देश के सब से पिछड़े राज्य बिहार ने हाल में दावा किया है कि उस ने जमीनों की मिल्कीयत का डिजिटल नक्शा एक सौफ्टवेयर के जरीए बना लिया है और जब भी कोई बदलाव मालिक का होगा, यह नक्शा अपनेआप बदल जाएगा और कोई भी विवाद खड़ा न होगा. फरवरी, 2021 में बिहार विधानसभा ने इस बारे में कानून पास किया था और केंचुए की स्पीड से चलने वाली नौकरशाही का दावा है कि अब यह लोगों के लिए लगभग तैयार है.

बिहार में सरकार के हिसाब से कोई 37,000 मामले जमीन की मिल्कीयत को ले कर चल रहे हैं. हर जना जो मेहनत से कमाए पैसे से जमीन खरीदना चाहता है, डरता रहता है कि कहीं उस का मालिक या दावेदार और कोई नहीं निकल आए. वर्षों बाद भी किसी पुराने दस्तावेज को चुनौती दे दी जाती है.

यह काम लोगों के भले के लिए किया जा रहा है, इस में पूरा शक है. असल में शहरों में रहने वालों की नजर अब गांवों की जमीनों पर फिर जा रही है जो पहले कोडि़यों के भावों में बिका करती थीं. अब इन के दाम लाखोंकरोड़ों में होने लगे हैं. रिश्वत या ऊपरी कमाई वाले शहरी बाबू, नेता, माफियाई और पैसे के भंडार वाली कंपनियां अब गांवों की जमीनों पर कब्जा चाहती हैं और उन्होंने कंप्यूटर टैक्नोलौजी को हथियार बनाया है.

बिहार का यह डिजिटल नक्शा करोड़ों की लागत में बना है. 20 जिलों के एरियल ड्रोनों और हवाईजहाजों से फोटो लिए गए, हर खसरे के कागज निकाल कर मिलान किए गए, 5,000 लोग इस काम में लगे ताकि 5,127 गांवों की जमीनों के 22,000 नक्शे तैयार हो सकें. यह सब काम जनता और किसानों के लिए किया गया हो, यह नामुमकिन है.

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