दोस्त से सेक्स या सेक्स से दोस्ती?

पश्चिमी देशों में ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ का चलन कोई नया नहीं है. लेकिन भारत में जरूर इस टर्म को अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल और निभाया जाता है. जब साल 2011 में जस्टिन टिम्बरलेक और मिल्ला कुनिस की फिल्म ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ आई थी तो इस टर्म का मोटामोटी अर्थ यही निकला गया कि जब दो दोस्त अपने रिश्ते का इस्तेमाल सेक्सुअल रिलेशन के तौर पर करते हैं तो वो फ्रेंडशिप ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ के दायरे में आ जाती है. यानी जब दोस्ती से अन्य फायदे लिए जाने लगे तो यह फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स वाला रिश्ता बन जाता है.

अब आप सोचेंगी कि दोस्ती में क्या फायदा उठाना. लेकिन अगर आप मैरिड या एंगेज्ड होने के बावजूद अपनी बेस्टफ्रेंड के साथ सेक्स करना चाहती हैं तो यह दोस्ती से बेनिफिट लेने जैसा ही है. क्योंकि उक्त लड़की आपकी फ्रेंड हैं तो फिर बिस्तर पर जाने से पहले उसके साथ न तो किसी भी तरह की रोमांटिक इन्वोल्व्मेंट की जरूरत है और न भरोसा कायम रखने की. आप दोनों एकदूसरे को पहले से जानते हैं और आपसी सहमति है तो अपनी फ्रेंडशिप को बेनिफिट के साथ कायम रख सकती हैं.

ज्यादा बेनिफिट किसका

यों तो यह वेस्टर्न कौन्सेप्ट है. वहां कैजुअल सेक्स को लेकर एस्कौर्ट से लेकर फ्रेंड्स तक, वन नाइट स्टैंड से लेकर हुक अप्स तक सब खुलेख्याली के साथ कुछ डौलर्स में अवेलेबल है. लेकिन इस तरह के संबधों में पुरुष ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं. कारण वही सेक्स वाला है. लंदन की विस्कौन्सिन-यू क्लेयर यूनिवर्सिटी द्वारा 400 वयस्कों पर किए गए एक शोध से पता चला कि महिला और पुरुष के बीच दोस्ती में अगर किसी एक के द्वारा आकर्षण की भावना या सेक्स करने की चाहत की अभिव्यक्ति होती है, तो वह ज्यादातर पुरुष मित्र की ओर से ही होती है. यह स्वाभाविक भी है.

पुरुष ईजी सेक्स और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की चाहत में औफिस, पड़ोस और औनलाइन हर जगह सेक्सुअल फेवर वाला रिश्ता ढूंढ़ते हैं. और जब कभी उन गलियों में वो चाहत पूरी नहीं होती तो अपने दोस्त से फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स के तहत सेक्स संबंधों की मांग कर लेते हैं. अब इसमें दांव लगने की बात है क्योंकि इस डील में कुछ फ्रेंड नाराज हो जाते हैं तो कुछ राजी.

फ्रेंडजोंड बिरादरी का भला

ऐसा नहीं है कि इस तरह के रिलेशनशिप का इस्तेमाल सिर्फ पुरुष ही करते हैं. महिलाएं भी फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स की आड़ में अपनी सेक्सुअल फ्रीडम खोज लेती हैं. इनमें अक्सर वो महिलाएं होती हैं जो या तो बिखरती शादी का शिकार होती हैं या तलाक के दौर से गुजर रही होती हैं. कुछ विडोज भी ही सकती हैं. सेक्स की चाहत में ये किसी अजनबी के साथ डेट पर जाने के बजाए अपने दोस्तों, या कहें जो दोस्त कभी उन पर क्रश रखते थे लेकिन मुकम्मल रिश्ते तक नहीं पहुंच पाए, को तरजीह देती हैं.

ये अक्सर वही फ्रेंड होते हैं जो कभी इन महिलाओं द्वारा फ्रेंडजोंड कर दिए गए होते हैं. ऐसे में जब कैजुअल सेक्स की बात आती हैं तो पुरानी फीलिंग्स काम आती हैं और इस तरह से फ्रेंडजोंड बिरादरी का भला हो जाता है. दरअसल इस फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स वाले रिश्ते में आप किसी रिश्ते में होते हुए या न होते हुए भी किसी इंसान के साथ समय बिताने या शारीरिक संबंध बनाने के लिए आजाद हैं. लेकिन इसमें किसी तरह का कोई वादा या प्रतिबद्धता नहीं होती है.

दोस्ती-प्यार के बीच वाला सेक्स

आमतौर पर ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ का चलन सबसे ज्यादा सिंगल कौलेज गोअर्स लड़के या लड़कियों में देखा जाता है. ये ‘नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड’ वाले फलसफे पर चलते हैं. जब तक पढ़ाई की, कैम्पस में रहे, दोस्त के साथ सेक्स किया, बाद में करियर के लिए मूव औन कर गए. इसमें दोनों की मूक सहमति होती है लिहाजा कोई किसी के साथ सीरियस रिलेशनशिप के फेर में नहीं पड़ता. कई बार यह दोस्ती से ज्यादा और प्यार से कम वाला रिश्ता बन जाता है. इस तरह की स्थिति में दोनों में किसी एक के मन में सामने वाले के लिए फीलिंग्स आने लगती हैं. और बात ‘इट्स कौम्प्लीकेटेड’ तक पहुंच जाती है.

पहले पहल सुनने में एक रोमांचक चीज शायद जरूर लगे, लेकिन इंसानी तौर खासतौर पर भारत में अक्सर ईर्ष्या कहीं न कहीं बीच में आ ही जाती है और अंत में कड़वाहट कि वजह बन जाती है. इसलिए जरा सोच समझकर उतरें फेवर वाले रिश्ते में.

जब हो इट्स कौम्प्लीकेटेड

अपने देश में आप लड़के और लड़की की दोस्ती पर कुछ पूछेंगे तो वे इसमें सेक्स संबंधों की घुसपैठ को अनैतिक बताएंगे. इनके हिसाब से दोस्ती और प्यार दो अलग अलग चीजें हैं. हालांकि अक्सर लड़का लड़की की दोस्ती को प्यार में बदलते देखा जाता है. एक फिल्मी कहावत भी है, कि एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते. इस आशय पर कई फिल्में भी बनी हैं. लेकिन यहां मामला दोस्ती और प्यार का नहीं बल्कि सीधे तौर पर सेक्स का है. इसलिए इसे ‘इट्स कौम्प्लीकेटेड’ न बनाएं, तो खुश रहेंगे.

कुल मिलाकर ‘फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स’ वाला जुमला कई अलग लग अर्थों में फैल चुका है. अगर कोई लड़की या लड़का किसी से सिर्फ इसलिए दोस्ती करता है कि वो हर वक्त खर्च करने को तैयार रहता है तब यह भी ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ के दायरे में आएगा. ऐसी ही दोस्ती जब भी किसी फेवर की आड़ में की जाए तो यह असली दोस्ती नहीं होगी. बाकि आजकल बेनेफिट्स तो बेटे बेटी भी पैरेंट्स से उठा रहे हैं तो यह ‘संस/ डौटर विद बेनिफिट्स’ कहा जाए?

सेक्स में आनंद और यौन सतुंष्टि का मतलब भी जानें

विभा ने 25-26 वर्ष की उम्र में जिस से विवाह करने का निर्णय लिया वह वाकई दूरदर्शी और समझदार निकला. विभा ने खूब सोचसमझ कर, देखपरख कर यानी भरपूर मुलाकातों के बाद निर्णय लिया कि इस गंभीर विचार वाले व्यक्ति से विवाह कर वह सुखी रहेगी.

विवाह होने में कुछ ही दिन बचे थे कि इसी बीच भावी पति ने एसएमएस भेजा जिसे पढ़ विभा सकुचा गई. लिखा था, ‘‘तुम अभी से गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन शुरू कर दो वरना बाद में कहोगी कि खानेखेलने भी नहीं दिया बच्चे की परवरिश में फंसा दिया. सैक्स पर कुछ पढ़ लो. कहोगी तो लिंक भेज दूंगा. नैट पर देख लेना.’’ यह पढ़ विभा अचरज में पड़ गई.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने होने वाले पति की, अटपटी सलाह पर कैसे अमल करे? कैसे व किस से गोलियां मंगवाए व खाए? साथ ही इस तरह की बातें नैट पर पढ़ना तो सब से कठिन काम है, क्योंकि वहां तो पोर्न ही पोर्न भरा है, जो जानकारी देने की जगह उत्तेजित कर देता है.

मगर विभा की यह दिक्कत शाम होतेहोते हल हो गई. दोपहर की कुरियर से अपने नाम का पैकेट व कुछ किताबें पाईं. गोली प्रयोग की विधि भी साथ में भेजे पत्र में थी और साथ एक निर्देश भी था कि किताबें यदि मौका न मिले तो गुसलखाने में ले जा कर पढ़ना, संकोच मत करना. विवाह वाले दिन दूल्हा बने अपने प्यार की आंखों की शरारती भाषा पढ़ विभा जैसे जमीन में गढ़ गई. सुहागरात को पति ने प्यार से समझाया कि सकुचाने की जरूरत नहीं है. इस आनंद को तनमन से भोग कर ही जीवन की पूर्णता हासिल होती है.

आधी अधूरी जानकारी

ज्यादातर युवतियों को तो कुछ पता ही नहीं होता. न उन्हें कोई बताता है और न ही वे सकुचाहट व शर्म के कारण खुद ही कुछ जानना चाहती हैं. पासपड़ोस, सखीसहेलियों से जो आधीअधूरी जानकारी मिलती है वह इतनी गलतफहमी भरी होती है कि यौन सुख का अर्थ भय में बदल उन्मुक्त आनंद व तृप्ति नहीं लेने देता. नैट पर केवल प्रोफैशनल दिखते हैं, आम लोग नहीं जो पोर्न बेचने के नाम पर उकसाते भर हैं. वास्तव में पिया के घर जाने की जितनी चाहत, ललक हर लड़की में होती है, उसी प्रियतम से मिलन किस तरह सुख भरा, संतोषप्रद व यादगार हो, यह ज्यादातर नहीं जानतीं.

कभीकभार सहेलियों की शादी के अनुभव सुन वे समझती हैं कि शादी के बाद पति का संग तो दुखदायी व तंग करने वाला होता है. जैसे कोई हमउम्र सहेली कहे कि बड़े तंग करते हैं तेरे बहनोई पूरीपूरी रात सोने नहीं देते. सारे बदन का कचूमर बना देते हैं. बिन ब्याही युवतियों के मन में यह सब सुन कर दहशत जगना स्वाभाविक है. ये बातें सुनते समय कहने वाली की मुखमुद्रा, उस के नेत्रों की चंचलता, गोपनीय हंसी, इतराहट तो वे पकड़ ही नहीं पातीं.

बस, शब्दों के जाल में उलझ पति का साथ परेशानी देगा सोच घबरा जाती हैं. ब्याह के संदर्भ में कपड़े, जेवर, घूमनाफिरना आदि तो उन्हें लुभाता है, पर पति से एकांत में पड़ने वाला वास्ता आशंकित करता रहता है. परिणामस्वरूप सैक्स की आधीअधूरी जानकारी भय के कारण उन्हें या तो इस खेल का भरपूर सुख नहीं लेने देती या फिर ब्याह के बाद तुरंत गर्भधारण कर लेने से तबीयत में गिरावट के कारण सैक्स को हौआ मानने लगती हैं.

सैक्स दांपत्य का आधार

सैक्स दांपत्य का आधार है. पर यह यदि मजबूरीवश निभाया जा रहा हो तो सिवा बलात्कार के और कुछ नहीं है और जबरन की यह क्रिया न तो पति को तृप्त कर पाती है और न ही पत्नी को. पत्नी पति को किसी हिंसक पशु सा मान निरीह बनी मन ही मन छटपटाती है. उधर पति भी पत्नी का मात्र तन भोग पाता है. मन नहीं जीत पाता. वास्तव में यह सुख तन के माध्यम से मन की तृप्ति का है. यदि तन की भूख के साथ मन की प्यासी चाहत का गठबंधन न हो तब सिर्फ शरीर भोगा जाता है जो मन पर तनाव, खीज और अपराधभाव लाद दांपत्य में असंतोष के बीज बोता है.

सिर्फ काम नहीं, बल्कि कामतृप्ति ही सुखी, सुदीर्घ दांपत्य का सेतु है. यह समझना बेहद जरूरी है कि पति के संग शारीरिक मिलन न तो शर्मनाक है न ही कोई गंदा काम. विवाह का अर्थ ही वह सामाजिक स्वीकृति है जिस में स्त्रीपुरुष एकसूत्र में बंध यह वादा करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन अपने तनमन को संतुष्ट रख कर वंशवृद्धि भी करेंगे व सफल दांपत्य भी निबाहेंगे. यह बात विशेषतौर पर जान लेने की है कि कामतृप्ति तभी मिलती है जब पतिपत्नी प्रेम की ऊर्जा से भरे हों.

यह वह अनुकूल स्थिति है जब मन पर कोई मजबूरी लदी नहीं होती और तन उन्मुक्त होता है. विवाह का मर्म है अपने साथी के प्रति लगाव, चाहत और विश्वास का प्रदर्शन करना. सैक्स यदि मन से स्वीकारा जाए, बोझ समझ निर्वाह न किया जाए तभी आनंद देता है. सैक्स पुरुष के लिए विशेष महत्त्व रखता है.

पौरुष का अपमान

पत्नियों को इस बात को गंभीरता से समझ लेना चाहिए कि पति यौन तिरस्कार नहीं सह पाते हैं, क्योंकि पत्नी का ऐसा व्यवहार उन्हें अपने पौरुष का अपमान प्रतीत होता है. पति खुद को शारीरिक व भावनात्मक माध्यम के रूप में प्रस्तुत करे तो वह स्पष्ट प्यार से एक ही बात कहना चाहता है कि उसे स्वीकार लो. यह पति की संवेदनशीलता है जिसे पहचान पाने वाली पत्नियां ही पतिप्रिया बन सुख व आनंद के सागर में गोते लगा तमाम भौतिक सुखसाधन तो भोगती ही हैं, पति के दिल पर भी राज करती हैं.

कितनी आश्चर्यजनक बात है कि सैक्स तो सभी दंपती करते हैं, लेकिन वे थोड़े से ही होते हैं जिन्हें हर बार चरमसुख की अनुभूति होती. आज की मशीनी जिंदगी में और यौन संबंधी भ्रामक धारणाओं ने समागम को एकतरफा कृत्य बना दिया है. पुरुष के लिए आमतौर पर यह तनाव से मुक्ति का साधन है, कुछ उत्तेजित क्षणों को जी लेने का तरीका है. उसे अपने स्खलन के सुख तक ही इस कार्य की सीमा नजर आती है पर सच तो यह है कि वह यौन समागम के उस वास्तविक सुख से स्वयं भी वंचित रह जाता है जिसे चरमआनंद कहा जा सकता है. अनिवार्य दैनिक कार्यों की तरह किया गया अथवा मशीनी तरीके से किया गया सैक्स चरमसुख तक नहीं ले जाता.

इस के लिए चाहिए आह्लादपूर्ण वातावरण, सुरक्षित व सुरुचिपूर्ण स्थान और दोनों पक्षों की एक हो जाने की इच्छा. यह अनूठा सुख संतोषप्रद समागम के बाद ही अनुभव किया जा सकता है. तब ऐसा लगता है कि कभी ये क्षण समाप्त न हों. तब कोई भी तेजी बर्बरता नहीं लगती, बल्कि मन करता है कि इन क्षणों को और जिएं, बारबार जीएं. जीवन का यह चरमआनंद कोई भी दंपती प्राप्त कर सकता है, लेकिन तभी जब दोनों की सुख के आदानप्रदान की तीव्र इच्छा हो.

सैक्स संबंधी भ्रम के कारण टूट जाते है रिश्ते, जानें संभोग से जुड़े 6 मिथ

इंसान में सेक्स करने की इच्छा बहुत ही स्वाभिक होती है. एक खास उम्र में तो इसका जुनून ही सवार रहता है लेकिन ज्यादातर लोगों को सेक्स के बारे में सही जानकारी ही नहीं होती. इसे लेकर कई तरह के भ्रम या मिथ भी रहते हैं जिसका मुख्य कारण होता है सेक्स के बारे में सही जानकारी न होना.

सेक्स संबंधी भ्रम के कारण जहां लोग इसका आनंद नही उठा पाते वहीं कई बार संबंधों में दरार पड़ जाती है और कभी कभी तो अज्ञानता की वजह से बीमारियां भी हो जाती हैं. आइए हम आपको बताते हैं क्या हैं सेक्स संबंधी भ्रम और सच्चाई.

  1. मिथ – ओरल सेक्स से कोई खतरा नही होता है. पुरुष हमेशा सेक्स के लिए तैयार रहते हैं.

सच्चाई – ओरल सेक्स से सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियों के फैलने का अधिक खतरा होता है. ओरल सेक्स के दौरान अगर मुंह या गले में कही कटा हो तो बीमारियों के होने का खतरा होता है. तनाव और थकान की वजह से अक्सर पुरष की रुचि सेक्स में कम होने लगती है. एक रिसर्च के अनुसार 14 फीसदी पुरुष सेक्स के बारे में हर 7 मिनट में सोचते हैं.

2.

मिथ- साइज मैटर नही करता है. फोरप्ले नही करना चाहिए.

सच्चाई- लिंग के साइज़ को लेकर आम धारणा है कि इसकी अच्छे सेक्स और पार्टनर को संतुष्ट करने में अहम भूमिका होती है लेकिन ये एकदम गलत है. साइज का सेक्स संबंध पर कोई असर नहीं होता. सेक्स के दौरान जरूरी है कि आप अपने पार्टनर की भावनाओं को समझें. सेक्स का आनंद लेने के लिए फोरप्ले बहुत जरूरी है. फोरप्ले के सही तरीके अपनाकर आप अपने पार्टनर को खुश कर सकते हैं.

3.

मिथ- प्रीमेच्योर इजेकुलेशन (शीघ्रपतन) बीमारी नही है. सेक्स के आसन नही करने चाहिए.

सच्चाई- यह बीमारी पुरुषों में सबसे सामान्य है. सेक्स के लिए तैयार होते वक्त फोरप्ले के दौरान ही अगर सीमन बाहर आता है तो इसे प्रीमेच्योर इजैकुलेशन कहते हैं. ऐसी स्थित में पुरुष अपनी महिला पार्टनर को संतुष्ट नही कर पाता है. सेक्स संबंध बनाते वक्त विभिन्न तरीके के आसनों को किया जा सकता है. लेकिन सुरक्षित और आसान आसनों का ही प्रयोग कीजिए.

4.

मिथ– सेक्स के दौरान सेक्स पॉवर बढ़ाने वाली दवाओं का प्रयोग करना चाहिए.

सच्चाई- बाजारों में मिलने वाली विभिन्न प्रकार की दवाओं का प्रयोग करके कुछ समय के लिए आप अपनी सेक्स क्षमता को बढ़ा सकते हैं लेकिन इन दवाओं का साइड इफेक्ट ज्यादा होता है. इसलिए इन दवाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए और अच्छे डॉक्टर की ही सलाह पर इसका इस्तेमाल करें.

5.

मिथ- गर्भावस्था के दौरान सेक्स नही करना चाहिए. मेनोपॉज के बाद महिलाओं की सेक्स लाइफ समाप्त हो जाती है.

सच्चाई- गर्भावस्था के दौरान भी सेक्स संबंध बनाये जा सकते हैं. लेकिन गर्भावस्था की निश्चित अवधि के बाद सेक्स बिलकुल नही करना चाहिए. मेनोपॉज बंद होने के बाद भी महिलाएं सेक्स संबंध बना सकती हैं. मेनोपॉज बंद होने का मतलब यह नही कि महिलाओं की सेक्स लाइफ समाप्त हो गई.

6.

मिथ- खान-पान का सेक्स लाइफ पर असर नहीं होता है.

सच्चाई- जी नहीं, खान-पान का सेक्स लाइफ पर पूरा असर पड़ता है. सेक्स पॉवर आपकी डाइट चार्ट पर निर्भर करती है. अगर आप हेल्थी और पोषणयुक्त भोजन करते हैं तो आपकी सेक्स पॉवर ज्यादा होगी.

जब पति का अंदाज हो रोमांटिक, तो जिंदगी होगी खूबसूरत

रंगीन, आशिकमिजाज पति पाना भला किस औरत की दिली तमन्ना न होगी? अपने ‘वे’ इश्क और मुहब्बत के रीतिरिवाजों से वाकिफ हों, दिल में चाहत की धड़कन हो, होंठों पर धड़कन का मचलता इजहार रहे, तो इस से ज्यादा एक औरत को और क्या चाहिए? शादी के बाद तो इन्हें अपनी बीवी लैला लगती है, उस का चेहरा चौदहवीं का चांद, जुल्फें सावन की घटाएं और आंखें मयखाने के प्याले लगते हैं. लेकिन कुछ साल बाद ही ऐसी बीवियां कुछ घबराईघबराई सी, अपने उन से कुछ रूठीरूठी सी रहने लगती हैं. वजह पति की रंगीनमिजाजी का रंग बाहर वाली पर बरसने लगता है.

यही करना था तो मुझ से शादी क्यों की

शादी से पहले विनय और रमा की जोड़ी को लोग मेड फौर ईचअदर कहते थे. शादी के बाद भी दोनों आदर्श पतिपत्नी लगते थे. लेकिन वक्त गुजरने के साथसाथ विनय की आंखों में पहले वाला मुग्ध भाव गायब होने लगा. राह चलते कोई सुंदरी दिख जाती, तो विनय की आंखें उधर घूम जातीं. रमा जलभुन कर खाक हो जाती. जब उस से सहा न जाता, तो फफक पड़ती कि यही सब करना था, तो मुझ से शादी ही क्यों की? क्यों मुझे ठगते रहते हो?

तब विनय जवाब देता कि अरे भई, मैं तुम से प्यार नहीं करता हूं. यह तुम ने कैसे मान लिया? तुम्हीं तो मेरे दिल की रानी हो.

सच यही था कि विनय को औफिस की एक लड़की आकर्षित कर रही थी. खुशमिजाज, खिलखिलाती, बेबाक मंजू का साथ उसे बहुत भाने लगा था. उस के साथ उसे अपने कालेज के दिन याद आ जाते. मंजू की शरारती आंखों के लुकतेछिपते निमंत्रण उस की मर्दानगी को चुनौती सी देते लगते और उस के सामने रमा की संजीदा, भावुक सूरत दिल पर बोझ लगती. रमा को वह प्यार करता था, अपनी जिंदगी का एक हिस्सा जरूर मानता था, लेकिन रोमांस के इस दूसरे चांस को दरकिनार कर देना उस के बस की बात न थी.

ये मेरे पति हैं

इसी तरह इंदिरा भी पति की आशिकाना हरकतों से परेशान रहती थी. उस का बस चलता तो देबू को 7 तालों में बंद कर के रखती. वह अपनी सहेलियों के बीच भी पति को ले जाते डरती थी. हर वक्त उस पर कड़ी निगाह रखती. किसी पार्टी में उस का मन न लगता. देबू का व्यक्तित्व और बातचीत का अंदाज कुछ ऐसा था कि जहां भी खड़ा होता कहकहों का घेरा बन जाता. महिलाओं में तो वह खास लोकप्रिय था. किसी के कान में एक शेर फुसफुसा देता, तो किसी के सामने एक गीत की पंक्ति ऐसे गुनगुनाता जैसे वहां उन दोनों के सिवा कोई है ही नहीं. उस की गुस्ताख अदाओं, गुस्ताख नजरों पर लड़कियों का भोला मन कुरबान हो जाने को तैयार हो जाता. उधर इंदिरा का मन करता कि देबू के गले में एक तख्ती लटका दे, जिस पर लिख दे कि ये मेरे पति हैं, ये शादीशुदा हैं, इन से दूर रहो.

बेवफा होने का मन तो हर मर्द का चाहता है

घर में अच्छीखासी पत्नी होते हुए भी आखिर कुछ पति क्यों इस तरह भटकते हैं? यह सवाल मनोवैज्ञानिक एवं मैरिज काउंसलर से पूछा गया, तो उन्होंने एक ऐसी बात बताई, जिसे सुन कर आप को गुस्सा तो आएगा, लेकिन साथसाथ मर्दों के बारे में एक जरूरी व रोचक जानकारी भी प्राप्त होगी. उन का कहना था कि मर्दों के दिलोदिमाग व खून में ही कुछ ऐसे तत्त्व होते हैं, जो उन के व्यवहार के लिए बुनियादी तौर पर काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं यानी कुदरत की तरफ से ही उन्हें यह बेवफाई करने की शह मिलती है.

इस का मतलब यह भी निकलता है कि बेवफा होने का मन तो हर मर्द का चाहता है, पर किसी की हिम्मत पड़ती है किसी की नहीं. किसी को मौका मिल जाता है, किसी को नहीं. किसी की पत्नी ही उसे इतना लुभा लेती है कि उसे उसी में नित नई प्रेमिका दिखती है, तो कुछ में आरामतलबी का मद्दा इतना ज्यादा होता है कि वे यही सोच कर तोबा कर लेते हैं कि कौन इश्कविश्क का लफड़ा मोल ले.

अब सवाल उठता है कि सामाजिक सभ्यता के इस दौर में आखिर कुछ पति ही इन चक्करों में क्यों पड़ते हैं? लीजिए, इस प्रश्न का उत्तर भी मनोवैज्ञानिकों के पास हाजिर है. जरा गौर करें:

पत्नी से आपेक्षित संतोष न मिलना

अकसर इन पतियों के अंदर एक अव्यक्त अतृप्ति छिपी रहती है. सामाजिक रीतिरिवाजों का अनुसरण कर के वे शादी तो कर लेते हैं, गृहस्थ जीवन के दौरान पत्नी से प्रेम करते हैं, फिर भी कहीं कोई हूक मन में रह जाती है. या तो पत्नी से वे तनमन की पूर्ण संतुष्टि नहीं पा पाते या फिर रोमांस की रंगीनी की हूक मन को कचोटती रहती है. जहां पत्नी से अपेक्षित संतोष नहीं मिलता, वहां बेवफाई का कुछ गहरा रंग इख्तियार करने का खतरा रहता है. कभीकभी इस में पत्नी का दोष होता है, तो कभी नहीं.

माफ भी नहीं किया जा सकता

रवींद्रनाथ टैगोर की एक कहानी का यहां उदाहरण दिया जा सकता है. हालांकि पत्नी नीरू के अंधे होने का कारण पति ही होता है, फिर भी पति एक अन्य स्त्री से चुपचाप विवाह करने की योजना बना डालता है. वह पत्नी नीरू से प्यार तो करता है, लेकिन फिर भी कहीं कुछ कमी है. जब पति की बेवफाई का पता नीरू को चलता है, तो वह तड़प कर पूछती है, ‘‘क्यों तुम ने ऐसा सोचा?’’

तब वह सरलता से मन की बात कह देता है, ‘‘नीरू, मैं तुम से डरता हूं. तुम एक आदर्श नारी हो. मुझे चाहिए एक साधारण औरत, जिस से मैं झगड़ सकूं, बिगड़ सकूं, जिस से एक साधारण पुरुष की तरह प्यार कर सकूं.’’

नीरू का इस में कोई दोष न था, लेकिन पति के व्यवहार को माफ भी नहीं किया जा सकता. हां, मजबूरी जरूर समझी जा सकती है. मगर सब पत्नियां नीरू जैसी तो नहीं होतीं.

औरतें इतनी खूबसूरत क्यों होती हैं

‘‘पत्नी तो हमारी ही हस्ती का हिस्सा हो जाती है भई,’’ कहते हैं एक युवा शायर, ‘‘अब अपने को कोई कितना चाहे? कुदरत ने दुनिया में इतनी खूबसूरत औरतें बनाई ही क्यों हैं? किसी की सुंदरता को सराहना, उस से मिलना चाहना, उस के करीब आने की हसरत में बुराई क्या है?’’

इन शायर साहब की बात आप मानें या न मानें, यह तो मानना ही पड़ेगा कि रोमांस और रोमानी धड़कनें जिंदगी को रंगीन जरूर बनाती हैं. कुछ पति ऐसे ही होते हैं यानी उन्हें एकतरफा प्यार भी रास आता है.

सुबह का वक्त है. निखिलजी दफ्तर जाने की तैयारी में लगे हैं. सामने सड़क पर सुबह की ताजा किरण सी खूबसूरत एक लड़की गुजरती है. मुड़ कर इत्तफाकन वह निखिलजी के कमरे की ओर देखती है और निखिलजी चेहरे पर साबुन मलतेमलते खयालों में खो जाते हैं.

पत्नी चाय ले कर आती है, तो देखती है कि निखिलजी बाहर ग्रिल से चिपके गुनगुना रहे हैं, ‘जाइए आप कहां जाएंगे…’

‘‘अरे कौन चला गया?’’ पत्नी पूछती है.

तब बड़ी धृष्टता से बता भी देते हैं, ‘‘अरे कितनी सुंदर परी अभी इधर से गई.’’

‘‘अच्छाअच्छा अब जल्दी करो, कल पहले से तैयार हो कर बैठना,’’ और हंसती हुई अंदर चली जाती है.

यही बात निखिलजी को अपनी पत्नी की पसंद आती है. ‘‘लाखों में एक है,’’  कहते हैं वे उस के बारे में, ‘‘खूब जानती है कहां ढील देनी है और कहां डोर कस कर पकड़नी है.’’

लेकिन वे नहीं जानते कि इस हंसी को हासिल करने के लिए पत्नी को किस दौर से गुजरना पड़ा है. शादी के लगभग 2 साल बाद ही जब निखिलजी अन्य लड़कियों की प्रशंसा करने लगे थे, तो मन ही मन कुढ़ गई थी वह. जब वे पत्रिकाओं में लड़कियों की तसवीरें मजे लेले कर दिखाते तो घृणा हो जाती थी उसे. कैसा आदमी है यह? प्रेम को आखिर क्या समझता है यह? लेकिन फिर धीरेधीरे दोस्तों से, छोटे देवरों से निखिलजी की इस आदत का पता चला था उसे.

‘‘अरे, ये तो ऐसे ही हैं भाभी.’’

दोस्त कहते, ‘‘इसे हर लड़की खूबसूरत लगती है. हर लड़की को ले कर स्वप्न देखता है, पर करता कुछ नहीं.’’

और धीरेधीरे वह भी हंसना सीख गई थी, क्योंकि जान गई थी कि प्रेम निखिल उसी  से करते हैं बाकी सब कुछ बस रंगीनमिजाजी  की गुदगुदी है.

ये भी पढ़ें: स्पाइनल इंजरी के बाद ऐसी होती है सैक्सुअल लाइफ

आखिर क्यों हो जाता है सेक्सुअल बिहेवियर अजीब, जानें उपाय

अमेरिका ने भी सेक्स की लत को 2012 में मानसिक विकृति करार दिया और इस काम को लास एंजिल्स की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया है. भारत में यह समस्या अभी शुरुआती दौर में है. लेकिन एक ओर मीडिया और इंटरनैट पर मौजूद तमाम उत्तेजना फैलाने वाली सामग्री की मौजूदगी तो दूसरी ओर यौन जागरूकता और उपचार की कमी के चलते वह दिन दूर नहीं जब सेक्स की लत महामारी बन कर खड़ी होगी. क्याआप को फिल्म ‘सात खून माफ’ के इरफान खान का किरदार याद है या फिर फिल्म ‘मर्डर-2’ देखी है? फिल्म ‘सात खून माफ’ में इरफान ने ऐसे शायर का किरदार निभाया है, जो सेक्स के समय बहुत हिंसक हो जाता है. इसी तरह ‘मर्डर-2’ में फिल्म का खलनायक भी मानसिक रोग से पीडि़त होता है. फिल्म ‘अग्नि साक्षी’ में भी नाना पाटेकर प्रौब्लमैटिक बिहेवियर से पीडि़त होता है. इसे न सिर्फ सेक्सुअल बीमारी के रूप में देखना चाहिए, बल्कि यह गंभीर मानसिक रोग भी हो सकता है.

ऐबनौर्मल सेक्सुअल डिसऔर्डर

फैटिशिज्म: इस में व्यक्ति उन वस्तुओं के प्रति क्रेजी हो जाता है, जो उस की सेक्स इच्छा को पूरा करती हैं. इस बीमारी से पीडि़त व्यक्ति अपने पासपड़ोस की महिलाओं के अंडरगारमैंट्स चुरा कर रात को पहनता है. कभीकभी ऐसे लोग महिलाओं पर बेवजह हमला भी कर देते हैं या फिर उन्हें छिप कर देखते हैं.

सेक्स फैरामोन: सेक्स फैरामोन यानी गंध कामुकता से पीडि़त व्यक्ति काफी खतरनाक होता है. ऐसा व्यक्ति स्त्री की डेट की गंध से उत्तेजित हो जाता है. ऐसे में कोई भी स्त्री, जिस की देह की गंध से वह उत्तेजित हुआ हो, उस का शिकार बन सकती है. वह उस स्त्री को हासिल करने के लिए कुछ भी कर सकता है.

सैक्सुअली प्रौब्लमैटिक बिहेवियर: सेक्स से पहले पार्टनर को टौर्चर करने के मनोविकार को प्रौब्लमैटिक बिहेवियर भी कहते हैं, जिसे नाना पाटेकर की फिल्म ‘अग्नि साक्षी’ में दिखाया गया है. महिला की आंखों पर पट्टी बांधना, उस के हाथपैर बांधना, उसे काटना, बैल्ट या चाबुक से मारना, दांत से काटना, सूई चुभोना, सिगरेट से जलाना, न्यूड घुमाना, चुंबन इतनी जोर से लेना कि दम घुटने लगे, हाथों को बांध कर पूरे शरीर को नियंत्रण में लेना और फिर जो जी चाहे करना. इस तरह के कई और हिंसात्मक तरीके होते हैं, जिन्हें ऐसे पुरुष यौन क्रिया से पहले पार्टनर के साथ करते हैं.

निम्फोमैनिया: निम्फोमैनिया काफी कौमन डिजीज है. इस की पेशैंट केवल फीमेल्स ही होती हैं. उन में डिसबैलेंस्ड हारमोंस की वजह से हाइपर सैक्सुअलिटी हो जाती है. फीमेल्स के सैक्सुअली ज्यादा ऐक्टिव हो जाने की वजह से उन्हें मेल्स का साथ ज्यादा अच्छा लगने लगता है. ऐसी लड़कियों में मेल्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट करने की चाह काफी बढ़ जाती है. वे ऐसी हरकतें करने लगती हैं, जिन से लड़के उन की तरफ अट्रैक्ट हों. ऐसा न होने पर उन्हें डिप्रैशन की प्रौब्लम भी हो जाती है.

पीड़ा रति नामक काम विकृति: इस बीमारी में व्यक्ति संबंध बनाने से पहले महिला को बुरी तरह पीटता है. यौनांग को बुरी तरह नोचता है. पूरे शरीर में नाखूनों से घाव बना देता है. पीड़ा रति से ग्रस्त पुरुष अपने साथी को पीड़ा पहुंचा कर यौन संतुष्टि अनुभव करता है. ऐसी अनेक महिलाएं हैं, जिन्हें शादी के बाद पता चलता है कि उन के पति इस तरह के किसी ऐबनौर्मल सेक्सुअल डिसऔर्डर से पीडि़त हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें जल्द से जल्द किसी मनोचिकित्सक या सैक्सोलौजिस्ट के पास ले जाना जरूरी हो जाता है. अगर इलाज के बाद भी पुरुष सही न हो, तो किसी वकील से मिल कर आप परामर्श ले सकती हैं कि ऐसे व्यक्ति के साथ पूरी जिंदगी बिताना सही है या फिर इस रिश्ते को खत्म कर लेना.

वैवाहिक बलात्कार: सुनने में अटपटा सा लगता है कि क्या विवाह के बाद पति बलात्कार कर सकता है. लेकिन यह सच है कि कुछ महिलाओं को अपने जीवन में इस त्रासदी से गुजरना पड़ता है. इस प्रकार के पति हीनभावना के शिकार होते हैं. उन्हें सिर्फ अपनी सेक्स संतुष्टि से मतलब होता है. अपने साथी की भावनाएं उन के लिए कोई माने नहीं रखतीं. हमारे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत इस तरह पत्नी की इच्छा व सहमति की परवाह किए बिना पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाना यौन शोषण व बलात्कार की श्रेणी में आता है.

आमतौर पर शराब के नशे में पति इस तरह के अपराध करते हैं. शराब के नशे में वे न केवल पत्नी का यौनशोषण करते हैं वरन उन से मारपीट भी करते हैं. यह कानूनन अपराध है. वैसे पति द्वारा पत्नी पर किए गए बलात्कार के लिए हमारे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 375 और 379 के तहत पत्नियों को कई अधिकार प्राप्त हैं. वे कानूनी तौर पर पति से तलाक भी ले सकती हैं.

पीडोफीलिया: पीडोफीलिया यानी बाल रति पीडोफीलिया से पीडि़त पुरुष छोटे बच्चे के साथ यौन संबंध बना कर काम संतुष्टि पाते हैं. वे बच्चों के साथ जबरदस्ती करने के बाद पहचान छिपाने के लिए बच्चे की हत्या तक कर डालते हैं. पीडोफीलिया से पीडि़त व्यक्ति में यह भ्रांति होती है कि बच्चे के साथ यौन संबंध बनाने पर उस की यौन शक्ति हमेशा बनी रहेगी. ऐसे व्यक्ति अधिकतर 14 साल से कम उम्र के बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं.

सेक्स मेनिया: इस से ग्रस्त व्यक्ति के मन में हर समय सेक्स करने की इच्छा रहती है. वह दिनरात उसी के बारे में सोचता है. फिर चाहे वह औफिस में काम कर रहा हो या फिर दोस्तों के साथ पार्टी में हो, उसे हर वक्त सेक्स का ही खयाल रहता है. वह अपने सामने से गुजरने वाली हर महिला को उसी नजर से देखता है. यह एक प्रकार का मानसिक रोग होता है, जिस में व्यक्ति के मन में सेक्स की इच्छा इस कदर प्रबल हो जाती है कि वह पहले अपनी पत्नी को बारबार सेक्स करने के लिए कहता है और फिर बाहर अन्य महिलाओं से भी संबंध बनाने की कोशिश करता है. एक पार्टनर से उस का काम नहीं चलता है. उसे अलगअलग पार्टनर के साथ सेक्स करने में आनंद आता है.

इस बीमारी से पीडि़त व्यक्ति का कौन्फिडैंस इस हद तक बढ़ जाता है कि उसे लगता है कि उस के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. जो भी वह चाहता है उसे पा सकता है. अपने इसी जनून के चलते कई बार वह अपना अच्छाबुरा सोचनेसमझने की शक्ति भी खो देता है और फिर कोई अपराध कर बैठता है. उसे उस का पछतावा भी नहीं होता, क्योंकि ऐसा कर के उस के दिल और दिमाग को अजीब सी संतुष्टि मिलती है, जो उसे सुकून देती है.

सेक्स फोबिया: यह सेक्स से जुड़ी एक समस्या है. जिस तरह सेक्स मेनिया में व्यक्ति के मन में सेक्स को ले कर कुछ ज्यादा ही इच्छा होती है उसी तरह कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें सेक्स में कोई रुचि नहीं होती. जब ऐसी अलगअलग प्रवृत्ति के 2 लोग आपस में वैवाहिक संबंध में बंधते हैं, तो सेक्स के बारे में अलगअलग नजरिया रखने के कारण सेक्स की प्रक्रिया और मर्यादा को ले कर उन में विवाद शुरू होता है और दोनों में से कोई भी इस बात को नहीं समझ पाता कि सेक्स मेनिया और सेक्स फोबिया, मानव मस्तिष्क में उठने वाली सेक्स को ले कर 2 अलगअलग प्रवृत्तियां हैं. दोनों के ही होने के कुछ कारण होते हैं और थोड़े से प्रयास और मनोचिकित्सक की सलाह के साथ इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है.

पीपिंग: पीपिंग का मतलब है चोरीछिपे संभोगरत जोड़ों को देखना और फिर उसी से यौन संतुष्टि प्राप्त करना. संभोगरत अवस्था में किसी को देखने से रोमांच की स्वाभाविक अनुभूति होती है. हेवलाक एलिस ने अपनी पुस्तक ‘साइकोलौजी औफ सेक्स’ में लिखा है कि संभ्रांत लोग अपनी जवानी के दिनों में दूसरी औरतों को सेक्स करते हुए देखने के लिए उन के कमरों में ताकाझांकी करते थे. यही नहीं सम्मानित मानी जाने वाली औरतें भी परपुरुष के शयनकक्षों में झांकने की कोशिश किया करती थीं. अगर आदत हद से ज्यादा बढ़ जाए तो एक गंभीर मानसिक रोग के रूप में सामने आती है.

ऐग्जिबिशनिज्म: इस डिसऔर्डर से पीडि़त व्यक्ति अपने गुप्तांग को किसी महिला या बच्चे को जबरदस्ती दिखाता है. इस से उसे खुशी और संतुष्टि मिलती है. ऐसे लोग दूसरों को अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचाना चाहते हैं. हमारे देश में किसी को इस तरह तंग करना कानूनन अपराध है. ऐसा करने वालों को निश्चित अवधि की कैद और जुर्माना देना पड़ सकता है.

फ्रोट्यूरिज्म: इस सेक्सुअल डिसऔर्डर से पीडि़त व्यक्ति किसी से भी संबंध बनाने से पहले अपने गुप्तांग को रगड़ता या दबाता है. यह डिसऔर्डर ज्यादातर नपुंसकों में पाया जाता है.

बेस्टियलिटि: इस में व्यक्ति के ऊपर सेक्स इतना हावी हो जाता है कि वह किसी के साथ भी सेक्स करने में नहीं झिझकता. ऐसे में वह ज्यादातर असहाय लोगों या जानवरों का उत्पीड़न करता है.

सैडीज्म ऐंड मैसेकिज्म: इस से पीडि़त व्यक्ति ज्यादातर समय फैंटेसी करता रहता है. ऐसे लोग सेक्स के समय अपने पार्टनर को नुकसान भी पहुंचाते हैं.

ऐक्सैसिव डिजायर: अगर किसी शादीशुदा पुरुष का मन अपनी पत्नी के अलावा अन्य महिलाओं के साथ भी शारीरिक संबंध बनाने को करे तो वह एक डिसऔर्डर से पीडि़त होता है.

सेक्स ऐडिक्शन: सेक्स ऐडिक्शन एक प्रकार की लत है, जिस में पीडि़त व्यक्ति को हर जगह दिन और रात सेक्स ही सूझता है. ऐसे लोग अपना ज्यादातर समय सेक्स संबंधी प्रवृत्तियों में बिताने की कोशिश करते हैं. जैसे कि पोर्न वैबसाइट देखना, सेक्स चैट करना, पोर्न सीडी, अश्लील एमएमएस देखना. एक सेक्स ऐडिक्ट की सेक्स इच्छा बेकाबू होती है. उस की प्यास कभी पूरी तरह नहीं बुझती. ऐसे लोग समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. वे बच्चों, बुजुर्गों या जानवरों के साथ सेक्स कर सकते हैं.

ऐबनौर्मल सेक्सुअल डिसऔर्डर के कारण

वैज्ञानिक, मनोचिकित्सक ऐबनौर्मल सेक्सुअल बिहेवियर के उत्पन्न होने के बारे में अभी तक सहीसही कारणों का पता नहीं लगा पाए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि मस्तिष्क में स्थित न्यूरोट्रांसमीटर में किसी प्रकार की खराबी, मस्तिष्क की रासायनिक कोशिकाओं में गड़बड़ी, जींस की विकृति आदि कारणों की वजह से व्यक्ति ऐबनौर्मल सेक्सुअल बिहेवियर से पीडि़त हो जाता है.

अगर हम बात करें सेक्स ऐडिक्शन की तो कुछ वैज्ञानिक ऐसा भी मानते हैं कि 80% सेक्स ऐडिक्ट लोगों के मातापिता भी जीवन में अकसर सेक्स ऐडिक्ट रहे होंगे. ऐसा भी माना जाता है कि अकसर ऐसे लोगों में सेक्सुअल ऐब्यूज की हिस्ट्री होती है यानी ज्यादातर ऐसे लोगों का कभी न कभी यौन शोषण हो चुका होता है. इस के अलावा जिन परिवारों में मानसिक और भावनात्मक रूप से लोग बिखरे हुए हों, ऐसे परिवारों के लोगों के भी सेक्स ऐडिक्ट होने की आशंका रहती है.

इस तरह के डिसऔर्डर की कई वजहें हो सकती हैं. जिन लोगों की उम्र 60 साल से ज्यादा होती है वे भी इस का शिकार हो सकते हैं. दूषित वातावरण, गलत सोहबत, अश्लील पुस्तकों का अध्ययन, ब्लू फिल्में अधिक देखने आदि की वजह से व्यक्ति ऐसी काम विकृति से पीडि़त हो जाते हैं. विवाह के बाद जब पत्नी को अपने पति के काम विकृत स्वभाव के बारे में पता चलता है तब उस की स्थिति काफी परेशानी वाली हो जाती है.

डिसऔर्डर को दूर करने के उपाय

अगर शादी के बाद पत्नी को पता चले कि उस का पति किसी ऐसे ही रोग से पीडि़त है, तो उसे संयम से काम लेना चाहिए. ऐसे पति पर गुस्सा करने, उस के बारे में ऊलजलूल बकने, यौन इच्छा शांत न करने देने, ताना देने आदि से गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है. ऐसे पति तुरंत किसी तरह का गलत निर्णय भी ले सकते हैं. यहां तक कि हत्या या आत्महत्या का निर्णय भी ले लेते हैं.

काम विकृति से पीडि़त पति को प्यार से समझाएं. सामान्य संबंध बनाने को कहें. जब पति न माने तब अपनी भाभी या सास को इस की जानकारी दें.

ऐसे लोगों का मनोचिकित्सक से इलाज कराया जा सकता है. इन में सब से पहले मरीज की काउंसलिंग की जाती है, जिस से पता लगाया जाता है कि मरीज बीमारी से कितना ग्रस्त है. उस के बाद उसे दवा दी जाती है.

वक्त रहते डाक्टर से परामर्श किया जाए तो इस तरह के डिसऔर्डर ठीक हो जाते हैं. लेकिन यह परेशानी ठीक नहीं हो रही और पति मानसिक व शारीरिक पीड़ा पहुंचाता है तो ऐसे व्यक्ति से तलाक ले कर अपनी जिंदगी को एक नई दिशा देने के बारे में सोच सकती हैं.

पुरुष का हृष्ट-पुष्ट और सुदर्शन दिखना बिस्तर में खिलाड़ी होने की गारंटी नहीं

अनेक अध्ययनों में पाया गया है कि पुरुष के सुदर्शन होने का या उसकी शोहरत का उसकी यौन क्षमता से कोई संबंध नहीं होता. बहुत संभव है कि फुटबॉल के मैदान का चोटी का खिलाड़ी बिस्तर पर शीघ्रपतन की समस्या का शिकार हो. इसी तरह यह भी हो सकता है कि हर समय और जगह सुंदरियों से घिरा सुपरस्टार लैंगिक तनाव की समस्या झेल रहा हो. कई साल पहले एक हॉलीवुड स्टार की पत्नी ने शादी के एक साल बाद ही अदालत में तलाक की यह कहते हुए अर्जी लगायी थी कि यह शख्स जानता ही नहीं कि औरत-मर्द के बीच सेक्स जैसी कोई बात भी हुआ करती है.

सेक्स के मामले की सच्चाई यही है कि जो चमकता है, जरूरी नहीं कि वह हीरा ही हो. इसके विपरीत बेरंग-सा नजर आने वाला पत्थर परखे जाने पर हीरा निकल सकता है. सदियों पहले वात्स्यायन ने भी कहा था कि विशालकाय पुरुषों की अपेक्षा दुबले-पतले और छोटे कद वाले पुरुष बिस्तर में ज्यादा समर्थ सिद्ध होते हैं. कुछ दशक पहले एक मराठी फिल्म अभिनेत्री ने इस धारणा को अपनी कहानी के जरिये सही साबित किया था.

वास्तव में इस अभिनेत्री ने तीन शादियां की थीं. पहली शादी उसने एक हीरो से की, जो कि दिखने में बेहद सुदर्शन था. सुंदर और ऊंची कद-काठी वाले इस पुरुष से अभिनेत्री एक साल से ज्यादा निबाह नहीं सकीं.

अभिनेत्री ने हीरो से तलाक लेने के बाद एक सनसनीखेज बात कही थी कि दरअसल हीरो को पहले ही दूसरी औरतें बुरी तरह निचोड़कर खाली कर चुकी थीं. मेरे लिए तो वह एक चूसे हुए आम की माफिक था. अभिनेत्री ने दूसरी शादी अधेड़ फिल्म निर्माता से रचायी थी, जो जवानी के दिनों में एक मशहूर पहलवान हुआ करता था.

तीन साल के बाद अभिनेत्री ने इन साहब से भी तलाक ले ली और उसका कारण यह बताया कि वह शख्स आज भी एक सच्चा पहलवान ही है . बिस्तर पर भी वह अपने लंगोट को कसकर रखता है. मेरी समझ में नहीं आता कि जो चीज उसके पास है ही नहीं, उसे वह छुपाने की कोशिश क्यों करता है?

अभिनेत्री ने तीसरा और अंतिम ब्याह एक साधारण सफलता पाने वाले कॉमेडियन से रचाया, जो न केवल लाठी की तरह पतला-दुबला था बल्कि कद में अभिनेत्री से भी कई इंच छोटा था.

दोनों की आखीर तक निभी. अभिनेत्री ने उसके बारे में अपनी एक सहेली को बताया, ‘वह जितना नाकाम एक्टर है, उतना ही कामयाब प्रेमी है.’ वात्स्यायन ने जो बात हजारों साल पहले कही थी, उसकी व्याख्या एक अमरीकी यौन विशेषज्ञ डॉ. आलमंड बेकर इस तरह करते हैं, ”हद से अधिक सुदर्शन और सजीली काया वाला पुरुष अक्सर इतना स्वार्थी होता है कि वह अपने ही इश्क में गिरफ्तार होकर रह जाता है. इस कारण उसके भीतर जो अति आत्मविश्वास की स्थिति बन जाती है, वह उसके यौन स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होती है. वह बिस्तर पर स्त्री के साथ होता है, किंतु अपनी कल्पना में केवल अपने साथ होता है.

इसके विपरीत साधारण रंग-रूप तथा तथा औसत कद-काठी वाले पुरुष बिस्तर पर अपनी संगिनी को संतोष व सुख देने के मामले में अधिक सचेत होते हैं. वे अपनी यौन सक्रियता पर अधिक ध्यान केंद्रित कर पाने की स्थिति में होते हैं.“

इस अंतर का एक कारण यह भी है कि लंबे-चौड़े और ताकतवर नजर आने वाले पुरुष कभी-कभी अपने शरीर में चर्बी का संचय इतना कर लेते हैं जो उनकी संभोग क्षमता को क्षीण बना देती है. वे शादी के कुछ ही अरसा बाद लैंगिक तनाव की समस्या से ग्रस्त हो सकते हैं. दूसरी तरफ क्षीणकाय दिखने वाले पुरुषों में चर्बी की कमी उनके और उनकी संगिनी के काम संबंधों के लिए सकारात्मक सिद्ध होती है.

कुछ इसी प्रकार की धारणा स्त्रियों के बारे में पुरुषों की होती हैं. सुंदर और जोशीली स्त्री को देखकर पुरुष कल्पना करने लगता है कि जितनी अच्छी वह देखने में लग रही है, उतनी ही अच्छी बिस्तर पर भी होगी. ऐसा होना कतई जरूरी नहीं है. साधारण और सुंदर स्त्री का अंतर कमरे की बत्ती बुझते ही खत्म हो जाता है. उसके बाद महत्व केवल इस बात का रह जाता है कि दोनों एक-दूसरे के प्रति कितना समर्पित और कामोत्साही हैं.

ऐसी अवस्था में अपनी साथी को प्यार करने वाली एक साधारण स्त्री या यूं कह लीजिए कि कुरूप समझी जाने वाली स्त्री एक रूपगर्विता की अपेक्षा कहीं अधिक उत्तेजक और आनंददायिनी सिद्ध हो सकती है. ऐसी स्त्री अपने आसपास के लोगों द्वारा बार-बार अपने रूप का बखान इतनी बार सुन चुकी होती है कि वह अपने आपको इतनी सारी शर्तों और नखरों में  बांध लेती है, जिनका सिलसिला उसके काम संबंधों तक पहुंच जाता है. ऐसी स्त्री के साथ दो-चार शुरूआती संसर्ग उत्सुकता जनित सुख देने वाले तो हो सकते हैं, किंतु पुरुष बहुत जल्द उससे उकता जाता है. एक अध्ययन में पाया गया है कि स्त्री जितनी अधिक रूप लावण्य वाली होती है, उसके तलाक की संभावना भी उतनी अधिक हुआ करती है.

(यह लेख लोकमित्र गौतम द्वारा विख्यात सेक्सोलाजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी से की गई बातचीत पर आधारित है)

एसटीडी और महिलाएं: सेक्स की राह में खतरे भी हैं कई!

‘कई बरस पुरानी बात है, मेरा सम्बंध एक रईस और मशहूर व्यक्ति से था. वह बेहद हाॅट और डैशिंग था. उसे देख हमेशा मन विचलित हो उठता था. वह वाकई किसी भी लड़की का ड्रीम ब्वाॅय हो सकता है. वह हमेशा डिजायनर सूट्स में रहता था. गाॅगल्स के बिना तो वह कभी घर से निकलता ही नहीं था. एक रोज उसने मुझे ऑफर कर दिया. मैं उसे मना ही नहीं कर पायी. आखिर कैसे करती? वह मेरे सपनों का राजकुमार था. वह राजकुमार जो सफेद घोड़े पर आकर मुझे ब्याहकर ले जाता है. हालांकि वह घोड़े पर नहीं आया था. मगर उसकी कार सफेद रंग की ही थी.

बहरहाल उसने मुझे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया. मैं बहुत खुश थी. उन्हीं दिनों जब उसने मुझसे अंतरंग सम्बंध स्थापित करने चाहे तो मैं इंकार नहीं कर सकी. वह रात का समय था. मैं यहां पेइंग गेस्ट के तौरपर रहती थी. मकान के मालिक घर पर नहीं थे. वह मेरे घर आया था. वो सब बहुत अचानक हुआ, जिसकी मुझे कल्पना नहीं थी. हालंाकि मैं बहुत खुश थी. इस सबके बीच मैं एक चीज भूल ही गई कि उन लम्हों के पहले कुछ सुरक्षा का भी ख्याल रखना चाहिए. लेकिन उस पर आंख मूंदकर भरोसा करती थी. इसलिए जो हुआ वह जानबूझकर था. लेकिन इस घटना  के एक साल बाद मैं चेकअप के लिए अपनी गायनी (स्त्रीरोग विशेषज्ञ) के पास गयी. मुझे बताया गया कि मैं क्लामीडिया (बीसंउलकपं) की शिकार हो गयी हूं. इस खबर से भी ज्यादा खतरनाक यह था कि बैक्टीरिया ने मेरी एक फेलोपियन ट्यूब को भी इंफेक्ट (संक्रमित) कर दिया था, जिससे मैं कभी भी मां नहीं बन सकती थी.’

ये भी पढ़ें- फोर प्ले जितना ही जरूरी है ऑफ्टर प्ले

यह एक 28 वर्षीय महिला का दर्दभरा खत है. लेकिन इस रोग से ग्रस्त वह अकेली महिला नहीं है. दरअसल, एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीजेज़ यानी यौन संक्रमण रोग जिसमें क्लामीडिया भी आता है) रोगियों की तादाद खासकर महिलाओं में बढ़ती जा रही है. पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में किए गये सर्वेक्षण के अनुसार, एसटीडी से जितने लोग ग्रस्त हैं, उनमें से 50 प्रतिशत से भी अधिक 25 वर्ष की आयु से कम के हैं. डाॅ. मिटशेल क्राइनिन, जिनके नेतृत्व में यह सर्वे किया गया, का कहना है कि एसटीडी का ज्यादा खतरा महिलाओं को है क्योंकि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के गुप्तांगों के इर्दगिर्द म्युकस मेंबरेंस ज्यादा होते हैं जिनके गर्म व नमी वाले वातावरण में बैक्टीरिया व वायरस को फलने-फूलने का अच्छा अवसर मिल जाता है. साथ ही 20-25 वर्ष आयुवर्ग वाली युवतियों की जो वैजाइनल (योनि) लाइनिंग होती है, उसमें प्रवेश करना बैक्टीरिया व वायरस के लिए आसान होता है. इससे भी खतरनाक बात यह है कि महिलाओं में एसटीडी ज्यादातर लक्षणरहित होती है.

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते अगर इसका उपचार करा लिया जाए, तो फिर कुछ खास समस्या नहीं रहती. महिलाओं को होने वाला ऐसा ही एक रोग है एचपीवी. एचपीवी किस तरह महिलाओं को अपने घेरे में लेता है, पढ़िए यह पत्र- ‘रूटीन चेकअप कराने के बाद जब मेरी गायनी ने यह बताया कि मुझे एचपीवी है तो मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गयी. इससे भी ज्यादा खराब मुझे यह लगा जब गायनी ने कहा कि मुझ जैसी लड़कियों को एचपीवी होना ही चाहिए. डर के साथ मुझे शर्म भी थी इसलिए मैंने यह बात किसी को नहीं बतायी. लेकिन एक बोझ के साथ भी ज्यादा दिन जिया नहीं जा सकता. लिहाजा यह बात मैंने अपनी सबसे प्यारी सहेली को बतायी. उसने मुझे अपनी बहन से मिलवाया जो खुद एचपीवी की शिकार थी. दोनों बहनों ने मुझे समझाया कि एचपीवी सेक्स करने की सजा नहीं है. यह तो एक वायरस है जो किसी को भी अपना शिकार बना सकता है.’

ये भी पढ़ें- गुप्त रोग लाइलाज नहीं!

एचपीवी का अर्थ है ह्यूमन पेपिल्लोमा वायरस (ीनउंद चंचपससवउं अपतने). इसके तहत विभिन्न किस्म के लगभग 100 वायरस आते हैं जिनसे वाटर््स (मस्से) हो जाते हैं. इनमें से 40 वायरस महिलाओं को उस वक्त संक्रमित करते हैं, जब उनके गुप्तांग किसी संक्रमित पुरुष के संपर्क में आ जाएं. अमूमन जब यह होता है तो न कोई मस्से विकसित होते हैं और न ही किसी बीमारी का अहसास होता है. और कुछ माह या कुछ साल बाद महिला के जिस्म का इम्यून सिस्टम (प्रतिरोधक क्षमता) अपने आप ही इन वायरसों को नष्ट कर देता है.

लेकिन इन सौ में से दो वायरस ऐसे हैं जिनकी वजह से वार्ट्स या मस्से विकसित हो सकते हैं. संक्रमण के दो सप्ताह के भीतर वल्वा (भग), वैजाइना (योनि), सर्विक्स और एनल (गुदा) क्षेत्र- या जहां भी संक्रमित साथी के साथ संपर्क बनाया गया हो- सफेद या त्वचा की रंग के चकत्ते उभर आते हैं. एक या दो ही चकत्ते होते हैं लेकिन अक्सर एक ही मस्सा गोभी के फूल की तरह बहुत सारे मस्सों में फूट जाता है. इन सौ में से 15 वायरस से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है. हालांकि पुरुषों को इस रोग से कोई खास नुकसान नहीं होता लेकिन एचपीवी संक्रमण उन्हें कैरियर (वाहक) अवश्य बना देता है, यानी वे इस रोग को एक महिला से दूसरी महिला तक पहुंचा सकते हैं. शोध से यह भी मालूम हुआ है कि एचपीवी के कुछ वायरस पुरुषों में एनल (गुदा) और पेनाइल (लिंग) कैंसर का कारण भी बन जाते हैं.

वार्ट्स या मस्से मुलायम और सूखे होते हैं लेकिन उनमें कोई तकलीफ या खुजली नहीं होती. सवाल यह है कि क्या यह हमेशा संक्रमित होते हैं? इस सिलसिले में विख्यात गुप्तरोग विशेषज्ञ स्वर्गीय डाॅ. बी.बी. गिरि का कहना है, ‘वार्ट्स हमेशा बहुत अधिक इंफेक्शस (संक्रमणकारी) होते हैं. अगर वार्ट्स मौजूद न भी हों तो भी उनसे एचपीवी दूसरों को लग सकती है या खुद को हो सकती है.’ डाॅ. गिरि का यह भी कहना है कि कंडोम हमेशा एचपीवी से बचाव नहीं कर सकता. ऐसा इसलिए है क्योंकि कंडोम पुरुष के सिर्फ निजी अंग को ढकता है और दूसरी जगहों पर जो इसके वायरस होंगे, वह महिला को लग सकते हैं. अब सवाल यह है कि अगर किसी को एचपीवी के वार्ट्स हो जाएं, तो क्या किया जाए? इस सिलसिले में गायनी अकसर एक क्रीम सुझाती हैं जिससे आठ सप्ताह के भीतर आराम पहुंच जाता है. लेकिन अगर यह काम न करे, तो गायनी उन मस्सों को अपने क्लिनिक में बर्न या फ्रीज़ करेगी. यह भी हो सकता है कि एक मस्सा ठीक कराते वक्त दूसरा मस्सा पनप जाए.

ये भी पढ़ें- कब और कैसे लग जाता है सेक्सुअल ब्लाॅक

जैसा कि ऊपर कहा गया है कि चालीस एचपीवी वायरस कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचाते. लेकिन जिन दो वायरसों से संक्रमण होता है, उनसे सर्वाइकल डिस्प्लेसिया -सर्विक्स की कोशिकाओं में परिवर्तन- हो सकता है जिसकी सर्वाइकल कैंसर में तब्दील होने की आशंका रहती है. लेकिन घबराने की बात नहीं है. जितनी जल्दी आप पैप (चंच) टेस्ट करा लेंगी उतनी जल्दी यह मालूम हो जायेगा कि डिस्प्लेसिया है या नहीं. जाहिर है, मालूम होने पर उसे कैंसर के स्तर तक पहुंचने से रोका जा सकता है.

आप भी पा सकते हैं मल्टिपल और्गैज्म

आप इस सच को अच्छा भी कह सकती हैं और बुरा भी, क्योंकि इससे सेक्शुअल संबंधों में आपका दबदबा कम भी हो सकता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि हालांकि मल्टिपल और्गैज्म (एक से अधिक बार चरम पर पहुंचना) पाना महिलाओं की शारीरिक विशेषता है, लेकिन यदि पुरुष इसे पाने के लिए थोड़ी मशकक्त करें तो वे भी इसका आनंद ले सकते हैं. यह मानना कि पुरुष हर सत्र में केवल एक बार ही और्गैज्म का अनुभव करते हैं, मिथक है.

इस राज का खुलासा

पुरुषों के लिए मल्टिपल और्गैज्म कोई नई संकल्पना नहीं है, बल्कि यदि आप प्राचीन ताओइस्ट की तकनीकों में मल्टिपल और्गैज्म के राज़ का खुलासा किया गया है. ताओइस्ट मान्तक चिया की किताब दि मल्टी-ऑर्गैज़्मिक मैन: सेक्शुअल सीक्रेट्स एवरी मैन शुड नो के अनुसार,‘‘और्गैज्म और इजेकुलेशन (स्खलन)-जो दो अलग-अलग शारीरिक प्रक्रियाएं हैं, के बीच के अंतर को सीखकर पुरुष मल्टिपल और्गैज्म पा सकते हैं.’’

होती है योग्यता

स्टेट यूनिवर्सिटी औफ न्यूयौर्क के एम ई डन और जेई फ्रॉस्ट द्वारा वर्ष 1979 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, पुरुषों में मल्टिपल और्गैज़्म पाने की योग्यता होती है. उन्होंने बताया कि पारंपरिक मान्यता के अनुसार एक स्वस्थ पुरुष में और्गैज्म के दो चरण होते हैं-और्गैज्म के बाद तुरंत स्खलन और फिर थोड़ा समय, जो सामान्य होने में लगता है. पर अपने शोध के दौरान डन और फ्रॉस्ट ने पाया कि एक नॉन-इजैकुलेटरी और्गैज्म भी होता है, जो इजैकुलेटरी और्गैज्म के पहले या बाद में भी आ सकता है. और इस तरह के कई और्गैज्म आ सकते हैं. ‘‘अध्ययनों से पता चलता है कि मास्टबेशन के दौरान युवकों को कई ऑगैज़्मिक पीक्स का अनुभव होता है, खासतौर पर इजैकुलेशन से ठीक पहले,’’ यह कहना है डॉ फेलिस डनास का, जो क्लीनिकल चायनीज मेडिसिन के विशेषज्ञ हैं.

इस कला को अर्जित किया जा सकता है

पुरुषों के लिए मल्टिपल और्गैज्म नाबिल्कुल अपने सपनों की महिला को पाने जैसा होता है-इसके लिए लगन, संयम और तीव्र इच्छाशक्ति की जरूरत होती है. सेक्सोलॉजिस्ट डॉ प्रकाश कोठारी इसे अर्जित कर सकनेवाली कला मानते हैं. वे कहते हैं,‘‘हालांकि पुरुषों में मल्टिपल और्गैज्म पाने की स्वाभाविक विशेषता नहीं होती, लेकिन सही तकनीक को सीख कर वे इसका आनंद उठा सकते हैं.’’

Summer Special: गरमी में बेहद काम के हैं ये 3 मजेदार सेक्स टिप्स

सोचिए, दिल्ली में किसी की नईनई शादी हुई है और महीना है झुलसती मई का. कपल अभीअभी मनाली की सर्दियों में इश्क के पेंच लड़ा कर वापस लौटा है. हनीमून की मदमाती हवस अभी भी उस के दिलो दिमाग पर छाई हुई है पर दिल्ली का उबलता मौसम कह रहा है मुझ से पंगा मत लेना, पिघला कर रख दूंगा.

पर वह नयानवेला जोड़ा ही क्या जो अपनी सेक्स लाइफ पर मौसम की बेरुखी को हावी होने दे. वह तरहतरह के जतन करता है और दिल्ली में ही मनाली की मीठी सर्दी ले आता है ताकि बैडरूम में मिलन का माहौल बना रहे.

हम भी आप को सेक्स लाइफ को शानदार करने के कुछ टिप्स दे रहे हैं जो गरमी में भी आप को सर्दी का अहसास कराएंगे ताकि आप का प्रेम राग बजता रहे.

कमाल का ठंडा टुकड़ा

कई साल पहले चार्ली शीन और वलेरिया गोलिनो की एक इंगलिश कौमेडी फिल्म ‘हौटशौट’ आई थी जिस के एक सीन में प्यार करने के दौरान जब चार्ली शीन वलेरिया गोलिनो की नाभि पर बर्फ रगड़ता है तो वह उस के बदन की गरमाहट से पानी बुलबुले बन जाता है. यही बर्फ का टुकड़ा आप के फोरप्ले में भी प्यार का तड़का लगा सकता है. एक पंथ दो काज. आजमा कर देखिए, ठंडी बर्फ सेक्स की गरमाहट को यकीनन नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी.

मस्ती का फव्वारा

अब हिंदी फिल्मों की तरह भरी बरसात में आप अपने पार्टनर के साथ खुले में प्यार की पेंगे तो नहीं बढ़ा सकते हैं पर बाथरूम का शौवर आप की हसरतों को सांतवे आसमान पर जरूर ले जा सकता है. सस्ता और टिकाऊ साधन.

शौवर के नीचे आप दोनों तन और मौसम की गरमी से बहुत हद तक  राहत पा सकते हैं. बाथरूम में ही सही ‘टिपटिप बरसा पानी’ आप का सेक्स का मजा दोगुना कर देगा. अगर घर पर कोई नहीं है और घर में आंगन है तो खुले में पानी का फव्वारा और दो जिस्म माहौल को रंगीन और नम बनाने में कसर नहीं छोड़ेंगे.

स्विमिंग पूल बड़ा कूल

यहां मामला थोड़ा सा खर्चीला हो सकता है पर है बड़ा मस्त. किसी होटल में जाइए और अपने प्राइवेट पूल में सेक्स की गहराइयों तक गोते लगाइए. प्यार की भूख मिटाने के बाद अच्छे स्वादिष्ट खाने से पेट भरिए और अपनी जिंदगी की नई पारी की बेहतरीन शुरुआत कीजिए.

जब दिल में हो एक-दूसरे के लिए प्यार और सम्मान, तभी मिल सकता है सुकून और संतुष्टि

सेक्स का सीधा संबंध मन और मस्तिष्क से है. इसलिए आपस में सेक्स संबंध बनाने वाले कपल में एक दूसरे के लिए न केवल प्यार और सम्मान हो बल्कि भरपूर दोस्ताना भी हो. कोई किसी के साथ जोर जबरदस्ती न करे,न कोई किसी पर सिर्फ अपनी चाहत जबरदस्ती लादे . सेक्स में किसी भी तरह की कोई सीमा नहीं है, सीमा बस एक ही है आपके पार्टनर की सहमति. इसलिए सबसे पहली और जरूरी शर्त यह है कि जिसके साथ सेक्स संबंध बनाएं उसकी भावनाओं की कद्र करें, उसकी इज्जत करें, उसे सम्मान दें.

बकौल सेक्स एक्सपर्ट डेविड रूबीन, ‘सेक्स एक ऐसा खेल है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा खेला जाता है. जिसमें सबसे ज्यादा आनंद आता है. जिसे किसी को भी खेलने का हक है. जिसमें हर खिलाड़ी का बराबर का योगदान होता है. कोई पराजित नहीं होता हर कोई विजेता होता है. जब इस भावना से यह खेल खेला जाता है तो यह आनंद का सागर बन जाता है. सेक्स के खेल में छेड़छाड़, मनुहार, हंसी, आश्चर्य, नाटकीयता और भावुकता सब जायज है. सच तो यह है कि बिना नाटकीयता और  एक्साइटमेंट के यह खेल बिल्कुल नीरस लगता है.

वास्तव में सेक्स का हमारे मन और हमारे ख्यालों से बहुत गहरा रिश्ता है. आपमें कितनी ही शारीरिक उत्तेजना क्यों न हो, अगर मन किसी दूसरे काम या चिंता में फंसा हुआ है तो आप सेक्स नहीं कर सकते. करेंगे तो खुशी नहीं मिलेगी. इसलिए जब सेक्स करें तो उसमें खो जाएं. उस समय दीन-दुनिया के बारे में कुछ न सोचें. हर अदा की तरह सेक्स के भी दो रूप होते हैं. आप इसे नियंत्रित भी कर सकते हैं और बेकाबू होने पर आप इसके गुलाम भी हो सकते हैं. कहने का मतलब यह है कि सेक्स को दबाने की शक्ति तो आपमें होती है, लेकिन अगर यह बहुत प्रबल हो जाए तो किसी भी हाल में पार्टनर ढूंढ़ने लगता है.

सेक्स अगर दिल दिमाग पर हावी हो जाए और कोई वाजिब रास्ता ढूंढे न मिले तो रेप जैसे अपराध जन्म लेते हैं. सेक्स में जब दोनो पार्टनर की आपस में रजामंदी होती है तो आनंद की जबरदस्त लय बनती है. ऐसे कपल्स के बीच में ही प्रगाढ़ सेक्स संबंध बनते हैं. एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान के साथ किया गया सेक्स दो लोगों को एक ऐसी आत्मीयता की जंजीर से बांधता है जो जंजीर कभी नहीं टूटती. हालांकि सेक्स एक शारीरिक अभिव्यक्ति है, भूख है, पर सेक्स उत्पन्न केवल मन से होता है. मन स्वस्थ हेागा, तो सेक्स भी स्वस्थ होता है. शुरू में शारीरिक आकर्षण के चलते संबंध बनते हैं. लेकिन यदि मन के तार न मिले तो चेहरे चाहे कितने ही आकर्षक क्यों न हो, यह रिश्ता टूट जाता है.

मन के तार जब आपस में मजबूती से बंधे होते हैं तो हर बार के सेक्स संबंध मुकम्मल और संतुष्टि से भर देने वाले होते हैं. ज्यादातर पुरुषों में शीघ्रपतन और लिंग में तनाव न हो पाने की समस्या मानसिक तनाव के चलते ही आती है. 100 में 98-99 बार चेकअप के बाद पाया जाता है कि सब कुछ बिल्कुल ठीक है. लेकिन अगर पार्टनर के साथ प्यार भरे रिश्ते नहीं हैं तो दिल दिमाग में हमेशा एक धुकपुकी मची रहती है और इस धुकपुकी के चलते कुछ भी अच्छा नहीं होता, कई तरह की समस्याएं आ जाती हैं. इसलिए जब किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाएं उससे पहले उसके साथ दिल के, प्यार के और सम्मान के रिश्ते भी बनाएं.

एक संपूर्ण सुख से भरा संतुष्टिायक सेक्स तनाव से पूरी तरह मुक्ति दिलाता है. जबकि सेक्स से वंचित रहने पर या संतुष्टिदायक सेक्स न हासिल होने पर तनाव व चिड़चिड़ापन पैदा हो जाता है. अब आप सूरज और श्रद्धा की कहानी पर एक नजर दौड़ाएं. सूरज अभी अधेड़ नहीं हुए. लेकिन उनकी काया कह रही है कि जवानी उनका साथ छोड़ चुकी है. अधपके बाल, पिचके गाल, झुकी पीठ, बेहिसाब तोंद और ढीली लड़खड़ाहट भरी चाल. दरअसल, उनकी समस्या थी जबर्दस्त तनाव. दफ्तर में वे बारह से सोलह घंटे तक काम करते हैं. इसके बाद क्लब जाकर दो-तीन पैग पीते हैं. घर पहुंचते हैं रात में ग्यारह बजे के बाद. फिर जल्दी-जल्दी खाना और सोना. उनकी पत्नी श्रद्धा उनसे चैबीसों घंटे खफा रहती है.

श्रद्धा को लगता है कि उनके पति घर खर्च के पैसे देकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं. बेटा अपनी दुनिया में मस्त है. वह इस साल 12वीं में गया है. बेटी 7वीं की छात्रा है. श्रद्धा के निजी जीवन में बहुत तनाव है. उसकी सूरज के साथ अकसर किसी न किसी बात पर लड़ाई होती रहती है. सूरज भी इन बातों से तनाव में रहता है. एक रोज सूरज आॅफिस में बाॅस से हुई तनातनी के बाद अपना इस्तीफा उनके टेबल पर फेंक आए.

ये सारी स्थितियां श्रद्धा और सूरज के दाम्पत्य जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रही हंै. अंत में दोनो ने मनोचिकित्सक की सलाह लेने में ही भलाई समझी. मनोचिकित्सक ने उनसे छूटते ही पूछा, ‘दोनो के रिश्ते कैसे हैं?’ इस पर सूजर अचकचा गया. सूरज भी खामोश रहा और श्रद्धा भी कुछ नहीं बोली. डाॅक्टर ने सवाल इस बार और भी सपाट शब्दों में पूछा आप दोनो के बीच कितने दिन में शारीरिक सम्बंध बनते हैं? सूरज को वह दिन याद करने में काफी मुश्किल हुई. श्रद्धा ने ही धीमे स्वर में कहा तकरीबन 4 महीने गुजर हैं. उस रोज भी वे ठीक से परफाॅर्म भी नहीं कर पाए थे. श्रद्धा ने अपनी असंतुष्टि भी जता दी थी.

डाॅक्टर ने अगला सवाल किया, ‘क्या अब आप सेक्स मेें बिलकुल भी रूचि नहीं लेते?’ सूरज को मजबूरन कहना ‘मैं इतना व्यस्त रहता हूं कि समय ही नहीं मिलता. ऊपर से हर वक्त तनाव बना रहता है. आॅफिस में भी और घर में भी. ऐसे में सेक्स करें, तो कैसें?’ डाॅक्टर ने जब उन्हें बताया कि नियमित सेक्स से वे तनाव से निजात पा सकते हैं, तो सूरज को विश्वास नहीं हुआ. इतनी टेंशन, इतनी कुंठा- सेक्स से कैसे दूर हो सकती है? लेकिन वे उन्हें यकीन दिलाते हैं कि जब शारीरिक सम्बंध निरंतर विकसित होते हैं, निजी जीवन से तनाव दूर भाग जाता है.

अच्छा और रोमांटिक सेक्स तभी संभव है जब आप खुशबू का दामन छूते हैं. कहने का मतलब यह है कि कुछ परफ्यूम या प्राकृत सुगंध ऐसी होती है जो महिलाओं और पुरुषों को सेक्सुअली उत्तेजित करती है. ऐसे में जरूरी है कि दम्पति अपने जीवन को रोमांस से भरने के लिए उनका सहारा ले ताकि सेक्स में भी मजा आता रहे और तनाव से भर दूर हो जाएं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें