Funny Story In Hindi: नाक के नीचे

Funny Story In Hindi: दुनिया में बहुत तरह की नाक होती हैं. लंबी नाक, मोटी नाक, पतली नाक वगैरह. नाक की बनावट भौगोलिक हालात और आबोहवा के असर के चलते भी अलगअलग होती है.

हमारे देश में बहुत सी बातें कहीं गई हैं, जो मुहावरों में देखीसुनी और पढ़ी जाती हैं. नाक का बाल होना. मतलब बहुत ही खास शख्स होना. नाकों चने चबवाना. मतलब बहुत ज्यादा परेशान करना. क्रिकेट और दूसरे खेलों में लोग देश की इज्जत बचाने की बात को नाक बचाना कह लेते हैं.

अजीब बात है कि जिस नाक को हम जिंदगीभर बहुत देर तक देख भी नहीं पाते, उस को ले कर जान दिए रहते हैं. दिनभर में एक बार अगर गलती से भी अपनी नाक को कभी ढंग से हम देख पाएं, तो शायद यह बहुत बड़ी बात होगी. ऐसा सब के साथ होता है.

कभी आप रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकाल कर देखिएगा. आप अपनी नाक को एक मिनट भी ठीक से नहीं देख पाते. जिस नाक को हम अपनी दोनों आंखों की पुतलियों को बहुत सीधा कर के भी नहीं देख पाते, उसी नाक के लिए हम जिंदगीभर लड़ते रहते हैं.

यह आखिर है क्या? यकीनन हमारी खीझ. इसी को हम नाक कहते हैं. जब हम बेबस हो जाते हैं और अपनी खीझ को नहीं मिटा पाते हैं, तो नाक का सवाल बना लेते हैं. अपनों से, खासकर रिश्तेदारों से हम मनमुटाव कर लेते हैं. उन के जैसा मकान, उन के जैसी कार, उन के जितनी पगार, उन के जितना बैंक बैलेंस जब तक नहीं हो जाता, तब तक हम नाक उठा कर नहीं चल सकते. हमारे सामने भला उन की औकात ही क्या है?

इसी नाक के लिए आदमी तीन की जगह तेरह देने को तैयार हो जाता है. टैंडर मुझे मिलना चाहिए. नुकसान होगा तो होगा. बहुत कमाया है. इस बार घर से घाटा देंगे, लेकिन तुम को खत्म कर देंगे. बच्चू, तुम को यह टैंडर नहीं लेने देंगे. तुम को नाकों चने चबवा देंगे. हो किस फेर में. अपना माल खरीद के दाम पर बचेंगे, लेकिन तुम को नहीं बेचने देंगे.

लोग आन में कान कटाने को तैयार रहते हैं, लेकिन आन में कान नहीं कटता, बल्कि नाक कट जाती है और उन को पता भी नहीं चलता.

खापों में नाक बहुत ऊंची है. उन के फैसले नाक के लिए किए जाते हैं. वहां औनर किलिंग आम बात है. नाक के लिए जिंदा लोग टांग दिए जाते हैं, नहीं तो टंग जाते हैं. हुक्कापानी बंद होने का खतरा है. समाज से खदेड़े जाने का डर. रोटीपानी, दियासलाई न मिल पाने का दुख.

कहते हैं कि कुत्ते की नाक बहुत तेज होती है, लेकिन कुत्तों में नाक के लिए लड़ाई नहीं होती. कुत्ते नाक के लिए नहीं लड़ते. आदमी नाक के लिए लड़ता है. इतना लड़ता है कि लड़तेलड़ते वह आदमी से कब जानवर बन जाता है, उस को पता ही नहीं चलता. इस मामले में कुत्ते आदमी से ज्यादा समझदार हैं. कम से कम बेअक्ल हो कर अक्ल वालों को मात दे रहे हैं.

औरतों की नाक बहुत तेज होती है. वे गांवसमाज में सूंघ लेती हैं कि किस का किस से चक्कर चल रहा है. किस का पेट कितने महीने का है. किस के घर में बाप और बेटे की नहीं बन रही है. किस घर में सासबहू में अनबन है. गांवसमाज की औरतों के नाक के सूंघने की ताकत सब से ज्यादा होती है.

सत्तासीन या सरकार में बैठे लोग बड़ेबड़े घोटालों को अंजाम दे देते हैं और यह उसी नाक का कमाल है कि जिन प्रशासनिक अमलों की नाक के नीचे यह सब होता है, उन को कुछ पता ही नहीं होता है. Funny Story In Hindi

Story In Hindi: घुसपैठिए

Story In Hindi: सरहद पर पहुंचते ही सरगना ने कहा, ‘‘देखो, तुम सब घुसपैठिए हो. सामने हिंदुस्तान नाम की बहुत बड़ी सराय है. एक बार किसी तरह सीमा सुरक्षा बल से बच कर दाखिल हो जाएं, उस के बाद उस भीड़ भरे देश में कहीं भी समा जाओ. शासन और प्रशासन भ्रष्ट हैं ही. पैसा फेंको और अपने सारे कागजात बनवा लो.

राशनकार्ड, वोटरकार्ड और इस देश की नागरिकता हासिल.’’

एक घुसपैठिए ने पूछा, ‘‘आप तो कह रहे थे कि सरहद पार करवाने के लिए भारतीय सेना में हमारे कुछ मददगार हैं?’’

सरगना बोला, ‘‘हां हैं, लेकिन अभी उन की ड्यूटी नहीं है. मुझे दूसरी घुसपैठिया खेप भी भेजनी है. बहुत ज्यादा लोगों को एकसाथ नहीं भेज सकते. मेरा रोज का काम है. हर पड़ोसी देश से घुसपैठिए घुसते हैं.

कभी मीडिया वाले ज्यादा हल्ला मचाते हैं, तो कुछ सख्ती हो जाती है.’’

‘‘लेकिन अगर हम पकड़े गए तो?’’ घुसपैठिए ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम्हें वापस भेज दिया जाएगा. वैसे ऐसा होगा नहीं. कब, किस समय सरहद पार करनी है, मुझे सारी जानकारी है. एक बार घुस गए तो बात खत्म.

‘‘हां, अगर वहां पहुंच कर पहचानपत्र बनवाने में कोई समस्या हो तो फोन करना. अपने एजेंट हैं. सब हो जाएगा. चिंता करने की जरूरत नहीं.’’

यह नजारा भारतबंगलादेश की सरहद का है. यह नजारा भारत और पाकिस्तान की सरहद का भी हो सकता है. भारतश्रीलंका, भारतनेपाल की सरहद का भी. नेपालियों को तो वैसे भी खुली छूट है. इस देश में कोई भी कहीं से भी आ कर बस सकता है. घुसपैठिया बन कर घुसता है, फिर मूल निवासी बन कर अपने लोगों को बुलाता है, बसाता है और बसनेबसाने का यह सिलसिला लगातार जारी रहता है.

अचानक सरगना ने इशारा किया और घुसपैठिए भारत की सरहद में दाखिल हो गए. यहां काम दिलाने, बसाने के लिए उन के धर्म, जाति, भाषा वाले पहले से ही थे. फिर दलाल तो हैं ही. उन की आमदनी का जरीया है. उन का धंधा है.

न जाने कितने पाकिस्तानी, बंगलादेशी, नेपाली, श्रीलंकाई भारत के मूल निवासी बन कर यहां की आबादी बढ़ा रहे हैं. मूल निवासी की भूख और बेकारी पहले से ही है. उन की अपनी समस्याएं तो हैं ही, उस पर ये घुसपैठिए जो पूरा बैलेंस बिगाड़ कर रख देते हैं.

शरणार्थी आ ही रहे हैं. जो नियम से चलते हैं. कानून का पालन करते हैं, सो आज सालों बाद भी शरणार्थी बने हुए हैं. उन का अपना निजी कुछ भी नहीं है. जो गैरकानूनी तरीका अपनाते हैं वे मूल निवासी बन जाते हैं.

17 लाख शरणार्थी अकेले जम्मू में हैं. घुसपैठिए भी अपने देश की भूख बेकारी से दुखी हो कर रोटी, छत
की तलाश में घुसते हैं, वरना किसे पड़ी है अपनी जमीन, अपना देश छोड़ कर जाने की.

पूर्वोत्तर के इस राज्य में लाखों घुसपैठिए यहां की नागरिकता ले कर पूरे का पूरा शहर बसा चुके थे. इन्हें
20 सालों से ज्यादा हो गए यहां रहते हुए. इस धरती पर उन्होंने मकान बनाया. खेतीबारी की. जमीन खरीद कर किसान बने. उन के बच्चे यहीं की आबोहवा में पल कर बड़े हुए. यहीं उन की शादी हुई. उन के बच्चे हुए.

नेताओं को यह बात मालूम थी. वे इन्हें अपने वोट बैंक के रूप में भुनाते रहे और यह भरोसा देते रहे कि उन की सरकार बनी तो उन्हें यहीं का निवासी माना जाएगा. हर पार्टी यही कहती और सरकार बनने के बाद चुप्पी साध लेती.

40 साल के आसपास हो चुके थे, जब अहमद खान पूर्वोत्तर के इस राज्य में बसे थे. जब वे आए थे तो अपने कुछ रिश्तेदारों और साथियों के साथ यहां आ कर मजदूरी करना शुरू किया था. धीरेधीरे अपनी मेहनत से उन्होंने जमीन खरीदी. मकान खरीदा.

उस समय यहां के स्थानीय निवासियों ने भी उन की मदद की. यहीं उन की शादी हुई, फिर उन के बच्चों की शादियां हुईं. अब भरापूरा परिवार था. बंगलादेश को तो वे भूल चुके थे. उन का वहां कोई था भी नहीं.

जो थे उन्हें खोने में 40 साल का समय बहुत होता है. इसी धरती को वे अपना मानते थे. इसी को सलाम करते थे.

अब जबकि राजनीति दलों का दलदल बन चुकी थी. केंद्र और राज्य सरकार से ज्यादा क्षेत्रीय भाषा, जाति की राजनीति होने लगी थी. आबादी बढ़ने से क्षेत्रीय लोग पिछड़े और गरीब रह गए थे. उन के पास न जमीन थी, न रोजगार. वे दिल्ली में बैठी सरकार को कोसते रहते थे कि दूर पड़े किनारे के राज्यों के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया.

यह कोसना उन्हें वहां के स्थानीय नेताओं ने सिखाया था. स्थानीय नेताओं के पास पड़ोसी देश से हासिल हथियार थे और बेरोजगार की फौज उन के पास थी. जो असंतुष्ट हो कर हथियार भी उठा चुके थे. जो हथियार उठाने की हिम्मत नहीं कर पाए, वे उन हथियारधारियों के समर्थन में थे. अपना विरोध वे अहिंसक तरीके से करते थे. नारा था भूमिपुत्र का.

भूमिपुत्र वे जो इस प्रांत, क्षेत्र का स्थायी निवासी है. भाषा, बोली, संस्कार, उस का है. जो उस जाति, धर्म से संबंधित है. यह ठीक वैसा ही नारा था जो आंध प्रदेश और महाराष्ट्र में उठता रहा है. बाहरियों को खदेड़ो. जो इसी देश के दूसरे क्षेत्रों से आए थे. रोजगार के लिए वे तो चले गए. मजदूर बन कर आए थे.

लेकिन अहमद खान जैसे लोग कहा जाएं? उन के पास तो यही जमीन, यही मकान, दुकान उन का मुल्क था. फिर उन्हें क्या पता था कि 40 साल बाद स्थानीय लोग ही जो कभी उन के मददगार थे, भाषा, भूमिपुत्र आंदोलन के नाम पर उन के दुश्मन बन जाएंगे.

हत्याओं, बम, धमाकों की खबर पूरे राज्य में फैल रही थी. दहशत का माहौल छाया हुआ था. अहमद खान खुद को बेवतन महसूस कर रहे थे. न जाने कब वे इस हिंसक आंदोलन की बलि चढ़ जाएं. वे करें तो क्या करें. जाएं तो कहां जाएं. उन के पास कोई रास्ता भी नहीं था. आखिर उन के पास संदेशा आ ही गया. वे उल्फा के कमांडर के सामने हाथ जोड़े खड़े थे.

कमांडर ने कहा, ‘‘यह धरती भूमिपुत्रों की है. खाली करो.’’

‘‘मैं 40 साल से यहां रह रहा हूं. यह धरती मेरी भी है. मैं भी भूमिपुत्र हुआ.’’

‘‘नहीं, न तो तुम असमिया हो, न तुम्हारे पूर्वज यहां के हैं. तुम्हारे रहने से हमारे हितों पर असर पड़ता है. यहां केवल यहां के लोग रहेंगे.’’

‘‘मैं नहीं जाऊंगा. पूरी जिंदगी यहीं गुजर गई.’’

‘‘नहीं जाओगे तो मरोगे,’’ कमांडर ने अपनी बात खत्म कर दी.

अहमद खान सोचते रहे कि उन का मुल्क कौन सा है? कुछ सालों में तो किसी भी देश की नागरिकता मिल जाती है, फिर उन्हें तो पूरे 40 साल हो गए. इस जगह के अलावा उन का कहीं कुछ भी नहीं है. वे अपना घरद्वार छोड़ कर जाएं तो कहां जाएं? क्या करेंगे? कहां रहेंगे?

टैलीविजन, रेडियो पर सरकार की तसल्ली आती रही कि सब ठीक हो जाएगा. डरने की कोई बात नहीं. आपसी बातचीत जारी है. पर सरकार की तसल्ली हर बार की तरह झूठी और खोखली रही.

एक रात भूमिपुत्र, विद्रोही अपने लावलश्कर के साथ उन की बस्ती में घुस आए. गोलियों, बमों की आवाजों के साथ चीखों की आवाज भी माहौल में गूंजने लगी.

अहमद खान अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए. उन्होंने तय कर लिया था कि जहां 40 साल, सुख, परिवार के साथ गुजारे. वहां मौत आती है तो मौत ही सही. कोई माने या न माने, वे भी इस भूमि के पुत्र हैं. वे कहीं नहीं जाएंगे.

माहौल में बारूद की गंध फैलने लगी. मकान धूंधूं कर जलने लगे. औरतों और बच्चों की चीखें गूंजने लगीं.

चारों ओर खून ही खून बहने लगा. तभी 2-3 गोलियां अहमद खान के सीने में लगीं. एक लंबी कराह के साथ उन्होंने दम तोड़ दिया. Story In Hindi

Hindi Funny Story: गिरगिर रिकौर्ड गिर

Hindi Funny Story: जबजब सज्जनों की तर्ज पर मैं गलती से सच्ची में नेकी वाला कोई काम करता हूं, तो हफ्ताभर शर्म से सिर नीचा किए रहता हूं. यह सोच कर कि जन्मजात समाज विरोधी काम करने वाले गधे, यह तू ने क्या कर दिया? इसे आप सीधेसीधे यों भी कह सकते हैं कि शायद मुझे नेकी का काम करते हुए शर्म आती है.

दरअसल, मैं अपने हाथ चलाता बुरे काम के लिए हूं और उन से गलती से यों अच्छा काम हो ही जाता है. इसे आप मेरी नहीं, बल्कि मेरे हाथों की लापरवाही भी कह सकते हैं.

अच्छा काम गलती से हो जाने के बाद पछतावे के तौर पर सिर नीचा किए मैं सुबह सैर को निकला था कि सामने रुपया गिरने की बेशर्मी के सारे रिकौर्ड तोड़़ने के बाद भी गर्व से सिर ऊंचा किए सीना ताने चला आ रहा था जौगिंग करता हुआ.

मैं दिमाग से ही नहीं, दिल से भी मानता हूं कि आज समाज में बेशर्मों की जयजयकार का जमाना है. मैं दिमाग से ही नहीं, दिल से भी मानता हूं कि आज समाज में बेशर्मों की हुंकार का जमाना है. फिर भी पता नहीं क्यों आप से यों ही पूछ रहा हूं कि ये बेशर्म टाइप के लोग ऐसे क्यों होते होंगे भाई साहब? इन्हें इज्जतबेइज्जती में कोई फर्क नजर आता होगा कि नहीं?

कर ले प्यारे रुपए, अपने आज तक के अपने सब से निचले स्तर पर गिरने के बाद भी इतराते हुए जितनी चाहे जौगिंग. कर ले प्यारे रुपए, अपने आज तक के निचले स्तर पर गिरने के बाद भी इतराते हुए जितनी चाहे अपनी सेहत सुधारने के लिए सैर. गले में स्मार्ट वाच लटकाए रोज 10 हजार स्टैप्स चल, चाहे 20 हजार. अपनी सेहत के हित में जिस की सेहत बिगाड़ने वाले सड़क से संसद तक बैठे हों, उस की सेहत में सुधार वह खुद तो क्या, कुदरत भी नहीं कर सकती.

वह चाहे कितनी ही जौगिंग कर ले. वह चाहे कितनी ही सैर कर ले. वह कितने ही अपनी सेहत सुधार के लिए स्वदेशी से ले कर विदेशी टौनिक ले ले. उस की अपनी सेहत सुधार के लिए हर इंपोर्टेड टौनिक उस की सेहत बिगाड़ने वालों को ही लगते हैं. टौनिक वह लेता है और हट्टेकट्टे वे होते हैं बिस्तर पर लेटेलेटे. इन दिनों पेट मेहनत की खाने वालों के बढ़ते देखे गए हैं, दूसरों के हिस्से की खाने वालों के नहीं.

खुद हद का गिरा हुआ होने के बावजूद भी हर टाइप के गिरे हुए की तरह उस गिरे हुए से भी बात करने को मन तो नहीं हो रहा था, फिर भी पता नहीं उस से क्यों बात कर बैठा? मतलबी से मतलबी आदमी किसी से बात किए बिना आखिर कब तक रह सकता है.

‘रुपया भाई, एक बात तो बताना बुरा न लगे तो, रिकौर्ड स्तर पर गिरने के बाद भी तुम इतनी जिंदादिली से यह सब कैसे कर लेते हो? रोजरोज गिरते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती क्या? अब तो जनता पर रहम करो.

‘अरे यार, मेरी तरह ऊपर उठ नहीं सकते तो कम से कम कुछ दिनों के लिए वहां तो रुक जाया करो जहां गिरते हो. मुझे तुम्हारा सबकुछ पसंद है, लेकिन रोजरोज गिरना कतई पसंद नहीं.

‘अपने हो, इसलिए कह रहा हूं. पड़ोसी होते तो कुछ न कहता. जितना गिरना होता गिरते रहते, मेरी
बला से.’

इस पर रुपए ने कहा, ‘रहम करें वे जो मुझे गिरातेगिराते ऊपर से ऊपर उठे जा रहे हैं. वैसे डियर, गिरा हुआ यहां कौन नहीं? यहां पलपल कौन नहीं गिर रहा बंधु. यहां नंदू से ले कर चंदू तक सब तो गिर रहे हैं.

‘किसी का यहां ईमान गिर रहा है, तो किसी का सम्मान. कोई अपने कर्म से गिर रहा है, तो कोई जीने के मर्म से. यहां गिरना सच है तो ऊपर उठना ?ाठ. ऐसे में मु?ा गिरे हुए को काहे की शर्म? शर्म वे करें जिन्हें गिरने में शर्म महसूस होती हो.

‘हां, शुरूशुरू में गिरने पर शर्म जरूर महसूस होती थी. पर जब कोई बारबार गिरने लग जाए तो वह शर्म से ऊपर उठ जाता है. बारबार गिरने की लत लग जाने के बाद उसे नैतिकता की कितनी ही ब्रांडेड घुट्टियां पिला लो, उसे उठने को जोर देने के लिए कितने ही प्रवचन सुना लो, पर तब वह पलपल गुनगुनाता हुआ, इतराता हुआ गिरता ही जाता है, क्योंकि तब उस की जिंदगी का एकलौता मकसद बचता है, बस गिरना… गिरना… गिरना…

‘अब तो हर गिरने वाले की तरह मुझे भी अपने रोजाना गिरने पर खुशी नहीं, बहुत खुशी होती है. अब सब की तरह चाहता हूं कि मैं अपने गिरने के रोज अपने रिकौर्ड अपनेआप ही तोड़ता रहूं, इसलिए जबजब पिछले गिरने के रिकौर्ड से और नीचे गिरता हूं, तो अपने गिरने पर जम कर अब्दुल्ला हो नागिन डांस कर लेता हूं. खुद को खुद की बांहों में जी भर लेता हूं.

‘दोस्त, इज्जत की कुरसियों पर लेटे रोजाना गिरने वालों से पूछो तो पता चले कि आज गिरने में कितना मजा छिपा है.

‘आज मेहनत करतेकरते ऊपर उठना सब से बड़ी गलती है. दूसरे, मेहनत करते हुए कोई आज ऊपर उठ भी नहीं सकता. मेहनत के बाद भी गिरे किसी को कहां उठने देते हैं? गिरने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती.

तुम्हारे पास दूर तक देखने की नजर नहीं है तो लो, मेरी दूरबीन से देखो, यहां जो आज जितना गिरा हुआ है, वह आज उतना ही इज्जत से उठा हुआ है.

‘आज इज्जत ऊपर उठने वालों की नहीं, गिरने वालों की है. समाज आज इज्जत ऊपर उठने वालों को नहीं, गिरने वालों को देता है. ऐसे में रिकौर्ड गिरने के बाद भी जो मैं शान से फिट रहने की कोशिश कर रहा हूं, तो तुम्हारे पेट में मरोड़ क्यों उठ रही है?’ रुपए ने मेरे माथे पर आया पसीना पोंछा और नकटा आगे हो लिया.

बेशर्मों के क्या सींग होते हैं भाई साहब… Hindi Funny Story

Family Story In Hindi: सोमा

Family Story In Hindi, लेखक – रंगनाथ द्विवेदी

सोमा अपने 2 कमरे के मकान में बिलकुल अकेली रहती थी. ऐसा नहीं है कि अकेले रहना उस का कोई शौक था. दरअसल, उस के मांबाप उसे बचपन में ही अकेला छोड़ कर इस दुनिया से चले गए थे. उन के मरने के बाद सोमा घर में बिलकुल अकेली रह गई थी.

सोमा के मम्मीपापा ने गैरजातीय ब्याह किया था, जिस की नाराजगी की वजह से सोमा के मम्मीपापा से उन के घर वालों ने अपना सारा रिश्ता हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर लिया था.

अनाथ और बेसहारा सोमा ने मेहनतमजदूरी कर के खुद को बिना किसी सहारे के पालापोसा था. अब वह पूरे 24 साल की हो चुकी थी. उस का रंग यों तो सांवला था, लेकिन उसे कुदरत ने इतनी अच्छी शक्लसूरत दी थी कि वह किसी भी गोरी लड़की से ज्यादा खूबसूरत लगती थी.

एक तरह से कहूं तो सोमा मुझे मन ही मन बहुत पसंद थी, लेकिन अपने दिल की बात उस से कहने की कभी मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ती थी.

इस की सब से बड़ी वजह थी सोमा का झगड़ालू स्वभाव. अकसर जब मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार हो कर अपने घर से निकलता था, तो उसे रोजाना महल्ले में किसी न किसी से जोरजोर से लड़तेझगड़ते हुए देखता था.

कभीकभार तो सोमा औरतों और मर्दों को ऐसीऐसी गालियां दे देती थी कि अच्छेअच्छे गाली देने वालों तक की टैं बोल जाए. सच तो यह था कि पूरी कालोनी ही उस के इस झगड़ालू स्वभाव की वजह से उस से बचती थी.

यहां तक कि महल्ले के ऐसे जवानजहान लड़के भी सोमा को देखते ही अपना रास्ता बदल लेते थे, जो दूसरी जवान लड़कियों पर दिनभर डोरे डालने की फिराक में रहा करते थे. उन्हें हमेशा यह डर लगा रहता था कि कहीं गलती से भी अगर सोमा की तरफ उन की आंख उठ गई, तो उन की इज्जत की खैर नहीं. न जाने कब वह चप्पल निकाल कर उन की धुनाई शुरू कर दे और लड़?ागड़ कर पूरे महल्ले को अपने सिर पर उठा ले.

आज लगातार यह चौथा दिन था, जब मेरे दफ्तर जाते समय मैं ने कालोनी में किसी औरत या मर्द से सोमा के झगड़ने और गालीगलौज देने की आवाज नहीं सुनी. शाम को जब मैं अपने दफ्तर से घर के लिए निकला, तो रास्तेभर यह सोचता हुआ अपने कमरे पर लौटा कि किसी तरह हिम्मत कर के आज मैं यह जानने की कोशिश करूंगा कि आखिर सोमा 3-4 दिन से कहां है?

यह एक तरह से मेरे दिल में सोमा के लिए छिपा हुआ वह प्यार ही था जो मुझे कहीं न कहीं सोमा की खोजखबर लेने के लिए बढ़ावा दे रहा था. लेकिन सवाल यह था कि मैं सोमा के बारे में कालोनी में किस से पूछूंगा कि आखिर वह 3-4 दिनों से दिख क्यों नहीं रही? क्या कोई बात है या कहीं वह किसी नातेरिश्तेदार के आने पर उस के साथ चली गई है?

लेकिन नातेरिश्तेदार वाला सवाल मेरे मन को जमा नहीं, क्योंकि जितना मैं ने सोमा के बारे में लोगों से जाना और सुना था, उस के मुताबिक ऐसा होना मुमकिन नहीं था.

फिर कुछ देर यों ही सोचते रहने के बाद मैं खुद ही डरता और मन ही मन कांपता हुआ सोमा के उस 2 कमरे की मकान की तरफ चल पड़ा.

जब मैं उस के मकान के पास पहुंचा तो लगा कि जैसे अभी सोमा धड़धड़ाते हुए अपने कमरे का दरवाजा खोलेगी और मुझ से बिना कुछ पूछे बेतहाशा झगड़ पड़ेगी.

लेकिन यह मेरा भरम ही साबित हुआ, क्योंकि सोमा का दरवाजा बिना खटखटाए ही भला वह कैसे जान सकती थी कि मैं उस के दरवाजे के पास खड़ा हूं.

फिर थोड़ी देर मैं ने खुद को सोमा के घर के दरवाजे के सामने सामान्य हो लेने दिया. जब खुद को काफी सामान्य महसूस किया, तो मैं ने हिम्मत कर के उस के दरवाजे की सांकल खटखटा कर पूछा, ‘‘कोई है?’’

लेकिन मेरे ‘कोई है?’ कहने में वह दम नहीं था, जो अगले को साफ सुनाई दे. एक बार फिर मैं ने किसी तरह जोर से सांकल बजाने के साथ ही कहा, ‘‘कोई है?’’

इस बार शायद मेरी आवाज को सोमा ने सुन लिया लिया था, क्योंकि अंदर से आवाज आई, ‘‘कौन है?’’
मैं ने जब गौर किया तो मुझे एकबारगी यकीन ही नहीं आया कि यह उसी सोमा की आवाज थी, जो अगर एक बार बोल देती थी तो कालोनी के किसी भी आदमी या औरत की घिग्गी बंध जाती थी.

सोमा ने फिर कहा, ‘‘कौन है?’’

मैं ने कहा, ‘‘जी मैं.’’

‘‘अरे, कौन मैं?’’ इस बार सोमा ने अपनी आवाज कड़क करने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन मुझे साफसाफ लग रहा था कि उस दबंग सोमा की आवाज यह भी नहीं थी.

कुछ देर बाद पता नहीं सोमा ने क्या सोचा और कहा, ‘‘अच्छा, ठीक है. अंदर आ जाओ.’’

जब मैं कमरे के अंदर सोमा के पास पहुंचा, तो मैं ने उसे एक पुराने से बिस्तर पर लेटे हुए देखा. मैं यह अच्छे से समझ गया था कि सोमा की तबीयत ठीक नहीं है.

फिर सोमा धीरे से बोली, ‘‘अरे, अंबर तुम.’’

हालांकि सोमा ने चौंकने की कोशिश की थी, लेकिन मैं यह पहले ही जान गया था कि सोमा पहचान गई थी.
‘‘आओ, बैठो,’’ सोमा ने एक खाली पड़े हुए एक पुराने से स्टूल की तरफ इशारा किया.

मैं उस स्टूल पर बैठ तो गया, लेकिन चुपचाप अपना सिर नीचे किए रहा.

मेरी यह हालत देखने के बाद सोमा ने मुझ से खुद ही पूछा, ‘‘और बताओ अंबर, तुम मेरे पास किसलिए आए हो?’’

सोमा को इस तरह से बोलते हुए देख कर मुझे भी थोड़ी सी हिम्मत हुई, तो मैं ने कहा, ‘‘तुम 3-4 दिनों से दिखी नहीं, इसलिए मैं ने सोचा कि क्यों न तुम्हारे घर चल कर तुम्हारा हालचाल जान लिया जाए.’’

मेरे इतना कहने के बाद सोमा कुछ देर अपलक मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, जैसे वह मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो.

कुछ देर के बाद सोमा बोली, ‘‘तुम झूठ बोल रहे हो अंबर. तुम ने 3-4 दिनों से महल्ले में मुझे किसी से लड़तेझगड़ते या गालीगलौज देते हुए नहीं देखा, इसलिए तुम मेरे बारे में जानने के लिए घर चले आए.

‘‘लेकिन अंबर, यह भी तुम्हारा आधा ही सच है, पूरा नहीं. सच तो यह है कि तुम्हारे मन में कुछ और भी है, जिसे तुम केवल इसलिए मुझ से कह पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हो कि कहीं मैं तुम्हारी बात सुन कर तुम से लड़नेझगड़ने न लगूं. यही बात है न अंबर?’’

मैं ने सिर झुकाए हुए ही छोटा सा अपना जवाव उसे ‘जी हां’ में दिया.

‘‘अंबर, तुम मुझ से साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम मुझ से मन ही मन बहुत प्यार करते हो…’’

एक बार फिर मेरे मुंह से ‘जी हां’ निकल गया. और फिर जैसे मेरी हिम्मत जवाब दे गई और लगा कि यह मैं क्या कह गया? कहीं सच में सोमा मुझ से लड़नेझगड़ने और गाली न देने लगे.

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि सोमा अचानक से सुबक कर किसी मासूम सी बच्ची की तरह रोने लगी. मैं टुकुरटुकुर सोमा के चेहरे की तरफ देखता ही रहा. उसे चुप कराने की मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी.

कुछ देर रो लेने के बाद एक बार फिर सोमा बोली, ‘‘जानते हो अंबर… मैं पैदा होने के बाद पता नहीं कब और किस उम्र में रोई थी, इस का मुझे कुछ पता नहीं. मैं तो यह तक नहीं जानती थी कि ये आंखें रोने के लिए भी होती है. आज पहली बार तुम्हारी वजह से मेरी इन सूनी आंखों को रोने का सुख मिला है अंबर.’’

मैं ने पहली बार सोमा का ऐसा रूप देखा था, इसलिए मैं कुछ भी कह पाने की हालत में नहीं था.

सोमा फिर बोली, ‘‘मैं बहुत पहले से जानती हूं कि तुम मन ही मन मुझ से प्यार करते हो. अंबर, लेकिन मेरे स्वभाव की वजह से तुम्हारी हिम्मत कुछ कहने की नहीं हो पा रही थी. और मैं भला एक लड़की हो कर इतनी बेहया कैसे हो सकती थी कि तुम से अपने दिल की बात खुद कहती.

‘‘अंबर, मैं ने चाहे जैसा भी स्वभाव लोगों के मन में गढ़ा हो, वह एक तरह से मेरी मजबूरी थी, क्योंकि अगर मैं ऐसा न करती तो मुझे घर में अकेली जान कर इसी महल्ले के शरीफ और इज्जतदार लोग मु?ो कहीं का नहीं छोड़ते.

‘‘दूसरी आम लड़कियों की तरह मेरे भी अरमान हैं, लेकिन मेरे अनाथ होने का एहसास मुझे अंदर तक तोड़ देता है. तुम खुद सोचो अंबर, अगर मैं अनाथ न होती तो आज पूरे 4 दिनों से बुखार से तपतीतड़पती क्या मैं अकेले पड़ी होती. आज मेरे आसपास कोई यह तक पूछने वाला नहीं है कि मेरी तबीयत कैसी है?

‘‘यह देखो अंबर…’’ इतना कह कर सोमा ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया.

जब मैं ने सोमा का हाथ छुआ, तो बरबस ही मेरा हाथ उस के माथे पर भी पड़ गया. सोमा का माथा किसी गरम तवे की तरह जल रहा था.

मैं बोला, ‘‘अरे, सोमा. तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है और तुम चुपचाप घर में पड़ी हो. क्या तुम्हें अपने तबीयत की जरा भी फिक्र नहीं है…’’

सोमा तेज बुखार में भी मुसकराई और बोली, ‘‘बैठ जाओ अंबर. मुझे कुछ भी नहीं हुआ है. मैं 2-4 दिनों में ठीक हो जाऊंगी.’’

‘‘नहीं सोमा. तुम्हें तो किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना चाहिए. यह शायद सोमा के प्रति अंबर का प्यार ही था, जो वह उस से इस हक से बोला, ‘‘अच्छा, तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें किसी अच्छे डाक्टर को दिखा लाता हूं.’’

‘‘नहीं अंबर, मैं ऐसे ही ठीक हूं. तुम अपने घर जाओ. तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है,’’ सोमा बोली.

थोड़ा रुक कर सोमा ने कहा, ‘‘तुम्हें नहीं पता जब कालोनी वाले मुझे तुम्हारे साथ अकेला जाते हुए देखेंगे तो वे मुझे चरित्रहीन भी समझना और कहना शुरू कर देंगे. तब शायद मैं इतनी बड़ी गाली बरदाश्त न कर पाऊं…’’

अंबर ने एक लंबी सांस ली, फिर वह बोला, ‘‘सोमा, ऐसी कोई नौबत ही नहीं आएगी. तुम इस की जरा भी चिंता मत करो.’’

सोमा बोली, ‘‘क्यों?’’

अंबर ने कहा, ‘‘क्योंकि तुम जैसे ही बुखार से ठीक होगी, हम उस के तीसरे ही दिन शादी कर लेंगे. तुम मेरी बात का यकीन करो और जल्दी से डाक्टर के यहां चलने के लिए तैयार हो जाओ.’’

सोमा धीरे से बिस्तर से उठी, लेकिन अंबर को लगा कि सोमा को खड़े होने में दिक्कत होगी, इसलिए उस ने सोमा को सहारा दे कर खड़ा किया.

सोमा चुपचाप दूसरे कमरे में चली गई. थोड़ी देर बाद जब वह उस कमरे से अपने कपड़े बदल कर बाहर निकली, तो उसे देख कर अंबर ने कहा, ‘‘चलो सोमा.’’

सोमा हलके से मुसकरा दी. उसे सबकुछ बड़ा अजीब सा लग रहा था. लगता भी क्यों न, आखिर आज पहली बार वह किसी के साथ कहीं बाहर जा रही थी. वह भी एक झगड़ालू, गालीगलौज देने वाली सोमा बन कर नहीं, बल्कि किसी के दिल की रानी बन कर. Family Story In Hindi

News Kahani: क्या सोनम ही बेवफा है

News Kahani: चांदनी को छत्तीसगढ़ गए एक महीना हो गया था. अनामिका का जन्मदिन आने वाला था. उस ने सोचा कि क्यों न इस बार विजय को सरप्राइज दिया जाए. इधर विजय भी अनामिका के जन्मदिन की तैयारी कर रहा था. उस ने सोचा था कि दिल्ली में ही कोई होटल बुक करा कर रातभर मस्ती करेंगे. पर अनामिका के इरादे कुछ और ही थे. थोड़े से एडवैंचर से भरे.

जन्मदिन से एक दिन पहले विजय और अनामिका एक कैफे में कौफी पी रहे थे. तभी अनामिका बोली, ‘‘विजय, कल सुबह 11 बजे तैयार रहना. हमें कहीं जाना है.’’

विजय ने पूछा, ‘‘कहां? कोई खास काम?’’ वह आज जन्मदिन का जिक्र नहीं करना चाहता था, वरना उस का सरप्राइज खुल सकता था.

‘‘है कोई खास जगह. हम वहां स्कूटी से चलेंगे,’’ अनामिका बोली.

‘‘ओह, तो मैडम मुझे किसी  सीक्रेट जगह ले जाना चाहती हैं,’’

विजय ने अनामिका का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘ज्यादा रोमांटिक बनने की जरूरत नहीं है. हां, हम कल जिस जगह जा रहे हैं, वह किसी जन्नत से कम नहीं है और हां, हम शाम तक वहां से वापस भी आ जाएंगे,’’ अनामिका ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा.

अगले दिन विजय और अनामिका स्कूटी पर निकल पड़े अपनी उस जन्नत की तरफ.

‘‘सुनो, हम फरीदाबाद से चलेंगे. वहां से गुड़गांव के पहाड़ी वाले रास्ते पर अपनी मंजिल है. रास्ते में हनुमान की मूर्ति भी देखनी है. सुना है, बहुत बड़ी है,’’ अनामिका बोली.

‘‘हमें इतनी दूर जाना है… ऐसा क्या है उन सूखी पहाडि़यों में… सुनसान इलाका है,’’ विजय ने पूछा.

‘‘तुम चलो तो सही मेरी जान…’’ अनामिका ने विजय को गुदगुदी करते हुए कहा.

‘‘यार, स्कूटी चलाते हुए मुझे गुदगुदी मत किया करो. कहीं स्कूटी ठोंक दूंगा तो फिर मत कहना,’’ विजय ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘ओह, साहब को गुदगुदी हो रही है,’’ इतना कह कर अनामिका विजय से चिपक गई.

सवा घंटे के बाद वे दोनों हनुमान की मूर्ति के आगे खड़े थे. सड़क किनारे थोड़ी ऊंचाई पर बड़े से हनुमान बैठे हुए थे. एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए. उन के सिर पर कोई छत नहीं.

‘‘देख लिया… अब चलें?’’ विजय ने अनामिका से पूछा.

‘‘तुम्हें पता है हनुमान के ज्यादातर मंदिरों में वे ऐसे बिना छत के क्यों रहते हैं?’’ अचानक से अनामिका
ने पूछा.

‘‘मुझे पता था यह सवाल जरूर आएगा. तुम ईश्वर को तो मानती नहीं, फिर भी यहां आई, कोई तो चक्कर है,’’ विजय ने कहा.

‘‘वह बात नहीं है. पर तुम ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया,’’ अनामिका एकदम से बोली.

‘‘पता नहीं. मैं ने कभी इस नजरिए से सोचा नहीं,’’ विजय बोला.

‘‘पता नहीं क्यों, मुझे ऐसा लगता है कि हनुमान को राम का दास बताया है, इसलिए वे आज भी दास की तरह ऐसे बिना छत के मूर्ति के रूप में बैठे या खड़े रहते हैं. गरीबों को ऐसे ही दास देवताओं की पूजा करने का हक दिया जाता है,’’ अनामिका बोली.

‘‘क्या तुम भी अपने जन्मदिन पर इतनी गंभीर सोच में पड़ गई. इस मुद्दे पर फिर कभी बहस करेंगे. मुझे अच्छा लगेगा हनुमान की मूर्ति पर चर्चा करने में,’’ विजय ने कहा.

‘‘जैसे हमारे प्रधानमंत्री परीक्षा पर चर्चा करते हैं,’’ अनामिका हंसते हुए बोली.

‘‘अब चलें, शाम तक वापस भी आना है,’’ विजय बोला.

वहां से निकल कर वे दोनों पहले तो कुछ देर फरीदाबादगुड़गांव रोड पर चलते रहे, फिर आगे जा कर बाईं तरफ कैंप वाइल्ड रोड की तरफ मंगर गांव की ओर बढ़ गए. वहीं पर उन की मंजिल थी होटल ललित मंगर.

कैंप वाइल्ड रोड एकदम सुनसान थी. दोनों तरफ अरावली का जंगल.

कुछ ही देर में वे दोनों होटल ललित मंगर पहुंच गए. बड़ा ही खूबसूरत  होटल था.

होटल के दरबान ने उन दोनों को स्कूटी पर देखा, तो उसे लगा कि शायद यहां भटक कर आ गए हैं, क्योंकि वहां तो अमूमन लोग बड़ी गाडि़यों में ही आते थे.

जब वे दोनों स्कूटी को पार्किंग में लगा कर भीतर जाने लगे, तो दरबान ने अदब से पूछा, ‘‘जी, यहां कैसे?’’

विजय पहले ही थक चुका था और अनामिका के सरप्राइज से भी बेखबर था, तो झल्ला गया और बोला, ‘‘क्यों, यहां आना बैन है क्या? इन मैडम से पूछिए कि इस सुनसान जंगल में मुझे क्यों लाई हैं…’’

अनामिका हंसी और दरबान से बोली, ‘‘हम ने 2 लोगों के लंच का रिजर्वेशन करा रखा है.’’

‘‘जी मैडम,’’ इतना कह कर दरबान ने उन को ‘वैलकल’ कहा.

होटल बहुत शानदार था. रैस्टोरैंट भी खूबसूरत था. अनामिका ने वहां के मैनेजर से बात की और विजय के साथ अपनी रिजर्व्ड सीट पर आ कर बैठ गई. थोड़ी देर में एक वेटर केक ले आया.

विजय केक देख कर हैरान रह गया. उसे सब समझ में आ गया. अनामिका ने केक काटा. फिर उन दोनों ने लंच किया.

विजय को बहुत अच्छा लगा. वह बोला, ‘‘वाह अनामिका, यह सरप्राइज तो शानदार था. पर यार, यहां तो बहुत देर हो गई. 3 बजने वाले हैं. अब निकलते हैं. घर भी टाइम से पहुंचना है.’’

‘‘इतनी भी क्या जल्दी है. मैं अभी आई,’’ इतना कह कर अनामिका विजय से थोड़ा दूर जा कर खड़ी हो गई और फोन पर किसी से बातें करने लगी.

‘‘किस से बात कर रही थी?’’ जब अनामिका पास आई, तो विजय ने पूछा.

‘‘पापा से,’’ अनामिका बोली और विजय का हाथ पकड़ कर होटल घूमने की जिद करने लगी कि यहां आए हैं तो कुछ फोटो ही क्लिक कर लेते हैं. अपनी यादगार के लिए.

विजय बेमन से उठा और अनामिका के साथ चल दिया. अनामिका ने वेटर से कहा कि यह केक पैक कर दो, फिर वे होटल में यहांवहां घूमते हुए फोटो क्लिक करने लगे.

इस तरह वहीं शाम के 5 बज गए. विजय ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘अब चलें… घर जातेजाते रात के 8 बज जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, हम अब चलते हैं,’’ अनामिका ने फोन में कोई मैसेज करते हुए कहा.

अभी वे दोनों स्कूटी से कुछ दूर गए ही थे कि अनामिका बोली, ‘‘जरा स्कूटी रोकना. मुझे वाशरूम जाना है.’’

‘‘पर यहां जंगल में कहां वाशरूम मिलेगा…’’ विजय ने कहा.

‘‘अरे, इतना बड़ा जंगल है. यहीं कर लेती हूं. तुम बस स्कूटी रोक दो,’’ अनामिका बोली.

‘‘तुम भी न यार,’’ इतना कह कर विजय ने सड़क किनारे स्कूटी रोक दी. अनामिका जंगल के कुछ अंदर चली गई.

जब कुछ देर हो गई और अनामिका बाहर नहीं आई, तो विजय को चिंता हुई. वह जंगल के अंदर जाने ही वाला था कि सामने से एक कार आई. उस में 4 मुस्टंडे टाइप लड़के बैठे थे.

‘‘अबे, यहां अकेले में क्या कर रहा है?’’ कार रोक कर एक लड़के ने पूछा.

‘‘तुम से मतलब…’’ विजय ने कहा.

इतने में अनामिका भी वहां आ गई. उसे देख कर दूसरे लड़के ने कहा, ‘‘यहां तो जंगल में मंगल हो रहा है और यह लड़का हम से कह रहा है कि तुम से मतलब. जहां लड़की, वहां हम.’’

इस के बाद उन लड़कों ने कार सड़क किनारे रोक दी और बाहर आ कर अनामिका से बदतमीजी करने लगे. यह देख विजय घबरा गया.

इतने में उन में से 2 लड़कों ने अनामिका को कस कर पकड़ा और जबरदस्ती जंगल में ले जाने लगे.

अनामिका चिल्लाई और बोली, ‘‘मुझे हाथ भी लगाया, तो विजय तुम सब को जिंदा नहीं छोड़ेगा.’’

पर सच कहें तो विजय की घिग्घी बंधी हुई थी. वह अकेला क्या कर लेता. उस की तो आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. उस ने हाथ जोड़ कहा, ‘‘इसे कुछ मत करो. आज इस का जन्मदिन है. यह मेरे भरोसे यहां आई है.’’

तभी एक लड़के ने विजय को तमाचा जड़ दिया और बोला, ‘‘अबे, कैसा आशिक है तू. तेरी गर्लफ्रैंड को तुझ पर इतना भरोसा है और तू डर के मारे थरथर कांप रहा है. क्यों अनामिका, क्या किया जाए तेरे विजय बाबू के साथ?’’

‘‘तुम हम दोनों का नाम कैसे जानते हो?’’ विजय ने हैरान हो कर पूछा.

विजय का इतना कहना था कि वे सब खिलखिला कर हंस दिए. अनामिका सब से ज्यादा हंस रही थी. वह बोली, ‘‘अरे, मेरे डरपोक आशिक. ये सब मेरे दोस्त हैं. हम सब ने तुम्हारे साथ प्रैंक किया है.’’

यह सुन कर विजय की सांस में सांस आई. अनामिका ने उन सब का परिचय विजय से कराया. दरअसल, वे अनामिका के दोस्त थे, जिन्हें विजय नहीं जानता था. उन सब ने विजय से ‘सौरी’ बोलते हुए कहा कि दिल पर मत लेना. हम ने तो वही किया, जो अनामिका ने हम से कहा था.

‘‘पर विजय, मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम तो कुछ ज्यादा ही घबरा गए,’’ अनामिका बोली.

‘‘मुझे तुम्हारी चिंता थी,’’ विजय धीरे से बोला.

‘‘क्यों… मुझे क्या हो जाता? ओह, शायद तुम्हें शिलांग वाला मामला याद आ गया, जिस में लड़के की लाश मिली और लड़की गायब…’’ अनामिका बोली.

‘‘कौन सा मामला? मैं समझा नहीं?’’ विजय ने पूछा.

‘‘चलो, कहीं बैठ कर बात करते हैं,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘हमारा केक तो बचा कर लाई है न?’’ उन चारों में से एक लड़के ने अनामिका से पूछा.

‘‘लाई हूं बाबा, हम ने पैक करा लिया था,’’ अनामिका बोली.

अब वे 6 जने एक सस्ते से ढाबे पर बैठ कर चाय पी रहे थे.

विजय ने अनामिका से पूछा, ‘‘यह शिलांग वाला मामला क्या है?’’

अनामिका ने कहा, ‘‘यह बड़ा ही खौफनाक कांड है. एक जोड़ा हनीमून मनाने शिलांग गया था, पर वहां कुछ ऐसा घटा कि सुनने वाले के रोंगटे खड़े हो जाएं.’’

‘‘यार, खबरिया चैनलों की तरह सनसनी मत फैलाओ. जो भी बात है वह बताओ न…’’ विजय ने पूछा.

‘‘तो सुनो… राजा रघुवंशी मर्डर केस की कहानी मध्य प्रदेश से शुरू होती है. जानकारी के मुताबिक, राजा और सोनम की शादी 11 मई को इंदौर में हुई थी. उस के बाद दोनों पतिपत्नी 20 मई को हनीमून के लिए मेघालय जाते हैं. यहीं से कहानी मोड़ लेती है.’’

‘‘क्या मोड़ लेती है?’’ इस बार अनामिका के एक दोस्त ने उस से पूछा.

‘‘मेघालय पहुंचने के बाद ऐसा कुछ हुआ कि इन दोनों की अपने परिवार वालों से कोई बातचीत नहीं होती है. न फोन आता है और न ही फोन जाता है. इस से राजा और सोनम के परिवार  वालों को चिंता सताने लगी कि क्या हुआ. ये लोग पुलिस के पास शिकायत ले कर पहुंचे.

‘‘पुलिस ने तेजी दिखाते हुए ऐक्शन शुरू किया. सभी सीसीसटी फुटेज देखे गए. कुछ दिन बाद पुलिस को एक स्कूटी मिली, जो सोनम और राजा ने किराए पर ली थी.

‘‘पुलिस ने मामले को संदिग्ध मानते हुए तलाशी अभियान तेज कर दिया. जंगलों में भी सर्च आपरेशन चलाया गया.’’

‘‘ओह, देश में इतना सनसनीखेज कांड हो गया और हमें भनक तक नहीं लगी,’’ अनामिका के दूसरे दोस्त ने कहा.

‘‘तुम ने पिछली बार अखबार कब पढ़ा था?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘याद नहीं. मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि हमारे घर में अखबार कौन सा आता है,’’ उस दोस्त ने जवाब दिया.

अनामिका ने उस दोस्त को घूरा, फिर आगे बोली, ‘‘28 मई को पुलिस को जंगल में 2 बैग लावारिस हालत में मिले. इन की पहचान कराई गई, तो सोनम के भाई और राजा की मां ने एकएक बैग को पहचान लिया.

‘‘अब तो यह मामला और ज्यादा पेचीदा होने लगा था कि आखिर सोनम और राजा कहां गए? फिर अचानक 2 जून को विजाडोंग इलाके से राजा रघुवंशी की लाश मिली. राजा की बौडी पर बने एक टैटू के चलते उस की पहचान हो सकी.

‘‘वहीं, राजा की लाश के पास से एक सफेद शर्ट, मोबाइल की टूटी स्क्रीन भी पुलिस ने बरामद की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि राजा की मौत हादसा नहीं, बल्कि हत्या है.

‘‘पुलिस को अब सोनम की तलाश थी. उस का कुछ भी अतापता नहीं चल रहा था. ऐसा माना जा रहा था कि सोनम भी किसी हादसे का शिकार हो गई है. ऐसी भी अफवाह उड़ी थी कि राजा को मार कर हत्यारे सोनम को बंगलादेश ले गए होंगे. लेकिन पुलिस सभी तथ्यों पर जांच कर रही थी.’’

‘‘करनी भी चाहिए. लोग शादी के बाद हनीमून मनाने के लिए इसलिए कहीं जाते हैं कि पतिपत्नी एकदूसरे को समझ सकें. उन का बंधन और ज्यादा मजबूत हो जाए,’’ विजय ने कहा.

इस पर अनामिका ने कहा, ‘‘पर यहां तो इस कांड में नया मोड़ आने वाला था.  मेघालय के मुख्यमंत्री कौनराड के. संगमा ने ट्वीट कर के बताया कि 7 दिन की मशक्कत के बाद मेघालय पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है. पुलिस ने 4 हमलावरों को गिरफ्तार किया है. वहीं, एक औरत ने भी सरैंडर किया है.’’
‘‘किस औरत ने?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मेघालय की डीजीपी ने बताया कि राजा रघुवंशी की हत्या में उस की पत्नी सोनम का हाथ है. उसी ने हत्या करवाई है. इस के बाद मोड़ तब आया जब सोनम ने गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के एक ढाबे से अपने घर फोन किया और बताया कि वह यहां है.

‘‘सोनम के भाई ने तुरंत इंदौर पुलिस को इस बात की जानकारी दी. पुलिस ने गाजीपुर पुलिस से संपर्क किया और सोनम को वन स्टौप सैंटर भेज दिया गया.

पुलिस ने सोनम का सब से पहले मैडिकल कराया. उस में पता चला कि सोनम के शरीर पर कहीं भी चोट का एक निशान नहीं है यानी उस के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की गई.

‘‘पुलिस ने फौरन सोनम को हिरासत में लिया और पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस यह भी जानना चाहती थी कि वह गाजीपुर तक कैसे पहुंची.’’

‘‘पर यह तो पुलिस बोल रही है. सोनम क्या कहती है और इस हत्याकांड के पीछे की असली वजह क्या है?’’ विजय ने पूछा.

अनामिका बोली, ‘‘सोनम तो खुद को बेकुसूर बता रही है. पर अगर पुलिस की मानें तो सोनम और राज नाम के एक लड़के के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. पिता के हार्ट पेशेंट होने से सोनम लवमैरिज नहीं कर पा रही थी.

‘‘पिता अपने समाज में उस की शादी करना चाहते थे, इसलिए उस ने राजा से शादी को हां कर ली थी. उस ने पहले ही तय कर लिया था कि शादी के बाद राजा को मार कर राज के साथ रहने लगेगी.

‘‘सोनम ने राज से कहा था कि जब मैं विधवा हो जाऊंगी, फिर तुम मुझ से शादी कर लेना. तब मेरे परिवार वाले भी हमारी शादी के लिए मान जाएंगे.’’

‘‘यह क्राइम स्टोरी तो बड़ी पेचीदा है. जब तक यह केस किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचेगा, तब तक कुछ न कुछ नया ही सुनने को मिलेगा,’’ अनामिका के एक दोस्त ने कहा.

‘‘तब की तब देखेंगे, फिलहाल तो हमें निकलना चाहिए. हम पहले ही लेट हो गए हैं,’’ विजय ने कहा.
अनामिका बोली, ‘‘ठीक है, अब घर चलते हैं.’’ News Kahani

Hindi Family Story: काकुली

Hindi Family Story, लेखक – एसी ठाकुर

जब वह मिली तो बहुत उदास सी लगी थी. अलबत्ता वह मां तो बन चुकी थी. एक खूबसूरत बेटी थी उस की गोद में. ठीक उसी की तरह बड़ीबड़ी आंखें और हलकी चपटी नाक. वह गुमसुम बैठी कहीं खोई हुई थी.
‘‘कब आई हो?’’ न चाहते हुए भी मैं ने ही पहले टोक दिया.

मेरी आवाज सुन वह जैसे कहीं से तुरंत वापस हुई हो, बोली, ‘‘ओह, आप हैं… नमस्कार…’’ थोड़ी सी सूखी मुसकराहट उस के होंठों पर तैर गई. उस ने अपने पल्लू को तुरंत ठीक किया. अपने माथे को पोंछने के अंदाज में हाथ फिराया. सहज होने की भरसक कोशिश की. कुछ पलों की यह कोशिश बहुतकुछ कह गई.

‘‘आप बैठिए न,’’ कहते हुए वह सोफे पर एक किनारे खिसक गई.

‘‘कब आई हो?’’ मैं ने सवाल दोहराया.

‘‘कल ही तो…’’

‘‘क्या आनंद बाबू भी आए हैं?’’

उस ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘तो फिर किस के साथ आई हो?’’

इस बार उस की नजरें झुक गईं. चेहरे पर बल पड़ता दिखाई दिया. फिर वह बोली, ‘‘अकेली.’’

‘‘सच? वाह, तब तो तुम बहुत होशियार हो गई हो.’’

‘‘होशियार हुई नहीं, होने जा रही हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब जानना चाहेंगे?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मैं ने आप के आनंद बाबू से तलाक ले लिया है.’’

‘‘क्या?’’ मैं हैरानी से उसे देखता रह गया.

‘‘यह सच है…’’ वह धीरे से बोली.

यह सुन कर मेरी धड़कन तेज हो गई.

‘‘मैं दोबारा अपनी जगह वापस आना चाहती हूं. लेकिन कुछ वक्त के बाद. पहले मैं अकेली थी, अब मेरी छोटी सी बेटी भी है. इतना ही नहीं, पहले मैं घमंडी थी, अब ऐसी बात नहीं है,’’ वह थोड़ा रुकी, फिर बोली, ‘‘लेकिन ठहरिए, क्या मेरी ‘जगह’ मुझे अपना लेगी? यही चिंता है…’’

‘‘तुम्हें हैरानी होगी कि उस ‘जगह’ को भूचाल भी नहीं बदल सका. वह न हिली है, न डुली है. आज भी पहले जैसी है,’’ इस बार अनचाहा सन्नाटा छा गया.

मैं ने सोफे पर बैठेबैठे आंखें चारों ओर घुमाईं. उस वक्त कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा था. वह घर अतीत को हूबहू जीने लगा था.

मैं यानी किशन और काकुली साथसाथ पढ़ते थे. मैं था शांत और वह नटखट. मैं पढ़ने में तेज और वह नाचने और गाने में. वह पिता की तीसरी और आखिरी औलाद थी. 2 बड़े भाई थे. वह घरभर की दुलारी थी, बड़े बाप की बेटी. घर में किसी चीज की कमी न थी.

मेरे पिता की काकुली के पिता से दोस्ती थी. मैं बचपन से ही वहां आताजाता था, कोई रोकटोक नहीं. सच पूछिए, तो कब हम दोनों में प्यार हुआ, जानता नहीं.

समय बीता. काकुली पीछे छूट गई, मैं आगे बढ़ा. मैं बैंक में अफसर बन गया. मेरी शादी हुई. बीवी काफी वक्त साथ रही. खुश थी. मुझे बहुत मानती थी. किंतु एक बात उसे बरदाश्त नहीं थी कि मैं काकुली की खूबसूरती का बखान करूं. इस बात पर वह रूठ जाती थी.

काकुली का तब तक मुझ से और मेरा उस से लगाव भर बाकी था. वह कभीकभार मेरी बीवी से
मिलने के बहाने आ जाती थी.

एक दिन पत्नी ने काकुली से कहा था, ‘‘तुम रविवार को मेरे यहां मत आया करो.’’

काकुली हंस कर टाल गई थी, पर चोट गहरी थी.

बैंक के अफसर को फुरसत कम ही मिल पाती है, इसलिए बीवी कहती, ‘‘एक तो काकुली है और यह बैंक भी मेरी सौत हो गया है.’’

इस बात पर हम दोनों हंसते थे, किंतु इस में कहीं न कहीं सचाई थी. फिर भी, हम दोनों में काफी मेलमिलाप था.

किंतु, कुदरत का विधान मेरे लिए कुचक्र रच चुका था. मेरी पत्नी मां बनने वाली थी. दर्द शुरू होते ही डाक्टर के यहां ले गया.

डाक्टर ने जांच के बाद बताया, ‘‘बच्चा पेट में मर चुका है. जच्चा बच जाए, यही काफी है. हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं.’’

उसी दरमियान मेरी बीवी ने हमेशाहमेशा के लिए आंखें मूंद लीं.

घर में कुहराम मच गया. मैं पागल सा हो गया. काकुली, उस की मां और दूसरे सभी लोग आए. सब ने
धीरज बांधने की पूरी कोशिश की.

मैं ने बैंक से छुट्टी ले ली. माहौल बदलने के लिए पिताजी और काकुली की मां की जिद पर उस के यहां भी भेज दिया गया.

मैं धीरेधीरे सहज होने लगा. काकुली ने अपनी भरपूर कोशिश से मुझे उदासी से दूर करना चाहा था. अब उस के साथ गुजरा पुराना जमाना भी मेरा पीछा करने लगा था.

कुछ दिनों बाद काकुली से मौका पा कर बोला, ‘‘मैं दूसरी शादी तुम से करना चाहता हूं.’’

काकुली ने मेरे हाथ झटक दिए और दूर हट गई.

‘‘याद करो वह दिन, जिस दिन तुम्हारी शादी थी,’’ वह अकड़ कर बोली, ‘‘मैं ने खबर भेजी थी कि तुम एक बार मुझ से मिलो, पर तुम ने साफ इनकार कर दिया था. मुझे तुम्हारे लिए हमदर्दी है, पर इस का मतलब…’’

‘‘मैं ने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया था…’’ मैं ने बीच में ही सफाई देनी चाही, ‘‘असल में, मैं बहुत परेशान था. वह शादी तो जबरदस्ती की थी… तुम सब जानती हो.’’

‘‘मैं सब जानती हूं,’’ काकुली गुस्से से बोली.

मैं उठ कर पिछले दिनों की तरह उसे पकड़ने लगा, उसे बांहों में भरना चाहा. पर वह छिटक गई और चीख कर बोली, ‘‘खबरदार, जो इस निगाह से फिर देखा,’’ और वह सीढि़यां उतरती चली गई.

मैं उस दिन बहुत रोया. मौका पा कर काकुली के सामने कई बार गिड़गिड़ाया, पर वह नहीं मानी.

मैं फिर दूसरी शादी नहीं कर पाया. पहली बीवी की याद तो आती ही थी, पर काकुली की याद भी सताती. बीवी के रूप में उसे ही देखा था.

कई बार मां ने समझाया, ‘‘किशन, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? दूसरी शादी कर लो.’’

पर मैं ने इनकार कर दिया था.

सोफे पर बैठाबैठा मैं गुजरे वक्त की यादों में डूबा हुआ था कि नौकरानी ने आ कर हम दोनों के सामने चाय रखी.

‘‘क्या सोच रहे हैं? आप चाय पीजिए,’’ चुप्पी तोड़ते हुए काकुली बोली.

मैं ने चाय लेते हुए कहा, ‘‘काकुली, यह ‘आपआप’ सुन कर मेरे कान पक गए.’’

वह चुप रही.

मैं ने पूछा, ‘‘पर तुम ने अपने पति से तलाक क्यों लिया?’’

‘‘तलाक?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं तंग आ चुकी थी उन के बरताव से, उन की दौलत के नशे से, उन के दोस्तों से, उन की लत से. महीने में एक दिन आना, न आना, शराब पीना, छोटीछोटी बातों पर मुझे पीटना, गालियां देना,’’ काकुली गुस्से में बोल रही थी.

मुझे काकुली पर बहुत प्यार आ रहा था, वहीं डर भी हो रहा था कि कोई आ न जाए. मैं ने इधरउधर झांका, फिर आ कर उस के पास बैठते हुए कहा, ‘‘यकीन करो, तुम्हें पहली जगह जरूर मिलेगी.’’

मैं अपने रूमाल से काकुली के आंसू पोंछ ही रहा था कि सीढि़यों से किसी के आने की आवाज सुनाई दी. मैं छिटक कर दूर हट गया.

तभी नौकरानी काकुली की 6 महीने की बेटी को लिए अंदर आई और बोली, ‘‘यह जग गई थी, इसे भूख लगी है.’’

वह बड़ी प्यारी गुडि़या थी. मैं ने झपट कर उसे उठा लिया और चूमते हुए कहा, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है.’’

बच्ची जोरजोर से चिल्लाने लगी. काकुली चुपचाप मुसकराते हुए हमें देखती रही. मैं बेखबर बच्ची को
चूमता रहा. Hindi Family Story

Hindi Kahani: धंधेवाली का दर्द

Hindi Kahani: सैक्स वर्करों के दर्द पर लेख तैयार करने के लिए विनय रैडलाइट एरिया पहुंचा. शहर की भीड़ से हट कर गंदी सी बस्ती में देह धंधे की एक ऐसी मंडी, जहां इनसानी सोच की बदबू को दबाने के लिए अलगअलग दड़बेनुमा कमरों से मोगरा, चमेली से ले कर रूम फ्रैशनर की मिलीजुली महक बाहर आ रही थी.

कम उम्र की लड़कियों से ले कर अधेड़ उम्र वाली औरतें सजधज कर ऐसे तैयार बैठी थीं, जैसे शोरूम में पुतले के ऊपर ब्रांडेड कपड़े नुमाइश के लिए रखे गए हों.

कस्टमर समझ कर हर कोई विनय को अपनी ओर लुभाने और रिझाने की कोशिश कर रही थी. किसी के चेहरे पर असली मुसकराहट थी, तो कोई बनावटी मुसकान बिखेर रही थी.

इसी दौरान सामने से आ रही जींसटीशर्ट पहने एक लड़की ने विनय की कमर में हाथ डाल दिया और बोली ‘‘साथ ले चलोगे या मेरे साथ चलोगे… फुलटाइम या पार्टटाइम?’’

विनय ने अपनी कमर से उस लड़की का हाथ हटाते हुए समझाया, ‘‘अरे, आप गलत समझ रही हैं. दरअसल, मैं एक पत्रकार हूं…’’

‘‘तो इस में समझना क्या है बाबू. पत्रकार ‘करते’ नहीं क्या?’’ इस भद्दी सी बात के साथ उस लड़की ने अपनी मुसकान बिखेरी.

विनय उस लड़की को समझाने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘देखो…’’

‘‘दिखाओ…’’ बीच में ही टोकते हुए उस लड़की ने कहा और हंस पड़ी.

विनय झेंपते हुए बोला, ‘‘देखिए, मैं आप लोगों की जिंदगी पर एक प्रोजैक्ट तैयार कर रहा हूं, जिस से आप की बदहाली को सरकार तक पहुंचाया जा सके, ताकि सरकार आप लोगों के लिए अच्छी जिंदगी का इंतजाम कर सके.’’

‘‘अरे छोडि़ए साहब, हमारी इज्जत और जिंदगी को. हम तो नरक के पिल्लू हैं, नरक में ही जीना और नरक में ही मरना…

‘‘अब चलो, मजा लेते हैं. फुलटाइम सर्विस में कुछ डिस्काउंट दे दूंगी, आखिर पत्रकार जो ठहरे…’’ उस लड़की ने विनय की बात को हंसी में टालते हुए कहा और विनय की छाती पर हाथ फेरने लगी.

उस लड़की के इस बरताव से विनय काफी चिढ़ गया. वह गुस्से में तमतमाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम लोगों के भले के लिए कुछ तैयार कर रहा हूं, ताकि प्रशासन और सरकार के सामने उस रिपोर्ट को रख सकूं. मैं चाहता हूं कि तुम्हें सभ्य समाज में इज्जत की जिंदगी और रोजगार मिल सके और तुम धंधे की बात कर रही हो…

‘‘आखिर हो तो धंधेवाली ही न और वह तो समाज के बजाय कोठे पर ही अच्छी लगती है…’’ इतना कह
विनय वहां से आगे बढ़ गया.

‘‘एक मिनट साहब,’’ पीछे से आवाज देते हुए उस लड़की ने विनय को रोका.

विनय अनमने ढंग से रुक गया. वह लड़की आगे बोली, ‘‘किस इज्जत और रोजगार की बात आप करते हैं साहब… कई बार दोबारा बसाने के नाम पर हमारी बस्तियों को तोड़ा गया है, लेकिन रोजगार तो मिलता नहीं कुछ…

‘‘धंधेवाली का लेबल लगा है, सो गांव में दुकान भी खोलना चाहें, तो लोग दुकानदार के बजाय हमें बिकाऊ माल ही समझते हैं और फिर पेट पालने के लिए नैशनल हाईवे, बसस्टैंड, लौज या धुलाई के लिए स्टेशन यार्ड में खड़ी रेलगाड़ी के डब्बों को ही अपना आशियाना बनाना पड़ता है… बात करते हैं दोबारा बसाने और रोजगार की.

‘‘और हां, यह जो समाज या सरकार की बात कर रहें है न आप, तो कभी आइए शाम में हमारे कोठे पर, फिर देखिए आप को आप का तथाकथित सभ्य समाज वहीं मिल जाएगा और आप के सरकारी नुमाइंदों की पतलून धंधेवालियों के पलंग के नीचे…

‘‘और रही बात सरकार की, तो वीआईपी और माननीय महोदय के लिए हर रात छोटी उम्र की सील पैक फ्रैश माल उन की सरकारी कोठी पर भेज दी जाती हैं…

‘‘अब आप ही बताओ कि अगर हमारी दुकान बंद हो जाएगी, तो तुम्हारी सरकार कैसे चलेगी?’’

उस लड़की के भद्दे और तीखे शब्दों की चोट में छिपे दर्द ने विनय को सभ्य समाज के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया. Hindi Kahani

Social Story In Hindi: भटका हुआ नेता

Social Story In Hindi अमन एक छोटे से कसबे से निकल कर बड़े शहर के नामी कालेज में आया था. वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए बहुत जोश में था, लेकिन कालेज का माहौल उस की उम्मीद से बिलकुल अलग था. वहां पढ़ाईलिखाई से ज्यादा दबदबे और राजनीति का जोर था.

कालेज के कुछ छात्र, जो खुद को ‘छात्र नेता’ कहते थे, पूरे कैंपस में अपनी धाक जमाए हुए थे. उन के पीछे लोकल नेताओं का हाथ था, इसलिए वे मनमानी करते थे और कोई भी उन के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था.

अमन ने खुद को इन सब चीजों से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन ऐसे नेता हर जगह थे… क्लासरूम, कैंटीन, यहां तक कि लाइब्रेरी में भी.

वे पढ़ाईलिखाई के बजाय राजनीति और गुंडागर्दी में बिजी रहते थे.

क्लास में प्रोफैसरों से बहस करना और उन पर दबाव बनाना उन की आदत बन गई थी.

कई बार कालेज के ये तथाकथित छात्र नेता प्रोफैसरों के साथ बहुत ही गलत बरताव करते थे. वे अपनी मरजी से क्लासरूम में आतेजाते थे, फिर चाहे लैक्चर चल रहा हो या नहीं. जब भी प्रोफैसर उन्हें अनुशासन में रहने के लिए कहते, तो वे उलटा उन्हें ही धमकाना शुरू कर देते.

छात्र राजनीति का जाल ऐसा फैला कि कालेज की दीवारों पर नारे लिखे जाने लगे और क्लासरूम बहस का अड्डा बन गए.

रवि कालेज का सब से खतरनाक और असरदार छात्र नेता बन चुका था. कुछ ही समय में उस ने अपने ग्रुप के साथ कालेज पर ऐसा कब्जा जमा लिया था कि बाकी छात्र और यहां तक कि प्रोफैसर भी उस से डरने लगे थे. छात्र राजनीति में उस की पकड़ इतनी मजबूत हो गई थी कि लोग उसे ‘नेताजी’ कहने लगे थे.

रवि की दबंगई का आलम यह था कि उस की मौजूदगी में पूरा क्लासरूम सहम जाता था. उस का रवैया इतना खतरनाक हो चुका था कि वह किसी की भी इज्जत करने को तैयार नहीं था.

एक दिन जब प्रोफैसर शर्मा ने रवि को क्लास में देर से आने पर टोका, तो उस ने पूरी क्लास के सामने उन की बेइज्जती करनी शुरू कर दी.

‘‘आप को यहां पढ़ाने के लिए रखा गया है, हमारे बौस मत बनिए,’’ रवि ने तंज कसते हुए कहा.

प्रोफैसर शर्मा ने जब रवि को शांत रहने को कहा, तो वह और ज्यादा भड़क गया. गुस्से से उस ने जवाब दिया, ‘‘हमारी पौलिटिकल पहुंच का अंदाजा है आप को? हम चाहें तो एक फोन कर के आप का ट्रांसफर करवा सकते हैं.’’

यह सुनते ही क्लास में सन्नाटा छा गया. प्रोफैसर शर्मा भले ही उम्र में बड़े थे, लेकिन वे इस तरह की धमकियों से डरने वाले नहीं थे. उन्होंने शांत रहते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यहां पढ़ाई करनी चाहिए, राजनीति नहीं. यह तुम्हारे भविष्य के लिए सही नहीं है.’’

रवि हंसते हुए बोला, ‘‘आप का जमाना चला गया, सर. अब हम जैसे लोगों का वक्त है. देखना, इस कालेज में अब वही होगा, जो हम चाहेंगे.’’

रवि का असर धीरेधीरे पूरे कालेज पर दिखने लगा. उस की बातें हवा में उड़ती जरूर थीं, लेकिन उन के पीछे छिपी असंतोष की चिनगारी छात्रों के मन में गहरी पैठ बना रही थी. वह न केवल अपने विचारों से, बल्कि अपनी बोलने की कला और शानदार शख्सीयत से भी छात्रों को अपनी तरफ खींच रहा था. उस का ग्रुप, जो पहले केवल कुछ दोस्तों तक सीमित था, अब धीरेधीरे एक बड़ा और ताकतवर संगठन बनता जा रहा था.

रवि ने छात्रों को भरोसा दिलाया कि वे केवल पढ़ाईलिखाई के लिए नहीं, बल्कि अपने हकों के लिए लड़ने को भी कालेज में हैं. उस के इन विचारों ने एक क्रांतिकारी लहर को जन्म दिया. ‘छात्र एकता जिंदाबाद’ के नारों से कालेज की दीवारें गूंजने लगीं.

रवि ने कालेज प्रशासन के खिलाफ एक मजबूत मोरचा खड़ा कर दिया और छात्रों को यह यकीन दिलाया कि अगर वे संगठित रहेंगे, तो प्रशासन उन की किसी भी मांग को नजरअंदाज नहीं कर पाएगा.

छोटेछोटे मुद्दों को ले कर हड़तालें होना अब रोजमर्रा की बात हो गई थी. कैंटीन के बढ़े हुए दाम हों या लाइब्रेरी में किताबों की कमी, हर मुद्दा छात्रों के लिए अब एक बड़ा आंदोलन बन जाता. रवि का हर शब्द उन्हें जद्दोजेहद करने के लिए उकसाता.

धीरेधीरे कालेज में एक असंतोष की भावना बढ़ने लगी. छात्र खुद को पहले से ज्यादा ताकतवर महसूस करने लगे, लेकिन इस ताकत के साथ एक सवाल यह भी था कि क्या यह लड़ाई सही दिशा में जा रही थी?

इस उथलपुथल के बीच कालेज प्रशासन भी अब इस बढ़ते विद्रोह से निबटने की योजना बनाने लगा था.
प्रिंसिपल श्रीवास्तव इन घटनाओं से परेशान थे. उन्होंने कई बार रवि को समझाने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह उग्र प्रदर्शन करने की धमकी देता.

आखिरकार प्रिंसिपल ने सख्त कदम उठाते हुए रवि को कालेज से निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया.

यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई. रवि ने इसे अपने खिलाफ राजनीतिक साजिश बताया और अपने दोस्तों को उकसाया, ‘‘देखो, कालेज प्रशासन हमें दबाना चाहता है. हमें मिल कर इस का जवाब देना होगा.’’

अगले ही दिन कालेज में छात्रों की एक बड़ी सभा हुई. नारे और तेज हो गए… ‘प्रिंसिपल मुर्दाबाद’, ‘छात्रों का शोषण बंद करो, बंद करो’.

रवि कालेज के बाहर धरने पर बैठ गया और राजनीतिक दलों ने इस का फायदा उठाते हुए उसे समर्थन देना शुरू कर दिया. लोकल नेताओं ने छात्रों के बीच भाषण दे कर आंदोलन को और भड़काया.

छात्रों में गुस्सा बढ़ गया और वे रवि के निलंबन को गलत मानने लगे. राजनीतिक दलों की दखलअंदाजी
से यह आंदोलन कालेज से बाहर निकल कर एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया.

निलंबन के बाद रवि ने खुद को छात्रों का मसीहा बना लिया. धरने और प्रदर्शनों ने उस के राजनीतिक सफर की शुरुआत की और उस की लोकप्रियता बढ़ती गई.

स्थानीय दलों ने उसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश की और जल्दी ही रवि ने एक मनचाही पार्टी चुन ली,
जिस से उस की पहचान और मजबूत हो गई.

जल्द ही रवि चुनाव प्रचार में जुट गया और उस के जोरदार भाषणों व छात्रों के समर्थन ने उसे राजनीति का उभरता सितारा बना दिया. रवि का असर अब कालेज से निकल कर सियासत के गलियारों तक पहुंच चुका था.

समय के साथसाथ उस राजनीतिक दल ने रवि को अपनी युवा विंग में शामिल कर लिया, जिस से उस का राजनीतिक सफर और तेज हो गया. वह अब सिर्फ छात्र नेता नहीं रहा, बल्कि लोकल राजनीति में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा.

जब भी किसी कालेज या यूनिवर्सिटी में कोई विवाद उठता, रवि तुरंत वहां पहुंच कर छात्रों को संगठित करता और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करता. उस की बढ़ती ताकत और असर ने उसे बड़े नेताओं के साथ मंच साझा करने का मौका दिया और वह राजनीति में एक उभरते हुए चेहरे के रूप में नाम कमाता चला गया.

कुछ सालों बाद रवि स्थानीय चुनावों में खुद भी उम्मीदवार बन गया. उस की पहचान एक साहसी युवा नेता के रूप में बन चुकी थी, जिस का छात्र राजनीति से ऊपर उठ कर बड़ी राजनीति में कदम रखने का सपना था. आखिरकार, उस ने अपना पहला चुनाव जीता और वह विधायक बन गया.

विधायक बनने के बाद रवि के सामने बेरोजगारी दूर करने का वादा सब से बड़ी चुनौती बन गया. चुनाव प्रचार में उस ने नौजवानों को रोजगार का सपना दिखाया था, लेकिन सत्ता में आते ही हकीकत का सामना करना पड़ा. बेरोजगारी सिर्फ भाषणों से हल नहीं हो सकती थी, बल्कि इस के लिए तो नीतियों और इन्वैस्टमैंट की जरूरत थी. अनुभव की कमी के चलते रवि की शुरुआती कोशिशें सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहीं और वह ठोस समाधान पेश करने में नाकाम रहा.

रवि के समर्थक तब धीरेधीरे निराश होने लगे, जब उन्हें एहसास हुआ कि उस की राजनीति सिर्फ वादों पर टिकी थी, लेकिन उन्हें पूरा करने की ताकत उस में नहीं थी. चुनाव जीतने के बाद रवि के सियासी सपने बढ़े, लेकिन बेरोजगारी और पढ़ाईलिखाई जैसे असली मुद्दे अनदेखे रह गए.

बेरोजगारी से निबटने में नाकाम रवि का राजनीतिक कैरियर तो आगे बढ़ता गया, लेकिन वादे अधूरे रह गए. छात्रों में हताशा और गुस्सा पनपने लगा और वे खुद को उस के राजनीतिक एजेंडे का मोहरा महसूस करने लगे.

कई छात्र जब अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी तलाशने लगे, तो उन्हें याद आया कि रवि ने वादे किए थे कि वह उन के लिए रोजगार के मौके पैदा करेगा. कुछ छात्र इस उम्मीद के साथ रवि के पास गए कि उस की राजनीतिक पहुंच और दबदबे से उन्हें आसानी से नौकरी मिल जाएगी.

लेकिन जब वे रवि से मिले, तो उन्हें हकीकत का सामना करना पड़ा. रवि अब एक बिजी और ताकतवर विधायक बन चुका था और उसे अपने शुरुआती समर्थकों की परवाह नहीं थी.

रवि ने कहा, ‘‘सरकार की नीतियां फिलहाल बदल रही हैं, इसलिए थोड़ा इंतजार करो. मैं तुम्हारे लिए जरूर कुछ करूंगा, लेकिन अभी समय सही नहीं है.’’

छात्रों को झूठे दिलासे और वादे मिलते रहे, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया.

रवि के कुछ दोस्तों ने छात्रों को बताया कि विधायकजी बहुत बिजी हैं, इसलिए वे महीनों तक रवि के दफ्तर के चक्कर काटते रहते और उन की फाइलें धूल खाती रहतीं. रवि के कुछ चाटुकार पैसे के बदले छात्रों को उस से मिलने का मौका देते थे.

कुछ मामलों में तो रवि ने साफसाफ कह दिया कि वह तभी मदद करेगा, जब छात्र उस के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा होंगे. इस से छात्रों को एहसास हो गया कि रवि सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए उन का इस्तेमाल कर रहा है.

रवि अब राजनीति में पूरी तरह रचबस गया था. उस के इर्दगिर्द हमेशा नए चेहरे रहते थे… कभी चमचों की टोली, तो कभी खूबसूरत लड़कियां. कालेज के दिनों से ही रवि की नजर लड़कियों पर रहती थी. विधायक बनने के बाद यह सब और भी बढ़ गया.

रवि की लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए कई लड़कियां खुद उस के करीब आने की कोशिश करती थीं. उन में से नेहा भी एक थी, जो कालेज में रवि की समर्थक थी. राजनीति का उसे भी चसका लग चुका था. उस ने सोचा कि रवि के करीब रह कर वह भी राजनीति में अपना कैरियर बना लेगी.

लेकिन रवि के लिए नेहा सिर्फ एक शौक थी. वह उसे कभीकभार अपने साथ मीटिंग में ले जाता, उस के हावभाव की तारीफ करता और फिर उसे नजरअंदाज करना रवि का रवैया बन गया था.

इसी तरह रवि को हर पड़ाव पर एक नई लड़की मिलती रही. उस के पास अपने लोगों के लिए समय नहीं था, क्योंकि वह हमेशा किसी न किसी लड़की की बांहों में रहता था. यहां तक कि लोग भी अपना काम करवाने के लिए लड़कियों को उस के पास भेजते थे.

मीरा, जो अपनी नौकरी में मदद मांगने रवि के पास आई थी, को रवि ने यह कह कर अपने करीब खींच लिया कि तुम्हारे जैसे सम?ादार लोगों को राजनीति में होना चाहिए.

मीरा को लगा कि रवि उस की प्रतिभा को पहचान रहा है, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे एहसास हुआ कि वह रवि की ‘सोशल मीडिया शोपीस’ थी, जिसे उस ने बेकार कर छोड़ दिया था.

बाद में कई छात्रों ने भी महसूस किया कि राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के चलते वे अपनी पढ़ाई और स्किल से दूर हो गए थे. जब वे नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गए, तो उन्हें यह एहसास हुआ कि उन के पास न तो सही जानकारी थी और न ही जरूरी काबिलीयत, जिस से वे नौकरी पाने की दौड़ में टिक पाते.

नतीजतन, बहुत से छात्रों को निराशा हाथ लगी. उन्होंने रवि से जो उम्मीदें लगाई थीं, वे मिट्टी में मिल गई थीं. उन की नौकरियों की तलाश अधूरी रही और वे धीरेधीरे यह समझने लगे कि रवि की राजनीति ने उन के भविष्य को संवारने के बजाय बरबाद कर दिया था.

रवि की फायदे की राजनीति ने कई छात्रों को छात्र राजनीति से हटा दिया. वे अब इसे पढ़ाईलिखाई और कैरियर के लिए हानिकारक मानने लगे थे.

जो छात्र पहले अपने हकों के लिए जद्दोजेहद करते थे, वे अब राजनीति से दूर हो कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगे. इस से छात्र राजनीति धीरेधीरे कमजोर हो गई.

कुछ समय बाद रवि के समर्थक ही उस के विरोधी बन गए. छात्रों ने कालेजों में रवि के खिलाफ पोस्टर लगाए और उसे धोखेबाज करार दिया. सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ लिखा गया. औनलाइन अभियान चला कर उस की नीतियों और वादों की कड़ी आलोचना की. नतीजतन, रवि अगला चुनाव बुरी तरह हार गया और उस की राजनीतिक जमीन खिसक गई.

रवि ने देखा कि अमन, जो कालेज के दौरान राजनीति से दूर रह कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था, अब एक आईएएस बन चुका था और समाज में इज्जत पा रहा था.

एक मुलाकात में अमन ने रवि को समझाया, ‘‘सच्ची कामयाबी लोगों की भलाई और अपने फर्ज निभाने में है, न कि केवल राजनीति में पद और पावर हासिल करने में.’’

रवि को एहसास हुआ कि अमन की मेहनत और अनुशासन ने उसे असली कामयाबी दिलाई, जबकि उस ने खुद सत्ता की भूख में अपना असली मकसद खो दिया था. Social Story In Hindi

Hindi Family Story: बहन बनी दुश्मन

Hindi Family Story: अफसाना का जब से अपने शौहर से तलाक हुआ था और वह उसे छोड़ कर अपने मायके आई थी, तब से उस के अंदर अपनी बहन शहाना के लिए एक अलग ही किस्म की जलन थी. वह नहीं चाहती थी कि शहाना का निकाह हो और वह खुश रहे.

शादी से पहले अफसाना मोटी और सांवले रंग की एक साधारण सी लड़की थी. उस की उम्र भी काफी हो चुकी थी. उस के लिए जो भी रिश्ते आते थे, वे अफसाना की जगह शहाना को पसंद करते थे, जिस से अफसाना की वक्त रहते शादी नहीं हो पा रही थी और उस की उम्र बढ़ती ही जा रही थी.

इस के उलट शहाना देखने में गदराए बदन के साथसाथ खूबसूरती का भंडार थी. जो भी उसे देखता, बस देखता रह जाता. बड़ीबड़ी आंखें, सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे.
अफसाना और शहाना की उम्र में 7 साल का फर्क था और उस के अम्मीअब्बू पहले अफसाना की शादी करना चाहते थे, ताकि सही वक्त पर उस की घरगृहस्थी बस जाए, तो उस के बाद शहाना के निकाह के बारे में सोचें.

वैसे भी अभी शहाना की उम्र सिर्फ 17 साल थी, जबकि अफसाना 24 पार कर चुकी थी. शहाना की खूबसूरती और चंचलता देख कर अब अफसाना के दिल में धीरेधीरे शहाना के प्रति जलन पैदा होने लगी थी और वह अंदर ही अंदर शहाना से कुढ़ने लगी थी, क्योंकि अपनी शादी न होने की वजह वह शहाना को ही मान रही थी, इसलिए वह उस के लिए अपने दिल में नफरत भरती जा रही थी.

कहते हैं न कि हर चीज का एक वक्त होता है, ठीक ऐसा ही अफसाना के साथ भी हुआ और आखिरकार उस का रिश्ता पक्का हो गया और जल्द ही अफसाना का निकाह सुहेल से हो गया और वह दुलहन बन कर अपनी ससुराल पहुंच गई.

सुहेल के साथ शादी होने के बाद अफसाना जितना खुश थी, उस से कहीं ज्यादा उस के अम्मीअब्बू खुश थे, क्योंकि बड़ी मुश्किल से यह रिश्ता हुआ था.

सुहेल और अफसाना हंसीखुशी अपनी जिंदगी गुजार रहे थे. शादी को एक महीना बीत चुका था. शहाना भी अकसर अफसाना की सुसराल आतीजाती रहती थी. कभीकभार सुहेल भी अफसाना के साथ अपनी सुसराल आता रहता था.

शहाना जल्द ही सुहेल से काफी घुलमिल गई थी और खूब हंसीमजाक करने लगी थी. सुहेल भी धीरेधीरे उस की तरफ खिंचने लगा था.

इसी हंसीमजाक में सुहेल अकसर शहाना के नाजुक अंगों से भी छेड़छाड़ करता था और उस की उठी हुई मस्त छातियों पर हाथ तक फेरने से वह नहीं झिझकता था.

शहाना सुहेल की इस हरकत का बुरा नहीं मानती थी, तो सुहेल की हिम्मत बढ़ती चली गई.

एक दिन ऐसी घटना भी हो गई कि जिस ने अफसाना और सुहेल के बीच में ऐसी लकीर खींच दी, जिस से वे हमेशाहमेशा के लिए एकदूसरे से अलग हो गए.

हुआ यों था कि घर के सभी लोग कहीं बाहर गए थे. घर में शहाना और सुहेल के आलावा कोई नहीं था. अच्छा मौका देख कर सुहेल ने शहाना को अपनी बांहों में भरा और बिस्तर पर ले जाने लगा.

शहाना बोली, ‘‘जीजू, यह क्या कर रहे हो. छोड़ दो मुझे. दीदी को पता चलेगा तो वे बहुत गुस्सा होंगी. छोड़ दो मुझे. नीचे उतारो.’’

सुहेल ने अभी शहाना को गोद में उठा ही रखा था कि अचानक अफसाना अपने अम्मीअब्बू के साथ घर में आ गई.

शहाना को सुहेल की गोद में देख कर अफसाना का खून खौल उठा और वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘शहाना, तुम्हें शर्म नहीं आती अपने जीजू के साथ यह सब गंदी हरकत करते हुए…’’

शहाना बोली, ‘‘दीदी, मैं तो कब से जीजू को मना कर रही थी, पर ये ही जबरदस्ती मुझे अपनी गोद में उठा कर ले जा रहे थे.’’

यह सुनते ही अफसाना गुस्से से तिलमिला उठी और सब के सामने उस ने सुहेल के मुंह पर एक जोरदार तमाचा रसीद करते हुए उसे बुराभला कह कर घर से निकाल दिया.

बस, फिर क्या था. सुहेल को यह बात इतनी बुरी लगी कि कुछ ही दिनों में अफसाना और सुहेल का तलाक
हो गया.

अफसाना और उस के घर वालों ने सुहेल को बहुत समझाने की कोशिश की, अफसाना ने भी अपनी गलती की माफ़ी मांगी, पर सुहेल अपनी जिद पर अड़ा रहा.

अफसाना की जिंदगी देखते ही देखते बरबाद हो चुकी थी और उस के मन में शहाना के लिए नफरत भर चुकी थी.

घर वाले अब शहाना के लिए रिश्ता ढूंढ़ने में लगे थे. कई रिश्ते आ भी रहे थे, पर जब भी वे शहाना को देखने आते तो अफसाना उन के सामने अपनी बहन की खूबसूरती की तारीफ करतेकरते यह भी बता देती कि शहाना इतनी खूबसूरत है कि इस के हुस्न के दीवाने कुंआरे ही क्या, शादीशुदा भी हैं. वह अपने शौहर वाली बात का भी जिक्र कर देती थी कि वे तो शहाना को गोद में उठाए फिरते थे.

अफसाना की ऐसी बातें सुन कर रिश्ते वाले रिश्ता करना तो दूर मुंह बना कर वहां से चले जाते थे.

शहाना समझ चुकी थी कि उस की बहन उस के लिए जलन रखती है. वह नहीं चाहती है कि उस का घर बसे और वह खुश रहे.

पर एक दिन अफसाना जब अपनी खाला के घर गई थी, तो शहाना को देखने वाले आए और उसे पसंद कर के उन्होंने रिश्ता तय कर दिया.

जब अफसाना को इस बात का पता चला तो वह उन के घर पहुंच गई और बोली, ‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया, जो आप ने मेरी बहन को पसंद किया और शादी के लिए हां बोल दी.’’

लड़के ने कहा, ‘‘इस में शुक्रिया की क्या बात है. आप की बहन शहाना है ही इतनी खूबसूरत कि जो भी उसे देखे, बस देखता रह जाए.’’

अफसाना बोली, ‘‘आप ने एकदम सही कहा. शहाना जैसी खूबसूरत लड़की तो लाखो में एक होती है. उस की खूबसूरती के तो शादीशुदा मर्द भी दीवाने हैं.’’

लड़के के अब्बा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘क्या मतलब? हम समझे नहीं?’’

अफसाना ने कहा, ‘‘मेरे शौहर तो शहाना के ऐसे दीवाने थे कि उन्हें अपनी बीवी से ज्यादा उसी में लगाव था. उसे हर वक्त अपनी बांहों में उठाए फिरते थे और उसी की खातिर मुझे तलाक दे दिया.’’

यह बात सुन कर लड़के के अब्बा ने कहा, ‘‘कितने घटिया लोग हैं. हमें नहीं करनी ऐसी लड़की से शादी जो अपने जीजा के साथ रंगरेलिया मनाती हो.’’

अगले ही दिन उन लोगों ने शहाना से यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि हम तो इसे सीधीसादी लड़की समझ रहे थे. हमें क्या मालूम था कि यह अपने जीजा के साथ भी चक्कर चला चुकी है.

शहाना के घर वालों को यह समझते देर न लगी कि जरूर उन के कान अफसाना ने भरे हैं. अफसाना इस हद तक गिर जाएगी, उन्होंने सोचा भी न था.

इसी तरह 3 साल गुजर गए. न तो कोई अफसाना को ही अपना पा रहा था और शहाना का भी रिश्ता नहीं हो पा रहा था. दोनों बहनें एकदूसरे से बहुत ज्यादा जलने लगी थीं.

थोड़ा वक्त और गुजरा तो शहाना के लिए एक जगह रिश्ता भी मिल गया. लड़का शाहिद शहाना के हुस्न का दीवाना बन बैठा था और वह किसी भी कीमत पर उस से शादी करने को तैयार था.

इस बार अफसाना की कोई भी बात उस रिश्ते पर नहीं चली. उन्होंने यह कह कर अफसाना को नजरअंदाज कर दिया कि शादी से पहले जो कुछ हुआ, उस से हमें कोई लेनादेना नहीं है.

अफसाना ने बात का रुख मोड़ते हुए कहा, ‘‘वाह, क्या बात है. मुझे बहुत खुशी हुई आप लोगों से मिल कर. दरअसल, मैं भी खुले विचारों वाली ही हूं.’’

अगले दिन अफसाना शाहिद को फोन करते हुए बोली, ‘‘जीजू, क्या कर रहे हो. अगर फुरसत हो तो मेरे साथ बाजार चलो, कुछ खरीदारी करनी है.

शाहिद बोला, ‘‘ठीक है. मैं आप के घर आता हूं. वहीं से दोनों साथ चलेंगे.’’

अफसाना की चाल कामयाब हो गई. वैसे भी शहाना अम्मीअब्बू के साथ खरीदारी करने गई थी. अफसाना ने अपनेआप को संवारा और एक हलकी से गुलाबी रंग की ?ानी नाईटी पहन कर शाहिद के आने का इंतजार करने लगी.

कुछ ही देर में दरवाजे पर दस्तक हुई. अफसाना ने फौरन दरवाजा खोला, तो सामने शाहिद खड़ा था.

अफसाना बोली, ‘‘जीजू, आप अंदर आ जाओ. अम्मीअब्बू शहाना को ले कर कहीं गए हैं.

शाहिद अफसाना का यह रूप देख कर हैरान था. उस की नजरें अफसाना की उठी हुई छातियों पर टिकी हुई थीं.

अफसाना बोली, ‘‘जीजू, आप क्या देख रहे हो…’’ फिर अपने बदन को शाहिद के करीब लाते हुए वह बोली, ‘‘आप क्या पियोगे जीजू?’’

शाहिद के बदन से जैसे ही अफसाना का बदन का छुआ, उस के बदन में एक अजीब बिजली दौड़ पड़ी. अफसाना भी मस्त हो रही थी.

अफसाना की यह अदा शाहिद के अंदर हवस का तूफान मचाने लगी. उस ने अफसाना की उठी हुई छातियों पर अपना हाथ रख दिया.

‘‘बस इतना ही करोगे क्या?’’ अफसाना सिसक कर बोली.

यह सुनते ही शाहिद ने अफसाना को अपनी बांहों में भर लिया और उस की छातियों पर अपने होंठ रख दिए.

अफसाना ने अपने बदन से नाइटी को ढीला कर दिया और खुद को शाहिद की बांहों में सौंप दिया.

शाहिद पागलों की तरह अफसाना के बदन का रसपान करते हुए उस के बदन से खेलने लगा.

अफसाना मौका देख कर शाहिद और अपने बीच चल रहे प्रेमप्रसंग के फोटो लेती रही.

दोनों जज्बात में बहते रहे और एकदूसरे के बदन से खेलते रहे. अपने बदन की प्यास बुझते ही शाहिद अचानक उठा और वहां से चला गया. अफसाना ने तब तक अपनी और शाहिद की रासलीला की वीडियो क्लिप तक बना ली थी.

शाम को जब शहाना और उस के घर वाले वापस आए, तो अफसाना ने अपने और शाहिद के बीच हो रहे प्रेमप्रसंग की वीडियो क्लिप अपनी बहन शहाना को दिखाते हुए कहा, ‘‘लो देखो अपने होने वाले शौहर की करतूत.’’

शहाना ने जैसे ही अफसाना और शाहिद के फोटो और वीडियो क्लिप देखी, तो वह फूटफूट कर रोने लगी और अपने अम्मीअब्बू से बोली, ‘‘मुझे नहीं करनी ऐसे आदमी से शादी, जो शादी से पहले ही मेरी बहन के साथ ऐयाशी करता हो.’’

इस तरह अफसाना ने शहाना का यह रिश्ता भी अपने जिस्म का सहारा ले कर तुड़वा दिया.

अफसाना के दिल को सुकून मिला और उस की शहाना के लिए पनपी जलन ने दोनों बहनों के रिश्ते को दुश्मनी की ऐसी आग में झोंक दिया, जिस में शहाना का घर कभी नहीं बस पाया. Hindi Family Story

Social Story In Hindi: अमीर भिखारिन

Social Story In Hindi: ‘‘यह क्या है? मैं 10 रुपए से कम नहीं लेती,’’ जैसे ही वरुण ने एक रुपए का सिक्का उस भिखारिन के हाथ पर रखा, तो यह जवाब सुन कर वह हैरान रह गया.

सफेद बालों वाली उस औरत के चेहरे पर तेज था और आवाज के साथसाथ भाषा पर भी अधिकार.
वरुण ने चुपचाप 50 रुपए का नोट निकाला और उस औरत की हथेली पर रख कर पूछा, ‘‘आप तो किसी अच्छे घर की जान पड़ती हैं, फिर यह भीख मांगना समझ नहीं आया?’’

50 रुपए के नोट को खोल कर परखती वह भिखारिन बोली, ‘‘मैं कभी एक अमीर घर से ताल्लुक रखती थी, पर अब मैं यह जो हूं, वह मैं हूं.’’

वरुण उस औरत के बगल में बैठ गया और बोला, ‘‘मैं एक पत्रकार हूं और एक लेखक भी. आप का इतिहास शायद एक उम्दा कहानी समेटे हुए है. अगर आप को एतराज न हो तो मेरे जिज्ञासु मन को शांत करने में मेरी मदद करेंगी?’’

वह औरत जोर से हंसी और बोली, ‘‘जरूर बताऊंगी, पर 500 रुपए फीस लूंगी. बोलो, मंजूर है?’’

वरुण ने जेब टटोली तो 200 रुपए का एक नोट मिला. उस औरत को नोट थमाते हुए वह बोला, ‘‘अभी मेरे पास इतने ही हैं. मैं फिर आ कर बाकी पैसे भी दे दूंगा, पर मुझे आप की कहानी अभी जानने की इच्छा है.’’

वह औरत इस बार धीरे से मुसकराई, कुछ पल वरुण के चेहरे को घूरा, फिर बोली, ‘‘चल, पप्पू चाय वाले के पास चलते हैं. वहां चाय की चुसकी लेते हुए बात करेंगे.’’

अब वे दोनों पैदल 400 मीटर दूर पप्पू चाय वाले की दुकान की तरफ बढ़ चले. चलते ही भिखारिन ने बोलना शुरू किया, ‘‘मेरा नाम प्रभजोत कौर है, पर यहां हरिद्वार में मुझे जानने वाले ‘अमीर भिखारिन’ के नाम से ही जानते हैं. यहां मेरी खूब चलती है. सारे भिखारी मेरी बात मानते हैं. किसी का कोई झगड़ाटंटा होता है, तो मैं ही उस का निबटारा करती हूं. 5 साल हो गए मुझे यहां आए हुए, पर लगता है कि कई सालों से मैं यहीं रह रही हूं.’’

‘‘आप पहले कौन से शहर में रहती थीं?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘सब बताऊंगी, थोड़ा शांति से सुनो. मैं लुधियाना में पलीबढ़ी हूं. मेरे पिता बैटरी का बिजनैस करते थे. मैं पढ़ने में ठीकठाक थी, पर बाकी गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

‘‘शुरू से ही मुझे खूबसूरत दिखने का शौक था, इसलिए 12वीं क्लास पास होते ही मैं ने ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. घर में किसी तरह की रोकटोक नहीं थी, इसलिए मनमरजी से जो करना चाहती, वह कर लेती थी.

‘‘2 साल में मैं ‘मिस लुधियाना’ और फिर ‘मिस चंडीगढ़’ बन गई. जिस दिन मैं ‘मिस चंडीगढ़’ बनी उसी दिन मेरी मुलाकात मनजीत से हुई. वह एक अमीर नौजवान था. उस के 4 शहरों में बड़ेबड़े होटल थे.
‘‘मनजीत मुझ पर फिदा हो गया था और मुझ से शादी करना चाहता था. मुझे भी वह पसंद आने लगा और हमारी शादी हो गई. मैं आजादखयाल लड़की अमृतसर के एक 15 लोगों के संयुक्त परिवार में रहने आ गई.’’

अब तक चाय का गिलास प्रभजोत कौर के हाथ में आ चुका था. उस ने एक गरम घूंट गले से उतारा और फिर कहना शुरू किया, ‘‘बहुत अमीर परिवार था. कार एजेंसी, होटल, टायर बहुत तरह के बिजनैस थे. बेहिसाब कमाई, महल जैसा घर, महंगी विदेशी गाडि़यां. कुलमिला कर मैं तो वहां की चकाचौंध में सब
भूल गई.

‘‘एक साल तो ऐसे ही बीत गया. मनजीत अकसर होटल के काम से बाहर जाता रहता था. मेरी सास बहुत खड़ूस थी. वह दिनभर ताने मारती रहती थी. मनजीत के घर पर न होने पर तो वह हद ही कर देती थी. मुझ से पता नहीं क्यों चिढ़ी रहती थी. शायद वह अपने बेटे का ब्याह किसी और लड़की के साथ कराना चाहती थी.’’

‘‘आगे क्या हुआ?’’ वरुण ने पूछा.

चाय का आखिरी घूंट भरते हुए प्रभजोत कौर ने चाय वाले को इशारा करते हुए कहा, ‘‘एक चाय और…’’ फिर गहरी सांस भरते हुए वरुण से बोली, ‘‘बस, फिर धीरेधीरे मेरे अपनी सास से संबंध खराब होते चले गए.

‘‘मैं ने भी ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर दिया. अब आएदिन घर में क्लेश होने लगा. मनजीत ने बीचबचाव करने की कोशिश की, पर सुलह न हो सकी.

‘‘इस किचकिच से दूर रहने के लिए मैं ने फिर से मौडलिंग स्टार्ट कर दी. अब तो सास ने और तहलका मचाना शुरू कर दिया. उस ने मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठाना शुरू कर दिया. मेरा घर पर रहना दूभर हो गया.

‘‘मैं ने कई बार मनजीत से अलग रहने की बात कही, पर वह हर बार साथ रहने के लिए मुझे मना लेता, क्योंकि कोई भी अब तक उस घर से अलग नहीं हुआ था, इसलिए वह यह बुराई अपने सिर लेने से बचना चाहता था.

‘‘मेरा मन बहुत बैचेन रहने लगा, पर कुछ भी सम?ा नहीं आ रहा था. एक दिन मौडलिंग करते हुए एक साथी ने मुझे दवा के नाम पर कोई नशीली चीज पिला दी. मैं तो जैसे दूसरी दुनिया के सुख में पहुंच गई. सबकुछ भूल गई. पहले हफ्ते में एक बार, फिर रोज ड्रग्स लेना शुरू हो गया.

‘‘एक दिन शाम को मैं ड्रग्स के नशे में घर पहुंची, तो घर पर सास अकेली थी. मुझे देखते ही वह मुझ पर राशनपानी ले कर चढ़ गई. ‘कुल्टा’, ‘कुलच्छनी’, ‘आवारा’ और न जाने वह मुझे कौनकौन सी गालियां दिए जा रही थी और बिना बोले मेरा गुस्सा अंदर ही अंदर बढ़ता जा रहा था.

‘‘जब सहा नहीं गया तो मैं ने किचन में जा कर बड़ा सा चाकू उठाया और सीधे अपनी सास के सीने में घोंप दिया. मेरे हाथों खून हो चुका था, पर मुझे बड़ा सुकून मिला. पर थोड़ी देर के बाद मु?ो अहसास हुआ कि मैं ने यह क्या कर दिया.

‘‘थोड़ी देर बाद ही मेरी एक जेठानी आई और फिर उस ने सब को बुलाया. मैं चुपचाप वहीं बैठी रही. पुलिस आई और मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. मेरे मातापिता ने भी मुझ से मुंह मोड़ लिया. 7 साल की जेल हुई. कोई मुझ से मिलने तक नहीं आया. मैं दिमाग से सुन्न हो चुकी थी.

‘‘7 साल की जेल से मैं बुरी तरह टूट गई. बाहर आई तो कोई लेने नहीं आया. अपनी ससुराल गई तो दुत्कार कर वहां से भगा दिया गया. मांबाप को फोन किया, तो उन के रूखे जवाब ने मेरा मन तोड़ दिया.

‘‘एक जोड़ी कपड़े और जेल में कमाए कुछ पैसे ले कर मैं ट्रेन में बैठ कर दिल्ली आ गई. मौडलिंग के कुछ जानकार लोगों से मदद की गुहार लगाने की कोशिश की, पर सब जगह मेरे किए गए कांड की खबर पहुंच चुकी थी.

‘‘दिल्ली में बिताए साल जहन्नुम से कटे. कभी भीख मांगी, कभी शरीर बेचा, तो कभी ?ाड़ूबरतन किए. बस, किसी तरह जिंदा थी.

‘‘मैं एक घर में झाड़ूपोंछा करती थी. वहां एक बूढ़ी माई को उस के बहूबेटा बहुत सताते थे. एक दिन उस ने मुझे हरिद्वार चलने के लिए पूछा, तो मैं ने अनमने मन से ‘हां’ कह दिया.

‘‘वह बुढि़या घर पर बिना बताए मेरे साथ हरिद्वार आ गई. हम कुछ महीने धर्मशाला में रहे, पर न उसे ढूंढ़ता कोई आया, न उसे किसी की याद आई. वह मेरा बच्चे की तरह खयाल रखती और मैं भी उस की आदर के साथ हर मदद करती. उस का अब यहीं रहने का मूड था और मुझे भी यह शहर भाने लगा था.

‘‘फिर एक दिन वह बुढि़या अचानक चल बसी. उन की इच्छा को ध्यान में रखते हुए बिना उस के बेटे को बताए वहीं अंतिम संस्कार कर दिया. मैं फिर सड़क पर थी. अब तक सब शर्म, शिकवे और झिझक खत्म हो चुके थे. खुली जबान से इंगलिशहिंदी बोल कर लोगों से भीख मांगना शुरू कर दिया. अच्छी भीख मिलने लगी, पर अब पेट की भूख शांत करने के सिवा कोई चाह नहीं थी, तो भिखारियों से ही दोस्ती हो गई.

‘‘अब इन के साथ ही जिंदगी अच्छी कट रही है. अब ये ही मेरे दुखसुख के साथी हैं. मंडली में रोज कोई नया सदस्य जुड़ जाता है. सब कोई न कोई अलग कहानी समेटे हुए हैं. इन के साथ प्यारमुहब्बत से रहना सीख रही हूं,’’ ऐसा बोलते हुए प्रभजोत कौर ने एक लंबी सांस खींची और चुप हो गई.

वरुण भी कुछ देर खामोश रहा, फिर बोला, ‘‘आप के मातापिता ने भी कभी आप को तलाशने की कोशिश
नहीं की?’’

‘‘बाबू, यह दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती. सब अपने तरीके को सही मानते हुए जीते हैं. पर यहां आ कर मुझे समझ आया कि जीना सिर्फ अपने लिए नहीं होता, बल्कि यह तो दूसरों के लिए होता है.

‘‘यहां मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी मैं दिल से अमीर हूं, इसलिए लोग मुझे ‘अमीर भिखारिन’ कहते हैं…’’

यह कहते हुए प्रभजोत कौर ने अपने हाथ में रखा 200 रुपए का नोट वरुण को लौटाते हुए कहा, ‘‘अभी इस की तुम्हें ज्यादा जरूरत है. मेरे लिए तो यह 50 रुपए का नोट ही काफी है. तुम्हें और तुम्हारी इनसानियत को परखने के लिए मैं ने ये पैसे लिए थे.

‘‘मैं उम्मीद करती हूं कि तुम्हें एक कहानी लिखने का अच्छा मसाला मिल गया होगा. हां, इस की न्यूज मत बनाना, क्योंकि गुमनामी में जीने का जो मजा है, वह ज्यादा पहचान के साथ नहीं है. यह मैं दोनों को अनुभव करने के बाद कह रही हूं. यह ‘अमीर भिखारिन’ तुम्हें खुश रहने का आशीर्वाद देती है.’’ Social Story In Hindi

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