हम हर पल कई तरह की भावनाओं से ओतप्रोत होते हैं. इन्हीं भावनाओं के चलते हम अपनी तमाम गतिविधियों को अंजाम देते हैं. हमारे मन में हर क्षण पैदा होने वाली भावनाओं में कई बेहद सकारात्मक होती हैं तो कई नकारात्मकता से ओतप्रोत होती हैं. हममें और दूसरे जीवों में यही फर्क है कि हम इस बात को भली भांति जानते हैं कि यह भावना अच्छी है और यह बुरी. जबकि जानवर इस बात को नहीं जानते. इसीलिए उनके व्यवहार में बेहद तात्कालिकता होती है. जब वह किसी गतिविधि में संग्लन होते हैं, उसके पहले तक वे यह नहीं जानते कि अगले पल वह क्या करेंगे? जबकि इंसान न सिर्फ अपने आने वाली गतिविधियों को तय कर सकता है बल्कि पिछली गतिविधियों के बारे में भी ठहरकर सोच सकता है. साथ ही उनका ईमानदारी से मूल्याकंन भी कर सकता है.
इंसान के भावनापूर्ण होने का यूूं तो हर गतिविधि में असर पड़ता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर सेक्सुअल गतिविधियों पर पड़ता है. दरअसल सेक्स शरीर की नहीं बल्कि दिमाग की गतिविधि है. इसीलिए हम अगर भावनाओं में उत्तेजना महसूस नहीं करेंगे तो हमारा शरीर चाहे हाथी जितना क्यों न हो, बिल्कुल मिट्टी का है. उसके लिए सेक्स संभव ही नहीं है. कुल मिलाकर सेक्स की तमाम शारीरिक चाहत और क्षमता हमारी भावनाओं का खेल है.
यही वजह है कि यदि हम कभी सेक्स के लिए उत्तेजक स्थिति में भी हों और तभी दिल दिमाग में डर, दहशत, शर्म, लज्जा, अपराधबोध या हीनताबोध की भावनाएं कब्जा कर लें तो एक पल में सेक्स गायब हो जाता है. इसके बाद चाहकर भी कोई सेक्स नहीं कर सकता. क्योंकि सेक्स भले शरीर से होता हो, लेकिन इसके लिए शरीर को तैयार भावनाएं ही करती हैं. कहने का मतलब यह कि सेक्स की गतिविधियां वास्तव में हमारी भावनात्मक गतिविधियां होती हैं. यही वजह है कि हमारी नकारात्मक भावनाओं का हमारे सेक्स संबंधों पर जबरदस्त असर पड़ता है.