, ‘‘रेखा, क्या बात है? इतनी रात को तुम जोरजोर से दरवाजा क्यों पीट रही हो?’’

रेखा ने कहा, ‘‘तुम अंदर आओ, तो बताऊं कि क्या बात है.’’

सोनू अंदर गया, तो रेखा ने कहा, ‘‘सोनू, मेरा मोबाइल फोन बहुत गरम हो गया है.’’

सोनू ने मोबाइल फोन को चार्जर से निकाल कर मेज पर रख दिया और कहा, ‘‘मोबाइल तो ज्यादा गरम नहीं है. थोड़े समय में ठंडा हो जाएगा.’’

फिर वे दोनों एकदूसरे को देखते रहे. सोनू बोला, ‘‘क्या अब मैं छत पर सोने जाऊं?’’

रेखा ने अंगड़ाई ली और कहने लगी, ‘‘अगर तुम नामर्द हो, तो जाओ. अगर मर्द हो, तो मेरा मोबाइल ठंडा कर के जाओ.’’

यह सुन कर सोनू ने दरवाजा अंदर से बंद किया और रेखा को बांहों में भर कर बिस्तर पर ले गया. फिर वे दोनों प्यार के सागर में इतनी बार डूबे कि सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला. रेखा का बदन इतना टूट गया था कि उस में उठने की ताकत भी नहीं रही थी.

कुछ दिनों के बाद रेखा अपने गांव चली गई और सोनू को उसी मोबाइल फोन से फोन किया, जो उस रात गरम हो गया था.

फोन पर ही रेखा ने शादी करने का इरादा जताया. उस ने कहा, ‘‘प्यारे सोनू, अब तुम घर चले आओ.’’

सोनू उस के गांव गया और दोनों ने एक मंदिर में जा कर शादी कर ली. इस के बाद वे हंसीखुशी अपनी जिंदगी बिताने लगे. Hindi Kahani

Hindi Family Story: विश्वासघात – सीमा के कारण कैसे टूटा प्रिया का घर

Hindi Family Story: प्रिया ने पालने में सोई अपनी नवजात बच्ची को मुसकराते देखा तो वह भी मुसकरा दी. प्रिया उस में अपना और निर्मल का अक्स ढूंढ़ने की कोशिश करने लगी. निर्मल को एक बेटी की चाह थी जबकि वह बेटा चाहती थी, क्योंकि वह निर्मल के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थी.

प्रिया एक छोटे शहर में पलीबढ़ी थी. इकलौती संतान होने के कारण मातापिता की दुलारी थी. निर्मल की बूआ उन के पड़ोस में रहती थीं. वे ही निर्मल का रिश्ता उस के लिए लाई थीं. निर्मल मुंबई में मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते थे. उन के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. उन के जाने के बाद बूआ ने ही उन की परवरिश की थी. प्रिया के मातापिता को निर्मल पसंद थे, इसलिए चट मंगनी और पट ब्याह कर दिया.

शादी के 1 हफ्ते बाद प्रिया निर्मल के साथ मुंबई आ गई. निर्मल एक अपार्टमैंट में 7वीं मंजिल पर 3 कमरों के फ्लैट में रहते थे. शादी के बाद दोनों ने फ्लैट को बड़े जतन से सजाया. निर्मल अपने नाम के अनुसार स्वभाव से बहुत ही निर्मल थे. उन में बिलकुल बनावटीपन नहीं था.

कुछ ही समय बाद प्रिया ने निर्मल को 2 से 3 होने की खुशखबरी सुना दी. दोनों बहुत खुश थे. अब निर्मल उस का बहुत ध्यान रखने लगे थे. उसी दौरान निर्मल के प्रमोशन ने उन की खुशी को दोगुना कर दिया. परंतु काम की जिम्मेदारी बढ़ने की वजह से अब वे ज्यादा व्यस्त रहने लगे.

प्रिया दिन भर अकेले काम करते थक जाती थी, इसलिए दोनों ने एक बाई रखने का फैसला किया. महानगर मुंबई में लोग बहुत व्यस्त रहते हैं. किसी को किसी से कोई लेनादेना नहीं होता. अंतर्मुखी होने के कारण प्रिया भी ज्यादातर घर में ही रहती थी. इसीलिए उन्होंने बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड से बाई ढूंढ़ने के लिए मदद मांगी. कुछ ही दिन बाद उस ने एक बाई को भेजा.

लगभग 30 साल की दुबलीपतली रमा बाई को उन्होंने मामूली पूछताछ के बाद काम पर रख लिया. रमा बाई ने बताया कि वह पास की बिल्डिंग में और 3 घरों में काम करती है. उसके 2 बच्चे हैं. पति स्कूल में चपरासी है. इस से अधिक जानने की उन्होंने जरूरत नहीं समझी.

रमा बाई सुबह 8 बजे काम पर आती और करीब 10 बजे तक काम निबटा कर चली जाती. जब वह काम करने आती तब निर्मल के औफिस जाने का समय होता था, इसलिए प्रिया ज्यादातर निर्मल के लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करने में व्यस्त होती थी. धीरेधीरे रमा बाई घर की सदस्य जैसी बन गई. वह प्रिया के छोटेमोटे कामों जैसे बाजार से दूधसब्जी लाने में मदद करने लगी.

अब अकसर प्रिया का मौर्निंग सिकनैस की वजह से जी मचलाने लगा और उस के लिए खाना बनाना मुश्किल होने लगा. यह देख कर एक दिन रमा बाई ने उस के आगे एक प्रस्ताव रखा. बोली, ‘‘मैडमजी, मेरी एक छोटी बहन है. बेचारी गूंगी है, शादी नहीं हो पाई, इसलिए हमारे साथ ही रहती है.

अगर आप कहें तो जब तक आप की डिलिवरी नहीं हो जाती आप उसे खाना बनाने और दूसरे कामों के लिए रख लें. आप को जो ठीक लगे उसे दे देना. सुबह मैं साथ ले आया करूंगी और शाम को साथ ले जाया करूंगी.’’

प्रिया और निर्मल को उस की बात जंच  गई, इसलिए उन्होंने हां कह दिया. अगले ही दिन रमा बाई अपने साथ 22-23 वर्ष की लड़की को ले आई. उस ने उस का नाम सीमा बताया. सीमा देखने में बहुत सुंदर थी. प्रिया को उस के गूंगे होने पर बहुत तरस आया. सीमा उन के घर खाना बनाने का काम करने लगी. वह सभी काम बहुत अच्छे तरीके से व समय से पहले कर देती.

वह प्रिया को समय से फल काट कर खिलाती, समय पर खाना खिलाती. पतिपत्नी दोनों सीमा के काम से बेहद खुश थे. कभीकभी निर्मल को औफिस के काम से बाहर जाना पड़ता. तब प्रिया सीमा को रात को घर पर रोक लेती. सीमा निर्मल का कुछ विशेष ही ध्यान रखती थी, परंतु प्रिया को इस में कोई बुराई नजर नहीं आई, इसलिए उस ने उस पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. फिर उन दिनों अकसर तबीयत खराब रहने के कारण वह परेशान भी रहती थी.

हालांकि प्रिया को सीमा का निर्मल के बूट पौलिश करना और बाथरूम में कपड़े रखना शुरू से अखरता था, परंतु दूसरे ही क्षण वह इसे नारीसुलभ जलन समझ कर भूल जाती. कभीकभी तो उसे अपने इस विचार पर खुद पर शर्म महसूस होती कि एक गूंगी लड़की पर शक कर रही है.

इस बीच प्रिया का चौथा महीना शुरू हो गया था. उस दिन निर्मल औफिस की फाइलें घर ले आए थे और आते ही ड्राइंगरूम में टेबल पर सभी फाइलें फैला कर काम करने बैठ गए. प्रिया की तबीयत सुबह से ही ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने सीमा को रात को घर पर रोक लिया. खाना खा कर वह बैडरूम में आराम करने लगी और निर्मल अपना काम निबटाने में व्यस्त हो गए.

करीब रात के 1 बजे कुछ आवाजों से उस की नींद टूट गई. निर्मल बिस्तर पर नहीं थे. उन के तेजतेज बोलने की आवाज आ रही थी. वह ड्राइंगरूम की ओर तेज कदमों से भागी. वहां का दृश्य देख कर अवाक रह गई. सीमा एक ओर खड़ी रो रही थी.

उस के कपड़े अस्तव्यस्त और कई जगह से फटे थे. प्रिया को देख कर निर्मल हकबका कर सफाई देने लगे, ‘‘प्रिया, मैं ने कुछ नहीं किया. यह अचानक आ कर मुझ से लिपट गई. जब मैं ने इसे पीछे धकेला तो इस ने अपने कपड़ों को फाड़ना शुरू कर दिया.’’

सीमा लगातार रोए जा रही थी. वह प्रिया के गले से लिपट गई. उस की हालत देख कर प्रिया का चेहरा तमतमा उठा. उस के अंदर की औरत जैसे जाग उठी. बोली, ‘‘मुझे आप से कतई यह उम्मीद नहीं थी कि आप इतना गिर जाएंगे.’’

‘‘प्रिया, यह झूठी है… मैं सच कह रहा हूं… मैं ने कुछ नहीं किया,’’ निर्मल लगातार अपनी सफाई दे रहे थे. ‘‘सचाई सामने है और फिर भी आप…छि:,’’ कहते हुए वह सीमा को अपने बैडरूम में ले आई. प्रिया ने उसे पानी पिलाया और किसी तरह चुप करवाया.

‘‘सीमा, मैं बहुत शर्मिंदा हूं…प्लीज मुझे माफ कर दो,’’ प्रिया ने सीमा के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा.

प्रिया मन ही मन खुद को उस का कुसूरवार मान रही थी, क्योंकि उसी के कहने पर उस पर विश्वास कर सीमा रात को रुकी थी. फिर उस ने उसे अपने साथ ही सुला लिया. अगले दिन रमा बाई के आते ही सीमा ने रोरो कर और इशारों से उसे सब कुछ बता दिया.

वह बारबार निर्मल की ओर इशारा कर के रो रही थी. उस की हालत देख कर रमा बाई ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने उन के सामने ही पुलिस को फोन कर दिया. प्रिया और निर्मल ने उसे रोकने का भरसक प्रयत्न किया. ‘‘क्या मैडमजी, तुम भी अपने आदमी को बचाना चाहती हो? सीमा की जगह तुम्हारी बहन होती तब क्या करतीं?’’ रमा बाई गुस्से से बोली.

10 मिनट में पुलिस की वरदी में 1 आदमी उन के सामने खड़ा था. निर्मल उसे और रमा बाई को अपनी सफाई देते रहे, पर दोनों ने उन की एक न सुनी. प्रिया दोनों हाथों से सिर पकड़े वहीं सोफे पर चुपचाप बैठी रही. पुलिस वाले ने निर्मल को थाने चलने को कहा. निर्मल बहुत घबरा गए. वे मिन्नत करने लगे. आखिर उस पुलिस वाले ने 50 हजार पर रमा बाई और निर्मल में समझौता करवा दिया.

अचानक बच्ची के रोने की आवाज से प्रिया की तंद्रा भंग हो गई. वह भूतकाल से वर्तमान में लौट आई. वह उठ कर बैठने का प्रयास करने लगी. तभी बाहर से निर्मल उस के मातापिता के साथ कमरे में दाखिल हुए और उन्होंने लपक कर बच्ची को गोद में उठा लिया. अपने मातापिता को देख कर प्रिया के पीले पड़े चेहरे पर खुशी फैल गई.

‘‘अरे हमारी गुडि़या अपने नानानानी के पास आने के लिए रो रही है,’’ प्रिया की मां ने निर्मल से बच्ची को अपनी गोद में लेते हुए कहा.

‘‘प्रिया, कैसी हो?’’ बाबूजी ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘बिलकुल ठीक हूं,’’ प्रिया ने मुसकरा कर उत्तर दिया.

‘‘तुम ने जूस नहीं लिया…यह लो जूस पी लो,’’ निर्मल ने जूस का गिलास उस के हाथ में थमा दिया.

प्रिया धीरेधीरे जूस पीने लगी. निर्मल के माथे पर बालों की एक लट झूलती बड़ी अच्छी लग रही थी. पिछले 2 दिनों से वे अकेले भाग दौड़ कर रहे थे. नर्स बता रही थी कि एक क्षण के लिए भी उन्होंने पलक नहीं झपकी. मां की गोद में गुडि़या सो गई थी. उसे पालने में लिटा कर मां ने उस के हाथ से जूस का खाली गिलास ले लिया.

‘‘नींद आ रही है…तू भी सो जा. मैं तेरे लिए नाश्ता बना कर लाती हूं,’’ फिर उस के बाबूजी से बोली, ‘‘आप भी नहा लीजिए. निर्मल बेटा, तुम किचन में सामान निकालने में मेरी मदद कर दो. मैं नाश्ता बनाती हूं. फिर सब साथ मिल कर बैठेंगे,’’ कहते हुए मां कमरे से बाहर निकल गईं. प्रिया को बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी. पिछले 5 महीने उस ने बड़े ही कष्ट से काटे थे.

वह मानसिक और शारीरिक यातना से गुजरी थी. सीमा वाले हादसे के बाद वह निर्मल के साथ एक छत के नीचे रहना नहीं चाहती थी, परंतु आने वाले बच्चे के भविष्य और मांबाबूजी के खयाल से उस ने चुप्पी साध ली. आज भी वह यह सोच कर कांप जाती है कि अगर उस ने अलग होने का फैसला कर लिया होता और अपने मायके लौट जाती तब कितना बड़ा अनर्थ हो जाता.

वह तो गनीमत थी कि डाक्टर की सलाह मान कर उस ने रोज पार्क जाना शुरू कर दिया था. वहीं उस की मुलाकात तनु से हुई. तनु उस के साथ स्कूल में पढ़ती थी. एक दिन उस ने बताया कि उस ने घर के काम के लिए एक लड़की रख ली है जो गूंगी है, तो प्रिया का दिल जोर से धड़कने लगा.

‘‘क्या नाम है उस का?’’ कांपते होंठों से प्रिया ने पूछा.

‘‘सीमा, बेचारी बोल नहीं सकती. मेरी बाई को बहन है,’’ तनु ने जवाब दिया.

प्रिया का दिल अनजाने डर से कांप उठा. उसे लगा कि अगर तनु को पता चल गया तो क्या सोचेगी उस के पति के चरित्र को ले कर. प्रिया ने तनु से मेलजोल कम कर दिया. तनु का फोन भी वह नहीं उठाती. लगभग 2 महीने बीत गए.

फिर एक दिन कैमिस्ट की दुकान पर तनु उस से टकरा गई. उस का रंग पीला हो गया था. वह कुछ बुझीबुझी सी थी. उस ने पहले की तरह उस से बातचीत करने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई. औपचारिकता के नाते उस ने उस से बातचीत की.

उस के होंठों से हंसी जैसे गुम ही हो गई थी. 2 ही दिन बाद तनु उसे फिर से पार्क में मिल गई. वह बहुत उदास और बीमार सी लगी. प्रिया इस का कारण पूछे बिना रह नहीं सकी. थोड़ी सी नानुकर के बाद तनु टूट गई. उस ने रोतेरोते अपना दुख बांटा जिसे सुन कर प्रिया सकते में आ गई.

तनु ने उसे जो कुछ बताया वह हूबहू उस की कहानी से मिलता था. तनु के मोबाइल में सीमा का फोटो था, इसलिए उस के प्रति उस का संदेह गहरा हो गया.

उस ने अपनी आपबीती तनु को सुनाई. तब दोनों ने तय किया कि वे सीमा के बारे में पता लगाएंगी और फिर एक दिन वे दोनों सीमा और रमा बाई के बारे में पूछतेपूछते उन के घर जा पहुंचीं. बाहर गली में ही उन्होंने भीड़ लगी देखी. पानी भरने के लिए औरतें आपस में लड़ रही थीं.

‘‘तुम दोनों बहनें अपने को समझती क्या हो?’’ पानी की बालटी पकड़े एक औरत बोली.

‘‘खबरदार, जो कोई आगे आया, काट कर फेंक दूंगी सब को,’’ दूसरी आवाज आई. तनु और प्रिया वहीं रुक उन की लड़ाई देखने लगीं. दोनों यह देख कर हैरान रह गईं कि सीमा फर्राटे से बोल रही थी.

‘‘सब से पहले हम दोनों पानी भरेंगी. तुम सब चुडै़लें सुबहसुबह हमारा दिमाग क्यों खराब कर रहीं,’’ सीमा चिल्ला रही थी.

तनु प्रिया का हाथ पकड़ उसे खींचते हुए गली से बाहर ले आई.

‘‘यह सीमा गूंगी नहीं है. देखा कैसे फर्राटे से बोल रही है,’’ प्रिया ने कहा.

‘‘हां प्रिया, इस का मतलब इन दोनों ने जो हमारे साथ किया वह सोचीसमझी साजिश के तहत किया,’’ तनु ने गुस्से से कहा.

‘‘हमें इन्हें सबक सिखाना होगा, लेकिन कैसे, समझ नहीं आ रहा ,’’ प्रिया बोली.

‘‘चलो हम इन्हें पुलिस के हवाले करते हैं,’’ तनु ने प्रिया का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘लेकिन इस से पहले हमें इन के खिलाफ सुबूत इकट्ठे करने होंगे.’’ घर आ कर उन्होंने अपनेअपने पतियों को सारा माजरा समझाया. फिर सब ने मिल कर फैसला किया कि वे पुलिस के साथ मिल कर उस के सहयोग से इन्हें पकड़वाएंगे.

फिर चारों थाने में गए और अपने साथ हुई ठगी की आपबीती सुनाई. पुलिस ने सब से पहले मालूम किया कि वे दोनों फिलहाल कहां काम कर रही हैं. उन्हें पता चला कि वे अभी किसी नवदंपती के घर पर ही काम कर रही हैं. तब पुलिस ने उस दंपती के साथ मिल कर उन का भांडा फोड़ने की योजना बनाई. संयोग से उन के घर में सीसीटीवी कैमरा लगा था.

कुछ ही दिनों में रमा बाई और सीमा ने वहां भी ऐसा ही खेल खेला, परंतु कैमरे में उन की सारी हरकत कैद हो गई और जो आदमी पुलिस की वरदी में आया वह रमा बाई का शराबी पति था जो पहले दंपती को डराताधमकाता था और फिर पैसे ले कर समझौता करवाता था. उन तीनों को ठगी करने के जुर्म में जेल हो गई. प्रिया की मां उस के लिए नाश्ता ले आई थीं. उन्होंने प्रिया के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो प्रिया मुसकरा दी. Hindi Family Story

Hindi Family Story: मजुरिया – मजदूर मां का सपना जीती उस की लाड़ली

Hindi Family Story: ‘‘बहनजी, इन का भी दाखिला कर लो. सुना है कि यहां रोज खाना मिलता है और वजीफा भी,’’ 3 बच्चों के हाथ पकड़े, एक बच्चा गोद में लिए एक औरत गांव के प्राइमरी स्कूल में बच्चों का दाखिला कराने आई थी.

‘‘हांहां, हो जाएगा. तुम परेशान मत हो,’’ मैडम बोली.

‘‘बहनजी, फीस तो नहीं लगती?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘नहीं. फीस नहीं लगती. अच्छा, नाम बताओ और उम्र बताओ बच्चों की. कौन सी जमात में दाखिला कराओगी?’’

‘‘अब बहनजी, लिख लो जिस में ठीक समझो.

‘‘बड़ी बेटी का नाम मजुरिया है. इस की उम्र 10 साल है. ये दोनों दिबुआ और शिबुआ हैं. छोटे हैं मजुरिया से,’’ बच्चों की मां ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नाम मंजरी. उम्र 8 साल. देव. उम्र 7 साल और शिव. उम्र 6 साल. मजुरिया जमात 2 में और देव व शिव का जमात एक में दाखिला कर लिया है. अब मैं तुम्हें मजुरिया नहीं मंजरी कह कर बुलाऊंगी,’’ मैडम ने कहा.

मजुरिया तो मानो खुशी से कूद पड़ी, ‘‘मंजरी… कितना प्यारा नाम है. अम्मां, अब मुझे मंजरी कहना.’’

‘‘अरे बहनजी, मजुरिया को मंजरी बना देने से वह कोई रानी न बन जाएगी. रहेगी तो मजदूर की बेटी ही,’’ मजुरिया की अम्मां ने दुखी हो कर कहा.

‘‘नहीं अम्मां, मैं अब स्कूल आ गई हूं, अब मैं भी मैडम की तरह बनूंगी. फिर तू खेत में मजदूरी नहीं करेगी,’’ मंजरी बनते ही मजुरिया अपने सपनों को बुनने लगी थी.

मजुरिया बड़े ध्यान से पढ़ती और अम्मां के काम में भी हाथ बंटाती.

मजुरिया पास होती गई. उस के भाई धक्का लगालगा कर थोड़ाबहुत पढ़े, पर मजुरिया को रोकना अब मुश्किल था. वह किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थी और अपनी मैडम की चहेती बन गई थी.

‘‘मंजरी, यह लो चाबी. स्कूटी की डिक्की में से मेरा लंच बौक्स निकाल कर लाना तो. पानी की बोतल भी है,’’ एक दिन मैडम ने उस से कहा.

मजुरिया ने आड़ीतिरछी कर के डिक्की खोल ही ली. उस ने बोतल और लंच बौक्स निकाला. वह सोचने लगी, ‘जब मैं पढ़लिख कर मैडम बनूंगी, तो मैं भी ऐसा ही डब्बा लूंगी. उस में रोज पूरी रख कर लाया करूंगी.

‘मैं अम्मां के लिए साड़ी लाऊंगी और बापू के लिए धोतीकुरता.’

मजुरिया मैडम की बोतल और डब्बा हाथ में लिए सोच ही रही थी कि मैडम ने आवाज लगाई, ‘‘मंजरी, क्या हुआ? इतनी देर कैसे लगा दी?’’

‘‘आई मैडम,’’ कह कर मजुरिया ने मैडम को डब्बा और बोतल दी और किताब खोल कर पढ़ने बैठ गई.

अब मजुरिया 8वीं जमात में आ गई थी. वह पढ़ने में होशियार थी. उस के मन में लगन थी. वह पढ़लिख कर अपने घर की गरीबी दूर करना चाहती थी.

उस की मां मजुरिया को जब नए कपड़े नहीं दिला पाती, तो वह हंस कर कहती, ‘‘तू चिंता मत कर अम्मां. एक बार मैं नौकरी पर लग जाऊं, फिर सब लोग नएनए कपड़े पहनेंगे.’’

‘‘अरे, खुली आंख से सपना न देख. अब तक तो तेरी फीस नहीं जाती है. कौपीकिताबें मिल जाती हैं. सो, तू पढ़ रही है. इस से आगे फीस देनी पड़ेगी.’’

अम्मां मजुरिया की आंखों में पल रहे सपनों को तोड़ना नहीं चाहती थी, पर उस के मजबूत इरादों को थोड़ा कम जरूर करना चाहती थी. वह जानती थी कि अगर सपने कमजोर होंगे, तो टूटने पर ज्यादा दर्द नहीं देंगे.

और यही हुआ. मजुरिया की 9वीं जमात की फीस उस की मैडम ने अपने ही स्कूल के सामने चल रहे सरकारी स्कूल में भर दी.

मजुरिया तो खुश हो गई, लेकिन कोई भी मजुरिया आज तक इस स्कूल में पढ़ने नहीं आई थी. एक दिन जब मजुरिया स्कूल पढ़ने गई और वहां के टीचरों ने उस की पढ़ाई की तारीफ की, तो वहां के ठाकुर बौखला गए.

‘‘ऐ मजुरिया की अम्मां, उधार बहुत बढ़ गया है. कैसे चुकाएगी?’’

‘‘मालिक, हम दिनरात आप के खेत पर काम कर के चुका देंगे.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर अकेले तू कितना पैसा जमा कर लेगी? मजुरिया को क्यों पढ़ने भेज रही है? वह तुम्हारे काम में हाथ क्यों नहीं बंटाती है?’’ इतना कह कर ठाकुर चले गए.

मजुरिया की अम्मां समझ गई कि निशाना कहां था. लेकिन इन सब से बेखबर मजुरिया अपनी पढ़ाई में खुश थी. पर कोई और भी था, जो उस के इस ख्वाब से खुश था.

पल्लव, बड़े ठाकुर का बेटा, जो मजुरिया से एक जमात आगे गांव से बाहर के पब्लिक स्कूल में पढ़ता था. वह मजुरिया को उस के स्कूल तक छोड़ कर आगे अपने स्कूल जाता था.

‘‘तू रोज इस रास्ते से क्यों स्कूल जाता है? तुझे तो यह रास्ता लंबा पड़ता होगा न?’’ मजुरिया ने पूछा.

‘‘हां, सो तो है, पर उस रास्ते पर तू नहीं होती न. तू उस रास्ते से आने लगे, तो मैं भी उसी से आऊंगा,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘न बाबा न, वहां तो सारे ठाकुर रहते हैं. बड़ीबड़ी मूंछें, बाहर निकली हुई आंखें,’’ मजुरिया ने हंस कर कहा.

‘‘अच्छा, तो तू ठाकुरों से डरती है?’’ पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, पर मुझे ठकुराइन अच्छी

लगती हैं.’’

‘‘तू ठकुराइन बनेगी?’’

‘‘मैं कैसे बनूंगी?’’

‘‘मुझसे शादी कर के,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तू पागल है. जा, अपने स्कूल. मेरा स्कूल आ गया है,’’ मजुरिया ने पल्लव को धकेलते हुए कहा और हंस कर स्कूल भाग गई.

उस दिन मजुरिया के घर आने पर उस की अम्मां ने कह दिया, ‘‘आज से स्कूल जाने की जरूरत नहीं है. ठाकुर का कर्ज बढ़ता जा रहा है. अब तो तुझे स्कूल में खाना भी नहीं मिलता है. कल से मेरे साथ काम करने खेत पर चलना.’’

मजुरिया टूटे दिल से अम्मां के साथ खेत पर जाने लगी.

वह 2 दिन से स्कूल नहीं गई, तो पल्लव ने खेत पर आ कर पूछा, ‘‘मंजरी, तू स्कूल क्यों नहीं जा रही है? क्या मु?ा से नाराज है?’’

‘‘नहीं रे, ठाकुर का कर्ज बढ़ गया है. अम्मां ने कहा है कि दिनरात काम करना पड़ेगा,’’ कहते हुए मजुरिया की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘तू परेशान मत हो. मैं तुझे घर आ कर पढ़ा दिया करूंगा,’’ पल्लव ने कहा, तो मजुरिया खुश हो उठी.

अम्मां जानती थी कि ठाकुर का बेटा उन के घर आ कर पढ़ाएगा, तो हंगामा होगा. पर वह छोटे ठाकुर की यह बात काट नहीं सकी.

पल्लव मजुरिया को पढ़ाने घर आने लगा. लेकिन उन के बीच बढ़ती नजदीकियों से अम्मां घबरा गई. अम्मां ने अगले दिन पल्लव से घर आ कर पढ़ाने से मना कर दिया.

मजुरिया कभीकभी समय मिलने पर स्कूल जाती थी. पल्लव रास्ते में उसे मिलता और ढेर सारी बातें करता. कब 2 साल गुजर गए, पता ही नहीं चला. आज मजुरिया का 10वीं जमात का रिजल्ट आएगा. उसे डर लग रहा था.

पल्लव तेजी से साइकिल चलाता हुआ गांव में घुसा, ‘‘मजुरिया… मजुरिया… तू फर्स्ट आई है.’’

मजुरिया हाथ में खुरपी लिए दौड़ी, उस का दुपट्टा उस के कंधे से उड़ कर दूर जा गिरा. उस ने पल्लव के हाथ से अखबार पकड़ा और भागते हुए अम्मां के पास आई, ‘‘अम्मां, मैं फर्स्ट आई हूं.’’

अम्मां ने उस के हाथ से अखबार छीना और हाथ पकड़ कर घर ले गई. पर उस की आवाज बड़े ठाकुर के कानों तक पहुंच ही गई.

‘‘मजुरिया की मां, तेरी लड़की जवान हो गई है. अब इस से खेत पर काम मत करवा. मेरे घर भेज दिया कर…’’ ठाकुर की बात पूरी नहीं हो पाई थी, उस से पहले ही अम्मां ने उसे घूर कर देखा, ‘‘मालिक, हम खेतिहर मजदूर हैं. किसी के घर नहीं जाते,’’ इतना कह कर अम्मां घर चली गई.

घर पर अम्मां मजुरिया को कमरे में बंद कर प्रधान के घर गई. उन की पत्नी अच्छी औरत थीं और उसे अकसर बिना सूद के पैसा देती रहती थीं.

‘‘मालकिन, मजुरिया के लायक कोई लड़का है, तो बताओ. हम उस के हाथ पीले करना चाहते हैं.’’

प्रधानजी की पत्नी हालात भांप गईं.

‘‘हां मजुरिया की अम्मां, मेरे मायके में रामदास नौकर है. पुरखों से हमारे यहां काम कर रहे हैं. उस का लड़का है. एक टांग में थोड़ी लचक है, उस से शादी करवा देते हैं. छठी जमात पास है.

‘‘अगर तू कहे, तो आज ही फोन कर देती हूं. मेरे पास 2-3 कोरी धोती रखी हैं. तू परेशान मत हो, बाकी का इंतजाम भी मैं कर दूंगी.’’

मजुरिया की अम्मां हां कह कर घर आ गई. 7वें दिन बैलगाड़ी में दूल्हे समेत 3 लोग मजुरिया को ब्याहने आ गए. बिना बाजे और शहनाई के मजुरिया को साड़ी पहना कर बैलगाड़ी में बैठा दिया गया.

मजुरिया कुछ समझ पाती, तब तक बैलगाड़ी गांव से बाहर आ गई. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई और बैलगाड़ी से कूद कर गांव के थाने में पहुंच गई.

‘‘कुछ लोग मुझे पकड़ कर ले जा रहे हैं,’’ मजुरिया ने थानेदार को बताया.

पुलिस ने मौके पर आ कर उन्हें बंद कर दिया. मजुरिया गांव वापस आ गई. जब सब को पता चला, तो उसे बुराभला कहने लगे. मां ने उसे पीट कर घर में बंद कर दिया.

मजुरिया के घर पर 2 दिन से न तो चूल्हा जला और न ही वे लोग घर से बाहर निकले.

पल्लव छिप कर उस के लिए खाना लाया. उस ने समझाया, ‘‘देखो मंजरी, तुम्हें ख्वाब पूरे करने के लिए थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ेगी. बुजदिल हो कर, रो कर तुम अपने सपने पूरे नहीं कर सकोगी…’’

पल्लव के इन शब्दों ने मजुरिया को ताकत दी. वह अगले दिन अपनी मैडम के घर गई. उन्होंने उसे 12वीं जमात का फार्म भरवाया. इस के बाद पल्लव मंजरी को रास्ता दिखाता रहा और उस ने बीए कर लिया. पल्लव की नौकरी लग गई.

‘‘मंजरी, मैं अहमदाबाद जा रहा हूं. क्या तुम मु?ा से शादी कर के मेरी ठकुराइन बनोगी?’’ पल्लव ने मंजरी का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘अगर मैं ने दिल की आवाज सुनी और तुम्हारे साथ चल दी, तो फिर कभी कोई मजुरिया दोबारा मंजरी बनने का ख्वाब नहीं देख पाएगी. फिर कभी कोई टीचर किसी मजुरिया को मंजरी बनाने की कोशिश नहीं करेगी.

‘‘एक मंजरी का दिल टूटने से अगर हजार मजुरियों के सपने पूरे होते हैं, तो मुझे यह मंजूर है,’’ मजुरिया ने कड़े मन से अपनी बात कही.

पल्लव समझ गया और उसे जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे कर वहां से चला गया. Hindi Family Story

Story In Hindi: मुआवजा – सड़क पर उतरी घर की इज्जत

Story In Hindi: जुलूस शहर की बड़ी सड़क से होता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. औरतों के हाथों में बैनर थे, जिन में से एक पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, ‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमें भी जीने का हक है. औरत का जिस्म खिलौना नहीं है…’

लोग उन्हें पढ़ते, कुछ पढ़ कर चुपचाप निकल जाते, कुछ मनचले भद्दे इशारे करते, तो कुछ मनचले जुलूस के बीच घुस कर औरतों की छातियों पर चिकोटी काट लेते. औरतें चुपचाप सहतीं, बेखबर सी नारे लगाती आगे बढ़ती जा रही थीं.

वे सब मुख्यमंत्री के पास इंसाफ मांगने जा रही थीं. इंसाफ की एवज में अपनी इज्जत की कीमत लगाने, अपने उघड़े बदन को और उघाड़ने, गरम गोश्त के शौकीनों को ललचाने. शायद इसी बहाने उन्हें अपने दर्द का कोई मरहम मिल सके.

उन के माईबाप सरकार को बताएंगे कि उन की बेटी, बहन, बहू के साथ कब, क्या और कैसे हुआ? करने वाला कौन था? उन की देह को उघाड़ने वाला, नोचने वाला कौन था?

औरतों के जिस्म का सौदा हमेशा से होता रहा है और होता रहेगा. ये वे अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन वे सौदे में नुकसान की हिमायती नहीं हैं.

घर वाले बतातेबताते यह भूल जाएंगे कि शब्दों के बहाने वे खुद अपनी ही बेटियोंऔरतों को चौराहों पर, सभाओं में या सड़कों पर नंगा कर रहे हैं. उन की इज्जत के चिथड़े कर रहे हैं, लेकिन जुलूस वालों की यह सोच कहां होती है? उन्हें तो मुआवजा चाहिए, औरत की देह का सरकारी मुआवजा.

अखबार के पहले पेज पर मुख्यमंत्रीजी के साथ छपी तसवीर ही शायद उन के दर्द का मरहम हो. चाहे कुछ भी हो, लेकिन लोग उन्हें देखेंगे, पढ़ेंगे और यकीनन हमदर्दी जताने के बहाने उन के घर आ कर उन के जख्म टटोलतेटटोलते खुद कोई चीरा लगा जाएंगे. भीड़ में इतनी सोच और सम झ कहां होती है.

पर मगनाबाई इतनी छोटी सी उम्र में भी सब सम झने लगी थी. लड़की जब एक ही रात में औरत बना दी जाती है, तब न सम झ में आने वाली बातें भी सम झ में आने लगती हैं. मर्दों के प्रति उस का नजरिया बदल जाता है.

15 साल की मगनाबाई 8 दिन की बच्ची को कंधे से चिपकाए जुलूस में चल रही थी. उस के साथ उस जैसी और भी लड़कियां थीं. किसी की सलवार में खून लगा था, कपड़े फटे और गंदे थे. किसी के गले और मुंह पर खरोंचों के निशान साफ नजर आ रहे थे. अंदर जाने कितने होंगे. किसी का पेट बढ़ा था. क्या ये सब अपनीअपनी देह उघाड़ कर दिखाएंगी? कैसे बताएंगी कि उस रात कितने लोगों ने…

मगनाबाई का गला सूखने लगा. कमजोरी के चलते उसे चक्कर आने लगे. लगा कि कंधे से चिपकी बच्ची छूट कर नीचे गिर जाएगी और जुलूस उस को कुचलता हुआ निकल जाएगा. जो कुचली जाएगी, उस के साथ किसी की भी हमदर्दी नहीं होगी.

मगनाबाई ने साथ चलती एक औरत को पकड़ लिया. उस औरत ने मगनाबाई पर एक नजर डाली, उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बच्ची, जब इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. अब तो मंजिल के करीब आ ही गए हैं. भरोसा रख. कहीं न कहीं तो इंसाफ मिलेगा…’’

कहने वाली औरत को मगनाबाई ने देखा. मन हुआ कि हंसे और पूछे, ‘भला औरत की भी कोई मंजिल होती है? किस पर भरोसा रखे? भेडि़यों से इंसाफ की उम्मीद तुम्हें होगी, मु झे नहीं,’ नफरत से उस ने जमीन पर थूक दिया.

कंधे से चिपकी बच्ची रोए जा रही थी. मगनाबाई का मन हुआ कि जलालत के इस मांस के लोथड़े को पैरों से कुचल जाने के लिए जमीन पर गिरा दे. उसे लगा कि बच्ची बहुत भारी होती जा रही है. उस के कंधे बो झ उठाने में नाकाम लग रहे थे. जुलूस के साथ पैरों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था.

मगनाबाई कुछ देर वहीं खड़ी रही. जुलूस को उस ने आगे बढ़ जाने दिया. सड़क खाली हुई, तो उस की नजर सड़क के किनारे लगे हैंडपंप पर पड़ी. उस ने दौड़ कर किसी तरह बच्ची को गोद में उठाए ही पानी पीया. फिर वह एक बंद दुकान के चबूतरे पर रोती बच्ची को लिटा कर दीवार की टेक लगा कर बैठ गई.

बच्ची ने लेटते ही रोना बंद कर दिया. मगनाबाई को भी सुकून मिला. कुनकुनी धूप उसे भली लगी. वह भी बच्ची के करीब लेट गई. उस की आंखें मुंदने लगीं.

मगनाबाई इस जुलूस के साथ आना नहीं चाहती थी. गप्पू भाई और भोला चाचा ही उसे बिस्तर से घसीट कर जुलूस के साथ ले आए. उस की आंखों के सामने बस्ता ले कर स्कूल जाती चंपा, गंगा और जूही नाच उठीं, लेकिन अब उस का बस्ता छूट गया और बस्ते की जगह इस बच्ची ने ले ली.

गप्पू भाई और भोला चाचा कहते थे कि मगनाबाई पहले की तरह स्कूल जा सकेगी. इस बच्ची को किसी अनाथालय में डाल देंगे. वह फिर पहले की तरह हो जाएगी. बस, मुख्यमंत्री से मुआवजा मिल जाए.

वे दोनों इन औरतों को दलदल से निकालने वाली संस्था के पैरोकार थे. जब भी पुलिस की रेड पड़नी होती थी, वे दोनों और उन की रखैलें इन औरतों के साथ बदसलूकी न हो, इसलिए साथ होते. जब भी वे दोनों साथ होते, तो पुलिस वाले रहम से पेश आते थे. आमतौर पर प्रैस रिपोर्टर भी पहुंचे होते थे. वे दोनों कई बार गोरी चमड़ी वाली लड़कियों को भी लाते थे.

उन दोनों का खूब रोब था, क्योंकि दलालों को अगर डर लगता था, तो उन से ही. उन दोनों ने मुख्यमंत्री के सामने धरनेप्रदर्शन का प्रोग्राम बनाया था और पुलिस से मिल कर जुलूस का बंदोबस्त करा था. क्या मजाल है कि ये मिलीजुली जिस्म बेचने वाली थुलथुल लड़कियां इस तरह बाजार में निकल सकें.

मगनाबाई को कहा गया था कि

वे दोनों मुआवजा मांग रहे हैं. इस से स्कूल खुलवाएंगे. इन की जिंदगी खुशहाल होगी.

तभी मगनाबाई के विचारों को  झटका लगा. मुआवजा किस बात का? किसे मिलेगा? क्या इसलिए कि 9 महीने तक इस बच्ची को बस्ते की जगह पेट में लादे घूमती रही थी? बारीबारी से लोगों का वहशीपन सहती रही थी? या फिर मुआवजे के रूप में गप्पू और भोला की पीठ ठोंकी जाएगी कि उन्होंने बेटी और बहन को अपनी मर्दानगी से परिचित कराया? सरकार उस की भी पीठ ठोंकेगी कि वह स्कूल जाने की उम्र में मां बनना सीख गई?

क्या सरकार उस से पूछेगी कि उसे मां किस तरह बनाया गया? क्या वह बता पाएगी कि उस के भाई ने पहली बार उस के हाथपैर खाट की पाटियों से बांध कर उसे चाचा को सौंप दिया था?

चाचा ने भी इस के बदले भाई को मुआवजा दिया था और फिर भाई ने भी चाचा की तरह वही सब उस के साथ दोहराया था.

यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. उसे डर दिखाया जाता कि अगर किसी से इस बात का जिक्र किया, तो काट कर फेंक दिया जाएगा. मुआवजे के रूप में यह बच्ची उस की कोख में आ गई. पता नहीं, दोनों में से किस की थी? क्या इन तमाम औरतों के साथ भी इसी की तरह…

बच्ची दूध पी कर सो गई थी. तभी किसी ने बाल पकड़ कर मगनाबाई को  झक झोरा, ‘‘तो यहां है नवाबजादी?’’

मगनाबाई ने मुड़ कर देखा. भोला चाचा जलती आंखों से उसे देख रहा था.

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. अब मु झ से नहीं चला जाता,’’ मगनाबाई ने कहा.

‘‘चला तो तु झ से अभी जाएगा. चलती है या उतारूं सब के सामने…’’

लोग सुन कर हंस पड़े. वे चटपटी बात सुन कर मजेदार नजारा देखने के इच्छुक थे. उसे लगा कि यहां मर्द नहीं, महज जिस्मफरोश हैं.

डरीसहमी मगनाबाई बच्ची को उठा कर धीरेधीरे उन के पीछे चल दी.

भोला चाचा ने मगनाबाई को पीछे से जोरदार लात मारी. उस के मुंह से निकला, ‘‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमारी मांगें पूरी करो… पूरी करो…’’ Story In Hindi

Hindi Family Story: ब्रह्मराक्षस – रिश्ते पर लगा कलंक

Hindi Family Story: ‘‘आज से हमारा पतिपत्नी का रिश्ता खत्म हो गया.’’

‘‘क्यों? उस में मेरा क्या कुसूर था?’’

‘‘कुसूर नहीं था, पर तुम्हारे दामन पर कलंक तो लग ही गया है.’’

‘‘तुम मेरे पति थे. तुम्हारे सामने ही मेरी इज्जत लुटती रही और तुम चुपचाप देखते रहे.’’

‘‘उस समय तुम्हारे पिता भी तो थे.’’

‘‘उन्होंने तो मु झे तुम्हें सौंप दिया था.’’

‘‘मैं अकेला क्या कर सकता था? वे लोग गिरोह में थे और सब के पास हथियार थे.’’

‘‘तो तुम मर तो सकते थे.’’

‘‘मेरे मरने से क्या होता?’’

‘‘तुम अमर हो जाते.’’

‘‘नहीं, यह खुदकुशी कहलाती.’’

‘‘अब मेरा क्या होगा?’’

‘‘मुझे 10 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है. हर महीने 5 हजार रुपए तुम्हें दे दिया करूंगा. इस के लिए तुम्हें कोई कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी. तुम चाहो तो दूसरी शादी भी कर सकती हो.’’

‘‘क्या तुम करोगे दूसरी शादी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर तुम मु झे दूसरी शादी करने की क्यों सलाह दे रहे हो?’’

‘‘यह मेरा अपना विचार है.’’

‘‘मैं जाऊंगी कहां?’’

‘‘तुम अपने पिता के साथ मायके चली जाओ.’’

‘‘और तुम?’’

‘‘मैं अकेला रह लूंगा.’’

‘‘क्या, मेरा कलंक अब कभी नहीं मिटेगा?’’

‘‘मिटेगा, जरूर मिटेगा. लेकिन कैसे और कब, नहीं बता सकता.’’

‘‘फिर क्या तुम मु झे अपना लोगे?’’

‘‘यह मेरे जिंदा रहने पर निर्भर करता है. अब तुम मायके जाने की तैयारी करो. बाबूजी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

तारा अपने पिता के साथ मायके चली गई.

उस के पति विक्रम ने उस के जाने के बाद अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. वह गहरी सोच में पड़ गया.

घर की हर चीज तारा की यादों को ताजा करने लगी थी. तारा की जब इज्जत लूटी जा रही थी, तब विक्रम हथियारों के घेरे में बिलकुल कमजोर खड़ा था.

वह नजर उस के दिलोदिमाग को बो िझल बना रही थी. उसे अपने ठंडे खून पर गुस्सा आ रहा था.

तारा ने ठीक ही कहा था, ‘कम से कम मर तो सकते थे.’

क्यों नहीं मरा? वह मौत से क्यों डर गया था?

बहुत से लोगों को उस ने मरते देखा था, फिर भी मौत के डर से छूट नहीं सका. बलात्कारी परशुराम का अट्टहास करता चेहरा बारबार उस की आंखों के सामने घूम रहा था.

डर की एक तेज लहर विक्रम के भीतर से उठी. वह कांप उठा था. सारा शरीर पसीने से गीला हो गया. उसे ऐसा लगने लगा था कि परशुराम का खौफनाक चेहरा उसे जीने नहीं देगा.

बहुत कोशिशों के बावजूद भी विक्रम की आंखों के सामने से उस का चेहरा हट नहीं रहा था. वह चेहरा जैसे हर जगह उस का पीछा करने लगा था, बलात्कार का वह घिनौना नजारा भी उस के साथ ही उभरने लगा था.

तारा का डर और शर्म से भरा चेहरा भी परशुराम के खौफनाक चेहरे के साथ उभरता रहा. उसे याद आया कि किस तरह तारा मदद के लिए बारबार उस की तरफ देखती और वह हर बार उस से अपनी आंखें चुरा लेता था. परशुराम और उस के साथियों की हंसी अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.

तकरीबन एक घंटे बाद बदमाश जा चुके थे. इस के बाद 1-1 कर के धीरेधीरे भीड़ जमा होने लगी थी. सब लोग डरेसहमे बेजान से लग रहे थे. विक्रम पहले की तरह खड़ा रहा, मानो उस के पैर जमीन से चिपक गए हों.

अचानक बाहर शोर सुनाई दिया, तो विक्रम धीरे से उठा. उस ने देखा कि बलात्कारी परशुराम अपने साथियों के साथ फूलमालाओं से लदा मस्ती में जा रहा है.

विक्रम चुपचाप उस भीड़ में शामिल हो गया. कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया. उन के चेहरों पर कुटिल हंसी दिखाई दे रही थी.

भीड़ में से एक आदमी बोला, ‘‘इसी की बीवी के साथ बलात्कार हुआ था, इस की आंखों के सामने. और इस के ससुर भी वहीं थे. इस ने अपनी बीवी से संबंध तोड़ लिया है. अब मौज से दूसरी शादी करेगा. इस की बीवी जिंदगीभर अपना कलंक ढोती रहेगी.’’

‘‘पैसे में बड़ी ताकत होती है. पैसे के बल पर ही तो परशुराम को जमानत मिली है.’’

‘‘तारा से ऐसेऐसे सवाल पूछे जाएंगे, जो दूसरे बलात्कार जैसे ही होंगे. एक बार परशुराम ने तारा के पति और पिता के सामने उस के साथ बलात्कार किया, दूसरी बार बचाव पक्ष के वकील भरी अदालत में जज की मौजूदगी में तारा से उलटेसीधे सवाल पूछेंगे, जिस से उसे दूसरे बलात्कार का एहसास होगा.’’

‘‘गवाही देने की भी हिम्मत कौन करेगा? समाज ही तो पालता है परशुराम जैसे लोगों को.’’

जितने मुंह उतनी बातें.

धीरेधीरे भीड़ छंटने लगी थी. परशुराम के घर पहुंचतेपहुंचते थोड़े ही लोग रह गए थे. विक्रम अभी भी सिर  झुकाए उसी भीड़ में चल रहा था. परशुराम को उस के घर पहुंचा कर भीड़ वापस चली गई थी. विक्रम वहीं डरासहमा खड़ा रहा.

परशुराम जैसे ही अंदर जाने लगा, विक्रम ने धीरे से कहा, ‘‘कुछ मेरी भी सुन लो परशुराम दादा.’’

आवाज सुन कर परशुराम पीछे मुड़ा, ‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘यहां नहीं दादा, उस बाग में चलो,’’ विक्रम बोला.

परशुराम ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘वहां क्यों?’’

‘‘दादा, बात ही कुछ ऐसी है.’’

‘‘अच्छा चलो,’’ घमंड से भरा परशुराम विक्रम के साथ बाग तक गया. उस ने सोचा कि यह डरासहमा आदमी उस का क्या कर लेगा.

उस ने अंदर की जेब में रखे अपने कट्टे को टटोला. वहां पहुंच कर उस ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ?’’

‘‘दादा, मैं ने अपनी बीवी को छोड़ दिया है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह दागी हो गई थी न दादा.’’

परशुराम के होंठों पर मुसकान उभर आई. वह बोला, ‘‘मु झे तुम से हमदर्दी

है विक्रम, पर क्या करता तुम्हारी बीवी चीज ही ऐसी थी.’’

उस का इतना ही कहना था कि विक्रम गुस्से से तमतमा गया, मानो उस के जिस्म में कई हाथियों की ताकत आ गई हो. उस ने परशुराम को अपने हाथों में उठा लिया और उसे जमीन पर तब तक उठाउठा कर पटकता रहा, जब तक कि वह मर नहीं गया.

आसपास के सभी लोग यह नजारा देखते रहे, मगर कोई भी उसे बचाने नहीं आया.

परशुराम की चीखें चारों तरफ गूंजती रहीं, मगर किसी पर उस का असर नहीं हुआ.

परशुराम की हत्या कर विक्रम सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचा, जहां उस ने सारी बातें दोहरा दीं. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

तारा को जब इस बात का पता चला, तो वह उस से मिलने जेल आई. विक्रम ने उसे बड़े ही गौर से देखा और मुसकरा कर कहा, ‘‘तारा, तुम्हारा कलंक मिट गया है. जेल से छूटने के बाद तुम्हें आ कर ले जाऊंगा. मेरा इंतजार करना. करोगी न?’’

‘‘हां, जिंदगीभर,’’ कहतेकहते तारा रो पड़ी. Hindi Family Story

Story In Hindi: मेरी दोस्त बनोगी – एक अनहोनी का शिकार बनी दिव्या

Story In Hindi: शामका समय था. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. दिव्या अपने बगीचे में बैठी थी. चाय की चुसकियों के साथ दिव्या एक उपन्यास पढ़ रही थी. तभी उस के फोन पर सोशल साइट पर फ्रैंड रिक्वेस्ट का नोटिफिकेशन आया. दिव्या ने उपन्यास एक तरफ रखा और मोबाइल देखने लगी.

रोहित नाम के किसी व्यक्ति की रिक्वैस्ट थी. दिव्या ने रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली. जैसे ही उस ने रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर के मोबाइल रखा. तभी उस व्यक्ति यानी रोहित का मैसेज आया, ‘‘हाय.’’

दिव्या ने मैसेज देखा और फिर अपना उपन्यास उठा लिया. उस ने उपन्यास पढ़ना शुरू किया. दोबारा फिर रोहित का मैसेज आया. दिव्या ने अब मैसेज नहीं देखा.

वह उपन्यास पढ़ने में तल्लीन हो गई. तब तक फिर मैसेज का नोटिफिकेशन आया तो उस ने मोबाइल उठा लिया. दिव्या ने देखा रोहित के ही 3 मैसेज थे. पहला मैसेज था, ‘‘मैडम रिप्लाई तो कर दो.’’

उस के बाद फिर उस का मैसेज था, ‘‘मैं अपने मैसेज के रिप्लाई का इंतजार कर रहा हूं.’’

अब दिव्या ने रिप्लाई किया, ‘‘हाय.’’

‘‘मैं चंडीगढ़ से रोहित हूं. मैं एक बिजनैस मैन हूं,’’ रोहित ने मैसेज किया.

‘‘ओके नाइस,’’ दिव्या ने बेमन से उस का जवाब दिया.

‘‘दिव्याजी, क्या आप मेरी फ्रैंड बनेंगी,’’ रोहित ने पूछा.

दिव्या ने कोई रिप्लाई नहीं किया और मोबाइल का नैट औफ कर के उपन्यास पढ़ने लगी. दिव्या एक शादीशुदा महिला थी. वह एक स्कूल में शिक्षिका थी. उस के पति पुणे में एक कंपनी में मैनेजर थे. दिव्या चंडीगढ़ में अकेली रहती थी.

रात को जैसे ही दिव्या ने अपने मोबाइल का नैट औन किया तो उस ने देखा कि रोहित के बहुत सारे मैसेज थे. दिव्या के औनलाइन होते ही उस के मैसेज फिर आने शुरू हो गए.

‘कैसा पागल है यह, इसे कोई काम नहीं है क्या?’ दिव्या सोचने लगी.

‘‘आप को कोई काम नहीं है क्या?’’ दिव्या ने रिप्लाई किया.

‘‘जी काम तो बहुत हैं पर आप के मैसेज के इंतजार में सारे काम रह गए,’’ रोहित ने लिखा.

‘‘कहिए क्या कहना है आप को?’’ दिव्या ने मैसेज किया.

‘‘क्या आप मेरी दोस्त बनेंगी?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘बन तो गई हूं तभी तो आप बात कर रहे हैं,’’ दिव्या ने लिखा.

‘‘ऐसे नहीं, आप वादा करो कि आप रोज मु झ से बात किया करेंगी,’’ रोहित ने मैसेज किया.

‘‘ठीक है,’’ दिव्या ने मैसेज किया.

‘‘धन्यवादजी,’’ रोहित ने मैसेज किया.

फिर उस ने दिव्या को एक चुटकुला भेजा. दिव्या चुटकुला पढ़ कर हंसने लगी और उस ने हंसी की इमोजी भेजी. अब रोहित ने उस को और 2-3 चुटकुले भेजे.

उस के चुटकुले पढ़ कर दिव्या को हंसी आ रही थी. अब दिव्या भी रोहित को चुटकुले भेजने लगी. इस तरह उन दोनों के बीच बातों का सिलसिला बन गया. दिव्या को अब रोहित से बात करना अच्छा लगने लगा था. उन दोनों ने एकदूसरे से अपने मोबाइल नंबर भी शेयर कर लिए थे.

जब भी दिव्या को फुरसत मिलती वह रोहित से बात करती रहती. बातों का यह सिलसिला इतना बढ़ा कि दोनों मिलने भी लगे. अब बात सिर्फ दोस्ती तक नहीं थी. दोस्ती से बहुत आगे बढ़ चुकी थी. रोहित दिव्या के घर आनेजाने लगा था और जो उन दोनों के बीच एक सीमा रेखा थी वह भी टूट चुकी थी. रोहित को दिव्या के बारे में सब पता था.

कुछ दिन बाद दिव्या का पति विदेश से आने वाला था. लेकिन रोहित हर दिन उस से मिलने आता था.

एक दिन दिव्या आदित्य से फोन पर बात कर रही थी. उस को एहसास हुआ कि वह

आदित्य से कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है. उसे स्वयं से घृणा होने लगी. उस ने सोचा कि अब वह रोहित से मिलना बंद कर देगी.

अगले दिन उस ने रोहित को घर पर आने से यह कह कर मना कर दिया कि कुछ दिनों के लिए उस की रिश्तेदार रहने आ रही है. उस ने रोहित से बात करना भी कम कर दिया. रोहित उसे कौल करता तो वह नहीं उठाती. उस के मैसेज का भी रिप्लाई नहीं करती.

एक दिन अचानक रोहित ने उसे एक वीडियो भेजा. दिव्या वीडियो देख कर अवाक रह गई. रोहित ने उस का और अपना वीडियो उसे भेजा था.

‘‘तुम ने यह वीडियो कब बनाया और क्यों बनाया,’’ दिव्या ने तुरंत उसे कौल कर पूछा.

‘‘क्यों तुम्हें पसंद नहीं आया? देखो हम दोनों कितने अच्छे लग रहे हैं,’’ रोहित बोला, ‘‘और हां वह तुम्हारी रिश्तेदार कहां हैं? उन को भी दिखाओ न यह वीडियो,’’ रोहित हंसते हुए बोला.

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं बस तुम्हें चाहता हूं. तुम रोज मु झ से मिलो और मेरे कुछ दोस्त भी तुम से मिलना चाहते हैं,’’ रोहित हंसते हुए बोला.

‘‘रोज तो मिलती हूं अभी 3 दिन से ही तो नहीं मिली हूं,’’ दिव्या ने गुस्से में कहा.

‘‘मैं एक दिन भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाता. मु झे तुम्हारी आदत हो गई है,’’ रोहित बोला.

‘‘हां तो किसी पब्लिक प्लेस में मिल लूंगी. पर यह वीडियो डिलीट करो,’’ दिव्या गुस्से में बोली.

‘‘कितने वीडियो डिलीट करूं बेबी? बहुत सारे हैं मेरे दोस्तों ने भी देखे हैं.’’

‘‘तुम्हे शर्म नहीं आई अपना और मेरा वीडियो अपने दोस्तों को दिखाते हुए?’’ दिव्या गुस्से में बोली.

‘‘शर्म आती तो वीडियो क्यों बनाता? छोड़ो ये सब. कल तुम मु झ से मिलने आओ,’’ रोहित एक कड़वी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘एक कौफी शौप में मिलते हैं.’’

दिव्या को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन उस ने यह सोच कर मिलने को कह दिया कि एक बार वह रोहित से मिल कर उस के मोबाइल से अपनी सारे वीडियो डिलिट कर देगी.

‘‘नहीं कौफी शौप में नहीं मैं तुम्हारे घर आऊंगा,’’ रोहित बोला.

‘‘नहीं मैं अब घर नहीं मिल सकती,’’ दिव्या ने कहा.

‘‘तो किसी होटल में मिलते हैं. मैं शाम को तुम्हें लेने आ जाऊंगा,’’ रोहित बोला.

‘‘क्यों होटल में क्यों?’’ दिव्या बोली.

‘‘तुम्हें पता नहीं है क्या कि मैं होटल में क्यों बुला रहा हूं?’’ रोहित बोला.

‘‘नहीं, मैं होटल में नहीं आ सकती,’’ दिव्या ने कहा.

‘‘आना तो पड़ेगा मेरी जान नहीं तो तुम्हारे ये वीडियो नैट पर अपलोड हो सकते हैं,’’ रोहित बोला.

‘‘तुम इतने गिरे हुए हो. यदि मु झे यह पता होता तो तुम से बात भी नहीं करती,’’ दिव्या गुस्से में चिल्ला कर बोली.

‘‘नहीं जान, मैं बिलकुल गिरा हुआ नहीं हूं. वह तो मेरे दोस्त ऐसा बोल रहे हैं. अगर तुम कल नहीं आई तो मेरे दोस्त ये वीडियो नैट पर अपलोड कर देंगे,’’ रोहित ठहाका लगाते हुए बोला.

दिव्या ने फोन काट दिया. अब वह सोचने लगी कि वाकई उस से बहुत बड़ी गलती हो गई. वह थरथर कांप रही रही थी कि रोहित के पास उस के वीडियो हैं.

अगर वह रोहित से नहीं मिलेगी तो वह वीडियो नैट पर अपलोड कर देगा. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

उस ने अपनी एक दोस्त अर्पिता को फोन किया और उसे सारी बात बताई. अर्पिता ने उसे सम झाया कि तू सुबह ही मेरे घर आ जा, फिर कुछ सोचते हैं. दिव्या ने रात में ही अपने कपड़े और जरूरी सामान पैक किया और सुबह अपनी दोस्त अर्पिता के घर पहुंच गई.

उस ने अर्पिता के घर की डोरबैल बजाई. जैसे ही अर्पिता ने डोर खोला, दिव्या उस से गले लग कर रोने लगी. अर्पिता ने उसे चुप कराया. दिव्या को रोते देख अर्पिता के पति शिवम ने अर्पिता से इशारे में पूछा कि दिव्या क्यों रो रही है? शिवम को दिव्या के बारे में कुछ पता न था.

यह 2 सहेलियों की आपस की बात थी. अर्पिता ने शिवम को कुछ नहीं बताया था. अर्पिता दिव्या को अपने कमरे में ले गई और दोनों बातें करने लगीं.

‘‘दिव्या, तू फोन पर बहुत घबराई हुई थी इसलिए मैं ने यहां बुला लिया. मु झे डर था कि कहीं तू कोई गलत कदम न उठा ले,’’ अर्पिता बोलीप्त

‘‘हां मु झे कुछ सम झ नहीं आ रहा था. मैं सोच रही थी कि मैं कुछ खा कर मर जाऊं,’’ दिव्या रोते हुए बोली.

‘‘ऐसी कायरों वाली बातें मत कर. मरना तु झे नहीं उसे चाहिए और तू ऐसे किसी भी अनजान आदमी से बात मत किया कर, अब फंस गई न,’’ अर्पिता दिव्या को डांटते हुए बोली.

‘‘बस इस बार मु झे इस मुसीबत से निकाल ले. फिर कभी किसी से बात नहीं करूंगी,’’ दिव्या अपने आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘लेकिन तेरे यहां आने से मुसीबत टली नहीं है वह तेरा वीडियो कभी भी अपलोड कर सकता है,’’ अर्पिता ने कहा.

‘‘फिर क्या करूं मैं?’’ दिव्या डरते हुए बोली.

‘‘हमें पुलिस में शिकायत दर्ज करानी पड़ेगी,’’ अर्पिता ने कहा.

‘‘पुलिस? नहींनहीं पुलिस से बात सब जगह फैल जाएगी,’’ दिव्या बोली.

‘‘वह तो वीडियो अपलोड होने के बाद वैसे भी तू कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेगी. इस से तो पुलिस में शिकायत करवा दे तो वह पकड़ा जाएगा और किसी को नहीं फंसा पाएगा,’’ अर्पिता ने दिव्या को सम झाया.

‘‘ठीक है पर शिवम को तूने बता दिया क्या?’’ दिव्या ने पूछा.

‘‘नहीं अभी मैं ने कुछ नहीं बताया. लेकिन बताना पडे़गा,’’ अर्पिता ने कहा.

‘‘तू नहा के आ जल्दी. खाना तैयार है. खाना खा कर फिर बात करते है,’’ अर्पिता ने दिव्या से कहा.

दिव्या नहाने चली गई. अर्पिता ने शिवम को दिव्या के बारे में सब बताया. तब तक दिव्या नहा के आ गई थी. सब ने खाना खाया और फिर तीनों पुलिस स्टेशन चल दिए. पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. इधर दिव्या के फोन पर रोहित के फोन बारबार आ रहे थे.

इंस्पैक्टर के कहने पर दिव्या ने रोहित से बात की. पुलिस ने उस का नंबर ट्रैक कर लिया. जल्द ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. रोहित के लैपटौप में पुलिस को लड़कियों के कई वीडियो मिले. पुलिस ने दिव्या का वीडियो डिलीट कर दिया. दिव्या वापस अपने घर आ गई.

दिव्या अब किसी भी अनजान की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट नहीं करती. कुछ दिनों बाद उस का पति आदित्य घर आ गया.

‘‘आदित्य, अब मैं अकेली नहीं रह सकती,’’ दिव्या ने कहा.

‘‘अब मैं तुम्हें अकेले रहने भी नहीं दूंगा,’’ आदित्य बोला.

‘‘क्यों? क्या मु झे अब अपने साथ ले जाओगे?’’ दिव्या ने खुश होते हुए कहा.

‘‘नहीं. अब मैं यहीं तुम्हारे साथ रहूंगा. अब जब भी कभी जाऊंगा तो तुम्हें साथ ले जाऊंगा,’’ आदित्य ने कहा.

‘‘अच्छा आज अचानक इतना प्यार कैसे आ गया?’’ दिव्या आदित्य को छेड़ते हुए बोली.

‘‘हां अब बहुत दिन हो गए अकेले रहते रहते. अगर ऐसे ही अलगअलग रहे तो हमारे बीच तीसरा कैसे आएगा,’’ आदित्य ने दिव्या को बांहों में भरते हुए कहा.

‘‘मतलब?’’ दिव्या आश्चर्य से बोली.

‘‘अरे मैं हम दोनों के बेबी की बात कर रहा हूं,’’ आदित्य ने बोला और लाइट बंद कर दी. दिव्या आदित्य के साथ थी, लेकिन उस के दिमाग में उथलपुथल हो रही थी. वह रोहित के बारे में आदित्य को सबकुछ बता देना चाहती थी. लेकिन उसे डर था कि कहीं आदित्य और उस के रिश्ते में दरार न पड़ जाए.

अगले दिन सुबहसुबह ही दिव्या आदित्य से बोली, ‘‘आदित्य मु झे तुम से

कोई जरूरी बात करनी है.’’

‘‘क्या बात करनी है बोलो,’’ आदित्य ने कहा.

‘‘आदित्य…’’ दिव्या कहतेकहते रुक गई.

‘‘बोलो न क्या कहना है,’’ आदित्य बोला.

‘‘मु झ से एक गलती हो गई,’’ दिव्या ने कहा और रोहित वाली सारी बात उसे बता दी.

पूरी बात सुनते ही आदित्य गुस्से में चिल्लाया, ‘‘तुम सम झती क्या हो अपनेआप को? तुम कुछ भी करोगी मैं सब सह कर लूंगा. अब जाओ उसी रोहित के पास. मेरी जिंदगी में अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं.’’

‘‘आदित्य मु झ से गलती हो गई. प्लीज मु झे माफ कर दो,’’ दिव्या रोतेरोते बोली.

‘‘यह गलती माफी के लायक नहीं है दिव्या,’’ कह कर आदित्य कमरे से बाहर चला गया.

‘‘आदित्यआदित्य प्लीज,’’ दिव्या आवाज देती रही, लेकिन आदित्य ने नहीं सुना और वह बाहर चला गया. दिव्य रोती रही.

देर रात आदित्य घर आया. दिव्या खाना ले कर उस के पास आई. उस को देखते ही आदित्य ने अपना मुंह मोड़ लिया.

‘‘आदित्य खाना खा लो,’’ दिव्या बोली.

‘‘मु झे नहीं खाना कुछ भी और तुम मु झ

से बात करने की कोशिश भी मत करो,’’

आदित्य बोला.

‘‘आदित्य मु झ से बहुत बड़ी गलती हो गई. एक बार मु झे माफ कर दो प्लीज,’’ दिव्या ने रोते हुए कहा.

‘‘नहीं, अब मु झे तुम से कोई मतलब नहीं रखना है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा,’’ रोहित गुस्से

में बोला.

‘‘मैं जानती हूं कि मु झ से बहुत बड़ी गलती हुई है, लेकिन तुम्हें तलाक देने की जरूरत नहीं पड़ेगी. मैं खुद ही तुम्हारी जिंदगी से दूर चली जाऊंगी,’’ दिव्या रोतेरोते दूसरे रूम में चली गई. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. वह सोचने लगी कि अब उस के जीवन का कोई मतलब ही नहीं है. उसे अपना जीवन खत्म कर लेना चाहिए.

इधर कमरे में बैठ कर आदित्य सोच रहा था कि इतनी बड़ी बात हो गई. दिव्या चाहती तो उसे कुछ नहीं बताती. लेकिन उस ने उसे सबकुछ बता दिया. अगर ऐसी गलती आदित्य से हो जाती तो क्या दिव्या उसे छोड़ देती. वह उठा और दिव्या के कमरे की तरफ बढ़ा. उस ने आवाज दी, ‘‘दिव्यादिव्या दरवाजा खोलो.’’

दिव्या कुछ न बोली. आदित्य के बारबार आवाज देने पर भी जब दिव्या की आवाज नहीं आई तो आदित्य ने खिड़की से अंदर  झांक कर देखा तो हैरान रह गया. दिव्या एक साड़ी को पंखे पर डालने की कोशिश कर रही थी.

‘‘दिव्या, दरवाजा खोल, अगर तुम ने ऐसा कुछ किया तो मैं भी मर जाऊंगा,’’ आदित्य बोला.

‘‘दिव्या फिर भी कुछ नहीं बोली और पंखे पर साड़ी डालने की कोशिश करने में लगी रही. उस की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे.

‘‘दिव्या रुको…’’ आदित्य जल्दी से कमरे से दूसरी चाबी ले कर आया. वह कमरा खोल कर अंदर गया और दिव्या को अपने गले से लगा लिया.

‘‘तुम क्या करने जा रही थी. मैं ने गुस्से में तुम्हें तलाक देने को कह दिया था.

लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता,’’ आदित्य भी रोते हुए बोला.

‘‘आदित्य मु झे माफ कर दो,’’ दिव्या रोतेरोते बस यही कहे जा रही थी.

‘‘चुप वह सब भूल जाओ कि तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हुआ था. तुम मेरी हो और हमेशा मेरी ही रहोगी,’’ कहतेकहते आदित्य भी रो पड़ा.

आदित्य और दिव्या सबकुछ भूल कर अब एक नई जिंदगी की तरफ बढ़ गए थे. एक गलती ने एक हंसताखेलता परिवार तबाही के रास्ते पर ला दिया था. हमें किसी भी अनजान व्यक्ति से बात करते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए. जहां तक हो सके अनजान लोगों से बात करने से भी बचना चाहिए. Story In Hindi

Story In Hindi: एक बार फिर – स्नेहा ने बौस को कठघरे में क्यों खड़ा किया

Story In Hindi: इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरा कहर ढाया है. इस से पूर्व भी एक बार यह कंपनी अस्तव्यस्त हो चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कर्मचारी स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई वर्षों से उस का यौनशोषण करते आ रहे हैं. उस की बोटीबोटी नोचते आ रहे हैं और यह सब महज शादी का लालच दे कर होता रहा है और अब वे शादी से मुकर रहे हैं. उस का इतना भर कहना था कि सबकुछ सुलग उठा था, धूधू करके.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, योग्य नहीं. उस ने बीटैक और एमटैक की डिगरियां ले रखी थीं. वह अपने कार्य में पूर्ण दक्ष थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक भी थी. उस ने अपने आकर्षक व्यक्तित्व और भरसक प्रयासों से कंपनी को देश ही में नहीं, बल्कि विदेशों में भी उपलब्धियां अर्जित कराई थीं.

इस प्रकार वह स्वयं भी प्रगति करती गईर् थी. एक के बाद एक प्रमोशन पाती गई थी और उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. हरदम चहचहाती रहती थी. चेहरे पर रौनक छाई रहती. उस के व्यक्तित्व के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे. परंतु अचानक वह बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी अचीव नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में उस ने यह कदम उठाया था. वह कभी यह कदम न उठाती, लेकिन एक स्त्री सबकुछ बरदाश्त कर सकती है पर अपने प्यार को साझा करना हरगिज नहीं.

जी हां, उस की कंपनी में वैसे तो तमाम सुंदर बालाएं थीं, परंतु हाल ही में एक नई भरती हुई थी. यह उच्च शिक्षित एवं प्रशिक्षित नवयुवती निहायत सुंदर व आकर्षक थी. उस ने सौंदर्य और आकर्षण में स्नेहा को पीछे छोड़ दिया था.

इसी सौंदर्य और आकर्षण के कारण वह अपने बौस की प्रिय हो गईर् थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून   झुलस रहा था.

आखिरकार उस ने आपत्ति की, ‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’

‘क्या ठीक नहीं है?’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘आप अपने वादेइरादे भूल बैठे हैं.’

‘कौन से वादेइरादे?’

‘मु  झ से शादी के?’

‘नौनसैंस, पागल हो गई हो तुम. मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’

‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस बिच के साथ रंगरेलियां मनाते रहते हैं…’

बौस ने हिम्मत से काम लिया. अपना तेवर बदला, ‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मोहब्बत करता हूं जितनी कि कल करता था. इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान मत दो. तुम कहां से कहां पहुंच गई हो. इतना अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’

‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’

‘यही तो कह रहा हूं मैं. स्नेहा, तुम समझने की कोशिश तो करो. मैं किस से मिल रहा हूं, क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो. जो कुछ भी मैं करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं. तुम्हारे मानसम्मान और प्रगति में कोई बाधा आए तो मु  झ से शिकायत करो. खुद लाइफ को एंजौय करो और दूसरों को भी करने दो.’

परंतु स्नेहा नहीं मानी, उस ने स्पष्ट रूप से बौस से कह दिया, ‘मुझे कुछ नहीं पता. मैं बस यह चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’

‘स्नेहा, मुझे अफसोस हो रहा है तुम्हारी सम  झ पर. तुम एक मौडर्न लेडी हो, अपने पैरों पर खड़ी हुई. यू शुड नौट पे योर अटैंशन टू दिस रबिश.’

‘तीन बार आप मुझे हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं. पर मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है. आप वर्षा को इतनी इंपोर्टैंस न दें. नहीं तो…’

‘नहीं तो क्या?’

‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि तुम पिछले कई वर्षों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’

बौस अपना धैर्य खो बैठे, ‘जाओ, जो करना चाहती हो करो. चीखो, चिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’

और स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह समाचारपत्रों के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टीवी चैनल्स मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी मध्य कुछ ऐसा घटित हुआ कि सभी सकते में आ गए. हुआ यह कि वर्षा का मर्डर हो गया. वर्षा का मर्डर क्यों हुआ? किस ने कराया? यह रहस्य, रहस्य ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा प्र्रैग्नैंट थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के मालिक का था.

इस सारे प्रकरण से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. स्नेहा के बौस का निलंबन तो पहले ही हो चुका था.

आखिरकार कंपनी ने राहत की सांस ली. उस ने एक नोटिफिकेशन जारी किया कि कंपनी में कार्यरत सारी लेडी कर्मचारी शालीन हो कर कंपनी में आया करें. जींसटौप जैसे अतिआधुनिक परिधान धारण कर के कदापि न आएं. बांहेंकटे जंपर, फ्रौक, ब्लाउज और पारदर्शी आस्तीनों वाले गारमैंट्स से परहेज करें. भड़काऊ मेकअप से बचें.

कंपनी के फरमान में जैंट्स कर्मचारियों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न गारमैंट्स से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ. लेडी कर्मचारी बड़ी शालीनता एवं शिष्टता से आनेजाने लगीं. जैंट्स भी सलीके से रहने लगे. सभी बड़ी तन्यमता से अपनेअपने काम को अंजाम देने लगे. परंतु फिर भी कर्मचारियों के मध्य पनप रहे प्रेमप्रंसगों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अद्भुत निर्णय लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से एकदो कर के जबतब लेडीज कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को अन्यत्र शिफ्ट किया जाने लगा. कुछेक महिलाएं परिस्थितियां भांप कर स्वयं इधरउधर खिसकने लगीं.

दूसरी जानिब लड़कियों के स्थान पर कंपनी में लड़कों की नियुक्ति की जाने लगी. इस का एक सुखद परिणाम यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की नियुक्ति हो गई. इस कंपनी की देखादेखी यही कदम अन्य मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की संख्या कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले आप इस कंपनी की किसी शाखा में जाते तो रिसैप्शन पर आप को मुसकराती, लुभाती, आप का स्वागत करती हुई युवतियां ही मिलतीं. उन के वुमन परफ्यूम और मेकअप से आप के रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती. आप नजर दौड़ाते तो आप को चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछेक इधरउधर आतेजाते, कुछ डीलिंग करते हुए.

परंतु अब मामला उलट था. अब आप का रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर आप दंग रह जाते. कुछ हृष्टपुष्ट, कुछ सींकसलाई से. कुछेक के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछेक के बहुत ही छोटेछोटे बेतरतीब खड़े हुए.

वे सब आप से बड़े प्यार से बात करते. कंपनी के प्रोडक्ट्स पर खुल कर बोलते. उन की विशेषताएं गिनाते और आप मजबूर हो जाते उन के प्रोडक्ट्स को खरीदने पर.

इन नौजवानों की अथक मेहनत और कौशल से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे प्रगति के मार्ग पर अग्रसर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह 10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाई जहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर से कंपनी में जान डाल दी थी. अब कंपनी का कारोबार आसमान छूने लगा था.

इसी मध्य एक बार फिर कंपनी को आघात लगा. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे विगत 2 वर्षों से उस का यौनशोषण करते आ रहे हैं.

उस कर्मचारी के बौस भी खुल कर सामने आ गए. कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के मध्य ऐसा होता रहा है. परंतु यह सब हमारी परस्पर सहमति से होता रहा है.’’

उन्होंने उस कर्मचारी को बुला कर सम  झाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी, नादानी तो आप कर रहे हैं.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपने वादेइरादे भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसे वादेइरादे?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने के. मु झ से शादी करने के.’’

‘‘नौनसैंस, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया, जो आप मुझ से नहीं, एक छोकरी से शादी करने जा रहे हैं.’’ Story In Hindi

Hindi Story: हम ने जिंदगी से यह तो नहीं मांगा था – बीए पास मजदूर

Hindi Story: ‘‘आप तो बीए पास हैं चचा, फिर मजदूरी क्यों करने लगे? कोई अच्छी सी नौकरी तलाशने की कोशिश क्यों नहीं की?’’ साथ में काम कर रहे एक नौजवान मजदूर के इस सवाल का बुजुर्ग हो रहे रघु ने कोई जवाब नहीं दिया.

छत की ढलाई के लिए लग रहे तख्ते की कील पर निशाना टिका कर जोर से हथौड़ा चलाते हुए रघु को लगा कि उस ने हथौड़ा कील पर नहीं, बल्कि खुद पर चला लिया हो. ऐसे सवाल उसे कील से चुभते थे.

बीए पास होने का अहम रघु के अंदर अपनी जवानी में आ गया था. पढ़लिख लेने के बाद तो वह लोगों को कुछ समझता ही नहीं था. इस अहम में उस ने अपने मांबाप को कभी यह नहीं कहा कि पढ़लिख कर अगर उसे कोई नौकरी मिली तो वह उन्हें कभी मजदूरी नहीं करने देगा, बल्कि उलटे उन के मजदूरी करने पर हमेशा उन्हें कोसता कि वह भूखा मर जाएगा, पर जिंदगी में कभी मजदूरी नहीं करेगा.

पढ़ालिखा होने के अहम में रघु ने कोई हुनर भी नहीं सीखा. शादी हो गई, बच्चे हो गए, फिर तो जिंदगी जीने के लिए कुछ न कुछ करना ही था. उसी अहम और मांबाप की नाराजगी की वजह से रघु की कोई नौकरी नहीं लगी और आखिर में जिंदगी गुजारने के लिए उसे भी मजदूरी करनी पड़ी.

‘‘देखो बेटा, बात ऐसी है कि जब जैसा तब तैसा, नहीं किया तो इनसान कैसा? अभी समय की यही मांग है कि मैं मजदूरी कर के अपने परिवार का पेट पालूं, तो वह मैं कर रहा हूं और तू अपने काम से काम रख,’’ रघु ने अभी भी अपने पढ़ेलिखे होने का सुबूत दार्शनिक बातों से दिया.

‘‘चचा, ननकू ने तो मैट्रिक कर ली है. अब उस को भी क्यों नहीं ले आते हो काम पर? सारा दिन घूमता रहता है.’’

‘‘अरे, उस को भी अहम ने घेर लिया है. कहता है कि परदेश जाएगा, हुनर सीखेगा. मेरी तरह मजदूरी नहीं करेगा. बिलकुल अपने बाप पर गया है,’’ गहरी सांस लेते हुए रघु ने कहा.

‘‘सही तो कहता है चचा, यहां मजदूरी करने में कोई इज्जत नहीं है. न काम का ठिकाना, न मजदूरी का. ऊपर से तुम ने इतना कर्जा ले लिया है कमेटी से ब्याज पर, हर हफ्ते किस्त देनी पड़ती है. उस को परदेश भेजो. वहां कुछ कमाएगा, तो आप का ही बोझ हलका होगा.’’

शाम को मिली मजदूरी ले कर रघु घर की ओर चला, तो ननकू रास्ते में ही दिख गया. बस, फिर क्या था. दिन में कील से चुभे सवालों की भड़ास गांव वालों के सामने ही ननकू पर निकाल दी.

नतीजतन, रात के 10 बज गए, पर ननकू घर नहीं आया. मां का दिल बैठा जाता था और धीरेधीरे रघु को भी घबराहट होने लगी. उस ने डर के मारे घर में बताया भी नहीं कि रास्ते में उस ने ननकू को डांटा था. रातभर मांबाप सोए नहीं.

चाहे जो भी हो जाए, देरसवेर ननकू घर जरूर आ जाया करता था, पर इस बार वह घर नहीं आया. सब परेशान. गांव के उस के दोस्तयारों से पता चला कि उस के कुछ दोस्त परदेश जाने वाले थे, रात में वह उन्हीं के साथ था.

मां का कलेजा धक से रह गया. पक्का वह चला गया अपने दोस्तों के साथ. रघु के अंदर मिलेजुले भाव उमड़घुमड़ रहे थे. थोड़ा डर था कि इतनी कम उम्र और गुस्से में परदेश चला गया. थोड़ी खुशी इसलिए थी कि कुछ कमाएगा तो घर के हालात थोड़े अच्छे होंगे.

ट्रेन के जनरल डब्बे में खिड़की की तरफ बैठा ननकू पौ फटने के साथ आ रही सूरज की रोशनी में नई उम्मीदें देख रहा था. अंदर से वह इतना खुश था मानो जैसे किसी जेल की कैद से रिहा हुआ हो. आज उस का अपना ही बापू दुनिया का सब से जालिम आदमी लग रहा था.

ट्रेन की तेज रफ्तार की तरह उस के सपने भी तेजी से बढ़े चले जा रहे थे. घर के हालात और बापू की किचकिच की वजह से वह हमेशा घर से भाग जाना चाहता था.

हिंदी फिल्मों की दुनिया में खोया रहने वाला ननकू हमेशा यही सोचता था कि घर से भागने के बाद वह तब तक घर वापस नहीं आएगा, जब तक कि बहुत बड़ा आदमी नहीं बन जाता.

बड़ा आदमी बनने के बाद अपनी बड़ी सी गाड़ी में शहर से गांव आएगा, अपने दरवाजे पर उतरेगा, जब बापू दौड़ कर उस के पास आएंगे तो वह उन्हें नजरअंदाज करते हुए मां के पास चला जाएगा. आज उसे ऐसा लग रहा था कि उस के सपने सच होने की ओर यह पहला कदम है.

इधर गांव में सुबहसुबह घर का माहौल एकदम गुमसुम था, कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा था. सब खामोशी से खुद ही खुद को तसल्ली दे रहे थे. सब यही कह रहे थे कि जहां भी जाए अच्छे से रहे. 4 बहनों के बाद पैदा हुआ ननकू घर का सब से छोटा था. धीरेधीरे समय के थपेड़ों ने ननकू के भाग जाने का दुख थोड़ा कम कर दिया था.

साल बीतने को था, पर ननकू गांव नहीं लौटा. रघु का कर्ज दिनबदिन वैसे ही बढ़ता चला गया, जैसे ननकू का घर लौट आने या घर के लिए कुछ पैसे भेज देने का इंतजार. दोस्तों के फोन से ननकू घर पर सब से बातें करता, पर रघु से नहीं. इच्छा दोनों बापबेटे की होती थी एकदूसरे से बात करने की, पर ननकू डर से नहीं करता था और रघु अहम से.

सालभर तो ननकू को काम सीखने में ही लग गया. इधर घर की हालत सुधर नहीं पा रही थी. रघु को गांव में कभी काम मिलता, कभी नहीं मिलता था. कर्ज का मूल तो वैसे का वैसा ही रहा, सूद दिनबदिन बढ़ता चला गया.

आखिर में रघु ने भी फैसला किया कि वह भी परदेश चला जाएगा, कम से कम वहां रोज काम और समय पर मजदूरी तो मिल जाएगी. गांव के कुछ लोग कमाने के लिए किसी और परदेश जा रहे थे, रघु भी उन्हीं के साथ हो लिया.

वहां जाते ही रघु को अच्छी पगार वाला काम मिल गया और इधर ननकू भी कुछ पैसे भेजने लगा, जिस से जिंदगी थोड़ीथोड़ी पटरी पर आने लगी.

इधर ननकू को उस परदेश की आबोहवा कभी रास नहीं आई. जो सपने वह ट्रेन में संजो कर लाया था, वे ट्रेन में ही कहीं छूट गए थे. यहां कभी उस की मासूमियत छूटी तो कभी बचपना, कभी उस की नींद छूटी तो कभी उस की थकान और जो सब से ज्यादा छूटी, वह थी भूख. अब वह 2-2 वक्त भूखा रह सकता था.

तकनीक की इस दौड़ में जहां अमीर परिवार के बच्चे मोबाइल फोन और लैपटौप की वजह से समय से पहले बड़े हो रहे हैं, वहीं ननकू जैसा किशोर जिंदगी की भागदौड़ वाली भीड़ की वजह से समय से पहले बड़ा हो गया.

एक बात ननकू की समझ में अच्छे से आ गई थी कि रातोंरात अमीर आदमी सिर्फ 2-3 घंटे की फिल्मों में ही बना जा सकता है, असल जिंदगी में नहीं. गुस्से में वह अपने दोस्तों के साथ परदेश आ तो गया था, पर यहां हर कदम पर पैसे चाहिए थे. इसी चिंता में उस की सेहत दिनबदिन बिगड़ती चली जा रही थी.

इधर कुछ दिनों से ननकू के पेट में अजीब सा दर्द शुरू हो गया था. इस सब के बावजूद दिनरात मेहनत कर उस ने खुद के लिए एक मोबाइल फोन लिया और घर जाने को ले कर पैसे जोड़ने लगा, पर पेट का दर्द उसे बेचैन कर जाता था और फिर एक दिन बेतहाशा दर्द उठा.

सब दोस्तों ने मिल कर किसी तरह ननकू को सरकारी अस्पताल में भरती करा दिया. आननफानन में सर्जरी हुई, पर ननकू को होश नहीं आया और 2 दिन बाद वह जिंदगी की जंग हार गया. डाक्टरों ने आननफानन में ननकू को डिस्चार्ज कर दिया मानो किसी अनहोनी को छिपाने की कोशिश की जा रही हो.

दोस्तों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करें. कैसे गांव में खबर करें. ननकू का क्रियाकर्म यहीं कर दें या गांव ले जाएं और ले जाएं तो कैसे ले जाएं. फिर सोचविचार कर सब से पहले रघु को ननकू के ही मोबाइल से फोन किया.

ननकू का फोन आया देख रघु को समझ ही नहीं आया कि वह खुश हो या हमेशा की तरह गुस्सा करे. उस के हाथ थरथराने लगे, दिल तेज धड़कने लगा मानो जैसे रघु बेटा हो और ननकू उस का पिता हो. उस समय रघु ऐसा महसूस करने लगा कि फोन पर पिता के रूप में उसे ननकू से डांट पड़ने वाली है.

इतने में फोन कट गया. पिता होने के अहम में रघु सोच में पड़ गया कि वापस इधर से फोन लगाए या नहीं, तब तक दूसरी बार फोन बज उठा. बगैर एक पल गंवाए उस ने फोन उठा लिया और मिलेजुले भाव के साथ ‘हैलो’ कहा.

जब रघु को लगा कि दूसरी तरफ ननकू नहीं है, तो उस की घबराहट थोड़ी कम हो गई और फिर उस के अंदर जो भाव उभरे, उस बारे में उस ने सोचा ही नहीं था. पर जो खबर उस ने फोन पर सुनी, उस की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

पत्थर तो रघु पहले से था, पर ऐसा लगा कि उस पत्थर को बर्फ की वादियों में कोई अकेला छोड़ आया हो. उस की आंखों से आंसू नहीं निकले मानो आंसू अपना रास्ता भूल कर आंख के बदले खून की नसों में चले गए हों और वहां पर खून के साथ लड़ाई कर पूरे शरीर में एक भूचाल सा ला दिया हो, जो उस के बदन में थरथराहट पैदा कर रहा था.

‘‘उसे ले कर गांव आ जाओ. पैसे मैं भेज देता हूं,’’ इतना कह कर रघु ने फोन काट दिया.

गांव में ऐसा माहौल था मानो जैसे कोई जलजला आ गया हो. ननकू के दुनिया से चले जाने की खबर आसपास के गांवों में आग की तरह फैल गई. सारे नातेरिश्तेदार भी घर पर जमा होने लगे, पर अभागा रघु कैसे आए, सौ लोग सौ मशवरे जारी थे.

इधर रघु जल बिन मछली जैसे छटपटा रहा था मानो कोई जादू की छड़ी मिल जाए, जिस के सहारे वह झट से अपने लाल के पास पहुंच जाए. उस की पिछले 6 महीने की कमाई एंबुलैंस के किराए में चंद मिनटों में पहले ही खत्म हो चुकी थी. अमीर लोगों के लिए तो सब मुमकिन है, पर गरीब के जिंदगीरूपी शब्दकोश में कुछ शब्द नहीं होते हैं, ‘मुमकिन’ शब्द उसी में से एक है.

मीलों दूर इस परदेश से अपने गांव समय पर पहुंचना रघु के लिए कहां मुमकिन था. ऐसे में उस के साथ काम करने वाले लोगों ने उस की मदद की और उसे हवाईजहाज से गांव भेजने का इंतजाम कर दिया. उसी हवाईजहाज में सफर कर रहे एक सहयात्री को ढूंढ़ उस से मदद के लिए बोल कर रघु को हवाईअड्डे के अंदर भेज दिया गया.

जिंदगी में पहली बार रघु का पढ़ालिखा होना उस के काम आया. हवाईजहाज के 2 घंटे के सफर में आसमान की ऊंचाइयों के बीच रघु को अपनी जिंदगी की सारी गलतियां घड़ी की सूई की तरह घूमती दिखाई देने लगीं. ननकू के इन हालात के लिए वह खुद को जिम्मेदार मानने लगा.

विद्यार्थी जीवन के कुछ भूलेबिसरे सपने भी याद आने लगे, जिन में से हवाईजहाज पर चढ़ना भी एक था…

हवाईजहाज की तेज आवाज के बीच रघु खुशी और गम में फर्क नहीं कर पा रहा था. ऐसा लग रहा था कि सारे फर्क मिट गए हों. लोग अपनी चाहत को पाने के लिए क्या कुछ नहीं करते, लेकिन कभी सब दांव पर लगा कर भी कुछ मिले तो लगता है कि हम ने जिंदगी से यह तो नहीं मांगा था. रघु ननकू का शव आने से पहले ही गांव पहुंच गया था.

ननकू का बड़ी गाड़ी से गांव आना और रघु का हवाईजहाज पर चढ़ना… दोनों के सपने पूरे हो गए, पर इस कीमत पर पूरे होंगे, ऐसा उस ने कभी नहीं सोचा था. अधूरे सपने तो अधूरे रह ही गए. जवान बेटे की लाश देखने की हिम्मत रघु के अंदर नहीं थी. Hindi Story

Hindi Family Story: स्वाभिमान – पूजा के सपनों का राजकुमार

Hindi Family Story: 12वीं पास कर के पूजा ने कालेज में दाखिला लिया था. ट्यूशन पढ़ा कर वह अपनी फीस और कालेज के दूसरे खर्चे पूरे कर लेती थी और अपनी पढ़ाई के लिए भी समय निकाल लेती थी.

घर में कुल 6 लोगों का परिवार एक कमरे में रहता था. सब के तौलिएसाबुन एक ही थे. घर में दोनों समय भोजन मिलता था. नाश्ता सिर्फ रात की बची रोटी होती थी.

ऐसे में कभीकभार पूजा के चाचाचाची के आने पर उन के घर का माहौल किसी त्योहार से कम नहीं होता था. उन दिनों में परांठों की खुशबू, मिठाई के डब्बे और गरम चाय और पकौड़े घर के रूटीन को भंग करते थे. कभीकभी सारा परिवार चाचाचाची के साथ घूमनेफिरने या सिनेमा देखने भी चला जाता था.

पूजा की चाची का मायका इसी शहर में ही था, इसलिए चाची आतीजाती रहती थीं. वे बहुत अमीर कारोबारी की बेटी थीं और पूजा के चाचा का ब्याह चाची से इसीलिए हुआ था, क्योंकि चाचा का चयन एक पीसीएस के पद पर हो गया था.

पूजा भी अपने चाचा की तरह सरकारी अफसर बन कर अपने घर का कायाकल्प करना चाहती थी. अब उस की साधना पूरी होने का समय आ रहा था. वह बीए के आखिरी साल के इम्तिहान दे चुकी थी और प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रही थी.

इसी बीच चाची आई थीं और वे बहुत चिंतित दिख रही थीं. वजह, उन के मायके में ब्याह की तैयारी चल रही थी. उन का भतीजा अमेरिका से भारत लड़की देखने आ रहा था और उन के मायके का पुराना कुक अपने गांव चला गया था. अब उस परिवार को एक कुशल रसोइए की जरूरत थी, जो घर वालों के लिए उन की पसंद का खाना बना सके, साथ ही भरोसेमंद भी हो.

चाची ने पूजा की मां से कहा, ‘‘दीदी, पूजा को मेरे साथ भेज दो. पूजा अपने इम्तिहान की तैयारी वहां भी कर सकती है. कुछ दिनों की बात है. इस बीच जो भी रसोइया आएगा, उसे पूजा अपनी देखरेख में उस घर के हिसाब से ट्रेंड कर देगी.’’

पूजा की मां चाची को मना नहीं कर सकीं.

पूजा भी मन ही मन खुश हो गई कि कम से कम कुछ दिन के लिए उसे एक अलग कमरा मिल सकेगा, तो शायद वह देर रात तक जाग कर पढ़ सकती है. यहां तो सब की निगाहें टिकी रहती हैं कि कब लाइट बंद हो तो वे गहरी नींद में सो सकें.

पूजा चाची के साथ उन के मायके चल दी. रास्ते में चाची ने उसे कुछ कपड़े दिला दिए और घर का रूटीन और घर वालों की खानेपीने की पसंदनापसंद भी बता दी.

चाची का मायका किसी राजसी हवेली से कम ना था. पूजा को लगा कि उस के पूरे महल्ले जितना बड़ा तो उन का गार्डन ही था.

गरीब घर की लड़कियां खाना बनाना तो ऐसे सीख जाती हैं, जैसे चिडि़या के बच्चे उड़ना. पूजा ने खुशीखुशी किचन संभाल ली और जो रैसिपी उस ने कभी किताबों में पढ़ी थीं, उन्हें एकएक कर आजमाने लगी. 3 दिन में ही वह घर के सभी लोगों की पसंद से वाकिफ हो गई और इज्जत से बात करने के चलते नौकरों की फौज की भी चहेती बन गई.

आज रविवार था. सभी लोग आलोक को लेने एयरपोर्ट गए थे और घर में पूजा सब के लिए दोपहर का खाना बना रही थी, जिस में आलोक की पसंद के सब व्यंजन शामिल थे.

इतने में घंटी बजी और पूजा ने दरवाजे पर एक बहुत ही हैंडसम लड़के को देखा. उस नौजवान को वह नहीं पहचानती थी और लड़के ने भी खुद के घर में एक अजनबी लड़की को अपना परिचय देना ठीक नहीं समझा. पुराने माली को उस ने इशारे से कुछ भी बोलने के लिए मना कर दिया, जो पूजा को उस का परिचय देना चाह रहा था.

उस नौजवान को बाहर की बैठक में बैठने को कह कर पूजा अपने काम में बिजी हो गई. हां, उस ने मेहमान को चाय और नाश्ता भेज दिया था.

वह नौजवान आलोक था, जिसे इस खेल में मजा आने लगा था और उस ने सोचा कि इस सस्पैंस को बरकरार रखने में ज्यादा मजा है. घर वाले जब उसे यहां देखेंगे, तो वह एक अलग खुशी होगी. जो एयरपोर्ट से फ्लाइट कैंसिल हो जाने से उस के न आ पाने से दुखी हो कर लौट रहे होंगे.

हुआ भी बिलकुल वैसा ही. सब लोग आलोक को घर पर देख कर खुशी से झूम उठे, लेकिन चाची ने अकेले में पूजा की अच्छी खबर ली कि वह कितनी बेवकूफ है, जो घर के राजकुमार को पहचान नहीं सकी. वैसे, आलोक के फोटो जगहजगह लगे थे, पर शायद पूजा ने ही कभी गौर नहीं किया था.

अगले दिन आलोक को चाय देने गई पूजा ने अपनी कल की गलती

की माफी मांगी और फिर आलोक के पूछने पर उस ने अपना एक छोटा सा परिचय दिया.

उस के बाद पूजा ने गौर किया कि घर में किसी बात पर बड़ी संजीदगी से कोई चर्चा चल रही है. घर के सारे बड़े एक कमरे में शाम से जमे हुए थे.

देर रात चाची पूजा के कमरे में आईं. पूजा पढ़ रही थी. चाची बोलीं, ‘‘पूजा, आलोक ने तुझे पसंद किया है. वह तुझ से ब्याह कर के तुझे अमेरिका ले जाना चाहता है.’’

पूजा इम्तिहान के बीच में ऐसी किसी बात के लिए सोच भी नहीं सकती थी. आलोक जैसे अमीर लड़के को जीवनसाथी के रूप में देखना तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

चाची बोले ही चली जा रही थीं कि अगले शनिवार को वे लोग सगाई करना चाहते हैं. दीदी और भाई साहब को तेरे चाचाजी ने बता दिया है. और भी बहुतकुछ चाची ने बोला, पर पूजा कुछ सुन कर भी सुन नहीं पा रही थी. उस का दिमाग शून्य हो गया था.

तय कार्यक्रम के मुताबिक उन सब लोगों को पूजा के घर आना था और वहीं एक छोटे से समारोह में सगाई कर के वे पूजा को अपने साथ ले जाने वाले थे. बाद में मुंबई में धूमधाम से शादी और 20 दिन में पासपोर्टवीजा के साथ पूजा का आलोक के साथ अमेरिका जाना तय हुआ था.

सबकुछ परीकथा जैसा था. सखियां पूजा से जल रही थीं. पड़ोसी मन में कुढ़ रहे थे, पर सामने से बधाई देते नहीं थक रहे थे.

शाम 5 बजे तक उन्हें आना था, पर धीरेधीरे 9 बज गए और वे लोग पहुंचे ही नहीं. अब पूजा के पिताजी को चिंता होने लगी. फिर चाचा ने चाची को फोन किया तो पता चला कि वे लोग एक होटल में ठहरे हुए हैं. इस संकरी गली में फैली गंदगी को देख कर लौट गए हैं. अब वे लोग चाहते हैं कि पूजा का परिवार होटल में आ जाए, ताकि सगाई समारोह वहीं हो जाए.

पूजा के पिता कुछ दुखी हुए, फिर पूजा और उस की मां को बताने आए. सब सुन कर पूजा ने एक फैसला किया कि वह इस रिश्ते के लिए रजामंद नहीं है. जो इनसान पूजा के घर एक घंटे भी नहीं रुक सकता, वह उस इनसान के घर सारी जिंदगी कैसे रह सकती है. उसे समझते देर न लगी कि यह कोई रिश्ता नहीं हो रहा, बल्कि उसे उस के ही घर से अलग करने की साजिश है.

पूजा ने एक स्वाभिमानी की तरह इस रिश्ते के लिए न बोला और कपड़े बदल कर सब भाईबहनों को खाना परोसा. बेचारे बच्चे इतने स्वादिष्ठ भोजन को खाने के लिए कब से उतावले थे और पूजा मन ही मन सोच रही थी कि इस रिश्ते को ठुकरा कर उस ने अपना और अपने पिता का स्वाभिमान बचा लिया. Hindi Family Story

Best Hindi Kahani: उस रात का सच – जब महेंद्र का हुआ तबादला

Best Hindi Kahani: महेंद्र को यकीन था कि हरिद्वार थाने में वह ज्यादा दिनों तक थानेदार के पद पर नहीं रहेगा, इसीलिए नोएडा के थाने में तबादला होते ही उस ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन चला आया.

रेल चलते ही हरिद्वार में गुजारे समय की यादें महेंद्र के सामने एक फिल्म की तरह गुजरने लगीं.

दरअसल हुआ ऐसा था कि महेंद्र ने रुड़की थाने में रहते हुए वहां के एक साधु द्वारा वहीं के लोकल नेताओं को लड़कियों के साथ मौजमस्ती कराते रंगे हाथों पकड़ा था.

यकीन मानिए, उन नेताओं को थाने में लाए उसे 10 मिनट भी नहीं हुए थे कि डीएसपी साहब का फोन आ गया कि फलांफलां नेता को फौरन रिहा कर दो.

महेंद्र बड़े अफसर का आदेश मानने को मजबूर था, इसलिए उसे उन नेताओं को फौरन रिहा करना पड़ा.

चूंकि वे नेता सत्ताधारी दल से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने महेंद्र का तबादला हरिद्वार थाने में करा दिया.

हरिद्वार थाने में कुछ दिन महेंद्र चुपचाप बैठा अपना काम करता रहा, लेकिन जब एक दिन थाने में बैठ कर वह पुरानी फाइलें देख रहा था, तभी एक फाइल पर जा कर उस की नजर रुक गई.

महेंद्र ने फाइल में दर्ज रिपोर्ट पढ़ी. उस रिपोर्ट में लिखा था, ‘गंगाघाट आश्रम में रहने वाली गंगाबाई आश्रम की तिजोरी से 10 हजार रुपए चुरा कर भागी.’

उसी फाइल के अगले पेज पर उस आश्रम के महंत और उस के एक शिष्य का बयान था.

‘उस रात हम दोनों साधना करने के लिए पास की पहाड़ी पर बने मंदिर में गए थे. चूंकि इस बात की जानकारी गंगाबाई को थी, इसी बात का फायदा उठा कर उस ने हमारे कमरे से तिजोरी की चाबी चुराई और उस में रखे 10 हजार रुपए चुरा कर भाग गई. आश्रम से एक रजाई भी गायब है.’

महेंद्र ने जब यह रिपोर्ट पढ़ी, तो उसे इस में कुछ गोलमाल लगा. उस ने तभी सबइंस्पैक्टर राकेश को बुलाया और उस से पूछा,  ‘‘राकेश, गंगाघाट आश्रम में हुई चोरी की तहकीकात क्यों नहीं की गई?’’

राकेश ने जवाब दिया,  ‘‘सर, थानेदार साहब ने मु झ से कहा था कि आश्रम का महंत इस मामले की जांच की तहकीकात में मदद नहीं कर रहा है, इसलिए मामला इसे ऐसे ही पड़ा रहने दो.’’

राकेश के जाने के बाद महेंद्र को लगा कि हो न हो, इस मामले में कुछ राज जरूर है, जो महंत छिपा रहा है.

इस के बाद महेंद्र ने आश्रम पर पैनी नजर रखनी शुरू कर दी.

एक दिन शाम को महेंद्र गंगाघाट आश्रम के सामने वाले होटल में बैठा था. उस की नजर आश्रम के गेट पर थी. उस ने देखा कि कुछ औरतें आश्रम के अंदर गई हैं और तकरीबन एक घंटे बाद बाहर निकलीं.

यह देख कर महेंद्र सोच में पड़ गया कि ये औरतें इतनी देर तक आश्रम में क्या कर रही थीं?

जैसे ही वे औरतें आश्रम से

बाहर निकल कर होटल के पास आईं, तभी महेंद्र ने उन में से

एक औरत से पूछा,  ‘‘बहनजी, क्या आश्रम में बहुत से मंदिर हैं, जो दर्शन करने के लिए बहुत देर लगती है?’’

वह औरत हंसी और बोली,  ‘‘भैया, आश्रम में तो एक भी मंदिर नहीं है. हम तो महंतजी के पास गई थीं. वे  लाइलाज बीमारियों का इलाज भी मुफ्त में करते हैं.’’

महेंद्र ने आगे पूछा,  ‘‘बहनजी, आप इन महंतजी के आश्रम में कब से आ रही हैं?’’

वह औरत बोली,  ‘‘आज तो मैं दूसरी बार ही आई हूं, लेकिन महंतजी कहते हैं कि तुम्हारी बीमारी गंभीर है. तुम्हें ठीक होने में 4-5 महीने तो लग ही जाएंगे,’’ इतना कह कर वह औरत चली गई.

एक दिन शाम को महेंद्र ने एक पुलिस वाले को उस आश्रम के बाहर बैठा दिया और उस से कहा, ‘‘कोई औरत अंदर से बाहर आए, तो उसे ले कर तुम मेरे पास आना.’’

उस दिन रात के 8 बजे वह पुलिस वाला एक 30-32 साला औरत को ले कर महेंद्र के घर आया. महेंद्र ने उसे बैठने के लिए कहा.

‘‘क्या आप आश्रम में नौकरी करती हैं?’’ महेंद्र ने पूछा.

‘‘नहीं सर. दरअसल, मेरी शादी हुए तकरीबन 7 साल हो गए हैं और अभी तक मेरी गोद नहीं भरी है. मेरे महल्ले की एक औरत ने मु झे बताया था कि तू गंगाघाट आश्रम के महंत के पास जा. कुछ ही दिनों में तेरी गोद भर जाएगी, इसलिए आज मैं पहली बार वहां गई थी.’’

महेंद्र ने उस से यह जानकारी ली और उसे इस तसदीक के साथ जाने के लिए कहा, ‘‘मैं ने तुम से जो जानकारी ली है, यह बात तुम किसी को मत बताना.’’

उन दोनों औरतों से मिली जानकारी संकेत दे रही थी कि हो न हो, उस आश्रम में कोई  ‘अपराध का अड्डा’ जरूर चल रहा है. सो, महेंद्र ने गंगाघाट आश्रम में हुई चोरी की घटना की तहकीकात जोरशोर से शुरू कर दी.

एक बार जब महेंद्र इसी सिलसिले में महंत से मिलने आश्रम गया, तो उस ने उसे इस मामले पर हाथ ही नहीं रखने दिया और बोला,  ‘‘जाने भी दीजिए. 10 हजार रुपए कोई बड़ी बात नहीं है. आप तो चाय पीजिए.’’

उस की होशियारी देख महेंद्र के मन में शक और भी गहरा गया.

एक दिन रात को जब महेंद्र गश्त के लिए निकला तो देखा कि वह महंत अपने शिष्य के साथ पहाड़ी पर जा रहा था. उस के पहाड़ी पर जाते ही महेंद्र गंगाघाट आश्रम के अंदर पहुंचा. वहां उसे भोलाराम नाम का एक आदमी मिला.

‘‘तुम यहां क्या करते हो? ’’ महेंद्र ने पूछा.

‘‘सर, आप मु झे इस आश्रम

का मैनेजर भी कह सकते हैं और चौकीदार भी.

‘‘सच तो यह है कि यहां का सारा काम मैं ही संभालता हूं. अब मेरी उम्र 70 पार हो चली है, इसलिए समय काटने के लिए मैं यहां रहता हूं. मैं ईमानदार आदमी हूं, इसलिए महंत ने मु झे अपने पास रखा है,’’ उस आदमी ने बताया.

‘‘तुम ईमानदार हो और सच्चे भी लगते हो. अच्छा, यह बताओ कि तुम्हारे आश्रम में रहने वाली गंगाबाई कैसी औरती थी? क्या वाकई वह चोरी कर सकती है?’’ महेंद्र ने पूछा.

वह आदमी बोला,  ‘‘सर, मैं आप से  झूठ नहीं बोलूंगा. दरअसल, गंगाबाई इस आश्रम में  झाड़ूपोंछा लगाने का काम करती थी.

‘‘जब मैं नयानया इस आश्रम में आया था, तब गंगाबाई ने ही मु झे बताया था कि महंतजी का नित्यक्रम एकदम पक्का है. वे सुबह मु झ से एक गिलास दूध मंगवाते हैं, फिर उस में अपने पास रखे काजूबादाम और दूसरे मेवे मिलाते हैं और उसी का सेवन करते हैं. फिर दोपहर में केवल 2 रोटी खाते हैं. इसी तरह शाम को भी उन का यही नित्यक्रम रहता है.

‘‘उस दिन उस की यह बात सुन कर मु झे हंसी आ गई थी. तब गंगाबाई ने मु झ से पूछा भी था,  ‘भोला भैया, तुम्हें हंसी क्यों आई?’

‘‘सर, मु झे हंसी इसलिए आई

थी कि उस की बात सुन कर मैं

सोच में पड़ गया था कि एक दिन में 2-2 गिलास मेवे वाला दूध पी

कर यह महंत उसे हजम कैसे करता होगा? क्योंकि वह अपने कमरे से कभीकभार ही बाहर जाता है.

‘‘सर, गंगाबाई का पति इसी आश्रम में रहता था. मेरे यहां आने से पहले आश्रम का सारा काम वही देखता था. कुछ दिनों से मैं ने उस में एक बरताव देखा था कि वह रोजाना रात को शराब पी कर आश्रम में आने लगा था. तब मेरे मन में सवाल भी उठा था कि उस के पास शराब पीने के लिए पैसे कहां से आते हैं?

‘‘एक दिन मु झ से रहा नहीं गया और मैं ने गंगाबाई से पूछ ही लिया,  ‘तुम रोजाना अपने पति को शराब पीने के लिए पैसे क्यों देती हो?’

‘‘तब वह बोली थी,  ‘भोला भैया, मेरे पति को शराब पीने के लिए पैसे मैं नहीं देती हूं, बल्कि खुद महंतजी ही देते हैं.’’’

उस दिन उस आदमी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर महेंद्र भी दंग रह गया था.

उस आदमी ने आगे बताया, ‘‘एक दिन जब रात को गंगाबाई का पति शराब पी कर आया, तब महंतजी ने उस की पिटाई की थी और आश्रम के गेट से उसे बाहर धकेलते हुए कहा था,  ‘तू रोज शराब पी कर आश्रम के नियमों को तोड़ता है. अब तू यहां नहीं रह सकेगा. आज के बाद तू मु झे कभी अपना मुंह मत दिखाना.’

‘‘सर, उस रात उस का पति जो इस आश्रम से गया, तो आज तक उस का पता नहीं चला कि वह कहां है? जिंदा भी है या नहीं?

‘‘गंगाबाई भी अपने पति के साथ  जाना चाहती थी, लेकिन उसी दिन महंत का एक शिष्य आश्रम में आया और उस ने महंतजी को कह कर उसे आश्रम से नहीं जाने दिया. महंत और उस का शिष्य रोजाना मेवे वाला दूध गंगाबाई के हाथों से पीते रहे.

‘‘एक दिन महंतजी ने मु झ से कहा,  ‘कुछ दिन तुम ऋषिकेश वाले आश्रम में जा कर रहो और वहां का इंतजाम देखो.’

‘‘सर, समय कब रुका है, जो रुकता. मैं एक महीने बाद दोबारा इस आश्रम में आ गया.

‘‘एक दिन सुबहसवेरे गंगाबाई अपने कमरे से बाहर निकली और बाथरूम में जा कर उलटियां करने लगी. जब उस की इस हरकत पर महंतजी और उन के शिष्य की नजर पड़ी, तब शिष्य बोला,  ‘गुरुजी, कुछ गड़बड़ लगती है. गंगा सुबह से कई बार उलटियां कर चुकी है. मु झे लगता है कि वह पेट से हो गई है.’

‘‘शिष्य के मुंह से ऐसी बात सुनते ही महंत के माथे पर पसीना आ गया. वे बोले, ‘जैसेजैसे इस का पेट बढ़ता जाएगा, अपने पाप का घड़ा लोगों के सामने आने लगेगा. फिर जो लोग हमें साधुसंन्यासी मान कर पूजते हैं, वे ही हमारा मुंह काला कर के सरेबाजार घुमाएंगे.’

‘‘सर, उस रात का सच आप को बता रहा हूं. वह अमावस की काली रात थी. रात को गंगाबाई उन्हें दूध देने उन के कमरे में गई, तभी उन्होंने उस के मुंह में कपड़ा ठूंसा, फिर गला दबा कर उस की हत्या कर दी. रात के अंधेरे में  महंत के शिष्य ने उस की लाश एक रजाई में लपेटी और उसे गंगा में बहा आया.

‘‘उस के बाद उन दोनों ने तिजोरी से रुपए निकाल कर उसे खुला छोड़ दिया, ताकि लगे कि यहां चोरी की वारदात हुई है.

‘‘सर, उस रात हुई हत्या और चोरी के बहुत से सुबूत मैं ने अपने पास महफूज रखे हैं. मेरी भी यही इच्छा थी कि साधु के रूप में छिपे इन अपराधी भेडि़यों को मैं सलाखों के पीछे देखूं, लेकिन जब आप के पहले के थानेदार ने इस केस में दिलचस्पी नहीं दिखाई, इसलिए मैं उन के सामने इन सुबूतों को नहीं लाया. अब मैं इस मामले से जुड़े सारे सुबूत आप को सौंप दूंगा.’’

‘‘अच्छा भोला भैया, यह बताओ कि यहां शाम ढले रोजाना कुछ औरतें लाइलाज बीमारी के इलाज के लिए आती हैं, कुछ गोद भर जाने की चाह में. इस का क्या राज है?’’ महेंद्र ने धीरे से पूछा.

भोला बोला,  ‘‘सर, यह महंत और उस का शिष्य भोलीभाली औरतों को उन की लाइलाज बीमारी को मुफ्त में ठीक करने के बहाने यहां बुलाते हैं. तकरीबन 2 महीने तक जड़ीबूटियों के नाम पर पहाड़ी पर लगे पेड़ों की डालियों को पीस कर उन्हें दूध में पिलाया जाता है और जब वे औरतें इस महंत पर पूरा विश्वास करने लगती हैं, तब बारीबारी से, एकएक को दूध में  नशे की गोलियां मिला कर बेहोश किया जाता है और फिर ये उन के जिस्म के साथ अपनी हवस पूरी करते हैं.’’

‘‘लेकिन, आश्रम में गोद भरने वाली ये औरतें किस आस पर आती हैं?’’ महेंद्र ने भोला से पूछा.

‘‘सर, यह महंत ऐसी हवा अपने बारे में फैलाता है कि गंगाघाट के आश्रम के महंत को सिद्धि प्राप्त हुई है और उन के आशीर्वाद से बां झ औरतों को भी बच्चे हो जाते हैं.

‘‘हमारा यह महंत गोद भरने की चाह रखने वाली औरतों को रात को आश्रम में बुलाता है, उन को 2-4 बार पूजापाठ और हवनों में बैठाता है, फिर एक  फल हाथ में दे कर उस के कान में धीरे से कहता है कि जब हम आदेश करें, तब इसे अपने मुंह में रखना. देखना, तुम्हारी गोद जल्दी ही भर जाएगी.

‘‘फिर उस औरत को महंत के कमरे के पास वाले अंधियारे कमरे में जाने के लिए कहा जाता है. वहां पहुंचते ही महंत का शिष्य उस औरत के कान में धीरे से कहता है, ‘आज तुम्हारी गोद भरने का  शुभ दिन है. देखना, आज चमत्कार होगा और महंतजी की कृपा से तुम्हारी गोद भर जाएगी. तुम इस फल को आंख बंद कर के खाती रहो.

‘‘जब वह औरत बिना कपड़ों में चमत्कार होने की राह देख रही होती है, तभी कभी यह महंत, तो कभी उस का शिष्य उस को उस अंधियारे कमरे में शिकार बनाते हैं. आखिर मेवे वाला दूध कभी तो अपना असर दिखाएगा ही न?

‘‘अपनी लुटी इज्जत को ढकने के चक्कर में ऐसी औरतें इन पाखंडियों की करतूत किसी को नहीं बतातीं, इसलिए इन की यह दुकानदारी चलती रहती है.’’

‘‘अगर मैं महंत के खिलाफ कोई कार्यवाही करूं, तो क्या तुम गवाही दोगे?’’ महेंद्र ने भोलाराम से पूछा.

‘‘सर, मैं यह सब लिख कर भी देने को तैयार हूं,’’ भोलाराम ने पूरे जोश के साथ कहा.

भोलाराम के बयान और उस के द्वारा दिए गए सुबूतों के आधार पर महेंद्र ने अगले ही दिन महंत और उस के शिष्य को गिरफ्तार कर लिया.

महंत और उस के शिष्य को गिरफ्तार हुए 2 घंटे भी नहीं हुए थे कि महेंद्र को आईजी और डीएसपी से संदेश मिलने शुरू हो गए कि उस महंत को तत्काल रिहा करो और उस के खिलाफ जो सुबूत हैं, उन्हें जला कर नष्ट कर दो.

जब महेंद्र ने आईजी साहब से कहा,  ‘‘सर, उस महंत के खिलफ मेरे पास पुख्ता सुबूत हैं.’’

तब आईजी बोले, ‘‘मिस्टर महेंद्र, मेरी बात सम झने की कोशिश करो. उस महंत का प्रभाव इतना ज्यादा है कि हम पर भी ऊपर से लगातार दबाव आ रहा है.’’

महेंद्र ने आईजी साहब से कहा,  ‘‘सर, मैं उन्हें रिहा नहीं कर सकता.’’

तब वे बोले, ‘‘फिर तुम मेरा यह और्डर भी सुन लो, तुम्हारा तबादला  नोएडा थाने में किया जाता है. तुम तत्काल नोएडा थाने में जा कर मु झे सूचना दो.’’

रेल एकदम से रुक गई. मालूम करने पर पता चला कि किसी ने चेन खींची थी. रेल के रुकते ही इंस्पैक्टर महेंद्र यादों के साए से बाहर निकला. तब भी उस के मन में यह एकदम पक्का था कि वह किसी भी थाने में क्यों न रहे, उस के काम करने का तरीका यही रहेगा, चाहे फिर तबादले कितने ही क्यों न होते रहें. Best Hindi Kahani

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