Caste Discrimination: अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें.
सवाल –
मेरी उम्र 35 साल है. मैं हरियाणा के पानीपत शहर के पास के एक गांव में रहता हूं. हमारे यहां गांव में जातिवाद बहुत ज्यादा हावी है. लोग आज भी जातिसूचक शब्दों का जम कर इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, ऐसा करने पर कोई बड़ा विवाद तो नहीं होता है, पर बड़ों को देख कर बच्चे भी कम उम्र में ही जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं, जो उन के भविष्य के लिए ठीक नहीं है. मैं एक एनजीओ संस्था से जुड़ा हूं और चाहता हूं कि इस तरह की सामाजिक बुराई को अपने देश से दूर कर सकूं, पर मेरा कोई भी साथ देने को तैयार नहीं है. सब कहते हैं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है, पर मुझे लगता है कि जातिवाद को दूर करने में यह पहल अच्छा कदम साबित हो सकती है. मैं ऐसा क्या करूं, जिस से अपनी सोच को मुहिम का रूप दे सकूं?
जवाब –
यह आप के गांव की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की नासमझी है कि लोग जातपांत की सोच से बाहर नहीं निकलना चाहते. हर जाति का आदमी खुद को ऊंचा और दूसरी जाति वाले को घटिया समझता है. दरअसल, यह सोशल कैंसर धर्म की देन है, जिस का कोई इलाज नहीं.
आप जैसे नौजवान इस बाबत पहल करें, तो इस कैंसर को और फैलने से रोका जा सकता है. इस के लिए आप अपनी सोच वालों को इकट्ठा करें और मीटिंगें कीजिए, उन्हें भारतीय संविधान पढ़ाइए और बताइए कि संविधान सब को बराबरी का दर्जा देता है.
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