संसद में कर्मकांड और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी

देश के नए संसद भवन के उद्घाटन के दरमियान प्राचीन रीति-रिवाजों के नाम पर जिस तरह कर्मकांड दुनिया और हमने देखे हैं उससे यह संदेश गया है कि आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की वैज्ञानिक सोच से इतर आज का भारत यह है जो हवन और कर्मकांड में विश्वास रखता है . क्योंकि इसके बगैर न तो देश की तरक्की हो सकती है और न ही समाज की. संभवत नरेंद्र दामोदरदास मोदी को यह विश्वास और आस्था है कि पंडित पुरोहितो के सामने समर्पण करने से देश दुनिया का सरताज बन सकता है और तथाकथित रूप से विश्व गुरु भी.

यह सब देखने के बाद कहा जा सकता है कि आज देश उस चौराहे पर खड़ा है जहां से एक बार फिर पोंगा पंथ और पुरातन पंथी विचारधारा को  सरकार और  सबसे ज्यादा प्रधानमन्त्री का प्रश्रय मिला है.

दरअसल, यह देश में  हिंदुओं की तुष्टिकरण के कारण और बहुलता के कारण यह सब किया जा रहा है. जो सीधे-सीधे संविधान और अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो जाने वाले लाखों लोगों का अवमान है. यह बताता है कि लोकतंत्र में सत्ता के लिए वोटों की राजनीति का भयावह चित्र कैसा हो सकता है. हमारे देश के संविधान में स्पष्ट रूप से अंकित है कि लोकतांत्रिक गणराज्य है. मगर आज हिंदुत्व वाली सोच कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र दामोदरदास मोदी संविधान की भावना से हटकर के वह सब कर रहे हैं जो इसके पहले 75 वर्षों में कभी भी नहीं हुआ. और मजे‌ बात की लोग कह रहे हैं कि नए भारत का आगाज हो गया है. यह हास्यास्पद है की ऐसा महसूस कराया जा रहा है मानो बीते 75 साल हमारे देश के लिए अंधकार के समान थे और नरेंद्र मोदी की सत्ता आने के बाद देश सही अर्थों में आजाद हुआ है विकास की ओर बढ़ रहा है और दुनिया का नेतृत्व करेगा. मगर यह सब बातें मीडिया का हो हल्ला है. सच्चाई यह है कि देश जिस तरह अपनी संविधान की सीमाओं से हटकर के पीछे की ओर जा रहा है उससे देश की छवि दुनियां में पूरी तरह से बदल रही है जो भविष्य के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती.

नेहरू और नरेन्द्र मोदी

तथ्य यह  है कि प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को सम्मान नहीं देते और उनके कार्य व्यवहार से महसूस होता है मानो विपक्ष को समाप्त कर देना चाहते हैं.  नरेंद्र मोदी बारंबार विपक्ष को नजरअंदाज कर और हंसी उड़ाते दिखाई देते हैं. अगर ऐसा नहीं है तो जब संसद के निर्माण का विचार नरेंद्र मोदी सरकार को आया तो उन्होंने विपक्ष से मिल बैठकर विचार विमर्श क्यों नहीं किया. जब उद्घाटन का समय आया तब उन्होंने विपक्ष के साथ विचार-विमर्श क्यों नहीं किया. देश सत्ता और विपक्ष के माध्यम से ही चलता है.  मगर नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सोच  है कि विपक्ष को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए. यही कारण है कि नई संसद के उद्घाटन के दरमियान कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार कर दिया. मगर उन्हें मनाने के लिए सकारात्मक   पहल नरेंद्र मोदी सरकार ने नहीं की. बल्कि  हुआ यह कि सरकार के चर्चित चेहरों द्वारा चाहे वह राजनाथ सिंह को या फिर स्मृति ईरानी द्वारा विपक्ष का मजाक बनाया गया और उन पर प्रश्नचिन्ह उठाए गए. इस संदर्भ में शरद पवार ने जो कहा है वह सौ फीसदी दी सच है.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के मुताबिक,- “नए संसद भवन के बनाने से मैं खुश नहीं हूं. मैंने सुबह कार्यक्रम देखा है, अच्छा है मैं वहां नहीं गया. नई संसद मे जो कार्यक्रम हुआ उससे हम देश को पीछे ले जा रहे हैं.”

शरद पवार देश वरिष्ठ राजनेता है अगर उन्होंने उद्घाटन समारोह पर यह टिप्पणी की है तो यह देश की दुनिया की आवाज ही कही जा सकती है. उनके मुताबिक -“उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  की विभिन्न रस्मों से यह प्रदर्शित हुआ  की देश को दशकों पीछे ले जाया जा रहा है , देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वैज्ञानिक सोच रखने वाले समाज की परिकल्पना की थी, लेकिन नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में जो कुछ हुआ वह इसके ठीक उलट है.”

सचमुच यह दुखद है और जिसका टेलीकास्ट दुनियाभर में हुआ है सारी दुनिया जानती है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सभी जाति समुदाय के लोग प्रेम और सद्भाव के साथ रहते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के एक कार्यक्रम से मानो सब कुछ मिट्टी पलीद हो गया.

संसद भवन का उद्घाटन के दौरान वहां हवन किया गया तथा लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट राजदंड (सेंगोल) स्थापित किया गया. यह साला ढकोसला दुनिया ने देखा है और इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. जिसका दूरगामी असर भारत की राजनीति पर भविष्य पर पड़ने वाला है.

दरअसल,प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा आधुनिक भारत की अवधारणा की बात करने और नई दिल्ली में नए संसद भवन में की गई विभिन्न रस्मों में बहुत बड़ा अंतर है. जो सिर्फ हिंदुत्व की स्थापना और हिंदू तुष्टीकरण के कारण किया गया है. यह पूरी तरह संविधान की भावना के विपरीत है. वस्तुत: यह लोग ऐसे हैं कि अगर आज हिंदुओं की जगह कोई दूसरा जाति समुदाय बहुसंख्यक हो जाए तो यह लोग उनके पैरों में भी लोटने लगेंगे.

नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर देश के सभी छोटे बड़े नेताओं बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे हैं ,ऐसे समय में शरद पवार का बयान अत्यंत महत्वपूर्ण है नए संसद भवन के उद्घाटन के संपूर्ण कार्यक्रम पर उनका यह कहना कि विज्ञान पर समझौता नहीं किया जा सकता. नेहरू ने वैज्ञानिक सोच वाले समाज का निर्माण करने की ओर निरंतर प्रयास किया. लेकिन आज नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में जो कुछ हुआ, वह उससे ठीक उलट है जिसकी नेहरू ने परिकल्पना की थी.

नया संसद भवन : नरेंद्र मोदी की टेढ़ी चाल

बिना किसी मांग के,देश में आवश्यकता के, एक तरह से रातों-रात देश में एक नया संसद भवन बना दिया गया है. जी हां यह सच्चाई है कि फिलहाल यह मांग उठी  ही नहीं थी कि देश को नवीन संसद भवन चाहिए और ना ही इसकी आवश्यकता महसूस की गई थी . मगर जैसे कभी राजा महाराजाओं को सपना आता था और सुबह घोषणा हो जाती थी भारत जैसे हमारे विकासशील एक गरीब देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने अचानक संसद भवन का निर्माण कराना शुरू कर दिया. शायद उन्हें पहले के जमाने के राजा महाराजाओं  के कैसे नए नए शौक चराते हैं . जैसे मुगल बादशाहों ने ताजमहल बनवाया लाल किला बनवाया और इतिहास में अमर हो गए प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी भी इतिहास में अमर होना चाहते हैं. यही कारण है कि संसद भवन का उद्घाटन भी देश की संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से करवाने की बजाय स्वयं करने के लिए लालायित है.

नए संसद भवन का उद्घाटन को लेकर  विपक्ष ने केंद्र सरकार पर हमले तेज कर दिए है सबसे पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और अब विपक्ष के नेता एक सुर में मांग कर रहे हैं कि उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से ही किया जाना चाहिए. यह मांग एक तरह से देश के संविधानिक प्रमुख होने के कारण राष्ट्रपति से कराया जाना गरिमा मय  लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाली होगी. क्योंकि संविधान के अनुसार हमारे देश में राष्ट्रपति ही सर्व प्रमुख है उन्हीं के नाम से प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार काम करती है.

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रपति से ही नई संसद का उद्घाटन कराने की मांग दोहराई  और कहा कि ऐसा होने पर लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सरकार को प्रतिबद्धता दिखेगी. आज  राष्ट्रपति का पद महज प्रतीकात्मक बन कर रह गया है.”

खड़गे ने ट्वीट कर कहा ,” ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने दलित और आदिवासी समुदायों से राष्ट्रपति इसलिए चुना ताकि राजनीतिक लाभ लिया जा सके.”

दूसरी तरफ पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है. और अब मौजूदा राष्ट्रपति को भी समारोह के लिए आमंत्रित नहीं किया जा रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे ने कहा, ” संसद भारतीय गणराज्य की सर्वोच्च विधायी संस्था है और राष्ट्रपति सर्वोच्च संवैधानिक पद है.राष्ट्रपति सरकार, विपक्ष और हर नागरिक का प्रतिनिधित्व करती है. वह भारत की प्रथम नागरिक है.उन्होंने आगे कहा  अगर संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति करती हैं, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को प्रतिबिबित करेगा.”

क्या यह राष्ट्रपति पद का अवमान नहीं है

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी देश की जनता या सवाल कर रही है की देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर आसीन द्रोपदी मुर्मू के साथ उनके पद का अपमान नहीं है .  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर चीज में मैं मैं करना शोभा नहीं देता.  दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियों में भी इस मुद्दे पर सवाल उठाने खड़े कर दिए हैं.

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा, ” नवनिर्मित संसद भवन के उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति की जगह प्रधानमंत्री को आमंत्रित करना न केवल राष्ट्रपति का अपमान है बल्कि ये पूरे आदिवासी समाज का अपमान है. साथ ही यह फैसला दर्शाता है कि भारतीय जनता पार्टी की मानसिकता आदिवासी विरोधी, दलित विरोधी और पिछड़ी विरोधी है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा, ” संसद के शिलान्यास से लेकर अब उद्घाटन तक राष्ट्रपति को छोड़ कर बड़ा फैसला लेना संवैधानिक रूप से सही नहीं है. उन्होंने कहा कि संसद के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित करना चाहिए.  प्रधानमंत्री के लिए संसद के नए भवन का उद्घाटन करना संवैधानिक रूप से सही नहीं होगा. ऐसा किसी बड़े लोकतंत्र ने ऐसा नहीं किया है. हमारा मत है कि संविधान का सम्मान नहीं हो रहा और ये न्यायोचित नहीं है.”

तृणमूल सांसद सौगत राय के  मुताबिक  राहुल गांधी ने जो मांग उठाई है, उससे हम भी सहमत हैं. नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री की बजाय भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए. ससद में लोकसभा और राज्यसभा दोनों है. प्रधानमंत्री है पार्टी के नेता हैं, जिनके पास सदन में बहुमत है और राष्ट्रपति संसद का प्रतिनिधित्व करते हैं. जहां तक बात वर्तमान राष्ट्रपति जो पति मुर्मू की है अनुसूचित जनजाति का प्रयोग करती हैं जिसका ढोल भाजपा ने उन्हें राष्ट्रपति बनाते समय खूब बजाया  था और आज जब उनसे संसद का उद्घाटन नहीं करवाने का नाटक जारी है और यही आवाज उठ रही है कि यह राष्ट्रपति पद का अपमान है ऐसे में अगर राष्ट्र पति महामहिम मुर्मू राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दे देती हैं तो जहां नरेंद्र दामोदरदास मोदी की बड़ी किरकिरी होगी वही इस ऐतिहासिक समय में द्रोपदी मुर्मू का कद बढ़कर इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा. अनुसूचित जनजाति का आप गौरव बन जाएंगी.

सत्यपाल मलिक का सच और सीबीआई

कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रिय पात्र रहे सतपाल मलिक अपने कड़वे बोलों के कारण संभवत नरेंद्र मोदी की आंखों की किरकिरी बन गए हैं. यही कारण है कि एक बहुचर्चित न्यूज पोर्टल में साक्षात्कार के बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने बतौर मेहमान उन्हें बुला भेजा है. मजे की बात यह है कि सत्यपाल मलिक ने सीबीआई इस निमंत्रण को अपने ट्विटर हैंडल पर बड़ी गर्मजोशी के साथ शेयर करते हुए फिर कुछ  कड़वा बोल दिया है जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और भारतीय जनता पार्टी अब उनके सीधे निशाने पर है.

जैसा कि अब यह बात सभी जानते हैं की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो हो या फिर प्रवर्तन निदेशालय अर्थात ईडी के दुरपयोग के आरोप केंद्र सरकार पर कुछ ज्यादा ही लगने लगे हैं ऐसे में सत्य पाल मलिक की छवि कुछ इस तरह की है कि सीबीआई द्वारा उन्हें भ्रष्टाचार के एक मामले में बुलाने की खबर की प्रतिक्रिया नरेंद्र मोदी के लिए सकारात्मक नहीं की जा सकती. आज देश के आम आवाम के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता और नेता भी यह सोचने लगे हैं कि देश में यह कैसी उल्टी गंगा बहा रही है और नरेंद्र दामोदरदास मोदी पर उंगलियां उठने लगी है. आज हम पाठकों के लिए सत्यपाल मलिक के बरक्स कुछ ऐसी जानकारियां लेकर आए हैं जिन्हें पढ़ समझकर आप स्वयं निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आखिर देश में क्या चल रहा है.

दरअसल, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने जम्मू- कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को केंद्र शासित प्रदेश में हुए कथित बीमा घोटाले के सिलसिले में कुछ सवालों के जवाब मांगे हैं.सात महीने में यह दूसरी दफा है, जब सत्यपाल मलिक से सीबीआई पूछताछ करेगी. बिहार, जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय के राज्यपाल के रूप में जिम्मेदारियां समाप्त होने के बाद पिछले साल अक्तूबर में मलिक से पूछताछ की गई थी . सीबीआइ की ताजा कार्रवाई ‘द वायर’ को मलिक द्वारा दिए गए साक्षात्कार के महज एक सप्ताह बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो का नोटिस मिल गया है.

दूसरी तरफ जैसा कि सत्यपाल मलिक का स्वभाव है उन्होंने  कहा है कि मैंने सच सच बोल दिया है, हो सकता है, इसलिए मुझे बुलाया गया हो. मैं तो किसान का बेटा हूं, मैं घबराऊंगा नहीं, सीबीआइ ने सरकारी कर्मचारियों के लिए  सामूहिक चिकित्सा बीमा योजना के ठेके देने और जम्मू-कश्मीर में कीरू जलविद्युत परियोजन से जुड़े 2,200 करोड़ रुपए के निर्माण कार्य भ्रष्टाचार के सत्यपाल मलिक के आरोपों के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की थीं. इधर  सत्यपाल मलिक ने दावा किया कि उन्हें 23 अगस्त, 2018 से 30 अक्तूबर 2019 के बीच जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने रूप में कार्यकाल के दौरान दो फाइलों को मंजू देने के लिए 300 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की गई थी. पाठकों को बता दें कि दूसरी प्राथमिकी की जलविद्युत परियोजना के सिविल कामकाज ठेके देने में कथित अनियमितताओं से जुड़ी है. सत्यपाल मलिक ने हाल ही में एक विवादास्पद साक्षात्कार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार पर निशाना साधा था और विशेष रूप से जम्मू कश्मीर में शासन चलाने के तरीके को लेकर उसकी आलोचना की थी.

मलिक के कथन से  उल्टा संदेश               

सीबीआइ के पूछताछ के लिए बुलाने संबंधी घटनाक्रम पर कभी मोदी के खास खास रहे सत्यपाल मलिक ने कहा कि सीबीआइ ने ‘कुछ स्पष्टीकरण’ के लिए अपने अकबर रोड स्थित गेस्ट हाउस में उपस्थित होने को कहा है.  सत्यपाल मलिक ने कहा है कि मैं राजस्थान जा रहा हूं, इसलिए मैंने उन्हें 27 से 29 अप्रैल की तारीख दी है.’ उन्होंने ट्वीट किया कि वह सच के साथ खड़े हैं. मलिक ने ‘हैशटैग सीबीआइ के साथ ट्वीट किया, ‘मैंने सच बोलकर कुछ लोगों के पाप उजागर किए हैं. कुल मिलाकर के जहां एक तरफ दिल्ली में शासन कर रही आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल सहित उसके कई नेताओं पर सीबीआई और ईडी की गाज को हमने देखा है दूसरी तरफ बिहार में लालू परिवार भी सीबीआई और ईडी से घिरा हुआ है. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार के कई चेहरे इनकी जद में है. यह कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से हटकर अन्य सभी पार्टियों के ऊपर एक तरह से सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने दबिश दे रही है. इन सबके बीच सत्यपाल मलिक एक ऐसा चेहरा है जो अपने कार्य शैली के कारण देशभर में जाने जाते हैं उन्होंने अपनी बेबाक टिप्पणियों से लोकतंत्र को सींचने का काम किया है, ऐसी शख्सियत पर सीबीआई का फंदा सुर्खियां बटोर रहा है. देखना यह होगा कि आगे चलकर सत्यपाल मलिक खामोश हो जाते हैं या फिर और भी ज्यादा बेबाकी से अपनी बात को देश के सामने रखते हैं.

भाजपा, नरेंद्र मोदी और हनुमान..!

जनता पार्टी के स्थापना दिवस पर नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने मास्टर भाजपा को हनुमान सदृश्य बताया. भारतीय राजनीति में इन दिनों भाजपा जिस तरह हिंदुत्व को लेकर के पल पल ध्रुवीकरण में लगी हुई है वह सीधे-सीधे संविधान के विरुद्ध है नैतिकता के विरुद्ध है आने वाले भारत के लिए अनेक तरह के संकट लेकर आने वाला है. अगर नरेंद्र मोदी हनुमान जयंती पर भाजपा को राम से जोड़ देते हैं तो रामनवमी पर श्रीराम से इसी तरह हर एक हिंदुत्ववादी त्यौहार पर कुछ ऐसी बात करते हैं कि हिंदूवादी मतदाता भारतीय जनता पार्टी को गले लगा ले और आंख बंद करके उन्हें वोट देने लगे. यह एक जनतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है मगर सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठ कर के नेताओं को साथ में रखने का नाम भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का है.

हमारे देश की राजनीति का सौंदर्य यही है कि हमने दो दल की जगह अनेक दलों को तरजीह दी है मगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आने के बाद बाकी सभी दलों को नेस्तनाबूद कर देना चाहती है. अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बात तो छोड़ दें भाजपा तो कांग्रेस को भी निगल जाना चाहती है.

दरअसल, हमारा देश लोकतांत्रिक है, इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद जिस तरह विपक्ष चाहे वह कांग्रेस हो या आप हो या समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी या अन्य छोटे बड़े राजनीतिक दल उन्हे नेस्तनाबूद करने की कोशिश की जा रही है, नेताओं को प्रताड़ित करने की चेष्टा जारी है उससे साफ संकेत मिलता है कि जैसा कि उद्धव ठाकरे ने कहा 2024 का लोकसभा चुनाव अगर नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्व में भाजपा अगरचे ऐन केन  जीत जाती है तो विपक्ष के लिए अंतिम चुनाव होगा. अगर हम देखते हैं तो कांग्रेस पार्टी की देश से सिमटते हुए अब कांग्रेस चुनिंदा राज्यों में ही राज कर रही है, ऐसे में छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के  संरक्षण में कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन पर भी  केंद्र सरकार ने ग्रहण लगाने की पुरजोर कोशिश की. यह चिंतन का विषय है कि भाजपा नेतृत्व को क्यों पीड़ा हो रही है. लोकतंत्र और देश ऐसे ही चलता आया है. यह भी सच है कि व्यवहार और हकीकत में अंतर होता  है . मगर जिस तरह अधिवेशन से पूर्व केंद्र की विधि यानी प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस के नेताओं पर गाज गिराई वह देश भर में चर्चा का विषय बन गया. जहां कांग्रेस रक्षात्मक है वही भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार आक्रमण होती जा रही है. इससे यह संकेत मिलता है कि कहीं न कहीं तो अधिवेशन से भय है. वस्तुत: भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर कांग्रेस भी आपके जैसा व्यवहार करती तो भारतीय जनता पार्टी क्या पैदा हो पाती…? क्या भाजपा आज जिस मुकाम पर पहुंची है कभी पहुंच सकती थी. लोकशाही और तानाशाही में अंतर भाजपा के बड़े नेताओं को मालूम होना चाहिए और  एक देशहित और स्वस्थ स्पर्धा के रूप में अपनी भूमिका को निभाना चाहिए.

भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व ऐसे ही कुछ मुद्दों पर देश की आवाम को बरगलाने का लगातार प्रयास कर रही है ठीक है देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं मगर आजादी के बाद देश को आगे बढ़ाने का जिम्मा जिन लोगों के हाथों में था उन्होंने यह निश्चय किया कि चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम या सिख ईसाई सभी इस देश के नागरिक हैं और सबका विकास समरसता के साथ देश में होना चाहिए .

मगर,आज देश में जो हो रहा है वह सारा देश देख रहा है. कांग्रेस जिसकी जड़ें बहुत मजबूत हैं उसे अगर नेस्तनाबूद करने की ख्वाहिश‌ अगर भाजपा पाल रही है तो यह तो मुंगेरीलाल के ख्वाब ही कहे जाएंगे, क्योंकि कांग्रेस एक राजनीतिक दल ही नहीं एक विचारधारा भी है, छत्तीसगढ़  में ईडी की कार्रवाई के बाद आवेश ने भी मोर्चा संभाल लिया और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा -छत्तीसगढ़ में पार्टी के कई नेताओं के खिलाफ है प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई को लेकर प्रधानमंत्री पर सीधा निशाना साधा. उन्होंने कहा कि कठपुतली एजेंसियों का डर दिखाकर देश की आवाज को दबाया नहीं जा सकता.

 हिंदू देवी देवता और भाजपा

जब भी कोई हिंदू त्यौहार आता है भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी  देश की बहुसंख्यक वोटरों को लुभाने के लिए कुछ ना कुछ कर जाते हैं. इस दफा संयोग से 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस था उसके साथ ही हनुमान जी की जयंती भी ऐसे में आप (नरेंद्र मोदी) भला कहां मौन रहने वाले थे . हनुमान जयंती के बारे में जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान हनुमान और भाजपा के बीच समानताएं बताने लगे और कहा -” पार्टी निःस्वार्थ सेवा के आदर्शों में विश्वास करती है.” उन्होंने कहा -” आत्म संदेह को खत्म करने के बाद भगवान हनुमान की तरह ही भारत अपनी क्षमता का एहसास कर रहा है.” मोदी ने कहा- “अगर हम भगवान हनुमान का पूरा जीवन देखें तो उनमें ‘कर सकने वाला’ की प्रवृत्ति थी जिसकी वजह से उन्हें बड़ी सफलताएं हासिल हुईं.”दरअसल यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है अगर  कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल भी यही करने लगेंगे तो देश रसातल को चला जाएगा

नरेंद्र दामोदरदास मोदी और आवाम की खुशियां

अब जब आम चुनाव में तकरीबन एक वर्ष बचा रह गया है प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की केंद्र की सरकार की अगर हम भारत के आम लोगों की खुशियों के तारतम्य में विवेचना करें तो पाते हैं कि आम आदमी का जीवन पहले से ज्यादा दुश्वार  हो गया है. उसके चेहरे की खुशियां विलुप्त होती जा रही हैं. नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सर्वप्रथम संसद के चौबारे पर मस्तक झुका करके देश की संसद के प्रति आस्था व्यक्त की थी इसका मतलब यह था कि देश की आवाम की खुशियों के लिए वह सतत प्रयास करेंगे और इसलिए श्रद्धानवत हैं. मगर इन 9 वर्षों में देश की आवाम और खास तौर पर आम आदमी के चेहरे की खुशियां विलुप्त होती चली गई है. आग्रह है कि आप जहां कहीं भी रहते हों, आप चौराहे पर निकलिए लोगों से मिलिए लोगों को देखिए आपको इस बात की सच्चाई की तस्दीक हो जाएगी.

अगर हम आज संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट का अवलोकन करें तो पाते हैं कि 2023 की रिपोर्ट में भारत देश दुनिया के देशों में 125 में नंबर पर है जो यह बताता है कि देश का आम आदमी खुशियों से कितना  महरूम है. अगर देश का आम आदमी खुश नहीं है तो इसका मतलब यह है कि देश की सरकार अपने दायित्व को नहीं निभा पा रही है. अरबों खरबों  की अर्जित टेक्स और विकास की बड़ी बड़ी बातें करने के बाद अगर आम आदमी को खुशियां नहीं है तो फिर देश की केंद्र सरकार पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक हो जाता है.

 खुशियां ढूंढता आम आदमी   

दरअसल,  संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में फिनलैंड ने लगातार छठी बार दुनिया का सबसे खुशहाल देश का दर्जा हासिल कर लिया किया है. यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क ने  जारी की है. व‌र्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में 137 देशों को आय, स्वास्थ्य और जीवन के प्रमुख निर्णय लेने की स्वतंत्रता की भावना सहित कई मानदंडों के आधार पर रैंक किया गया है. 137 देशों की लिस्ट में भारत को 125वें स्थान पर रखा गया है.

2022 में भारत की रैंक 136 लें नंबर पर थी. दूसरी तरफ भारत अभी भी अपने पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, चीन, बांग्लादेश आदि से नीचे है दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती तकलीफों और दिक्कतों के बीच भारत की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती देश को आजादी दिलाने वाले वीर शहीदों ने शायद यह कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि आजादी के बाद भी देश का आम आदमी एक स्वतंत्र मनुष्य के रूप में एक अच्छे जीवन से महरूम रहेगा. आम आदमी के लिए मुश्किलें बढ़ती चली जा रही हैं सत्ता में बैठे हुए लोग की सुविधाएं बढ़ती चली जा रही हैं यह जबले कहां जा रहा है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित अखबारों में सुर्खियां है कि विधानसभा में विधेयक पारित कर के पूर्व विधायकों की पेंशन को 35000 से बढ़ाकर के 58000 रूपए  लगभग कर दिया गया है. देश की चाहे कोई भी विधायिका और संसद हो आम लोगों के खुशियों को बढ़ाने का काम नहीं बल्कि बड़े लोगों की सुविधाओं के लिए अब काम करने लगी है यही कारण है कि आम आदमी का जीवन मुश्किल तो मुश्किल चुनौतियों से घिरा हुआ है जिसका अक्स वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भी दिखाई दे रहा है.

 हजारों करोड़ों रुपए का घोटाला

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बीके शुक्ला के मुताबिक देश में आज आम आदमी आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है, देश के बड़े आदमी , उद्योगपति जिस तरह सत्ता के संरक्षण में हजारों करोड़ों रुपए का घोटाला कर रहे हैं उसका भुगतान ही आम आदमी कर रहा है.

दरअसल, वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स को तैयार करने में संयुक्त राष्ट छह प्रमुख कारकों का उपयोग करता है. इसमें  स्वस्थ जीवन की अनुमानित उम्र, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, विश्वास और उदारता शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि हैप्पीनेस इंडेक्स तैयार करने में औसत जीवन मूल्यांकन के लिए की फैक्टर माना गया है. इसमें फोविड-19 के तीन वर्ष (2020-2022) का औसत भी शामिल है. इस साल रिपोर्ट तैयार करने में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि कोविड- 19 ने जन कल्याण को कैसे प्रभावित किया है. लोगों के बीच परोपकार बड़ा है या घटा है लोगों के बीच विश्वास, परोपकार और सामाजिक संबंधों को भी प्रमुख पैमानों के तौर पर इस्तेमाल किया गया है.

उल्लेखनीय है कि एक साल ज्यादा समय से जंग लड़ रहा यूक्रेन और गंभीर आर्थिक संकट में फंसा पाकिस्तान रिपोर्ट के मुताबिक भारत से ज्यादा खुशहाल हैं. गैलप लुंड पोल जैसे स्रोतों के आंकड़ों के आधार पर बनी रिपोर्ट में नॉर्डिक देशों को शीर्ष स्थानों में सूचीबद्ध किया गया है. रिपोर्ट में फिनलैंड को लगातार छठी बार दुनिया का सबसे खुशहाल देश माना गया है. कुल मिलाकर के देश की आवाम को और सरकारों को मिलजुल कर के सकारात्मक दिशा में काम करना चाहिए.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी सदैव सत्ता में रहने के मुगालते में क्यों हैं

लोकतंत्र हो अथवा       राजतंत्र कभी भी कोई स्थाई नहीं रहता, मगर भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी शायद यह समझते हैं कि वह सदैव सत्ता में रहेंगे यह मुगालता दोनों के लिए है भारी पड़ेगा . भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से जद्दोजहद करने के बाद अब अपने चरमोत्कर्ष पर है. उन्होंने जो मुद्दे देश के सामने रखे थे चाहे वह राम मंदिर हो या धारा 370 का अथवा हिंदुत्व का यह सब देश ने देखा है.इसी बिनाह पर भारतीय जनता पार्टी अब यह मानने लगी है कि साम दाम दंड भेद करके वह सदैव सत्ता में रहेगी और चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े नरेंद्र मोदी अमित शाह और आने वाले भारतीय जनता पार्टी के हाथ और दिमाग यह करते रहेंगे मगर यह भ्रम से ज्यादा कुछ भी नहीं है क्योंकि सत्ता कभी किसी की मुट्ठी में कैद नहीं हो सकती. लोकतंत्र का मतलब है 5 वर्ष का चुनाव और परिणाम कभी दाएं तो कभी बांएं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने विदेश में कहा है -भाजपा को यह मानना अच्छा लगता है कि भारत में हमेशा वही सत्ता में रहेगी, लेकिन ऐसा है नहीं. ब्रिटेन यात्रा पर पहुंचे राहुल गांधी ने  चैथम हाउस थिंक टैंक में एक संवाद सत्र के दौरान दावा किया कि उनके फोन में इजराइल के साफ्टवेयर पेगासस को डाला गया  क्योंकि उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा पर भारत में असंतोष की आवाज दबाने की कोशिश करने का आरोप लगाया था.

राहुल गांधी ने कहा -” अगर आप आजादी से लेकर आज तक के समय को देखेंगे तो कांग्रेस अधिकतर समय सत्ता में रही.” राहुल गांधी ने कहा -” भाजपा के 10 साल तक सत्ता में रहने से पहले हम 10 साल तक सत्ता में थे. भाजपा को यह मानना अच्छा लगता है कि वह भारत में सत्ता में आई हैं और हमेशा वही सत्ता में बनी रहेगी, हालांकि ऐसा नहीं है. हम ग्रामीण क्षेत्र पर काफी ध्यान केंद्रित कर रहे थे और शुरुआत में हम शहरी क्षेत्रों को लेकर चूक गए. यह एक तथ्य है, लेकिन यह कहना वास्तव में हास्यास्पद है कि भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस का समय खत्म हो गया है.” चैथम हाउस संवाद के दौरान गांधी ने कहा – कांग्रेस के अलावा, विदेशी मीडिया भी इस बात को उजागर कर रहा है कि भारतीय लोकतंत्र के साथ गंभीर समस्या है. उन्होंने कहा – भाजपा इस तरह जवाब देती है, उसे चर्चा में कोई दिलचस्पी नहीं है.

 

राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को एक कट्टरपंथी, फासीवादी संगठन बताया और कहा- उसने देश के संस्थानों पर कब्जा करके भारत में लोकतांत्रिक चुनाव की प्रकृति को बदल दिया है. विदेशी दर्शकों के लिए इसे स्पष्ट रूप से समझाने को मुश्किल हो जाएगी. राहुल गांधी ने कहा  आप इसे एक सीक्रेट सोसाइटी कह सकते हैं. यह मुस्लिम ब्रदरहुड की तर्ज पर बनाया गया है और इसका मकसद है कि सत्ता में आने के लिए लोकतांत्रिक चुनाव का इस्तेमाल किया जाए और फिर बाद में लोकतांत्रिक चुनाव को खत्म कर दिया जाए.  विदेश नीति पर राहुल गांधी ने रूस- यूक्रेन संघर्ष  पर 2,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा  लेकिन हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि वह (चीन) वहां नहीं हैं. भारत-पाकिस्तान संबंध पर उन्होंने कहा – उनका मानना है कि पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध हो यह महत्त्वपूर्ण है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा- यह पाकिस्तानियों की कार्रवाई पर निर्भर कर है. उन्होंने कहा – अगर पाकिस्तान, भारत आतंकवाद को बढ़ावा देता है, तो काफी मुश्किल हो जाएगी.

दरअसल,राहुल गांधी की एक-एक बात आज पूरा भारत देश और दुनिया सुन रही है और उनकी बातें गूंज रही है. यह सबसे ज्यादा तकलीफ भारतीय जनता पार्टी को दे रही हैं. सत्ता में बैठे नेताओं को दे रही है. उन्हें चुभ रही है क्योंकि राहुल गांधी की बातों में सत्यता है. नीर क्षीर विवेक से देखा जाए तो भारतीय लोकतंत्र को क्षति इन 8 वर्षों में हुई है वह उल्लेखनीय है. आज चुनाव आयोग हो या फिर देश का उच्चतम न्यायालय, कार्यपालिका हो या फिर अन्य कोई संवैधानिक संस्था सब पर भारतीय जनता पार्टी सत्ता के माध्यम से अंकुश लगाने का काम कर रही है जो सीधे-सीधे लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है

राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी “भारत जोड़ो यात्रा” में अगर साथ साथ होते

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और आज देश के सबसे चर्चित राजनीतिक शख्सियत बन चुके राहुल गांधी की “भारत जोड़ो यात्रा” की जिस तरह भारतीय जनता पार्टी उसके छोटे से लेकर बड़े नेता आलोचना करते रहे हैं विशेष तौर पर बड़े चेहरे इससे हुआ यह है कि उल्टे बांस बरेली कहावत की तर्ज पर भारत जोड़ो यात्रा भारतीय जनता पार्टी के लिए ही भारी पड़ गई है.

इसीलिए कहा जाता है कि बिना सोचे समझे कोई बात नहीं कही जानी चाहिए. यहां उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने जैसे ही भारत जोड़ो यात्रा का एलान किया था भारतीय जनता पार्टी और उसका दस्ता मानो राहुल गांधी के पीछे पड़ गया था और ऐन केन प्रकारेण  राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिसके पीछे का मकसद अब धीरे-धीरे देश की जनता समझ रही है की कितना पवित्र है को भाजपा और उसके नेता माहौल को खराब करके इस यात्रा पर प्रश्न चिन्ह लगा देने की जुगत में थे. मगर देश की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पूरे दबाव प्रभाव और चिल्लपौं  के बाद भी भारत जोड़ो यात्रा आगे बढ़ते रही और धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता में इजाफा होता ही चला गया. अब भाजपा के यह नेता बगले झांक रहे हैं और मुंह से शब्द नहीं फुट रहें है.

लोकतंत्र और नरेंद्र मोदी       

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश के लोकतंत्र पर शायद आस्था नहीं है. इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विपक्ष अर्थात सबसे बड़ी पार्टी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विपक्ष के रूप में मान्यता नहीं देने की भावना. और यह बार-बार कहना कि हम तो देश से कांग्रेस का नामोनिशान मिटा देंगे हम तो देश को कांग्रेस मुक्त बना देंगे.

भाजपा का यह उद्घोष, यह सब कहना लोकतंत्र में आस्था की कमी को दर्शाता है और इस सब के कारण भारतीय जनता पार्टी की छवि को लोकतंत्र को बहुत क्षति हुई है. भारतीय जनता पार्टी की साख में भी गिरावट आई है. अगर मोदी जिस तरह कांग्रेस ने अपनी सरकार के समय विपक्ष को हमेशा महत्व दिया वैसा ही माहौल बनाकर रखते तो नरेंद्र मोदी की छवि देश में और भी ज्यादा लोकप्रिय हो सकती थी.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी अपनी इसी अराजक छवि और सोच के कारण भाजपा को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं .जो अभी दिखाई नहीं दे रही मगर आने वाले समय में भाजपा को इसका खामियाजा तो भुगतना ही होगा. जैसे यह तथ्य भी सामने है कि अगर राहुल गांधी  कांग्रेस के एक बड़े चेहरे हैं भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे थे नरेंद्र दामोदरदास मोदी इस यात्रा में सम्मिलित हो जाते और अपनी शुभकामनाएं दे देते तो देश में हमारे लोकतंत्र में यह एक नजीर बन जाता और सद्भावना का एक मिसाल रूपी उदाहरण बन जाता. मगर नरेंद्र मोदी के समय काल में भारत में जिस तरह जाति संप्रदाय हिंदू मुस्लिम से लेकर के अनेक मसलों को बेवजह उभार दिया जा रहा है वह देश को विकास की और नहीं बल्कि विनाश की ओर ले जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी अब इस यात्रा को लेकर रक्षात्मक है वही कांग्रेस और राहुल गांधी आगे और आगे निकलते चले जा रहे हैं.

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