मोदी सरकार ने भीमराव अंबेडकर के आरक्षण का असर कम करने के लिए पढ़ाई की संस्थाओं में जो इकोनौमिकली वीकर सैक्शनों के लिए आरक्षण घोषित किया था, उस में भी अड़चनें आ रही हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेजों में बहुत सी सीटें खाली रह गई हैं क्योंकि चाहने वालों को सर्टिफिकेट नहीं मिले थे.

शायद बात दूसरी है. रिजर्वेशन के खिलाफ हल्ला इसलिए नहीं है कि ऊंची जातियों के लोगों को शिक्षा संस्थानों या नौकरियों में जगह नहीं मिल पा रही है और उन की जगह पिछड़े और दलित आ रहे हैं. यह हल्ला तो इसलिए मच रहा है कि आखिर पिछड़े और दलित पढ़ें ही क्यों और सरकारी नौकरी में बाबू अफसर क्यों बनें?

ऊंची जाति वालों को रोज पुराण पढ़ कर आज भी सुनाए जा रहे हैं कि साफ लिखा है कि पिछड़ी और निचली जाति के लोगों का काम न राज करना है, न ज्ञान पाना और देना है, न व्यापार करना है. ऊंची जातियों के लोगों ने पिछले 200 सालों में बड़ी मेहनत से पुराणों की महानता का बखान करकर के लोगों के दिमाग में बैठाया है कि जो भी इन में लिखा है वही पहला और आखिरी सच है और इन में अगर लिखा है कि शूद्र (सभी पिछड़े ओबीसी) व जाति बाहर (सभी तरह के दलित) न पैसे के हकदार हैं, न राज के, न पढ़ाई और ज्ञान के तो सही लिखा है. यह इन के पिछले जन्मों के पापों का फल है और इन्हें भुगता जाना चाहिए चाहे कोई भी कीमत हो. इन्हें न भोगना भगवान के आदेश के खिलाफ जाना है. अगर नासमझ पिछड़े व दलित इस ईश्वरवाणी को नहीं समझ रहे तो ज्ञानी स्वामियों का फर्ज व अधिकार है कि वे समझाएं चाहे बोल कर या डंडा मार कर या फिर जेल में बंद कर के.

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