प्यार के लिए दबंगई कहां तक जायज

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के लाइनपार इलाके के रहने वाले महावीर सिंह सैनी के परिवार में उस की पत्नी शारदा के अलावा एक बेटा अंकित और 3 बेटियां थीं. 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी. तीसरे नंबर की बेटी पूनम 9वीं कक्षा में पढ़ रही थी. महावीर राजमिस्त्री था. रोजाना की तरह 10 दिसंबर, 2016 को भी वह अपने काम पर चला गया था. बेटा अंकित ट्यूशन पढ़ने गया था. घर पर शारदा और उस की बेटी पूनम ही थी. सुबह करीब 10 बजे जब शारदा नहाने के लिए बाथरूम में गई तब पूनम घर के काम निपटा रही थी. शारदा को बाथरूम में घुसे 5-10 मिनट ही हुए थे कि उस ने चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुनीं. चीख उस की बेटी पूनम की थी.

चीख सुन कर शारदा घबरा गई. उस ने बड़ी फुरती से कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर निकली तो देखा पूनम आग की लपटों से घिरी थी. उस के शरीर पर आग लगी थी. शोर मचाते हुए वह पूनम के कपड़ों की आग बुझाने में लग गई. उस की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. किसी तरह उन्होंने बुझाई. तब तक पूनम काफी झुलस चुकी थी और बेहोश थी. आननफानन में लोग उसे राजकीय जिला चिकित्सालय ले गए. बेटी के शरीर के कपड़ों में लगी आग बुझाने की कोशिश में शारदा के हाथ भी झुलस गए थे.

अस्पताल से इस मामले की सूचना पुलिस को दे दी गई. कुछ ही देर में थाना मझोला के थानाप्रभारी नवरत्न गौतम पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. खबर मिलने पर पूनम के पिता महावीर भी अस्पताल आ गए. डाक्टरों के इलाज के बाद पूनम होश में आ गई थी. पूनम के बयान लेने जरूरी थे. इसलिए पुलिस ने इलाके के मजिस्ट्रैट को सूचना दे कर अस्पताल बुलवा लिया.

पुलिस और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में पूनम ने बताया कि शिवदत्त ने उस के ऊपर केरोसिन डाल कर आग लगाई थी. उस के साथ उस के पिता महीलाल भी थे. शिवदत्त पूनम के घर के पास चामुंडा वाली गली में रहता था. पता चला कि वह पूनम से एकतरफा प्यार करता था.

थानाप्रभारी नवरत्न गौतम ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. मामला मुरादाबाद शहर का ही था इसलिए तत्कालीन एसएसपी दिनेशचंद्र दूबे और एएसपी डा. यशवीर सिंह जिला अस्पताल पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने पूनम का इलाज कर रहे डाक्टरों से बात की.

तब तक पूनम की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ने लगी थी. डाक्टरों ने उसे किसी दूसरे अस्पताल ले जाने की सलाह दी. पूनम के घर वालों ने उसे दिल्ली ले जाने को कहा तो जिला अस्पताल से पूनम को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के लिए रैफर कर दिया गया.

महावीर की तहरीर पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली. चूंकि पूनम ने शिवदत्त और उस के पिता पर आरोप लगाया था, इसलिए पुलिस ने शिवदत्त के घर दबिश दी पर उस के घर कोई नहीं मिला. पुलिस संभावित जगहों पर उन्हें तलाश करने लगी, पर दोनों बापबेटों में से कोई भी पुलिस के हत्थे नहीं लगा.

उधर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती पूरम की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. उस की हालत बिगड़ती जा रही थी. बर्न विभाग के डाक्टरों की टीम पूनम को बचाने में लगी हुई थी पर उन्हें सफलता नहीं मिल सकी. आखिर 10 दिसंबर की रात को ही पूनम ने दम तोड़ दिया.

अगले दिन जवान बेटी की हृदयविदारक मौत की खबर जब उस के मोहल्ले वालों को मिली तो पूरे मोहल्ले में जैसे मातम छा गया. आरोपी को अभी तक गिरफ्तार न किए जाने से लोग आक्रोशित थे. कहीं लोगों का गुस्सा भड़क न जाए इसलिए उस इलाके में भारी तादाद में पुलिस तैनात कर दी गई.

रविवार होने की वजह से पूनम की लाश का पोस्टमार्टम सोमवार 12 दिसंबर को हुआ. दोपहर बाद उस की लाश दिल्ली से मुरादाबाद लाई गई. पुलिस मोहल्ले के गणमान्य लोगों से बात कर के माहौल को सामान्य बनाए रही. अंतिम संस्कार के समय भी भारी मात्रा में पुलिस थी.

उधर पुलिस की कई टीमें आरोपियों को तलाशने में जुटी हुई थीं. जांच टीमों पर एसएसपी का भारी दबाव था. आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. 12 दिसंबर को पुलिस ने शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया. उस के गिरफ्तार होने के बाद लोगों का गुस्सा शांत हुआ.

थाने ला कर एसएसपी और एएसपी के सामने थानाप्रभारी नवरत्न गौतम ने अभियुक्त से पूछताछ की तो पहले तो वह पुलिस को बेवकूफ बनाने की कोशिश करता रहा पर उस का यह झूठ ज्यादा देर तक पुलिस के सामने नहीं टिक सका. उस ने पूनम को जलाने का अपराध स्वीकार कर उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

जिला मुरादाबाद के लाइनपार इलाके में मंडी समिति गेट के सामने की बस्ती में रहने वाला महावीर सिंह अपने राजगीर के काम से परिवार का पालनपोषण कर रहा था. इसी की कमाई से वह 2 बेटियों की शादी कर चुका था. पूनम 9वीं की पढ़ाई के साथ महिलाओं के कपड़े सिलती थी. घर के पास ही उस ने बुटीक खोल रखा था.

उस के घर के पास ही महीलाल का मकान था. महीलाल का बेटा शिवदत्त बदमाश प्रवृत्ति का था. उस की दोस्ती मंडी समिति के पास स्थित बिजलीघर में तैनात कर्मचारियों के साथ थी. उन्हीं की वजह से उसे ट्रांसफार्मर रखने के लिए बनाए जाने वाले चबूतरों का ठेका मिल जाता था.

चूंकि शिवदत्त का पड़ोसी महावीर राजमिस्त्री था, इसलिए उसी के द्वारा वह चबूतरे बनवा देता था. इस से कुछ पैसे शिवदत्त को बच जाते थे. काम की वजह से शिवदत्त का महावीर के घर आनाजाना शुरू हो गया था.

महावीर की छोटी बेटी पूनम पर शिवदत्त की नजर पहले से ही थी. जब भी वह घर से निकलती तो वह उसे ताड़ता रहता था. पर पूनम ने उसे लिफ्ट नहीं दी. जब शिवदत्त का पूनम के घर आनाजाना शुरू हो गया तो उस ने पूनम के नजदीक पहुंचने की कोशिश की.

जब वह पूनम को ज्यादा ही परेशान करने लगा तो एक दिन पूनम ने इस की शिकायत अपनी मां से कर दी. इस के बाद शारदा ने यह बात पति को बताई तो महावीर ने शिवदत्त के पिता महीलाल से शिकायत करने के साथ शिवदत्त से बातचीत बंद कर दी. इस के अलावा उस ने अपने घर आने को भी उसे साफ मना कर दिया.

शिवदत्त दबंग था. महावीर द्वारा उस के पिता से शिकायत करने की बात उसे बहुत बुरी लगी. वह पूरी तरह से दादागिरी पर उतर आया और अब पूनम को खुले रूप से धमकी देने लगा कि वह उस से शादी करे नहीं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. महावीर ने फिर से महीलाल से शिकायत की. इस बार महीलाल ने अपने बेटे शिवदत्त का ही पक्ष लिया.

महावीर कोई लड़ाईझगड़ा नहीं करना चाहता था. बात बढ़ाने के बजाय वह चुप हो कर बैठ गया. महावीर के रिश्तेदारों और मोहल्ले के कुछ लोगों ने उस से थाने में शिकायत करने का सुझाव दिया पर बेटी की बदनामी को देखते हुए वह थाने नहीं गया.

महावीर के चुप होने के बाद शिवदत्त का हौसला और बढ़ गया. वह पूनम को और ज्यादा तंग करने लगा. इतना ही नहीं, वह कई बार पूनम के घर तमंचा ले कर भी पहुंचा.

हर बार वह उस से शादी करने की धमकी देता. घटना से एक दिन पहले भी वह पूनम के घर गया. तमंचा निकाल कर उस ने धमकी दी कि वह शादी के लिए अभी भी मान जाए वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहे.

10 दिसंबर को शिवदत्त फिर से पूनम के घर जा धमका. उस दिन वह अपने साथ एक केन में केरोसिन भी ले गया था. पूनम उस समय घर में झाड़ू लगा रही थी, तभी उस ने उस पर केरोसिन उड़ेल कर आग लगा दी और वहां से भाग गया.

शिवदत्त से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

तत्कालीन एसएसपी दिनेशचंद्र दूबे का कहना था कि इस मामले में शिवदत्त के अलावा और कोई दोषी पाया गया तो उस के खिलाफ भी कानूनी काररवाई की जाएगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेबी को पति नहीं प्रेमी पसंद है

14 नवंबर, 2016 की शाम उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना नैनी के मोहल्ला करबला का रहने वाला मोहम्मद हुसैन रोज की अपेक्षा आज कुछ जल्दी ही घर आ गया था. हाथमुंह धोने के बाद वह चाय पी कर टीवी देखते हुए 2 साल की बेटी शैजल के साथ खेलने लगा तो पत्नी बेबी ने पास आ कर कहा, ‘‘लगता है, अब आप को कहीं नहीं जाना?’’

‘‘क्यों, कोई काम है क्या?’’

‘‘हां, अगर आप को कहीं नहीं जाना तो चल कर मेरे मोबाइल का चार्जर खरीदवा लाओ. कितने दिनों से खराब पड़ा है. दूसरे का चार्जर मांग कर कब तक काम चलेगा.’’

हुसैन बेबी की बात को टाल नहीं सका और फौरन तैयार हो गया. बेबी को भी साथ जाना था, इसलिए वह भी फटाफट तैयार हो गई. बेटी को उस ने सास के हवाले किया और पति के साथ बाजार के लिए चल पड़ी.

मोबाइल शौप उन के घर से महज 2 सौ मीटर की दूरी पर थी. जैसे ही दोनों दुकान के सामने पहुंचे, एक मोटरसाइकिल उन के सामने आ कर रुकी. मोटरसाइकिल सवार हेलमेट लगाए था, इसलिए कोई उसे पहचान नहीं सका. पतिपत्नी कुछ समझ पाते, उस के पहले ही उस ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और हुसैन के सीने पर रख कर गोली दाग दी.

गोली लगते ही हुसैन जमीन पर गिर पड़ा. शाम का समय था इसलिए बाजार में काफी भीड़भाड़ थी. पहले तो लोगों की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ. लेकिन जैसे ही लोगों को सच्चाई का पता चला, बाजार में अफरातफरी मच गई. धड़ाधड़ दुकानों के शटर गिरने लगे. इस अफरातफरी का फायदा उठा कर बदमाश भाग गया. कोई भी उसे पकड़ने की हिम्मत नहीं कर सका.

हुसैन का घर घटनास्थल के नजदीक ही था, इसलिए उसे गोली मारे जाने की सूचना जल्दी ही उस के घर तक पहुंच गई. खून से लथपथ जमीन पर पड़ा हुसैन तड़प रहा था. बेबी उस का सिर गोद में लिए रो रही थी.

सूचना मिलते ही आननफानन में हुसैन के घर वाले और पड़ोसी आ गए थे. घटना की सूचना पा कर थाना नैनी की पुलिस भी आ गई थी. चूंकि हुसैन की सांसें चल रही थीं, इसलिए पुलिस और घर वाले उसे उठा कर पास के एक नर्सिंगहोम में ले गए. उस की हालत काफी नाजुक थी, इसलिए नर्सिंगहोम के डाक्टरों ने उसे स्वरूपरानी नेहरू जिला चिकित्सालय ले जाने की सलाह दी. लेकिन हुसैन की हालत प्रति पल बिगड़ती ही जा रही थी.

पुलिस हुसैन को ले कर जिला अस्पताल ले गई लेकिन वहां पहुंचतेपहुंचते उस की मौत हो चुकी थी. वहां के डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. हुसैन की मौत की जानकारी होते ही उस के घर में कोहराम मच गया. मां और पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. इस हत्या की सूचना पा कर एसपी (गंगापार) ए.के. राय, सीओ करछना बृजनंदन एवं नैनी समेत कई थानों की पुलिस आ गई थी.

हुसैन के बड़े भाई नफीस की तहरीर पर थाना नैनी पुलिस ने हुसैन की बीवी बेबी और उस के प्रेमी सल्लन मौलाना के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर बेबी को तुरंत हिरासत में ले लिया था.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद हुसैन का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया था. उस के अंतिम संस्कार के बाद बेबी से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह खुद को निर्दोष बताती रही, लेकिन जब पुलिस ने मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए सवालों की झड़ी लगाई तो वह असलियत छिपा नहीं सकी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने पति की हत्या उस के दोस्त सल्लन मौलाना से कराई थी. इस के बाद पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 16 नवंबर को छिवकी जंक्शन से सल्लन को भी गिरफ्तार कर लिया था.

थाना नैनी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में मृतक हुसैन की पत्नी बेबी बेगम और दोस्ती में दगा देने वाले सल्लन ने हुसैन की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

इलाहाबाद में यमुनापार स्थित थाना नैनी के मुरादपुर करबला निवासी मोहम्मद हुसैन का निकाह सन 2013 में कोरांव गांव की रहने वाली बेबी के साथ हुआ था. हुसैन औटो चलाता था. वह इतना कमा लेता था कि परिवार हंसीखुशी से रह रहा था. शादी के करीब साल भर बाद ही वह बेटी शैजल का बाप बन गया तो उस का परिवार भरापूरा हो गया.

हुसैन की दोस्ती मोहल्ला लोकपुर के रहने वाले सल्लन से थी, जो थाना नैनी का हिस्ट्रीशीटर था. मुरादपुर अरैल में उस की तूती बोलती थी. वह मौलाना के नाम से मशहूर था. सल्लन मोहम्मद हुसैन के घर भी आताजाता था. इसी आनेजाने में कब सल्लन और हुसैन की पत्नी बेबी की आंखें चार हो गईं, हुसैन को पता नहीं चला. क्योंकि वह तो अपने दोस्त सल्लन पर आंखें मूंद कर विश्वास करता था.

आंखें चार होने के बाद सल्लन अपने दोस्त हुसैन की अनुपस्थिति में भी उस के घर आनेजाने लगा. जैसे ही हुसैन औटो ले कर घर से निकलता, बेबी सल्लन को फोन कर के घर बुला लेती. इस के बाद दोनों ऐश करते. ऐसी बातें छिपी तो रहती नहीं, सल्लन और बेबी के संबंधों की जानकारी पहले मोहल्ले वालों को, उस के बाद हुसैन तथा उस के घर वालों को हो गई.

लेकिन सल्लन के डर से कोई सीधे उस से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. लेकिन जब मोहल्ले वाले हुसैन और उस के घर वालों पर तंज कसने लगे तो घर वालों ने हुसैन पर सल्लन से दोस्ती खत्म कर के उस के घर आनेजाने पर पाबंदी लगाने को कहा. उन का कहना था कि अगर इसी तरह चलता रहा तो बेबी नाक कटवा सकती है.

उस समय तो हुसैन कुछ नहीं बोला, लेकिन पत्नी की बेवफाई पर वह तड़प कर रह गया. दोस्त सल्लन की करतूत सुन कर उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इतना सब जानने के बाद भी उस ने सल्लन से कुछ नहीं कहा. इसलिए उस की और सल्लन की दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा. अलबत्ता हुसैन ने बेबी पर जरूर शिकंजा कसा. उस ने उसे समझाया कि वह जो कर रही है, वह ठीक नहीं है.

बेबी ने हुसैन को सफाई दी कि लोग उसे बिनावजह बदनाम कर रहे हैं. कभीकभार सल्लन उसे पूछने घर आ जाता है तो क्या वह उसे घर से भगा दे. बेबी ने सफाई भले दे दी, लेकिन वह समझ गई कि पति को उस के और सल्लन के संबंधों का पता चल गया है. यही नहीं, उसे यह भी पता चल गया था कि इस की शिकायत हुसैन के भाई हसीन ने की थी. इसलिए उस ने सल्लन से उसे सबक सिखाने के लिए कह दिया ताकि दोनों आराम से मौजमस्ती कर सकें.

हसीन ने जो किया था, वह सल्लन को बुरा तो बहुत लगा लेकिन न जाने क्यों वह शांत रहा. शायद ऐसा उस ने हुसैन की वजह से किया था. उस के बाद उस ने हुसैन के घर भी आनाजाना कम कर दिया था. लेकिन मौका मिलते ही बेबी से मिलने जरूर आ जाता था. इसी का नतीजा यह निकला कि एक दिन हुसैन दोपहर में घर आ गया और उस ने बेबी व सल्लन को रंगेहाथों पकड़ लिया.

सल्लन तो सिर झुका कर चला गया, लेकिन बेबी कहां जाती. पत्नी की कारगुजारी आंखों से देख कर हुसैन का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. क्योंकि उस पर भरोसा कर के उस ने घर वालों तक की बात नहीं मानी थी. उस गुस्से में हुसैन ने बेबी की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद बेबी ने कान पकड़ कर माफी मांगी कि अब वह इस तरह की गलती दोबारा नहीं करेगी.

हुसैन ने पत्नी को माफ तो कर दिया, लेकिन अब उसे न तो पत्नी पर भरोसा रहा और न दोस्त सल्लन पर. इसलिए वह दोनों पर नजर रखने लगा. बेबी ने पति से माफी जरूर मांग ली थी, लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आई.

चोरीछिपे वह सल्लन से फोन पर बातें करती रहती. इस का नतीजा यह निकला कि सन 2016 के जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में वह सल्लन के साथ भाग गई. इस से मोहल्ले और रिश्तेदारी में काफी बदनामी हुई. इस के बाद दोनों के घर वालों के बड़ेबुजुर्गों के हस्तक्षेप के बाद हुसैन और उस के घर वाले बेबी को अपने घर ले आए.

दरअसल, बेबी के मायके वालों को उस की यह हरकत काफी बुरी लगी थी. वे नहीं चाहते थे कि बेबी अपना अच्छाखासा बसाबसाया घर बरबाद कर के एक गुंडे के साथ रहे. क्योंकि इस से उन की भी बदनामी हई थी. सब के दबाव में हुसैन बेबी को घर तो ले आया था लेकिन घर आने के बाद उस ने उस की जम कर धुनाई की थी.

महीने, 2 महीने तक तो सब ठीक रहा, लेकिन इस के बाद बेबी फिर पहले की तरह फोन पर अपने यार सल्लन से बातें करने लगी. शायद उसी के कहने पर सल्लन ने हुसैन के छोटे भाई पर गोली चलाई थी, जिस में वह बालबाल बच गया था. हसीन ने इस वारदात की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो इस बार भी बड़ेबुजुर्गों ने बीच में पड़ कर दोनों पक्षों का थाने में समझौता करा दिया.

बेबी से सल्लन की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. यही हाल सल्लन का भी था. दोनों ही एकदूसरे के बिना रहने को तैयार नहीं थे. लेकिन बेबी ऐसा नाटक कर रही थी, जैसे हुसैन ही अब उस का सब कुछ है.

पत्नी में आए बदलाव से हुसैन पिछली बातें भूल कर उसे माफ कर चुका था. हुसैन की यह अच्छी सोच थी, जबकि बेबी कुछ और ही सोच रही थी. अब वह पति को राह का कांटा समझने लगी थी, जिसे वह जल्द से जल्द निकालने पर विचार कर रही थी. क्योंकि अब वह पूरी तरह सल्लन की होना चाहती थी.

मन में यह विचार आते ही एक दिन उस ने प्रेमी से बातें करतेकरते रोते हुए कहा, ‘‘सल्लन, अब मुझ से तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हुसैन मुझे छूता है तो लगता है कि मेरे शरीर पर कीड़े रेंग रहे हैं. अब तुम मुझे हुसैन से मुक्त कराओ या मुझे मार दो. ये दोहरी जिंदगी जीतेजीते मैं खुद तंग आ गई हूं.’’

बेबी की बातें सुन कर सल्लन तड़प उठा. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें मरने की क्या जरूरत है. मरेंगे तुम्हारे दुश्मन. बेबी, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. तुम कह रही हो तो मैं जल्दी ही प्यार की राह में रोड़ा बन रहे हुसैन को ठिकाने लगाए देता हूं.’’

इस के बाद बेबी और सल्लन ने मोबाइल फोन पर ही हुसैन को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसी योजना के अनुसार, 14 नवंबर, 2016 की शाम बेबी हुसैन को चार्जर खरीदवाने के बहाने लोकपुर मोहल्ला स्थित मोबाइल शौप पर ले आई, जहां पहले से घात लगाए बैठे सल्लन मौलाना ने गोली मार कर हुसैन की हत्या कर दी.

सल्लन की निशानदेही पर थाना नैनी पुलिस ने 315 बोर का देसी पिस्तौल और एक जिंदा कारतूस बरामद कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने सल्लन और बेबी को इलाहाबाद अदालत में पेश किया था, जहां से दोनों को जिला कारागार, नैनी भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मजा, जो बन गया सजा

न्यू आगरा के रहने वाले रामप्रसाद ने मंजू की शादी कर के यही सोचा था कि वह बेटी से मुक्ति पा गए हैं. लेकिन मंजू को न पति अच्छा लगा था, न उस के घर वाले. यही वजह थी कि एक बेटी पैदा होने के बाद भी वह ससुराल में मन नहीं लगा पाई और एक दिन बेटी को ले कर बाप के घर आ गई.

बेटी ससुराल वालों से लड़ाईझगड़ा कर के हमेशा के लिए मायके आ गई है, यह बात न तो रामप्रसाद को अच्छी लगी थी और न उन की पत्नी को. उन्होंने मंजू को ऊंचनीच समझा कर ससुराल भेजना चाहा तो उस ने साफ कह दिया कि उन्हें उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है, वह कहीं नौकरी कर के अपना और बेटी का गुजारा कर लेगी.

मंजू ने यह बात कही ही नहीं, बल्कि कोशिश कर के नौकरी कर भी ली. उसे एक कंपनी में चपरासी की नौकरी मिल गई थी. इस के बाद वह निश्चिंत हो गई, क्योंकि उसे वहां से गुजारे लायक वेतन मिल जाता था. रहने के लिए पिता का घर था ही.

मंजू अपनी नौकरी पर औटो से आतीजाती थी. इसी आनेजाने में कभी मंजू की मुलाकात औटोचालक करन शर्मा से हुई तो दोनों में जल्दी ही जानपहचान हो गई.

करन अकसर मंजू को अपने औटो से लाने ले जाने लगा तो धीरेधीरे उन की यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई. उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन यहां परेशानी यह थी कि दोनों ही शादीशुदा नहीं, बच्चे वाले थे.

मंजू तो खैर पति को छोड़ कर आ गई थी, लेकिन करन शर्मा तो पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा था. इस के बावजूद वह मजा लेने के चक्कर में मंजू से प्यार कर बैठा.

करीब 7 साल पहले करन की शादी भावना से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे  बेटा ललित और बेटी आयुषि. भावना अपने इस छोटे से परिवार में खुश थी. प्यार करने वाला पति था तो सुंदर से 2 बच्चे. इन्हीं सब की देखभाल में उस का समय बीत जाता था.

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लेकिन अचानक मंजू ने उस के प्यार में सेंध लगा दी थी. मंजू के ही चक्कर में पड़ कर करन देर से घर आने लगा. वह भावना को घर का खर्च भी कम देने लगा. इस की वजह यह थी कि अब वह अपनी कमाई का एक हिस्सा मंजू पर खर्च करने लगा था.

कुछ दिनों तक तो भावना की समझ में ही नहीं आया कि पति में यह बदलाव कैसे आ गया? लेकिन जब उस ने देखा कि करन देर रात तक न जाने किस से फोन पर बातें करता रहता है तो उसे संदेह हुआ. उस ने पूछा भी कि इतनी रात तक वह किस से बातें करता रहता है? करन ने लापरवाही से कह दिया कि उस का एक दोस्त है, उसी से वह बातें करता है.

आखिर बहाना कब तक चलता. भावना को लगा कि पति झूठ बोल रहा है तो उसे डर लगा कि पति कहीं किसी गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहा है. भावना का डर गलत भी नहीं था.

उधर मंजू के दबाव में करन ने उस से नोटरी के यहां शादी कर ली थी. शादी के बाद मंजू मायके में नहीं रहना चाहती थी, इसलिए करन ने थाना सिकंदरा की राधागली में किराए पर एक कमरा ले लिया और उसी में दोनों पतिपत्नी के रूप में रहने लगे. मंजू की बेटी इच्छा भी उसी के साथ रह रही थी.

मंजू को लगता था कि वह करन को अपने प्यार की डोर में इस तरह से बांध लेगी कि वह अपनी ब्याहता पत्नी को भूल जाएगा. जबकि वास्तविकता यह थी कि करन 2 नावों की सवारी कर रहा था. वह मंजू से इस तरह मिल रहा था कि भावना को पता न चले, क्योंकि वह जानता था कि अगर उसे पता चल गया तो घर में तूफान आ जाएगा.

यही वजह थी कि करन रात में मंजू के यहां जाता तो कोई न कोई बहाना बना कर जाता था. लेकिन पति के बदले हावभाव से परेशान हो कर भावना ने उस की शिकायत ससुर से कर दी. राधेश्याम ने बेटे को डांटफटकार कर तरीके से रहने को कहा. भावना ने भी धमकी दी कि अगर वह ढंग से नहीं रहा तो वह बच्चों को छोड़ कर मायके चली जाएगी.

पत्नी की इस धमकी से करन डर गया, क्योंकि अगर पत्नी घर छोड़ कर चली जाती तो वह बच्चों को कैसे संभालता? आखिर पत्नी की धमकी के आगे करन ने सरेंडर कर दिया और मंजू से मिलनाजुलना कम कर दिया. उस के इस व्यवहार से मंजू को लगा कि वह परेशानी में फंस गई है, क्योंकि करन से शादी करने के बाद वह नौकरी भी छोड़ चुकी थी. अब वह पूरी तरह से करन पर ही निर्भर थी. मकान के किराए के अलावा घर के खर्चे की भी चिंता थी.

एक दिन ऐसा भी आया, जब करन का मोबाइल फोन बंद हो गया. मंजू परेशान हो उठी. करन के बिना वह कैसे रह सकती थी? वह मायके भी नहीं जा सकती थी. करन के घर का पता भी उस के पास नहीं था. आखिर औटो वालों की मदद से उस ने करन को खोज निकाला.

मंजू करन के घर पहुंच गई. उस ने करन से साथ चलने को कहा तो भावना भड़क उठी. मंजू को भलाबुरा कहते हुए भावना ने कहा कि करन उसे छोड़ कर कैसे जा सकता है. उस ने उस से ब्याह किया है. उस से उस के 2 बच्चे हैं.

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मंजू और भावना में लड़ाई होने लगी. शोर सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए. किसी ने थाना पुलिस को फोन कर दिया. सूचना पा कर थाना सिकंदरा के थानाप्रभारी ब्रजेश पांडेय करन के घर पहुंच गए. वह करन, मंजू और भावना को थाने ले आए.

तीनों की बातें सुन कर ब्रजेश पांडेय की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? एक आदमी ने मौजमस्ती के लिए 2 औरतों और 3 बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया था. करन को न मंजू छोड़ रही थी और न भावना. छोड़ती भी कैसे, दोनों का भविष्य अब उसी पर टिका था. इस परेशानी को ध्यान में रख कर थानाप्रभारी ब्रजेश पांडेय ने कहा कि करन एक महीने मंजू के साथ रहेगा और एक महीने भावना के साथ. जब तक वह जिस के साथ रहेगा, उस की कमाई पर उसी का हक होगा.

मंजू को यह समझौता कतई मंजूर नहीं था, क्योंकि उस का रिश्ता तो रेत की दीवार की तरह था, जो कभी भी ढह सकती थी. लेकिन भावना इस समझौते पर राजी थी. मंजू ने इस समझौते का विरोध करते हुए कहा कि एक दिन करन उस के साथ रहेगा और एक दिन भावना के साथ.

हालांकि इस समझौते का कोई कानूनी मूल्य नहीं था, फिर भी ब्रजेश पांडेय ने एक कागज पर लिखवा कर दोनों औरतों और करन के दस्तखत करवा लिए. इस समझौते से जहां मंजू ने राहत की सांस ली, वहीं भावना को मजबूरी में सौतन के लिए अपने पति का बंटवारा करना पड़ा.

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करन ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा भी होगा, इसलिए अब वह परेशान था. उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था, लेकिन उस ने जो गलती की थी, अब उस का खामियाजा तो उसे भोगना ही था.

थानाप्रभारी ने जो समझौता कराया था, करन के घर वालों ने उस का सख्ती से विरोध किया. जब इस समझौते की खबर अखबारों में छपी तो सभी हैरान थे कि एक पुलिस अधिकारी ने ऐसा समझौता कैसे करा दिया? बात उच्चाधिकारियों तक पहुंची तो कोई बवाल होता, उस के पहले ही इंसपेक्टर ब्रजेश पांडेय का तबादला कर दिया गया.

कुछ भी हो, मंजू को लग रहा है कि उस की अपनी गृहस्थी बस गई है. करन अब एक दिन उस के साथ रहता है तो अगले दिन भावना के साथ. उस दिन वह जो कमाता है, उसे देता है जिस के साथ रहता है. लेकिन करन का लगाव भावना और अपने बच्चों के प्रति अधिक था, इसलिए अब वह मंजू पर उतना ध्यान नहीं देता, जितना देना चाहिए. इस से आए दिन उस का मंजू से झगड़ा होता रहता है.

करन ने जो गलती की है, अब वह उस का खामियाजा भोग रहा है. उसे भी कहां सुख मिल रहा है. कभी वह मंजू की ओर भागता है तो कभी भावना की ओर. परेशानी की बात तो यह है कि अभी इस समझौते को हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, खींचतान शुरू हो गई है. आगे क्या होगा, कौन जानता है.

आखिर एक आदमी की गलती से 2 औरतों और 3 बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. उस का भी क्या होगा, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है. यह समझौता भी कितने दिनों तक चलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.

जिंदगी में दौलत ही सब कुछ नहीं होती

दर्शन सिंह पंजाब के जिला कपूरथला के गांव अकबरपुर स्थित अपनी आलीशान कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी स्वराज कौर के अलावा 2 बेटे कमलजीत सिंह और संदीप सिंह थे. संपन्न परिवार वाले दर्शन सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने दोनों बेटों की शादी कर दी थी. बड़े बेटे कमलजीत सिंह की शादी उन्होंने अपने एक दोस्त की बेटी राजेंद्र कौर से और छोटे संदीप सिंह की राजदीप कौर के साथ की थी. दर्शन सिंह एक रसूखदार व्यक्ति थे, इसलिए उन का पूरे गांव में दबदबा था. पर कुछ साल पहले एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद उन की पत्नी स्वराज कौर अपने परिवार पर पति जैसा दबदबा कायम नहीं रख पाईं, खासकर दोनों बहुओं पर.

समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहा. कमलजीत और संदीप सिंह 3 बच्चों के पिता बन गए. इस बीच कमलजीत सिंह अपने किसी रिश्तेदार की मदद से इंग्लैंड जा कर नौकरी करने लगा. कुछ समय बाद संदीप सिंह भी फ्रांस जा कर नौकरी पर लग गया.

बेटों के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर ने खेती की जमीन ठेके पर दे दी थी. दोनों बेटे विदेश से हर महीने मोटी रकम घर भेज रहे थे. स्वराज कौर को बस एक चिंता थी कि उस के पोतापोती पढ़लिख कर काबिल बन जाएं.

विदेश में रह कर दोनों भाई पैसे कमाने में लगे थे तो इधर गांव में उन की पत्नियों के रंगढंग बदलने लगे थे. एक साल बाद जब छुट्टी ले कर दोनों भाई गांव लौटे तो अपनेअपने पति द्वारा लाए हुए महंगे व अत्याधुनिक उपहार देख कर राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की आंखें चुंधियां गईं.

पति के मुंह से विदेशियों का रहनसहन, खानपान और वहां के लोगों की सभ्यता आदि के बारे में सुन कर देवरानीजेठानी का मन करता कि काश वे भी अपने पतियों के साथ विदेश में रहतीं. अपने मन की बात उन्होंने अपनेअपने पतियों से कह दी. लिहाजा दोनों भाइयों ने पत्नी और बच्चों को साथ ले जाने की व्यवस्था करनी शुरू कर दी.

उन्होंने उन के पासपोर्ट बनवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इस सब में समय तो लगता ही है. बहरहाल, यह सब ऐसा ही चलता रहा. साल, दो साल में कोई न कोई भाई छुट्टी ले कर गांव आता और अपनी मां, पत्नी और बच्चों से मिल कर लौट जाता.

स्वराज कौर बड़ी खुशी और शांति से परिवार की बागडोर संभालने में लगी रहती थीं. वह एक साधारण और धार्मिक विचारों वाली महिला थीं. जबकि उन की दोनों बहुएं बनठन कर रहती थीं. उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से आधुनिकता के रंग में रंग लिया था. स्वराज कौर समयसमय पर उन्हें टोकते हुए सिख मर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाया करती थीं. पर बहुओं ने उन की बात अनसुनी करनी शुरू कर दी तो स्वराज कौर ने भी उन की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया.

पंजाब विधानसभा चुनाव 4 फरवरी, 2017 को होने थे, इसलिए पुलिसप्रशासन बड़ी मुस्तैदी से क्षेत्र में अमनशांति बनाए रखने में जुटा था. दिनांक 3/4 फरवरी की रात को स्वराज कौर की छोटी बहू राजदीप कौर ने उन्हें रात का खाना दिया. बड़ी बहू राजेंद्र कौर रसोई का काम निपटा कर बच्चों को सुलाने की तैयारी कर रही थी. उसी रात लगभग एक बजे किसी ने राजदीप कौर के कमरे का दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर राजेंद्र कौर की भी आंखें खुल गईं. दोनों ने अपनेअपने कमरे से बाहर आ कर देखा तो मारे डर के उन की चीख निकल गई. उन के कमरों के बाहर बरामदे में 12-13 लोग खड़े थे. सभी के मुंह पर कपड़ा बंधा था और उन के हाथों में चाकू, तलवार आदि हथियार थे. इस के पहले कि वे दोनों कुछ समझ पातीं, उन लोगों ने आगे बढ़ कर दोनों को दबोच लिया और धकेलते हुए उन्हें स्वराज कौर के कमरे में ले गए.

इस बीच 2 लोग मेनगेट के पास खड़े हो कर रखवाली करने लगे. 2-3 लोगों ने सोते हुए बच्चों को अपने कब्जे में कर लिया. स्वराज कौर के कमरे में पहुंचते ही उन बदमाशों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को मारनापीटना शुरू कर दिया. वे उन से अलमारी की चाबी मांग रहे थे. 2 लोगों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की पहनी हुई ज्वैलरी उतारनी शुरू कर दी.

शोरशराबा और मारपीट की आवाज सुन कर स्वराज कौर जाग गई थी. खुद को और अपनी दोनों बहुओं को हथियारबंद बदमाशों से घिरे हुए देख कर उन के होश उड़ गए. परिवार को संकट में देख वह दहाड़ते हुए अपने बैड से उठीं पर तब तक एक हमलावर ने लोहे की रौड उन के सिर पर दे मारी. स्वराज कौर के मुंह से आवाज तक न निकल पाई. वह बैड पर ही चारों खाने चित्त गिर पड़ीं.

तब डर की वजह से राजेंद्र कौर ने अलमारियों की चाबी का गुच्छा बदमाशों के हवाले कर दिया. बदमाश घर में लूटखसोट कर धमकाते हुए चले गए.

आधी रात के बाद हुई इस वारदात से राजेंद्र और राजदीप कौर बुरी तरह डर गईं. काफी देर तक दोनों दहशत में बुत बनी अपनी जगह खड़ी रहीं. जब होश आया तो राजदीप कौर ने बैड पर पड़ी सास स्वराज कौर की सुध ली और राजेंद्र कौर ने आंगन में खड़े हो कर सहायता के लिए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया था.

शोर सुन कर वहां पड़ोसी जमा हो गए. लूट की बात सुन कर सभी हैरान थे. स्वराज कौर की नब्ज टटोलने पर पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. चोटों के घाव उन के शरीर पर भी थे, पर वे इतने गंभीर न थे. तब तक गांव का सरपंच भी वहां आ गया था. सलाहमशविरा के बाद तय हुआ कि पुलिस को सूचना देने से पहले मृतका के भाई प्रीतपाल सिंह को सूचित कर दिया जाए.

प्रीतपाल सिंह जिला होशियारपुर के गांव मंसूरपुर में रहते थे. रात को 2 बजे फोन द्वारा जब उन्हें खबर दी गई तो वह अपनी पत्नी कुलदीप कौर को साथ ले कर उसी समय घर से निकले और सुबह तक बहन के गांव अकबरपुर पहुंच गए. उस से पहले सरपंच ने पुलिस को भी फोन कर दिया था.

हत्या की खबर सुन कर थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू टीम के साथ मौके पर आ गए. पुलिस ने जब स्वराज कौर की लाश का मुआयना किया तो उन के सिर पर बाईं ओर गहरा घाव था. उस में से खून निकलने के बाद सूख चुका था.

थानाप्रभारी ने दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर से घटना के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने रोते हुए रात का पूरा वाकया बता दिया. पुलिस को उन की बात पर शक तो हुआ, पर उस समय गम का माहौल था, इसलिए उन से ज्यादा पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर के बयान दर्ज किए तो दोनों के बयानों में कई पेंच दिखाई दे रहे थे. उन्होंने बताया कि लुटेरे घर से लगभग 7 तोले सोने के आभूषण और कुछ हजार रुपए की नकदी लूट ले गए हैं.

2 बातें थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू की समझ में नहीं आ रही थीं. एक तो मामूली लूट के लिए 12 लुटेरों का आना, दूसरे 12 लोग जब कहीं लूटमार करेंगे तो वहां अच्छाखासा हंगामा खड़ा हो जाना स्वाभाविक है, जबकि यहां किसी पड़ोसी को भी वारदात की भनक नहीं लगी थी. लुटेरों ने स्वराज कौर को तो जान से मार दिया था, जबकि उन की दोनों बहुओं को मामूली सी खरोंचें ही लगी थीं. थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या और लूट की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने जांच टीम में एएसआई परमिंदर सिंह, हैडकांस्टेबल गुरनाम सिंह, नौनिहाल सिंह, रविंदर सिंह व लेडी हैडकांस्टेबल सुरजीत कौर को शामिल किया था.

प्रीतपाल सिंह ने भी पुलिस से शक जताया कि उन की बहन की हत्या लूट की वजह से नहीं, बल्कि किसी साजिश के तहत की गई है.

थानाप्रभारी ने अब तक की काररवाई के बारे में एसएसपी अलका मीणा और डीएसपी डा. नवनीत सिंह माहल को अवगत करा दिया था. इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी को जो सूचना दी, उस के आधार पर मृतका की दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को हिरासत में ले लिया गया और उन की निशानदेही पर गांव अकबरपुर के ही अंचल कुमार उर्फ लवली को भी हिरासत में ले लिया गया.

इन तीनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वराज कौर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में स्वराज कौर की हत्या और इस फरजी लूटपाट की जो कहानी सामने आई, वह परपुरुष की बाहों में सुख तलाशने वाली औरतों के अविवेक का नतीजा थी—

कमलजीत सिंह और संदीप सिंह के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर के घर में नोटों की बारिश जरूर होने लगी थी, पर अपनेअपने पति से दूर होने पर दोनों बहुओं की हरीभरी जिंदगी में सूखा पड़ गया था. यानी उन्हें पैसा तो भरपूर मिल रहा था पर पति के प्यार को तरस रही थीं.

कमलजीत और संदीप दोनों ही बड़े मिलनसार थे. अपने और आसपास के गांवों में उन का अच्छा उठनाबैठना था. इस कारण उन के कई यारदोस्त थे, जो उन की गैरमौजूदगी में घर का हालचाल जानने आ जाते थे. दिखावे के लिए तो वे सब स्वराज कौर की खैरखबर जानने के लिए आते थे, पर हकीकत यह थी कि उन की नजरें राजदीप और राजेंद्र कौर पर थीं.

अकबरपुर का अंचल कुमार उर्फ लवली बड़ी बहू राजेंद्र कौर को चाहने लगा तो वहीं राजदीप की आंखें गांव जलालपुर, होशियारपुर के गुरदीप सिंह से लड़ गईं. कुछ ही दिनों में उन के बीच अवैध संबंध बन गए.

राजेंद्र कौर अपने प्रेमी अंचल कुमार को रोज रात के समय अपनी कोठी पर बुला लेती थी. गुरदीप का गांव जलालपुर दूर था, इसलिए वह रोज न आ कर सप्ताह में 2-3 बार राजदीप कौर के पास आता था.

चूंकि राजेंद्र कौर और अंचल कुमार का मिलनेमिलाने का सिलसिला चल रहा था, इसलिए राजेंद्र कौर अपनी सास स्वराज कौर के रात के खाने में नींद की गोलियां मिला देती थी, ताकि सास को कुछ पता न चले.

लाख सावधानियों के बाद भी स्वराज कौर को अपनी बहुओं के बदले व्यवहार पर संदेह होने लगा. वह बारबार उन से गैरपुरुषों से बातचीत करने से मना करती थीं. पर वे सास की बात पर ध्यान नहीं देतीं. करीब 4 सालों तक उन के संबंध जारी रहे. इस बीच राजदीप कौर का प्रेमी गुरदीप नौकरी के लिए विदेश चला गया.

स्वराज कौर को गांव के लोगों से बहुओं की बदचलनी की बातें पता चलीं तो उन्होंने दोनों बहुओं को बहुत डांटा. तब दोनों बहुओं ने सास से लड़ाई भी की. स्वराज कौर ने झगड़े की बात अपने भाई प्रीतपाल को भी बता दी थी, साथ ही उस ने बहुओं को धमकी दी कि बेटों के सामने वह उन का भांडा फोड़ देंगी.

सास की इस धमकी से राजेंद्र कौर डर गई. उस ने अंचल के साथ मिल कर सास की हत्या की ऐसी योजना बनाई, जो हत्या न लग कर कोई दुर्घटना लगे. इस काम के लिए अंचल ने अपने एक दोस्त गुरमीत को भी योजना में शामिल कर लिया. 3-4 फरवरी, 2017 की रात राजेंद्र कौर ने स्वराज के खाने में नींद की गोलियां कुछ ज्यादा मात्रा में मिला दीं.

रात करीब 12 बजे राजेंद्र कौर ने अंचल को फोन कर दिया तो वह अपने दोस्त के साथ सीधा राजेंद्र कौर के कमरे पर पहुंचा. उस समय राजदीप कौर भी वहीं थी. चारों स्वराज के कमरे में पहुंचे. राजदीप कौर ने सोती हुई सास की टांगें कस कर पकड़ लीं और राजेंद्र कौर ने दोनों बाजू काबू कर लिए.

तभी अंचल ने तकिया स्वराज के मुंह पर रख कर दबाया. फिर उन के गले में चुन्नी का फंदा डाल कर दोस्त के साथ उस फंदे को कस दिया. कुछ ही पलों में स्वराज की मौत हो गई. इस के बाद अंचल ने अपने साथ लाई हुई लोहे की रौड से स्वराज के सिर पर वार कर घायल कर दिया.

स्वराज की हत्या के बाद उन्होंने घर की अलमारियों से सामान निकाल कर कमरे में फैला दिया, ताकि देखने में मामला लूटपाट का लगे. राजेंद्र कौर और राजदीप ने घर में रखे करीब 7 तोले के आभूषण और कुछ हजार रुपए निकाल कर अंचल को दे दिए. इस के बाद अंचल ने दिखावे के लिए दोनों के शरीर पर कुछ खरोंचे मार दीं, जिस से किसी को शक न हो.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने लोहे की रौड, ज्वैलरी व रुपए भी बरामद कर लिए. पुलिस ने चौथे आरोपी संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने चारों अभियुक्तों से पूछताछ कर उन्हें 7 फरवरी, 2017 को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

अपनी मां की हत्या की खबर सुन कर कमलजीत सिंह और संदीप सिंह जब अपने गांव आए तो मां की मौत का उन्हें बड़ा दुख हुआ.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

धोखाधड़ी: वर्क फ्रोम होम लालच दे कर लूट

सोशल मीडिया ने शहरों और गांवदेहात के नौजवानों के फर्क को मिटा दिया है. वे भले ही कुछ और न करें, पर मोबाइल फोन पर उंगलियां चलाने में माहिर हो गए हैं. जब से कोरोना ने पूरी धरती पर कहर ढहाया है, तब से नौजवान पीढ़ी की एक ही बड़ी समस्या रह गई है कि अच्छी नौकरी मिलती नहीं और मोबाइल का खर्चा कैसे निकालें? मतलब बहुत से नौजवान अब बेरोजगार हो गए हैं और किसी न किसी तरह अपना खर्चा निकालने के लिए वे कोई भी काम करने के लिए उतावले होने लगे हैं.

इसी बात का फायदा सोशल मीडिया पर उठाया जा रहा है और ‘वर्क फ्रोम होम’ के लुभावने इश्तिहार दे कर लोगों खासकर नौजवानों को उल्लू बनाया जा रहा है. धोखाधड़ी करने वाले बड़ी और नामचीन कंपनियों के नाम का इस्तेमाल कर के लोगों को चूना लगा रहे हैं.हाल ही में दिल्ली पुलिस ने साइबर अपराधियों के एक इंटरनैशनल गिरोह का भंडाफोड़ किया था.

इस गिरोह ने वर्क फ्रोम होम का फर्जीवाड़ा कर के तकरीबन 11,000 लोगों को ठगा था.पुलिस ने बताया कि एक महिला, जो पार्टटाइम नौकरी की तलाश कर रही थी, के साथ एक लाख, 18 हजार रुपए की ठगी हुई थी. उस महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा था कि कुछ अज्ञात स्कैमर्स ने अमेजन कंपनी में औनलाइन पार्टटाइम नौकरी देने की आड़ में उस से यह धोखाधड़ी की थी.

इस पूरे मामले पर एक बड़े पुलिस अफसर ने नौकरी ढूंढ़ने वालों को आगाह करते हुए कहा कि ये लोग वैबसाइटों को इस तरह से डिजाइन करते हैं कि वे एकदम असली अमेजन वैबसाइट की तरह दिखती हैं. इस तरह की फर्जी वैबसाइटों को इंस्टाग्राम, फेसबुक और दूसरी सोशल मीडिया वैबसाइटों पर बड़े पैमाने पर प्रमोट भी किया जाता है.

यहां तक कि स्कैम करने वाले पीडि़तों को अच्छे पैसे कमाने वाले लोगों के नकली स्क्रीनशौट भी दिखाते हैं.ऐसा कहा जा रहा है कि इन साइबर ठगों ने लोगों को चूना लगाने के लिए एक टैलीग्राम आईडी का इस्तेमाल किया था, जो चीन के बीजिंग से चलाई जा रही थी. जिस ह्वाट्सएप नंबर से लोगों को अमेजन कंपनी की साइट में पैसा लगाने के लिए कहा गया था, वह भी भारत के बाहर का नंबर था.एक और मामला देखते हैं.

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के पीतमपुरा के रहने वाले हरीन बंसल एक दिन सोशल मीडिया चला रहे थे, जहां उन्हें एक वर्क फ्रोम होम का औप्शन दिखा. इस में घर बैठे रोजाना कमाई करने का औफर दिया जा रहा था.हरीन बंसल ने इस बारे में और ज्यादा जानकारी लेने के चक्कर में दिए गए लिंक पर क्लिक किया, तो उन्हें सीधे एक ह्वाट्सएप नंबर पर जाने का निर्देश दिया गया.

इस के बाद एक अनजान आदमी की तरफ से एक रजिस्टर्ड वैबसाइट पर क्लिक कर के रजिस्ट्रेशन पूरा करने की बात कही गई और कुछ टास्क को पूरा करने को कहा गया. फिर कुछ पैसे जमा कर के कमीशन हासिल करने की बात कही गई.यह एक तगड़ा स्कैम था, जहां स्कैम करने वालों ने हरीन बंसल का भरोसा जीतने के लिए पहली बार में पैसे वापस कर दिए. हालांकि जब दूसरी बार में पीडि़त ने 9,32,000 रुपए जमा किए, तो पैसे वापस नहीं हुए.

अब कुछ ऐसे दावों पर बात करते हैं, जो आप की जेब खाली कर सकते हैं, जैसे ‘3 वीडियो लाइक करो, बदले में 150 रुपए मिलेंगे’, ‘आप का सीवी सिलैक्ट हो गया है, दिन के 5,000 मिलेंगे, यहां क्लिक करें’. ऐसे मैसेज घोटाले का हिस्सा होते हैं, जहां लोगों को फंसा कर वर्क फ्रोम होम की घुट्टी पिलाई जाती है और लूट लिया जाता है.ऐसा ही एक और घोटाला इन दिनों चल पड़ा है ‘फिल्मों की रेटिंग कर के पैसे कमाने का’, जैसे ‘फिल्में रेट कीजिए, दिन के टोटल 16,700 रुपए मिलेंगे.

आप को 5,000 रुपए का कमीशन भी मिलेगा. आप को बस हमें 10,000 रुपए देने होंगे, फिर तो आप को हर महीने लखपति बनने से कोई रोक ही नहीं सकता.’‘इंडियन ऐक्सप्रैस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ये ठग लोगों को खासकर ऐसी महिलाओं को अपना शिकार बना रहे हैं, जो वर्क फ्रोम होम में नौकरी खोज रही हैं. दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम में ऐसे 3 मामले दर्ज किए गए थे. शिकायत करने वालों का कहना था कि उन्होंने सोशल मीडिया पर वर्क फ्रोम होम के इश्तिहार देखे.

जब उन्होंने इश्तिहार में दिए गए नंबरों पर बात की तो उन्हें एक टैलीग्राम ग्रुप में जोड़ दिया गया.इस के बाद उन लोगों को बताया गया कि उन्हें दिन में 30 टास्क करने होंगे और हर रिव्यू पर उन्हें कमीशन दिया जाएगा. फिर उन्हें एक वैबसाइट का लिंक दिया गया, जहां पर उन्हें रजिस्टर कर के फिल्मों को रेट करना था.शिकायतकर्ता ने बताया कि उन्होंने रेटिंग करना शुरू किया और शुरुआत में उन्हें पैसे भी मिल रहे थे, लेकिन इस के बाद उन से कहा गया कि वे 10,000 रुपए इनवैस्ट करें. इस इनवैस्टमैंट के बाद उन्हें काम के पैसे तो मिल रहे थे, पर 10,000 रुपए वापस नहीं दिए गए.

गुरुग्राम, हरियाणा की रहने वाली मेहा सेठी ने ‘इंडियन ऐक्सप्रैस’ को बताया, ‘‘मैं पैसों का इंतजार कर रही थी, पर वे अपना पैसा वापस पाने के लिए और ज्यादा पैसे लगाने का दबाव बनाने लगे. मैं ने दिसंबर से फरवरी के बीच तकरीबन 28 लाख रुपए गंवा दिए.’’दरअसल, यह जो वर्क फ्रोम होम का झांसा है, उन मीठी नशीली गोलियों की तरह होता है, जिन का स्वाद जबान पर चढ़ते ही उन की आदत पड़ जाती है. जब शुरुआत में ही पैसा बैंक खाते में आने लगता है, तो लोग ठगों की गिरफ्त में आ जाते हैं.

इस के बाद जब ठग पैसे मांगते हैं, तो दिल को यह तसल्ली दे कर हम उन्हें पैसे दे देते हैं कि इन्हीं से तो यह कमाई हुई, फिर डर काहे का.लेकिन हम यह भूल जाते हैं असली कंपनियां काम के बदले आप को पैसा देती हैं, पैसा मांगती नहीं हैं. तो अगर कोई आप को किसी भी तरह की नौकरी दे रहा है और बदले में पैसा भी मांग रहा है, तो समझ लीजिए कि मामला गड़बड़ है.यह बात भी कभी मत भूलिए कि अगर कोई कंपनी आप को घर बैठे चार लाइक बटन दबाने के बदले दिन के काफी पैसे देने का दावा कर रही है, तो समझ लेना कि आप को चूना लगेगा.इस तरह की ठगी से बचने का एक तरीका है कि लालची मत बनें और ऐसे फर्जी इश्तिहारों से दूर रहें. याद रखें, आप का एक गलत क्लिक आप को कंगाल बना सकता है.

सनकियों की साजिश : हत्या की अनोखी कहानी

ब्रिटेन के पूर्वी क्षेत्र लिंकनशायर स्थित उपनगरीय इलाके स्पालडिंग में एक पौश कालोनी है डा. वसन एवेन्यू. इसी कालोनी में स्थित एक 2 मंजिले मकान से 15 अप्रैल, 2016 की दोपहर को मांबेटी की खून से लथपथ लाशें मिलने से कालोनी में सनसनी फैल गई थी. लोगों को इस बात पर हैरानी हो रही थी कि किस ने मांबेटी की हत्या कर दी?

उन्हें तब और हैरानी हुई, जब पुलिस ने मकान से एक किशोर प्रेमी जोड़े को हिरासत में लिया. पुलिस को पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि मरने वाली महिला 49 वर्षीया एलिजाबेथ एडवर्ट उर्फ लिज और उन की 13 साल की बेटी केटी थी, जो एक स्कूल में खाना परोसती थी. मांबेटी इस मकान में लंबे समय से रह रही थीं.

लिज के पति पीटर एडवर्ट उस से अलग रहते थे. उन की विवाहिता बड़ी बेटी मैरी काट्टिंघम भी दूसरे इलाके में अपने परिवार के साथ रहती थी. 15 अप्रैल, 2016 को जब पुलिस उस 2 मंजिला मकान का दरवाजा तोड़ कर अंदर दाखिल हुई तो निचले तल पर एक किशोर जोड़ा गद्दे पर आराम फरमाते मिला. पुलिस ने उस से पूछा, ‘‘एलिजाबेथ कहां है?’’

लड़के के साथ मौजूद लड़की ने बगैर किसी हड़बड़ाहट और डर के हाथ से सीढि़यों की तरफ इशारा करते हुए धीमे से कहा, ‘‘ऊपर.’’

पुलिस ने लड़के से पूछा, ‘‘उन के साथ क्या हुआ है?’’

लड़के ने भी लड़की की तरह शांत भाव से कहा, ‘‘ऊपर जा कर देख क्यों नहीं लेते?’’

पुलिस को उन का व्यवहार कुछ अटपटा सा लगा. कुछ पुलिसकर्मी सीढि़यों के जरिए ऊपरी मंजिल पर पहुंचे तो वहां एलिजाबेथ उर्फ लिज और उन की बेटी केटी की लाश उन के कमरों में पड़ी मिलीं. लिज के शरीर पर तेजधार हथियार के गहरे निशान थे, जो गले के अतिरिक्त शरीर के दूसरे ऊपरी हिस्से पर भी थे.

इसी तरह के जख्म केटी के भी शरीर पर थे. ऐसा लग रहा था, जैसे उन पर हत्यारे ने चाकू से ताबड़तोड़ वार किए हों.

पुलिस ने मकान में मौजूद लड़की और लड़के को हिरासत में ले लिया था. दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने मां बेटी की हत्या का अपराध आसानी से स्वीकार कर लिया था. वह पुलिस से इतने इत्मीनान से बात कर रहे थे, जैसे इन्होंने कोई अपराध किया ही न हो. उन्होंने अपने बारे में बताया कि उन का इरादा नींद की ज्यादा गोलियां खा कर आत्महत्या करने का था.

पुलिस ने उन के पास से एक डायरी बरामद की थी, जिस में उन्होंने एक स्यूसाइड नोट भी लिखा था. उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि खुदकुशी के बाद उन की लाशों को जला कर उस की राख उन के पसंदीदा जगहों पर बिखेर दी जाए.

लिखे गए कुछ अन्य वाक्यों से लग रहा था कि उन्हें न तो जीवन से प्यार था और न ही भविष्य की कोई योजना थी. न जीने की तमन्ना थी और न ही कोई महत्त्वाकांक्षा. दोनों लाशों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया था कि उन की हत्या धारदार चाकू से गला रेत कर की गई थी.

पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अदालत में उन के बयान कराए तो लड़के ने तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया, लेकिन लड़की हत्या में शामिल होने से इनकार कर रही थी. वारदात के समय उन की उम्र महज 14 साल थी. पुलिस के सामने लड़की की भूमिका काफी अस्पष्ट होने से तहकीकात करना एक चुनौती बन गई थी.

पुलिस को उन पर जघन्य हत्या का दोष लगाने के साथसाथ उन के नाबालिग होने का भी खयाल रखना था. उन के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन की पहचान भी पुलिस छिपा रही थी. जांच करने वाली टीम ने पाया था कि दोनों एक किस्म के मनोरोगी और जीवन से हताश प्रेमीयुगल थे. उन की हरकतें जितनी बचकानी थीं, उतने ही वे इस उम्र में ही सब कुछ हासिल करने की तमन्ना रखते थे.

इस मनोविज्ञान की गुत्थी के साथ दोहरे हत्याकांड को सुलझाने में जासूसी और फोरैंसिक जांचकर्ताओं की खास टीम के अतिरिक्त मनोचिकित्सक तक की मदद ली गई. पुलिस ने छानबीन में पाया कि लिज और आरोपी लड़की के बीव किसी बात को ले कर कोई पुराना विवाद चल रहा था.

उसी विवाद ने उस लड़की को इस कदर सनकी बना दिया था कि उस ने मांबेटी की हत्या की साजिश रच डाली. उस ने अपने साथ पढ़ने वाले प्रेमी को हत्या के लिए राजी कर लिया. इस संबंध में कुल 12 विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों में 7 पुरुष और 5 महिलाओं द्वारा जुटाए गए तथ्यों और तर्कों की मदद से मामले की तह तक पहुंचना संभव हो सका था.

पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट और अदालत में दिए गए उन के बयानों के आधार पर लड़के को 8 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में ले कर ट्रायल पर भेज दिया गया था. बाद में पूरी तहकीकात की जिम्मेदारी मुख्य जांचकर्ता इंसपेक्टर मार्टिन हैल्वे को सौंप दी गई थी. जांच जब आगे बढ़ी तो नाबालिग लडकी को भी आरोपी बना दिया गया. इस के बाद लड़की के बयान के आधार पर हत्याओं की गुत्थी परतदरपरत उधड़ने लगी.

यह जान कर सभी को हैरानी हुई कि हत्याएं बहुत ही साधारण अपमान का बदला लेने के लिए की गई थीं. इस से पहले हम उन परिस्थितियों पर गौर करना चाहेंगे, जिन की वजह से हत्यारा लडका और उस की प्रेमिका कू्रर बनी.

बात सितंबर, 2013 की है. हायर सैकेंडरी स्कूल की एक 12 वर्षीया छात्रा एक दिन अपनी कक्षा में काफी आक्रामक थी. उस ने स्कूल के अनुशासन को नजरअंदाज करते हुए आक्रोश में एक कुरसी इस कदर धकेली कि उस से एक सहपाठी छात्र को जोर की टक्कर लग गई. इस से लड़का तमतमाया हुआ उस पर उबल पड़ा.

लड़की साथियों के बीच तमाशा बन गई. स्थिति को भांप कर उस ने झट से सौरी बोल दिया. लड़का भी दूसरे सहपाठियों के समझानेबुझाने पर शांत हो गया. बात आईगई हो गई, लेकिन इस घटना ने दोनों के बीच आकर्षण के बीज अंकुरित कर दिए. बाद में उन के बीच दोस्ती हो गई, जो जल्द ही एकदूसरे पर अथाह विश्वास करने वाली गहराई तक पहुंच गई.

इसी बीच वे एकदूसरे से प्रेम करने लगे, जिस का अहसास उन्हें जल्द हो गया. वे साथसाथ घूमनेफिरने लगे. हालांकि लड़का जितना गंभीर और शांत स्वभाव का था, लड़की उतनी ही चुलबुली और अपनी मनमर्जी की मालकिन थी. अपनी बातें मनवाना और इच्छा पूरी करना वह भलीभांति जानती थी. आगे बढ़े कदम को पीछे हटाना तो जैसे उस ने सीखा ही नहीं था. यही कारण था कि जल्द ही उस ने लड़के को अपने रंग में रंग लिया.

उन के बीच प्रेम पनपा तो वे पढ़ाई के प्रति असहज और लापरवाह हो गए. स्कूल परिसर में उन की अनुशासनहीनता की कई शिकायतें आईं. जिस ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की, वे उस से उलझ पडे़. लड़का भी अपनी प्रेमिका के प्रभाव में आ कर आक्रामक तेवर वाला बन गया.

यही वजह थी कि एक दिन लड़का अनियंत्रित हिंसक प्रवृत्ति दिखाने और अनुशासनहीनता के आरोप में स्कूल से निकाल दिया गया. यह बात लड़की के दिल में चुभ गई, क्योंकि उसे लड़के से मिलनेजुलने में परेशानी होने लगी थी.

लड़की 6 साल की उम्र से ही अपने परिवार के लिए सिरदर्द बनी रहती थी. तब उस के असामान्य व्यवहार को देखते हुए उस का मनोचिकित्सक से इलाज भी कराया गया था. डाक्टर ने उस की अच्छी देखभाल की सलाह दी थी.

हत्याकांड की घटना से ठीक एक साल पहले भी उसे मानसिक उपचार के लिए स्थानीय मानसिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में भरती कराया गया था. कुछ महीने तक उस का उपचार चला. उस में सुधार होने के बावजूद मनोचिकित्सक ने उस की मनोस्थिति के स्तर को 10 में से 2 अंक दे कर चिंता का विषय बताया था. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उस की अच्छी देखभाल और विशेषज्ञ की मदद लेने की सलाह दी गई. उस के पिता वेल्डर थे. वह ड्रग लेता था और इस कारण वह पत्नी और 2 साल की बेटी को छोड़ कर कहीं चला गया था. बड़ी होने पर वही लड़की अकेलेपन की भावना से भर गई थी, जिस से उस में आक्रामक तेवर आ गए थे.

लड़के की परवरिश भी असामान्य तरीके से हुई थी और उस का बचपन काफी अशांत किस्म का था. उस की मां की आकस्मिक मौत हो गई थी. तब वह मात्र 5 साल का था और उस ने अपने पिता को घर में रहते हुए शायद ही कभी भरी नजरों से देखा हो. उस के पिता हमेशा काम के सिलसिले में यात्राओं पर रहते थे, जिस से उस का बचपन भी एकाकीपन में गुजरा था. अदालत में केस चला तो वकीलों ने भी इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि के 2 मुख्य कारणों की ओर संकेत किए.

पहले कारण में सामाजिक और पारिवारिक संस्कार के साथ मानवीयता को पोषित करने वाले मनोवैज्ञानिक विकास की समस्या को रेखांकित किया. जबकि दूसरा कारण नाबालिग लड़की के मन में गहराई तक बैठ चुकी डिनर लेडी लिज के साथ पुराने विवाद से संबंधित था.

पूछताछ में आरोपी लड़की ने बताया था कि एक बार उस की लिज के साथ जबरदस्त बहस हो गई थी. लड़की का व्यवहार और स्कूल में अनुशासनहीनता लिज को पसंद नहीं थी. उस ने उसे कड़ी फटकार लगाई थी. तभी लड़की ने खुद को बेहद अपमानित महसूस किया था और उस ने लिज से हर कीमत पर बदला लेने की ठान ली थी.

जांच और हत्यारे द्वारा अदालत में दिए गए बयान के मुताबिक प्रेमी युगल ने हत्या की योजना मैकडोनाल्ड के एक आउटलेट में बैठ कर 11 अप्रैल, 2016 को बनाई थी. उसी दिन उन्होंने हत्या के बाद खुदकुशी करने की शपथ भी ली थी. योजना को अंजाम देने के लिए दोनों 13 अप्रैल की रात को लिज के घर के एक अलग हिस्से में चोर की भांति जा घुसे थे.

लड़के ने पीठ पर टांगने वाले बैग में एक टीशर्ट में लपेट कर तेज धार के 4 चाकू रख लिए थे. उन में 8 इंच के 2 चाकुओं में काला हत्था लगा था, जबकि 2 मध्यम आकार के चाकू थे. लड़की ने बताया था कि उस का प्रेमी जब लिज की हत्या को अंजाम दे रहा था, तब अपने बचाव के लिए वह काफी संघर्ष कर रही थी. वह शोर मचा रही थी.

लड़के ने उस की आवाज को रोकने के लिए चाकू से गले की नली काट दी ताकि दूसरे कमरे में सो रही उस की बेटी तक उस की आवाज न पहुंचे. लिज की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की बेटी केटी को भी मौत की नींद सुला दिया था. विशेषज्ञों ने इसे उस की अपरिपक्व मानसिकता और मन में दबे आक्रोश को दर्शाने वाला मनोविज्ञान बताया था.

उस के बारे में जांच करने वालों ने पाया था कि उसे बचपन से ही किसी भी तरह की रोकटोक पसंद नहीं थी. वह हमेशा अपनी मनमरजी की मालकिन बनी रहना चाहती थी. वह लिज से बदला लेना चाहती थी. इस के लिए उस ने अपने सहपाठी को उकसाया. जांच के बाद लड़की भी हत्या की आरोपी करार दे दी गई थी. जबकि पक्ष के वकीलों द्वारा उसे विक्षिप्त और सनकी साबित करने की भी कोशिश की गई थी.

इस के बावजूद फोरैंसिक मनोचिकित्सक के एक सलाहकार डा. फिलिप जोसेफ ने अदालत में तर्क दिया था कि उस के दावे के मुताबिक वे मानसिक विकार से पीडि़त नहीं थे. अगर वे अपने मन में जहरीले रिश्ते, भावना और विचार नहीं रखते तो बहुत संभव था कि ये हत्याएं नहीं होतीं. पर कुटिल मन वाले 2 व्यक्ति एक साथ होते हैं, तब ऐसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता है.

अदालत ने विभिन्न बयानों के आधार पर पाया था कि लड़की और लड़का सितंबर, 2013 से गाहेबगाहे मिलतेजुलते रहे, लेकिन मई 2015 तक उन के संबंधों में मधुरता नहीं बन पाई थी. इस दौरान वे बातबात पर उलझते भी रहते थे, जो एक तरह से नाबालिगों में होता है. उन के व्यवहार में हमेशा आक्रोश बना रहता था. लड़की ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा था कि उसी ने लड़के को हत्या के लिए प्रेरित किया था.

उस ने यह भी माना था कि लड़के के साथ उस ने केवल एक बार यौनसंबंध बनाया था, वह भी हत्या के बाद. उस का कहना था कि हत्या की रात वह उस से बहुत प्रभावित हुई थी, क्योंकि उस ने उस की इच्छा पूरी कर दी थी. न्यायाधीशों की बेंच ने पाया था कि दोनों के संबंधों में एकदूसरे के प्रति विश्वास की भावना नवंबर, 2015 से मार्च 2016 के बीच पनपी थी.

यह भी स्पष्ट हुआ था कि हत्या में उस की भूमिका पूरी तरह से बदले की भावना से ग्रसित थी. तमाम गवाहों के बयान, तहकीकात के सभी जांच बिंदुओं, तर्कों, तथ्यों और आरोपियों के बयानों के आधार पर 18 अक्तूबर, 2016 को नाटिंघम क्राउन कोर्ट में ढाई घंटे तक लंबी बहस चली. कोर्ट में न्यायाधीशों की बेंच द्वारा इसे बहुत ही असाधारण मामला बताया गया.

न्यायाधीश जस्टिस हड्डन ने प्रेमी युगल को हत्या का दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कैद की सजा सुनाई थी. वे 9 नवंबर, 2016 को 20 साल के लिए जेल भेज दिए गए. फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने यह भी कहा कि इस मामले में कई पहलू एकदूसरे से अलग थे और यह असाधारण ढंग से एक सुनियोजित साजिश के तहत की गई हत्या थी. दोनों हत्यारे सजा के वक्त भले ही नाबालिग थे, लेकिन जब वे जेल से छूटेंगे, तब उन की उम्र 35 साल हो जाएगी.

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल

11 दिसंबर, 2016 की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला शिकोहाबाद के थाना मक्खनपुर के 2 कांस्टेबल क्षेत्र में रात्रि गश्त पर निकले थे, तभी उन्होंने मक्खनपुर गांव के ही एक अधबने मकान से जबरदस्त धुआं उठते देखा. वे दोनों उस मकान में घुसे तो प्लास्टिक की बोरियों में आग लगी देखी. उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह और अग्निशमन दल को फोन कर के दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

गांव के जो लोग वहां इकट्ठे थे, उन से लाश की शिनाख्त कराई तो इकबाल ने उस की पुष्टि अपनी भाभी नरगिस के रूप में की. उस ने बताया कि भाई महबूब की मौत के बाद यह रशीद के साथ रहती थी. रशीद शिकोहाबाद के रुकुनपुरा का रहने वाला था और शिकोहाबाद शहर में संदूक बनाने का काम करता था. प्रारंभिक पूछताछ में पुलिस को काफी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने रशीद की तलाश में उस के रुकुनपुरा स्थित घर पर दबिश दी पर वह घर पर नहीं मिला. शिकोहाबाद में जो उस की संदूक की दुकान थी, वह भी बंद मिली. इस से पुलिस को उस पर पूरा शक होने लगा.

रशीद के जो भी ठिकाने थे, पुलिस ने उन सभी जगहों पर उसे तलाशा पर उस का पता नहीं चला. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा था. ऐसे में थानाप्रभारी ने सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को उस के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

करीब 15 दिन बाद आखिर एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रशीद को शिकोहाबाद के बसस्टैंड से हिरासत में ले लिया. वह वहां दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. थाने ला कर जब उस से नरगिस की हत्या के सिलसिले में पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सामने हालात ऐसे बन गए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

नरगिस पश्चिम बंगाल के रहने वाले सलीम की बेटी थी. सलीम मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. आज भी ऐसे युवक, जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पाती है, वे पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों का रुख करते हैं. इन राज्यों के कुछ करीब अभिभावक अपनी बेटी के भविष्य को देखते हुए बेटियों का हाथ उन युवकों के हाथ में दे देते हैं. वे बाकायदा सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करते हैं. इसी तरह नरगिस की शादी भी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रामगढ़ के रहने वाले महबूब से हुई थी.

महबूब का अपना निजी घर था, जहां वह अपने 5 भाइयों के साथ रहता था. कालांतर में उस के 3 बड़े भाई मुंबई चले गए. घर में वह और उस का छोटा भाई इकबाल ही रह गया था. दोनों भाई मजदूरी कर के अपना घर चला रहे थे. नरगिस के आ जाने से उन्हें समय पर पकीपकाई रोटी मिल जाती थी. समय बीतता गया और नरगिस 4 बच्चों की मां बन गई.

नरगिस पति के साथ खुश थी. मांबाप के घर गरीबी के अलावा कुछ नहीं था पर यहां पति और देवर अपनी कमाई ला कर उस के हाथ पर रखते तो वह खुश हो जाती. उस ने भी अपनी जिम्मेदारी से घरगृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया था.

महबूब मजदूरी कर के जब घर लौटता तो वह थकामांदा होता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस की तबीयत खराब रहने लगी थी. वह शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गया था. उसे सांस फूलने की शिकायत हो गई थी. इस की वजह से उस का काम पर जाना भी मुश्किल हो गया था. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस ने खाट पकड़ ली. इस के बाद वह फिर उठ नहीं सका.

पति के बीमार होने के बाद नरगिस परेशान रहने लगी. देवर जो कमा कर लाता, उस से घर का खर्च ही चल पाता था. पैसे के अभाव में वह पति का इलाज तक नहीं करा पा रही थी. फिर मजबूरी में उस ने चूड़ी के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई पर महबूब को बीमारी ने बुरी तरह जकड़ लिया और इलाज के अभाव में एक दिन उस की मौत हो गई.

पति का साया सिर से उठने के बाद नरगिस बुरी तरह टूट गई और बुरे दिनों में देवर इकबाल ने भी उस का साथ छोड़ दिया. नरगिस को बच्चों की चिंता खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इसी बीच एक दिन उस की मुलाकात रशीद नाम के एक आदमी से हुई. रशीद रुकुनपुरा थाना शिकोहाबाद का रहने वाला था और मक्खनपुर में संदूक बनाने का काम करता था.

रशीद के साथ नरगिस की मुलाकात तब हुई जब वह अपनी एक पड़ोसन के लिए संदूक खरीदने उस की दुकान पर गई थी. रशीद को अचानक नरगिस अच्छी लगने लगी थी. वह उस से बात करना चाहता था पर उस दिन साथ में दूसरी औरत होने की वजह से बात नहीं कर सका. लेकिन बातचीत कर के उसे पता लग गया था कि वह फिरोजाबाद के रामगढ़ थाने के पास की गली में रहती है.  नरगिस को देखने के बाद रशीद के दिल में खलबली मच गई थी. वह उस से मिलना चाहता था, इसलिए एक दिन वह दुकान बंद कर के थाना रामगढ़ के नजदीक पहुंच कर आसपास के लोगों से नरगिस के बारे में पूछने लगा. लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. फिर अचानक उसे गली की नुक्कड़ पर नरगिस मिल गई.

नरगिस ने उसे देखा तो कहा, ‘‘अरे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अपने किसी दोस्त से मिलने आया था.’’ रशीद ने बहाना बनाया.

नरगिस ने उसे अपने घर चलने को कहा तो वह उस के साथ चल दिया.

नरगिस के घर पहुंच कर रशीद ने उस के हालात का जायजा लिया. उस के प्रति सहानुभूति दिखाई तो नरगिस के दिल में रुका हुआ लावा भी फूट पड़ा. उस ने बताया कि शौहर की मौत के बाद जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. रशीद ने महसूस किया कि नरगिस को भी किसी मर्द के सान्निध्य की जरूरत है. इसी का उस ने फायदा उठाने का फैसला लिया. पर नरगिस का दिल टटोलना भी जरूरी था, लिहाजा उस दिन वह कुछ ही देर में फिर से मिलने का वादा कर के चला आया. उस ने नरगिस को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और कहा जब भी किसी चीज की जरूरत हो, वह उस से बेझिझक कह सकती है.

नरगिस को भी एक दोस्त की जरूरत थी, अत: धीरेधीरे वे दोनों मोबाइल पर दिल की बातें करने लगे. रशीद जब नरगिस के घर जाता तो बच्चों के लिए कुछ खानेपीने की चीजें भी ले जाता. इस से नरगिस के बच्चे भी उस के साथ घुलमिल गए थे. बातचीत के दौरान नरगिस को यह जानकारी हो गई थी कि रशीद शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप भी है. लेकिन उसे तो एक सहारे की जरूरत थी इसलिए उस का रशीद के प्रति झुकाव बढ़ता गया. एक दिन नरगिस देर शाम को उस की दुकान पर आई. कुछ देर बाद जब वह जाने लगी तो रशीद ने उस का हाथ पकड़ लिया और आई लव यू कहते हुए अपने मन की बात कह डाली. नरगिस ने उसे घूर कर देखा और तमक कर बोली, ‘‘कुछ देर बाद तुम घर आ जाना. मैं खाना बना कर रखूंगी. तभी बात करेंगे.’’ इस के बाद वह चली गई.

रशीद का दिल बल्लियों उछल रहा था. नरगिस जैसी हसीन औरत का सामीप्य जो उसे मिलने वाला था. उस समय वह भूल गया कि शिकोहाबाद में उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. रशीद ने उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा पहले ही दुकान बंद कर दी. फिर कुछ देर इधरउधर टहलता रहा. हलका अंधेरा होने पर उस ने नरगिस के घर का रुख कर दिया. जब वह उस के घर पहुंचा तो देखा कि उस के बच्चे सो चुके थे और वह उस का इंतजार कर रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद नरगिस ने खाना लगा दिया. रशीद ने नरगिस को भी साथ बैठा कर खाना खिलाया. खाना खाने के बाद वह उसे कमरे में ले आई. अब कमरे में रशीद और नरगिस के अलावा तनहाई थी जो उन्हें कोई गुनाह करने को उकसा रही थी. उस रात उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. रात काली और लंबी जरूर थी लेकिन उन के लिए खुशनुमा थी. सुबह रशीद ने चलते समय कुछ रुपए नरगिस के हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘ये खर्चे के लिए हैं.’’ फिर बोला, ‘‘तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो.’’ नरगिस भी हंसते हुए बोली, ‘‘आज से तुम्हें ये खाना रोज मिलेगा.’’

रशीद चला गया पर नरगिस का अधूरापन पूरा कर गया था. वह खुश थी. उसे एक सहारा मिल गया था. शाम को उस ने खाना बनाया और टिफिन ले कर रशीद की दुकान पर पहुंच गई. उसे देखते ही रशीद बोला, ‘‘अरे तुम यहां, मैं तो अपने घर शिकोहाबाद जाने वाला था.’’

‘‘हां, चौंक क्यों रहे हो. जब रोज शाम का खाना तुम्हें यहीं मिल जाया करेगा. तब शिकोहाबाद जा कर क्या करोगे.’’ वह बोली.

इस के बाद नरगिस का रशीद की दुकान पर आनाजाना होने लगा. रशीद को जब रोजाना ही शाम का खाना मिलने लगा तो उस ने शिकोहाबाद में अपने घर जाना बंद कर दिया. कई दिनों तक वह घर नहीं गया तो उस की पत्नी सलमा को चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन किया तो रशीद ने दुकान पर काम ज्यादा होने का बहाना कर दिया. फिर एक दिन रशीद नरगिस को बताए बिना अपने घर चला गया. नरगिस जब खाना ले कर उस की दुकान पर पहुंची तो दुकान का ताला बंद देख कर उस ने रशीद को फोन मिलाया. तब उसे उस के घर जाने की जानकारी मिली. अगले दिन रशीद आया तो नरगिस ने उस से शिकायत की.

उस ने रशीद से कहा कि उस का रोजरोज दुकान पर आना ठीक नहीं है. उस ने उसे मक्खनपुर में ही किराए का कमरा लेने की सलाह दी. रशीद को उस की सलाह उचित लगी. इसलिए उस ने मक्खनपुर में किराए का कमरा ले लिया. अब नरगिस वहीं शाम का खाना ले कर पहुंच जाती और फिर सारी रात प्रेमी के आगोश में होती थी. करीब 6 महीने तक उन दोनों के बीच गुपचुप तरीके से संबंध बने रहे. कभीकभी नरगिस यह सोच कर डरती थी कि कहीं रशीद उसे छोड़ न दे. उस का रशीद पर कोई कानूनी हक तो था नहीं, जो वह उस पर अधिकार जताती. वह रशीद के मन की बात टटोलना चाहती थी. एक दिन बातों ही बातों में नरगिस ने उस की पत्नी सलमा के बारे में कुछ कह दिया तो रशीद भड़क उठा. नरगिस को लगा कि अभी सही वक्त नहीं आया है. रशीद को अपना बनाने में कुछ वक्त देना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जिस से वह पत्नी को छोड़ उसी का हो जाए.

वक्त आगे बढ़ रहा था पर नरगिस के गलीमोहल्ले वालों में नरगिस और रशीद के संबंधों की बात फैल गई थी. इकबाल चूंकि रिक्शा चला कर देर रात को लौटता था इसलिए उसे भाभी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. एक दिन एक पड़ोसी ने उस से कहा, ‘‘इकबाल, तुम अपनी भाभी पर नजर रखो. कहीं किसी दिन वह बच्चों को छोड़ कर भाग गई तो बच्चे तुम्हारे गले पड़ जाएंगे.’’ यह सुन कर इकबाल चिंतित हो उठा. उस ने उस पड़ोसी से पूछताछ की तो उसे भाभी की सच्चाई पता चली. यह बात इकबाल को पसंद नहीं आई. उस ने नरगिस को समझाने की कोशिश की तो नरगिस ने घूर कर उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भाई की मौत के बाद तुम ने कभी जानने की कोशिश की कि मैं किस हाल में रहती हूं, बल्कि घर की जिम्मेदारी उठाने के बजाय तुम ने मुझे अकेला छोड़ दिया. बेहतर यही है कि तुम मेरी जिंदगी में टांग मत अड़ाओ.’’

इकबाल के पास इस का कोई जवाब नहीं था. अब नरगिस के मन में एक ही ख्वाहिश थी और वह यह थी कि रशीद की रखैल से अब बीवी कैसे बने. वह रशीद को बताती कि उस के मोहल्ले वाले और देवर उस के खिलाफ हो रहे हैं. तब रशीद उसे समझाता कि जमाना तो कुछ न कुछ कहता ही है. हमें जमाने से लड़ना थोड़े ही है. रशीद की बातों से नरगिस को समझ में आने लगा था कि वह उसे सिर्फ इस्तेमाल कर रहा है. वह रिश्ते के प्रति गंभीर नहीं है और न ही उस का उस से निकाह करने का ही कोई इरादा है. इधर रशीद सोच रहा था कि वह नरगिस से मोहब्बत करता है और बदले में उस का खर्चा उठाता है. इतना ही बहुत है. दोनों के बीच की कशमकश रिश्ते में खटास ला रही थी. अब तो नरगिस उसे शिकोहाबाद जाने से भी रोकती थी.

इसी बीच रशीद की बीवी को भनक लग गई कि उस के शौहर ने फिरोजाबाद में भी कोई औरत रखी हुई है. यह जानकारी मिलते ही सलमा परेशान हो गई और एक दिन जब रशीद घर आया तो उस ने साफ कह दिया कि वह अपने मायके चली जाएगी और मांबाप को सब कुछ बता देगी. सलमा की इस धमकी से रशीद परेशान हो गया. वह दो नावों पर सवार था. अब उसे डूबने से डर लगने लगा. नरगिस इतनी करीब आ चुकी थी कि उसे छोड़ना भी मुश्किल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इधर नरगिस ने भी तय कर लिया कि वह सलमा को रशीद की जिंदगी से निकाल देगी. एक दिन उस ने रशीद से साफसाफ कह दिया, ‘‘बहुत हो गया. अब तुम्हें फैसला करना ही होगा.’’

‘‘कैसा फैसला?’’ रशीद चौंकते हुए बोला.

‘‘आखिर मैं कब तक तुम्हारी रखैल बन कर रहूंगी. सलमा को तलाक दो और मुझ से निकाह करो.’’ नरगिस अपनी बातों पर जोर देते हुए बोली. रशीद को नरगिस की यह बात इतनी बुरी लगी कि उस ने उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘आगे से कभी सलमा को तलाक देने की बात मुंह से मत निकालना.’’

नरगिस को भी गुस्सा आ गया. वह बोली, ‘‘तुम ने मुझे मारने की हिम्मत की. अब मैं भी बताती हूं कि या तो मुझ से निकाह करो वरना मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

रशीद नरगिस की धमकी से डर गया कि कहीं यह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज न करा दे. वह किसी चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था. इसलिए उस ने अपना व्यवहार सामान्य कर के उसे समझाया. पर मन ही मन उस ने उस से छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. वह इस का उपाय ढूंढने लगा. रशीद ने अब नरगिस से मिलनाजुलना कम कर दिया. वह दुकान बंद कर के किराए के कमरे पर आने के बजाए शिकोहाबाद स्थित अपने घर चला जाता था. नरगिस के पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देता था. नरगिस रशीद को खोना नहीं चाहता थी क्योंकि वह घर चलाने के पैसे जो देता रहता था.

नरगिस से अवैध संबंधों की बात रशीद की ससुराल तक पहुंच गई थी. अब रशीद को बदनामी से भी डर लगने लगा. वह समझ गया कि इस की वजह से समाज और रिश्तेदारी में उस की बेइज्जती हो सकती है इसलिए नरगिस नाम के कांटे को जीवन से जल्द निकालने का उस ने फैसला ले लिया. इस के बाद किसी न किसी बात को ले कर उस का नरगिस से झगड़ा होने लगा. तनाव की वजह से उस का धंधा भी चौपट हो चुका था. जिस मकान को उस ने नरगिस को किराए पर दिलाया था, वहां के आसपड़ोस वालों को भी दोनों के झगड़े की जानकारी हो चुकी थी, पर कोई भी उन के मामले में दखल नहीं देता था. जिस मकान में नरगिस रहती थी, वह अधबना था. मकान मालिक वहां नहीं रहता था.

12 दिसंबर, 2016 को दुकान बंद कर के रशीद नरगिस के पास कमरे पर पहुंचा. खाना खाने के बाद नरगिस ने पूछा, ‘‘तुम ने फैसला कर लिया?’’ ‘‘कैसा फैसला? देखो नरगिस, मैं तुम जैसी औरत के लिए अपने बीवीबच्चों को हरगिज नहीं छोड़ सकता.’’ वह दृढ़ता से बोला. ‘‘मुझ जैसी औरत….आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? पहले तो बड़ीबड़ी बातें करते थे. इस का मतलब यह हुआ कि अब तक तुम केवल मेरा इस्तेमाल कर रहे थे. ठीक है, अब देखना मैं क्या करती हूं.’’ कह कर जैसे ही वह उठने लगी, रशीद ने उसे धक्का दे कर गिरा दिया और झट से उस के सीने पर बैठ गया. वह उस का गला तब तक दबाए रहा जब तक वह मर नहीं गई. कुछ ही देर में नरगिस की लाश सामने थी और जुनून उतर चुका था. पुलिस का डर उसे सताने लगा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए वह उसे अधबने कमरे में ले गया और उस पर वहां मौजूद प्लास्टिक की बोरियां डाल कर आग लगा दी. इस के बाद वह वहां से फरार हो गया.

कुछ देर बाद गश्ती सिपाही वहां से गुजर रहे थे तो मकान से धुआं निकलता देख वे मकान के अंदर चले गए. तब मामला दूसरा ही सामने आया.

रशीद से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 28 दिसंबर, 2016 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.?

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेखौफ बदमाश : चार घंटे में दो को मार डाला

उत्तर-पूर्वी जिला में रविवार रात चार घंटे के भीतर ब्रहमपुरी और भजनपुरा में हुई गैंगवार में दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, जबकि गोली लगने से एक युवक गंभीर रूप से घायल हो गया. गैंगवार की सूचना पर पुलिस में हड़कंप मच गया. आननफानन में पहुंचे आला अधिकारी और पुलिस की कई टीमें देर रात तक जांच में जुटी रहीं. पुलिस का दावा है कि दोनों जगहों पर 50 से अधिक गोलियां चलीं, इनमें से 30 से 35 गोलियां मृतकों को लगी हैं.

ब्रह्मपुरी गली संख्या-7 के बाहर रात लगभग 9.30 बजे दो बाइक पर सवार होकर आए चार बदमाशों ने सड़क किनारे खड़े होकर बातचीत कर रहे मो. वाजिद और मो. फैज पर ताबड़तोड़ 20 से अधिक गोलियां चलाईं. हमले में वाजिद की मौत हो गई, जबकि मो. फैज की हालत गंभीर बनी हुई है. वाजिद को आठ और फैज को चार गोलियां लगीं. वाजिद के खिलाफ कई मामले दर्ज थे.

सूचना पर पहुंची पुलिस मौके पर छानबीन कर रही थी कि इसी बीच देर रात 1.30 बजे भजनपुरा में गोलियां चलने की सूचना मिली. मौके पर पहुंची पुलिस को पता चला कि दो बाइक पर आए चार बदमाशों ने 24 वर्षीय आरिफ हुसैन रजा को गोली मार दी, इससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.

सूत्रों के अनुसार, हमलावरों ने 30 से अधिक गोलियां चलाईं, जिनमें से लगभग 25 गोलियां आरिफ को लगीं. हालांकि, पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद आरिफ को 15 गोलियां लगने की बात कही है. मौके से गोलियों के 26 खोखे मिले हैं. हत्या का मुकदमा दर्ज कर भजनपुरा पुलिस छानबीन कर रही है.

मौत के बाद भी गोली मारी

पुलिस को जांच में पता चला कि हमलावरों में से एक ने हेलमेट लगा रखा था. हमलावरों ने जब आरिफ पर गोलियां चलाई तो वह जान बचाने के लिए घर की तरफ भागा. मगर गोली लगने के कारण वह कुछ दूर जाकर ही गिर पड़ा. बताया गया कि मौत के बाद भी हमलावर आरिफ पर गोलियां चलाते रहे. उसके सीने, सिर, पेट, पैर, हाथ और कमर आदि पर गोलियां लगी हैं.

दोनों जगह हमलावरों की संख्या चार थी

पुलिस गैंगवार और रंजिश सहित विभिन्न कोणों से मामले की जांच कर रही है. फिलहाल हमलावर पुलिस पकड़ से दूर हैं. दोनों ही वारदातों में दो बाइक पर सवार चार बदमाशों ने गोलियां चलाई हैं. गैंगवार के कारण पूरे जिले की पुलिस को चौकन्ना रहने के लिए कहा गया है.

फोन आने पर घर से निकला

पुलिस के अनुसार, आरिफ परिवार के साथ मौजपुर में रहता था. उसके परिवार में माता-पिता, भाई और दो बहनें हैं. वह पत्रचार से स्नातक करने के साथ ही पिता के कारोबार में भी मदद करता था. रविवार देर रात उसके मोबाइल पर एक कॉल आयी और वह बातचीत करते हुए घर से बाहर निकल गया. आरिफ का कोई आपराधिक रिकॉर्ड अभी तक पुलिस को नहीं मिला है.

बेटी के गुनाहगार बन गए मां बाप

इसी साल 17 मई की सुबह के करीब साढ़े 7, पौने 8 बजे का समय रहा होगा, जब जयपुर की जगदंबा विहार कालोनी में सिविल इंजीनियर अमित नायर के घर के बाहर एक होंडा अमेज कार आ कर रुकी. कार से 4 लोग उतरे, जिन में एक महिला भी थी. उन में से एक आदमी कार के पास खड़ा हो गया तो बाकी महिला समेत 3 लोग घर के सामने जा कर खड़े हो गए.

उन में से अधेड़ उम्र के एक आदमी ने आगे बढ़ कर घर की डोरबेल बजाई. डोरबेल की आवाज सुन कर अमित नायर की पत्नी ममता ने गेट खोला. गेट के बाहर पापामम्मी को देख कर वह खुशी से फूली नहीं समाई. वह शिकायत भरे लहजे में पापा से लिपट कर बोली, ‘‘पापा, बेटीदामाद की याद नहीं आई क्या, जो इतने दिनों बाद आज आए हो?’’

ममता जिस आदमी से लिपटी थी, वह उस के पिता थे. उन का नाम जीवनराम था. उन्होंने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है बेटी. आखिर हम तेरे मांबाप हैं. तूने भले ही अपनी मनमरजी कर ली है, लेकिन हम तुझे कैसे भूल सकते हैं.’’

‘‘पापा, आप लोग बाहर ही खड़े रहेंगे या घर के अंदर भी आएंगे?’’ ममता ने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘‘मम्मी, आप क्यों चुपचाप खड़ी हैं?’’

‘‘बेटी, आज हम सब तुम से ही मिलने आए हैं.’’ मां भगवानी देवी ने कहा.

‘‘पापा, ये आप के साथ कौन लोग हैं, मैं इन्हें नहीं जानती?’’ ममता ने शंका भरे लहजे में पूछा.

जीवनराम ने ममता को भरोसा दिलाया, ‘‘बेटी, ये हमारे जानकार हैं. हम साथसाथ कहीं जा रहे थे. सोचा, बेटी का घर रास्ते में है तो उस से मिलते चलें. इसी बहाने आपसी गिलेशिकवे भी दूर हो जाएंगे.’’

‘‘आओ, अंदर आ जाओ.’’ ममता ने मम्मीपापा व उन के साथ आए लोगों से कहा, ‘‘आप सब चायनाश्ता कर के जाना.’’

ममता के कहने पर जीवनराम, उन की पत्नी भगवानी देवी और उन के साथ आया वह आदमी ममता के साथ घर के अंदर जा कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठ गए.

हालांकि सुबह का समय था, लेकिन सूरज की तपन से गरमी बढ़ने लगी थी. इसलिए ममता ने ड्राइंगरूम का एसी औन कर दिया. इस के बाद फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और 3 गिलासों में पानी डाला. तीनों गिलास एक ट्रे में रख कर वह ड्राइंगरूम में पहुंची और मम्मीपापा व उन के साथ आए व्यक्ति को एकएक गिलास दे दिया. तीनों ने पानी पिया.

पानी पीने के बाद जीवनराम ने पूछा, ‘‘बेटी, दामादजी नजर नहीं आ रहे, वह कहां हैं?’’

‘‘पापा, वह अभी सो रहे हैं. वह थोड़ा देर से उठते हैं, लेकिन आप आए हैं तो मैं उन्हें उठाए देती हूं.’’ ममता ने हंसते हुए कहा.

‘‘ठीक है बेटी, दामादजी को जगा दो, उन से भी गिलेशिकवे दूर कर लें.’’ जीवनराम ने लंबी सांस ले कर कहा.

पापा के कहने पर ममता बैडरूम में गई और पति अमित को जगा कर बोली, ‘‘मम्मीपापा आए हैं, आपसी गिलेशिकवे दूर करना चाहते हैं.’’

ममता के पापामम्मी के आने की बात सुन कर अमित हैरान रह गया. वह जल्दी से उठा और वाशबेसिन पर जा कर मुंह धोया. तौलिए से मुंह पोंछते हुए वह ड्राइंगरूम में पहुंचा और ममता के मम्मीपापा को हाथ जोड़ कर नमस्कार कर के बोला, ‘‘पापाजी, आज आप को हमारी याद कैसे आ गई?’’

‘‘बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ जीवनराम ने कहा, ‘‘तुम से शादी करने के बाद ममता तो हमें भूल ही गई. उसे हमारे साथ भेज दो तो कुछ दिन हमारे साथ रह लेगी. वैसे भी वह प्रैग्नेंट है, इसलिए उसे आराम की जरूरत है.’’

अमित के जवाब देने से पहले ही ममता ने पिता की बात काट कर कहा, ‘‘पापा, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मुझे यहां किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है.’’

अमित ने ममता की बात का समर्थन किया, ‘‘पापाजी, ममता आप के साथ नहीं जाना चाहती, इस का कहीं जाने का मन नहीं है.’’

ममता और अमित की बातें सुन कर जीवनराम गुस्से से उबल पड़े, लेकिन उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने दिया. उन्होंने अपने साथ आए युवक को इशारा किया. इशारा मिलते ही उस ने पिस्तौल निकाली और अमित पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगा. कई गोलियां लगने से अमित ड्राइंगरूम में ही फर्श पर गिर पड़ा. उस के सीने, गरदन और पैर में 4 गोलियां लगीं.

अमित के गिरते ही ममता चीखने लगी. जीवनराम और उस की पत्नी ममता के बाल पकड़ कर घसीटते हुए जबरन अपने साथ ले जाने लगे, लेकिन तब तक गोलियों की आवाज और ममता की चीखें सुन कर अंदर से अमित की मां रमा देवी आ गई थीं. कुछ पड़ोसी भी आ गए थे. कार के पास खड़े व्यक्ति ने गोलियों की आवाज सुन कर कार स्टार्ट कर दी थी. जीवनराम, भगवानी देवी और उन के साथ आया युवक बाहर खड़ी कार में बैठ कर फरार हो गए.

दिनदहाड़े घर में घुस कर अमित नायर की हत्या किए जाने से कालोनी में हड़कंप मच गया. आसपास के लोग अमित के मकान पर एकत्र हो गए. पुलिस को सूचना दी गई तो पुलिस ने वायरलैस पर सूचना दे कर नाकेबंदी करा दी. पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पूछताछ में जो बातें सामने आईं, उस से साफ हो गया कि यह औनर किलिंग का मामला था.

अमित की हत्या उस के सासससुर ने अपने साथ लाए भाड़े के शूटर से कराई थी. मातापिता ने ही अपनी बेटी की मांग उजाड़ दी थी.

आमतौर पर औनर किलिंग के ज्यादातर मामले हरियाणा के जाट समुदाय में सामने आए हैं. राजस्थान में हरियाणा से सटे इलाकों में ऐसी कुछ घटनाएं हुई हैं, लेकिन राजधानी जयपुर में औनर किलिंग की संभवत: इस पहली घटना ने पुलिस अधिकारियों को झकझोर दिया था.

रमा देवी ने उसी दिन थाना करणी विहार में अपने बेटे अमित के सासससुर व 2 अन्य लोगों के खिलाफ घर पर आ कर अमित की गोली मार कर हत्या करने व बहू ममता को जबरन ले जाने का प्रयास करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला भारतीय दंड विधान की धारा 453, 302 व 120बी के अंतर्गत दर्ज किया.

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार, पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता, पुलिस उपायुक्त (अपराध) विकास पाठक के निर्देशन में कई पुलिस टीमों का गठन किया. इन टीमों में अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) रतन सिंह, सहायक पुलिस आयुक्त वैशालीनगर रामअवतार सोनी, करणी विहार थानाप्रभारी महावीर सिंह, चौमूं थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, हरमाड़ा थानाप्रभारी लखन सिंह खटाना, भांकरोटा थानाप्रभारी हेमेंद्र कुमार शर्मा, सेज थानाप्रभारी गयासुद्दीन, झोटवाड़ा थानाप्रभारी गुर भूपेंद्र सिंह, वैशालीनगर थानाप्रभारी भोपाल सिंह भाटी और यातायात पुलिस इंसपेक्टर निहाल सिंह को शामिल किया गया.

इन के अलावा एफएसएल, एमओबी शाखा व साइबर सेल की सहायता से अमित नायर हत्याकांड की जांच शुरू कर के अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी गई. दूसरे दिन पुलिस ने शूटर का स्कैच बनवा कर जारी कर दिया.

पुलिस को अमित के सासससुर और रिश्तेदारों के नामपते पता चल गए थे. अमित के ससुर जीवनराम जाट मूलरूप से सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा के रहने वाले थे. फिलहाल वह जयपुर के वैशालीनगर में झारखंड मोड़ स्थित गणेश कालोनी में रह रहे थे.

पुलिस को शूटरों का पता जीवनराम से ही मिल सकता था, साथ ही अमित की हत्या का कारण भी उन के पकड़ में आने के बाद ही पता चल सकता था. इसलिए पुलिस ने जीवनराम को गिरफ्तार करने के लिए जयपुर, सीकर, लोसल, नागौर जिले में डीडवाना, कुचामन, लाडनूं, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, दिल्ली व हरियाणा में स्थित उस के घर वालों तथा रिश्तेदारों के यहां कई जगहों पर दबिश दी.

जांच के दौरान पुलिस को नागौर जिले के डीडवाना कस्बे में वह कार मिल गई, जिस में अमित की हत्या के आरोपी उस के घर आए थे. पुलिस को पता चला कि जीवनराम का बेटा मुकेश डीडवाना में ही रहता है. वह रेलवे में जेईएन है. जांच में पता चला कि अमित की हत्या से पहले और बाद में मुकेश लगातार मातापिता के संपर्क में था.

पुलिस ने अमित की हत्या की साजिश के आरोप में 19 मई को मुकेश को गिरफ्तार कर लिया. मुकेश ने पूछताछ में बताया कि अमित की हत्या के बाद मां भगवानी देवी व पिता जीवनराम जयपुर से सीधे डीडवाना आए थे. वे दोनों करीब 10 मिनट उस के पास रुके थे. इस दौरान जीवनराम ने मुकेश को बताया था कि अमित का काम तमाम कर दिया गया है. इस के बाद वे चले गए थे. पुलिस को मुकेश से पूछताछ में इस मामले में कुछ अहम जानकारियां मिलीं. इन जानकारियों के आधार पर पुलिस लगातार अभियुक्तों की तलाश में जुटी रही.

लगातार प्रयास के बाद पुलिस ने आखिर 24 मई को 4 आरोपियों जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी के अलावा उन के ही गांव मोरडूंगा के रहने वाले भगवानाराम जाट तथा नागौर जिले के मौलासर थाना के गांव कीचक निवासी रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को गिरफ्तार कर लिया.

इन में मोरडूंगा निवासी भगवानाराम जाट पंचायत समिति का पूर्व सदस्य था. रवि उर्फ रविंद्र शेखावत शूटर था. उस ने इस घटना से करीब 6 महीने पहले 3 लाख रुपए में अमित की हत्या की सुपारी ली थी. पुलिस ने जीवनराम को हरियाणा के कैथल, भगवानी देवी और पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को सीकर तथा रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को जयपुर से पकड़ा था.

आरोपियों से पूछताछ में पुलिस को अमित की हत्या करने वाले शूटरों का पता चल गया था. पूछताछ में जीवनराम ने पुलिस को बताया था कि भाड़े के 2 शूटरों विनोद गोरा तथा रामदेवलाल ने गोलियां चला कर अमित को मौत की नींद सुलाया था. ये दोनों शूटर भी जीवनराम के साथ ही कार से फरार हो गए थे.

बाद में दोनों शूटर जीवनराम से अलग हो कर गुजरात के शहर सूरत चले गए थे. यह सूचना मिलने पर जयपुर पुलिस की 2 टीमें शूटरों की तलाश में सूरत गईं, लेकिन तब तक वे दोनों सूरत से मुंबई चले गए थे. जयपुर पुलिस मुंबई पहुंची तो पता चला कि दोनों शूटर गोवा चले गए हैं.

जयपुर पुलिस की टीमें शूटरों का लगातार पीछा कर रही थीं. जयपुर पुलिस के गोवा पहुंचने से पहले ही वे वहां से भी चले गए थे. दोनों शूटरों का पीछा करते हुए जयपुर पुलिस राजस्थान के नागौर आ गई. नागौर जिले के कुचामन सिटी की कृष्णा कालोनी के एक मकान में दोनों शूटरों के होने की सूचना पर पुलिस ने 5 जून को देर रात दबिश दी.

दबिश में विनोद गोरा पकड़ा गया, जबकि रामदेवलाल नहीं मिला. पता चला कि वह कुचामन से उसी दिन विनोद गोरा से अलग हो गया था. लाडनूं निवासी गिरफ्तार शूटर विनोद गोरा ने पुलिस को बताया कि जीवनराम ने अमित को मारने के लिए उसे व रामदेवलाल को 2 लाख रुपए की सुपारी दी थी. वारदात के दौरान विनोद गोरा अमित के घर के बाहर हथियार ले कर खड़ा था, जबकि रामदेवलाल घर के अंदर गया था.

दोनों शूटरों ने तय किया था कि घर के अंदर अगर रामदेवलाल किसी कारण से अमित की हत्या में सफल नहीं हो पाता तो विनोद उस की मदद करेगा. अमित की हत्या के बाद जीवनराम ने दोनों शूटरों को 50 हजार रुपए दिए थे.

गिरफ्तार आरोपियों व अमित की पत्नी ममता से पूछताछ के बाद औनर किलिंग के नाम पर अमित की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह जीवनराम जाट और उस के परिवार की झूठी आनबानशान और इज्जत का दिखावा मात्र थी.

सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा का रहने वाला जीवनराम जाट सेना में नौकरी करता था. वह सेना की 221 मीडियम आर्टिलरी से सन 2000 में रिटायर हुआ था. इस के बाद वह परिवार के साथ जयपुर में रहने लगा था. उस के परिवार में पत्नी भगवानी देवी के अलावा बेटा मुकेश और बेटी ममता थी. सेना से रिटायर होने के बाद वह नेशनल इंश्योरेंस कंपनी में ड्राइवर हो गया था.

दूसरी ओर अमित नायर के पिता राघवन सोमन मूलरूप से केरल के रहने वाले थे. वह जयपुर में ए श्रेणी के ठेकेदार थे. अमित की मां रमादेवी जयपुर से नर्स के पद से रिटायर हुई थीं. राघवन का करीब ढाई-3 साल पहले निधन हो गया था.

उस समय ममता और अमित के परिवार जयपुर के वैशालीनगर में आसपास रहते थे. दोनों परिवारों में अच्छा परिचय था. जीवनराम का बेटा मुकेश और अमित नायर जयपुर के केंद्रीय विद्यालय संख्या-4 में साथसाथ पढ़ते थे. वहीं दोनों की आपस में दोस्ती हो गई थी. जीवनराम की बेटी ममता जयपुर के ही केंद्रीय विद्यालय संख्या-2 में पढ़ती थी.

बाद में अमित ने जयपुर के ज्योतिराव फुले कालेज से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. ममता ने मोदी इंस्टीट्यूट लक्ष्मणगढ़ से एलएलबी की पढ़ाई की और मुकेश ने पूर्णिमा कालेज से बीटेक किया.

आसपास रहने और केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई करने के दौरान ही अमित का अपने सहपाठी मुकेश की बहन ममता से परिचय हुआ. कालेज स्तर की पढ़ाई के दौरान उन का यह परिचय प्यार में बदल गया. हालांकि दोनों अलगअलग कालेजों में पढ़ते थे, लेकिन प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए वे समय निकाल ही लेते थे.

ममता ने अपने प्यार की भनक घर वालों को नहीं लगने दी. जब ममता और अमित का प्यार परवान चढ़ने लगा तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों अलगअलग जाति से थे. ममता जहां जाट परिवार की बेटी थी, वहीं अमित दक्षिण भारतीय था.

ममता को अच्छी तरह पता था कि उस के घर वाले अमित और उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. जातिसमाज के बंधनों को देखते हुए अमित और ममता ने सन 2011 में आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, लेकिन इस शादी का अपने परिवार वालों को पता नहीं लगने दिया. भले ही उन दोनों ने शादी कर ली थी, लेकिन वे अपनेअपने घरों पर अलगअलग ही रहते थे.

सन 2015 में जब ममता की एलएलबी की पढ़ाई पूरी हो गई तो अमित व ममता ने अपनी शादी परिवार और समाज में जाहिर करने का फैसला कर लिया. एक दिन ममता ने अमित से अपनी शादी की बात अपने मातापिता को बता दी और उन की इच्छा के खिलाफ उसी दिन घर छोड़ कर अमित के साथ रहने चली गई. तब तक अमित का परिवार करणी विहार में जा कर रहने लगा था.

बेटी का इस तरह दूसरी जाति के युवक से शादी करना जीवनराम, उस की पत्नी और बेटे मुकेश को अच्छा नहीं लगा. उन्हें इस बात पर ज्यादा गुस्सा था कि ममता ने बिना बताए शादी कर ली थी. मुकेश इस बात से ज्यादा खफा था कि उस के साथ पढ़ने और पड़ोस में रहने वाले दोस्त अमित ने उस की बहन से ही शादी कर के दोस्ती में दगा किया था.

ममता अपने पति अमित के साथ हंसीखुशी वैवाहिक जीवन गुजारने लगी. अमित प्रौपर्टी व कंस्ट्रक्शन का काम करता था. इस बीच ममता के मातापिता व भाई लगातार उस पर दबाव डालते रहे कि वह अमित से संबंध तोड़ ले. उन्होंने कई बार ममता को अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन वे इस में सफल नहीं हुए. अमित की शिकायत पर पुलिस ने वारदात से करीब 8 महीने पहले ममता के मातापिता व भाई पर पाबंदी भी लगा दी थी कि वे अमित के घर न जाएं.

ममता इसी साल जनवरी में गर्भवती हो गई थी. इसी वजह से कुछ महीनों से उस की अपनी मां से बातचीत होती रहती थी. करीब 3 महीने से बीचबीच में ममता के मातापिता उस से मिलने आते रहते थे. इस से अमित व ममता को लगने लगा था कि अब सब ठीक हो गया है. ममता अपने मांबाप के मंसूबों का अंदाजा नहीं लगा पाई थी.

दूसरी तरफ जीवनराम और उस का परिवार अमित नायर को अपना सब से बड़ा दुश्मन मान रहा था. वे उसे रास्ते से हटाने की योजना में लगे हुए थे. जीवनराम ने अपने गांव मोरडूंगा के रहने वाले पुराने दोस्त पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को अपनी परेशानी बताई. भगवानाराम ने अमित को ममता के रास्ते से हटाने के लिए जीवनराम को रवि उर्फ रविंद्र शेखावत से मिलवाया.

रवि ने 3 लाख रुपए में अमित की हत्या करने की सुपारी ले ली. योजना के तहत जीवनराम और भगवानाराम ने रवि के साथ मिल अमित की रेकी कर उस की हत्या का मौका तलाशने लगे. इसी बीच जीवनराम और उस के घर वालों ने भगवानाराम के साथ मिल कर भाड़े के 2 अन्य शूटरों रामदेवलाल और विनोद गोरा को 2 लाख रुपए में अमित की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया.

योजनाबद्ध तरीके से जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और किराए के दोनों शूटर रामदेवलाल व विनोद गोरा होंडा अमेज कार आरजे14सीएक्स 0313 से 17 मई की सुबह साढ़े 7 से पौने 8 बजे के बीच जगदंबा विहार में मकान नंबर सी-493 पर बेटीदामाद के घर पहुंचे. वहां एक शूटर विनोद गोरा कार के पास बाहर खड़ा रहा, जबकि जीवनराम, भगवानी देवी और रामदेवलाल घर के अंदर चले गए.

घर के अंदर जीवनराम ने अमित को बुलवाया और ममता को साथ ले जाने की बात कही. लेकिन ममता के इनकार कर देने पर जीवनराम को गुस्सा आ गया. उन्होंने शूटर से अमित पर गोलियां चलवा कर उस की हत्या करा दी. इस के बाद उन्होंने ममता को जबरन ले जाने का प्रयास किया, लेकिन अमित की मां व पड़ोसियों के आ जाने से वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके और कार में बैठ कर भाग गए.

पूछताछ में पता चला कि जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और दोनों शूटर वारदात के बाद जयपुर से निकले तो बगरू के पास दोनों शूटरों को उतार दिया. इस के बाद जीवनराम व उस की पत्नी भगवानी देवी सीधे डीडवाना पहुंचे, जहां वे रेलवे में नौकरी करने वाले अपने बेटे मुकेश से मिले. उन्होंने उसे अमित का काम तमाम करने के बारे में बताया और अपनी कार वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गए.

दोनों डीडवाना से नागौर, फलौदी, रामदेवरा हो कर सूरतगढ़ पहुंचे. सूरतगढ़ से जीवनराम ने पत्नी भगवानी देवी को बस में बैठा कर सीकर भेज दिया. इस के बाद जीवनराम बीकानेर, हिसार हो कर कैथल पहुंच गया.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि व्यापक जांच के बाद अमित हत्याकांड में 7 लोगों की संलिप्तता सामने आई है. इन में से 6 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वारदात में इस्तेमाल कार भी बरामद कर ली गई है. कथा लिखे जाने तक पुलिस शूटर रामदेवलाल की तलाश कर रही थी.

इस मामले में गिरफ्तार जीवनराम ने पुलिस को बताया कि अमित ने ममता को पहले धर्मबहन बनाया. वह रक्षाबंधन पर उस से राखी भी बंधवाता रहा. इस के बाद अपने प्यार में फांस कर उस से शादी कर ली. उस की शादी का पता चलते ही हम ने अमित को ठिकाने लगाने की ठान ली थी.

वारदात के कुछ दिनों बाद तक ममता के परिवार की सुरक्षा के लिए उस के घर के बाहर पुलिस तैनात रही. ममता की याचिका पर हाईकोर्ट ने भी पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया है कि ममता और उस के घर वालों के अलावा गवाह पड़ोसियों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

बहरहाल, अमित की हत्या करवा कर जीवनराम और परिवार ने सीने में सुलग रही आग भले ही ठंडी कर ली हो, लेकिन जातिबिरादरी में शर्मिंदगी की आड़ ले कर ऐसा कृत्य करने वालों को कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं करता. जीवनराम ने बेटी का सुहाग उजाड़ कर भगवानी देवी की ममता का भी गला घोंट दिया. ममता का गर्भस्थ शिशु संभवत: सितंबर में जन्म लेगा तो उस मासूम को पिता का प्यार नहीं मिल पाएगा.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुलिस के लिए सिरदर्द बने नाइजीरिया के अपराधी

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने नशीली दवाओं की तस्करी के आरोप में नाइजीरिया के एक नौजवान को गिरफ्तार किया. उस के पास से पौने 2 किलो कोकीन बरामद हुई. इंटरनैशनल बाजार में इस कोकीन की कीमत एक करोड़, 75 लाख रुपए आंकी गई.

पुलिस के मुताबिक, पकड़े गए 32 साला तस्कर का नाम पौल चीनेडू अगवोर उर्फ एमा था. वह ओनिशा, नाइजीरिया का रहने वाला था. वह कई सालों से भारत में रह कर नशीली दवाओं की तस्करी कर रहा था. उस का नैटवर्क देश के कई शहरों में था. वह नशीली दवाओं को बड़ी चालाकी से कभी कपड़ों में, कभी मिठाई के डब्बों में या पेंटिंग के फ्रेम में भर कर एक शहर से दूसरे शहर ले जाता था और वहां दूसरे तस्करों को सप्लाई करता था.

चंडीगढ़ पुलिस ने करोड़ों रुपए के डौलर देने के बहाने लोगों से ठगी करने वाले नाइजीरिया के एक नौजवान इमैनुअल हैरी को गिरफ्तार किया. पुलिस ने उस के पास से नकली डौलर के 36 पैकेट बरामद किए (असली होने पर ये डौलर 5 करोड़ रुपए के होते).

पुलिस के मुताबिक, हैरी औरत बन कर लोगों को ईमेल भेजता था. उस ईमेल में वह लिखता था कि उसे एक जानलेवा बीमारी है. उस का इस दुनिया में कोई नहीं है. वह मरने से पहले अपनी सारी जायदाद, जो 85 मिलियन डौलर की है, किसी अच्छे शख्स को दान करना चाहती है. जो कोई इस जायदाद को पाना चाहता है, कृपया पूरी डिटेल्स के साथ उस से बात करे.

अगर कोई शख्स इस बात में दिलचस्पी दिखाते हुए ईमेल का जवाब देता, तब उसे दूसरा मेल मिलता. इस में बताया जाता कि रुपए देने के लिए उस का वकील माइकल नैल्सन कागजी कार्यवाही पूरी करने के लिए भारत पहुंच चुका है. वह सारी जानकारी लेने के बाद जायदाद दे देगा.

अगले कुछ दिनों में हैरी खुद ही माइकल नैल्सन बन कर फोन द्वारा बात कर के ईमेल करने वाले शख्स से डिटेल लेता था. इस के बाद वह कहता था कि इतनी बड़ी रकम को डायरैक्ट किसी बैंक में ट्रांसफर करना मुश्किल है. भारतीय रिजर्व बैंक के जरीए ही भेजना मुमकिन है. इस के लिए भारतीय नियम के मुताबिक वैट टैक्स समेत दूसरे शुल्क चुकाने होंगे.

लोग उस के झांसे में आ कर वैट टैक्स के रूप में रुपए जमा कर देते थे. मोटी रकम लेने के बाद वह उन्हें नकली डौलर थमा देता था.

पुलिस के मुताबिक, इमैनुअल हैरी भारत के कई शहरों के सौ से भी ज्यादा लोगों को करोड़ों रुपए का चूना लगा चुका था.

पुणे, महाराष्ट्र की रहने वाली एक तलाकशुदा औरत किसी ब्रिटेन के बाशिंदे से शादी कर के विदेश जाना चाहती थी. दूसरी शादी के बाद करोड़ों रुपए में खेलने की सोच रखने वाली इस औरत ने सैकंड शादीडौटकौम पर अपना ब्योरा रजिस्टर करा दिया.

इस प्रोफाइल को पढ़ कर रौबर्ट नाम के एक नौजवान ने उस औरत से बात की. उस ने खुद को कनाडा का रहने वाला नागरिक बताया. चैटिंग करते वक्त उस ने औरत को बताया कि वह उसे काफी पसंद है. वह उस के साथ घर बसाना चाहता है.

रौबर्ट ने यह दावा भी किया कि उस के पास 3 लाख, 20 हजार कनेडियन डौलर यानी एक करोड़, 75 लाख रुपए हैं. वह सारे रुपए उसे दे देगा.

यह सुन कर वह औरत खुशी से उछल पड़ी. उसे विदेश जाने के सपने पूरे होते नजर आने लगे. कुछ दिनों की चैटिंग के बाद जब उस नौजवान को यह महसूस हो गया कि वह औरत पूरी तरह से उस पर फिदा है और वह उस के झांसे में आ चुकी है, तब एक दिन उस ने अपनी मां की तबीयत खराब होने और उस के इलाज के लिए 8 लाख रुपए मंगवाए. फिर मलयेशिया एयरपोर्ट पर कस्टम द्वारा रुपए पकड़े जाने की बात कह कर और रुपए मंगवाए.

इस तरह रौबर्ट ने उस औरत से अलगअलग बहाने बना कर के कुल 40 लाख, 59 हजार रुपए ठग लिए और उस के बाद उसे फोन करना बंद कर दिया.

उस औरत ने पुलिस में शिकायत की. पुलिस द्वारा मोबाइल फोन, ईमेल, फेसबुक, बैवसाइट द्वारा खोजबीन करने पर पता चला कि रौबर्ट ब्रिटिश नागरिक नहीं, बल्कि नाइजीरिया का था. उस का असली नाम पौल ओकाफोर था. वह तलाकशुदा, विधवा, विकलांग औरतों को अपने बारे में बड़ीबड़ी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर लेता था. इस के बाद वह उन से किसी न किसी बहाने रुपए ठग लेता था.

पुणे पुलिस ने बेंगलुरु में छापा मार कर उसे एक फ्लैट से गिरफ्तार किया. उस के साथ एक भारतीय औरत को भी गिरफ्तार किया गया. पौल ओकाफोर उर्फ रौबर्ट के मुताबिक, वह औरत उस की पत्नी थी. भारतीय मूल की उस औरत का नाम सुप्रिया एलिजाबेथ उर्फ मोना था.

पौल ओकाफोर के ठगी के काम में उस की यह पत्नी भी मदद करती थी. पुणे पुलिस के मुताबिक, पौल ओकाफोर को इस के पहले भी 43 लाख रुपए की ठगी के एक मामले में गिरफ्तार किया जा चुका था.

देशभर में सैकड़ों लोगों के साथ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करने के आरोप में चेन्नई, तमिलनाडु पुलिस ने नाइजीरिया के 2 नागरिकों रीलेंड चुकबुदी उर्फ लुकारा और स्टैलनी रेनसोगा को गिरफ्तार किया. पुलिस ने उन के पास से 5 डाटा कार्ड, 5 पैन ड्राइव, 3 लैपटौप, काफी मात्रा में ब्लैक डौलर बरामद किए.

राजू नाम के एक नौजवान ने नाइजीरिया के 2 लोगों द्वारा ब्लैक डौलर दे कर 44 लाख रुपए ठगे जाने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई. पुलिस ने नाइजीरिया के उन नौजवानों की पहचान के लिए फेसबुक से नाइजीरिया के 2 सौ नागरिकों के फोटो जुटाए. उन्हें राजू को दिखाने के बाद वह एक आरोपी को पहचान गया. पुलिस ने उन्हें उन की मोबाइल लोकेशन से मुंबई में गिरफ्तार कर लिया.

फेसबुक के जरीए दोस्ती करने के बाद एक शख्स से करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले नौजवान को कोलकाता पुलिस ने उस की प्रेमिका के साथ दिल्ली के उत्तम नगर इलाके से गिरफ्तार किया.

गिरफ्तार किए गए 35 साला आरोपियों के नाम विंसैंट मोर्लिय और 30 साला सुशान आओमिन उर्फ तोशेली थे. वे दोनों मूलरूप से नाइजीरिया के रहने वाले थे, जो फेसबुक पर खुद को अमेरिका और डेनमार्क के बाशिंदे और डौक्यूमैंट्री फिल्म बनाने वाले बताते थे.

विंसैंट मोर्लिय ने एक निजी कंपनी में प्रोड्यूसर के पद पर काम करने वाले अनुतोष डे से फेसबुक पर दोस्ती की थी. वे दोनों फेसबुक पर फिल्मों को ले कर काफी समय तक चैटिंग करते थे. इस दौरान विंसैंट ने शांति निकेतन पर डौक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की बात कही. अनुतोष ने उसे हर तरह से मदद करने का भरोसा दिलाया.

एक दिन अनुतोष के पास विंसैंट मोर्लिय का फोन आया, जिस में उस ने कहा कि वह भारत आ गया है, लेकिन यहां एक परेशानी में पड़ गया है. उसे मदद की जरूरत है. उस ने आगे बताया कि ज्यादा रुपए होने की वजह से एयरपोर्ट पर भारतीय कस्टम महकमे वालों ने उसे पकड़ लिया है. कस्टम से निकलने के लिए उस ने कुछ रुपए जमा करने की बात कही.

अनुतोष ने रुपए जमा कर के उस की मदद कर दी. इस के बाद कई तरह के बहानों से विंसैंट मोर्लिय ने उन से रुपए मंगवाए.

अनुतोष ने कई किस्तों में कुल 18 लाख, 78 हजार, 6 सौ रुपए रुपए उस के बैंक खाते में ट्रांसफर किए. जब अनुतोष ने महसूस किया कि उस के साथ ठगी हो गई है, तब उस ने कोलकाता पुलिस में इस की शिकायत दर्ज की.

कोलकाता पुलिस द्वारा जांच शुरू कर बैंक अकाउंट के जरीए विंसैंट मोर्लिय को ढूंढ़ निकाला. पुलिस ने दिल्ली के सफदरजंग एंक्लेव इलाके से विंसैंट मोर्लिय और सुशान आओमिन उर्फ तोशेली को गिरफ्तार किया.

उन के पास 2 पासपोर्ट और साल 2010 का एक ड्राइविंग लाइसैंस मिला. कोलकाता पुलिस के मुताबिक वे दोनों साल 2010 से भारत में रह कर लोगों के साथ धोखाधड़ी कर रहे थे.

नाइजीरिया के अपराधी भारतीय पुलिस के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं. वे अपराध करने के काफी शातिर तरीके अपनाते हैं. वे अपने शिकार से जो भी रकम भारत के किसी बैंक के अकाउंट में जमा कराते हैं, वह अकाउंट किसी भारतीय का होता है.

नाइजीरिया के अपराधी किसी भारतीय को मोटा कमीशन देने की बात कह कर उस के अकाउंट में रकम मंगवा लेते हैं. रुपए मंगवाने के लिए वे हर बार किसी नए अकाउंट होल्डर को पकड़ते हैं. शिकायत होने पर मामला उस भारतीय के खिलाफ बनता है और वे साफ बच जाते हैं.

कोई भी विदेशी नागरिक भारत आने पर जरूरत पड़ने पर बैंक में अपना अकाउंट खुलवा सकता है. पासपोर्ट दिखा कर विदेशियों का बैंक में अकाउंट आसानी से खुल जाता है, पर जो विदेशी नागरिक भारत में अपराध करने के मकसद से आते हैं, वे यहां आते ही अपना पासपोर्ट फाड़ कर फेंक देते हैं.

इस की 2 वजहें होती हैं. पहली, इस से वे अपनी पहचान छिपाने में कामयाब हो जाते हैं. दूसरी, अपराध करने के बाद पकड़े जाने पर उन्हें उन के देश भेजना पुलिस के लिए मुश्किल हो जाता है.

एसीपी सुनील देशमुख ने बताया, ‘‘इन के मोबाइल नंबर को भी सुबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि इन के मोबाइल नंबर भी किसी भारतीय के नाम से रजिस्टर्ड होते हैं.

‘‘आजकल नाइजीरिया के अपराधी ब्रिटेन या अमेरिका के सिम का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में वहां से जानकारी लेना बड़ा मुश्किल है. इन की आवाज को टेप कर सुबूत के रूप में कोर्ट में पेश कर उसे साबित करना मुश्किल होता है, क्योंकि शिकायत करने वाले अकसर उन की आवाज को पहचान नहीं पाते हैं.’’

नाइजीरया के ज्यादातर अपराधी काफी उग्र होते हैं. वे अगर भड़क गए, तो 2-3 पुलिस वाले भी उन्हें संभाल नहीं सकते. उन्हें कंट्रोल करने के लिए पुलिस फोर्स की जरूरत पड़ती है, वरना वे भाग सकते हैं. खाने के मामले में उन पर काफी खर्च करना पड़ता है. ठीक से खाना न मिलने पर वे और ज्यादा ऊधम मचाते हैं.

कोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे जगह बदल लेते हैं. उन के नाम का वारंट निकलने के बाद भी उन्हें खोज पाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि देश में रहने का उन का कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है.

नशीली दवाओं जैसे मामलों में उन्हें जमानत नहीं मिल पाती है, पर जब कोर्ट का ट्रायल चलता है, उस वक्त गवाह न मिल पाने की वजह से वे छूट जाते हैं.

उन के जेल जाने पर जेल प्रशासन भी परेशान हो जाता है. वहां पर दूसरे कैदियों के साथ मारपीट करना, झगड़ा करना, दूसरे कैदियों का खाना छीन लेना, धमकी देना जैसी हरकतों से सभी परेशान हो जाते हैं. उन्हें उन के देश वापस भेजना भी पुलिस अफसरों के लिए परेशान कर देने वाली बात होती है. ऐसा करते वक्त पुलिस व सरकार को अपनी जेब से हवाईजहाज का टिकट खरीद कर देना होता है.

क्या उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती? इस सवाल पर एसीपी सुनील देशमुख का कहना हैं, ‘‘इस बारे में अभी तक सरकार द्वारा नाइजीरिया के लोगों पर भारत आने की रोक लगाने की बात सामने नहीं आई है. इस मामले में राजनीति और कूटनीति वाले समझ सकते हैं कि क्या करना है, क्या नहीं. अपने देश भेजा गया आरोपी दोबारा वापस न आए, इस के लिए पुलिस द्वारा सावधानी बरती जाती है.

‘‘नाइजीरिया के अपराधी को उस के देश वापस भेजते वक्त पुलिस उस का बायोमीट्रिक्स और फिंगर प्रिंट ले लेती है और उसे देश के सभी एयरपोर्ट पर भेज दिया जाता है. अगर वह दोबारा भारत में आता है, तो एयरपोर्ट पर ही पहचान लिया जाता है.’’

लोगों को एक बात और सोचनी चाहिए कि लालच बुरी बला है. अगर वे इसी बात को ध्यान में रखेंगे, तो नाइजीरिया के अपराधियों के चंगुल से बच जाएंगे.

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