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सौजन्य- सत्यकथा

कन्नौज जिले का एक बड़ा कस्बा है सौरिख. इसी कस्बे के नगरिया तालपार में शिक्षक इंद्रपाल रहते
थे. उन के पिता श्रीकृष्ण मुर्रा गांव के निवासी थे. वहां उन का पुश्तैनी मकान तथा खेती की जमीन है. उन के बेटे इंद्रपाल ने सौरिख कस्बे में दोमंजिला मकान बनवा लिया था. इंद्रपाल की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह शिक्षक संघ का अध्यक्ष भी था.

वर्ष 2001 में इंद्रपाल का विवाह फर्रुखाबाद (गदराना) निवासी सरयू प्रसाद की बेटी सुधा के साथ हुआ था. सुधा साधारण रंगरूप वाली युवती थी. लगभग 2 साल तक दोनों का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीता, उस के बाद कड़वाहट घुलने लगी. कड़वाहट का पहला कारण था, इंद्रपाल का शराब पी कर घर आना तथा दूसरा कारण था झगड़ा और मारपीट करना. सुधा शराब पीने को मना करती तो वह उसे ही दोषी ठहराता और उस के चरित्र पर अंगुली उठाता, सुधा तब परेशान हो कर मायके चली जाती.

सुधा जब पहले मायके आती थी तो उल्लास से भरे उस के पैर एक स्थान पर नहीं टिकते थे. लेकिन अब जब भी आती थी तो वह गुमसुम और उदास रहती थी. उस की मां तारावती ने कई बार उस से पूछा भी कि बेटी, क्या ससुराल में तुम्हें किसी तरह का दुख या परेशानी है?

‘‘नहीं मां सब ठीक है. ऐसा कुछ भी गलत नहीं है कि उसे सही करने के लिए तुम्हें दखल देने की जरूरत हो.’’ कह कर सुधा हर बार टाल देती.

तारावती के सीने में मां का दिल था. वह खूब समझ रही थी कि सुधा असल बात बता नहीं रही, कुछ छिपाए हुए है. इस बारे में उस ने पति से राय ली तो सरयू प्रसाद ने कहा कि उन लोगों का कोई घरेलू और आपसी मामला होगा. उन्हें ही सुलझाने दो. हमें दखल देने की जरूरत नहीं है. हम दखल देंगे, तो बात बनने के बजाय बिगड़ने का अंदेशा है.

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