सौजन्य-सत्यकथा
मुख्तार अंसारी बड़े भाई के राजनैतिक रसूख का भरपूर लाभ उठाता रहा. जैसेजैसे राजनीतिक संरक्षण मिलता गया, वैसेवैसे उस का आपराधिक ग्राफ बढ़ता गया. यह हाल हो गया था कि अब पुलिस वाले भी मुख्तार अंसारी की गोली का शिकार बनने लगे थे.
इस का उदाहरण सन 1987 में वाराणसी पुलिस लाइन में देखने को मिला. मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट ने जिस दुस्साहस का परिचय दिया था, उस से प्रदेश पुलिस हिल गई थी. मामला जुड़ा हुआ था बृजेश ऐंड त्रिभुवन सिंह गैंग से. दरअसल, त्रिभुवन सिंह का भाई राजेंद्र सिंह हेडकांसटेबल था. वह वाराणसी में पुलिस लाइन में तैनात था. मुख्तार अंसारी ने अपने साथियों साधू सिंह, कमलेश सिंह, हरिहर सिंह और भीम सिंह के साथ मिल कर वाराणसी पुलिस लाइन में दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया था.
पुलिस ने मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार करने के लिए एड़ीचोटी का जोरलगा दिया, लेकिन विधायक भाई अफजल अंसारी के हस्तक्षेप से पुलिस उस का बाल बांका नहीं कर पाई.
इस के बाद बृजेश गैंग भी चुप नहीं बैठा. बृजेश और त्रिभुवन गैंग ने मिल कर मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ माने जाने वाले साधू सिंह को मौत के घाट उतार कर अंसारी को तोड़ने की कोशिश की. साधू सिंह की हत्या से मुख्तार अंसारी को बड़ा झटका लगा.
इस के बाद तो बृजेश गैंग ने एकएक कर के मुख्तार असांरी के कई नामचीन साथियों को मौत के घाट उतार दिया. धीरेधीरे बृजेश सिंह गिरोह की पूर्वांचल में तूती बोलने लगी. नब्बे के दशक में 2 आपराधिक गिरोहों की समानांतर सरकार चल रही थी. कभी बृजेश सिंह गैंग मुख्तार अंसारी पर भारी पड़ता तो कभी मुख्तार अंसारी गिरोह बृजेश पर.