जुनूनी इश्क में पत्नी ने कर दिया पति का खून

31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा का दिन था. राजस्थान में इस दिन लोग एकदूसरे से मिलने जाते हैं. अजमेर जिले के कस्बा ब्यावर में अपनी बीवीबच्चों के साथ रहने वाला विजय कुमार गहलोत भी दूसरे मोहल्ले में रहने वाले अपने भाइयों बंटी और कमल से मिलने गया था. उस की पत्नी मोना ने तबीयत खराब होने की बात कह कर साथ जाने से मना कर दिया था. सुबह करीब 10 बजे अपने भाइयों से मिलने पहुंचा विजय दिन भर उन्हीं के यहां रहा. चूंकि घर पर पत्नी और बेटा ही था, इसलिए शाम का खाना खा कर वह 7, साढ़े 7 बजे मोटरसाइकिल से अपने घर के लिए चल पड़ा. रात साढ़े 11 बजे के करीब कमल के मोबाइल पर विजय की पत्नी मोना ने फोन कर के कहा, ‘‘कमल, आधी रात हो रही है, अब तो विजय से कहो कि घर आ जाएं.’’

इस पर कमल ने कहा, ‘‘भाभी, आप यह क्या कह रही हैं. विजय भैया तो 7 बजे ही यहां से चले गए थे.’’

‘‘हो सकता है, वह किसी यारदोस्त के यहां चले गए हों? मैं उन्हें फोन करती हूं.’’ कह कर मोना ने फोन काट दिया.

मगर कमल को चैन नहीं पड़ा. उस ने घर में यह बात बताई तो सब चिंतित हो उठे. उस ने विजय के मोबाइल पर फोन किया. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. कई बार ऐसा हुआ तो कमल को लगा, कहीं विजय के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. कमल अपने घर वालों के साथ विजय के घर पहुंचा तो उस के घर पर ताला लगा था. उस ने विजय की पत्नी मोना को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘आप के भैया घर नहीं आए तो मैं थोड़ी देर पहले मायके आ गई. मुझे अकेले घर पर डर लग रहा था.’’ कमल घर वालों के साथ अपने घर लौट आया. घर पर सभी परेशान थे कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है, जो विजय फोन नहीं उठा रहा. सुबह साढ़े 3 बजे के करीब विजय के मोबाइल से कमल के मोबाइल पर फोन आया. जैसे ही कमल ने फोन रिसीव किया, दूसरी तरफ से किसी अनजान व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं और जिस मोबाइल से मैं फोन कर रहा हूं, वह किस का है?’’

‘‘मैं कमल बोल रहा हूं और यह मोबाइल मेरे आई विजय का है. आप कौन?’’ कमल ने पूछा.

‘‘मैं थाना सदर का एएसआई माणिकचंद बोल रहा हूं. उदयपुर बाईपास रोड पर एक आदमी का एक्सीडेंट हो गया है. यह मोबाइल वहीं पड़ा मिला था. आप तुरंत यहां आ जाइए.’’

एक्सीडेंट की बात सुन कर कमल घबरा गया. थोड़ी देर में वह अपने घर वालों और परिचितों के साथ उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंच गया. वहां सड़क के किनारे झाडि़यों के पास विजय की लाश पड़ी थी. उस के पैरों में चप्पल नहीं थे. लाश से करीब 100 फुट दूर उस की मोटरसाइकिल पड़ी थी. इस से यह मामला दुर्घटना के बजाय हत्या का लग रहा था. मोटरसाइकिल से ले कर लाश तक मोटरसाइकिल के घिसटने के निशान भी नहीं थे. लाश के पास ही शराब का एक खाली पव्वा पड़ा था. जबकि विजय शराब बिलकुल नहीं पीता था. वहीं उस का मोबाइल फोन भी पड़ा था. एएसआई माणिकचंद की सूचना पर थाना सदर के थानाप्रभारी रविंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए थे. उच्चाधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया गया था. वे भी सुबह तक घटनास्थल पर आ गए थे. मौके का बारीकी से मुआयना करने के बाद विजय की लाश पोस्टमार्टम के लिए अमृतकौर चिकित्सालय भिजवा दी गई थी. पुलिस मृतक की पत्नी मोना से बात करना चाहती थी, लेकिन उस वक्त वह काफी दुखी थी. पुलिस उस के घर का निरीक्षण करना चाहती थी, पर उस के घर में ताला बंद था. पुलिस ने उसे बुलवा कर घर का ताला खुलवाया. घर के बाहर ही मृतक विजय के चप्पलें पड़ी थीं. पुलिस ने मोना से पूछा कि ये चप्पलें यहां कैसे आईं तो वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी.

घर का पानी जिस नाली से बहता था, उसे देख कर ही लग रहा था कि वहां खून साफ किया गया था. इस के अलावा हौल की दीवारों और फर्श पर खून के छींटे नजर आए. बाथरूम में पानी से भरी एक बाल्टी में मोना के कपड़े और पैंटशर्ट भिगोए थे, उन में भी खून लगा था. इस सब से यही लग रहा था कि विजय की हत्या घर में ही की गई थी और हत्या में मोना के साथ कोई आदमी भी शामिल था. रविंद्र सिंह ने जब मोना से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने प्रेमी दिनेश साहू के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. सच सामने आ चुका था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के प्रेमी दिनेश साहू को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना सदर ला कर पूछताछ की गई तो विजय कुमार गहलोत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के जिला अजमेर से कोई 60 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर स्थित है कस्बा ब्यावर. इसी कस्बे की चौहान कालोनी के रहने वाले रामभरुच सांखला के 3 बेटे और एक बेटी थी मोना. मोना बहुत खूबसूरत थी. वह सयानी हुई तो उस की शादी पाली के अपनी ही जाति के एक लड़के से कर दी गई. मोना ससुराल में खुश थी. उस के मायके वाले आर्थिक रूप से काफी मजबूत थे. इसलिए उन्होंने उस से कहा कि वे उस के लिए ब्यावर में मकान बनवा कर दे रहे हैं, इसलिए वह पति के साथ आ कर वहीं रहे. मोना ने जब यह बात अपने पति को बताई तो उस ने साफ कह दिया कि वह ससुराल में घरजमाई बन कर नहीं रहेगा. उस की मजबूरी यह थी कि उस के पिता का देहांत हो चुका था और वह विधवा मां को अकेली नहीं छोड़ना चाहता था.इसी बात पर मोना की पति से कटुता बढ़ गई और हालात यहां तक पहुंच गए कि शादी के 6 महीने बाद ही दोनों में तलाक हो गया. इस के बाद मोना अपने पिता के घर आ गई.

ब्यावर में ही मोहनलाल गहलोत अपनी पत्नी जसोदा देवी के साथ रहते थे. इन के तीन बेटे थे, बंटी कुमार, विजय कुमार और कमल किशोर. तीनों भाइयों में बड़ा स्नेह था. सब से बड़ा बेटा बंटी दिव्यांग था. दिव्यांग होने के बावजूद वह समाजसेवा में ज्यादा से ज्यादा समय बिताता था. वह ब्यावर विकलांग समिति का अध्यक्ष भी था. सोहनलाल और उन की पत्नी जसोदा की मौत के बाद तीनों भाइयों ने घरगृहस्थी और दुकानदारी संभाल ली थी.

सब बढि़या चल रहा था. बात सन 2004 की है. विजय कुमार अपने चचेरे भाई के साथ उस की ससुराल में आयोजित एक शादी समारोह में गया था. वहीं विजय की मुलाकात मोना उर्फ मोनिका से हुई. इसी मुलाकात में मोना और विजय एकदूजे को दिल दे बैठे. एक दिन वह भी आ गया, जब विजय ने अपने घर में मोना से शादी करने की बात कह दी. मोना ने भी अपने पिता से कह दिया था कि वह विजय को चाहती है और उस से शादी करना चाहती है. दोनों परिवारों की सहमति से सन 2004 में मोना और विजय की शादी हो गई.

मोना और विजय को अपनाअपना प्यार मिल गया था. उन की गृहस्थी आराम से कटने लगी. शादी की पहली वर्षगांठ से पहले ही मोना बेटे की मां बन गई, जिस का नाम नितेश रखा गया. विजय संयुक्त परिवार में रहता था, जबकि मोना पति के साथ अलग रहना चाहती थी. मोना के मायके वालों ने उसे विजयनगर में एक मकान बनवा कर दे दिया था. पति से जिद कर के वह उसी मकान में रहने चली गई. विजय की ब्यावर में फोटोफ्रैम की दुकान थी. वह सुबह दुकान पर चला जाता था तो रात को ही लौटता था. नितेश स्कूल जाने लायक हुआ तो उस का दाखिला पास के स्कूल में करा दिया गया था. विजय के घर के सामने दिनेश साहू का मैडिकल स्टोर था. उस के पिता माणक साहू ब्यावर के अमृतकौर सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर थे और अस्पताल के पास ही रहते थे. दिनेश शादीशुदा था. मैडिकल स्टोर पर बैठने के साथ वह नर्सिंग का कोर्स भी कर रहा था.

मैडिकल स्टोर पर बैठने के दौरान ही दिनेश और मोना के नैन लड़ गए. शादीशुदा होने के बावजूद दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. बच्चे को स्कूल भेजने के बाद मोना घर में अकेली रह जाती थी. एक दिन उस ने चाय के बहाने दिनेश को घर बुला लिया. इस के बाद दोनों रोज मिलने लगे. मोना उम्र में दिनेश से 6-7 साल बड़ी थी. मगर उस की फिगर ऐसी थी, जिस पर दिनेश मर मिटा था.

एक दिन ऐसा भी आया, जब सारी सीमाएं लांघ कर दोनों ने शारीरिक संबंध बना लिए. मोना को विजय में अब कोई रुचि नहीं रह गई थी, बल्कि वह उसे राह का कांटा लगने लगा था. दूसरी ओर दिनेश को भी अपनी पत्नी में पहले जैसी रुचि नहीं रह गई थी. वह उसे समय नहीं दे पा रहा था. राह में कांट लग रहे पति को मोना ने राह से हटाने के बारे में दिनेश से बात की तो उस ने कहा कि विजय को इस तरह ठिकाने लगाया जाए कि किसी को शक तक न हो.

‘‘तुम चिंता मत करो, इस के लिए मेरे दिमाग में एक सुपर आइडिया है. हम पहले विजय की घर में ही हत्या कर देंगे, उस के बाद लाश और मोटरसाइकिल को सड़क पर डाल देंगे. लोग समझेंगे कि उस की मौत सड़क हादसे में हुई है. मामला ठंडा होने के बाद हम नाता प्रथा के तहत शादी कर लेंगे.’’

योजना को किस तरह अंजाम देना है, यह दोनों ने तय कर लिया. 31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा वाले दिन विजय कुमार गहलोत ने सुबह मोना से कहा, ‘‘आज हम लोग बंटी और कमल के घर चलते हैं?’’

‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. ऐसा करो, तुम अकेले चले जाओ. मैं फिर कभी हो आऊंगी.’’ मोना ने कहा.

पत्नी की बात पर विश्वास कर के विजय ने उस से साथ चलने की जिद नहीं की और मोटरसाइकिल उठा कर अकेला ही अपने भाइयों के यहां  चला गया. मोना ने तबीयत खराब होने की बात कही थी, इसलिए विजय भाइयों के यहां से शाम 7 बजे घर लौट आया. इस के बाद पत्नी से बातचीत कर के रात 10 बजे सो गया.

दिनेश अपने मैडिकल स्टोर पर ही बैठा था. मोना का इशारा पा कर वह दुकान में रखा हथौड़ा ले कर उस के घर आ गया. उस के घर में घुसते ही मोना ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. दिनेश ने सो रहे विजय के सिर पर हथौड़े से वार किया. उस का सिर फट गया और वह बेहोश हो गया. इस के बाद मोना से चाकू ले कर उस ने उस का गला रेत दिया.

गला कटने से जो खून निकला, उस से मोना की साड़ीब्लाउज और दिनेश के कपड़ों पर खून लग गया. विजय तड़प कर मर गया तो लाश को बैड से नीचे उतार कर उस पर पानी डाल कर खून साफ किया गया. इस के बाद उन्होंने खून से सने कपड़े बाथरूम में भिगो दिए. दूसरे कपड़े पहन कर तौलिए से खून के छींटे साफ किए और चाकू, हथौड़ा तथा खून सना तौलिया छिपा दिया.

इस के बाद दिनेश अपने गैराज से अपनी स्कौर्पियो ले आया. लाश को स्कौर्पियो में रख कर पहले से ला कर रखा शराब का पौवा भी साथ रख दिया. लाश को गाड़ी में रखने के दौरान विजय के पैरों से चप्पलें निकल कर घर के बाहर गिर गई थीं. अंधेरा होने की वजह से मोना और दिनेश ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. दोनों इस बात से निश्चिंत थे कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है.

दोनों लाश ले कर उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंचे और इधरउधर देख कर उन्होंने लाश को सड़क के पास फेंक दिया. शराब का पौवा खोल कर उन्होंने विजय के मुंह पर शराब उड़ेल दी. खाली शीशी पास ही फेंक दी. विजय का मोबाइल भी वहीं रख दिया. इतना सब कर के दोनों लौट आए. स्कौर्पियो को अपनी गैराज में खड़ी कर दिनेश पुन: मोना के घर गया. इस बार वह विजय की मोटरसाइकिल ले कर उसी जगह गया, जहां लाश फेंक कर आया था.

उधर जब कमल को पता चला कि विजय घर नहीं पहुंचा है तो वह बारबार उसे फोन करने लगा. विजय के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. उदयपुर बाईपास रोड पर गश्त लगा रही पुलिस को सड़क किनारे फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी तो पुलिस वहां पहुंची. पुलिस ने वहां लाश पड़ी देखी तो हैरान रह गई. पास में पड़े फोन की घंटी तब तक बंद हो चुकी थी. इस के बाद उसी फोन से पुलिस ने कमल को फोन किया. दिनेश मोटरसाइकिल ले कर वहां पहुंचा तो पुलिस की गाड़ी खड़ी देख कर वह लाश से करीब 100 फुट दूर ही सड़क पर मोटरसाइकिल छोड़ कर भाग आया. तब तक खून वगैरह साफ कर के मोना घर में ताला लगा कर अपने मायके चली गई थी.

उस रात अमृतकौर अस्पताल में नर्सिंगकर्मियों की एक पार्टी चल रही थी. मोटरसाइकिल छोड़ कर दिनेश यारदोस्तों की उस पार्टी में शामिल हो गया. पुलिस के गश्ती दल की सूचना पर सदर थानाप्रभारी रविंद्र सिंह एवं सहायक पुलिस अधीक्षक देवाशीष देव घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मोना उर्फ मोनिका और उस के प्रेमी दिनेश साहू को गिरफ्तार कर के उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू बरामद कर लिया था. इस के अलावा स्कौर्पियो कार व अन्य सबूत भी जुटा लिए गए. पोस्टमार्टम के बाद विजय का विसरा जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया था. पुलिस ने मोना और उस के प्रेमी दिनेश को न्यायालय में पेश कर के अजमेर केंद्रीय कारागार भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी रविंद्र सिंह कर रहे थे.

इंतकाम की आग में कर दिया दोस्त का कत्ल

31 मार्च, 2017 को सुबह के करीब 7 बजे की बात है. उत्तरी दिल्ली के थाना तिमारपुर के ड्यूटी अफसर एएसआई सतीश कुमार को पुलिस कंट्रोल रूम से एक चौंकाने वाली खबर मिली. कंट्रोलरूम से बताया गया कि बाहरी रिंग रोड पर गोपालपुर रेडलाइट के पास जो बिजलीघर है, उस के नजदीक तकिए के एक कवर में किसी इंसान के 2 हाथ पड़े हैं.

मामला हत्या का लग रहा था. दरअसल, कुछ शातिर हत्यारे किसी का कत्ल करने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस के अंग काट कर अलगअलग जगहों पर फेंक देते हैं. इस से पुलिस भी भ्रमित हो जाती है. ड्यूटी अफसर ने इस काल से मिली सूचना एएसआई अशोक कुमार त्यागी के नाम मार्क कर दी.

एएसआई अशोक कुमार त्यागी कांस्टेबल अनिल कुमार को साथ ले कर सूचना में बताए गए पते की तरफ रवाना हो गए. वह जगह थाने से करीब 2 किलोमीटर दूर थी इसलिए वह 10 मिनट के अंदर वहां पहुंच गए. वहां पर तमाम लोग जमा थे. भीड़ को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहनचालक भी रुक रहे थे. एएसआई ने मुआयना किया तो वास्तव में एक मटमैले छींटदार तकिए के कवर में 2 हाथ रखे मिले.

उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर को दे दी. थानाप्रभारी कुछ देर पहले ही रात्रि गश्त से थाने लौटे थे. एएसआई अशोक कुमार से बात कर के वह भी एसआई हरेंद्र सिंह, एएसआई उमेश कुमार, हेडकांस्टेबल राजेश, कांस्टेबल कमलकांत और निखिल कुमार को ले कर कुछ ही देर में बिजलीघर के पास पहुंच गए.

मौके पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम को भी सूचना दे दी. इन दोनों टीमों के पहुंचने तक पुलिस उन अंगों से दूर रही. करीब आधे घंटे में फोरैंसिक और क्राइम इनवैस्टीगेशन की टीमें वहां पहुंच गईं. मौके के फोटो वगैरह खींचने के बाद पुलिस ने तकिए को उठा कर उलटा किया तो उस में से 2 बाहों के अलावा पीले रंग की एक पौलीथिन भी निकली. दोनों बाहों को कंधे से काटा गया था.

उस थैली को खोला गया तो उस में एक युवक का सिर था. सिर और हाथ देख कर वहां मौजूद सभी लोग चौंक गए. फोरैंसिक टीम और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. वहां पर मृतक के चेहरे को कोई भी नहीं पहचान पाया, क्योंकि हत्यारे ने चाकू से उस के चेहरे को बुरी तरह से गोद डाला था. उस के दाहिने हाथ पर ‘ऊं साईंराम’ गुदा हुआ था. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने उन तीनों अंगों को अपने कब्जे में ले लिया.

मृतक के अन्य अंग भी हत्यारे ने कहीं आसपास ही डाले होंगे, यह सोच कर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर बुराड़ी से कश्मीरी गेट की तरफ जाने वाली सड़क की साइड को बड़े ध्यान से देखते हुए चल रहे थे. करीब 100 मीटर चलने पर खून से सनी एक चादर पड़ी मिली. वहीं पर एक विंडचिटर, स्वेटर, लोअर, शर्ट और एक जींस भी पड़ी थी. कांस्टेबल अनिल को वहां छोड़ कर थानाप्रभारी करीब 200 मीटर आगे बढ़े थे कि सड़क किनारे बाईं टांग पड़ी मिली, जो जांघ से कटी हुई थी.

कांस्टेबल कमलकांत को हिफाजत के लिए वहां छोड़ कर थानाप्रभारी और आगे बढ़े. वहां से वह 200 मीटर आगे सड़क के बाईं ओर उन्हें दाहिनी टांग भी पड़ी मिल गई. मृतक का हाथपैर और सिर बरामद हो चुके थे. अब केवल धड़ बरामद करना था. उस की खोजबीन के लिए वह और आगे बढ़े. बाहरी रिंगरोड पर जहां तक उन के थाने की सीमा थी, वहां तक उन्होंने सड़क के दोनों तरफ काफी खोजबीन की. झाडि़यां भी देखीं पर कहीं भी धड़ नहीं मिला.

फोरैंसिक टीम और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम भी उन जगहों पर पहुंच गई, जहां दोनों टांगें मिली थीं. उन का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने पंचनामे की काररवाई पूरी की. इस के बाद सिर, दोनों हाथों और दोनों पैरों को सब्जीमंडी मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया गया. खबर मिलने पर डीसीपी जतिन नरवाल ने भी उन जगहों का निरीक्षण किया, जहांजहां पर वे कटे अंग मिले थे.

दोपहर करीब 12 बजे उत्तरी जिला पुलिस को वायरलैस द्वारा मैसेज मिला कि मजनूं टीला गुरुद्वारे के पास स्थित संजय गांधी अखाड़े के नजदीक फुटपाथ के किनारे प्लास्टिक का सफेद रंग का बोरा पड़ा हुआ है. उस बोरे से दुर्गंध आ रही है और उस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं. यह इलाका थाना सिविल लाइंस क्षेत्र में आता था, इसलिए वहां के थानाप्रभारी 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए.

चूंकि यह मैसेज पूरे जिले में प्रसारित हुआ था, जिसे तिमारपुर के थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने भी सुना था. मैसेज सुनते ही ओ.पी. ठाकुर के दिमाग में विचार आया कि कहीं उस बोरे में उस व्यक्ति का धड़ तो नहीं है, जिस के अन्य अंग उन के इलाके में मिले थे. लिहाजा वह भी संजय अखाड़े के पास पहुंच गए.

सिविल लाइंस थानाप्रभारी ने जब उस बोरे को खुलवाया तो एक चादर में लपेट कर रखी हुई सिरविहीन लाश दिखी. यह देख तुरंत क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम को खबर दे दी गई. कुछ देर में दोनों टीमें मौके पर पहुंच गईं. पुलिस ने चादर में लिपटी हुई लाश बाहर निकलवाई. वह किसी युवक का धड़ था. धड़ देख कर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर को लगा कि यह धड़ उसी युवक का हो सकता है, जिस के और अंग बरामद किए गए हैं.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद ओ.पी. ठाकुर ने इस की सूचना डीसीपी को दी. डीसीपी के निर्देश पर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने पंचनामे की काररवाई कर के उस धड़ को भी सब्जीमंडी मोर्चरी भिजवा दिया.

डाक्टरों ने जांच कर बता दिया कि धड़ और कटे हुए सारे अंग एक ही व्यक्ति के हैं. इस से यह बात जाहिर हो रही थी कि हत्यारे बेहद शातिर हैं. उन्होंने मृतक के अंगों को अलगअलग जगहों पर इस तरह डाला था, जिस से पुलिस उन तक न पहुंच सके. लाश के सारे टुकड़े बुराड़ी से कश्मीरी गेट बसअड्डे की तरफ जाने वाली सड़क पर ही डाले गए थे. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए या तो स्कूटर या स्कूटी का प्रयोग किया होगा या फिर लाश औटोरिक्शा अथवा कार वगैरह से ठिकाने लगाई होगी.

पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती मृतक की शिनाख्त करने की थी. वह कौन था, कहां का रहने वाला था, यह सब पता लगाना आसान नहीं था, क्योंकि मौके से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से मृतक की शिनाख्त में सहयोग मिल सके. बस दाहिने बाजू पर ‘ॐ साईंराम’ गुदा था.

मृतक का हुलिया बताते हुए थानाप्रभारी ने सब से पहले दिल्ली के समस्त थानों में मैसेज भेज कर यह जानने की कोशिश की कि इस हुलिए से मिलताजुलता कोई व्यक्ति गायब तो नहीं है. पर किसी भी थाने में इस हुलिए से मिलतेजुलते किसी व्यक्ति की गुमशुदगी की सूचना दर्ज नहीं थी.

31 मार्च को ही शाम के समय बुराड़ी थाने के संतनगर की गली नंबर 92 की रहने वाली शकुंतला नाम की महिला थाने पहुंची. शकुंतला ने ड्यूटी अफसर को बताया कि उस का 26 वर्षीय बेटा नितिन कल रात से घर नहीं आया है. उन्होंने बेटे का हुलिया भी बता दिया.

ड्यूटी अफसर को यह बात तो पता थी ही कि तिमारपुर पुलिस ने किसी व्यक्ति की 6 टुकड़ों में कटी लाश बरामद की है, इसलिए उन्होंने शकुंतला से कहा, ‘‘मैडम, हम तो यही चाहते हैं कि नितिन जहां भी हो सहीसलामत हो. पर आज तिमारपुर थाना पुलिस ने एक लाश बरामद की है, जिस की शिनाख्त अभी नहीं हो सकी है. आप एक बार तिमारपुर थाने जा कर संपर्क कर लें तो अच्छा रहेगा.’’

इतना सुन कर शकुंतला घबराते हुए बोलीं, ‘‘नहीं मेरे बेटे के साथ ऐसा नहीं हो सकता.’’

उधर ड्यूटी अफसर ने तिमारपुर के थानाप्रभारी को फोन कर के बताया कि संतनगर की एक महिला अपने 26 साल के बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने आई है. इन का बेटा कल से गायब है. यह खबर मिलने पर थानाप्रभारी ने एसआई हरेंद्र सिंह को बुराड़ी थाने भेज दिया. हरेंद्र सिंह ने बुराड़ी थाने में बैठी शकुंतला से उस के बेटे नितिन के गायब होने के बारे में बात की. फिर वह उसे अपने साथ तिमारपुर थाने ले गए.

सब से पहले उन्होंने महिला को बरामद की गई लाश के सारे टुकड़ों के फोटो दिखाए. उस के दाहिने बाजू पर ‘ॐ साईंराम’ लिखा था. यही नितिन के सीधे हाथ पर भी लिखा था. उस का चेहरा ज्यादा क्षतिग्रस्त था इसलिए वह उसे ठीक से नहीं पहचान सकी. इस पर एसआई हरेंद्र सिंह उसे सब्जीमंडी मोर्चरी ले गए.

दरअसल, हत्यारों ने मृतक के चेहरे को चाकू से गोद दिया था, जिस से चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया था. फिर भी उस बिगड़े चेहरे और हाथ पर गुदे टैटू से शकुंतला ने लाश की पहचान अपने बेटे नितिन के रूप में कर ली. इस के बाद तो वह वहीं पर दहाड़ें मारमार कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे सांत्वना दे कर जैसेतैसे चुप कराया. इस के बाद शकुंतला ने नितिन की हत्या की जानकारी अपने पति और अन्य लोगों को दी. खबर मिलते ही शकुंतला के पति लालता प्रसाद मोहल्ले के कई लोगों के साथ सब्जीमंडी मोर्चरी पहुंच गए. किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि नितिन की कोई इस तरह हत्या कर सकता है. बहरहाल पोस्टमार्टम कराने के बाद लाश के सभी टुकड़े लालता प्रसाद को सौंप दिए गए.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. डीसीपी जतिन नरवाल ने थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर की अगुवाई में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर संजीव वर्मा, एसआई अमित भारद्वाज, हरेंद्र सिंह, एएसआई सतेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल सुनील, राजेश, कांस्टेबल कुलदीप, निखिल, कमलकांत, विकास और सुनील कुमार आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक नितिन उर्फ सुमित उर्फ भोला के परिजनों से बात की. उस की मां शकुंतला ने बताया कि नितिन हैदरपुर में जौनसन एंड जौनसन कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्समैन था. वह कल यानी 30 मार्च को अपनी ड्यूटी खत्म कर के 6 बजे घर आ गया था. बाद में वह किसी से मिलने बाहर चला गया था.

जब वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उसे कई बार फोन किया पर उस ने नहीं उठाया. सुबह होने तक भी जब नितिन घर नहीं लौटा तो उसे फोन किया पर उस का फोन बंद मिला. उस के दोस्तों और अन्य लोगों को फोन कर के उस के बारे में मालूम किया गया, लेकिन कोई पता नहीं चला. थकहार कर वह थाने में गुमशुदगी लिखाने पहुंची.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने नितिन के दोस्तों से पूछताछ करनी शुरू कर दी.

8-10 दोस्तों से पूछताछ करने के बाद एक दोस्त ने पुलिस को बताया कि नितिन 30 मार्च की शाम सवा 6 बजे सरदा मैडिकल स्टोर के सामने देखा गया था. वह किसी की मोटरसाइकिल पर बैठा था. सरदा मैडिकल स्टोर संतनगर में मेनरोड पर ही है. पुलिस ने उस मैडिकल स्टोर पर पहुंच कर नितिन के बारे में पता किया तो पता चला कि वहां काम करने वाला कोई भी व्यक्ति नितिन को नहीं जानता था.

इस के बाद पुलिस ने वहां मार्केट में दुकानों के सामने लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. फुटेज देखते समय नितिन के कुछ दोस्तों को भी बैठा लिया गया था, जिस से वह नितिन को आसानी से पहचान सकें. एक फुटेज में नितिन मोटरसाइकिल पर जाता दिख गया. दोस्तों ने बता दिया कि वह हैप्पी नाम के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर जा रहा है. हैप्पी संतनगर की ही गली नंबर 18 में रहने वाले सुनील कपूर का बेटा था. पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि हैप्पी बदमाश और दबंग किस्म का है.

पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर वालों ने बताया कि वह कहीं रिश्तेदारी में गया है. जिस मोटरसाइकिल पर वह फुटेज में दिखा था, वह उस के घर के सामने खड़ी दिखी. इस के अलावा उस के घर के सामने एक वैगनआर कार भी खड़ी थी.

इस के बाद पुलिस ने हैप्पी के बारे में गोपनीय जांच शुरू कर दी. इस जांच में पुलिस को उस के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं. यह भी पता चला कि हैप्पी और उस के मामा का लड़का पवन नितिन से गहरी दुश्मनी रखते थे.

पुलिस टीम ने हैप्पी को तलाश करने के बजाय उस के खिलाफ सबूत जुटाने शुरू कर दिए. उस के फोन की काल डिटेल्स पाने के लिए संबंधित मोबाइल कंपनी को लिख दिया गया. पुलिस ने हैप्पी की उस रात की मूवमेंट देखने के लिए पुन: आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. फुटेज में रात 1 बजे के आसपास उसी वैगनआर कार की मूवमेंट दिखाई दी जो उस के घर के सामने खड़ी पाई गई थी. इस से पुलिस को शक हुआ कि नितिन की हत्या में हैप्पी का हाथ हो सकता है.

नितिन से हैप्पी और उस के मामा का लड़का पवन रंजिश रखते थे. हैप्पी तो घर से गायब था जबकि पवन संतनगर की गली नंबर 88 में रहता था. पुलिस टीम पवन के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गया. पुलिस को देख कर वह घबरा गया. पुलिस ने उस से हैप्पी के बारे में पूछा तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

पुलिस ने पवन के कमरे की गहनता से जांच की तो बैड के पास खून के छींटे मिले. उन छींटों के बारे में पूछा गया तो वह इधरउधर की बातें करने लगा. तभी थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया. एक थप्पड़ लगते ही पवन लाइन पर आ गया. अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘‘सर, नितिन को मैं ने नहीं बल्कि हैप्पी ने मारा था.’’

केस का खुलासा होते ही थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने पवन को हिरासत में ले लिया. इस के बाद हैप्पी के घर के बाहर खड़ी सीबीजेड मोटरसाइकिल और वैगनआर कार कब्जे में लेने के बाद हैप्पी के घर वालों पर उसे तलाश करने का दबाव बनाया. कार चैक की गई तो उस की सीट कवर पर भी खून के धब्बे पाए गए. पुलिस ने पवन से नितिन की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह दोस्ती में अविश्वास की भावना से उपजी हुई निकली.

26 वर्षीय नितिन उर्फ सुमित उर्फ भोले उत्तरी दिल्ली के थाना बुराड़ी के संतनगर में अपने परिवार के साथ रहता था. वह जौनसन एंड जौनसन कंपनी के हैदरपुर डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्समैन था. नितिन की संतनगर के ही रहने वाले सूरज और विक्की से अच्छी दोस्ती थी. तीनों दोस्त साथ खातेपीते थे.

एक बार नितिन को कुछ पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने विक्की से पैसे मांगे. दोस्त की जरूरत को समझते हुए विक्की ने उसे 10 हजार रुपए उधार दे दिए. कई बार पैसों की वजह से अपने नजदीकी संबंधों और यहां तक कि रिश्तेदारी तक में दरार पड़ जाती है. यही बात इन दोस्तों के बीच भी हुई. निर्धारित समय पर जब नितिन ने विक्की के पैसे नहीं लौटाए तो विक्की ने उस से तकाजा करना शुरू कर दिया. नितिन कोई न कोई बहाना बना कर उसे टालता रहा.

नितिन के बारबार किए जा रहे झूठे वादों से विक्की भी परेशान हो गया. 10 हजार की रकम कोई छोटीमोटी तो होती नहीं जो विक्की छोड़ देता. दोस्ती में भी कोई दरार न आए इसलिए वह उस से पैसे लौटाने को कहता रहा. बारबार पैसों का तकाजा करना नितिन को पसंद नहीं था. इस बात पर कभीकभी उन दोनों के बीच तकरार हो जाती थी.

15 अगस्त, 2015 की बात है. नितिन, विक्की और सूरज यमुना किनारे पार्टी करने गए थे. नितिन तो वापस आ गया लेकिन विक्की और सूरज नहीं आए. घर वालों ने पूछा तो नितिन ने बता दिया कि वे दोनों नदी में डूब गए. जवान बच्चों के डूबने की बात पर उन के घरों में हाहाकार मच गया. पुलिस को सूचना दी गई तो पुलिस ने गोताखोरों की मदद से सूरज और विक्की की लाशें बरामद करने की कोशिश की लेकिन उन की लाशों का पता तक नहीं चला. सूरज विक्की का ममेरा भाई था.

विक्की के भाई हैप्पी और सूरज के भाई पवन को नितिन पर शक था. उन का मानना था कि नितिन ने उधारी के पैसों से बचने के लिए दोनों को मार डाला. उन का कहना था कि नितिन ने विक्की और सूरज को शराब पिलाने के बाद गला घोंट कर हत्या कर दी होगी और उन की लाशें पत्थर के साथ बांध कर नदी में डाल दी होंगी.

दोनों ही आपराधिक प्रवृत्ति के थे. दोनों पर ही चोरी, लूट आदि के कई मुकदमे चल रहे थे. उन्होंने दिल्ली पुलिस की औपरेशन सेल से नितिन की शिकायत की थी. औपरेशन सेल ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. शिकायत के लगभग एक साल बाद भी जब इस मामले में कोई नतीजा नहीं निकला तो पवन और हैप्पी को निराशा हुई. उन्होंने सोचा कि नितिन ने पुलिस से सांठगांठ कर के काररवाई दबवा दी है. वे नितिन को ही अपने भाइयों का कातिल मान रहे थे. उस के किए की वे उसे सजा दिलाना चाहते थे.

जब उन्हें लगा कि उसे कानूनी सजा नहीं मिल पाएगी तो उन्होंने खुद ही नितिन को सजा देने की ठान ली और सोच लिया कि जिस तरह उन के भाइयों की लाश आज तक नहीं मिल सकी है, उसी तरह नितिन की हत्या कर के लाश इस तरह से ठिकाने लगाएंगे कि उस के घर वाले ढूंढते ही रहें.

नितिन से उन दोनों की बोलचाल तक बंद हो चुकी थी, लेकिन अपना मकसद पूरा करने के लिए उस से नजदीकी संबंध बनाने जरूरी थे. इसलिए पवन और हैप्पी ने अपनी योजना के तहत उस से दोस्ती की. चूंकि नितिन भी शराब का शौकीन था इसलिए उस ने सारे गिलेशिकवे भुला कर हैप्पी और पवन से दोस्ती कर ली.

लेकिन हैप्पी और पवन के मन में तो कोई दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी, जिस से नितिन अनभिज्ञ था. लेकिन इस से पहले नितिन पर अपना विश्वास जमाना जरूरी था ताकि काम आसानी से हो सके.

हैप्पी संतनगर की गली नंबर-18 में अपने परिवार के साथ रहता था जबकि उस का ममेरा भाई पवन गली नंबर-88 में अकेला रहता था. पवन दुकानों पर कौस्मेटिक सामान सप्लाई करता था. उस ने अपने कमरे के ताले की एक चाबी हैप्पी को दे रखी थी और एक खुद रखता था. कभीकभी वे नितिन के साथ इसी कमरे में दारू की पार्टी रखते थे.

हैप्पी नितिन को ठिकाने लगाने के तरहतरह के प्लान बनाता पर उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. 30 मार्च, 2017 की शाम को हैप्पी अपनी सीबीजेड मोटरसाइकिल से आ रहा था, तभी संतनगर बसअड्डे पर उसे नितिन दिखाई दिया. दरअसल, ड्यूटी के बाद वह घर हो कर बाहर बाजार में आ गया था. नितिन को देखते ही उस ने उस से बात की और पार्टी करने के बहाने उसे गली नंबर-88 में पवन के कमरे पर ले गया. जाते समय हैप्पी ने शराब की बोतल खरीद ली थी. पवन के कमरे की एक चाबी उस के पास पहले से थी. लिहाजा ताला खोल कर हैप्पी और नितिन शराब पीने बैठ गए. हैप्पी ने सोच लिया था कि वह आज नितिन का काम तमाम कर के रहेगा.

लिहाजा उस दिन उस ने नितिन को खूब शराब पिलाई और खुद कम पी. उस की शराब में उस ने नशीली दवा भी मिला दी थी. नितिन जब शराब के नशे में चूर हो गया तभी हैप्पी ने उसे धक्का दे दिया. नितिन फर्श पर गिर गया. हैप्पी ने आव देखा न ताव चाकू से उस का गला रेत दिया. खून को उस ने एक कपड़े से पोंछ दिया तथा लाश चादर में लपेट कर बैड में छिपा दी और ताला लगा कर घूमने निकल गया.

पवन उस समय तक भी कमरे पर नहीं लौटा था. हैप्पी ने कुछ देर बाद पवन को फोन किया, ‘‘नितिन का मर्डर कर के मैं ने तो अपना इंतकाम पूरा कर लिया, तू भी आ जा.’’

थोड़ी देर बाद पवन कमरे पर लौटा तो उसी समय हैप्पी भी वहां पहुंच गया. हैप्पी ने बैड से नितिन की लाश बाहर निकाली. इस के बाद उन्होंने सब से पहले धड़ से सिर अलग किया. फिर उस की दोनों बाहों को कंधों से काट कर अलग किया. इस के बाद दोनों टांगों को भी काट दिया. पवन के दिल में भी नितिन के प्रति खुंदक भरी हुई थी. गुस्से में उस ने भी उस के चेहरे को चाकू से इस तरह गोद डाला कि उसे कोई पहचान तक न सके.

इस के बाद दोनों भाइयों ने उस की लाश के टुकड़ों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. नितिन के कटे सिर को उन्होंने एक पौलीथिन में बांध लिया. फिर उसे तकिए के कवर में रख लिया. तकिए के उसी कवर में उन्होंने उस की दोनों भुजाओं को भी रख लिया. धड़ को उन्होंने एक चादर में लपेटा और प्लास्टिक की एक बोरी में डाल लिया.

हैप्पी अपनी वैगनआर कार नंबर एचआर-26एएस-3712 ले आया. रात एक बजे के करीब जब अधिकांश लोग गहरी नींद सो रहे थे, तभी हैप्पी और पवन ने नितिन की लाश के सभी टुकडे़ कार में रखे.

कार ले कर वे कश्मीरी गेट बसअड्डे की तरफ बाहरी रिंगरोड से चल दिए. गोपालपुर बिजलीघर के नजदीक कार रोक कर उन्होंने तकिए का कवर बाहर फेंक दिया. वहां से 100 मीटर चलने के बाद खून से सनी चादर सड़क के किनारे फेंक दी. वहीं पर कुछ और कपड़े फेंके. वहां से करीब 200 मीटर आगे सड़क के बाईं ओर को उन्होंने एक पैर फेंक दिया.

वहां से 200 मीटर और चल कर उन्होंने दूसरा पैर भी सड़क किनारे फेंक दिया. अब उन के पास केवल धड़ बचा था. धड़ वाली बोरी उन्होंने मजनूं का टीला गुरुद्वारे से लगे संजय अखाड़े के नजदीक फुटपाथ के किनारे रख दी.

लाश ठिकाने लगाने के बाद वे दोनों कमरे पर लौट आए. उन्होंने कमरे में जहांतहां लगा खून पोंछ दिया. कार की सीट पर भी खून के कुछ धब्बे लगे थे. वह भी साफ कर दिए. लेकिन किसी तरह बैड पर लगा खून का दाग रह गया, जिस से पुलिस उन तक पहुंच गई.

पवन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 2 अप्रैल, 2017 को उसे तीसहजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार के समक्ष पेश कर के 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर हत्या से संबंधित कुछ और सबूत जुटाए. फिर 4 अप्रैल को उसे फिर से न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. बाद में हैप्पी को पुलिस ने बिहार के नालंदा से गिरफ्तार कर लिया. अदालत में पेश कर के उसे भी जेल भेज दिया गया.

नशे की खातिर बेटे ने की बाप की हत्या

केवल सिंह खेत की मेड़ पर बैठे सुस्ता रहे थे, तभी उन के नजदीक आ कर एक लंबी सी कार रुकी. कार से 3 लोग उतरे. उन में एक उन का बेटा जगदीप भी था. उस के साथ आए लोगों ने केवल सिंह के नजदीक आ कर नमस्कार किया तो नमस्कार कर के केवल सिंह ने उन लोगों को सवालिया नजरों से देखा.

दोनों कुछ कहते, उस के पहले ही उन दोनों का परिचय कराते हुए जगदीप सिंह ने कहा, ‘‘बापूजी, यह सिद्धू साहब हैं. इन्हें हमारी जमीन बहुत पसंद है. यह हमें बाजार भाव से कई गुना ज्यादा दाम दे कर हमारी जमीन खरीदना चाहते हैं.’’

जगदीप सिंह की बातें सुन कर केवल सिंह की त्यौरियां चढ़ गईं. उन्होंने बेटे को एक भद्दी सी गाली देते हुए कहा, ‘‘तुझ से किस ने कहा कि मेरी यह जमीन बिक रही है. जब देखो तब तू किसी न किसी को परेशान करने के लिए पकड़ लाता है. जब एक बार कह दिया कि यह हमारे पुरखों की जमीन है, मैं इसे जीतेजी नहीं बेच सकता तो तू क्यों लोगों को परेशान करने के लिए लाता है. अगर आज के बाद फिर कभी किसी को ले कर आया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस के बाद बापबेटे में बहस होने लगी. बापबेटे को झगड़ा करते देख जमीन का सौदा करने आए लोग चुपचाप वहां से खिसक गए. बापबेटे में जमीन को ले कर हुआ यह झगड़ा कोई नया नहीं था.

पंजाब के जिला बरनाला के थाना भदौड़ के गांव मुजूक के रहने वाले पाल सिंह के 3 बेटे थे, केवल सिंह, सुखमिंदर सिंह और मंजीत सिंह. पाल सिंह ने तीनों बेटों की शादियां कर के जीतेजी जमीन को उन में बांट दिया था. तीनों भाई गांव में अलगअलग मकान बना कर अपनेअपने परिवारों के साथ रह रहे थे. तीनों भाई रहते भले अलग थे, लेकिन उन में और उन के परिवारों में काफी मेलजोल था.

केवल सिंह का एक ही बेटा था जगदीप सिंह. उसे बचपन से ही पहलवानी का शौक था. उन्होंने भी उसे कभी मना नहीं किया. जगदीप के 2 ही काम थे, पढ़ना और पहलवानी करना. युवा होतेहोते वह अच्छाखासा पहलवान बन गया. जिला स्तर पर कुश्तियां जीतने के बाद उस ने राज्य स्तर के पहलवानों को पछाड़ कर अपने नाम का डंका बजाया.

जगदीप शादी लायक हुआ तो केवल सिंह ने अपने एक दोस्त की सुंदर बेटी परमजीत कौर से उस की शादी कर दी. उसी बीच पंजाब में नशे की ऐसी लहर चली कि घरघर नशीली चीजों का उपयोग होने लगा. जगदीप भी इस का शिकार हो गया. फिर तो वह पहलवानी ही नहीं, घरपरिवार को भी भूल कर नशे का गुलाम बन गया.

जगदीप ऐसा नशा करता था, जिस में एक ही बार में 4-5 हजार रुपए खर्च हो जाते थे. जबकि उस के पास इतने रुपए नहीं होते थे. लेकिन नशा तो नशा है, उसे कैसे भी करना था. कुछ दिनों तक तो वह यारदोस्तों और रिश्तेदारों से झूठ बोल कर रुपए उधार ले कर अपना काम चलाता रहा. लेकिन इस तरह कब तक चलता. लोग अपनेअपने पैसे मांगने लगे तो वह मुसीबत में फंस गया.

केवल सिंह ने जब अपने बेटे में बदलाव देखा तो उन्हें चिंता हुई. हर समय खुश रह कर हंसनेहंसाने वाला जगदीप उदास मुंह लटकाए बैठा रहता था. उन्होंने उस की उदासी का कारण पूछते हुए कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, आजकल पहलवानी भी बंद है और हर समय चेहरे पर मुर्दानगी छाई रहती है?’’

पिता के इस सवाल पर नशे को ले कर परेशान जगदीप के दिमाग में तुरंत उपाय आ गया. पिता को बेवकूफ बनाते हुए उस ने रोआंसा हो कर कहा, ‘‘बापूजी, बात ही ऐसी है. उदास न होऊं तो क्या खुशियां मनाऊं.’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’

‘‘बापूजी, नैशनल लेवल पर कुश्ती लड़ने के लिए मैट चाहिए, वह मेरे पास नहीं है.’’

‘‘तो उस के लिए क्या करना होगा?’’

‘‘करना क्या होगा, खरीदना पड़ेगा, जिस के लिए 8-10 लाख रुपए की जरूरत पड़ेगी.’’

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ केवल सिंह ने बेटे की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘तू तैयारी शुरू कर, पैसे की व्यवस्था मैं करता हूं.’’

जगदीप का तीर सही निशाने पर लगा. भावुकता में केवल सिंह ने वादा तो कर लिया, पर इतने रुपयों की व्यवस्था करना उन के लिए आसान नहीं था. फिर भी उन्होंने कुछ घर से, कुछ रिश्तेदारों से तो कुछ जमीन गिरवी रख कर रुपयों का इंतजाम कर दिया.

10 लाख रुपए हाथ में आते ही जगदीप की तो मानो लौटरी लग गई. उस ने पिता से मिले रुपए नशे पर उड़ाने शुरू कर दिए. कुछ ही दिनों में सारे रुपए नशे पर फूंक कर उस ने तमाशा देख लिया. केवल सिंह जब भी मैट के लिए पूछते, वह कहता कि और्डर दे दिया है, जल्दी ही आ जाएगा.

यह बहाना कब तक चलता. केवल सिंह अनपढ़ जरूर थे, लेकिन नासमझ नहीं थे. जल्दी ही उन्हें असलियत का पता चल गया. बेटे को नशे में डूबा देख कर वह समझ गए कि जगदीप झूठ बोल रहा है. मैट के बहाने उस ने जो रुपए लिए हैं, नशे में उड़ा दिए हैं. फिर तो घर वालों को ही नहीं, लगभग सभी को पता चल गया कि जगदीप पहलवान नशे का आदी हो गया है. अब लोग उस से दूरियां बनाने लगे.

जगदीप के लिए अब रुपए का इंतजाम करना मुश्किल हो गया था. फिर तो नशा न मिलने की वजह से वह गंभीर रूप से बीमार हो गया. केवल सिंह ने लगभग 2 लाख रुपए खर्च कर के उस का इलाज कराया. ठीक होने के बाद एक बार फिर उस ने कारोबार के नाम पर पिता से 8-10 लाख रुपए झटक लिए. इन रुपयों को भी उस ने नशे पर उड़ा दिए.

इस के बाद वह पिता की जमीन बिकवाने के चक्कर में पड़ गया कि वह यहां रह कर नशा नहीं छोड़ सकता, इसलिए उसे विदेश भेजा जाए, ताकि वहां जा कर वह नशा छोड़ कर कोई कामधंधा कर सके. लेकिन 2 बार धोखा खा चुके केवल सिंह को अब जगदीप की बातों पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं रह गया था.

जगदीप ही नहीं, उस की पत्नी परमजीत कौर भी केवल सिंह पर दबाव डाल रही थी कि कुछ जमीन बेच कर उसे विदेश भिजवा दें. जबकि केवल सिंह अब उस की कोई भी बात मानने को बिलकुल तैयार नहीं थे. इसी बात को ले कर बापबेटे में आए दिन झगड़ा होता रहता था. इसी रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर केवल सिंह की पत्नी कुलवंत कौर शांति से रहने के लिए गांव में रह रहे अपने देवर सुखमिंदर सिंह के घर चली गई थीं.

3 फरवरी, 2017 को इसी बात को ले कर केवल सिंह और जगदीप के बीच जम कर झगड़ा हुआ. परमजीत कौर ने भी ससुर पर दबाव डालते हुए कहा, ‘‘बापूजी, यह जमीन क्या अपनी छाती पर रख कर ले जाओगे? बेटे की जिंदगी का सवाल है, बेच क्यों नहीं देते थोड़ी जमीन?’’

‘‘तू जमीन की बात कर रही है. मैं मर जाऊंगा, लेकिन इस झूठे धोखेबाज नशेड़ी को एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा.’’ केवल सिंह ने गुस्से में कहा और घर से निकल गए.

उस समय केवल सिंह घर से गए तो फिर लौट कर नहीं आए. इस ओर न जगदीप ने ध्यान दिया, न उस की पत्नी परमजीत कौर ने. क्योंकि ऐसा अकसर होता था. केवल सिंह जब भी नाराज होते थे, घर छोड़ कर अपने दोनों भाइयों में से किसी एक के यहां चले जाते थे. लेकिन इस बार वह न भाइयों के घर गए थे, न खेतों पर.

जब अगले दिन भी केवल सिंह का कुछ पता नहीं चला तो जगदीप उन की तलाश में निकला. इधरउधर तलाश करता हुआ वह शाम को चाचा सुखमिंदर सिंह के घर पहुंचा. उस ने उन से पिता के लापता होने की बात बता कर मां को घर भेजने को कहा. क्योंकि बापबेटों के झगड़ों से तंग आ कर उन दिनों कुलवंत कौर सुखमिंदर सिंह के घर पर ही थीं.

जगदीप की बात सुन कर सुखमिंदर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तू चिंता मत कर पुत्तर, सब ठीक हो जाएगा. तू घर चल, मैं तेरी मां को ले कर आता हूं.’’

सुखमिंदर सिंह उसी समय कुलवंत कौर को उन के घर छोड़ गए. इस के बाद वह जगदीप को साथ ले कर केवल सिंह की तलाश में निकल पड़े. काफी भागदौड़ के बाद भी जब केवल सिंह का कुछ पता नहीं चला तो सुखमिंदर सिंह ने 5 फरवरी को उन की गुमशुदगी थाना भदौड़ में दर्ज करा दी.

केवल सिंह की गिनती गांव के संपन्न किसानों में होती थी. वह सज्जन व्यक्ति थे, इसलिए गांव के सरपंच गोरा सिंह ने गांव वालों के साथ मिल कर केवल सिंह को जल्द से जल्द ढूंढने का पुलिस पर दबाव बनाया.

इस के बाद अधिकारियों के आदेश पर थाना भदौड़ के थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह ने सबइंसपेक्टर बलविंदर सिंह, एएसआई परमजीत सिंह की निगरानी में हैडकांस्टेबल सरबजीत सिंह, पवन कुमार, कांस्टेबल सुखराज सिंह आदि की एक टीम बना कर केवल सिंह की तलाश में लगा दी. पुलिस ने उन की तलाश तेजी से शुरू कर दी.

6 फरवरी, 2017 की सुबह सुखमिंदर सिंह को गांव वालों से पता चला कि जगदीप भूसा ले जाने के लिए ट्रौली खोज रहा है, क्योंकि उस की ट्रौली खराब है. तीनों भाइयों के मकान भले ही अलग थे, पर सभी की जमीन की फसलों का भूसा केवल सिंह के घर से लगे एक बड़े कमरे में रखा जाता था. गांव वालों की बात सुन कर सुखमिंदर को लगा कि जगदीप नशे के जुगाड़ में भूसा बेच रहा होगा. उन्होंने सोचा कि भूसा नहीं रहेगा तो जानवरों को क्या खिलाया जाएगा.

जगदीप भूसा बेचे, उस के पहले ही वह जानवरों के लिए कुछ दिनों का भूसा लेने के लिए जगदीप के घर जा पहुंचे. वह भूसा वाले हालनुमा कमरे से भूसा भरने लगे. अभी वह 3-4 गट्ठर भूसा ही निकाल पाए थे कि अचानक भूसे के ढेर से हाथ में एक इंसानी पैर आ गया.

उन्होंने बेटे और नौकर की मदद से वहां का भूसा हटा कर देखा तो उन्हें वहां एक लाश दबी नजर आई, जिस का एक पैर बाहर निकला था. लाश देख कर उन की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने तुरंत ऊंची आवाज में अपने भतीजे जगदीप को बुलाया. जगदीप आया तो उन्होंने पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

जगदीप भी वहां का दृश्य देख कर हैरान था. उस ने असमंजस की स्थिति में कहा, ‘‘चाचाजी, यह तो किसी की लाश है. आप रुकें, मैं फावड़ा ले कर आता हूं.’’

यह कह कर जगदीप भूसे वाले कमरे से बाहर चला गया. सुखमिंदर उस लाश को देख कर बारबार यही सोच रहे थे कि पता नहीं यह किस की लाश है, किस ने इसे यहां दबाया है? किसी अनहोनी की आशंका से उन का दिल घबरा रहा था. काफी देर हो गई, जगदीप फावड़ा ले कर नहीं लौटा तो वह बाहर आए. घर के दरवाजे खुले थे. न वहां पर जगदीप था न उस की पत्नी परमजीत कौर.

भाभी कुलवंत कौर एक कमरे में बैठी पाठ कर रही थीं. पलभर में ही सुखमिंदर सिंह को अपने भाई केवल सिंह की गुमशुदगी का रहस्य समझ में आ गया. समझदारी दिखाते हुए उन्होंने बिना एक पल गंवाए अपनी मोटरसाइकिल उठाई और सीधे थाना भदौड़ के थानाप्रभारी के पास पहुंचे. उन्हें पूरी बात बताई तो मामले को गंभीरता से लेते हुए उन्होंने केवल इतना पूछा, ‘‘जगदीप को गए कितना समय हुआ होगा?’’

‘‘लगभग आधा घंटा.’’

सुरेंद्र सिंह ने एएसआई परमजीत सिंह और 2 हवलदारों को लाश की हिफाजत के लिए सुखमिंदर सिंह के साथ भेज कर खुद एक टीम ले कर भदौड़ बसअड्डे की ओर निकल गए.

उन का अनुमान ठीक निकला. जगदीप और परमजीत कौर भागने के लिए एक बस में सवार हो चुके थे. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बस से उतारा और थाने ले आए. इस के बाद वह गांव मुजूक केवल सिंह के घर पहुंचे और अपने सामने उस जगह की खुदाई करवाई.

बरामद लाश देख कर सभी हैरान थे. लाश केवल सिंह की थी, जिसे बड़ी बेरहमी से मार कर भूसे वाले कमरे में दफना दिया गया था. सुरेंद्र सिंह ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया और थाने लौट कर दर्ज गुमशुदगी के स्थान पर हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इसी के साथ ही जगदीप और परमजीत से पूछताछ शुरू कर दी.

जगदीप और परमजीत कौर ने केवल सिंह की हत्या का अपराध तो स्वीकार कर लिया, पर उन्होंने हत्या क्यों की, इस के पीछे बड़ी विचित्र कहानी बताई.

दरअसल, नशा एक ऐसी घातक बीमारी और कलंक है, जिस के सेवन से आदमी की बुद्धि ही नहीं, जमीर भी भ्रष्ट हो जाता है. आदमी इतना खुदगर्ज हो जाता है कि अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए या बचाव के लिए कुछ भी कर सकता है.

जगदीप और परमजीत कौर ने केवल सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने यह हत्या इसलिए की थी, क्योंकि केवल सिंह अपनी बहू परमजीत कौर पर बुरी नजर रखते थे. उस ने अकेले में कई बार परमजीत से छेड़छाड़ की थी.

जगदीप ने आगे बताया कि घटना वाले दिन यानी 3 फरवरी को वह घर पर नहीं था. शाम को जब वह घर आया तो उस ने देखा कि उस के पिता केवल सिंह उस की पत्नी को दबोचे बैड पर लेटे हैं और परमजीत बचाव के लिए चिल्ला रही है.

यह देख कर उसे गुस्सा आ गया और उस ने गंडासे से पिता की हत्या कर दी. लेकिन उस की इस कहानी पर किसी को विश्वास नहीं हुआ.

जब पतिपत्नी पर सख्ती की गई तो उन्होंने सच्चाई उगल दी. जगदीप ने इस बार बताया कि नशे की पूर्ति के लिए वह जमीन बेचना चाहता था. जबकि पिता इस के लिए तैयार नहीं थे. इसीलिए उस ने पिता की हत्या कर दी. हत्या कर लाश उस ने भूसे वाले कमरे में इसलिए दबा दी थी कि मौका मिलने पर वह उसे भूसे के बीच छिपा कर कहीं दूर ले जा कर ठिकाने लगा देगा. लेकिन वह अपने इरादे में कामयाब होता, उस के पहले ही भूसे के चक्कर में उस की पोल खुल गई.

7 फरवरी, 2017 को पुलिस ने पिता के हत्यारे जगदीप सिंह और उस की पत्नी को सक्षम अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में उन की निशानदेही पर हत्या करने वाला हथियार गंडासा व कस्सी बरामद कर ली. रिमांड अवधि समाप्त होने पर दोनों को पुन: अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

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