जानें क्यों प्राइवेट पार्ट की सफाई है जरूरी

पूरे बदन की साफ-सफाई के प्रति लापरवाही न बरतने वाले मर्द भी अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई पर खास ध्यान नहीं देते हैं, जिस की वजह से वे कई तरह के खतरनाक इंफैक्शन के शिकार हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि प्राइवेट पार्ट की साफसफाई कैसे की जाती है और उस से होने वाले फायदों के बारे में

बालों की छंटाई करें

प्राइवेट पार्ट के आसपास के अनचाहे बालों की समयसमय पर सफाई करनी चाहिए, वरना बाल बड़े हो जाते हैं. इस की वजह से ज्यादा गरमी पैदा होती है और इन बालों की वजह से ज्यादा पसीना निकलने लगता है. बदबू भी आने लगती है. बैक्टीरिया पैदा होने से इंफैक्शन फैल जाता है. इस वजह से चमड़ी खराब हो जाती है. खुजली, दाद वगैरह की समस्या पैदा हो जाती है. देखा गया है कि अनचाहे बाल लंबे व घने हो जाने से उन में जुएं भी हो जाती हैं, इसलिए उन्हें समयसमय पर साफ करते रहना चाहिए. प्राइवेट पार्ट के अनचाहे बालों की सफाई के लिए कैंची से छंटाई करना अच्छा उपाय है. इस के अलावा ब्लेड  या हेयर रिमूवर क्रीम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

सावधानी

प्राइवेट पार्ट के अनचाहे बालों की सफाई जल्दबाजी, हड़बड़ी या डर कर न करें. छंटाई के लिए छोटी धारदार कैंची का इस्तेमाल करें. अनचाहे बालों को अगर रेजर से साफ करना चाहते हैं, तो नए ब्लेड का इस्तेमाल करें. पहले इस्तेमाल किए ब्लेड से बाल ठीक तरह से नहीं कटते हैं. उलटा ब्लेड कभी न चलाएं, इस से चमड़ी पर फोड़ेफुंसी होने का डर रहता है. हेयर रिमूवर क्रीम का इस्तेमाल करने से पहले एक बार टैस्ट जरूर कर लें. अगर उस से एलर्जी होती है, तो इस्तेमाल न करें.

अंग दिखेगा बड़ा

प्राइवेट पार्ट के एरिया में बाल बड़े हो जाने से अंग उन में छिप जाता है, जिस से उस का आकार छोटा दिखाई देने लगता है. अनचाहे बालों को साफ करने से अंग का आकार बड़ा दिखने लगता है. इसे देख कर आप की पार्टनर ज्यादा मोहित होती है. प्यार के पलों के समय वह ज्यादा सहज महसूस करती है.

सेहतमंद महसूस करेंगे

प्राइवेट पार्ट के एरिया को साफ रखने से अंग सेहतमंद दिखाई देता है. आप भी संतुष्ट महसूस करते हैं, क्योंकि आप निश्चिंत हो जाते हैं कि अब आप को किसी तरह का इंफैक्शन नहीं है.

यह भी करें

अंग की नियमित सफाई करें. अंग के ऊपर की त्वचा को सावधानी के साथ पीछे की ओर ले जाएं. वहां सफेदपीला क्रीमनुमा चीज जमा होती है. यह पूरी तरह से कुदरती होती है. इस की नियमित सफाई न करने से बदबू आने या इंफैक्शन फैलने का डर बना रहता है. रोजाना नहाते समय कुनकुने पानी से इसे साफ करना चाहिए.

पेशाब करने के बाद अंग को अच्छी तरह से हिला कर अंदर रुके पेशाब को जरूर निकाल दें. इसे अपनी आदत में शुमार करें, क्योंकि अंग के अंदर रुका हुआ पेशाब बुढ़ापे में प्रोटैस्ट कैंसर के रूप में सामने आ सकता है. माहिर डाक्टरों का कहना है कि अगर अंग के अंदर का पेशाब अच्छी तरह से निकाल दिया जाए, तो प्रोटैस्ट कैंसर का डर खत्म हो जाता है.

अंडरगारमैंट्स पर ध्यान दें

रोजाना नहाने के तुरंत बाद ही अपने अंडरगारमैंट्स को  बदलें. कई दिनों तक इस्तेमाल किए गए अंडरगारमैंट्स पहनने से प्राइवेट पार्ट के एरिया में इंफैक्शन फैलने का डर बढ़ जाता है. दूसरों के अंडरगारमैंट्स, साबुन वगैरह इस्तेमाल न करें. इस से भी इंफैक्शन फैलने का डर रहता है. नहाने के बाद इस एरिया को तौलिए से अच्छी तरह से सुखा लें. हमेशा सूती अंडरगारमैंट्स पहनें. नायलौन के अंडरगारमैंट्स कतई न पहनें, क्योंकि उन में से हवा पास नहीं हो पाती है. इस वजह से प्राइवेट पार्ट के एरिया को भी अच्छी तरह से हवा नहीं मिल पाती है, जिस से कई तरह की बीमारियां पैदा हो सकती हैं.

सेक्स संबंध बनाने के बाद

सेक्स संबंध बनाने के बाद अंग को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए, क्योंकि सेक्स के समय व बाद में इस के अंदर कई तरह के स्राव बनते हैं. इन्हें साफ न करने पर इंफैक्शन हो सकता है. इस एरिया को पानी से साफ करें. सफाई करने के बाद अंग को अच्छी तरह से पोंछ कर सुखा लें.

यौन रोग के शुरुआती लक्षण

यौन रोग पतिपत्नी के संबंधों में बाधक बन जाते हैं. यौन रोग के डर से लोग संबंध बनाने से डरने लगते हैं. कई बार यौन रोगों से अंदरूनी अंग से बदबू आने लगती है, जिस की वजह से सेक्स संबंधों से रुचि खत्म हो जाती है. ऐसे में पतिपत्नी एक दूसरे से दूर जा कर कहीं और संबंध बनाने लगते हैं.

क्या है यौन रोग

यौन रोग शरीर के अदरूनी अंगों में होने वाली बीमारियों को कहा जाता है. यह एक पुरुष और औरत के साथ संपर्क करने से भी हो सकता है और बहुतों के साथ संबंध रखने से भी हो सकता है. यौन रोग से ग्रस्त मां से पैदा होने वाले बच्चे को भी यह रोग हो सकता है. ऐसे में अगर मां को कोई यौन रोग है, तो बच्चे का जन्म डाक्टर की सलाह से औपरेशन के जरीए कराना चाहिए. इस से बच्चा योनि के संपर्क में नहीं आता और यौन रोग से बच जाता है.

कभीकभी यौन रोग इतना मामूली होता है कि उस के लक्षण नजर ही नहीं आते हैं. इस के बाद भी इस के परिणाम खतरनाक हो सकते हैं. इसलिए यौन रोग के मामूली लक्षण को भी नजरअंदाज न करें. मामूली यौन रोग कभीकभी अपनेआप ठीक हो जाते हैं, पर इन के बैक्टीरिया शरीर में रह जाते हैं, जो कुछ समय बाद शरीर में तेजी से हमला करते हैं. यौन रोग शरीर की खुली और छिली जगह वाली त्वचा से ही फैलते हैं.

यौन रोग का घाव इतना छोटा होता है कि उस का पता ही नहीं चलता है. पति या पत्नी को भी इस का पता नहीं चलता है. यौन रोगों का प्रभाव 2 से 20 सप्ताह के बीच कभी भी सामने आ सकता है. इस के चलते औरतों को माहवारी बीच में ही आ जाती है. यौन रोग योनि, गुदा और मुंह के द्वारा शरीर में फैलते हैं. यौन रोग कई तरह के होते हैं. इन के बारे में जानकारी होने पर इन का इलाज आसानी से हो सकता है.

हार्पीज: हार्पीज बहुत ही आम यौन रोग है. इस रोग में पेशाब करते समय जलन होती है. पेशाब के साथ कई बार मवाद भी आता है. बारबार पेशाब जाने को मन करता है. बुखार भी हो जाता है. टौयलेट जाने में भी परेशानी होने लगती है.  जिसे हार्पीज होता है उस के मुंह और योनि में छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. शुरुआत में ये अपनेआप ठीक भी हो जाते हैं. अगर ये दोबारा हों तो इलाज जरूर कराएं.

व्हाट्स: व्हाट्स में शरीर के तमाम हिस्सों में छोटीछोटी फूलनुमा गांठें पड़ जाती हैं. व्हाट्स एचपीवी वायरस यानी ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के चलते फैलता है. यह 70 प्रकार का होता है. अगर ये गांठें अगर शरीर के बाहर हों और 10 मिलीमीटर के अंदर हों तो इन्हें जलाया जा सकता है. 10 मिलीमीटर से बड़ा होने पर औपरेशन के जरीए हटाया जाता है.

योनि में फैलने वाले वायरस को जैनरेटल व्हाट्स कहते हैं. यह योनि में बच्चेदानी के मुख पर हो जाता है. अगर समय पर इलाज न हो तो यह घाव कैंसर का रूप ले लेता है. अगर यह हो तो 35 साल की उम्र के बाद एचपीवी का कल्चर जरूर करा लें. इस से घाव का पूरा पता चल जाता है

गनेरिया: इस रोग में पेशाब की नली में घाव हो जाता है, जिस से पेशाब की नली में जलन होने लगती है. कई बार खून और मवाद भी आने लगता है. इस का इलाज ऐंटीबायोटिक दवाओं के जरीए किया जाता है. अगर यह बारबार होता है तो इस का घाव पेशाब की नली को बंद कर देता है, जिसे बाद में औपरेशन के द्वारा ठीक किया जाता है.

गनेरिया को साधारण बोली में सुजाक भी कहा जाता है. इस के होने पर तेज बुखार भी आता है. इस के बैक्टीरिया की जांच के लिए मवाद की फिल्म बनाई जाती है. अगर यह बीमारी शुरू में ही पकड़ में आ जाए तो इलाज आसानी से हो जाता है. बाद में इलाज कराने में मुश्किल आती है.

सिफलिस: यह यौन रोग भी बैक्टीरिया के कारण फैलता है. यह यौन संबंध के कारण ही होता है. इस रोग के चलते पुरुषों के अंग के ऊपर गांठ सी बन जाती है. कुछ समय के बाद यह ठीक भी हो जाती है. इस गांठ को शैंकर भी कहा जाता है. शैंकर से पानी ले कर माइक्रोस्कोप द्वारा ही बैक्टीरिया को देखा जाता है. इस बीमारी की दूसरी स्टेज पर शरीर में लाल दाने से पड़ जाते हैं. यह कुछ समय के बाद शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करने लगता है. इस बीमारी का इलाज तीसरी स्टेज के बाद मुमकिन नहीं होता है. खराब हालत में यह शरीर की धमनियों को प्रभावित करता है. धमनियां फट भी जाती हैं. यह रोग आदमी और औरत दोनों को हो सकता है. इस का इलाज दवा और इंजैक्शन से होता है.

क्लैमाइडिया: इस बीमारी में औरतों को योनि में हलका सा संक्रमण होता है. यह योनि के द्वारा बच्चेदानी तक फैल जाता है. यह बांझपन का सब से बड़ा कारण होता है. यह बच्चेदानी को खराब कर देता है. बीमारी की शुरुआत में ही इलाज हो जाए तो ठीक रहता है. क्लैमाइडिया के चलते औरतों को पेशाब करते समय जलन, पेट दर्द, माहवारी में दर्द, टौयलेट के समय दर्द, बुखार आदि परेशानियां पैदा होने लगती हैं.

अगर आप भी करते हैं स्टेरौइडस का इस्तमाल, तो हो जाइए सावधान

पिछले कुछ सालों से लोगों में बौडी बनाने के लिए जिम जा कर घंटों वर्कआउट करने का चलन तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि महिलाएं भी छरहरी काया के लिए शरीर की अतिरिक्त चरबी कम करने की कोशिश करती हैं. लोगों के बीच व्यायाम करने के चलन को बढ़ावा मिलने के साथसाथ स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट जैसे अननैचुरल प्रोडक्ट्स भी चलन में आए हैं, जिन का प्रयोग लोग तेजी से मांसपेशियां बनाने की चाह में करते हैं.

मगर ज्यादातर लोगों को यह मालूम नहीं कि लंबे समय तक ली गई स्टेरौइड की मात्रा दिल के लिए घातक साबित हो सकती है. यहां तक कि इस से दिल का दौरा या अचानक कार्डिएक अरैस्ट भी हो सकता है. विशेषरूप से बौडी बिल्डर्स जो लंबे समय तक स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट का सेवन भारी मात्रा में करते हैं, उन के लिए जरूरी है कि वे इन से सेहत पर होने वाले बुरे असर के बारे में सजग हों.

आइए, विस्तार से जानें कि स्टेरौइड और प्रोटीन एकदूसरे से कैसे अलग हैं और इन के स्वास्थ्य पर क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं:

1. जरूरी स्टेरौइड और प्रोटीन की भूमिका

स्टेरौइड शब्द आमतौर पर दवाओं की एक श्रेणी के तहत आता है, जिस का प्रयोग विभिन्न चिकित्सा स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है जैसे पुरुषों में यौन हारमोन को बढ़ावा देना, प्रजनन क्षमता को बढ़ाना, मैटाबोलिज्म और रोगप्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने के अलावा मसल मास, बोन मास बढ़ावा आदि.

प्रोटीन पाउडर मुख्यरूप से सोया, दूध या पशु प्रोटीन से बना होता है और इस का प्रयोग अधिक समय तक वर्कआउट के बाद शरीर की प्रोटीन की जरूरत को पूरा करने के लिए किया जाता है.

2. स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट के प्रभाव

बौडी बनाने में असल में प्रोटीन बहुत फायदेमंद होते हैं और पोषण सुरक्षित स्रोत भी हैं, क्योंकि ये प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान नहीं पहुंचाते. यदि इन का सेवन सही मात्रा में किया जाए तो ये किसी भी शारीरिक बीमारी का कारण नहीं बनते हैं. मगर स्टेरौइड के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

स्टेरौइड मुख्यरूप से टैस्टोस्टेरौन का बनावटी संस्करण है. यह कृत्रिम रूप से मांसपेशियों के विकास में मदद करता है. हृदय भी मांसपेशियों की तरह होता है, मगर स्टेरौइड के सेवन से इस का आकार बढ़ भी सकता है. दिक्कत तब होती है जब दिल के आसपास मौजूद सतहों यानी वौल्स तक उस की मोटाई पहुंचने लगती है, तब यह सही तरीके से काम नहीं कर पाता है और रक्तसंचार में समस्या होने लगती है.

3. स्टेरौइड का दिल पर प्रभाव

स्टेरौइड का सेवन करने वालों का दिल इस का सेवन न करने वालों की तुलना में बहुत कमजोर होता है. एक कमजोर दिल शरीर के लिए जरूरी पर्याप्त रक्त पंप नहीं कर पाता है और इस स्थिति में दिल काम करना बंद कर सकता है. अचानक दिल की धड़कन रुकने से मौत भी हो सकती है.

स्टेरौइड का सेवन न करने वालों की तुलना में इस का सेवन करने वालों की धमनियों में प्लेक यानी गंदगी या मैल बढ़ जाता है. जो पुरुष लंबे समय तक स्टेरौइड लेना जारी रखते हैं, उन की धमनियों की स्थिति बहुत बदतर हो जाती है.

4. अन्य समस्याएं 

दिल को नुकसान पहुंचाने के अलावा स्टेरौइड गुरदों की विफलता, लिवर की क्षति, टैस्टिकल्स के संकुचन यानी सिकुड़ना और शुक्राणुओं की संख्या घटाने का काम भी कर सकता है. शौर्टकट के जरीए बौडी बनाना भी दिल को नुकसान पहुंचा सकता है.

सेक्स में मर्द को भी होता है दर्द, जानें कैसे

आमतौर पर यह माना जाता है कि सेक्स के समय केवल लड़कियों को ही दर्द होता है. हकीकत यह है कि कई बार खुद लडकों को भी इस तरह के दर्द से दो चार होना पडता है. इसकी अलग अलग वजहे होती है. इनके कारण लडकें भी सेक्स से दूर होने लगते है.

लखनऊ में सेक्स रोगो के जानकार और मक्कड मेडिकल सेंटर राजेन्द्र नगर के सर्जन डाक्टर गिरीश मक्कड का मानना हैं कि आदमी के अंग में संक्रमण के कारण होने वाला सहवास पीडादायक हो जाता हैं. इसमें इतना दर्द होता है कि आदमी को सेक्स की अरूचि हो जाती है. यह दर्द कई कारणो से हो सकता है. जाने क्या है वो कारण-

अंग में दर्द का कारण:

आदमी के अंग में दर्द की पहली वजह उसके अगले हिस्से दर्द का होना होता है. कभी-कभी यह दर्द स्खलन के बाद होने लगता है. जिससे आदमी जल्द ही अपना अंग बाहर निकाल लेता है. इससे यौन असंतुष्टि का भाव भी मन में आ जाता है.

दर्द होने की आशंका में यौन संबंध ठीक तरह से नही बन पाते हैं. अंग के ऊपर मौजूद त्वचा उसकी देखभाल का काम करती है. यह त्वचा कभीकभी परेशानी का कारण भी बन जाती हैं त्वचा के अंदर अगर नियमित रूप से सफाई न की जाय तो यहां पर गंदगी फैलने लगती है. इससे अंग में पहले सूजन और छिलने बाद में सक्रंमण हो जाता है.

इसके चलते आदमी को संबंध के दौरान दर्द और जलन होने लगती है. अंग में दर्द तब भी होता है जब इसकी त्वचा पीछे नही जाती है. इससे भी दर्द होने लगता है. औरत के अंग में प्रवेश करने के कारण उसका संक्रमण भी आदमी के अंग में आ जाता है. जिससे उसकी त्वचा पर फफोले पड जाते है. जिन औरतो के अंग में संक्रमण होता है उनके साथ संबंध बनाने से यह परेशानी आ जाती है. आदमी के अंग में किसी प्रकार की चोट लगने और झटका लगने से भी दर्द होने लगता है

यह चोट लगने और शारीरिक संबंध बनाने के दौरान अचानक मुद्रा बदलने से भी हो सकता है. कभीकभी अंडकोषो में किसी तरह की खराबी आने के कारण भी दर्द होने लगता है. दरअसल यह दर्द अंडकोषो में होता है. इसका असर आदमी के अंग पर पडता है. यदि किसी वजह से मूत्र मार्ग में कोई रूकावट होती है तो अंग में दर्द होने लगता है. सूजाक जैसे रोगो में ऐसा हो जाता है. इसमें जलन दर्द और मूत्राशय तक पहुच जाता है. उम्र दराज लोगो में प्रोटेस्ट ग्रंथि का बढ जाना भी दर्द का कारण बन जाता है.

दर्द का इलाज:

डाक्टर गिरीश मक्कड़ का कहना है कि अंग में इस तरह के दर्द को लोग छिपा कर रखते है. शर्म के कारण किसी अच्छे डाक्टर को दिखाने के बजाये झोला छाप डाक्टरो के पास जाते है. यह लोग दर्द की छोटी सी वजह को इतना बड़ा करके बताते है जिससे बीमार डर जाता है. झोला छाप डाक्टरो के द्वारा इस का इलाज कभी कभी और भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है इसलिये इस तरह की परेशानी होने पर अच्छे डाक्टर से ही इलाज कराये. अंग का दर्द भी एक तरह की बीमारी है. इसमें शर्म करने जैसा कुछ नही होता है. अच्छे डाक्टरो के पास इस तरह की बीमारी के लिये कई तरह का इलाज मौजूद होता है.

दर्द होने पर सबसे पहले मरीज के जननांगो और मूत्र प्रणाली से जुड़े अंगो की जांच की जाती है. अंग के ऊपर त्वचा, उसके आकार और प्रोस्टेट ग्रंथि का जायजा लिया जाता है. अगर त्वचा में कोई परेशानी या दाने है तो केवल साफ सफाई से ही बीमारी दूर हो जाती है. बहुत हुआ तो एक दो दिन दवा खानी पड सकती है. अपने आप भी अंगो की सफाई नियमित रूप से करनी चाहिये. अगर अंग की त्वचा जुडी हो या टांका लगा हो तो छोटा सा आपरेशन करके उसको हटाया जा सकता हैं. अगर औरत के अंग में संक्रमण से कोई परेशानी होती है तो पहले उसका इलाज करना पडता है. प्रोस्टेट ग्रंथि और अंडकोषो में दर्द कारण हो तो उसका इलाज करके परेशानी से बचा जा सकता है. साफसफाई और औरत से संबंध के दौरान कंडोम का प्रयोग करने से इस तरह की परेशानियो से बचा जा सकता है.

आदमी के अंगो में दर्द की वजह बहुत सामान्य सी बात है. इसमें डरने जैसा कुछ नही होता है. जरूरत इस बात की होती है कि जब भी परेशानी हो हमेशा अच्छे डाक्टर से ही इलाज कराये. अब तो तमाम सरकारी अस्पतालो और प्राइवेट नर्सिग होम में भी इस तरह का इलाज होने लगा है. गुप्त रोगो का इलाज करने वाले झोलाछाप डाक्टरों से इसका इलाज कराना ठीक नही रहता है. यह लोग सीधेसाधे इलाज को कठिन बना देते है. इससे बात और भी बिगड जाती है. इस तरह गुप्त रोगो को इलाज करने वाले झोलाझाप डाक्टर अपना प्रचार प्रसार ज्यादा करते है इससे लोग इनके जाल में फंस जाते है. शर्म छोड कर सही डाक्टर से इलाज कराने में आसानी से इस दर्द से राहत मिल सकती है.

इस Valentine’s Day आपकी सेक्स ड्राइव में सुधार ला सकती हैं ये 11 फायदेमंद चीजें

दैनिक आहार में कुछ महत्त्वपूर्ण खाद्यपदार्थ शामिल कर आप अपने उन खास पलों के रोमांच को किस तरह बढ़ा सकते हैं, जरूर जानिए:

सामन: सामन ओमेगा-3 फैटी ऐसिड डीएचए और ईपीए का एक ज्ञात प्राकृतिक स्रोत है. इस से मस्तिष्क में डोपामाइन स्तर बढ़ने में मदद मिलती है, जिस से उत्तेजना पैदा होती है. ओमेगा-3 डोपामाइन की उत्पादन क्षमता बढ़ाता है. यह मस्तिष्क के लिए एक महत्त्वपूर्ण रसायन है, जो व्यक्ति के चरमसुख की भावना को ट्रिगर करता है.

कद्दू के बीज: कद्दू के बीज जस्ता (जिंक) का एक बड़ा स्रोत हैं, जो टेस्टोस्टेरौन को बढ़ा देते हैं. इन में आवश्यक मोनोअनसैचुरेटेड वसा भी होती है, जिस से शरीर में कोलैस्ट्रौल बनता है. यौन हारमोन को ठीक से काम करने के लिए कोलैस्ट्रौल की जरूरत पड़ती है.

बैरीज: स्ट्राबैरी, ब्लैकबैरी, नीले जामुन ये सभी प्राकृतिक मूड बूस्टर हैं. स्ट्राबैरी में पर्याप्त विटामिन सी और बी होता है. ब्लैकबैरी और नीले जामुन फाइटोकैमिकल युक्त होते हैं, जो व्यक्ति के मूड को रामांटिक बनाते हैं.

केला: केला पोटैशियम का प्राकृतिक स्रोत है. पोटैशियम एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है, जो मांसपेशी संकुचन को बढ़ाता है और उन खास पलों में बहुत अहम होता है. साथ ही केला ब्रोमेलैन से समृद्ध होता है, जो टेस्टोस्टेरौन उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार होता है.

तरबूज: तरबूज में 92% पानी है, लेकिन बाकी 8% पोषक तत्त्वों से भरा होता है. तरबूज का शांत प्रभाव रक्तवाहिकाओं को शांत करता है. यह स्त्री और पुरुष दोनों के अंगों में रक्तप्रवाह सुधारता है.

लहसुन: रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल किए जाने वाला खास आहार लहसुन ऐलिकिन समृद्ध होता है, जो पुरुषों और महिलाओं दोनों के यौन अंगों में रक्तप्रवाह को बढ़ाता है. रात में शहद में भिगो कर रखा गया कच्चा लहसुन खाना लाभप्रद होता है.

केसर: केसर एक प्राकृतिक कामोद्दीपक है, जो स्त्रीपुरुष दोनों के लिए उन पलों का आनंद बढ़ाने में मददगार होता है. सब से महंगे मसालों में से एक माने जाने वाले केसर में क्रोकटोन नामक मिश्रण होता है, जो मस्तिष्क में उत्तेजना वाले हारमोन को ट्रिगर करते हुए इच्छा बढ़ाता है. केसर में पिको क्रोकिन रसायन होता है, जो स्पर्श के प्रति संवेदना बढ़ाता है.

लौंग: सदियों से पुरुष यौन रोग का इलाज करने के लिए हमारे देश में लौंग का उपयोग किया जाता है. यदि नियमितरूप से लौंग खाई जाए तो यौन गतिविधि में वृद्धि होती है. इस के अलावा लौंग सांस की गंध से छुटकारा दिलाने में भी मददगार है. लौंग के साथ जीरा एवं दालचीनी का सेवन और अधिक कामोद्दीपक है.

डार्क चौकलेट: डार्क चौकलेट ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर होती है, जिस के चलते अधिक अनुभूति के लिए यह एक स्वादिष्ठ तरीका है. ऐंटीऔक्सीडैंट उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करते हैं और यौन आनंद बढ़ाते हैं.

पालक: पालक जैसी पत्तेदार हरी सब्जियों में जबरदस्त फौलिक ऐसिड होते हैं, जो उर्वरता और कामेच्छा बढ़ाने में मदद करते हैं.

अंडे: अंडे उच्च स्तर के प्रोटीन से भरपूर होते हैं ये स्टैमिना का स्रोत हैं. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप इन्हें कैसे खाते हैं. इन का किसी भी तरह खाना ऊर्जा प्रदान करता है.

इस Valentines Day जानिए आखिर क्या है मेल पिल्स

मेल कौंट्रासैप्टिव पिल्स के अनुसंधान की शुरुआत हालांकि 7वें दशक के प्रारंभ में हो गई थी किंतु सफलता नहीं मिल पाने के पीछे वैज्ञानिकों की अपनी मजबूरी थी. इस की राह में पुरुषों के प्रजनन अंगों की रचना और फिजियोलौजी की जटिलताएं बारबार आड़े आती रहीं. महिलाओं में ओव्यूलेशन से ले कर फर्टिलाइजेशन और भू्रण को गर्भाशय के अंदर इंप्लांटेशन को रोक कर गर्भधारण को बाधित करना अपेक्षाकृत आसान है. पुरुषों के साथ ऐसी बात नहीं है.

महिला की एक ओवरी से पूरे महीने में मात्र एक ही अंडा निकलता है जिस को नियंत्रित करने में वैज्ञानिकों को विशेष परेशानी नहीं हुई. ओव्यूलेशन के लिए जिम्मेदार हार्मोंस की मात्रा को बाधित कर देने पर न तो अंडे का निर्माण संभव है और न ही ओव्यूलेशन. इसलिए फीमेल पिल्स की ईजाद में चिकित्सा वैज्ञानिकों को विशेष परेशानी नहीं हुई, लेकिन पुरुषों में न तो कभी वीर्य का निर्माण और न ही स्खलन बाधित होता है.

इतना ही नहीं, प्रत्येक स्खलन के दौरान वीर्य के प्रति मिलीलिटर में लगभग 100 मिलियन से भी अधिक शुक्राणु होते हैं. जहां तक प्रैग्नैंसी की बात है, इस के लिए मात्र एक ही शुक्राणु काफी होता है और वह शुक्राणु कोई भी हो सकता है. ऐसी स्थिति में, एकसाथ इतने शुक्राणुओं को नियंत्रित करना वैज्ञानिकों के लिए आसान बात नहीं थी, फिर भी इसी को आधार बना कर शुरुआती दिनों में गोसिपोल नामक गोली के निर्माण में वैज्ञानिकों को आंशिक सफलता मिली. लेकिन ऐसा देखा गया कि इस से शुक्राणुओं की संख्या में तेजी से कमी आती है और 10 फीसदी पुरुष स्थायी रूप से संतानोत्पत्ति में असमर्थ पाए गए. सो, इस के प्रयोग को तुरंत बंद कर दिया गया.

शुरुआती दौर में गोसिपोल का प्रयोग असफल साबित हुआ, किंतु इतना तो स्पष्ट हो गया कि मेल पिल्स के निर्माण में सैक्स हार्मोंस द्वारा ही सफलता मिल सकती है. अर्थात इस की विभिन्न मात्रा का प्रयोग कर ऐसी गोलियां बनाई जा सकती हैं जो शुक्राणुओं के निर्माण को न तो स्थायी रूप से बाधित करें और न ही प्रैग्नैंसी की संभावनाओं को स्थायी रूप से खत्म करें. इस के साथसाथ, वैज्ञानिकों ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्लैंड नामक विशेष ग्रंथि को भी नियंत्रण में रखा जाए तो शुक्राणुओं के निर्माण को नियंत्रण में रखा जा सकता है.

वैज्ञानिक इस बात पर ध्यान केंद्रित करने लगे कि शुक्राणुओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्लैंड द्वारा स्राव को बाधित कर दिया जाए तो बिना किसी साइड इफैक्ट या सैक्स की क्रियाशीलता को बाधित किए शुक्राणुओं की संख्या में कमी ला कर प्रैग्नैंसी को नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन अनुसंधान के क्रम में शीघ्र ही एक नए सैक्स हार्मोन टेस्टोस्टेरोन का पता चला जो अंडकोष से स्रावित होता है.

शोध से यह भी पता चला कि टेस्टोस्टेरोन नामक यह हार्मोन शुक्राणुओं के निर्माण से ले कर मैच्योर होने के लिए जिम्मेदार है. इतना ही नहीं, वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि यह पुरुषार्थ के साथसाथ मांसपेशियों के विकास तथा दाढ़ीमूंछ के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाता है.

अब वैज्ञानिकों का सारा ध्यान इसी हार्मोन पर था. वे अपने अनुसंधान से यह पता लगाने में लग गए कि किस तरह इस हार्माेन के स्राव को नियंत्रित किया जाए. जैसेजैसे अनुसंधान आगे बढ़ता गया, इस रहस्य से परदा उठने लगा और शीघ्र ही पता चल गया कि शुक्राणुओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार अंडकोष से स्रावित होने वाले टेस्टोस्टेरोन का तार पिट्यूटरी ग्लैंड से जुड़ा है.

इस दौरान यह भी पता चला कि जब इस की मात्रा रक्त में सामान्य से ज्यादा हो जाती है या फिर बाहर से इस का समावेश किया जाता है तो शुक्राणु का निर्माण पूरी तरह बाधित हो जाता है. लेकिन इस से कई दूसरे अवांछित साइड इफैक्ट भी देखने को मिलने लगे. चेहरे पर कीलमुंहासे, वजन में बढ़ोत्तरी के साथसाथ पौरुषग्रंथि में वृद्धि होने की शिकायतें आने लगीं.

इस के बाद वैज्ञानिकों ने एक दूसरा रास्ता निकाला. टेस्टोस्टेरोन के साथ एक दूसरा सैक्स हार्मोन प्रोजेस्टेरोन की एक निश्चित मात्रा मिला कर प्रयोग करने पर विचार किया गया. इस के पीछे वैज्ञानिकों का तर्क था कि यह हार्मोन पुरुष और महिला दोनों में रिप्रौडक्टिव हार्मोन सिस्टम के स्राव को कम कर देता है. ऐसा करने में वैज्ञानिकों को आशातीत सफलता मिली.

लंबे अनुसंधान के बाद यह तय हो गया है कि मेल पिल्स में प्रोजेस्टेरोन तथा टेस्टोस्टेरोन दोनों तरह के हार्मोन का मिश्रण जरूरी है. इस के साथ यह समस्या आने लगी कि प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन से निर्मित पिल्स के खाने के बाद आंत में जा कर पाचक रस और विभिन्न एंजाइम्स के प्रभाव से विच्छेदित हो जाता है, जिस से इस की क्रियाशीलता तथा प्रभाव दोनों कम हो जाते हैं. इसलिए शोधकर्ता अब इन दोनों हार्मोंस के मिश्रण को त्वचा में इंप्लांट करने के लिए इस के माइक्रो कैप्सूल तथा इंजैक्शन विकसित कर रहे हैं, ताकि टेस्टोस्टेरोन की क्रियाशीलता प्रभावित न हो. दुनिया के कई देशों में माइक्रो पिल्स, इंजैक्शन क्रीम, जैल आदि का निर्माण करने पर विचार किया गया.

परीक्षण अब अंतिम चरण में

पिल्स का परीक्षण दुनिया के कई देशों में अब अंतिम दौर में है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वह दिन दूर नहीं जब महिलाओं की तरह पुरुष भी मैडिकल शौप से बर्थ कंट्रोल की गोलियां, क्रीम, जैल की शीशियां खरीदते, अस्पतालों में इस का इंजैक्शन लेते और परिवार नियोजन केंद्रों पर इस के सेवन के तरीकों पर चर्चा करते नजर आएंगे.

हाल ही में लगभग 1 हजार पुरुषों पर इस के इंजैक्शन का परीक्षण किया जा चुका है और 99 फीसदी कारगर भी साबित हुआ है. यह अस्थायी तौर पर रिप्रौडक्टिव हार्माेनल सिस्टम को या तो कम कर देता है या उसे पूरी तरह से रोक देता है. खास बात यह है कि यह पूरी तरह रिवर्सिबल है और इस का सेवन छोड़ देने पर 67 फीसदी पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या 6 माह के भीतर सामान्य हो जाती है. शतप्रतिशत सामान्य होने में लगभग 1 साल का समय लगता है. इस में किसी तरह के साइड इफैक्ट देखने को नहीं मिले.

यूनाइटेड नैशन वर्ल्ड और्गेनाइजेशन यूनिवर्सिटीज औफ कैलिफोर्निया, लौस एंजेल्स तथा यूनिवर्सिटीज औफ सिडनी में भी इस का परीक्षण पूरा किया जा चुका है. पौरुष को मैंटेन रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस हार्मोन के सेवन से बिना किसी परेशानी के स्पर्म काउंट में कमी तो आई लेकिन बांझपन, उत्तेजना या इच्छा में कमी जैसे विकार देखने को नहीं मिले. यूनिवर्सिटीज औफ वाशिंगटन के पौपुलेशन सैंटर फौर रिसर्च इन रिप्रौडक्शन के विशेषज्ञ डा. एंड्रियू कोवियेलो के शब्दों में, ‘‘पुरुष कौंट्रोसैप्टिव के लिए यदि टेस्टोस्टेरोन का प्रयोग किया जाता है तो 3 महीने के बाद तक इस का स्राव होता रहता है. यानी इस का प्रयोग 3 महीने बाद तक सुरक्षित माना जा सकता है. फलस्वरूप इस के माइक्रो कैप्सूल विकसित करने की कोशिश की जा रही है जिस में गाढ़े तरल पदार्थ के रूप में हार्मोन होगा और जिसे हथेली तथा बांह की त्वचा के नीचे इंप्लांट करने की सुविधा होगी.’’

आस्टे्रलिया के शोधकर्ताओं ने पुरुषों के लिए जैब नामक नौन बैरियर कौंट्रासैप्टिव मैथड के अंतर्गत इंजैक्शन के निर्माण में सफलता पा ली है. इसे प्रोजेस्टेरोन तथा टेस्टोस्टेरोन के मिश्रण से बनाया गया है और इसे 2 से 3 माह के अंतराल में लगाने की जरूरत होती है.

यह वीर्य का निर्माण नहीं होने देता और इस का प्रभाव स्थायी भी नहीं होता है. एनजेक रिसर्च इंस्टिट्यूट यूनिवर्सिटी औफ सिडनी तथा कोनकार्ड हौस्पिटल ने 18 से 51 वर्ष के लगभग 1756 पुरुषों के बीच इस का परीक्षण करने के बाद पाया कि यह इंजैक्शन काफी तेज और प्रभावी है.

इस परीक्षण में शामिल एसोसिएट प्रोफैसर पीटर लिउ के अनुसार, ‘‘आज इस की काफी जरूरत है क्योंकि कई महिलाएं पिल्स का सेवन करना नहीं चाहतीं या फिर इसे किसी कारणवश टौलरेट नहीं कर पातीं. उसी तरह कई पुरुष ऐसे होते हैं जो अपने बंध्याकरण को देर से कराना चाहते हैं या फिर कराना नहीं चाहते.’’

परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार जैब इंजैक्शन बंध्याकरण की तरह उतना ही इफैक्टिव है जितना महिलाओं के द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली पिल्स. इस के सेवन के बाद न तो सर्जरी और न ही दूसरी वजह से स्पर्म के निर्माण को पूरी तरह बंद करने की जरूरत होगी.

अभी मेल पिल्स मार्केट में आई भी नहीं, पर इस को ले कर तरहतरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल तब भी उठे थे जब फीमेल पिल्स पहली बार मार्केट में आई थी. तब यह बात उठी थी कि इस से मां के नैसर्गिक अधिकार का अतिक्रमण होगा. समाज में विकृतियां आएंगी. नैतिक, सामाजिक, वैचारिक मूल्यों में गिरावट आएगी. यौनशोषण को बढ़ावा मिलेगा. अब, लगभग 60 वर्षों के बाद जब मेल पिल्स मार्केट में आने वाली है तब भी कुछ इसी तरह के सवाल उठने लगे हैं. कहा जाने लगा है कि इस से सामाजिक तानाबाना छिन्नभिन्न हो जाएगा. पतिपत्नी और दांपत्य में दरार आएगी, तलाक में इजाफा होगा. सामाजिक कटुता और वैमनस्य बढ़ेंगे आदि.

दुनिया के मशहूर जर्नल फैमिली प्लानिंग ऐंड रिप्रौडक्टिव हैल्थकेयर में यूएसए के यूनिवर्सिटीज औफ सोशल फ्यूचर इंस्टिट्यूट के प्रो. जुडिथ इबरहार्डथ ने लगभग 140 पुरुषों और 240 महिलाओं के बीच बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि आम लोग इस के सेवन के प्रति कितना सहज, सतर्क तथा ईमानदार होंगे.

स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि मल्टी सैक्सुअल पार्टनर तथा लिव इन रिलेशनशिप पर विश्वास करने वाले पुरुषों के बीच यदि कंडोम का प्रयोग कम हुआ तो एड्स तथा गुप्त रोग फैलने की संभावना काफी बढ़ जाएगी.

एक बात और, ऐसी महिलाएं जो प्रैग्नैंसी के बाद पुरुष को जबरदस्ती शादी करने के लिए बाध्य करती हैं, वैसे पुरुषों के लिए यह पिल्स वरदान साबित हो सकती है. साथ ही वे पुरुष जो कंडोम का इस्तेमाल करते हैं, इस पिल्स को इस्तेमाल जरूर करेंगे.

पुरुषों को भी हो सकता है ब्रेस्ट कैंसर, जानें कैसे

Lifestyle News in Hindi: ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) या स्तन कैंसर महिलाओं को होने वाला एक आम कैंसर हैं जो काफी खतरनाक हैं. भारत में ही इसके काफी मरीज होते हैं. आमतौर पर ये महिलाओं में देखा जाता पर ये पुरुषों को भी होता हैं. यह सच है कि ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों में महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा है मगर पुरुषों को भी इसका खतरा होता है. खास बात यह है कि पुरुषों में होने वाला ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं से ज्यादा खतरनाक होता है. वैसे तो ये कैंसर बढ़ती उम्र में होता है पर युवाओं को भी इसको कम खतरा नही हैं. पुरुषों के वक्ष (Breast) पर मांस ज्यादा नहीं होता है इसलिए ब्रेस्ट में ट्यूमर का पता पुरुषों में ज्यादा आसानी से लगाया जा सकता है. पुरुषों में सबसे आम स्तन ट्यूमर ‘डक्टल कैर्सीनोमा’है. आज हम आपको बताएंगे की कैसे आप खुद को स्तन कैंसर के खतरे से बचा सकते हैं.

अगर है लीवर में समस्या

जिन पुरुषों में लीवर की बीमारी होती है उनमें ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा काफी बढ़ जाता है. अगर कोई भी पुरुष बीआरसीए जीन का वाहक होता है या क्लीन सेल्टर सिंड्रोम से ग्रस्त होता है, तो वह स्तन कैंसर से पीड़ित होने के करीब होता है. इसके अलावा अगर फैटी लिवर और लीवर सिरोसिस का लंबे समय तक इलाज न किया जाए, तो भी ये कैंसर के खतरे को बढ़ा देते हैं.

रेडिएशन से रहे दूर

कई बार कुछ रोगों के इलाज के लिए रेडिएशन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है. इस थेरेपी के कारण भी स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. यदि आपने सीने में किसी अन्‍य प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए रेडिएशन थेरेपी का सहारा लिया है तो भविष्‍य में ब्रेस्‍ट कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है.

बढ़ती उम्र कारण बन सकता हैं

पुरुषों में स्‍तन कैंसर के मामले बढ़ती उम्र के साथ ज्यादा देखे गए हैं. आमतौर पर 40 से 60 साल तक के पुरुषों में कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. इसलिए उम्र के इस पड़ाव पर आकर अपने खान-पान लाइफस्टाइल आदि में जरूरी बदलाव कर लेने चाहिए. इसके साथ ही अपना वजन, ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल रखना चाहिए.

मोटापे से रहे दूर

मोटापा कई अन्य रोगों का कारण बनता है मगर पुरुषों में मोटापे के कारण स्‍तन कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है. दरअसल मोटापे के कारण फैट सेल्‍स की संख्‍या शरीर में बढ़ जाती है जो बाद में ट्यूमर का कारण बन सकती है. इसके अलावा फैट सेल्‍स से शरीर में एस्‍ट्रोजन की मात्रा बढ़ सकती है, जो कि पुरुषों में ब्रेस्‍ट कैंसर का प्रमुख कारण है.

शराब और सिगरेट

अल्‍कोहल पीने की आदत के कारण भी पुरुषों में ब्रेस्‍ट कैंसर होने का अधिक खतरा रहता है. इसके अलावा स्मोकिंग भी आपके लिए बहुत हानिकारक है. ये दोनों आदतें शरीर में 100 से ज्यादा रोगों का कारण बन सकती हैं इसलिए शराब और सिगरेट का सेवन अधिक मात्रा में करने से बचना चाहिए, यह स्‍वास्‍थ्‍य के लिहाज से भी ठीक नहीं है.

कैसे करे स्तन कैंसर की पहचान

स्तन कैंसर के कारण छाती में भारीपन महसूस होता है. अगर आपको अपने सीने में कोई गांठ महसूस हो या भारीपन लगे, तो जल्द से जल्द डाक्टर से संपर्क करें. 

पुरुषों में कई बार हार्मोन के बदलाव की वजह से स्तनों के आकार में फर्क आ जाता है. स्तनों के आकार में जरा सा भी फर्क आने पर अपने डाक्टर से तुरंत संपर्क करें.

कहीं आप सेक्स एडिक्शन के शिकार तो नहीं, जानें लक्षण

Sex News in Hindi: सेक्स ऐडिक्शन (Sex Addiction) एक खतरनाक डिसऔर्डर (Disorder) है, जिसमें आदमी अपनी सेक्शुअल नीड्स (Sexual Needs) पर कंट्रोल नहीं कर पाता. यह है कि यह बेहद खतरनाक डिसऑर्डर है और अडिक्टेड (Addicted) आदमी की जिंदगी बर्बाद भी कर सकता है.

क्या है सेक्स ऐडिक्शन ?  

सेक्स ऐडिक्शन  आउट ऑफ कंट्रोल हो जाने वाली सेक्शुअल ऐक्टिविटी है. इस स्थिति में सेक्स से जुड़ी हर बात आती है चाहे पॉर्न देखना हो, मास्टरबेशन हो या फिर प्रॉस्टिट्यूट्स के पास जाना, बस यह एक ऐसी ऐक्टिविटी होती है जिस पर इंसान का कंट्रोल नहीं रहता.

क्या हैं लक्षण?

सेक्स थेरेपिस्ट के साथ रेग्युलर मीटिंग्स के बिना यह बताना बहुत मुश्किल है कि किसे यह डिसऑर्डर है लेकिन कुछ लक्षण है जिनसे आप अंदाजा लगा सकती हैं और फिर डॉक्टर से कंसल्ट कर सकती हैं. जैसे, बहुत सारे लोगों के साथ अफेयर होना, मल्टिपल वन नाइट स्टैंड, मल्टिपल सेक्शुअल पार्टनर्स, हद से ज्यादा पॉर्न देखना, अनसेफ सेक्स करना, साइबर सेक्स, प्रॉस्टिट्यूट्स के पास जाना, शर्मिंदगी महसूस होना, सेक्शुअल नीड्स पर से नियंत्रण खो देना, ज्यादातर समय सेक्स के बारे में ही सोचना या सेक्स करना, सेक्स न कर पाने की स्थिति में तनाव में चले जाना.

ऐसे पायें छुटकारा

सेक्स ऐडिक्शन  के शिकार लोगों को फौरन साइकॉलजिस्ट या साइकायट्रिस्ट के पास जाना चाहिए. साइकॉलजिस्ट काउंसिलिंग और बिहेवियर मॉडिफिकेशन के आधार पर इस ऐडिक्शन का इलाज करते हैं और मरीज के विचारों में परिवर्तन लाने की कोशिश करते हैं.

ऐसे लोगों को दूसरे कामों में व्यस्त रहने की सलाह दी जाती है. उन्हें समझाया जाता है कि वे संगीत, लॉन्ग वॉक आदि का सहारा लें और अपने परिवारवालों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं. साइकायट्रिस्ट दवाओं के माध्यम से इलाज करता है.

सेक्स ऐडिक्शन  एनोनिमस (एसएए) सेक्स ऐडिक्शन के शिकार लोगों का संगठन हैं. यहां कोई फीस नहीं ली जाती और न ही दवा दी जाती है. मीटिंग में इसके सदस्य जीवन के कड़वे अनुभवों, इससे जीवन में होने वाले नुकसान और काबू पाने की कहानी शेयर करते हैं. मीटिंग में आने वाले नए सदस्यों को इससे छुटकारा दिलाने के लिए मदद भी करते हैं. इससे पीड़ितों का आत्मबल बढ़ता है और उनमें इस बुरी आदत को छोड़ने की शक्ति विकसित होती है.

अगर आपको भी लगती है बहुत ज्यादा ठंड तो हो सकता है थायराइड

Health Tips in Hindi: क्या आप को जरूरत से ज्यादा ठंड लगती है, हमेशा आप के हाथपैर ठंडे रहते हैं और जाड़े के मौसम में स्वेटर्स की 2-3 लेयर्स से कम में आप का काम नहीं चलता? आइए जानते हैं क्यों लगती है कुछ लोगों को अधिक ठंड. इस से थायराइड (Thyroid) की समस्या बढ़ सकती है.  हाइपोथायराइडिज्म एक स्थिति है जब थायराइड ग्लैंड कम एक्टिव होता है. थायराइड ग्लैंड बहुत सारे मेटाबौलिज्म (Metabolism) प्रक्रियाओं के लिए उत्तरदायी है. इस का एक काम शरीर के तापमान का नियंत्रण करना भी है. जाहिर है हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित व्यक्ति ज्यादा ठंड महसूस करते हैं क्यों कि उन के शरीर में थायराइड हार्मोन (Harmon) की कमी रहती है.

अधिक उम्र

अधिक उम्र में ठंड अधिक लगती है. खासकर 60 साल के बाद व्यक्ति का मेटाबोलिज्म स्लो हो जाता है. इस वजह से शरीर कम हीट पैदा करता है.

एनीमिया

आयरन की कमी से शरीर का तापमान गिरता है क्यों कि आयरन रेड ब्लड सेल्स का प्रमुख स्रोत है. शरीर को पर्याप्त आयरन न मिलने से रेड ब्लड सेल्स बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाते और हमें ज्यादा ठंड लगने लगती है.

खानपान

यदि आप गर्म चीजें ज्यादा खाते हैं जैसे ड्राई फ्रूट्स, नौनवेज, गुड, बादाम आदि तो आप को ठंड कम लगेगी. इस के विपरीत ठंडी चीजें जैसे, सलाद, आइसक्रीम, वेजिटेबल्स, दही आदि अधिक लेने से ठंड ज्यादा लगती है.

प्रेगनेंसी

प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को एनीमिया और सरकुलेशन की शिकायत हो जाती है. इस वजह से कई बार ठंड लगने खासकर हाथ पैरों के ठंडा होने की शिकायत करती है.

डीहाइड्रेशन

पानी कम मात्रा में पीने से शरीर का मेटाबौलिज्म घट जाता है और शरीर खुद को गर्म रखने के लिए आवश्यक एनर्जी और हीट तैयार नहीं कर पाता.

हारमोंस

अलगअलग तरह के हार्मोन्स भी हमारे शरीर के तापमान को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए एस्ट्रोजेन साधारणतः डाइलेटेड ब्लड वेसल्स और बौडी टेंपरेचर प्रमोट करता है. जबकि पुरुषों में मौजूद टेस्टोस्टेरोन हार्मोन इस के विपरीत कार्य करता है. इस वजह से महिलाओं का शरीर ज्यादा ठंडा होता है. एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं के हाथ पैर पुरुषों के देखे लगातार अधिक ठंडे रहते हैं. यही नहीं महिलाओं में थायराइड और अनीमिया की समस्या भी अधिक होती है. दोनों ही ठंड लगने के लिए अहम् कारक हैं.

पुअर सर्कुलेशन

यदि आप का पूरा शरीर तो आरामदायक स्थिति में है मगर हाथ और पैर ठंडे हो रहे हैं तो इस का मतलब है कि आप को सरकुलेशन प्रौब्लम है जिस की वजह से खून का प्रवाह शरीर के हर हिस्से में सही तरीके से नहीं हो रहा. हार्ट भी सही तरीके से काम नहीं कर रहा. ऐसी स्थिति में भी ठंड अधिक लगने की समस्या पैदा हो सकती है.

तनाव और चिंता

जिन लोगों की जिंदगी में अधिक तनाव और डिप्रेशन होता है वे अक्सर ठंड अधिक महसूस करते हैं क्यों कि तनावग्रस्त होने की स्थिति में हमारे मस्तिष्क का वह भाग सक्रिय हो जाता है जो खतरे के समय आप को सचेत रखता है.ऐसे में शरीर अपनी सारी ऊर्जा खुद को सुरक्षित रखने के लिए रिज़र्व रखता है और हाथपैर जैसे हिस्सों तक गर्मी नहीं पहुंच पाती.

जब बीएमआई कम हो

न केवल बीएमआई और वजन कम होने के कारण आप को ठंड ज्यादा लग सकती है बल्कि आप के शरीर में फैट और मसल्स की मात्रा भी उस की वजह बनती है. मसल्स अधिक मात्रा में होने से शरीर अधिक हीट पैदा करता है और फैट की वजह से भी शरीर से हीट लौस कम होता है जिस से ठंड कम लगती है.

यदि आप को लगता है कि दूसरों के मुकाबले आप का शरीर हमेशा ही ज्यादा ठंडा रहता है या फिर पहले कभी आप ने ठंड महसूस नहीं किया मगर अब हमेशा ही ऐसा लगने लगा है तो आप को मेडिकल चेकअप कराना चाहिए. यदि ठण्ड के साथ आप के वजन में तेजी से बढ़ोतरी या कमी हो रही है, बाल झड़ रहे हैं और कब्ज की शिकायत रहने लगी है ,तो भी किसी अच्छे डाक्टर से जरूर मिलें.

अच्छी सेहत के लिए बेहद जरूरी है सेक्स

Sex News in Hindi: हमारे प्राचीन साहित्य (Ancient Literature) में सेक्स को ले कर खुल कर चर्चा हुई है और महर्षि वात्स्यायन ने सेक्स को ले कर कामसूत्र (Kamasutra) जैसे ग्रंथ की रचना की है. यह विडंबना की बात है कि हमारे यहां आज भी सेक्स (Sex) पर खुल कर बात करना वर्जित माना जाता है और सेक्स को एक टैबू (Taboo) माना जाता है. घरेलू महिला (Domestic Women) सुनीता एवं मैरिज काउंसलर दीप्ति के अनुसार, ‘‘सेक्स जरूरी है, जीवन का अभिन्न अंग है, यह आनंद देता ही है. आनंद देने के साथसाथ सेक्स सृष्टि के चलते रहने के लिए संतान की उत्पत्ति का एकमात्र साधन भी है.’’

यौन रोग विशेषज्ञ प्रकाश कोठारी के अनुसार सेक्स शारीरिक प्रक्रियाओं और हारमोंस के संचालन को नियमित रखता है. इस से शरीर के इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ावा मिलता है. सप्ताह में 2 बार सेक्स करने वालों की अपेक्षा जो कभीकभी सेक्स कर पाते हैं उन में इम्यूग्लोबिन ‘ए’ का स्तर कम पाया जाता है और रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता काफी कम होती है. ऐसे लोग अकसर बीमार रहते हैं. इसलिए विवाहितों की अपेक्षा अविवाहितों की मृत्युदर अधिक पाई गई है.

सेक्स से प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि

कैंसर रोग के खतरे से बचाव होता है, क्योंकि पिछले 35 सालों में जो व्यक्ति जितना अधिक स्खलित होता है उस की अपेक्षा कम स्खलित होने वाले पुरुषों की तुलना में 33% कम प्रोस्टेट कैंसर पाया गया, जबकि पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा अधिक रहता है.

प्रौढ़ावस्था संभालने में सहयोगी

प्रौढ़ावस्था एक ऐसी सीढ़ी है, जिस पर कदम रखते ही स्त्रीपुरुष दोनों ही कुंठाग्रस्त होने लगते हैं, खासकर पुरुष. ऐसे में सेक्स ही कुंठानाशक होता है. यह स्त्रीपुरुष दोनों को एहसास कराता है कि युवावस्था के बाद भी आप का जीवन पूर्ववत चल रहा है, आने वाले जीवन में विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है.

सेक्स सौंदर्य बढ़ाता है

1999 में प्रकाशित ‘सुपर यंग’ के लेखक डाक्टर डेविड ने इस संबंध में अनेक शोध कार्य किए. शोध ने प्रमाणित किया कि जो पतिपत्नी सप्ताह में 4 बार औसतन सहवास क्रिया को अंजाम देते हैं वे अपनी वास्तविक उम्र से कम से कम 10 साल छोटे दिखते हैं.

सेक्स उम्र बढ़ाने में मददगार

डा. चार्नतेस्की एवं डा. प्रकाश कोठारी के अनुसार, ‘‘संतुलित सेक्स का आनंद लेने वाले स्त्रीपुरुष, जो करीब 10 सालों में अधिकतम चरमसुख प्राप्त करते हैं, वे कम चरमसुख महसूस करने वाले स्त्रीपुरुषों की अपेक्षा अधिक उम्र तक जीवित रहते हैं.

सेक्स सही ऐक्सरसाइज

पत्रकार मधु सेक्स को सही ऐक्सरसाइज मानती हैं, सेक्स एक अच्छाखासा व्यायाम है. आप रात या सुबहसुबह खुल कर सेक्स करती हैं तो यह आप को चुस्तदुरुस्त रखता है. सेक्स खून के दौरे को नियंत्रित करने में सहायक ही नहीं होता, बल्कि नियमित सेक्स कोलैस्ट्रौल को कम करता है और अतिरिक्त कैलोरी को नष्ट करने में भी सहायक होता है.

सेक्स वजन घटाता है

स्त्रीपुरुष यदि हफ्ते में कम से कम 5 बार सेक्स सुख लेते हैं तो यकीनन उन का बढ़ा हुआ वजन घटाने में सेक्स मददगार होगा, क्योंकि सहवास के दौरान प्रति मिनट में 4-5 कैलोरी और 1 घंटे में 300 कैलोरी कम हो जाती है.

बीमारी से बचाव

सेक्स करने की सलाह देते हुए डा. प्रकाश कोठारी और डा. अशोक जैन का कहना है कि हर स्वस्थ स्त्रीपुरुष के लिए सेक्स जरूरी है. खासकर महिलाओं को होने वाली बीमारियों से सेक्स बचाता है. महिलाओं को विवाह करने की सलाह भी इसलिए दी जाती है ताकि उन की शारीरिक क्रिया संतुलित रहे वरना हिस्टीरिया जैसी बीमारियां जकड़ लेती हैं. बच्चे के जन्म के बाद स्त्री के गर्भाशय की सफाई हो जाती है. स्त्री के शरीर को यदि संतुलित एवं सिस्टम में रखना है तो सेक्स निहायत जरूरी है.

डिप्रैशन कम करने में सहायक

डिप्रैशन में सेक्स रामबाण का काम करता है. दिलीप और मंजू पतिपत्नी दोनों कई बार अवसाद से घिर जाते हैं. जब उन्हें लगता है कि घरेलू समस्याएं उन्हें अवसाद की ओर ले जा रही हैं तो दोनों आपस में खुल कर सेक्स का लुत्फ उठाते हैं.

क्रिएटिव सोच

सेक्स से स्त्रीपुरुष दोनों की सोच में परिवर्तन होते हैं. परिवर्तन से दिमाग में नई क्रिएटिव प्रक्रिया को अंजाम देने की सोच ही पैदा नहीं होती, बल्कि क्रिएटिव कामों को अंजाम भी दिया जाता है. सेक्स एक मैडिसिन है. इस का सब से बड़ा फायदा है कि यह केवल स्वस्थ ही नहीं रखता बल्कि जिंदगी को खुशनुमा भी बनाता है.

अपनाएं उमंगभरा सेक्स

उमंगभरे सेक्स के लिए हफ्ते में 5-6 दिन कुछ कार्डियो (हृदय संबंधी) व्यायाम करें. इस से सेक्स क्षमता बढ़ेगी, कैलोरी बर्न होगी और ब्लड शुगर नियंत्रण में रहेगा. स्त्रीपुरुष दोनों ही स्वस्थ रहने के साथसाथ खुश भी रहेंगे.

भावनात्मक संबंध मजबूत करता है

जब तक स्त्रीपुरुष के भावनात्मक संबंध आपस में प्रगाढ़ नहीं होंगे तब तक सेक्स आप के लिए जरूरी नहीं होगा. मानसिक लगाव के बिना सेक्स अधूरा है. इस के अभाव में केवल खानापूर्ति ही होती है. सेक्स के बिना जिंदगी बेरौनक है. दांपत्य जीवन को तरोताजा रखने के लिए सेक्स को जीवन का अहम हिस्सा मान कर चलें.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें