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आशीष नेमा अपने साथियों भागचंद यादव, राहुल जैन, धर्मेंद्र जाट, सुनील जाट, अजय जाट के साथ मिल कर सूदखोरी का काम करता था. स्थानीय लोग बताते हैं कि जो भी जरूरतमंद इन के चंगुल में फंस जाता, उसे ये सूदखोर दिन दूना रात चौगुना ब्याज लगा कर तबाह कर देते. पैसे न देने पर घर में घुस कर परिवार की महिलाओं की बेइज्जती करते और जान से मारने की धमकी देते.

नरसिंहपुर और आसपास के इलाके के न जाने कितने लोग इन के कर्ज में दब कर बरबाद हो चुके थे. इन सूदखोरों के पास कर्ज देने का कोई वैधानिक लाइसैंस नहीं था. ये तो केवल अपने रसूख और दबंगई के चलते यह धंधा कर रहे थे.

इन सब बातों से अंजान डा. सिद्धार्थ अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इन सूदखोरों से कर्ज लेने लगे. वे मानते थे कि बैंक से सस्ता लोन मिला है चुक जाएगा. लेकिन वे भूल कर बैठे कि वे उन ठगों के गिरोह की  गिरफ्त में आ गए हैं, जहां कितने ही हाथपैर मारो, दलदल में फंसते जाना है.

सूदखोरों को तो एक दुधारू गाय हाथ आ गई थी. सूदखोरों ने शुरुआत में उन्हें डेढ़दो प्रतिशत के ब्याज पर कर्जा दिया, बाद में यह ब्याज चक्रवृद्धि की तर्ज पर लगने लगा. एक समय ऐसा आया, जब डा. सिद्धार्थ से सूदखोर 120 फीसद तक ब्याज वसूलने लगे. कुछ अवसरों पर तो पैनल्टी की राशि 1 लाख रुपए प्रतिदिन तक हो गई थी.

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सिद्धार्थ को सूदखोरों के चंगुल से बचाने के लिए पूरा परिवार मजबूती के साथ खड़ा तो हुआ लेकिन भ्रष्ट सिस्टम के आगे उन की एक न चली.

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