बेखौफ बदमाश : चार घंटे में दो को मार डाला

उत्तर-पूर्वी जिला में रविवार रात चार घंटे के भीतर ब्रहमपुरी और भजनपुरा में हुई गैंगवार में दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, जबकि गोली लगने से एक युवक गंभीर रूप से घायल हो गया. गैंगवार की सूचना पर पुलिस में हड़कंप मच गया. आननफानन में पहुंचे आला अधिकारी और पुलिस की कई टीमें देर रात तक जांच में जुटी रहीं. पुलिस का दावा है कि दोनों जगहों पर 50 से अधिक गोलियां चलीं, इनमें से 30 से 35 गोलियां मृतकों को लगी हैं.

ब्रह्मपुरी गली संख्या-7 के बाहर रात लगभग 9.30 बजे दो बाइक पर सवार होकर आए चार बदमाशों ने सड़क किनारे खड़े होकर बातचीत कर रहे मो. वाजिद और मो. फैज पर ताबड़तोड़ 20 से अधिक गोलियां चलाईं. हमले में वाजिद की मौत हो गई, जबकि मो. फैज की हालत गंभीर बनी हुई है. वाजिद को आठ और फैज को चार गोलियां लगीं. वाजिद के खिलाफ कई मामले दर्ज थे.

सूचना पर पहुंची पुलिस मौके पर छानबीन कर रही थी कि इसी बीच देर रात 1.30 बजे भजनपुरा में गोलियां चलने की सूचना मिली. मौके पर पहुंची पुलिस को पता चला कि दो बाइक पर आए चार बदमाशों ने 24 वर्षीय आरिफ हुसैन रजा को गोली मार दी, इससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.

सूत्रों के अनुसार, हमलावरों ने 30 से अधिक गोलियां चलाईं, जिनमें से लगभग 25 गोलियां आरिफ को लगीं. हालांकि, पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद आरिफ को 15 गोलियां लगने की बात कही है. मौके से गोलियों के 26 खोखे मिले हैं. हत्या का मुकदमा दर्ज कर भजनपुरा पुलिस छानबीन कर रही है.

मौत के बाद भी गोली मारी

पुलिस को जांच में पता चला कि हमलावरों में से एक ने हेलमेट लगा रखा था. हमलावरों ने जब आरिफ पर गोलियां चलाई तो वह जान बचाने के लिए घर की तरफ भागा. मगर गोली लगने के कारण वह कुछ दूर जाकर ही गिर पड़ा. बताया गया कि मौत के बाद भी हमलावर आरिफ पर गोलियां चलाते रहे. उसके सीने, सिर, पेट, पैर, हाथ और कमर आदि पर गोलियां लगी हैं.

दोनों जगह हमलावरों की संख्या चार थी

पुलिस गैंगवार और रंजिश सहित विभिन्न कोणों से मामले की जांच कर रही है. फिलहाल हमलावर पुलिस पकड़ से दूर हैं. दोनों ही वारदातों में दो बाइक पर सवार चार बदमाशों ने गोलियां चलाई हैं. गैंगवार के कारण पूरे जिले की पुलिस को चौकन्ना रहने के लिए कहा गया है.

फोन आने पर घर से निकला

पुलिस के अनुसार, आरिफ परिवार के साथ मौजपुर में रहता था. उसके परिवार में माता-पिता, भाई और दो बहनें हैं. वह पत्रचार से स्नातक करने के साथ ही पिता के कारोबार में भी मदद करता था. रविवार देर रात उसके मोबाइल पर एक कॉल आयी और वह बातचीत करते हुए घर से बाहर निकल गया. आरिफ का कोई आपराधिक रिकॉर्ड अभी तक पुलिस को नहीं मिला है.

बेटी के गुनाहगार बन गए मां बाप

इसी साल 17 मई की सुबह के करीब साढ़े 7, पौने 8 बजे का समय रहा होगा, जब जयपुर की जगदंबा विहार कालोनी में सिविल इंजीनियर अमित नायर के घर के बाहर एक होंडा अमेज कार आ कर रुकी. कार से 4 लोग उतरे, जिन में एक महिला भी थी. उन में से एक आदमी कार के पास खड़ा हो गया तो बाकी महिला समेत 3 लोग घर के सामने जा कर खड़े हो गए.

उन में से अधेड़ उम्र के एक आदमी ने आगे बढ़ कर घर की डोरबेल बजाई. डोरबेल की आवाज सुन कर अमित नायर की पत्नी ममता ने गेट खोला. गेट के बाहर पापामम्मी को देख कर वह खुशी से फूली नहीं समाई. वह शिकायत भरे लहजे में पापा से लिपट कर बोली, ‘‘पापा, बेटीदामाद की याद नहीं आई क्या, जो इतने दिनों बाद आज आए हो?’’

ममता जिस आदमी से लिपटी थी, वह उस के पिता थे. उन का नाम जीवनराम था. उन्होंने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है बेटी. आखिर हम तेरे मांबाप हैं. तूने भले ही अपनी मनमरजी कर ली है, लेकिन हम तुझे कैसे भूल सकते हैं.’’

‘‘पापा, आप लोग बाहर ही खड़े रहेंगे या घर के अंदर भी आएंगे?’’ ममता ने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘‘मम्मी, आप क्यों चुपचाप खड़ी हैं?’’

‘‘बेटी, आज हम सब तुम से ही मिलने आए हैं.’’ मां भगवानी देवी ने कहा.

‘‘पापा, ये आप के साथ कौन लोग हैं, मैं इन्हें नहीं जानती?’’ ममता ने शंका भरे लहजे में पूछा.

जीवनराम ने ममता को भरोसा दिलाया, ‘‘बेटी, ये हमारे जानकार हैं. हम साथसाथ कहीं जा रहे थे. सोचा, बेटी का घर रास्ते में है तो उस से मिलते चलें. इसी बहाने आपसी गिलेशिकवे भी दूर हो जाएंगे.’’

‘‘आओ, अंदर आ जाओ.’’ ममता ने मम्मीपापा व उन के साथ आए लोगों से कहा, ‘‘आप सब चायनाश्ता कर के जाना.’’

ममता के कहने पर जीवनराम, उन की पत्नी भगवानी देवी और उन के साथ आया वह आदमी ममता के साथ घर के अंदर जा कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठ गए.

हालांकि सुबह का समय था, लेकिन सूरज की तपन से गरमी बढ़ने लगी थी. इसलिए ममता ने ड्राइंगरूम का एसी औन कर दिया. इस के बाद फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और 3 गिलासों में पानी डाला. तीनों गिलास एक ट्रे में रख कर वह ड्राइंगरूम में पहुंची और मम्मीपापा व उन के साथ आए व्यक्ति को एकएक गिलास दे दिया. तीनों ने पानी पिया.

पानी पीने के बाद जीवनराम ने पूछा, ‘‘बेटी, दामादजी नजर नहीं आ रहे, वह कहां हैं?’’

‘‘पापा, वह अभी सो रहे हैं. वह थोड़ा देर से उठते हैं, लेकिन आप आए हैं तो मैं उन्हें उठाए देती हूं.’’ ममता ने हंसते हुए कहा.

‘‘ठीक है बेटी, दामादजी को जगा दो, उन से भी गिलेशिकवे दूर कर लें.’’ जीवनराम ने लंबी सांस ले कर कहा.

पापा के कहने पर ममता बैडरूम में गई और पति अमित को जगा कर बोली, ‘‘मम्मीपापा आए हैं, आपसी गिलेशिकवे दूर करना चाहते हैं.’’

ममता के पापामम्मी के आने की बात सुन कर अमित हैरान रह गया. वह जल्दी से उठा और वाशबेसिन पर जा कर मुंह धोया. तौलिए से मुंह पोंछते हुए वह ड्राइंगरूम में पहुंचा और ममता के मम्मीपापा को हाथ जोड़ कर नमस्कार कर के बोला, ‘‘पापाजी, आज आप को हमारी याद कैसे आ गई?’’

‘‘बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ जीवनराम ने कहा, ‘‘तुम से शादी करने के बाद ममता तो हमें भूल ही गई. उसे हमारे साथ भेज दो तो कुछ दिन हमारे साथ रह लेगी. वैसे भी वह प्रैग्नेंट है, इसलिए उसे आराम की जरूरत है.’’

अमित के जवाब देने से पहले ही ममता ने पिता की बात काट कर कहा, ‘‘पापा, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मुझे यहां किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है.’’

अमित ने ममता की बात का समर्थन किया, ‘‘पापाजी, ममता आप के साथ नहीं जाना चाहती, इस का कहीं जाने का मन नहीं है.’’

ममता और अमित की बातें सुन कर जीवनराम गुस्से से उबल पड़े, लेकिन उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने दिया. उन्होंने अपने साथ आए युवक को इशारा किया. इशारा मिलते ही उस ने पिस्तौल निकाली और अमित पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगा. कई गोलियां लगने से अमित ड्राइंगरूम में ही फर्श पर गिर पड़ा. उस के सीने, गरदन और पैर में 4 गोलियां लगीं.

अमित के गिरते ही ममता चीखने लगी. जीवनराम और उस की पत्नी ममता के बाल पकड़ कर घसीटते हुए जबरन अपने साथ ले जाने लगे, लेकिन तब तक गोलियों की आवाज और ममता की चीखें सुन कर अंदर से अमित की मां रमा देवी आ गई थीं. कुछ पड़ोसी भी आ गए थे. कार के पास खड़े व्यक्ति ने गोलियों की आवाज सुन कर कार स्टार्ट कर दी थी. जीवनराम, भगवानी देवी और उन के साथ आया युवक बाहर खड़ी कार में बैठ कर फरार हो गए.

दिनदहाड़े घर में घुस कर अमित नायर की हत्या किए जाने से कालोनी में हड़कंप मच गया. आसपास के लोग अमित के मकान पर एकत्र हो गए. पुलिस को सूचना दी गई तो पुलिस ने वायरलैस पर सूचना दे कर नाकेबंदी करा दी. पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पूछताछ में जो बातें सामने आईं, उस से साफ हो गया कि यह औनर किलिंग का मामला था.

अमित की हत्या उस के सासससुर ने अपने साथ लाए भाड़े के शूटर से कराई थी. मातापिता ने ही अपनी बेटी की मांग उजाड़ दी थी.

आमतौर पर औनर किलिंग के ज्यादातर मामले हरियाणा के जाट समुदाय में सामने आए हैं. राजस्थान में हरियाणा से सटे इलाकों में ऐसी कुछ घटनाएं हुई हैं, लेकिन राजधानी जयपुर में औनर किलिंग की संभवत: इस पहली घटना ने पुलिस अधिकारियों को झकझोर दिया था.

रमा देवी ने उसी दिन थाना करणी विहार में अपने बेटे अमित के सासससुर व 2 अन्य लोगों के खिलाफ घर पर आ कर अमित की गोली मार कर हत्या करने व बहू ममता को जबरन ले जाने का प्रयास करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला भारतीय दंड विधान की धारा 453, 302 व 120बी के अंतर्गत दर्ज किया.

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार, पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता, पुलिस उपायुक्त (अपराध) विकास पाठक के निर्देशन में कई पुलिस टीमों का गठन किया. इन टीमों में अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) रतन सिंह, सहायक पुलिस आयुक्त वैशालीनगर रामअवतार सोनी, करणी विहार थानाप्रभारी महावीर सिंह, चौमूं थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, हरमाड़ा थानाप्रभारी लखन सिंह खटाना, भांकरोटा थानाप्रभारी हेमेंद्र कुमार शर्मा, सेज थानाप्रभारी गयासुद्दीन, झोटवाड़ा थानाप्रभारी गुर भूपेंद्र सिंह, वैशालीनगर थानाप्रभारी भोपाल सिंह भाटी और यातायात पुलिस इंसपेक्टर निहाल सिंह को शामिल किया गया.

इन के अलावा एफएसएल, एमओबी शाखा व साइबर सेल की सहायता से अमित नायर हत्याकांड की जांच शुरू कर के अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी गई. दूसरे दिन पुलिस ने शूटर का स्कैच बनवा कर जारी कर दिया.

पुलिस को अमित के सासससुर और रिश्तेदारों के नामपते पता चल गए थे. अमित के ससुर जीवनराम जाट मूलरूप से सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा के रहने वाले थे. फिलहाल वह जयपुर के वैशालीनगर में झारखंड मोड़ स्थित गणेश कालोनी में रह रहे थे.

पुलिस को शूटरों का पता जीवनराम से ही मिल सकता था, साथ ही अमित की हत्या का कारण भी उन के पकड़ में आने के बाद ही पता चल सकता था. इसलिए पुलिस ने जीवनराम को गिरफ्तार करने के लिए जयपुर, सीकर, लोसल, नागौर जिले में डीडवाना, कुचामन, लाडनूं, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, दिल्ली व हरियाणा में स्थित उस के घर वालों तथा रिश्तेदारों के यहां कई जगहों पर दबिश दी.

जांच के दौरान पुलिस को नागौर जिले के डीडवाना कस्बे में वह कार मिल गई, जिस में अमित की हत्या के आरोपी उस के घर आए थे. पुलिस को पता चला कि जीवनराम का बेटा मुकेश डीडवाना में ही रहता है. वह रेलवे में जेईएन है. जांच में पता चला कि अमित की हत्या से पहले और बाद में मुकेश लगातार मातापिता के संपर्क में था.

पुलिस ने अमित की हत्या की साजिश के आरोप में 19 मई को मुकेश को गिरफ्तार कर लिया. मुकेश ने पूछताछ में बताया कि अमित की हत्या के बाद मां भगवानी देवी व पिता जीवनराम जयपुर से सीधे डीडवाना आए थे. वे दोनों करीब 10 मिनट उस के पास रुके थे. इस दौरान जीवनराम ने मुकेश को बताया था कि अमित का काम तमाम कर दिया गया है. इस के बाद वे चले गए थे. पुलिस को मुकेश से पूछताछ में इस मामले में कुछ अहम जानकारियां मिलीं. इन जानकारियों के आधार पर पुलिस लगातार अभियुक्तों की तलाश में जुटी रही.

लगातार प्रयास के बाद पुलिस ने आखिर 24 मई को 4 आरोपियों जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी के अलावा उन के ही गांव मोरडूंगा के रहने वाले भगवानाराम जाट तथा नागौर जिले के मौलासर थाना के गांव कीचक निवासी रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को गिरफ्तार कर लिया.

इन में मोरडूंगा निवासी भगवानाराम जाट पंचायत समिति का पूर्व सदस्य था. रवि उर्फ रविंद्र शेखावत शूटर था. उस ने इस घटना से करीब 6 महीने पहले 3 लाख रुपए में अमित की हत्या की सुपारी ली थी. पुलिस ने जीवनराम को हरियाणा के कैथल, भगवानी देवी और पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को सीकर तथा रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को जयपुर से पकड़ा था.

आरोपियों से पूछताछ में पुलिस को अमित की हत्या करने वाले शूटरों का पता चल गया था. पूछताछ में जीवनराम ने पुलिस को बताया था कि भाड़े के 2 शूटरों विनोद गोरा तथा रामदेवलाल ने गोलियां चला कर अमित को मौत की नींद सुलाया था. ये दोनों शूटर भी जीवनराम के साथ ही कार से फरार हो गए थे.

बाद में दोनों शूटर जीवनराम से अलग हो कर गुजरात के शहर सूरत चले गए थे. यह सूचना मिलने पर जयपुर पुलिस की 2 टीमें शूटरों की तलाश में सूरत गईं, लेकिन तब तक वे दोनों सूरत से मुंबई चले गए थे. जयपुर पुलिस मुंबई पहुंची तो पता चला कि दोनों शूटर गोवा चले गए हैं.

जयपुर पुलिस की टीमें शूटरों का लगातार पीछा कर रही थीं. जयपुर पुलिस के गोवा पहुंचने से पहले ही वे वहां से भी चले गए थे. दोनों शूटरों का पीछा करते हुए जयपुर पुलिस राजस्थान के नागौर आ गई. नागौर जिले के कुचामन सिटी की कृष्णा कालोनी के एक मकान में दोनों शूटरों के होने की सूचना पर पुलिस ने 5 जून को देर रात दबिश दी.

दबिश में विनोद गोरा पकड़ा गया, जबकि रामदेवलाल नहीं मिला. पता चला कि वह कुचामन से उसी दिन विनोद गोरा से अलग हो गया था. लाडनूं निवासी गिरफ्तार शूटर विनोद गोरा ने पुलिस को बताया कि जीवनराम ने अमित को मारने के लिए उसे व रामदेवलाल को 2 लाख रुपए की सुपारी दी थी. वारदात के दौरान विनोद गोरा अमित के घर के बाहर हथियार ले कर खड़ा था, जबकि रामदेवलाल घर के अंदर गया था.

दोनों शूटरों ने तय किया था कि घर के अंदर अगर रामदेवलाल किसी कारण से अमित की हत्या में सफल नहीं हो पाता तो विनोद उस की मदद करेगा. अमित की हत्या के बाद जीवनराम ने दोनों शूटरों को 50 हजार रुपए दिए थे.

गिरफ्तार आरोपियों व अमित की पत्नी ममता से पूछताछ के बाद औनर किलिंग के नाम पर अमित की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह जीवनराम जाट और उस के परिवार की झूठी आनबानशान और इज्जत का दिखावा मात्र थी.

सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा का रहने वाला जीवनराम जाट सेना में नौकरी करता था. वह सेना की 221 मीडियम आर्टिलरी से सन 2000 में रिटायर हुआ था. इस के बाद वह परिवार के साथ जयपुर में रहने लगा था. उस के परिवार में पत्नी भगवानी देवी के अलावा बेटा मुकेश और बेटी ममता थी. सेना से रिटायर होने के बाद वह नेशनल इंश्योरेंस कंपनी में ड्राइवर हो गया था.

दूसरी ओर अमित नायर के पिता राघवन सोमन मूलरूप से केरल के रहने वाले थे. वह जयपुर में ए श्रेणी के ठेकेदार थे. अमित की मां रमादेवी जयपुर से नर्स के पद से रिटायर हुई थीं. राघवन का करीब ढाई-3 साल पहले निधन हो गया था.

उस समय ममता और अमित के परिवार जयपुर के वैशालीनगर में आसपास रहते थे. दोनों परिवारों में अच्छा परिचय था. जीवनराम का बेटा मुकेश और अमित नायर जयपुर के केंद्रीय विद्यालय संख्या-4 में साथसाथ पढ़ते थे. वहीं दोनों की आपस में दोस्ती हो गई थी. जीवनराम की बेटी ममता जयपुर के ही केंद्रीय विद्यालय संख्या-2 में पढ़ती थी.

बाद में अमित ने जयपुर के ज्योतिराव फुले कालेज से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. ममता ने मोदी इंस्टीट्यूट लक्ष्मणगढ़ से एलएलबी की पढ़ाई की और मुकेश ने पूर्णिमा कालेज से बीटेक किया.

आसपास रहने और केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई करने के दौरान ही अमित का अपने सहपाठी मुकेश की बहन ममता से परिचय हुआ. कालेज स्तर की पढ़ाई के दौरान उन का यह परिचय प्यार में बदल गया. हालांकि दोनों अलगअलग कालेजों में पढ़ते थे, लेकिन प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए वे समय निकाल ही लेते थे.

ममता ने अपने प्यार की भनक घर वालों को नहीं लगने दी. जब ममता और अमित का प्यार परवान चढ़ने लगा तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों अलगअलग जाति से थे. ममता जहां जाट परिवार की बेटी थी, वहीं अमित दक्षिण भारतीय था.

ममता को अच्छी तरह पता था कि उस के घर वाले अमित और उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. जातिसमाज के बंधनों को देखते हुए अमित और ममता ने सन 2011 में आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, लेकिन इस शादी का अपने परिवार वालों को पता नहीं लगने दिया. भले ही उन दोनों ने शादी कर ली थी, लेकिन वे अपनेअपने घरों पर अलगअलग ही रहते थे.

सन 2015 में जब ममता की एलएलबी की पढ़ाई पूरी हो गई तो अमित व ममता ने अपनी शादी परिवार और समाज में जाहिर करने का फैसला कर लिया. एक दिन ममता ने अमित से अपनी शादी की बात अपने मातापिता को बता दी और उन की इच्छा के खिलाफ उसी दिन घर छोड़ कर अमित के साथ रहने चली गई. तब तक अमित का परिवार करणी विहार में जा कर रहने लगा था.

बेटी का इस तरह दूसरी जाति के युवक से शादी करना जीवनराम, उस की पत्नी और बेटे मुकेश को अच्छा नहीं लगा. उन्हें इस बात पर ज्यादा गुस्सा था कि ममता ने बिना बताए शादी कर ली थी. मुकेश इस बात से ज्यादा खफा था कि उस के साथ पढ़ने और पड़ोस में रहने वाले दोस्त अमित ने उस की बहन से ही शादी कर के दोस्ती में दगा किया था.

ममता अपने पति अमित के साथ हंसीखुशी वैवाहिक जीवन गुजारने लगी. अमित प्रौपर्टी व कंस्ट्रक्शन का काम करता था. इस बीच ममता के मातापिता व भाई लगातार उस पर दबाव डालते रहे कि वह अमित से संबंध तोड़ ले. उन्होंने कई बार ममता को अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन वे इस में सफल नहीं हुए. अमित की शिकायत पर पुलिस ने वारदात से करीब 8 महीने पहले ममता के मातापिता व भाई पर पाबंदी भी लगा दी थी कि वे अमित के घर न जाएं.

ममता इसी साल जनवरी में गर्भवती हो गई थी. इसी वजह से कुछ महीनों से उस की अपनी मां से बातचीत होती रहती थी. करीब 3 महीने से बीचबीच में ममता के मातापिता उस से मिलने आते रहते थे. इस से अमित व ममता को लगने लगा था कि अब सब ठीक हो गया है. ममता अपने मांबाप के मंसूबों का अंदाजा नहीं लगा पाई थी.

दूसरी तरफ जीवनराम और उस का परिवार अमित नायर को अपना सब से बड़ा दुश्मन मान रहा था. वे उसे रास्ते से हटाने की योजना में लगे हुए थे. जीवनराम ने अपने गांव मोरडूंगा के रहने वाले पुराने दोस्त पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को अपनी परेशानी बताई. भगवानाराम ने अमित को ममता के रास्ते से हटाने के लिए जीवनराम को रवि उर्फ रविंद्र शेखावत से मिलवाया.

रवि ने 3 लाख रुपए में अमित की हत्या करने की सुपारी ले ली. योजना के तहत जीवनराम और भगवानाराम ने रवि के साथ मिल अमित की रेकी कर उस की हत्या का मौका तलाशने लगे. इसी बीच जीवनराम और उस के घर वालों ने भगवानाराम के साथ मिल कर भाड़े के 2 अन्य शूटरों रामदेवलाल और विनोद गोरा को 2 लाख रुपए में अमित की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया.

योजनाबद्ध तरीके से जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और किराए के दोनों शूटर रामदेवलाल व विनोद गोरा होंडा अमेज कार आरजे14सीएक्स 0313 से 17 मई की सुबह साढ़े 7 से पौने 8 बजे के बीच जगदंबा विहार में मकान नंबर सी-493 पर बेटीदामाद के घर पहुंचे. वहां एक शूटर विनोद गोरा कार के पास बाहर खड़ा रहा, जबकि जीवनराम, भगवानी देवी और रामदेवलाल घर के अंदर चले गए.

घर के अंदर जीवनराम ने अमित को बुलवाया और ममता को साथ ले जाने की बात कही. लेकिन ममता के इनकार कर देने पर जीवनराम को गुस्सा आ गया. उन्होंने शूटर से अमित पर गोलियां चलवा कर उस की हत्या करा दी. इस के बाद उन्होंने ममता को जबरन ले जाने का प्रयास किया, लेकिन अमित की मां व पड़ोसियों के आ जाने से वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके और कार में बैठ कर भाग गए.

पूछताछ में पता चला कि जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और दोनों शूटर वारदात के बाद जयपुर से निकले तो बगरू के पास दोनों शूटरों को उतार दिया. इस के बाद जीवनराम व उस की पत्नी भगवानी देवी सीधे डीडवाना पहुंचे, जहां वे रेलवे में नौकरी करने वाले अपने बेटे मुकेश से मिले. उन्होंने उसे अमित का काम तमाम करने के बारे में बताया और अपनी कार वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गए.

दोनों डीडवाना से नागौर, फलौदी, रामदेवरा हो कर सूरतगढ़ पहुंचे. सूरतगढ़ से जीवनराम ने पत्नी भगवानी देवी को बस में बैठा कर सीकर भेज दिया. इस के बाद जीवनराम बीकानेर, हिसार हो कर कैथल पहुंच गया.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि व्यापक जांच के बाद अमित हत्याकांड में 7 लोगों की संलिप्तता सामने आई है. इन में से 6 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वारदात में इस्तेमाल कार भी बरामद कर ली गई है. कथा लिखे जाने तक पुलिस शूटर रामदेवलाल की तलाश कर रही थी.

इस मामले में गिरफ्तार जीवनराम ने पुलिस को बताया कि अमित ने ममता को पहले धर्मबहन बनाया. वह रक्षाबंधन पर उस से राखी भी बंधवाता रहा. इस के बाद अपने प्यार में फांस कर उस से शादी कर ली. उस की शादी का पता चलते ही हम ने अमित को ठिकाने लगाने की ठान ली थी.

वारदात के कुछ दिनों बाद तक ममता के परिवार की सुरक्षा के लिए उस के घर के बाहर पुलिस तैनात रही. ममता की याचिका पर हाईकोर्ट ने भी पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया है कि ममता और उस के घर वालों के अलावा गवाह पड़ोसियों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

बहरहाल, अमित की हत्या करवा कर जीवनराम और परिवार ने सीने में सुलग रही आग भले ही ठंडी कर ली हो, लेकिन जातिबिरादरी में शर्मिंदगी की आड़ ले कर ऐसा कृत्य करने वालों को कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं करता. जीवनराम ने बेटी का सुहाग उजाड़ कर भगवानी देवी की ममता का भी गला घोंट दिया. ममता का गर्भस्थ शिशु संभवत: सितंबर में जन्म लेगा तो उस मासूम को पिता का प्यार नहीं मिल पाएगा.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुलिस के लिए सिरदर्द बने नाइजीरिया के अपराधी

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने नशीली दवाओं की तस्करी के आरोप में नाइजीरिया के एक नौजवान को गिरफ्तार किया. उस के पास से पौने 2 किलो कोकीन बरामद हुई. इंटरनैशनल बाजार में इस कोकीन की कीमत एक करोड़, 75 लाख रुपए आंकी गई.

पुलिस के मुताबिक, पकड़े गए 32 साला तस्कर का नाम पौल चीनेडू अगवोर उर्फ एमा था. वह ओनिशा, नाइजीरिया का रहने वाला था. वह कई सालों से भारत में रह कर नशीली दवाओं की तस्करी कर रहा था. उस का नैटवर्क देश के कई शहरों में था. वह नशीली दवाओं को बड़ी चालाकी से कभी कपड़ों में, कभी मिठाई के डब्बों में या पेंटिंग के फ्रेम में भर कर एक शहर से दूसरे शहर ले जाता था और वहां दूसरे तस्करों को सप्लाई करता था.

चंडीगढ़ पुलिस ने करोड़ों रुपए के डौलर देने के बहाने लोगों से ठगी करने वाले नाइजीरिया के एक नौजवान इमैनुअल हैरी को गिरफ्तार किया. पुलिस ने उस के पास से नकली डौलर के 36 पैकेट बरामद किए (असली होने पर ये डौलर 5 करोड़ रुपए के होते).

पुलिस के मुताबिक, हैरी औरत बन कर लोगों को ईमेल भेजता था. उस ईमेल में वह लिखता था कि उसे एक जानलेवा बीमारी है. उस का इस दुनिया में कोई नहीं है. वह मरने से पहले अपनी सारी जायदाद, जो 85 मिलियन डौलर की है, किसी अच्छे शख्स को दान करना चाहती है. जो कोई इस जायदाद को पाना चाहता है, कृपया पूरी डिटेल्स के साथ उस से बात करे.

अगर कोई शख्स इस बात में दिलचस्पी दिखाते हुए ईमेल का जवाब देता, तब उसे दूसरा मेल मिलता. इस में बताया जाता कि रुपए देने के लिए उस का वकील माइकल नैल्सन कागजी कार्यवाही पूरी करने के लिए भारत पहुंच चुका है. वह सारी जानकारी लेने के बाद जायदाद दे देगा.

अगले कुछ दिनों में हैरी खुद ही माइकल नैल्सन बन कर फोन द्वारा बात कर के ईमेल करने वाले शख्स से डिटेल लेता था. इस के बाद वह कहता था कि इतनी बड़ी रकम को डायरैक्ट किसी बैंक में ट्रांसफर करना मुश्किल है. भारतीय रिजर्व बैंक के जरीए ही भेजना मुमकिन है. इस के लिए भारतीय नियम के मुताबिक वैट टैक्स समेत दूसरे शुल्क चुकाने होंगे.

लोग उस के झांसे में आ कर वैट टैक्स के रूप में रुपए जमा कर देते थे. मोटी रकम लेने के बाद वह उन्हें नकली डौलर थमा देता था.

पुलिस के मुताबिक, इमैनुअल हैरी भारत के कई शहरों के सौ से भी ज्यादा लोगों को करोड़ों रुपए का चूना लगा चुका था.

पुणे, महाराष्ट्र की रहने वाली एक तलाकशुदा औरत किसी ब्रिटेन के बाशिंदे से शादी कर के विदेश जाना चाहती थी. दूसरी शादी के बाद करोड़ों रुपए में खेलने की सोच रखने वाली इस औरत ने सैकंड शादीडौटकौम पर अपना ब्योरा रजिस्टर करा दिया.

इस प्रोफाइल को पढ़ कर रौबर्ट नाम के एक नौजवान ने उस औरत से बात की. उस ने खुद को कनाडा का रहने वाला नागरिक बताया. चैटिंग करते वक्त उस ने औरत को बताया कि वह उसे काफी पसंद है. वह उस के साथ घर बसाना चाहता है.

रौबर्ट ने यह दावा भी किया कि उस के पास 3 लाख, 20 हजार कनेडियन डौलर यानी एक करोड़, 75 लाख रुपए हैं. वह सारे रुपए उसे दे देगा.

यह सुन कर वह औरत खुशी से उछल पड़ी. उसे विदेश जाने के सपने पूरे होते नजर आने लगे. कुछ दिनों की चैटिंग के बाद जब उस नौजवान को यह महसूस हो गया कि वह औरत पूरी तरह से उस पर फिदा है और वह उस के झांसे में आ चुकी है, तब एक दिन उस ने अपनी मां की तबीयत खराब होने और उस के इलाज के लिए 8 लाख रुपए मंगवाए. फिर मलयेशिया एयरपोर्ट पर कस्टम द्वारा रुपए पकड़े जाने की बात कह कर और रुपए मंगवाए.

इस तरह रौबर्ट ने उस औरत से अलगअलग बहाने बना कर के कुल 40 लाख, 59 हजार रुपए ठग लिए और उस के बाद उसे फोन करना बंद कर दिया.

उस औरत ने पुलिस में शिकायत की. पुलिस द्वारा मोबाइल फोन, ईमेल, फेसबुक, बैवसाइट द्वारा खोजबीन करने पर पता चला कि रौबर्ट ब्रिटिश नागरिक नहीं, बल्कि नाइजीरिया का था. उस का असली नाम पौल ओकाफोर था. वह तलाकशुदा, विधवा, विकलांग औरतों को अपने बारे में बड़ीबड़ी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर लेता था. इस के बाद वह उन से किसी न किसी बहाने रुपए ठग लेता था.

पुणे पुलिस ने बेंगलुरु में छापा मार कर उसे एक फ्लैट से गिरफ्तार किया. उस के साथ एक भारतीय औरत को भी गिरफ्तार किया गया. पौल ओकाफोर उर्फ रौबर्ट के मुताबिक, वह औरत उस की पत्नी थी. भारतीय मूल की उस औरत का नाम सुप्रिया एलिजाबेथ उर्फ मोना था.

पौल ओकाफोर के ठगी के काम में उस की यह पत्नी भी मदद करती थी. पुणे पुलिस के मुताबिक, पौल ओकाफोर को इस के पहले भी 43 लाख रुपए की ठगी के एक मामले में गिरफ्तार किया जा चुका था.

देशभर में सैकड़ों लोगों के साथ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करने के आरोप में चेन्नई, तमिलनाडु पुलिस ने नाइजीरिया के 2 नागरिकों रीलेंड चुकबुदी उर्फ लुकारा और स्टैलनी रेनसोगा को गिरफ्तार किया. पुलिस ने उन के पास से 5 डाटा कार्ड, 5 पैन ड्राइव, 3 लैपटौप, काफी मात्रा में ब्लैक डौलर बरामद किए.

राजू नाम के एक नौजवान ने नाइजीरिया के 2 लोगों द्वारा ब्लैक डौलर दे कर 44 लाख रुपए ठगे जाने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई. पुलिस ने नाइजीरिया के उन नौजवानों की पहचान के लिए फेसबुक से नाइजीरिया के 2 सौ नागरिकों के फोटो जुटाए. उन्हें राजू को दिखाने के बाद वह एक आरोपी को पहचान गया. पुलिस ने उन्हें उन की मोबाइल लोकेशन से मुंबई में गिरफ्तार कर लिया.

फेसबुक के जरीए दोस्ती करने के बाद एक शख्स से करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले नौजवान को कोलकाता पुलिस ने उस की प्रेमिका के साथ दिल्ली के उत्तम नगर इलाके से गिरफ्तार किया.

गिरफ्तार किए गए 35 साला आरोपियों के नाम विंसैंट मोर्लिय और 30 साला सुशान आओमिन उर्फ तोशेली थे. वे दोनों मूलरूप से नाइजीरिया के रहने वाले थे, जो फेसबुक पर खुद को अमेरिका और डेनमार्क के बाशिंदे और डौक्यूमैंट्री फिल्म बनाने वाले बताते थे.

विंसैंट मोर्लिय ने एक निजी कंपनी में प्रोड्यूसर के पद पर काम करने वाले अनुतोष डे से फेसबुक पर दोस्ती की थी. वे दोनों फेसबुक पर फिल्मों को ले कर काफी समय तक चैटिंग करते थे. इस दौरान विंसैंट ने शांति निकेतन पर डौक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की बात कही. अनुतोष ने उसे हर तरह से मदद करने का भरोसा दिलाया.

एक दिन अनुतोष के पास विंसैंट मोर्लिय का फोन आया, जिस में उस ने कहा कि वह भारत आ गया है, लेकिन यहां एक परेशानी में पड़ गया है. उसे मदद की जरूरत है. उस ने आगे बताया कि ज्यादा रुपए होने की वजह से एयरपोर्ट पर भारतीय कस्टम महकमे वालों ने उसे पकड़ लिया है. कस्टम से निकलने के लिए उस ने कुछ रुपए जमा करने की बात कही.

अनुतोष ने रुपए जमा कर के उस की मदद कर दी. इस के बाद कई तरह के बहानों से विंसैंट मोर्लिय ने उन से रुपए मंगवाए.

अनुतोष ने कई किस्तों में कुल 18 लाख, 78 हजार, 6 सौ रुपए रुपए उस के बैंक खाते में ट्रांसफर किए. जब अनुतोष ने महसूस किया कि उस के साथ ठगी हो गई है, तब उस ने कोलकाता पुलिस में इस की शिकायत दर्ज की.

कोलकाता पुलिस द्वारा जांच शुरू कर बैंक अकाउंट के जरीए विंसैंट मोर्लिय को ढूंढ़ निकाला. पुलिस ने दिल्ली के सफदरजंग एंक्लेव इलाके से विंसैंट मोर्लिय और सुशान आओमिन उर्फ तोशेली को गिरफ्तार किया.

उन के पास 2 पासपोर्ट और साल 2010 का एक ड्राइविंग लाइसैंस मिला. कोलकाता पुलिस के मुताबिक वे दोनों साल 2010 से भारत में रह कर लोगों के साथ धोखाधड़ी कर रहे थे.

नाइजीरिया के अपराधी भारतीय पुलिस के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं. वे अपराध करने के काफी शातिर तरीके अपनाते हैं. वे अपने शिकार से जो भी रकम भारत के किसी बैंक के अकाउंट में जमा कराते हैं, वह अकाउंट किसी भारतीय का होता है.

नाइजीरिया के अपराधी किसी भारतीय को मोटा कमीशन देने की बात कह कर उस के अकाउंट में रकम मंगवा लेते हैं. रुपए मंगवाने के लिए वे हर बार किसी नए अकाउंट होल्डर को पकड़ते हैं. शिकायत होने पर मामला उस भारतीय के खिलाफ बनता है और वे साफ बच जाते हैं.

कोई भी विदेशी नागरिक भारत आने पर जरूरत पड़ने पर बैंक में अपना अकाउंट खुलवा सकता है. पासपोर्ट दिखा कर विदेशियों का बैंक में अकाउंट आसानी से खुल जाता है, पर जो विदेशी नागरिक भारत में अपराध करने के मकसद से आते हैं, वे यहां आते ही अपना पासपोर्ट फाड़ कर फेंक देते हैं.

इस की 2 वजहें होती हैं. पहली, इस से वे अपनी पहचान छिपाने में कामयाब हो जाते हैं. दूसरी, अपराध करने के बाद पकड़े जाने पर उन्हें उन के देश भेजना पुलिस के लिए मुश्किल हो जाता है.

एसीपी सुनील देशमुख ने बताया, ‘‘इन के मोबाइल नंबर को भी सुबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि इन के मोबाइल नंबर भी किसी भारतीय के नाम से रजिस्टर्ड होते हैं.

‘‘आजकल नाइजीरिया के अपराधी ब्रिटेन या अमेरिका के सिम का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में वहां से जानकारी लेना बड़ा मुश्किल है. इन की आवाज को टेप कर सुबूत के रूप में कोर्ट में पेश कर उसे साबित करना मुश्किल होता है, क्योंकि शिकायत करने वाले अकसर उन की आवाज को पहचान नहीं पाते हैं.’’

नाइजीरया के ज्यादातर अपराधी काफी उग्र होते हैं. वे अगर भड़क गए, तो 2-3 पुलिस वाले भी उन्हें संभाल नहीं सकते. उन्हें कंट्रोल करने के लिए पुलिस फोर्स की जरूरत पड़ती है, वरना वे भाग सकते हैं. खाने के मामले में उन पर काफी खर्च करना पड़ता है. ठीक से खाना न मिलने पर वे और ज्यादा ऊधम मचाते हैं.

कोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे जगह बदल लेते हैं. उन के नाम का वारंट निकलने के बाद भी उन्हें खोज पाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि देश में रहने का उन का कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है.

नशीली दवाओं जैसे मामलों में उन्हें जमानत नहीं मिल पाती है, पर जब कोर्ट का ट्रायल चलता है, उस वक्त गवाह न मिल पाने की वजह से वे छूट जाते हैं.

उन के जेल जाने पर जेल प्रशासन भी परेशान हो जाता है. वहां पर दूसरे कैदियों के साथ मारपीट करना, झगड़ा करना, दूसरे कैदियों का खाना छीन लेना, धमकी देना जैसी हरकतों से सभी परेशान हो जाते हैं. उन्हें उन के देश वापस भेजना भी पुलिस अफसरों के लिए परेशान कर देने वाली बात होती है. ऐसा करते वक्त पुलिस व सरकार को अपनी जेब से हवाईजहाज का टिकट खरीद कर देना होता है.

क्या उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती? इस सवाल पर एसीपी सुनील देशमुख का कहना हैं, ‘‘इस बारे में अभी तक सरकार द्वारा नाइजीरिया के लोगों पर भारत आने की रोक लगाने की बात सामने नहीं आई है. इस मामले में राजनीति और कूटनीति वाले समझ सकते हैं कि क्या करना है, क्या नहीं. अपने देश भेजा गया आरोपी दोबारा वापस न आए, इस के लिए पुलिस द्वारा सावधानी बरती जाती है.

‘‘नाइजीरिया के अपराधी को उस के देश वापस भेजते वक्त पुलिस उस का बायोमीट्रिक्स और फिंगर प्रिंट ले लेती है और उसे देश के सभी एयरपोर्ट पर भेज दिया जाता है. अगर वह दोबारा भारत में आता है, तो एयरपोर्ट पर ही पहचान लिया जाता है.’’

लोगों को एक बात और सोचनी चाहिए कि लालच बुरी बला है. अगर वे इसी बात को ध्यान में रखेंगे, तो नाइजीरिया के अपराधियों के चंगुल से बच जाएंगे.

लूट के विरोध पर कारोबारी की हत्या

दिल्ली के नरेला में गुरुवार रात बाइक सवार बदमाशों ने लूट का विरोध करने पर घर के बाहर एक कारोबारी की गोली मारकर हत्या कर दी. लुटेरों ने कारोबारी के भाई को भी पिस्तौल की बट मारकर घायल कर दिया. घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में लुटेरों की तस्वीर कैद हो गई है, मगर उन्होंने अपने चेहरे हेलमेट से ढक रखे हैं.

नरेला की पंजाबी कॉलोनी में 38 वर्षीय नीरज और 35 वर्ष का रिंकू परिवार सहित रहते थे. नरेला अनाज मंडी में उनका परचून का थोक कारोबार है. गुरुवार रात दोनों भाई कारोबार का हिसाब-किताब लेकर चार्टेड अकाउंटेंट से मिलने गए थे. वहां से रात लगभग 8.30 बजे दोनों बाइक से घर लौटे.

कारोबारी भाई जैसे ही बाइक से उतरकर घर की ओर बढ़े, पीछे से एक बाइक पर सवार दो बदमाश आए. उन्होंने कारोबारी से बैग छीनने का प्रयास किया. लुटेरों का कारोबारी भाइयों ने विरोध किया. इसी बीच एक बदमाश ने नीरज को गोली मार दी और पिस्तौल की बट मारकर रिंकू को भी घायल कर दिया. गोली चलने की आवाज सुनकर आसपास के लोग घटनास्थल की ओर दौड़े. लोगों को आता देख बदमाश तेज रफ्तार से बाइक दौड़ाते हुए भाग गए.

दोनों घायलों को तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने नीरज को मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने रिंकू के बयान पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया है. रिंकू ने पुलिस को बताया कि दोनों बदमाशों ने हेलमेट पहन रखा था. इस कारण उनके चेहरे नहीं दिख रहे थे. पुलिस आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने के साथ ही कारोबारी के कर्मचारियों से भी पूछताछ कर रही है. इसके अलावा इलाके में सक्रिय लुटेरों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है.

लुटेरे भाइयों का पहले से ही पीछा कर रहे थे

पुलिस का मानना है कि लुटेरे पहले से ही कारोबारी भाइयों का पीछा कर रहे थे. उनके हाथ में बैग देखकर लुटेरों को लगा होगा कि उसमें मोटी रकम है. कारोबारी जब घर के पास पहुंचे तो वहां लुटेरों को मौका मिल गया और उन्होंने वारदात को अंजाम दिया. हालांकि, बैग में रुपये नहीं, बल्कि कारोबार के हिसाब से संबंधित दस्तावेज थे. हत्या के बाद भी बदमाश बैग ले जाने में कामयाब नहीं हो सके.

पुलिस के खिलाफ लोगों में गुस्सा

हत्या से नाराज लोगों ने शुक्रवार दोपहर सड़क पर शव रखकर जाम लगा दिया और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की. लोगों का आरोप है कि नरेला इलाके में आए दिन वारदात हो रही हैं. कारोबारी सुरक्षित नहीं हैं. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने लोगों को समझाकर शांत करवाया, जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार किया गया.

महबूबा के लिए बेटे ने कर दिया मां का कत्ल

पुराने भोपाल में बन्ने मियां और उन की पत्नी जमीला का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं था. उन्हें वहां हर कोई जानता था. बन्ने मियां की इमेज एक भाजपा समर्थक मुसलमान नेता की थी. वह आपातकाल के समय गिरफ्तार कर के जेल भी भेजे गए थे. वह बड़ी शान से खुद को मीसाबंदी बताते हुए जेल के उस समय यानी सन 1975 के किस्से लोगों को सुनाते रहते थे कि कांग्रेसी शासनकाल में हम नई आजादी के सिपाहियों पर किसकिस तरह के जुल्मोसितम ढाए गए थे. 48 साल की जमीला बेगम उन की दूसरी पत्नी थीं. वह भी राजनीति में जरूरत के हिसाब से सक्रिय रहने वाली महिला थीं और कदकाठी से भी काफी मजबूत थीं. उन की इमेज झुग्गीझोपड़ी की राजनीति करने वाली औरत की थी, जो अपने पति की पहुंच और रसूख के दम पर झुग्गीझोपड़ी का कारोबार भी करती थी. इस काम से उन्होंने खासा पैसा बनाया था. हालांकि पैसों की कमी उन्हें वैसे भी नहीं थी, क्योंकि बन्ने मियां खानदानी आदमी थे. उन्हें विरासत में ही कोई 25 एकड़ जमीन मिली थी, जिस की कीमत अब करोड़ों में थी.

दूसरी शादी कर के बन्ने मियां गौतमनगर थाना इलाके के इंदिरानगर में रहने लगे थे. जमीला से उन्हें एक बेटा अमन था, जो अब 22 साल का बांका जवान हो चुका था. बन्ने मियां की पहली बीवी अपने 4 बच्चों के साथ गांधीनगर इलाके में रहती थी. उन के बच्चों में से एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. जिंदगी में कई उतारचढ़ाव देखने वाले बन्ने मियां यह कहने का हक तो रखते ही थे कि मियां ऊपर वाले के फजल से सब कुछ है मेरे पास, किसी चीज की कमी नहीं है.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अब कहने भर का रह गया है, जिस में पुराने जमाने के इनेगिने नेता ही सक्रिय हैं और इस इकाई को जैसेतैसे ढो रहे हैं. लेकिन उन्हें इस का अच्छाखासा फायदा मिल रहा है. बन्ने मियां और जमीला बेगम सियासत करते हुए तबीयत से भाजपाई राज में चांदी काट रहे थे. इन दोनों ने मिल कर अपना खासा समर्थक वर्ग भी तैयार कर रखा था.

30 नवंबर की दोपहर को अचानक जमीला बेगम की मौत की खबर आग की तरह फैली. दोपहर के वक्त इंदिरानगर में आमतौर पर औरतें और बच्चे ही होते थे. मर्द अपनेअपने काम पर निकल चुके होते थे. अमन ने तंग गली में बने अपने मकान के बाहर आ कर शोर मचाया तो वहां मौजूद तमाम औरतें अपना कामधंधा छोड़ कर जमीला के घर की ओर भागीं. हर एक की जुबान पर यही सवाल था कि क्या हुआ?

जवाब में घबराए अमन ने बताया कि अम्मी को करंट लगा है. औरतों ने देखा कि जमीला बेगम खाट पर लेटी थीं और उन के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी. लिहाजा तुरंत नजदीक से औटो बुलवा कर उन्हें हमीदिया अस्पताल ले जाया गया. घर आई औरतों में कुछ औरतें हैरानी से घर की दीवारों को देख रही थीं कि जमीला को करंट लगा कैसे? यह सवाल अमन से किया गया तो वह घबराहट में कोई जवाब नहीं दे सका. औरतों ने भी उस की हालत देखते हुए ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा.

अलबत्ता, जमीला को जब औटो से ले जाया जा रहा था तो जरूर कुछ औरतों ने उस के बाएं कंधे के नीचे एक सुराख देखा था. लेकिन अस्पताल पहुंचने की जल्दबाजी में किसी ने इस बाबत सवाल नहीं किया. बन्ने मियां उस समय अपनी मीसाबंदियों वाली पेंशन लेने बैंक गए हुए थे. जैसे ही उन्हें बीवी की मौत की खबर मिली, वह भी भागेभागे हमीदिया अस्पताल पहुंचे. तब तक डाक्टरों ने जमीला का निरीक्षण कर उन्हें मृत घोषित कर दिया था. अस्पताल में खासी भीड़ जमा हो गई थी. जमीला बेगम के दफनाए जाने की यानी अंतिम संस्कार की बातें और तैयारियां दोनों शुरू हो गई थीं.

जमीला की मौत की खबर थाना गौतमनगर के थानाप्रभारी मुख्तार कुरैशी तक पहुंची तो वह तुरंत हरकत में आ गए. जमीला की मौत कुदरती नहीं, बल्कि संदिग्ध थी. यह बात उन्हें अपने सूत्रों से पता चल चुकी थी, साथ ही यह भी कि जमीला के घर वाले यानी खासतौर पर पति बन्ने मियां और बेटा अमन इस मौत को राज ही रखना चाहते हैं, इसलिए कफनदफन के इंतजाम में जुट गए हैं.

मुख्तार कुरैशी के लिए जमीला की मौत संदिग्ध इस लिहाज से भी थी कि 2 दिनों पहले ही ट्रैक्टर रखने को ले कर कुछ पड़ोसियों से जमीला का विवाद हुआ था. कुछ लोगों के खिलाफ जमीला ने थाने में शिकायत भी दर्ज करा रखी थी. कुरैशी नहीं चाहते थे कि किसी को कुछ कहने का मौका मिले, क्योंकि मामला एक भाजपा नेत्री की संदिग्ध मौत का था, जिस पर उचित काररवाई न करने पर बवाल भी मच सकता था. लिहाजा वह बगैर वक्त गंवाए हमीदिया अस्पताल पहुंच गए.

उन का शक सच निकला. जमीला बेगम के बाएं कंधे के नीचे सुराख था. लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि खून का कहीं नामोनिशान नहीं था. कुरैशी ने तुरंत जमीला के कंधे पर बने सुराख का एक्सरे कराया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि उन की मौत करंट लगने से नहीं, बल्कि गोली लगने से हुई थी. साफ हो गया कि यह हत्या का मामला था. एक्सरे रिपोर्ट से यह भी साफ हो गया था कि कंधे में धंसी गोली 318 बोर के कट्टे की थी.

जमीला के अंतिम संस्कार की बात अब खत्म हो गई थी और उन का पोस्टमार्टम शुरू हो चुका था. पोस्टमार्टम के बाद उन का शव घर वालों यानी बन्ने मियां और अमन को सौंप दिया गया. पूछताछ में पुलिस को अमन से कुछ हासिल नहीं हुआ. वह कभी करंट लगने की बात कहता था तो कभी यह शक भी जाहिर करता था कि मुमकिन है कि मम्मी को किसी ने घर में घुस कर गोली मारी हो, जिस का उसे पता नहीं चला, क्योंकि उस वक्त वह सो रहा था.

दूसरी ओर शहर में यह अफवाह फैल चुकी थी कि जमीला की हत्या की गई है, पर हत्यारे कौन हैं, इस का पता नहीं चल पा रहा है. पुलिस को अमन पर शक था, लेकिन उसे कातिल ठहराने की कोई ठोस वजह उन के पास नहीं थी. पूछताछ में पड़ोसियों से विवाद की बात भी सामने आई थी. उस से भी ज्यादा दिलचस्प लेकिन गंभीर बात यह भी उजागर हुई थी कि बन्ने मियां का पहली पत्नी से कुछ दिनों पहले ही जायदाद को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस का एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. लिहाजा वह भी शक के दायरे में आ गया था.

आमतौर पर हत्या के ऐसे मामलों में पुलिस 1-2 दिन में ही असली कातिल तक पहुंच जाती है, लेकिन जमीला बेगम की हत्या पुलिस वालों के लिए गुत्थी बनती जा रही थी. पड़ोसियों से पूछताछ की गई तो झगड़े की बात तो उन्होंने स्वीकारी, लेकिन जमीला की मौत के तार उन से जुड़ नहीं पाए. बन्ने मियां की पहली बीवी और बच्चों से भी पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी वजह सामने नहीं आई, जिस से उन पर शक किया जाता.

कोई नतीजा न निकलते देख एसपी (नौर्थ) अरविंद सक्सेना ने यह मामला क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया. अब मामला क्राइम ब्रांच के एएसपी शैलेंद्र सिंह के हाथ में आ गया, जो अपनी खास स्टाइल के चलते ऐसे ब्लाइंड मर्डर सुलझाने के लिए जाने जाते हैं.

मुखबिरों के जरिए और जो नई बातें पता चलीं, उन में एक अहम बात यह थी कि हादसे के वक्त बन्ने मियां पेंशन लेने बैंक नहीं गए थे, जैसा कि उन्होंने बताया था, बल्कि वह एक फड़ पर बैठे ताश खेल रहे थे. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली थी कि कुछ दिनों पहले ही बन्ने मियां और जमीला का किसी बात पर इतना झगड़ा हुआ था कि जमीला नाराज हो कर घर छोड़ कर अपनी बहन के यहां चली गई थी, जहां से बाद में बन्ने मियां उसे मना कर ले आए थे. आते हुए उन्होंने साली से अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी थी.

अब शक की सुई बन्ने मियां पर घूमी तो वह झल्ला उठे और एसपी (नौर्थ) से मिल कर शिकायत की कि बीवी के कत्ल के मामले में पुलिस वाले उन के घर वालों को पूछताछ के नाम पर परेशान कर रहे हैं. पुलिस वाले बन्ने मियां को हलके में लेने की भूल नहीं कर रहे थे, जो पेशे से नेता थे और बातबात में नेतागिरी के दम पर सिर पर आसमान उठाने के हुनर में माहिर थे.

पर अब उन में पहले सा आत्मविश्वास नहीं रह गया था, इसलिए पुलिस वाले ताड़ गए कि दाल में कुछ काला जरूर है. पर दाल कहां और कितनी काली है, वहां तक पहुंचने के लिए सब्र की जरूरत थी. लिहाजा ढील दे कर पतंग उड़ाने की शैली अपनाई गई. बन्ने मियां पर शक की वजह यह मनोवैज्ञानिक पहलू भी था कि कई बार कलह के बाद शौहर सुलह करता है तो एक खतरनाक खयाल उस के दिमाग में बीवी को देख लेने या उसे सबक सिखाने का भी पनप रहा होता है.

पुलिस की बारबार की पूछताछ और छानबीन कम हो जाने से बन्ने मियां और अमन को थोड़ा सुकून मिला. अब तक जमीला बेगम की हत्या हुए 3 हफ्ते गुजर चुके थे और लोग इस मामले को भूल चुके थे. जिन्हें याद था, उन्होंने अपनी तरफ से उसे ब्लाइंड मर्डर की लिस्ट में डाल दिया था.

आखिरकार 20 दिसंबर, 2016 को सनसनीखेज तरीके से इस हत्याकांड से पुलिस ने परदा उठाया तो लोग एक बार फिर यह जान कर चौंके कि बेटा अमन ही अपनी मां जमीला का हत्यारा था और हत्या की वजह एक लड़की थी, जो उस की माशूका थी. पूछताछ में अमन टूट गया था और अपना जुर्म कबूल करते हुए उस ने हत्या में प्रयुक्त कट्टा भी बरामद करा दिया था.

अमन निकम्मा और आलसी किस्म का बेजा लाड़प्यार में पला लड़का था, जिस का एक शौक बाइक चलाना भी था. कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. लेकिन मोहल्ले की ही एक लड़की से उसे सच्चा प्यार हो गया था. लड़की चूंकि बिरादरी की थी, इसलिए उस के लिहाज से शादी में कोई अड़चन पेश नहीं आनी थी. लेकिन इस प्रेमप्रसंग की गहराई के बारे में जब जमीला बेगम को पता चला तो वह दुखी भी हुईं और बेटे पर भड़क भी उठीं, क्योंकि उन्होंने अपनी रिश्तेदारी की एक लड़की को बहू के रूप में चुन रखा था और उन रिश्तेदारों को वह जुबान भी दे चुकी थीं.

जमीला ने तरहतरह से अमन को समझाया, पर वह टस से मस नहीं हुआ. वारदात की दोपहर वह सो कर उठा तो मम्मी से चाय की फरमाइश की. इस पर जमीला बाहर नुक्कड़ की किराने की दुकान पर गईं और दूध का पैकेट तथा लड्डू ले आईं. बेटे के लिए चाय बनातेबनाते उन का ध्यान इस तरफ गया कि बिस्तर पर पड़ा बेटा अपनी माशूका से गुफ्तगू कर रहा है तो उन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उन्होंने उसे खुली चेतावनी दे दी, ‘तेरी शादी वहीं होगी, जहां मैं तय कर चुकी हूं. अपनी पसंद की लड़की से शादी करना है तो मेरे मरने के बाद कर लेना.’

इस कलयुगी आशिक बेटे ने मां की हिदायत कुछ इस तरह मानी कि तकिए के नीचे रखा कट्टा निकाला और उन पर गोली दाग दी. अब वह मां के मरने के बाद अपनी मरजी से शादी करने के लिए आजाद था. मां के कंधे से निकले खून को उस ने गीले कपड़े से पोंछ दिया. हत्या के बाद जो हुआ, वह शुरू में बताया जा चुका है.

जल्दी ही बन्ने मियां की समझ में आ गया था कि उन की बीवी का कत्ल किस ने किया है. बीवी तो वह खो ही चुके थे, अब बेटे को नहीं खोना चाहते थे. लिहाजा जांच के दौरान पड़ोसियों से ट्रैक्टर को ले कर झगड़े को उन्होंने तूल दे कर पुलिस का ध्यान बंटाने की कोशिश की और पहली बीवी से हुए विवाद को भी उन्होंने तूल दिया, जो पुलिसिया जांच में खारिज हो गए थे.

बिगड़ैल अमन मांबाप के बेजा लाड़प्यार के चलते ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था. लेकिन इश्क में मास्टर डिग्री हासिल कर चुका था. उस की महबूबा एकांत में अकसर उस के साथ होती थी और दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाते रहते थे. नई आजादी के सिपाही बन्ने मियां की दुनिया लुट चुकी है. कातिल बेटा जेल में है और करोड़ों की पुश्तैनी जायदाद अब उन्हें मुंह चिढ़ा रही है, जिस का पहली बीवी और बच्चों के हिस्से में जाना तय दिख रहा है.

जमीला की जिद खुद उन्हें भारी पड़ी. अगर वह पुरानी कहानी की तरह बेटे को उस की माशूका को देने के लिए अपना कलेजा सौंप देतीं तो बात बन जाती. इधर अमन का सोचना यह था कि अगर अपनी मरजी से शादी की तो मांबाप के पैसों पर ऐश करने को नहीं मिलेगा. तय है कि जमीला को इस बात का अहसास नहीं था कि बेटा गले तक इश्क के समंदर में डूब चुका है. गोली मारने के पहले उस ने कहा भी था कि अब्बा ने भी तुम से इसी तरह शादी की थी.

पुराने भोपाल के गरीब जरूरतमंद बाशिंदों को झोपड़ी दिलाने का कारोबार करने वाली जमीला का घर अब उजड़ चुका है, जिस में अब बन्ने मियां गमगीन से बैठे रहते हैं. बेटे की परवरिश में कहां गलती हो गई, यह अब उन्हें सब कुछ लुटने के बाद समझ आ रहा है.

जागरूकता: रेपिस्ट लड़कियों के जाल में मासूम लड़के

मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर में सब से साफसुथरे शहर इंदौर के बाणगंगा इलाके में रहने वाली 19 साला कुसुम (बदला हुआ नाम) को हाईकोर्ट ने 15 मार्च, 2023 को जब 10 साल कैद की सजा सुनाई, तो हर कोई हैरान रह गया कि क्या लड़कियां भी रेप करती हैं? पर बात सच थी, इसलिए यकीन न करने की कोई वजह भी नहीं थी.

किसी ने इसे कलियुग की एक और मिसाल बताया, तो किसी ने कमउम्र लड़कियों में सैक्स की बढ़ती इच्छा को जबरदस्ती पूरा करने का जिम्मेदार स्मार्टफोन को ठहराया, क्योंकि उस में कमउम्र लड़केलड़कियां दिनरात ब्लू फिल्में देखा करते हैं.

कुसुम और रोहित (बदला हुआ नाम) की दास्तान फिल्मों सरीखी है, जो आज से तकरीबन 5 साल पहले शुरू हुई थी. 3 नवंबर, 2017 को कुसुम ने रोहित को फोन कर के कहा था कि उस का अपने मम्मीपापा से झगड़ा हो गया है और वह घर छोड़ कर जा रही है.

कुसुम ने रोहित से साथ चलने की बात कही, तो मासूम रोहित का दिल पसीज गया और वह इनसानियत के नाते उस के साथ हो लिया. हो तो लिया, पर जल्द ही उसे छठी का दूध भी याद आ गया.

दरअसल, खीर खाने का शौकीन रोहित उस दिन घर से दूध लाने ही निकला था कि कुसुम का फोन आ गया. जब काफी देर तक बेटा घर नहीं लौटा, तो मांबाप ने उस की टोह लेनी शुरू कर दी, लेकिन वह कहीं नहीं मिला. 5 नवंबर, 2017 को थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

पुलिस ने रोहित का मोबाइल फोन ट्रेस किया, तो लोकेशन गुजरात की मिली. कुछ दिनों बाद छापा मारा गया, तो वे दोनों मिल गए, लेकिन वहां वे बाकायदा पतिपत्नी की तरह रह रहे थे.

पुलिस ने रोहित से बात की, तो उस ने बताया कि कुसुम उसे बहलाफुसला कर भगा ले गई थी और यहां आ कर उसे एक टाइल्स फैक्टरी में काम भी दिलवा दिया था. वे दोनों किराए के मकान में रहने लगे थे.

बकौल रोहित, कुसुम ने उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था और कभी भी उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करती थी.

मामले की गंभीरता देख कर पुलिस वाले भी हैरान रह गए, क्योंकि उन की जानकारी में यह पहला ऐसा मामला था, जिस में एक लड़की किसी नाबालिग लड़के को अपने साथ भगा कर ले गई थी और जबतब उस का रेप कर रही थी. पुलिस ने पास्को ऐक्ट के तहत कुसुम के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.

5 साल बाद रेप का यह अनूठा मुकदमा 5 साल चला. इस दौरान कुसुम के वकील ने उसे बेगुनाह साबित करने के लिए तरहतरह की दलीलें दीं, लेकिन उस की दाल नहीं गली. कभी उस ने रोहित को बालिग साबित करने की कोशिश की, तो कभी इसे रजामंदी का मामला बताया.

इसी दौरान कुसुम की शादी कहीं और हो गई और शादी के 2 साल बाद उस ने एक बेटी को जन्म भी दिया. सजा सुनते समय नन्हीं बेटी उस की गोद में थी, जिस की चिंता करते हुए कुसुम ने कहा कि अब वह बेटी को अपने मांबाप के पास छोड़ देगी.

अदालत ने कुसुम को नाबालिग बच्चों की हिफाजत के लिए बनाए गए कानून पास्को ऐक्ट के तहत कुसूरवार पाते हुए उसे 10 साल की सजा सुनाने के साथसाथ उस पर 3,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया. साथ ही, रोहित को 50,000 रुपए मदद देने की सिफारिश भी की.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि हर बार मर्द गलत हो, यह जरूरी नहीं. इसी तरह पास्को ऐक्ट में हमेशा मर्द ही  कुसूरवार होगा, ऐसा नहीं है. इस ऐक्ट के तहत औरत या लड़की भी उतनी सजा की हकदार है, जितना कि कोई कुसूरवार मर्द या लड़का होता है.

दरअसल, कुसुम को कुसूरवार साबित करने में वह मैडिकल रिपोर्ट भी अहम रही, जिस में डाक्टरों ने कहा था कि लड़की को सैक्स संबंधों की आदत है, जबकि लड़के के माध्यमिक सैक्सुअल कैरेक्टर विकसित नहीं हुए हैं यानी रोहित सैक्स करने के लिहाज से मैच्योर नहीं था.

इस परिभाषा के मुताबिक लड़के का अंग तो होता है, लेकिन उस की दाढ़ी नहीं आती है, न ही कंधे चौड़े हुए होते हैं और आवाज में भारीपन भी नहीं आता है. ये सब उस के पूरे मर्द होने की निशानी मानी जाती है. आम बोलचाल की भाषा में कहा जाए, तो रोहित सैक्स करने के काबिल नहीं था.

अधूरा सा इंसाफ

अदालत के इस फैसले से कुसुम को उस के किए की सजा मिल गई, जो एक हद तक रोहित के साथ इंसाफ है, लेकिन कुसुम के पति और बेटी को किस बात की सजा मिली, यह कह पाना मुश्किल है. उस का पति तो फिर भी मुमकिन है देरसवेर दूसरी शादी कर ले, लेकिन मासूम बेटी का क्या होगा? ऐसे सवालों के जवाब जाहिर है किसी अदालत में नहीं मिलेंगे, बल्कि इसी समाज में मिलेंगे, जिस में हम सब रहते हैं.

बात यह भी सच है कि यही समाज रोहित पर लानतें नहीं भेजेगा और न ही उसे उतनी हिकारत से देखेगा, जितना कि एक रेप पीडि़त लड़की को देखता है. समाज मर्दों का है, इसलिए कोई रोहित को कुलटा भी नहीं कहेगा. वजह, लड़कों के लिए तो ऐसे शब्द ईजाद ही नहीं किए गए हैं, क्योंकि कभी लड़कों का भी रेप होगा, किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था और जब होने लगा है तो आज नहीं तो कल इस तरफ भी सोचना पड़ेगा ही.

ये रेपिस्ट दिखते क्यों नहीं

इस फैसले से मैसेज यह गया है कि नाबालिग लड़के भी यौन शोषण का शिकार होते हैं और अपराध साबित हो जाए तो दोषी औरत या लड़की को सजा भी हो सकती है. पर लड़कों के साथ होने वाले रेप या यौन शोषण आमतौर पर दिखते नहीं हैं. पर कई मर्द ऐसे मिल जाएंगे, जिन का यौन शोषण या रेप उन की भाभी, चाची, पड़ोसन या किसी दूसरी रिश्तेदार औरत ने किया था, लेकिन बात ढकीमुंदी रह गई. ऐसा लड़कियों के साथ होना तो आम बात है.

पिछले दिनों तकरीबन 200 फिल्मों में काम कर चुकी हीरोइन खुशबू सुंदर और दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने यह खुलासा किया था कि किसी और मर्द ने नहीं, बल्कि उन के सगे पिता ने उन का तब यौन शोषण किया था, जब वे बिलकुल नासमझ थीं और कुछ बोलने या विरोध करने की हिम्मत उन में नहीं थी.

ये मामले तूल नहीं पकड़ पाए, जबकि इन पर जम कर बहस होना जरूरी था, जिस से लड़कियों की हिफाजत की दिशा में कुछ नई हिदायतें सामने आएं. समाज ही नहीं, बल्कि मीडिया भी मर्दों का है, इसलिए बात न केवल दबा दी गई, बल्कि सोशल मीडिया पर धर्म के पैरोकारों ने इन्हीं हस्तियों को चरित्रहीन करार दे दिया.

यह भेदभाव किसी सुबूत का मुहताज कभी नहीं रहा, लेकिन अब बात उलट है कि जरूरत लड़कों को भी यह बताने की है कि वे ऐसी औरतों या लड़कियों से कैसे बचें? यह ठीक है कि नौबत अभी ऐसी नही आई है कि उन्हें मिर्च का स्प्रे रखने का मशवरा दिया जाए, लेकिन इतनी तो आ ही गई है कि वे कुसुम जैसी या भोपाल के 30 साला सुनील (बदला हुआ नाम) की भाभी जैसी औरतों से खुद को कैसे बचाएं.

भोपाल के एक मामूली नौकरीपेशा सुनील की आपबीती उन की जबानी ही सुनें :

‘‘मैं 12 साल का था, जब मेरी भाभी ने मेरा यौन शोषण किया. भैया एक कंपनी में थे और माल बेचने के सिलसिले में अकसर टूर पर हफ्तों

शहर से बाहर रहते थे. ऐसे में मुझे भाभी के पास सुला दिया जाता था.

‘‘पता नहीं, शुरुआत कब हुई, लेकिन मुझे याद है कि भाभी अकसर मेरे अंडरवियर में हाथ डाल कर अंग सहलाने लगती थीं. इस से मुझे मजा तो आता था, लेकिन डर भी बहुत लगता था.

‘‘फिर धीरेधीरे हमारे संबंध बनने लगे, जिस की घर में किसी को भनक भी नहीं लगी. वे मुझे तरहतरह से सैक्स करना सिखाती थीं. फिर कई बार मेरी इच्छा न होने पर भी जबरदस्ती करती थीं और मैं मारे डर के कुछ बोल नहीं पाता था. मुझे लगता था कि बात खुल गई, तो भी मुझे ही मार पड़ेगी.’’

सुनील अब घर से अलग हो गए हैं, लेकिन वह ‘जबरदस्ती’ उन्हें जब कभी याद आ जाती है, तो मारे बेबसी के हाथ मलते रहते हैं. उन का मन कसैला हो जाता है.

सुनील बताते हैं, ‘‘5-6 साल तक यह सिलसिला चला, जिस के चलते मैं 10वीं में लगातार फेल होता गया. फिर पापा ने पढ़ाई छुड़ा कर दुकान पर नौकरी लगवा दी.’’

सुनील अपने कम पढ़ेलिखे होने का जिम्मेदार अपनी भाभी को ठहराते हैं, जिस ने उन से बचपन छीन लिया. शादी के बाद भी अपनी पत्नी से कनैक्ट होने में सुनील को तकरीबन 4 साल लग गए.

मुमकिन है, रोहित के साथ भी ऐसा ही कुछ हो, जिस के नौर्मल जिंदगी गुजारने की गुंजाइश आम लड़कों के मुकाबले बहुत ही कम बची हैं. उस ने

तो 5 साल मुकदमे को भी झेला है. सालोंसाल वह नहीं भूल पाएगा कि कुसुम कैसे उस से जबरदस्ती करती थी और घर वालों से बात भी नहीं करने देती थी.

यह पहला मामला नहीं

इंदौर के मामले के पहले भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं, जिन में बालिग लड़कियों या औरतों ने नाबालिग लड़कों की इज्जत लूटी. एक मामला मार्च, 2021 में देहरादून से उजागर हुआ था, जिस में एक लड़की ने नाबालिग लड़के पर रेप करने का झूठा इलजाम लगाया था.

लड़की का आरोप था कि लड़के ने उसे शादी का झांसा दिया था और शारीरिक संबंध बनाए थे, जिस के चलते वह पेट से हो गई.

पुलिस की जांच में पता चला कि लड़के की उम्र महज 15 साल है, तो उस लड़के के पिता की शिकायत पर लड़की के खिलाफ ही यौन शोषण का मामला दर्ज कर लिया गया, क्योंकि वह लड़की बालिग थी.

इस के कुछ दिन बाद ही छत्तीसगढ़ के जशपुर में भी एक लड़की को नाबालिग लड़के को भगा ले जाने और जबरन दुष्कर्म करने के चलते एक बालिग लड़की के खिलाफ पास्को ऐक्ट के तहत ही मामला दर्ज किया गया था.

इस मामले की रिपोर्ट पत्थलगांव थाने में पीडि़त लड़के के पिता ने दर्ज कराई थी. लड़की को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया और पीडि़त लड़के को उस के घर वालों के हवाले कर दिया गया.

गुजरात के गांधीनगर में तो 26 साला एक महिला टीचर तो 8वीं क्लास के अपने 14 साला छात्र को ही ले कर भाग गई… इसी साल जनवरी में एक शाम जब लड़का घर नहीं पहुंचा, तो मांबाप को चिंता हुई. खोजबीन करने पर पता चला कि उस की टीचर ही उसे ले भागी है.

उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई, तो पुलिस वाले स्कूल पहुंचे. हैरत तो उस समय और बढ़ गई, जब कमउम्र बच्चों ने यह राज खोला कि टीचर और लड़के के शारीरिक संबंध थे और वह टीचर कभी भी लड़के को ले कर कहीं चली जाती थी. यह बात स्कूल मैनेजमैंट को भी मालूम थी.

मांबाप की रिपोर्ट पर कलोल थाने में आईपीसी की धारा 363 के तहत मामला दर्ज हुआ. इस टीचर को भी सजा होना तय है.

ऐसा ही एक और मामला महाराष्ट्र के अकोला से भी सामने आया था, जिस में एक मिल में काम करने वाली 29 साला एक औरत 17 साल के एक लड़के को ले कर भाग गई थी. उन दोनों में भी शारीरिक संबंध थे. इसी साल 9 फरवरी को मामला उजागर हुआ, तो लड़के के मांबाप की रिपोर्ट पर उस औरत के खिलाफ पास्को ऐक्ट के तहत मामला दर्ज हो गया. अब मुमकिन है कि उस औरत को भी कुसुम की तरह सजा हो.

संभल कर रहें

दरअसल, इस औरत का पति इस के साथ नहीं रहता था, इसलिए सैक्स की अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए उस ने नाबालिग लड़के को चुन लिया था. इसे भले ही वह गांधीनगर की टीचर की तरह प्यार कहती रहे, लेकिन कानून की नजर में यह एक नाबालिग लड़के के यौन शोषण का मामला है.

लड़कियां सोचती हैं कि लड़का मासूम है, इसलिए खेलेखाए बालिगों की तरह हल्ला नहीं मचाएगा, पर जब हल्ला मचा तो सभी के मुगालते दूर हो गए.

इन और ऐसे कई मामलों से साफ हो जाता है कि नाबालिग लड़कों से सैक्स संबंध बनाना औरतों के लिए दिखने में तो आसान है, लेकिन पकड़े जाने पर खतरे की घंटी है, इसलिए उन्हें बालिग लड़कों से ही सैक्स संबंध बनाने चाहिए, जिस से वे पास्को ऐक्ट और कानून के फंदे से बची रहें, नहीं तो मजा सजा में बदलना तय है.

अच्छी बात यह है कि नाबालिग लड़कियों की तरह अदालतें और कानून नाबालिग लड़कों के शोषण के मामलों में अलर्ट हो चले हैं और दोनों को बराबरी का दर्जा देते हुए फैसले सुनाने लगे हैं.

अवैद्य संबंध ने ली जान

3 दिसंबर, 2016 को सुबह करीब साढ़े 10 बजे दक्षिणपूर्वी दिल्ली के अमर कालोनी थाने के ड्यूटी अफसर को पुलिस कंट्रोलरूम से सूचना मिली कि कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के किनारे बैग में किसी की लाश पड़ी है. उस दिन थानाप्रभारी उदयवीर सिंह किसी काम से बाहर गए हुए थे. उन की गैरमौजूदगी में थाने का चार्ज इंसपेक्टर राजेश मौर्य संभाले हुए थे. बैग में लाश मिलने की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर राजेश मौर्य एसआई मनोज कुमार, हैडकांस्टेबल सुरेंद्र सिंह और महावीर सिंह को ले कर सूचना में बताए पते की तरफ निकल गए.

कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित वह नाला थाने से करीब 2 किलोमीटर दूर था, इसलिए पुलिस टीम करीब 10 मिनट में ही वहां पहुंच गई. वहां पहले से काफी लोग खड़े थे. भीड़ को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहन चालक भी वहां रुकरुक कर जा रहे थे. सभी लोग नाले के किनारे झाड़ी के पास पड़े उस काले रंग के ट्रैवल बैग को देख रहे थे. उस बैग का फ्लैप खुला हुआ था, जिस से उस में रखी लाश साफ दिखाई दे रही थी.

नोटबंदी के बाद जिस तरह आए दिन कूड़े के ढेर या अन्य जगहों पर करोड़ों रुपए मिलने के समाचार आ रहे हैं, उसी तरह इस बड़े बैग को भी नाले के किनारे किसी व्यक्ति ने देखा होगा तो पैसे मिलने की संभावना को देखते हुए उस ने इस बैग का फ्लैप खोल कर देखा होगा. लाश देख कर उस के होश फाख्ता हो गए होंगे. फिर वह बैग को ऐसे ही खुला छोड़ कर भाग गया होगा. लेकिन यह पता नहीं लग पा रहा था कि उस में रखी लाश किसी आदमी की है या किसी महिला की.

इंसपेक्टर राजेश मौर्य ने उस बैग का ऊपरी मुआयना कर के सूचना डीसीपी रोमिल बानिया, एसीपी सतीश केन, थानाप्रभारी उदयवीर सिंह के अलावा क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को दे दी. वहां मौजूद सभी लोग आपस में यही बातें कर रहे थे कि पता नहीं इस बैग में किस की लाश है. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के आने के बाद बैग से जब लाश निकाली गई तो सभी हैरान रह गए.

किसी महिला की लाश का वह कूल्हे से ऊपर का हिस्सा था. बाकी नीचे का हिस्सा वहां नहीं था. वह औरेंज कलर की नाइटी पहने हुए थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार करने की चोट थी. उस की कलाई पर कलावा बंधा था. इस के अलावा हाथ की एक अंगुली में अंगूठी थी और गले में पीले रंग का धागा पड़ा हुआ था. महिला की उम्र यही कोई 40-45 साल थी.

बैग से या उस महिला की लाश से कोई ऐसी चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. वहां जितने भी लोग खड़े थे, उन में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस से यही अनुमान लगाया गया कि शायद यह किसी दूसरे इलाके की होगी. पुलिस ने मृतका का पेट के नीचे का हिस्सा आसपास की झाडि़यों में तलाशा पर वह वहां नहीं मिला.

उसी दौरान डीसीपी रोमिल बानिया, एडिशनल डीसीपी राजीव रंजन, एम. हर्षवर्धन, एसीपी सतीश केन आदि भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का मुआयना किया और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. पुलिस ने जरूरी काररवाई करने के बाद लाश के आधे हिस्से को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मोर्चरी में रखवा दिया.

पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर मृत महिला की शिनाख्त की काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने महिला की लाश के फोटो लगे 4 हजार पैंफ्लेट छपवा कर इलाके में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए.

इतना ही नहीं, समस्त थानों में सूचना भेज कर यह भी पता लगाने की कोशिश की कि इस हुलिया से मिलतीजुलती कोई महिला लापता तो नहीं है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह जो बाहर गए हुए थे, लाश मिलने की खबर पा कर शाम तक थाने लौट आए. अगले दिन भी पुलिस टीम हर संभावित तरीकों से पता लगाने लगी कि आखिर यह महिला है कौन. पर कहीं से भी उस के बारे में कुछ भी पता नहीं लगा.

4 दिसंबर, 2016 को दोपहर 12 बजे पुलिस कंट्रोलरूम से थाना अमर कालोनी में सूचना मिली कि श्रीनिवासपुरी के क्यू ब्लौक में पास भगेल मंदिर के पास छोटे नाले में किसी महिला का पेट से नीचे का भाग पड़ा हुआ है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य 15-20 मिनट में ही भगेल मंदिर के पास पहुंच गए.

क्योंकि एक दिन पहले उन्होंने जिस महिला की लाश बरामद की थी, उस का भी पेट से नीचे का हिस्सा गायब था. पुलिस जब भगेल मदिर के पास पहुंची तो वास्तव में वहां किसी महिला के पेट के नीचे का हिस्सा नाले में पड़ा हुआ था. उस के एक पैर पर मांस नहीं था. शायद उसे कुत्तों ने खा लिया होगा.

नाले के पास एक काले रंग का बैग पड़ा हुआ था. उस पर खून के निशान से लगा कि लाश का वह हिस्सा उसी बैग में रख कर लाया गया होगा. जिस जगह से पुलिस ने एक दिन पहले महिला का धड़ बरामद किया था, यह जगह वहां से कोई आधा किलोमीटर दूर थी. जरूरी काररवाई कर के उसे भी पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में रखवा दिया.

पुलिस ने नाले के पास से महिला का जो धड़ बरामद किया था, यह हिस्सा उसी महिला का है या नहीं, यह बात डाक्टरी जांच के बाद ही पता लग सकती थी.

बहरहाल, अब पुलिस का पहला मकसद मृतका की शिनाख्त करवाना था. पुलिस के पास लाश के जो फोटो थे, उन्हीं के माध्यम से वह उस की शिनाख्त में जुट गई. बीट का हरेक पुलिसकर्मी अपनेअपने इलाके के लोगों को वह फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछने लगा. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र भी इसी काम में लगे हुए थे. फोटो देख कर उन्हें अमर कालोनी क्षेत्र के ही एक व्यक्ति ने बताया कि यह महिला तो अन्नू की तरह लग रही है.

‘‘अन्नू…यह अन्नू कौन थी और कहां रहती थी?’’ हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने उस से पूछा.

‘‘सर, यह दशघरा गढ़ी गांव में ही कहीं रहती थी. पर मैं इस के एक रिश्तेदार प्रवीण को जानता हूं जो सपना सिनेमा के पास साउथ इंडियन व्यंजन की रेहड़ी लगाता है.’’ वह व्यक्ति बोला.

सुरेंद्र को यह सुन कर खुशी हुई कि शायद यहां से कुछ बात बन सकती है. वह उस व्यक्ति को ले कर थाना अमर कालोनी क्षेत्र में स्थित सपना सिनेमा के पास ले गए. प्रवीण वहीं मिल गया. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने प्रवीण को महिला की लाश का फोटो दिखाया तो उस ने उसे पहचानते हुए कहा कि यह अनारकली उर्फ अन्नू हैं. रिश्ते में यह उस की मौसेरी सास (सास की छोटी बहन) हैं.

सुरेंद्र ने यह जानकारी थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को दी. दोनों पुलिस अधिकारी प्रवीण के पास ही पहुंच गए. पुलिस प्रवीण को ले कर दशघरा गढ़ी स्थित अनारकली के कमरे पर पहुंची. पर उस का कमरा बाहर से बंद मिला. करीब 45 कमरों वाला वह मकान श्रीराम नाम के एक शख्स का था. पुलिस ने श्रीराम को बुला कर बात की तो उस ने बताया कि अनारकली एक मद्रासन थी जो करीब 3 महीने पहले उस के यहां आई थी.

इस के साथ बलराम नाम का एक बंदा और रहता था. यह सन 2010 में भी इसी मकान में 6-7 महीने रह कर गई थी. उस समय भी बलराम इस के साथ रहता था. जिस कमरे में अनारकली रहती थी, उस के आसपास के कमरों में रहने वाले लोगों ने बताया कि यह 2 दिसंबर से दिखाई नहीं दे रही.

वहां खड़ेखड़े पुलिस को अनारकली के कमरे से बदबू आती महसूस हुई. पुलिस ने भगेल मंदिर के पास से महिला के पेट से नीचे वाला जो हिस्सा बरामद किया था, उस की अभी डाक्टरी रिपोर्ट नहीं आई थी इसलिए कहा नहीं जा सकता था कि वह उसी की लाश का हिस्सा है. थानाप्रभारी को लगा कि कहीं अनारकली की लाश का आधा भाग इस कमरे में तो नहीं रखा है, इसलिए उन्होंने मकान मालिक और अन्य लोगों के सामने कमरे का ताला तोड़ कर कमरे में खोजबीन की तो वहां सूखी हुई मछलियां मिलीं. वह बदबू उन्हीं से आ रही थी.

कमरे की जांच के दौरान दीवार पर खून के कुछ छींटे भी दिखे. वे छींटे मानव खून के थे या नहीं, यह जांच के बाद ही पता चल सकता था. लिहाजा उन्होंने फोरैंसिक विभाग को फोन कर दिया. डा. नरेश कुमार के नेतृत्व में एक फोरैंसिक टीम वहां आ गई. टीम को दीवार पर 6 जगह खून के छींटे मिले. इस के अलावा एलपीजी के छोटे सिलेंडर पर भी खून के छींटे मिले. कमरे में 3 चाकू मिले. फोरैंसिक टीम ने कमरे से सबूत इकट्ठे कर लिए.

अब तक की जांच में मृतका के साथ रहने वाले बलराम पर ही शक जा रहा था, क्योंकि वह गायब था. पुलिस टीम उसे ढूंढने में जुट गई. इस काम में पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. प्रवीण ने पुलिस को बताया था कि मृतका अनारकली का एक बेटा भी है जो चेन्नै में रहता है. पुलिस ने प्रवीण से उस का, अनारकली और उस के बेटे का फोन नंबर ले लिया. तीनों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस के अलावा इन तीनों नंबरों के द्वारा जिन नंबरों से बात होती थी, उन की भी जांच की. इस जांच में अनारकली के फोन नंबर की लोकेशन उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले की आ रही थी.

अनारकली के इस नंबर से जिनजिन नंबरों से संपर्क हुआ था, उन सब को जांच के दायरे में लिया गया. इन में से एक नंबर दिल्ली के संगम विहार इलाके का मिला. संगम विहार के जिस व्यक्ति का यह नंबर था, वह एक औटो ड्राइवर था. पुलिस उस तक पहुंच गई. उस से पूछताछ की गई तो वह पुलिस को बेकसूर लगा.

उधर पुलिस की बलराम को ढूंढने की कोशिश जारी थी. फिर 7 दिसंबर, 2016 को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बलराम को दिल्ली के नेहरू प्लेस मैट्रो स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि अनारकली उस के साथ 20 साल से लिवइन रिलेशन में रहती थी. पर उस ने हालात ऐसे खड़े कर दिए थे कि उसे उस की हत्या के लिए मजबूर होना पड़ा. बलराम ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली निकली.

अनारकली उर्फ अन्नू मूलरूप से चेन्नै की रहने वाली थी. उस के मातापिता बेहद गरीब थे, इस वजह से वह नहीं पढ़ सकी. उस के मोहल्ले की कई लड़कियां दिल्ली में नौकरी या फिर दूसरे कामधंधे करती थीं. अनारकली जब करीब 16 साल की हुई तो उस के पिता ने उसे काम करने के लिए मोहल्ले की लड़कियों के साथ दिल्ली भेज दिया.

वह कोई पढ़ीलिखी तो थी नहीं, जिस से उस की कहीं नौकरी लग जाती. कुछ कोठियों में उसे झाड़ूपोंछा आदि का काम जरूर मिल गया. बाद में उसे और कोठियों में भी काम मिलते चले गए. कई जगह काम करने से उसे महीने की अच्छी कमाई होने लगी. उन पैसों में से वह कुछ पैसे अपने मांबाप के पास भेज देती थी.

दिल्ली में साल भर काम करने के बाद अनारकली काफी चालाक हो गई थी. अब वह पहले वाली सीधीसादी अन्नू नहीं रह गई थी. उसी दौरान 17 साल की अनारकली उर्फ अन्नू की मुलाकात दुरक्कन नाम के युवक से हुई जो दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. दुरक्कन 20-22 साल का युवक था. वह भी चेन्नै का रहने वाला था, इसलिए दोनों के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई. अपने कामधंधे से निपटने के बाद दोनों मिलतेमिलाते रहते थे.

अनारकली अपने मांबाप से भले ही सैकड़ों किलोमीटर दूर रह कर अपने प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर रही थी, इस के बावजूद भी इस की जानकारी उस के घर वालों को हो गई थी. इस बारे में जब उन्होंने अनारकली से बात की तो उस ने साफसाफ बता दिया कि वह दुरक्कन से शादी करना चाहती है. घर वालों ने उस की बात मानते हुए दुरक्कन से उस की शादी कर दी. इस के बाद वह पति के साथ दिल्ली में रहने लगी.

अनारकली और उस का पति दोनों कमा रहे थे, इसलिए उन की घरगृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी. इसी दौरान वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीनिवासन रखा. प्यार से सभी उसे सनी कहते थे. शादी के 7-8 साल बाद दुरक्कन पत्नी को अकेला छोड़ कर कहीं चला गया. अनारकली ने अपने स्तर से जब पति के बारे में पता लगाया तो जानकारी मिली कि उस का किसी और लड़की से चक्कर चल रहा था. वह उस लड़की को ले कर चेन्नै भाग गया है. पति के इस विश्वासघात से अनारकली को बड़ा दुख हुआ.

वह दिल्ली में बेटे सनी के साथ अकेली थी. उस ने सनी को अपने मायके भेज दिया ताकि वह अपने नानानानी की देखरेख में पढ़ाई पूरी कर सके. अनारकली की उम्र उस समय करीब 24-25 साल थी. यह उम्र अकेले काटे से नहीं कटती. पति उसे धोखा दे कर चला गया था. उसी दौरान उस की मुलाकात बलराम नाम के व्यक्ति से हो गई.

बलराम प्लंबर था. वह मूलरूप से उड़ीसा के केंद्रपाड़ा जिले का रहने वाला था. वह शादीशुदा था, उस की पत्नी उड़ीसा में ही रहती थी. धीरेधीरे दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन्होंने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया. वे दोनों दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना अमर कालोनी के गांव दशघरा गढ़ी में लिवइन रिलेशन में रहने लगे.

अनारकली ने घरों में काम करना बंद कर दिया. वह ईस्ट औफ कैलाश में स्थित नर्सरी के पास फुटपाथ पर चाय की दुकान चलाने लगी. बलराम का साथ मिलने पर अनारकली के जीवन में खुशहाली लौट आई थी. करीब 20 साल तक दोनों लिवइन रिलेशन में रहते रहे.

इस बीच बलराम समयसमय पर उड़ीसा स्थित अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने चला जाता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. बीवी और जवान बच्चों को इस बात की भनक तक नहीं लग सकी थी कि वह दिल्ली में किसी औरत के साथ रह रहा है.

करीब डेढ़ महीने पहले बलराम उड़ीसा से दिल्ली लौटा तो अनारकली का व्यवहार कुछ बदला हुआ था. हालांकि अनारकली का सारा खर्च वह खुद उठाता था, इस के बावजूद भी वह उस के साथ रूखा व्यवहार कर रही थी. इतना ही नहीं, वह बिस्तर पर भी उसे अपने पास नहीं फटकने देती थी. बलराम को शक हो गया कि जरूर इस के किसी और से संबंध हो गए हैं. वह पता लगाने में जुट गया कि ऐसा कौन आदमी है.

बलराम ने जल्द ही इस बारे में जानकारी जुटा ली. उसे पता चला कि अनारकली के एक नहीं बल्कि 2 औटो ड्राइवरों से नाजायज संबंध हैं. यह जानकारी मिलते ही बलराम के तनबदन में आग सी लग गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह अनारकली को अभी ऐसी सजा दे, जिसे वह जिंदगी भर न भूल सके. पर वह कोई बात सोच कर अपना गुस्सा पी गया.

उस ने शाम को अनारकली से उस के बदले व्यवहार के बारे में बात की तो वह उस के साथ लड़ने को आमादा हो गई. दोनों में कुछ देर बहस हुई और मामला शांत हो गया.

एक दिन बलराम दोपहर के समय कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला. किवाड़ के बीच में जो दरार थी, उस पर आंख गड़ा कर देखा तो कमरे के अंदर जल रही ट्यूबलाइट की रोशनी में सारा नजारा दिख गया. अनारकली एक व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. इस के बाद तो बलराम का शक विश्वास में बदल गया.

बलराम ने दरवाजा खटखटाने के बजाय अनारकली को फोन लगाया तो उस ने स्क्रीन पर नंबर देखने के बाद अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया. इस के अलावा उस ने कमरे में जल रही ट्यूबलाइट भी बंद कर दी.

तब बलराम ने दरवाजा खटखटाया. करीब 4-5 मिनट बाद अनारकली ने दरवाजा खोला तो सामने बलराम को देख कर उस के होश उड़ गए. उसी दौरान कमरे में अनारकली के साथ जो युवक था, वह वहां से भाग गया. तब बलराम ने उस से उस युवक के बारे में पूछा तो अनारकली बोली, ‘‘कोई भी हो, तुम्हें उस से क्या मतलब?’’

‘‘मेरे होते हुए तुम किसी और को यहां नहीं बुला सकती.’’ वह बोला.

‘‘क्यों, मैं ने तुम्हारे साथ क्या शादी की है जो मुझ पर इस तरह से हुकुम चला रहे हो. अपनी जिंदगी मैं अपनी तरह से जिऊंगी. इस में कोई भी दखलअंदाजी नहीं कर सकता. इसलिए बेहतर यही है कि तुम इस मुद्दे पर ज्यादा बात मत करो.’’ अनारकली ने जवाब दिया.

बलराम उस का मुंह देखता रह गया. बात भी सही थी, उस ने अनारकली से शादी थोड़े ही की थी. दोनों का स्वार्थ था, इसलिए वे साथसाथ रह रहे थे. बलराम से जब उस का मन भर गया तो उस ने किसी और के साथ नजदीकी बना ली.

अनारकली की बात पर बलराम ने भी बहस करनी जरूरी नहीं समझी. वह उसे समझाने की कोशिश करने लगा. पर उसी समय उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि इस धोखेबाज औरत को वह सबक जरूर सिखाएगा. और यह काम उस के साथ रह कर संभव हो सकता था.

बलराम के दिल में कसक तो थी ही. वह बस मौके का इंतजार कर रहा था. बात 2 दिसंबर, 2016 की है. दोपहर के समय बलराम दशघरा गढ़ी स्थित अपने कमरे पर आया. उस के दिल में अनारकली के प्रति गुस्सा तो भरा ही हुआ था. बलराम ने उस के चरित्र को ले कर बात शुरू की तो अनारकली भड़क गई. दोनों तरफ से गरमागरमी होने लगी. तभी बलराम कमरे में स्लैब पर रखा अपना हथौड़ा उठा लिया और उस का एक वार उस के सिर पर किया.

हथौड़े के वार से अनारकली बेहोश हो कर गिर पड़ी और उस के सिर से खून निकलने लगा. इस के बाद उस ने उस की पीठ पर भी हथौड़े से कई वार किए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

अनारकली की हत्या करने के बाद बलराम को तसल्ली हुई पर उस के सामने समस्या यह आ गई कि लाश को ठिकाने कैसे लगाए.

कुछ देर सोचने के बाद वह कमरे में रखा किचन में प्रयोग होने वाला चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने अनारकली को कूल्हे के ऊपर से काट कर 2 हिस्सों में कर दिया. कमरे में बड़ेबड़े 2 ट्रैवल बैग रखे थे. उन में रखे कपड़े निकाल दिए. इस के बाद उस ने उन में लाश के टुकड़े रख दिए. फिर उस ने कमरे का खून साफ किया. अब वह अंधेरा होने का इंतजार करने लगा.

अंधेरा होने पर उस ने वह बैग उठाया, जिस में अनारकली का सिर और धड़ वाला भाग रखा था. उस बैग को रिक्शे में ले कर वह कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के पास स्थित बसस्टैंड पर उतर गया. कुछ देर वहां बैठने के बाद जब उसे आसपास कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस बैग को नाले के किनारे झाडि़यों में डाल दिया.

एक बैग को ठिकाने लगाने के बाद वह कमरे पर आया और दूसरे बैग को रिक्शे में ले कर कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित मसजिद के पास उतर गया.

फिर वहां से कुछ मीटर आगे चल कर उस ने वह बैग भगेल मंदिर के पास पुलिया के नीचे गिरा दिया. वह इलाका श्रीनिवासपुरी क्षेत्र में आता है. वहां से बह रहे बड़े नाले में 2 छोटे नाले भी जुड़े हुए हैं. वह बैग जिस में अनारकली के कूल्हे और पैर वाला भाग था, लुढ़क कर एक छोटे नाले के किनारे पहुंच गया.

दोनों बैग ठिकाने लगाने के बाद बलराम ने राहत की सांस ली. फिर कमरे की सफाई कर के खून से सनी चादर कूड़े के ढेर पर फेंक आया. इस के बाद वह ताला लगा कर अपने एक जानकार के यहां चला गया.

नोटबंदी के बाद जिस तरह जगहजगह नोट पड़े होने की खबरें सामने आई हैं, उसी तरह नाले के पास झाडि़यों में पड़े उस बैग को किसी व्यक्ति ने लालच में आ कर खोला होगा. पर नोटों की जगह उस में लाश देख कर उसे जरूर पसीना आ गया होगा. डर की वजह से वह बैग को खुला छोड़ कर भाग गया.

उधर भगेल मंदिर के पास छोटे नाले के पास जो बैग गिरा था, उसे कुत्तों ने फाड़ कर उस में से लाश निकाल कर खा ली. केवल एक टांग पर कुछ मांस बचा था. जानवरों की खींचातानी में वह हिस्सा नाले में गिर गया.

पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में लाश के जो 2 हिस्से रखवाए थे, उन की डीएनए जांच की गई तो वह दोनों एक ही महिला के पाए गए. बलराम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा और चाकू भी कमरे से बरामद कर लिया. खून से सनी चादर जहां फेंकी थी, पुलिस उसे वहां ले कर गई पर नगर निगम की गाड़ी वहां के कूड़े को ले जा चुकी थी, जिस से वह चादर वहां नहीं मिल सकी. पुलिस ने बलराम को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर के साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी अर्चना बेनीवाल की कोर्ट में पेश कर उसे 2 दिनों के रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में संबंधित स्थानों की तसदीक कराने के बाद उसे फिर से कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक बलराम जेल में बंद था. मामले की विवेचना इंसपेक्टर राजेश मौर्य कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

बिहार के फरेबी टौपरों की कहानी

संगीत में टौपर बने गणेश को यह भी पता नहीं है कि गायन में अंतरा और मुखड़ा किस चिड़िया का नाम है. सारेगामा को हारमोनियम पर बजाना तो दूर वह बोल भी नहीं सकता है. उसे न तो किसी संगीतकार का नाम पता है और न ही किसी क्लासिकल गायक के बारे में रत्तीभर जानकारी है. इस के बाद भी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने उसे साल 2017 के इंटर का टौपर बना दिया. गणेश को संगीत की लिखित परीक्षा में 100 में से 83 और प्रैक्टिकल में 70 में से 65 नंबर मिले थे. उसे हिंदी में 92, इतिहास में 80, समाजशास्त्र में 80 और मनोविज्ञान में 59 नंबर मिले थे.

कुछ इसी तरह की कहानी पिछले साल की स्टेट टौपर रूबी राय की भी थी, जिसे इतना भी पता नहीं था कि किस सब्जैक्ट में किस चीज की पढ़ाई होती है. इंटर में आर्ट्स टौपर रही रूबी राय से जब यह पूछा गया था कि पौलिटिकल साइंस में किस चीज की पढ़ाई होती है, तो उस ने कुछ देर सोचने के बाद जवाब दिया था कि पौलिटिकल साइंस में खाना बनाने की पढ़ाई होती है. रूबी राय को कुल 500 में से 444 नंबर मिले थे.

इस साल भी बिहार में इंटरमीडिएट की आर्ट्स की परीक्षा में स्टेट टौपर बने गणेश पर कई तरह की गड़बड़ी करने का मामला दर्ज हो चुका है और इस के साथ ही एक बार फिर बिहार की पढ़ाईलिखाई के सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए हैं. इस साल के स्टेट टौपर पर उम्र की हेराफेरी करने का मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. फर्जी आर्ट्स टौपर गणेश कुमार के पटना के मुसल्लहपुर महल्ले के घर से कई दस्तावेज बरामद किए गए हैं.

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के प्रशाखा पदाधिकारी विपिन कुमार सिंह ने जन्मदिन छिपाने और गलत नाम दिखाने के आरोप में गणेश, कालेज के संचालक और प्रिंसिपल समेत दूसरों के खिलाफ आईपीसी की धारा 417, 418, 419, 420, 467, 468, 208, 201 और 120बी के तहत केस दर्ज कराया था. रिजल्ट आने के दूसरे ही दिन गणेश का रिजल्ट रद्द कर दिया गया था.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि गणेश झारखंड के गिरीडीह में कोलकाता की रसेल नौनबैंकिंग फाइनैंस कंपनी के लिए काम करता था. वह कंपनी ग्राहकों से 70 लाख रुपए ले कर फरार हो गई थी. गणेश भी मार्केट से उठाए गए 15 लाख रुपए दबा कर बैठ गया था. जब लोग उस से पैसे मांगने लगे, तो साल 2013 में वह पटना भाग आया. पटना के भीड़भाड़ वाले इलाके मुसल्लहपुर में वह किराए का मकान ले कर रहने लगा.

पटना पहुंचने के बाद गणेश ने सरकारी नौकरी पाने के लिए हाथपैर मारने शुरू कर दिए. सरकारी नौकरी पाने की उस की उम्र निकल चुकी थी. इसी बीच उस की मुलाकात संजय सिंह नाम के शख्स से हुई. संजय सिंह ने उस की मुलाकात फर्जी प्रमाणपत्र बनाने वाले गिरोह से कराई. उसी के साथ मिल कर गणेश ने अपनी उम्र कम कर जाली प्रमाणपत्र बनवा लिया था. उस ने संगीत सब्जैक्ट ले कर परीक्षा दी थी और जुगाड़पैरवी लगा कर टौपर भी बन गया. उस का मकसद यही था कि इंटर में टौपर बन जाने के बाद उसे आसानी से सरकारी नौकरी मिल जाएगी.

गिरीडीह शहर के सीआरएसआर हाईस्कूल से साल 1990 में गणेश ने 10वीं की परीक्षा पास की थी और उस के सर्टिफिकेट में नाम गणेश राम दर्ज है. गणेश ने साल 2015 में कम उम्र वाला जाली प्रमाणपत्र बनवाया. साल 1992 में उस ने झुमरी तिलैया, कोडरमा के रामलखन सिंह इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा दी थी. दोनों ही इम्तिहान में वह सैकंड डिवीजन से पास हुआ था. उस के बाद उस ने साल 2015 में ही समस्तीपुर के लक्ष्मीनियां इलाके के संजय गांधी हाईस्कूल से दोबारा 10वीं की परीक्षा दी. उस के बाद साल 2017 में उस ने उसी कालेज से इंटर की परीक्षा दी और आर्ट्स का टौपर बन गया. गणेश और उस के कालेज के खिलाफ पटना के कोतवाली थाने में कांड संख्या-270/2017 दर्ज किया गया.

दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल भी इंटर टौपर घोटाले के मामले में कोतवाली थाने में दर्ज किए गए मामले की संख्या-270/2016 है. दोनों इंटर टौपर घोटाले का केस नंबर एक ही हो गया है. बस, साल अलग है.

2 जून, 2017 को गणेश को गिरफ्तार किया गया और उस के मैट्रिक और इंटर के रिजल्ट को रद्द कर दिया गया. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की टौपर लिस्ट से गणेश का नाम हटा दिया गया.

गणेश की असली जन्मतिथि 1 नवंबर, 1975 है. साल 1990 में मैट्रिक और साल 1992 में इंटर पास कर चुके गणेश ने जाली जन्म प्रमाणपत्र बना कर दोबारा साल 2015 और साल 2017 में मैट्रिक और इंटर का इम्तिहान दिया. जाली जन्म प्रमाणपत्र में उस का जन्मदिन 2 जून, 1993 दर्ज है.

गणेश के टौपर होने पर जब सवाल उठने लगे, तो बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर ने कहा कि गणेश के टौपर होने में कोई शक ही नहीं है. उन्होंने बाकायदा प्रैस कौंफ्रैंस कर के कहा कि किसी भी हाल में टौपर को बदला नहीं जाएगा. बोर्ड के पास उस की सारी कौपियां मौजूद हैं.

अध्यक्ष आनंद किशोर ने यह भी दावा किया था कि गणेश दलित परिवार से है, इसलिए उस ने देरी से पढ़ाई शुरू की और साल 2015 में ही उस ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी.

2 बच्चों के पिता गणेश ने साफ लहजे में बताया कि उस ने सरकारी नौकरी पाने के लिए कम उम्र कर के दोबारा परीक्षा दी. इस के लिए उसे कोई पछतावा नहीं है. उस ने अपने बच्चों की रोजीरोटी के लिए ऐसा किया.

फर्जी जन्म प्रमाणपत्र बनाने के सवाल पर गणेश कहता है कि पढ़नालिखना क्या गुनाह है? गरीब होना क्या गुनाह है? उस ने दावा किया कि उस ने मेहनत से पढ़ाई कर के टौप किया है.

आशिक के प्यार में पति से की बेवफाई

मुंबई की ग्लोबल सिटी विरार वेस्ट के गोकुल, राऊत सोसायटी की गोकुल एंपायर इमारत में 40 साल की शिल्पी वर्मा अपने 50 साल के पति सरवेंद्र वर्मा और 20 साल की एकलौती बेटी के साथ रहती थी. सरवेंद्र वर्मा एक कंपनी में मैनेजर थे तो बेटी पढ़ाई कर रही थी. 2 फरवरी, 2016 को शिल्पी सहेली नूपुर श्रीवास्तव के साथ विरार के एक मौल से शौपिंग कर के लौट रही थी, तभी पुराने विभा कालेज और केएफसी रेस्टोरैंट के बीच उन की कार एक आदमी से टकरा गई.

उस आदमी की उम्र 30-35 साल रही होगी. टक्कर लगते ही वह आदमी जमीन पर गिर पड़ा. इस हादसे से शिल्पी और नूपुर घबरा गईं. दोनों सहेलियां अपनी गलती के लिए माफी मांगतीं, उस के पहले ही वह आदमी उठ कर कार का बोनट पीटते हुए चिल्ला कर कहने लगा, ‘‘आप लोग आंखें बंद कर के कार चलाती हैं. आप लोगों को सड़क पर चलने वाला आदमी दिखाई नहीं देता?’’ नूपुर और शिल्पी ने सौरी कहा तो वह आदमी और जोर से चिल्लाया, ‘‘आप के सौरी कह देने से मेरी टांग ठीक हो जाएगी क्या? चलिए आप लोग चल कर मेरी टांग का इलाज कराइए. उस के बाद जाइए.’’ यह कह कर वह आदमी कार का पिछला दरवाजा खोल कर कार के अंदर बैठ गया. शिल्पी और नूपुर उस आदमी को कुछ पैसे दे कर अपना पीछा छुड़ाना चाहती थीं, पर वह नहीं माना. जब उस आदमी ने देखा कि वहां भीड़ इकट्ठा हो रही है तो उस ने शिल्पी को डांट कर कार आगे बढ़ाने को कहा.

शिल्पी उसे ले कर कुछ दूर गई होगी कि उस आदमी ने रूमाल में छिपी रिवौल्वर जैसी कोई चीज दिखाते हुए कहा, ‘‘मैं जैसा कहूं तुम वैसा ही करो, वरना मैं तुम दोनों को गोली मार दूंगा.’’

‘‘नहीं, आप को ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है.’’ शिल्पी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगी.’’ इस के बाद वह आदमी जैसे कहता रहा, शिल्पी उसी तरह कार चलाती रही. करीब 2 घंटे तक वह उस आदमी के कहे अनुसार नवनिर्माण ग्लोबल सिटी की सड़कों पर कार को घुमाती रही. करीब 5 बजे उस की कार विरार के डोंगर पाड़ा रोड़ पर पहुंची तो कार का अगला टायर फट गया और कार बिजली के खंभे से टकरा गई.

कार रुक गई तो उस आदमी ने दोनों महिलाओं को कार से नीचे उतारा और एक औटो रुकवा कर उस में शिल्पी को बैठा कर नूपुर को इस तरह धक्का दिया कि वह जमीन पर गिर पड़ी. वह उठ पाती, उस के पहले ही वह शिल्पी को ले कर चला गया.  फिल्मी स्टाइल में घटी इस घटना से नूपुर हैरान थी. उस ने शोर भी मचाया, पर लोगों के इकट्ठा होने तक वह आदमी शिल्पी को ले कर चला गया था. नूपुर ने जब यह बात शिल्पी के घर जा कर उस के पति सरवेंद्र वर्मा और बेटी को बताई तो दोनों परेशान हो उठे. उस समय तक रात के साढ़े 8 बज चुके थे. वे नूपुर श्रीवास्तव को साथ ले कर थाना आगासी अरनाला पहुंचे और असिस्टैंट इंसपेक्टर संदीप शिवले को सारी बात बता कर शिल्पी वर्मा के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. मामला एक संभ्रात परिवार की महिला के अपहरण का था, इसलिए संदीप शिवले ने तुरंत घटना की जानकारी एसपी शारदा राऊत, एएसपी श्रीकृष्ण कोकाटे और डीएसपी नरसिंह भोसते के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम को दे कर थाने में मौजूद स्टाफ को मामले की जांच में लगा दिया. आमतौर पर अपहरण जैसे मामले पैसों के लिए या दुश्मनी में किए जाते हैं. शुरू में पुलिस को यही लगा कि यह अपहरण भी पैसे के लिए किया गया होगा, इसलिए पुलिस अपहर्त्ता के फोन का इंतजार करने लगी. लेकिन जब अगले दिन तक अपहर्त्ता का कोई फोन नहीं आया तो संदीप शिवले को लगा कि यह अपहरण पैसे के लिए नहीं किया गया. इस में कोई और ही बात है.

वह इस मामले का हल ढूंढ ही रहे थे कि मीडिया ने इस मामले को हवा दे दी, जिस की वजह से पुलिस जांच में तेजी आ गई. संदीप शिवले ने हैडकांस्टेबल मंदार दलवी, आर.डी. बेलधर, मुकेश पवार, अमोल तटकरे, प्रियंका पाटिल, योगिता भोईर और अमोल कांटे की एक टीम बना कर ग्लोबल सिटी की सड़कों पर लगे सारे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने को कहा. इस से उस औटो के बारे में पता चल गया, जिस से शिल्पी को ले जाया गया था.

औटो वाले से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि दोनों को उस ने बसई के परिजात गेस्टहाउस के पास छोड़ा था. वे हड़बड़ी में अपना एक मोबाइल फोन उस के औटो में ही छोड़ गए थे. उस ने गलती मानते हुए कहा कि उस मोबाइल का सिम निकाल कर उस में अपना सिम डाल कर वह उस का उपयोग करने लगा था. लेकिन उस ने पुलिस को हैरान करने वाली बात यह बताई कि उस के औटो से जो महिला और आदमी गए थे, वे औटो में पतिपत्नी जैसा व्यवहार कर रहे थे, जबकि उस से कहा जा रहा कि आदमी ने महिला का अपहरण किया था. उन के बातव्यवहार से उसे अपहरण जैसा कुछ नहीं लग रहा था. इस से संदीप शिवले को शिल्पी का चरित्र संदिग्ध लगा. लेकिन शिल्पी की उम्र को देखते हुए उन के मन में एक बार यह भी आया कि औटो वाले को भ्रम भी तो हो सकता है, उन्होंने सरवेंद्र वर्मा और उन की बेटी को थाने बुला कर औटो वाले को मिला मोबाइल दिखाया तो उन्होंने बताया कि यह मोबाइल शिल्पी का ही है.

पुलिस ने बसई के परिजात गेस्टहाउस जा कर वहां के कर्मचारियों को शिल्पी का फोटो दिखा कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि यह महिला उन के गेस्टहाउस में अपने पति के साथ पिछले 3 दिनों से ठहरी थी. पुलिस के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से गए थे. पुलिस को जैसी उम्मीद थी कि दोनों ने गेस्टहाउस के रजिस्टर में अपना सही नामपता नहीं लिखा होगा, वह सच था. रजिस्टर में जो नामपता लिखा था, उस की जांच की गई तो वह झूठा पाया गया. इस के बाद जांच आगे बढ़ाने के लिए पुलिस ने शिल्पी के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर 3 महीने पहले सिर्फ एक बार फोन किया गया था.

वह नंबर पुलिस को संदिग्ध लगा तो पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया. पता चला कि वह नंबर आगरा के किसी अमरीश कुमार का था, लेकिन वह नंबर अब बंद हो चुका था. मुंबई पुलिस आगरा पहुंची तो पता चला अमरीश कुमार तो 3 महीने पहले दुबई चला गया था. पुलिस खाली हाथ लौट आई. इसी तरह 10 दिन बीत गए, पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. 14 फरवरी, 2016 को मोबाइल के आईएमईआई नंबर की मदद से पुलिस पंजाब के लुधियाना शहर की एक दुकान पर पहुंची और वहां से शिल्पी और अमरीश कुमार को गिरफ्तार कर लिया.

अमरीश कुमार ने उस दुकान पर अपना मोबाइल फोन ठीक कराने के लिए दिया था. दोनों को मुंबई ला कर थाना आगासी पुलिस ने वसई की अदालत में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट श्रीमती धारे के समक्ष पेश कर विस्तार से पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में पता चला कि प्रेमी के साथ रहने के लिए शिल्पी ने खुद ही अपहरण का ड्रामा रचा था.

30 साल का अमरीश कुमार उत्तर प्रदेश के आगरा शहर का रहने वाला था. वह वहां के एक थ्री स्टार होटल में सेफ था. शिल्पी वर्मा से उस की जानपहचान कोई 4 साल पहले सोशल मीडिया फेसबुक के माध्यम से हुई थी. दोस्त बनने के बाद पहले दोनों के बीच फेसबुक द्वारा चैटिंग शुरू हुई, उस के बाद सीधे फोन से बात होने लगी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों में प्यार हो गया. उस समय शिल्पी पति और बेटी के साथ कोलकाता में रहती थी. उसे पता था कि शिल्पी उस से 10 साल बड़ी थी. इस के बावजूद अमरीश के प्यार में जरा भी कमी नहीं आई. मूलरूप से बिहार के पटना शहर की रहने वाली शिल्पी की शादी सन 1993 में दिल्ली के रहने वाले सरवेंद्र वर्मा के साथ हुई थी. सरवेंद्र कोलकाता में रहते थे, इसलिए वह भी पति के साथ वहीं रहने लगी थी. सरवेंद्र वहीं एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी करते थे.

पति के नौकरी और बेटी के स्कूल जाने के बाद शिल्पी घर में अकेली रह जाती तो बोर होने लगती. इस के अलावा न जाने क्यों पति और बेटी का व्यवहार भी उस के प्रति ठीक नहीं था. चैटिंग और बातचीत के बाद शिल्पी और अमरीश एकदूसरे के काफी करीब आ गए. बातचीत में उन के बीच मर्यादा की कोई सीमा नहीं रह गई थी. दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करने लगे थे. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों मिलने के लिए बेचैन हो उठे. उन की यह बेचैनी तभी शांत हुई, जब अमरीश कोलकाता जा पहुंचा. शिल्पी ने अपनी दोनों बांहें फैला कर उस का स्वागत किया. जब तक अमरीश कोलकाता में रहा, शिल्पी ने उस का हर तरह से खयाल रखा. एक बार दोनों की मुलाकात हुई तो सिलसिला ही चल निकला. अमरीश को जब भी मौका मिलता, वह शिल्पी से मिलने कोलकाता पहुंच जाता. फिर तो दोनों साथसाथ रहने के सपने देखने लगे.

अपने इस सपने को पूरा करने के लिए शिल्पी जब सन 2013 में कोलकाता से पति और बेटी के साथ दिल्ली अपनी ससुराल आ रही थी तो दिल्ली पहुंचने से पहले ही गायब हो गई. 4 दिनों की अथक कोशिश के बाद पुलिस ने शिल्पी और अमरीश को उस के मोबाइल फोन के जरिए कानपुर के  एक लौज से बरामद किया. शिल्पी की यह हरकत सरवेंद्र और उस के घर वालों को काफी नागवार लगी. अब वह शिल्पी को अपने साथ रखना नहीं चाहते थे, लेकिन रिश्तेदारों के समझाने पर उसे चेतावनी दे कर साथ रख लिया था. पर शिल्पी पर उन की चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ. वह अमरीश को भूल नहीं पाई आौर मौका मिलने पर अमरीश से फोन पर बातें करती रही.

पत्नी की हरकतों से तंग आ कर सरवेंद्र ने सन 2015 में अपना ट्रांसफर मुंबई करा लिया. मुंबई में उन्हें विरार की नवनिर्माण ग्लोबल सिटी में रहने के लिए बढि़या फ्लैट मिला ही था, आनेजाने के लिए कार भी मिली थी. हर सुखसुविधा होने के बावजूद शिल्पी का मन नहीं लग रहा था. उस का मन तो अमरीश में बसा था. वह उस के साथ खुले आकाश में उड़ने के लिए तड़प रही थी. बापबेटी शिल्पी की हर गतिविधि पर नजर रख रहे थे, लेकिन उस की हरकतें बंद नहीं हुईं. वह किसी न किसी तरह अमरीश से बातें कर ही लेती थी. इस के लिए वह अलग मोबाइल रखती थी, जिस से वह सिर्फ अमरीश से ही बातें करती थी. मुंबई आने के बाद वह अमरीश से मिल नहीं पा रही थी, इसलिए उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बनाई. इस बार वह उस के साथ इस तरह भागना चाहती थी कि घर वालों की तो छोड़ो, पुलिस उन तक न पहुंच सके. इसीलिए इस बार उस ने भागने को अपहरण के ड्रामे में बदल दिया. लेकिन इस बार भी वह मोबाइल नंबर के जरिए ही पकड़ी गई.

योजना के अनुसार, अमरीश ने 3 महीने पहले यह कह कर घर छोड़ दिया कि उसे दुबई में नौकरी मिल गई है. घर वालों से झूठ बोल कर वह पंजाब के शहर लुधियाना चला गया. वह शेफ का काम जानता ही था, इसलिए उसे वहां एक रेस्टोरेंट में नौकरी मिल गई. इस के बाद वह शिल्पी को भगाने की तैयारी करने लगा. शिल्पी को भगाने के 3 दिन पहले यानी 30 जनवरी को अमरीश लुधियाना से मुंबई पहुंचा तो शिल्पी उस के साथ भागने की तैयारी करने लगी. घर वालों को अमरीश के साथ भाग जाने का संदेह न हो, इस के लिए उस ने सीधे भागने के बजाय अपने अपहरण का ड्रामा रचा, जिस में वह सफल भी रही.

लुधियाना पहुंच कर अमरीश और शिल्पी निश्चिंत हो गए थे और देश छोड़ कर दुबई जाने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन शिल्पी ने 3 महीने पहले जो गलती की थी, उसी की वजह से पुलिस ने उसे पकड़ लिया. शिल्पी और अमरीश कुमार ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था, वे बालिग भी थे, इसलिए उन पर कोई अपराध नहीं बनता था. लेकिन अपने अपहरण का ड्रामा रच कर उस ने पुलिस को गुमराह करने का अपराध किया था. इसलिए पुलिस ने उसी का मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया. चूंकि उन का यह अपराध जमानती था, इसलिए जल्दी ही उन की जमानतें हो गईं. जमानत होने के बाद शिल्पी ने पति के साथ जाने से मना कर दिया और प्रेमी अमरीश से विवाह कर के उसी के साथ रह रही है.

सनकी पति ने की अपनी ही पत्नी की हत्या

कल्लू को अकेला घर आया देख कर घर वालों में से किसी ने पूछा कि अंजू कहां है तो उस ने बेहद इत्मीनान से जवाब दिया कि उस की तो उस ने हत्या कर दी है. पहले तो चौंक कर सभी ने कल्लू की ओर देखा. लेकिन उस के हावभाव देख कर सभी को यकीन हो गया कि इस सिरफिरे का कोई भरोसा नहीं कि यह जो कह रहा है, उसे कर चुका हो. भोपाल के कोटरा इलाके के बापूनगर में मामूली खातेपीते लोग रहते हैं. उन्हीं में एक कल्लू विश्वकर्मा भी था. पेशे से वेल्डर कल्लू की एक पहचान निहायत ही सनकी आदमी की भी थी, जो अड़ोसपड़ोस में हर किसी से झगड़ बैठता था, इसलिए लोग उस से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते थे.

30 साल की अंजू कल्लू की पत्नी थी, जो उस के 5 बच्चों की मां थी. पतिपत्नी में आए दिन झगड़ा होता रहता था, जिस के न केवल उन के बच्चे, बल्कि पड़ोसी भी आदी हो चुके थे. 5 बच्चों की मां होने के बावजूद अंजू जवान और आकर्षक दिखती थी. लेकिन इस बात पर खुश होने के बजाय कल्लू को उस पर शक हो चला था कि उस के किसी से अवैधसंबंध हैं. पतियों के इस तरह के शक की न कोई वजह होती है और न ही इस का कोई इलाज है, जिस की मार बेकसूर पत्नियों को झेलनी पड़ती है. अंजू भी उस में से एक थी, जो पति की बातों और तानों को सुनसुन कर परेशान रहती थी. जब कभी वह उस का शक दूर करने की कोशिश करती, कल्लू समझने के बजाय और भड़क उठता था.

26 अक्तूबर, 2016 को जब सभी लोग दिवाली की तैयारियां कर रहे थे, दोपहर कोई एक बजे कल्लू ने अंजू से कहीं घूमने चलने को कहा. पति की इस पेशकश पर पहले तो वह चौंकी, लेकिन जल्द ही खुश भी हो गई. पति शक्की था, झक्की था, लेकिन कभीकभी उस का प्यार उमड़ता था तो अंजू पुराना सब कुछ भूल जाती थी. उस दिन भी जब कल्लू ने अपनी मारुति कार से कलियासोत डैम घूमने चलने को कहा तो वह झटपट यह सोच कर तैयार हो गई कि कहीं ऐसा न हो कि पति का इरादा बदल जाए. दोनों कार में सवार हो कर कलियासोत डैम पहुचे, जहां पतिपत्नी में किसी बात को ले कर विवाद शुरू हो गया. जब दोनों लड़तेझगड़ते डैम के गेट नंबर 13 पर पहुंचे तो कल्लू ने अंजू को काबू कर के उस का गला दबाना शुरू कर दिया. उस समय वहां सुनसान था. क्योंकि आमतौर पर कम लोग ही उतनी दूर तक घूमने जाते हैं. गुस्साए कल्लू ने तब तक पत्नी की गरदन नहीं छोड़ी, जब तक वह लाश बन कर उस की बांहों में नहीं झूल गई. जब पत्नी के मरने की तसल्ली हो गई तो कल्लू ने इत्मीनान से उस की लाश को डैम के बहते पानी में फेंक दिया. लेकिन फरार होने के बजाय वह सीधे घर जा पहुंचा और पत्नी की हत्या की बात दो टूक कह दी. घर वालों ने सकपका कर आसपड़ोस वालों से यह बात कही तो मोहल्ले वालों ने पहले तो जम कर उस की धुनाई की, उस के बाद उसे रस्सी से बांध दिया और पुलिस को खबर कर दी. खबर मिलते ही पुलिस कल्लू के घर पहुंच गई.

एएसपी आर.डी. भारद्वाज ने जब कल्लू से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद गोताखोरों की मदद से अंजू की लाश और टूटी हुई चूडि़यां भी घटनास्थल से बरामद कर ली गईं. इस के बाद औपचारिक काररवाई पूरी कर के अंजू के शव को पोस्टमार्टम के लिए हमीदिया अस्पताल भिजवा दिया गया. पुलिस के बारबार पूछने पर कल्लू एक ही बात दोहराता रहा कि अंजू बहुत बकबक करती थी, इसलिए उस ने उसे मार डाला. लेकिन इस मामले से यह उजागर हुआ है कि पतिपत्नी के बीच रोजमर्रा की कलह कभीकभी जानलेवा साबित हो जाती है. सनकी और शक्की पति की अक्ल पर इस कदर परदा पड़ जाता है कि वह अपना अंजाम तो दूर की बात, बच्चों के भविष्य की भी परवाह नहीं करता.

लगता तो यही है कि मामूली शक्ल सूरत वाला कल्लू वेल्डिंग के धंधे से कमा तो अच्छा लेता था, पर अपनी जवान और खूबसूरत पत्नी को ले कर हीनभावना से ग्रस्त था, जिस के चलते उस ने उसे हमेशा के लिए ठिकाने लगा कर खुद अपने हाथों अपनी जमीजमाई गृहस्थी उजाड़ दी.

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