
कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’
फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया.
कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे.
रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी.
सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.
दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’
कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया.
कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे
22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.
कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’
‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’
कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है.
उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है.
अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.
राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से
लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.
‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा.
कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.
दोपहर उतरतेउतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा.
शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं.
हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई.
मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी.
मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया. रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी.
राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?
राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’
‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तो फिर?’’
‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’
उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.
‘‘क्या बक रही है?’’
‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’
राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.
फिर अपने स्वर को धीमा करते हुए वह बोलीं, ‘‘आनंदजी आए थे और 90 हजार रुपए दे गए हैं. मैं ने उन्हें तेरी अलमारी में रख दिया है.’’
बेटे से बात करते समय सावित्री को लगा कि ड्राइंगरूम का फोन किसी ने उठा रखा है. उन्होंने खिड़की के परदे से झांक कर देखा तो उन का शक सही निकला. फोन आशा ने उठा रखा था और इशारे से वह अवतारी को कुछ कह रही थी. सावित्री देवी तब और स्तब्ध रह गईं. जब उन्होंने अवतारी के पास मोबाइल फोन देखा, जिस से वह किसी को कुछ कह रही थी.
एसी से ठंडे हुए कमरे में भी सावित्री को पसीने आ गए. उन्होंने जल्दीजल्दी बेटे को दोबारा फोन मिलाया. उधर से हैलो की आवाज सुनते ही वह कुछ बोलतीं, इस से पहले ही अपनी कनपटी पर लगी पिस्तौल का एहसास उन की रूह कंपा गया. आशा ने लपक कर फोन काट दिया था.
दुर्गा मां का अवतार लगने वाली अवतारी अब सावित्री को साक्षात यमराज की दूत दिखाई दे रही थी.
‘‘बुढि़या, ज्यादा होशियारी दिखाई तो पिस्तौल की सारी गोलियां तेरे सिर में उतार दूंगी. चल, अपने बेटे को वापस फोन लगा कर बोल कि तू किसी और को फोन कर रही थी, गलती से उस का नंबर लग गया वरना उस का फोन आ जाएगा.’’
सावित्री कुछ कहतीं इस से पहले ही बेटे का फोन आ गया.
‘‘क्या बात है, अम्मां? फोन कैसे किया था?’’
‘‘काट क्यों दिया…’’ सावित्री देवी मिमियाईं, ‘‘मैं तुम्हारी नीरजा बूआ से बात करना चाह रही थी लेकिन गलती से तेरा नंबर मिल गया.’’
‘‘मुझे तो चिंता हो गई थी. सब ठीक तो है न?’’
‘‘हांहां, सब ठीक है,’’ कहते हुए उन्होंने फोन रख दिया.
अवतारी गुर्राई, ‘‘बुढि़या, झटपट सभी अलमारियों की चाबी पकड़ा दे. जेवर व कैश कहांकहां रखा है बता दे. मैं ने कई खून किए हैं. तुझे भी तेरी दुर्गा मां के पास पहुंचाते हुए मुझे देर नहीं लगेगी.’’
उसी समय उन के 2 साथी युवक भी आ धमके. सावित्री को उन लड़कों की शक्ल कुछ जानीपहचानी लगी.
तभी एक युवक गुर्राकर बोला, ‘‘ए… घूरघूर कर क्या देख रही है बुढि़या? तेरे चक्कर में मैं ने भी तेरी देवी मां के मंदिर में खूब चक्कर लगाए. तू जो अपनी नौकरानी के साथ घंटों मंदिर में बैठ कर बतियाती रहती थी तब तेरे बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हम दोनों भी वहीं तेरे आसपास मंडराते रहते थे. तेरी बड़ी गाड़ी देख कर ही हम समझ गए थे कि तू हमारे काम की मोटी आसामी है और हमारे इस विश्वास को तू ने मंदिर के बाहर हट्टेकट्टे भिखारियों को भीख में हर रोज सैकड़ों रुपए दान दे कर और भी पुख्ता कर दिया.’’
सावित्री के बताने पर आननफानन में उन्होंने घर में रखे सारे जेवरात व नकदी समेट लिए. तभी अवतारी जोर से खिलखिलाई, ‘‘बुढि़या, मैं आज तक किसी मंदिर में नहीं गई फिर भी तेरी देवी मां ने तेरी जगह मुझ पर कृपा कर दी. तेरी नौकरानी रमिया के बारे में पता चला कि वह तेरे यहां 20 साल से काम कर रही है. बड़ी नमकहलाल औरत है. उस को भरोसे में ले कर तो तुझे लूट नहीं सकते थे. इसीलिए तुम्हारी धार्मिक अंधता को भुनाने की सोची.
‘‘सच कहती हूं तुम्हारे जैसी धर्म में डूबी भारतीय नारियों की वजह से ही हम जैसे लोगों का धंधा जिंदा है. रमिया के बेटेबहू को भी पिस्तौल की नोक पर मेरे ही साथियों ने कई बार धमकाया था और रमिया समझी कि मां की कृपा से उस के बेटेबहू सुधर गए. कल रात को रास्ते में मैं ने रमिया को जमालघोटा डला प्रसाद दिया था ताकि वह आज काम पर न आ सके.’’
‘‘फालतू समय खराब मत करो,’’ एक युवक चिल्लाया, ‘‘अब इस बुढि़या का काम तमाम कर दो.’’
घबराहट से सावित्री के सीने में जोर का दर्द उठा और वह अपनी छाती पकड़ कर जमीन पर लुढ़क गईं.
पसीने से तरबतर सावित्री को देख अवतारी चहकी, ‘‘इसे मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी. लगता है इसे दिल का दौरा पड़ा है. तुरंत भाग चलो.’’
उधर फैक्टरी में अपनी आवश्यक मीटिंग खत्म होने के बाद मनोज ने दोबारा घर फोन किया.
फोन की घंटी लगातार बज रही थी. जवाब न मिलने पर चिंतित मनोज ने पड़ोसी शर्माजी के घर फोन कर के अम्मां के बारे में पता करने को कहा.
पड़ोसिन अपनी बेटी के साथ जब उन के घर पहुंची तो घर के दरवाजे खुले थे और अम्मांजी जमीन पर बेसुध गिरी पड़ी थीं. यह देख कर वह घबरा गई. डरतेडरते वह अम्मांजी के पास पहुंची और देखा तो उन की सांस धीमेधीमे चल रही थी. उन्होंने तुरंत मनोज को फोन किया.
सावित्री को जबरदस्त हृदयाघात हुआ था. उन्हें आई.सी.यू. में भरती कराया गया. गैराज में खड़ी दूसरी गाड़ी गायब थी. 2 दिन बाद उन को होश आया. बेटे को देखते ही उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी. बेटे ने उन के सिर पर तसल्ली भरा हाथ रखा. सावित्री को पेसमेकर लगाया गया था. धीरेधीरे उन की हालत में सुधार हो रहा था.
रमिया व उन के बयान से पता चला कि लुटेरों के गिरोह ने योजना बना कर कई दिन तक सारी बातें मालूम कर के ही उन की धार्मिकता को भुनाते हुए अपनी लूट की योजना को अंजाम दिया और लाखों रुपए के जेवरात व नकदी लूट ले गए.
उन की कार शहर के एक चौराहे पर लावारिस खड़ी मिली थी लेकिन लुटेरों का कहीं पता न चला.
दहशत व ग्लानि से भरी सावित्री को आज अपने पति की रहरह कर याद आ रही थी जो हरदम उन्हें तथाकथित साधुओं और उन के चमत्कारों से सावधान रहने को कहते थे. वह सोच रही थीं, ‘सच ही तो कहते थे मनोज के पिताजी कि अंधभक्ति का यह चक्कर किसी दिन उन की जान को सांसत में डाल देगा. अगर पड़ोसिन समय पर आ कर उन की जान न बचाती तो…और अगर वे लुटेरे उन्हें गोली मार देते तो?’
दहशत से उन के सारे शरीर में झुरझुरी आ गई. आगे से वह न तो किसी मंदिर में जाएंगी और न ही किसी देवी मां का पूजापाठ करेंगी.
अभिषेक अभी भी गुस्से में था और अंदर ही अंदर कुढ़ रहा था, ‘‘क्या समझती है वह अपनेआप को? हर वक्त चिकचिक करती रहती है. एक तो दफ्तर में चैन नहीं, घर आओ तो यहां भी वही परेशानी… इसीलिए मां कहती थीं कि तनु से प्यार मत करो. अगर पहले पता होता कि वह इतनी बददिमाग है, तो मैं कभी भी उस से शादी न करता.’’
एक झटके से अभिषेक ने बैग बंद किया और मोटरसाइकिल निकालने लगा, तभी उस के दिल ने कहा कि इसे कहां ले जा रहा है? यह भी तो तनु की ही है? यही मोटरसाइकिल तो उस ने ली थी दहेज में. लेकिन इस वक्त तनु इस के लिए भी उसे ताना मारेगी.
अभिषेक ने मोटरसाइकिल फिर वहीं खड़ी कर दी और बाहर चला गया. आटोरिकशा सामने ही दिख गया. उस ने आटोरिकशा वाले को आवाज दी.
‘‘कहां चलना है?’’ आटोरिकशा वाले के पूछने पर उस का दिल हुआ कि बोल दे, ‘कहीं भी चलो’, मगर तनु को जलाने की गरज से बोला, ‘‘रेलवे स्टेशन.’’
लेदे कर अभिषेक का बस अपने गांव ही जाना होता था, जहां सिर्फ रेलगाड़ी जाती थी. बाइक से वह सिर्फ दफ्तर के काम से जाता था. हां, 1-2 बार तनु को साथ ले कर वह लखनऊ और बनारस जरूर गया था.
कभीकभी तनु खीज कर कहती, ‘‘ट्रेन या जहाज पर चढ़ने के लिए दिल तरस जाता है. सभी रिश्तेदार आसपास ही रहते हैं. सभी ह्वाट्सएप पर रहते हैं, तो हालचाल पूछने भी उन के पास नहीं जा सकते.’’
अभिषेक ने पढ़लिख कर एक दवा की कंपनी में नौकरी कर ली थी, पर उस का छोटा भाई अभिजीत कम पढ़ालिखा होने की वजह से खेती करता था.
पिताजी हमेशा कहते थे, ‘‘ज्यादा पढ़ कर क्या करेगा, सरकारी नौकरी तो मिलने से रही.’’
मगर अभिषेक ने जिद पकड़ ली थी, ‘‘नहीं बाबा, मैं खेती नहीं करूंगा. सरकारी नौकरी नहीं मिली तो किसी प्राइवेट कंपनी में ही नौकरी कर लूंगा. अगर अभिजीत चाहे तो आप उसे ही सौंप दीजिए यह खेतीबारी. फिर खेत भी तो इतने ज्यादा नहीं, जो 2-2 भाई… वैसे अभिजीत अब और पढ़ना भी तो नहीं चाहता.’’
दरअसल, अभिषेक शहर जाना चाहता था, क्योंकि वह तनु से प्यार करता था और जानता था कि तनु से शादी कर के गांव में रहना पड़ेगा.
तनु गांव में 2 महल्ले दूर रहती थी और उस के पिता के पास 20 एकड़ जमीन थी, ट्रैक्टर था. वे थोड़ीबहुत राजनीति में पैठ भी रखते थे. एक ही जाति के होने पर कम पैसे वाले होने पर भी वे अभिषेक के लिए तैयार हो गए, क्योंकि उन की पिछड़ी जाति में इतने पढ़ेलिखे नहीं थे. तनु साथ ही पढ़ती थी.
पिताजी चुप लगा गए थे. दूसरी तरफ मां को जब अभिषेक और तनु के फलतेफूलते प्यार की भनक लगी, तो उन्होंने उसे समझाते हुए कहा था, ‘‘बेटा, तनु में क्या रखा है, जो तू उस सांवली के पीछे पड़ा है? मेरी बात मान और तनु का पीछा छोड़ दे. मैं गोरी लड़की से तेरा ब्याह कर दूंगी.
मुखिया ने कई बार कहा है अपनी छोकरी के लिए. कह रहा था कि उसे अपनी बेटी के नखरे उठाने वाला कोई तेरे जैसा ही पढ़ालिखा लड़का चाहिए, जो बेटी की सेवा करे.’’
उस दिन मांबेटे में अच्छीखासी ठन गई थी. तब अभिषेक ने मां को साफसाफ कह दिया था, ‘‘मैं शादी करूंगा
तो बस तनु से, नहीं तो किसी से भी नहीं.’’
रेलवे स्टेशन पहुंच कर अभिषेक रिकशा वाले को पैसे दे कर अंदर चला गया. रास्तेभर वह यही सोचता रहा था कि कहां जाए, मगर पहुंचने पर भी कोई फैसला नहीं ले
पाया था.
‘‘दिल्ली के लिए एक टिकट,’’ अभिषेक टिकट वाली खिड़की के पास जा कर बोला, तभी उस की नजर समय सूची पर अटक गई. दिल्ली जाने वाली गाड़ी का वक्त रात 10.40 था और घड़ी में अभी 4.20 बजे रहे थे. उस ने अपना हाथ बाहर खींचा और आगे बढ़ गया.
‘‘अभिषेक…’’ प्लेटफार्म पर टहलते हुए अपना नाम सुन कर वह मुड़ा.
‘‘मुझे पहचाना? मैं नीलू… नीलिमा, 8-10 साल पहले स्कूल में तुम्हारे साथ पढ़ती थी. मेरी शादी में भी तुम शामिल हुए थे.’’
अभिषेक याद करता हुआ बोला, ‘‘अरे पहचानूंगा क्यों नहीं, कैसी हो? कहां हो इन दिनों?’’
नीलिमा ने हंसते हुए कहा, ‘‘इसी शहर में हूं. एक रैस्टोरैंट में होस्टैस
हूं. तुम जानते हो न आजकल अपने
शहर में भी होस्टैस रखी जाने लगी हैं. वैसे, मेरी मौसी का घर है यहां, उन्हीं
के साथ रहती हूं. और तुम…?’’
‘‘मैं भी यहीं रह रहा हूं. इत्तिफाक से इसी शहर में. दवा की एक कंपनी में नौकरी करता हूं. लेकिन तुम्हारी शादी तो औरंगाबाद में हुई थी न, यहां काम करने आने की बात समझ में नहीं आई?’’ अभिषेक बोला.
नीलू गमगीन होते हुए बोली, ‘‘हां, मेरी शादी औरंगाबाद में ही हुई थी.
2 साल हुए पति से अनबन हो गई. तलाक हो गया है. एक बच्ची भी है, जिसे मैं अपने साथ ले आई. गलती हम दोनों की ही थी या शायद ज्यादा मेरी ही.
‘‘2 साल तो अदालतों में निकल गए. अब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं. कहने को यह जौब बहुत अच्छी नहीं समझी जाती, पर मुझ जैसी 10वीं पास को और कौन सा काम मिलता.
‘‘गनीमत है कि मैं ने बदन को ठीकठाक रखा. फुरसत के वक्त मैं निकिता के बारे में सोचती, तो खयाल आया कि अभी वह छोटी है. कुछ बड़ी होगी तो अपने पिता को ढूंढ़ेगी, तब क्या होगा? क्या जवाब दूंगी उसे?’’
‘‘2 साल का वक्त जो मैं ने खो दिया है, क्या उसे समेटा जा सकता है? कितना गलत हुआ यह सब? एक पल भी मैं शांति से नहीं रह पाई.
‘‘तुम्हारा क्या हाल है. तुम ने शादीवादी की या नहीं? तुम्हारी महबूबा हुआ करती थी. बहुत ही खूबसूरत सी, सांवली सी और स्मार्ट सी. क्या हुआ उस मामले का? हमें तो बहुत जलन होती थी तुम्हें उस के साथ देख कर कि तुम्हारे जैसे के हाथ कैसे लग गई. कहीं खटाई में…?’’
‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. मैं ने अब तक जो चाहा वह पाया. मगर
कहीं कोई गलती हो गई थी. आज पछता रहा हूं.’’
‘‘क्या हुआ?’’ नीलिमा हैरानी से बोली.
‘‘क्या बताऊं नीलू. तब तनु को पा कर मैं जितना खुश था, आज उतना ही दुखी हूं. वह हर वक्त मुझ से लड़ती रहती है. पैसे की हर समय कमी रहती है. तनु को खर्च करने की आदत है और मेरी आमदनी इतनी नहीं है. अब सोचता हूं कि कहीं चला जाऊं.’’
नीलिमा अफसोस करते हुए बोली, ‘‘यह क्या किया तुम ने अभिषेक? जरा सोचो, तुम ने तो प्यार किया है. मेरी शादी तो घर वालों की मरजी से हुई थी. फिर भी गलतियां हुई हैं. गलती किस से नहीं होती? मुझ से, तुम से, सभी से तो. अच्छाईबुराई किस में नहीं होती?
‘‘वे दिन क्या तुम भूल गए, जब तनु की बातें करते तुम्हारी जबान नहीं थकती थी? तुम पता तो करो, वह ऐसा क्यों करती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम उसे बाहर काम करने से रोक रहे हो?’’
अभिषेक बोला, ‘‘हां, बाहर काम करने दूंगा, तो गांव वाले मुझे खा नहीं जाएंगे.’’
‘‘यह तो गलती है तुम्हारी. तुम चाहते हो कि पत्नी हर समय तुम्हारी गुलाम बनी रहे. ओ, उसे आजाद फिरने दो. उस के हाथ में पैसा होगा, तो वह कुछ नहीं बोलेगी.
‘‘मुझे देखो, मैं पहले स्मार्ट हूं. अपने पैरों पर खड़ी हूं, नौकरी रैस्टोरैंट की है तो क्या हुआ, पैसा रंग या नशा नहीं देखता, पैसा तो कुछ भी कहो अपना खुद का नशा होता है. मैं तुम से ज्यादा कमाती हूंगी, जबकि पढ़ाई तुम से कम है.’’
नीलिमा से अभिषेक बहुत सारी बातें करता रहा. वह अपना फोन नंबर दे कर चली गई. अभिषेक बहुत देर तक वहीं बैठा सोचता रहा. शादी से पहले की तसवीरें उस की नजरों के सामने से गुजरने लगीं. वह सोचने लगा कि उस के बेटे का क्या होगा? वह तनु से नहीं, अपनेआप से भाग रहा है.
2-3 दिन बाद वह फिर नीलिमा से मिला. अब तनु भी साथ थी. तनु को देखते ही नीलिमा खिल उठी, ‘‘अरे, तुम्हारे बीवी तो सांवली होते हुए भी बड़ी सैक्सी है. अगर जरा सी हिम्मत दिखाए, तो महीने के 30-40 हजार रुपए तो कमा ही लेगी.’’
तनु की आंखें चौड़ी हो गईं,
‘‘30-40 हजार… यह कैसे पौसिबल है.’’
नीलिमा बोली, ‘‘है पौसिबल, बस तुम यह अपना माताजी वाला रंगढंग छोड़ दो, तो पैसा ही पैसा आएगा. अभिषेक से सलाह कर लो. उस ने बताया होगा कि मैं रैस्टोरैंट में होस्टैस हूं.
‘‘यह बता दूं कि काम के घंटे शाम 6 बजे से रात 12 बजे तक हैं. तुम्हारे बेटे को भी दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि तब तक अभिषेक घर आ चुका होगा. अच्छी तरह सोचसमझ लो.’’
नीलिमा ने फिर बहुत सी बातें डिटेल में समझाईं. घर आ कर तनु ने सोचा, पर बैठ कर रोने से ये अच्छा है. उस ने नीलिमा के फोन पर कहा कि वह तैयार है. नीलिमा ने उसे एक ब्यूटी पार्लर में बुलाया.
4 घंटे तक उस का मेकअप किया गया और जब वह निकली तो ब्लैक ब्यूटी थी. इतनी सुंदर तो वह शादी के समय भी नहीं लगी थी.
नीलिमा बोली, ‘‘आज तो मेरे बौस का हार्ट फेल होगा ही. चलो मिलवाती हूं. वह शहर से बाहर बने रिजोर्ट में रैस्टोरैंट में ले गई. वहां उस जैसी 2-3 और लड़कियां थीं. बड़ा सा रैस्टोरैंट था, जिस में 30-40 टेबल लगी थीं.
नीलिमा मालिक से बोली, ‘‘सर, यह तनु है, मेरे गांव की. इसे पैसे की बहुत जरूरत है. आप इसे जूनियर होस्टैस के लिए रख लें, तो मुझ पर बहुत एहसान होगा.’’
मालिक ने बहुत नानुकुर की कि रैस्टोरैंट का काम धीमा हो गया है. कम ग्राहक आते है. अभी गुंजाइश नहीं है.
नीलिमा ने बहुत जिद की, तो तनु ने भी कहा, ‘‘मैं हर तरह का काम सीख लूंगी. आप को चिंता नहीं करनी पड़ेगी.’’
यह सुन कर मालिक नरम हो गया. कुछ देर सोचने के बाद मालिक ने कहा, ‘‘तनु, मैं सोचता हूं, तुम बाहर बैठो.’’
उस के बाहर जाते ही उस ने नीलिमा को अपनी बांहों में लेते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, कहां से पकड़ लाई इस ब्लैक ब्यूटी को. हमारा काम आसान कर देगी. यह लो अपना कमीशन 10,000 रुपए. तुम्हारा स्टेशन पर जाना बड़ा काम आता है.’’
तनु और अभिषेक नीलिमा को बारबार शुक्रिया कर रहे थे. उन्हें नहीं मालूम था कि एक और चिडि़या घर के झगड़ों के चलते उन जाल में फंस गई थी.
रीता पल्लवी
29 साला छाया पिछले कुछ दिनों से अपने पति के बरताव में आए बदलाव को देख कर बहुत फिक्रमंद थी. गौरव देर रात घर लौटने लगा था और कभीकभी तो सुबह हो जाती थी.
पूछने पर गौरव बहाना बना कर टाल जाता था कि दोस्तों के संग गप मार रहा था. कमानेखाने की कोई खास चिंता उसे थी नहीं, क्योंकि घर में 8 भैंसें बंधी थीं, जिन के दूध से अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. 5 बीघा पुश्तैनी जमीन से भी ठीकठाक पैसा आ जाता था.
पिछले साल ससुर की मौत के बाद से गौरव घर से बाहर ज्यादा रहने लगा था, लेकिन छाया की असल चिंता की वजह यह थी कि गौरव कुछ दिनों से सैक्स में नईनई पोजीशन ट्राई करने लगा था, जबकि इस से पहले सैक्स का उस का अपना रूटीन था, जिस में प्रयोग न के बराबर होते थे. छाया को संतुष्टि मिली या नहीं, इस से उसे कोई सरोकार नहीं रहता था. अपना काम होते ही वह सो जाता था, जिस से छाया को कोफ्त होती थी.
पर, अब गौरव को सैक्स का इतना ज्यादा सरोकार रहने लगा था कि वह बारबार छाया से पूछता था कि कैसा लग रहा है? मजा आया या नहीं? ऐसा करने में ज्यादा मजा आता है या वैसा करने में. तू हमबिस्तरी के दौरान चुप क्यों रहती है? कितनी देर और टिकेगी या अभी क्या पोजीशन है, बताती क्यों नहीं? ऐसी बातें उस ने शादी के 5 साल बाद कभी नहीं की थीं.
हद तो उस दिन हो गई, जब गौरव ने थोड़ी देर के फोरप्ले के बाद छाया से कहा, ‘‘चल, आज ओरल सैक्स करते हैं.’’
इस के पहले भी गौरव कई दफा अपने मोबाइल फोन पर ओरल सैक्स वाली पोर्न फिल्में छाया को दिखा चुका था, जिन में थोड़ी देर तो उसे मजा आता था, लेकिन फिर उबकाई सी आने लगती थी कि भला यह भी कोई तरीका है मजा लेने का.
हमेशा की तरह छाया ने आज भी ओरल सैक्स करने से इनकार कर दिया, तो गौरव को थोड़ा गुस्सा आ गया और वह बोला, ‘‘तू कौन से जमाने की औरत है… यह देख…’’ कहते हुए उस ने एक और ब्लू फिल्म उसे दिखाई, जिस में दूसरे तरीकों से वही सबकुछ था, जो पहले ही कई फिल्मों में वह देख चुकी थी या गौरव उसे जबरन दिखा चुका था.
कोई असर न होता न देख गौरव बोला, ‘‘प्लीज कर के तो देख. बहुत मजा आता है इस में.’’
इस पर छाया हमेशा की तरह खामोश रही, तो थोड़े ताव में आ कर गौरव बोला, ‘‘तू क्या जाने अदरक का स्वाद… तू न दे, लेकिन आज मैं तुझे वह मजा देता हूं, जिस के लिए तू मुझे शादी के बाद से ही तरसा रही है…’’
यह कहते हुए गौरव ने अपना सिर छाया की जांघों में घुसा दिया. यह छाया के लिए नया अनुभव था, जिस में उसे सचमुच मजा आ रहा था.
कुछ देर बाद गौरव बोला, ‘‘चल, अब तू भी कर…’’
पर छाया की हिम्मत नहीं पड़ी, क्योंकि उस के हिसाब से यह गंदा काम था, लिहाजा उस ने मना कर दिया.
इस बार गौरव आपा खो बैठा और बोला, ‘‘तो ठीक है, मैं चला…’’
इस के बाद उसी गुस्से में गौरव कपड़े पहन कर जो गया तो दूसरे दिन दोपहर को ही लौटा. सुबह उठ कर छाया उसे फोन लगाती रही, लेकिन हर बार मोबाइल स्विच औफ ही मिला.
‘‘कहां गए थे? रातभर फोन भी बंद था,’’ जैसे ही छाया ने यह पूछा, तो गुस्से से फटते हुए गौरव ने जवाब दिया, ‘‘गया था नजमा के पास, जो बिलकुल नखरे नहीं करती और 500 रुपए में वह सब कर देती है, जिस के लिए तुम्हें नखरे आते हैं…’’
इतना सुनना था कि छाया के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई और फिर उसे समझ आया कि सैक्स की यह तालीम नजमा उसे दे रही थी, जिसे वह उस पर आजमा रहा था.
क्यों जाते हैं धंधे वाली के पास
छाया के जी में तो आया कि गौरव को सबक सिखाने के लिए वह कुछ दिन मायके चली जाए, लेकिन फिर यह सोच कर रुक गई कि ऐसे तो गौरव के हौसले और बुलंद होंगे और कहीं वह लोकलाज छोड़ कर उस कलमुंही नजमा को घर ही न ले आए.
छाया, गौरव और नजमा की इस सच्ची कहानी, जिस में तीनों के नाम बदल दिए गए हैं, के आखिर में क्या हुआ, उस के पहले यह जानना जरूरी है कि गौरव जैसे मर्द धंधे वालियों के यहां किन वजहों से जाते हैं.
गौरव के मुताबिक, ‘‘मुझ जैसे पति नजमा जैसियों के पास इसलिए जाते हैं कि पत्नी मनमाफिक तरीकों से सैक्स करने के लिए राजी नहीं होती और न ही साथ देती, जिस से सैक्स लाइफ मुरदा होती जाती है.
‘‘और भी जो लोग नजमा जैसियों के पास जाते हैं, उन में से किसी की अपनी बीवी से पटरी नहीं बैठ रही होती है, तो किसी की बीवी का चक्कर कहीं और चल रहा होता है या कोई दिनरात कलह ही करती रहती है.
‘‘इस तरह के गम भुलाने के लिए धंधे वालियां मुफीद हैं, जो न केवल मनचाहे ढंग से जिस्मानी सुख देती हैं, बल्कि प्यार से तरहतरह की बातें करते हुए यह समझाती भी हैं कि ‘हम तो पैदा इसी नरक में हुई हैं, जो तुम्हें 2-4 घंटे के लिए जन्नत लगता है. यहां चंद नोटों का पैकेज ले कर मनमुताबिक मौज करो और घर वापस चले जाओ, क्योंकि वही तुम्हारा असल ठिकाना और सहारा है.
‘‘एक रात की दुलहन जिंदगीभर की बीवी कभी नहीं बन सकती. नशे में हर ग्राहक हमें बीवी बनाने की बात करता है, लेकिन जब सुबह नशा उतरता है और सैक्स से जी भर चुका होता है, तब कपड़े लपेट कर सीधे बीवी के पल्लू में छिपने के लिए चला जाता है, जो उस का लाइफटाइम सहारा होती है.’’
छाया की मानें तो, ‘‘इन धंधे वालियों का तो कोई घर या ईमानधरम होता नहीं, बस हमारे सीधेसादे मर्दों को फांस कर ये अपना उल्लू सीधा करती हैं और जब वे जेब और सेहत से खोखले हो जाते हैं, तो तीमारदारी और मरने के लिए हमारे पल्ले छोड़ देती हैं. एड्स और दूसरी जानलेवा बीमारियां फैलाने वाली इस गंदगी को दूर करने के लिए सरकार भी कुछ नहीं कर पाती है.
‘‘ये क्या जानें कि सुहाग, घरगृहस्थी और बच्चे समेत नातेरिश्तेदारी की अहमियत क्या होती है. मर्द की तो फितरत ही सांड़ जैसी होती है कि जहां हरा चारा दिखेगा, वहां मुंह जरूर मारेगा और इन लोगों का तो कारोबार ही मुंह से चलता है, जिस के लिए मर्द बेचैन रहते हैं.
‘‘इन्होंने मर्द की कमजोर नस होंठों में दबा रखी है. उस से और ज्यादा पैसा बने, इस के लिए ये किसी का बसाबसाया घर उजाड़ने में भी रहम नहीं खाती हैं, उलटे मर्दों को हमारे खिलाफ भड़काती हैं, उन्हें और बिगाड़ती हैं, शराब पिलाती हैं, दूसरी तरह का तमाम नशा भी मुहैया कराती हैं. इन में तो कीड़े पड़ेंगे कीड़े.’’
नजमा कुछ और ही कहती है, ‘‘हम तो सदियों और पीढि़यों से देह बेचते हुए यही इलजाम झेल रहे हैं, लेकिन कोई हमारे पास आता है तो उसे एक सुख चाहिए रहता है, जो कीमत अदा कर के वह लेता है और चलता बनता है. अच्छा लगता है, तो वह कई बार भी आता है. इस में हमारा क्या कुसूर? क्या हम अपना पेट भी न भरें?
‘‘कुछ दिनों पहले ठाकुर बिरादरी का एक खूबसूरत नौजवान आया था.
रात गुजारी तो लगा कि शादीशुदा होते हुए भी इसे सैक्स का रत्तीभर भी अनुभव नहीं है.
‘‘इस बाबत पूछा, तो उस का गला रुंध गया, आंखें भर आईं. उस की कहानी वाकई दिल को छू लेने वाली थी कि बाप ने तगड़े दहेज के लालच में शादी ऐसी लड़की से करवा दी थी,
जो दरअसल में न लड़की थी और न ही लड़का.
‘‘घर और रसूखदार ससुराल की इज्जत और डर के चलते वह नौजवान चुप रहा. एकाध बार उस ने खुदकुशी करने की भी कोशिश की, लेकिन बच गया. फिर एक दिन उस का एक दोस्त सैक्स सुख के लिए मेरे पास छोड़ गया.
‘‘एक रात का सौदा 5,000 रुपए में तय हुआ, जो मेरी हफ्तेभर की कमाई के बराबर था. वह वापस गया तो बहुत खुश था. अब जब भी वह यहां आता है, तो महंगे तोहफे भी लाता है. कहता है कि उस ने बीवी को बता दिया है, जिसे इस पर कोई एतराज नहीं.
‘‘मैं ने क्या गुनाह किया… गौरव जैसे चाहता था, वैसे उसे सैक्स सुख दिया. अगर पत्नी उसे सैक्स सुख नहीं देती तो इस में मेरा क्या कुसूर. हम कोई पीले चावल ले कर नहीं गए थे उसे बुलाने के लिए.
‘‘छाया जैसी औरतों को देख कर तो हमें अपनी मौसी की यह नसीहत याद आ जाती है कि बीवी को बिस्तर में वेश्या होना चाहिए. पति जैसे चाहे वैसे सैक्स करे. इस से न केवल गृहस्थी बची रहेगी, बल्कि दोनों के बीच प्यार भी बढ़ेगा.
‘‘पत्नियों को चाहिए कि वे पति से लड़ाईझगड़ा और कलह न करें, नहीं तो वे हमारे पास भागेंगे ही, क्योंकि हमारे पास बनावटी और दिखावटी ही सही, प्यार तो है. उन के पास तो यह भी नहीं रहता.
‘‘कई लोग इसलिए हम धंधे वालियों के पास आते हैं, क्योंकि उन की पत्नी का कोई पहले का या शादी के बाद का प्रेमी लाइफ में ऐंट्री मार चुका होता है और पत्नी इन्हें हाथ नहीं रखने देती. हमें ऐसे लोगों से हमदर्दी तो रहती है, लेकिन यह समस्या हम हल नहीं कर सकते, बस सलाह दे सकते हैं कि जब बरदाश्त की हदें टूट जाएं, तो तलाक के लिए कोर्ट चले जाओ.
‘‘अगर तलाक हो जाए, तो कोई अच्छी सी लड़की देख कर दूसरी शादी कर लो, जब तक हमारे तमाम दरवाजे खुले हैं तुम्हारे लिए.
‘‘रही बात गौरव की, तो उसी ने बताया कि छाया अब उस की पसंद का सैक्स करने के लिए राजी हो गई है. हालांकि एक रैगुलर ग्राहक के जाने का दुख जरूर हुआ, लेकिन अच्छा भी लगा कि दोनों अलग होने से बच गए.’’
नजमा धंधे वाली ही सही, लेकिन कह तुक की बातें रही है कि पति के मुताबिक सैक्स करो तो वे क्यों उन के पास जाएंगे, जहां सुख तो केवल एक है, लेकिन खतरे कई हैं. मसलन, पुलिस और गुंडों का, कंडोम न लगाओ तो बीमारियों का और पैसों का, जो यहां नहीं लुटाए जाते, तो घरगृहस्थी के काम आते.
कुल 51 फीसदी अंक. इंटरनैट पर 10वीं जमात के इम्तिहान का नतीजा देख कर बिजली खुशी से फूली नहीं समा रही थी. शायद वह इस से ज्यादा नंबर ला पाती, अगर जिंदगी ने उस के साथ नाइंसाफी नहीं की होती और उस के 3 साल बरबाद नहीं हुए होते.
बिजली की आंखों के सामने 3 साल पहले का सीन तैर गया. एक घटना ने उस के कीमती 3 साल चुरा लिए थे. पर दूसरी ओर वह खुश भी थी कि इन 3 सालों के अंदर ही वह इस दलदल से निकल पाई थी…
कुछ नक्सली आए थे बिजली के गांव में उस दिन. 20-25 नक्सली कंधे पर बंदूक टांगे उस के गांव से गुजर रहे थे. वह अपने घर के बरामदे से छिप कर उन्हें देख रही थी. उस के मन में डर तो था ही, पर कौतूहल भी था. वह नक्सलियों के बारे में तरहतरह के किस्से सुनती थी. वह उन की निगाहों से बचते हुए उन्हें देखना चाहती थी, पर एक नक्सली ने उसे देख लिया था.
‘‘ऐ लड़की, इधर सुन…’’ उस नक्सली ने बिजली को बुलाया था.
डरीसहमी बिजली उस नक्सली के सामने जा खड़ी हुई थी.
‘‘छातानगर का रास्ता जानती है?’’ उस नक्सली ने पूछा था.
‘‘हां…’’ बिजली ने सहम कर हामी भरी थी.
‘‘चलो, रास्ता दिखाओ…’’ उस नक्सली ने डपट कर बिजली को साथ चलने के लिए कहा था.
एक बार बिजली ने पलट कर अपने घर की ओर देखा था. पिता तो था नहीं उस का, उस के जन्म लेने के 2 साल के अंदर उस की मौत हो गई थी. मां दिख जाती तो उस के पास भाग जाती, पर वह भी दिखी नहीं. शायद किसी काम से कहीं गई हुई थी. वह नक्सलियों के साथ सरहद के पास आ गई.
बिजली ने उंगली से इशारा कर बताया था, ‘‘उस ओर है छातानगर.’’
‘‘अरी, साथ चल…’’ नक्सली ने बिजली की बांह पकड़ ली थी. बेचारी 11-12 साल की बच्ची क्या करती? साथ चली गई. नक्सली को रास्ता क्या पता नहीं था? वह तो अपने दल में उसे शामिल करने के लिए ही लाया था और फिर कभी वह वापस नहीं आ पाई.
नक्सलियों ने बिजली को वौकीटौकी चलाना सिखाया. उसी की मदद से वह नक्सलियों को आगाह करती थी. फिर उसे हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई. न चाहते हुए भी उसे हथियार चलाना पड़ा. उसे अपनी किताबकौपियों की काफी याद आती थी. गुडि़या से खेलने वाली और किताबें पढ़ने वाली बच्ची को हथियार चलाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, पर वहां कौन सोचता उस की दिलचस्पी की बात.
यहां तक कि कच्ची उम्र में ही बिजली ने पुलिस के खिलाफ कुछ मुहिम में हिस्सा भी लिया. कई सरकारी संपत्तियों को नष्ट करने के कांड में उसे शामिल होना पड़ा. उस का दिल इन कामों में बिलकुल नहीं लगता था, पर कोई उपाय न था. मजबूरी में वह सब करना पड़ता था, जो उस के कमांडर का हुक्म होता था. उस के दल में कुछ और भी औरतें थीं, पर किसी से किसी तरह की हमदर्दी नहीं मिली थी.
बिजली के गांव से ही उस के रिश्ते का एक चाचा भी नक्सलियों के साथ था. वह कई सालों से नक्सलियों के दल में शामिल हो गया था. शायद अब वह उन के साथ रहतेरहते ऊब गया था. अब वह समर्पण कर शांतिपूर्ण जिंदगी बिताना चाहता था.
एक बार बातों ही बातों में चाचा ने बिजली से दिल की बात कह दी थी, ‘‘बिजली, मैं पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर सुकून की जिंदगी जीना चाहता हूं. तंग आ गया हूं मैं यहां की जिंदगी से.
‘‘यहां आने से पहले लगता था कि दुनिया को बदल डालूंगा, पर यहां भी कोई इंसाफ नहीं है. बिना बात के बेकुसूर लोगों को परेशान किया जाता है. सरकारी संपत्ति का नुकसान करने से कोई फायदा तो होता नहीं, उलटे स्थानीय लोगों को परेशानी होती है. निजी दुश्मनी के लिए स्थानीय लोगों की संपत्ति नष्ट की जाती है और उन के साथ हिंसा की जाती है.’’
पहले बिजली ने सोचा कि शायद चाचा उस का मन टटोल रहा है. अगर वह रजामंदी जताएगी तो उस की शिकायत की जाएगी, इसलिए वह चुप ही रही. यहां कौन किस की जासूसी करता है, कहा नहीं जा सकता, पर जल्दी ही उसे महसूस हुआ कि उस का चाचा इस मामले को ले कर गंभीर है.
बिजली ने भी मौका देख कर उस से अपने दिल की बात कह दी, ‘‘चाचा, मुझे तो पहले दिन से ही यहां की जिंदगी पसंद नहीं थी, पर क्या करूं? आप जब आत्मसमर्पण करने जाओ, तो मुझे भी साथ ले चलना. मैं पढ़ना चाहती हूं. पढ़लिख कर मुझे पुलिस अफसर बनना है.’’
‘‘ठीक है, पर अभी किसी से इस बात की चर्चा मत करना. अगर किसी को जरा भी भनक मिली, तो हमारा निकलना मुश्किल हो जाएगा, बल्कि जान पर बन आएगी,’’ चाचा ने कहा था.
‘‘नहीं करूंगी, पर मुझे छोड़ कर मत चले जाना,’’ बिजली ने कहा.
मौका मिलते ही चाचाभतीजी दोनों ने पुलिस थाने में आ कर आत्मसमर्पण कर दिया. दोनों पर कई मामले दर्ज थे, पर आत्मसमर्पण करने के चलते उन्हें नए सिरे से जिंदगी बिताने की इजाजत दे दी गई.
चाचा तो अपने परिवार के साथ रहने लगा, पर बिजली कहां जाती. गांव में अब पुलिस चौकी बन गई थी, जिस के चलते नक्सलियों का पहले जैसा डर नहीं था. इस वजह से चाचा बेखौफ हो कर गांव में ही रहने लगा, पर बिजली का तो कोई ठिकाना नहीं था. उस का पिता था नहीं, सिर्फ मां थी और इस बीच वह भी किसी और से शादी कर के कहीं चली गई थी. अब बिजली कहां रहती?
पर जिंदगी बिजली के ऊपर मेहरबान थी. पुलिस महकमे के ही एक बड़े अफसर रामगोपाल को जब पता चला कि बिजली के रहने का ठिकाना नहीं है, तो उन्होंने बिजली की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली.
उन्होंने बिजली का दाखिला एक स्कूल में करवा दिया और होस्टल में रहने का भी इंतजाम करवा दिया. उस के लिए कौपीकिताब, स्कूल बैग, कपड़े और साइकिल उन्होंने खरीद दी.
7वीं जमात पास बिजली ने साल दर साल पढ़ाई करते हुए आज 10वीं का इम्तिहान पास कर लिया था. आज वह अपने अंक देख कर फूली नहीं समा रही थी.
‘अब मुझे पढ़ना है, खूब पढ़ना है और न सिर्फ तरक्की करनी है, बल्कि अपने और रामगोपाल अंकल के सपनों को पूरा भी करना है…’ बिजली मन ही मन भविष्य की योजना बनाने लगी. द्य
अब चंद्रवती अपना ज्यादा समय लखनऊ में ही बिताने लगी थी. उसे लल्लू की अब कोई चिंता नहीं थी. लल्लू भी इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका था कि चिडि़या अब उस के हाथ से निकल चुकी है.
भूरेलाल राजनीति का तो मंजा हुआ खिलाड़ी था ही, इश्कमिजाजी का भी वह शौकीन था. वह जानता था कि चंद्रवती उस के जाल में फंस चुकी है. उस ने खादी के विदेशों में प्रचारप्रसार के लिए यूरोपीय देशों का 20 दिन का टूर बनाया और चंद्रवती का नाम भी टूर में जाने वाले लोगों की लिस्ट में शामिल था. लल्लू के विरोध के बावजूद चंद्रवती भूरेलाल के साथ टूर पर गई.
चंद्रवती को लगता था कि भूरेलाल ही वह सहारा और सीढ़ी है, जो उसे उस की मंजिल तक पहुंचाएगा. यूरोप के 20 दिन के टूर में चंद्रवती ने अपना सबकुछ भूरेलाल को सौंप दिया.इधर लल्लू इतना दुखी हो चुका था कि चंद्रवती से तलाक लेने के अलावा उसे और कोई रास्ता न सूझता था. उस ने तलाकनामा के लिए वकील से कागजात तैयार करा लिए. चंद्रवती इस के लिए खुशी से तैयार थी. न अब उसे गांव पसंद था और न लल्लू ही.
चंद्रवती भूरेलाल के जरीए और मंत्रियों से मिली. अब उस की पौबाहर थी. सुबह से शाम तक न जाने कितने लोग उसे सैल्यूट मारते. एक फोन पर वह मंत्रियों और अफसरों से लोगों के काम करवाती. ऐसा लगता, जैसे चंद्रवती प्रदेश में अलग सरकार चला रही हो.
लेकिन राजनीति में किस का सूरज कब उग जाए और कब डूब जाए, कौन कह सकता है. चंद्रवती की हनक देख कई लोग उस के विरोधी हो गए. वे चंद्रवती को फंसाने की ताक में लग गए. मीडिया भी उस की हनक से हैरान था.
एक दिन चंद्रवती और भूरेलाल की जरा सी लापरवाही से उन के अंतरंग संबंधों की तसवीरें विरोधियों के हाथ पड़ गईं. फिर मीडिया तक जाने में इसे कितनी देर लगती.
अगले ही दिन 2 काम हो गए. खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष पद से चंद्रवती को बरखास्त कर दिया गया. कहां तो वह विधायक बनने का सपना देख रही थी, प्रदेश अध्यक्ष ने उस की पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ही रद्द कर दी. मंत्रियों, नेताओं और अफसरों ने उस का मोबाइल नंबर तक अपने मोबाइलों से निकाल दिया.
भूरेलाल के मंत्री पद पर बन आई, तो उस ने चंद्रवती से अपने संबंधों को विरोधियों की साजिश और मीडिया के गंदे मन की उपज बताया. उस ने सार्वजनिक रूप से ऐलान किया कि वह चंद्रवती को केवल एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में जानता है, उस से ज्यादा उस का चंद्रवती से कोई लेनादेना नहीं है.
चंद्रवती ने इतने दिनों में जो बेनामी दौलत कमाई थी, उस से उस ने लखनऊ में एक बंगला तो खरीद ही लिया था. लेकिन राजनीतिक रुतबा खत्म होते ही उस की सारी शानोशौकत पर रोक लग गई. अब उस का दरबार सूना हो चुका था.
जल्दी ही चंद्रवती को अर्श से फर्श पर गिरने का एहसास हो गया. इस बेकद्री और अकेलेपन के चलते वह तनाव की शिकार हो गई. नींद की गोलियां उस का सहारा बनीं.
भूरेलाल उस के फोन को उठाता तक न था. तब एक दिन उस से मिलने वह उस के दफ्तर पहुंच गई. अर्दली ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह ‘मैडम’ ही कहता रह गया और वह उस के दफ्तर में पहुंच गई. उस के वहां पहुंचते ही भूरेलाल उस पर बिफर पड़ा, ‘‘तेरी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई?’’
‘‘भूरेलाल, मैं ने तुझ पर अपना सबकुछ लुटा दिया और अब कहता है कि मेरी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई?’’
‘‘बकवास बंद कर. जो औरत अपने आदमी को छोड़ कर दूसरों के साथ हमबिस्तर हो, वह किसी की नहीं होती.’’
‘‘और जो मर्द अपनी औरत को छोड़ दूसरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाए, वह किस का होता है?’’
‘‘दो कौड़ी की औरत… जबान लड़ाती है… गार्ड, बाहर निकालो इसे.’’
इस से पहले कि गार्ड चंद्रवती को बाहर निकालता, चंद्रवती ने पैर में से चप्पल निकाली और भूरेलाल के सिर पर दे मारी.भूरेलाल के गाल पर इतनी चप्पलें पड़ीं कि उस का चेहरा लाल हो गया. उस का कान और होंठ फट गया. नाक से भी खून बहने लगा. जब तक गार्ड और दूसरे लोग चंद्रवती को रोकते, भूरेलाल की काफी फजीहत हो चुकी थी.
भूरेलाल ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की ऐयाशी का नतीजा इतना खतरनाक होगा. मामले को दबाए रखने के लिए पुलिस को कोई सूचना नहीं दी गई.
कुछ दिन बाद खबर आई कि चंद्रवती की उस के घर पर ही मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए लाश भेजी गई, लेकिन उस की मौत में नींद की दवाओं का ज्यादा सेवन करना बताया गया.
जब चंद्रवती का दाह संस्कार किया जा रहा था, तब लल्लू को उस की लाश से अरमानों का धुआं उड़ता नजर आ रहा था.
आज मानवी की आंख जरा देर से खुली, लेकिन जब वह सो कर उठी तब उस ने एक अजीब सी बेचैनी महसूस की. अपनी बिगड़ी हालत देख कर वह समझ गई कि जरूर उस का गर्भपात हुआ है. तब उस ने अधीरता से रवि को आवाज लगाई, पर उस की आवाज उसे नहीं सुनाई दी.
‘जरूर रवि मेरे लिए चाय बना रहा होगा,’ यही सोच कर वह देर तक आंखें मूंदे बिस्तर पर पड़ी रही, लेकिन जब काफी देर के बाद भी रवि नहीं आया तब मानवी का माथा ठनका.
फिर वह किसी तरह अपनी बची शक्ति समेट कर बड़ी मुश्किल से उठी और धीरेधीरे चलती हुई किचन की तरफ बढ़ गई.
पर यह क्या? रवि तो किचन में भी नहीं था. तभी उस की नजर घर में फैले सामान पर पड़ी. सामने वाली अलमारी का ताला टूटा पड़ा था और उस में रखा सारा कीमती सामान गायब था.
ये सब देख कर मानवी की चीख निकल गई. तब वह धम से सामने पड़े सोफे पर बैठ गई और अनायास ही उस का दिल भर आया.
एक तरफ वह बहुत कमजोरी महसूस कर रही थी तो दूसरी तरफ मानसिक व आर्थिक रूप से भी अक्षम हो चुकी थी.
उसे आज समझ आ रहा था कि उस ने रवि के साथ लिव इन में रह कर कितनी बड़ी भूल की है.
‘कुछ भी ऐसा मत करना मेरी बेटी, जिस से बाद में हमें पछताना पड़े,’ दिल्ली आते समय उस के बाबूजी उस से बोले थे.
‘ओह, बाबूजी… मैं वहां कुछ बनने जा रही हूं, इसलिए कुछ भी ऐसेवैसे की तो गुंजाइश ही नहीं है…’ इतना कह कर उस ने आगे बढ़ कर अपने बाबूजी के चरणस्पर्श कर लिए थे.
फिर वह अपनी आंखों में ढेर सारे सपने लिए दिल्ली आ पहुंची थी. छोटे शहर की मानवी को दिल्ली स्वप्न नगरी से कम नहीं लगी थी. अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हुए कब रवि उस का हमसफर बन बैठा, इस का एहसास तो उसे बहुत देर में हुआ.
तभी अचानक मानवी को याद आने लगा कि रात को रवि ने जो ड्रिंक उसे औफर किया था, जरूर उस में उस ने कुछ मिलाया होगा. तभी तो उस ड्रिंक को पीते ही उसे बेहोशी छाने लगी थी और शायद इसी वजह से उस का यह गर्भपात हुआ.
अब तो जैसे उस की सोचनेसमझने की शक्ति चुक गई थी. अभी कल ही तो रवि ने उस से मंदिर में शादी की थी. वैसे यह बात नहीं थी कि मानवी ने यह निर्णय जल्दबाजी में लिया था बल्कि लगातार 2 साल लिव इन में रहने के बाद ही उस ने यह निर्णय लिया था.
फिर अचानक मानवी को सारी बीती बातें रवि की सोचीसमझी चाल का हिस्सा लगने लगी थीं.
‘2 महीने का गर्भ है मुझे, अब तो शादी कर लो मुझ से,’ मानवी जब रवि से बोली तो वह खुश होने के बजाय उलटा उस पर ही बरस पड़ा था.
‘पता नहीं, तुम आजकल की लड़कियों को क्या होता जा रहा है. सरकार गर्भनिरोध के नितनए तरीकों पर लाखों रुपए बरबाद कर रही है, पर तुम लोगों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. मैं तो मस्तमौला हूं पर तुम तो ध्यान रख सकती थी,’ रवि अचानक आक्रामक हो उठा था.
ये सब सुन कर मानवी का मुंह उतर गया था. फिर वह रोंआसी सी अपने कमरे की तरफ बढ़ गई थी.
थोड़ी देर रो लेने के बाद जब उस का जी हलका हुआ, तब उस ने रवि को अपने सामने खड़ा पाया. उस के हाथ में एक ट्रे थी, जिस में कौफी के 2 मग और मानवी के मनपसंद वैज सैंडविच थे.
‘‘लो जानेमन, गुस्सा थूको और नाश्ता कर लो, ऐसी स्थिति में तो तुम्हें बिलकुल भूखा नहीं रहना चाहिए और फिर हमारा नन्हा शैतान भी तो भूखा होगा…’’ इतना कह कर रवि ने अपने हाथों में पकड़ी ट्रे मानवी के सामने रख दी थी.
‘‘वैसे तुम जानते सबकुछ हो पर अनजान बनने का नाटक करते हो, शायद इसी वजह से मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठी,’’ इतना कह कर मानवी ने रवि को खींच कर अपने पास बैठा लिया और फिर वे दोनों नाश्ता करने लगे.
‘‘मानवी, ऐसा करते हैं कि आज दोपहर में मूवी देखते हैं और फिर लंच भी बाहर ही कर लेंगे,’’ रवि खाली ट्रे उठाते हुए बोला, ‘‘पर हां, आज का सारा खर्च तुम्हें ही करना होगा, क्योंकि मेरी हालत जरा टाइट है.’’
‘‘वह तो ठीक है जनाब, पर आज तुम्हारा आशिकी भरा व्यवहार देख कर मुझे तुम पर बहुत प्यार आ रहा है,’’ यह कहतेकहते वह रवि से लिपट गई थी.
‘‘मैं एक बात सोच रहा था कि अगर अब जिम्मेदारी आ रही है तो उस से निबटने के लिए प्लानिंग भी करनी पड़ेगी.’’
रवि मानवी को चूमते हुए बोला, ‘‘अगर कुछ इंतजाम हो जाए तो मैं अपना कोई काम ही शुरू कर लूं. मुझे तो इस बंधीबंधाई कमाई वाली प्राइवेट नौकरी में आगे बढ़ने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं और फिर क्या शादी के बाद भी हर छोटेछोटे खर्च के लिए मैं तुम पर ही निर्भर रहूंगा?’’
‘‘अच्छा जानू, एक बात तो बताओ जरा कि अगर किसी और की मदद लेने की जगह मैं ही तुम्हें फाइनैंस कर दूं तो?’’
‘‘वाह, इस से बढि़या बात तो कोई हो ही नहीं सकती. यह तो वही कहावत हुई, ‘बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा.’ मुझ से ज्यादा तो तुम आर्थिक रूप से सबल हो. इस का तो मुझे तनिक भी एहसास नहीं था,’’ यह कहतेकहते रवि की आंखों में अचानक ही चमक नजर आने लगी थी.
फिर उस ने अचानक ही मानवी को अपनी ओर खींच लिया था और प्यार भरे स्वर में उस से बोला था, ‘‘मैं तो सोच रहा था कि तुम शायद अपने किसी परिचित या सहकर्मी से मदद लोगी पर तुम्हारे पास तो गढ़ा हुआ धन है, मेरी छिपीरुस्तम…’’
‘‘जनाब, जरा अपनी सोच को ब्रेक लगाइए और ध्यान से मेरी बात सुनिए,’’ मानवी हंसते हुए बोली, ‘‘मेरे पास कोई गढ़ा हुआ धन नहीं बल्कि खूनपसीने से कमाए हुए पैसों की बचत है जिस की मैं ने एफडी करवाई हुई है.’’
अब तक मैं ने इस बारे में तुम्हें नहीं बताया था पर अब जब हम दोनों एक होने जा रहे हैं तो भला यह दुरावछिपाव क्यों?’’
‘‘ओह, मेरी प्यारी मानवी,’’ इतना कह कर रवि ने एक प्यारा सा चुंबन मानवी के गाल पर अंकित कर दिया था.
फिर वे दोनों अपने प्यार की खुमारी में डूबे पिक्चर हौल की तरफ बढ़ गए थे.
पहले उन्होंने मस्त मूवी का मजा लिया और फिर एक बढि़या रेस्तरां में लजीज खाना खाया.
जब रात को दोनों सोने के लिए बिस्तर पर लेटे तब फिर से रवि ने सुबह वाली बात का जिक्र छेड़ दिया.
‘‘मैं क्या कह रहा था मानवी,’’ रवि जरूरत से ज्यादा अपने स्वभाव को नम्र करते हुए बोला, ‘‘कल सोमवार है तो तुम औफिस जाने से पहले बैंक से पैसे निकाल कर मुझे दे देना. पैसे हाथ में होंगे तो आगे की प्लानिंग आसान हो जाएगी,’’ फिर रवि मानवी के बालों में अपना हाथ फेरने लगा था.
‘‘वह तो ठीक है जानू,’’ मानवी रवि को गलबहियां डालती हुई बोली, ‘‘पर पहले हमारी शादी होगी, तभी तुम्हें पैसे मिलेंगे, क्योंकि मैं ने यह पैसे अपने फ्यूचर पार्टनर के लिए ही तो बचा कर रखे थे.’’
‘‘ओह, तो तुम्हें मुझ पर भी विश्वास नहीं है,’’ रवि खुद को मानवी की पकड़ से छुड़ाते हुए बोला, ‘‘क्या, मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं जो तुम्हें धोखा दे कर भाग जाऊंगा?’’
‘‘सच, बहुत प्यारे लगते हो तुम, जबजब गुस्से में होते हो,’’ मानवी फिर से रवि से लिपटते हुए बोली, ‘‘मेरे जानेजिगर, अब जब तुम्हें अपना तनमन ही सौंप दिया तो भला शक की कैसी गुंजाइश?
‘‘मैं तो यह सोच रही थी कि अब जब शादी करनी ही है तो फिर देरी कैसी? इधर हमारी शादी हुई तो उधर मैं अपनी सारी जमापूंजी तुम्हें सौंप दूंगी,’’ मानवी रवि के आगोश में समाते हुए बोली.
इतना कह कर मानवी तो सो गई पर रवि बेचैनी से लगातार करवटें बदलता रहा था.
‘‘जल्दी से तैयार हो जाओ. हम लोग अभी मंदिर जा कर शादी करेंगे,’’ इतना कह कर रवि ने एक पैकेट उसे थमा दिया, जिस में एक प्यारी सी लाल साड़ी, लाल चूडि़यां और एक प्यारा सा महकता गजरा था.
‘‘पर रवि, इतनी भी क्या जल्दी है? थोड़ा समय दो मुझे,’’ मानवी चाय बनाते हुए बोली.
‘‘तुम लड़कियां न वाकई में कमाल हो. पहले तो जल्दीजल्दी की रट लगाती हो और फिर अगर तुम्हारी बात मान लो तो उस में भी तुम्हें प्रौब्लम होती है,’’ इतना कह कर रवि गुस्से में पैर पटकता हुआ बाहर चला गया.
वैसे मानवी को ये सब इतनी जल्दी होते देख अटपटा तो अवश्य लग रहा था पर अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.
इसलिए वह सबकुछ भुला कर खुशीखुशी तैयार होने लगी थी. बीचबीच में उसे अपने घर वालों की याद भी आ रही थी पर फिर उस ने सोच लिया था कि वह शादी होते ही रवि को ले कर अपने घर जाएगी.
मानवी को दुलहन के रूप में देख कर पहले तो वे लोग अवश्य उस से गुस्सा होंगे पर फिर जल्दी ही मान भी जाएंगे, क्योंकि वह सभी की लाड़ली जो है.
‘‘वाह, क्या गजब ढा रही हो तुम दुलहन के रूप में, आज तो सब तुम पर फिदा हो जाएंगे,’’ रवि की इस चुटकी पर मानवी शरमा कर उस के गले जा लगी थी.
‘‘अरे सुनो, तुम्हारा बैंक भी तो मंदिर के रास्ते में ही पड़ता है न. ऐसा करना तुम अपनी चैकबुक भी रख लेना,’’ रवि कुछ सोचते हुए बोला.
‘‘तुम भी न, हर काम जल्दी में ही करते हो,’’ मानवी अपना मांगटीका ठीक करते हुए बोली, ‘‘वैसे मुझे कम से कम इतना तो बता दो कि तुम कौन सा काम शुरू करने वाले हो?’’
‘‘मैडम, यह सरप्राइज है तुम्हारे लिए. बस, यह समझ लो कि यह शादी का तोहफा होगा तुम्हारे लिए,’’ इतना कह कर उस ने मानवी का हाथ पकड़ा और फिर वे दोनों शादी करवाने वाली दुकान की तरफ बढ़ गए. वहां एक पंडित बैठा था. उस ने जल्दबाजी में रीतिरिवाज निबटा कर उन की शादी करवा दी और एक प्रमाणपत्र पकड़ा दिया. फिर लौटते समय मानवी ने बैंक से पैसे निकाल कर रवि को दे दिए.
पैसे मिलते ही रवि के रंगढंग बदल गए, इस का एहसास मानवी को हुआ तो जरूर पर फिर उस ने इसे वहम मान कर आगे बढ़ने में ही भलाई समझी.
मानवी कपड़े चेंज कर के अभी लेटी ही थी कि तभी रवि आ गया, ‘‘यह क्या जानेमन, आज तो सैलिब्रेशन की रात है और तुम इतनी सुस्त सी लेटी हो. दैट्स नौट फेयर माई लव,’’ इतना कह कर उस ने विदेशी शराब 2 गिलासों में उड़ेल दी.
वैसे तो मानवी थकी होने के कारण सोना चाहती थी पर वह रवि को परेशान भी तो नहीं कर सकती थी.
फिर वह तुरंत उठी और रवि के पास जा कर बैठ गई.
‘‘चीयर्स,’’ कह कर इधर दोनों के गिलास आपस में टकराए तो उधर एक अजीब सा उन्माद छा गया मानवी पर. फिर थोड़ी देर बाद उस की आंखें भारी होने लगीं और वह सो गई. अब जब आंखें खुलीं तो रवि का सारा सच उस के सामने आ गया था.
अभी वह इसी उहापोह में थी कि क्या करे? तभी उस के मोबाइल पर उस की सहेली रम्या का फोन आ गया.
‘‘क्या यार, 2 दिन से औफिस क्यों नहीं आई?’’ रम्या हंसते हुए बोली.
‘‘कुछ नहीं यार.’’
‘‘तू अभी बिजी है तो मैं बाद में कौल करती हूं,’’ रम्या ने चुटकी ली.
‘‘ऐसा कुछ नहीं है यार,’’ इतना कह कर मानवी रोने लगी.
‘‘तू रो मत, मैं अभी आती हूं,’’ फिर चिंतातुर रम्या सारा काम बीच में ही छोड़ कर मानवी के पास पहुंच गई.
मानवी की इतनी बुरी हालत देख कर रम्या भी सकते में आ गई. फिर मानवी ने भारी मन से रम्या को सबकुछ बता दिया.
‘‘मैं तो तुझे पहले ही समझाती थी कि मत पड़ इस लिव इन के चक्कर में, पर तब तो मैडम पर इश्क का भूत जो सवार था. लिव इन एक कच्चा रिश्ता होता है जो किसी को भी सुख नहीं देता,’’ रम्या गुस्से में बोले जा रही थी.
‘‘मैं तो आत्महत्या कर के अपना जीवन ही समाप्त कर दूंगी. आखिर किस मुंह से मैं सामना करूंगी अपने घर वालों का?’’ इतना कह कर मानवी फिर से रोने लगी.
‘‘आत्महत्या के बारे में सोचना भी मत,’’ यह कह कर रम्या मानवी को समझाने लगी, ‘‘देख मानवी, अब तक तो तू ने जो कुछ गलत किया सो किया पर अब संभल जा. रही बात तेरे परिवार वालों की, तो यह बात समझ ले कि हमारी लाख गलतियों के बावजूद जो हमें स्वीकार करता है, वह हमारा परिवार ही होता है.
‘‘तू शायद यह नहीं जानती थी कि अपने दोस्त तो हम चुनते हैं पर हमें हमारी फैमिली चुनती है.
‘‘शुरू में तो तेरे परिवार वाले तेरे शुभचिंतक होने के नाते तुझे अवश्य डांटेंगे, लेकिन फिर तुझे खुले मन से स्वीकार भी कर लेंगे.
‘‘आत्महत्या तो रवि को करनी चाहिए तूने तो उसे सच्चे दिल से चाहा था, पर दगाबाज तो वही निकला, जो तुझे आर्थिक, मानसिक व शारीरिक स्तर पर धोखा दे कर चंपत हो गया. वह शातिर तो तेरे पैसों पर ऐश कर रहा होगा और तू यहां रोरो कर बेहाल हो रही है.’’
फिर रम्या ने उस के आंसू पोंछे और उसे अपनी कार में बैठा कर डाक्टर के पास ले गई.
डाक्टर ने पहले मानवी का चैकअप किया और फिर थोड़े उपचार के बाद उसे कुछ दवाएं लिख दीं, जिन से मानवी को बहुत आराम मिला.
इसी बीच रम्या ने मानवी द्वारा बताए गए नंबर पर उस के घर वालों से संपर्क किया और उन्हें सारी बात बता दी.
फिर क्या था? शाम होते ही मानवी के घर वाले उसे लेने आ पहुंचे.
मानवी की मनोदशा उस की मां ने तुरंत भांप ली और उसे अपने प्यार भरे आंचल में समेट लिया. पर मानवी की गलतियों पर उस के बाबूजी ने उसे बहुत डांटा. फिर इस बात का एहसास होते ही कि मानवी को अपनी गलतियों का एहसास है, उन्होंने उसे माफ भी कर दिया.
मानवी अपने घर वालों के साथ अपने घर चली गई. रम्या उस की कार को जाते हुए तब तक देखती रही, जब तक कार उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.
एक तरफ जहां उसे अपनी सहेली से बिछुड़ना बहुत खल रहा था वहीं दूसरी तरफ उसे इस बात की बेहद खुशी थी कि चाहे देर से ही सही, उस की सहेली उसे उस मकड़जाल से बाहर निकालने में सफल हो गई थी, जिसे उस ने अपनी नासमझी से अपने इर्दगिर्द बुना था.
चंद्रवती पढ़ीलिखी थी, अफसरों से बात करना ठीक से जानती थी, ग्राम प्रधान के अपने हकों को भी वह अच्छी तरह समझती थी. धीरेधीरे ग्राम प्रधानी का कामकाज उस के हाथों में आने लगा और लल्लू किनारे लगने लगा.
अब चंद्रवती पराए मर्दों से शरमाती न थी. उसे कहीं अकेले जाना पड़ता, तो वह लल्लू की बाट न जोहती थी. किसी को चंद्रवती से मिलना होता, तो वह उस से सीधा मिलता. लल्लू सिर्फ दरबारी बन कर रह गया था, सिंहासन पर चंद्रवती बैठी थी.
प्रधानों के संघ में चंद्रवती जितनी खूबसूरत और पढ़ीलिखी कम ही औरतें थीं, इसलिए प्रधान संघ का सचिव पद पाने में वह कामयाब हो गई. चंद्रवती के अरमान अब आसमान छूने लगे थे. वह मर्दों को दुनिया में मुकाम हासिल करने के गुर सीखने लगी. लंगोट के कच्चे मर्द को एक ही मुसकान से कैसे पस्त किया जा सकता है, यह वह अच्छी तरह जान गई थी.
अब चंद्रवती हमेशा बड़े नेताओं और अफसरों से मेलजोल बढ़ाने के मौके तलाशने लगी. यह वह सीढ़ी थी, जिस पर चढ़ कर वह अपनी इच्छाओं के आसमान पर पहुंच सकती थी.
एक बार प्रदेश सरकार का मंत्री भूरेलाल जिले के दौरे पर आया, तो उस की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उस का दौरा मालिनपुर में ही लगा दिया.चंद्रवती अपने दबदबे से मालिनपुर में तरक्की के अनेक काम करवा चुकी थी. जिसे देखने के लिए मंत्री को ग्राम प्रधान से मिलने की इच्छा और बढ़ गई.
चंद्रवती ने पहले से ही मंत्री के लिए नाश्ते का इंतजाम घर पर ही कर रखा था. भूरेलाल का स्वागत करने के लिए चंद्रवती सजीधजी दरवाजे पर ही खड़ी थी. वह खूबसूरती के भूखे इन मर्दों को अच्छी तरह से जानती थी.
चंद्रवती के रूप को देख कर भूरेलाल की आंखें चौंधिया गईं. चंद्रवती ने बैठक को भी ऐसा सजाया था कि भूरेलाल देखता ही रह गया. जब चंद्रवती भूरेलाल के सामने बैठी, तो वह गांव की तरक्की के काम की बात भूल कर उस की खूबसूरती को देखने में मगन हो गया.
जब चंद्रवती ने अपने सुकोमल हाथों और एक मोहन मुसकान से उसे चाय की प्याली पकड़ाई, तब जा कर भूरेलाल की नींद टूटी.
भूरेलाल गांव का दौरा कर के चला तो गया, पर उस का दिल मालिनपुर में ही अटक कर रह गया. शाम को ही मंत्री भूरेलाल ने फोन कर के चंद्रवती को उस की ‘अच्छी चाय’ के लिए धन्यवाद दिया.
चंद्रवती जान गई थी कि तीर निशाने पर लगा है. उस ने योजनाएं बनानी शुरू कर दीं कि मंत्री भूरेलाल से क्याक्या काम करवाने हैं और आगे बढ़ने के लिए इस सीढ़ी का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है.
अब मालिनपुर गांव में तरक्की का जो भी छोटाबड़ा काम होता, उस का उद्घाटन भूरेलाल के ही हाथों होता. भूरेलाल चंद्रवती को पार्टी के कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए बुलाने लगा.
जल्दी ही भूरेलाल ने चंद्रवती की ताजपोशी खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष पद पर करवा दी. फिर तो चंद्रवती को नीली बत्ती की गाड़ी मिल गई.
ओहदा बढ़ते ही चंद्रवती आजाद पंक्षी हो गई. लल्लू पहलवान ने उसे घोंसले में ही कैद रखने के लिए उस के पर कतरने की काफी कोशिश की, लेकिन चंद्रवती के सामने उस की अब बिसात ही क्या थी.
एक दिन भूरेलाल ने मौका देख कर कहा, ‘‘चंद्रवतीजी, आप खूबसूरत होने के साथसाथ काबिल भी हो. कोशिश करो, तो विधायक भी बन सकती हो.’’
चंद्रवती ने इतराते हुए कहा, ‘‘मंत्रीजी, ऐसे दिन हमारे कहां?’’
‘‘हम तुम्हारे साथ हैं न. बस, तुम्हें साथ देने की जरूरत है,’’ भूरेलाल ने आखिरी शब्द चंद्रवती के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा. चंद्रवती मंत्री भूरेलाल के एहसानों से इतना दब चुकी थी कि वह कोई विरोध न कर सकी, सिर्फ अपना हाथ पीछे खींच लिया.
भूरेलाल ने सकपकाते हुए कहा, ‘‘चंद्रवती, देखो राजनीति करने के लिए बहुतकुछ कुरबान करना पड़ता है. अब देखो विधायक का टिकट पाना है, तो अनेक नेताओं से मिलना ही पड़ेगा. अब मैं तुम्हें प्रदेश अध्यक्ष से मिलवाना चाहता हूं, उस के लिए तुम्हें लखनऊ तो चलना ही पड़ेगा. घर जा कर सोचना और ‘हां’ और ‘न’ में जवाब देना. वैसे तो तुम समझदार हो ही.’’
चंद्रवती इस ‘हां’ और ‘न’ का मतलब अच्छी तरह समझती थी. घर पहुंचने पर वह कुछ दुविधा में थी. लल्लू से जब उस ने लखनऊ जा कर प्रदेश अध्यक्ष से मिलने की बात कही, तो उस ने कहा, ‘‘चंद्रवती, धीरेधीरे चलो, तुम उड़ रही हो. हम जितना ऊंचे उड़ते हैं, उतना नीचे भी गिरते हैं.’’
लेकिन चंद्रवती को लल्लू की बात समझ में नहीं आई. उसे लगा कि पहलवानी करतेकरते लल्लू का दिमाग भी छोटा हो गया है. विधायक बनना है, तो कुछ कुरबानी तो देनी ही पड़ेगी.
चंद्रवती प्रदेश अध्यक्ष से मिलने के लिए लखनऊ जाने की तैयारी करने लगी. बुझे मन से लल्लू भी उस के साथ लखनऊ गया.भूरेलाल ने उन के ठहरने का इंतजाम पहले से ही एक होटल में कर दिया था.
अगले दिन भूरेलाल चंद्रवती को लेने होटल गया. चंद्रवती उस के साथ कार में बैठ कर प्रदेश अध्यक्ष से मिलने चली गई. लल्लू को यह बात नागवार गुजरी.
प्रदेश अध्यक्ष भी चंद्रवती की खूबसूरती को निहारता रह गया. मंत्री भूरेलाल ने चंद्रवती की तारीफ के पुल बांध दिए. प्रदेश अध्यक्ष ने चंद्रवती को विधायक का टिकट देने के लिए विचार करने का आश्वासन दिया. चंद्रवती को लगा, जैसे उसे विधायकी का टिकट मिल ही गया.
इस के बाद तो चंद्रवती पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के घर और दफ्तर के चक्कर काटने में ही मशगूल हो गई. मंत्री भूरेलाल ने उसे बता दिया था कि जितने नेता और मंत्री उस के टिकट की सिफारिश कर देंगे, उस का टिकट उतना ही पक्का.