जब हुआ एक अत्याचार का खुलासा

घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले की है. घाटीगांव, ग्वालियर के सर्राफा बाजार में कमल किशोर की ‘नयन ज्योति ज्वैलर्स’ के नाम से ज्वैलरी शौप है. कमल किशोर ग्वालियर के लश्कर क्षेत्र में रहते हैं.

10 अक्तूबर को कमल के चाचा विष्णु सोनी का उस के पास फोन आया. चाचा ने बताया कि देविका इनकम टैक्स विभाग में अधिकारी बन गई है. इतना ही नहीं, देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य को भी इनकम टैक्स विभाग में अच्छी नौकरी लगवा दी है.

चचेरी बहन देविका और आदित्य के इनकम टैक्स विभाग में अफसर बनने पर कमल किशोर बहुत खुश हुआ. देविका विष्णु सोनी की एकलौती बेटी थी. विष्णु आटो चलाता था. उस की ग्वालियर के पास गुना में कुछ जमीन थी, जो उस ने बंटाई पर दे रखी थी.

देविका ने ग्वालियर के ही रहने वाले अपने जिस फुफेरे भाई आदित्य को अपने विभाग में नौकरी पर लगवाया था, वह सरकारी नौकरी पाने के लिए बहुत परेशान था. उच्चशिक्षा हासिल करने के बाद भी जब उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली तो उस ने दूध की डेयरी खोल ली थी.

इस के साथ ही विष्णु सोनी ने कमल किशोर को जो बात बताई, वह चौंकाने वाली थी. विष्णु ने बताया कि देविका बता रही थी कि इनकम टैक्स विभाग तुम्हारे ज्वैलरी शोरूम पर रेड (छापेमारी) की तैयारी कर रहा है. इस बारे में चाहो तो देविका से बात कर लेना.

इस के बाद कमल किशोर ने देविका और फुफेरे भाई आदित्य से बात की. इस पर देविका और आदित्य ने कहा कि बात तो सही है. आप के शोरूम पर रेड का आदेश आने वाला है. देविका ने कमल को बताया कि अगर ऐसा होता है तो वह उन्हें बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

रेड की सूचना की पुष्टि हो जाने पर कमल किशोर की चिंता बढ़नी स्वाभाविक थी. वैसे कमल किशोर का बहीखाता, हिसाबकिताब सही था. फिर भी उस ने हिसाबकिताब बारीकी से सही करने की कवायद शुरू कर दी. लेकिन इस के पहले ही 21 अक्तूबर की दोपहर में उस की चचेरी बहन देविका और भाई आदित्य सोनी 5 व्यक्तियों की टीम ले कर सर्राफा मार्केट स्थित उस के ज्वैलरी शोरूम पर छापेमारी करने पहुंच गए.

इस टीम ने बारीकी से ज्वैलरी खरीदने और बेचने के बिल चैक किए. 6 घंटे तक चली काररवाई में उन्होंने कमल के खातों में कई कमियां निकाल दीं, जिस की उन्होंने 18 लाख रुपए की पेनल्टी लगाई.

कमल किशोर के सभी खाते लगभग सही थे, परंतु पेनल्टी की इतनी बड़ी राशि सुन कर वह चिंता में पड़ गया. ऐसे में देविका और आदित्य ने मदद के लिए आगे आ कर 6 लाख रुपए में समझौता करने की बात कही. कमल किशोर के पास उस वक्त 60 हजार रुपए थे. देविका ने 60 हजार रुपए ले कर बाकी के 5 लाख 40 हजार रुपए का अगले दिन इंतजाम करने को कहा. इस के बाद पूरी टीम वहां से चली गई.

देविका के जाने के बाद कमल किशोर ने इस मामले पर गौर से सोचा तो उसे इनकम टैक्स विभाग का छापेमारी का यह तरीका कुछ समझ में नहीं आया.

उसे यह भी शक होने लगा कि अगर देविका किसी तरह इनकम टैक्स अधिकारी बन भी गई तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आदित्य को भी अपने विभाग में अफसर बनवा दे. क्योंकि सरकारी नौकरी पाने की भी एक प्रक्रिया होती है, जो कई महीनों में पूरी होती है. फिर इतनी जल्दी आदित्य को नौकरी कैसे मिल गई.

शक की दूसरी वजह यह भी थी कि अगले दिन से ही कमल किशोर के पास आदित्य और देविका के 5 लाख 40 हजार रुपए जमा करने के लिए फोन आने लगे. इस बारे में उस ने कुछ व्यापारियों से बात की तो उन्हें भी छापेमारी की यह काररवाई संदिग्ध लगी. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस से करने की सलाह दी. इस के बाद कमल किशोर ने ग्वालियर के भारीपुर थाने में जा कर टीआई प्रशांत यादव से मुलाकात की और उन्हें पूरी घटना से अवगत कराया.

कमल किशोर की बात सुन कर टीआई भी समझ गए कि यह किसी ठग गिरोह की करतूत हो सकती है, इसलिए उन्होंने तत्काल इस की जानकारी एसडीपीओ (थाटीपुर) प्रवीण अस्थाना के अलावा एसपी नवनीत भसीन को दे दी. उक्त अधिकारियों के निर्देशानुसार टीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी.

टीआई प्रशांत यादव ने देविका, आदित्य के मोबाइल नंबरों पर फोन लगा कर उन्हें थाने आने को कहा. लेकिन वह थाने नहीं आए. जवाब में देविका ने टीआई से कहा कि छापेमारी के सारे कागजात हम ने एसपी औफिस और कलेक्टर औफिस में जमा कर दिए हैं, इसलिए वे थाने आ कर बयान दर्ज करवाना जरूरी नहीं समझते.

इस बात से पुलिस को विश्वास हो गया कि कमल किशोर के साथ ठगी हुई है. क्योंकि इनकम टैक्स द्वारा की गई छापेमारी के कागजात एसपी या कलेक्टर औफिस जमा कराने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए पुलिस बारबार देविका और उन की टीम को फोन कर के थाने आने के लिए दबाव बनाने लगी.

इस के 3 दिन बाद 24 अक्तूबर, 2019 को देविका व आदित्य अपने साथियों इसमाइल, भूपेंद्र, गुरमीत उर्फ जिम्मी के साथ थाने पहुंच गए. इन पांचों से पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की.

सब से की गई पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि कमल किशोर के शोरूम पर छापेमारी करने वाले देविका और अन्य लोग फरजी आयकर अधिकारी थे, जिन्होंने बड़े शातिराना ढंग से अपना गिरोह बनाया था. पुलिस ने पांचों को गिरफ्तार कर दूसरे दिन अदालत में पेश किया, जहां से पुलिस ने उन्हें 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की.

करीब 6 महीने पहले देविका काम की तलाश में दिल्ली गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात जुबैर नाम के एक युवक से हुई. जुबैर ने उसे अपना परिचय सीबीआई के अंडरकवर एजेंट के रूप में दिया. देविका नहीं जानती थी कि अंडरकवर एजेंट क्या होता है. वह तो सीबीआई के नाम से ही प्रभावित हो गई थी.

अपनी बातों के प्रभाव से जुबैर ने जल्द ही देविका को शीशे में उतार लिया, जिस के बाद दोनों की अलगअलग होटलों में मुलाकात होने लगी. जुबैर शातिर था. उस के कहने पर देविका ने अपने नाम से एक मोबाइल और एक सिमकार्ड खरीद कर उसे दे दिया. जुबैर हमेशा उसी नंबर से देविका से बात करता था.

दोनों की दोस्ती बढ़ी तो जुबैर ने उसे इनकम टैक्स अधिकारी बनाने का सपना दिखाया. फिर देविका से मोटी रकम ले कर उस ने उसे आयकर विभाग में आयकर अधिकारी के पद पर जौइनिंग का लेटर दे दिया. साथ ही पूरा काम समझा कर वापस ग्वालियर भेज दिया. साथ ही यह निर्देश भी दिया कि वह वहां जा कर पूरी टीम गठित कर ले.

ग्वालियर आ कर देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य सोनी को अपनी टीम में शामिल किया. फिर आदित्य ने टोपी बाजार में चश्मे की दुकान चलाने वाले गुरमीत उर्फ जिम्मी को सीधे इनकम टैक्स अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया.

बाद में देविका ने बरई थाना परिहार में रहने वाले मोटर वाइंडिंग मैकेनिक इसमाइल खां को इनकम टैक्स इंसपेक्टर और भूपेंद्र कुशवाह को सीबीआई अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया.

इस तरह एक महीने में ही ग्वालियर में पूरी टीम खड़ी करने के बाद देविका ने इस की जानकारी जुबैर को दी तो उस ने देविका को अकेले मिलने के लिए दिल्ली बुलाया. देविका 2 दिन दिल्ली स्थित एक होटल में रही.

तभी देविका ने जुबैर को बताया कि उस के ताऊ के बेटे कमल किशोर की ज्वैलरी की दुकान है, अगर वहां छापा मारा जाए तो मोटी रकम हाथ लग सकती है. जुबैर ने देविका को समझा दिया कि छापा किस तरह मारना है और कैसे मोटी रकम ऐंठनी है.

देविका दिल्ली से ग्वालियर लौटी तो कमल किशोर की दुकान में छापा मारने की तैयारी करने लगी. फिर उस ने अपनी टीम के साथ 21 अक्तूबर को कमल किशोर की दुकान पर छापेमारी की. 18 लाख की पेनल्टी का डर दिख कर उस ने कमल से 6 लाख में समझौता कर के 60 हजार रुपए ऐंठ लिए. इस के बाद वह कमल किशोर से 5 लाख 40 हजार रुपए की मांग करती रही.

जिम्मी के पास से पुलिस ने कमल किशोर से ठगे गए रुपयों में से 4 हजार रुपए बरामद किए. जिम्मी ने बताया कि बाकी रुपए उन्होंने घूमनेफिरने पर खर्च कर दिए थे. छापेमारी के बाद सभी लोग किराए की इनोवा कार ले कर दिल्ली गए, जहां वे पहाड़गंज के एक होटल में रुके. यहां एक दिन रुकने के बाद मथुरा आए और गिरराजजी की परिक्रमा की. फिर वापस मोहना में देविका के घर गए.

पुलिस ने पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

पहले की पत्नी की हत्या, फिर लगाया आम का पेड़

घरवालों के लाख मना करने के बाद भी दीपा ने गांव के ही दूसरी जाति के युवक समरजीत से शादी कर ली. इस के बाद दीपा ने ऐसा क्या किया कि प्रेमी से पति बने समरजीत ने उस की हत्या कर लाश जमीन में दफना कर उस पर आम का पेड़ लगा दिया. समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.

देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी. दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है. गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था.

इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया. तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’ यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’

‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’

समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी. समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.

बेटी की कोई खैरखबर मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर गयाथोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है. समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?

रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई. रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.

मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया. उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला. चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.

अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके. इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले. दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था.

समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गयाचूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’

‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गयाथानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’

इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है. उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच सकें.’’

वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?

पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई. थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली. उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेतीकिसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.

वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गएदोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो. मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो.

उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे. घर वाले तैयार हों या हों, उन्हें इस बात की फिक्र थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.

फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी. कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.

एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई. समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दीचूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.

आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया. दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.

बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगादीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी. इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा. समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थेसमरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.

दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए. समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने ही जाता है.

दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.  रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.

समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुम, आज इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला. कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगावह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’

‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगीतभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’

पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है. अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई

उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई. काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा. समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’

पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी. 23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.

जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दियाउस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.

गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछाजब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर गई थी. समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

मिलने के बहाने बुलाकर रूबी ने करवाया मर्डर

रूबी चंचल स्वभाव की थी, जिस की वजह से कोई भी उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पहले आनंदपाल और बाद में इंद्रपाल उस के अल्हड़पन से ही उस के करीब आए थे. बाद में दोनों में ऐसी ठनी कि इंद्रपाल को दुनिया से जाना पड़ा और आनंद को जेल… 

20 साल की रूबी लखनऊ के आशियाना इलाके में नौकरी करती थी. देखने में वह बहुत सुंदर भले ही नहीं थी, पर उस में चुलबुलापन जरूर था. यानी सांवले रंग में भी तीखापन, जो सहज ही किसी को भी अपनी ओर खींच लेता था. दिल खोल कर बात करने की उस की अदा से सब को लगता था कि रूबी उसे ही दिल दे बैठी है. रूबी अपने गांव से शहर आई थी. उसे अपने हुनर से ही गुजरबसर करने लायक जमीन तैयार करनी थी. वह बहुत सारे लोगों से मिलतीजुलती थी, जिन में से एक आनंद भी था. उम्र में वह रूबी से करीब 10 साल बड़ा था. इस के बाद भी रूबी और आनंद की आपस में गहरी दोस्ती हो गई

रूबी काम पर जाती तो उसे लाने ले जाने का काम आनंद ही करता था. रूबी को भी इस से सहूलियत होती थी. उसे वक्तबेवक्त आनेजाने में कोई डर नहीं रहता था. एक तरह से रूबी को ड्राइवर और गार्ड दोनों मिल गए थे. दोस्ती से शुरू हुई यह मुलाकात धीरेधीरे रंग लाने लगी. वक्त के साथ दोनों के संबंध गहराने लगे. आनंद चाहता था कि रूबी केवल उस के साथ ही रहे पर रूबी हर किसी से बातें करती थी. उस के खुलेपन से बातें करने से हर किसी को लगता था कि रूबी उस की खास हो गई है. आनंद और रूबी का चक्कर चल ही रहा था कि वह इंद्रपाल के संपर्क में गई. इंद्रपाल उस के साथ काम करता था. अब रूबी कभीकभी आनंद के बजाय इंद्रपाल के साथ आनेजाने लगी. आनंद और इंद्रपाल में अंतर यह था कि इंद्रपाल रूबी की उम्र का ही था.

सीतापुर जिले का रहने वाला इंद्रपाल नौकरी करने के लिए लखनऊ आया था. आनंद को रूबी और इंद्रपाल का आपस में घुलनामिलना पसंद नहीं रहा था. वह सोच रहा था कि किसी दिन रूबी को समझाएगा. एक दिन रूबी और इंद्रपाल शाम को आशियाना के किला चौराहे पर चाट के ठेले पर खड़े पानीपूरी खा रहे थे. रूबी को पानीपूरी बहुत पसंद थी. इत्तफाक से आनंद ने दोनों को देख लिया तो उसे गुस्सा गयाजब रूबी आनंद से मिली तो उस ने कहा, ‘‘तुम आजकल अपने नए दोस्त से कुछ ज्यादा ही घुलमिल रही हो. यह मुझे पसंद नहीं है. अगर मुझ में कोई कमी हो तो बताओ, लेकिन तुम्हारा इस तरह से किसी और के साथ समय गुजारना मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘तुम भी क्याक्या सोचते रहते हो, हम दोनों केवल साथी हैं. कभीकभी उस के साथ घूमने चली जाती हूं, इस से तुम्हारेमेरे संबंधों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम परेशान मत हो.’’

‘‘देखो, तुम्हें फर्क भले पड़ता हो पर मुझे पड़ता है. मैं इसे सहन नहीं कर सकता. मेरे जानने वाले कहते हैं कि देखो तुम्हारे साथ रहने वाली रूबी अब किसी और के साथ घूम रही है.’’

‘‘लोगों का क्या है, वे तो केवल बातें बनाना जानते हैं. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. तुम मुझ पर यकीन नहीं कर रहे, इसलिए लोगों की बातें सुन रहे हो.’’

‘‘रूबी, मैं ये सब नहीं जानता. बस मुझे तुम्हारा उस लड़के के साथ रहना पसंद नहीं है. जिस तरह से तुम उस के साथ घूमने जाती हो, उस से साफ लगता है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो.’’

रूबी ने आनंद से बहस करना उचित नहीं समझा. वह चुपचाप वहां से चली गई. उसे आनंद का इस तरह से बात करना पसंद नहीं आया. वह मन ही मन सोचने लगी कि आनंद से कैसे पीछा छुड़ाया जाएयही बात आनंद भी सोच रहा था. आनंद रूबी के चाचा से मिला और उसे रूबी और इंद्रपाल के बारे में बताया. यह बात उस ने कुछ इस तरह से बताई कि रूबी के चाचा उस पर बहुत नाराज हुएजब रूबी ने उन की एक नहीं सुनी तो वह बोले, ‘‘रूबी, अगर तुम्हें मेरी बात नहीं माननी तो नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाओ. इस तरह से बदनामी कराने से कोई फायदा नहीं है.’’

रूबी समझ गई थी कि उस के चाचा भी आनंद की बातों में गए हैं. कुछ कहनेसुनने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, इसलिए वह चुप रही. अगले दिन रूबी ने यह बात इंद्रपाल को बताई. इंद्रपाल ने कहा कि रूबी हम यह दोस्ती नहीं तोड़ सकते. मुझे कोई डर नहीं है, जब तक तुम नहीं चाहोगी, हमें कोई अलग नहीं कर सकता. रूबी को पता था कि आनंद अपनी बात का पक्का है. वह अपनी जिद को पूरा करने के लिए कोई भी काम कर सकता है. उसे चिंता इस बात की थी कि इंद्रपाल और आनंद के बीच कोई झगड़ा हो जाए. वह दोनों के बीच कोई गलतफहमी पैदा नहीं करना चाहती थीरूबी ने इंद्रपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. यह बात इंद्रपाल को हजम नहीं हो रही थी. एक दिन उस ने रूबी से मिलने का सबब पूछा तो रूबी ने ठीक से कोई जवाब नहीं दिया

इस के बाद इंद्रपाल अकसर रूबी से बात करने की कोशिश में जुटा रहा. कई बार उस ने बात करने के लिए जोरजबरदस्ती भी करनी चाही. इस पर रूबी ने कहा, ‘‘मैं यह नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो. बेहतर है, तुम मुझ से दूर ही रहो.’’

रूबी पर निगाह रख रहे आनंद को लगा कि इंद्रपाल उस की राह का कांटा बन गया है. यह बात उस ने रूबी को भी नहीं बताई. आखिर आनंद के मन में इंद्रपाल को रास्ते से हटाने की एक खतरनाक योजना बन गईइस योजना के लिए उसे रूबी की मदद की जरूरत थी ताकि वह इंद्रपाल को एकांत में बुला सके. लेकिन रूबी इस के लिए तैयार नहीं थी. इस पर आनंद ने उसे समझाया कि इंद्रपाल को केवल समझाना चाहता है. इस पर रूबी इंद्रपाल को बुलाने के लिए तैयार हो गई. 15 जून, 2018 की बात है. रूबी ने फोन कर के इंद्रपाल को किला चौराहे पर मिलने के लिए बुलाया. इंद्रपाल के लिए रूबी का बुलाना बहुत बड़ी खुशी की बात थी. वह बिना कुछ सोचेसमझे किला चौराहे पर पहुंच गया. इस के बाद रूबी बातचीत करने के बहाने उसे बिजली पासी किला के जंगल में ले गई, वहां पहले से ही आनंद, आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर घात लगाए बैठे थे.

इंद्रपाल को अकेला देख कर सब के सब उस पर टूट पड़े. जब मारपीट में इंद्रपाल बेसुध हो गया तो उसे गला दबा कर मार डाला. बाद में शव की पहचान छिपाने के लिए पैट्रोल डाल कर उसे जला भी दिया गया. अगले दिन उस की लाश थाना आशियाना पुलिस को मिली. पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की छानबीन शुरू की. लाश की शिनाख्त होने के बाद इंद्रपाल के घर सीतापुर जानकारी दी गई. उस के पिता राजाराम यादव लखनऊ आए और अपने बेटे का दाहसंस्कार करने के बाद वह पुलिस के साथ अपराधियों की खोज में लग गए. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह ने मामले की छानबीन शुरू की. सीओ (कैंट) तनु उपाध्याय और एसपी (नौर्थ लखनऊ) अनुराग वत्स इस मामले की छानबीन में मदद कर रहे थे.

पुलिस ने इंद्रपाल के मोबाइल फोन की छानबीन की तो फोन में रूबी का नंबर मिला. नंबर की डिटेल्स से पता चला कि दोनों के बीच बहुत ज्यादा बातचीत होती थी. घटना के दिन भी रूबी के फोन से इंद्रपाल के फोन पर बात की गई थी. इस से पुलिस को मामले का सुराग मिलता दिखा. पुलिस को अपनी छानबीन में यह भी पता चला कि रूबी के चाचा ने उसे इंद्रपाल से मिलने के लिए मना किया था और नौकरी छुड़वा दी थी. एसपी नौर्थ अनुराग वत्स ने बताया कि इंद्रपाल को धोखे से बुलाया गया था. पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाने की कोशिश की गई थीसीओ (कैंट) तनु उपाध्याय ने बताया कि जब पुलिस ने पूरी छानबीन कर ली तो रूबी से घटना के बारे में पूछा गया. रूबी ने शुरुआत में तो बहानेबाजी की पर पुलिस ने जब उसे सबूत दिखाए तो उस ने अपना अपराध कबूल कर लिया.

24 जून, 2018 को कथा लिखे जाने तक आनंद पकड़ से बाहर था. बाकी सभी आरोपी जेल भेजे जा चुके थे. रूबी का अल्हड़पन दोनों पर भारी पड़ा. एक की जान गई और दूसरा फरार है. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि उसे जल्द ही पकड़ लिया जाएगा. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने इस ब्लाइंड मर्डर स्टोरी का परदाफाश करने के लिए सभी पुलिस कर्मचारियों को बधाई दी. पुलिस ने रूबी के साथ आनंद के साथियों आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक माशूका का खौफनाक बदला

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं.

शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था.

इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.

बचपन की मासूमियत

संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे. अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10  साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे. चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे.

संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे. अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था.

जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी.

धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे. किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता था कि बड़े होते ये बच्चे कौन सा खेल खेल रहे हैं.

जवानी की आग

यों ही बड़े होतेहोते संजय और राजो एकदूसरे से इतना खुल गए कि इस अनूठे मजेदार खेल को खेलतेखेलते सारी हदें पार कर गए. यह खेल अब सैक्स का हो गया था, जिसे सीखने के लिए किसी लड़के या लड़की को किसी स्कूल या कोचिंग में नहीं जाना पड़ता.

बात अकेले सैक्स की भी नहीं थी. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहने भी लगे थे और हर रोज एकदूसरे पर इश्क का इजहार भी करते रहते थे. चूंकि अब घर वालों की तरफ से थोड़ी टोकाटाकी शुरू हो गई थी, इसलिए ये दोनों सावधानी बरतने लगे थे.

18-20 साल की उम्र में गलत नहीं कहा जाता कि जिस्म की प्यास बुझती नहीं है, बल्कि जितना बुझाने की कोशिश करो उतनी ही ज्यादा भड़कती है. संजय और राजो को तो तमाम सहूलियतें मिली हुई थीं, इसलिए दोनों अब बेफिक्र हो कर सैक्स के नएनए प्रयोग करने लगे थे.

इसी दौरान दोनों शादी करने का भी वादा कर चुके थे. एकदूसरे के प्यार में डूबे कब दोनों 20 साल की उम्र के आसपास आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. अब तक जिस्म और सैक्स इन के लिए कोई नई बात नहीं रह गई थी.

दोनों एकदूसरे के दिल के साथसाथ जिस्मों के भी जर्रेजर्रे से वाकिफ हो चुके थे. अब देर बस शादी की थी, जिस के बाबत संजय ने राजो को भरोसा दिलाया था कि वह जल्द ही मौका देख कर घर वालों से बात करेगा.

उन्होंने सैक्स का एक नया ही गेम ईजाद किया था, जिस में दोनों बिना कपड़ों के आंखों पर पट्टी बांध लेते थे और एकदूसरे के जिस्म को सहलातेटटोलते हमबिस्तरी की मंजिल तक पहुंचते थे. खासतौर से संजय को तो यह खेल काफी भाता था, जिस में उसे राजो के नाजुक अंगों को मनमाने ढंग से छूने का मौका मिलता था. राजो भी इस खेल को पसंद करती थी, क्योंकि वह जो करती थी, उस दौरान संजय की आंखें पट्टी से बंधी रहती थीं.

शुरू हुई बेवफाई

जैसा कि गांवदेहातों में होता है, 16-18 साल का होते ही शादीब्याह की बात शुरू हो जाती है. राजो अभी छोटी थी, इसलिए उस की शादी की बात नहीं चली थी, पर संजय के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे.

यह भनक जब राजो को लगी, तो वह चौकन्नी हो गई, क्योंकि वह तो मन ही मन संजय को अपना पति मान चुकी थी और उस के साथ आने वाली जिंदगी के ख्वाब यहां तक बुन चुकी थी कि उन के कितने बच्चे होंगे और वे बड़े हो कर क्याक्या बनेंगे.

शादी की बाबत उस ने संजय से सवाल किया, तो वह यह कहते हुए टाल गया, ‘तुम बेवजह चिंता करते हुए अपना खून जला रही हो. मैं तो तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’

संजय के मुंह से यह बात सुन कर राजो को तसल्ली तो मिली, पर वह बेफिक्र न हुई.

एक दिन राजो ने संजय की मां से पड़ोसनों से बतियाते समय यह सुना कि  संजय की शादी के लिए बात तय कर दी है और जल्दी ही शादी हो जाएगी.

इतना सुनना था कि राजो आगबबूला हो गई और उस ने अपने लैवल पर छानबीन की तो पता चला कि वाकई संजय की शादी कहीं दूसरी जगह तय हो गई थी. होली के बाद उस की शादी कभी भी हो सकती थी.

संजय उस से मिला, तो उस ने फिर पूछा. इस पर हमेशा की तरह संजय उसे टाल गया कि ऐसा कुछ नहीं है.

संजय के घर में रोजरोज हो रही शादी की तैयारियां देख कर राजो का कलेजा मुंह को आ रहा था. उसे अपनी दुनिया उजड़ती सी लग रही थी. उस की आंखों के सामने उस के बचपन का दोस्त और आशिक किसी और का होने जा रहा था. इस पर भी आग में घी डालने वाली बात उस के लिए यह थी कि संजय अपने मुंह से इस हकीकत को नहीं मान रहा था.

इस से राजो को लगा कि जल्द ही एक दिन इसी तरह संजय अपनी दुलहन ले आएगा और वह घर के दरवाजे या खिड़की से देखते हुए उस की बेवफाई पर आंसू बहाती रहेगी और बाद में संजय नाकाम या चालाक आशिकों की तरह घडि़याली आंसू बहाता घर वालों के दबाव में मजबूरी का रोना रोता रहेगा.

बेवफाई की दी सजा

राजो का अंदाजा गलत नहीं था. एक दिन इशारों में ही संजय ने मान लिया कि उस की शादी तय हो चुकी है. दूसरे दिन राजो ने तय कर लिया कि बचपन से ही उस के जिस्म और जज्बातों से खिलवाड़ कर रहे इस बेवफा आशिक को क्या सजा देनी है.

वह कड़कड़ाती जाड़े की रात थी. 23 जनवरी को उस ने हमेशा की तरह आंख पर पट्टी बांध कर सैक्स का गेम खेलने के लिए संजय को बुलाया. इन दिनों तो संजय के मन में लड्डू फूट रहे थे और उसे लग रहा था कि शादी के बाद भी उस के दोनों हाथों में लड्डू होंगे.

रात को हमेशा की तरह चोरीछिपे वह दीवार फांद कर राजो के कमरे में पहुंचा, तो वह उस से बेल की तरह लिपट गई. जल्द ही दोनों ने एकदूसरे की आंखों पर पट्टी बांध दी. संजय को बिस्तर पर लिटा कर राजो उस के अंगों से छेड़छाड़ करने लगी, तो वह आपा खोने लगा.

मौका ताड़ कर राजो ने इस गेम में पहली और आखिरी बार बेईमानी करते हुए अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतारी और बिस्तर के नीचे छिपाया चाकू निकाल कर उसे संजय के अंग पर बेरहमी से दे मारा. एक चीख और खून के छींटों के साथ उस का अंग कट कर दूर जा गिरा.

दर्द से कराहता, तड़पता संजय भाग कर अपने घर पहुंचा और घर वालों को सारी बात बताई, तो वे तुरंत उसे सीधी के जिला अस्पताल ले गए.

संजय का इलाज हुआ, तो वह बच गया, पर पुलिस और डाक्टरों के सामने झूठ यह बोलता रहा कि अंग उस ने ही काटा है.

पर पुलिस को शक था, इसलिए वह सख्ती से पूछताछ करने लगी. इस पर संजय के पिता ने बयान दे दिया कि संजय को पड़ोस में रहने वाली लड़की राजो ने हमबिस्तरी के लिए बुलाया था और उसी दौरान उस का अंग काट डाला, जबकि कुछ दिनों बाद उस की शादी होने वाली है.

पुलिस वाले राजो के घर पहुंचे, तो उस के कमरे की दीवारों पर खून के निशान थे, जबकि फर्श पर बिखरे खून पर उस ने पोंछा लगा दिया था.

तलाशी लेने पर कमरे में कटा हुआ अंग नहीं मिला, तो पुलिस वालों ने राजो से भी सख्ती की.

पुलिस द्वारा बारबार पूछने पर जल्द ही राजो ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बता दिया कि हां, उस ने बेवफा संजय का अंग काट कर उसे सजा दी है और वह अंग बाहर झाडि़यों में फेंक दिया है, ताकि उसे कुत्ते खा जाएं.

दरअसल, राजो बचपन के दोस्त और आशिक संजय पर खार खाए बैठी थी और बदले की आग ने उसे यह जुर्म करने के लिए मजबूर कर दिया था.

राजो चाहती थी कि संजय किसी और लड़की से जिस्मानी ताल्लुकात बना ही न पाए. यह मुहब्बत की इंतिहा थी या नफरत थी, यह तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि बेवफाई तो संजय ने की थी, जिस की सजा भी वह भुगत रहा है.

राजो की हिम्मत धोखेबाज और बेवफा आशिकों के लिए यह सबक है कि वह दौर गया, जब माशूका के जिस्म और जज्बातों से खेल कर उसे खिलौने की तरह फेंक दिया जाता था. अगर अपनी पर आ जाए, तो अब माशूका भी इतने खौफनाक तरीके से बदला ले सकती है.

पति ने रची पत्नी को मारने की साजिश

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

पति और पत्नी के रिश्ते की नींव एकदूसरे के विश्वास पर टिकी होती है, कई बार यह नींव शक की वजह से कमजोर पड़ जाती है.

इस के चलते मजबूत से मजबूत रिश्ता भी टूटने की कगार पर पहुंच जाता है या टूट कर बिखर जाता है. शिवानी के मामले में भी यही हुआ. काश! पुष्कर पत्नी पर शक न करता तो शायद उस का परिवार बरबाद न होता.

एनिवर्सरी पर पत्नी ने किया कांड, पति को ही बालकनी से गिराया

प्रेमिका सोफिया के लिए डिसिल्वा अपनी पैसे वाली पत्नी मैरी को जिस तरह मारना चाहता था, ठीक उसी तरह मैरी ने उसे ही ठिकाने लगा कर शिकारी को ही शिकार बना डाला सुबह नहाधो कर मैरी बाथरूम से निकली तो उस की दमकती काया देख कर डिसिल्वा खुद को रोक नहीं पाया और लपक कर उसे बांहों में भर कर बेतहाशा चूमने लगा. मैरी ने मोहब्बत भरी अदा के साथ खुद को उस के बंधन से आजाद किया और कमर मटकाते हुए किचन की ओर बढ़ गई. उस के होंठों पर शोख मुसमान थी. थोड़ी देर में वह किचन से बाहर आई तो उस के हाथों में कौफी से भरे 2 मग थे. एक मग डिसिल्वा को थमा कर वह उस के सामने पड़े सोफे पर बैठ गई

डिसिल्वा कौफी का आनंद लेते हुए अखबार पढ़ने लगा. उस की नजर अखबार में छपी हत्या की एक खबर पर पढ़ी तो तुरंत उस के दिमाग यह बात कौंधी कि वह अपनी बीवी मैरी की हत्या किस तरह करे कि कानून उस का कुछ बिगाड़ सके. वह ऐसा क्या करे कि मैरी मर जाए और वह साफ बच जाए. वह उस कहावत के हिसाब से यह काम करना चाहता था कि सांप भी मर जाए और लाठी भी टूटे. डिसिल्वा ने 2 साल पहले ही मैरी से प्रेमविवाह किया था. अब उसे लगने लगा था कि मैरी ने उस पर जो दौलत खर्च की है, उस के बदले उस ने उस से अपने एकएक पाई की कीमत वसूल कर ली है. अब उसे अपनी सारी दौलत उस के लिए छोड़ कर मर जाना चाहिए, क्योंकि उस की प्रेमिका सोफिया अब उस का और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. वह खुद भी उस से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकता.

लेकिन यह कमबख्त मैरी रास्ते का रोड़ा बनी हुई है. इस रोड़े को हटाए बगैर सोफिया उस की कभी नहीं हो सकेगी. लेकिन इस रोड़े को हटाया कैसे जाए? डिसिल्वा मैरी को ठिकाने लगाने के बारे में सोचते हुए इस तरह डूब गया कि कौफी पीना ही भूल गया. डिसिल्वा को सोच में डूबा देख कर मैरी बोली, ‘‘तुम कहां खोए हो कि कौफी पीना भी भूल गए. तुम्हारी कौफी ठंडी हो रही है. और हां, हमारी बालकनी के एकदम नीचे एक गुलाब खिल रहा है. जरा देखो तो सही, कितना खूबसूरत और दिलकश लग रहा है. शाम तक वह पूरी तरह खिल जाएगा. सोच रही हूं, आज शाम की पार्टी में उसे ही अपने बालों में लगाऊं. डार्लिंग, आज हमारी मैरिज एनवरसरी है, तुम्हें याद है ना?’’

‘‘बिलकुल याद है. और हां, गुलाब कहां खिल रहा है?’’ डिसिल्वा ने मैरी की आंखों में शरारत से झांकते हुए हैरानी से पूछा.

‘‘बालकनी के ठीक नीचे जो गमला रखा है, उसी में खिल रहा है.’’ मैरी ने कहा.

बालकनी के ठीक नीचे गुलाब खिलने की बात सुन कर डिसिल्वा के दिमाग में तुरंत मैरी को खत्म करने की योजना गई. उस ने सोचा, शाम को वह गुलाब दिखाने के बहाने मैरी को बालकनी तक ले जाएगा और उसे नीचे खिले गुलाब को देखने के लिए कहेगा. मैरी जैसे ही झुकेगी, वह जोर से धक्का देगा. बस, सब कुछ खत्म. मैरी बालकनी से नीचे गमलों और रंगीन छतरियों के बीच गठरी बनी पड़ी होगी. इस के बाद वह एक जवान गमजदा पति की तरह रोरो कर कहेगा, ‘हाय, मेरी प्यारी बीवी, बालकनी से इस खूबसूरत गुलाब को देखने के लिए झुकी होगी और खुद को संभाल पाने की वजह से नीचे गई.’

अपनी इस योजना पर डिसिल्वा मन ही मन मुसकराया. उसे पता था कि शक उसी पर किया जाएगा, क्योंकि बीवी की इस अकूत दौलत का वही अकेला वारिस होगा. लेकिन उसे अपनी बीवी का धकेलते हुए कोई देख नहीं सकेगा, इसलिए यह शक बेबुनियाद साबित होगा. सड़क से दिखाई नहीं देगा कि हुआ क्या था? जब कोई गवाह ही नहीं होगा तो वह कानून की गिरफ्त में कतई नहीं सकेगा. इस के बाद पीठ पीछे कौन क्या सोचता है, क्या कहता है, उसे कोई परवाह नहीं है. डिसिल्वा इस बात को ले कर काफी परेशान रहता था कि सोफिया एक सस्ते रिहाइशी इलाके में रहती थी. वैसे तो उस की बीवी मैरी बहुत ही खुले दिल की थी. वह उस की सभी जरूरतें बिना किसी रोकटोक के पूरी करती थी. तोहफे देने के मामले में भी वह कंजूस नहीं थी, लेकिन जेब खर्च देने में जरूर आनाकानी करती थी. इसीलिए वह अपनी प्रेमिका सोफिया पर खुले दिल से खर्च नहीं कर पाता था

सोफिया का नाम दिमाग में आते ही उसे याद आया कि 11 बजे सोफिया से मिलने जाना है. उस ने वादा किया था, इसलिए वह उस का इंतजार कर रही होगी. अब उसे जाना चाहिए, लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए वह मैरी से बहाना क्या करे? बहाना तो कोई भी किया जा सकता है, हेयर ड्रेसर के यहां जाना है या शौपिंग के लिए जाना है. वैसे शौपिंग का बहाना ज्यादा ठीक रहेगा. आज उस की शादी की सालगिरह भी है. इस मौके पर उसे मैरी को कोई तोहफा भी देना होगा. वह मैरी से यही बात कहने वाला था कि मैरी खुद ही बोल पड़ी, ‘‘इस समय अगर तुम्हें कहीं जाना है तो आराम से जा सकते हो, क्योंकि मैं होटल डाआर डांसिंग क्लास में जा रही हूं. आज मैं लंच में भी नहीं सकूंगी, क्योंकि आज डांस का क्लास देर तक चलेगा.’’

‘‘तुम और यह तुम्हारी डांसिंग क्लासमुझे सब पता है.’’ डिसिल्वा ने मैरी को छेड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे लगता है, तुम उस खूबसूरत डांसर पैरी से प्यार करने लगी हो, आजकल तुम उसी के साथ डांस करती हो ?’’

‘‘डियर, मैं तो तुम्हारे साथ डांस करती थी और तुम्हारे साथ डांस करना मुझे पसंद भी था. लेकिन शादी के बाद तो तुम ने डांस करना ही छोड़ दिया.’’ मैरी ने कहा.

‘‘आह! वे भी क्या दिन थे.’’ आह भरते हुए डिसिल्वा ने छत की ओर देखा. फिर मैरी की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हें जुआन के यहां वाली वह रात याद है , जब हम ने ब्लू डेनूब की धुन पर एक साथ डांस किया था?’’ 

डिसिल्वा ने यह बात मैरी से उसे जज्बाती होने के लिए कही थी. क्योंकि उस ने तय कर लिया था कि अब वह उस के साथ ज्यादा वक्त रहने वाली नहीं है. इसलिए थोड़ा जज्बाती होने में उसे कोई हर्ज नहीं लग रहा था.

‘‘मैं वह रात कैसे भूल सकती हूं. मुझे यह भी याद है कि उस रात तुम ने अपना इनाम लेने से मना कर दिया था. तुम ने कहा था, ‘हम अपने बीच रुपए की कौन कहे, उस का ख्याल भी बरदाश्त नहीं कर सकते.’ तुम्हारी इस बात पर खुश हो कर मैं ने तुम्हारा वह घाटा पूरा करने के लिए तुम्हें सोने की एक घड़ी दी थी, याद है तुम्हें?’’

‘‘इतना बड़ा तोहफा भला कोई कैसे भूल सकता है.’’ डिसिल्वा ने कहा. इस के बाद डिसिल्वा सोफिया से मिलने चला गया तो मैरी अपने डांस क्लास में चली गई. डिसिल्वा सोफिया के यहां पहुंचा. चाय पीने के बाद आराम कुर्सी पर सोफिया को गोद में बिठा कर डिसिल्वा ने उसे अपनी योजना बताई. सोफिया ने उस के गालों पर एक चुंबन जड़ते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, आप का भी जवाब नहीं. बस आज भर की बात है, कल से हम एक साथ रहेंगे.’’

दूसरी ओर होटल डाआर में मैरी पैरी की बांहों में सिमटी मस्ती में झूम रही थी. वह अपने पीले रंग के बालों वाले सिर को म्यूजिक के साथ हिलाते हुए बेढं़गे सुरों में पैरी के कानों में गुनगुना रही थी. पैरी ने उस की कमर को अपनी बांहों में कस कर कहा, ‘‘शरीफ बच्ची, इधरउधर के बजाए अपना ध्यान कदमों पर रखो. म्यूजिक की परवाह करने के बजाए बस अपने पैरों के स्टेप के बारे में सोचो.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ डांस कर रही होऊं तो तुम मुझ से इस तरह की उम्मीद कैसे कर सकते हो? फिर यह क्या मूर्खता है, तुम मुझे बच्ची क्यों कह रहे हो?’’

‘‘बच्ची नहीं तो और क्या हो तुम?’’ पैरी ने कहा, ‘‘एक छोटी सी शरीफ, चंचल लड़की, जो अपने अभ्यास पर ध्यान देने के बजाए कहीं और ही खोई रहती है. अच्छा आओ, अब बैठ कर यह बताओ कि रात की बात का तुम ने बुरा तो नहीं माना? रात को मैं ने तुम्हारे पैसे लेने से मना कर दिया था ना. इस की वजह यह थी कि मैं इस खयाल से भी नफरत करता हूं कि हमारी दोस्ती के बीच पैसा आए.’’

‘‘मैं ने बिलकुल बुरा नहीं माना. उसी कसर को पूरा करने के लिए मैं तुम्हारे लिए यह प्लैटिनम की घड़ी लाई हूं, साथ में चुंबनों की बौछार…’’ कह कर मैरी पैरी के चेहरे को अपने चेहरे से ढक कर चुंबनों की बौछार करने लगी. डिसिल्वा ने मैरी को तोहफे में देने के लिए हीरे की एक खूबसूरत, मगर सेकेंड हैंड क्लिप खरीदी थी. उस के लिए इतने पैसे खर्च करना मुश्किल था, लेकिन उस ने हिम्मत कर ही डाली थी. क्योंकि बीवी के लिए उस का यह आखिरी तोहफा था. फिर मैरी की मौत के बाद यह तोहफा सोफिया को मिलने वाला था. जो आदमी अपनी बीवी की शादी की सालगिरह पर इतना कीमती तोहफा दे सकता है, उस  पर अपनी बीवी को कत्ल करने का शक भला कौन करेगा?

डिसिल्वा ने हीरे की क्लिप मैरी को दी तो वाकई वह बहुत खुश हुई. वह  नीचे पार्टी में जाने को तैयार थी. उस ने डिसिल्वा का हाथ पकड कर बालकनी की ओर ले जाते हुए कहा, ‘‘आओ डार्लिंग, तुम भी देखो वह गुलाब कितना खूबसूरत लग रहा है. ऐसा लग रहा है, कुदरत ने उसे इसीलिए खिलाया है कि मैं उसे अपने बालों में सजा कर सालगिरह की पार्टी में शिरकत करूं.’’ डिसिल्वा के दिल की धड़कन बढ़ गई. उसे लगा, कुदरत आज उस पर पूरी तरह मेहरबान है. मैरी खुद ही उसे बालकनी की ओर ले जा रही है. सब कुछ उस की योजना के मुताबिक हो रहा है. किसी की हत्या करना वाकई दुनिया का सब से आसान काम है.

डिसिल्वा मैरी के साथ बालकनी पर पहुंचा. उस ने झुक कर नीचे देखा. उसे झटका सा लगा. उस के मुंह से चीख निकली. वह हवा में गोते लगा रहा था. तभी एक भयानक चीख के साथ सब कुछ  खत्म. वह नीचे छोटीछोटी छतरियों के बीच गठरी सा पड़ा था. उस के आसपास भीड़ लग गई थी. लोग आपस में कह रहे थे, ‘‘ओह माई गौड, कितना भयानक हादसा है. पुलिस को सूचित करो, ऐंबुलेंस मंगाओ. लाश के ऊपर कोई कपड़ा डाल दो.’’ थोड़ी देर में पुलिस गई.

दूसरी ओर फ्लैट के अंदर सोफे पर हैरानपरेशान उलझे बालों और भींची मुट्ठियां लिए, तेजी से आंसू बहाते हुए मैरी आसपास जमा भीड़ को देख रही थी. लोगों ने उसे दिलासा देते हुए इस खौफनाक हादसे के बारे में पूछा तो मैरी ने रोते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से वह गुलाब देखने के लिए बालकनी से झुके होंगे, तभी…’’ कह कर मैरी फफक फफक कर रोने लगी.

 

पति से छुटकारा पाने के लिए पत्नी ने छिपकली डालकर दिया खाना

बबली परिवार के बजाए शारीरिक जरूरतों को ज्यादा महत्त्व देती थी तभी तो 3 बच्चों की मां बनने के बावजूद कई युवकों से उस के अवैध संबंध हो गए थे. अपने एक प्रेमी के साथ हमेशा के लिए रहने को उस ने ऐसी चाल चली कि… 

खुशबू और अंशिका रोज की तरह 5 दिसंबर, 2013 को भी स्कूल गई थीं. वैसे वे दोपहर 2 बजे तब स्कूल से घर लौट आती थीं लेकिन जब ढाई बजे तक घर नहीं पहुंचीं तो मां बबली बेचैन हो गई. उस के बच्चों की क्लास में मोहल्ले के कुछ और बच्चे भी पढ़ते थे. उस ने उन बच्चों के घर पहुंच कर अपने बच्चों के बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया कि खुशबू और अंशिका आज स्कूल आई ही नहीं थीं. बच्चों की बात सुन कर बबली हैरान रह गई क्योंकि उस ने दोनों बेटियों को स्कूल भेजा था तो वे कहां चली गईं. बदहवास बबली ने अपने पिता गुलाबचंद और भाइयों को सारी बात बताते हुए जल्दी से बेटियों का पता लगाने को कह कर रोनेबिलखने लगी.

उस के पिता और भाई भी नहीं समझ पा रहे थे कि जब दोनों बहनें स्कूल गई थीं तो वे स्कूल पहुंच कर कहां चली गईं? बबली को सांत्वना दे कर वे सब अपने स्तर से दोनों बच्चियों को ढूंढ़ने में जुट गए. काफी खोजबीन के बाद भी उन का पता नहीं लग सका. दोनों बच्चे रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गए, इस बात से पूरा परिवार परेशान था. मोहल्ले के कुछ लोग कहने लगे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने फिरौती के लिए बच्चों का अपहरण कर लिया हो. लेकिन इस की उम्मीद कम थी क्योंकि बबली या उस के घर वालों की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे कोई फिरौती दे सकें. बबली की अपने पति जितेंद्र से कुछ अनबन चल रही थी, तभी तो वह तीनों बेटियों के साथ मायके में रह रही थी. घर वालों को इसी बात का शक हो रहा था कि बच्चियों को उन का पिता जितेंद्र या फिर दादा बृजनारायण पांडेय ही फुसला कर अपने साथ ले गए होंगे.

संभावित स्थानों पर तलाश के बाद जब खुशबू और अंशिका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के नाना गुलाबचंद थाना नगरा पहुंचे और थानाप्रभारी एस.पी. चौधरी से मिल कर बच्चियों के गायब होने की बात बताई. उन्होंने अपने दामाद जितेंद्र और समधी बृजनारायण पर बच्चियों को गायब करने का अंदेशा जाहिर किया. गुलाबचंद की तहरीर पर 5 दिसंबर, 2013 को अपहरण का मुकदमा दर्ज करवा कर मामले की विवेचना सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव को करने के निर्देश दिए. साथ ही उन्होंने दोनों बच्चियों के गायब होने की सूचना से अपर पुलिस अधीक्षक के.सी. गोस्वामी और पुलिस अधीक्षक अरविंद सेन को अवगत करा दिया.

सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव मामले की छानबीन करने में जुट गए. चूंकि गुलाबचंद ने अपने दामाद और समधी पर बच्चियों को गायब करने का शक जाहिर किया था. लिहाजा पुलिस बलिया के सिकंदरपुर थाने के गांव उचवार में रहने वाले जितेंद्र के घर पहुंच गई और वहां से उसे उस के 80 वर्षीय बुजुर्ग पिता बृजनारायण पांडेय को पूछताछ के लिए थाने ले आई. उन्होंने दोनों से अलगअलग तरीके से पूछताछ की. उन की बातों से जांच अधिकारी को लगा कि बच्चों के गायब होने में उन का कोई हाथ नहीं है. बल्कि अपने दोनों बच्चों के गायब होने की जानकारी पाकर जितेंद्र परेशान हो गया था.

इन दोनों से पूछताछ के दौरान उन्हें यह पता चल गया था कि बबली एक बदचलन औरत है. एसआई उमेशचंद्र यादव के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. उन्होंने जितेंद्र और उस के पिता को घर भेज दिया और खुद गोपनीय रूप से यह पता लगाने में जुट गए कि बबली के संबंध किन लोगों से हैं. इस काम में उन्हें सफलता मिल गई और पता चला कि उस के संबंध औरैया जिले के हीरनगर गांव के रहने वाले कुलदीप से हैं और वह दिल्ली में नौकरी करता है. एसआई उमेशचंद्र ने इस जानकारी से थानाप्रभारी को अवगत करा दिया. इस के बाद उन्होंने कुलदीप की तलाश शुरू कर दी और उस का पता लगाने के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया

उधर खुद पर बच्चों के अपहरण का आरोप लगने पर जितेंद्र को बहुत दुख हुआ. उस ने अपहरण के आरोप लगाए जाने पर अपने बचने के लिए एसपी अरविंद सेन को तहरीर दे कर कहा कि उसे और उस के पिता को झूठा फंसाया जा रहा है. न्याय की गुहार लगाते हुए उस ने बच्चों को जल्द तलाशने की मांग की. 13 दिसंबर, 2013 की शाम को एसआई उमेशचंद्र को मुखबिर ने एक खास सूचना दी. जानकारी मिलते ही वह महिला कांस्टेबल निकुंबला, कांस्टेबल रामबहादुर यादव आदि के साथ बिल्थरा रोड रेलवे स्टेशन पहुंच गए. अपने साथ वह जितेंद्र को भी ले गए थे ताकि वह अपनी बेटियों को पहचान सके. मुखबिर ने जिस व्यक्ति के बारे में उन्हें सूचना दी थी वह उसे इधरउधर तलाशने लगे. कुछ देर बाद उन्हें प्लेटफार्म पर एक युवक आता दिखाई दिया. उस के साथ 2 बच्चियां भी थीं.

जितेंद्र ने बच्चियों को पहचानते हुए कहा, ‘‘सर, यही मेरी बेटियां हैं.’’ उधर उस युवक ने स्टेशन पर पुलिस को देखा तो वह तेज कदमों से दूसरी ओर चल दिया. लेकिन पुलिस ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया और बच्चियों को भी अपने कब्जे में ले लिया. बच्चियों को सकुशल बरामद कर पुलिस खुश थी. जिस युवक को पुलिस ने हिरासत में लिया था उस ने अपना नाम कुलदीप बताया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने गई.

पूछताछ करने पर उस ने बताया कि वह बबली से प्यार करता है और बच्चों का अपहरण उस ने उसी के कहने पर ही किया था. उस की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई कि क्या एक मां ही अपने बच्चों का अपहरण करा सकती है. लेकिन कुलदीप ने खुशबू और अंशिका के अपहरण के पीछे की जो कहानी बताई, सभी को चौंका देने वाली निकली. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित और बिहार प्रांत से सटा एक जिला है बलिया. इस जिले के नगरा थाना क्षेत्र के देवरहीं गांव के रहने वाले गुलाबचंद के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 3 बेटे थे. बबली उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. वह बहुत खूबसूरत थी. लेकिन जब उस ने लड़कपन के पड़ाव को पार कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार गया.

वह जवान हुई तो घर वालों को उस की शादी की चिंता सताने लगी. वे उस के लिए सही लड़का तलाशने लगे. जल्द ही उन की मेहनत रंग लाई और बलिया जिले के ही सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के उचवार गांव में रहने वाले बृजनारायण पांडेय के बेटे जितेंद्र से उस की शादी तय कर दी और सामाजिक रीतिरिवाज से 2003 में दोनों का विवाह हो गया. बबली जब अपनी ससुराल पहुंची तो अपने व्यवहार और काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया. ससुराल में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. परिवार भी बड़ा नहीं था. इसलिए गृहस्थी की गाड़ी ठीक तरह से चल पड़ी. शादी के साल भर बाद बबली ने एक बेटी को जन्म दिया. उस का नाम रखा गया खुशबू.

परिवार बढ़ा तो घर का खर्च भी बढ़ गया. जितेंद्र अपने बीवीबच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखना चाहता था. लिहाजा वह काम की तलाश में दिल्ली चला गया. जल्द ही दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में उस की नौकरी लग गई. उन की जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर गई. इस दौरान जितेंद्र साल में 1-2 बार ही बीवीबच्चों से मिलने अपने गांव पाता और कुछ दिन घर रहने के बाद दिल्ली चला जाता था. वक्त यूं ही हंसीखुशी से गुजरता रहा. 3 साल बाद बबली एक और बच्ची की मां बन गई. उस का नाम अंशिका रखा. ज्यादा दिनों तक पति से दूर रहने की कमी बबली को खलने लगी थी. उस ने 1-2 बार पति से कहा भी कि वह हर महीने घर आ जाया करें. यदि हर महीने न भी आ सकेंतो 2 महीने में तो आ ही जाया करें, बच्चे बहुत याद करते हैं. लेकिन कुलदीप ने बारबार आने पर किराए में पैसे खर्च होने की बात बताई. जल्दजल्द घर आने में उस ने असमर्थता जता दी. 

लिहाजा अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बबली ने पड़ोस के एक युवक से नजदीकियां बढ़ा लीं. फिर दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. इस दौरान बबली एक और बेटी की मां बन गई. बबली ने घरवालों और जमाने से अपनी मोहब्बत की कहानी को छिपाने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सकी और जल्दी ही उन के प्रेमप्रसंग की खबर घर वालों को लग गई. फिर क्या था परिवार में खलबली सी मच गई और बबली को अपने प्रेमी से मिलने पर रोक लगा दी गई. इस के बाद तो उस की हालत पिंजरे में उस बंद पंछी की तरह हो कर रह गई जो सिर्फ फड़फड़ा सकता है लेकिन कोशिश करने पर भी उड़ नहीं सकता.

अपनी आजादी पर घर वालों द्वारा पहरे लगाए जाने से बबली चिढ़ गई. लगभग 2 साल पहले एक दिन अपने पिता की तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वह मायके गई. वहीं पड़ोस में एक लड़का रहता था, जो दिल्ली में नौकरी करता था. वह जितेंद्र को जानता था और उसे यह भी पता था कि जितेंद्र कहां रहता है. बबली को पति के बिना सब सूनासूना सा लग रहा था. इसलिए वह उस लड़के के साथ पति के पास दिल्ली चली गई. पत्नी के अचानक दिल्ली जाने पर जितेंद्र चौंक गया. पत्नी के साथ रहना उसे अच्छा तो लग रहा था लेकिन पत्नी और बच्चों के आने पर उस का खर्च बढ़ गया जिस से घर चलाने में परेशानी होने लगी. परेशानी देखते हुए बबली ने भी कोई काम कर घर के खर्चे में हाथ बंटाने की बात कही तो जितेंद्र मान गया.

फिर वह अपने आसपास रहने वाली महिलाओं के सहयोग से काम तलाशने लगी. कुछ दिनों बाद उसे एक प्राइवेट कंपनी में काम मिल गया. जब दोनों ही काम करने लगे तो घर का खर्च ठीक से चलने लगा. बबली खुले विचारों की थी. रूपयौवन से परिपूर्ण बबली की देहयष्टि इतनी आकर्षक थी कि किसी को भी पहली नजर में लुभा लेती थी. फिर अलग काम करने से उसे मनमानी करने का पूरा मौका भी मिल रहा था. इस मौके का लाभ उठा कर बबली ने अपने साथ काम करने वाले कुलदीप से अवैध संबंध बना लिए.मूलरूप से औरैया जिले के फफूंद थाना क्षेत्र के हीरनगर गांव के निवासी रविशंकर का बेटा कुलदीप दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था. कुलदीप से एक बार संबंध बने तो बबली जैसे उस की दीवानी हो गई.

फिर तो उन का वासना का खेल चलने लगा. लेकिन एक दिन वह कुलदीप के साथ अपने कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में थी तभी मकान मालिक की नजर उस पर पड़ी. उस ने उस समय तो उस से कुछ नहीं कहा, लेकिन जितेंद्र को बात बताते हुए उस से कमरा खाली करा लिया. फिर जितेंद्र ने पास में ही दूसरा कमरा किराए पर ले लिया. जितेंद्र बहुत ही शांत स्वभाव का था. पत्नी की करतूत का पता चल जाने के बावजूद भी उस ने उस से कोई सख्ती नहीं की बल्कि समझाने के बाद उस ने पत्नी को चेतावनी दे दी थी. लेकिन बबली ने उस की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. बबली ने पास में ही रहने वाले एक और युवक से अवैध संबंध बना लिए. दोनों चोरीछिपे रंगरलियां मनाने लगे. उसी समय जितेंद्र ने पत्नी की नौकरी छुड़वा दी.

कुछ समय तक सब कुछ गुपचुप चलता रहा. लेकिन धीरेधीरे लोगों को उन दोनों के संबंधों के बारे में पता चल गया. फिर बात जितेंद्र के कानों तक भी पहुंची. पत्नी को सही रास्ते पर लाने के लिए उस ने उसे डांटा. बबली ने इस का विरोध किया. फिर क्या था इसी बात को ले कर उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. एक दिन झगड़ा इतना बढ़ा कि बबली ने पुलिस से शिकायत कर पति को पिटवा दिया. पत्नी के बदले हुए रुख से जितेंद्र डर गया. उस ने तय कर लिया कि पत्नी चाहे कुछ भी करे, उस के काम में वह दखल नहीं करेगा. यानी उस ने एकदम से अपना मुंह बंद कर लिया. फिर तो बबली ने कुलदीप को भी अपने साथ रख लिया और खुल कर उस के साथ रंगरलियां मनाने लगी. सब कुछ देखते हुए भी डर के कारण जितेंद्र चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता था. बल्कि उसे बबली से अपनी जान का भी खतरा महसूस होने लगा था.

इस का कारण यह था कि एक दिन बबली ने जितेंद्र के खाने में छिपकली मार कर डाल दी थी. संयोग से उस दिन जितेंद्र ने लंच कंपनी की कैंटीन में कर लिया था. बाद में जब उस ने लंच में पत्नी द्वारा दी गई आलू की भुजिया देखी तो उस का रंग बदला हुआ था. उसे लगा कि इस में जहर है तो उस ने सब्जी फेंक दी. घर आ कर जब उस ने पत्नी से इस बारे में पूछा तो उस ने बहाना बनाते हुए कह दिया कि खाना बनाते हुए कुछ गिर गया होगा. इस हादसे से जितेंद्र एकदम से डर गया था. जान का खतरा महसूस होने पर जितेंद्र 13 जुलाई, 2013 को बबली और बच्चों को दिल्ली में ही छोड़ कर बलिया चला आया और उस ने वाराणसी में ही काम तलाश लिया. पति के वापस गांव चले जाने पर बबली आजाद हो गई और खुल कर कुलदीप के साथ मौजमस्ती करने लगी. कुलदीप बबली के साथ उस के बच्चों को भी बहुत प्यार करता था. कुल मिला कर दोनों का समय हंसीखुशी बीतने लगा.

इधर बबली के मायके वालों को जब पता चला कि झगड़ा होने के बाद जितेंद्र बबली को दिल्ली में छोड़ कर वापस गया है तो उस के पिता गुलाबचंद दिल्ली पहुंच गए और बबली तथा उस के बच्चों को घर लिवा लाए. तब से वह मायके में रहने लगी. बबली ने भी पिता से कह दिया था कि अब वह जितेंद्र के यहां नहीं जाएगी. तब गुलाबचंद ने बच्चों का नाम गांव के ही स्कूल में लिखवा दिया. ननिहाल में बच्चे तो खुश थे लेकिन बबली का मन अपने आशिक कुलदीप के बिना नहीं लगता था. वह मोबाइल से कुलदीप से बात कर अपना मन बहला लेती थी, लेकिन जब कुलदीप की जुदाई उसे अधिक खलने लगी तो मायके वालों को बिना कुछ बताए वह एक दिन अकेले ही दिल्ली चली गई और कुलदीप के साथ रहने लगी. मायके वालों को जब पता लगा कि वह दिल्ली चली गई है तो उन्हें बहुत बुरा लगा. तब बबली का भाई प्रीतम दिल्ली जा कर उसे वापस ले आया.

वक्त गुजरता रहा. बबली पति जितेंद्र को भूल चुकी थी. उस ने तय कर लिया था कि जीवन भर कुलदीप के साथ ही रहेगी. इसलिए वह कुलदीप को हमेशा के लिए पाने के बारे में सोचने लगी. उसे कुलदीप के बिना एक पल भी गुजार पाना नामुमकिन लगने लगा तो उस ने उस के पास जाने के लिए एक प्लान बनाया. प्लान के अनुसार 4 दिसंबर, 13 को बबली ने दिल्ली फोन कर के कुलदीप को अपने गांव के पास परसिया चट्टी पर बुलाया. तय समय के अनुसार कुलदीप परसिया चट्टी पहुंच गया. इधर रोज की तरह 8 वर्षीय खुशबू और 6 वर्षीय अंशिका स्कूल जाने के लिए घर से निकलीं तो रास्ते में बबली मिली. वह दोनों बच्चों को ले कर परसिया चट्टी पहुंची.

चूंकि कुलदीप उन्हें खूब प्यार करता था इसलिए उसे देख कर दोनों बच्चियां खुश हो गईं. बबली ने खुशबू और अंशिका को यह समझाते हुए उस के साथ दिल्ली भेज दिया कि 10 दिन के अंदर वह भी दिल्ली आ जाएगी. मां के कहने पर दोनों बहनें कुलदीप के साथ दिल्ली चली गईं. इस प्लान के पीछे बबली की यह सोच थी कि जब बेटियों के लापता होने पर घर के लोगों का सारा ध्यान उस ओर चला जाएगा तो वह आसानी से अपनी 3 साल की छोटी बेटी साक्षी को ले कर कुलदीप के पास चली जाएगी. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. कुलदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने इस केस की नायिका बबली को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों अभियुक्तों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कुलदीप को अपहरण और बबली को साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर के अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया तथा दोनों बच्चियों को उस के पिता जितेंद्र के संरक्षण में दे दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शादी के बाद प्रेमी पत्नी को किया पहले फरार, फिर की हत्या

सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव अपने कक्ष में बैठे थे, तभी 30-32 साल का एक युवक उन के पास आया. वह घबराया हुआ था. उस के माथे पर भय और चिंता की लकीरें थीं. थानाप्रभारी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सर, मेरा नाम अनुपम है. मैं मूलरूप से मैनपुरी जिले के किशनी थानांतर्गत गांव खड़ेपुर का रहने वाला हूं. मेरी पत्नी कंचन सैफई के चिकित्सा विश्वविद्यालय के पैरा मैडिकल कालेज में हौस्टल में रह कर नर्सिंग की पढ़ाई कर रही थी. 2 दिनों से वह लापता है. उस का कहीं भी पता नहीं चल रहा है.’’

‘‘तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह अचानक कहां लापता हो गई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं गुरुग्राम (हरियाणा) में प्राइवेट नौकरी करता हूं. कंचन से मेरी हर रोज बात होती थी. 24 सितंबर, 2019 को भी दोपहर करीब पौने 2 बजे मेरी उस से बात हुई थी. लेकिन उस के बाद बात नहीं हुई. मैं शाम से ले कर देर रात तक उस से बात करने की कोशिश करता रहा, पर उस का फोन बंद था.

‘‘आशंका हुई तो मैं सैफई आ कर हौस्टल गया तो पता चला कि कंचन 24 सितंबर को 2 बजे हौस्टल से यह कह कर निकली थी कि वह अस्पताल जा रही है. उस के बाद वह हौस्टल नहीं लौटी. इस के बाद मैं ने कंचन की हर संभावित जगह पर खोज की लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. सर, आप मेरी रिपोर्ट दर्ज कर मेरी पत्नी को खोजने में मदद करें.’’ अनुपम ने कहा.

सैफई मैडिकल कालेज के हौस्टल से नर्सिंग छात्रा का अचानक गायब हो जाना वास्तव में एक गंभीर मामला था. थानाप्रभारी चंद्रदेव ने आननफानन में कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. यह 26 सितंबर, 2019 की बात है.

इस के बाद थानाप्रभारी ने अनुपम से पूछा, ‘‘अनुपम, तुम्हारी पत्नी का चरित्र कैसा था? कहीं उस का किसी से कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था?’’

‘‘नहीं सर, उस का चरित्र ठीकठाक था. वैसे भी वह अपना कैरियर दांव पर लगा कर किसी के साथ नहीं जा सकती.’’ अनुपम बोला, ‘‘सर, मुझे लगता है कि गलत इरादे से किसी ने उस का अपरहण कर लिया है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ यादव ने अनुपम से पूछा. ‘‘नहीं सर, मेरा किसी से झगड़ा नहीं है. इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’ अनुपम ने बताया.

अनुपम से पूछताछ के बाद चंद्रदेव यादव सैफई मैडिकल कालेज पहुंचे. वहां जा कर उन्होंने हौस्टल की वार्डन भारती से पूछताछ की. भारती ने बताया कि कंचन का व्यवहार बहुत अच्छा था. वह अपनी साथी छात्राओं के साथ मिलजुल कर रहती थी.

24 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह हौस्टल से अस्पताल गई थी, लेकिन अस्पताल नहीं पहुंची. हौस्टल और अस्पताल के बीच उस के साथ कुछ हुआ है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है. अस्पताल प्रशासन भी अपने स्तर से कंचन की खोज में जुटा है. पर उस का पता नहीं चल पा रहा है.

थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने मैडिकल कालेज में जांच पड़ताल की तो पता चला कालेज में कंचन ने वर्ष 2017-18 सत्र में एएनएम प्रशिक्षण हेतु नर्सिंग छात्रा के रूप में प्रवेश लिया था. वह इस साल अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह व्यवहारकुशल थी.

यादव ने कंचन के साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर रही कई छात्राओं से पूछताछ की तो उन्होंने उसे बेहद शालीन और मृदुभाषी बताया. साथी छात्राओं ने इस बात को भी नकारा कि उस का किसी से विशेष मेलजोल था.

थानाप्रभारी ने हौस्टल वार्डन भारती के सहयोग से कंचन के हौस्टल रूम की तलाशी ली, लेकिन रूम में कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली. न ही कोई ऐसा प्रेमपत्र मिला, जिस से पता चलता कि उस का किसी से प्रेम संबंध था.

हौस्टल व कालेज के बाहर कई दुकानदारों से भी यादव ने पूछताछ की लेकिन उन्हें कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कंचन कहां चली गई.

थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने कंचन की ससुराल खड़ेपुर जा कर उस के ससुराल वालों से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने पुलिस का सहयोग नहीं किया. उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि कंचन ससुराल में बहुत कम रही है. वह या तो मायके में रही या फिर हौस्टल में. इसलिए उस के बारे में कुछ भी नहीं बता सकते.

कंचन का मायका इटावा जिले के थाना जसवंत नगर के गांव जगसौरा में था. यादव जगसौरा पहुंचे और कंचन के पिता शिवपूजन तथा मां उमादेवी से पूछताछ की.

कंचन के मातापिता के लापता होने से दुखी तो थे, लेकिन उस के संबंध में जानकारी देने में संकोच कर रहे थे. जब वहां से भी कंचन के बारे में कोई काम की बात पता नहीं चली तो वह थाने लौट आए.

अनुपम, पत्नी के लापता होने से बेहद परेशान था. जसवंत नगर, सैफई, इटावा जहां से भी अखबार के माध्यम से उसे अज्ञात महिला की लाश मिलने की खबर मिलती, वह वहां पहुंच जाता.

धीरेधीरे 10 दिन बीत गए. लेकिन पुलिस कंचन का पता लगाने में नाकाम रही. अनुपम हर दूसरेतीसरे दिन थाना सैफई पहुंच जाता और पत्नी के संबंध में थानाप्रभारी से सवालजवाब करता. चंद्रदेव उसे सांत्वना दे कर भेज देते थे.

जब अनुपम के सब्र का बांध टूट गया तो वह एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह के औफिस पहुंचा. उस ने उन्हें अपनी पत्नी के गायब होने की बात बता दी.

नर्सिंग छात्रा कंचन के लापता होने की जानकारी ओमवीर सिंह को पहले से ही थी. वह इस मामले की मौनिटरिंग भी कर रहे थे, ओमवीर सिंह ने अनुपम को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द ही उस की लापता पत्नी की खोज करेगी. आश्वासन पा कर अनुपम वापस लौट आया.

एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने लापता कंचन को खोजने के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव, एसआई राजवीर सिंह, वासुदेव सिंह, विपिन कुमार, महिला एसआई अंजलि तिवारी, सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह, कांस्टेबल अभिनव यादव तथा सर्वेश कुमार को शामिल किया. टीम की कमान खुद एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने संभाली.

विशेष टीम ने सब से पहले कंचन के पति अनुपम तथा उस के मातापिता से पूछताछ की. इस के बाद टीम ने कंचन के मातापिता तथा पड़ोस के लोगों से जानकारी हासिल की. टीम को आशंका थी कि कंचन का अपहरण दुष्कर्म करने के लिए किया जा सकता है. अत: टीम ने क्षेत्र के इस प्रवृत्ति के कुछ अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की, लेकिन कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह ने कंचन का मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया, ताकि कोई जानकारी मिल सके पर मोबाइल फोन बंद होने से कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इधर थानाप्रभारी, एसआई अंजलि तिवारी व टीम के अन्य सदस्यों के साथ मैडिकल कालेज पहुंचे और कंचन के हौस्टल रूम की एक बार फिर छानबीन की. गहन छानबीन के दौरान उन्हें वहां मोबाइल फोन के 2 खाली डिब्बे मिले. दोनों डिब्बे उन्होंने सुरक्षित रख लिए.

टीम ने सैफई मैडिकल यूनिवर्सिटी के कुलसचिव सुरेशचंद्र शर्मा से भी बात की. साथ ही अन्य कई लोगों से भी कंचन के संबंध में जानकारी जुटाई. कुलसचिव कहा कि वह स्वयं भी कंचन के लापता होने से चिंतित हैं, क्योंकि यह उन की प्रतिष्ठा का सवाल है.

महिला एसआई अंजलि तिवारी ने कंचन के हौस्टल रूम से बरामद दोनों डिब्बों पर अंकित आईएमईआई नंबरों की जांच की तो पता चला कि इन आईएमईआई नंबरों के दोनों फोनों में 2 सिम नंबर काम कर रहे थे. एक फोन का सिम कंचन के नाम से खरीदा गया था, जबकि दूसरा आनंद किशोर पुत्र हाकिम सिंह, निवासी नगला महाजीत सिविल लाइंस इटावा के नाम से खरीदा गया था.

पुलिस टीम 12 अक्तूबर, 2019 की रात को आनंद किशोर के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. थाना सैफई ला कर आनंद किशोर से पूछताछ शुरू की गई. तब आनंद किशोर ने बताया, ‘‘सर, मैं किसी कंचन नाम की लड़की को नहीं जानता.’’

‘‘तुम सरासर झूठ बोल रहे हो. तुम कंचन को अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारे द्वारा दिया गया मोबाइल फोन का डिब्बा उस के हौस्टल रूम से बरामद हुआ है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि सारी सच्चाई बता दो वरना…’’

थानाप्रभारी चंद्रदेव का कड़ा रुख देख कर आनंद किशोर डर गया. वह बोला, ‘‘सर, यह सच है कि मैं ने ही बात करने के लिए उसे मोबाइल फोन खरीद कर दिया था.’’

‘‘तो बताओ कंचन कहां है? उसे तुम ने कहां छिपा कर रखा है?’’ यादव ने पूछा.

‘‘सर, कंचन अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने उस की हत्या कर दी है.’’ आनंद ने बताया.

‘‘क्याऽऽ कंचन को मार डाला?’’ वह चौंके.

‘‘हां सर, मैं ने कचंन की हत्या कर दी है. मैं जुर्म कबूल करता हूं.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, लाश मैं ने भितौरा नहर में फेंक दी थी. फिर उस के दोनों मोबाइल तोड़ कर जगसौरा बंबा के पास फेंक दिए थे. खून से सने अपने कपड़े, शर्ट, पैंट तथा तौलिया भी वहीं जला दिए थे, चाकू भी वहीं फेंक दिया था.’’

इस के बाद पुलिस टीम ने आनंद किशोर की निशानदेही पर जगसौरा बंबा के पास से 2 टूटे मोबाइल तथा आलाकत्ल चाकू बरामद कर लिया. इस के बाद पुलिस टीम आनंद किशोर को साथ ले कर जसवंत नगर क्षेत्र की भितौरा नहर पहुंची. वहां आनंद किशोर ने नहर किनारे जलाए गए अधजले कपड़े बरामद करा दिए. हत्या में इस्तेमाल आनंद किशोर की ओमनी कार भी पुलिस ने उस के घर से बरामद कर ली.

आनंद किशोर की निशानदेही पर पुलिस ने अब तक मोबाइल फोन, चाकू, अधजले कपडे़ तथा हत्या में प्रयुक्त कार तो बरामद कर ली थी, लेकिन कंचन की लाश बरामद नहीं हो पाई थी.

अत: लाश बरामद करने के लिए पुलिस आनंद को एक बार फिर भितौरा नहर ले गई, जहां उस ने लाश फेंकने की बात कही थी, वहां तलाश कराई. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी कंचन की लाश बरामद नहीं हो सकी.

चूंकि आनंद किशोर ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और हत्या में इस्तेमाल कार तथा चाकू भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने गुमशुदगी के इस मामले को हत्या में तरमीम कर दिया और भादंवि की धारा 302, 201 के तहत आनंद किशोर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी ने कंचन की हत्या का परदाफाश करने तथा उस के कातिल को पकड़ने की जानकारी एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह को दे दी. उन्होंने पुलिस लाइंस सभागार में प्रैसवार्ता की और हत्यारोपी को मीडिया के सामने पेश कर नर्सिंग छात्रा कंचन की हत्या का खुलासा कर दिया.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के थाना जसवंतनगर क्षेत्र में एक गांव है जगसौरा. इसी गांव में शिवपूजन अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी उमा देवी के अलावा 2 बेटियां कंचन, सुमन तथा एक बेटा राहुल था. शिवपूजन खेतीकिसानी करते थे. उन की आर्थिक स्थिति सामान्य थी.

शिवपूजन के तीनों बच्चों में कंचन सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही, पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कालेज जसवंतनगर से इंटरमीडिएट साइंस विषय से प्रथम श्रेणी में पास किया था. कंचन पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, जबकि उस की मां उमा देवी उस की पढ़ाई बंद कर के कामकाज में लगाना चाहती थी.

उमा देवी का मानना था कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की के लिए घरवर तलाशने में परेशानी होती है. लेकिन बेटी की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. कंचन ने इटावा के महिला महाविद्यालय में बीएससी में दाखिला ले लिया.

बीएससी की पढ़ाई के दौरान ही एक रोज कंचन की निगाह अखबार में छपे विज्ञापन पर पड़ी. विज्ञापन द्रोपदी देवी इंटर कालेज नगला महाजीत सिविल लाइंस, इटावा से संबंधित था. कालेज को जूनियर सेक्शन में विज्ञान शिक्षिका की आवश्यकता थी.

विज्ञापन पढ़ने के बाद कंचन ने शिक्षिका पद के लिए आवेदन करने का निश्चय किया. उस ने सोचा कि पढ़ाने से एक तो उस का ज्ञानवर्द्धन होगा, दूसरे उस के खर्चे लायक पैसे भी मिल जाएंगे. कंचन ने अपने मातापिता से इस नौकरी के लिए अनुमति मांगी तो उन्होंने उसे अनुमति दे दी.

कंचन ने द्रोपदी देवी इंटर कालेज में शिक्षिका पद हेतु आवेदन किया तो प्रबंधक हाकिम सिंह ने उस का चयन कर लिया. हाकिम सिंह इटावा शहर के सिविल लाइंस थानांतर्गत नगला महाजीत में रहते थे. यह उन का ही कालेज था. कंचन इस कालेज में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को विज्ञान पढ़ाने लगी. कंचन पढ़नेपढ़ाने में लगनशील थी, इसलिए कुछ महीने बाद वह बच्चों की प्रिय टीचर बन गई.

इसी स्कूल में एक रोज आनंद किशोर की निगाह खूबसूरत कंचन पर पड़ी. आनंद किशोर कालेज प्रबंधक हाकिम सिंह का बेटा था. हाकिम सिंह कालेज के प्रबंधक जरूर थे, लेकिन कालेज की देखरेख आनंद किशोर ही करता था. कंचन हुस्न और शबाब की बेमिसाल मूरत थी. उसे देख कर आनंद किशोर उस पर मोहित हो गया. वह उसे दिलोजान से चाहने लगा.

कंचन यह जानती थी कि आनंद किशोर कालेज मालिक का बेटा है, इसलिए उस ने भी उस की तरफ कदम बढ़ाने में अपनी भलाई समझी. उसे लगा कि आनंद ही उस के सपनों का राजकुमार है. जब चाहतें दोनों की पैदा हुईं तो प्यार का बीज अंकुरित हो गया.

कंचन आनंद के साथ घूमनेफिरने लगी. इस दौरान उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए. आनंद के प्यार में कंचन ऐसी दीवानी हुई कि घर भी देरसवेर पहुंचने लगी. मां उसे टोकती तो कोई न कोई बहाना बना देती. उमा देवी उस की बात पर सहज ही विश्वास कर लेती थी.

लेकिन विश्वास की भी कोई सीमा होती है. कंचन जब आए दिन देरी से घर पहुंचने लगी तो उमा देवी का माथा ठनका. उस ने पति शिवपूजन को कंचन पर नजर रखने को कहा. शिवपूजन ने कंचन की निगरानी की तो जल्द ही सच्चाई सामने आ गई. उन्हें पता चला कि कंचन कालेज प्रबंधक के बेटे आनंद किशोर के प्रेम जाल में फंस गई है और उसी के साथ गुलछर्रे उड़ाती है.

शिवपूजन ने इस सच्चाई से पत्नी को अवगत कराया तो उमा देवी ने माथा पीट लिया. पतिपत्नी ने इस मुद्दे पर विचारविमर्श किया और बदनामी से बचने के लिए कंचन का विवाह जल्दी करने का निश्चय किया. तब तक कंचन बीएससी पास कर चुकी थी, इसलिए मां ने एक दिन उस से कहा, ‘‘कंचन, अब तेरा बीएससी पूरा हो चुका है. अब स्कूल में पढ़ाना छोड़ दे. प्राइवेट नौकरी से तेरा भला होने वाला नहीं है.’’

कंचन ने कुछ कहना चाहा तो मां ने बात साफ कर दी, ‘‘क्या यह सच नहीं है कि तेरे और आनंद के बीच गलत रिश्ता है. तुम दोनों के प्यार के चर्चे पूरे स्कूल में हो रहे हैं, इसलिए अब तू उस स्कूल में पढ़ाने नहीं जाएगी.’’

उमा देवी ने जो कहा था, वह सच था. स्कूल प्रबंधक हाकिम सिंह भी उसे सावधान कर चुके थे. पर अपने बेटे आनंद के कारण वह उसे स्कूल से निकाल नहीं पा रहे थे. चूंकि सच्चाई सामने आ गई थी. इसलिए कंचन ने भी स्कूल छोड़ने का मन बना लिया. उस ने इस बात से आनंद किशोर को भी अवगत करा दिया.

चूंकि बेटी के बहकते कदमों से शिवपूजन परेशान थे, इसलिए उन्होंने कंचन के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी. कुछ महीने की भागदौड़ के बाद उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था अनुपम कुमार.

अनुपम कुमार के पिता रामशरण मैनपुरी जिले के किशनी थानांतर्गत गांव खड़ेपुर के रहने वाले थे. 3 भाईबहनों में अनुपम कुमार सब से बड़ा था.

रामशरण के पास 5 बीघा जमीन थी. उसी की उपज से परिवार का भरणपोषण होता था. अनुपम गुरुग्राम (हरियाणा) में प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद 7 फरवरी, 2014 को धूमधाम से कंचन का विवाह अनुपम के साथ हो गया.

शादी के एक महीने बाद जब अनुपम नौकरी पर चला गया तो कंचन मायके आ गई. कंचन कुछ दिन बाद आनंद से मिली तो उस ने शादी करने को ले कर शिकवाशिकायत की. कंचन ने उसे धीरज बंधाया कि जिस तरह वह उसे शादी के पहले प्यार करती थी, वैसा ही करती रहेगी.

कंचन जब भी मायके आती, आनंद के साथ खूब मौजमस्ती करती. आनंद किशोर के माध्यम से कंचन अपना भविष्य भी बनाना चाहती थी, वह मैडिकल लाइन में जाने के लिए प्रयासरत थी. दरअसल, वह एएनएम बनना चाहती थी.

इधर पिता के दबाव में आनंद किशोर ने भी ऊषा नाम की खूबसूरत युवती से शादी कर ली. लेकिन खूबसूरत पत्नी पा कर भी आनंद किशोर कंचन को नहीं भुला पाया. वह उस से संपर्क बनाए रहा. आनंद किशोर के पास ओमनी कार थी. इसी कार से वह कंचन को कभी आगरा तो कभी बटेश्वर घुमाने ले जाता था. आनंद की पत्नी ऊषा को उस के और कंचन के नाजायज रिश्तों की जानकारी नहीं थी. वह तो पति को दूध का धुला समझती थी.

सन 2017-18 में कंचन का चयन बीएससी नर्सिंग के 2 वर्षीय एएनएम प्रशिक्षण के लिए हो गया. सैफई मैडिकल कालेज में कंचन एएनएम की ट्रैनिंग करने लगी. वह वहीं के हौस्टल में रहने भी लगी. कंचन का जब कहीं बाहर घूमने का मन करता तो वह प्रेमी आनंद को फोन कर बुला लेती थी.

आनंद अपनी कार ले कर कंचन के मैडिकल कालेज पहुंच जाता, फिर दोनों दिन भर मस्ती करते. आनंद कंचन की भरपूर आर्थिक भी मदद करता था और उस की सभी डिमांड भी पूरी करता था. आनंद ने कंचन को एक महंगा मोबाइल भी खरीद कर दिया था. इसी मोबाइल से वह आनंद से बात करती थी.

कंचन आनंद किशोर से प्यार जरूर करती थी, लेकिन उस का अपने पति अनुपम कुमार से भी खूब लगाव था. वह हर रोज पति से बतियाती थी. अनुपम भी उस से मिलने उस के कालेज आताजाता रहता था. इस तरह कंचन ने एएनएम प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया.

कंचन और उस के प्रेमी आनंद किशोर के रिश्तों में दरार तब पड़ी, जब आनंद ने शहरी क्षेत्र में 5-6 लाख की जमीन अपनी पत्नी ऊषा के नाम खरीदी. यह जमीन खरीदने की जानकारी जब कंचन को हुई तो उस ने विरोध जताया, ‘‘आनंद, ऊषा तुम्हारी घरवाली है तो मैं भी तो बाहरवाली हूं. मुझे भी 3 लाख रुपए चाहिए.’’

धीरेधीरे कंचन आनंद को ब्लैकमेल करने पर उतर आई. अब जब भी दोनों मिलते, कंचन रुपयों की डिमांड करती. असमर्थता जताने पर कंचन दोनों के रिश्तों को सार्वजनिक करने तथा ऊषा को सब कुछ बताने की धमकी देती. कंचन की ब्लैकमेलिंग और धमकी से आनंद घबरा गया. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए कंचन की हत्या करने की योजना बना ली.

24 सितंबर, 2019 की दोपहर आनंद किशोर ने कंचन को घूमने के लिए राजी किया. फिर पौने 2 बजे वह अपनी कार ले कर सैफई मैडिकल कालेज पहुंच गया.

कंचन हौस्टल से यह कह कर निकली कि वह हौस्पिटल जा रही है. लेकिन वह आनंद किशोर की कार में बैठ कर घूमने निकल गई. आनंद उसे बटेश्वर ले कर गया और कई घंटे सैरसपाटा कराता रहा.

वापस लौटते समय कंचन ने उस से पैसों की डिमांड की. इस बात को ले कर दोनों में कहासुनी भी हुई. तब तक शाम के 7 बज चुके थे और अंधेरा छाने लगा था.

आनंद किशोर ने अपनी कार जसवंतनगर क्षेत्र के भितौरा नहर पर रोकी और फिर सीट पर बैठी कंचन को दबोच कर उसे चाकू से गोद डाला.

हत्या करने के बाद उस ने कंचन के शव को नहर में फेंक दिया. फिर वहीं नहर की पटरी किनारे खून से सने कपडे़ जला दिए. वहां से चल कर आनंद ने जगसौरा बंबा पर कार रोकी.

वहां उस ने कंचन के दोनों मोबाइल फोन तोड़ कर झाड़ी में फेंक दिए. साथ ही खून सना चाकू भी झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद वह वापस घर आ गया. किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी कि उस ने हत्या जैसी वारदात को अंजाम दिया है.

24 सितंबर को करीब पौने 2 बजे अनुपम कुमार की कंचन से बात हुई थी. उस के बाद जब बात नहीं हुई तो वह सैफई आ गया और कंचन की गुमशुदगी दर्ज कराई. सैफई पुलिस 18 दिनों तक लापता कंचन का पता लगाने में जुटी रही. उस के बाद हत्या का खुलासा हुआ. लेकिन कंचन की लाश फिर भी बरामद नहीं हुई.

14 अक्तूबर, 2019 को थाना सैफई पुलिस ने हत्यारोपी आनंद किशोर को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. सैफई पुलिस कंचन की लाश बरामद करने के प्रयास में जुटी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक पत्रकार ने लालच में बनाए संबंध, दिया मौत का न्योता

कमलेश जैन वरिष्ठ पत्रकार थे, जो पिछले 24 सालों से इस काम में लगे थे. इसलिए पिपलिया मंडी क्षेत्र में ही नहीं, मंदसौर जिले में भी उन की अच्छी पहचान थी.

दैनिक अखबारों के पत्रकार दिन भर समाचार जुटा कर शाम को समाचार तैयार कर के अपने अखबार के लिए भेजते हैं. कमलेश और उन के सहयोगी अवतार भी जुटाए समाचारों को अंतिम रूप देने में लगे थे.

उसी समय एक मोटरसाइकिल उन के औफिस के ठीक सामने आ कर रुकी, जिस पर 2 युवक सवार थे. उन में से एक तो मोटरसाइकिल पर ही बैठा रहा, पीछे बैठा युवक उतर कर कमलेश के औफिस में घुस गया. अवतार को लगा कि किसी समाचार के सिलसिले में आया होगा, क्योंकि औफिस में अकसर लोग समाचारों के सिलसिले में आते रहते हैं. इसलिए अवतार ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह अपने काम में लगे रहे.

लेकिन जब एक के बाद एक, 2 गोलियों के चलने की आवाज कमलेश जैन के चैंबर से आई तो वह सन्न रह गए. वह कमलेश के चैंबर में पहुंचते, उस के पहले ही वह युवक तेजी से बाहर निकला और बाहर खड़ी मोटरसाइकिल पर बैठ कर अपने साथी के साथ भाग गया. इस के बाद कमलेश की हालत देख कर उन्होंने शोर मचा दिया, जिस से आसपास के लोग इकट्ठा हो गए.

किसी ने फोन कर के यह जानकारी पुलिस को दे दी तो थाना पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह तत्काल दलबल के साथ मौके पर पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने कमलेश को इलाज के लिए नजदीक के अस्पताल पहुंचाया.

उन की हालत गंभीर थी, इसलिए उन्हें मंदसौर के जिला अस्पताल भेज दिया गया. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने रास्ते में दम तोड़ दिया. उन की मौत की खबर सुन कर तमाम पत्रकार और उन के शुभचिंतक अस्पताल पहुंच गए. सभी हैरान थे कि एक पत्रकार की हत्या क्यों कर दी गई?

नेताओं और पत्रकारों ने किया प्रदर्शन कमलेश के घर वालों ने उन की हत्या के मामले में 7 लोगों कमल सिंह, जसवंत सिंह, जितेंद्र उर्फ बरी उर्फ जीतू, इंदर सिंह उर्फ बापू उर्फ विक्रम सिंह और शकील के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखाई. कमलेश जैन की हत्या से कस्बे और पुलिस महकमे में हलचल मची हुई थी. अगले दिन पत्रकार कमलेश की शवयात्रा के समय जिले भर के पत्रकार, राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्याकांड की निंदा करते हुए हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

मामला एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या का था. पत्रकारों, राजनीतिज्ञों के अलावा तमाम सामाजिक संगठनों का भी पुलिस पर दबाव पड़ रहा था. लिहाजा पुलिस नामजद अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. पुलिस को अभियुक्तों के राजस्थान के एक गांव में होने की जानकारी मिली तो पुलिस की एक टीम राजथान रवाना हो गई. इस टीम ने वहां एक गांव से 5 अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया.

हत्या से कुछ दिनों पहले इन लोगों से कमलेश का विवाद हुआ था, इसलिए पुलिस को उम्मीद थी कि इन की गिरफ्तारी से मामले का खुलासा हो जाएगा. लेकिन पुलिस पूछताछ में जब साफ हो गया कि घटना वाले दिन वे पिपलिया मंडी में नहीं थे, तो पुलिस थोड़ा निराश हुई.

पुलिस ने तरीके से नामजद लोगों के बारे में जानकारी निकलवाई, इस में साफ हो गया कि इन लोगों का कमलेश से विवाद जरूर था, लेकिन हत्या में इन का हाथ नहीं है, इसलिए पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

इस के बाद पुलिस ने नए सिरे से मामले की जांच शुरू की. 35 दिन बाद भी कमलेश जैन के हत्यारों का पता न लगने से लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ रहा था. पत्रकार और सामाजिक संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इस बीच मंदसौर के पुलिस अधीक्षक ओ.पी. त्रिपाठी दंगा कांड में निलंबित हो चुके थे. उसी मामले में पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह को भी पुलिस मुख्यालय भेज दिया गया था.

दरअसल, मध्य प्रदेश के किसानों ने प्याज का मूल्य बढ़ाने को ले कर पूरे सूबे में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया था. मंदसौर में प्रदर्शन के समय पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया था, जिस के बाद किसान उग्र हो गए थे और वहां दंगा भड़क उठा था. इस के बाद प्रशासन को मंदसौर में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था. इसी मामले में एसपी ओ.पी. त्रिपाठी को निलंबित कर दिया गया था.

ओ.पी. त्रिपाठी के निलंबित होने के बाद मनोज कुमार सिंह को मंदसौर का नया एसपी बनाया गया तो कमलेश सिंघार को थाना पिपलिया मंडी का थानाप्रभारी बना दिया गया. नए एसपी ने कमलेश जैन की हत्या वाले मामले को एक चुनौती के रूप में ले कर सीएसपी राकेश शुक्ला तथा थानाप्रभारी कमलेश सिंघार के साथ मीटिंग कर कमलेश जैन के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने का निर्देश दिया.

तमाम जांच के बाद भी पुलिस को नहीं मिला क्लू

सीएसपी राकेश मोहन शुक्ल, टीआई कमलेश सिंघार सुलझे हुए पुलिस अधिकारी हैं, इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत मृतक कमलेश जैन के व्यवसाय से की. जांच में उन्हें पता चला कि लगभग 2 दशक से पत्रकारिता से जुड़े कमलेश जैन का इलाके में कई लोगों से विवाद चल रहा था. कमलेश के औफिस के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई तो पता चला कि हत्यारे कुछ ही सैकेंड में कमलेश की हत्या कर मोटरसाइकिल से खत्याखेड़ी की ओर भाग गए थे.

पहले पुलिस का ध्यान सीसीटीवी फुटेज की तरफ नहीं गया था. इस फुटेज से पता चला था कि हत्यारों की मोटरसाइकिल शाम 7 बज कर 54 मिनट और 47 सैकेंड पर कमलेश के औफिस के सामने आ कर रुकी थी. उस के बाद उन में से एक आदमी उतर कर कमलेश के औफिस में गया और कुछ ही समय में उन्हें गोलियां मार कर बाहर आया और मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया. इस काम में उसे केवल 12 सैकेंड लगे थे.

इस से पुलिस को लगा कि हत्यारा काफी शातिर था. पुलिस यह भी अंदाजा लगा रही थी कि हत्यार सुपारी किलर भी हो सकते हैं. कमलेश अपराधियों के खिलाफ भी लिखते थे. कहीं उन्हें अपने किसी समाचार या लेख की वजह से तो जान से हाथ नहीं धोना पड़ा.

इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस ने पिछले 6 महीने में कमलेश की अखबारों में छपी खबरों का अध्ययन किया. इस के अलावा कमलेश से रंजिश रखने वालों के बारे में पता किया, पर सफलता नहीं मिली.

कई महिलाओं से थे कमलेश के संबंध जब किसी भी तरह अपराधियों के बारे में कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो टीआई कमलेश सिंघार ने अपनी टीम को कमलेश के निजी जीवन के बारे में पता करने में लगा दिया. क्योंकि कमलेश 47 साल के होने के बावजूद अविवाहित थे. पुलिस को पता चला कि जिस दिन उन की हत्या हुई थी, उस के 2 दिन बाद यानी 2 जून, 2017 को वह शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार की विधवा बहू संध्या से शादी करने वाले थे.

पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि उन के कई महिलाओं से संबंध थे. संध्या सहित करीब 10 महिलाओं से उन की देर रात तक मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. थानाप्रभारी ने इन महिलाओं के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि जिन महिलाओं से उन की बातचीत होती थी, उन का संबंध मीडिया से बिलकुल नहीं था.

यह भी पता चला कि इन महिलाओं से कमलेश के काफी करीबी संबंध थे. जिन में से प्रीति और कमलेश के संबंधों की जानकारी आसपास के लोगों के अलावा उस के पति को भी थी. लेकिन कमलेश की पहुंच के आगे वह चुप था.

थानाप्रभारी ने कमलेश की अन्य प्रेमिकाओं से पूछताछ की तो पता चला कि कमलेश और संध्या शादी करना चाहते थे. इस बात को ले कर संध्या की ससुराल वाले खुश नहीं थे. संध्या की ससुराल वालों को यह बात प्रीति ने ही बताई थी, क्योंकि प्रीति को शक था कि कमलेश की संध्या से नजदीकी की वजह से वह उस से दूर हो रहा था.

कमलेश सिंघार ने संध्या और उस की ससुराल वालों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि कमलेश की हत्या से पहले और बाद में संध्या के जेठ सुधीर की अपने दोस्त धीरज अग्रवाल से कई बार बात हुई थी. सुधीर के बारे में पुलिस को पहले से ही पता था कि पिपलिया मंडी के कई नामी अवैध धंधेबाजों तथा अफीम तस्करों से उस के संबंध हैं.

कमलेश सिंघार ने सुधीर जैन के बाद धीरज अग्रवाल के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में पता चला कि जबजब सुधीर और धीरज के बीच बात होती थी, उस के बाद धीरज अग्रवाल प्रतापगढ़, राजस्थान जेल में बंद पिपलिया मंडी के कुख्यात बदमाश आजम लाला से बात करता था.

घटना वाले दिन भी उस ने आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक से बात की थी. संदेह वाली बात यह थी कि घटना वाले दिन कमलेश की हत्या के समय रज्जाक की लोकेशन पिपलिया मंडी की थी.

आजम लाला का बेटा रज्जाक वैसे तो नाबालिग था, पर इस उम्र में ही उस के खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हो चुके थे. इस से कमलेश सिंघार को लगा कि कमलेश की हत्या के मामले में सुधीर जैन, धीरज अग्रवाल, आजम लाला और उस का बेटा एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हो सकते हैं. लेकिन नामीगिरामी करोड़पति व्यापारी पर हाथ डालना उन के लिए आसान नहीं था.

आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक को पुलिस ने किया गिरफ्तार कमलेश सिंघार एसपी मंदसौर मनोज सिंह के निर्देश पर आजम लाला के बेटे रज्जाक को पूछताछ के लिए थाने ले आए. उस से की गई पूछताछ में सारी घटना सामने आ गई. पता चला कि कमलेश और संध्या के संबंधों से नाराज संध्या के जेठ सुधीर जैन ने अपने दोस्त धीरज अग्रवाल के माध्यम से आजम लाला और मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी को कमलेश की हत्या की 50 लाख की सुपारी दी थी.

पूरा सच सामने आ गया तो छापा मार कर संध्या के जेठ सुधीर जैन और उस के दोस्त धीरज अग्रवाल तथा हत्या का षडयंत्र रचने वाले धर्मेंद्र मारू को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि हत्या वाले दिन रज्जाक के साथ कमलेश की हत्या के लिए मोटरसाइकिल पर आया रज्जाक का चचेरा भाई सुलेमान लाला पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

इस के बाद हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और मोटरसाइकिल बरामद कर ली गई. पूछताछ के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इश्क की नदी में तैरने वाले कमलेश जैन की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

कमलेश जैन कस्बा पिपलिया मंडी में पत्रकारिता के क्षेत्र में अच्छीखासी पकड़ रखते थे. गैरकानूनी काम करने वालों से अकसर कमलेश जैन का विवाद होता रहता था. लेकिन उन की एक कमजोरी हुस्न थी. जिस के कारण कई महिलाओं से उन के संबंध बन गए थे. कमलेश की सब से चर्चित प्रेमिका प्रीति थी. प्रीति के ऊपर वह दिल खोल कर पैसे खर्च करते थे.

प्रीति के पति को भी पता था कि उस की पत्नी के संबंध कमलेश से हैं, लेकिन कमलेश के रुतबे की वजह से वह चुप था. प्रीति भी कमलेश की दीवानी थी. वह कमलेश पर अपना अधिकार समझने लगी थी. लेकिन कुछ महीनों से संध्या प्रीति के इस अधिकार के बीच दीवार बन कर खड़ी हो गई थी.

मंदसौर निवासी संध्या की शादी पिपलिया मंडी के रईस व्यवसायी के छोटे भाई नवीन के साथ हुई थी. सुधीर जैन करीब 1 अरब की संपत्ति के मालिक थे. इन संपत्तियों में उन के 3 भाइयों का हिस्सा था. सुधीर जैन ने यह संपत्ति गोपाल संन्यासी तथा आजम लाला की मेहरबानी से बनाई थी.

चर्चा है कि सुधीर जैन और उस के भाई नवीन द्वारा इलाके की विवादित जमीन औनेपौने दामों पर खरीद कर आजम लाला, गोपाल संन्यासी जैसे बदमाशों की मदद से कब्जा कर के बाजार के दामों पर बेच कर मोटी कमाई की थी.

सुधीर के छोटे भाई नवीन की अचानक मौत हो गई तो संध्या विधवा हो गई. देखा जाए तो एक तिहाई संपत्ति संध्या की थी, लेकिन भाई की मौत के बाद सुधीर के मन में लालच आ गया था. उस ने संध्या को थोड़ीबहुत संपत्ति दे कर अलग कर दिया. काफी कहने के बाद भी जब संध्या को प्रौपर्टी से हिस्सा नहीं मिला तो वह अपने मायके में जा कर रहने लगी.

वह जानती थी कि उस के जेठ सुधीर जैन ने उस के साथ धोखा किया है. वह अपने हिस्से की जायदाद लेना चाहती थी. ससुराल में रहते हुए उस ने सुना था कि कमलेश जैन एक ईमानदार पत्रकार है और वह सच्चाई का साथ देता है, इसलिए वह अपनी संपत्ति के मामले में मदद के लिए पत्रकार कमलेश जैन के पास पहुंची.

कमलेश ने लालच में बनाए संध्या से संबंध

काफी खूबसूरत और जवान संध्या जैन कमलेश की जातिबिरादरी की भी थी. उसे पता चला कि कमलेश की अभी शादी नहीं हुई है तो उस का दिन उस पर आ गया. संध्या की खूबसूरती पर कमलेश भी मर मिटा था. कमलेश ने सोचा कि अगर संध्या से उस की शादी हो जाती है तो उस के हिस्से की करोड़ों की संपत्ति का वह मालिक बन जाएगा. इसलिए वह संध्या की मदद करने लगा.

लगातार मिलने मिलाने से संध्या और कमलेश के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उन के संबंध इस मुकाम पर पहुंच गए कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

जीवन में संध्या के आने के बाद कमलेश ने पुरानी प्रेमिका प्रीति से नाता तोड़ लिया था. जबकि प्रीति कमलेश को छोड़ना नहीं चाहती थी, क्योंकि प्रीति का ज्यादातर खर्चा कमलेश ही उठाता था. यही वजह थी कि प्रीति संध्या से चिढ़ रही थी.

जब प्रीति को पता चला कि कमलेश जैन संध्या से 3 जून, 2017 को शादी करने जा रहे हैं तो प्रीति ने कमलेश और संध्या के संबंधों की शिकायत संध्या के जेठ सुधीर जैन से कर दी.

इस से प्रीति को लगा कि संध्या पर अंकुश लग जाएगा. सुधीर को जब संध्या और कमलेश के संबंधों का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. उसे लगा कि अगर संध्या ने कमलेश से शादी कर ली तो कमलेश का सहारा पा कर वह अपने हिस्से की सारी जायदाद ले कर मानेगी.

कमलेश जैन के रहते सुधीर संध्या पर दबाव नहीं बना सकता था, जिस से सुधीर जैन को करोड़ों की जायदाद हाथ से जाती दिखाई देने लगी. सुधीर की यह परेशानी उस के दोस्त धीरज अग्रवाल से छिपी नहीं थी, इसलिए उस ने उसे सलाह दी कि इस तरह चुप बैठने से काम नहीं चलेगा, हमें कोई ठोस काररवाई करनी होगी.

सुधीर जैन की तरह धीरज अग्रवाल भी गैरकानूनी तरीके से पैसा कमा रहा था. सुधीर की ही तरह उस के भी कई कुख्यात बदमाशों से संबंध थे. धीरज की बात सुधीर की समझ में आ गई. उस ने कमलेश को रास्ते से हटाने के लिए धीरज से मदद मांगी. धीरज इस के लिए तैयार हो गया.

प्रतापगढ़ जेल में बंद आजम लाला तथा मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी से धीरज के अच्छे संबंध थे. धीरज दोनों से जेल जा कर मिला. उन्होंने कमलेश की हत्या के लिए 50 लाख रुपए मांगे. बात तय हो गई. इस के बाद सुधीर जैन से 5 लाख रुपए ले जा कर अखपेरपुर में आजम लाला के बेटे रज्जाक को दे दिए. बाकी के रुपए कमलेश की हत्या के बाद दिए जाने थे.

50 लाख की सुपारी मिलते ही बदमाश हो गए सक्रिय  5 लाख रुपए हाथ में आते ही आजम लाला ने प्यादे तलाशने शुरू कर दिए. परंतु मंदसौर जिले में अधिकांश अपराधियों पर पुलिस का शिकंजा कसा था. कई तो जेल में बंद थे तथा कई भूमिगत हो चुके थे, इसलिए आजम को शूटर मिलने में परेशानी हो रही थी. दूसरी ओर प्रीति ने सुधीर को बता दिया था कि संध्या और कमलेश 3 जून को शादी करने वाले हैं, इसलिए सुधीर हर हाल में 3 जून से पहले कमलेश की हत्या करवा देना चाहता था.

धीरज अग्रवाल ने यह बात आजम को बताई तो आजम ने कमलेश की हत्या का काम अपने नाबालिग बेटे रज्जाक को सौंप दिया. रज्जाक नाबालिग उम्र में ही अपने बाप के कदमों पर चल पड़ा था. वह तमाम आपराधिक वारदातों को अंजाम दे चुका था, इसलिए वह हिस्ट्रीशीटर बन गया था.

पिता का आदेश मिलते ही उस ने कमलेश की हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी. इस के लिए उस ने चौपाटी बस्ती निवासी धर्मेंद्र धारू को फरजी सिम दे कर कमलेश पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंप दी. धर्मेंद्र ने रज्जाक को कमलेश के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कमलेश सुबह से शाम तक समाचार के लिए इधरउधर भटकने के बाद शाम 7 बजे तक लवली चौराहे पर स्थित अपने औफिस आ जाता है.

रज्जाक ने अपने काम के लिए यही समय तय किया. कमलेश की हत्या की योजना बना कर रज्जाक अपने चचेरे भाई सुलेमान उर्फ सत्तू लाला के साथ मोटरसाइकिल से पिपलिया मंडी पहुंच गया. घटना के समय सुलेमान मोटरसाइकिल ले कर सड़क पर खड़ा था, जबकि नाबालिग रज्जाक ने कमलेश के चैंबर में जा कर उसे गोली मार दी थी. अपने काम को अंजाम दे कर वह सुलेमान के साथ वहां से भाग गया था.

इस तरह प्यार और प्रौपर्टी के चक्कर में पत्रकार कमलेश जैन मारा गया. इस ब्लाइंड मर्डर का पर्दाफाश करने वाली पुलिस टीम की एसपी मनोज सिंह ने काफी सराहना की है?

जब प्यार में आशिक ही बना गया कातिल

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

घर लौट कर उन्होंने जब बात न बनने की जानकारी दी तो कृष्णा को गहरा धक्का लगा. अगले दिन कृष्णा ने अपनी बुलेट निकाली और नारद श्रीवास की दुकान पर पहुंच गया. उस समय नारद ग्राहकों को सामान दे रहे थे. दुकान के बाहर खड़ा कृष्णा नारद श्रीवास को घूरघूर कर देख रहा था. जब वह ग्राहकों से फारिग हुए तो उन्होंने कृष्णा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, क्या चाहिए?’’

कृष्णा ने उन से बिना किसी डर के अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘कल मेरे पापा आप के पास आए थे.’’

यह सुनते ही नारद श्रीवास के दिलोदिमाग में बीते कल का सारा वाकया साकार हो उठा, जिसे लगभग वह भुला चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘हां, तो?’’

कृष्णा तिवारी ने कहा, ‘‘आप ने मना कर दिया. मैं इसलिए आया हूं कि एक बार आप से मिल कर अपनी बात कहूं.’’

‘‘देखो, तुम चले जाओ. मैं ने तुम्हारे पिताजी को सब कुछ बता दिया है और इस बारे में अब मैं कोई बात नहीं करूंगा.’’

कृष्णा ने अपनी आंखें घुमाते हुए अधिकारपूर्वक कहा, ‘‘आप से कह रहा हूं, आप मान जाइए नहीं तो एक दिन आप खून के आंसू रोएंगे.’’

‘‘तो क्या तुम मुझे धमकाने आए हो?’’ नारद श्रीवास का पारा चढ़ गया.

‘‘धमकाने भी और चेतावनी देने भी. आप नहीं मानोगे तो अंजाम बुरा होगा.’’ कहने के बाद कृष्णा तिवारी बुलेट से घर वापस लौट गया.

नारद श्रीवास कृष्णा के तेवर देख कर अवाक रह गए. उन्होंने सोचा कि यह लड़का एक नंबर का बदमाश जान पड़ता है. मैं ने अच्छा किया कि इस के पिता की बात नहीं मानी.

उन्होंने उसी दिन अपने साढ़ू भाई जोगीराम श्रीवास को फोन कर के सारी बात बता दी. उन्होंने उन से प्रियंका पर विशेष नजर रखने की बात कही, क्योंकि प्रियंका उन्हीं के घर रह कर पढ़ रही थी.

नारद की बातें सुन कर जोगीराम ने उन से कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता मत करो. मैं खुद प्रियंका से बात कर के देखता हूं और आप लोग भी बात करो. इस के अलावा आप धमकी देने वाले कृष्णा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

‘‘नहींनहीं, पुलिस में जाने से हमारी ही बदनामी होगी. मैं अब जल्द ही प्रियंका की सगाई, शादी की बात फाइनल करता हूं.’’ नारद बोले.

21 अगस्त, 2019 डब्बू उर्फ कृष्णा ने प्रियंका को सुबहसुबह लवली मौर्निंग का वाट्सऐप मैसेज भेजा और लिखा, ‘‘प्रियंका हो सके तो मुझ से मिलो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. जाने क्यों रात भर तुम्हारी याद आती रही, इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ सकी.’’

प्रियंका ने मैसेज का प्रत्युत्तर हमेशा की तरह दिया, ‘‘ठीक है, ओके.’’

मौसी ने समझाया था प्रियंका को

प्रियंका रोजाना की तरह उस दिन भी तैयार हो कर कालेज के लिए निकलने लगी तो मौसा और मौसी ने उसे बताया कि वह घरपरिवार की मर्यादा को ध्यान में रखे. कृष्णा से मेलमुलाकात उस के पापा को पसंद नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं कि कृष्णा ने मुढ़ीपार पहुंच कर धमकी तक दे डाली है. यह अच्छी बात नहीं है. अगर इस में तुम्हारी शह न होती तो क्या उस की इतनी हिम्मत हो पाती?

मौसी की बातें सुन कर प्रियंका मुसकराई. वह जल्दजल्द चाय पीते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप जरा भी चिंता मत करना. मैं घरपरिवार की नाक नहीं कटने दूंगी. जब पापा मुझ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा है, मेरी हर बात मानते हैं तो मैं भला उन की इच्छा के बगैर कोई कदम कैसे उठाऊंगी. आप एकदम निश्चिंत रहिए.’’

मौसी सीमा ने उसे बताया कि जल्द ही उस की सगाई एक इंजीनियर लड़के से होने वाली है, इसलिए वह कृष्णा से दूर ही रहे.

हंसतीबतियाती प्रियंका रोज की तरह सीपत रोड स्थित शबरी माता नवीन महाविद्यालय की ओर चली गई. वह बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

कालेज में पढ़ाई के बाद प्रियंका क्लास से बाहर आई तो कृष्णा का फोन आ गया. दोनों में बातचीत हुई तो प्रियंका ने कहा, ‘‘मैं कालेज से निकल रही हूं और थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी.’’

प्रियंका राजस्व कालोनी स्थित कृष्णा के किराए के मकान में जाती रहती थी. वह मकान बौयज हौस्टल जैसा था. कृष्णा और प्रियंका वहां बैठ कर अपने दुखदर्द बांटा करते थे. प्रियंका ने उस से वहां पहुंचने की बात कही तो कृष्णा खुश हो गया.

कृष्णा घर का बिगड़ैल लड़का था. आवारागर्दी और घरपरिवार से बेहतर संबंध नहीं होने के कारण पिता ने एक तरह से उसे घर से निकाल दिया था. कृष्णा किराए का मकान ले कर रहता था. उस मकान में पढ़ाई करने वाले और भी लड़के रहते थे. उस के पास एक बुलेट थी. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह पार्टटाइम कार वाशिंग का काम करता था.

काफी समय बाद भी प्रियंका कृष्णा के कमरे पर नहीं पहुंची तो वह परेशान हो गया. वह झल्ला कर कमरे से निकला और प्रियंका को फोन किया. प्रियंका ने उसे बताया कि वह अपनी फ्रैंड के साथ है और उस के पास पहुंचने में कुछ समय लगेगा.

कृष्णा उस से मिलने के लिए उतावला था. काफी देर बाद भी जब वह नहीं पहुंची तो उस ने प्रियंका को फिर फोन किया. प्रियंका बोली, ‘‘आ रही हूं यार. मैं अशोक नगर पहुंच चुकी हूं.’’

इस पर कृष्णा ने झल्ला कर कहा, ‘‘मैं वहीं आ रहा हूं. तुम रुको, मैं पास में ही हूं’’

कृष्णा थोड़ी ही देर में अशोक नगर जा पहुंचा. प्रियंका वहां 2 सहेलियों के साथ खड़ी थी.

प्रियंका की बातों से कृष्णा को लगा कि आज उस का रंग कुछ बदलाबदला सा है. मगर उस ने धैर्य से काम लिया. प्रियंका को देख वह स्वाभाविक रूप से मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम मुझे मार डालोगी क्या? तुम से मिलने के लिए सुबह से बेताब हूं और तुम कह रही हो कि आ रही हूं…आ रही हूं.’’

‘‘तो क्या कालेज भी न जाऊं? पढ़ाई छोड़ दूं, जिस के लिए मैं गांव से यहां आई हूं?’’ प्रियंका ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘मैं ऐसा कहां कह रहा हूं, मगर कालेज से सीधे आना था. 2 घंटे हो गए तुम्हारा इंतजार करते हुए. कम से कम मेरी हालत पर तो तरस खाना चाहिए तुम्हें.’’

‘‘और तुम्हें मेरे घर जा कर हंगामा करना चाहिए. पापा से क्या कहा है तुम ने, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?’’ प्रियंका ने रोष भरे स्वर में कहा.

प्रियंका को गुस्से में देख कर कृष्णा को भी गुस्सा आ गया. दोनों की अशोक नगर चौक पर ही नोकझोंक होने लगी, जिस से वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. तभी एक स्थानीय नेता प्रशांत तिवारी जो कृष्णा और प्रियंका से वाकिफ थे, वहां पहुंचे और उन्होंने दोनों को समझाबुझा कर शांत कराया.

कृष्णा प्रियंका को ले आया अपने कमरे पर

दोनों शांत हो गए. कृष्णा ने प्रियंका को बुलेट पर बिठाया और अपने कमरे की ओर चल दिया. रास्ते में दोनों ही सामान्य रहे. अपने कमरे पर पहुंच कर कृष्णा ने कहा, ‘‘प्रियंका, अब दिमाग शांत करो. मैं तुम्हारे लिए बढि़या चाय बनाता हूं.’’

यह सुन कर प्रियंका मुसकराई, ‘‘यार, मुझे भूख लग रही है और तुम बस चाय बना रहे हो.’’

इस के बाद कृष्णा पास के एक होटल से नाश्ता ले आया. दोनों प्रेम भाव से बातचीत करतेकरते कब फिर से तनाव में आ गए, पता ही नहीं चला. कृष्णा ने कहा, ‘‘तुम मुझ से शादी करोगी कि नहीं, आज मुझे साफसाफ बता दो.’’

प्रियंका ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘नहीं, मैं शादी घर वालों की मरजी से ही करूंगी.’’

हत्या कर कृष्णा हो गया फरार

दोनों में बहस होने लगी. उसी दौरान बात बढ़ने पर कृष्णा ने चाकू निकाला और प्रियंका पर कई वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. खून से लथपथ प्रियंका को मरणासन्न छोड़ कर वह वहां से भाग खड़ा हुआ. घायल प्रियंका कराहती रही और वहीं बेहोश हो गई.

हौस्टल के राकेश वर्मा नाम के एक लड़के ने प्रियंका के कराहने की आवाज सुनी तो वह कमरे में आ गया. उस ने गंभीर रूप से घायल प्रियंका को बिस्तर पर पड़े देखा तो तुरंत स्थानीय सरकंडा थाने में फोन कर के यह जानकारी थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर राजस्व कालोनी के हौस्टल पहुंच गए. उन्होंने कमरे के बिस्तर पर खून से लथपथ एक युवती देखी, जिस की मौत हो चुकी थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एडीशनल एसपी ओ.पी. शर्मा एवं एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच गए. दोनों पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजने के आदेश दिए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने प्रियंका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. हौस्टल के लड़कों से पता चला कि जिस कमरे में प्रियंका की हत्या हुई थी, वह कृष्णा का है. प्रियंका के फोन से पुलिस को उस की मौसी व पिता के फोन नंबर मिल गए थे, लिहाजा पुलिस ने फोन कर के उन्हें अस्पताल में बुला लिया.

प्रियंका के मौसामौसी और मातापिता ने अस्पताल पहुंच कर लाश की शिनाख्त प्रियंका के रूप में कर दी. उन्होंने हत्या का आरोप बिलासपुर निवासी कृष्णा उर्फ डब्बू पर लगाया. पुलिस ने कृष्णा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर उस की खोजबीन शुरू कर दी. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. पुलिस को पता चला कि वह रायपुर से नागपुर भाग गया है.

पकड़ा गया कृष्णा

थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता व महिला एसआई गायत्री सिंह की टीम आरोपी को संभावित स्थानों पर तलाशने लगी. पुलिस ने कृष्णा के फोटो नजदीकी जिलों के सभी थानों में भी भेज दिए थे.

सरकंडा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित मुंगेली जिले के थाना सरगांव के एक सिपाही को 23 अगस्त, 2019 को कृष्णा तिवारी सरगांव चौक पर दिख गया. उस सिपाही का गांव आरोपी कृष्णा तिवारी के गांव के नजदीक ही था. इसलिए सिपाही को यह जानकारी थी कि कृष्णा मर्डर का आरोपी है और पुलिस से छिपा घूम रहा है.

लिहाजा वह सिपाही कृष्णा तिवारी को हिरासत में ले कर थाना सरगांव ले आया. सरगांव पुलिस ने कृष्णा तिवारी को गिरफ्तार करने की जानकारी सरकंडा के थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

उसी शाम सरकंडा थानाप्रभारी कृष्णा तिवारी को सरगांव से सरकंडा ले आए. उस से पूछताछ की गई तो उस ने प्रियंका की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से एक चाकू भी बरामद किया, जो 3 टुकड़ों में था.

कृष्णा ने बताया कि हत्या करने के बाद वह बुलेट से सीधा रेलवे स्टेशन की तरफ गया. उस समय उस के कपड़ों पर खून के धब्बे लगे थे. उस के पास पैसे भी नहीं थे. स्टेशन के पास अनुराग मानिकपुरी नाम के दोस्त से उस ने 500 रुपए उधार लिए और रायपुर की तरफ निकल गया.

कृष्णा तिवारी उर्फ दब्बू से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 24 अगस्त, 2019 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बिलासपुर के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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