सुप्रिया प्रियदर्शनी जहां एक ओर ऐक्टिंग में माहिर हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें गायन और एंकरिंग में भी महारत हासिल है. एक मुलाकात में उन के फिल्मी सफर पर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :
आप ने भोजपुरी सिनेमा में जुबली स्टार दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ के साथ सुपरहिट फिल्म ‘निरहुआ हिंदुस्तानी 2’ से डैब्यू किया था. इस के पहले आप किस प्रोफैशन में थीं?
मु?ो बचपन से गाने और नाचने का शौक था. मैं ने महज 7 साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया था और 10 साल की उम्र में दूरदर्शन मऊ और गोरखपुर में लोकगीत गाना शुरू किया था. उस समय सोशल मीडिया नहीं था, इसलिए उतनी मशहूरी नहीं मिल पाई थी.
लेकिन साल 2001 में मुझे पहला भोजपुरी सीरियल ‘पिया का घर प्यारा लगे’ में सैकंड लीड के तौर पर सरिता का किरदार मिला था. इस के बाद ईटीवी बिहार के ‘अंगना में आइल बहार’ समेत कई टैलीविजन सीरियलों में काम करने का मौका मिला.
कोरोना की दूसरी लहर आने के पहले आप की 3 फिल्मों का मुहूर्त हुआ था. अब देशभर में लौकडाउन के हालात हैं. ऐसे में इन फिल्मों पर क्या असर पड़ा?
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हालात सुधरने तक फिल्म का निर्माण रोक दिया गया है. लेकिन तीनों फिल्मों के प्रीप्रोडक्शन का काम चल रहा है. जैसे ही हालात संभलेंगे, हम शूटिंग स्टार्ट करेंगे.
आप ने कई टैलीविजन सीरियल में काम किया है. आप के हिसाब से सीरियल में काम करना कितना इंट्रैस्टिंग है और कितना चैलेंजिंग?
सच कहूं, तो टैलीविजन सीरियल में काम करना ज्यादा इंट्रैस्टिंग है, क्योंकि इस के जरीए आप ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हो पाते हैं. कभीकभी जब टैलीविजन सीरियल बहुत हिट हो जाते हैं, तो वे सालों तक प्रसारित होते रहते हैं.
उदाहरण के तौर पर, ‘तारक मेहता का उलटा चश्मा’, ‘सीआईडी’ जैसे तमाम धारावाहिक हैं, जिन के किरदार लोगों के दिलोदिमाग में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं.
अगर चैलेंज की बात करें, तो आप को छोटे परदे पर काम करने के लिए समय का और फिटनैस पर ज्यादा ध्यान देना होता है.
टैलीविजन सीरियल और भोजपुरी सिनेमा पर यह आरोप लगता रहता है कि प्रोड्यूसर आर्टिस्टों का पैसा मार लेते हैं. क्या यह आरोप सही है?
जी, यह बिलकुल सही बात है. भोजपुरी इंडस्ट्री में पैसे बकाया हो जाते हैं. निर्देशक और निर्माता सिर्फ हीरो और हीरोइन को ही अहमियत देते हैं, बाकी कलाकारों और टैक्नीशियनों का पैसा मार लेते हैं.
मुझे खुद बहुत सी जगह पर पैसा नहीं मिला और जब पैसा मांगा, तो बोले कि अगली फिल्म में मैनेज हो जाएगा. उस के बाद जब पैसे के लिए फोन करो, तो फोन उठाना बंद.
फिल्म ‘निरहुआ हिंदुस्तानी 2’ में निर्देशन मंजुल ठाकुर ने भी यही किया, जबकि प्रोडक्शन ‘निरहुआ’ का था. आप सोचिए, दोनों ही नाम बड़े हैं, पर आज तक पैसा नहीं दिया और न ही फोन उठाते हैं. जब सेठ लोगों का यह हाल है, तो बाकी छोटे प्रोडक्शन वालों का क्या हाल होगा.
भोजपुरी सिनेमा में अगर 10 दिन के काम का एग्रीमैंट किया जाता है, तो लोकेशन पर जाने पर 20 दिन तक भी काम करना पड़ता है, लेकिन पैसा 10 दिन के एग्रीमैंट का ही मिलता है. इस को ले कर जब प्रोड्यूसर से बात की जाती है, तो वे तो सीधा हाथ खड़ा कर देते हैं.
उन का कहना होता है कि आप को निर्देशक ने साइन किया है, इसलिए इस बारे में मु?ा से बात न करें. अगर आप हक के लिए ज्यादा बोलते हैं और आवाज उठाते हैं, तो लोग आप को इंडस्ट्री से आउट करने लगते हैं.
आप ग्लैमर इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं. आप का अनुभव क्या कहता है कि ग्लैमर इंडस्ट्री में महिलाओं को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
मेरे हिसाब से ग्लैमर इंडस्ट्री से जुड़ी लड़कियों पर हमेशा फिट और स्लिम दिखने का दबाव होता है. साथ ही, फैन और इंडस्ट्री से जुड़े लोग चाहते हैं कि ग्लैमर से जुड़ी सभी लड़कियां हमेशा जवान दिखें.
अगर आप इस कसौटी पर खरी नहीं उतर पाती हैं, तो आप को दरकिनार कर दिया जाता है, इसलिए खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए ऐक्सरसाइज और खानपान पर खास ध्यान देना पड़ता है.
आप को ऐक्टिंग के अलावा गायन, एंकरिंग और डांस में भी महारत हासिल है. यह सब आप ने कहां से सीखा?
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जी, मैं ने ऐक्टिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. संगीत मैं ने भातखंडे गोरखपुर से सीखा. उस समय स्कूल में भी सिखाया जाता था. इस के अलावा कथक मैं ने दिल्ली के श्रीराम कला केंद्र से व ‘पद्मश्री’ बिरजू महाराज के सानिध्य में लखनऊ घराना से 5 साल सीखा.
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच का आरोप कितना सही है?
कास्टिंग काउच हर इंडस्ट्री में है. पर भोजपुरी में ज्यादा है, वैसे, कास्टिंग काउच का मतलब है शोषण. और शोषण तो हर फील्ड में है. फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादा है. फिलहाल भोजपुरी में इसलिए ज्यादा है कि वहां ज्यादातर लोग पढ़ेलिखे नहीं हैं.
भोजपुरी गीतों में टाइटिल की नकल का चलन इन दिनों जोरों पर है. इस से रोज नएनए विवाद जन्म लेते हैं. भोजपुरी सिनेमा पर किस तरह का असर इस से पड़ सकता है?
अगर हम भोजपुरी सिनेमा और गीतों में नकल के चलन की बात करें, तो यह फिल्मों और एलबम दोनों में ही है. यहां चोरी का बोलबाला है, जिस से भोजपुरी सिनेमा का स्तर गिर रहा है और बिजनैस पर भी असर हो रहा है.
भोजपुरी फिल्मों में अंग प्रदर्शन को ले कर एक वर्ग विरोध करता है, तो वहीं एक दूसरा वर्ग भी है, जो सपोर्ट भी करता है. आप के हिसाब से क्या सही है?
सपोर्ट और विरोध की अहम वजह यह है, एक बड़ा वर्ग इस से जुड़ा है और एक वर्ग चाहता है कि भोजपुरी से अश्लीलता मुक्त हो, पर जो वर्ग अश्लीलता को सपोर्ट करता है, उस के द्वारा फिल्मों का निर्माण ज्यादा होता है. इस में हीरोहीरोइन, निर्मातानिर्देशक, संगीतकारगीतकार वगैरह सभी शामिल हैं.
जहां तक मेरे हिसाब से सही होने की बात है, तो फिल्मों में सीन फिल्म की कहानी के हिसाब से होने चाहिए, न कि जबरदस्ती डाले जाएं.
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