गुरुवार 10 अगस्त की रात के करीब 10 बजे कोटा रेलवे स्टेशन पर रोज की तरह अच्छीखासी गहमागहमी थी. अजमेर से जयपुर होती हुई कोटा पहुंचने वाली जबलपुर एक्सप्रेस निर्धारित समय से लगभग आधा घंटा देरी से पहुंची थी, इसलिए बाहर निकलती सवारियों, दुपहिया, तिपहिया वाहनों और कारों की आवाजाही के कोलाहल में ठीक से कुछ भी सुनाई देना मुश्किल हो रहा था. स्टेशन के बाहरी क्षेत्र को बजरिया कहते हैं, उसी से सटा डडवाड़ा रिहायशी इलाका है.
डडवाड़ा के रहने वाले प्रौपर्टी व्यवसाई दुर्गेश मालवीय रोज के इस शोरगुल के अभ्यस्त थे. उस समय वह स्टेशन के बाहर बने सुलभ कौंप्लेक्स के पास लगी बेंचों में से एक पर बैठे अपने करीबी दोस्त मंगेश कुमावत के साथ बातों में मशगूल थे. दुर्गेश भाजपा संगठन के स्थानीय पदाधिकारी थे और मंगेश कार्यकर्ता. उन के बीच पार्टी को ले कर ही बातें हो रही थीं.
दोनों आगेपीछे की बेचों पर बैठे थे. पलभर के लिए मंगेश स्टेशन से निकलती भीड़ को देखने लगे, तभी 2 धमाके हुए और दुर्गेश मालवीय चीख कर बेंच से नीचे लुढ़क गए. मंगेश ने मुंह घुमा कर देखा तो उन्हें एक हेलमेटधारी तेजी से बाईं ओर की कासिम गली की तरफ भागता नजर आया. उस ने मुंह पर रूमाल बांध रखा था. मंगेश ने पलट कर दुर्गेश की तरफ देखा तो उस की आंखें फटी रह गईं.
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दुर्गेश बेंच के नीचे गिरा छटपटा रहा था. उस की कनपटी से तेजी से खून बह रहा था. निस्संदेह पिछली बेंच पर बैठा दुर्गेश किसी शूटर की गोली का शिकार हुआ था. उस ने तुरंत दुर्गेश को संभालने की कोशिश की. इस बीच इलाके के तमाम लोग वहां आ गए थे.
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