कलंक: गंगा की मौत क्यों हुई?

अपनी बेटी गंगा की लाश के पास रधिया पत्थर सी बुत बनी बैठी थी. लोग आते, बैठते और चले जाते. कोई दिलासा दे रहा था तो कोई उलाहना दे रहा था कि पहले ही उस के चालचलन पर नजर रखी होती तो यह दिन तो न देखना पड़ता.

लोगों के यहां झाड़ूबरतन करने वाली रधिया चाहती थी कि गंगा पढ़ेलिखे ताकि उसे अपनी मां की तरह नरक सी जिंदगी न जीनी पड़े, इसीलिए पास के सरकारी स्कूल में उस का दाखिला करवाया था, पर एक दिन भी स्कूल न गई गंगा. मजबूरन उसे अपने साथ ही काम पर ले जाती. सारा दिन नशे में चूर रहने वाले शराबी पति गंगू के सहारे कैसे छोड़ देती नन्ही सी जान को?

गंगू सारा दिन नशे में चूर रहता, फिर शाम को रधिया से पैसे छीन कर ठेके पर जाता, वापस आ कर मारपीट करता और नन्ही गंगा के सामने ही रधिया को अपनी वासना का शिकार बनाता.

यही सब देखदेख कर गंगा बड़ी हो रही थी. अब उसे अपनी मां के साथ काम पर जाना अच्छा नहीं लगता था. बस, गलियों में इधरउधर घूमनाफिरना… काजलबिंदी लगा कर मतवाली चाल चलती गंगा को जब लड़के छेड़ते, तो उसे बहुत मजा आता.

रधिया लाख कहती, ‘अब तू बड़ी हो गई है… मेरे साथ काम पर चलेगी तो मुझे भी थोड़ा सहारा हो जाएगा.’

गंगा तुनक कर कहती, ‘मां, मुझे सारी जिंदगी यही सब करना है. थोड़े दिन तो मुझे मजे करने दे.’

‘अरी कलमुंही, मजे के चक्कर में कहीं मुंह काला मत करवा आना. मुझे तो तेरे रंगढंग ठीक नहीं लगते.

यह क्या… अभी से बनसंवर कर घूमतीफिरती रहती है?

इस पर गंगा बड़े लाड़ से रधिया के गले में बांहें डाल कर कहती, ‘मां, मेरी सब सहेलियां तो ऐसे ही सजधज कर घूमतीफिरती हैं, फिर मैं ने थोड़ी काजलबिंदी लगा ली, तो कौन सा गुनाह कर दिया? तू चिंता न कर मां, मैं ऐसा कुछ न करूंगी.’

पर सच तो यही था कि गंगा भटक रही थी. एक दिन गली के मोड़ पर अचानक पड़ोस में ही रहने वाले 2 बच्चों के बाप नंदू से टकराई, तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई. इस के बाद तो वह जानबूझ कर उसी रास्ते से गुजरती और नंदू से टकराने की पूरी कोशिश करती.

नंदू भी उस की नजरों के तीर से खुद को न बचा सका और यह भूल बैठा कि उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. अब तो दोनों छिपछिप कर मिलते और उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दी थीं.

पर इश्क और मुश्क कब छिपाए छिपते हैं. एक दिन नंदू की पत्नी जमना के कानों तक यह बात पहुंच ही गई, तो उस ने रधिया की खोली के सामने खड़े हो कर गंगा को खूब खरीखोटी सुनाई, ‘अरी गंगा, बाहर निकल. अरी कलमुंही, तू ने मेरी गृहस्थी क्यों उजाड़ी? इतनी ही आग लगी थी, तो चकला खोल कर बैठ जाती. जरा मेरे बच्चों के बारे में तो सोचा होता. नाम गंगा और काम देखो करमजली के…’

3 दिन के बाद गंगा और नंदू बदनामी के डर से कहीं भाग गए. रोतीपीटती जमना रोज गंगा को कोसती और बद्दुआएं देती रहती. तकरीबन 2 महीने तक तो नंदू और गंगा इधरउधर भटकते रहे, फिर एक दिन मंदिर में दोनों ने फेरे ले लिए और नंदू ने जमना से कह दिया कि अब गंगा भी उस की पत्नी है और अगर उसे पति का साथ चाहिए, तो उसे गंगा को अपनी सौतन के रूप में अपनाना ही होगा.

मरती क्या न करती जमना, उसे गंगा को अपनाना ही पड़ा. पर आखिर तो जमना उस के बच्चों की मां थी और उस के साथ उस ने शादी की थी, इसलिए नंदू पर पहला हक तो उसी का था.

शादी के 3 साल बाद भी गंगा मां नहीं बन सकी, क्योंकि नंदू की पहले ही नसबंदी हो चुकी थी. यह बात पता चलते ही गंगा खूब रोई और खूब झगड़ा भी किया, ‘क्यों रे नंदू, जब तू ने पहले ही नसबंदी करवा रखी थी तो मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की?’

नंदू के कुछ कहने से पहले ही जमना बोल पड़ी, ‘आग तो तेरे ही तनबदन में लगी थी. अरी, जिसे खुद ही बरबाद होने का शौक हो उसे कौन बचा सकता है?’

उस दिन के बाद गंगा बौखलाई सी रहती. बारबार नंदू से जमना को छोड़ देने के लिए कहती, ‘नंदू, चल न हम कहीं और चलते हैं. जमना को छोड़ दे. हम दूसरी खोली ले लेंगे.’

इस पर नंदू उसे झिड़क देता, ‘और खोली के पैसे क्या तेरा शराबी बाप देगा? और फिर जमना मेरी पत्नी है. मेरे बच्चों की मां है. मैं उसे नहीं छोड़ सकता.’

इस पर गंगा दांत पीसते हुए कहती, ‘उसे नहीं छोड़ सकता तो मुझे छोड़ दे.’

इस पर गंगू कोई जवाब नहीं देता. आखिर उसे 2-2 औरतों का साथ जो मिल रहा था. यह सुख वह कैसे छोड़ देता. पर गंगा रोज इस बात को ले कर नंदू से झगड़ा करती और मार खाती. जमना के सामने उसे अपना ओहदा बिलकुल अदना सा लगता. आखिर क्या लगती है वह नंदू की… सिर्फ एक रखैल.

जब वह खोली से बाहर निकलती तो लोग ताने मारते और खोली के अंदर जमना की जलती निगाहों का सामना करती. जमना ने बच्चों को भी सिखा रखा था, इसलिए वे भी गंगा की इज्जत नहीं करते थे. बस्ती के सारे मर्द उसे गंदी नजर से देखते थे.

मांबाप ने भी उस से सभी संबंध खत्म कर दिए थे. ऐसे में गंगा का जीना दूभर हो गया और आखिर एक दिन उस ने रेल के आगे छलांग लगा दी और रधिया की बेटी गंगा मैली होने का कलंक लिए दुनिया से चली गई.

इंसाफ का अंधेर : डाकू मानसिंह का खौफ

वह कैद में है. उसे बदतर खाना दिया जाता है. वह जिंदा लाश की तरह है. उस की जिंदगी का फैसला दूसरे लोग करेंगे. वे लोग जो न उसे जानते हैं, न वह उन को. कागज पर जो उस के खिलाफ लिखा गया है उसी की बुनियाद पर सारे फैसले होने हैं.

वह कैद क्यों किया गया? वह यादों में चला जाता है. बुंदेलखंड का छोटा सा गांव. डकैतों की भरमार. सब का अपनाअपना इलाका.

डाकू मानसिंह का गांव और पुलिस. कई बार पुलिस और डाकू मानसिंहका आमनासामना हुआ. गोलियां चलीं. मुठभेड़ हुई. दोनों तरफ से लोग मारे गए.

कई बार डाकू मानसिंह भारी पड़ा, तो कई बार पुलिस. दोनों के बीच समझौता हुआ और तय हुआ कि डाकू मानसिंह के साथ मुठभेड़ नहीं की जाएगी. लेकिन पुलिस को सरकार को दिखाने और जनता को समझाने के लिए कुछ तो करना होगा.

दारोगा गोपसिंह ने कहा, ‘‘ऐसा करो कि हफ्ते, 15 दिन में तुम अपना एक आदमी हमें सौंप देना. जिंदा या मुरदा, ताकि हमारी नौकरी होती रहे.’’

शुरू में तो मानसिंह राजी हो गया, लेकिन जब उसे यह घाटे का सौदा लगा तब उस के साथियों में से एक ने उस से कहा, ‘‘आप अपने लोगों को ही मरवा रहे हैं. इस तरह पूरा गिरोह खत्म हो जाएगा. लोग गिरोह में शामिल होने से कतराएंगे.’’

मानसिंह ने कहा, ‘‘मैं अपने आदमी नहीं दूंगा. पासपड़ोस के गांव के लोगों को सौंप दूंगा अपना आदमी बता कर.’’

‘‘क्या यह ठीक रहेगा? क्या हम पुलिस को बलि देने के लिए डाकू बने हैं?’’ गिरोह के एक सदस्य ने पूछा.

मानसिंह बोला, ‘‘नहीं, यह कुछ समय की मजबूरी है. अभी हमारे गिरोह पर पुलिस का शिकंजा कसा हुआ है. जैसे ही हम पुलिस को मुंहतोड़ जवाब देने लायक हो जाएंगे तब पुलिस वालों की ही बलि चढ़ेगी.’’

‘‘कब तक?’’ गिरोह के दूसरे सदस्य ने पूछा.

‘‘दिमाग पर जोर मत दो. 1-2 आदमी पुलिस को सौंपने से कुछ नहीं बिगड़ जाता. हम गांव के अपने किसी दुश्मन को पकड़ कर पुलिस को सौंपेंगे, वह भी जिंदा. तब तक हमें भी संभलने का मौका मिल जाएगा.’’

‘‘और दारोगा मान जाएगा?’’ गिरोह के एक सदस्य ने पूछा.

मानसिंह चुप रहा. उस ने एक योजना बनाई. शहर से लगे गांवों में रहने वाले पुलिस वालों को उठाना शुरू किया. उन्हें डकैतों के कपड़े पहनाए. कुछ दिन उन्हें बांध कर रखा. जब उन की दाढ़ीबाल बढ़ गए, तो गोली मार कर उन्हें थाने के सामने फेंक दिया.

हैरानी की बात यह थी कि यह खेल कुछ समय तक चलता रहा. जब बात खुली तो पुलिस बल समेत दारोगा ने कई मुठभेड़ें कीं और हर मुठभेड़ में कामयाबी हासिल की.

मानसिंह कुछ समय के लिए अंडरग्राउंड हो गया. दारोगा गोपसिंह ने गांव वालों को थाने बुला कर थर्ड डिगरी देना शुरू कर दिया. उसे मानसिंह का पता चाहिए था और मानसिंह की मदद उस के गांव के लोग करते थे, यह बात दारोगा जानता था.

एक बार खेत को ले कर गांव के 2 पक्षों में झगड़ा हुआ. दूसरा पक्ष मजबूत था और जेल में बंद शख्स का पक्ष कमजोर था. पैसे से और सामाजिक रूप से भी. उस के पिता के पास महज 5 एकड़ जमीन थी. दूसरे पक्ष को जब लगा कि मामला उस के पक्ष में नहीं जा पाएगा तब उस ने दारोगा गोपसिंह से बात की.

गोपसिंह ने बापबेटे को थाने में बुला कर धमकाया कि एक एकड़ खेती दूसरे पक्ष के लिए छोड़ दो, नहीं तो अंजाम बुरा होगा. लेकिन बापबेटा धमकी से डरे नहीं.

एक दिन जब बेटा शहर से मैट्रिक का इम्तिहान दे कर पैदल ही गांव आ रहा था कि तभी दारोगा की जीप उस के पास आ कर रुकी. 4 सिपाही उतरे. उसे जबरन गाड़ी में बिठाया और थाने ले गए.

उस ने लाख कहा कि वह बेकुसूर है, तो दारोगा गोपसिंह ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम्हारे बाप ने मेरी बात नहीं मानी. अब भुगतो. आज से कानून की नजर में तुम डाकू हो. आज रात में ही तुम्हारा ऐनकाउंटर होगा.’’ उसे हवालात में बंद कर दिया गया. अपनी मौत के डर से वह अंदर तक कांप गया.

रात होने से पहले मानसिंह के गिरोह ने थाने पर हमला कर दिया. दोनों तरफ से फायरिंग हुई. मानसिंह गिरोह के कई सदस्य मारे गए. दारोगा गोपसिंह और कई पुलिस वाले भी मारे गए.

शहर से जब एसपी आया तो नतीजा यह निकाला गया कि वह लड़का मानसिंह गिरोह का आदमी था. मानसिंह अपने गिरोह के साथ उसे छुड़ाने आया था. गिरोह की जानकारी के बारे में उसे थर्ड डिगरी टौर्चर से गुजरना पड़ा. आखिर में उसे जेल भेज दिया गया.

बाप को बहुत बाद में पता चला कि उस का बेटा डकैत होने के आरोप में जेल में बंद है. बाप ने अपनी औकात के मुताबिक वकील किया. जमानत रिजैक्ट हो गई.

बेटे का कानून पर से यकीन उठ चुका था. उसे अपने आगे अंधेरा दिखाई दे रहा था. उसे तब गुस्सा आया जब अदालत ने उसे गुनाहगार मान कर उम्रकैद की सजा सुना दी. अब उस की तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया. पहली बार उस के मन में खयाल आया कि उसे भाग जाना चाहिए और जब उसे अपने जैसी सोच के कुछ लोग मिले तो वे आपस में भागने की योजना बनाने लगे.

वे सब जेल में एकसाथ टेलर का काम करते थे जो उन्हें सिखाता था और उस के अलावा 3 और कैदी मिला कर वे 5 लोग थे. पांचों को उम्रकैद की सजा हुई थी.

इधर बूढ़े बाप ने सोचा, ‘क्या करूंगा 5 एकड़ खेती का. इस से अच्छा है कि जमीन बेच कर बेटे के लिए हाईकोर्ट में अपील की जाए.’

बाप ने गांव की खेती औनेपौने दाम में बेच कर सारा रुपया वकील को दे दिया. बेटे को इसलिए नहीं बताया क्योंकि उसे लगेगा कि बाप उसे झूठा ढांढस बंधा रहा है.

हाईकोर्ट में सुनवाई का दौर शुरू हो चुका था. वे पांचों जेल के अंदर जितनी योजनाएं बनाते, उन में कहीं न कहीं कोई गलती नजर आती. एकदम जबरदस्त प्लान नहीं था उन के पास. शायद उन के अंदर पकड़े जाने का डर था. वे भागने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे. योजना पर बात करते लंबा समय हो गया था.

?ां?ाला कर पहले कैदी ने कहा, ‘‘आजादी का सपना अब सपना ही रहेगा. हमारे नसीब में कैद ही है. हम क्यों बात कर के अपना दिमाग खराब कर रहे हैं.’’

दूसरे कैदी ने कहा, ‘‘हां, एक ही बात बारबार करने से दिमाग पक चुका है. तय कर लो कि भागना है या नहीं.’’

तीसरे कैदी ने कहा, ‘‘कोई तो रास्ता होगा यहां से निकलने का. क्या हम उम्रभर जेल में सड़ते रहेंगे.’’

चौथे कैदी ने कहा, ‘‘उम्रकैद का मतलब है पूरी जिंदगी जेल में. जब तक शरीर में जान है, तब तक कैद में.’’

अब 5वें यानी उस की बारी थी. उस ने कहा, ‘‘मुझे तो सोच कर ही घबराहट होती है कि हमारी लाश जेल से बाहर जाएगी. मैं बिना कुसूर के जेल में सड़ने को तैयार नहीं हूं.

‘‘किस आदमी ने बनाया कैदखाना. कितना जालिम होगा वह. मैं कोई तोता नहीं हूं कि पिंजरे में कैद रहूं. अगर कोई कुसूरवार है तब भी उसे किसी दूसरे किस्म की सजा दी जा सकती है.

‘‘कैदखाना वह जगह है जहां आदमी पलपल मरता है. उसे दूर कर दिया जाता है अपने परिवार से, अपनी जिम्मेदारियों से.

‘‘मेरे बूढ़े बाप का क्या कुसूर है? उन्हें किस बात की सजा दी जा रही है? क्या गुनाह है उस बेटी का जिस से छीन लिया जाता है उस का पिता? क्या गुनाह है उस बेटे का जिसे बाप के होते हुए यतीम कर दिया जाता है? उस मां के बारे में नहीं सोचा कैद करने वाले ने कि उस की देखरेख कौन करेगा? उस पत्नी का क्या जो जीतेजी विधवा की जिंदगी भोगती है. हमें मौत की सजा दे दो. कम से कम बाहर कोई इंतजार तो न करता रहे.

‘‘हमें किसी ऐसे काम पर लगा दो कि पछतावा भी हो और जनसेवा, देशसेवा भी. कैद करने से किस का भला? जेलों पर सरकार के करोड़ों रुपए खर्च होते हैं. एक आदमी की सजा कई लोग भुगतते हैं. मुझे मंजूर नहीं यह अंधेरगर्दी.

‘‘यह क्या बात हुई कि किसी अपराध में पुलिस ने पकड़ा और भेज दिया जेल. अब जमानत के लिए कोर्ट के चक्कर लगाओ. वकीलों को पैसा दो. घरबार जमापूंजी सब बेच दो अपने को बेगुनाह साबित करने के लिए.

‘‘सालों मुकदमा चलता रहता है. कुसूरवार अकसर छूट जाते हैं और बेगुनाह की जमानत तक नहीं हो पाती. ऐसे अंधे कानून पर भरोसा नहीं कर सकता मैं. न ही ऐसे कानून को मैं मानता हूं.

‘‘इस जेल में ऐसे कई लोग हैं जिन के मुकदमे का फैसला तब हुआ जब वे आधी जिंदगी जेल में काट चुके थे. बाद में उन्हें बाइज्जत रिहा कर दिया गया. उन के कीमती साल कौन लौटाएगा उन्हें?

‘‘यहां सभी को बिकते देखा है मैं ने. जाति, भाषा, धर्म की बुनियाद पर फैसले देते हुए. मैं आजाद हवा में सांस ले कर मरूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए.’’

बाकी चारों ने उस की बात का समर्थन किया. एक ने कहा, ‘‘तुम कहो, करना क्या है? हम तुम्हारे साथ हैं.’’

उस ने कहा, ‘‘हम पांचों मेन गेट के पास ड्यूटी करते हैं. 12 बजे मुलाकात बंद हो जाती है. जेलर अपने बंगले पर चला जाता है. मेन गेट पर महज 2 सिपाही रहते हैं. एक के पास चाबी होती है, दूसरे के पास लाठी. हमें अपनी कैंचियों को हथियार बना कर एक से चाबी छीन कर गेट खोलना है.

‘‘हम लौकअप के समय 12 बजे खाना खाने जाएंगे. उस के बाद हमें फिर बुलाया जाएगा. उस समय हम 5 होंगे और वे 2. अब इतनी हिम्मत हमें करनी ही होगी.’’

पहले कैदी ने कहा, ‘‘लेकिन, हमें कितना कम समय मिलेगा. हमारे बाहर निकलते ही खतरे का सायरन बजेगा. हम ज्यादा दूर नहीं भाग पाएंगे. सारे शहर की पुलिस हमारे पीछे होगी.’’

उस ने कहा, ‘‘पहले हमें बाहर निकलना है. जहां हम काम करते हैं उसी कमरे में एकएक कर के अपनी ड्रैस बदलनी है और तेजी से बाहर निकलना है. एक बार भीड़ में गुम हो गए तो फिर आसानी से नहीं पकड़े जाएंगे. किसी की गाड़ी छीन कर भी भाग सकते हैं. पुलिस चैकपोस्ट पर होगी. हमें शहर के अंदर ही रहना है भीड़ में. इस के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.’’

दूसरे कैदी ने कहा, ‘‘मैं इमर्जैंसी सायरन बंद कर सकता हूं.’’

उस ने कहा, ‘‘यह तो अच्छी बात है. लेकिन ध्यान रहे, कम समय में. उतने ही समय में जितने समय में हम चाबी छीन कर दोनों संतरियों को काबू में कर के बाहर निकलेंगे.’’

तीसरे कैदी ने कहा, ‘‘अगर आसानी से काबू में न आए संतरी तो…?’’

‘‘तो कैंची से वार कर देना,’’ चौथे कैदी ने जवाब दिया.

‘‘और यह सब कब करना है?’’ पहले कैदी ने पूछा.

‘‘4 घंटे की ड्यूटी में कोई एक पुलिस वाला अंदर का गेट पार कर के पेशाब के लिए तो जाएगा ही. हमें उसी समय अंदर का गेट बंद कर देना है. एक सिपाही रहेगा. बहुत आसानी रहेगी. और अगर किसी तरह हम मेन गेट के संतरी को अपने काम करने वाले कमरे तक ला सके और उसे किसी तरह कमरे में बंद कर दिया तो हमें ज्यादा समय मिल सकता है. बोलो, तैयार हो?’’

सब ने सहमति जताई. यह योजना बाकी चारों को बहुत पसंद आई थी. वे अब बारीक निगाहों से समय का, गेट के संतरी का, चाबी का, इमर्जैंसी सायरन पर ध्यान देने लगे थे.

इधर बूढ़े बाप के शरीर में अब इतनी ताकत नहीं थी कि वह चलफिर सके. बेटे की जिंदगी को ले कर जो इच्छाएं मन में थीं, वे तो खत्म होने के कगार पर थीं. बस यही आखिरी इच्छा थी कि मरने से पहले बेटा कैद से बाहर आ जाए.

बाप को बेटे की शादी की तो उम्मीद नहीं थी. कौन देगा जेल गए बेटे को अपनी लड़की? खेतीबारी बिक चुकी थी. मजदूरी करने की शरीर में ताकत नहीं थी. इस बुढ़ापे में वह मंदिर के पास पड़ा रहता. वकील से भी बहुत पहले कह दिया था कि हाईकोर्ट का जो फैसला हो, खबर भेज देना. वकील की एकमुश्त फीस दी जा चुकी थी.

आज मौका मिल ही गया उन पांचों को. दोपहर 2 बजे एक संतरी ने अपने साथ ड्यूटी करने वाले संतरी से कहा, ‘‘मैं हलका हो कर आता हूं.’’

जैसे ही उन्हें अंदर का गेट खोलने की आवाज आई, वे पांचों फुरती से बाहर निकले. एक ने दौड़ कर अंदर का गेट बंद किया. 2 लोग कैंची अड़ा कर संतरी को अंदर कमरे में ले गए. जो कपड़े सिल कर तैयार थे, उन्होंने पहन लिए थे. उस ने चाबी छीन कर मेन गेट पर लगाई.

एक कैदी ने इमर्जैंसी सायरन बंद करने की कोशिश की, लेकिन बात बन नहीं पाई. मेन गेट खुलते ही उस ने बाकी चारों से कहा, ‘‘जल्दी निकलो,’’ और वे तेज कदमों से बाहर की ओर बढ़े.

किसी काम से आते हुए एक संतरी ने उन्हें देख लिया. उसे हैरानी हुई. उस ने सोचा, ‘शायद पांचों की जमानत हो गई है या हाईकोर्ट से बरी हो गए हैं. लेकिन इन्हें तो शाम को छोड़ा जाता…’

उसे कुछ शक हुआ. वह तेजी से जेल की तरह बढ़ा. मेन गेट का दरवाजा खुला हुआ था और अंदर से दोनों संतरियों के चीखने की आवाजें आ रही थीं.

वह संतरी अंदर गया. उस ने अंदर के गेट का दरवाजा खोला. दोनों ने सारी बातें बताईं और तुरंत इमर्जैंसी सायरन के स्विच पर उंगली रखी.

सायरन की आवाज उन पांचों के कानों में पड़ी. वे मेन सड़क तक आ चुके थे. उन्होंने सामने से आती हुई बस देखी और बस के पीछे लटक गए. बसस्टैंड के आने से पहले ही वे पांचों अलगअलग हो गए.

उस ने पहले गांव जाने पर विचार किया, फिर तुरंत अपना इरादा बदला. वह पैदल ही शहर की भीड़भाड़ से गुजरते हुए आगे बढ़ता रहा. वह कहां जा रहा था, उसे खुद पता नहीं था.

वह शहर के बाहर चलते हुए खेतखलिहानों को पार करते हुए एक पहाड़ी पर पहुंचा. पहाड़ी पर एक उजाड़ सा मंदिर बना हुआ था. वह वहीं एक पत्थर पर बैठ गया. उसे नींद आई या वह बेहोश हो गया.

अचानक उस की नींद खुल गई. उसे कुछ खतरे का आभास हुआ. उस ने उजाड़ मंदिर की दीवार की आड़ से देखा. दर्जनभर हथियारबंद पुलिस वाले उसे तेजी से अपनी तरफ बढ़ते हुए दिखाई दिए. वह भागा. नीचे गहरी खाई थी. बड़ीबड़ी चट्टानों के बीच बहती हुई नदी थी. सिपाही उस पर बंदूकें ताने हुए थे.

एक सबइंस्पैक्टर था. उस ने उसे अपनी रिवौल्वर के निशाने पर लेते हुए कहा, ‘‘बचने का कोई रास्ता नहीं है. रुक जाओ, नहीं तो मारे जाओगे.’’

उस ने अपनेआप को पहाड़ से नीचे गिरा दिया. सैकड़ों फुट की ऊंचाई से गिरता हुआ वह पथरीली चट्टान से टकराया. तत्काल उस की मौत हो गई.

जेल से भागने के एक घंटे पहले ही हाईकोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया था. उस की रिहाई के आदेश जारी कर दिए गए थे. बूढ़े बाप तक वकील ने खुद गांव जा कर खबर सुनाई.

पर थोड़ी देर में गांव की चौकी से एक पुलिस वाले ने आ कर उस से कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा 4 लोगों के साथ जेल तोड़ कर भागा था. 3 पकड़े गए हैं. एक भागते हुए ट्रक के नीचे आ गया और तुम्हारे बेटे ने पुलिस से बचने के लिए पहाड़ी से छलांग लगा दी और मर गया.’’

कुछ देर तक बाप सकते में रहा, फिर उस ने अपनेआप से कहा, ‘‘मेरी चिंता खत्म. आज सचमुच रिहा हो गया मेरा बेटा और मैं भी.’’ बाप भी लड़खड़ा कर गिर पड़ा और फिर दोबारा न उठ सका.

ब्रह्म राक्षस : किसने लूटी तारा की इज्जत

‘‘आज से हमारा पतिपत्नी का रिश्ता खत्म हो गया.’’

‘‘क्यों? उस में मेरा क्या कुसूर था?’’

‘‘कुसूर नहीं था, पर तुम्हारे दामन पर कलंक तो लग ही गया है.’’

‘‘तुम मेरे पति थे. तुम्हारे सामने ही मेरी इज्जत लुटती रही और तुम चुपचाप देखते रहे.’’

‘‘उस समय तुम्हारे पिता भी तो थे.’’

‘‘उन्होंने तो मुझे तुम्हें सौंप दिया था.’’

‘‘मैं अकेला क्या कर सकता था? वे लोग गिरोह में थे और सब के पास हथियार थे.’’

‘‘तो तुम मर तो सकते थे.’’

‘‘मेरे मरने से क्या होता?’’

‘‘तुम अमर हो जाते.’’

‘‘नहीं, यह खुदकुशी कहलाती.’’

‘‘अब मेरा क्या होगा?’’

‘‘मुझे 10 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है. हर महीने 5 हजार रुपए तुम्हें दे दिया करूंगा. इस के लिए तुम्हें कोई कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी. तुम चाहो तो दूसरी शादी भी कर सकती हो.’’

‘‘क्या तुम करोगे दूसरी शादी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर तुम मुझे दूसरी शादी करने की क्यों सलाह दे रहे हो?’’

‘‘यह मेरा अपना विचार है.’’

‘‘मैं जाऊंगी कहां?’’

‘‘तुम अपने पिता के साथ मायके चली जाओ.’’

‘‘और तुम?’’

‘‘मैं अकेला रह लूंगा.’’

‘‘क्या, मेरा कलंक अब कभी नहीं मिटेगा?’’

‘‘मिटेगा, जरूर मिटेगा. लेकिन कैसे और कब, नहीं बता सकता.’’

‘‘फिर क्या तुम मुझे अपना लोगे?’’

‘‘यह मेरे जिंदा रहने पर निर्भर करता है. अब तुम मायके जाने की तैयारी करो. बाबूजी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

तारा अपने पिता के साथ मायके चली गई.

उस के पति विक्रम ने उस के जाने के बाद अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. वह गहरी सोच में पड़ गया.

घर की हर चीज तारा की यादों को ताजा करने लगी थी. तारा की जब इज्जत लूटी जा रही थी, तब विक्रम हथियारों के घेरे में बिलकुल कमजोर खड़ा था.

वह नजर उस के दिलोदिमाग को बोझिल बना रही थी. उसे अपने ठंडे खून पर गुस्सा आ रहा था.

तारा ने ठीक ही कहा था, ‘कम से कम मर तो सकते थे.’

क्यों नहीं मरा? वह मौत से क्यों डर गया था?

बहुत से लोगों को उस ने मरते देखा था, फिर भी मौत के डर से छूट नहीं सका. बलात्कारी परशुराम का अट्टहास करता चेहरा बारबार उस की आंखों के सामने घूम रहा था.

डर की एक तेज लहर विक्रम के भीतर से उठी. वह कांप उठा था. सारा शरीर पसीने से गीला हो गया. उसे ऐसा लगने लगा था कि परशुराम का खौफनाक चेहरा उसे जीने नहीं देगा.

बहुत कोशिशों के बावजूद भी विक्रम की आंखों के सामने से उस का चेहरा हट नहीं रहा था. वह चेहरा जैसे हर जगह उस का पीछा करने लगा था, बलात्कार का वह घिनौना नजारा भी उस के साथ ही उभरने लगा था.

तारा का डर और शर्म से भरा चेहरा भी परशुराम के खौफनाक चेहरे के साथ उभरता रहा. उसे याद आया कि किस तरह तारा मदद के लिए बारबार उस की तरफ देखती और वह हर बार उस से अपनी आंखें चुरा लेता था. परशुराम और उस के साथियों की हंसी अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.

तकरीबन एक घंटे बाद बदमाश जा चुके थे. इस के बाद 1-1 कर के धीरेधीरे भीड़ जमा होने लगी थी. सब लोग डरेसहमे बेजान से लग रहे थे. विक्रम पहले की तरह खड़ा रहा, मानो उस के पैर जमीन से चिपक गए हों.

अचानक बाहर शोर सुनाई दिया, तो विक्रम धीरे से उठा. उस ने देखा कि बलात्कारी परशुराम अपने साथियों के साथ फूलमालाओं से लदा मस्ती में जा रहा है.

विक्रम चुपचाप उस भीड़ में शामिल हो गया. कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया. उन के चेहरों पर कुटिल हंसी दिखाई दे रही थी.

भीड़ में से एक आदमी बोला, ‘‘इसी की बीवी के साथ बलात्कार हुआ था, इस की आंखों के सामने. और इस के ससुर भी वहीं थे. इस ने अपनी बीवी से संबंध तोड़ लिया है. अब मौज से दूसरी शादी करेगा. इस की बीवी जिंदगीभर अपना कलंक ढोती रहेगी.’’

‘‘पैसे में बड़ी ताकत होती है. पैसे के बल पर ही तो परशुराम को जमानत मिली है.’’

‘‘तारा से ऐसेऐसे सवाल पूछे जाएंगे, जो दूसरे बलात्कार जैसे ही होंगे. एक बार परशुराम ने तारा के पति और पिता के सामने उस के साथ बलात्कार किया, दूसरी बार बचाव पक्ष के वकील भरी अदालत में जज की मौजूदगी में तारा से उलटेसीधे सवाल पूछेंगे, जिस से उसे दूसरे बलात्कार का एहसास होगा.’’

‘‘गवाही देने की भी हिम्मत कौन करेगा? समाज ही तो पालता है परशुराम जैसे लोगों को.’’

जितने मुंह उतनी बातें.

धीरेधीरे भीड़ छंटने लगी थी. परशुराम के घर पहुंचतेपहुंचते थोड़े ही लोग रह गए थे. विक्रम अभी भी सिर झुकाए उसी भीड़ में चल रहा था. परशुराम को उस के घर पहुंचा कर भीड़ वापस चली गई थी. विक्रम वहीं डरासहमा खड़ा रहा.

परशुराम जैसे ही अंदर जाने लगा, विक्रम ने धीरे से कहा, ‘‘कुछ मेरी भी सुन लो परशुराम दादा.’’

आवाज सुन कर परशुराम पीछे मुड़ा, ‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘यहां नहीं दादा, उस बाग में चलो,’’ विक्रम बोला.

परशुराम ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘वहां क्यों?’’

‘‘दादा, बात ही कुछ ऐसी है.’’

‘‘अच्छा चलो,’’ घमंड से भरा परशुराम विक्रम के साथ बाग तक गया. उस ने सोचा कि यह डरासहमा आदमी उस का क्या कर लेगा.

उस ने अंदर की जेब में रखे अपने कट्टे को टटोला. वहां पहुंच कर उस ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ?’’

‘‘दादा, मैं ने अपनी बीवी को छोड़ दिया है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह दागी हो गई थी न दादा.’’

परशुराम के होंठों पर मुसकान उभर आई. वह बोला, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है विक्रम, पर क्या करता तुम्हारी बीवी चीज ही ऐसी थी.’’

उस का इतना ही कहना था कि विक्रम गुस्से से तमतमा गया, मानो उस के जिस्म में कई हाथियों की ताकत आ गई हो. उस ने परशुराम को अपने हाथों में उठा लिया और उसे जमीन पर तब तक उठाउठा कर पटकता रहा, जब तक कि वह मर नहीं गया.

आसपास के सभी लोग यह नजारा देखते रहे, मगर कोई भी उसे बचाने नहीं आया.

परशुराम की चीखें चारों तरफ गूंजती रहीं, मगर किसी पर उस का असर नहीं हुआ.

परशुराम की हत्या कर विक्रम सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचा, जहां उस ने सारी बातें दोहरा दीं.

पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

तारा को जब इस बात का पता चला, तो वह उस से मिलने जेल आई.

विक्रम ने उसे बड़े ही गौर से देखा और मुसकरा कर कहा, ‘‘तारा, तुम्हारा कलंक मिट गया है. जेल से छूटने के बाद तुम्हें आ कर ले जाऊंगा. मेरा इंतजार करना. करोगी न?’’

‘‘हां, जिंदगीभर,’’ कहतेकहते तारा रो पड़ी.

हैलमैट : क्या हुआ था सबल सिंह और उसकी पत्नी के साथ?

सबल सिंह ने घर से मोटरसाइकिल बाहर निकाली और अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘जल्दी चलो.’’

उन्हें पड़ोसी को देखने अस्पताल जाना था. वे पड़ोसी जिन से उन के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे. कई बार बच्चों को ले कर, कूड़ाकरकट फेंकने को ले कर उन का आपस में झगड़ा हो चुका था.

सबल सिंह अपने नियम से चलते थे. कचरा अपने घर के सामने फेंकते थे. पड़ोसी रामफल का कहना था, ‘या तो कचरा जलाइए या कचरा गाड़ी आती है नगरपालिका की, उस में डालिए.’

‘मैं कचरा गाड़ी का रास्ता देखता रहूं. कभी भी आ जाते हैं. फिर एक मिनट के लिए भी नहीं रुकते,’ सबल सिंह ने कहा था.

‘तो कचरा पेटी में डालिए,’ रामफल ने कहा था.

‘कचरा पेटी घर से एक किलोमीटर दूर है. क्या वहां तक कचरा ले कर जाऊं? यह क्या बात हुई…’

‘तो जला दीजिए.’

‘आप को क्या तकलीफ है? आप मुझ से जलते हैं.’

‘मैं क्यों जलूंगा?’

‘पिछली बार बच्चों के  झगड़ने पर मैं ने आप के बच्चे को डांट दिया था इसलिए…’

‘बच्चे हैं… साथ खेलेंगे तो लड़ेंगे भी और फिर साथ खेलेंगे. आप ने मेरे बच्चे को डांटा, मैं ने तो कुछ नहीं कहा. लेकिन आप के बच्चे को मैं ने डांटा तो आप लड़ने आ गए थे.’

‘मेरे बच्चे को डांटने का हक किसी को नहीं है. उस के मातापिता हैं अभी.’

‘फिर आप ने मेरे बच्चे को क्यों डांटा? उस के मातापिता भी जिंदा हैं.’

‘उसी बात का तो आप बदला लेते रहते हैं. कभी कचरे की आड़ में तो कभी नाली सफाई के नाम पर.’

‘मैं ऐसा आदमी नहीं हूं. सही को सही, गलत को गलत कहता हूं. यह मेरा स्वभाव है.’

‘आप अपना स्वभाव बदलिए. सहीगलत कहने वाले आप कौन होते हैं?’

फिर रामफल कुछ कहते, सबल सिंह उस का जवाब देते. बात से बात निकलती और बहस बढ़ती जाती. बेमतलब का तनाव बढ़ता. मन में खटास आती. रामफल अस्पताल में थे. महल्ले के सभी लोग देखने जा चुके थे.

सबल सिंह की पत्नी ने कहा, ‘‘दूरदूर के लोग मिल कर आ गए हैं. हमारे तो पड़ोसी हैं. हम कोई दुश्मन तो हैं नहीं. पड़ोसियों में थोड़ीबहुत बहस तो होती रहती है. इनसानियत और पड़ोसी धर्म के नाते हमें उन्हें देखने चलना चाहिए.’’

सबल सिंह को बात ठीक लगी. उन्होंने कहा, ‘‘आज शाम को ही चलते हैं.’’ और सबल सिंह ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की. पत्नी बाहर आईं तो उन्होंने कहा, ‘‘आप हैलमैट तो लगा लीजिए.’’

‘‘अभी पुलिस की चैकिंग नहीं चल रही है. तुम बैठो.’’

‘‘हैलमैट पुलिस से बचने के लिए नहीं, बल्कि हमारी हिफाजत के लिए जरूरी है.’’

‘‘पढ़ीलिखी बीवियों का यही तो नुकसान है. उपदेश बहुत देती हैं. तुम बैठो न.’’

रमा मोटरसाइकिल के पीछे बैठ गईं. सबल सिंह ने मोटरसाइकिल की स्पीड बढ़ा दी तो रमा ने कहा, ‘‘धीरे चलिए. मोटरसाइकिल है, हवाईजहाज की तरह मत चलाइए.’’

‘‘मैं इसी तरह चलाता हूं. आप शांति से बैठी रहिए.’’

उन्हें दाएं मुड़ना था. गाड़ी थोड़ी धीमी की और दाईं तरफ घुमा दी, तभी पीछे से कोई जोर से चीखा. चीख के साथ मोटरसाइकिल के ब्रेक की आवाज आई. पीछे वाले की मोटरसाइकिल सबल सिंह की मोटरसाइकिल से टकरातेटकराते बची थी.

वह आदमी चीखा, ‘‘मुड़ते समय इंडीकेटर नहीं दे सकते?’’

सबल सिंह भी चीखे, ‘‘शहर में इतनी तेज गाड़ी क्यों चलाते हो कि कंट्रोल न हो सके?’’

‘‘गलती तुम्हारी थी, तुम्हें इंडीकेटर देना चाहिए,’’ वह आदमी बोला.

‘‘गलती तुम्हारी है, तुम्हें धीरे चलना चाहिए.’’

पीछे वाली मोटरसाइकिल पर 3 लोग बैठे हुए थे.

सबल सिंह ने कहा, ‘‘एक मोटरसाइकिल पर 3 सवारी करना गैरकानूनी है.’’

वह आदमी थोड़ा डर गया. उसे अपनी गलती का अहसास हुआ. वह बिना कुछ बोले आगे निकल गया.

पत्नी रमा ने कहा, ‘‘दूसरों की गलती तो आप तुरंत पकड़ लेते हैं और अपनी गलती का क्या? आप भी तो स्पीड में चल रहे थे.’’

सबल सिंह ने कहा, ‘‘ऐसा करना पड़ता है. सामने वाले की गलती को निकालना जरूरी है, नहीं तो वह चढ़ बैठता हमारे ऊपर.’’

सबल सिंह ने मोटरसाइकिल की स्पीड को फिर बढ़ा दिया. सामने चौक पर उन्होंने देखा कि पुलिस की गाड़ी चैकिंग कर रही थी.

उन्होंने मोटरसाइकिल धीमी की और वापस मोड़ दी.

‘‘क्या हुआ?’’ रमा ने पूछा.

‘‘सामने चैकिंग चल रही है. दूसरे रास्ते से चलना होगा.’’

‘‘आप के पास गाड़ी के कागजात तो हैं.’’

‘‘हां हैं, लेकिन तुम इन पुलिस वालों को नहीं जानतीं. न जाने किस बात का चालान काट दें. इन का तो काम ही है. गाड़ी अपनी, लाइसैंस भी है, फिर भी हमें ही चोरों की तरह छिप कर, रास्ता बदल कर निकलना पड़ता है. ऐसा है कानून हमारे देश का,’’ कहते हुए सबल सिंह ने बाइक मोड़ी और दूसरे रास्ते की ओर घुमा दी.

‘‘अगर इस रास्ते के किसी चौक पर पुलिस वाले चैकिंग करते मिल गए तब क्या करोगे? कोई तीसरा रास्ता भी है?’’ पत्नी रमा ने पूछा.

सबल सिंह चुप रहे. उन्हें आगे गाड़ी रोकनी पड़ी. सुनसान रास्ता था. सामने कुछ लड़के खड़े थे, पूरा रास्ता रोके हुए.

‘‘पुलिस से बचोगे तो गुंडों में फंसोगे. जो कुछ पास में है सब निकाल कर रख दो, नहीं तो लाश मिलेगी दोनों की,’’ कहते हुए एक मजबूत कदकाठी के मवालीटाइप आदमी ने चाकू निकाल कर सबल सिंह पर तान दिया. बाकी मवालियों ने सबल सिंह की घड़ी, मोबाइल फोन, पर्स और चाकूधारी ने रमा का मंगलसूत्र और हाथ में पहनी सोने की अंगूठी उतार ली.

‘‘चलो, भागो यहां से. पुलिस में शिकायत की तो खैर नहीं तुम्हारी,’’ चाकूधारी मवाली ने कहा.

रमा गुस्से में चीख पड़ीं, ‘‘चालान से बचने के चक्कर में लाख रुपए का सामान चला गया.’’

‘‘शुक्र है जान बच गई और मोटरसाइकिल भी. चलो, निकलते हैं. अस्पताल से वापसी पर थाने में रिपोर्ट दर्ज करेंगे,’’ सबल सिंह ने कहा.

किसी तरह वे अस्पताल पहुंचे. सबल सिंह अब कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे. सो, उन्होंने मोटरसाइकिल अस्पताल के स्टैंड पर खड़ी कर दी.

अस्पताल में रामफल से मिले. हालचाल पूछने पर रामफल ने बताया कि उन्हें फर्स्ट स्टेज का कैंसर है.

‘‘फालतू के शौक से खर्चा भी हो और बीमारी भी. अब तो तंबाकू, सिगरेट बंद कर दो,’’ सबल सिंह ने यहां भी अपना ज्ञान बघारा. लेकिन पीड़ित रामफल ने इस का बुरा नहीं माना और कहा, ‘‘मैं तो शुरुआती स्टेज पर हूं.

2-4 लाख रुपए का खर्चा कर के बच भी जाऊंगा शायद. मैं ने तो तोबा कर ली. तुम भी बंद कर दो शराब पीना.’’

‘‘मैं कौन सी रोज पीता हूं?’’ सबल सिंह ने कहा.

‘‘जहर तो थोड़ा भी बहुत होता है,’’ रामफल ने कहा.

रामफल और सबल सिंह यहां भी बहस करने लगे. पत्नी रमा ने इशारा किया, तब शांत हुए. इस के बाद

वे पुलिस चौकी गए. रिपोर्ट लिखाई. हवलदार ने सब से पहला सवाल पूछा, ‘‘पत्नी के साथ उस सुनसान रास्ते से गए ही क्यों थे?’’

झूठा सच्चा जवाब दे कर वे वापस लौटे. इस तरह दिनदहाड़े लुटने से उन्हें खुद पर गुस्सा आ रहा था. इस गुस्से में मोटरसाइकिल की रफ्तार बढ़ती गई. पत्नी रमा उन्हें गाड़ी धीरे चलाने के लिए कहती रहीं, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया. वे बस यही सोच रहे थे कि अब पत्नी के लिए मंगलसूत्र, अंगूठी फिर से बनवानी पड़ेगी. अगर हैलमैट लगा लेते तो क्या चला जाता? थोड़े से बचने के चक्कर में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा.

हैलमैट रखा तो था घर पर. कम से कम परिवार के साथ चलते समय तो हिफाजत का ध्यान रखना चाहिए. पत्नी क्या सोच रही होगी. घर में लोग अलग डांटफटकार करेंगे. बच्चे भी डांटेंगे और मातापिता भी.

तभी सामने से एक मोटरसाइकिल पर 3 लड़के तेज रफ्तार में आ रहे थे. सबल सिंह ने तेजी से हौर्न बजाया. सामने वाला संभल तो गया लेकिन फिर भी बहुत संभालने पर भी हलके से दोनों मोटरसाइकिल टकराईं. थोड़ा सा बैलैंस बिगड़ा लेकिन लड़के ने मोटरसाइकिल संभाल ली और वे भाग निकले.

लेकिन सबल सिंह नहीं संभल पाए. उन की मोटरसाइकिल गिरी. काफी दूर तक घिसटी. पत्नी की चीख सुनी उन्होंने. वे गाड़ी के नीचे दबे पड़े थे. पत्नी उन से थोड़ी दूरी पर बेहोशी की हालत में पड़ी थी.

आतेजाते लोगों में से कुछ उन्हें शराबी, तेज स्पीड से चलने की कहकर निकल रहे थे. कुछ लोगों ने अपना मोबाइल फोन निकाल कर वीडियो बनानी शुरू कर दी. धीरेधीरे भीड़ इकट्ठी हो गई.

सबल सिंह को बहुत दर्द हो रहा था. वे सोच रहे थे, ये कैसे लोग हैं जो घायल लोगों की मदद करने के बजाय मोबाइल फोन से फोटो खींच रहे हैं. वीडियो बना रहे हैं. टक्कर मारने वाले तो भाग निकले. क्या मैं ने भी किसी घायल के साथ ऐसा बरताव किया था. हां, किया था.

वे मदद की गुहार लगा रहे थे. भीड़ इस बात पर टीका टिप्पणी कर रही थी कि गलती किस की है. इन की या उन लड़कों की. समय खराब होता है तो कुछ भी हो सकता है. पुलिस को खबर की जाए या एंबुलैंस को. पता नहीं, औरत जिंदा भी है या मर गई. पुलिस के झंझट में कौन पड़े? इन्हें भी देख कर चलना चाहिए.

वीडियो अपलोड कर के ह्वाट्सऐप, फेसबुक पर भेज दिए गए थे. सबल सिंह को अपने से ज्यादा लोगों की भीड़ कमजोर नजर आ रही थी.

तभी भीड़ को चीरते हुए एक आदमी आया. उस ने भीड़ को डांटते हुए कहा, ‘‘शर्म नहीं आती आप लोगों को. घायलों की मदद करने की जगह तमाशा बना रखा है.’’

फिर उस आदमी ने अपने साथियों को पुकारा. सब ने मिल कर सबल सिंह को मोटरसाइकिल से निकाला. उन की बेहोश पत्नी को अपनी गाड़ी में लिटाया और अस्पताल चलने के लिए कहा.

सबल सिंह के हाथपैर में मामूली चोट लगी थी. पत्नी को होश आ चुका था. उन की कमर में चोट लगी थी.

डाक्टर ने कहा, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. सब ठीक है. अच्छा है, सिर में चोट नहीं लगी, वरना बचना मुश्किल था.’’

सबल सिंह सोच रहे थे कि काश, उन्होंने हैलमैट लगाया होता तो ये सारे झंझट ही नहीं होते.

जीत गई द्रौपदी : एक पत्नी ने खेला गजब का दांव

मैनी गरीब जरूर थी, पर रूप के मामले में बहुत धनवान थी. लंबा शरीर, सुराहीदार गरदन और गोरा रंग. गांव में निकलती तो मनचलों की आंखें उस के उभारों पर टिक जातीं.

गांव में ही रहने वाला मूलन ठाकुर मैनी को देख कर लार गिराता था और हमेशा उस के शरीर को घूरा करता था. और वैसे भी कोई लड़की या औरत मूलन की गंदी नजर से बची नहीं थी.

मैनी भी मूलन की नजर को अच्छी तरह से पहचानती थी. आज तक उस ने खुद को मूलन नाम के कामी मर्द से खुद को बचा कर रखा था.

झोंपड़ी के बाहर साइकिल के खड़खड़ाने की आवाज आई, तो मैनी समझ गई कि उस का मरद ढोला दिनभर आसपास के गांवों में फेरी लगाने के बाद वापस आ गया है. मैनी गुड़ और पानी ले आई.

ढोला खटिया पर बैठ चुका था. गमछे से अपने माथे का पसीना पोंछते हुए उस ने फीकी मुसकराहट से अपनी 7 साल की बेटी बिट्टी को पुचकारा.

बिट्टी किसी खाने वाली चीज की उम्मीद में अपने बापू के हाथों को टटोलने लगी. ढोला ने उसे गोद में उठा कर अपने पास बिठा लिया और उस के सिर पर हाथ फेरने लगा.

मैनी के चेहरे पर नजर जाते ही ढोला की दिनभर की थकान कुछ कम हुई. उस ने गुड़ खाते हुए मैनी का हाथ पकड़ कर उसे पास बिठाने की कोशिश की, पर मैनी उस से दूर छिटकते हुए बोली, ‘‘काहे नहीं और कोई काम करते हैं अब… इस धंधे में हमें अब कोई बरकत नहीं दिखती.’’

मैनी की शिकायत सुन कर ढोला का मुंह लटक गया और वह बोला, ‘‘अरे, अब गांव में भी ये प्लास्टिक के देशी खिलौने कोई नहीं लेता. हर तरफ चीन के बने खिलौने पहुंच गए हैं. विदेशी के सामने देशी खिलौने की क्या औकात…’’

‘‘तो काहे नहीं हमें अपने साथ ले कर चलते हो… गांव के लोग एक औरत को फेरी लगाते देख कर उस की खूबसूरती निहारेंगे तो ज्यादा सामान खरीदेंगे,’’ मैनी ने अपने बड़े उभारों

को थोड़ा सा उचकाते हुए कहा और मुसकराने लगी.

ढोला साइकिल पर बच्चों के खिलौने लाद कर फेरी लगाता था. दिनभर कई किलोमीटर साइकिल चला लेने के बाद भी रोजाना 50-60 रुपए ही कमा पाता था, जो उस के 3 लोगों के परिवार को चलाने के लिए बहुत कम थे.

हालांकि ढोला के पास जमीन का एक छोटा टुकड़ा भी था, जिस में वह बड़ी मेहनत से खेती करता था, पर खेतीकिसानी भी बिना संसाधनों के कहां पनपती है?

बड़ी मुश्किल से थोड़ाबहुत गेहूं पैदा हुआ था इस बार. ढोला के खेत में लगी हुई बालियां सुनहरी हो चुकी थीं. ढोला और मैनी के मन में संतोष था कि चलो गेहूं की फसल होने के चलते उन को भूखा तो नहीं रहना पड़ेगा.

ढोला खुश था कि अब वह अपने लिए देशी शराब की बोतल भी लाएगा. सालभर हो गया है और हलक के नीचे शराब की एक बूंद भी नहीं उतरी है.

रात में ढोला मैनी के पास लेटा तो प्यार जताता हुआ बोला, ‘‘बस मैनी, कुछ दिन की बात और है. एक बार फसल बिक जाए तो हमारी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी और फिर हम यह काम छोड़ कर दुकान कर लेंगे.’’

उन दोनों की आंखों में एक सुनहरा भविष्य करवट ले रहा था.

अगली सुबह जब ढोला खेत की तरफ जाने लगा, तो उस की नजर अपने खेत से उठते धुएं की तरफ गई. किसी खतरे के डर से उस का कलेजा मुंह को आने लगा. वह पूरी ताकत लगा कर दौड़ते हुए खेत के पास पहुंचा.

ओह, यह क्या… ढोला की नजरों के सामने ही पूरी फसल राख हुई जा रही थी और वह सिर्फ खड़े हो कर देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था.

जरूर गांव के किसी आदमी ने ही ढोला से अपनी दुश्मनी निकाली है, पर भला गरीब ढोला से किसी को क्या परेशानी हो सकती थी? यह सवाल बारबार ढोला के मन को कचोटे जा रहा था. उसे रोना आ रहा था, पर रोते भी नहीं बन रहा था.

अब न तो ढोला दारू पी पाएगा और न ही घर के लिए तेल, गुड़ वगैरह खरीद पाएगा… सोचविचार के सांप एक के बाद उसे डसे जाते थे.

फसल जल गई थी. घर में जो राशन बचा था, वह ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते और चल सकता था. इस के बाद तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी… फिर क्या करेगा ढोला? किसी तरह से अपनी पत्नी और बेटी का पेट तो भरना ही है उसे.

इसी सोचविचार में अपने मुंह को लटकाए ढोला घर की तरफ जाता था

कि तभी गांव में रहने वाला बिरजू

उसे देख कर बोला, ‘‘काहे परेशान हो ढोला भाई?’’

ढोला ने उसे अपनी आपबीती कह सुनाई, तो बिरजू बोला, ‘‘तो इस में परेशानी की क्या बात है… मूलन ठाकुर की हवेली पर जुआ चलता है. 10 रुपए की चाल के बदले कोई भी 100 रुपए तक जीत सकता है… और, साथ ही साथ मूलन ठाकुर कभीकभी सब को दारू भी पिलाता है.’’

मुफ्त की दारू का नाम सुनते ही ढोला के मन में दारू पीने की इच्छा जाग गई. फसल तो जाती रही क्यों न चल कर मूलन ठाकुर के यहां जुआ खेल लिया जाए. 10 के बदले 100 रुपए मिलेंगे. 2-3 बार पैसे लगा दिए तो वह मतलब भर का पैसा जीत जाएगा.

ढोला का मन मचल गया, पर दुविधा यह थी कि एक बार दांव लगाने के लिए कम से कम 10 रुपए तो चाहिए थे.

‘10 रुपए तो मैनी आराम से दे सकती है,’ यही सोच कर ढोला लंबे कदमों से घर की ओर बढ़ गया. दरवाजे पर पहुंचा ही था कि अंदर से मैनी के रोने की आवाज ढोला के कानों तक टकराई. फसल में आग लग जाने की बात मैनी तक पहले ही पहुंच चुकी थी.

ढोला ने मैनी को ज्ञान देते हुए कहा, ‘‘जो हो गया है, उस पर दुख करने से क्या फायदा. अब आगे की सोचो और एक महीने पहले जो 10 रुपए मैं ने

तुम्हें दिए थे, वे मुझे ला कर दे दो.

हो सकता है, मैं इस के 10 गुना पैसे ले कर लौटूं…’’

‘‘पर, वे पैसे तो मैं ने चावल लाने के लिए रखे हैं. बिट्टी कई दिन से भात मांग रही है.’’

मैनी ने बहुत नानुकर की, पर भला पति के सामने उस की क्या चलती. थकहार कर मैनी को 10 रुपए ढोला को देने ही पड़े.

मूलन ठाकुर के दरवाजे पर महफिल लगी हुई थी. कई आदमी जुआ खेलने में मसरूफ थे और ठाकुर एक तरफ कुरसी पर बैठा मजे ले रहा था. बीचबीच में नौकर शराब और पकौड़ी ले कर आता और मेज पर रख कर चला जाता.

ढोला को देख कर मूलन ठाकुर के चेहरे पर एक शैतानी मुसकराहट दौड़ गई, ‘‘आओ ढोला, आओ. आज तुम भी अपनी किस्मत आजमाओ… तुम्हारी फसल नहीं रही तो क्या हुआ, यह खेल ही तुम्हारे सब खर्चे पूरे कर देगा.’’

ढोला ने 10 रुपए का नोट रख कर दांव लगाया और पहला दांव वह जीत गया. अब उस के हाथ में 100 रुपए आ गए. ‘कौन कहता है कि पैसे कमाना मुश्किल है,’ ढोला मन ही मन सोच रहा था.

इस के बाद ढोला एक के बाद एक कई दांव जीत चुका था. पूरे 500 रुपए थे उस की मुट्ठी में. उसे जीतता देख कर मूलन ठाकुर भी खेल में शामिल हो गया और फिर पता नहीं क्या हुआ कि ढोला अपनी जीती हुई सारी रकम हार बैठा और खाली हाथ घर पहुंचा.

मैनी को सारी बात बताई, तो वह बिफर पड़ी, ‘‘बिटिया भात मांग रही है और घर में अब कुछ नहीं है. क्या खिलाऊं उसे? और तुम तो फेरी पर नहीं जा रहे… मैं क्या खिलाऊंगी बिट्टी को अब…’’ शराब के नशे में डूबे ढोला को अब कोई बात नहीं समझ में आ रही थी. बिस्तर पर लेटते ही वह नींद से घिर गया.

अगली सुबह जब ढोला जागा, तो उस के मन में जुए की हार को जीत में बदलने की बात चल रही थी. वह घर से मूलन ठाकुर की हवेली की ओर बढ़ चला कि मैनी की आवाज आई, ‘‘बिट्टी के लिए घर में कुछ खाने को नहीं है. क्या करूं?’’

ढोला ने मैनी को यकीन दिलाया कि आज चाहे कुछ भी हो जाए, वह पैसे ले कर ही घर लौटेगा.

जुए का इतिहास बहुत पुराना है और इस बात की गवाही देता है कि जुए के खेल में औरत की आन बहुत जल्दी दांव पर लग जाती है.

ढोला आज भी पहले तो खूब पैसे जीता और फिर बाद में हारने लगा. जब उस के पास कुछ नहीं बचा, तो उस ने अपना खेत दांव पर लगा दिया और फिर खेत भी बहुत आसानी से हारने के बाद उस ने मैनी के गहने दांव पर लगा दिए और गहने भी हार बैठा.

ढोला खेल से उठ गया था, क्योंकि मूलन ठाकुर ने उसे पत्नी के सारे गहने और खेत के कागज ला कर सौंपने को कहा था.

मैनी सन्न रह गई थी कि आज ढोला यह क्या कर आया है. खेत तक हार गया. अब तक वे गरीबी की मार ही झेल रहे थे, पर अब उन्हें भुखमरी भी झेलनी पड़ेगी.

पर क्या कर सकती थी वह अकेली औरत? ढोला के सामने उस की एक न चली. ढोला ने उस के गहने और खेत के कागज छीन लिए और ठाकुर को सौंपने के लिए चल दिया.

देर रात तक जब ढोला घर वापस नहीं आया, तब मैनी उसे खुद ही ढूंढ़ने चल दी.

मैनी जानती थी कि इस समय ढोला कहां पर होगा, इसलिए वह सीधा मूलन के घर जा पहुंची और एक कोने में खड़े हो कर खेल देखने लगी.

ढोला लगातार हार रहा था और ऐसा लग रहा था कि मूलन ठाकुर किसी बुरी नीयत से ढोला को जुआ खेलने के लिए उकसाए जा रहा था.

मैनी ने मन ही मन काफीकुछ सोचा और ठाकुर के सामने आ कर इठलाते हुए बोली, ‘‘ठाकुर साहब, वैसे तो हमारा पसंदीदा खेल गुल्लीडंडा है, पर मेरा ढोला अब थका हुआ लग रहा है, इसलिए आप को एतराज न हो, तो मैं अपने मरद की जगह जुआ खेलूंगी.’’

मूलन ठाकुर ने मैनी को ऊपर से नीचे की तरफ घूरा और अपनी जांघ पर हाथ मार कर जोरजोर से हंसने लगा, ‘‘तू आना ही चाहती है तो आ जा. तेरे साथ तो मजा ही आएगा.’’

ठाकुर की बात के जवाब में मैनी ने कमर मचकाई और पास आ कर बैठ गई.

‘‘हां तो मैनी, बोलो दांव पर क्या लगाती हो?’’ मूलन ठाकुर ने पूछा.

‘‘एक औरत का सब से बड़ा धन तो उस के जेवर होते हैं. मैं इन्हें ही दांव पर लगा सकती थी, पर वे तो मेरा मरद पहले ही हार चुका है और बाकी की कसर उस ने खेत हार कर पूरी कर

दी है.’’

‘‘अरे अब क्या है तेरे पास? और अगर कुछ नहीं बचा तो अपनेआप को भी दांव पर लगा दे. तुझे द्रौपदी बनने का मौका दे रहा हूं. अगर तू हारी तो तेरे बदन पर मेरा हक होगा, तू मेरी रखैल बन कर रहेगी. लगा दे अपने को दांव पर और बन जा द्रौपदी,’’ मूलन ने एक बार फिर अपनी जांघ पर अपना हाथ मारते हुए कहा.

कुछ देर तक मैनी शांत रहने की ऐक्टिंग करती रही और फिर बोली, ‘‘मैं अपनेआप को दांव पर लगा तो दूं, पर मेरी यह शर्त होगी कि मेरे जिस्म पर जीतने वाले का हर तरीके से हक होगा, लेकिन मेरे जेवर और खेत मुझे वापस करने होंगे.’’

मूलन को इस समय सिवा मैनी को जीत कर अपनी रखैल बना कर उस के जिस्म को भोग लेने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा था, इसलिए उस ने मैनी को तुरंत ही उस के जेवर और खेत लौटा देने की हामी भर ली और अब मैनी ने खुद को दांव पर लगा दिया.

मूलन ने जबरदस्त चाल चली और बड़े आराम से दांव जीत गया. मैनी खुद को जुए में हार गई थी और अब वह मूलन ठाकुर की रखैल हो गई थी.

ढोला को अपनी पत्नी का इस तरह से रखैल हो जाना कुछ अजीब सा लग रहा था, इसलिए वह मैनी से शिकायत करने लगा, जिस के बदले में मैनी ने उसे जवाब दिया, ‘‘तुम ने मेरे गहने और खेत जुए में हार कर यह पक्का कर दिया था कि हम आज नहीं तो कल मर ही जाएंगे, पर मैं ने जुए में खुद को हार कर तुम्हें अहसास कराया है कि तुम गलती करने जा रहे थे…’’

मैनी ने ढोला से यह भी कहा कि जुए में जो आदमी अपनी पत्नी के गहने और खेत दांव पर लगा सकता है, वह कल अपनी पत्नी को भी जुए में हार सकता है, इसलिए ढोला को सजा के तौर पर अकेले ही जिंदगी काटनी होगी, जबकि उस की बेटी मैनी के साथ रहेगी.

मैनी यह बात अच्छी तरह जानती थी कि ढोला की माली हालत इस लायक नहीं रह गई थी कि वह अपनी बेटी को दोनों समय का खाना खिला सके, इसलिए उस ने अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और एक तरह से अपने पति ढोला और बिट्टी की जिंदगी की हिफाजत भी की.

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