अंकुरित अनाज क्यों है सेहत के लिए फायदेमंद, जानें

कहते है सुबह का नाश्ता दिन के खाने से भी ज्यादा जरुरी है क्योंकी सोते हुए उन 8 घंटो में हमारे शरीर में कुछ भी नही जाता. इसलिए सुबह का नाश्ता ऐसा होना चाहिए तो पेट के साथ साथ शरीर के लिए भी स्वस्थ हो. सुबह सुबह तेल मसालों वालों खाना अपकी सेहत के लिए कतरनाक हो सकता है इसलिए अगर आप अंकुरित अनाज सुबह नाश्ते में खाऐंगे तो अच्छा होगा.

अंकुरित अनाज को स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. अंकुरित अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होता है इसीलिए हेल्दी रहने के लिए अंकुरित अनाज का सेवन बहुत जरूरी है अनाज अंकुरित होने के बाद उसमें विटामिन डी सहित मिलिरल और विटामिन का स्तर बढ़ जाता है. इसके अलावा प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ जाती है. अंकुरित होने की प्रक्रिया के दौरान, फलियों में कुछ संग्रहित स्टार्च का उपयोग छोटे पत्तों और जड़ों के निर्माण के लिए और विटामिन सी के निर्माण में किया जाता है.

अगर आप बहुत समय से बढ़ते वजन से परेशान है तो जल्द से जल्द अंकुरित अनाज को अपने खाने में शामिल जरुर करें. वजन और पेट संबंधी किसी भी समस्या के लिए अंकुरित काफी असरकारक होते है. अंकुरित अनाज एंटीऔक्सीडेंट और विटामिन ए,बी,सी, ई से भरपूर होता है. इतना ही नहीं इसमें फास्फोरस, आयरन, कैल्शियम, जिंक और मैग्नीशियम जैसी पौष्टिक तत्व भी होते हैं.

नाश्ते है किन किन अनाज को करें अंकुरित

आमतौर पर अंकुरित अनाज नाश्ते के रूप में लिया जाना चाहिए.आपको नाश्ता हैवी करना चाहिए.ऐसे में आप अंकुरित अनाज से नाश्ता करेंगे तो आपको बहुत फायदा होगा. इतना ही नहीं आप यदि सोयाबीन, काले चने, मूंग दाल और  मोंठ को अंकुरित करके खाएंगे तो इन खाघ पदार्थों में मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी हो जाएगी.

अंकुरित करें डाइजेशन को दूरुस्त

अंकुरित अनाज खाने से आपकी पेट संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं. फाइबर युक्त रेशेदार अंकुरित अनाज खाने से आपका पाचनतंत्र मजबूत बनता है.

चुकंदर खाने से कम होता है हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राल, जानें 5 फायदे

चुकंदर का टेस्ट भले ही आपको पसंद न हो पर इससे होने वाले फायदे आपको जरूर हैरान कर देंगे. जी हां, चुकंदर का टेस्ट हर किसी को पसंद नहीं आता है. लेकिय ये आपके सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. तो आइए जानते हैं, चुकंदर खाने के क्या लाभ है.

  1. कैंसर से बचा सकता है चुकंदर

चुकंदर के जूस में बेटालेन होता है जो एक घुलनशील एंटीआक्सीडेंट हैं. एक शोध के अनुसार, बेटालेन में कीमो-निवारक प्रभाव होते हैं जो कैंसर की घातक कोशिकाओं को फैलने से रोकते हैं. बेटालेन फ्री रेडिकल्स पर भी काम करता है.

2. वजन कम करता है

चुकंदर के जूस में कैलोरी बहुत कम होती है और फैट बिल्कुल भी नहीं होता है. ये वजन को बढ़ने नहीं देता है. सुबह की शुरूआत चुकंदर के जूस से करने से आप पूरे दिन एक्टिव रहते हैं.

3. ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है

चुकंदर का जूस हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग रोजाना 250 मिलीलीटर चुकंदर का जूस पीते हैं, उनका सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर दोनों कम होता है. चुकंदर के रस मे नाइट्रेट होता है जो रक्त वाहिकाओं को फैलाता है जिससे खून का दबाव कम पड़ता है.

4. कोलेस्ट्राल को कम करता है

अगर आपका कोलेस्ट्राल ज्यादा रहता है तो अपनी डाइट में चुकंदर का जूस जरूर शामिल करें. चुकंदर के जूस में फ्लेवोनोइड्स और फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जो बैड कोलेस्ट्राल को कम करते हैं और गुड कोलेस्ट्राल को बढ़ाते हैं.

5. लिवर को ठीक रखता है

लिवर को ठीक रखता है- खराब लाइफस्टाइल, शराब के अत्यधिक सेवन से और ज्यादा जंक फूड खाने से लिवर खराब हो डाता है. चुकंदर में बीटेन एंटीआक्सीडेंट होता है जो लिवर में फैट जमा होने से रोकता है. ये लिवर को विषाक्त पदार्थों से भी बचाता है.

अगर आप भी करते हैं रक्तदान तो जरूर ध्यान रखें इन बातों का

आज के समय में ब्लड डोनेट (रक्तदान) करके आप दूसरों की मदद तो करते ही हैं साथ ही आपको भी इसके बहुत फायदे होते हैं. कई लोगों को लगता है कि रक्तदान करने के बाद शरीर में कमजोरी आ जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. रक्तदान करने के 21 दिन बाद यह दोबारा बन जाता है. इसलिए रक्तदान करने से पहले घबराए नहीं बल्कि रक्तदान करते समय इन बातों का खास खयाल रखें.

– कोई भी हेल्दी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है. बात करें पुरुष की तो वह 3 माह में एक बार रक्तदान कर सकते हैं वहीं महिलाएं 4 माह में एक बार ब्लड डोनेट कर सकती हैं.

– एक बार में किसी के शरीर से भी 471ml से ज्यादा रक्त नहीं लिया जा सकता.

– अगर आप रक्तदान करने के योग्य हैं और रक्तदान करने की सोच रही हैं तो एक दिन पहले से स्मोक करना बंद कर दें. इसके अलावा रक्तदान करने के तीन घंटे बाद ही धुम्रपान करें.

– रक्तदान करने के बाद हर तीन घंटे में हैवी डाइट लें. इसमें आप ज्यादा से ज्यादा हैल्दी खाना ही लें. आप चाहे तो फल खा सकती हैं.

– ज्यादातर रक्तदान करने के बाद रक्तदाता को खाने के लिए जूस, चिप्स, फल आदि दिए जाते हैं, इन्हें लेने से परहेज नहीं करना चाहिए.

– रक्तदान करने के 12 घंटे बाद तक आप हैवी एक्सरसाइज न करें. खून देने के तुरंत बाद गर्मजोशी अच्छी नहीं होती. पहले अपने शरीर में खून के संचार को नौर्मल होने दें.

– रक्तदान करने से 48 घंटे पहले से शराब का सेवन बंद कर दें. अगर आपने 48 घंटों के बीच शराब का सेवन किया है तो आप ब्लड डोनेट नहीं कर सकते हैं

– रक्तदान करने के बाद अगर आप हेल्दी डाइट न लेकर तरल पदार्थ लेती रहेंगी, तो इससे आपको कमजोरी महसूस होगी.

– लोगों को गलतफहमी होती है कि रक्तदान करने से हीमोग्लोबिन में कमी आती है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है.

 

अगर आप भी हैं बवासीर के शिकार तो जरूर अपनाएं ये उपाय

बवासीर को पाइल्स या मूलव्याधि भी कहते हैं. यह एक खतरनाक बीमारी है. मलाशय के आस-पास की नसों में सूजन की वजह से बवासीर की समस्या होती है. इस बीमारी में जब मलत्याग किया जाता है तब अत्यधिक पीड़ा और फिर रक्त स्राव की समस्या होती है. बवासीर दो तरह की होती है. अंदरूनी और बाहरी बवासीर. अंदरूनी बवासीर में नसों की सूजन दिखाई नहीं देती जबकि बाहरी बवासीर में यह गुदा के बिल्कुल बाहर दिखाई देती है.

कारण

कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है. अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है. जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो या भारी वजन उठाने पड़ते हों उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है. कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है. इसकी एक प्रमुख वजह खान पान की अनियमितता का होना भी है.

उपचार

हम आपको यहां कुछ घरेलू उपाय के बारें में बताने जा रहे हैं, जिसके इस्तेमाल से बवासीर से पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सकता है. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

छाछ और जीरा

दो लीटर छाछ में पचास ग्राम जीरा पीसकर मिला लें और जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह यह मिश्रण पिएं. ऐसा करने पर आपको तीन से चार दिन के अंदर ही लाभ दिखने लगेगा. आप छाछ की जगह पानी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इसके लिए एक गिलास पानी में आधा चम्मच जीरा पाउडर मिलाकर पिएं. यह बवासीर को जल्द से जल्दी ठीक करने का एक बेहतरीन उपाय है.

इसबगोल

रात में सोते समय एक गिलास पानी में दो चम्मच इसबगोल की भूसी डालकर पिए. इसबगोल की भूसी खाने से पेट साफ रहता है और मल की कठोरता कम होती है. इससे बवासीर में दर्द नहीं होता.

बड़ी इलायची

50 ग्राम बड़ी इलायची लेकर उसे तवे पर भून लीजिए. जब इलायची लाल हो जाए तब इसे तवे पर से उतारकर ठंडा कर लीजिए और पीसकर रख लीजिए. हर रोज सुबह खाली पेट इस चूर्ण के साथ पानी पीजिए. यह बवासीर को जड़ से मिटाने में सहायक है.

किशमिश

रात को सोते समय सौ ग्राम किशमिश को पानी में भिगो दें. सुबह उठकर पानी में ही इसे मसल डालें और रोज इस पानी का सेवन करें. बवासीर रोग में यह बेहद फायदेमंद नुस्खा है.

जामुन

खूनी बवासीर में जामुन और आम की गुठली बड़े काम की चीज होती है. जामुन और आम की गुठली के अंदर का भाग निकालकर इसे धूप में सुखा लें और इसका चूर्ण बना लें. अब रोजाना एक चम्मच चूर्ण को गुनगुने पानी या फिर छाछ के साथ पिएं. बवासीर में बेहद लाभ मिलेगा.

इसके अलावा तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात मात्रा में सेवन करें. तली हुई चीजें, मिर्च-मसालों युक्त गरिष्ठ भोजन न करें.

आखिर शराब क्यों है खराब, पढ़ें खबर

शराब न केवल स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है बल्कि यह अपराध को भी बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण है. शराब पीने के बाद व्यक्ति का दिल और दिमाग अच्छे और बुरे में फर्क करना भूल जाता है. शराब की वजह से व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है. ऐसे में वह अपने से बड़ों से अभद्रता से बात करने में भी नहीं हिचकता.

शराब की लत की वजह

अकसर शौकिया तौर पर शराब पीने की शुरुआत होती है जो धीरेधीरे उन की आवश्यकता बन जाती है. शराब की लत का एक बड़ा कारण घरेलू माहौल भी है, क्योंकि जब घर का कोई बड़ा सदस्य घर के दूसरे सदस्यों व बच्चों के सामने खुलेआम शराब पीता है या पी कर आता है तो अनुभव लेने की इच्छा के चलते पत्नी, बच्चे व घर के अन्य सदस्य भी शराब पीने के आदी हो सकते हैं.

शराब की लत लगने का एक कारण गलत संगत भी है. अगर व्यक्ति शराब पीने वाले साथियों के साथ ज्यादा समय बिताता है तो उसे शराब की लत पड़ सकती है. तमाम लोग शराब को अपना सोशल स्टेटस मानते हैं.

शराब की लत लगने की एक बड़ी वजह निराशा, असफलता व हताशा को भी माना जाता है, क्योंकि अकसर लोग इन चीजों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं जो बाद में बरबादी का कारण भी बनता है.

पढ़ाई व कैरियर

किशोरों व युवाओं में नशे की लत दिनोदिन बढ़ती जा रही है. इस कारण शराब उन की पढ़ाई व कैरियर के लिए बाधा बन जाती है.

सामाजिक व आर्थिक नुकसान

शराबी व्यक्ति की समाज में इज्जत नहीं होती, शराब की लत के चलते परिवार में सदैव आर्थिक तंगी बनी रहती है, जिस वजह से परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट आम बात हो जाती है. शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी स्थायी जमा पूंजी भी दांव पर लगा देता है, जिस से बच्चों की पढ़ाई व कैरियर भी प्रभावित होता है.

स्वास्थ्य का दुश्मन

स्वास्थ्य के लिए शराब जहर की तरह है जो व्यक्ति को धीरेधीरे मौत की तरफ ले जाती है. मानसिक व नशा रोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के अनुसार शराब में पाया जाने वाला अलकोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है, जिस की वजह से 200 से भी अधिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है.

अत्यधिक शराब पीने से शरीर में विटामिन और अन्य जरूरी तत्त्वों की कमी हो जाती है. शराब का लगातार प्रयोग पित्त के संक्रमण को बढ़ाता है, जिस से ब्रैस्ट और आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

शराब में पाया जाने वाला इथाइल अल्कोहल लिवर सिरोसिस की समस्या को जन्म देता है जो बड़ी मुश्किल से खत्म होने वाली बीमारी है. इथाइल अलकोहल की वजह से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, जिस से लिवर बढ़ जाता है और ऐसी अवस्था में भी व्यक्ति अगर पीना जारी रखता है तो अल्कोहल हैपेटाइटिस नाम की बीमारी लग जाती है.

सैक्स पर असर

जिला अस्पताल बस्ती के चिकित्सक डा. बी के वर्मा के अनुसार शराब सैक्स के लिए जहर है. लोग सैक्स संबंधों का अधिक मजा लेने के चलते यह सोच कर शराब पीते हैं कि वे लंबे समय तक आत्मविश्वास के साथ सहवास कर पाएंगे, लेकिन लगातार शराब के सेवन के चलते प्राइवेट पार्ट में तनाव आना कम हो जाता है, जिस का नतीजा नामर्दी के रूप में दिखता है. कामेच्छा की कमी के साथ ही महिलाओं की माहवारी अनियमित हो जाती है.

सड़क दुर्घटना का कारण

अकसर सड़क दुर्घटना का सब से बड़ा कारण शराब पी कर गाड़ी चलाना होता है, क्योंकि शराब पीने के बाद गाड़ी ड्राइव करने वाले का दिमाग उस के वश में नहीं रहता और ड्राइव करने वाला व्यक्ति गाड़ी से नियंत्रण खो देता है और दुर्घटना हो जाती है.

अपराध को बढ़ावा

शराब का नशा दुनिया भर में होने वाले अपराधों की सब से बड़ी वजह माना जाता है. अकसर शराबी व्यक्ति नशे में अपने होशोहवास खो कर ही अपराध को अंजाम देता है.

ऐसे पाएं छुटकारा

शराब की लत का शिकार व्यक्ति इस से होने वाली हानियों को देखते हुए अकसर शराब को छोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन प्रभावी कदम की जानकारी न होने की वजह से वह शराब व नशे से दूरी नहीं बना पाता है. यहां दिए उपायों को अपना कर व्यक्ति शराब जैसी बुरी लत से छुटकारा पा सकता है :

– अगर आप शराब की लत के शिकार हैं और इस से दूरी बनाना चाहते हैं तो इस को छोड़ने के लिए खास तिथि का चयन करें. यह तिथि आप की सालगिरह वगैरा हो सकती है. छोड़ने से पहले इस की जानकारी अपने सभी जानने वालों को जरूर दें.

– अगर आप का बच्चा शराब का शिकार है तो मातापिता को चाहिए कि उस की गतिविधियों पर नजर रखें और समय रहते किसी नशामुक्ति केंद्र ले जाएं और मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें.

– ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां शराब की दुकानें या शराब पीने वाले लोग मौजूद हों, क्योंकि ऐसी अवस्था में फिर से आप की शराब पीने की इच्छा जाग सकती है.

– कमजोरी, उदासी या अकेलापन महसूस होने की दशा में घबराएं नहीं बल्कि अपने भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने अनुभवों को बांटें और कठिनाइयों से उबरने की कोशिश करें.

– शराब छोड़ने के लिए आप इस बात को जरूर सोचें कि आप ने शराब की वजह से क्या खोया है और किस तरह की क्षति पहुंची है. इस से न केवल आप शराब से दूरी बना सकते हैं बल्कि खराब हुए संबंधों को पुन: तरोताजा भी कर सकते हैं.

– शराब छोड़ने से उत्पन्न परेशानियों से निबटने के लिए किसी अच्छे चिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना न भूलें.

जाने लड़कों के लिए क्यों जरुरी हैं स्किन की देखभाल

सुंदर और साफ दिखना किसे अच्छा नहीं लगता. आज कल सभी लोग खुद पर काफी ध्यान देते है जिसका एक कारण बढ़ता प्रदूषण भी है, भले ही कुछ देर के लिए आप बाहर जाए पर आपके चेहरे पर धूल की एक परत चढ़ जाती हैं जो आपकी स्किन के लिए खतरनारक है. लड़कियां तो समय-समय पर अपनी स्किन में काम करा लेती है किसके चलते उनका चहरा साफ दिखता है. पर लड़के बस मुंह धोने के अलावा कुछ  देखभाल नहीं करते. जिसके कारण चेहरे पर झुर्रियों का आना, पिंपल्स या फिर औयली त्वचा हो जाती है. इसलिए आज हम लेकर आए ऐसे ही कुछ टिप्स जिसे यूज कर आप अपनी स्किन का ख्याल रख सकते हैं.

टेस्टोस्टेरौन हार्मोन

टेस्टोस्टेरौन हार्मोन की अधिकता होने की वजह से पुरुषों की त्वचा महिलाओं की त्वचा से ज्यादा औयली होती है. उनके चेहरे पर औयल की मात्रा लगातार बढ़ती है जिस वजह से कई स्किन संबंधी समस्याएं जन्म लेती हैं. ऐसे में जरूरी है कि वो अपने चेहरे को दिन में दो बार प्राकृतिक क्लीनजर का इस्तेमाल कर या किसी नेचुरल साबुन से धुलें. यह चेहरे पर औयल प्रोडक्शन को बेलेंस करती है.

आंखों के आस-पास रखे खास ध्यान

आंखों के आस-पास की त्वचा बेहद संवेदनशील होती है. इसकी बारीकी से देखभाल की जरूरत होती है. आंखों के चारों ओर की त्वचा को कोमल और नम रखने से सूजन और झुर्रियों की समस्या नहीं होती. इसके लिए एक नेचुरल आई सीरम का उपयोग किया जा सकता है.

झुर्रियों को रोकने के लिए करें अंडे यूज

अगर आपके चेहरे पर, गले पर, या फिर बांहों पर झुर्रियां पड़ गई हैं तो इससे निजात पाने के लिए आप अंडे का इस्तेमाल कर सकते हैं. अंडे की सफेदी को फेंटकर उसमें थोड़ा नींबू निचोड़ लें. अब इस फेस पैक को आंखों के हिस्से को छोड़कर पूरे चेहरे पर,बांहों पर और गले पर लगाएं. दस मिनट बाद ठंडे पानी से इसे धो लें. अंडे की सफेदी त्वचा के खुले रोम छिद्रों को कसती है जिससे ढीली त्वचा में कसावट आती है.

मौइश्चराइजिंग क्रीम है बेहद जरुरी

चेहरे पर नमी बनाए रखना बेहद जरूरी होता है. मौइश्चराइजिंग क्रीम से त्वचा को सही मात्रा में नमी मिलती है और यह हाइड्रेटेड और स्वच्छ रहता है. इसके लिए नेचुरल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज्यादा बेहतर होता है. एलोवेरा का ताजा जेल इसके लिए सबसे बेहतर औप्शन है.

तो ये है कुछ घरेलू नुस्खे किसको इस्तेमाल कर आप भी अपनी स्किन को तरोताजा रख सकते हैं.

फ्लेवर्ड हुक्का है सिगरेट से भी ज्यादा नुकसानदायक, जानें कैसे

भारत में आज कल हर छोट बड़े शहरों और मौल्‍स में हुक्‍का बार या शीशा लाउंज पौपुलर हो रहे हैं. खासकर युवा वर्ग अकसर बार में हुक्के के कश लगाते दिख जाते हैं. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि हुक्का पीना सिगरेट पीने से ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. उनका मानना है कि हुक्के से खींचा जाने वाला तंबाकू पानी से होते हुए आता है इसलिए वह ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. लेकिन हाल ही सामने आई एक रिसर्च से पता चला है कि हुक्का भी सिगरेट के बराबर हार्ट को नुकसान पहुंचाता है. इससे दिल की बीमारी होने खतरा बढ़ जाता है.

वहीं ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का में जिस तंबाकू का इस्तेमाल होता है, उसमें कई तरह के अलग-अलग फ्लेवर का भी इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि आज कल युवा इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं. हुक्के का स्वाद बदलने के लिए उसमें फ्रूट सिरप मिलाया जाता है, जिससे किसी भी तरह का विटामिन नहीं मिलता. लोगों को लगता है कि हुक्के में मिलाया जाने वाला यह फ्लेवर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है.

इसके अलावा हुक्के में सिगरेट की ही तरह कार्सिनोजन लगा होता है जिससे कैंसर होने की संभावना प्रबल होती है. हुक्के का धुआं ठंडा होने के बाद भी नुकसान पहुंचाता है. यह हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवैस्कुलर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है.

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया की रिसर्च के मुताबिक हुक्के में इस्तेमाल किए जाने वाले हशिश (एक प्रकार का ड्रग) सेहत के लिए हानिकारक होता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लोग हुक्का पीते हैं उनकी धमनियां सख्त होने लगती हैं और हार्ट से संबंधित बारी होने का खतरा बढ़ जाता है.

शोधकर्ताओं के मुताबिक हुक्के में भी सिगरेट की तरह हानिकारक तत्व व निकोटीन पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए लोगों को यह मानना बंद कर देना चाहिए कि इसकी लत नहीं लग सकती. हुक्के में मौजूद तंबाकू में 4000 तरह के खतरनाक रसायन होते हैं. हुक्के के बारे में सच यही है कि इसका धुआं सिगरेट के धुएं से भी ज्यादा खतरनाक होता है.

अगर आप भी हैं पैनिक डिसऔर्डर के शिकार तो जरूर पढ़ें ये खबर

पैनिक डिसऔर्डर एक ऐसा मनोरोग है जिस में किसी बाहरी खतरे के बावजूद विभिन्न शारीरिक लक्षणों, मसलन, दिल की धड़कन का असामान्य हो जाना तथा चक्कर आना आदि के साथ लगातार और आकस्मिक रूप से रोगी आतंकित हो जाता है. ये आतंकित कर देने वाले दौरे, जो कि पैनिक डिसऔर्डर की पहचान हैं, तब आते हैं जब किसी खतरे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सामान्य मानसिक प्रक्रिया तथा कथित संघर्ष अनुपयुक्त रूप से जाग जाता है.

पैनिक डिसऔर्डर से ग्रस्त अधिकतर लोग अगले अटैक की संभावना को ले कर चिंतित रहते हैं और उन स्थितियों से बचने की कोशिश करते हैं जिन में उन के अनुसार यह भय का दौरा पड़ सकता है.

शुरुआती पैनिक अटैक

आमतौर पर पहला पैनिक अटैक कभी भी हो सकता है, जैसे कार चलाते हुए या काम के लिए जाते हुए. सामान्य गतिविधियों के दौरान एकाएक व्यक्ति डराने वाले तथा तकलीफदेह लक्षणों से ग्रस्त हो जाता है. ये लक्षण कुछ सैकंड तक जारी रहते हैं लेकिन कई मिनट तक भी यह स्थिति बनी रह सकती है. ये लक्षण लगभग एक घंटे के भीतर सामान्य हो जाते हैं. जिन लोगों पर यह दौरा पड़ चुका है वे बता सकते हैं कि उन्होंने किस तरह की बेचैनी के साथ यह डर महसूस किया था कि उन्हें कोई बहुत खतरनाक जानलेवा बीमारी हो गई है या फिर वे पागल हो रहे हैं.

ऐसे कुछ लोग जिन्हें एक पैनिक अटैक या फिर कभीकभार जिन का सामना इस दौरे से हुआ हो, उन में ऐसी किसी समस्या का विकास नहीं होता जो उन के जीवन को प्रभावित करे लेकिन दूसरों के लिए इस स्थिति का जारी रहना असहनीय हो जाता है. पैनिक डिसऔर्डर में आतंकित कर देने वाले दौरे जारी रहते हैं और व्यक्ति के मन में यह डर समा जाता है कि उसे अगले दौरे का सामना कभी भी करना पड़ सकता है.

यह भय जिसे अग्रिम बेचैनी या डर का खौफ कहते हैं, अधिकतर समय मौजूद रहता है और व्यक्ति के जीवन को गंभीर रूप से तब भी प्रभावित कर सकता है जब उस पर दौरा नहीं पड़ा हो. इस के साथसाथ उस के मन में उन स्थितियों को ले कर भयंकर फोबिया का जन्म हो जाता है जिन में उस पर दौरा पड़ा था.

उदाहरण के लिए अगर किसी को गाड़ी चलाते वक्त पैनिक अटैक हुआ हो तो वह आसपास जाने के लिए भी गाड़ी चलाने में डरता है. जिन लोगों में आतंक से जुड़े इस फोबिया का विकास हो गया हो वे उन स्थितियों से बचने की कोशिश करने लगते हैं जिन के बारे में उन्हें आशंका रहती है कि उन को दौरा पड़ सकता है. परिणामस्वरूप वे अपनेआप को लगातार सीमित करते चले जाते हैं. उन का काम प्रभावित होता है क्योंकि वे बाहर निकलना नहीं चाहते और न ही समय पर अपने काम पर पहुंचते हैं.

इन दौरों की वजह से व्यक्ति के संबंध भी प्रभावित होते हैं. नींद पर असर पड़ता है और रात में दौरा पड़ने की स्थिति में व्यक्ति आतंकित हो कर जाग जाता है. यह अनुभव इतना हिला देने वाला होता है कि कई लोग सोने से भी डरने लगते हैं और थकेथके से रहते हैं. दौरा न पड़े, तब भी डर की वजह से नींद प्रभावित होती है.

इस सिलसिले में डाक्टर से मिलने के बाद जब यह पता चल जाता है कि जीवन पर खतरे की कोई स्थिति नहीं है तब भी इस दौरे से प्रभावित बहुत से लोग आतंक में डूबे रहते हैं. वे बहुत से चिकित्सकों के पास दिल की बीमारी या सांस की समस्या के इलाज के लिए भी जाया करते हैं. इस बीमारी के लक्षणों की वजह से बहुत से मरीज यह समझते हैं कि उन्हें कोई न्यूरोलौजिकल बीमारी या फिर कोई गंभीर गैस्ट्रौइनटैस्टाइनल समस्या हो गई है. कुछ मरीज कई चिकित्सकों से मिल कर महंगी और अनावश्यक जांच करवाते हैं ताकि यह मालूम किया जा सके कि इन लक्षणों की वजह क्या है.

चिकित्सकीय सहायता की यह खोज लंबे समय तक भी जारी रह सकती है क्योंकि इन मरीजों की जांच करने वाले बहुत से चिकित्सक पैनिक डिसऔर्डर की पहचान करने में असफल रहते हैं. जब चिकित्सक बीमारी की थाह पा भी लेते हैं तब भी कभीकभी वे इस की व्याख्या करते हुए यह सलाह दे देते हैं कि खतरे की कोई बात नहीं है और इलाज की कोई जरूरत नहीं है.

उदाहरण के लिए, चिकित्सक यह कह सकते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है. आप को सिर्फ पैनिक डिसऔर्डर अटैक हुआ था. हालांकि इस का उद्देश्य सिर्फ हौसलाअफजाई होता है, फिर भी ये शब्द उस चिंतित मरीज के लिए बेहद निराशाजनक होते हैं जोकि बारबार इस तरह के आतंकित करने वाले दौरों की चपेट में रहता है. मरीज को यह बताया जाना जरूरी है कि चिकित्सक अशक्त बना देने वाले पैनिक डिसऔर्डर से होने वाली परेशानी को समझते हैं और उन का मानना है कि इस का इलाज प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.

क्या है इलाज

चिकित्सीय इलाज पैनिक डिसऔर्डर से पीडि़त मरीजों में 70 से 80 प्रतिशत को राहत पहुंचा सकता है और शुरुआती इलाज इस रोग को एगोराफोबिया की स्थिति तक नहीं पहुंचने देता. किसी भी इलाज की शुरुआत से पूर्व मरीज की पूरी चिकित्सकीय जांच की जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि हताशा के इन लक्षणों की और कोई वजह तो नहीं है.

ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि थायराइड हार्मोन से खास तरह की ऐपिलैप्सी और हृदय संबंधी समस्या बढ़ जाती है और पैनिक डिसऔर्डर से मिलतेजुलते लक्षण पैदा हो सकते हैं.

कौगनिटिव बिहेवियरल थैरेपी कही जाने वाली साइकोथैरेपी के प्रयोग और दवाओं के सेवन द्वारा पैनिक डिसऔर्डर का इलाज किया जा सकता है. इलाज का चयन व्यक्तिगत जरूरतों तथा प्राथमिकताओं के मुताबिक किया जाता है.

पैनिक अटैक समस्या नहीं

35 वर्षीय रोहण बैंक एग्जीक्यूटिव है. वह काम के लिए रोज दादर स्टेशन से मुंबई सीएसटी जाता था. एक दिन जब वह काम पर जा रहा था तो सीएसटी से पहले के ही स्टेशन पर उतर गया. जब वह वापस उस ट्रेन में नहीं चढ़ पाया तो दूसरी ट्रेन का सहारा ले कर औफिस लेट पहुंचा. बौस ने उसे डांटा तो वह वहीं बेहोश हो कर गिर पड़ा. थोड़ी देर बाद सबकुछ सामान्य हो गया. पर इस के बाद से जब भी बारिश होती या ट्रेन लेट आती, भले औफिस में कोई कुछ नहीं कहता, पर वह पैनिक हो जाता. उसे बेहोशी छाने लगती. दिनप्रतिदिन उस का परफौर्मेंस बिगड़ने लगा. धीरेधीरे नौबत ऐसी आ गई कि वह ट्रेन में भीड़ देख कर घबराने लगता. बैठने की जगह न हो तो परेशान हो जाता. ठंड में भी पसीने छूटने लगते. उस का खानापीना कम होने लगा. वह बीमार दिखने लगा. उस की पत्नी सीमा ने कई डाक्टरों से सलाह ली. सभी ने जांच की पर कोई समस्या नहीं दिखी. किसी दोस्त ने मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी. सीमा, रोहण को डा. पारुल टौक के पास ले गई. डाक्टर ने करीब 1 महीने की काउंसलिंग और दवा के जरिए रोहण को ठीक किया.

ऐसी ही एक और घटना है. 45 वर्षीय अनुराधा को हमेशा छाती में दर्द की शिकायत रहती थी. घबराहट में उसे चक्कर आने लगते थे और वह कई बार बेहोश हो कर गिर पड़ती थी. उस के पति धीरेन को अपनी पत्नी को ले कर काफी चिंता सताने लगी. उन्होंने सब से पहले कार्डियोलौजिस्ट से संपर्क किया. जांच के बाद डाक्टर को कोई भी समस्या नहीं दिखी. धीरेन पेट के डाक्टर के पास भी गए क्योंकि उन की पत्नी को पेटदर्द, बारबार दस्त का लगना आदि समस्या थी. वहां भी जांच में कुछ नहीं निकला. फिर फैमिली फिजीशियन की सलाह पर वे मनोचिकित्सक के पास गए. वहां पता चला कि अनुराधा पैनिक अटैक की शिकार है.

पैनिक अटैक के बारे में मुंबई के फोर्टिस अस्पताल और निमय हैल्थकेयर की मनोचिकित्सक डा. पारुल टौक कहती हैं, ‘‘इस तरह की समस्या किसी भी उम्र की महिला, पुरुष या युवा को हो सकती है. यही अटैक आगे चल कर फोबिया या डिप्रैशन का कारण बनता है. यह कोई बड़ी बीमारी नहीं है. इसे आसानी से और बिना अधिक खर्च किए मरीज को ठीक किया जा सकता है. लक्षणों का पता चलते ही तुरंत किसी मनोचिकित्सक से मिल कर इलाज करवाएं.’’

पैनिक अटैक आने पर क्या करें

अगर आप के परिवार में या आप के आसपास किसी व्यक्ति को पैनिक अटैक आए तो घबराएं नहीं, बल्कि उस कठिन परिस्थिति में आप उस व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं

–       शांत रहें और पीडि़त व्यक्ति की शांत रहने में सहायता करें.

–       अगर वह व्यक्ति एंग्जाइटी की दवा लेता है तो उसे यह दवा तुरंत दें.

–       उस की समस्या को तुरंत और संक्षेप में समझने का प्रयास करें.

–       उस व्यक्ति को दोनों हाथ सिर के ऊपर सीधे उठाने में सहायता करें.

–       पैनिक होने की स्थिति में व्यक्ति को टहलाने ले जाएं, स्ट्रैचिंग या कूदने को कहें.

–       पीडि़त को धीरेधीरे सांस लेने को कहें और इस में उस की सहायता करें. नाक से लंबी सांस लें और मुंह से छोड़ें.

–       तुरंत किसी पास के अस्पताल में ले जाएं.

–       व्यक्ति को पैनिक अटैक से बचाए रखने के लिए उस को प्रोत्साहित करते रहें.

–       यदि स्थिति बिगड़ जाए तो उसे विश्वास दिलाएं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है.

–       मातापिता हमेशा बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाते रहें. जैसे कुछ भी अच्छा काम करने पर तारीफ करें या कहें, हमें तुम पर नाज है.

–       नियमित तौर पर हैड मसाज देते रहें.

–       व्यक्ति से हमेशा अपने दिल की बात खुल कर बताने को कहें.

बौडी टोंड तो स्ट्रौंग होगा बौंड

लड़का हो या लड़की या फिर औरत हो या मर्द, सभी के लिए ऐक्सरसाइज करना फायदेमंद रहता है. ऐक्सरसाइज पुराने रोगों की रोकथाम से ले कर मौडर्न लाइफस्टाइल को ठीक करने तक में लाभदायक होती है. यह तनाव और घबराहट से मुक्ति दिलाती है. ऐक्सरसाइज आप के वजन पर भी नियंत्रण रखती है.

अगर आप रोज 30 मिनट तक  ऐक्सरसाइज करें तो उस के आप को ये लाभ होंगे :

  • दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम होगा.
  •  वजन नियंत्रण में रहेगा.
  • ऐक्सरसाइज कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित रखेगी.
  • टाइप टू डायबिटीज और कई तरह के कैंसर के खतरे को कम करेगी.
  • ब्लडप्रैशर कम होगा.
  • हड्डियां मजबूत होंगी और मांसपेशियों के कमजोर होने का खतरा कम होगा.
  • अधिक ऊर्जा महसूस करेंगे, खुश रहेंगे और नींद अच्छी आएगी.

तनाव से मुक्ति

इस के अलावा वर्कआउट नकारात्मक विचारों और टैंशन को भी कम करता है. अगर आप फिट हैं तो मन भी खुश रहेगा.

ऐक्सरसाइज सैरोटोनिन, ऐंडोर्फिन और स्ट्रैस के प्रभाव को कम कर मस्तिष्क के रसायन स्तर को संतुलित करती है.

जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं तो आप का शरीर फिट रहने के साथसाथ सही आकार में भी रहता है, जिस से आप के पार्टनर का ध्यान आप की ओर सहजता से खिंचता है.

आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी

पूरे दिन की थकान के बाद जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं, तो आप रिलैक्स हो जाते हैं. इस से सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बढ़ता है.

जिस तरह दांतों को ठीक रखने के लिए ब्रश करना जरूरी होता है उसी तरह फिट बौडी और सकारात्मक सोच के लिए कम से कम सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट तक ऐक्सरसाइज करना आवश्यक है.

शारीरिक रूप से फिट व्यक्ति की सैक्सुअल लाइफ भी अच्छी रहती है, क्योंकि ऐक्सरसाइज से आप की मांसपेशियां टोंड रहती हैं.

एक शोध में पता चला है कि रोज ऐक्सरसाइज करने वाले दंपती का आपसी रिश्ता अधिक मजबूत होता है. अधिक उम्र तक वे एकदूसरे को आकर्षक मानते हैं.

इस तरह के ऐक्सरसाइज में ऐरोबिक, कुछ दूर पैदल चलना सब से अधिक प्रभावशाली होती है. ऐक्सरसाइज से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और व्यक्ति काफी समय तक अपनेआप को युवा महसूस करता है. पूरे दिन में आप आसानी से 30 मिनट ऐक्सरसाइज के लिए निकाल सकते हैं.

लड़कियों के लिए तो ऐक्सरसाइज खासतौर पर फायदेमंद रहती है. इस से तनाव, ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल जैसी कई समस्याओं से राहत मिलती है.

लेजर दिला रहा है चश्मे से छुटकारा…जानें कैसे

मायोपिया में आईबौल का आकार बढ़ जाता है जिस से रेटिना पर सामान्य फोकस पहुंचने में दिक्कत होती है जिसे चश्मे या लेंस के द्वारा ठीक किया जा सकता है.

आई बौल का आकार बढ़ने से फोकस सामान्य से थोड़ा पीछे शिफ्ट हो जाता है जिस से धुंधला दिखाई देने लगता है. आईबौल का आकार हम बदल नहीं सकते इसलिए लेज़र से कार्निया के उतकों को रिशेप कर के उस के कर्व को थोड़ा कम कर फोकस को शिफ्ट कर देते हैं.

लेसिक लेजर

आंखों की समस्याओं के लिए लेसिक लेजर एक उच्चतम और सफल तकनीक है. इस का पूरा नाम लेजर असिस्टेड इनसीटू केरेटोमिलीएसिस है जो मायोपिया के इलाज की एक बेहतरीन तकनीक है. इस तकनीक का प्रयोग दृष्ट‍ि दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है. यह उन लोगों के लिए बेहद प्रभावी है जो चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस लगाते हैं.

लेसिक लेज़र सर्जरी में फैक्टो लेज़र मशीन के द्वारा कार्निया की सब से उपरी परत जिसे फ्लैप कहते हैं को हटा दिया जाता है. अब इस के नीचे स्थित उतकों पर लेज़र चला कर उन के आकार को बदला जाता है ताकि वो रेटिना पर ठीक तरह से लाइट को फोकस कर सके. उतकों को ठीक करने के पश्चात कार्निया के फ्लैप को वापस उस के स्थान पर रख दिया जाता है और सर्जरी पूरी हो जाती है.

लेसिक लेज़र को विश्व की सब से आसान सर्जरी माना जाता है. केवल कुछ सेकंड्स तक एक लाइट को देखना होता है और ऑपरेशन के तुरंत बाद दिखाई देने लगता है. -1 से -8 नंबर तक के लिए यह बहुत उपयोगी है लेकिन उस से अधिक के लिए यह तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती है. +5 नंबर तक भी इस के अच्छे परिणाम मिल जाते हैं . इसे रिस्क फ्री सर्जरी माना जाता हैं.

लेसिक लेज़र की प्रक्रिया

लेसिक लेज़र 3 दिन का प्रोसेस है. पहले दिन डॉक्टर यह जांच करते हैं कि आप लेज़र सर्जरी के लिए फिट हैं या नहीं. दूसरे दिन सर्जरी की जाती है और तीसरे दिन फॉलोअप लिया जाता है. इस प्रक्रिया के लिए तीनों चरण ही महत्वपूर्ण हैं क्यों कि इन के बिना बेहतर परिणाम नहीं मिलते हैं.

प्री-लेज़र चेक-अप

लेज़र सर्जरी के पहले प्री-लेज़र चेक-अप किया जाता है. इस में दो से तीन घंटे का समय लग सकता है क्यों कि 6-8 टेस्ट किए जाते हैं. जिन में विज़न टेस्ट, ड्राय आईस. टोपोग्रॉफी, कार्नियल थिकनेस, कार्नियल मेपिंग, आई प्रेशर आदि सम्मिलित हैं. डायलेशन के लिए आई ड्रॉप डाली जाती है, जिस से दो-तीन घंटे तक आप को थोड़ा धुंधला दिखाई दे सकता है.

लेसिक सर्जरी के पहले एंटी-बायोटिक ड्रॉप दी जाती है जिसे सर्जरी के एक दिन पहले आप को दिन में छह बार डालना होता है.

लेज़र सर्जरी

जब आप को सर्जरी के लिए फिट घोषित कर दिया जाता है तभी अगले दिन लेज़र सर्जरी की जाती है. यह केवल 5-10 सेकंड का काम है, लेकिन आप को 1-2 घंटे लग सकते हैं क्यों कि ऑपरेशन के पहले और बाद में कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं. जब सर्जरी कराने के लिए जाएं तो नहा कर, सिर धो कर जाएं क्यों कि सर्जरी के पश्चात आप को सिर नहीं झुकाना है. कोई मेकअप, कॉस्मेटिक्स, और परफ्यूम न लगाएं. अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार को साथ ले कर जाएं क्यों कि सर्जरी के कुछ घंटो बाद तक धुंधला दिखाई दे सकता है.

सर्जरी के पश्चात ग्लेयर से बचने के लिए अपने साथ डार्क गॉगल जरूर ले कर जाएं.

फौलो-अप

तीसरे दिन फौलो-अप लिया जाता है. इस में डाक्टर आप का विज़न चेक करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि सर्जरी कितनी सफल रही है. लेज़र सर्जरी के पश्चात पहला फौलो-अप बहुत जरूरी है.

कौन सी तकनीक है बेहतर

लेसिक लेज़र के लिए सात अलगअलग तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं. ब्लेडलेस लेसिक, स्माइल और कंटूरा विज़न को सब से अच्छा माना जाता है क्यों कि इन में परिणाम बहुत अच्छे मिलते हैं. लेकिन अगर आप का बज़ट कम है तब भी आप को एसबीके क्यु तो कराना ही चाहिए.

कौन करा सकता है लेसिक लेज़र

1 .जिन की उम्र 18 वर्ष से अधिक है क्यों कि इस उम्र तक आतेआते ग्रोथ हार्मोन्स का स्त्राव रूक जाता है और आईबौल्स का आकार नहीं बढ़ता है.

२. पिछले छह महीने से चश्मे के नंबर में बदलाव न आया हो.

3 .महिला गर्भवती न हो. न ही बच्चे को स्तनपान करा रही हो.

4 . चश्मे के अलावा आंखों से संबंधित कोई दूसरी समस्या न हो.

5 .आप कोई ऐसी दवाई न ले रहे हों जो इम्यून सिस्टम को प्रभावित करती है जैसे कार्टिकोस्टेरौइड या इम्यूनो सपरेसिव ड्रग्स.

साइड इफेक्ट्स

सामान्यता यह सुरक्षित सर्जरी है और इसके कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हैं. लेकिन कईं लोगों में सर्जरी के पश्चात ये समस्याएं हो सकती हैं;

1. फोटोफोबिया (रोशनी को सहन न कर पाना).

2. आंखों से पानी आना.

3. आंखों में ड्रायनेस.

4. आंखों में लालपन.

5. आंखों में दर्द होना.

6. किसी भी इमेज के आसपास हैलोस दिखाई देना.

7. रात में गाड़ी चलाने में परेशानी आना.

8. विज़न में उतारचढ़ाव होना.

अधिकतर लोगों में यह समस्याएं अस्थायी होती हैं और 2-3 दिन में अपने आप ठीक हो जाते हैं. अगर 2-3 दिन बाद भी कोई समस्या हो तो डॉक्टर को दिखाएं. वैसे सर्जरी के पश्चात साइड इफेक्ट्स से बचने के लिए ल्युब्रिकेंटिंग ड्रौप दी जाती हैं, जिसे तीन महीने तक दिन में चार बार डालना होता है.

लेज़र कराने के बाद रखें सावधानी

1. पहले दो दिन ड्रायविंग न करें.

2. दिन में डार्क गौगल्स लगाएं.

3. शुरूआती 1-2 दिन घर के अंदर ही रहें.

4. पहले दिन ही आप कम्प्युटर पर काम कर सकते हैं, लेकिन अधिक देर तक न करें. 2 दिन में आप अपना सामान्य कार्य कर सकते हैं.

5. सर्जरी के पश्चात अगले दिन पहले फौलो-अप के लिए डॉक्टर के पास जरूर जाएं.

6. दो सप्ताह तक भारी काम जैसे जौगिंग, वेट लिफ्टिंग, स्विमिंग, जिमिंग आदि न करें,

7. दो सप्ताह तक कौस्मेटिक्स और मेकअप का इस्तेमाल न करें.

8. सर्जरी के पश्चात आपको ग्रीन शील्ड्स दी जाती हैं, जिन्हें आपको अगली दो रातों तक पहनना होता है.

कितना कारगर है लेसिक लेज़र

लेसिक लेज़र में रिस्क बहुत कम होता है. सर्जरी के पहले कईं जांचे करने के पश्चात जब आप को फिट घोषित किया जाता है तभी लेज़र सर्जरी की जाती है वर्ना आप को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. इस सर्जरी में कोई दर्द नहीं होता क्यों कि न तो कोई इंजेक्शन लगाया जाता है न ही ब्लेड का इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि पूरी सर्जरी में कोई चीरा नहीं लगाया जाता इसलिए टांके लगाने और बैंडेज की जरूरत नहीं पड़ती है.

आई 7 चौधरी आई सेंटर के डॉ राहिल चौधरी से की गई बातचीत पर आधारित…

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