घर का चिराग : क्यों रूठा गया था साकेत

मां की गोद में एक बेजान देह रखी थी, जिस के माथे को वे हौलेहौले सहला रही थीं, ‘‘मेरा बेटा… मेरा राजा बेटा… आंखें खोलो बेटा…’’

उस बेजान देह में मां के छूने का भी कोई असर नहीं पड़ रहा था. मां ने लोरी गानी शुरू कर दी थी, ‘‘उठ जा राजदुलारे… मेरा प्यारा बेटा… उठ जा बेटा…’’

देह खामोश थी. सारा माहौल गमगीन था. मां और बापू के घर का चिराग बु?ा गया था.

चारों ओर जमा भीड़ भारी मन से यह सब देख रही थी. किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह उस देह को अंतिम संस्कार के लिए मां की गोद से उठा सके. एक कोने में बूढ़ा पिता बेसुध पड़ा था. अंतिम संस्कार की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. इस परिवार में ऐसा कोई था भी नहीं, जिस के आने की राह देखी जा सके. एक बूढ़ी मां और एक बुजुर्ग पिता, बस इतना ही तो परिवार था.

साकेत अपने मांबाप की एकलौती औलाद था. मांबाप मजदूरी करते थे. साकेत की लाश आज ही शहर के बाहर एक पेड़ से लटकी मिली थी. पुलिस को शक था कि साकेत ने खुदकुशी की है, पर जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, तो साफ हो गया कि उस की हत्या कर के उस की लाश को पेड़ से लटका दिया गया था.

30 साल का साकेत एक प्राइवेट कंपनी में चीफ इंजीनियर था. वैसे तो उसे नौकरी करते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था, पर उस की मेहनत और लगन के चलते उस की तरक्की जल्दी हो गई थी. मांबाप के दिन फिर गए थे.

साकेत अपने मांबाप का बहुत ध्यान रखता था. दूर शहर में होने के बावजूद वह महीने में एक बार अपने गांव जरूर आता था. घर आ कर वहां के सारे इंतजाम करता था. महीनेभर का राशन ला कर रख देता था. उस ने मांबाप को मजदूरी करने से रोक दिया था. वह ढेर सारे रुपए उन्हें दे जाता था, ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो.

पिताजी बीमार रहने लगे थे. वह उन का इलाज एक बड़े अस्पताल में करा रहा था. मां भी कुछ ज्यादा ही बूढ़ी नजर आने लगी थीं. जिंदगीभर उन्होंने मेहनत जो की थी.

एक दिन की बात है, साकेत अपनी मां की गोद में सिर रख कर बोला था, ‘‘मां, आप बाबूजी को सम?ाओ न… मेरे साथ चलें… वहीं रहना. यहां अकेले रहने से क्या मतलब है.’’

‘‘तेरे बाबूजी भला मानते कहां हैं मेरी. उन्हें तो बस अपना यही गांव अच्छा लगता है. तू ही बोलना उन से,’’ मां ने साकेत का सिर सहलाया था. साकेत की बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी. वैसे तो वह जब भी गांव आता था, हर बार अपने मांबाप के लिए नए कपड़े लाना नहीं भूलता था. इस बार भी वह नए कपड़े ले कर आया था.

‘‘बाबूजी, आप पुराने कपड़े क्यों पहनते हैं? आप इन्हें उतारिए और ये पहनें. देखो, कितने अच्छे लग रहे हैं.’’

‘‘अरे बेटा, अब इस उम्र में मैं ऐसे कपड़े पहन कर क्या करूंगा.’’

‘‘नहीं, आप को पहनने ही पड़ेंगे,’’ साकेत ने जिद की. पिताजी को उस की जिद के आगे ?ाकना पड़ा.

नए कपड़ों में बाबूजी बहुत अच्छे लग रहे थे. मां ने जब नई साड़ी पहनी, तो उन की आंखों में आंसू आ गए थे.

‘‘अरे मां, रो क्यों रही हो…? इतनी अच्छी लग रही हो… बिलकुल साकेत की मां ही लग रही हो… चीफ इंजीनियर साकेत,’’ साकेत ने मां की आंखों से आंसू पोंछ दिए थे.

‘‘बेटा, तू जब छोटा था, तो नए कपड़ों के लिए रूठ जाया करता था और हम दिला भी नहीं पाते थे. बस, यही सोच कर आंखें भर आईं.’’

‘‘तो क्या हुआ, मुझे तो आप ने कभी शर्ट कभी पैंट, ऐसे करकर के नए कपड़े तो पहनाए ही हैं, पर आप को तो मैं ने कभी नए कपड़े पहनते नहीं देखा,’’ आंसू की एक बूंद उस की आंखों से भी बह निकली थी.

एक बार रक्षाबंधन पर साकेत अड़ गया था, ‘‘मां देखो, सब बच्चों ने नए कपड़े पहने हैं, मुझे भी चाहिए.’’

मां ने समझाने की बहुत कोशिश की थी, पर वह माना नहीं था. मां सेठ के पास गई थीं और कुछ सामान गिरवी रख कर उस के लिए नया कपड़ा ले कर आई थीं. नए कपड़े पहन कर ही वह मुंहबोली बहन के घर राखी बंधवाने गया था.

‘‘तुझे याद है बेटा, तू दीवाली पर फुलझड़ी और मिठाई के लिए कितना रोया था,’’ मां उस घटना की कल्पना से ही सुबक पड़ी थीं. इस बार पिताजी के गालों पर भी आंसुओं की लड़ी दिखाई देने लगी थी.

‘‘हां मां, सच कहूं तो मुझे आज भी दीवाली केवल इसी वजह से अच्छी नहीं लगती. मां, आप कितनी परेशान हुई थीं उस दिन. धिक्कार है मुझे खुद पर मां.’’

मां ने साकेत को छाती से लगा लिया, ‘‘तब तू छोटा था बेटा. नासमझ.’’ साकेत के सामने वह दीवाली की रात कौंध गई थी. पटेल साहब का घर छोटेछोटे बल्बों से रोशन था. उन का बेटा गौरव नए कपड़े पहन कर एक हाथ में मिठाई और एक हाथ में पटाखे ले कर आया था.

‘‘चलो यार, पटाखे फोड़ते हैं,’’ गौरव ने कहा, तो साकेत उस के साथ चला गया था. साकेत गौरव को मिठाई खाते देख रहा था.

‘‘मिठाई बड़ी मीठी लगती है क्या?’’ साकेत ने कभी मिठाई नहीं चखी थी. एक बार गांव में एक तेरहवीं हुई तो उसे बेसन की बर्फी खाने को मिली थी. वह उसे मिठाई समझाता था, पर गौरव तो सफेद रस में डूबी मिठाई खा रहा था. ऐसी मिठाई उस ने खाने की तो छोड़ो देखी तक नहीं थी.

‘‘हां, बहुत मीठी लगती है. पर, मैं तुझे दे नहीं सकता, क्योंकि जूठी हो गई है न,’’ गौरव बोला था.

साकेत ललचाई निगाहों से गौरव को तब तक देखता रहा था, जब तक उस की मिठाई खत्म नहीं हो गई. मिठाई खत्म होने के बाद गौरव ने फुल?ाड़ी जलाई. फुल?ाड़ी ने रंगबिरंगी चिनगारियां छोड़नी शुरू कर दी थीं.

‘‘एक फुलझाड़ी मुझे भी दो न. मैं भी जलाऊंगा,’’ साकेत गिड़गिड़ाया था.

‘‘अपनी मां से बोलो,’’ गौरव बोला था. गौरव भी बच्चा ही था न और बड़े घर का होने के चलते उसे साकेत की लालसा की कद्र नहीं थी.

साकेत रूठ गया और घर आ कर वह मां के सामने यह बोलते हुए अड़ गया था, ‘‘मुझे वह वाली मिठाई ही चाहिए…’’

मां को तेज बुखार था. पिताजी ने साकेत को समझने की काफी कोशिश की थी, पर वह नहीं माना था. पिताजी उसे उंगली पकड़ कर मिठाई की दुकान पर ले गए थे, पर उस दुकान पर वह मिठाई नहीं थी. उस दिन वह बीमार मां की छाती से चिपक कर बहुत देर तक रोता रहा था.

‘‘आप ने मुझे मिठाई भी नहीं दिलाई और फुलझड़ी भी नहीं दिलाई. मैं आप से कभी बात नहीं करूंगा,’’ सुबक उठा था साकेत. साथ ही, दीवाली की रात में उस के मांबाप भी रोते रहे थे, रातभर अपनी बेबसी पर.

स्कूल जाने के लिए भी साकेत ऐसे ही अड़ा था. मांबाप को उस की जिद के आगे झाकना पड़ा था. पिताजी तो वैसे भी बहुत मेहनत करते ही थे, मां ने भी मजदूरी करनी शुरू कर दी थी. जैसेजैसे उस की पढ़ाई आगे बढ़ती गई, उस का खर्चा भी बढ़ता गया, वैसेवैसे ही मां और पिताजी की मेहनत भी बढ़ती चली गई. पेट काट कर पढ़ाया था उसे.

यादों का बवंडर खत्म ही नहीं हो रहा था. मां ने साकेत के आंसू पोंछे, ‘‘चलो, भूल जाओ. ये कपड़े देखो, मैं कैसी लग रही हूं?’’ मां बात को बदलना चाह रही थीं.

मां ने हलुआपूरी बनाई थी. उन के लिए खुशी में यही सब से बेहतर पकवान थे.

‘‘मां, याद है जब मैं इंजीनियरिंग का इम्तिहान दे कर आया था तो आप ने मेरी पुरानी पैंट में पैबंद लगाते हुए कहा था, ‘बेटा, हमेशा बड़े सपने देखो, वे जरूर पूरे होते हैं.’’’

‘‘हां, तू इतनी ऊंची पढ़ाई कर रहा था, तब भी हम तुझे एक जोड़ी कपड़े तक नहीं सिलवा पा रहे थे.’’

‘‘पुराने कपड़े पहनना तो मेरी आदत हो गई थी मां, पर मैं यह बोल रहा हूं कि मैं ने हमेशा ऊंचे सपने देखे और इसी वजह से ही तो आज चीफ इंजीनियर बन पाया हूं.’’ मां चुप थीं, तब पिताजी ने कहा था, ‘‘तुम हमेशा सचाई पर डटे रहना, तभी हमारी मेहनत कामयाब होगी.’’

‘‘पिताजी, आप लोगों ने मेरी वजह से बहुत परेशानियां झोली हैं, पर अब आप को इतना खुश रखूंगा कि आप अपने सारे दुख भूल जाएंगे,’’ साकेत भावुक हो गया था.

लौटते समय साकेत ने मां को बोल दिया था, ‘‘मां अगली बार जब आऊंगा, तो आप लोगों को साथ ले कर ही जाऊंगा. आप पिताजी को तैयार कर लेना. मैं किसी की बात नहीं मानूंगा.’’

पर साकेत इस हालत में ही वापस आया था बेजान बन कर. उस की देह को रखे बहुत देर हो चुकी थी. लोगों में अब बेसब्री नजर आने लगी थी. कुछ औरतों ने मां को जबरदस्ती अलग किया था.

‘‘मत छीनो मेरे बेटे को मुझसे. वह अभी सो रहा है. जाग जाएगा.’’

सैकड़ों आंखें नम थीं. वहां जुटे समूह को अब अंतिम क्रिया करनी ही थी, इस वजह से साकेत के शरीर को अर्थी पर रख दिया था.

साकेत की मौत खुदकुशी नहीं, बल्कि हत्या थी. साकेत उन लोगों की हैवानियत का शिकार बना था, जिन के बेईमानी वाले कामों को चीफ इंजीनियर होने के नाते वह मान नहीं रहा था.

वह कोई बड़ा ठेकेदार था, सत्ता से जुड़ा. साकेत ने उस के बनाए पुल के भुगतान के कागजों को फेंक दिया था और बोला था, ‘‘इस पुल से लाखों लोग आनाजाना करेंगे और तुम थोड़े से लालच में इसे कमजोर बना रहे हो. मैं तुम्हारा भुगतान नहीं कर सकता.’’

साकेत के इनकार से उस ठेकेदार का खून खौल गया था, ‘‘आप जानते नहीं हैं कि मेरी कितनी पकड़ है,’’ उस ने अपने  कुरतेपाजामे की सिलवटों को दूर करते हुए कमर में खुंसी पिस्तौल की ?ालक साकेत को दिखाते हुए कहा था.

साकेत डरा नहीं और बोला, ‘‘आप जो चाहें कर लें, पर मैं इस पुल को पास नहीं कर सकता.’’

इस के बाद साकेत के पास किसी नेता का भी फोन आया था, ‘क्यों अपनी जान गंवाना चाहते हो…’ पर वह कुछ नहीं बोला था.

बिल का भुगतान तो नहीं हुआ, पर एक दिन साकेत की लाश पेड़ से लटकती जरूर मिली.

मांबाप अपनी एकलौती औलाद के यों गुजर जाने से दुखी थे. साकेत के गुजरने के बहुत दिनों बाद तक माहौल गमगीन बना रहा था. उस के पिताजी बीमारी के शिकार हो चुके थे. मां ने अब साकेत के हत्यारों को पकड़वाने के लिए कमर कस ली थी. वे जानती थीं कि यह सब इतना आसान नहीं है, पर वे हिम्मत नहीं हारना चाह रही थीं.

एक बैनर को अपने शरीर से लपेटे मां शहर दर शहर घूम रही थीं. उस बैनर पर लिखा था, ‘इंजीनियर साकेत के हत्यारों को पकड़वाने में मदद करें’.

लोग उस बैनर को पढ़ते, बुजुर्ग मां की हालत पर दुख भी जताते, पर मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था. समाज पंगु जान पड़ रहा था. सभी के चेहरे पर एक खौफ दिखाई देता था.

वह बूढ़ी औरत समाज के इस खोखलेपन से नाराज नहीं थी. वह जानती थी कि कोई भी अपने साकेत को नहीं खोना चाहता और इसी खौफ से लोग मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहे थे.

बूढ़ी मां इस सब की परवाह किए बगैर दौड़ रही थीं अनजान रास्ते पर बगैर किसी सहारे के. वे प्रदेश की राजधानी जा पहुंची थीं और विधानसभा के सामने खड़े हो कर अपने बेटे के हत्यारों को पकड़ने की अपील कर रही थीं.

चारों ओर से भारी भीड़ ने उन्हें घेर लिया था. वे रो रही थीं और अपील कर रही थीं कि कोई तो आगे आए उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए. भीड़ तो केवल तमाशा देख रही थी.

सिक्योरिटी वालों ने मां को गिरफ्तार कर लिया, पर उन का चिल्लाना जारी था. धीरेधीरे वे निढाल हो गईं और मर गईं अपने बेटे को इंसाफ दिलाए बगैर.

Mother’s Day 2024- पहला पहला प्यार: मां को कैसे हुआ अपने बेटे की पसंद का आभास

Story in hindi

नास्तिक : क्यों थी श्वेता की यह सोच

श्वेता चुलबुली, बड़बोली और खुले दिल की लड़की थी. मम्मी के दिल में एक ही बात खटकती रहती थी कि श्वेता देवधर्म, कर्मकांड वगैरह नहीं मानती थी.

तरहतरह के पकवान हम कभी भी खा, बना सकते हैं, इस के लिए किसी त्योहार की जरूरत क्यों? दीवाली के व्यंजन तो पूरे साल मिलते हैं. हम कभी भी खरीद सकते हैं, इस में कोई समस्या नहीं है? श्वेता की सोच कुछ ऐसी ही थी.

मातापिता को तो कभी कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन उस की ससुराल वालों को होने लगी.

श्वेता का पति आकाश किसी सुपरस्टार की तरह दिखता था. औरतें मुड़मुड़ कर उसे देखती थीं और कहती थीं कि एकदम रितिक रोशन की तरह दिखता है.

श्वेता की सहेलियां उस से जलती थीं. जिम जाने और खूबसूरत दिखने वाले पति के साथ श्वेता की शादीशुदा जिंदगी बहुत अच्छी बीत रही थी.

दोनों पर मिलन की एक अलग ही धुन सवार थी.

लेकिन एक दिन आकाश ने उस से बोल ही दिया, ‘‘केवल मेरे मातापिता के लिए तुम रोज पूजा कर लिया करो… प्लीज. प्रसाद के रूप में नारियल बांटने में तुम्हें क्या दिक्कत है. नाम के लिए एक दिन व्रत रखा करो ताकि मां को तसल्ली हो कि उन की बहू सुधर गई है.’’

श्वेता गुस्से में बोली, ‘‘सुधर गई, मतलब…? नास्तिक औरतें बिगड़ी हुई होती हैं क्या? दबाव में आ कर भक्ति करना क्या सही है?

‘‘जब मुझे यह सब करना नहीं अच्छा लगता तो जबरदस्ती कैसी? मैं ने कभी अपने मायके में उपवास नहीं किया है. मुझे एसिडिटी हो जाती है इसलिए मैं कम खाती हूं, 2 रोटी और थोड़े चावल तो व्रत क्यों रखना?’’

श्वेता सच बोल रही थी. लेकिन इस बात से आकाश नाराज हो गया और धीरेधीरे उस ने श्वेता से बात करना कम कर दिया.

जब भी श्वेता की जिस्मानी संबंध बनाने की इच्छा होती तो ‘आज नहीं, मैं थक गया हूं’ कहते हुए आकाश मना कर देता. ये सब बातें अब रोज की कहानी बन गई थीं.

‘‘तुम्हारा मुझ में इंटरैस्ट क्यों खत्म हो गया? तुम्हारी दिक्कत क्या है?’’ श्वेता ने आकाश से पूछा.

बैडरूम में उस का खुला और गठीला बदन देख कर श्वेता का मन अपनेआप ही मचल जाता था, लेकिन आकाश ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘तुम पहले भगवान को मानने लगो, मां को खुश करो, उस के बाद हम अपने बारे में सोचेंगे…’’

‘‘मेरा भगवान, पूजापाठ में विश्वास नहीं है, यह सब मैं ने शादी से पहले तुम्हें बताया था. जब हम दोनों गोरेगांव के बगीचे में घूमने गए थे… तुम्हें याद है?’’

‘‘मुझे लगा था कि तुम बदल जाओगी…’’

‘‘ऐसे कैसे बदल जाऊंगी. मैं

कोई मन में गुस्से की भावना रख कर नास्तिक नहीं बनी हूं, यह मेरा सालों का अभ्यास है.’’

धीरेधीरे श्वेता और उस की सास के बीच झगड़े होने लगे. श्वेता उन के साथ मंदिर तो जाती थी लेकिन बाहर ही खड़ी रहती थी, जिस पर झगड़े और ज्यादा बढ़ जाते थे.

एक बार सास ने कहा, ‘‘मंदिर के बाहर चप्पल संभालने के लिए रुकती है क्या? अंदर आएगी तो क्या हो जाएगा?’’

श्वेता ने भी तुरंत जवाब देते हुए कहा, ‘‘आप अपना काम पूरा करें, मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है. मैं इन ढकोसलों को नहीं मानती.’’

सास घर लौट कर रोने लगीं, ‘‘मुझ से इस जन्म में आज तक किसी ने

ऐसी बात नहीं की थी. ऊपर वाला देख लेगा तुम्हें,’’ ऐसा बोलते हुए सास ने पलभर में एक पढ़ीलिखी बहू को दुश्मन ठहरा दिया.

शाम को आकाश के आने के बाद श्वेता बोली, ‘‘मैं मायके जा रही हूं, मुझे लेने मत आना. जब मेरा मन करेगा तब आऊंगी. लेकिन अभी से कुछ तय नहीं है. मायके ही जा रही हूं, कहीं भाग नहीं रही हूं. नहीं तो कुछ भी झूठी अफवाहें उड़ेंगी.’’

आकाश उस की तरफ देखता रह गया. उस की तीखी और करारी बातों से उसे थोड़ा डर लगा.

श्वेता अपने अमीर मातापिता के साथ जा कर रहने लगी. मां को यह बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन श्वेता ने कहा, ‘‘आप थोड़ा धीरज रखो. आकाश को मेरे बिना अच्छा नहीं लगेगा.’’

आखिर वही हुआ. 15-20 दिन बीतने के बाद उस का फोन आना शुरू हो गया. पत्नी का मायके में रहने का क्या मतलब है? यह सोच कर वह बेचैन हो रहा था. उस का किया उस पर ही भारी पड़ गया. मां के दबाव में आ कर वह भगवान को मानता था.

श्वेता ने फोन काट दिया इसलिए आकाश ने मैसेज किया, ‘मुझे तुम से बात करनी है, विरार आऊं क्या?’

श्वेता के मन में भी प्यार था और उस ने  झट से हां कह दिया.

श्वेता ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें भगवान को मानने के लिए कभी मना नहीं किया. पूजाअर्चना, जो तुम्हें करनी है जरूर करो, लेकिन मु   झे मेरी आजादी देने में क्या दिक्कत है. तुम्हारी मां को समझाना तुम्हारा काम है. अब तुम बोल रहे हो इसलिए आ रही हूं. अगर फिर कभी मेरी बेइज्जती हुई तो मैं हमेशा के लिए ससुराल छोड़ दूंगी…

इस तरह से श्वेता ने अपनी नास्तिकता की आजादी को हासिल कर लिया.

Mother’s Day 2024- कन्याऋण : क्या नेहा की शादी का फैसला सही साबित हुआ?

Story in Hindi

मायके ने बरबाद की जिंदगी : कैसी रही शमा की शादी

शमा देखने में किसी हूर से कम न थी. उसे अपनी खूबसूरती पर नाज था. गुलाबी होंठ, गोरे गाल, गदराए बदन की मालकिन होने के साथसाथ काले घने और लंबे बालों ने उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रखे थे.

शमा की पहली शादी आज से तकरीबन 10 साल पहले हुई थी, तब उस की उम्र 22 साल थी. शादी के कुछ महीने तो सब ठीक चला, पर उस के आएदिन अपने मायके में ही पड़े रहने और अपने शौहर को कम समय देने से उन के बीच खटास आ गई थी.

शमा के शौहर ने कई बार उसे समझाने की कोशिश भी की, पर वह लड़ने पर उतारू हो जाती थी, जिस से धीरेधीरे उन में दूरिया बनती गईं और फिर शमा अपने घर आ कर बैठ गई. उस के बाद शुरू हुई पंचायत, जिस ने उन्हें हमेशाहमेशा के लिए अलग कर दिया.

दरअसल, शमा ने अपने शौहर पर कई झूठे इलजाम लगाए थे कि वह उसे खर्चा नहीं देता है. उस का घर छोटा है और वह उस के साथ वहां रह कर घुटन महसूस करती है.

नतीजतन, शौहर ने पंचायत में ही कह दिया था, ‘‘आप जो खर्चा बोलेंगे, मैं देने के लिए तैयार हूं, बस मैं शमा के अब्बू से यह पूछना चाहता हूं कि जब ये शमा का रिश्ता ले कर मेरे घर आए थे, तब मैं ने इन्हें अपने घर में ही बिठाया था या किसी और के घर में?

‘‘इन लोगों ने शादी से पहले मेरा घर देखा था. इन्हें मालूम था कि इन की लड़की शादी के बाद इसी घर में आ कर रहेगी, पर अब इन को यह घर छोटा लग रहा है…’’

पंचायत के एक सदस्य ने शमा के अम्मीअब्बू से मुखातिब हो कर पूछा था, ‘‘क्या यह सही बोल रहा है?’’

इतना सुनते ही शमा की अम्मी बोलीं, ‘‘शमा इस के साथ नहीं रहना चाहती है. हमारा फैसला करा दो.’’

इस के बाद शमा के शौहर से 5 लाख रुपए ले कर शमा और उस के शौहर का फैसला हो गया था.

कुछ समय के बाद शमा की फिर से शादी हो गई. शादी के कुछ महीनों तक सब ठीक चला. शमा की अम्मी अकसर वहां आतीजाती रहती थीं, पर एक दिन शमा और उस के शौहर में पैसे को ले कर ?ागड़ा हो गया.

हुआ यों था कि शमा अकसर अपने शौहर को बिना बताए अपनी अम्मी को पैसे देती थी, पर एक दिन तंग आकर उस के शौहर ने पैसे देने से मना कर दिया.

फिर क्या था, घर में महाभारत शुरू हो गई. शमा ने अपनी अम्मी को बुला लिया. उस की अम्मी ने शमा के शौहर से बोला, ‘‘जब बीवी रखने की हिम्मत नहीं थी, तो शादी क्यों की?’’ और शमा को अपने साथ ले गईं.

कुछ दिन के बाद शमा का शौहर उस के घर चला गया और शमा के अम्मीअब्बू से उसे घर ले जाने के लिए कहा, पर शमा की अम्मी ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘अब यह तुम्हारे साथ नहीं जाएगी. हमें फैसला चाहिए.’’

शमा के शौहर ने बहुत मनाया, पर शमा के घर वाले न माने. फिर घर के बड़ों ने बैठ कर फैसला किया और 4 लाख रुपए में फैसला हो गया. शमा का दूसरे शौहर से भी तलाक हो गया.

कुछ महीनों के बाद शमा की तीसरी शादी हो गई. शमा जैसी हसीन बीवी पा कर उस का तीसरा शौहर बहुत खुश था. दोनों प्यारमुहब्बत से रह रहे थे. जल्द ही शमा को एक बेटी हो गई. घर में अच्छी खुशहाली थी.

शमा के शौक और खयाल बहुत बड़े थे. वह हर चीज ब्रांडेड इस्तेमाल करती थी. हजारों रुपए ब्यूटीपार्लर में खर्च कर देती थी.

शुरूशुरू में तो शमा का शौहर कुछ न बोला, लेकिन जल्द ही उस ने शमा को सम?ाने की कोशिश की, तो शमा रूठ गई.

थकहार कर शमा का शौहर चुप हो गया, लेकिन शमा ने अपनी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं किया. उस के शौक भी बड़े हो गए और खर्चे भी बढ़ गए.

शमा के शौहर ने उसे काफी सम?ाने की कोशिश की, पर वह नहीं मानी. फिर पंचायत बैठी, फैसला हुआ और इस बार बच्चे का हवाला दे कर शमा के शौहर से 10 लाख रुपए ऐंठ लिए गए.

वक्त गुजरता गया. शमा अपने अम्मीअब्बू के ही साथ रहने लगी. अब उस के लिए कोई रिश्ता भी नहीं आ रहा था. एक तो वह 3 शौहर छोड़ चुकी थी, दूसरे अब उस के पास एक बेटी भी थी.

वक्त की मार और उम्र के बढ़ने के साथसाथ अब शमा अकेली रहने के लिए मजबूर हो गई थी, लेकिन महंगे शौक और दिखावे ने उसे ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया, जो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

शमा को जो पैसा मिला था, वह धीरेधीरे खत्म हो गया. घर का खर्चा उठाना मुश्किल हो गया. मांबाप ने भी अपना हाथ खींच लिया. बेटी की पढ़ाई के खर्च के भी लाले पड़ गए और शमा ने जो रास्ता चुना, उस ने उसे एक गलत धंधे पर ला खड़ा कर दिया.

अब शमा अपना खर्चा चलाने के लिए अपने जिस्म का सौदा करने पर मजबूर हो गई और एक धंधेवाली बन कर रह गई. लेकिन फिर उस की जिंदगी में सैफ आया. उसे शमा की पुरानी जिंदगी से कुछ लेनादेना नहीं था.

शमा की चौथी शादी को 5 महीने ही हुए थे. इन 5 महीने में दोनों बड़े प्यार से रह रहे थे. दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे

सैफ तो इतनी हसीन बीवी पा कर खुश था ही, उस के घर में उस की मां और बहन भी शमा की तारीफ करते नहीं थकते थे. चारों तरफ शमा के ही चर्चे हो रहे थे.

फिर एक दिन किसी बात को ले कर सैफ और शमा में कुछ कहासुनी हो गई और शमा अपनी मां के घर चली गई.

उन दोनों में ऐसा कुछ खास भी ?ागड़ा नहीं हुआ था. बस, इतनी सी बात थी कि शमा अपने किसी दूर के भाई की शादी में जाना चाहती थी, पर सैफ को कुछ जरूरी काम था, तो वह उसे शादी में नहीं ले जा सकता था.

शमा ने अकेले जाने की जिद की, तो सैफ ने उसे साफ मना कर दिया. बस, इसी बात को ले कर दोनों में कहासुनी हो गई. शमा गुस्से में आ कर अपने मायके आ गई.

अगले दिन जब सैफ शमा को लेने उस के घर गया, तो उस ने आने से साफ मना कर दिया और बेइज्जत कर के अपने घर से भगा दिया. चाची और बड़ी अम्मी ने शमा को भड़का दिया कि एकदम से सैफ के कहने में न आ जाना. आदमी को अपनी मुट्ठी में दबा कर रखना चाहिए. अपनी मनमानी के लिए पुलिस की धौंस और दहेज के मुकदमे जैसे हथियारों से डराया जाता है.

सैफ कई बार शमा को लेने अपनी सुसराल गया, पर हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी. इतना ही नहीं, एक दिन शमा के रिश्तेदारों ने उस के मांबाप को भड़का कर सैफ के खिलाफ पहले तो मारपीट की रिपोर्ट लिखा दी, उस के बाद उस पर दहेज का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस सैफ को पकड़ कर ले गई, पर सुबूत न मिलने के चलते जल्द ही उसे छोड़ दिया.

अब सैफ अंदर से पूरी तरह टूट चुका था. वह बारबार सुसराल जा कर बेइज्जत हो कर वापस आ चुका था. अब उस के नाम पर कोर्ट का नोटिस भी आ चुका था. कई साल मुकदमा चलता रहा. उधर शमा को भड़काने में उस के रिश्तेदारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर यह रिश्ता खत्म हो गया.

सैफ ने दूसरी शादी कर ली और खुशीखुशी अपनी जिंदगी गुजारने लगा. एक साल के अंदर ही वह एक बेटे का बाप बन गया. उधर शमा घर पर पड़ी रही. उस की उम्र बीतती जा रही थी. उस के अम्मीअब्बू की भी मौत हो चुकी थी. भाइयों की शादी हो गई. भाईभाभियों को अब शमा बो?ा लगने लगी थी.

सैफ बेकुसूर था. उस पर जो मुकादमा किया गया था, वे सब ?ाठे थे, इसलिए वह बाइज्जत बरी हो गया और अपनी बीवीबच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रहा था. ?ाठे इलजाम लगाने की वजह से उस ने शमा से तलाक ले लिया था.

शमा की उम्र उस के चेहरे पर ?ालकने लगी थी. वक्त की मार ने उसे समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया था. अब उस के लिए कोई रिश्ता न था. वह तनहा जीने के लिए मजबूर थी. उस की खूबसूरती, उस की चमक सब खत्म हो चुकी थी.

लोगों के बहकावे में आ कर शमा ने अपना घर खुद ही बरबाद कर लिया था. सच तो यह है कि हमारे समाज में आज भी न जाने कितने घर दूसरों के बहकावे में आ कर बरबाद हो रहे हैं. शमा भी उन में से एक थी.

मेरी स्वीट मिट्ठी : नाना की रिटायरमेंट बाद क्या हुआ

मेरे नाना रिटायरमैंट के बाद सपरिवार कोलकाता में बस गए थे. उन का कोलकाता के बाहर बसी एक नामचीन डैवलपर की टाउनशिप में बड़ा सा फ्लैट था.

मेरी नानी पश्चिम बंगाल के मिदनापुर की थीं. वे अच्छीखासी पढ़ीलिखी थीं. वे महिला कालेज में प्रिंसिपल के पद पर थीं. नाना ने उन की इच्छा के मुताबिक कोलकाता में बसने का फैसला लिया था.

मैं अपनी मम्मी के साथ दुर्गा पूजा में कोलकाता गया था. मैं ने रांची से एमबीए की पढ़ाई की थी. कैंपस से ही मेरा एक मल्टीनैशनल कंपनी में सैलेक्शन हो चुका था. औफर लैटर मिलने में अभी थोड़ी देरी थी.

मिट्ठी से मेरी मुलाकात कोलकाता में दुर्गा पूजा के दौरान हुई. कौंप्लैक्स के मेन गेट पर वह सिक्योरिटी गार्डों से उलझ गई थी.

शाम के समय पास की झुग्गी बस्ती से कुछ बच्चियां दुर्गा पूजा देखने आई थीं. चिथड़ों में लिपटी बच्चियों को सिक्योरिटी गार्ड ने रोक दिया था.

टाउनशिप के बनने के दौरान मजदूरों ने वहां सालों अपना पसीना बहाया था. ये उन्हीं की बच्चियां थीं.

मिट्ठी वहां अकसर जाती थी. वह उन की चहेती दीदी थी. वह बच्चों के टीकाकरण में मदद करती थी. स्कूलों में उन को दाखिला दिलाती थी. बच्चियों को पूजा पंडाल तक ले जाने और प्रसाद दिलाने में मिट्ठी को तमाम विरोध का सामना करना पड़ा था.

मिट्ठी विजयादशमी के दिन भी दिखाई दी थी. लाल बौर्डर की साड़ी में वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी. मिट्ठी मुझे भा गई थी.

मम्मी जल्दी मेरे फेरे कराना चाहती थीं. उन्होंने रांची शहर के कई रिश्ते भी देखे थे. नानी से सलाहमशवरा करने के लिए मम्मी मुझे कोलकाता ले कर आई थीं.

‘‘अमोल खुद अपना ‘जीवनसाथी’ चुनेगा… मेरा पोता अपने लिए बैस्ट साथी चुनेगा… एकदम हीरा…’’ नानी मेरी अपनी पसंद की बहू के हक में थीं.

‘‘गोरीचिट्टी, देशी मेम बहू बनेगी…’’ मम्मी की यही सोच थी. सुंदर, सुशील, घर के कामों में माहिर बहू उन की पसंद थी.

‘‘भाभी, हमारी बहू तो फर्राटेदार अंगरेजी में बतियाने वाली सांवलीसलोनी और स्मार्ट होगी…’’ छोटी मामी ने भी अपनी पसंद जताई थी.

‘‘मुझे मिट्ठी पसंद है…’’ मैं ने छोटी मामी को अपनी पसंद बताई.

मिट्ठी कौंप्लैक्स में ही रहती थी. मेरी मम्मी समेत परिवार के सभी लोग मिट्ठी की हरकतों से अनजान नहीं थे.

‘‘कौंप्लैक्स में मिट्ठी की इमेज ज्यादा अच्छी नहीं है. वह तेजतर्रार है… अमीरजादों के साथ आवारागर्दी करती है… मोटरसाइकिल से स्टंट करती है… बेहद बिंदास है… शौर्ट्स पहन कर घूमती है…’’ छोटी मामी ने मुझे जानकारी दी.

‘‘मुझे बोल्ड लड़कियां पसंद हैं…’’

‘‘उम्र में भी बड़ी है…’’

मैं ने उम्र की बात को भी नकार दिया.

‘‘मिट्ठी कैंपस के लड़कों के साथ टैनिस… क्रिकेट… बास्केटबाल खेलती है… मौडलिंग करती है… कंडोम की मौडलिंग… उस के मम्मीपापा ने कितनी आजादी दे रखी है…’’ मेरी बात से छोटी मामी शायद नाराज हो गई थीं.

‘‘मैं क्या सुन रही हूं…? मेरी रजामंदी बिलकुल नहीं है… नहीं… मैं मिट्ठी को बहू नहीं बना सकती…’’ मम्मी बेहद नाराज थीं. उन्होंने मुझ से दूरी बना ली थी.

मैं मिट्ठी को अपना मान चुका था. शीतयुद्ध का अंत हुआ. नानी को भनक लगी. उन्होंने सब को अपने कमरे में बुलाया. सब की बातों को बड़े ही ध्यान से सुना.

‘‘अमोल ने जिद पकड़ ली है… बदनाम लड़की से रिश्ता करने पर तुले हैं…’’ छोटी मामी ने नानी को बताया.

‘‘यह बदनाम लड़की कौन है…? कहां की है…?’’ नानी ने सवाल किया.

‘‘अपने कौंप्लैक्स की ही है… अपनी मिट्ठी… आवारागर्दी, गुंडागर्दी करती है… पूजा के पंडाल में हंगामा भी किया था… आप ने सुना होगा…’’ छोटी मामी ने मिट्ठी की खूबियों का बखान किया.

‘‘मिट्ठी तो अच्छी बच्ची है… कई बार मंदिर में मिली है… मेरे पैर छुए हैं… मैं ने आशीर्वाद दिया है… वह बदनाम कैसे हो सकती है,’’ नानी छोटी मामी से सहमत नहीं थीं.

‘‘क्या अच्छे परिवार की बच्चियां पराए जवान लड़कों के साथ क्रिकेट… बास्केटबाल और टैनिस खेलती हैं? कंडोम की मौडलिंग करती हैं? छोटे कपड़े पहनती हैं? मुंहफट और बेशर्म होती हैं?’’ मम्मी ने एकसाथ कई बातें बताईं और सवाल उठाए.

‘‘मैं ने अपने लैवल पर इन बातों की पड़ताल की है… जानकारियां इकट्ठी की हैं… मैं मिट्ठी से मिला हूं. वह मर्दऔरत के समान हक की बात करती है… वह एक समाजसेविका है… उसे कई मर्द दोस्तों का भी साथ मिला है… सब मिल कर काम करते हैं… ऐक्टिव रहने के लिए फिटनैस जरूरी है…

‘‘सामाजिक कामों के लिए रुपएपैसों की जरूरत पड़ती है. कंडोम की मौडलिंग में कोई बुराई नहीं है… बढ़ती आबादी को कंडोम से ही रोका जा सकता है… इन पैसों से बस्ती के गरीब बच्चों के स्कूल की फीस दी जा सकती है…

‘‘मिट्ठी बोल्ड है… गलतसही की पहचान और परख उसे है… वह अपने काम में जुटी है… जानती है कि वह गलत

रास्ते पर नहीं है… फुजूल की कानाफूसी और बदनामी की उसे कोई परवाह नहीं है. सब बकवास है…’’ मैं ने नानी की अदालत में मिट्ठी का पक्ष रखा.

‘‘मेरे पोते ने बैस्ट लड़की को चुना है. मिट्ठी ही मेरी बहू बनेगी…’’ नानी ने सहज भाव से अपना फैसला सुनाया. मुझे गले से लगाया… रिश्ते के लिए खुद पहल करने की बात कही.

आत्माराम की पीड़ा : रिटायर्ड फौजी का दर्द

फौज की नौकरी ने आत्माराम को अनुशासन और सेहतमंद रहने की उपयोगिता के बारे में अच्छी तरह से बता दिया था.

50 साल की उम्र में 20 साल की फौज की नौकरी से उन्होंने छुट्टी तो पा ली थी, पर हर समय कुछ करने को मचलने वाला मन और तन अभी काम करने को तैयार रहता था.

आत्माराम की बड़ी बेटी शादी कर अपनी ससुराल जा चुकी थी और बेटा मस्तमलंग भविष्य के लिए कुछ भी ढंग से सोचने लायक नहीं हुआ था. मौजमस्ती ही उस की जिंदगी का टारगेट बना हुआ था.

बेटे की हालत और अपना खालीपन भरने को देखते हुए आत्माराम ने अपने घर पर ही एक परचून की दुकान खोल ली थी. अब फौजी रह चुका आत्माराम दुकानदार बनने और महल्ले में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश में था. आटेनमक के भाव के साथसाथ वह चेहरे के भाव को भी पढ़ना सीख रहा था.

कोई सिगरेट पीने दुकान में आता तो पीने वाले को उसे फौज की नौकरी का एक किस्सा फ्री में सुनाया जाता. अच्छा बरताव और आमदनी में बढ़ोतरी दुकान पर मन लगाने के लिए काफी थी. अब बेटे को भी 3-4 घंटे दुकान में गुजारने के लिए मना लिया गया.

लड़का भी दुकानदारी में तेज निकला और सालभर में उस ने दुकान से उठने वाले गल्ले को दोगुना कर दिया. पिता की पुत्र की भविष्य को ले कर चिंता काफी कम हो गई थी और वे अब लोगों के निजी और सार्वजनिक काम कराने में मदद करने लगे.

नगरपालिका के चुनाव में कुछ लोगों ने आत्माराम को वार्ड पार्षद का चुनाव लड़ने के लिए राजी कर लिया. आत्माराम की बस एक ही शर्त थी कि वे अपनी जमापूंजी से चुनाव के लिए पैसा खर्च नहीं करेंगे, जो लोगों ने मान ली. मैदान में 5 मुख्य उम्मीदवार थे, लेकिन आत्माराम 563 वोट से जीत गए.

आत्माराम अब ‘फौजीराम’ के नाम से ज्यादा पहचाने जाने लगे और पूरे तनमन से लोगों के काम करवाने में जुटे रहने लगे. सेवा के काम में वे इतना रम गए कि नियमित दिनचर्या कहीं पीछे छूटती चली गई.

कभी बीमार न पड़ने वाला शरीर अब सिरदर्द और थकान अनुभव करने लगा. 5 साल तक लोगों से जुड़ाव और जनसेवा का नतीजा यह हुआ कि ‘फौजीराम’ अब पूरे नगरपालिका क्षेत्र में अच्छी छाप छोड़ चुके थे.

अगला वार्ड चुनाव आत्माराम आसानी से भारी मतों से जीत गए और बिना किसी दल का होने के बावजूद उन्हें निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया.

जिम्मेदारी बढ़ी, तो चिंताओं में भी इजाफा होने लगा. न भोजन सही समय पर करना, न वर्जिश के लिए समय निकाल पाना. डायबिटीज और ब्लड प्रैशर नियमित दवा सेवन के स्तर तक पहुंच गए. लोगों को राहत पहुंचाने के मकसद को पूरा में सिर्फ 7 साल में उन का बदन काफी ?ाड़ गया.

बेटे की शादी के अगले दिन बहू घर आई और थकेहारे आत्माराम बिस्तर से उठ कर खड़े नहीं हो पा रहे थे. पत्नी को चिंता हुई और अपने घरेलू उपचार से राहत देने की कोशिश भी की, पर उन की तकलीफ को सम?ा न पाईं, तो बाकी घर वालों से सलाह कर उन्हें अस्पताल ले जाने का फैसला लिया गया.

जिस की कभी बीमार के रूप में कल्पना न की गई हो, उसे यों बिस्तर पर कराहते देख ज्यादा चिंता ने मरीज को शहर के सब से महंगे अस्पताल के दरवाजे पर ले जा कर खड़ा कर दिया.

मरीज को इमर्जैंसी मे भरती कर इलाज तो शुरू कर दिया गया, पर एक  शख्स को मरीज का परचा बनवाने और दूसरी लिखापढ़ी करने के लिए खड़ा कर दिया गया.

कुछ देर में ही हलचल बढ़ गई. डाक्टर ने आत्माराम के 10 टैस्ट कराने के बाद माइनर हार्ट अटैक की घोषणा कर दी.

हार्ट अटैक का नाम सुनते ही परिवार व परिचितों के हाथपैर फूल गए. एंजियोग्राफी करनी पड़ेगी, ब्लौकेज ज्यादा हुआ तो स्टंट डालना पड़ेगा. जल्दी से फार्म साइन हो गया और फौजी आत्माराम आईसीयू के बिस्तर पर सीमित कर दिए गए.

मिलनाजुलना अब डाक्टर के रहमोकरम पर था. चिंता के मारे परिवार वालों का काम अब प्रार्थना करना और डाक्टर द्वारा लिखी दवा दौड़ कर लाना था. पार्षद होने के चलते थोड़ी ज्यादा देखरेख का फायदा आत्माराम को

मिल रहा था, पर लंबीचौड़ी फीस के लिए कोई राहत नहीं दी जा रही थी.

शादी के मोटे खर्च के बाद यह बड़ा खर्च बिना उधार के पूरा नहीं हो सकता था, जिस के लिए अभी शादी किए बेटे को मदद की गुहार लगानी पड़ रही थी. डाक्टर जो कह रहे थे, उस के अलावा कुछ भी सोचने और करने की हालत में कोई नहीं था.

आपरेशन कर दिया गया. 3 दिन बाद प्राइवेट वार्ड में मरीज को शिफ्ट कर दिया गया. एक आदमी के वहां और रुकने का इंतजाम था.

5 दिन तक मरीज के साथ परिवार के भी सब्र का इम्तिहान होता रहा. आखिरकार 8वें दिन बड़ी मिन्नत के बाद डिस्चार्ज करने के लिए अस्पताल राजी हुआ.

उम्मीद से कहीं ज्यादा बिल को कुछ कम कराने की कोशिश ने इस देरी को और ज्यादा कर दिया. आखिरकार कुछ दिन पहले अपने बेटे की बरात ले कर लौटे मरीज आत्माराम की अस्पताल से चली बरात रात के 10 बजे घर लौटी.

घर पर अपने बिस्तर पर लेटते ही सुकून से भरी सांस लेते हुए आत्माराम गहरी नींद में ऐसे सो गए, जैसे सालों से वे इस नींद के लिए तरस रहे हों.

अगली सुबह जब आत्माराम जागे, तो सब ठीक था. बस, स्फूर्ति से दिनचर्या शुरू करने वाले शरीर पर जैसे ब्रेक लगा दिए गए हों. हाथपैर के साथ दिमाग ने भी खुद को बीमार मान लिया था.

10 दिन की बीमारी ने उन्हें 10 साल से ज्यादा बूढ़ा कर दिया था.

आखिरकार 60 साल की उम्र में पहुंचने से पहले ही आत्माराम की मौत हो गई. लोग उन की अर्थी के पीछे चलते हुए बात कर रहे थे कि ये अस्पताल इलाज लेने गए थे या मौत? अच्छेभले सेहतमंद इनासन का ज्यादा पैसा कमाने की नीयत से किए गए इलाज ने तन और मन से बुरी तरह तोड़ दिया था.

मजबूरी : रिहान का तबस्सुम के लिए कैसा प्यार

आज भी बहुत तेज बारिश हो रही थी. बारिश में भीगने से बचने के लिए रिहान एक घर के नीचे खड़ा हो गया था.

बारिश रुकने के बाद रिहान अपने घर की ओर चल दिया. घर पहुंच कर उस ने अपने हाथपैर धो कर कपड़े बदले और खाना खाने लगा. खाना खाने के बाद वह छत पर चला गया और अपनी महबूबा को एक मैसेज किया और उस के जवाब का इंतजार करने लगा.

छत पर चल रही ठंडी हवा ने रिहान को अपने आगोश में ले लिया और वह किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच गया. वह अपने प्यार के भविष्य के बारे में सोचने लगा.

रिहान तबस्सुम से बहुत प्यार करता था और उसी से शादी करना चाहता था. तबस्सुम के अलावा वह किसी और के बारे में सोचता भी नहीं था. जब कभी घर में उस के रिश्ते की बात होती थी तो वह शादी करने से साफ मना कर देता था.

रिहान के घर वाले तबस्सुम के बारे में नहीं जानते थे. वे सोचते थे कि अभी यह पढ़ाई कर रहा है इसलिए शादी से मना कर रहा है. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मान जाएगा.

तभी अचानक रिहान के मोबाइल फोन पर तबस्सुम का मैसेज आया. उस का दिल खुशी से  झूम उठा. उस ने मैसेज पढ़ा और उस का जवाब दिया. बातें करतेकरते दोनों एकदूसरे में खो गए.

तबस्सुम भी रिहान को बहुत प्यार करती थी और शादी करना चाहती थी. अभी तक उस ने भी अपने घर पर अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. वह रिहान की पढ़ाई खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

ऐसा नहीं था कि दोनों में सिर्फ प्यार भरी बातें ही होती थीं, बल्कि दोनों में लड़ाइयां भी होती थीं. कभीकभी तो कईकई दिनों तक बातें बंद हो जाती थीं. लड़ाई के बाद भी वे दोनों एकदूसरे को बहुत याद करते थे और कभी किसी बात पर चिढ़ाने के लिए मैसेज कर देते थे. मसलन, तुम्हारी फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर बहुत बेकार लग रही है. बंदर लग रहे हो तुम. तुम तो बहुत खूबसूरत हो न बंदरिया. और लड़तेलड़ते फिर से बातें शुरू हो जाती थीं.

पिछले 3 सालों से वे दोनों एकदूसरे को प्यार करते थे और अब जा कर शादी करना चाहते थे. रिहान ने सोच लिया था कि इस साल पढ़ाई पूरी होने के बाद कोई अच्छी सी नौकरी कर वह अपने घर वालों को तबस्सुम के बारे में बता देगा. अगर घर वाले मानते हैं तो ठीक, नहीं तो उन की मरजी के खिलाफ शादी कर लेगा. वह किसी भी हाल में तबस्सुम को खोना नहीं चाहता था.

एक दिन रिहान की अम्मी बोलीं, ‘‘तेरे मौसा का फोन आया था. उन्होंने तु झे बुलाया है.’’

‘‘मु झे क्यों बुलाया है? मुझ से क्या काम पड़ गया उन्हें?’’ रिहान ने पूछा.

‘‘अरे, मु झे क्या पता कि क्यों बुलाया है. वह तो हमें वहीं जा कर पता चलेगा,’’ उस की अम्मी ने कहा.

कुछ देर बाद वे दोनों मोटरसाइकिल से मौसा के घर की तरफ चल दिए. रिहान के मौसा पास के शहर में ही रहते थे. एक घंटे में वे दोनों वहां पहुंच गए. वहां पहुंच कर रिहान ने देखा कि घर में बहुत लोग जमा थे. उन में उस के पापा, उस की शादीशुदा बहन और बहनोई भी थे.

यह सब देख कर रिहान ने अपनी अम्मी से पूछा, ‘‘इतने सारे रिश्तेदार क्यों जमा हैं यहां? और पापा यहां क्या कर रहे हैं? वे तो सुबह दुकान पर गए थे?’’

अम्मी बोलीं, ‘‘तू अंदर तो चल. सब पता चल जाएगा.’’

रिहान और उस की अम्मी अंदर गए. वहां सब को सलाम किया और बैठ कर बातें करने लगे.

तभी रिहान के मौसा चिंतित होते हुए बोले, ‘‘आसिफ की हालत बहुत खराब है. वह मरने से पहले अपनी बेटी की शादी करना चाहता है.’’

आसिफ रिहान के मामा का नाम था. कुछ दिन पहले हुईर् तेज बारिश में उन का घर गिर गया था. घर के नीचे दब कर मामा के 2 बच्चों और मामी की मौत हो गई थी. मामा भी घर के नीचे दब गए थे, लेकिन किसी तरह उन्हें निकाल कर अस्पताल में भरती करा दिया गया था. वहां डाक्टर ने कहा था कि वे सिर्फ कुछ ही दिनों के मेहमान हैं. उन का बचना नामुमकिन है.

‘‘फिर क्या किया जाए?’’ रिहान की अम्मी बोलीं.

‘‘आसिफ मरने से पहले अपनी बेटी की शादी रिहान के साथ करा देना चाहता है. यह आसिफ की आखिरी ख्वाहिश है और हमें इसे पूरा करना चाहिए,’’ मौसा की यह बात सुन कर रिहान एकदम चौंक गया. उस के दिल में इतना तेज दर्द हुआ मानो किसी ने उस के दिल पर हजारों तीर एकसाथ छोड़ दिए हों. उस का दिमाग सुन्न हो गया.

‘‘ठीक है, हम आसिफ के सामने इन दोनों की शादी करवा देते हैं,’’ रिहान की अम्मी ने कहा.

रिहान मना करना चाहता था, लेकिन वह मजबूर था.

उसी दिन शादी की तैयारी होने लगी और आसिफ को भी अस्पताल से मौसा के घर ले आया गया. शाम को दोनों का निकाह करवा दिया गया.

शादी के बाद रिहान अपनी बीवी और मांबाप के साथ घर आ गया. पूरे रास्ते वह चुप रहा. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वह सम झ नहीं पा रहा था कि उस के साथ हुआ क्या है.

घर पहुंच कर रिहान कपड़े बदल कर छत पर चला गया. उस ने तबस्सुम को एक मैसेज किया. थोड़ी देर बाद तबस्सुम का फोन आया.

रिहान के फोन उठाते ही तबस्सुम गुस्से में बोली, ‘‘कहां थे आज पूरा दिन? एक मैसेज भी नहीं किया तुम ने.’’

तबस्सुम नाराज थी और वह रिहान को डांटने लगी. रिहान चुपचाप सुनता रहा. जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो तबस्सुम बोली, ‘‘अब कुछ बोलोगे भी या चुप ही बैठे रहोगे?’’

‘‘मेरी शादी हो गई है आज,’’ रिहान धीमी आवाज में बोला.

तबस्सुम बोली, ‘‘मैं सुबह से नाराज हू्र्रं और तुम मु झे चिढ़ा रहे हो.’’

‘‘नहीं यार, सच में आज मेरी शादी हो गई है. उसी में बिजी था इसलिए मैं बात नहीं कर पाया तुम से.’’

‘‘क्या सच में तुम्हारी शादी हो गई है?’’ तबस्सुम ने रोंआसी आवाज में पूछा.

‘‘हां, सच में मेरी शादी हो गई है,’’ रिहान ने दबी जबान में कहा. उस की आवाज में उस के टूटे हुए दिल और उस की बेबसी साफ  झलक रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वह जीना ही नहीं चाहता था.

‘‘तुम ने मु झे धोखा दिया है रिहान,’’ तबस्सुम ने रोते हुए कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं कर सकता था, मेरी मजबूरी थी,’’ यह कह कर रिहान भी रोने लगा.

‘‘तुम धोखेबाज हो. तुम  झूठे हो. आज के बाद मु झे कभी फोन मत करना,’’ कह कर तबस्सुम ने फोन काट दिया.

फोन रख कर रिहान रोने लगा. वहां तबस्सुम भी रो रही थी.

Top 10 Best Husband-Wife Story In Hindi: पति-पत्नी की टॉप 10 बेस्ट कहानियां हिन्दी में

Top 10 Best Husband-Wife Story In Hindi: पति और पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं. यह एक ऐसा रिश्ता होता है जहां प्यार के साथ-साथ तकरार भी देखने को मिलता है. यह रिश्ता दो लोगों को पूरी जिंदगी बांध कर रखता है. जीवन के हर सुख-दुख में पति-पत्नी एक-दूसरे का साथ निभाते हैं.  इस आर्टिकल में हम लेकर आए हैं सरस सलिल की 10 Best Husband-Wife Story In Hindi. इन कहानियों को पढ़कर आप पति-पत्नी के रिश्ते को गहराई से समझ पाएंगे.  तो अगर आपको भी हैं कहानियां पढ़ने का शौक तो पढ़िए सरस सलिल की Top 10 Best Husband-Wife Story In Hindi.

1. तुम ही चाहिए ममू

husband-wife-story-in-hindiकुछ अपने मिजाज और कुछ हालात की वजह से राजेश बचपन से ही गंभीर और शर्मीला था. कालेज के दिनों में जब उस के दोस्त कैंटीन में बैठ कर लड़कियों को पटाने के लिए तरहतरह के पापड़ बेलते थे, तब वह लाइब्रेरी में बैठ कर किताबें खंगालता रहता था.

ऐसा नहीं था कि राजेश के अंदर जवानी की लहरें हिलोरें नहीं लेती थीं. ख्वाब वह भी देखा करता था. छिपछिप कर लड़कियों को देखने और उन से रसीली बातें करने की ख्वाहिश उसे भी होती थी, मगर वह कभी खुल कर सामने नहीं आया.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

2. भीगी पलकों में गुलाबी ख्वाब: क्या ईशान अपनी भाभी को पसंद करता था?

husband-wife-story-in-hindi

मालविका की गजल की डायरी के पन्ने फड़फड़ाने लगे. वह डायरी छोड़ दौड़ी गई. पति के औफिस जाने के बाद वह अपनी गजलों की डायरी ले कर बैठी ही थी कि ड्राइंगरूम के चार्ज पौइंट में लगा उस का सैलफोन बज उठा.

फोन उठाया तो उधर से कहा गया, ‘‘मैं ईशान बोल रहा हूं भाभी, हम लोग मुंबई से शाम तक आप के पास पहुंचेंगे.’’

42 साल की मालविका सुबह 5 बजे उठ कर 10वीं में पढ़ रहे अपने 14 वर्षीय बेटे मानस को स्कूल बस के लिए  रवाना कर के 49 वर्षीय पति पराशर की औफिस जाने की तैयारी में मदद करती है. नाश्तेटिफिन के साथ जब पराशर औफिस के लिए निकल जाता और वह खाली घर में पंख फड़फड़ाने के लिए अकेली छूट जाती तब वह भरपूर जी लेने का उपक्रम करती. सुबह 9 बजे तक उस की बाई भी आ जाती जिस की मदद से वह घर का बाकी काम निबटा कर 11 बजे तक पूरी तरह निश्ंिचत हो जाती.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

3. मेरा पति सिर्फ मेरा है: अनुषा ने अपने पति को टीना के चंगुल से कैसे निकाला?

husband-wife-story-in-hindi

सुबहबह के 6 बज गए थे. अनुषा नहाधो कर तैयार हो गई. ससुराल में उस का पहला दिन जो था वरना घर में क्या मजाल कि कभी सुबह 8 बजे से पहले उठी हो.

विदाई के समय मां ने समझाया, ‘‘बेटी, लड़कियां कितनी भी पढ़लिख जाएं उन्हें अपने संस्कार और पत्नी धर्म कभी नहीं भूलना चाहिए. सुबह जल्दी उठ कर सिर पर पल्लू रख कर रोजाना सासससुर का आशीर्वाद लेना. कभी पति का साथ न छोड़ना. कैसी भी परिस्थिति आ जाए धैर्य न खोना और मुंह से कभी कटु वचन न निकालना.’’

‘‘जैसी आप की आज्ञा माताश्री…’’

जिस अंदाज में अनुषा ने कहा था उसे सुन कर विदाई के क्षणों में भी मां के चेहरे पर हंसी आ गई थी.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

4. तुम सावित्री हो: क्या पत्नी को धोखा देकर खुश रह पाया विकास?

husband-wife-story-in-hindi

अमेरिका के एअरपोर्ट से जब मैं हवाईजहाज में बैठी तो बहुत खुश थी कि जिस मकसद से मैं यहां आई थी उस में सफल रही. जैसे ही हवाईजहाज ने उड़ान भरी और वह हवा से बातें करने लगा वैसे ही मेरे जीवन की कहानी चलचित्र की तरह मेरी आंखों के आगे चलने लगी और मैं उस में पूरी तरह खो गई…

विकास और मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. वैसे मैं उम्र में विकास से 1 वर्ष बड़ी हूं. वे कंपनी में एम.डी. हैं, जबकि मैं सीनियर मैनेजर. कंपनी में साथसाथ काम करने के दौरान अकसर हमारी मुलाकात होती रहती थी. मेरे मम्मीपापा मेरी शादी के लिए लड़का देख रहे थे, लेकिन कोई अच्छा लड़का नहीं मिल रहा था. आखिर थकहार के मम्मीपापा ने लड़का देखना बंद कर दिया. तब मैं ने भी उन से टैलीफोन पर यही कहा कि वे मेरी शादी की चिंता न करें. जब होनी होगी तब चट मंगनी पट शादी हो जाएगी. दरअसल, विकास का कार्यक्षेत्र मेरे कार्यक्षेत्र से एकदम अलग था. यदाकदा हम मिलते थे तो वह भी कंपनी की लिफ्ट या कैंटीन में. वे कंपनी में मुझ से सीनियर थे, हालांकि मैं पहले एक दूसरी कंपनी में कार्यरत थी. मैं ने उन के 3 वर्ष बाद यह कंपनी जौइन की थी. एक बार कंपनी के एक सेमिनार में मुझे शोधपत्र पढ़ने के लिए चुना गया. उस समय सेमिनार की अध्यक्षता विकास ने की थी. जब मैं ने अपना शोधपत्र पढ़ा तब वे मुझ से इतने इंप्रैस हुए कि अगले ही दिन उन्होंने मुझे अपने कैबिन में चाय के लिए आमंत्रित किया. चाय के दौरान हम ने आपस में बहुत बातें कीं. बातोंबातों में उन्होंने मुझ से मेरे बारे में ंसारी बातें मालूम कर लीं. रही उन के बारे में जानकारी लेने की बात, तो मैं उन के बारे में बहुत कुछ जानती थी और जो नहीं जानती थी वह भी उन से पूछ लिया.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

5. प्रेरणा: क्या शादीशुदा गृहस्थी में डूबी अंकिता ने अपने सपनों को दोबारा पूरा किया?

husband-wife-story-in-hindi

‘‘बड़ी मुद्दत हुई तुम्हारा गाना सुने. आज कुछ सुनाओ. कोई भी राग उठा लो,  बागेश्वरी, विहाग या मालकोश, जो इस समय के राग हैं,’’ रात का भोजन करने के बाद मनोहर लाल ने अंकिता से इच्छा व्यक्त की. वे बड़े लंबे समय के बाद अपनी बेटी और दामाद के यहां उन से मिलने आए थे.

इस से पहले कि अंकिता कुछ कहती, उस की 14 साल की बेटी चहक पड़ी, ‘‘सुना तो है कि मां बड़ा अच्छा गाती थीं, संगीत विशारद भी हैं, लेकिन मैं ने तो आज तक इन के मुख से कोई गाना नहीं सुना.’’

‘‘यह मैं क्या सुन रहा हूं? तुम तो इतना बढि़या गाती थीं. कुछ और समय लखनऊ में रहना हो गया होता तो तुम ने संगीत में निपुणता प्राप्त कर ली होती.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

6. तुम्हारे हिस्से में: पत्नी के प्यार में क्या मां को भूल गया हर्ष?

husband-wife-story-in-hindi

बाइक ‘साउथ सिटी’ मौल के सामने आ कर रुकी तो एक पल के लिए दोनों के बदन में रोमांच से गुदगुदी हुई. मौल का सम्मोहित कर देने वाला विराट प्रवेशद्वार. द्वार के दोनों ओर जटायु के विशाल डैनों की मानिंद दूर तक फैली चारदीवारी. चारदीवारी पर फ्रेस्को शैली के भित्तिचित्र. राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय उत्पादों की नुमाइश करते बड़ेबड़े आदमकद होर्डिंग्स और विंडो शोकेस. सबकुछ इतना अचरजकारी कि देख कर आंखें बरबस फटी की फटी रह जाएं.

भीतर बड़ा सा वृत्ताकार आंगन. आंगन के चारों ओर भव्यता की सारी सीमाओं को लांघते बड़ेबड़े शोरूम. बीच में थोड़ीथोड़ी दूर पर आगतों को मासूमियत के संग अपनी हथेलियों पर ले कर ऊपर की मनचाही मंजिलों तक ले जाने के लिए तत्पर एस्केलेटर.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

7. मेरा प्यार था वह: क्यों शादी के बाद मेघा बदल गई?

husband-wife-story-in-hindi

मुझे ऐसा लगा कि नीरज वहीं उस खिड़की पर खड़ा है. अभी अपना हाथ हिला कर मेरा ध्यान आकर्षित करेगा. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पा कर मैं चौंकी.

‘‘मेघा, आप यहां क्या कर रही हैं? सब लोग नाश्ते पर आप का इंतजार कर रहे हैं और जमाईजी की नजरें तो आप ही को ढूंढ़ रही हैं,’’ छेड़ने के अंदाज में भाभी ने कहा.

सब हंसतेबोलते नाश्ते का मजा ले रहे थे, पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. मैं एक ही पूरी को तोड़े जा रही थी.

‘‘अरे मेघा, खा क्यों नहीं रही हो बहू, मेघा की प्लेट में गरम पूरियां डालो,’’ मां ने भाभी से कहा.

‘‘नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरा नाश्ता हो गया,’’ कह कर मैं उठ गई.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

8. कोरोना लव : शादी के बाद अमन और रचना के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

husband-wife-story-in-hindi

अमन घर में पैर रखने ही जा रहा था कि रचना चीख पड़ी, ‘‘बाहर…बाहर जूता खोलो. अभी मैं ने पूरे घर में झाड़ूपोंछा लगाया है और तुम हो कि जूता पहन कर अंदर घुसे आ रहे हो.’’

‘‘अरे, तो क्या हो गया? रोज तो आता हूं,’’ झल्लाते हुए अमन जूता बाहर ही खोल कर जैसे ही अंदर आने लगा रचना ने फिर उसे टोका, ‘‘नहीं, बैठना नहीं, जाओ पहले बाथरूम और अच्छे से हाथमुंहपैर सब धो कर आओ. और हां, अपना मोबाइल भी सैनिटाइज करना मत भूलना. वरना यहांवहां कहीं भी रख दोगे और फिर पूरे घर में इन्फैक्शन फैलाओगे.’’

पूरी कहानी पढ़ने के  लिए यहां क्लिक करें…

9. धोखा: क्या संदेश और शुभ्रा शादी से खुश थे?

husband-wife-story-in-hindi

संदेश और शुभ्रा ने एकदूसरे को पसंद कर शादी के लिए रजामंदी दी थी. दोनों के परिवारों ने खूब अच्छी तरह देखपरख कर संदेश और शुभ्रा की शादी करने का फैसला किया था. यह कोई प्रेम विवाह नहीं था. रिश्तेदारों ने ही ये रिश्ता करवाया था.

संदेश एमबीए कर के एक कंपनी में सहायक मैनेजर के पद पर काम कर रहा था, तो शुभ्रा भी एमए कर के सिविल सर्विस के लिए कोशिश कर रही थी. ऐसे में शुभ्रा के एक रिश्तेदार ने संदेश के बारे में शुभ्रा के मम्मीपापा को बताया. शुभ्रा के मम्मीपापा रिश्ते की बात करने के लिए संदेश के घर गए.

संदेश के पिताजी बैंक से रिटायर्ड थे तो मम्मी घरेलू औरत थी. इस तरह देखादिखाई के बाद संदेश और शुभ्रा की शादी हुई.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

10. दुनिया पूरी: क्या पत्नी को दिए गए वचन को वह निभा पाया?

husband-wife-story-in-hindi

मेरी पत्नी का देहांत हुए 5 वर्ष बीत गए थे. ऐसे दुख खत्म तो कभी नहीं होते, पर मन पर विवशता व उदासीनता की एक परत सी जम गई  थी. इस से दुख हलका लगने लगा था. जीवन और परिवार की लगभग सभी जिम्मेदारियां पूरी हो चुकी थीं. नौकरी से सेवानिवृत्ति, बच्चों की नौकरियां और विवाह भी.

जिंदगी एक मोड़ पर आ कर रुक गई थी. दोबारा घर बसाना मु झे बचकाना खयाल लगता था. चुकी उमंगों के बीज भला किसी उठती उमंग में क्यों बोए जाएं.  अगर सामने भी चुकी उमंग ही हो, तो दो ठूंठ पास आ कर भी क्या करें. मु झे याद आता था कि एक बार पत्नी और अपनी खुद की नौकरी में अलगअलग पोस्ंिटग होने पर जाने के लिए अनिच्छुक पत्नी को सम झाते हुए मैं ने यह वचन दे डाला था कि मैं जीवन में कभी किसी दूसरी औरत से शरीर के किसी रिश्ते के बारे में होश रहने तक सोचूंगा भी नहीं.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

खुल गई आंखें : कैसी थी रवि की पत्नी गुंजा

दफ्तर से अपने बड़े सरकारी बंगले पर जाते हुए उस दिन अचानक एक ट्रक ने रवि की कार को जोरदार टक्कर मार दी थी. कार का अगला हिस्सा बुरी तरह से टूटफूट गया था.

खून से लथपथ रवि कार के अंदर ही फंसा रह गया था. वह काफी समय तक बेहोशी की हालत में कार के अंदर ही रहा, पर उस की जान बचाने वाला कोई भी नहीं था.

हां, उस के आसपास तमाशबीनों की भीड़ जरूर लग गई थी. सभी एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे, पर किसी में उसे अस्पताल ले जाने या पुलिस को बुलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

भला हो रवि के दफ्तर के चपरासी रामदीन का, जो भीड़ को देख कर उसे चीरता हुआ रवि के पास तक पहुंच गया था. बाद में उसी ने पास के एसटीडी बूथ से 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुला लिया था.

जब तक पुलिस रवि को ले कर पास के नर्सिंगहोम में पहुंची तब तक उस के शरीर से काफी खून बह चुका था. रामदीन काफी समय तक अस्पताल में ही रहा था. उस ने फोन कर के दफ्तर से सुपरिंटैंडैंट राकेश को भी बुला लिया था जो वहीं पास में रहते थे.

रवि के एक रिश्तेदार भी सूचना पा कर अस्पताल पहुंच गए थे. गांव दूर होने व बूढ़े मांबाप की हालत को ध्यान में रखते हुए किसी ने उस के घर सूचना भेजना उचित नहीं सम  झा था. वैसे भी उस के गांव में संचार का कोई खास साधन नहीं था. इमर्जैंसी में तार भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं होता था.

रवि की पत्नी गुंजा अपने सासससुर व देवर रघु के साथ गांव में ही रहती थी. वह 2 साल पहले ही गौना करा कर अपनी ससुराल आई थी. रवि के साथ उस की शादी बचपन में तभी हो गई थी, जब वे दोनों 10 साल की उम्र भी पार नहीं कर पाए थे.

गांव में रहने के चलते गुंजा की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद ही छूट गई थी पर रवि 5वीं जमात पास कर के अपने चाचा के पास शहर में ही पढ़ने आ गया था. उस ने अच्छीखासी पढ़ाई कर ली थी. शहर में पढ़ाई करने के चलते उस का मन चंचल हो गया था. वैसे भी वह गुंजा से हर मामले में बेहतर था.

शादी के समय तो रवि को कोई सम  झ नहीं थी, पर जब गौने के बाद विदा हो कर गुंजा उस के घर आई थी और पहली बार जवान और भरपूर नजरों से उस ने उसे देखा था तभी से उस का मन उस से उचट गया था.

गुंजा कामकाज में भी उतनी माहिर नहीं थी जितनी रवि ने अपनी पत्नी से उम्मीद की थी. यहां तक कि सुहागरात के दिन भी वह गुंजा से दूर ही रहा था.

गुंजा गांव की पलीबढ़ी लड़की थी. शक्लसूरत और पढ़ाईलिखाई में कम होने के बावजूद मांबाप से उसे अच्छे संस्कार मिले थे. उस ने रवि की अनदेखी के बावजूद उस के बूढ़े मांबाप और रवि के छोटे भाई रघु का साथ कभी नहीं छोड़ा.

मांबाप के लाख कहने के बावजूद रवि जब उसे अपने साथ शहर ले जाने को राजी नहीं हुआ तब भी उस ने उस से कोई खास जिद नहीं की, न ही अकेले शहर जाने का उस ने कोई विरोध किया.

शहर में आ कर रवि अपने दफ्तर और रोजमर्रा के कामों में ऐसा बिजी हुआ कि गांव जाना ही भूल गया. उसे अपने मांबाप से भी कुछ खास लगाव नहीं रह गया था क्योंकि वह अपनी बेढंगी शादी के लिए काफी हद तक उन्हीं को कुसूरवार मानता था.

तनख्वाह मिलने पर घर पर पैसा भेजने के अलावा रवि कभीकभार चिट्ठी लिख कर मांबाप व भाई का हालचाल जरूर पूछ लेता था, पर इस से ज्यादा वह अपने घर वालों के लिए कुछ भी नहीं कर पाता था.

3-4 दिन आईसीयू में रहने के बाद अब रवि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया था. दफ्तर के अनेक साथी तन, मन और धन से उस की सेवा में लगे हुए थे. बड़े साहब भी लगातार उस की सेहत पर नजर रखे हुए थे.

नर्सिंगहोम में जहां सीनियर सर्जन डाक्टर अशोक लाल उस के इलाज पर ध्यान दे रहे थे, वहीं वह वहां की सब से काबिल नर्स सुधा चौहान की चौबीसों घंटे की निगरानी में था.

सुधा चौहान जितना नर्सिंगहोम के कामों में माहिर थी, उतना ही सरल उस का स्वभाव भी था. शक्लसूरत से भी वह किसी फिल्मी नर्स से कम नहीं थी. उस की रातदिन की सेवा और बेहतर इलाज के चलते रवि को जल्दी ही होश आ गया था.

उस समय सुधा ही उस के पास थी. उसे बेचैन देख कर सुधा ने सहारा दिया और उस के सिरहाने तकिया रख दिया. अगले ही पल नर्स सुधा ने शीशी से एक चम्मच दवा निकाल कर आहिस्ता से उस के मुंह में डाल दी.

रवि कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहता था, पर पूरे चेहरे पर पट्टी बंधी होने के चलते वह कुछ भी कह पाने में नाकाम था. सुधा ने हलकी मुसकान के साथ उसे इशारेइशारे में चुप रहने को कहा.

सुधा की निजी जिंदगी भी बहुत खुशहाल नहीं थी. उस का पति मनीष इस दुनिया में नहीं था. उस की रिया नाम की 5 साल की एक बेटी थी जो उस के साथ ही रहती थी.

मनीष सेना में कैप्टन था. जब रिया मां के पेट में थी उन्हीं दिनों बौर्डर पर सिक्योरिटी का जायजा लेते समय आतंकियों के एक हमले में उस की जान चली गई थी. इस के बाद सुधा टूट कर रह गई थी. पर मनीष की निशानी की खातिर वह जिंदा रही. अब उस ने लोगों की सेवा को ही अपने जीने का मकसद बना लिया था.

थोड़ी देर तक शांत रहने के बाद रवि कुछ बुदबुदाया. शायद उसे प्यास लग रही थी. सुधा उस के बुदबुदाने का मतलब सम  झ गई थी. उस ने 8-10 चम्मच पानी उस को पिला दिया. पानी पिला कर उस ने रूमाल से रवि के होंठों को पोंछ दिया था. फिर वह पास ही रखे स्टूल पर बैठ कर आहिस्ताआहिस्ता उस का सिर सहलाने लगी थी. यह देख कर रवि की आंखें नम हो गई थीं.

सुधा को रवि के बारे में मालूम था. डाक्टर अशोक लाल ने उसे रवि के बारे में पहले से ही सबकुछ बता दिया था. नर्सिंगहोम में रवि के दफ्तर से आनेजाने वालों का जिस तरह से तांता लगा रहता, उसे देख कर उस के रुतबे का अंदाजा लग जाता था.

कुछ दिनों के इलाज के बाद बेशक अभी भी रवि कुछ बोल पाने में नाकाम था, पर उस के हाथपैर हिलनेडुलने लगे थे. अब वह किसी चिट पर लिख कर अपनी कोई बात सुधा या डाक्टर के सामने आसानी से रख पा रहा था. कभी जब सुधा की रात की ड्यूटी होती तब भी वह पूरी मुस्तैदी से उस की सेवा में लगी रहती.

एक दिन सुबह जब सुधा अपनी ड्यूटी पर आई तो रवि बहुत खुश नजर आ रहा था. सुधा के आते ही रवि ने उसे एक चिट दी, जिस पर लिखा था, ‘आप बहुत अच्छी हैं, थैंक्स.’

चिट के जवाब में सुधा ने जब उस के सिर पर हाथ फेरते हुए मुसकरा कर ‘वैलकम’ कहा तो उस की आंखें भर आई थीं. उस दिन रवि के धीरे से ‘आई लव यू’ कहने पर सुधा शरमा कर रह गई थी.

सुधा का साथ पा कर रवि के मन में जिंदगी को एक नए सिरे से जीने की इच्छा बलवती हो उठी थी. जब तक सुधा उस के पास रहती, उस के दिल को बड़ा ही सुकून मिलता था.

एक दिन सुधा की गैरहाजिरी में जब रवि ने वार्ड बौय से उस के बारे में कुछ जानना चाहा था तो वार्ड बौय ने सुधा की जिंदगी की एकएक परतें उस के सामने खोल कर रख दी थीं.

सुधा की कहानी सुन कर रवि भावुक हो गया था. उस ने उसी पल सुधा को अपनाने और एक नई जिंदगी देने का मन बना लिया था. उस ने तय कर लिया था कि वह कैसे भी हो, सुधा को अपनी पत्नी बना कर ही दम लेगा. पर सवाल यह उठता था कि एक पत्नी के होते हुए वह दूसरी शादी कैसे करता?

उस दिन अस्पताल से छुट्टी मिलते ही रवि दफ्तर के कुछ काम निबटा कर सीधा अपने गांव चला गया था. जब वह सुबह अपने गांव पहुंचा तब घर वाले हैरान रह गए थे. बूढे़ मांबाप की आंखों में तो आंसू आतेआते रह गए थे.

पूरे घर में अजीब सा भावुक माहौल बन गया था. आसपास के लोग रवि के घर के दरवाजे पर इकट्ठा हो कर घर के अंदर का नजारा देखे जा रहे थे.

रवि बहुत कम दिनों के लिए गांव आया था. वह जल्दी से जल्दी गुंजा को तलाक के लिए तैयार कर शहर लौट जाना चाहता था. पर घर का माहौल एकदम से बदल जाने के चलते वह असमंजस में पड़ गया था. उस दिन पूरे समय गुंजा उस की खातिरदारी में लगी रही. वह उसे कभी कोई पकवान बना कर खिलाती तो कभी कोई. पर रवि पर उस की इस मेहमाननवाजी का कोई असर नहीं हो रहा था.

दिनभर की भीड़भाड़ से जू  झतेजू  झते और सफर की रातभर की थकान के चलते उस रात रवि को जल्दी ही नींद आ गई थी. गुंजा ने अपना व उस का बिस्तर एकसाथ ही लगा रखा था, पर इस की परवाह किए बगैर वह दालान में पड़े तख्त पर ही सो गया था. पर थोड़ी ही देर में उस की नींद खुल गई थी. उसे नींद आती भी तो कहां से. एक तो मच्छरमक्खियों ने उसे परेशान कर रखा था, उस पर से भविष्य की योजनाओं ने थकान के बावजूद उसे जगा दिया था.

रवि देर रात तक सुधा और अपनी जिंदगी के तानेबाने बुनने में ही लगा रहा. रात के डेढ़ बजे उस पर दोबारा नींद की खुमारी चढ़ी कि उसे अपने पैरों के पास कुछ सरसराहट सी महसूस हुई. उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उस के पैरों को गरम पानी में डुबो कर रख दिया हो.

रवि हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा, गुंजा उस के पैरों पर अपना सिर रखे सुबक रही थी. पास में ही मच्छर भगाने वाली बत्ती चारों ओर धुआं छोड़ रही थी. उस के उठते ही गुंजा उस से लिपट गई और फिर बिलखबिलख कर रोने लगी.

गुंजा रोते हुए बोले जा रही थी, ‘‘इस बार मु  झे भी शहर ले चलो. मैं अब अकेली गांव में नहीं रह सकती. भले ही मु  झे अपनी दासी बना कर रखना, पर अब अकेली छोड़ कर मत जाना, नहीं तो मैं कुएं में कूद कर मर जाऊंगी.’’

गुंजा की यह दशा देख कर अचानक रवि उस के प्रति कुछ नरम होते हुए भावुक हो उठा. वह अपने दिलोदिमाग में हाल में बने गए सपनों को भूल कर अचानक गुंजा की ओर मुखातिब हो चला था.

गुंजा ने जब बातों ही बातों में रवि को बताया कि उस ने शहर चलने के लिए एबीसीडी समेत अंगरेजी की कई कविताएं भी मुंहजबानी याद कर रखी हैं तो रवि उस के भोलेपन पर मुसकरा उठा.

आज पहली बार उसे गुंजा का चेहरा बहुत अच्छा लगा था और उस के मन में गुंजा के प्रति प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा था. वह उस की कमियों को भूल कर पलभर में ही उस के आगोश में समाता चला गया था.

रवि गुंजा के बदन से खेलता रहा और वह आंखों में आंसुओं का समंदर लिए उस के प्यार का जवाब देती रही.

एक ही रात और कुछ समय के प्यार ने ही रवि के कई सपनों को जहां तोड़ दिया था वहीं उस के दिलोदिमाग में कई नए सपने भी बुनते चले गए थे. वह गुंजा को तन, मन व धन से अपनाने को तैयार हो गया था, पर सवाल यह था कि शहर जा कर वह सुधा को क्या जवाब देगा. जब सुधा को यह पता चलेगा कि वह पहले से ही शादीशुदा है और जब उस को अब तक का उस का प्यार महज नाटक लगेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी.

इसी उधेड़बुन के साथ रवि अगली सुबह शहर को रवाना हो चला था. गुंजा को उस ने कह दिया था कि वह अगले हफ्ते उसे लेने गांव आएगा.

शहर पहुंचते ही रवि किसी तरह से सुधा से मिल कर उस से अपनी गलतियों व किए की माफी मांगना चाहता था. अपने बंगले पर पहुंच कर वह नहाधो कर सीधा नर्सिंगहोम पहुंचा, पर वहां सुधा से उस की मुलाकात नहीं हो पाई.

पता चला कि आज वह नाइट ड्यूटी पर थी. वह वहां से किसी तरह से पूछतापूछता सुधा के घर जा पहुंचा, पर वहां दरवाजे पर ताला लटका मिला. किसी पड़ोसी ने बताया कि वह अपनी बेटी के स्कूल गई हुई है.

मायूस हो कर रात को नर्सिंगहोम में सुधा से मिलने की सोच कर रवि सीधा अपने दफ्तर चला गया. आज उस का दिन बड़ी मुश्किल से कट रहा था. वह चाहता था कि किसी तरह से जल्दी से रात हो और वह सुधा से मिल कर उस से माफी मांग ले.

रात के 8 बजने वाले थे. सुधा के नर्सिंगहोम आने का समय हो चुका था, इसलिए तैयार हो कर रवि भी नर्सिंगहोम की ओर बढ़ चला था. मन में अपनी व सुधा की ओर से आतेजाते सवालों का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह कब नर्सिंगहोम के गेट पर जा पहुंचा था, उसे पता ही नहीं चला.

रिसैप्शन पर पता चला कि सुधा प्राइवेट वार्ड के 4 नंबर कमरे में किसी मरीज की सेवा में लगी है. किसी तरह से इजाजत ले कर वह सीधा 4 नंबर कमरे में घुस गया, पर वहां का नजारा देख कर वह पलभर को ठिठक गया. सुधा एक नौजवान मरीज के अधनंगे शरीर को गीले तौलिए से पोंछ रही थी.

रवि को आगे बढ़ता देख उस ने उसे दरवाजे पर ही रुक जाने का इशारा किया. रवि दरवाजे पर ही ठिठक गया था.

मरीज का बदन पोंछने के बाद सुधा ने उसे दूसरे धुले हुए कपड़े पहनाए. उसे अपने हाथों से एक कप दूध पिलाया और कुछ बिसकुट भी तोड़तोड़ कर खिलाए. फिर वह उसे अपनी बांहों के सहारे से बिस्तर पर सुलाने की कोशिश करने लगी.

मरीज को नींद नहीं आते देख सुधा उस के सिर पर हाथ फेरते हुए व थपकी दे कर उसे सुलाने की कोशिश करने लगी थी. उस के ममता भरे बरताव से मरीज को थोड़ी ही देर में नींद आ गई थी.

जैसे ही मरीज को नींद आई, रवि लपक कर सुधा के करीब आ गया था. उस ने सुधा को अपनी बांहों में भरने की कोशिश की, पर सुधा छिटक कर उस से दूर हो गई.

‘‘अरे, यह आप क्या कर रहे हैं. आप वही हैं न, जो कुछ दिन पहले यहां एक सड़क हादसे के बाद दाखिल हुए थे. अब आप को क्या दिक्कत है?’ सुधा ने उस से पूछा.

‘‘अरे, यह क्या कह रही हो तुम? ऐसे अजनबियों जैसी बातें क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा वही रवि हूं जिस ने तुम्हारे प्यार के बदले में तुम से भी उतना ही प्यार किया था और हम जल्दी ही शादी करने वाले थे,’’ कहता हुआ रवि उस के करीब आ गया.

रवि की बातों के जवाब में सुधा ने कहा, ‘‘मिस्टर आप रवि हैं या कवि, आप की बातें मेरी सम  झ से परे हैं. आप किस प्यार और किस शादी की बात कर रहे हैं, मैं सम  झ नहीं पा रही हूं.

‘‘देखिए, मैं एक नर्स हूं. मेरा काम यहां मरीजों की सेवा करना है. भला इस में प्यार और शादी कहां से आ गई.’’

‘‘तो क्या आप ने मुझे भी महज एक मरीज के अलावा कुछ नहीं सम  झा?’’ रवि बौखलाते हुए बोला.

सुधा ने अपने मरीज की ओर देखते हुए रवि को धीरेधीरे बोलने का इशारा किया और उसे खींचते हुए दरवाजे तक ले गई. वह उस को सम  झाते हुए बोली, ‘‘आप को गलतफहमी हुई है. हम यहां प्यार करने नहीं बल्कि अपने मरीजों की सेवा करने आते हैं.

‘‘अगर हम भी प्यारव्यार और शादीवादी के चक्कर में पड़ने लगे तो हमारे घर में हर दिन एक नया पति दिखाई देगा.

‘‘प्लीज, आप यहां से जाइए और मेरे मरीज को चैन से सोने दीजिए.’’

इस बीच मरीज ने अपनी आंखें खोल लीं. उस ने सुधा से पानी पीने का इशारा किया. सुधा तुरंत जग में से पानी निकाल कर चम्मच से उसे पिलाने बैठ गई. पानी पिलातेपिलाते वह मरीज के सिर को भी सहलाए जा रही थी.

रवि सुधा से अपनी जिस बात के लिए माफी मांगने आया था, वह बात उस के दिल में ही रह गई. उसे तसल्ली हुई कि सुधा के मन में उस के प्रति ऐसी कोई बात कभी आई ही नहीं थी, जिसे सोच कर उस ने दूर तक के सपने देख लिए थे.

सुधा रवि से ‘सौरी’ कहते हुए अपने मरीज की तीमारदारी में लग गई. रवि ने कमरे से बाहर निकलते हुए एक नजर सुधा व उस के मरीज पर डाली. मरीज को लगी हुई पेशाब की नली शायद निकल गई थी, इसलिए वह कराह रहा था. सुधा उसे प्यार से पुचकारते हुए फिर से नली को ठीक करने में लग गई थी.

सुधा की बातों और आज के उस के बरताव ने रवि के मन का सारा बो  झ हलका कर दिया था.

आज रात रवि को जम कर नींद आई थी. एक हफ्ते तक दफ्तर के कामों में बिजी रहने के बाद रवि दोबारा अपने गांव जाने वाली रेल में सवार था. उस की रेल भी उसे गुंजा तक जल्दी पहुंचाने के लिए पटरियों पर सरपट दौड़ लगाती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी. जो गांव उसे कल तक काटता था और जिस की ओर वह मुड़ कर भी नहीं देखना चाहता था, आज उस के आगोश में समाने को बेताब था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें